तत्त्वार्थ त्र॥४॥ पला अर्ाथत...

53
±˃Çा²थ Ìूč xç¿ा¿ –8 Presentation Developed by: Smt. Sarika Vikas Chabra Ñा¶ाÇÁ¯ ³Èथ¶ाÇÁ¯ Çे³¶g¿ ¾ाेͶg¿ xा¿ु ¶ा¾ ाेč xé±Áा¿ xाª ¾थ

Upload: others

Post on 27-Jul-2020

9 views

Category:

Documents


0 download

TRANSCRIPT

  • तत्त्वार्थ सूत्र अध्याय – 8

    Presentation Developed by:

    Smt. Sarika Vikas Chabra

    ज्ञानावरणदर्थनावरण

    वेदनीय

    माेहनीयअायु

    नाम

    गाेत्र

    अन्तराय

    अाठ कमथ

  • कमथ का अस्ततत्व है यह कैसे जाना जाता है?हर जीव का रंग रूप, कुल अलग अलग है

    हर जीव का ज्ञान अलग अलग है

    हमारे माता पपता जाे हैं वाे ही काें हैं?

    हम स्त्री, पुरुष ही काें है? जाे ततयंच है वाे ततयंच ही काें हैं ?

    सबके धनादद बाह्य संयाेग चाहन ेपर भी भभन्न भभन्न काें हैं

    बाहरी संयाेग सामान हाेने पर भी सुख व् दखु का अनुभावन अलग अलग काें हैं?

  • जीव के पररणामाे ंका तनभमत्त पाकर

    जाे कामथण वगाथणाये ं

    जीव के सार् एक क्षेत्रावागाह संबंध रूप हाे जाती हैं,

    उन्हें कमथ कहत ेहैं ।

    कमथ

  • भमथ्यादर्थनापवरतत-प्रमाद-कषाय-याेगा बन्धहेतव: ॥१॥

    ❀भमथ्यादर्थन, अपवरतत, प्रमाद, कषाय अाैर याेग — ये बंध के हेतु हैं ॥१॥

  • भमथ् यादर्थनअपवरतत

    प्रमाद

    कषाय

    याेग

  • भमथ् यादर्थन (अतत्त्वश्रद्धान)अगृहीत

    (नैसर्गथक) गृहीत (परापदेर् पूवथक)

    एकान् त पवपरीत संर्य पवनय अज्ञान

  • अपवरतत (12)(इस्न्िय पवषयांे व प्राणी हहंसा कात् याग न हाेना)

    6 इस्न्ियअपवरतत 6 प्राणी अपवरतत

  • •अच् छे कायाें मंे अनुत् साह का हाेनाप्रमाद (15)

    •अात् मा काे कसेकषाय (25)

    •कमथ अाकषथण की अात् मा की र्भियाेग (15)

  • याेग (15)

    मनाेयागे (4)

    सत् य मनाेयागे

    असत् य मनाेयागे

    उभय मनाेयागे

    अनुभय मनाेयागे

    वचन याेग (4)

    सत् य वचन याेग

    असत् य वचन याेग

    उभय वचन याेग

    अनुभय वचन याेग

    काययाेग (7)

    अाैदाररक काय याेग

    अाैदाररक भमश्र काय याेग

    वैपिय क काय याेग

    वैपियक भमश्र काय याेग

    अाहारक काय याेग

    अाहारक भमश्र काय याेग

    कामाथण काय याेग

  • सकषायत्वाज्जीव: कमथणाे याेग्यान ्पुद्गलानादत्ते स बंध: ॥२॥

    ❀कषाय सहहत हाेने से जीव कमथ के याेग् य पुद्गलाें काे ग्रहण करता है वह बन् ध है ॥२॥

  • पकस गुणत र्ान तक बंध के काैनसे कारण हाेते हैं ?

