shri ramcharit manas - sufi saints
TRANSCRIPT
ग ॐ
lsquoीरामचरतमानसrsquo
lsquoबालका डrsquo
ीगणश और सर वतीजी क चरण क
शीश नवा म करता ह व दना
अर अथ समह रस और छ द
सभी मगल क जो करत सरचना
िजनक (बना स+जन ई- वर को
दख नह सकत मन म0 अपन
उन +ा और 3व- वास4पी शव-गौर क
शीश नवा व दना करता ह म
6ानमय 8न9 य और शकर 4पी
ग4दव क म करता ह व दना
िजनक आltत होन स होता
व= होकर भी विदत च gtमा
जो करत ह 3वहार ीसीतारामजी क
गण समह 4पी प3व वन म0
3वश+ 3व6ान सम पन कवी-वर वा मीAक
और हनमानजी क व दना करता ह म
नम कार करता ह म ीसीताजी को
ीरामच gtजी क ह जो 3Bयतमा
ज मदाी पालक और सहार करन वाल
C लश हरन वाल और क याण- व4पा
सD पण 3व-व असर और EFमाGद
सब दवता ह िजनक वश म0
िजनक स9ता स स9 य लगता ह
यह जगत H य सप र सी म0
भवसागर स तरन क इJ छा िजनम0
उनक लय िजनक चरणकमल नौका स
सब कारण क कारण भगवान ीराम
उनक चरण क व दना करता ह म
पराण वद शा और रामायण म0
वKण त ह ीरघनाथजी क कथा
तलसीदास अपन सख क लय
3व तत वण न उस कथा का करता
िज ह0 मरण करन मा स
स+ हो जात सबक सब काम
कपा कर0 मझ दास पर व
गजमख गणश सम त गण क धाम
सभा3षत बन जाता िजनक कपा स गगा
लगड़ा-लला चढ़ जाता दग म पहाड़ पर
कलयग म0 सब पाप को हरन वाल
सदा कपाल रह0 व दयाल Bभ मझ पर
- 2 -
नीलकमल सा - याम वण ह िजनका
न पण Kखल लाल कमल स
ीरसागर म0 शयन करन वाल
व नारायण मर Uदय म0 बस0
क द क पष प और च gtमा स गौर
दया क धाम पाव तीजी क 3Bयतम
कामदव क 3वजता दन क नह
मझ पर कपा कर0 व शवजी हरदम
महामोह 4पी घन अ धकार क नाश हत
िजनक वचन ह सय -Aकरण क समह स
कपा क सागर नर4प म0 साात ीहVर
उन ग4 चरण क व दना करता ह म
ी ग4 चरण कमल क रज जो
रची-बसी स वाद सग ध और Bम स
भव रोग क 3वनाशक सजीवनी जड़ी
उस रज क व दना करता ह म
स दर क याण और आन द क जननी
सक8त 4पी शवजी को सशोभत करती
सब गण-समह को वश म0 करनवाल
भCत क मन को वह 8नम ल करती
ी ग4 चरण-नख क H यो8त
जस उHजवल मKणया चमक रह ह
कवल मरण मा करन स ह
Uदय को आलोAकत कर दती वो
अ6ान4पी अ धकार को Uदय स
पल म0 दर कर दत वो
बड भाY य ह उन लोग क
िजन पर कपा ग4 क हो
Uदय न क खल जान स
सभी ससार दोष-दख मट जात
ीरामचVरत 4पी मKण और माKणक
उन पर Bकट होन लग जात
जस साधक स+ और सजान
स+ा[जन को न म0 लगाकर
कौतक स ह दखन लगत
जो 8छपा हो खान क भीतर
ी ग4 चरण कमल क रज
जो ह स दर नयनामत-अजन
उसस 3ववक4पी न को 8नम ल कर
ीराम चVर का म करता ह वण न
पहल भ-दवता EाFमण को Bणाम
जो हर लत सब स दह को
Aफर Bम सGहत Bणाम करता ह
सब गण क खान सतजन को
कपास क तरह सत का चVर
िजसका फल नीरस 3वशद गणमय होता
उनका ज म इस जग म0
और का दोष ढ़कन को होता
- 3 -
सत का समाज तीथ राज Bयाग सा
लोग का आन द दता क याण करता
रामभिCत 4पी गगा जी क धारा ह जहा
और सर वतीजी ह Bचार EFम3वचार का
सय पी यमना नद ह इसम0
जो कलयग क पाप को हरती
हVर और हर कथा (वणी सी
जो सनत ह सब क याण करती
अपन धम म0 3व- वास अयवट सा
शभकम ह उस तीथ राज का समाज
सहज ह सबको Bा] त ह वह
करता जो सब C लश का नाश
अकथनीय और अलौAकक वह तीथ राज
जो Bदान करता त9 काल फल
इस तीथ राज का Bभाव B9 य ह
जो सहज ह द दता चार फल
Bसन मन स इस तीथ राज का
अ9 यत Bम सGहत करत जो सवन
धम अथ काम और मो 4पी
चार फल पा जात व जन
कौए बन जात ह कोयल स
और हस समान बन जात बगल
सतसग क मGहमा होती ह ह ऐसी
Aफर C य कोई सन इस आ- चय कर
वा मीAक नारद और अग तय म8न
सबन कहा ह यह अपन मख स
जलचर थलचर और गगनचर
िजतन भी जीव ह इस जग म0
ब3+ क8त स_ग8त ऐ- वय और भलाई
िजस Aकसी न भी पाई इस जग म0
समझना चाGहए सतसग का ह Bभाव
वKण त ह यह वद और लोक म0
(बना सतसग 3ववक नह होता
रामकपा (बन जो सलभ न होता
आन द और क याण का मल सतसग
सब साधन का पVरपC व फल होता
जस पारस सोना कर दता लोह को
वस ह सतसग सधार दता दa ट को
Aकत कसग8त म0 पड जान पर भी सH जन
मKण क तरह छोड़त नह गण को
H य (दव क3व और पिbडत भी
असमथ करन म0 सत का यशगान
अ प6 सा यह दास Aफर कस
कर सकता उनक गण का बखान
सतो को Bणाम समता िजनक ltच9त म0
न कोई म न कोई श िजनका
अजल म0 रख हए फल क समान
खशब स भर दना होता वभाव उनका
- 4 -
सरल Uदय और Gहतकार जानकर
करता ह म 3वनय सत स
मर बाल 3वनय को सनकर
ीराम चरण म0 मझ Bी8त द0
अब सJ च भाव स दa ट को Bणाम
जो भलाई का भी बदला बराई स दत
दख नह सकत Aकसी का भला होत
और को उजड़त दख खश होत
भगवत यशगान लशमा न भाता
और को दख दन म0 वीर जस
हजार आख स दखत दोष और का
पर खद होत घी म0 मC खी जस
=ोध करन म0 जो यम क जस
पाप और अवगण म0 कबर स धनी
िजनक बढ़ोतर पJ छल तार क समान
भलाई उनक सोत रहन म0 ह
जस खती का नाश करन क लय
ओल खद गलन को रहत तयार सदा
वस ह दसर क काम (बगाड़न हत
व मरन को भी रहत तयार सदा
शषजी क तरह जान Bणाम करता ह उ ह0
हजार मख स दसर क बराई करत
पथ क तरह होत दस हजार कान वाल
पर उनस और क दोष ह सनत
Aफर इ gt क समान 3वनय करता ह
जो सरा को नीक और Gहतकार मानत
कठोर वd4पी वचन लगत उ ह0 ] यार
हजार आख स और क दोष दखत
दa ट क ह यह रत सदा स
Aकसी का भी Gहत सनकर व जलत
मन तो क ह अपनी ओर स 3वनती
पर चक0 ग नह वो अपनी ओर स
Aकतन ह Bम स पालय कौओ को
C या कभी मास भण वो 9 याग सकत
ऐस ह Aकतनी ह 3वनती करन पर भी
दज न भी अपना वभाव छोड़ नह सकत
अब सत और असत दोन क
चरण क म करता ह व दना
दोन ह दख दन वाल ह
पर दोन म0 ह फक बड़ा
Bाण हर लत ह सत भी
होता ह जब उनस (बछड़ना
और दा4ण दख दत ह असत
जब होता ह उनस मलना
एक साथ पदा होन पर भी
अलग-अलग ह गण दोन क
सत कमल स असत जक स
सत अमत और असत मGदरा स
- 5 -
भल और बर अपनी अपनी करनी अनसार
यश और अपयश 4पी सD पि9त पात
गण और अवगण जानत सबक सब कोई
पर िजस जो अJ छा लगता उस वो भात
भला भलाई ह fहण करता ह
नीच नीचता fहण Aकय रहता
अमत क सराहना अमर करन म0
पर 3वष मारन म0 ह लगा रहता
सत क गण और दa ट क अवगण
दोन क कथाए ह अथाह अपार
इसलय वण न Aकया कछ उनका
C यAक (बना पहचान हो कस 3वचार
भल बर सब ज म0 EFमा स
पर फक Aकया उनम0 वद न
गण-अवगण स सनी यह सिaट
ह वKण त यह वद-पराण म0
Gदन-रात और सख-दख 4पी
सभी _व द रच ह EFमा न
पर उनक गण-दोष का 3वभाग
Aकया गया ह शास म0
जड़-चतन 4पी सम त 3व-व को
गण-दोषमय रचा 3वधाता न
Aकत दोष 4पी जल को छोड़
गण4पी दध fहण Aकया सत न
हस का सा 3ववक जब दता 3वधाता
तब मन होता सदगण म0 अनरCत
पर काल वभाव और कम वश
कभी-कभी साध भी हो जात 3वरत
भगव_-भCत उस चक को सधार
दोष को 9 याग 8नम ल यश दत
उ9तम सग पा भलाई करन पर भी
दa ट मलन वभाव 9 याग नह दत
साध क वष म0 दa ट को भी
वष क Bताप स यह जग पजता
पर कालनम रावण और राह क तरह
उनका कपट अ त तक नह 8नभता
कसा भी वष हो साध का
उसका हर जगह सD मान ह होता
सव 3वGदत ह बर सग स हा8न
और अJ छ सग स लाभ ह होता
नीच को बहन वाल पानी क सग
धल जाकर कचड़ म0 मल जाती
वह धल वाय क सग मलकर
ऊच आकाश म0 ऊपर चढ़ जाती
साध क घर पलत तौता-मना
राम नाम का समरन करत
वह दa ट क घर क तौता-मना
ltगन-ltगनकर लोग को गालया दत
- 6 -
जो धआ वस कालख कहलाता
वह याह बन उपयोग म0 आता
जल अिYन और वाय क सग स
वह मघ बन कर वषा बरसाता
fह ओषltध जल वाय और व
जसा सग मलता वस बन जात
चतर और 3वचारशील प4ष ह
इसका सह अथ पहचान पात
एक समान उजाला और अधरा
शC ल और कa ण प म0 रहता
पर च gtमा क बढ़न-घटन स
एक को यश दज को अपयश मलता
िजतन भी जड़ और चतन जीव ह
उन सबको राममय जान कर
उनक चरण-कमल क व दना
करता ह दोन हाथ जोड़कर
दवता द9 य मनa य नाग और पी
Bत 3पतर 8नशाचर ग धव और Aक नर
सबक चरण म0 Bणाम करता ह
अब आप सब कपा किजय मझ पर
चौरासी लाख यो8नय स भर
इस जगत को सीताराममय जान
अपन दोन हाथ को जोड़ कर
करता ह म उन सबको Bणाम
आप सब मझ अपना दास जानकर
छल छोड़कर किजय मझ पर कपा
अपन ब3+ बल का भरोसा नह मझको
इसलय आप सबस 3वनती म करता
बहत ह अ प ह मर ब3+
और अथाह ह ीराम क कथा
सो उनक गण का वण न करन का
मझ कोई उपाय नह सझता
ऊची चाह और नीची ह ब3+
कछ भी नह ह पास म0 मर
मा कर0 सH जन मर Gढठाई
Bम सGहत सन0 वचन व मर
जस बालक क तोतल वचन
3Bय लगत ह उसक मात-3पता को
Aक त =र कGटल और दज न
पाएग0 हसी का पा मझ वो
अJ छj बन पड़ी हो या हो बर
Aकस अपनी क3वता अJ छj नह लगती
पर दसर क रचना स खश ह
ऐस क सk या बहत नह मलती
तालाब और नGदय स बहत ह
जो अपना जल पाकर ह बढ़त
पर सागर स होत बहत ह 3वरल
जो पण च gtमा को दख उमड़त
- 7 -
इJ छा बड़ी और छोटा भाY य ह मरा
पर त मरा ह यह lढ़ 3व- वास
सH जन इस सनकर सख पाय0ग
और दa ट उड़ाय0ग मरा उपहास
पर उनक हसी मरा Gहत ह करगी
कौए कहत ह आए कठोर कोयल को
जस बगल हस को मढ़क पपीह को
वस ह दa ट हसत 8नम ल वाणी को
िजनको चाह कछ भी 4ltच न हो
उनको भी Bस न करगी यह क3वता
भोल ब3+ ऊपर स भाषा क रचना
हसन ह योY य ह दोष C या उनका
ना अJ छj समझ ना Bभ स Bी8त
उनको यह कथा लगगी फक
ऊच-नीच ना हVर-हर म0 भद
उनको यह कथा लगगी नीक
ीराम भिCतमय जान इस क3वता को
सH जन स दर वाणी स सराह0ग इस
ना क3व ना वाC य रचना म0 कशल
कोई भी कला ना 3वधा मझम0
अर अथ और अलकार
और नाना Bकार क छ द होत
भाव और रस क अपार भद
क3वता म0 अनक गण-दोष होत
इनम0 स क3वता क बार म0
एक भी बात का नह मझम0 6ान
कोर कागज पर लखकर यह
शपथपव क स9 य-स9 य करता ह बयान
सब गण स रGहत मर रचना
बस एक ह जगBस+ गण ह इसम0
अJ छj ब3+ 8नम ल 6ान यCत प4ष
उस 3वचार 4ltच ल0ग इसम0
अ8त प3व वद-पराण का सार
अ8त उदार राम का नाम ह इसम0
अ8त क याणकार और अमगल हार
पाव ती सGहत शव मगन रहत िजसम0
कशल क3व क अनठj क3वता भी
(बना राम नाम शोभा ना पाती
जस च gtमखी स सिHजत ी भी
(बना व क शोभा ना पाती
लAकन रामनामयCत गणरGहत क3वता भी
सH जन लोग स आदर ह पाती
C यAक गण ह fहण करत ह
गणfाह सतजन भवर क भाती
य_य3प रस3वGहन ह मर यह क3वता
पर Bभ का Bताप Bकट ह इसम0
भल सग स Aकसन पाया न बड़] पन
यह भरोसा ह पC का मर मन म0
- 8 -
अगर क साथ सवासत होकर
धआ भी अपना कड़वापन छोड़ दता
मर यह क3वता भी भmी सह
पर इसम0 ह राम नाम क कथा
कलयग क पाप क हर8न
क याणकार यह ीरघनाथजी क कथा
प3व गगा सी टढ़ चाल वाल
तलसीदास क यह भmी क3वता
सH जन क मन को भायगी यह
ीरघनाथजी क स दर यश क कथा
H य ीमहादव क अग लगकर
अप3व राख भी पा जाती प3वता
ीराम जी क यश गाथा क सग म0
सबको 3Bय लगगी मर यह क3वता
H य मलय पव त क सग च दन बनकर
काa ठ तज दता ह अपनी तJ छता
- यामा गाय क काल होन पर भी
उसका उH जवल गणकार दध पीत ह सभी
ऐस ह सीता-राम का यशगान होन स
मर गवा4 क3वता भी पढ़0ग सभी
सप पव त या हाथी क म तक पर
मKण माKणक और मोती वस नह स जत
जस राजमकट या नवयवती क तन पर
सजकर व और अltधक शोभा दत
ऐस ह कहत ह 3व_वान लोग
सक3व क क3वता भी अ य ह शोभा पाती
भिCत क कारण सर वतीजी EFमलोक छोड़
मरण करत ह दौड़ी आती
उनक दौड़न क यह थकावट
और कस भी दर नह होती
रामचVरत सरोवर क जल म0
नान कर ह व शीतल होती
ीहVर का ह यश गात सजान
अपन Uदय म0 ऐसा 3वचार कर
ससार लोग का गणगान करन स
सर वतीजी पछताती ह सर धनकर
ब3+मान _वारा Uदय समgt ब3+ सीप
सर वतीजी वा8त न सम कह जाती
इसम0 जब a ठ 3वचार4पी जल बरसता
तो मCतामKण सी स दर क3वता होती
उन क3वतामयी मCतामKणय को
सH जन रामचVर4पी ताग म0 3परोकर
अनत अनराग 4पी शोभा पात ह
अपन 8नम ल Uदय म0 उ ह0 धारण कर
कौए सी करनी पर हस स Gदखत
इस कराल कलयग म0 ज म0
वदमाग छोड़ कमाग पर चलत
कपट क मरत पाप क भाड0
- 9 -
भC त कहात पर लोग को ठगत
काम =ोध और लोभ क गलाम
कपट और दD भी ऐस लोग म0
सबस ऊपर ह मरा नाम
यGद सब अवगण म अपन बखान
तो पार न पा सकगा म उनस
सो बहत कम अवगण कह मन अपन
ब3+मान समझ जाएग बस थोड़ स
मर अनक Bकार क 3वनती को समझ
कोई दोष न दगा सनकर इस कथा को
इतन पर भी जो शका कर0ग
मझस भी अltधक कगाल और मख ह वो
ना कोई क3व ना ह चतर ह म
पर ब3+अनसार बजाता ीराम गण क भर
कहा तो ीरघनाथ जी क अपार चVर
कहा ससार म0 आसC त ब3+ मर
िजस हवा स उड़ जाता सम4 तक
C या ltगनती 4ई क उसक सामन
ीरामजी क असीम Bभता को समझ
मरा मन Gहचकता कथा रचन म0
शष महश सर वती और EFमा
सम त शा और वद पराण
न8त-न8त कहकर करत रहत
िजन अन त Bभ का सदा गणगान
अकथनीय ह उन ीराम क Bभता
पर उस कह (बन रस न कोई
थोड़ा भी भजन बहत फल दता
भव सागर स भी तारता वो ह
नाम 4प और इJ छा स रGहत
अज मा सिJचदान द परमधाम परम- वर
सबम0 n यापक और 3व- व4प वह
दह धारण कर लला करता सवo- वर
परम कपाल और शरणागत व9 सल
भC त क लय लला करत भगवान
एक बार िजस पर कपा कर दत
Aफर उस पर =ोध न करत भगवान
खोयी व त Aफर Bा] त करा दत
दनब ध सरल वामी सव शिCतमान
ब3+मान उनका यश वण न कर
मो और Bम का पात वरदान
यह 3वचार उनक चरण व दना कर
कहगा म उनक गण क कथा
वह माग सगम होगा मर लय भी
जो माग पहल भी म8नय न चना
पल बाधन स दग म नGदया भी
चीट तक को सहल हो जाती
ऐस ह उन म8नय क सहार
ीरामचVरत को कह सकगा म भी
- 10 -
इस Bकार मन को बल Gदखलाकर
क4गा म ीरामकथा क रचना
n यासाGद अनक a ठ क3वय न
सादर ीहVर का गणगान Aकया
करता ह म उनक चरण म0 Bणाम
कर0 मर मनोरथ को वो परा
कलयग क उन क3वय को भी Bणाम
िज हन रघप8त का गणगान Aकया
सभी Bाकत क3व और वो िज हन
भाषा म0 Aकया हVरचVर का गणगान
भत भ3वa य और वत मान क उन क3वय को
कपट 9 याग कर म करता ह Bणाम
अब Bस न हो वरदान दिजय मझ
Aक साध-समाज म0 मर क3वता सD मा8नत हो
C यAक जो ब3+मान स आदर नह पाती
n यथ ह क3वता रची जाती ह वो
उ9तम वह क8त क3वता और सD पि9त
Gहत करनवाल हो जो सबका
अ8त स दर ह ीराम क क8त
पर मर भmी क3वता ह मर ltच ता
पर आपक कपा स मर लय
हो सकती ह सलभ यह बात भी
जस क रशम स क गई सलाई
सहावनी लगती ह टाट पर भी
वह क3वता 3व_वान स आदर पाती
सरल और 8नम ल चVर वKण त हो िजसम0
श भी वाभा3वक बर को भल
सराहना योY य बात0 पाय0 िजसम0
8नम ल ब3+ चाGहय ऐसी क3वता क लय
पर बहत अ प ह मरा ब3+ बल
इसलय बारD बार आfह करता ह ह क3वयो
फलाओ मझ पर अपनी कपा का आचल
क3व और पिbडतगण सब आप
स दर हस ह रामचVर4पी मानसरोवर क
मझ बालक क स दर 4ltच दख
और 3वनती सन मझ पर कपा कर0
करता ह चरणकमल क व दना
म रामायण-रचता म8न वा मीAक क
खर (कठोर) और दषण (दोष) रGहत ह जो
खर और दषण उसम0 होन पर भी
चार वद क व दना करता ह म
जहाज स ह जो भव तारन म0
त8नक भी थकावट िज ह0 न होती
ीराम का यश वण न करन म0
व दना भवसागर रचता EFमाजी क
िजन EFमाजी न दोन चीज0 बनायी
एक तरफ अमत कामधन और च gtमा
दसर तरफ दa टजन और मGदरा आयी
- 11 -
दवता EाFमण पिbडत और fह
करता ह उनक चरण क व दना
आप सब होकर मझ पर Bस न
मर सार स दर मनोरथ को कर0 परा
Aफर पावन और मनोहर चVर वाल
सर वतीजी और गगाजी क करता ह व दना
एक अपन गण और यश कहन स
दजी अपन जल स बनी पाप हरना
Bणाम ीमहश और पाव तीजी को जो ह
दनब ध दाता ग4 और मर माता-3पता
Bणाम करता ह उन Gहतकार को
सीताप8त ीराम क सवक वामी और सखा
बमल अर और अ पa ट अथr वाल
शाबर म समह क रचनाकार
िजनक Bताप स उनका Bभाव B9 य ह
उन शव-पाव ती को मरा नम कार
आन द और मगलदायी बनाय0ग यह कथा
उमाप8त शवजी मझ पर Bस न हो कर
वण न करता ह ीराम चVर का म
उ ह0 मरण कर उनका Bसाद पाकर
तार और च gtमा स शोभत होती H य रात
ीशव कपा स सशोभत होगी मर क3वता
पापमCत क याण क भागी और Bमी हग
जो मन स सन0ग मर यह क3वता
यGद ीशवजी और पाव तीजी मझ पर
व] न म0 भी जो सचमच Bस न ह
तो इस भाषा-क3वता का Bभाव
जो मन कहा वह सब सच हो
ीअयोs यापर और पाप 3वनाशक सरय क
दोन क म सादर व दना करता
Aफर अवधपर क नर-नाVरय को Bणाम
िजन पर बहत ह ीराम क ममता
सीताजी क 8न दा करन वाला धोबी
और उसक समथ क पर क नर-नार
उनक पाप का भी 3वनाश कर
बना Gदया अपन धाम का वासी
फल रह ह िजसक क8त सव
व दना उस कौस या4पी पव Gदशा क
ीराम4पी च gtमा Bकट िजसस
दa ट क लय पाला सH जन क Gहतकार
सब रा8नय सGहत राजा दशरथजी को म
मन वचन और कम स करता ह Bणाम
िज ह0 रच EFमाजी न भी यश पाया
मझ पर कपा कर0 प का सवक जान
व दना करता ह म ीराम क Bमी
अवध क राजा ीदशरथ जी क
9 याग Gदया िज हन अपनी दह को
दनदयाल Bभ क (बछड़त ह
- 12 -
योग और भोग म0 8छपा रखा था िज हन
ीराम क चरण म0 अपना गढ़ Bम
उ ह0 दखत ह Bकट हो गया
जनकजी का ीराम क B8त वह Bम
वण नातीत ह िजनका 8नयम और tत
और ीराम क चरण म0 lढ़ अनराग
भाइय म0 सव Bथम उन भरतजी क
चरण म0 म करता ह Bणाम
शीतल स दर और भCत सखदायी
ीलu मणजी क चरणकमल को Bणाम
ीरघनाथजी क क8त 4पी 3वमल पताका म0
िजनका यश हआ दड क समान
जगत का भय दर करन को
िजन सह सर वाल न ज म लया
व गण क खान कपास ध समान दन
ीलu मणजी Bस न रह0 मझ पर सदा
महावीर सशील भरतजी क अनरागी
ीशv नजी क चरण म0 मरा Bणाम
Aफर ीहनमान जी को करता ह 3वनती
िजनका वय ीराम न Aकया यशगान
दa ट4पी वन को भ म करत हत
जो वय ह अिYन क समान
Bणाम उन ीहनमानजी को मरा
िजनक Uदय म0 रहत सदा ीराम
वानर क राजा सfीव जाD बवान
3वभीषण और अगदजी आGद
Bणाम उ ह0 अधम दह म0 भी
ीरामजी क िज हन करल Bाि]त
पश-पी दवता या मनa य
जो भी ह उपासक ीराम क
शकदव सनकाGद नारद म8न आGद
चरण म0 Bणाम ह उन सबक
जनकनिदनी सार जगत क माता
और 3Bया क4णा8नltध ीराम क
उनक चरण-कमल क व दना
सदा रह मझ पर कपा उनक
अब Bभ ीरामजी क चरणकमल क
करता ह व दना मन वचन और कम स
भCत क सब दख क हता
सब सख और आन द होता िजनस
जो कहन म0 ह अलग लAकन
वा तव म0 जल और लहर स एक
उन ीसीतारामजी क चरण म0
वीकार ह मर Bणाम अनक
व दना ीरघनाथजी क प3व नाम राम क
अिYन सय च gtमा क बीज 4प नाम क
EFमा 3वa ण और शव4प वद का Bाण
8नग ण अनपम गण क भb डार राम नाम क
- 13 -
महाम ह यह राम नाम
मह- वर शवजी 8नर तर जपन रहत िजसको
इसक Bभाव स ह सारा जग
पजता सव Bथम ीगण प8त गणश को
उलटा नाम मरा-मरा जप कर
प3व हो गय आGदक3व ी वा मीAकजी
सह जप क समान जान कर
शव नाम सGहत जपती रहती पाव तीजी
इसी कारण ह3ष त हो शवजी न
तर त अपना लया ीगौरजी को
इसी नाम न बना Gदया
अमत सा कालकट जहर को
ीराम नाम क दो स दर अर
सावन-भाद क दो महन स
उनक भिCत वषा ऋत सी
और उ9तम सवकजन धान स
मधर मनोहर भC त क जीवन
दोन अर सलभ सखकार
इस लोक म0 भी लाभ दन वाल
परलोक म0 भी अ8त क याणकार
बहत भल कहन सनन म0
तलसीदास को ] यार राम-लखन स
य दोन अर भ न लगत ह
पर सदा सग रहत जीव-EFम स
नर-नारायण स स दर xाता
भC त क रक पालक जग क
भिCत4पी ी क स दर आभषण
8नम ल च gt सय स Gहतकार जग क
मो4पी अमत क वाद समान
िजनक बल पर Gटक ह यह धरती
भC त क Uदय-कमल हत भyर स
H य यशोदाजी को ] यार ीकa ण-दाऊजी
राम नाम क दोनो अर
अ8त शोभादायी Bाण तलसी क
पहला lsquoरrsquo अर 4प स
दसरा lsquoमrsquo मकटमKण सा ऊपर सबक
नाम और नामी समझन म0 एक
पर ह दोनो वामी और सवक स
H य वामी क पीछ चलता सवक
नामी चलता नाम क पीछ
अ8नवच नीय अना Gद और स दर
नाम और 4प ह ई- वर क उपाltध
पर इनका व4प जानन को चाGहय
कवल श+ भिCत स भर ब3+
नाम और 4प म0 छोट-बढ़ाई
होगा अपराध तो यह कहना
पर जानत ह यह साध-प4ष
नाम (बना 4प का 6ान नह मलता
- 14 -
नाम (बना जान 4प का 6ान
सामन होन पर भी हो नह सकता
पर नाम क मरण करत ह
4प BमसGहत Uदय म0 आ बसता
अकथनीय ह नाम और 4प क 3वशषता
सखदायक और ह वण न स पर
नाम सगण और 8नग ण क बीच साी
जो दोन का यथाथ 6ान Bकट कर
भीतर और बाहर को भी िजस
दोन ह ओर चाGहय Bकाश
राम नाम 4पी मKण दपक को वह
अपनी िजFवा पर रख चास
वराY यवान मC त योगी प4ष
8नर तर नाम जप ह करत रहत
अनपम अ8नवच नीय अनामय EFमसख का
अनभव 8नर तर व करत रहत
परमा9 मा का अ8त गढ़ रहस य व
नाम जप क _वारा जान लत
नाम जप _वारा ह स+-साधक
अKणमाGद स3+य को पा लत
नाम जप _वारा ह आत जन
पा जात अपन दख स पार
आत अथा थी िज6ास और 6ानी
चार ह होत पb या9 मा और उदार
नाम ह आधार सभी भC त का
पर 6ानी Bभ को परम3Bय होता
सभी काल म0 नाम Bभावी
पर कलयग म0 इसका ह भरोसा
सभी इJ छाए और आशाए 9 याग
8नर तर लन जो भिCत म0 रहत
अपन मन को मछल बना
नाम4पी सरोवर म0 डब रहत
अकथनीय अथाह अनपम अनाGद
8नग ण-सगण दो 4प EFम क
मर मत म0 नाम बड़ा ह
िजसन रखा उ ह0 वश म0 कर क
कहता ह म अपन मन क
3व- वास Bम और 4ltच क बात
8नग ण और सगण दोन ह
भद EFम क अिYन क समान
8नग ण अBकट काठ क अिYन
लAकन सगण B9 य अिYन सा
त99वत दोन एक ह ह
पर आसान नह उ ह0 जानना
लAकन 8नग ण-सगण दोन ह
वश म0 एक नाम क हो जात
इसी नाम क _वारा भC त जान
अ3वनाशी सिJचदान द EFम को पात
- 15 -
ऐस अ3वकार Bभ क मन म0 रहत भी
जीव जगत क ह दन और दखी
पर नाम मरण क Bभाव क कारण
सहज ह Bकट हो जाता EFम वह
इस Bकार नाम का Bभाव
8नग ण स ह अ9 य त बड़ा
और मर 3वचार स वह नाम
सगण राम स भी ह बड़ा
मनa य 4प धर वय कa ट सह
ीराम न सखी Aकया सतो को
और उ ह का नाम जप-जप कर
आन द क धाम बन जात सत वो
ीराम न अह या को ह तारा
पर उनक नाम न लाख को तारा
प सGहत ताड़का को मारा उ होन0
नाम न भC त का दख दोष 8नवारा
सहाना बनाया दb डक वन को राम न
पर नाम न प3व Aकया लाख को
रास क समह को मारा उ हन
पर नाम न मटाया पाप क जड़ को
शबर और जटाय आGद स
उ9तम सवक तार रघनाथ न
पर नाम _वारा अनltगनत दa ट क
उ+ार कथा Bस+ ह वद म0
सfीव और 3वभीषण दो को ह
अपनी शरण म0 रखा राम न
वद और लोक म0 ह Bस+
कई गरब पर कपा क राम न
भाल और बदर क सना बटोर
समgt पर पल बाधा ीराम न
पर उनक नाम क बल क आधार
भव-सध तर जाता पल भर म0
कटD ब सGहत रावण को मारा
तब सीता सGहत आए राम अवध म0
पर Bम सGहत नाम मरण कर
भC त आन द मनात अपन मन म0
8नग ण और सगण दोन स बड़ा
नाम वर दन वाला वरदाताओ को
यह जान अनक नाम म0 स
शवजी न चना राम नाम को
मास पारायण पहला वाम
- 16 -
वष अमगल होन पर भी
नाम क बल मला यश शवजी को
नाम ह क बल स+-सनकाGद म8नगण
सब भोगत ह वो EFमान द को
नाम Bताप जाना नारद न
हVर और हर दान को ] यार
नाम मरण क Bताप स ह बन
भC त BFलाद Bभ क ] यार
zव न भी जपा हVरनाम
और Bा] त Aकया zवलोक को
हनमानजी न भी राम-नाम रट
वश म0 Aकया Bभ राम को
अजामल गण और गKणका भी
हVर नाम Bभाव स मC त हो गय
कहा तक क4 नाम क बढ़ाई
िजस राम भी नह गा सकत
क पत4 और मिCत का _वार ह
कलयग म0 ीराम का नाम
िजसको मरण करन स हो गया
