तत्त्वार्थत्र छठा अध्याय · काय, वचन...

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तवाथसू छठा अयाय PRESENTATION CREATED BY: ीमतत सारिका जैन Presentation Created By- ीमतत सारिका ववकास छाबड़ा

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  • तत्त्वार्थसूत्र छठा अध्याय

    PRESENTATION CREATED BY:श्रीमतत सारिका जैन

    Presentation Created By- श्रीमतत सारिका ववकास छाबड़ ा

  • Presentation Created By- श्रीमति सारिका विकास छाबड़ा

  • ग्रंर् प्रािंभ किने के पूवथ जानने याेग्य ६ बातें:

    Presentation Created By- श्रीमति सारिका विकास छाबड़ा

    • तत्त्वार्थसतू्रग्रंर् का नाम •अाचायथ उमास्वामीग्रंर् के िचययता•अिहंत देव काेमंगलाचिण में वकसे नमस्काि वकया गया है:

    • १० अध्याय, ३५७ सूत्रग्रंर् का प्रमाण• भव्य जीवाे ंके तनममत्ततनममत्त• माेक्ष प्राति हेतुहेतु

  • तत्त्वार्थसूत्र अर्ाथत ७ तत्त्व•जीव तत्त्व१ - ४ अध्याय•अजीव तत्त्व५ वााँ अध्याय•अास्त्रव तत्त्व६ - ७ अध्याय• बंध तत्त्व८ वााँ अध्याय•संवि व तनजथिा तत्त्व९ वााँ अध्याय• माेक्ष तत्त्व१० वााँ अध्याय

    Presentation Created By- श्रीमति सारिका विकास छाबड़ा

  • इसे समझना काें अावश्यक है?

    काेंवक ७ तत्त्वाे ंकेसही श्रद्धान से ही सम्यग्दर्थन

    हाेता हैतत्त्वार्थश्रद्धान ंसम्यग्दर्थनम ॥

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  • इन ७ तत्त्वाे ंके सत्य श्रद्धान से हम ग्यािंटी से

    सुखी हाेगंे अाैि उनके सत्य श्रद्धान वबना हम ग्यािंटी सेदखुी ही िहेगंें

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  • Presentation Created By- श्रीमति सारिका विकास छाबड़ा

    ७ तत्त्वाें का सामान्य स्वरूप ?

  • जीव अजीव

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  • द्रव्य तत्त्वका अानाका अात्मा से संबंध हाेना

    का अाना रुकना

    का एकदेर् खखिनाका सम्पूणथ नार्

    - अास्रव- बन्ध- संवि

    - तनजथिा- माेक्ष

    कमाेों

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  • का बने िहना

    उत्पत्तत्तवृद्धीपूणथता

    र्ुभ-अर्ुभ भावाें

    र्ुद्ध भावाे ंकी

    की उत्पत्तत्तभाव तत्त्व

    - अास्रव- बन्ध

    - संवि- तनजथिा- माेक्ष

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  • द्रव्य हैं, गुण हैं वक पयाथयें हैं?

    ❀जीव अजीव तत्त्व - द्रव्य हैं❀भाव अास्त्रव, बंध, संवि, तनजथिा, माेक्ष ये जीव द्रव्य की पयाथयें हैं

    ❀द्रव्य अास्त्रव, बंध, संवि, तनजथिा, माके्ष ये अजीव द्रव्य की पयाथयें हैं

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  • ❀कायवाङ मनःकमथयाेगः॥१॥❀काय, वचन अाैि मन की विया याेग है।

    ❀स अास्रव:॥२॥❀वह अास्त्रव है ॥२॥

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  • याेगभाव याेग

    कमथ-नाकेमथ काे ग्रहण किने की जीव की

    र्मि

    द्रव्य याेग

    अात्म प्रदेर्ाें में परिस्पन्दन

    उसमें तनममत्त मन, वचन काय की चेष्टा

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  • याेग

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    र्िीि, वचन अाैि मन की विया किने के मलये उस विया के अमभमखु