    0

    2

    4

    6

    8

    10

    12

    14

    मिथ्यात्व अववरति प्रिाद कषाय योग

    Series 3

    मिथ्यात्व अववरति प्रिाद कषाय योग

  • प्रकृतत-स्तर्त्यनुभव-प्रदेर्ाततहिधय: ॥३॥

    ❀उसके प्रकृतत, स्तर्तत, अनुभव अाैर प्रदेर् ये चार भेद हंै ॥३॥

  • बंध क् या है ?

    •बंध क् या हाे रहा है ?

    •याेग्य कामाथण वगथणा का (पुद ̖गल का) पकसका ?

    •कषाय सहहत जीव काे (संसारी मूततथक जीव) पकसे ?

    •अनादद से कब से ?

  • जीव भाव- कमथ करता(माेह-रा गादद)

    नवीन िव् य कमथ बंधहाेता

    पूवथ बंधेिव् य कमथ का उदय

    यहााँ जीव कमथ के मंद उदय में पुरुषार्थ से इसचि काे राेक सकता है ꠰

    कमथ बंध चि

  • कमथ बंध

    प्रकृतत

    कमथ का तवभाव

    प्रदेर्

    कमथ परमाणअुाेंकी संख्या

    स्तर्तत

    कमथ का अात्मा केसार् रहने का काल

    अनुभाग

    कमथ के अात्मा काेफल देने की र्भि

    याेग से कषाय से

  • िव् य कमथ-भाव कमथ तनभमत्त-उपादान

    कायथ उपादान कारण (कताथ) तनभमत्त कारण

    (त वयं कायथ रूप पररणमे) (त वयं कायथ रूप न पररणमे, पर कायथ की उत् पत्तत्त में सहायक हाे)िव् य बंध

    (िव् य कमथ) कामाथण वगथणा जीव के याेग व कषायभव बंध

    (भाव कमथ)जीव के याेग कषाय की पूवथ

    पयाथय उदय/उदीरणा काे प्राप् त कमथदृष ातं-घड़ ा भम ̖ी कुम् भकार

  • अाद्ाे ज्ञान-दर्थनावरण-वदेनीय-माेहनीयायुनाथम-गाते्रान्तराया: ॥४॥

    ❀पहला अर्ाथत प्रकृततबन् ध ज्ञानावरण, दर्थनावरण, वेदनीय, माेहनीय, अाय,ु नाम, गाेत्र अाैर अन् तरायरूप है ॥४॥

  • सामान् य से• 1-कमथ• 2-घाततया कमथ-अघाततया कमथ• 3-िव् यकमथ, भाव कमथ, नाै कमथ• 4-प्रकृतत, प्रदेर्, स्तर्तत, अनुभाग

    मूल प्रकृतत • 8

    उत्तर प्रकृतत • 148 (संख् यात)

    भावाे ंकी अपेक्षा •असंख् यात

    परमाणअुाे ंकी अपेक्षा •अनंत

    अपवभाग प्रततच् छेद अपेक्षा •अनंतानतं

    कमथ के भदे

  • कमथ (8 / 148)

    घाततया (4 / 47)

    जाे जीव के तवभाव का घात करंे

    अघाततया (4 / 101)

    जाे जीव के तवभाव का घात नही ंकरे

  • गुणअनुजीवीभाव त वरूप गुण

    जैसे - ज्ञान, दर्थन, सखु, वीयथ

    प्रततजीवीअभाव त वरूप धमथ

    नास्ततत् व, अचेतनत् व, सकू्ष् मत् व, अमूतथत् व

  • घाततया

    ज्ञानावरण दर्थनावरण माेहनीय अंतराय

  • अघाततया

    वेदनीय अायु नाम गाेत्र

  • पञ्च-नव-ियष्टापवरं्तत-चतर्ु-हिचत्वाररंर्द्-हि-पञ्च-भेदा-यर्ािमम् ॥५॥

    ❀अाठ मूल प्रकृततयाें के अनुिम से पााँच, नाै, दा,े अट्ठाईस, चार, ब् यालीस, दाे अाैर पा चं भेद हंै ॥५॥