भाग सा तलसी तलसी समान
सभी यग काल और लोक म0
सखी हए जीव राम नाम जप कर
सव9तम ह राम नाम स Bम
यह ह सत और वद का मत
s यान य6 और पजन स होता
=मश स9 य ता और _वापर म0 उ+ार
लAकन कलयग म0 लोग का मन
बना हआ पाप का घर-बार
सब जजाल का नाश कर दता
कलयग म0 क पव सा नाम
परलोक का भी परम Gहतषी
इस लोक म0 माता-3पता समान
न कम न भिCत न ह 6ान
कलयग म0 आधार बस राम-नाम
कलयग 4पी कालनम को जीतन
राम नाम ह समथ ब3+मान-हनमान
Gहरb यकशप स कलयग क लय
राम नाम ह ीनरसह भगवान
जो जप नाम वो Bहलाद स
उनक रा करगा यह राम-नाम
भाव-कभाव =ोध या आलस स
सब तरह करता नाम जप क याण
उसी राम नाम का कर मरण
शीश नवा करता म उसका गणगान
िजनक कपा कपा करन स न अघाती
मर (बगड़ी बनाएग सब भाती
अपनी ओर दख मझस कसवक को भी
8नभा ह ल0ग व उ9तम वामी
- 17 -
3वनय सनत ह Bम पहचान लना
यह रत Bस+ ह अJ छ वामी क
अमीर-गरब पिbडत और मख सभी
ब3+ अनसार सराहना करत राजा क
सबक सनकर और उ ह0 जान कर
सबका यथायोY य सD मान करत ह राजा
कोसलनाथ चतर शरोमKण क बात C या
जब ऐसा n यवहार करत ह ससार राजा
व परम Gहतषी Bभ ीरामच gt जी
रझ जात ह बस 3वश+ Bम स
पर मलन ब3+और मख जग म0
भला कौन होगा बढ़कर मझ स
तथा3प अव- य रख0ग कपाल राम जी
मझ दa ट सवक क Bी8त और 4ltच को
प9 थर को जहाज बना लया िज हन
और ब3+मान मी बदर और भालओ को
ीराम का सवक सब कहत मझको
और म भी उनको नह रोकता
वो भी सहत इस 8न दा को
Aक उनस वामी का सवक मझसा
बड़ी Gढठाई और दोष यह मरा
Aक नरक म भी नह मर लय ठौर
म डरता रहा अपन किपत डर स
पर s यान न Gदया उ हन इस ओर
वर सltचत4पी च स 8नहार
सराहना कVर मर Bभ न मर
मर Uदय म0 सवक भाव दख
रझ गय व इसी बात पर मर
अपन भC त क हई भल-चक
Bभ क ltच9त म0 याद नह रहती
लAकन सौ-सौ बार याद करत व
अपन भC त क अJ छाई और नीक
िजस पाप क कारण बाल का मारा
वसी ह चाल सfीव 3वभीषण क थी
त8नक भी मन म0 Aकया ना 3वचार
बिक उनक गण क Bशसा ह क
डाल पर बदर Bभ व क नीच
पर बना लया उ ह0 अपन समान
तलसी क मत म0 कह भी नह ह
ीराम सरख वामी शील8नधान
ह Bभ आपका क याणमय वभाव
करन वाला ह सभी का क याण
C यAक यह बात स9 य ह सो होगा
तलसीदास का भी सब 3वltध क याण
अपन सभी गण-दोष कह कर
और सबको Aफर सर नवाकर
करता ह ीरघनाथ जी का यश वण न
पाप नa ट हो जात िजस सनकर
- 18 -
सनायी थी जो या6व C यजी न
सहावनी कथा म8नa ठ भार_वाज जी को
सब सH जन सखपव क सन उस
बखान कर कहगा म उसी कथा को
पहल इस सहावन चVर को रचा शवजी न
Aफर सनाया इस पाव तीजी को उ हन
रामभCत और अltधकार जानकर
वह चVर सनाया काकभशिbडजी को उ हन
हथल पर रC ख आवल क समान
तीन काल क बात0 व जानत
नाना Bकार स इस चVर को
और भी सजान हVरभCत कहत सनत
Aफर वह कथा लड़कपन म0 मन
वराह म0 अपन ग4जी स सनी
उस समय अपनी बसमझी क कारण
भल Bकार स उस म समझा नह
उस गढ़ कथा क वC ता और ोता
होत ह दोन ह पर 6ानी
कस समझ सकता था उस म
कलयग का जीव पापी अ6ानी
बारD बार जब वह कथा ग4जी न सनायी
तब कछ आयी वह मर समझ म0
उस ह अब म भाषा म0 रचगा
िजसस कछ सतोष हो मर मन म0
Uदय म0 हVर क Bरणा अनसार
उपयोग कर अपनी ब3+-3ववक का
अपना xम स दह और अ6ान हरन वाल
वण न करता ह अब उस कथा का
सख और आन ददायी राम कथा
सभी पाप का नाश कर दती
कल-नाग क लय मोरनी सी
अरKण सी 3ववकािYन को जगा दती
कामधन सी पण करती सब मनोरथ
रामकथा सH जन क लय सजीवनी सी
ज म-म9 य 4पी भय क नाशक
xम 4पी मढ़क क लय स3प णी सी
असर सना समान नरक क नाशनी
दव-कल Gहतकार पाव ती क समान
सत समाज 4पी ीरसागर हत लu मी सी
भार उठान म0 अचल प| वी क समान
यह कथा जगत म0 यमनाजी सी
यमदत क मख पर कालख मलन को
और साात काशी सी ह यह
सब जीव को मिCत दन को
प3व तलसी क समान 3Bय ह
यह कथा वय ीराम को
और तलसीदास क लय हलसी सी
तलसी का Gहत करन को _____________________________ हलसी ndash तलसीदास क माता
- 19 -
सब स3+ सख-सD पि9त क राश
शवजी को ] यार नद-नम दा सी
सदगण4पी दवताओ क मा अGद8त
भिCत और Bम क परम सीमा सी
यह राम कथा म दाAकनी नद ह
और 8नम ल ltच9त ह ltचकट सा
स दर नह ह वह वन ह
ीसीताराम क 3वहार करन का
स दर ltचतामKण सा ीराम का चVर
जगत का करता सब तरह क याण
ससार का सब दख दर करन को
यह व_यराज अि-वनी कमार क समान
पाप स ताप और शोक 3वनाशक
लोक और परलोक सवारन वाल
काम और =ोध4पी गजराज को
सह-शावक क तरह मारन वाल
3वषय अ6ान और म द Bार ध
सब रोग-दोष को हरन वाल
भC त क जीवनधन Bभ ीराम
सब मनोवा8छत फल दन वाल
जगत का यथाथ Gहत करन म0
सबक Gहतषी साध-सत क समान
अपन सवक का मन 8नम ल करन म0
प3व गगाजी क तरग-मालाओ क समान
कमाग कतक कचाल और कलयग क
सभी अवगण को जलान क लय
ीरामजी क गण-समह ऐस ह
जस Bचb ड अिYन ~धन क लय
पण च gt क Aकरण स
रामचVर सबको सख दन वाल
सH जन और भC त क लय
और अltधक फल दन वाल
िजस Bकार पाव ती न पछा शवजी स
और जस उ हन Gदया उसका उ9तर
रचना कर 3वltच कथा क
वह सब कारण म कहगा गाकर
सनी न हो िजसन रामकथा पहल
या जो 6ानी जन सनत इसको
ीरामच gtजी क हए ह अनक अवतार
सो अचरज न कर0 वो सनकर इसको
अनक Bकार स गाया मनी- वर न
क प भदानसार ीहVरचVर को
सदह न किजय ऐसा 3वचारकर
Bम और आदर सGहत स8नय कथा को
ीराम अन त उनक गण अन त
असीम उनक कला का 3व तार
सो मान0ग नह आ- चय इस सनकर
8नम ल और प3व ह िजनक 3वचार
- 20 -
इस Bकार सब सहह दर कर
और ग4 चरण क रज रख सर पर
पन हाथ जोड़ कर 3वनती करता ह
गजर न कोई दोष इस छ-कर
नवा कर शीश शवजी क चरण म0
सवत 1631 क च मास म0
नवमी 8तथी Gदन मगलवार को
BारD भ कर यह कथा अयोs या म0
कहत ह वद Aक िजस Gदन को
अयोs या म0 ज म ीराम का होता
सम त तीथr का इस Gदन को
अयोs या म0 शभ आगमन होता
असर नर नाग खग म8न और दवता
सब क सब आकर अयोs या म0
करत व ीराम जी का गणगान
और लग जात उनक सवा म0
ी सरयजी क प3व जल म0
सH जन जन उस Gदन नान करत
s यान कर सदर सलोन ीराम का
मन ह मन म0 उनको व जपत
दश न पश नान और जलपान
ीसरयजी का जल पाप को हरता
शारदा भी िजस कह न सक
अन त इस प3व नद क मGहमा
अ9 य त प3व ीराम का धाम दन वाल
सब जीव को मरणोपरा त मिCत दन वाल
मनोहर जान सब Bकार इस अयोs या नगर को
श4 क कथा यहा सब दोष हरन वाल
रामचVरतमानस ह इस प3व कथा का नाम
िजसको सनत ह सबको शाित मलती
सब दख दVरgtता पाप को हरन वाल
इस प3व कथा क रचता ह शवजी
इस रचकर अपन मन म0 रC खा महादव न
और सअवसर पाकर पाव तीजी स इस कहा
कहता ह म उसी सखदायी रामकथा को
ह सH जन मन लगाकर सन यह कथा
जसा ह जस बना यह रामचVरतमानस
और जस Bचार इसका हआ जग म0
अब सब वह कथा म कहता ह
ीउमा-मह- वर का मरण कर मन म0
ीशव कपा स स दर ब3+ मन म0 उपजी
िजसस तलसीदास हआ मानस का क3व
अपनी ब3+ स तो बनाता ह इस मनोहर
Aफर भी सधार लिजए सH जन स ह 3वनती
स दर ब3+ भम Uदय ह उसम0 गहरा थान
साध-सत ह मघ समgt ह वद-पराण
ीराम का सयश4पी मगलकार जल वषा त
व साध-सत ीरामचVरत का कर लला गान
- 21 -
3व तत वण न करत ह जो सगण लला का
वह राम-सयश4पी जल क ह 8नम लता
वण न स पर ह जो Bमा-भिCत
ह वह इस जल क मधरता और शीतलता
स9 कम 4पी धान क लय वह जल Gहतकर
भक त का जीवन ब3+4पी प| वी पर ltगरकर
कान स चल Uदय म0 जा हआ िथर
वह पराना हो हआ शीतल सखदायी 4ltचकर
चार अ9 यत स दर और उ9तम सवाद
रच जो इस कथा म0 ब3+ स 3वचारकर भशिड-गड़ शव-पावती याव य-भरवाज तलसी और
सत
इस स दर प3व सरोवर क ह घाट मनोहर
सात काb ड इस सरोवर क सीGढया
मन Bस न उ ह0 दखकर हो जाता
8नग ण और 8नबा ध मGहमा ीराम क
िजसक थाह कोई नह पा पाता
अमत सदश जल सीताराम यश 4पी
इसम0 BयCत उपमाए तरगो क समान
स दर चौपाईया फल हई कमलनी
यिCतया माKण दन वाल सी3पय समान
छ द सोरठ और दोह जो इसम0
सशोभत बहरग कमल क समह स
अनपम अथ ऊच भाव और भाषा
वो पराग मकर द और सग ध स
6ान वराY य और 3वचार हस ह
स9 कमr क पज भौर क पिCतया
क3वता क s व8न गण और जा8त
अनक Bकार क मनोहर मछलया
अथ धम काम और मो
6ान-3व6ान का कहना 3वचार क
नौ रस जप-तप योग-वराY य
स दर जलचर जीव वो इस क
साध-सत और ीराम का गण-गान
वो 3वltच जल-पय क समान
सतसभा चार ओर अमराई जसी
और +ा वस त ऋत क समान
भिCत मा दया दम लताओ क मb डप
फल यम-8नयम और 8नfह मन का
वदो न कहा इसका फल ह 6ान
ीहVर चरण म0 Bमरस फल इस का
ओर जो अनक Bसग क कथाए
व तोत-कोयल आGद रग-(बरग पी
रोमाच वन सख पय का 3वहार
8नम ल मन Bम स सीचन वाला माल
इस चVरत क गायक रखवाल तालाब क
उ9तम दवता इस आदर स सनन वाल
समीप नह जात दa ट और 3वषयी जन
C यAक 3वषय-रस व इसम0 नह पात
- 22 -
कौए और बगल4पी लोग वो
Uदय म0 अपन हार मान जात
ीरामजी क दया-कपा (बना
कोई यहा आ नह पात
कसग दग म पथ और कसltगय क वचन
बाघ सह और साप स
गह थी क भा8त-भा8त क जजाल
दग म बड़-बड़ पहाड़ स
मोह मद और मान बीहड़ वन
कतक भयानक Bचb ड नGदया सी
+ा सतसग और भगव9 Bम (बना
होती कभी इस तक पहच नह
जस-तस गर पहच जाए कोई
उस नीद 4पी जड़ी आ जाती
मख ता 4पी जाड़ा लगता उस
कर पाता वो इसम0 नान नह
नान और जलपान Aकय (बना वो
बस अभमान सGहत बरग लौट जाता
कोई पछता उसस जो हाल वहा का
तो सरोवर क 8नदा कर बतलाता
पर िजस पर कपा ीराम क होती
य 3वv न उस बाधा नह दत
सादर इस सरोवर म0 नान करता वो
और भयानक (ताप नह जलात उस
Bभ चरण म0 Bम िजनक मन बसता
छोड़त नह इस सरोवर को कभी
जो इस सरोवर म0 नान करना चाह0
सतसग म0 अपना मन लगाय0 वो सभी
ऐस सरोवर म0 गोता लगाकर
8नम ल हो गयी ह ब3+ क3व क
आन द और उ9 साह भर गया Uदय म0
और यह क3वता4पी नद बह 8नकल
ीराम का 8नम ल यश4पी जल इसम0
rsquoसरयrsquo इस क3वता4पी नद का नाम
सD पण स दर मगल क ोत यह
लोक और वदमत Aकनार क नाम
स दर और प3व ह यह सरय नद
पाप को जड़ स उखाड़ दन वाल
ोता समान Aकनार बस गाव और नगर
सत क सभा अयोs या नगर सखदायी
जा मल रामभिCत 4पी गगा म0
स दर क8त 4पी सरय क धारा
उनक सग ीराम-लu मण क य+ का
प3व यश4पी महानद सोन क धारा
6ान और वराY य सGहत शोभत हो रह
दोन क मs य भिCत4पी गगा क धारा
(ताप को डरानवाल इस 8तमहानी नद म0
राम व4प4पी समgt क ओर Aकया पसारा
- 23 -
मानस ह मल इस क8त 4पी सरय का
जो जा मल रामभिCत4पी गगा स
सH जन ोताओ का मन प3व कर दती
हषा ती बाग और वन4पी अनक कथाओ स
ीशव-पाव ती क 3ववाह क बाराती
इस नद क असk य जलचर जीव जस
ीराम क ज म पर आन द और बधाइया
भवर और तरग सी मनोहरता उनस
राम-लखन भरत-शv न का बालपन
H य कमल Kखल ह अनक रग क
महाराज रा8नय और कटिDबय क स9 कम
जस xमर और जलपी ह इस क
छा रह नद म0 सहावनी छ3व सी
ीसीताजी क वयवर क स दर कथा
स दर B- न ह इस नद क नाव0
उनक उ9तर 4प लय ह कवट का
कथा को सन चचा जो होती
जस सग चल रहा या(य का समाज
परशरामजी का =ोध भयानक धारा नद क
ीरामजी क वचन स दर बध घाट
चार xाताओ क 3ववाह का उ9 सव
इस कथा नद क क याणकार बाढ़
इसक कहन स जो ह3ष त-पलAकत होता
Bस नमन इसम0 नहाता सH जन का समाज
ीराम क राज8तलक हत सजाया साज
मान पव पर एक हए याी
ककयी क कGटल ब3+ काई सी
िजस कारण आ खड़ी हई 3वप9ती
उ9 पात शा त करन वाला भरत का चVर
नद तटपर Aकय जान वाल जपय6 सा
पाप और दa ट क अवगण का वण न
बगल कौए और कचड़ नद का
परम सहावनी और प3व यह नद
स दर रहती छह ऋतओ म0
शव-पाव ती 3ववाह हम त ऋत
ीराम ज म शशर ऋत सी इसम0
ीरामच gtजी क 3ववाह समाज का वण न
आन द-मगलमय ऋतराज वसत सा
इनका वनगमन दसह fीa म ऋत सी
कड़ी धप और ल माग क कथा
रास सग घोर य+ वषा ऋत
दवकल4पी धान हत स दर Gहतकार
रामराH य का सख 3वनता और बड़ाई
शरद ऋत सहानी 8नम ल सखकार
सती-शरोमKण सीताजी क गण क कथा
इस जल का 8नम ल और अनमप गण
भरतजी का वभाव इसक स दर शीतलता
जो ह वण नातीत और सदा अb ण
- 24 -
चार भाइय का पर पर Bम n यवहार
इस जल क मधर-सगध का सार
मर 3वनय और दनता जल का ह कापन
यह जल मन का मल दता मार
ीराम Bम को पa ट करता यह
कलयग क पाप और Y ला8न को हरता
सोख लता ज म-म9 य 4पी म को
पाप ताप दाVरgtय और दोष को हरता
काम =ोध मद मोह 3वनाशक
8नम ल 6ान-वराY य बढ़ान वाला
इस पीन और नान करन वाल क
सब पाप-ताप मटान वाला
ठग गय व कायर कलयग _वारा
अपना Uदय न धोया िज होन0 इसम0
मगतa णा जस मग को छलती
पड़ रह0ग व जीव दख म0
इस स दर जल क गण को 3वचार
और नान करा इसम0 अपन मन को
ी भवानी-शकर को मरण कर
यह क3व कहता इस पावन कथा को
ीरघनाथ चरण-कमल Uदय म0 धर
और पाकर अब म उनका Bसाद
अपनी ब3+ अनसार वण न करता ह
दोन a ठ म8नय क मलन का सवाद
तीथ राज Bयाग म0 बस भर_वाज म8न
रामचरण अनरागी तप वी दया 8नधान
माघ माह म0 दव द9 य नर Aक नर
सब वहा आ (वणी म0 करत नान
ीवणीमाधव क चरण-कमल को पजन
अयवट को पश कर पलAकत होत
उनक आम म0 आता साध-समाज
पर पर ीहVर क कथाए सनत-सनात
साध-म8न माघ माह म0 वहा 4क
EFम-8न4पण धम -चचा आGद करत
इस Bकार माह-पय त वहा 4क
अपन-अपन आम को व लौटत
एक बार जब सभी म8न गण
लौट गय अपन-अपन आम को
उनक जान क प- चात भर_वाजजी न
रोक लया म8न या6व C यजी को
3वनती कर ह त9 व6 म8न आप ह
कर सकत ह मर सदह का 8नवारण
इस कहत भय और लाज आती ह
ना कहन स होता हा8न का कारण
वद पराण और म8न सब कहत
ग4 स 8छपाव 6ान होन नह दता
यह सोच अपना अ6ान Bकट करता ह
ह नाथ दर कर0 यह सशय मरा
- 25 -
वद-उप8नषद गात राम-नाम का Bभाव
अ3वनाशी 6ान-गण राश शव जपत रहत
चार जा8त क जीव काशी म0 मरन पर
नाम-मGहमा स परम पद पा लत
ह कपा8नधान कपाकर समझाकर कGहय
व lsquoरामrsquo कौन ह पछता ह आपस
एक राम तो दशरथजी क कमार ह
अपार दख उठाया िज हन प9 नी-3वयोग म0
Aफर =ोltधत हो मार डाला रावण को
C या य वह राम ह ह Bभ कहो
आप स9 य क धाम जानत ह सब कछ
C या जपत रहत ह शवजी इ ह को
तब या6व C यजी बोल मसकराकर उनस
जान गया तD हार चतराई मझस सनना चाहत
मन वचन कम स तम रामभCत हो
पर मझस सब रह य तम सनना चाहत
Bभ ीराम क कथा कहता ह
ह तात आदरपव क मन लगाकर सनो
उनक कथा च gtमा क Aकरण समान
सत4पी चकोर सदा सनना चाहत िजसको
ऐसा ह सदह पाव तीजी न Aकया था
महादवजी न उ9तर Gदया था 3व तार स
वह सवाद अब तमस कहता ह
तD हारा 3वषाद मट जायगा सनकर िजस
तायग म0 जगH जननी सतीजी क साथ
अग 9 य म8न क पास गय शवजी
ई- वर जान उनक पजा क म8न न
Aफर Bम सGहत म8न न रामकथा कह
हVरभिCत का राज पछा म8न न
शवजी न Aकया भिCत का 8न4पण
Aफर कछ Gदन वहा 4ककर शवजी न
सतीजी क साथ Aकया कलास-गमन
प| वी का भार हरन को हVर न
तब राम-4प म0 लया था अवतार
साध-वश म0 वन म0 3वचरत थ
अपन 3पता क आ6ा क अनसार
शवजी Uदय म0 सोच रह थ
Aकस Bकार ह उ ह0 दश न उनक
ग]त 4प स Bभ न अवतार लया
सब जान जाय0ग मर जान स
नह जानती थी यह भद सतीजी
शवजी को डर था भद खलन का
Aक ीराम स9 य करना चाहत ह वचन
EFमाजी न जो रावण को Gदया था
इस Bकार शवजी जब 3वचारमY न थ
रावण न साथ लया मरच को
तरत कपट मग बन गया मरच
और रावण न हर लया सीताजी को
- 26 -
कपट मग क पीछ गय रामजी
उस मार जब व लौट आम
3वकल हए न म0 आस भर आए
जब सीता स VरC त मला आम
मनa य क भा8त 3वरह स n याकल हो
भाई सग खोज रह सीता को राम
िजनको कभी कोई सयोग-3वयोग नह
3वरह स सत]त हो रह व राम
बड़ा ह 3वltच ह ीरघनाथ का चVर
िजसका रह य बस 6ानीजन ह जानत
जो म दब3+ ह मोह क वश होकर
अपन Uदय म0 कछ और ह मानत
इसी अवसर पर ीराम को दख
आन द हआ शवजी को अ8त भार
दखा उन शोभा-सागर को जी भरकर
पर पVरचय दन म0 थी लाचार
जय हो प3व पावन सिJचदान द क
पलAकत शवजी चल Gदय यह कहकर
सतीजी यह दख पड़ गयी सदह म0
शवजी को पजत ह सर म8न नर
एक राजप को Bणाम Aकया उ होन0
BममY न Bी8त समाती न Uदय म0
अज अगोचर सव n यापक भदरGहत EFम
C या ज म ल य घमगा वन म0
दव Gहत हत अवतार लन वाल
हVर सव 6 ह शवजी क ह भा8त
व 6ान-धाम ीप8त असर क श
C या ी को खोज0ग अ6ानी क भा8त
पर शवजी क वचन होत न अस9 य
व सव 6 ह सब जानत ह इस
सो उनक मन म0 उठा अपार सदह
6ान न अपजा Aकसी तरह स
य_य3प Bकट कछ कहा नह उ होन0
पर शवजी न सब जान लया मन म0
बोल ह सती तD हारा ी वभाव ह
रखना न चाGहय ऐसा सदह मन म0
अग 9 य म8न न िजनक कथा गायी
और म8न को भिCत सनायी मन िजनक
य वह मर इa टदव ीरघवीर जी ह
6ानी-म8न सवा म0 रहत िजनक
योगी म8न 6ानी और स+ 8नर तर
8नम ल ltच9त स िजनका करत ह s यान
वद-पराण और शा करत ह
न8त-न8त कहकर िजनका गण-गान
उ ह सव n यापक EFमाb ड क वामी
मायाप8त
8न9 य परम वत EFम4प भगवान राम न
अपनी इJ छा स भCत क Gहत क लय
- 27 -
अवतार लया ह रघकल क मKण4प म0
समझाया बहत पर समझी न सतीजी
माया Bबल जान कहा शवजी न इनस
परा ल C य xम दर नह करती
तो चल पड़ी सतीजी आ6ा पा उनस
उधर शवजी न ऐसा अनमान Aकया
दक या सती का इसम क याण नह
समझान स भी सदह दर नह होता
3वधाता उलट ह उनक कशल नह
होगा वह जो राम न रच राखा
तक कर बढ़ाए कौन बात को
ऐसा कह जपन लग हVर नाम व
उधर चल सती परा लन को
बारD बार अपन मन म0 3वचारकर सतीजी
सीताजी का वष धर चल द उधर
आ रह थ िजधर स नर4प ीराम
xमत हो गय लu मणजी उ ह0 दखकर
गभीर हो कछ कह न सक लu मण
जानत थ Bभ क Bभाव को वो
नa ट हो जाता अ6ान िजनक मरणमा स
जान गय व सतीजी क कपट को
उ ह सव 6 भगवान ीराम क सD मख
ी वभाव वश सतीजी करना चाहती ह 8छपाव
ीरामच gtजी हसकर बोल कोमल वाणी स
मन म बखानकर अपनी माया का Bभाव
हाथ जोड़कर पहल Aकया Bणाम Bभ न
Aफर 3पतासGहत बताया अपना नाम उ होन0
Aफर पछा कहा ह वषकत शवजी
और C य Aफर रह आप अकल वन म0
कोमल और रह य भर य वचन सनकर
लौट चल बहत ltच8तत हो सतीजी
आरोप Aकया अपना अ6ान Bभ पर
अब जाकर शवजी को C या उ9तर दगी
जान सतीजी को दख पहचा ह
ीराम न कछ अपना Bभाव Gदखलाया
सतीजी को माग म0 जात हए उ होन0 ल मण और सीताजी सहत वय को दखलाया
जब सतीजी न दखा पीछ मड़कर तो
वहा भी वो तीन Gदय Gदखलायी
जहा भी दखा ीराम को दखा
स+ और म 8न सवा करत Gदय Gदखलायी
दख उ होन0 अनक शव EFमा और 3वa ण
सभी दवता सवा म0 रत थ जो ीराम क
अनltगनत अनपम सती EFमाणी और लu मी
जो अनकल 4प धारण Aकय हए थी
जहा-तहा िजतन रघनाथजी दख उ होन0
वहा-वहा उतनी ह सिaटय को दखा
दवता आGद अनक वष धारण Aकय हए थ
- 28 -
पर सीता-राम का अ य 4प न दखा
सव वह सीता-राम और लu मण जी थ
सतीजी ऐसा दखकर बहत डर गयी
Uदय कॉपन लगा जाती रह सध-बध
आख मद कर व वह बठ गयी
Aफर आख खोलकर जब दखा उ होन0
तो कछ नह दख पड़ा उ ह0 वहा पर
तब सर नवाकर ीरामजी क चरण म0
चल पड़ी व शवजी थ जहा पर
जब पहची व शवजी क पास
हस कर पछा शवजी न सती स
Aकस Bकार ल तमन परा ीराम क
सार बात कहो सच सच तम हमस
समझकर ीरघनाथ जी क Bभाव को
डरकर Aकया शवजी स 8छपाव सती न
कहा मन कछ भी ल ना उनक परा
बस आप ह क तरह Aकया Bणाम उ ह0
जो कहा आपन झठ हो नह सकता
परा 3व- वास ह यह मर मन म0
तब s यान लगा शवजी न जान लया
जो चVर Aकया था वहा सती न
कहला Gदया िजसन सतीजी स भी झठ
उस ीरामजी क माया को शीश नवाया
हVर क इJ छा 4पी भावी Bबल ह
ऐसा 3वचार शवजी क Uदय म0 आया
सतीजी न Aकया था सीताजी का वष धारण
बड़ा 3वषाद हआ शवजी को यह जानकर
सोचा यGद अब सती स Bी8त क4 तो
रह जाएगा भिCत माग ल]त हो कर
छोड़त नह बनता उ ह0 प3व ह सती
पर अब Bम करन म0 ह बड़ा पाप
Bकट करक महादवजी कछ भी नह कहत
पर उनक Uदय म0 ह बड़ा सताप
मरण कर ीरामजी को शवजी न
मन ह मन उनक चरण म0 शीश नवाया
अब सती स मलन हो नह सकता
शवजी क मन म0 यह भाव आया
ऐसा lढ़ 8न- चय कर िथर ब3+ शकरजी
ीरघनाथ को समरत कलास क ओर चल
चलत समय आकाशवाणी हई जय हो
भिCत क lढ़ता क ह महश आपन
कौन दसरा कर सकता ह ऐसी B8त6ा
आप राम-भCत समथ और ह भगवान
यह सनकर सतीजी न सकचात हए पछा
मासपारायण दसरा वाम
- 29 -
C या B8त6ा क आपन ह स9 य क धाम
य_य3प बहत Bकार स पछा सती न
परत शवजी न कछ न कहा उनस
अनमान लगाया उनका कपट जान गय शवजी
पर कपा सागर शवजी कछ नह कहत उनस
दध स मल जल भी दध समान (बकता
Bीत क कसी स दर यह रत अनोखी
पर कपट 4पी खटाई कर दती उ ह0 अलग
फट जाता ह दध जाता रहता वाद भी
शवजी का 4ख दख जान लया सती न
Aक 9 याग कर Gदया मरा वामी न
कछ कहत नह बनता अपना पाप समझकर
पर कD हार क आव सा Uदय लगा जलन
ltच तायCत जानकर सतीजी को शवजी न
कलास जात हए कई कथाए सनाई
Aफर अपनी B8त6ा याद कर पासन म0
वाभा3वक 4प म0अखb डअपार समाltध लगाई
रहन लगी तब कलास पव त पर सतीजी
पर उनक मन म0 दख था बड़ा
जानता नह था कोई भी यह रह य
हर Gदन यग समान लग रहा बड़ा
8न9 य नया और भार सोच हो रहा था
Aकया रघनाथ का अपमान झठा जाना प8त को
जो उltचत था वह फल Gदया 3वधाता न
पर शकर स 3वमख C यो िजला रहा मझको
मरण कर ीरामच gt जी का Uदय म0 सती न
कर 3वनती उनक यह दह ज द छट जाय
यGद उनका शव चरण म0 Bम स9 य ह
तो उनका मरण हो 3वपि9त दर हो जाय
वण नातीत दा4ण दख सह रह थी सतीजी
स9तासी हजार वष समाltध म0 शवजी रह
व समाltध स जाग द Bजाप8त हए
योY य जान EFमाजी न नायक बना Gदया उ ह0
पाया जब इतना बड़ा अltधकार द न
तब अ9 यत अभमान हो गया उनको
ऐसा कोई पदा हआ नह जगत म0
Bभता पाकर मद न हआ हो िजसको
म8नय को बला आयोिजत Aकया बड़ा य6
सभी दवताओ को आदर सGहत बलाया
Aक नर नाग स+ ग धव और दव न
अपना-अपना 3वमान स दरता स सजाया
अपनी-अपनी िय सGहत चल भाग लन
स दर 3वमान स उ होन0 आकाश-माग अपनाया
उ ह0 दख सतीजी न जब पछा शवजी स
शवजी न उ ह0 य6 क 3वषय म0 बतलाया
Bसन हई सतीजी य6 क बार म0 जानकर
सोचा कछ Gदन 3पता क घर रह आऊ
- 30 -
कहा शवजी स यGद आपक आ6ा हो तो
3पता क यहा उ9 सव म0 चल जाऊ
शवजी बोल बात तो अJ छj कह तमन
पर उ होन0 हमको 8नमित न Aकया
और को बलाया पर वर क कारण
तमको भी 3पता न भ ला Gदया
हो गए थ व अBस न EFमाजी क सभा म0
सो उसीस अब भी करत हमारा अपमान
जो तम वहा जाओगी (बना उनक बलाय
तो न शील- नह रहगा न रहगा मान
म वामी 3पता और ग4 क घर
य_य3प 8न सदह जाना चाGहए (बना बलाय भी
तो भी जहा कोई 3वरोध मानता हो
उसक घर जान स होता क याण नह
समझाया अनक Bकार स शवजी न उ ह0
पर होनहारवश बोध हआ नह उनक Uदय म0
तब मख य गण को शवजी न साथ भजा
पर द क घर Aकसी न न पछा उ ह0
बस बGहन मसकराती माता आदर स मल
द न तो कशल तक पछj नह उनक
जब सतीजी न जाकर य6शाला म0 दखा
तब समझ म0 उ ह0 आयी बात प8त क
शवजी का वहा कोई भाग न था
उनका अपमान समझ सती का Uदय जल उठा
प8तपVर9 याग का दख इतना n यापा न था