    जाे अात्मप्रदेर्ाे ंका परिस्पन्दन हैं वह याेग है

  • •काय की विया के मलये जाे प्रयत्न हाेता है उसे काय याेग कहते हैंकाय याेग

    •भाषा वगथणा संबंधी पुद्गल स्कन्धाे ंका अवलंबन किके जाे जीव प्रदेर्ाे ंका संकाेच ववस्ताि हाेता है वह वचन याेग हैवचन याेग

    • बाह्य पदार्ाेों के मचंतन में प्रवृत्त हुए मन से उत्पन्न जीव प्रदेर्ाें के परिस्पदं काे मनाेयागे कहते हैंमन याेग

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  • याेग गुण

    स्वभाव पयाथय

    तनष्कम्प अवस्र्ा

    ससद्ध व १४वेंगुणस्र्ानवतीथ

    ववभाव पयाथय

    सकम्प अवस्र्ा १ ले से १३ िेगुणस्र्ानवतीथPresentation Created By- श्रीमति सारिका विकास छाबड़ा

  • याेग(अात्मप्रदेर्ांे का परिस्पंदन) ही अास्त्रव है

  • अास्त्रवद्रव्य अास्रव

    पाैद्गमलक कमाेों का अाना

    भाव अास्रवअात्मा के माेह, िाग, दे्वषरूप ववकािी भाव

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  • कािण(तनममत्त)

    द्रव्य याेग

    जैसे- नाव में जल अाने का छछद्र

    कायथ

    कमाेों का अाना

    जैसे - जल का अाना

  • कमाेों का अानाउपादान

    भाव याेग

    तनममत्त

    मन, वचन, काय की चेष्टा

    कायथ

    द्रव्य याेग

    फल

    द्रव्यास्रव कमाेों का अाना

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  • तनममत्त अपेक्षा याेग के भदे

    मन याेग=४

    वचन याेग= ४

    काय याेग =७ कुल १५

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  • याेग काे ही अास्त्रव का कािण काें कहा?ममथ्यात्वादी काे अास्त्रव का कािण काें

    नहीं कहा?

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    याेग 1 से 13 गुणस्र्ान तक पाया जाता है जबवक ममथ्यात्वादी सभी

    में नहीं पाए जाते

  • ममथ्यात्वादद अास्रव के कािण कैसे नहीं?• १ गुणस्र्ान तक ही पाया जाता है, उसके अागे ममथ्यात्व वबना अास्रव कैसे घटटत हाेगा ?ममथ्यात्व

    • ४र्े गुणस्र्ान तक ही पाई जाती हैअववितत • ६वें गुणस्र्ान तक ही पाई जाती हैप्रमाद • १० वे गुणस्र्ान तक ही पाई जाती हैकषाय • १ले से १३वे गुणस्र्ान तक सभी जीवाे ंके पाया जाता हैयाेग Presentation Created By- श्रीमति सारिका विकास छाबड़ा

  • र्ुभ: पुण्यस्यार्भु: पापस्य॥३॥

    ❀र्ुभयाेग पुण्य का अाैि अर्ुभयाेग पाप का अास्रव है॥३॥

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  • याेग के तनममत्त से अास्रव में भेद

    पुण्यास्रव

    कािणर्ुभयागे (र्ुभपरिणामाे ंकेतनममत्त से)

    पापास्रव

    कािणअर्ुभयागे (अर्ुभ

    परिणामाे ंके तनममत्त से)

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  • र्ुभयाेग- सम्यगदर्थनादद से अनुिंजजत याेग ववर्ुछद्ध का अंग हाेने से र्ुभ याेग है

