अनमोल वचन - jkyog.in€¦ · अनमोल वचन – जगद्गु...

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1 https://www.youtube.com/user/JKY0G www.jkyog.in https://www.facebook.com/jkyog.india/ JKYog India के सभी म� भाग लेने के िलए, कृपया इस ज़ूम िलंक पर �क कर� : https://zoom.us/j/6786919240 जगद् गु� कृपालु जी महाराज की अकारण कृपा एवं �ामी मुकु �ान� जी की असीम ेरणा से , ई�रीय सेवा के िनिम� आयोिजत काय�म

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    https://www.youtube.com/user/JKY0G www.jkyog.in https://www.facebook.com/jkyog.india/

    JKYog India के सभी सत्र म� भाग लेने के िलए, कृपया इस ज़ूम िलंक पर ��क कर� : https://zoom.us/j/6786919240

    जगद्गु� श्री कृपालु जी महाराज की अकारण कृपा एवं �ामी मुकु�ान� जी की असीम पे्ररणा से, ई�रीय सेवा के िनिम� आयोिजत काय�क्रम

    https://www.youtube.com/user/JKY0Ghttp://www.jkyog.in/https://www.facebook.com/jkyog.india/https://zoom.us/j/6786919240

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    सभी भ�ो ंका हािद�क �ागत!

    त��ान काय�सूची

    अनमोल वचन - जगद्गु� श्री कृपालु जी महाराज

    �ामीजी के श्रीमुख से त� �ान : नारद भ�� दश�न (सूत्र 10)

    �ामीजी के िदए �ए �ान पर चचा�

    अब तक का सारांश : (भ�� सूत्र 1 -10) प्रवचन शं्रखला

    आरती – जगद्गु� श्री कृपालु जी महाराज

    आरती – श्री राधाकृ�

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    अनमोल वचन – जगद्गु� श्री कृपालु जी महाराज

    “िजस िदन िकसी जीव को यह �ढ़ िव�ास हो जायेगा िक भगवान् और भगवान् का नाम एक ही ह�, दोनो ंम� एक सी श��याँ ह�, एक से गुण ह�, उसी �ण

    उसको भगव�ा�� हो जाएगी |”

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    �ामीजी के श्रीमुख से त� �ान

    आज का िवषय : नारद भ�� दश�न (भाग 13)

    भ�� सूत्र 10

    *****Radha Govind Dham is the publication unit of JKYog India*****

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    �ामीजी के िदए �ए त� �ान पर चचा�

    ❖ उदाहरण सिहत, अन�ता की प�रभाषा कीिजये |

    ❖ भगवान् अपने अन� भ� का योग�ेम वहन कैसे करते ह� ?

    भ�� के िस�ा�ो ंएवं अनेक उदाहरणो ंको सुनकर, आपको भ�� करने की पे्ररणा कैसे िमली ? भ�� करके आपके दैिनक जीवन म� आपको �ा लाभ िमल रह� ह� ?

    नोट : कृपया अपने आ�ा��क अनुभवो ंका वण�न ना कर� ! दैिनक जीवन के प�रवत�नो ंके बारे म� बताएँ |

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    अब तक का सारांश “नारद भ�� दश�न” (भ�� सूत्र 1-10) प्रवचन शं्रखला

    भगवत कृपा एवं पे्रम के िलए, �ान प्रा�� एवं उस �ान को उपयोग म� लाना अिनवाय� है | अतः कलयुगी जीवो ंके आ�ा��क उथ्थान के िलए,भ�� के प्रतीक - नारद जी ने "नारद भ�� दश�न" जैसा अनोखा और सरल ग्र� की रचना की |

    भ�� की सबसे सरल प�रभाषा - भगवान से पे्रम करने की पराका�ा| भगवान की भ��, भगवान से अिभ� है |

    हमारे अिनयंित्रत मन के सारे रोग, जैसे िचंता, भय, क्रोध, शोक इ�ािद का िनवारण भ�� से ही होता है | अतः दैिनक जीवन म�, हम� अपने मन को ठीक करने के िलए अ�िधक प्राथिमकता देनी चािहए |

    भ�� से उ��, सव�� आन� की अनुभूित के प�ात, संसार के कामनाय� एवं मु�� भी तु� प्रतीत होती ह� | भ� तो केवल संसार का उपयोग करता है, उपभोग नही ं| �ंूिक जीवन के अंत म� तो सब सामान एवं �र�ो ंको छोड़कर ही जाना पड़ेगा | भ� हमेशा संसार के िवरोधाभासी त�ो ंको सदैव याद रखता है और व��मान �ण म� केवल हरी-गु� का ही िचंतन करता है | इसीिलए प�र�स्थितयो ंचाहे जैसी भी हो,ं भ� हमेशा सकारा�क ही रहता है|