  • नाम

    ज्ञानावरण

    5

    दर्थनावरण

    9

    अंतराय

    5

    माेहनीय

    28

    अायु

    4

    नाम

    42

    गाेत्र

    2

    वेदनीय

    2

  • मततश्रुतावधध-मन:पयथय केवलानाम् ॥६॥

    ❀अन्वयार्थ : मततज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधधज्ञान, मन:पयथयज्ञान अाैर केवलज्ञान इनकाे अावरण करने वाले कमथ पााँच ज्ञानावरण हैं ॥६॥

  • 5 ज्ञान काे अावरण करने वाले 5 भेद

    मततज्ञानावरण श्रुत ज्ञानावरण अवधधज्ञानावरण

    मन:पयथयज्ञानावरण

    केवलज्ञानावरण

  • चक्षुरचक्षुरवधधकेवलाना ंतनिा-तनिातनिा-प्रचला-प्रचलाप्रचला-तत्यानगदृ्धयश्च ॥७॥

    ❀चक्षुदर्थन, अचक्षुदर्थन, अवधधदर्थन अाैर केवलदर्थन इन चाराें के चार अावरण तर्ा तनिा, तनिातनिा, प्रचला, प्रचला-प्रचला अाैर त त् यानगदृ्धद्ध ये पााँच तनिादिक एेसे नाै दर्थनावरण है ॥७॥

  • दर्थनावरण• र्काव काे दरू करने के भलये,भ्रमण करत ेहुए रुकना, बैठना, र्गरनातनिा• नींद पर नींद ,नेत्राें काे न उघाड़ पानातनिा-2• र्ाेक, श्रम, मद से उत् पन् न, नेत्र कुछ उघाड़ े हुए साेना, ऊंघनाप्रचला• खड़ े-खड़ े, बैठे-बैठे, चलत-ेचलत,े पुन:-पनु: नींद अाए,मखु से लार अाना, हार्-परै चलानाप्रचला-2

    • वीयथ र्भि पवर्ेष हाेने से नींद में कदठन कायथ करना, उठा हुअा भी साेनात त् यानगृद्धद्ध

  • दर्थनावरण

    अावरण(4)

    चक्षु अचक्षु अवधध केवल

    तनिाएं (5)

    तनिा तनिा-2 प्रचला प्रचला-2 त त् यानगृद्धद्ध

  • दर्थनचक्षु नेत्र जन् य मतत ज्ञान से पहलेअचक्षु नेत्र के ससवाय र्ेष इस्न्ियाें व मन संबंधी मतत ज्ञान से पहलेअवधध अवधध ज्ञान से पहलेकेवल केवल ज्ञान के सार्

    हाने ेवालासामान् यप्रततभास

    ज्ञान का व् यापार

    यहााँ 4 दर्थन बताये है,ं ऊपर इनकाे

    अावरण करने वाले 4दर्थनावरण कमथ

    जानना

  • अल् पज्ञ (मतत - श्रुत ज्ञानी)

    दर्थन पहले पफर ज्ञान

    िमर्:

    क्षायापेर्भमक

    सवथज्ञ (केवली)