िजतना महान दख उ ह0 इस वC त हआ
य_य3प अनक Bकार क दा4ण दख ह जग म0
तथा3प जा8त-अपमान कGठन ह बढ़कर सबस
माता न उ ह0 बहत समझाया-बझाया
पर शवजी का अपमान न सहा गया उनस
हठपव क डाटकर =ोध स बोल सभा म0
शवजी क 8न दा करन या सनन वाल
तरत फल पाय0ग व अपन कमr का
मर 3पता भी नह बk श जान वाल
सत शभ और ीप8त क 8नदको क
अपना वश चल तो उनक जीभ काट ल
या Aफर भाग जाय वहा स कान मदकर
उनक 8नदा कहन-सनन म0 कभी न भाग ल
(पराVर मह- वर आ9 मा ह जगत क
व जगि9पता और Gहत करनवाल ह सबका
मरा म दब3+ 3पता 8न दा करता ह उनक
और मरा यह शरर Gदया हआ ह 3पता का
इसलय चgtमौल शवजी को Uदय म0 धर
9 याग दगी तरत ह म इस शरर को
ऐसा कह योगािYन म0 भ म कर Gदया शरर
कोई रोक न पाया ऐसा करन स उनको
सार य6शाला म0 हाहाकार मच गया
शवजी क गण य6 3वs वस करन लग
- 31 -
उ ह ऐसा करत दखा तो वहा उपिथत
मनी- वर भगजी य6 को बचान म0 लग
य समाचार जब शवजी को मला
तो =ोltधत हो भजा वीरभgt को
3वs वस कर डाला य6 उसन जाकर
और यथोltचत दb ड Gदया सब दव को
हई वह जगत Bस+ ग8त द क
जो हआ करती ह शवgtोह क
सारा जगत जानता ह यह इ8तहास
सो यहा सप म0 मन यह बात कह
मरत समय सती न ीहVर स मागा
शव-चरण म0 अनराग B9 यक ज म म0
इस कारण Gहमाचल क घर म0 जाकर
पाव तीजी का शरर लया अगल ज म म0
जब स Gहमाचल क घर ज म लया उमा न
तब स वहा सार स3+या सD पि9तया छा गयी
म8नय न अपन स दर आम बना लय
मKणय क अनक खान0 वहा Bकट हो गयी
नय-नय व सदा पa प-फलयCत हो गय
सार नGदय म0 प3व जल बहन लगा
पश-पी xमर सब सख स रहन लग
जीव को अपना वाभा3वक वर भलन0 लगा
ऐसा शोभायमान हो उठा तब पव त
जस रामभिCत को पाकर होता भC त
पव तराज क घर 8न9 य मगलो9 सव होत
EFमाGद सब गात ह िजसका यश
जब य सब समाचार सन नारद न
कौतक ह स आ गए Gहमाचल क घर
चरण धोकर उनको उ9तम आसन Gदया
पव तराज न Aकया उनका बड़ा आदर
Aफर प9 नी सGहत चरण म0 शीश नवाया
और चरणोदक को सार घर म0 8छड़काया
बहत बखान Aकया अपन सौभाY य का उ हन
पी को बलाकर म8न चरण म0 बठलाया
जब पछा उनस क या क बार म0 उ होन0
म8न न बतलाया उ ह0 सब गण क खान
कहा वभाव स ह सशील और समझदार ह
उमा अिDबका और भवानी ह इसक नाम
सब सलण स सD प न बतलाया क या को
और कहा वह सदा प8त को ] यार रहगी
जगत म0 पH य और इसक सवा करन वाल को
द8नया म0 कोई भी चीज दल भ न रहगी
Aफर म8न न बताय एकाध दोष क या म0
कहा इस क या को ऐसा प8त मलगा
गणहन मानहन उदासीन माता-3पता 3वहन
योगी जटाधार और अमगल वषधार मलगा
सनकर म8न क बात0 और स9 य जानकर हमवान और मना दखी पर पावतीजी ह स न
- 32 -
जाना नह यह रह य Aकसी न भी C यAक
बाहर दशा एकसी पर समझ थी भ न
Uदय म0 बसा लय व वचन उमा न
शवजी क चरण म0 उ ह0 नह हो आया
हआ सदह Aक उनका मलना कGठन ह
Aफर अवसर न जान अपना Bम 8छपाया
दव3ष क वचन स9 य जानकर पव तराज न
पछा ह नाथ C या उपाय Aकया जाय
म8न न कहा जो लख Gदया 3वधाता न
Aकसी क भी मटाय मटाया ना जाय
तो भी एक उपाय बताता ह म
स+ हो सकता यGद दव सहायता कर0
उमा को वर तो वसा ह मलगा
जसा तD हार सामन वण न Aकया ह मन
वर क जो जो दोष मन ltगनवाय ह
मर अनमान स व सब ह शवजी म0
यGद उनक साथ 3ववाह हा जाय उमा का
तो व दोष भी ltगन जाएग गण म0
सोत ह ीहVर शष शया पर
तो भी लगात नह पिbडत दोष उ ह0
सय और अिYन सब कछ 8नगल जात
Aफर भी बरा नह कहता कोई उ ह0
शभ-अशभ सभी जल बहता गगा म0
पर कोई उ ह0 अप3व नह कहता
सय अिYन और गगाजी क भा8त
समथ को कह कछ दोष नह लगता
6ान-अभमान स जो होड़ करत ह
व मख क पभर क लय पड़त नरक म0
ई- वर क समान भला कह जीव भी
आ सकता सव था वत क ltगनती म0
गगाजल स भी यGद बनी हो मGदरा
सतजन कभी उसका पान नह करत
वह गगाजल म0 मलकर प3व हो जाती
ऐसा ह भद जीव और ई- वर म0 जानत
शवजी भगवान और सहज समथ ह
इसलय इस 3ववाह म0 हर तरह क याण
परत उनक अराधना बहत कGठन ह
Aफर भी व बड़ी ज द जात ह मान
यGद यह तD हार क या तप या कर तो
मटा सकत ह (परार होनहार को
य_य3प ससार म0 अनक योY य वर ह
पर शवजी को छोड़ कोई नह इसको
वर दायक शरणागत व9 सल कपा सध
और सवक को Bस नता दत शवजी
उनक आराधना Aकय (बना नह मलता
मनचाहा फल जप-तप करन पर भी
ऐसा कह और भगवान का मरण कर
आशीवा द Gदया नारद जी न उमा को
- 33 -
कहा सदह 9 यागो सब क याण होगा
और चल गय व EFमलोक को
उनक जान क बाद मनाजी न कहा
समझा नह मन म8न क वचन का मतलब
Bाण क समान ] यार ह पाव ती मझको
3ववाह किजए उसका उltचत वर दखकर
योY य वर जो न मला पाव ती को
सब कह0ग पव त जड़ होत ह वभाव स
Gहमवान न कहा भगवान का मरण करो
िजसन पाव ती को रचा व ह सभालग उस
कहो क या को तप कर वो ऐसा
Aक िजसस उसको शवजी मल जाय0
सभी तरह स 8नa कलक ह शवजी
म8न यहा क याण करन ह थ आय
Bस न हो उठj मना यह सनकर
पाव ती को दख आस भर आय आख म0
तब पाव तजी न अपनी माता स कहा
एक स दर व] न दखा ह मा मन0
एक स दर a ठ EाFमण न सपन म0 कहा
नारदजी न जो कहा स9 य जान त उस
Aफर यह अJ छा लगा तर माता-3पता को भी
तप सख और मिCत दता सभी दोषो स
तपबल स ह ससार रचत EFमाजी
तप स ह 3वa ण करत पालन
तप स ह शD भ सहार करत
तप स ह शष जी प| वी करत धारण
तप क आधार पर Gटक ह सार सिaट
ह भवानी ऐसा जी म0 जान तप कर
बड़ा आ- चय हआ माता को यह जान
वह व]न सनाया उ हन Gहमवान को जाकर
बहत तरह स समझाकर तब माता-3पता को
बड़ हष क साथ पाव तीजी तप करन0 चल
माता-3पता सब कटD बी हो गय n याकल
Aकसी क मह स कोई बात नह 8नकल
तब वदशरा म8न न सबको आकर समझाया
पाव तीजी क मGहमा क बार म0 बतलाया
समाधान हो गया सबका म8न क वचन सन
पाव तीजी न वन म0 जाकर s यान लगाया
9 याग Gदय सब भोग उ होन0
तप करन लगी धर शवजी Uदय म0
8न9 य नया अनराग सध (बसर तन-मन क
सब कछ भल मन लगा तप म0
बहत समय क द-मल फल खाकर बीता
Aफर बस जल और वाय का भोजन
बहत समय तक बहत कठोर उपवास Aकया
तीन हजार वष खाय सख बल क पण
Aफर छोड़ Gदय व सख प9त भी
तभी स अपणा नाम हआ पाव ती का
- 34 -
हई EFमवाणी सफल हआ तरा मनोरथ
9 याग कर द अब सार असहय C लश का
बहत हए धीर म8न और 6ानी
पर ऐसा कठोर तप Aकया ना Aकसी न
सदा स9 य और 8नर तर प3व जान कर
धारण कर इस वाणी को Uदय म0
Aफर कहा जब तर 3पता बलान0 आव0
तब हठ छोड़कर उनक साथ चल जाना
और Aफर जब तD ह0 मल0 स]त3ष
ह भवानी इस वाणी को ठjक समझना
आकाश स हई EFमा क वाणी सन
Bस न ह~ व सारा शरर पलAकत हो गया
अब सनो शवजी का सहावना चVर
या6व C यजी न भर_वाजजी स जो कहा
जब स Aकया सती न शरर का 9 याग
वराY य हो गया शवजी क मन म0
भगवान ीहVर को मन म0 धारण कर
उनक गण-गाथा लग सनन सनान
य_य3प 8नa काम पर दखी ह शवजी
अपनी भC त सती क 3वयोग क दख स
शवजी क कठोर 8नयम और Bम को दख
ीराम न Bकट हो यह कहा उनस
कौन 8नबाह सकता आपक सवाय ऐसा tत
Aफर पाव तीजी क ज म क बार म0 बताया
जो कGठन तप Aकया पाव तीजी न बतलाकर
उ ह0 पाव तीजी स 3ववाह करन को समझाया
कहा यGद आपका मझ पर नह ह तो
ह शवजी 3ववाह कर लिजय उमा स
शवजी न कहा य_य3प ऐसा उltचत नह ह
Aफर भी मरा धम बधा आपक आ6ा स
माता-3पता ग4 और वामी क बात को
मान लना चाGहए (बना 3वचार शभ समझकर
Aफर आप तो सब Bकार स Gहतकार ह मर
ह नाथ आपक आ6ा ह मर सर पर
भिCत 6ान और धम स यCत वचन सन
ीरामच gtजी सतa ट हो हो गय अ तधा न
उसी समय स]त3ष शवजी क पास आए
शवजी न सहावन वचन कह Gदया मान
कहा लिजय पाव तीजी क Bम क परा
सदह दर कर घर भजवाइय उनको
ऋ3षय न म8त मान तप या 4प म0 दख
पछा उनस कठोर तप C य कर रह हो
पाव तीजी बोल आप मर मख ता पर हस0ग
हठ पकड़ा मन न कोई उपदश न भाता
चाहता ह वो दवाल उठाना पानी पर
नारदजी क सन मर वश म0 न आता
ह म8नय आप मरा अ6ान तो दख0
चाहती ह शवजी को अपना प8त बनाना
- 35 -
ऋ3ष हस पड़ कहा पव त स ज मी हो
नारद न Aकया C या कभी भला Aकसी का
द क प को Gदया था उपदश
लौटकर घर का मख दखा ना उ होन0
ltचकत और Gहरb यकशप का घर हआ चौपट
नारद का ह उपदश सना था उ होन0
जो ी-प4ष सनत ह नारद क सीख
भीखार हो जात ह व घर-बार छोड़कर
सH जन दखत पर उनका मन कपट ह
Bस न होन चाहत सबको अपना सा दखकर
उनक वचन पर 3व- वास मानकर तम
उदासीन 8नल H ज बर वषवाला प8त चाहती हो
नर-कपाल क माला पहनन वाला कलहन
जो शरर पर साप को लपट रखता हो
ऐसा वर मलन स C या सख होगा तD ह0
खब भल उस ठग क बहकाव म0 आकर
सती स 3ववाह Aकया था शव न लAकन
Aफर उस मरवा डाला उ होन0 9 याग कर
अब कोई ltच ता रह नह शव को
भीख मागकर खा लत और सोत सख स
ऐस वभावत एकल रहन वाल क घर
C या कभी कोई ी रह सकती सख स
अब भी यGद तम हमारा कहा मानो तो
तD हार लय 3वचारा ह हमन बहत अJ छा वर
बहत ह स दर प3व सखदायक और सशील
िजसक लला और यश वद सनात गाकर
सार स_गण क राश और दोष स रGहत
लu मी का वामी बकb ठपर का रहन वाला
हम ऐस वर को मला द0ग लाकर तमस
यह सनकर पाव तीजी न उनस कह डाला
स9 य कहा आपन मरा शरर पव त स उपजा
सो हठ न छटगा चाह तन छट जाय
सोना भी तो उ9 पन होता ह प9 थर स
पर सवण 9 व नह छोड़ता जला दो चाह
सो म भी नह छोडगी नारदजी क वचन को
घर बस या उजड़ इसस म नह डरती
ग4 क वचन म0 3व- वास नह िजनको
सख और स3+ व] न म0 भी नह मलती
माना Aक महादव जी ह अवगण क खान
और 3वa णजी ह सम त गण क धाम
पर िजसका मन रम गया हो िजसम0
उसको तो होता बस उसी स काम
यGद आप पहल मल होत ह मनी- वर
तो सर-माथ पर रखती म उपदश आपका
पर त अब तो म शवजी को हार चक ज म
Aफर कौन 3वचार कर उनक गण-दोष का
और यGद आप ह बहत ह उ9 सक
कह और जाकर किजए 3ववाह क बात
- 36 -
म तो शवजी स ह 3ववाह क4गी
ना मानगी Aकसी और स 3ववाह क बात
Aफर कहा जगH जननी पाव तीजी न उनस
अपर घर जाइय म आपक पड़ती ह पर
ऐसा Bम दखकर व 6ानी म8न जन बोल
ह जगज जननी भवानी आपक जय होजय
हो
माया ह आप और भगवान ह शवजी
सम त जगत क आप ह माता-3पता
सर नवाकर पाव तीजी क चरण म0 चल Gदय
उ ह0 घर लवा लान Gहमवान को भजा
Aफर स]त3ष य न शवजी क पास जाकर
उनको पाव ती जी क Bम क बार म0 बताया
सब कछ सनकर शवजी आन दमY न हो गय
िथर मन स ीराम चरण म0 s यान लगाया
उसी समय हआ तारक नाम का असर
िजसन दवताओ का जीना कर Gदया दभर
हरा न सक जब दवता उस तो
3वनती क EFमाजी स उ होन0 जाकर
EFमाजी न बतलाया उसक म9 य का उपाय
कहा शवजी का प ह जीत सकगा उस
सतीजी न जो अपना दह 9 याग Aकया था
Gहमाचल क घर ज मी ह व Aफर स
शवजी क लय तप Aकया ह उ होन0
पर शवजी बठ ह समाltध लगाय
य_य3प ह तो बड़ असमजस क बात
Aफर भी बताता ह C या Aकया जाय
तम कामदव को भजो शवजी क पास
Aक जाकर उनक मन म0 ोभ उ9 प न कर0
तब हम जाकर उनक चरण म0 सर रख0ग
3वनती कर0ग Aक व पाव ती स 3ववाह कर0
और कोई उपाय नह ह सवाय इसक
दवताओ का काम बस बन सकता इसस
जब जाकर उ होन0 कामदव स कह 3वपि9त
मर कशल नह उसन कहा उन सबस
Aफर भी म तD हारा काम तो क4गा
C यAक वद परोपकार को परम धम कहत
दसर क Gहत म0 जो 9 याग दत सव व
सत जन सदा उनक बड़ाई करत रहत
Aफर सर नवाकर उपन सहायक क साथ
पa प बाण को हाथ म0 लकर कामदव चला
मन म0 सोचा मरा मरण 8नि-चत ह
शवजी क 3वरोध स हआ Aकसका भला
तब उसन जाकर अपना Bभाव फलाया
और सार जग को कर लया वश म0
सयम-8नयम धीरज-धम क सना भागी
वद क मया दा मट गयी ण म0
- 37 -
खलबल मच गयी जब सार जग म0
सब चराचर हो गय काम क वश म0
पामर मनa य और पश-पी क C या
योगी- वर और तप वी भी पड़ xम म0
दो घड़ी तक सार EFमाb ड क अदर
कामदव का रचा हआ यह कौतक रहा
कवल व ह उस समय बच रह
ीरघनाथजी न कपा कर क िजनक रा
जब पहचा कामदव शवजी क सD मख
शवजी क मGहमा को दख डर गया
सब जीव सखी हो गय पहल क जस
सारा ससार पहल सा िथर हो गया
िजनको परािजत करना अ9 यत कGठन ह
और जो यCत ह सभी ई- वरय गण स
भग करनी ह उस उनक तप या
भयभीत हो उठा कामदव यह सोच क
लH जा मालम हई उस लौट जान म0
पर उसस करत कछ बनता नह
आKखर उसन हारकर एक उपाय Aकया
मन म0 सोच Aक उसको बचना नह
तरत ऋतराज बस त को Bकट Aकया उसन
फल-फल व क कतार0 सशोभत हो गयी
वन-उपवन बावल-तालाब और Gदशाए
हर व त Bम क रग म0 रग गयी
कह नह जा सकती वन क स दरता
Kखल गय सरोवर म0 अनक कमल
काम4पी अिYन को बढ़ान वाला उसका म
चलन लगा म द सगिधत पवन शीतल
भौर क समह गजार करन लग कमल पर
पी चहकन अ] सराए गा-गाकर नाचन लगी
हार गया सब उपाय कर कामदव
पर शवजी क अचल समाltध न डगी
=ोltधत हो उठा तब कामदव यह दख
आव क एक स दर डाल पर चढ़ गया
अपन पाच बाण चढ़ाकर पa प धनष पर
=ोध म0 भर कान तक तान लया
8नशाना साध छोड़ कामदव न अपन बाण
शवजी क Uदय म0 लग समाltध टट उनक
बहत ोभ हआ शवजी को जागन पर
उ होन0 आख0 खोल सब ओर Aफरायी lिaट
आम क प म0 8छप कामदव को दखकर
=ोध स भर उठ न शवजी क
(लोक काप उठ तीसरा न खलन स
भ म हो गया कामदव दखत ह उनक
हाहाकार मच गया सार जग म0
दवता डर गए द9 य सखी हो गय
ltच ता करन लग व जो भोगी थ
पर साधक योगी 8नa कटक हो गय
- 38 -
यह सनत ह र8तदवी मिJछ त हो गयी
रोती 3वलाप करती गयी शवजी क पास
अनक 3वनती कर हाथ जोड़ खड़ी हो गयी
शवजी Bस न हग थी उसको आस
शी Bस न होन वाल कपाल शवजी
उस अबला को दखकर बोल य वचन
अब स (बना शरर ह n यापगा अनग
त सन कस होगा प8त स मलन
जब प| वी का भार भार हरन क लय
यदवश म0 ीकa ण का अवतार होगा
तब उनका प बन ज मगा तरा प8त
मरा यह वचन अ यथा नह होगा
चल गयी र8त शवजी क वचन सनकर
EFमाGद दवता भी बकb ठ को चल
Aफर गय व सब शवजी क पास
उ होन0 त8त क शवजी Bस न हो उठ
उनक आन का Bयोजन जब पछा शवजी न
EFमाजी बोल आप जानत ह पर हम कहत
सब दवताओ क मन म0 ह परम उ9 साह
व अपनी आख स आपका 3ववाह दखना चाहत
कपा कर आप ऐसा कछ किजए
Aक सब यह उ9 सव दख0 न भरकर
a ठ वामय क सहज वभाव अनसार
अJ छा Aकया आपन र8त को वर दकर
Aफर कहा पाव तीजी क तप क बार म0
3वनती क शवजी उ ह0 अगीकार कर ल0
Bभ ीरामच gtजी क वचन को याद कर
ऐसा ह हो Bस नतापव क कहा शवजी न
नगाड़ बजा और फल क वषा कर
शवजी क जय हो कहन लग दवता
उltचत अवसर जानकर तब स]त3ष वहा आय
EFमाजी न उ ह0 Gहमाचल क घर भजा
व पहल वहा गय जहा पाव तीजी थी
और छल भर मीठ वचन बोल उनस
अब तो तD हारा Bण झठा हो गया
काम को ह भ म कर Gदया शवजी न
म8नय क वचन सन बोल पाव तीजी
ह 3व6ानी म8नवर सच ह कहा आप लोग न
अब तक तो शवजी 3वकारयCत ह रह
आपक समझ म0 अब जलाया कामदव को उ होन0
योगी अज मा अ8न _य कामरGहत और
भोगहन
सदा स ह ऐस ह शवजी हमार समझ स
यGद ऐसा ह समझ क ह मन उनक सवा
तो व कपा8नधान मर B8त6ा स9 य कर0ग ज4र स
मासपारायण तीसरा वाम
- 39 -
आपन जो कहा कामदव को भ म Aकया उ होन0
यह बड़ा भार अ3ववक ह आप लोग का
जस पाला अिYन क समीप नह जा सकता
ऐसा ह सबध ह कामदव और शवजी का
पाव तीजी का Bम और 3व- वास दखकर
Gहमाचल क पास चल व बड़ Bस न हो
जब सब वता त उ ह0 म8नय न सनाया
तब सादर बलाया उ होन0 a ठ म8नय को
शभ Gदन घड़ी और न शोधकर
वद 3वltध अनसार शभ लY न लखवाया
Aफर स]त3ष य को वह लY न प(का दकर
3वनती कर उस EFमाजी क पास पहचाया
लY न पढ़कर सबको सनाया EFमाजी न
सब ओर अपार हष छा गया
सजान लग सब अपन वाहन ओर 3वमान
शव-पाव ती का 3ववाह 8नकट आ गया
गार करन लग उनक गण शवजी का
जटाओ क मकट पर साप का मौर सजाया
साप क ह कb डल और ककण पहनाय
3वभ8त सजा तन पर बाघD बर लपटाया
च gtमा हो रहा था उनक म तक पर शोभत
सर पर गगाजी तीन न जनऊ साप का
गल म0 3वष नरमb ड क माला छाती पर
ऐसा अशभ वष पर शवजी धाम कपा का
हाथ म0 लकर (शल और डम4
बल पर चढ़कर चल शवजी
म करान लगी उ ह0 दखकर दवागनाए
इनक योY य दिहन C या मलगी कह
बाराती बन चल EFमा 3वa ण और महश
सब Bकार स अनपम था दवताओ का समाज
लAकन यह बारात द ह क योY य नह थी
सो 3वa ण भगवान न कह यह बात
अपन-अपन दल सGहत चलो अलग स
C या पराय नगर म0 जाकर कराओग हसी
महादव जी यह दखकर मन ह मन क कराय
Aक 3वa ण भगवान क n यY य वचन छटत नह
बलवा भज उ होन0 भी सब अपन गण
शवजी क आ6ा सनत ह सब चल आय
तरह-तरह क वष तरह-तरह क सवाVरया
िज ह0 दख Aकसी को कछ समझ न आय
Aकसी क बहत मख कोई (बना मख का
Aकसी क बहत आख0 Aकसी क एक भी नह
कोई बहत मोटा-ताजा Aकसी क बहत हाथ-पर
कोई दबला Aकसी को एक भी हाथ-पर नह
कोई प3व तो कोई अप3व वष वाला
कोई भयकर गहन पहन हाथ म0 कपाल लय
गध क9त सअर और सयार स उनक मख
- 40 -
उन गण क अनltगनत वष को कौन ltगन
भत 3पशाच और योltग8नय क जमात0
उनका वण न कछ कहत नह बनता
नाचत गात और मौज मनात चल वो
अब बन गयी बारात जसा था द हा
उधर Gहमालय न स दर मb डप बनाया
पव त नद तालाब को भजा 8नम ण
सब स दर 4प धर Gहमाचल क घर आय
Gहमाचल न सबको यथायोY य Gदय Bागण
ऐसा स दर सजाया Gहमाचल न नगर
Aक शोभा उसक कह जा नह सकती
घर-घर मगलसचक तोरण और s वजा-पताकाए
म8नय का मन भी जो डगा सकती
अवतार लया जहा वय जगदD बा न
वण न उसका C या कोई कर सकता
ऋ3+ स3+ और सम त सD पि9त
8नत-8नत नया वभव बढ़ता ह रहता
बारात नगर क 8नकट आयी जान कर
अगवानी करन वाल सज-सवर कर चल
Bसन हए सब दवताओ का समाज दख
पर शवजी का दल दख भाग चल
बस कछ बड़ी उ क समझदार लोग
धीरज धर कर डट रह वहा पर
लड़क स जब पछा माता-3पता न
तो कहन लग कापत हए थर-थर
C या कह0 कछ कहा नह जाता
यह बारात ह या सना यमराज क
द हा पागल ह बल पर सवार
उसक गहन ह साप कपाल और राख ह
सार शरर पर राख मल रखी उसन
(बना व क जटाधार और भयकर
भयानक भत Bत 3पशाच योग8नया और रास
आय ह उसक साथ बाराती बन कर
जो बारात दख बच सकगा जीता
बड़भागी वह दख सकगा 3ववाह उमा का
शवजी का समाज जान माता-3पता मसकात
कहत ह लड़क को 8नडर हो रहन का
अगवानी करन वाल बारात लवा लाय
ठहराया बारा8तय को स दर जनवास म0
माता मना न शभ आरती सजायी
गान लगी मगल गीत िया साथ म0
सोन का थाल सजाकर स दर हाथ म0
मनाजी चल शवजी का परछन करन
पर जब दखा महादवजी का भयानक वष
भार भय हो आया िय क मन म0
डर क मार घर म0 घस गयी व
और पाव तीजी को अपन पास बलवाया
कहन लगी िजसन इतना स दर बनाया तD ह0
- 41 -
कस उसन तD हारा द हा बावला बनाया
जो फल लगना चाGहए क पव म0
लग रहा वह बबल म0 जबरद ती स
म तD ह0 साथ लकर जान द दगी
पर तD हारा याह न क4गी उसस
उ ह0 दखी दख n याकल हो गयी िया
मना 3वलाप करती कह रह थी सबको
उजाड़ Gदया नारद न हमारा बसता हआ घर
C य ऐसा उपदश Gदया उसन पाव ती को
मोह-माया न घर-बार नारद को
बस जानत व दसर का घर उजाड़ना
उ ह0 न Aकसी क लाज न डर ह
बाझ का C या Bसव पीड़ा का समझना
उ ह0 3वकल दख पाव ती बोल माता स
टलता नह वह जो रच दत 3वधाता
यGद मर भागय म0 ऐसा ह प8त ह
तो मत लो अपन माथ कलक का टका
अवसर नह ह यह 3वषाद करन का
जो भाY य म0 लखा म भोगगी उस
पाव ती क ऐस 3वनय भर वचन सनकर
िया आस बहान लगी आखो स
नारदजी और स]त3ष य को साथ लकर
यह समाचार सन Gहमाचल गय घर को
तब नारदजी न पव -ज म क कथा सनायी
कहा मना को तम मर सJ ची बात सनो
साात जगH जननी भवानी अनाGद अज मा
जगत क उ9 पि9त पालन और सहार करन
वाल
सदा शवजी क अ+ाग म0 रहती ह य
अपनी इJ छा स शरर धारण करन वाल
ज मी थी पहल य द क घर
सती नाम स शवजी को याह गयी
एक बार इ ह0 मोह हो जान पर
सीताजी का वष धर ीराम को परखन गयी
धारण Aकया सती न जो वष सीता का
इस कारण शवजी न इनका 9 याग Aकया
Aफर 3पता क घर य6 म0 जाकर वहा
शवजी क अपमान क कारण तन 9 याग Gदया
अब इ होन0 तD हार घर ज म लकर
कGठन तप Aकया ह अपन प8त क लय
यह 3ववरण जान सबका 3ववाद मट गया
सब सहष तयार हो गय 3ववाह क लय
मगल गीत गाय जान लग नगर म0
भा8त-भा8त क n यजन पकाय जान लग
िजस घर म0 वय माता भवानी रहती ह
वहा का वभव वण न हो सकता कस
आदरपव क सब बारा8तय को बलवाया Gहमाचल न
EFमा-3वa ण आGद दवताओ को भी बलवाया
- 42 -
बहत सी पगत को परोसन लग चतर रसोइय
िया दन लगी मीठj-मीठj वाणी म0 गालया
इस 3वनोद स Bस न हो रह दवता
सो बहत दर लगा रह भोजन करन म0
भोजन क समय िजस तरह आन द बढ़ा
कहा नह जा सकता वह करोड़ो मख स
Aफर म8नय न लगन सनायी Gहमवान को
3ववाह का समय दख दवताओ को बलवाया
यथायोY य आसन Gदय गय सब दवताओ को
और वद र8त स वद को सजवाया
एक Gदn य सहासन वGदका पर सजा था
अ8त स दर बनाया हआ वय EFमाजी का
अपन Uदय म0 वामी रघनाथ को याद कर
शवजी न 3वराजमान हो मान बढ़ाया उसका
Aफर मनी- वर न पाव तीजी को बलवाया
सKखया उ ह0 ल आयी उनका गार कर
कौन उस स दरता का कर सकता वण न
दवता भी मोGहत हो गय उ ह0 दखकर
जगदD बा और शवजी क प9 नी समझकर
मन ह मन दवताओ न Bणाम Aकया उ ह0
वद शष सर वती शोभा वण न करत सकचात
Aफर म दब3+ तलसी ह Aकसी ltगनती म0
Aफर मb डप क बीच गयी माता भवानी
पर सकोचवश नीची ह उनक नजर0
दख नह सकती प8त क चरणकमल को
पर उनका मन4पी भौरा लपटा था उनम0
Aफर म8नय क आ6ा स शव-पाव ती न
दवताओ म0 Bथम गणश जी का Aकया व दन
कोई इस बात को सनकर शका न कर
दवताओ को अनाGद जान समझा ल अपना मन
कह गयी ह जसी र8त वद म0
महाम8नय न उसी अनसार 3ववाह करवाया
पव तराज Gहमाचल स हाथ म0 कश दकर
भवानी का शवजी को क यादान करवाया
जब पाव तीजी का पाKणfहण Aकया शवजी न
जय-जयकार हो उठj फल आसमान स बरस
सारा EFमाb ड आन द स पVरपण हो गया
दवताओ क Uदय भी भर गय हष स
नाना Bकार का दहज द चरण पकड़कर
Gहमाचल न कहा आप पण काम ह ह शकर
म भला C या द सकता ह आपको
आप सव व क वामी ह ह शकर
Aफर Bम स पVरपण Uदय स मना न
कहा यह उमा ह मझ ] यार Bाण सी
मा करत रGहयगा इसक सब अपराध को
अब Bस न हाकर मझ वर दिजय यह
Aफर कपा क सागर शवजी न
सब तरह समाधान Aकया उन दोन का
- 43 -
मना न Aफर बलाकर कहा पाव ती को
नाVरय को प8त सवाय नह दवता दसरा
Aफर Bम स 3वकल हो कहा उ होन0
C य िय को पदा Aकया 3वधाता न
सपन म0 भी सख नह पराधीन को
पर कसमय जान धीरज धरा उ होन0
सब िय स मल भ0ट कर Aफर भवानी
अपनी माता क Uदय स जा लपट
सब Aकसी न यथायोY य आशीवा द Gदय
Aफर सKखया उ ह0 शवजी क पास ल चल
सब याचक को सतa ट कर महादव जी
पाव ती को साथ ल कलास को चल
फल क वषा करन लग सब दवता
उधर Gहमवान शवजी को पहचान चल
बहत तरह स उ ह0 सतोष कराकर
शवजी न 3वदा Aकया Gहमाचल को
घर लौटकर बहत सD मानपव क उ होन0
3वदा Aकया अपन सभी महमान को
जब शवजी कलास पव त पर पहच
अपन-अपन लोक को लौट गय दवता
पाव ती और शवजी जगत माता-3पता ह
सो म उनका गार वण न नह करता
रहन लग व अपन गण सGहत वहा
बहत समय बीत गया उ ह0 ऐस रहत