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    भगवान् को मात्र जान लेने से, सब काम बन जाता है - अमृत� हो जाओगे, िस� हो जाओगे, तृ� हो जाओगे, िच�ा - शोक - संसार की आस�� इ�ािद सब समा� हो जायेगा |

    स�ा भ� आ�ाराम हो जाता है अथा�त श्री कृ� म� ही रमन करता है |

    हम अपने आप को जब शरीर मानते ह�, तब शरीर स��ी कामनाय� करते ह� | इ�ी कामनाओ ंकी पूित� हेतु, हम लोग म��रो ंम� जाकर भगवान् से प्राथ�ना करते ह� और इस ब्र� म� होते ह� िक हम भ�� कर रह� ह� | िक�ु ये तो िसफ� (भगवान् के �ारा), हम संसार की भ�� कर रह� ह� |

    इस प्रकार की सकाम भ�� से, कामना पूत� पर, लोभ होता है और भिव� म� जब हमारा लोभ की पूत� नही ंहोती, तो हमारी भ�� टूट जाती है |

    िन�ाम भ�� म� कामना नही ंकी जाती |

    िन�ाम बनने के िलए, श्री महाराज जी ने कहा "ऐसे बन जाओ की ये कामनाएँ तरसती रह जाएँ और हम इनको �ीकार न कर�"|

    ह्रदय म� िन�ाम भ�� का स्थान बनाने के िलए, भु�� और मु�� - दोनो ंकामनाओ ंको सावधानी पूव�क, अपने दैिनक जीवन से �ागना पड़ेगा | ह्रदय म� भगवत पे्रम की ही िन�या�क चाह होनी चािहए |

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    मन को भगवान् और संसार दोनो ंम� नही ंलगा सकते | मन एक ही है - ित्रगुणा�क संसार म� लगाने से अशु� ही होगा | इसीिलए भ�� म� अन�ता की आव�कता है |

    पूण��पेण िन�ाम कैसे बने ? हरी - गु� के ही सुख का िनरंतर िचंतन करना होगा | रा�ा किठन है िक�ु हम� िनराशा नही ंहोनी चािहए |

    संसार के अ�ंत आव�क काय� को करने के िलए भी, मन म� भगवान् के िनिम� अप�ण भावना बनाकर कर� | इसी प्रकार माया के आधीन रहते �ए भी, माया पर िवजय प्रा� कर सकते ह� |

    भगवान् हमारे जीवन की प�र�स्थितयो ं�ारा, हमारी भ�� की परी�ा ल�गे तािक हम कसौटी पर खरे उतर� | इसीिलए भ�� की कला म�, हम� सहनशीलता, िन�ामता, दीनता, (िवरोधी त�ो ंके प्रित) उदासीनता इ�ािद �मताएँ को अपने अंदर बढ़ाना होगा |

    भ�� तो साधनहीन प्रकार की साधना है | अथा�त अ� सभी आश्रयो ं- जैसे की धन, �ान, बल, साधना, �ग� के देवी-देवता इ�ािद - सबका �ाग करना सीखाती है |

    भगवान् श्री कृ� ने अजु�न से गीता म� कहा था की "जो भ� मेरी अन� भ�� करता है, म� उसका योग�ेम वहन करता �ँ |"

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    जगद्गु� की आरती

    जयित जगद् गु� ग�वर की, गावो िमिल आरती रिसकवर की। गावो िमिल आरती रिसकवर की।

    भावाथ� : िनवेदन है िक सभी साधक वृ� सामूिहक �प से पे्रम पूव�क रिसको ंम� सव�शे्र� जगद्गु� श्री कृपालु जी महाराज की आरती गाओ । श्रीमद् सद्गु� सरकार की सदा जय जयकार हो।

    गु�पद-नख-मिण-च��का प्रकाश, जाके उर बसे ताके मोह तम नाश। जाके माथ नाथ तव हाथ कर वास, ताते होय माया मोह सब ही िनरास।

    पावे गित मित रित राधावर की, गावो िमिल आरती रिसकवर की गावो िमिल आरती रिसकवर की ॥ १॥