    दर्थन अाैर ज्ञान सार् में

    युगपद्

    क्षार्यक

  • मन: पयथयज्ञान उत् पत्तत्त िम

    अचक्षु दर्थन ईहा मततज्ञान मन:पयथय ज्ञान

    मन:पयथय दर्थन न हाेन ेसे उसे अावरण करने वाला कमथ भी नही ंहाेता है ꠰

  • सदसिेद् े॥८॥

    ❀सिेद् अाैर असिेद् ये दाे वेदनीय हंै ॥८॥

  • वेदनीयचाराें गततयाे ंमें दाेनाे ंके उदय हाेते हैं ꠰

    साता

    •सुख रूप अनुभव•उपचार से -अनुकूलसामग्री की प्राति

    असाता

    •द:ुख रूप अनुभव•प्रततकूल सामग्री की प्राति

  • अात् मा का सुख गुण

    इनमे ंवेदनीय कमथ तनभमत्त हैं

    त वभाव पररणमन

    तनराकुलता

    अतीस्न्िय सुख

    पवभाव पररणमन

    अाकुलता

    इस्न्िय सुख

  • दर्थनचाररत्र-माहेनीयाकषाय-कषायवदेनीयाख्यास्त्रस्त्रहि-नव-षाड़ेर्भदेा: सम्यक्त्व-भमथ्यात्व-तदभुयान्यकषाय-कषाया ैहातयरत्यरतत-र्ाके-भय-जगुुप्सा-स्त्री-पनु्नपुसंक-वदेा

    अनन्तानबुधं्य-प्रत्याख्यान-प्रत्याख्यान-सजं्वलन-पवकल्पाश्चैकर्: िाेध-मान-माया-लाभेा: ॥९॥

    ❀दर्थनमाहेनीय, चाररत्रमाहेनीय, अकषायवेदनीय अाैर कषाय वेदनीय इनके िम से तीन, दाे, नाै अाैर साेलह भेद हैं ।

    ❀सम् यक् त् व, भमथ् यात् व अाैर तदभुय ये तीन दर्थनमाहेनीय है ं। ❀अ कषाय वेदनीय अाैर कषायवेदनीय ये दाे चाररत्र-माहेनीय हैं । ❀हात य, रतत, अरतत, र्ाेक, भय, जुगुप् सा, त रीवेद, पुंवेद अाैर नपुंसकवदे ये नाै अकषावदेनीय हैं । तर्ा

    ❀अनन् तानुबन् धी, अप्रत् याख् यान, प्रत् याख् यान अाैर संज् वलन ये प्रत् येक िाेध, मान, माया अाैर लाेभ के भेद से साेलह कषायवदेनीय हैं ॥९॥

  • माेहनीय कमथदर्थन माेहनीयश्रद्धा गुण के पवपरीत पररणमन में तनभमत्त

    चाररत्र माेहनीयचाररत्र गुण के पवपरीत पररणमन में तनभमत्त

  • दर्थन माेहनीय

    सम् यक् त् व

    जजसके उदय से सम् यक् त् वका मूल घात न हाे पर

    दाेष लगे

    भमथ् यात् व

    जजसके उदय से अतत्त्वश्रद्धान् हाे

    सम् यक् त् व भमथ् यात् व

    जजसके उदय से भमश्रपररणाम, तत्त्व अतत्त्व

    दाेनाें श्रद्धान् हाे

  • चाररत्र माेहनीय (2)

    अकषाय वेदनीय (9)

    जजसके उदय से (नाेकषाय) पकंभचत कषाय हाे

    कषाय वेदनीय (16)

  • नाेकषाय (9)

    हातयरतत अरततर्ाेकभय

    जुगुप्सास्त्रीवेदपुरुषवदेनपुंसकवदे

  • • जजसके उदय से हंसी अाएहात य

    • जजसके उदय से देर्ादद में उत् सकुता हाेरतत

    • जजसके उदय से देर्ादद में उत् सकुता न हाेअरतत

    • जजसके उदय से इष का पवयाेग हाेने पर द:ुख हाेर्ाेक

    • जजसके उदय से उिेग (भचत्त में घबराह) हाेभय

    • जजसके उदय से अपन ेदाेष छुपान ेव दसूरे के प्रक करने का भाव हाेजुगुप् सा

    • जजसके उदय से त री से रमने का भाव इत् याददत री

    • जजसके उदय सेपुरुष

    • जजसके उदय से पुरुष से रमने का भाव इत् याददनपुंसक

  • कषाय(16)