तब षटबदन प का8त क का ज म हआ
उनक _वारा तारकासर का वध सभी जानत
क याण कायr और मगल म0 सख पाय0ग
व जो कह0ग शव-पाव ती क यह कथा
वद भी पार नह पा सकत उनका चVर
Aफर गवार तलसीदास वण न कस कर सकता
शवजी क रसील और सहावन चVर को सन
म8न भर_वाजजी न बहत ह सख पाया
कथा सनन क उनक लालसा बढ़ गयी
रोमावल ह3ष त न म0 जल भर आया
Bम म0 मY ध हो गय म8न भर_वाज
उनक मख स वाणी नह 8नकलती
या6व C यजी Bस न हो बोल तम ध य हो
Bाण समान 3Bय ह तD ह0 गौरप8त शवजी
Bी8त नह िजनक शव-चरण म0
कदा3प भात नह वो ीराम को
3वश+ Bम 3व- वनाथ शवजी क चरण म0
अ9 यत 3Bय लगत वो राम को
राम भिCत का tत धारण करन वाला
कौन हो सकता ह शवजी स बढ़कर
(बना पाप क 9 याग Gदया सती को
Gदखा Gदया अपनी भिCत को सच कर
शव चVर कह तD ह0 परख लया मन
दोष-रGहत तम ीरामजी क प3व सवक हो
- 44 -
तमस मलन का आन द कहा नह जा सकता
ीराम क लला कथा अब ह म8न सनो
अ9 यत अपार ह रामचVर ह मनी- वर
सौ करोड़ शषजी भी कह नह सकत
Aफर भी जसा सना ह मन कहता ह
धनषधार ीरामच gtजी का मरण कर क
कठपतल समान ह सर वतीजी िजनको
सत पकड़ नचान वाल ह रामजी
िजस क3ववर पर कपा करत ह वो
उनक Uदय आगन म0 वो नाचती
उ ह कपाल ीरामजी को Bणाम कर
कहता ह उ ह क गण क कथा
पव त म0 a ठ और रमणीय कलास पर
जहा करत ह शव-पाव ती 8नवास सदा
स+ तप वी योगीगण दवता Aक नर
और म8नसमह उस पव त पर रहत
व सब बड़ पb या9 मा ह जो
आन दकद ीमहादवजी क सवा करत
व] न म0 भी व वहा जा नह सकत
3वमख ह जो भगवान 3वa ण और महादव स
उस पव त पर ह एक 3वशाल वट व
छह ऋतओ म0 भरा रहता स दरता स
शीतल म द और सगिधत वाय बहती
और बड़ी ठडी रहती ह उसक छाया
शवजी 3वाम करत उस व क नीच
िजसक मGहमा को वद न गाया
एक बार वय बाघD बर (बछाकर शवजी
वभावत ह बठ गय उस व क नीच
गौर वण और बड़ी लबी भजाए
और म8नय का सा धारण वष Aकय
Kखल हए लाल कमल स चरण उनक
नख क H यो8त भCत को आलोAकत करती
साप और भ म ह थ उनक आभषण
मख क आभा च gtमा को फक करती
सर पर गगाजी और जटाओ का मकट
बड़-बड़ न और कb ठ नीला था
स दरता क भb डार शोभायमान थ शवजी
माथ पर _3वतीया का च gtमा शोभत था
अJ छा मौका जान पास गयी पाव तीजी
शवजी न बठन को Gदया उ ह0 आसन
जब बठj पाव तीजी शवजी क पास
कथा 3पछल ज म क हो आयी मरण
पहल क अपा अltधक Bम समझकर
हस कर 3Bय वचन बोल पाव तीजी
या6व C यजी कहत ह लोग क Gहताथ ह जो
वह कथा पछना चाहती ह उमाजी
- 45 -
व बोल ह नाथ चराचर क वामी
आपक मGहमा ह तीन लोक म0 3वk यात
आपक चरण क सवा करत ह सब
चर अचर मनa य दवता और नाग
समथ सव 6 और क याण व4प ह आप
सब कलाओ और गण क आप 8नधान
क पव ह आपका नाम शरणागत क लय
आपक बल पर Gटका योग वराY य और 6ान
यGद आप मझ पर Bस न ह और
सचमच मझ अपनी सJ ची दासी जानत
तो ीरघनाथजी क नाना कथा कहकर
ह Bभो मरा अ6ान दर किजए
क पव क नीच हो िजसका घर
वह भला C य सहगा दVरgtता क दख को
ह शशभषण ह नाथ ऐसा 3वचार कर
दर किजए मर ब3+ क भार xम को
EFमव9ता अनाGद EFम कहत ीराम को
वद पराण भी उनक गण गात
C या य अयोs या नरश क प ह
आप Gदन रात िजनक गण गात
यGद राजप ह तो कस EFम
EFम ह तो C य 3वरह म0 भटक
मर ब3+ अ9 य त चकरा रह ह
ऐसा चVर और उनक मGहमा सनक
इJ छा रGहत n यापक और समथ EFम
यGद कोई और ह तो ह नाथ कGहय
=ोध न लाइय मझ नादान समझकर
मरा मोह दर हो वसा ह किजय
3पछल ज म म0 दखी थी मन
उस वन म0 ीरामच gtजी क Bभता
Aफर भी हआ न बोध मझ
उसका फल भी तब मन भगता
अब भी कछ सदह ह मर मन म0
पर मोह नह ह अब पहल जसा
अब तो 4ltच ह राम कथा सनन क
कहय ह नाथ ीरामजी क प3व कथा
हाथ जोड़ और सर टक चरण म0
ह नाथ करती ह 3वनती म आप स
वद क स+ा त को 8नचोड़ कर
ीरामजी का 8नम ल यश कह0 मझस
य_य3प अltधकाVरणी नह ह सनन क
पर सब तरह स ह आपक दासी
पात ह जहा आत अltधकार सत-जन
8छपात नह उसस व गढ़ त99 व भी
बहत ह आत भाव स पछती ह ह वामी
मा कर कGहय ीरघनाथजी क कथा
पहल तो 3वचारकर बतलाइय वह कारण
िजसस 8नग ण EFम सगण 4प धरता
- 46 -
Aफर कGहय ीरामजी क अवतार क कथा
और कVरय वण न उनक बालचVर का
Aफर जस 3ववाह Aकया जानकजी स उ होन0
और C य अनगमन Aकया उ होन0 वन का
Aफर वन म0 Aकय जो अपार चVर
और Aकस तरह रावण को मारा उ होन0
Aफर राजसहासन पर बठ जो क ललाए
और कस अपन धाम को कच Aकया उ होन0
Aफर उस त99 व को समझाकर कGहय
िजसक अनभ8त म0 6ानी-म8न रहत मगन
और Aफर भिCत 6ान और वराY य का
ह Bभो किजय 3वभाग सGहत वण न
और इनक सवा भी ह जो चVर
ह नाथ कपा कर सब मझस कGहय
और जो बात मन पछj भी न हो
उस भी आप 8छपा कर मत रKखय
आपका 6ान अ9 य त 8नम ल ह ह Bभो
वद न कहा आपको ग4 (भवन का
दसर पामर जीव C या जान0 यह रह य
आप ह ह नाथ कर0 मझ पर कपा
पाव तीजी क सहज स दर और सरल B- न
सनकर बहत अJ छ लग शवजी को
ीरामजी का 4प आ बसा उनक Uदय म0
िजसस अपार सख मला सख व4प शवजी को
दो घड़ी डब रह आन द म0 शवजी
Aफर बाहर खीचा अपन मन को उ होन0
और तब ीरघनाथ जी क स दर चVर का
श4 Aकया वण न करना शवजी न
िजस (बना जान झठ स9 य लगता
जस र सी म0 हो जाता साप का xम
लोप हो जाता जगत िजस जानन स
जस जागन पर टटता सपन का xम
व दना करता ह उ ह क बाल4प क
िजनक नाम जप स सब सहज मल जाता
मगल क धाम सब अमगल क 8नवारक
दशरथ न दन कर0 व मझ पर कपा
तब ीरामजी को Bणाम कर (परार
आन दमY न हो बोल ह ltगVरजाकमार
ध य हो तम ध य ध य हो
तD हार समान नह कोई और उपकार
सनना चाहती हो तम ीरघनाथ कथा
गगाजी सी जो सबको प3व करन वाल
पछ ह B- न तमन जगत क याण हत
तम हो ीराम चरण म0 Bम रखन वाल
ीराम कपा स तम हार मन म0 ह पाव ती
व]न म0 भी नह कोई xम या सदह
Aफर भी सबक क याण क लय तमन
रामकथा सनन को Bकट Aकया सदह
- 47 -
सनी नह िज होन0 हVरकथा कान स
उनक कान क 8छgt ह (बल समान
झकत नह जो सर ग4 चरण म0
व सर तो ह कड़वी तबी समान
भगव_ भिCत नह िजनक Uदय म0
व तो जीत जी ह मद समान
जो रसना गाती नह हVर क गण को
वो ह मढक क जीभ समान
ह पाव ती सनो ीरामच gtजी क लला दवताओ का क याण द यamp को मोहत करन वाल
सदह4पी सब पय को जो उड़ा दती
ीरामजी क कथा ह हाथ क स दर ताल
ीराम नाम गण चVर ज म और कम
उनक कथा क8त कह अन त वद न
Aफर भी तD हार अ9 य त Bी8त को दखकर
जसा कछ मन सना वसा कहगा म
Aफर भी एक बात अJ छj लगी न मझ
य_य3प मोहवश वह कह ह तमन
तमन पछा C या व कोई और राम ह
म8नजन s यात और वद गात ह िज ह0
मोहf त पाखb डी हVर चरण स 3वमख
अधम मनa य ह ऐसा कहत-सनत
अ6ानी n याभचार छल और कGटल ह जो
व ह ऐसी वद 3व4+ बात0 कहत
िज ह0 3ववक नह 8नग ण-सगण का
जो मायावश जग म0 xमत-Aफरत
उ माद नश म0 महामोह स f त
उनका कहना-सनना कछ अथ न रखत
छोड़ दो सब सदह ऐसा 3वचारकर
और भजो ीरामच gtजी क चरण को
xम4पी अ धकार को नाश करन हत
सनो सय -Aकरण समान मर वचन को
भद नह कछ भी 8नग ण और सगण म0
म8न पिbडत वद पराण सभी कहत ऐसा
जो 8नग ण 8नराकार अn यCत और अज मा ह
वह भCत क Bमवश सगण हो जाता
भद नह जस जल और ओल म0
8नग ण और सगण भी एक ह वस
िजनका नाम मटा दता सब xम को
उनक लय मोह का Bसग भी कस
सिJचदान द व4प ह Bभ ीराम
वभाव स ह Bकाश 4प और भगवान
मोह4पी रा( क तो बात ह C या
3व6ान 4पी Bात भी नह 3व_यमान
हष शोक 6ान अ6ान अहता अभमान
य सब तो होत ह धम जीव क
n यापक EFम Bभ और पराणप4ष ीराम को
जानत ह सब जीव जगत क
- 48 -
Bकाश 8नltध सब 4प म0 Bकट
जीव जगत माया और वामी सबक
व ह रघकलमKण ीराम वामी ह मर
शीश नवाया शवजी न यह कहक
अपन xम को तो समझत नह अ6ानी
व मख ीरामजी पर करत ह आरोप
जस आकाश म0 बादल का पदा दखकर
कहत ह बादल न कर Gदया सय लोप
आख म0 उगल लगाकर जो दखता
उसको तो B9 य ह Gदख0ग दो च gtमा
ीराम म0 मोह क क पना ऐस ह
जस आकाश म0 धआ और धल सोहना
3वषय इिgtया इिgtय क दवता व जीवा9 मा
य सब होत एक स एक सचत
इन सबका ह जो परम Bकाशक
वह अनाGद EFम ह ीराम अयोs या नरश
यह जगत Bका- य ीराम Bकाशक
माया क वामी 6ान गण क धाम
मोह क सहायता पाकर िजनक स9ता स
जड़ माया भी लगती स9 य तमाम
सीप म0 चाद सय Aकरण म0 पानी क
(बना हए भी जस होती Bती8त
हटा नह सकता कोई इस xम को
य_य3प तीन काल म0 झठj यह Bती8त
वस ह भगवान पर आltत यह ससार
अस9 य होन पर भी सबको दख दता
जस व] न म0 सर कट जान का दख
जाग जान तक दर नह होता
िजनक कपा स यह xम मट जाता
ह पाव ती वह ह कपाल ी राम-रघनाथ
जाना ना Aकसी न िजनका आGद-अ त
वद न भी कहा िज ह0 अना Gद ह नाथ
(बना ह पर क चलता जो EFम
(बना हाथ क जो करता सब काम
(बना ह कान क सनता सब कछ
(बना ह वाणी क करता सब गान
(बना मह सब रस को चखता
(बना 9 वचा क पश सब करता
(बना आख क वह दखता सबको
(बना नाक सब ग ध को सघता
सभी Bकार अलौAकक करनी EFम क
कह नह जा सकती िजसक मGहमा
वह अयोs यानाथ भगवान रामच gt ह
म8न जन s यान धरत ह िजनका
शोकरGहत कर दता िजनक नाम स म
ह पाव ती काशी म0 मरत Bाणी को
वह मर Bभ जड़-चतन क वामी
अतरयामी रघa ठ ीरामच gtजी ह वो
- 49 -
3ववशता वश भी िजनका नाम लन स
अनक ज म क सब पाप जल जात
Aफर जो सादर करत उनका नाम मरण
अनायास ह भवसागर स व तर जात
ह पाव ती वह परमा9 मा ह ीरामच gtजी
उनम0 xम ह अनltचत ह तD हारा कहना
इस Bकार का सदह मन म0 लान स
8नि-चत ह स_गण का नa ट हो रहना
पाव तीजी क कतकr क रचना मट गयी
शवजी क xमनाशक वचन को सन कर
असD भावना क म| या क पना जाती रह
Bम और 3व- वास उभरा और भी बढ़ कर
बारD बार शवजी क चरणकमल पकड़ कर
पाव तीजी न कहा मरा अ6ान मट गया
हर लया आपन मरा सब सदह
ीराम का यथाथ व4प समझ आ गया
आपक कपा स मरा 3वषाद मट गया
सखी हो गयी म आपक अनfह स
य_य3प वभाव स ह नह मझम0 6ान
Aफर भी कGहय अपनी दासी जान मझ
Aकस कारण ltच मय अ3वनाशी EFम न
ह नाथ धारण Aकया तन मनa य का
पाव तीजी क अ9 य त न वचन सन कर
Bस न हो कहन लग शवजी ीरामकथा
काकभशिbड न ग4ड़जी स कह जो कथा
ह पाव ती वह 8नम ल रामचVरतमानस सनो
आग कहगा वह सवाद हआ िजस Bकार
अभी ीराम-अवतार क प3व कथा सनो
नाम कथा 4प और गण ीहVर क
ह सभी अगKणत असीम और अपार
Aफर भी ह पाव ती सनो आदर स
कहता ह म अपनी ब3+ क अनसार
Aकया ह वद और शा न
ीहVर क 3व3वध चVर का गण-गान
िजस कारण स होता अवतार हVर का
कौन उन सब कारण को सकता जान
मर मतानसार ब3+ मन और वाणी स
क नह जा सकती ीराम क 3ववचना
Aफर भी सत म8न वद पराण जो कहत
और जो कछ हो सका मझस समझना
कहता ह वह कारण म तमस
Aक जब-जब होता ास धम का
EाFमण गौ और सH जन कa ट पात
तब-तब ीहVर हरत कa ट उन सबका
नवानपारायण पहला
वाम मासपारायण चौथा
- 50 -
भा8त-भा8त क शरर धारण करत व
असर को मार दवताओ को था3पत करत
रा करत वद क मया दा क व
जगत म0 अपना 8नम ल यश फलात
उसी यश को गा-गाकर भCतजन
सहज ह भवसागर स तर जात
अनक 3वltच अवतार क कारण
भCत क Gहत हत व सब करत
सावधान होकर सन ह सम8त भवानी
उनक दो नर ज म का म वण न करता
जय और 3वजय दो ] यार _वारपाल उनक
शापवश असर यो8न म0 ज म हआ उनका
एक था Gहरb यकशप और दसरा Gहरb या
बहत ह वीर और रणबाकर थ वो
पहल को हVर न नरसह 4प धर मारा
और वराह शरर धर मारा दज को
इस तरह दोन का वध कर हVर न
अपन भCत BFलाद का यश फलाया
उ ह दोन न अपन अगल ज म म0
=मश रावण और कD भकण नाम पाया
ीहVर _वारा मार जान पर भी
शाप क कारण व मCत नह हए थ
तीन ज म क लय था EाFमण का शाप
इसलय ीहVर Aफर अवतVरत हए थ
क- यप और अGद8त उनक माता-3पता हए
उस अवतार म0 दशरथ और कौस या नाम स
एक क प म0 इस Bकार लकर अवतार
प3व ललाए क उ होन0 ीराम नाम स
एक क प म0 जल धर द9 य स हार
दKखत दवता गय शवजी क शरण म0
घोर य+ Aकया शवजी न उसक साथ
पर सफल न हए व उस हरान म0
इसका कारण था उस द9 यराज क प9 नी
जो परम सती और प8तtता थी
उसी कारण (परासर को भी हरान वाल
हरा न सक उस द9 य को शवजी
छल स उस ी का tत भग कर
Bभ न दवताओ का काम Aकया
जब उस ी न जाना यह भद
=ोध कर उसन Bभ को शाप Gदया
ललाओ क भb डार कपाल हVर न
उस ी क शाप को वीकार Aकया
वह जल धर उस क प म0 हआ रावण
िजस मार ीराम न परम पद Gदया
यह था कारण हVर क एक ज म का
िजसस ीराम न मनa य दह Aकया धारण
सनो Bभ क B9 यक अवतार क कथा का
क3वय न Aकया ह नाना Bकार स वण न
- 51 -
एक क प म0 Gदया नारद न शाप
उसक लय अवतार हआ उस क प म0
बड़ी चAकत हई पाव तीजी यह सनकर
कहा नारद तो रग Bभ भिCत म0
Aफर Aकस कारण उ होन0 Gदया शाप
कया अपराध Aकया था Bभ न उनका
बड़ा 3वltच ह नारद को मोह होना
ह पराVर कपा कर कGहय वो कथा
न कोई 6ानी ह न मख
तब हसकर कहा महादव न
ीरघनाथ जब िजसको जसा करत
हो जाता वसा वो पल म0
या6व C यजी कहत ह ह म8न भर_वाज
ीरामकथा कहता ह आदर स सनो
तलसीदास कहत ह मान और मद को छोड़
आवागमन छड़ान वाल ीरघनाथा को भजो
एक प3व गफा थी Gहमालय पव त म0
िजसक समीप ह बहती थी प3व गगा
जब दखा नादरजी न वह प3व आम
उनक मन को वह बड़ा सहावना लगा
पव त नद और वन क 3वभाग को दखकर
नारद क Uदय म0 भगव_-Bम उमड़ आया
तरत ह उनक शाप क ग8त 4क गयी
8नम ल मन समाltध म0 मगन हो आया
द Bजाप8त न शाप Gदया था उ ह0
4क न पाएग व Aकसी एक जगह पर
इसलय घमत रहत थ हरदम नारद
पर रह गए व वहा िथर हो कर
नारद म8न क यह तपोमय िथ8त दखकर
दवराज इ gt का मन भर गया डर स
नारद क समाltध भग करन क लय
कामदव को बला नारद क पास भजा उस
इ gt को डर था Aक दव3ष नारद
पाना चाहत ह राH य अमरावती का
जगत म0 कामी और लोभी लोग को
कGटल कौए सा डर लगता ह सबका
जस सह को दख मख क9ता
मह म0 सखी हडी लकर भाग
वस ह इन gt को लाज न आयी
नारदजी मरा राH य ल ल0ग सोचत
उस आम म0 जब गया अनग
फल Kखलन भyर गजार लग करन
छा गयी वहा पर बस त ऋत
रD भा आGद अपसराए लगी न9 य करन
नाना Bकार क मायाजाल फलाय उसन
पर असर कर न सक कोई कला
लu मीप8त भगवान हो िजसक बड़ सहायक
उसक मया दा कौन भग कर सकता भला
- 52 -
बहत डरकर कामदव न सहायक सGहत
तब म8न क चरण को जा पकड़ा
पर =ोध न आया कछ नारद को
सर नवा कामदव न अपना र ता पकड़ा
दवराज इ gt क सभा म0 जाकर
उसन जो कछ घटा था बताया सबको
सनकर सबक मन म0 हआ बहत आ- चय
म8न क बड़ाई कर सर नवाया हVर को
तब नारदजी गय शवजी क पास
कामदव को जीतन का ल अहकार मन म0
सब चVर कामदव क उ होन0 उ ह0 सनाय
तब शवजी न कहा 3वचार करक उ ह0
ह म8न 3वनती करता ह आपस
कभी सनाना ना ीहVर को यह कथा
चचा भी चल तो भी 8छपा जाना
भल स भी कहना ना उनको यह कथा
य_य3प शवजी न द यह शा Gहत क
पर नारदजी को वह लगी न अJ छj
ह भर_वाज अब आप आग क सनो
होती ह बड़ी बलवान इJ छा हVर क
ीरामच gtजी जो चाहत ह करना
कोई उसक 3व4+ कर नह सकता
चल Gदय वहा स EFमलोक को नारद
शवजी का कहा उ ह0 अJ छा न लगा
एक बार हVरगण गात हए नारदजी
भगवान नारायण स मलन गय ीरसागर
Bभ बोल बहत Gदन बाद आय नारदजी
और उनक साथ बठ गय आसन पर
य_य3प शवजी न बरज रC खा था उ ह0
पर नारदजी न सारा Aक सा कह सनाया
कौन ऐसा ह िजस मोGहत न कर द
बड़ी ह Bबल ह ीरघनाथ क माया
4खा मह कर कोमल वचन बोल भगवान
आपका मरण और का मोह मटा दता
िजसक मन म0 6ान-वराY य ना हो
ह म8न मोह तो उनक मन म0 होता
EFमचय tत म0 त9 पर और धीरब3+ ह आप
भला कामदव आपको C या सता सकता
नारदजी न कहा कछ अभमान क साथ
ह भगवन यह सब ह बस आपक कपा
Bभ न दखा नारदजी क मन म0
गव क व का अकर हो गया पदा
सोचा उखाड़ फकगा तरत ह इस
C यAक सवक का Gहत व सोचत सदा
भगव_-चरण म0 सर नवा चल नारदजी
बढ़ गया Uदय म0 और भी अभमान
तब BVरत Aकया अपनी माया को Bभ न
अब उसक करनी ह भर_वाज लो जान
- 53 -
हVर क माया न तरत माग म0
रच Gदया एक सौ योजन का नगर
भा8त-भा8त क रचनाए कर उसम0
बकb ठ स भी स दर बनाया वो नगर
कामदव और र8त स स दर नर-नार
और शील8नltध नामक राजा था उसका
लu मीजी भी िजस दखकर मोGहत हो जाय0
ऐसा 4प उसक पी 3व- वमोGहनी का रचा
सव गण सD प न वह Bभ क माया
चनना चाहती थी वय अपना वर
अगKणत राजा वहा आए हए थ
और नारदजी भी जा पहच उधर
राजकमार को लाकर Gदखलाया राजा न
सब गण-दोष उसक नारद स पछ
भल गए वराY य उसक लण दख नारदजी
Uदय म0 ह3ष त हो वय को भी भल
कहन लग मन म0 उसक लण दख
जो उस याहगा हो जाएगा अमर
रणभम म0 उस कोई जीत न सकगा
और उसक सवा कर0ग सब चर-अचर
Uदय म0 रख लय उसक लण उ होन0
और राजा स कह Gदया अपनी ओर स
पर उनक Uदय म0 बस यह ltच ता थी
C या क4 वह क या मझ ह वर िजसस
सोचा उ होन0 जप-तप नह
इस समय चाGहय वभव और 4प
रझ जाय िजस दखकर राजक या
सब काम ह मर इJ दा अन4प
मर गल म0 डाल द जयमाला
राजाओ को छोड़ मझ वर ल
सोचा Bभ स माग ल स दरता
व ह सहायक ह सबस पहल
बहत 3वनती कर Bभ स उ होन0
तो कपाल Bभ वह Bकट हो गय
दन हो सब कथा सनायी नारद न
और कहा ह Bभ मर सहायक ब8नय
द दिजय आप मझ 4प अपना
और कोई उपाय नह उस पान का
ह नाथ िजस तरह मरा Gहत हो
शी कVरय उपाय उस करन का
अपनी माया का Bबल बल दख
मन ह मन म0 हस Bभ
िजस Bकार आपका परम Gहत होगा
हम वह कर0ग बोल Bभ
यGद कोई रोगी कप| य माग तो
ह म8न वह नह दता व_य उस
हमन तD हार Gहत क ठान ल ह
यह कह अ त s यान हए Bभ वहा स
- 54 -
ऐस मढ़ हो गय मायावश म8न Aक
समझ न सक Bभ क वाणी को
जहा वयवर क कर गयी थी तयार
तरत ह उस ओर चल Gदय वो
मन ह मन Bस न हो रह थ नारद
Aक Bभ न बना Gदया काम मरा
भल कर भी Aकसी और को न वरगी
वह राजकमार दखकर स दर 4प मरा
लAकन म8न क क याण क लय
बड़ा क4प बना Gदया Bभ न उ ह0
जान न सका होई भी यह चVरत
नारद ह जान Bणाम Aकया सबन
शवजी क दो गण भी थ उ ह म0
जो जानत थ सब भद नारद का
गव सGहत नारद िजस पिCत म0 बठ थ
व भी बठ गए वष बना EाFमण का
सना-सनाकर n यY य वचन नारद को
कहत थ Bभ न द अJ छj स दरता
रझ जायगी राजकमार इ ह0 हVर (वानर) जान
और को छोड़ वरन करगी कवल इनका
य_य3प म8न सन रह थ उनक बात0
पर समझ न पाय xमत ब3+ क कारण
राजकमार क सवा जान सका न कोई
उस =ोध आ गया उनक क4पता क कारण
राजहसनी सी चल वह राजकमार
नारदजी क ओर ना दखा उसन भल स
बार-बार उचकत और छटपटात ह नारदजी
उनक दशा दख म करात गण शवजी क
ीहVर भी जा पहच राजा क 4प म0
उनक गल म0 डाल राजकमार न जयमाला
बहत 3वकल हो गय नारदजी यह दखकर
मान Aकसी न उनका सब ल डाला
कहा म कराकर तब शवजी क गण न
अपना मह तो दKखय जाकर दप ण म0
Aफर व दन भाग होकर भयभीत
अपन 4प का सच जाना जब नारद न
Gदया शाप उन दान को उ होन0
कहा जाकर तम दोन रास बन जाओ
अब Aकसी म8न क हसी न उड़ाना
जाओ अपनी करनी का फल पाओ
Aफर जाकर जब दखा जल म0
उ ह0 असल 4प Aफर मल गया था
तरत ह व भगवान क पास चल Gदय
मन म0 अब भी =ोध भरा था
जाकर शाप दगा या Bाण द दगा
सोच रह थ व अपन मन म0
लu मीजी और उसी राजकमार क सग
मल गय ीहVर उ ह0 र त ह म0
- 55 -
मीठj वाणी म0 पछा भगवन न
ह म8न इतन n याकल हो कहा चल
य श द सनत ह =ोध उमड़ आया
मायावश चत न रहा मन म0
कहा दसर क सD पदा दख नह सकत
कपट और ईa या भर तD हार मन म0
समgtमथन क समय शवजी को बावला बनाया
दवताओ _वारा उ ह0 3वषपान कराया तमन
असर को मGदरा शवजी को 3वष दकर
वय लu मी और कौ तभ मKण ल ल
परम वत हो सो मनमानी करत हो
Aकसी न तD हार खबर अब तक ना ल
पर अबक अJ छ घर बना Gदया
सो अव- य पाओग अपन Aकय का फल
जो शरर धारण कर तमन ठगा मझ
मरा शाप ह करो वह तन धारण
बदर का 4प Gदया था तमन हम0
सो वो ह तD हार तब सहायक हग
मरा 3वयोग करा तमन बड़ा अGहत Aकया
तम भी ी क 3वयोग म0 दखी हग
वीकार कर नारद म8न क शाप को
ह3ष त हो Bभ न बहत 3वनती क
और Aफर कपा8नधान भगवान न
अपनी माया क Bबलता खीच ल
तब न लu मी न राजकमार रह वहा
Bभ क माया का Bभाव हट गया
म8न न भयभीत हो पकड़ चरण
आख स माया का पदा हट गया
कहा ह नाथ ह शरणागत व9 सल
ाGहमाम ाGहमाम मर रा किजय
पड़ गया था मर आख पर पदा
ह नाथ मझ पर कपा किजय
म| या हो जाय मरा Gदया शाप
ह कपाल आप कछ ऐसा किजय
कहा दनानाथ न यह मर इJ छा थी
अपन मन को आप दखी न किजय
म8न न कहा अनक दव चन कह मन
कस अ त होगा मर पाप का
ीहVर न कहा तरत शा8त मलगी आपको
जाकर जप करो शकरजी क शतनाम का
शकर समान कोई 3Bय न मझ
छोड़ना न भलकर भी इस 3व- वास को
िजस पर कपा करत नह शवजी
पा नह सकता कभी मर भिCत वो
ऐसा 3वचारकर जाकर 3वचरो प| वी पर
तD ह0 सतायगी न कभी अब मर माया
समझा-बझा उ ह0 हVर अ त धान हो गय
म8न क Uदय न बहत सतोष पाया
- 56 -
जब माग म0 व Bस न हो जा रह थ
शवजी क गण डरत-डरत आय पास
चरण पकड़ नारदजी क व बोल
ह कपाल मा किजय हमार अपराध
हम EाFमण नह शवजी क गण ह
अपन अपराध का फल पा लया हमन
कपा कर दर किजय शाप आप अपना
तब दया कर उनस कहा म8न न
यह सच ह तम दोन रास हग
पर ऐ- वय तज और बल मलगा तD ह0
सारा 3व- व जीत लोग भजाओ स अपनी
हर ओर 3वजयी वरण करगी तD ह0
मनa य 4प म0 तब ी3वa ण ज म ल0ग
उनक हाथ य+ म0 म9 य होगी तD हार
मCत हो जाओग इस तरह स तम
Aफर स ज मन क न आयगी बार
चल म8न क चरण म0 तब सर नवाकर
समय आन पर व दोन रास हए
प| वी का भार हरन वाल भगवन
एक क प म0 इसी कारण अवतVरत हए
इस Bकार अनक स दर और सखदायक
अलौAकक ज म और कम ह भगवान क
Bत यक क प म0 जब-जब लत हVर अवतार
नाना Bकार क स दर ललाए व करत
गान Aकया उनक कथाओ का म8नय न
तब-तब परम प3व काn यरचना करक
वण न Aकया भा8त-भा8त क अनपम Bसग को
3ववक जन िज ह0 सन आ- चय नह करत
ीहVर अ नत उनक कथा भी अन त
सतजन िज ह0 भा8त-भा8त स कहत
प3व और स दर ीरामजी क चVर
क प म0 भी गाय जा नह सकत
यह Bसग कहा मन ह उमा
जानो कसी द तर ह Bभ क माया
6ानी-म8न भी हो जात मोGहत
उसक Bभाव स कौन बच पाया
ललामय ह शरणागत व9 सल ीहVर
सवा करन म0 सलभ दख क हता
मन म0 ऐसा 3वचार भजन करना चाGहय
उन महामाया क वामी ी ीभगवान का
अब सनो वह दसका कारण
3व तार स कहता ह िजसक कथा
C य अज मा 8नग ण अ4प EFम न
ज म लया अवध म0 राजा का
िजन राम को भाई लu मण क साथ तमन
म8न वष म0 वन म0 Aफरत पाया
िजनक चVर दख सती क 4प म0
तम पर 3वltच बावलापन और xम छाया
- 57 -
xम4पी रोग का हरण करन वाल
उन Bभ ीराम क चVर सनो
उस अवतार म0 उ होन0 जो क ललाए
अपनी ब3+-अनसार कहता ह सनो
या6व C यजी न कहा ह भर_वाज यह सनकर
पाव तीजी सकचाकर Bम सGहत मसकरायी
Aफर िजस कारण Bभ का अवतार हआ
वषकत शवजी न वह कथा सनायी
वायD भव मन और उनक प9 नी शत4पा
मनa य क यह अनपम सिaट हई िजनस
राजा उ9तानपाद उनक H यa ठ प थ
Bस+ हVरभCत zवजी प हए िजनक
उ ह मनजी क छोट प 3Bयtत थ
और दवह8त नाम क क या थी उनक
कद म म8न उन दवह8त क प8त थ