    काय

    •जैसे- प्राणीिक्षा

    •-पूजा•-स्वाध्याय

    वचन

    •जैसे- सत्य कर्न

    •-उपदेर्•-स्तुतत

    मन

    •जैसे- दसूिे काभला साेचना

    •-पंच पिमेष्ठीका मचंतन

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  • अर्ुभयाेग- ममथ्यादर्ाथनादी से अनुिंजजत याेग संके्लर् का अंग हाेन ेसे अर्ुभ याेग है

    काय

    •जैसे- प्राणी टहंसा•-चाेिी•-मैर्ुन

    वचन

    •जैसे- असत्य कर्न

    •-कटु वचन•-असभ्य वचन

    मन

    •जैसे- मािने काववचाि

    •-ईष्याथ

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  • Presentation Created By- श्रीमति सारिका विकास छाबड़ा

  • Presentation Created By- श्रीमति सारिका विकास छाबड़ा

    पुण्य बंध र्ुभ याेग से ही हाेता है

    र्ुभ याेग से मात्र पुण्य का ही बंध हाेता है एेसा नहीं ,बखकक पाप का भी बंध

    हाेता है |

  • सकषायाकषाययाेः साम्पिाययकेयाथपर्याेः।।४।।

    ❀कषाय सटहत अाैि कषायिटहत अात्मा केयाेग का िम से साम्पिाययक अाैि ईयाथपर्

    कमथ के अास्रवरूप है ॥।४॥

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  • अास्रव के रूप

    साम्पिाययक अास्रव

    कषाय सटहत

    ईयाथपर् अास्त्रव

    कषाय िटहतPresentation Created By- श्रीमति सारिका विकास छाबड़ा

  • •=कषाय; कषाय के सार् हाेने वाला अास्रव , •=संसाि; जाे कमथ संसाि का प्रयाेजक हैसाम्पिाय

    •ईयाथ = याेग, पर् = द्वाि•जाे कमथ मात्र याेग से ही अाते हैंईयाथपर्

    Presentation Created By- श्रीमति सारिका विकास छाबड़ा

  • साम्पिाययक अास्रव ईयाथपर् अास्रवस्वामी सकषायी(कषाय सटहत) अकषायी(कषाय िटहत)हेतु ममथ्यात्व, अववितत, प्रमाद, कषाय के सार् याेग ससफथ याेग

    वकसका कािण संसाि का कािण स्स्र्तत िटहत अास्रव काकािणवकतन ेप्रकाि काबंध हाेता है

    प्रकृतत, प्रदेर्, स्स्र्तत अाैि अनुभाग बंध हाेता है

    प्रकृतत अाैि प्रदेर् बंध हाेता है

    गुणस्र्ान पहले से १० वें गुणस्र्ान तक ११ वें,१२ वें, १३ वें गुणस्र्ान में

    जैसे- (कषायरुपी) तेल युि दीवाि पि (कमथरुपी) िज मचपक जाती हैकाेिी दीवाि पि िज अाकि चली जाती है

    Presentation Created By- श्रीमति सारिका विकास छाबड़ा

  • इखन्द्रय-कषायाव्रत-वियाः पञ्चचतुः पञ्च-पञ्चववरं्तत-संखयाः पूवथस्य भेदाः।।५।।

    ❀पूवथ के अर्ाथत साम्पिाययक अास्रव के इखन्द्रय, कषाय, अव्रत अाैि विया रूप भेद हैं जाे िम से ५, ४, ५, अाैि २५ हैं॥५॥

    Presentation Created By- श्रीमति सारिका विकास छाबड़ा

  • •अात्मा के मलंग काे इखन्द्रय कहते हैंइखन्द्रय•जाे अात्मा काे कसे अर्ाथत दःुख देकषाय•चारित्र माेहनीय कमथ के उदय से व्रत धािण नहीं किनाअव्रत • 25 वियायेंवियाPresentation Created By- श्रीमति सारिका विकास छाबड़ा