    िाेध

    अनंतानबुधंी

    अप्रत्याख्यान

    प्रत्याख्यान

    संज्वलन

    मान

    अनंतानबुधंी

    अप्रत्याख्यान

    प्रत्याख्यान

    संज्वलन

    माया

    अनंतानबुधंी

    अप्रत्याख्यान

    प्रत्याख्यान

    संज्वलन

    लाेभ

    अनंतानबुधंी

    अप्रत्याख्यान

    प्रत्याख्यान

    संज्वलन

  • अनन् तानुबंधी कषायअनन् त + अनुबन् ध

    अनन् त = अनन् त संसार का कारण भमथ् यात् व; एेसे भमथ् यात् व के सार् संबंधरूप करे अर्वा

    अनन् त = अनन् त संसार अवत र्ारूप काल ; एेसे संसार के सार् संबंधरूप करे

    वह अनन् तानबुधंी कषाय है ।

  • अप्रत् याख् यानावरण कषाय

    अ + प्रत् याख् यान + अावरण

    ईषत् / पकंभचत् + त् याग = पकंभचत ्त् याग याने अणु्त

    उस पर अावरण करे, नष करे, उसे अप्रत् याख् यानावरण कषाय कहते हैं ।

  • प्रत् याख् यानावरण कषाय

    प्रत् याख् यान + अावरण

    महा्तरूप सकल त्याग काे + अावरै, नष करे

    उसे प्रत् याख् यानावरण कषाय कहते हैं ।

  • संज् वलन कषायसं + ज् वलन

    समीचीन, तनमथल यर्ाख् यात चाररत्र काे + दहन करे

    उसे संज् वलन कषाय कहते हैं ।

  • अनंतानबुधंी

    तत्त्वार्थश्रद्धानरूप सम् यक् त् व का

    घात हाे अनंत संसार (भमथ् यात् व) के

    सार् संबंध कराये

    अप्रत् याख् यानावरण

    देर्चाररत्र काघात हाे

    पकंभचत् त् याग न हाेने दे

    प्रत् याख् यानावरण

    सकलचाररत्रका घात हाे

    पूणथ त् याग न हाेने दे

    संज् वलन

    यर्ाख् यातचाररत्र का घात हाे

    जाे संयम के सार् प्रज् वभलत

    रहे

  • कषायाेंकी र्भि

    अनन्तानुबन्धी ती्तर

    अप्रत्याख्यान ती्

    प्रत्याख्यान मंद

    संज्वलन मन्दतर

  • कषायाे ंके उत् कृष -जघन् य त र्ान के दृष ांत

    उत् कृष अनुत् कृष अजघन् य जघन् यिाेध शर्ला भेद पृथ् वी भेद धूभल रेखा जल रेखामान र्ैल अस्तर् काष ठ बेंतमाया बांस की जड़ मेढ़ े की सींग गाेमूत्र खुरपालाेभ पकरभमची रंग चिमल र्रीर का मैल हल् दी का रंगपकस गतत मेंउत् पन् न करतीहै

    नरक ततयंच मनुष य देव

  • पवर्ेष

    िाेध मान माया लाेभ में से एक समय में एक का ही उदय हाेता है ꠰

    अंतमुथहूतथ में उदय तनयम से बदल जाता है ꠰

    बंध चाराे ंका प्रतत समय हाेता है ꠰

  • नारकतैयथग्याेन-मानषु-दैवातन ॥१०॥

    ❀नरकायु, ततयंचाय,ु मनुष यायु अाैर देवायु ये चार अायु हंै ॥१०॥

  • नरकायु

    नारकी

    ततयंचायु

    ततयंच

    मनुष यायु

    देव

    देवायु

    मनुष य

    अायु

    के र्रीर में राेके रखे

  • ➢Reference : तत्त्वार्थमञ्जषूा, गाेम्मसार कमथकाण्ड़, गाेम्मसार जीवकाड़ं -रेखाभचत्र एवं ताभलकाअाे ंमें, तत्त्वार्थसतू्र - रेखाभचत्र एवं ताभलकाअाे ंमें➢Presentation developed by :Smt. Sarika Vikas Chhabra➢For updates / feedback / suggestions, please contact➢Sarika Jain, [email protected]➢ www.jainkosh.org➢ : 94066-82889

    mailto:[email protected]