इन दोन क प थ क3पल म8न
बहत समय तक राH य Aकया मनजी न
सब Bकार भगव_ आ6ा का Aकया पालन
पर दखी थ अभी तक वराY य न हआ
घर म0 रहत बढ़ाप का हआ आगमन
बहत बड़ा दख था उनक मन म0
ीहVर भिCत (बन ज म य ह गया
तब जबरन प को राH य सyपकर
प9 नी सGहत वन को गमन Aकया
साधक को स3+ दनवाला अ9 य त प3व
और तीथr म0 a ठ नमषारb य ह Bस+
म8नय और स+ क समह वहा बसत
राजा मन चल वहा होकर ह3ष त
चलत-चलत जा पहच गोमती क Aकनार
राज3ष जान स+-म8न मलन आय उनस
सभी तीथ कराय उ ह0 म8नय न सादर
सतसमाज म0 8न9 य पराण सनत थ उनस
_वादशार म ndash lsquo ऊ नमो भगवत वासदवायrsquo का
जप करत रहत थ व दोन BमसGहत
और भगवान वासदव क चरण-कमल म0
बहत ह लग गया था उनका ltचत
धीर-धीर सब कछ को 9 यागकर व
करन गल मरण सिJचदान द EFम का
उन अन त अनाGद EFम को कस दख0
Uदय म0 एकमा थी बस यह अभलाषा
न8त-न8त कह 8न4पण करत वद
आन द व4प उपाltधरGहत और अनपम
अनक EFमा 3वa ण शव अश स Bगट
सवक क वश हो जात व परEFम
यGद वद का यह वचन स9 य ह
Aक भC त क लय अवतVरत होत भगवान
तो हमार अभलाषा भी पर होगी
दोन तप करन लग मन म0 यह मान
- 58 -
बहत कGठन तप Aकय हजारो वषr तक
(दव उनक पास कई बार आय
वर दकर उ ह0 ललचाना चाहा उ होन0
पर कस भी उ ह0 डगा न पाय
तब सव 6 Bभ न उ ह0 8नज-दास जाना
rsquoवर मागrsquo अमत सी हई आकाशवाणी
तरत Ua ट-पa ट और स दर हो गय वो
जब Uदय म0 उतर यह Gदn य वाणी
अ8तशय Bम उमड़ आया Uदय म0
दb डवत कर तब मनजी बोल
ह Bभ सवक क सव व ह आप
रक उनक जो शरणागत हो ल
सब जड़-चतन क वामी ह आप
और क याण करन वाल अनाथ को
Bस न हो हम0 यह वर दिजय
Aक मन म0 बस वह 4प आपका
िजस पान का म8त य9 न करत
जो व4प शवजी क मन बसता
काकभशिbड क मन 4पी सरोवर का हस
वद सगण और 8नग ण कह करत Bशसा
3Bय लग उनक 3वनीत Bम भर वचन
तरत सव समथ भगवन Bकट हो गय
उनक ltच मय शरर क शोभा दखकर
उन दान क मन पलAकत हो गय
नील कमल नीलमKण और नील मघ सा
4प दख करोड़ो कामदव भी लजात
शरद-पKण मा क च gtमा सा उनका मख
अग B9 यग स दरता क सीमा लजात
गला शख सा रिCतम हठ
दात और नाक भी अ8त स दर
नय कमल सी न क छ3व
जी को मोहती ltचतवन मनहर
कामदव क धनष क शोभा
हर रह थी टढ़ भौह0 उनक
Bकाशमय 8तलक ललाट पलट पर
मकराकत कb डल लभा र ह जी
सर पर मकट सशोभत था उनक
काल सघन बाल भौर क झड स
Uदय पर ीव9 स वनमाला र9 न जGटत हार
और मKणय क आभषण शोभत थ
गद न सह क सी स दर जनऊ
भजाओ म0 स दर गहन थ पहन
हाथी क सड क समान सनदर भजदb ड
हाथ म धनष बाण तरकस म0 पन
(बजल को भी लजान वाला पीताD बर
पट पर स दर तीन रखाओ क (वल
और उनक नाभ थी ऐसी स दर मानो
छjन लती ह यमनाजी क भवर क छ3व
- 59 -
बसत िजनम0 म8नय क मन 4पी भyर0
उन चरण का नह Aकया जा सकता वण न
बाय भाग म0 उनक शोभा क राश
आदशि+त ीजानक-जी जगत का मल कारण
अगKणत लu मी पाव ती और EFमाणी
िजनक अश मा स उ9 प न हो जाती
व सीताजी ीराम क बायी ओर थी
िजनक इशार स सिaट रचना हो जाती
त ध रह गय मन-शत4पा क नयन पट
शोभा क समgt ीहVर का 4प दखकर
भल गय सध-बध वो अपनी दह क
ltगर गय भम पर उनक चरण पकड़ कर
ध य Aकया उ ह0 चरण-कमल छआ कर
और Aफर तरत ह उठा लया उ ह0
Aफर बोल मझ Bस न और बड़ा दानी जान
वह वर माग लो जा मन भाय तD ह0
Bभ क वचन सन हाथ जोड़ कर
कोमल वाणी स राजा न कहा
सभी मनोकामनाए हमार पण हो गयी
पर मन म0 ह एक बड़ी लालसा
सहज भी ह उसका परा होना
और कGठन भी सो कहत नह बनता
आपक लय सहज पर मझ कGठन
जब दखता ह म अपनी कपणता
क पव पाकर भी जस कोई दVरgt
करता ह सकोच और अltधक मागन म0
C यAक जानता नह वह उसका Bभाव
वस ह सशय हो रहा मर Uदय म0
आप अ तया मी जानत ह मरा मनोरथ
ह वामी कपा कर किजय परा उस
भगवन बोल सकोच छोड़ माग जो चाहो
जो मागोग परा क4गा म उस
राजा न कहा ह कपा8नधान ह नाथ
कहता ह म अपन मन का सJ चा भाव
म आपक समान प चाहता ह
Bभ स भला कसा और C या 8छपाव
उनक Bी8त दख और अम य वचन सनकर
भगवन बोल ऐसा ह हो ह राजन
पर म अपन समान कहा खोज जाकर
वय ह तD हारा प बनगा इस कारण
Aफर रानी को हाथ जोड़ दख व बोल
तD हार जो इJ छा हो सो वर माग लो
शत4पा न कहा चतर राजा न जो मागा
बहत ह 3Bय लगा वह वर मझको
परत बहत Gढठाई हो रह ह ह Bभ
य_य3प भCत क लय आपको अJ छj लगती
EFमा आGद क भी 3पता ह आप
परमEFम जानन वाल सबक Uदय क
- 60 -
सदह होता ह ऐसा समझन पर मन म0
Aफर भी आपन जो कहा ह वह Bमाण
जो Gदn य सख पात आपक 8नज जन
उनक Uदय म0 बसता जो Bम और 6ान
ह Bभो वह भिCत और रहन-सहन दिजय
कपा किजय हम पर अपना 8नज-दास जान
भगवन बोल जो मागा सब Gदया तD ह0
ह माता कभी भलगा न आपका यह 6ान
तब मनजी न कहा एक और 3वनती ह
आपक लय 3पता क सी Bी8त हो मर
महामख चाह कह0 लोग पर आप (बन
मKणहन साप जल3वहन मछल सी ग8त हो मर
उन जस ह आपक अधीन रह म
एक पल भी आपक (बना पाऊ ना जीन
यह वर माग चरण पकड़ रह गय मनजी
तब ऐसा ह हो कहा दया8नधान Bभ न
Aफर कहा कछ समय अमरावती क सख भोग
उसक बाद जब तम होग राजा अवध क
तब तD हार प 4प म0 Bकट होऊगा म
अशो सGहत इJ छा8नम त मनa य 4प धर क
भCत को सख दन वाल ललाए क4गा
भवसागर स तर जाय0ग सन लोग िजस
अवतार लगी आGदशिCत यह मर माया भी
उ9 प न हआ ह यह सD पण जगत िजनस
इस Bकार पर क4गा तD हार अभलाषा
स9 य स9 य स9 य ह मरा Bण
बार-बार ऐसा कहकर उनस तब
अ तधा न हो गय कपा क धाम भगवन
Aफर कछ समय आम म0 रहकर
सहज शरर 9 याग अमरावती गय दोन
यह प3व इ8तहास शवजी न कहा था
अब ीराम अवतार का दसरा कारण सनो
सनो वह प3व और Bाचीन कथा
ककय दश म0 राजा स9 यकत रहता था
अ8त a ठ Bतापी तज वी था वह
उसक बड़ प का नाम Bतापभान था
अVरमद न था उनक दसर प का नाम
अपार बलशाल और य+ म0 अटल
सJ ची Bी8त और मल था दोन म0
ना कोई दोष ना कोई छल
अपन H यa ठ प को दकर राH य
वनगमन Aकया भजन हत राजा न
वद म0 बतायी उ9तम र8त स
Bजा का पालन Aकया राजा Bतापभान न
श=ाचाय सा धम 4ltच नामक म ी था उसका
चतरltगणी सना िजसम0 असk य यो+ा थ
सात _वीप को जीत राजाओ स दb ड ल
अपन राH य म0 पन Bवश Aकया राजा न
मासपारायण पाचवा वाम
- 61 -
सब तरह स सखी Bजा थी उसक
राजा सदा स9 कायr म0 लगा रहता था
मन वचन कम स धम करता था जो
सब भगव_ अपण करक करता था
एक बार अJ छ घोड़ पर सवार हो
3व s याचल गया वह शकार करन को
वहा वन म0 एक ऐसा सअर दखा
मान च gtमा को fस राह आ 8छपा हो
समाता नह मख म0 बड़ा होन क कारण
और =ोधवश वह भी उस नह उगलता
यह तो उसक दात क शोभा थी
उसका तन भी था बड़ा 3वशाल और तगड़ा
नील पव त क शखर क समान
उस 3वशाल शररवाल सअर को दख
राजा चला तजी स घोड़ पर
सोचता हआ Aक मझस बचकर दख
भाग चला पवन वग स सअर
बाण चढ़ा दख धरती म0 जा दबका
चलाय राजा न तक-तक कर तीर
पर सअर Aकसी तरह बच 8नकला
चला गया गहन जगल म0 सअर
पर राजा न उसका पीछा न छोड़ा
जा 8छपा एक गहर गफा म0 सअर
तब पछताकर राजा न उसको छोड़ा
घोड़ समत भख-] यास स n याकल राजा
पानी क खोज म0 बहाल हो गया
कछ दर बाद Gदखा उस एक आम
पानी पीन राजा आम म0 गया
उस आम म0 एक राजा रहता था
कपट स म8न का वष बनाय
भागा था हार राजा Bतापभान स
सना को छोड़ अपनी जान बचाय
Bतापभान क अJ छ Gदन अपना कसमय जान
उसक मन म0 हई बड़ी भार Y ला8न
सो ना ता वह घर गया अपन
ना सिध क उसन था अभमानी
दVरgt क भा8त मन ह म0 =ोध दबा
वह राजा रहता था तप वी क वष म0
भाY यवश Bतापभान उसी आम म0 गया
वह Bतापभान ह पहचान लया तरत उसन
राजा Bतापभान उस पहचान न सका
महाम8न समझ Bणाम Aकया राजा न उस
परत बड़ा चतर होन क कारण
अपना नाम नह बतलाया राजा न उस
Gदखलाया सरोवर उसन राजा को
राजा न घोड़ सGहत नान-जलपान Aकया
Aफर जब मट गयी उनक थकावट
तप वी उ ह0 अपन आम ल गया
- 62 -
कहा च=वत स तD हार लण दखकर
तम पर बड़ी दया आती ह मझ
राजा न कहा म Bतापभान का मी ह
आपक चरण क दश न भाY य स मल मझ
तप वी न मीठj-मीठj बात0 बनाकर
Bतापभान को रोक लया रात आम म0
तलसीदास कहत ह जसी होनहार होनी होती
वस ह सयोग मल जात उसम0
उसक आ6ा शरोधाय कर Bतापभान
घोड़ को बाध 4क गया आम म0
Aफर म8न क सराहना और व दना कर
उनका नाम और धाम पछा राजा न
राजा श+ Uदय म8न कपट था
ऊपर स बर (य जा8त का
भीतर ह भीतर सलग रहा था वह
अपना बर याद कर मन म0 ह3ष त था
कपट म0 डबोकर बड़ी यिCत क साथ
बड़ी कोमल वाणी म0 कहा राजा स
अब हमारा नाम ह बस भखार
C यAक खाल ह घर और धन स
राजा न कहा आप स 6ानवान
8छपाय रहत ह सदा अपनी पहचान
C यAक अमानी रहन म0 ह क याण ह
ऐस ह लोग को पस द करत भगवान
आप सरख 8नध न और गहहन को दख
सदह हो जाता EFमा और शव को
लAकन आप जो ह सो ह ह वामी
नम कार करता ह म आपक चरण को
राजा क Bीत और 3व- वास दख
उसन कहा यहा ह बहत समय स
अब तक न तो कोई मझस मला
ना Aकसी को कहा मन अपन स
कहा लोक म0 B8तa ठा ह अिYन सी
जो भ म कर दती तप 4पी वन को
तलसीदास कहत ह मढ़ को ह नह
स दर वष भरमा दता ह सब को
कहा उस म8न न ीहVर को छोड़
Bयोजन नह मरा Aकसी स कछ भी
तD हार Bी8त और 3व- वास दखकर
8छपाता नह म तमस कछ भी
उदासीनता भर उसक बात को सनकर
बढ़ रहा था 3व- वास राजा का उसम0
जब उस राजा को वश म0 दखा
हमारा नाम एकतन ह कहा उसन
तब सर नवाकर राजा न कहा
सवक जान समझाइय अथ नाम का
म8न न कहा सिaट क साथ ह
ज म हआ था मरा पहला-पहला
- 63 -
तब स दसर दह कर न धारण
इसलय एकतन ह हमारा नाम
तप स कछ भी नह दल भ
सो इसम0 अचरज का C या काम
तप स ह EFमा रचत जग को
उसका पालन करत 3वa ण तप स
तप स ह 4gt सहारत जग को
ऐसा C या जो मल ना तप स
सन-सनकर कपट-म8न क बात0
बड़ा अनराग हआ राजा क मन म0
करन लगा वराY य और 6ान का 8न4पण
राजा हो गया तप वी क वश म0
तब राजा न अपना असल नाम बतलाया
म8न न कहा तमन ठjक ह Aकया
चतर राजा य ह अपना पVरचय नह दत
मझ अJ छा लगा तमन जो कपट Aकया
ह राजन तD हारा नाम Bतापभान ह
और महाराज स9 यकत थ तD हार 3पता
सब जानता ह म ग4 क कपा स
पर अपनी हा8न समझ कछ नह कहता
तD हार सरलता Bम और 3व- वास दख
उ9 प न हो गयी ममता मर मन म0
जो तD हार मन भाव वह माग लो
कछ भी सदह न लाना मन म0
स दर वचन सन राजा ह3ष त हो गया
और उसक पर पकड़ क 3वनती उसन
कहा आपक दश न स सब स+ हो गया
Aफर भी उस Bस न दख वर मागा उसन
कहा एक दल भ वर मागकर आपस
सव था शोकरGहत होना चाहता ह म
मझ बढ़ापा दख और म9 य न आय
और य+ म0 सदा जीतना चाहता ह म
तप वी न कहा ऐसा ह हो ह राजन
एक कGठन बात ह उस भी सन लो
तप क बल स EाFमण बलवान रहत ह
कभी 4a ट न करना तम बस उनको
बड़ा Bस न हआ राजा यह सनकर
कहा ह वामी अब मरा नाश न होगा
ह कपा8नधान Bभ अब आपक कपा स
सब तरह स मरा क याण ह होगा
lsquoएवम तrsquo कहकर वह कपट म8न बोला
तम हमारा यह सवाद कह न कहना
कहन स नाश तD हारा हो जायगा
ह राजन मरा यह वचन स9 य जानना
इस बात क Bकट होन स
या Aफर EाFमण क 4a ट होन स
बस इन दोन स बच क रहना
होगा ना कछ Aकसी और तरह स
- 64 -
EाFमण और ग4 क =ोध स
राजा न कहा कGहय कौन बचा सकता
ग4 बचा लता EFमा क =ोध स
ग4 क =ोध स कौन बचा सकता
यGद म आपक कथनानसार ना चलगा
तो भल ह मरा नाश हो जाय
पर EाFमण का शाप होता ह भयानक
ह नाथ उसस बचन का बतलाय0 उपाय
तप वी न कहा उपाय तो ह बहत स
कष टसाs य Aफर भी स+ हो न हो
हा एक यिCत तो मर हाथ ह
पर मरा तD हार नगर जाना कस हो
जब स पदा हआ म तब स
Aकसी क घर या गाव न गया
न जान स तD हारा काम (बगड़ता ह
बड़ा असमजस मर सामन आ गया
यह सनकर राजा कोमल वाणी स बोला
ह नाथ ऐसी नी8त कह ह वद म0
बड़ सदा छोट स नह करत आय
ऐसा कह उसक चरण पकड़ लय राजा न
राजा को अपन अधीन जानकर तब
कपट म8न न कहा तम मर भCत हो
पर योग यिCत तप और म फलभत होत
जब सब स 8छपाकर Aकय गय हो
ह नरप8त 8य द म रसोई बनाऊ
और तम उस अपन हाथ स परोसो
तो जो-जो उस अ न को खायगा
तD हारा आ6ाकार बन जायगा सो-सो
यह नह उन भोजन करन वाल क घर
जो कोई भी भोजन fहण करगा
ह राजन सनो इस यिCत स
वह n यिCत भी तD हार अधीन रहगा
ह राजन जाकर यह उपाय करो
और वष भर का सक प कर लना
म B8तGदन भोजन बना Gदया क4गा
तम रोज एक लाख EाFमण बला लना
इस Bकार बहत ह थोड़ पVरम स
सब EाFमण तD हार वश म0 हो जाय0ग
और उनक हवन सवा पजा करन स
दवता भी सहज ह वश म0 हो जाय0ग
एक और पहचान बता दता द तD ह0
म इस 4प म0 कभी न आऊगा
ह राजन अपनी माया क बल स
म तD हार परोGहत को हर ल जाऊगा
तप क बल स अपना सा बनाकर
उस यहा एक वष तक रखगा
और म अपना 4प बनाकर उस सा
सब काम तD हार सब तरह स+ क4गा
- 65 -
ह राजन बहत बीत गयी ह रात
सो सो जाओ अब तम जाकर
तप क बल स घोड़ सGहत तमको
म सोत ह म0 पहचा दगा घर
आज स तीसर Gदन अब भ0ट होगी
वष धरकर आऊगा म परोGहत का
पहचान लना तब तम मझ जब
एका त म0 बलाकर सनाऊ यह कथा
उसक आ6ा मान शयन Aकया राजा न
और खब गहर नीद म0 वो सो गया
पर कपट म8न को हो रह थी ltच ता
Aक तभी कालकत रास वहा आ गया
यह वह रास था िजसन
सअर बनकर भटकाया था राजा को
वह बड़ा म था उस तप वी का
और छल-Bपच म0 चतर था वो
सौ प और दस भाई थ उसक
जो बड़ दa ट बलवान और दखदायी थ
EाFमण सत और दवताओ को दखी दख
राजा न पहल ह मार डाला था उ ह0
3पछला वर याद करक उस दa ट न
कपट म8न स मलकर Aकया 3वचार
और िजस Bकार श का नाश हो
करन लगा उस योजना पर 3वचार
कछ समझ सका ना राजा Bतापभान
भावीवश फसा वह कपट क जाल म0
तज वी श चाह अकला भी हो
कभी लना नह चाGहय उस ह क म0
िजस राह का सर मा बचा था
आज तक सय -च gtमा को वो दख दता
उसी Bकार मौका पाकर दa ट भी
उस मौक को य ह गवा नह दता
कपट म8न न सब कथा सनायी
तब Bस न हो वह रास बोला उसस
जब तमन इतना काम कर ह लया
बहत बड़ी बात हई मर समझ स
समझ लो श को मन काब कर लया
(बना दवा रोग दर कर Gदया 3वधाता न
कल सGहत श को उखाड़-बहा कर
चौथ Gदन लौट आऊगा कहा उसन
Aफर घोड़ सGहत राजा Bतापभान को
णभर म0 घर पहचा Gदया उसन
राजा को सला घोड़ को बाधकर
राजा क परोGहत का उठा लया उसन
माया स उसक ब3+ xमत कर
पहाड़ी क खो म0 उस ला रखा
और वय बना परोGहत का 4प
उसक स दर सज पर जा लटा
- 66 -
भोर स पहल ह जागकर राजा न
अपना घर दख बड़ा आ- चय माना
Aफर घोड़ पर बठ चल Gदया वन को
Aकसी न भी यह राज न जाना
दो पहर बीत जान पर लौटा राजा
उ9 सव और बधावा बजन लगा घर-घर
जब राजा न परोGहत को दखा तब
आ- चय चAकत हआ उसी काय का मरण कर
तीन Gदन लग तीन यग स उसको
तब 8नि-चत समय परोGहत बना रास आया
राजा क साथ क ग] त सलाह अनसार
उस अपना 3वचार सब समझाकर बतलाया
उस 4प म0 तप वी-म8न को दख
बड़ी Bस नता हई राजा Bतापभान को
xमवश रास को वह पहचान न पाया
बलवाया कटD ब सGहत एक लाख 3वB को
छ रस और चार Bकार क भोजन
वद म0 वण नानसार बनाय परोGहत न
मायामयी रसोई म0 इनत n यजन बनाय
Aक आ न सक0 Aकसी क ltगनती म0
अनक Bकार क पशओ का मास पकाया
और EाFमण का मास मला Gदया उनम0
Aफर सब EाFमण को भोजन हत बलाकर
भोजन को परोसना श4 Aकया राजा न
H य ह भोजन परोसन लगा राजा
कालकतकत आकाशवाणी हई ह EाFमण
इस भोजन म0 EाFमण का मास मला ह
उठ-उठकर अपन घर जाओ ह EाFमण
आकाशवाणी क बात को सच मानकर
सब EाFमण उठ खड़ हए भोजन स
n याकल राजा मोहवश कछ कह न सका
कछ भी न 8नकला उसक मख स
इस तरह राजा को चप दख
सब EाFमण हो उठ बहत =ोltधत
कछ भी 3वचार Aकय (बना बोल
ह मख त जाकर रास हो पVरवारसGहत
तन तो पVरवारसGहत हम0 बलाकर
चाहा था EाFमण को नa ट करना
ई- वर न तो रा कर हमार
पर तय ह तरा समल नa ट होना
एक वष क भीतर तरा नाश हो जाय
कल म0 न रहगा कोई पानी दन वाला
EाFमण का शाप सन n याकल हो उठा राजा
कहा कोई न था उस सा9 वना दन वाला
तभी स दर आकाशवाणी हई ह EाFमण
यह शाप Gदया नह 3वचारकर तमन
राजा न Aकया ना कछ अपराध
चAकत कर Gदया सबको इस वाणी न
- 67 -
तब राजा जहा भोजन बना था गया
ना भोजन ना ह रसोइया था वहा पर
आकर सनाया सब वता त EाFमण को
और भयभीत हो ltगर पड़ा प| वी पर
व बोल य_य3प तम 8नदष हो
तो भी जो होनहार ह नह मटता
EाFमण का शाप होता ह भयानक
Aकसी भी तरह टाल नह टलता
ऐसा कह चल गय सब EाFमण
नगरवासी दोष दन लग 3वधाता को
हस बनात-बनात कौआ कर Gदया
रास बना Gदया ऐस पb या9 मा राजा को
उधर परोGहत को उसक घर पहचाकरख
कपट म8न को खबर द कालकत न
उसक कहन पर बर राजा चढ़ दौड़
डका बजाकर घर लया नगर उ हन
8न9 यB8त होन लगी अनक Bकार स लड़ाई
सब यो+ा जझ कर मर रण म0
Bतापभान भी भाई सGहत खत रहा
कोई न बचा स9 यकत क कल म0
या6व C यजी कहत ह ह भर_वाज सनो
3वधाता होत ह जब िजसक 3वपरत
धल सम4पव त सी 3पता यम सा
और र सी सप सी होती ह Bतीत
ह भर_वाज म8न सनो वह राजा
समय पाकर रास हआ रावण नाम स
दस सर और बीस भजाए थी उसक
अपन बल पर बड़ा भरोसा था उस
अVरमद न नाम का जो छोटा भाई था
वह बल का धाम कD भकण हआ
धम 4ltच नाम का जो म ी था उसका
वह रावण का छोटा सौतला भाई हआ
3वभीषण नाम था उसका उस ज म म0
6ान का भb डार और 3वa णभCत था वो
और जो राजा क प और सवक थ
हए रास अ8त भयानक सब वो
दa ट 8नद यी Gहसक पापी और कGटल
अनक जा8त क मनमाना 4प धरण वाल
य_य3प पल 9 य ऋ3ष क प3व कल म0 ज म0
पर शापवश हए द8नया को दख दन वाल
बड़ी कGठन तप या क तीन भाइय न
तो EFमाजी न उ ह0 वर मागन को कहा
वानर और मनa य इन दो को छोड़कर
Aकसी क मार न म4 रावण न कहा
शवजी कहत ह मन और EFमा न
मलकर उस वर Gदया ऐसा ह हो
Aफर EFमाजी गय कD भकण क पास
उस दखकर बड़ा आ- चय हआ उनको
- 68 -
जो 8न9 य आहार करगा यह दa ट
तो उजाड़ हो जायगा यह सारा ससार
सो उसक ब3+ फरन को BVरत Aकया
सर वती को EFमाजी न कर ऐसा 3वचार
इसलय जब EFमाजी न पछा उसस
तो छ महन क नीद मागी उसन
और जब 3वभीषण क पास गय वो
Bभ चरण म0 अन य Bम मागा उसन
जब उ ह0 कताथ कर लौट गय EFमाजी
व तीन भी चल गय घर अपन
ी-र9 न परम स दर अपनी क या
म दोदर को रावण को Gदया मय न
जान लया था यह मय न
Aक रावण रास को राजा होगा
अJ छj ी पा Bस न हआ रावण
Aफर उसन 3ववाह Aकया भाइय का
समgt क बीच (कट नामक पव त पर
EFमा का बनाया एक भार Aकला था
मKण जडत अनltगनत वण -महल थ उसम0
िज ह मय न Aफर स सजा Gदया था
नाग क पाताल लोक म0 भोगावती पर
और वग लोक म0 इ gt क अमरावती पर
उनस भी अltधक स दर और बाका दग
Bस+ हई lsquoलकाrsquo वह रावण क पर
चारो ओर स गहर समgt स 8घर
मKणय स जड़ा सोन का परकोटा उसका
होता िजस क प म0 जो रास-राज रावण
सना सGहत उस पर म0 बसना होता उसका
पहल रहत थ रास वीर वहा
दवताओ न मार डाला य+ म0 िजनको
जब रावण को यह खबर मल
सना सजाकर जा घरा Aकल को
एक करोड़ कबर क य लोग
इ gt क Bरणा स जो रहत थ
उस 3वकट यो+ा और उसक सना दख
भाग गय अपन Bाण बचा कर व
सारा नगर दखा घम-Aफरकर रावण न
बहत Bस न हआ उस भायी वह नगर
वाभा3वक ह स दर और दग म जान
अपनी राजधानी बनायी उसन वह नगर
योY यता क अनसार घर को बाटकर
सब रास को बसाया लका म0 उसन
Aफर एक बार कबर पर चढ़ दौड़ा
और पa पक 3वमान जीत लाया रण म0
Aफर एक बार Kखलवाड़ ह म0 उसन
उठा लया प3व कलास पव त को
मानो अपनी भजाओ का बल तौलकर
चला आया बहत सख पाकर वो
- 69 -
सख सD पि9त प सना सहायक
जय Bताप बल ब3+ और बड़ाई
उसक 8न9 य नय बढ़त जात थ
जस B9 यक लाभ पर लोभ क ऊचाई
कD भकण सा अ9 य त बलवान भाई था उसका
पदा नह हआ िजसक जोड़ का यो+ा
सोता था महन वो मGदरा पीकर
जगत ह मच जाता तीन लोक म0 तहलका
रावण का बड़ा प था मघनाद
िजसका नD बर यो+ाओ म0 पहला था
मची रहती थी 8न9 य वग म0 भगदड़
कोई उसक आग नह Gटक सकता था
दम ख अकD पन वdद त धमकत अ8तकाय
अकल ह सारा जग जीत सकत थ
जानत थ व सब आसर माया
और मनमाना 4प बना सकत थ
एक बार सभा म0 बठ रावण न
अपन अगKणत पVरवार को दखा
अनक प-पौ कटD बी और सवक
सम त रास कौन ltगन सकता था
अपनी असk य और बलशाल सना दख
=ोध और गव स बोला अभमानी रावण
ह रासो सनो दवता हमार श ह
बलवान श दख कर जात ह पलायन
EाFमणभोज य6 हवन और ा+
जाकर इन सब म0 तम डालो बाधा
य ह सब बढ़ात ह उनका बल
बलहन हो सहज ह हार जाय0ग दवता
तब या तो मार डालगा म उनको
या छोड़ दगा उ ह0 अपन अधीन कर
Aफर मघनाद को बलवाकर उकसाया उस
बद बना ल उ ह0 रण म0 हरा कर
3पता क आ6ा मान चल Gदया मघनाद
रावण भी चल Gदया साथ गदा लकर
डगमगान लगी प| वी रावण क चलन स
दवरमKणय क गभ ltगरन लग डर कर
दवता 8छप गय सम4 पव त म0 जाकर
GदC पाल भी अपन लोक छोड़ कर भाग
ललकारता Aफर रहा था रावण सव
कोई Gटक न पा रहा था उसक आग
सय च gtमा वाय व4ण कबर
अिYन काल और यम आGद अltधकार
Aक नर स+ मनa य दवता और नाग
सब पर रावण पड़ रहा था भार
करत थ सब उसक आ6ा का पालन
आकर सर नवात थ उसक चरण म0
सारा 3व- व अपन वश म0 कर लया
और अनक क याओ स 3ववाह Aकया उसन
- 70 -
उधर 3पता क आ6ा पालन म0
मघनाद न भी कछ दर न लगायी
और अ य रास यो+ाओ न भी
गौ और EाFमण को बहत चोट पहचायी
ब द हो गय य6 और हवन आGद
दवता EाFमण और ग4 अमा य हो गय
न हVरभिCत न य6 तप और 6ान
वद और पराण सनन ब द हो गय
जप तप योग वराY य और य6
रावण वय जा 3वs वस कर डालता
मट गया धम -कम का नाम
अ9 याचार रास का बढ़ता ह जाता
बढ़ गय बहत लपट चोर और जआर
माता 3पता और साधओ स सवा करवान वाल
शवजी कहत ह उन सबको रास ह समझना
ह पाव ती जो ह ऐस आचरण करन वाल
धम क B8त अ8तशय Y ला8न दखकर
प| वी भयभीत और n याकल हो गयी
पव त नGदया और समgt भार नह लगत
िजतना परgtोह क भार स वह दब गयी
बोल नह सकती कछ रावण क भय स
पर सार धमr को दखा 3वपरत प| वी न
तब गौ बनकर गयी दवताओ क पास
पर मददगार पाया न Aकसी को उसन
तब दवता म8न और ग धव सब
मलकर गय EFमाजी क लोक को
प| वी भी साथ थी गौ क 4प म0
उ ह0 दख सब 6ात हो गया उनको
तब मन म0 अनमान Aकया यह उ होन0
इसम0 मरा कछ वश नह चलन का
कहा उ होन0 ह प| वी धीरज धारण कर
और मरण करो ीहVर क चरण का
जानत ह Bभ अपन दास क पीड़ा
व ह सब 3वपि9तय का नाश कर0ग
करन लग 3वचार व सब मलकर
कहा पर Bभ को व पा सक0 ग
कोई कह रहा बकb ठपर जान को
कोई उ ह0 ीरसागर का 8नवासी बतलाता
िजसक Uदय म0 जसी Bी8त और भिCत
Bभ को वह वसा ह पाता
ह पाव ती म भी था उस समाज म0
अवसर पाकर मन भी एक बात कह
Bभ सव n यापक ह Bम स Bकटत
ऐसी कौन सी जगह ह जहा व नह
मासपारायण छठा वाम
- 71 -
सम त चराचर म0 n या] त ह Aफर भी
सबस रGहत ह और ह सबस 3वरCत
अिYन क तरह सव n या] त हो कर भी
Bभ तो बस होत Bम स Bकट
3Bय लगी मर बात सभी को