  • साम्पिाययक अास्रव -३९ भेद

    इखन्द्रय

    ५५ इखन्द्रयाे ंके ववषय में प्रवृत्तत्त का भाव

    कषाय

    ४जाे अात्मा काे कसे अर्ाथत दखु दे

    अव्रत

    ५दखु का कािण बुिा

    कायथ

    विया

    २५मभन्न मभन्न भावाे ंसटहत प्रवृत्तत्त

    Presentation Created By- श्रीमति सारिका विकास छाबड़ा

  • इखन्द्रय

    स्पर्थन िसना घ्राण

    चक्षु कणथ

    Presentation Created By- श्रीमति सारिका विकास छाबड़ा

  • कषायिाधे मान

    माया लाेभ

    Presentation Created By- श्रीमति सारिका विकास छाबड़ा

  • अव्रत

    टहंसा

    झूठ

    चाेिी

    कुर्ील

    परिग्रह

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  • विया५ ववमभन्न विया

    ५ टहंसा भाव की मुखयतारूप

    ५ इखन्द्रयाे ंके भाेग बढ़ ाने संबंधी

    ५ धमाथचिण में दाेष कािक

    ५ धमथधािण से ववमखु किन ेवालीPresentation Created By- श्रीमति सारिका विकास छाबड़ा

  • ५ ववमभन्न विया

    सम्यक्त्व

    ममथ्यात्व

    प्रयाेग

    समादान

    ईयाथपर्Presentation Created By- श्रीमति सारिका विकास छाबड़ा

  • Presentation Created By- श्रीमति सारिका विकास छाबड़ा

    •चैत्य, गुरु, र्ास्त्र की पूजा स्तवन अादद सम्यक्त्व काे बढ़ ान ेवाली वियाए ंसम्यक्त्व

    • कुदेव अादद के स्तवन अाददरूप ममथ्यात्व काे बढ़ ान ेवाली वियाएं ममथ्यात्व

    •र्िीिी अादद के द्वािा गमन अागमन अादद प्रवृत्तत्त रूप वियाएंप्रयाेग

    •संयम धािण किने पि भी अववितत की अाेि झुकनासमादान•ईयाथअास्त्रव के कािणभतू जाे परिस्पन्दनात्मक विया है ईयाथपर्

  • ५ टहंसा भाव की मुखयतारूप•िाेध के अावरे् से ह्रदय में दषु्टता रूप परिणाम हाेनाप्रदाेवषकी•दषु्ट भाव युि हाेकि उद्यम किनाकाययकी • टहंसा के उपकिण जजनसे ववकाि उत्पन्न हाेते हैं उनकाे ग्रहण किनाअधधकिछणकी•दसूिाे ंकाे दःुख उत्पन्न किने वाली वियापरितापकी• स्व-पि के अायु, इखन्द्रय,बल अाैि श्वासाेच्छ व्ास प्राणाें का ववयाेग किना प्राणाततपाततकीPresentation Created By- श्रीमति सारिका विकास छाबड़ा

  • ५ इखन्द्रयाें के भाेग बढ़ ाने संबंधी•िाग के वर्ीभतू प्रमादी जीव का िमणीय पदार्ाेों के सुन्दि रूपाे ंमें अवलाकेन किने का अमभप्राय हाेना दर्थन

    •छूने याेग्य पदार्थ के स्पर्थ किन ेमें िागी जीव की जाे छुते िहने की बुछद्ध हाेनास्पर्थन

    •प्राछणयाे ंका घात किन ेके मलये नये-नय ेउपकिणाे ंकाे उत्पन्न किनाप्रात्याययकी

    Presentation Created By- श्रीमति सारिका विकास छाबड़ा

  • Presentation Created By- श्रीमति सारिका विकास छाबड़ा

    •स्त्री पुरुष अाैि पर्ुअाे ंके उठने बैठने के स्र्ान पि मलाेत्सगथ किनासमन्तानुपात

    •प्रमाजथन अाैि अवलाेकन नहीं कीगई भूमम पि र्िीिादद का िखनाअनाभाेग

  • ५ धमाथचिण में दाेष कािक

    •जाे विया दसूिाें द्वािा किने की हाे उसे स्वयं कि लेनास्वहस्त•पाप में दसूिाें की प्रवृत्तत्त किाने के मलये सम्मतत देनातनसगथ•दसूिे ने जाे सावद्य वकया हाे उसे प्रकाशर्त किनाववदािण

