shri guru nanak dev ji sakhi - 010a
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गुरु जी अब रोजाना ही पशुओं को जंगल जूह में ले जाते| एक दि�न वैसाख के महीने में दुपहर के समय पशुओं को छाओं के नीचे बिबठा कर गुरु जी लेट गए| सूरज के ढलने के साथ वृक्ष बिक छाया भी ढलने लगी| आप के मुख पर सूरज बिक धूप �ेखकर एक सफे़� साँप अपन ेफन के साथ छाया करके बैठ गया| उस समय राये बुलार अपने साथिथयोँ के संग थिशकार खेल कर वाबिपस अपने घर को जा रहा था|
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राये बुलार ऐसे कौतक को �ेखकर �ंग रह गया और गुरु जी को नमस्कार करते हुए मन ही मन गुरु जी की मबिहमा गाता हुआ अपने घर की ओर रवाना हो गया|
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