EFमाजी न साध-साध कह कर बड़ाई
Bमा बहन लग न स उनक
मन म0 उनक भिCत उमड़ आई
जय हो जय हो ह शरणागत व9 सल
सबक वामी भCत को सख दन वाल
ह गौ EाFमण और दवताओ क रक
आप ह ह असर का नाश करन वाल
अत ह आपक ललाए और करनी
भद कोई नह जानता उनका
वभाव स ह कपाल और दनदयाल ह जो
व ह भगवन हम पर कर0 कपा
ह अ3वनाशी सब घट वासी
ह सव n यापक अजय इिgtय स पर
ह परम आन द व4प प3व चVर
3वरCत और 6ानी िजनका s यान धर0
जय हो जय हो जय हो आपक
ह सिJचदान द ह Bभ जय हो
सिaट क रचता कारण क कारण
ह प8तत पावन हमार सltध लो
न भिCत जानत हम ना ह पजा
सब तरह स ह हम शरण आपक
भय स अ9 य त n याकल हो सब दवता
3वनती करत ह आपक दया क
भयभीत जान और उनक Bाथ ना सनकर
गD भीर आकाशवाणी हई डरो मत
तD हार लय म मनa य 4प ध4गा
और सय वश म0 हगा अशोसGहत Bकट
अGद8त और क- यप न Aकया तप भार
द चका ह म उनको पहल ह वर
व ह दशरथ और कौश या क 4प म0
Bकट ह अयोs या म0 राजा बन कर
उ ह क घर जाकर म रघकल म0
a ठ चार भाइय क 4प म0 अवतार लगा
स9 य क4गा म नारद क वचन
अपनी पराशिCत क सGहत अवतार लगा
तम 8नभ य हो जाओ ह दवव द
हर लगा म सब भार प| वी का
लौट गय दवता वह वाणी सनकर
प| वी क जी म0 भी आ गया भरोसा
तब दवताओ को भी समझाया उ होन0
Aक धर लो तम शरर वानर का
चल गय EFमाजी अपन लोक को
कहकर Aक सवन करो भगव_ चरण का
- 72 -
चल गय दवता अपन-अपन लोक को
प| वी सGहत सबक मन को शाित मल
EFमाजी क आ6ा सन Bस न हए दवता
और तदानसार करन म0 दर ना क
वानर दह धारण क प| वी पर उ होन0
अपार बल और Bताप था उनम0
व धीर ब3+वाल और शरवीर थ
Bभ आन क राह लग वो तकन
पव त व और नख ह थ
अ -श उन वानर वीर क
अपनी-अपनी स दर सना व बनाकर
रहन लग बीच पव त और जगल क
अब वह चVर सनो िजस
बीच म0 ह छोड़ Gदया था मन
अवध म0 दशरथ राजा हए
3वk यात ह िजनका नाम वद म0
धम धर धर गण8नltध और 6ानी थ व
शागधनषधार भगवान क भिCत Uदय म0
कौश या आGद पनीत आचरण वाल रा8नया
lढ़ Bम था िजनका ीहVर चरण म0
एक बार राजा क मन आया
Aक मन कोई प न पाया
तरत ह ग4 क घर जाकर
उनको सब सख-दख कह सनाया
ग4 वशa ठजी न समझाया उ ह0
कहा धीरज धरो तD ह0 चार प हग
तीन लोक म0 हग व Bस+
और भCत का भय हरन वाल हग
Aफर गी ऋ3ष को बला उ होन0
उनस शभ पकामिaट य6 करवाया
म8न क भिCतसGहत आह8तया दन पर
अिYनदव का च4 लय हए दश न पाया
Aफर अिYनदव राजा दशरथ स बोल
स+ हो गया सब काम तD हारा
अब तम जाकर इस ह3वa या न को
िजसको जसा उltचत हो करो बटवारा
सभा को समझा अ तधा न हो गय अिYनदव
तब राजा न बलवाया अपनी ] यार पि9नय को
पायस का आधा भाग कौस या को Gदया
और दो भाग म0 बाटा शष आध को
उस आध का एक भाग ककयी को Gदया
Aफर दो भाग हए शष बच रहा उसक
कौस या और ककयी क हाथ पर रख
Aकया उन भाग को समा क हवाल
इस Bकार गभ वती ह~ सब रा8नया
बड़ी सखी व ह3ष त ह~ व Uदय म0
जबस ीहVर लला स ह गभ म0 आय
सख-सD पि9त छा गयी सब लोक म0
- 73 -
शोभा शील और तज क खान बनी
सब रा8नया सशोभत ह~ महल म0
कछ समझ बाद वह अवसर आ गया
Bभ को Bकट होना था िजसम0
योग लY न fह वार और 8तथी
हो गय सब क सब अनकल
सभी चराचर भर गय हष स
C यAक ीराम ज म ह सख का मल
नवमी 8तथी प3व च का महना
शC ल प और अभिजत महत था
न बहत सरद थी न गरमी थी
सबको शाित दनवाला प3व समय था
शीतल म द सगिधत हवा बह रह थी
वन-पव त सब जगमगा रह थ
बहा रह थी नGदया अमत क धारा
सत क मन और दवता ह3ष त थ
Bभ क Bकटन का समय जब जाना
अपन-अपन 3वमान सजाकर दवता चल
भर गया आकाश दवताओ क समह स
ग धव दल Bभ क गणगान करन लग
बरसान लग पa प अजलय म0 सजाकर
आकाश म0 धमाधम नगाड़ बजन लग
त8त करन लग नाग म8न और दवता
अपनी-अपनी सवा व भ0ट करन लग
दवताओ क समह 3वनती करक
जा पहच अपन-अपन लोक म0
सम त लोक को दनवाल शाित
जगदाधार Bभ Bकट हए अवध म0
Bकट दन-दयाल कपाल Bभ
मन को हरनवाला अत 4प धर
भर गयी माता कौश या हष स
न स उनक Bमा झर
मघ क समान - याम शरर था उनका
चार भजाओ म0 Gदn य आयध धारण Aकय
3वशाल न Gदn य आभषण और वनमाला
य शोभासघ खरार Bभ Bकट हए
दोन हाथ जोड़ कहन लगी माता
ह अन त Aकस Bकार स त8त क4 तD हार
माया गण और 6ान स पर
वद और पराण गात मGहमा तD हार
दया और सख का समgt कह िजनक
8तया और सत करत गण का बखान
मर क याण क लय Bकट हए ह
वह भCत अनरागी लu मीप8त भगवान
वद कहत ह तD हार B9 यक रोम म0
मायारltचत अनक EFमाb ड क समह समाय
व तम मर गभ म0 रह यह सनकर
भला Aकसक ब3+ िथर रह पाय
- 74 -
Bभ मसकराय जब 6ान उपजा माता को
बहत Bकार क चVर करना चाहत ह वो
सो पव ज म क कथा कह माता को समझाया
िजसस उ ह0 प का वा9 स य Bम Bा] त हो
बदल गयी माता क वह ब3+
कहा Bभ को बालक 4प धरन को
तब बालक बन रोन लग Bभ
माता को मा का सख दन को
जो इस चVर का करत गान
व ीहVर का परम पद पात
तलसीदास कहत ह Aफर व जन
इस ससार 4पी कप म0 ltगरन नह पात
EाFमण गौ दवता और सत क लय
मनa य 4प म0 अवतार लया ीहVर न
उनका शरर अपनी इJ छा ह स बना
माया गण और इिgtय स पर ह व
बJ च क रोन क ] यार आवाज सन
सब रा8नया दौड़ी आ~ उतावल होकर
आनन-फानन म0 फल गयी यह बात
सार परवासी मY न हए आन द म0 डबकर
प ज मन0 क बात कान स सनकर
राजा दशरथ समा गय EFमान द म0
िजनका नाम सनन स ह क याण होता
व ह Bभ ज म0 ह मर घर म0
बाजा बजवाया बाज वाल को बलाकर
ग4 वशa ठ जी क पास बलावा भजा
व EाFमण क साथ राज_वार पर आय
और जाकर अनमप बालक को दखा
Aफर राजा न ना दमख ा+ करक
सब जातकम -स कार आGद Aकया
Aफर सब EाFमण को आदर सGहत
सोना गौ व आGद का दान Gदया
सजाया गया िजस Bकार स सारा नगर
उसका तो वण न हो नह सकता
फल क वषा हो रह आकाश स
सब ओर छा रह s वजा और पताका
झड-क-झड मलकर चल िया
सोन का कलश लय मगल थाल सजा
आरती करक 8नछावर करती ह व
बारD बार बालक क चरण म0 शीश नवा
मागध सत व दजन और गवय
करत ह रघकल का प3व गण-गान
भरपर दान Gदया राजा न लोग को
िजसन पाया उसन भी कर Gदया दान
क तर च दन और कसर क कच
मच गयी गल-कच और घर म0
शोभा क मल ीभगवान Bकट ह
मगलमाय बधावा बज रहा घर-घर म0
- 75 -
ककयी और समा इन दोन न भी
ज म Gदया स दर-स दर प को
अवधपर इस Bकार सशोभत हो गयी
मान रा( पभ स मलन आयी हो
और Bभ 4पी सय को दखकर
मानो मन म0 सकचा गयी हो
परत Aफर भी मन म0 3वचार कर
वह मानो सs या बन रह गयी हो
गार का धआ मानो अ धकार सs या का
जो अबीर उड़ रहा वह ललाई उसक
महल म0 मKणय क समह तारागण स
राजमहल का कलश मान पKण मा का शशी
अ8त कोमल वाणी म0 होती वद s व8न
मान समयानकल चहचहाहट पय क
यह कौतक दख सय भी भल चाल
एक महना बीत गया उ ह0 ठहर वह
महन भर का एक Gदन हो गया
जानता नह कोई इस रह य को
4क गय सय अपन रथ सGहत
होती कस Aफर रात आन को
यह रह य Aकसी न न जाना
तब ीराम गणगान करत सय चल
यह महो9 सव दख दवता म8न और नाग
अपन भाY य क सराहना करत घर चल
तD हार lढ़ ब3+ दख ह पाव ती
कहता ह अपनी एक बात 8छपाव क
काकभशिbड और म भी मनa य 4प म0 थ
सो Aकसी न हमार पहचान न क
परम आन द और Bम म0 फल हए
अपनी सltध (बसरा घम रह थ वहा
परत वह जान सकता यह शभ चVर
िजस पर हो Bभ ीराम क कपा
तब वहा जो िजस Bकार आया
और िजसक मन को लगा जो अJ छा
हाथी रथ घोड़ सोना गौए और व
राजा न Gदया िजसन जो चाहा
जहा-तहा आशीवा द द रह थ लोग
Aक तलसी क वामी सब प ltचरजीवी ह
Aफर म8न वसa ठ को बलाकर 3वनती क
Aक उनक नाम रC ख0 जो उ होन0 3वचार ह
म8न क कहा अनक अनपम नाम ह इनक
Aफर भी कहगा म अपनी ब3+ अनसार
आपक सबस बड़ प का नाम lsquoरामrsquo ह
जो करत (लोक म0 सख का सचार
जो ससार का भरण-पोषण करत ह
उन दसर प का नाम lsquoभरतrsquo होगा
िजनक मरण मा स नाश होता श का
उनका वद म0 Bस+ नाम शv न होगा
- 76 -
शभ लण क धाम ीराम क ] यार
जगत क आधार lsquoलu मणrsquo नाम रC खा उनका
Aफर कहा तD हार प वद का त99 व ह
िज होन0 तD हार Bमवश बाललला करन का सोचा
सD पण जगत क माता-3पता ीरामजी
इस Bकार अवधवासय को सख दत
जोड़ी िज होन0 उनक चरण म0 Bी8त ह भवानी
उनक Bमवश उ ह0 वो आनिदत करत
Bभ स 3वमख हो कोई भी उपाय
छड़ा नह सकता भव-ब धन को
वह माया भी Bभ स भय खाती
िजसन वश म0 Aकया सभी जीव को
अपन भकGट 3वलास पर नचात Bभ उस
Aफर उ ह0 छोड़ Aकसका भजन Aकया जाय
मन वचन और कम स चतराई छोड़कर
Bभ का भजन ह ह बस एक उपाय
इस Bकार बाल=ड़ा कर Bभ ीराम न
सम त नगर वासय को सख Gदया
Bम मY न उ ह0 दलारत-पचकारत माता न
Gदन-रात का बीतना अनभव न Aकया
एक बार नान करा माता न उ ह0
गार कर पौढ़ा Gदया पालन पर
Aफर वय नहा नव_य चढ़ा
आ~ लौट कर पजा क थान पर
वहा भगवान को चढ़ाय हए नव_य का
माता न प को भोजन करत दखा
भयभीत हो यहा कस आ गया प
माता न जाकर पालन म0 सोत दखा
वहा भी प को सोत दखकर
पन दखा उ ह0 पजा थान पर आकर
दखकर दोन जगह अपन प को
लगन लगा माता को मन म0 ड़र
कह यह मरा xम तो नह
यहा और वहा मन दो बालक दख
माता को घबड़ायी हई दख कर
तब Bभ ीराम म द-म द हस Gदय
Aफर अपना अखb ड अत 4प Gदखलाया
रोम-रोम म0 करोड़ EFमाb ड बस िजसम0
अगKणत सय च gtमा शव और EFमा
अगKणत प| वी समgt वन पव त थ िजसम0
काल कम गण 6ान और वभाव दख
और वो भी जो कभी दखा न सना
अ9 यत भयभीत हाथ जोड़ खड़ी माया दखी
जीव को नचाती जो कभी थकती ना
माता न वहा भिCत को भी दखा
जो छड़ा दती जीव को माया स
सब दख ऐस पलAकत हो गयी वो
8नकलता नह एक श द भी मख स
- 77 -
जगत-3पता परमा9 मा को प कर जाना
डर गयी त8त भी क नह जाती उनस
जब Bभ न बहत तरह समझाया माता को
आपक माया अब मझ न भाय कहा उनस
बहत Bकार स क बाल ललाए Bभ न
Aफर चार भाई जब हए कछ बड़
तब ग4जी न जाकर Aकया चड़ाकम स कार
चार राजकमार क चVर मनोहर ह बड़
मन वचन और कम स अगोचर ह जो
3वचर रह वो Bभ दशरथ क आगन म0
बलात ह भोजन करन क समय जब राजा
खलत लगत ह अपन बालसखाओ क सग म0
ठमक-ठमक भाग चलत0 ह Bभ
माता कौस या जब उ ह0 बलान जाती
शवजी न भी िजनका अ त नह पाया
माता उ ह0 हठपव क पकड़ना चाहती
धल-धसVरत आ बठ राजा क गोद म0
Aफर Aकलकार मार इधर-उधर भाग चल
उनक सरल स दर मनभावनी बालललाओ को
शष सर वती शवजी और वद गात चल
कमाराव था क जब हए सब भाई
तो उनका य6ोपवीत कर Gदया गया
Aफर ग4 क घर पढ़न गय व
थोड़ वC त म0 सब पाठ पढ़ लया
चार वद िजनक वाभा3वक - वास ह
व भगवान पढ़0 ह यह अचरज बड़ा
3वधा 3वनय गण और शील म0 8नपण
हाथ म0 s नष-बाण दता ह शोभा
उनका 4प दख चराचर मोGहत हो जात
और अयोs यावासी Gठठक कर रह जात
ी प4ष बढ़ और बालक सभी
ीरामजी को Bाण स भी 3Bय भात
भाईय और इa ट म को लकर साथ
वन म0 जाकर ीरामजी शकार खलत
मन म0 प3व मानकर मारत ह मग को
और B8तGदन लाकर दशरथजी को Gदखलात
जो मग ीराम क बाण स मरत
शरर छोड़कर चल जात दवलोक को
भाइय और सखाओ क सग भोजन करत
शरोधाय करत माता-3पता क आ6ा को
िजस Bकार नगर क लोग सखी ह
कपा8नधान ीराम वह लला करत ह
व मन लगाकर वद-पराण सनत ह
Aफर छोट भाइय को समझाकर कहत ह
सबह-सवर ह उठकर ीरघनाथ
माता-3पता और ग4 को शीश नवात
नगर का काम करत उनक आ6ा लकर
महाराज दशरथ मन म0 हष मनात
- 78 -
n यापक अकल अनीह अज और 8नग ण
न कोई नाम न 4प ह िजनका
वह भगवान अपन भCत क लय
अनपम और अलौAकक चVर करत ह अनका
यह सब चVर मन बखानकर कहा
अब आग क कथा सनो मन लगाकर
6ानी-महाम8न 3व- वामजी वन म0
बसत थ प3व थान जानकर
जप य6 और योग करत थ म8न
परत डरत थ मारच और सबाह स
उपgtव मचात थ व य6 दखकर
बहत दख पात थ म8न िजसस
ltचितत थ गाltधप 3व- वामजी मन म0
य रास न मर0ग Bभ क (बना
Aफर सोचा Bभ न अवतार लया ह
C यो ना उ ह0 ल आऊ यहा
बहत आशाए अपन मन म0 लय
दर न लगायी जान म0 उ होन0
सरयजी क जल म0 नान कर
शी जा पहच0 राजा क महल म0
राजा न सना जब आना म8न का
EाFमण को साथ ल जा पहच मलन
दb डवत कर सD मान करत हय म8न का
लाकर बठाया उ ह0 आसन पर अपन
चरण को धोकर बहत पजा क
और बहत सराहा भाY य को अपन
Aफर अनक स वाGदa ट भोजन करवाय
बहत ह3ष त हए म8न मन म0
Aफर राजा न चार प बलाकर
म8न क चरण म0 उनस Bणाम करवाया
दख कर ीरामजी क मख क शोभा
मन चकोर क तरह गया लभाया
राजा न कहा आपन बड़ी कपा क
ह म8न Aकस कारण हआ आपका आगमन
म8न न कहा कछ मागन आया ह
बहत सतात ह मझ वन म0 रासगण
छोट भाई सGहत ीरामच gt को
ह राजन वन म0 मर साथ भज दो
रास क मरन स हो जाऊगा सरत
ह राजन उ ह0 मर साथ जान दो
धम और सयश आपको दोनो मल0ग
ह राजन मोह और अ6ान 9 याग दो
इन दोन का परम क याण होगा
Bस न मन स दोन को 3वदा दो
यह सनकर Uदय काप उठा राजा का
और मख क काित पड़ गयी फक
बोल चौथपन म0 मन प पाय ह
ह EाFमण आपन (बना 3वचार बात क
- 79 -
प| वी गौ धन और खजाना
जो चाहो आप म व व द दगा
कछ ना अltधक 3Bय Bाण स होता
उस भी पल भर म0 द दगा
सभी प ह मझ Bाण स ] यार
और राम तो ह Bाण क Bाण
कहा भयानक और =र रासगण
कहा मर प सकमार समान
Bम रस सनी राजा क बात0 सन
6ानी म8न न मन म0 हष माना
वसa ठजी न बहत समझाया राजा को
सदह नa ट हआ तब राजा न जाना
आदर सGहत दोन प को बलाकर
Uदय स लगा बहत शा द उ ह0
य दोन Bाण ह मर ह नाथ
अब आप ह 3पता ह इनक कहा उ ह0
बहत Bकार स आशीवा द दकर राजा न
कर Gदया प को म8न क हवाल
Aफर माता क महल म0 जाकर
उनक चरण म0 सर नवा व चल
म8न का भय हरन को चल
प4ष म0 सह Bभ राम और लu मण
व कपा क समgt और धीरब3+
सD पण 3व- व क कारण क कारण
3वशाल भजाए चौड़ी छाती और लाल न
नील कमल और तमाल व सा शरर - याम
पीताD बर पहन और तरकस कस हए
दोन हाथ म0 लय धनष और बाण
परम स दर दोन भाइय का साथ मानो
महान 8नltध मल गयी हो म8न को
सोचन लग Bभ EाFमण क भCत ह
मर कारण छोड़ आए व 3पता को
माग म0 म8न न ताड़का को Gदखलाया
श द सनत ह दौड़ी वह =ोध कर
एक ह बाण स Bाण हर राम न
और 8नजपद Gदया उस दन जान कर
3व_या का भb डार जानत भी म8न न
Bभ को लला हत ऐसी 3व_या द
िजसस उनको भख और ] यास न लग
और मल बल और तज का Bकाश भी
सब अ -श समप ण करक म8न
Bभ ीराम को अपन आम ल आय
और परम Gहतषी जान भिCतपव क उ ह0
कद-मल और फल भोजन म0 Kखलाय
Bात होन पर ीरघनाथ न कहा
आप जाकर य6 किजय 8नडर होकर
सब म8न यह सन करन लग हवन
और Bभ वय बठ गय रखवाल पर
- 80 -
यह समाचार सन म8नय का श
=ोधी मारच सहायक को लकर दौड़ा
(बना फल वाला बाण मारा राम न
वह सौ योजन समgt पार जा पड़ा
Aफर अिYनबाण मारा सबाह को
लu मणजी न रास सना को मार डाला
8नभ य Aकया इस तरह EाFमण को उ होन0
म8न का मनचाहा Bभ न कर डाला
4क कछ Gदन और वहा ीरघनाथ
EाFमण न पराण क कथाए कह
य_य3प Bभ जानत थ सभी बात0
Aफर भी भिCतवश सब उ होन0 सनी
तब म8न न सादर कहा समझाकर
ह Bभो एक और चVर दKखय चलकर
सनकर धनषय6 क बात ीरघनाथ
म8न क साथ चल Bस न होकर
एक आम Gदखलायी Gदया माग म0
जो पश-पी 3वहन सव था 8नज न था
प9 थर क एक शला दख जब पछा
म8न न 3व तार पव क कह कथा
गौतम म8न क प9 नी अह या शापवश
प9 थर क बन धीरज क साथ
चाहती ह आपक चरणकमल क धल
इस पर कपा किजय ह रघनाथ
Bभ क प3व और शोकनाशक चरण का
पश पात ह जीवत हो उठj अह या
अपन सD मख भCतव9 सल Bभ ीराम का दख
अ9 यत Bम स अधीर हो उठj अह या
पलAकत हो उठा उसका शरर
मख स वचन कहन म0 नह आत
लपट गयी अह या Bभ क चरण स
न म0 Bमा भर-भर आत
मन म0 धीरज धर कर Aफर उसन
Bभ को पहचाना और कपा-भिCत Bा] त क
तब अ9 यत 8नम ल वाणी स उसन
इस Bकार Bभ क त8त श4 क
ह 6ान4प ह 6ाता ह 6य
जय हो जय हो आपक जय हो
म सहज ह अपावन ी ह
और आप प8तत पावन हो Bभो
ह भCत क सखदाता ह कमलनाथ
ह ज म-म9 य क भय स छड़ान वाल
आपक चरण क शरण आयी ह म
रा किजय ह रा करन वाल
शाप Gदया मझको जो म8न न
सो बहत ह मझ पर अनfह Aकया
इस कारण भव-ब धन छड़ानवाल आपको
मन अपन न स दख लया
- 81 -
और कोई चाह नह अब मर
बस आप स ह एक ह 3वनती
आपक चरणरज क Bम4पी रस स
मरा मन4पी भyरा हो ना दर कभी
िजन चरण स 8नकल गगा
शवजी न िजनको सर पर रC खा
िजन चरणकमल को पजत ह EFमाजी
उ ह0 आपन मर सर पर रC खा
बारD बार य चरण म ltगरकर
जो बहत अJ छा लगा मन को
मन चाहा वर पाकर आन द सGहत
चल गयी अह या तब प8तलोक को
ऐस दयाल और दनब ध ह Bभ
(बना ह कारण जो करत ह दया
तलसीदास कहत ह ह मर मन
कपट-जजाल छोड़ कर भजन उ ह का
म8न क साथ राम और लu मण
चल वहा जहा थी जग पाव8न गगा
वह सब कथा कह सनायी म8न न
िजस Bकार प| वी पर उतर थी गगा
तब Bभ न नान Aकया गगा म0
EाFमण न भा8त-भा8त क पाय दान
Aफर Bस न हो चल साथ म8नय क
जनकपर क ओर Aकया B थान
जनकपर पहच वहा क शोभा दख
छोट भाई सGहत बहत Bस न हए ीराम
बावलया कए नद और तालाब िजनम0
मKणय क सीGढया जल अमत समान
मतवाल हो भyर गजार कर रह
रग-(बरग पी कर रह मधर गजन
कमल और फल Kखल ह रग-रग क
बह रहा म द-म द शीतल पवन
अनक पa पवाGटकाए बाग और वन
बस हऐ थ िजनम0 पी बहत स
फलत-फलत और सग ध (बखरत
सारा जनकपर था सशोभत उनस
वण न स पर नगर क स दरता
मन जहा जाता वह लभा जाता
स दर बाजार और मKणय क छH ज
मान रचा गया हो EFमा _वारा
कबर क समान a ठ धनी n यापार
बठ ह सब Bकार क व तए लकर
ltच स अAकत मगलमय घर सबक
साध वभाव वाल ी-प4ष स दर
मासपारायण सातवा वाम
- 82 -
जनकजी क महल का ऐ- वय दखकर
दवता तक भी हो जात ह तिDभत
सम त लोक क शोभा घर हो
राजमहल का परकोटा कर दता ltच9त चAकत
उH जवल महल म0 अनक Bकार क
मKण जGटल सोन क जर क पदo लग
सीताजी क रहन क स दर महल क
शोभा वण न कोई कर सकता कस
वd क समान सब दरवाज महल क
राजाओ नट भाट क भीड़ स 8घर
बड़ी-बड़ी 3वशाल गजशालाए और अ तबल
हर समय हाथी घोड़ और रथ स भर
बहत स शरवीर म ी और सनानायक
उन सबक घर भी ह राजमहल-सरख
नगर क बाहर तालाब और नद क 8नकट
जहा-तहा बहत स राजा ह उतर
वह आम का एक अनपम बाग दखकर
सब तरह स जो कज था सहावना
3व- वामजी न कहा ह सजान रघबीर
मरा मन कहता ह यह ह ठjक Gठकाना
म8न क बात वीकार कर ीराम
वह ठहर गय सब म8नय क साथ
महाम8न 3व- वामजी का आगमन जानकर
मltथलाप8त चल मलन सबको ल साथ
Bणाम Aकया राजा न म8न को
आशीवा द द म8न न राजा को बठाया
तभी फलवाड़ी दख दोन भाई लौट आय
3व- वामजी न उ ह0 अपन पास बठाया
सकमार Aकशोर ltच9त को चरानवाल
दोन का 4प और तज ऐसा छाया
सबक शरर रोमाltचत हो उठ
न म0 Bम और आन द उमड़ आया
ीराम क मधर मनोहर मरत को दख
3वदह जनक 3वशषकर 3वदह हो गय
3ववक का आय ल तब उ होन0
Bम भर वाणी म0 य वचन कह
ह नाथ कGहय य दोन स दर बालक
म8न कल क आभषण ह या राजकमार
अथवा न8त-न8त कहा िज ह0 वदो न
उसी EFम क ह य यगल अवतार
वरागी मरा मन मY ध हो रहा
H य च gtमा को दखकर होता चकोर
Bम क वश हो EFमसख को 9 याग
Kखचा जा रहा मरा मन इनक ओर
हसकर कहा म8न न ह राजन
म| या नह हो सकता आपका वचन
जगत म0 ज हा तक िजतन Bाणी ह
सभी क लय ह य मन लभावन
- 83 -
म8न क रह यमयी वाणी को सनकर
मन ह मन ीराम ऐस मसकराय
मान म8न को सकत कर रह ह
Aक उनका रह य Aकसी को ना बताय0
म8न न कहा महाराज दशरथ क प य
भज गय ह मर Gहत क लय
राम और लu मण शील और बल क धाम
असर को मारा य6 रा क लय
राजा न कहा आपक चरण क दश न कर
म अपना पb य-Bभाव कह नह सकता
- याम और गौर वण इन भाइय स
आन द को भी आन द मलता ह लगता
प3व और सहावनी उनक आपस क Bी8त
वण नातीत और मन को अ8त भाती
EFमा और जीव सा इनका वाभा3वक Bम
ऐसा ह जस Gदया और बाती
Aफर राजा उ ह0 साथ लवा ल चल
नगर म0 एक महल म0 ल जाकर ठहराया
सब तरह स स दर और सखदायी
ऋ3षय सGहत Bभ को वह महल भाया
लालसा ह लu मणजी क Uदय म0
Aक जाकर जनकपर को दख आव0
पर मह स कछ कहत नह बनता
Aकस तरह स Bभ को समझाव0
तब अ तया मी Bभ ीरामच gt न
छोट भाई क मनोदशा जान ल
उमड़ आयी भCतव9 सलता उनक Uदय म0
सो म8न स Bभ न क 3वनती
ह नाथ नगर दखना चाहत ह लu मण
पर कहत नह डर और सकोच स
यGद आपक आ6ा पाऊ तो
नगर Gदख तरत लौटा लाऊ म इ ह0
यह सन म8न 3व- वाम Bम स बोल
कस न करोग तम नी8त क रा
धम क मया दा रखन वाल हो तम
Bम क वश Gहत करत भCत का
Aफर बोल सख क 8नधान दोन भाई
जाकर घम-Aफर आओ सारा नगर
सफल करो नगरवासय क न को
उ ह0 अपन स दर मख Gदखलाकर
म8न क चरणकमल क व दना करक
दोन भाई चल पड़ नगर दखन
बालक क झड उनक साथ लग गय
उनक अ9 यत शोभा न मोह लया उ ह0
स दर व दप म0 बध तरकस
हाथ म0 स दर धनष-बाण सशोभत
फबती हई च दन क खौर लगी
दोन क जोड़ी सबको कर रह चAकत
- 84 -
सह क सी गद न 3वशाल भजाए
चौड़ी छाती पर माला गजमCता क
स दर लाल कमल स न ह उनक
मनोहर ltच9तवन और भौह0 ह 8तरछj
कान म0 सोन क कण फल ह शोभत
स दर और काल ह घघराल बाल
ऐड़ी स चोट तक ऐसी स दरता
जहा जसा चाGहय वसा कमाल
खबर लगी जब यह परवासय को
Aक दोन भाई आय ह नगर दखन
घर-बार और काम-काज छोड़कर दौड़
मान दVरgt दौड़ हो खजाना लटन
वभाव स ह स दर दोन भाइय को दखकर
लोग न का फल पा हो रह सखी
घर क झरोख स झाकती यवती िया
BमसGहत ीरामजी का 4प दख रह
कह रह व आपस म0 ह सखी
करोड़ कामदव स भी स दर ह य
ऐसी शोभा तो सनन म0 भी न आती
दवता मनa य असर नाग और म8नय म0
चार भजाए ह भगवान 3वa ण क
और EFमाजी क भी मख ह चार
भयानक वष और पचमखी ह शवजी
और दवताओ का C या कर0 3वचार
ह सखी भला कौन ऐसा होगा जग म0
जो मोGहत ना हो जाय इ ह0 दखकर
एक न कहा य दशरथजी क प ह
य6 क रा क रास को मारकर
- याम शरर और कमल स न ह िजनक
मद चर Aकया मारच और सबाह का
हाथ म0 धनष लय कौस याजी क प
सख क खान राम नाम ह इनका
Aकशोर अव था और गौरा रग ह िजनका
और चल रह ीराम क पीछ-पीछ
माता समा क प लu मण ह
और ीरामच gtजी क भाई ह छोट
साधकर-EाFमण 3व- वामजी का काम
और माग म0 अह या का उ+ार कर
यहा धनषय6 दखन आय0 ह दोन
म8न 3व- वामजी का कहा मानकर
ीरामच gtजी क छ3व दखकर कोई एक
कहन लगी जानक क योY य ह यह वर
यGद कह राजा इ ह0 दख ल तो
कर दगा 3ववाह इनस अपनी B8त6ा छोड़कर
Aकसी न कहा पहचान लया राजा न इ ह0
और म8न क साथ सD मान Aकया ह इनका
पर राजा अपना हठ पकड़ हए ह
होनहार वश वह अपना Bण नह छोड़ता
- 85 -
कोई कहती ह यGद 3वधाता भल ह
और सनत ह वह दता ह उltचत फल
तो ह सखी इसम0 सदह नह ह
Aक जानक जी को मलगा यह वर
जो दवयोग स बन जाय सयोग
तो हम सब लोग कताथ हो जाय
ह सखी मझ ह इसलय आतरता
Aक इसी बहान उनक दश न हो पाय
और यGद यह 3ववाह न हआ
तो इनक दश न अ8त दल भ होग0
पर यह सयोग तभी हो सकता ह
जब हमार पव ज म क ऐस पb य होग0
दसर न कहा तमन बहत अJ छा कहा
परम Gहत ह इस 3ववाह स सभी का
Aकसी न कहा शकरजी का धनष कठोर ह
और कोमल बालक शरर ह राजकवर का