    भावाथ� : आपके चरण-कमलो ंकी नख मिणयाँ अन�ान� िद� �ोित से प्रदी� ह�। अतः जो जीवा�ा इ�� अपने ह्रदय म� धारण कर लेता है उसका मोह �पी अ�कार सदा को समा� हो जाता है। िजसके िसर पर आप अपना वरद ह� रख देते ह� उसकी माया िनवृि� हो जाती ह�, और वह सद्गु� कृपा प्रा� जीव श्रीकृ� की गित, बु�� एवं िद� पे्रमानंद को प्रा� कर सदा-सदा को ध� हो जाता है अतः सभी साधक जन एक �र से पे्रमो�� होकर ऐसे रिसक शेखर गु�देव की आरती गाओ।

    अरे मन मूढ़! छाँड़ु नारी नर हाथ, गु� िबनु ब्र� �ाम�ँ न द�गे साथ। कोमल कृपालु बड़े कृपािस�ु नाथ, पाके इ�� आज तू अनाथ हो सनाथ।

    इ�ी ंके अधीन कृपा िग�रधर की, गावो िमिल आरती रिसकवर की गावो िमिल आरती रिसकवर की ॥ २॥

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    भावाथ� : हे मुख� मन ! तू सांसा�रक स���यो ंके आश्रय को छोड़ दे। तू अनािदकाल से अनाथ की भाँित चौरासी लाख योिनयो ंम� भटक रहा है, आज ही इन गु�देव को अपना सव�� मानकर इनकी शरणागित ग्रहण कर सनाथ बन जा। इन गु�देव के िबना श्रीकृ� भी तेरा साथ नही ंद� गे। ये गु�देव अितशयाितशय कोमल, उदार एवं कृपा के अगाध समुद्र ह� और सबसे मह�पूव� बात तो यह है िक श्रीकृ� की कृपा भी इ�ी ंके अधीन है-

    भ�� योग-रस-अवतार अिभराम, कर� िनगमागम सम�य ललाम।

    �ामा �ाम नाम �प लीला गुण धाम, बाँिट रहे पे्रम िन�ाम िबनु दाम।

    हो रही सफल काया नारी नर की, गावो िमिल आरती रिसकवर की गावो िमिल आरती रिसकवर की ॥ ३॥

    भावाथ� : गोपी पे्रम के मूित�मान रसावतार ह�। साथ ही सभी शा�ो ंवेदो ंका सम�य बड़े ही मािम�क एवं ह्रदयग्राही ढंग से करने म� पारंगत ह�। आप �ामा-�ाम के नाम, �प, लीला, गुण धाम की मधु�रमा से सब को सराबोर कर देते ह�। अतः आप लोक क�ाणाथ� िन�ाम गोपी पे्रम अथा�त मो�पय�� की कामना से रिहत, एवं श्रीकृ� सुखैकता�य�मयी भ�� की अमू� िनिध को िबना िकसी मू� के िवत�रत कर रहे ह� । िजसे प्रा� कर असं� ��� अपने मानव देह को कृताथ� कर रहे ह� । अतः हे भ�जनो ं! ऐसे रिसक िशरोमिण की आरती का गान करो।

    लली लाल लीला का सलोना सुिवलास, छाया िद� �ि� िबच पे्रम का प्रकाश।

    वेसा ही िवनोद वही मंजु मृदु हास, कर� बस बरबस उ� अ�हास।

    झिूम चल� चाल वही नटवर की, गावो िमिल आरती रिसकवर की गावो िमिल आरती रिसकवर की ॥ ४॥

    भावाथ� : आप लीला िवग्रह श्री राधा-माधव के साकार ��प होने के कारण उ�ी ंयुगल सरकार की लीला माधुरी से संयु� ह� एवं वही िद� पे्रमानंद आपकी �ि� म� छलकता है।अप�रमेय िद� पे्रम-िसंधु म� अवगाहन करने के कारण आपका हास िवलास भी िवमल, रसिस� एवं उ� मधुर अ�हास के �प म� प्रकट होता है। उ�ी ंनटवर नागर की पे्रमो��, मदम� चाल से आप चलते ह�। हे िप्रय भ�ो ं! ऐसे रिसक शेखर गु�देव की आरती को भावमय होकर गाओ ।

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    श्री राधाकृ� की आरती

    आरित प्रीतम �ारी की, िक बनवारी, नथवारी की।

    भावाथ� : हम िप्रयतम �ामसंुदर एवं �ारी श्री िकशोरी जी की आरती करते ह� ।

    दु�ँन िसर कनक मुकुट झलकै, दु�ँन शु्रित कु�ल भल हलकै,

    दु�ँन �ग पे्रम-सुधा छलकै, चसीले बैन, रसीले नैन, गँसीले सैन,

    दु�ँन मैनन मनहारी की, िक बनवारी, नथवारी की॥ १॥

    भावाथ� : दोनो ंके िसर पर सुवण� के मुकुट चमक रहे ह�। दोनो ंके कानो ंम� संुदर कंुडल िहल रहे ह�। दोनो ंकी आँखो ंम� पे्रमामृत रस छलक रहा है। दोनो ंकी वाणी अ�ंत मधुर है। दोनो ंके नेत्र अ�ंत सरस ह�। दोनो ंके कटा� अ�ंत ही तीखे ह�। दोनो ंकामदेव के मन को भी हरने वाले ह�।