    Presentation Created By- श्रीमति सारिका विकास छाबड़ा

  • Presentation Created By- श्रीमति सारिका विकास छाबड़ा

    •चारित्र माेहनीय के उदय से अावश्यक अादद के ववषय में र्ास्त्राेि अाज्ञा काे न पाल सकने के कािण अन्यर्ा तनरूपण किना

    अाज्ञाव्यपाददकी

    •धूतथता अाैि अालस्य के कािण र्ास्त्र में उपदेर्ी गई ववधध का अनादि अनाकांक्षा

  • ५ धमथधािण से ववमुख किने वाली• छेदना,भदेना अादद विया में स्वयं तत्पि िहना अाैि दसूिे के किने पि हवषथत हाेनाअािम्भ

    •परिग्रह के नष्ट न हाेन ेदेने के मलये हाे प्रयत्न किनापारिग्रटहकी•ज्ञान दर्थन अादद के ववषय में छल किनामाया• ममथ्यादर्थन के साधनाे ंसे युि पुरुष की प्रर्ंसा किना की ‘तु ठीक किता है’ममथ्यादर्थन

    •संयम का घात किन ेवाले कमथ के उदय से त्याग रूप परिणामाे ंका न हाेनाअप्रत्याखयान

    Presentation Created By- श्रीमति सारिका विकास छाबड़ा

  • कािण कायथपरिग्रह रूप अव्रत पारिग्रटहकीिाेध प्रदाेषमान अनम्रता, प्रात्यययकीमाया माया वियाप्राणाततपात (टहंसा) प्राणाततपाततकी, अािंभअसत्य, चाेिी, कुर्ील अाज्ञा-व्यापाददकाकुर्ील दर्थन, स्पर्थनअव्रत अप्रत्याखयान

    Presentation Created By- श्रीमति सारिका विकास छाबड़ा

  • Presentation Created By- श्रीमति सारिका विकास छाबड़ा

    याेग ताे सभी अात्माअाे ंके समान हाेता है ताे

    उनका अास्त्रव भी समान हाेगा?

  • Presentation Created By- श्रीमति सारिका विकास छाबड़ा

    कािण के भेद से कायथ (अास्त्रव) में भेद हाेता है

  • तीव्र-मन्द-ज्ञाता-ज्ञातभावाधधकिण-वीयथ-ववर्ेषभे्यस्तटद्वर्ेषः।।६।।

    ❀तीव्रभाव, मन्दभाव, ज्ञातभाव, अज्ञातभाव अधधकिण अाैि वीयथ के ववर्ेष से उसकी(अास्त्रव की) ववर्ेषता हाेती है |

    Presentation Created By- श्रीमति सारिका विकास छाबड़ा

  • अास्रव में हीनता-अधधकता के कािण•तीव्र कषायरूप भावतीव्रभाव•मंद कषायरूप भावमंदभाव•बुछद्धपवूथक जानकिज्ञातभाव•प्रमाद अज्ञान सटहतअज्ञातभाव•अाधािअधधकिण•स्वबलवीयथ

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  • वीयथ अात्मा का ही परिणाम हाेने पि अलग से काें मलया?

    Presentation Created By- श्रीमति सारिका विकास छाबड़ा

    र्मि ववर्ेष से टहंसादी में ववर्ेषता अाती है यह बताने के मलये वीयथ काे

    अलग से मलया

  • ➢Reference : तत्त्वार्थसूत्रजी , सवाथर्थससछद्धजी, तत्त्वार्थमञ्जूषाजी

    ➢Presentation created by : Smt. Sarika Vikas Chhabra

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