Aकसी न कहा दखन म0 छोट ह य
पर बहत बड़ा ह Bभाव इनका
िजनक चरणकमल क धल- पश स
उ+ार हो गया पाषाणी अह या का
Aफर यह C या कोई बड़ी बात ह
Aक शवजी का धनष य तोड़ डाल0
भलकर भी नह छोड़ना चाGहय 3व- वास
य राजकमार ह अ9 यत साम| य वाल
बड़ी चतराई स रचा सीता को िजसन
उसी EFमा न सावला वर रचा 3वचारकर
ऐसा ह होrsquo कहन लगी व सब
उसक स वचन सन ह3ष त होकर
स दर मख और न वाल व िया
ह3ष त हो करन लगी फल क वषा
जहा-जहा व दोन भाई जात ह
वहा-वहा होन लगती आन द क वषा
दोन भाई नगर क परब को गय
धनषय6 हत भम बनायी गयी थी जहा
एक लब-चौड़ स दर आगन पर
स दर और 8नम ल वद सजी थी वहा
बड़-बड़ वण मच राजाओ क लय बन
चार ओर मचान का मb डलाकार घरा था
कछ ऊचा और सब Bकार स सन दर
यह थान नगरवासय क लय बना था
उ ह क पास सभी िय क लय
3वशाल और स दर मकान बनाय गय थ
नगर क बालक कोमल वचन कह-कहकर
ीरामजी को य6शाला Gदखला रह थ
Bमवश सभी बालक इस बहान
पलAकत हो रह ीरामजी को छकर
उनक Uदय म0 अ9 यत हष हो रहा
दोन भाईय को दख-दखकर
- 86 -
Bशसा करन लग ीराम य6भम क
िजसस बालक हो गय और भी आनिदत
बलात ह उ ह0 व अपनी 4ltच अनसार
और दोन भाई जात ह BमसGहत
पल भर म0 ह िजनक आ6ा स
रच डालती माया अनक EFमाb ड समह को
वह ीराम य6भम क रचना Gदखला रह
भिCत क कारण लu मण को आ- चय चAकत हो
सब कौतक दख चल ग4 क पास
दर हई जान मन म0 डर रह
िजनक भय स भय का भय लगता
वह भजन का Bभाव Gदखला रह
Aफर भय Bम 3वनय और सकोच क साथ
आ6ा पा दोन भाई ग4चरण म0 बठ
जब कछ समय बाद शयन Aकया म8न न
दोन भाई चरण दबान लग म8न क
भा8त-भा8त क य9 न करत ह बरागी
िजनक चरण क दश न क लय
व ह ग4चरण का दबा रह ह
भिCत और Bम क मया दा क लय
जब म8न न बार-बार आ6ा द
तब जाकर Aकया ीरघनाथ न शयन
Aफर भय और BमसGहत दबान लग
लu मणजी बड़ भाई ीरामजी क चरण
बारD बार ीरामजी क कहन पर लu मणजी
Bभ क चरण को Uदय म0 धर लट
Aफर सबह होन पर म8न क आजा ल
दोन भाई बाग स फल लन को चल
राजा का स दर बाग जाकर दखा उ हन
जहा रह गयी ह बस त ऋत लभाकर
मनभावन व रग-(बरगी लताओ क मb डप
मKणय क सीGढय वाला सहावना सरोवर
8नम ल जल अनक रग क कमल Kखल
पी कलरव और xमर गजार कर रह
यह बाग वा तव म0 परम रमणीय ह
िजसस जग सखी करनवाल सखी हो रह
जब व चन रह थ प-पa प
तभी सKखय सग आयी सीताजी वहा
माता न उ ह0 पजा करन भजा था
सरोवर Aकनार ltगVरजाजी का मGदर जहा
सKखय सGहत नान कर सीताजी
Bस न मन स गयी मGदर क भीतर
बड़ Bम स क पजा उ होन0
और मागा अपन योY य स दर वर
एक सखी सीताजी का साथ छोड़कर
चल गयी थी फलवाड़ी दखन
Bम 3वFवल हो वह वापस आयी
दखा था दोन भाइय को उसन
- 87 -
न म0 जल पलAकत शरर दखकर
सKखय न पछा Bस नता का कारण
उसन कहा दो राजकमार बाग दखन आय
कस क4 म उनक 4प का वण न
सीताजी क Uदय म0 उ9 कb ठा जानकर
एक न कहा य ह वो ह राजकमार
जो 3व- वाम म8न क साथ आय ह
और नगर म0 हो रहा िजनका Bचार
सब कर रह उ ह क छ3व का वण न
हम0 चलकर अव- य दखना चाGहय उ ह0
उसक वचन अ9 यत 3Bय लग सीता को
उसी को आग कर चल दखन उ ह0
नारदजी क वचन का मरण करक
प3व Bी8त उपजी सीताजी क मन म0
व चAकत हो दख रह सब ओर
मान भयभीत मगछौनी लग रह हो दखन
ककण करछनी और पायजब क s व8न सन
ीराम कहत ह लu मण स 3वचार कर
लगता ह 3व- व 3वजय का सक प Aकया ह
कामदव न डक पर चोट मार कर
ऐसा कह जो Aफरकर दखा उ हन
सीताजी का मख दख लग गयी टकटक
उनक न चकोर स बन गय
8नहार रह ह जो शोभा च gt क
मान जनकजी क पव ज 8नमी न
िजनका माना गया सबक पलक पर 8नवास
इस Bसग को दखना उltचत न जानकर
सकचाकर छोड़ Gदया पलक स वास
बहत सख पाया उ ह0 दख राम न
पर मख स वचन नह 8नकलत उनक
ऐसी शोभा मान अपनी सार 8नपणता को
EFमा न Gदखा Gदया हो Bकट करक
स दरता को भी स दर करती शोभा
ऐसी अनपम स दरता ह सीताजी क
मान स दरता4पी उस अधर भवन म0
जगमगा उठj लौ द पशखा क
सब उपमाय0 झठj कर रखी क3वय न
Aकसस द जनकनिदनी ीसीताजी क उपमा
ऐसा 3वचारकर प3व मन स ीराम न
अपन छोट भाई लu मण स कहा
ह तात य ह वह जनकजी क क या
हो रहा ह धनषय6 िजसक लय
िज ह0 दख मरा प3व मन ध हो रहा
और मगलदायक दाGहन अग फड़क रह
रघवशय का ह यह सहज वभाव
उनका मन नह चलता कभी कमाग पर
मझ अपन मन पर ह अ9 यत 3व- वास
सपन म0 न डाल परायी ी पर नज़र
- 88 -
पीठ न Gदखात जो कभी रण म0
परायी िया िज ह0 आकa ट नह करती
खाल नह जात िजनक दर स भखार
बहत नह जग म0 ऐस क ltगनती
य ीरामजी कर रह छोट भाई स बात0
पर मन सीताजी क 4प म0 लभाया हआ
उधर सीताजी चAकत हो दख रह ह
Aक दोन राजकमार चल गय ह कहा
तब सKखय न लता क ओट म0
Gदखलाया स दर - याम और गौर कमार को
न ललचा उठ उनक 4प को दख
मानो उ हन अपना खजाना पहचान लया हो
ीरघनाथजी क मनोहर छ3व को दख
छोड़ Gदया सीताजी क पलक न ltगरना
3वUल हो गया नहवश उनका शरर
मानो बसध हई चकोर दख च gtमा
न क राह अपन Uदय म0 बसा
करन लगी s यान व न मदकर
जब सKखय न जाना उ ह0 Bमवश
तो रह गयी व मन म0 सकचाकर
तभी लतामb डप स दोन भाई ऐस 8नकल
जस बादल म0 स 8नकला हो च gtमा
नील और पील कमल सी आभा उनक
दोन स दर भाई ह शोभा क सीमा
स दर मोरपख ह सर पर सशोभत
बीच-बीच म0 लग कलय क गJ छ
माथ पर 8तलक कान म0 कb डल
टढ़ भyह0 ह और बाल घघराल
नय लाल कमल स रतनार न
ठोड़ी नाक और गाल मन लभात
मनमोहक हसी मख क छ3व 8नराल
िजस दख बहत-स कामदव भी लजात
मKणय क माला व थल पर
शख स समान स दर ह उनका गला
हाथी क बJ च क सड सी भजाए
कौन परख सकता उनक शिCत भला
सावल-सलोन पीताD बर धार ीराम को दख
अपन आपक को भल गयी सKखया
एक चतर सखी न तब धीरज धरकर
हाथ पकड़कर सीताजी स कहा
कर लना Aफर s यान ltगVरजाजी का
C य नह दख लती अब राजकमार को
सकचाकर तब न सीताजी न खोल
और सामन दखा दोन कमार को
नख स शखा तक ीराम क शोभा
8नहार कर सीताजी ममY ध हो गयी
और Aफर 3पता का Bण याद कर
मन ह मन व ध हो गयी
- 89 -
जब सKखय न दखा परवश उनको
अब चलना चाGहय व कहन लगी
कल इसी समय हम Aफर आयगी
ऐसा कह एक मन म0 हसन लगी
मन म0 बसा ीरामजी को सीताजी
3पता क अधीन जानकर लौट चल
पश-पय और पड़ क बहान
बारD बार मड़-मड़कर व दखन लगी
बहत कठोर शवजी का धनष जानकर
और ीरामजी को जानकर सकमार
कस तोड़ पायग0 व उस धनष को
सीताजी कर रह थी मन म0 3वचार
Bम वश Bभ का ऐ- वय भल
ोभ हो रहा था उनक मन म0
Aफर Bभ का बल मरण होन पर
ह3ष त हो सावल छ3व धर मन म0
उधर सख नह शोभा और गण क खान
ीजानकजी को जाती हई जाना राम न
तब परम Bम क याह बना उनका व4प
ltच9त4पी भि9त पर ltच(त कर लया राम न
पन भवानीजी क मिदर गयी सीताजी
और उनक चरण व दना क हाथ जोड़कर
ह पव त क राजा Gहमाचल-पी पाव ती
जय हो आपक कपा हो हम पर
ह महादव क मख4पी च gtमा क चकोर
ह गजानन और भाई षडानन क माता
ह (बजल क सी काितयCत शरर वाल
जय हो जय हो आपक ह जगतमाता
न आGद न मs य न अ त आपका
आपका असीम Bभाव वद स भी पर
सबको उ9 पन न पालन और नाश करनवाल
सबम0 लय Aफर भी सबस पर
आप ह 3व- व को मोGहत करन वाल
और करनवाल ह वत4प स 3वहार
प8त को इa ट मानन वाल नाVरय म0 Bथम
कौन कह सकता आपक मGहमा अपार
ह भCत को महमागा वर दन वाल
ह (परार शवजी क 3Bय प9 नी
चार फल सलभ होत आपक सवा स
आपक पजा सखी करती मनa य और म8न
सबक Uदय4पी नगर म0 8नवास करन वाल
मर मनोरथ को आप भल-भॉ8त जानती
इसी कारण Bकट Aकया नह मन
ऐसा कह उनक चरण म0 पड़ी जानक
Bम और 3वनय वश जो हई भवानी
म8त मसकायी माला Kखसक गल स
बड़ ह आदर और Bम क साथ
सर पर धारण Aकया सीताजी न उस
- 90 -
ह3ष त Uदय स तब बोल गौरजी
ह सीता सनो स9 य असीस हमार
िजसम0 मन अनरCत वह वर मलगा
पर होगी यह मनो-कामना तD हार
िजसम0 तD हारा मन अनरCत हो गया ह
वह सावला-सलोना वर मलगा तमको
दया का खज़ाना और सव 6 ह वह
जानता ह तD हार शील और नह को
इस Bकार सन ीगौरजी का आशीवा द
जानक जी सGहत हई सब सKखया Bस न
Aफर गौरजी को बारD बार कर नम कार
सीताजी लौट चल महल को Bस न मन
ीगौरजी को अनकल जानकर सीताजी
अपन मन म0 ह~ बहत Bस न
और सभी स दर मगल क मल
फड़कन लग उनक बाय0 अग
सराहत हय सीताजी का सौ दय Uदय म0
दोन भाई गय ग4जी क पास
ीरामच gtजी न कह Gदया सब उ ह0
C यAक उनका छलरGहत ह सरल वभाव
Aफर फल ल पजा क म8न न
और आशीवा द Gदया दोनो भाइय को
कहा Aक सफल ह तD हार मनोरथ
यह सन बड़ा सख मला दोन को
पव Gदशा म0 जब उGदत हआ च gtमा
ीराम न सीता क मख सा जाना
Aफर 3वचार Aकया यह उltचत नह
C यAक खार जल स पदा हआ च gtमा
उसी समgt स उ9 प न होन क कारण
भीषण हलाहल 3वष भाई ह च gtमा का
Gदन म0 8न तज और कलक होन स
कस सीताजी क मख क बराबर कर सकता
Aफर यह घटता-बढ़ता रहता ह
और 3वरहKणय को ह दख दन वाला
राह सिध म0 पा fस लता इस
कमल का बर चकव को शोक दन वाला
ह च gtमा बहत अवगण ह तझम0
पर कोई अवगण नह ह सीताजी म0
सो अनltचत कम करन का दोष लगगा
जानकजी क मख क तझ उपमा दन म0
रात हई तब म8न क आ6ा पा
3वाम Aकया दोन भाइय न
रात बीतन पर जाग ीरघनाथ
और भा~ को दख लग कहन
ह तात दखो अ4णोदय हो गया
सम त ससार को सख दन वाला
तब लu मणजी हाथ जोड़कर बोल
आप स ह द8नया म0 ह उजाला
- 91 -
िजस Bकार सयदय होन स
सब तार फक पड़ गय
वस ह आपका आना सनकर
सब राजा बलहन हो गय
तारा4पी सब राजाओ का Bकाश
अ धकार4पी धनष तोड़ नह सकता
यह महान अ धकार4पी धनष लAकन
आपक Bकाश को सह नह सकता
कमल चकव भyर0 और पी जस
ह3ष त होत रा( का अ त होन पर
वस ह ह Bभो आपक सब भCत
सखी हग आप _वारा धनष टटन पर
Bभात हई सय उदय हआ
वभावत ह अ धकार नa ट हो गया
8छप गय सब तार तरत ह
ससार म0 तज का Bकाश हो गया
ह रघनाथजी सय न उदय क बहान
सब राजाओ पर Aकया आपका Bताप Bकट
आपक भजाबल क मGहमा Gदखलान को
हई ह यह धनष तोड़न क प+8त Bकट
8न9 यकमr स 8नव9त हो नान कर
ग4जी क चरण म0 जाकर सर नवाया
उधर जनकजी न शतान दजी को भजकर
दोन भाइय को बलवान का स दश भजवाया
तब 3व- वामजी न कहा ह तात
चलो जनकजी न बला भजा ह
दखना चाGहय सीताजी का वयवर
दख0 ई- वर Aकसको बड़ाई दता ह
लu मणजी न कहा ह नाथ
आपक कपा होगी िजसपर
वह होगा बड़ाई का पा
य पायगा धनष तोड़ कर
Bस न हय सब म8न यह सन कर
सभी न ह3ष त हो आशीवा द Gदया
Aफर म8नव द सGहत कपाल राम न
धनष य6शाला क ओर B थान Aकया
दोन भाई रगभम म0 आय ह
यह खबर सनी जब नगरवासय न
बालक जवान बढ़ ी-प4ष सभी
चल Gदय सब छोड़कर उ ह0 दखन
मासपारायण आठवॉ वाम
नवानपारायण दसरा वाम
- 92 -
बड़ी भीड़ इकी हई दख जनकजी न
सबको यथायोY य आसन Gदलवाया
तभी राम और लu मण वहा आ गय
मडप म0 मनोहरता का वातावरण छाया
राजाओ क समाज म0 दोन भाई
तार क बीच सज च gtमा स
िजनक जसी भावना थी मन म0
Bभ क म8त उ ह0 Gदखी वस
रणधीर ीराम को दख रह ऐसा
मान साात वीररस हो उनक सामन
लAकन कGटल राजा डर गय ऐस
मानो भयानक म8त दखी हो उ हन
छल स जो रास बठ थ वहा
दखा Bभ को B9 य काल सा उ हन
और मनa य क भषण4प म0 दखा
दोन भाइय को सार नगरवासय न
िया ह3ष त हो अपनी-अपनी 4ltच अनसार
साात गार-रस 4प म0 दख रह उ ह0
बहत स हाथ-पर और सर वाल
3वराट 4प म0 उ ह0 दखा 3व_वान न
जनकजी क कटD बी दख रह ऐस
जस सग-सबधी 3Bय लगत
जनक समत सभी रा8नय को व
अपन बJ च क समान लग रह
शा त श+ सम और वत Bकाश
परम त99व दख रह योltगय को वो
सब सख क दनवाल इa ट क समान
दखा हVरभCत न दोन भाइय को
सीताजी दख रह िजस भाव स उ ह0
वह नह और सख कहा नह जाता
वय सीताजी भी कह नह सकती
Aफर कोई क3व कस कह गाथा
वभाव स ह दोन कोसलाधीष कमार
राजसमाज म0 ऐस सशोभत हो रह
करोड़ कामदव क उपमा भी तJ छ
यो ltगय क मन को भी हर रह
स दर ltचतवन वण न स पर
कान म0 कb डल झमत हए
स दर ठोड़ी और अधर कोमल वाणी
चौड़ ललाट पर 8तलक चमकत हए
शख सी स दर तीन रखाए गल म0
बता रह (भवन क स दरता क सीमा
वषभ स कध सह क सी ऐड़
3वशाल भजाए ह बल क सीमा
कमर म0 तरकस हाथ म0 बाण
कध पर धनष और जनऊ सशोभत
नख स शखा तक सब अग स दर
महान शोभा को कर रह Bदश त
- 93 -
नगरवासी एकटक दखत ह रह गय
भल गय सब अपनी सध-बध को
तब जनकजी न म8न को य6शाला Gदखलायी
सब आ- चय चAकत हो दख रह कमार को
अपनी-अपनी ओर ह मख Aकय दखा
सब लोग न Bभ ीराम को
लAकन इसका कछ भी 3वशष रह य
पता भी लग सका न Aकसी को
य6शाला को दख म8न बोल राजा स
रगभम क रचना ह बड़ी स दर
बड़ी Bस नता और सख मला राजा को
महाम8न स रचना क Bशसा सन कर
सब मच स अltधक एक मच
स दर उH जवल और 3वशाल था
म8न सGहत दोन भाइय को
वय राजा न उस पर बठाया
Bभ को दख ऐस हताश हय सब राजा
जस पण च gt क सD मख होत तार
8न सदह ीराम ह तोड़0ग धनष को
मन म0 मान बठ व सार क सार
उनक 4प को दखकर ह सब राजा
मान बठ थ अपन Uदय म0
चाह ीराम धनष तोड़ न तोड़0
सीताजी जयमाला डाल0गी उ ह क गल म0
कछ कहन लग ह भाई ऐसा 3वचारकर
चल चलो अपन-अपन घर को
कछ अ3ववक स अध जो हो रह थ
उनक बात0 सनकर बहत हस वो
व बोल कGठन ह यह 3ववाह होना
सहज ह न जान दग0 हम जानक को
(बना धनष तोड़ कौन याह कर सकता
सीता क लय जीत लग0 हम काल को
यह घमb ड क बात सनकर कछ राजा
जो धमा 9 मा और सयान थ म कराय
बोल दशरथ-प को कौन जीत सकता
ल जाऐग सीताजी को याह कर य
गाल बजाकर n यथ ह मत मरो
सीताजी को साात जगH जननी जान लो
और ीराम का परम-3पता 3वचारकर
न भरकर उनक मनोहर छ3व दख लो
शवजी भी िज ह0 Uदय म0 बसाय रखत
व दोन भाई आज ह सामन तD हार
हमन तो आज ज म सफल कर लया
अब तम वह करो जो मन भाय तD हार0
ऐसा कहकर हVरभCत भल राजा
मY न हो दखन लग राम को
मनa य क तो बात ह C या ह
दवता भी दखन लग राम को
- 94 -
तब सअवसर जानकर जनकजी न
बला भजा जनकनिदनी सीताजी को
सब चतर और स दर सKखया
तरत लवा ला~ वहा उन को
4प और गण क खान जानकजी क
शोभा का वण न नह हो सकता
तJ छ लगती ह उनक लय सब उपमाय0
C यAक मा8यक जगत क ह वो उपमा
िजसस तलना क जा सक उनक
जगत म0 ऐसी ी ह कहा
दवताओ क िया भी सीताजी का
C या मकाबला कर सकती ह भला
सर वतीजी ह बहत अltधक बोलनवाल
और आध ह अगवाल ह पाव तीजी
र8त प8त अनग होन स दखी रहती ह
और समgt स उपजी ह लu मीजी
3वष और मm दोन भाई ह उनक
C यAक व भी उपज उसी समgt स
िजस मथन हत क- यप बन भगवान
म दराचल को पीठ पर रख सक0 िजसस
महान 3वषधर वासAक नाग को
र सी बना समgt को मथा गया
जो लu मीजी कहलाती ह अनपम स दर
C या-C या उनक लय न Aकया गया
ऐस कGठन साधन स Bकट लu मीजी
कस पा सकती ीजानक क समता
जग क Aकस ब त या Bाणी क
भला द जा सकती सीताजी को उपमा
छ3व4पी अमत का समgt हो यGद
िजसम0 परम 4पमय कJ छप हो
शोभा4प र सी गार रस4पी पव त
िजस वय कामदव हाथ स मथत हो
यGद इस Bकार का सयोग हो कभी
िजसस सदर सख-मल लu मीजी Bकट0
तब कह बड़ सकोच क साथ
क3वजन सीताजी समान कह0ग उ ह0
िजस स दरता क समgt को कामदव मथगा
वह स दरता भी Bाकत लौAकक होगी
C यAक कामदव भी ह Bक8त का 3वकार
उन _वारा Bकट लu मी भी लौAकक होगी
जानकजी का 3वfह ह परमGदn य
लu मीजी का अBाकत 4प भी ह यह
उपमा द जाती ह भ न व त क साथ
पर व दोन तो व तत भ न नह
मनोहर वाणी स गाती ह~ गीत
सीताजी को ल साथ चल सKखया
सभी ी-प4ष मोGहत हो गय
जब सीताजी न रगभम म0 कदम रC खा
- 95 -
ह3ष त हो दवता ओ न नगाड़ बजाय
और अ] सराए गान लगी पa प बरसाकर
सीताजी क करकमल म0 जयमाला ह
सब राजा दखन लग चAकत होकर
दखन लगी ीराम को चAकत हो सीताजी
तब सब राजा मोह क वश हो गय
दोन भाइय को म8न क पास बठा दख
उनक न वह पर िथर हो गय
पर ग4जन को दख सकचा गयी व
और सKखय क ओर वो लगी दखन
ीराम का 4प और सीताजी क छ3व दख
सब ी-प4ष लग अपन मन म0 सोचन
ह 3वधाता हर ल जनकजी क मढ़ता
और हमार सी स दर ब3+ द उ ह0
िजसस राजा अपना Bण छोड़कर
सीताजी का 3ववाह ीराम स कर द0
अJ छj लगती ह यह बात सभी को
सो सारा ससार कहगा उ ह0 भला
सब मY न हो रह इस लालसा म0
जानकजी क योY य ह यह वर सावला
तब राजा जनक न भाट को बलाया
व 3व4ददावल गात हय चल आय
राजा न कहा मरा Bण कहो सबस
तो भाट चल मन म0 आन द मनाय
भाट न कहा ह a ठ राजाओ
राजाओ क भजाओ का बल ह च gtमा
भार कठोर शवजी का धनष राह सा
आसान नह ह उस धनष को उठाना
रावण और बाणासर स यो+ा भी
इस दख चलत बन चपक स
जो तोड़गा आज इस कठोर धनष को
जानकजी 3ववाह कर0गी उसी स
ललचा उठ सब राजा Bण सनकर
वीरता क अभमानी मन म0 तमतमाय
इa टदव को सर नवा चल अकड़कर
पर व धनष को उठा भी न पाय
AकटAकटाकर पकड़त ह धनष को व
जब नह उठता चल जात लजाकर
मान और अltधक भार होता जाता ह
वह शव-धनष वीर का बल पाकर
तब दस सह राजा एक साथ
Bयास करन लग धनष उठान का
पर सती ी क मन क तरह
वह धनष Aकसी स नह डगता
उपहास योY य हो गय वो सब ऐस
जस वराY य (बना स यासी हो जाता
Uदय स हारकर ीहन हो गय व
Aकसी स कछ करा नह जाता
- 96 -
अकला उठ राजा जनक यह दख
बोल उठ =ोध स सन वचन
बड़-बड़ राजा और रणबीर आय
धनष तोड़न को सनकर मरा Bण
पर जो धनष तोड़ द ऐसा n यिCत
लगता ह EFमा न बनाया ह नह
मनोहर क या 3वजय और स दर क8त
पान वाला EFमा न रचा ह नह
Aकसको अJ छा लगता नह यह लाभ
पर Aकसी न भी धनष नह चढ़ाया
उस चढ़ाना और तोड़ना तो रहा दर
8तल भर भी कोई Gहला न पाया
कोई वीरता का अभमानी नाराज न हो
प| वी वीर स हो गयी ह खाल
अब आप जाइय अपन-अपन घर को
EFमा न सीता का 3ववाह लखा ह नह
पb य-नाश होगा Bण छोड़न स
सो कवार ह रहगी मर क या
जो जानता प| वी वीर स श य ह
Bण कर उपहास का पा न बनता
सब दखी हय य वचन सनकर
पर लu मणजी य वचन सह न सक
भyह0 टढ़ हो गयी ओठ फड़कन लग
न =ोध स लाल हो गय
बाण स चभ जनकजी क वचन
ीराम-चरण म0 सर नवा बोल
रघवशय म0 कोई भी जहा होता ह
वहा ऐस वचन सोचकर बोल0
ीरामजी को यहा बठ जानत हय भी
जस अनltचत वचन कह ह जनकजी न
कोई भी रघवशी इ ह0 सह नह सकता
और वह भी ीरामजी क उपिथ8त म0
ह सय कल4पी कमल क सय स8नय
वभावत ह कहता ह म (बना अभमान
यGद आपक आ6ा पाऊ तो म
इस EFमाb ड को उठा ल ग0द समान
फोड़ डाल कJ च घड़ सा उस
मल सा तोड़ डाल सम4 पव त को
यह पराना धनष तो C या चीच ह
यGद आपक आ6ा पाऊ कछ करन को
चढ़ाकर धनष को कमल क डडी सा
दौड़ा जाऊ सौ योजन उस लकर
ह नाथ आपक Bताप क बल स
रख द ककरम9त सा धनष तोड़कर
और यGद म ऐसा न क तो
ह नाथ मझ ह ीचरण क शपथ
Aफर कभी हाथ म0 भी न लगा
ना ह धनष म ना ह तरकस
- 97 -
=ोध भर वचन लu मण क सनकर
धरती डोल GदY गज काप गय
डर सब राजा सीताजी हई ह3ष त
और जनकजी सकचाकर रह गय
Bस न हय 3व- वामजी और राम
सब म8न Bस न हो लग पलकन
मना Aकया इशार स लu मण को
और बठा लया ीराम न उ ह0
शभ समय जान Bममयी वाणी स
तब 3व- वामजी बोल ह राम उठो
शवजी का धनष तोड़कर ह तात
महाराज जनक का स ताप हरो
शीश नवा तब ीग4 चरण म0
सहज वभाव उठ खड़ हए राम
मन म0 न हष न कोई 3वषाद
यवा-सह को भी लजा रह राम
रघनाथ4पी बालसय क उदय होत ह
समा] त हो गयी राजाओ क आशा
म8न और दवता सब ह3ष त होकर
करन लग उन पर फल क वषा
Bम सGहत ग4 चरण क व दना कर
म8नय स आ6ा ल ीराम न
Aफर चल व उस मच क ओर
मन ह मन Bाथ ना क लोग न
कहा यGद कछ भी पb य ह हमार
तो ीराम तोड़ डाल0 इस धनष को
उधर सीताजी क माता कहन लगी
C य कोई नह समझाता म8न को
य राम तो अभी बालक ह
अJ छा नह इनक लय ऐसा हठ
रावण और बाणासर िजस छ न सक
य शव-धनष ह Aकतना 3वकट
सब राजा हार गय घमड कर क
C या तोड़ पाएग उस य सकमार
C या हस क बJ च भी कभी
उठा सकत ह म दराचल पहाड़
और कोई कछ समझाकर कह या नह
पर राजा तो ह समझदार और 6ानी
लगता ह उनका सयानापन भी गया
3वधाता क ग8त नह जाती ह जानी
चप हो गयी जब यह कहकर रानी
एक चतर सखी न कहा समझाकर उ ह0
ltगनना नह चाGहय तजवान को छोटा
H य समgt सोख Gदया अग 9 य म8न न
छोटा लगता ह सय मb डल दखन म0
पर हर लता अ धकार (लोक का
िजसक वश म0 सब दवता हो जात
वह म भी होता ह अ8त छोटा
- 98 -
महान बल वाल गजराज को भी
छोटा सा अकश कर लता वश म0
अव- य ह तोड़0ग धनष को ीराम
कछ सदह न लाइय अपन मन म0
3व- वास हो गया सखी क वचन सन
वा9 स य Bम उमड़ आया मन म0
पर भयभीत Uदय स सब दवताओ क
Bाथ ना कर रह सीताजी मन म0
n याकल हो मना रह मन म0
ह भवानी-शकर Bस न होइय
मझ पर नह कर अपन धनष क
भारपन को ह नाथ हर लिजय
न भर शोभा दख राम क
Aफर 3पता का Bण कर मरण
मन ह मन व कहन लगी
बहत कठोर Aकया 3पता न Bण
कहा यह वd स भी कठोर धनष
कहा य कोमल शरर Aकशोर - यामस दर
बहत ध हो उठा मन उनका
रह न सक व धीरज धर कर
सरस क फल क कण स भी
भला कह छदा जाता ह हरा
लगता ह सार सभा बावल हो गयी
ह शव-धनष बस तरा ह ह आसरा
तम अपनी जड़ता लोग पर डाल
ीराम क अन4प हो जाओ ह क
इस तरह मन म0 स ताप हो रहा
हर लव बीत रहा समान यग क
ीराम और Aफर प| वी क ओर दख
ऐस शोभत हो रह चचल न उनक
मान च gtमb डल4पी डोल म0 कामदव क
दो मछलय मचल रह खल-खल क
सीताजी क वाणी4पी xमर को
रोक रC खा ह उनक मख4पी कमल न
Bकटती नह लाज4पी रा( को दख
न का जल 4क रहा कोय म0
अपनी n याकलता दख सकचा गयी सीजाजी
पर धीरज धर ल आयी 3व- वास
यGद सब तरह मरा Bण सJ चा ह
और यGद सJ चा ह मरा अनराग
तो सबक Uदय-वासी भगवान
बनाय0ग दासी मझ ीरघनाथ क
स9 य नह िजसका होता िजस पर
मलता उसको कोई स दह नह
तब दख ीराम क ओर सीता न
ठान लया व होकर रह0गी उनक
जान गय कपा8नधान ीराम भी सब
और धनष क ओर उ होन0 lिaट क
- 99 -
उधर जब लu मणजी न दखा Aक
धनष क ओर ताका ह राम न
तो EFमाb ड को अपन चरण स दबा
पलAकत हो व लग य कहन
ह GदY गज कJ छप शष और वाराह
सावधान हो जाओ मर आ6ा सनकर
तोड़ना चाहत ह धनष को ीराम
थाम0 रहो प| वी को धीरज धरकर
जब ीराम आय धनष क पास
लोग न दवताओ और पb य को मनाया
दखा उ होन0 सब लोग क ओर
तो उ ह0 ltच-लKखत सा पाया
बहत ह n याकल दखा सीताजी को उ होन0
ण-ण बीत रहा उनका क प सा
C या करगा अमत का तालाब भी
(बना पानी जब मर जाए ] यासा
खत सखन पर Aकस काम क वषा
C या पछताना बीत गया जब अवसर
ऐसा सोचा Bणाम Aकया ग4 को
और धनष उठा लया हाथ बढ़ाकर
(बजल सा चमककर वह धनष
हो गया आकाश म0 मb डल जसा
लत चढ़ात और खीचत धनष को
ीरामच gtजी को Aकसी न न दखा
इतनी फत स हआ यह सब
Aक Aकसी को कछ पता न लगा
तभी ीरामजी न तोड़ डाला धनष
(लोक म0 कठोर शोर भर गया
3वचलत हो गय सय क घोड़
धरती डोलन लगी GदY गज लग ltचघाड़न
कलमला उठ शष वाराह और कJ छप
सर असर और म8न लग 3वचारन
तलसीदास कहत ह सबको 8न- चय हो गया
Aक तोड़ डाला धनष को ीराम न
बोलन लग व सब ीराम क जय
आन द भर गया सबक मन म0