    दु�ँन �ग िचतविन पर वारी, दु�ँन लट लटकिन छिव �ारी, दु�ँन भौ ंमटकिन अित �ारी,

    रसन मुख पान, हँसन मुसकान, दसन दमकान, दु�ँन बेसर छिव �ारी की, िक बनवारी, नथवारी की ॥ २॥

    भावाथ� : म� दोनो ंके पर�र देखने पर बिलहार जाता �ँ। दोनो ंके घँुघराले बालो ंका छटा अ�ंत ही िनराली है। दोनो ंके भौहो ंके चलाने की रीित अ�ंत ही आकष�क है। दोनो ंके मुख म� पान का रस है। दोनो ंका हँसना, मु�ाना मनमोहक है । दोनो ंके दाँतो ंकी चमक अ�ंत संुदर है । दोनो ंकी बेसर झाँकी तो अ�ंत ही िनराली है।

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    एक उर पीता�र फहरै, एक उर नीला�र लहरै,

    दु�ँन उर लर-मोितन छहरै, कंकनन खनक, िकंिकिनक झनक, नूपु�न भनक,

    दु�ँन �नझुन धुिन �ारी की, िक बनवारी, नथवारी की ॥ ३॥

    भावाथ� : श्री �ाम संुदर के व�स्थल पर पीता�र फहरा रहा है। श्री िकशोरीजी के व�स्थल पर नीला�र लहरा रहा है। तथा दोनो ंके व�स्थल पर मोितयो ंकी लिड़याँ झमू रही ह� । दोनो ंके कंकण, दोनो ंकी िकंिकिण एवं दोनो ंके नूपुर की �नझुन �िन अ�ंत ही मनोहा�रणी है।

    एक िसर मोर मुकुट राजै, एक िसर चून�र-छिव छाजै, दु�ँन िसर ितरछे भल भ्राजै,

    संग ब्रज-बाल लािड़ली-लाल, बाँह गल डाल, ‘कृपालु’ दु�ँन �ग चारी की, िक बनवारी, नथवारी की ॥ ४॥

    भावाथ� : श्री �ाम सु�र के िसर पर मोर-मुकुट सुशोिभत है, श्री िकशोरीजी के िसर पर सु�र चुनरी शोभायमान है एवं दोनो ंके िसर ितरछे होकर पर�र िमले �ए शोभा दे रहे ह�। श्री ' कृपालु ' जी कहते ह� िक �ामसंुदर एवं िकशोरीजी गले म� पर�र बाँह डाले �ए ह�, समीप म� ही ब्रजांगनाएँ खड़ी ह� एवं िप्रया-िप्रयतम एक-दूसरे की ओर कटा�पात करते �ए देख रहे ह�।

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    आज के त��ान स�ंग मे भाग लेने के िलए और स�ंग को सफल बनाने के िलए, सभी भ�ो ंको ब�त ब�त ध�वाद !

    आज के सत्र के िलए, ये फीडबैक फॉम� अव� भर� :

    https://docs.google.com/forms/d/e/1FAIpQLSfVPPsKFQoPUsbwoEHjVDYdGpA4T2mWp-ZF3KuzF1bLY9JTvw/viewform?usp=sf_link

    JKYog India के जीव क�ाण के प्रयासो ंम� िकसी भी �प म� आप अपना योगदान करना चाहे तो, इस िलंक का उपयोग कर� :

    https://www.jkyog.in/volunteer

    JKYog India के सभी सत्रो ंका लाभ अव� उठाएँ :

    राधे राधे!

    सत्र समय ( भारत के अनुसार )

    योग और प्राणायाम

    (अंगे्रज़ी म�) शिनवार सुबह : 06:30 – 07:30

    कीत�न रिववार सुबह : 08:30 – 10:00 गु�वार सं�ा : 06:00 – 07:00

    त��ान (अंगे्रज़ी म�) रिववार सं�ा : 06:00 – 07:00

    भगवद गीता (अंगे्रज़ी म�) शिनवार दोपहर : 02:00 – 03:00

    स�ंग (िह�ी म�) शिनवार सं�ा : 06:00 – 07:00

    त��ान (िह�ी म�) मंगलवार सं�ा : 08:00 – 09:00

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