परशरामजी क गव क ग4ता
दवता और a ठ म8नय क कातरता
सीताजी क सोच जनकजी का प- चाताप
और दावानल रा8नय क दा4ण दख का
शवधनष4पी जहाज पर थ जो चढ़
डब गय ीरामजी क बल4पी समgt म0
धनष क दोन टकड़ प| वी पर दख
सखी हो गय सब लोग पल म0
सव जय-जयकार हो रह राम क
रग-(बरग फल बरस रह नभ स
भाट और मागध 3व4दावल गा रह
बज रह सब ओर मगल-बाज
- 100 -
सखत धान पर H य पानी पड़ा
ह3ष त हो गयी सब रा8नया ऐस
तरत-तरत थक न H य थाह पा ल
जनकजी सोच 9 यागकर सखी हऐ ऐस
उधर सब राजा ऐस ीहन हो गय
जस दपक शोभाहन हो गय Gदन म0
चातक न पा लया हो वाती-जल
ऐस आनिदत हो रह सीताजी मन म0
तब शतान दजी न जब द आ6ा
चल सीताजी तब ीराम क ओर
लu मणजी दख रह थ ीराम को ऐस
जस चकोर का बJ चा च gtमा क ओर
शोभा अपार चाल हसनी क सी
चतर सKखय क सग चल सीता
उनक करकमल म0 स दर जयमाला ह
3व- व3वजय क िजसम0 छायी शोभा
तन म0 सकोच मन म0 परम उ9 साह
उनका यह Bम जाना न Aकसी न
समीप जा शोभा दख ीराम क
सीताजी रह गयी H य लखी ltच म0
उनक यह दशा दख सखी न
कहा जयमाला पहनाओ ीराम को
यह सन सीताजी न उठायी माला
पर Bम 3ववश पाती ह खद को
ऐस सशोभत हो रह ह उनक हाथ
मान डडय सGहत दो कमल Kखल ह
और अ9 यत BमसGहत मान डरत-डरत
व च gtमा को जयमाला द रह0 ह
ीराम क गल म0 जयमाला दख
ह3ष त हो फल बरसान लग दवता
और सय को दख कमद समह स
सम त राजा गण गय सकचा
प| वी पाताल और वग तीन लोक म0
धनष टटन क हो रह चचा
लटा Gदया नगरवासय न सब कछ
अपन लय Aकसी न कछ न रC खा
स दर और गार रस मल गय ह
ऐस सशोभत हो रह सीता-राम क जोड़ी
कोई कस कर सकता ह वण न
िजतनी भी Bशसा क जाए थोड़ी
उधर वामी क चरण छन को
सKखया कह रह पर सीताजी डर रह
मरण कर अह या क ग8त का
अपन हाथ स चरण नह छ रह
जान कर सीताजी क अलौAकक नी8त को
रघकलमKण ीरामच gtजी मन म0 हस
उधर कछ दa ट कपत और मढ़ राजा
सीताजी को दखकर ललचा उठ
- 101 -
कहन लग व हमार जीत-जी
कौन याह ल जा सकता सीता को
दोन राजकमार क तो बात ह C या ह
राजा जनक सGहत य+ म0 उ ह0 जीत लो
य बात सन कछ साध राजा बोल
तD हार नाक कट गयी धनष क साथ
अपनी ईa या घमड और =ोध क कारण
C य मरना चाहत हो लu मणजी क हाथ
n यथ ह तD हारा लालच ह राजाओ
8नa फल हो रहगी तD हार यह चa टा
अपना भला चाहत हो तो दर ह रहो
लu मणजी क =ो धिYन का बनो न पतगा
कोलाहल सन शAकत हो गयी सीताजी
न जान 3वधाता C या ह करन वाल
उधर लu मणजी भर उठ =ोध स
पर तभी वहा परशरामजी आ पधार
सकचा गय सब राजा उ ह0 दखकर
मान बटर न दख लया हो बाज
गौर शरर पर फब रह ह 3वभ8त
और (पb ड ललाट पर रहा साज
स दर मख लाल हो आया =ोध स
भौह0 टढ़ और आख0 रोष स भर
हाथ म0 धनष बाण काध पर फरसा
शा त वष पर बहत कGठन ह करनी
भय स n याकल हो सब राजा
दb डवत Bणाम करन लग म8न को
Aफर आकर सर नवाया जनकजी न
और Bणाम कराया बलाकर सीताजी को
आशीवा द Gदया सीताजी को परशरामजी न
तरत वापस लवा ल चल उ ह0 सKखया
तब 3व- वामजी न दोन भाइय को मलाया
िजनका 4प दख चAकत रह गयी अKखया
Aफर सब दखकर जानत हऐ भी
अनजान बन पछा जनकजी स उ होन0
कहो यह भार भीड़ कसी ह
और =ोध भरन लगा उनक तन म0
कह सनाया सब समाचार जनक न
सनकर उ होन0 दखा धनष क ओर
धनष क टकड़ पड़ थ प| वी पर
उ ह0 दखत ह बोल व वचन कठोर
ह मख जनक बता Aकसन तोड़ा धनष
उस शी Gदखा वरना 3वनाश कर दगा
आज म जहा तक तरा राH य ह
वहा तक क सार प| वी उलट दगा
भय वश कछ उ9तर नह दत जनक
बड़ा भय समाया सबक Uदय म0
सीताजी क माता पछता रह ह हाय
बनी-बनायी बात (बगाड़ द 3वधाता न
- 102 -
परशरामजी का वभाव सनकर सीताजी को
आधा ण भी लगा क प क समान
तब (बना हष या 3वशाद रामच gtजी बोल
सीताजी और अ य को भयभीत जान
ह नाथ शवजी का धनष तोड़न वाला
होगा कोई एक आपका ह दास
C या आ6ा ह C य नह कहत मझस
आपक सD मख खड़ा ह आपका यह दास
यह सनकर =ोधी म8न Vरसाकर बोल
सवक वह जो सवा का कर काम
सनो िजसन यह शव-धनष तोड़ा ह
मरा श ह वह सह बाह क समान
अलग हो जाय वह यह समाज छोड़
वरना सभी राजा जायग0 मार
उनक वचन सन मसकराय लu मणजी
और उनक हसी उड़ात स वचन उचार
ह गोसा~ लड़कपन म0 हमन
तोड़ डाल थी धनGहया बहत-सी
पर आपन कभी =ोध न Aकया
इस धनष म0 C या बात ह ऐसी
यह सनकर भगवश क धवजा व4प
परशरामजी कहन लग क3पत होकर
C या यह धनष धनह क समान ह
तझ होश नह काल क वश होकर
लu मणजी न कहा ह दव स8नय
हमार जान म0 ह सब धनष एक स
परान धनष को तोड़न म0 C या हा8न-लाभ
ीराम न तो दखा नया समझ इस
यह तो बस छत ह टट गया
इसम0 कोई दोष नह ीराम का
तब परशराम फरस को दखकर बोल
अर दa ट तन मरा वभाव नह सना
मारता नह तझ म बालक जान
पर C या त मझ 8नरा म8न जानता
बालEFमचार और अ9 यत =ोधी मझ
(यकल का श सारा 3व- व जानता
राजाओ स रGहत कर प| वी को
Aकतनी बार मन0 EाFमण को द डाला
ह राजकमार दख मर इस फरस को
म ह ह सह बाह क भजाऐ काटन वाला
लu मणजी हसकर कोमल वाणी स बोल
म8न वय को बड़ा यो+ा समझत
बार-बार क हाड़ी Gदखात ह मझ
फक स पहाड़ उड़ाना ह चाहत
मासपारायण नवा वाम
- 103 -
यहा कोई कD हड़ क ब8तया नह ह
जो तज नी उगल दखत ह मर जाती
कठार और धनष-बाण दखकर ह मन
य बात0 कछ अभमान सGहत कह थी
भगवशी समझ और य6ोपवीत दखकर
सह लता ह म बात आपक
वरना दवता EाFमण भCत और गौ पर
हमार कल म0 वीरता Gदखायी नह जाती
पाप लगता ह इ ह0 मारन पर
और अपक8त होती इनस हारन पर
सो आपक तो पर ह पड़ना चाGहय
आपक वचन तो भार ह वd पर
धनष-बाण और कठार तो आप
करत ह य ह n यथ म0 धारण
मा किजय ह धीर महाम8न
कछ अनltचत कहा जो इनक कारण
परशरामजी =ोध सGहत गD भीर वाणी स बोल
बड़ा कब3+ और कGटल ह य बालक
उmb ड मख 8नडर और कल कलक ह
बन रहा ह अपन कल का घातक
Aफर दोष न दना कहता ह पकारकर
काल क भ0ट चढ़गा यह पल म0
यGद इस तम चाहत हो बचाना तो
हमारा बल और =ोध बतला दो इस
लu मणजी बोल ह म8न आपका सयश
आपक रहत भला कौन सकता बतला
अपन ह मह स आपन अपनी करनी
अनक Bकार स हम0 द ह बतला
इतन पर भी यGद सतोष न हो
तो Aफर और कछ कह डालय
गाल दत आप शोभा नह पात
=ोध रोककर असFय दख मत सGहय
शरवीर तो य+ म0 करनी करत
खद कहकर अपन को नह जनात
श को य+ म0 सD मख पाकर
कायर ह अपनी गाथाय0 सनात
लu मणजी क कठोर वचन सनत ह
परशरामजी न फरसा ल लया हाथ म0
Aफर बोल यह बालक मारन ह योY य ह
अब लोग मझ कोई दोष न द0
तब 3व- वामजी बोल मा किजय
बालक क गण-दोष साध नह ltगनत
परशरामजी बोल तD हार शील क ह कारण
अब तक Bाण बच0 ह इसक
उधर 3व- वामजी न Uदय म0 सोचा
म8न को सझ रहा ह हरा-ह-हरा
ीराम-लu मण को C या समझ रह0 ह
इनका Bभाव नह जानत व जरा
- 104 -
लu मणजी बोल आपका शील ह म8न
कौन नह जानता इस ससार भर म0
माता-3पता स तो उऋण हो गय आप
ग4 का ऋण बचा आपक जी म0
वह मान हमार ह म9 थ काढ़ा था
बहत Gदन हए सो परा कर लिजय
फरसा उठा लया परशरामजी न यह सन
सार सभा कहन लगी ऐसा मत Aकिजय
लu मणजी बोल ह राजाओ क श
म EाFमण समझ तरह द रहा आपको
ह EाFमण दवता आप घर म0 ह बड़ ह
रणधीर बलवान वीर नह मल आपको
आह8त क समान लu मणजी क उ9तर स
परशराम क =ोधािYन बढ़ती दखकर
ीराम जल क समान शीतल वचन बोल
ह नाथ कपा किजय बालक पर
यGद यह आपका कछ भी Bभाव जानता
तो C या यह बसमझ आपक बराबर करता
बालक यGद कछ चपलता भी करत ह
तो आन द ह मनात ह ग4 माता-3पता
कछ ठड पड़ परशरामजी यह सनकर
पर लu मणजी कछ कह Aफर हस Gदय
ह राम यह तरा भाई बड़ा पापी ह
यह कह परशरामजी =ोध स भर गय
तब लu मणजी Aफर हसकर बोल
ह म8न =ोध ह मल पाप का
=ोधवश मनa य C या नह कर दता
और अGहत करता ह वह सबका
ह म8नराज यह टटा हआ धनष
जड़ नह जाएगा =ोध करन स
यGद यह आपको अ9 यत 3Bय हो
तो जड़वाया जाय Aकसी कशल कारगर स
थर-थर काप रह सब ी-पष
सोच रह छोटा कमार ह खोटा
8नभ य वाणी सन-सनकर म8न का
=ोध स बल ीणतर होता
तब ीरामच gtजी पर एहसान जनाकर
म8न बोल तरा भाई समझ बचा रहा
मन का मला शरर स स दर
H य सोन का घड़ा हो 3वष भरा
यह सनकर Aफर हस लuमणजी
तो ीरामजी न दखा 8तरछj नज़र स
िजसस सकचा 3वपरत बोलना छोड़कर
लu मणजी चल गय पास ग4 क
Aफर हाथ जोड़ ीराम न कहा
ह नाथ आप तो ह वभाव स सजान
बालक को सतजन दोष नह दत
उसक बात पर मत दिजय कान
- 105 -
Aफर उसन तो कछ काम न (बगाड़ा
ह नाथ अपराधी तो म ह आपका
सो कपा =ोध वध और ब धन
जो करना हो किजय इस दास का
म8न बोल कस जाय यह =ोध
ताक रहा तरा भाई अब भी टढ़ा
इसक गद न पर जो कठार न चलाया
तो =ोध करक Aकया ह C या
िजस कठार क घोर करनी सनकर
राजाओ क िय क गभ ltगर जात
इस श राजप को जी3वत दख रहा
इसी फरस क हाथ म0 रहत
=ोध स जल रह ह छाती
पर कठार किbठत हाथ नह चलता
3वधाता मर 3वपरत हो गया
वरना मर वभाव म0 नह दया
यह सनकर लu मणजी न कहा सर नवा
आपक वचन मान फल झड़ रह
यGद कपा करन स तन जलता ह
तो Aफर =ोध करन पर कौन कह
परशरामजी न कहा ह जनक दख
यह बालक मर हाथ मरना ह चाहता
दखन म0 छोटा पर खोटा ह बहत
मर सामन स इस C य नह हटाता
Aफर Uदय म0 अ9 यत =ोध भर
ीराम स बोल म8न परशराम
अर शठ शवजी का धनष तोड़कर
त हम0 ह सखाता ह 6ान
बोल रहा ह 8नभ य हो कट वचन
तरा यह भाई तर ह सD म8त स
त छल स पर करता ह 3वनय
य+ कर या राम कहाना छोड़ द
अर शवgtोह मझस य+ कर
नह तो भाई सGहत मार डालगा तझ
य कठार उठाय बक रह परशराम
और ीराम सर झकाय सन रह
मन ह मन सोच रह ीराम
दोष लu मण का और =ोध मझ पर
कह-कह सीधपन म0 भी होता दोष
व दना करत ह लोग टढ़ा जानकर
तब ीराम न कहा ह मनी- वर
आपका कठार और यह सर ह मरा
िजस Bकार आपका =ोध जाय ह वामी
वह किजय जानकर मझ अपना चरा
कसा य+ वामी और सवक म0
ह EाFमणa ठ 9 याग किजय =ोध का
आपका वीर का सा वष दखकर ह
बालक न कछ कह डाला था
- 106 -
नाम तो जानता था वह आपका
पर पहचाना नह उसन आपको
अपन वश रघवश क वाभावानसार ह
उसन कछ कहा-सना आपको
यGद आत आप म8न क तरह
तो आपक चरण-धल सर पर रखता
अनजान क भल मा कर दिजय
EाFमण क Uदय म0 होनी चाGहय दया
ह नाथ कसी बराबर हमार-आपक
कGहय कहा चरण और कहा म तक
कहा मरा छोटा सा राम मा नाम
कहा आपका बड़ा नाम परश सGहत
ह दव हमारा बस एक गण-धनष
और परम-प3व नौ गण ह आपक
हम तो सब तरह आपस हार ह
मा किजय सब अपराध हमार
बार-बार म8न और 3वBवर कहन पर
=ोltधत हो व बोल त भी ह टढा
त मझ समझता ह बस 8नरा EाFमण
अभी xम दर Aकय दता ह तरा
धनष को वा बाण को आह8त
और भयकर अिYन जान मर =ोध को
चतरltगणी सनाए स दर समधाए
और बल क पश जान राजाओ को
इसी फरस स काटकर द बल
ऐस करोड़ो जपयCत रणय6 Aकय मन
मरा Bभाव तझ मालम नह ह
इसी स अब तक 8नरादर Aकया तन
शव धनष को तोड़ डाला तन
इसस तरा घमड बहत बढ़ गया
ऐसा अहकार समाया तर मन म0
मानो सारा ससार जीतकर हो खड़ा _____________________________________ नौ गण- शम दम तप शौच मा सरलता ान वान और आितकता
ीराम बोल 3वचारकर बोलय ह म8न
मर भल छोट बडा =ोध आपका
छत ह टट गया पराना धनष
अभमान क4 म Aकस बात का
यGद सचमच EाFमण कह करत ह 8नरादर
तो ह भगनाथ स8नय यह सच
Aफर ससार म0 ऐसा कौन यो+ा ह
िजस डर क मार हम नवाय0 म तक
दवता द9 य या कोई भी हो यो+ा
हमार बराबर चाह हमस बलवान हो
लड़0ग सखपव क जो कोई भी ललकार
चाह सामन हमार वय काल हो
(य तन धर डर गया य+ म0
कलAकत Aकया अपन कल को उसन
वभावत कहता ह कल Bशसा को नह
काल स भी नह डरत रघवशी रण म0
- 107 -
ऐसी ह Bभता ह EाFमणवश क
जो आपस डरता सवथा 8नभ य हो जाता
सनकर उनक रह य स भर वचन
खल गया परशरामजी क ब3+ का पदा
व बोल 3वa ण-धनष हाथ म0 लकर
ह लu मीप8त दर किजय मरा xम
जब व दन लग हाथ म0 धनष
वत चला गया धनष (बना पVरम
बड़ा आ- चय हआ उनक मन म0
और जाना उ होन0 ीराम का Bभाव
पलAकत और Bफिलत हो गया तन
Uदय म0 उमड़ आया Bम-भाव
बहत त8त-3वनती कर Bभ क
कहन लग आपक जय हो जय हो
ह मा क म8त बल क धाम
दोन भाइय क जय हो जय हो
Aफर चल Gदय तप हत वन को
दa ट राजा भी भाग गय डर कर
दवता ी-प4ष सब ह3ष त हो गय
मोहमय अ6ान स गय उबर
अपार Bस नता हई जनकजी को
मानो ज म का दVरgt पा गया खजाना
सीताजी 8नडर हो सखी हई ऐस
H य चकोर क क या दख च gtमा
Aफर 3व- वामजी को Bणाम कर बोल जनक
Bभ कपा स तोड़ा धनष ीराम न
दोन भाइय न मझ कताथ कर Gदया
अब जो उltचत हो सो कGहय हम0
म8न न कहा ह चतर नरश सनो
य तो 3ववाह धनष क अधीन था
मनa य और नाग सबको मालम ह
धनष क टटत ह 3ववाह हो गया
तथा3प तम जाकर ग4जन स पछकर
जसा कल का n यवहार हो सो करो
और जाकर अयोs या को दत भजो
महाराज दशरथ को 8नम(त करो
राजा जनक न Aकया वसा ह
तरत दत बलाकर कहा अयोs या जाय0
Aफर नगर क सब महाजन को बलाकर
कहा सार नगर को स दरता स सजाय0
Aफर कशल कारगर को बलाकर
अ8त स दर 3ववाह मb डप बनवाया
सोना मKण माKणक स बना मb डप
अ8त 3वltच सबक मन को भाया
ऐस सदर और उ9तम बदनवार बनाय
मान कामदव न सजाय ह फद
अनको मगल-कलश सदर s वाजा-पताका
स दर चवर और परद रग-(बरग
- 108 -
िजस मडप म0 दिहन हो ीजानक जी
कौन क3व उसका वण न कर सकता
4प और गण-सागर ीराम द हा ह
होनी ह चाGहय उसक (लोक म0 चचा
जनकजी क महल क शोभा ह जसी
वसी ह Gदखती ह B9 यक घर म0
C या वण न क जा सकती वहा क शोभा
साात लu मीजी जहा Bकट ी वश म0
उधर दत प3व पर अयोs या पहच
Bणाम कर महाराज को Gदया प
महाराज दशरथ क Uदय म0 राम-लu मण
और हाथ म0 उनक वह 8नमण-प
धीरज धरकर प(का पढ़ उ होन0
सार सभा ह3ष त हो उठj सनकर
भरत और शv न दोनो भाई भी
तरत वहा आ पहच समाचार सनकर
पलAकत हो उठ दोन भाई
सभा सखी हई भरतजी का Bम दखकर
राजा कशलम पछन लग प का
दत को अपन पास बठाकर
दत न कहा ह राजाओ क मकटमKण
और कोई नह ह ध य आपक समान
राम और लu मण जस िजनक प ह
(लोक क Bकाश व4प प4षसह समान
ह नाथ उनक लय आप पछत ह
महाराज जनक न उ ह0 कस पहचाना
C या सय को दखन क लय
चाGहय दपक का हाथ म0 लया जाना
सीताजी क वयवर म0 हऐ थ एक
राजा और यो+ा एक स एक बढ़कर
पर शव-धनष कोई हटा न सका
बठ गय थ सब थक-हार कर
सम4 तक उठा सकन वाला बाणासर
Uदय म0 हार पVर=मा कर चला गया
उठा लया था िजसन खल म0 ह कलास
वह रावण भी सभा म0 हार गया
जहा ऐस-ऐस यो+ा भी हार गय
वहा ीरामच gtजी न (बना Bयास क
शवजी क धनष को ऐस तोड़ डाला
जस हाथी कमल क डडी तोड़ द
=ोध म0 भरकर परशरामजी आय
बहत Bकार स सबको डराया-धमकाया
पर ीरामजी का बल और Bभाव दख
अपना धनष द वन को कदम बढ़ाया
ह राजन ीरामजी जस अतलनीय बल ह
वस ह तज8नधान ह लu मणजी भी
िजनक दखन मा स काप उठत थ राजा
H य सहशावक क ताकन स कापत हाथी
- 109 -
आपक दोन बालक को दखन क बाद
हमार lिaट पर कोई चढ़ता ह नह
Bम Bताप और वीर-रस म0 पगी हई
उनक वचन रचना सबको बहत 3Bय लगी
BममY न हो गय राजा सभा सGहत
और दन लग दत को 8नछावर
अपन हाथ स दत मदन लग कान
इस नी8त3व4+ जान और धम 3वचारकर
तब राजा न वसa ठजी को द प(का
दत को बला सार कथा सनवायी उ ह0
Bस न हो तब ग4 वसa ठजी न कहा
पb या9 मा क लय सख सब Gदशा म0
जस नGदया समgt क ओर जाती ह
य_य3प समgt को इसक कामना नह होती
वस ह सख-सD पि9त (बना बलाय ह
धमा 9 मा प4ष क पास वत आ जाती
ग4 EाFमण गाय और दवता क
जस तम हो सवा करन वाल
वसी ह कोस या दवी भी ह
तD हार समान नह कोई पb य वाल
राम-सरख प ह िजसक
चार बालक गण क सागर
सभी काल म0 ह क याण तD हारा
अत बारात सजाओ डका बजवाकर
ग4जी क आ6ा शरोधाय कर
राजा चल सर नवा महल म0
सार र8नवास को प(का बाचकर सनायी
सनकर सभी Bफिलत हई Bम म0
ऐस सशोभत हो रह ह रा8नया
जस मोरनी बादल क गरज सनकर
माताए अ9 यत मY न ह आन द म0
बड़ी-बGढया आशीवा द द रह Bस न होकर
उस प(का को Uदय स लगाकर
सब शीतल कर रह अपनी छाती को
बारबार वण न Aकया महाराज दशरथ न
ीराम-लu मण क क8त और करनी को
यह सब कपा ह म8न क
यह कह महाराज चल आय बाहर
EाFमण और भओ को दान Gदय
रा8नय न +ा और आदर स बलाकर
सब लोग न जब यह समाचार पाया
तब घर-घर होन लग बधाव
चौदह लोक म0 उ9 साह भर गया
लोग लग घर और गलया सजान
ीरामजी क मगलमयी प3व पर होन स
य_य3प अयोs या नगर ह सदा सहानी
तथा3प Bी8त-पर-Bी8त होन स
सदर मगलरचना स नगर हई और सहानी
- 110 -
s वजा पताका परद और चवर स
सारा बाजार अनठ ढग स सजाया
दब दह अत ह द मKणय मालाओ स
घर को सजाकर मगलमय बनाया
सहाltगन िया सोलह गार सजाकर
मगलगीत गा रह मनोहर वाणी स
कह EाFमण कर रह ह वद s व8न
उ9 साह उमड़ रहा सार महल स
Aफर भरतजी को बला कहा राजा न
घोड़-हाथी सजा चलो बारात म0
यह सनत ह भरतजी और लu मणजी
दोन भाई भर गय पलक म0
कसी गई जीन0 उ9तम घोड़ पर
व घोड़ िजनक चाल ह स दर
धरती पर ऐस पर रखत ह वो
जस रखत ह जलत लोह पर
छल-छबील और यवा राजकमार
चल सवार हो उन घोड़ पर
शर का वष धारण Aकय वीर
आ खड़ हए नगर क बाहर 8नकलकर
सय क रथ क शोभा छjन ल0
सारltथय न ऐस 3वलण रथ सजाय
अगKणत - यामवण घोड़ जोत गय उनम0
िज ह0 दख म8न भी मोGहत हो जाय0
चलत जल पर भी जमीन क तरह
वग स टाप पानी पर Gटकती नह
रथ पर चढ़-चढ़कर चल बारात
स दर शकन हो रह हर कह
a ठ हाltथय पर पड़ी सदर अबVरया
व मतवाल हाथी चल घट बजात
ऐस सशोभत हो रह थ व सब
जस सावन म0 बादल क समह गरजत
स दर पालAकया तामजान और रथ आGद
अनक Bकार क सवाVरया सजायी गयी
a ठ EाFमण क समह चढ़ उन पर
मान चल रह साात वद क छ द ह
मागध सत भाट और गण गानवाल
चल यथायोY य सवार पर चढ़कर
अगKणत खJ चर ऊट और बल
चल तरह-तरह क व तए लादकर
करोड़ कावर0 लकर चल कहार
अनक Bकार क व तए थी िजनम0
सबक Uदय म0 अपार हष ह
Bभ-दश न क लालसा Uदय म0
इतनी भार भीड़ हो रह ह
महाराज दशरथ क दरवाज पर
यGद वहा प9 थर भी फ0 का जाय
तो धल हो जाय 3पस कर
- 111 -
मनोहर गीत गा रह ह िया
कौन बखान कर सकता उनक आन द का
तभी सम जी दो रथ सजा लाय
उनक स दरता कौन वण न कर सकता
राजसी समान सजाया गया एक रथ पर
और दसरा तजपज और अ8त शोभायमान था
उस स दर रथ पर महाराज दशरथ न
हष पव क ग4 वसa ठजी को (बठलाया
दशरथजी सशोभत हो रह वसa ठजी क साथ
H य बह प8तजी क साथ इ gt ह
तब सबको सब Bकार सजा-धजा दख
ग4 क आ6ा पा चल Gदय वो
गरजन लग घोड़ और हाथी
सब तरफ बाज बजन लग
पदल सवक और 3वदषक गण
अपन-अपन करतब Gदखान लग
मदग और नगाड़ क श द पर
स दर राजकमार घोड़ को नचा रह
डगत नह व ताल क बधान स
चतर नट भी चAकत हो दख रह
वण न स पर बनी ह बारात
स दर शभदायक शकन हो रह
बायी ओर नीलकठ पी चारा ल रहा
सब शभ-मगल क सचना द रह
दाGहनी ओर कौआ Gदख रहा खत म0
नवल का दश न भी सब पा रह
शीतल म द सगltधत हवा चल रह
बालक को लय िया ला रह भर घड़
और भी बहत स शभ शकन हो रह
सभी सJ च होन को एक साथ हो गय
वय सगण EFम िजसक हो गय प
उसको सब मगल शकन सलभ हो गय
जहा ीराम-सीता स द हा-दिहन
और दशरथ जनकजी स सबधी ह
वहा सार शकन सJ च होन को
भला C य न वत ह Bकट ह
इस तरह बारात न Aकया B थान
और जनकजी न जाना दशरथजी का आना
नGदय पर पल स दर पड़ाव बनवा Gदय
वग का सा सख बारा8तय न जाना
सनकर जोर स बजत नगाड़
अगवानी करन वाल बारात लन चल
सोन क कलश भर शीतल पय
और भा8त ndashभा8त क पकवान ल चल
मासपारायण दसवा वाम
- 112 -
उ9तम फल तथा अ य अनक व तए
राजा न ह3ष त हो भ0ट क लय भजी
गहन कपड़ नाना Bकार क मKणय
घोड़ हाथी सवाVरया और पश-पी
मगल gtn य और अगKणत Bकार क चीज0
कावर म0 भर-भरकर चल कहार
बाराती और अगवानी करन वाल मल जब
आनिदत हो एक दसर को रह 8नहार
रखी गयी सब चीज0 दशरथजी क आग
और अ9 य त Bम स क 3वनती उनस
BमसGहत सब व तए ल दशरथजी न
Aफर याचक को उ होन0 द बk शीश0
तदन तर पजा आदर-सत कार और बड़ाई कर
अगवान जन जनवास ल चल उ ह0
3वलण व क पावड़ पड़ रह ह
अभमान छोड़ द कबर दखकर िज ह0
बड़ा स दर था वह जनवासा
सब Bकार क स3वधाय0 थी वहा
तब सीताजी न सब स3+या बलाकर
Bकट कर Gदखलायी अपनी कछ मGहमा
भजा उ ह0 महाराज दशरथजी क महमानी हत
सब स3+या चल द आ6ा सनकर
बाराती करन लग जनकजी क बड़ाई
जनवास म0 सब सख सलभ दखकर
सीताजी क मGहमा और Bम पहचान
बहत ह3ष त हए ीरघनाथ Uदय म0
Aफर 3पता क आन का समाचार जान
उनक दश न क लालसा उठj मन म0
पर सकोचवश कछ कह नह सकत थ
यह दख बहत सतोष हआ म8न को
उनक नता दख अ9 यत Bस न हो
Uदय स लगा लया दोन भाइय को
ल चल व उ ह0 दशरथजी क पास
मान सरोवर ] यास क ओर चला हो
जब प सGहत म8न को आत दखा
उठ चल दशरथजी अ9 यत Bस न हो
म8न क चरणधल सर पर चढ़ा
बारबार Bणाम Aकया म8न को उ होन0
राजा को उठा कर Uदय स लगा
आशीवा द द कशल पछj म8न न
Aफर राम-लu मण को दb डवत करत दख
राजा क Uदय म0 सख अ8त अltधकाया
मतक को H य Bाण मल गय ह
राजा न 3वयोग का दसह दख मटाया
Aफर चरण म0 सर नवा वसa ठजी क
दोन भाइय न पाया आशीवा द उनस
Aफर सब EाFमण क व दना कर
मन भाय आशीवा द पाय उ होन0 उनस
- 113 -
भरत-शv न न Bणाम Aकया ीराम को
ीराम न लगा लया उ ह0 Uदय स
लu मणजी दोन भाइय को दख हए ह3ष त
Bम स भर व मल उनस
Aफर सबस यथायोY य मल ीराम
सब शीतल हए ीराम स मलकर
चार प अथ धम काम मो स
शोभा पा रह राजा क पास बठकर
अगवानी म0 आय हए शतान दजी आGद
राजा क आ6ा ल वापस लौट
बारात क पहल आ जान स जनकपरवासी
चाह रह Gदन-रात हो जाय0 बड़
सभी ी-प4ष इका हो कह रह
ीराम-सीता ह स दरता क सीमा
और दोन राजा जनकजी और दशरथजी
व दोन ह पb य क सीमा
जानकजी ह जनकजी क पb य क म8त
और दशरथजी क सकत सदह रामजी
इनक समान Aकसी न फल न पाय
न अराधना इनक समान क शवजी क
हआ न इनक समान कोई जगत म0
न कोई कह न होन का ह
हम सब भी पb य क राश ह
जो जनकपर क हम हए 8नवासी
होगा कौन हम जसा पb या9 मा
दखा िज होन0 जानक और ीराम को
अब हम दख0ग इनका 3ववाह
और सफल कर0ग अपन न को
िया आपस म0 कह रह ह
जनकजी बार-बार बलाय0ग सीता को
हम तब-तब इनक दश न पाय0ग
जब दोन भाई आय0ग उ ह0 लन को
ह सखी इन दोन क जोड़ जस
दो और कमार ह राजा क साथ
व दोन भी इनत ह स दर ह
मान EFमा न सवारा उ ह0 अपन हाथ
तलसीदास क3व और 3व_वान कहत ह
इनक उपमा कह कोई नह
बल 3वनय 3व_या शील और शोभा क
सागर इनक समान ह य वय ह
मना रह सब िया आचल फलाकर
चारो भाई याह जाए इसी नगर म0
(परार शवजी सब मनोरथ परा कर0ग
सब 3वनती कर रह अपन मन म0
कछ Gदन बाद लY न का Gदन आ गया
हम त ऋत और सहावना महना अगहन का
fह 8तltथ न योग और a ठ वार
महत शोधकर EFमाजी न 3वचार Aकया
- 114 -
लY नप(का लख भजी जनकजी क यहा
वह महत वहा भी शोधा गया था
गोधल क प3व बला जब आ गयी
जनकजी न शतान दजी आGद को भजा
सब लोग लन चल बारात को
गय वहा जहा पर जनवासा था
अवधप8तशरथजी का समाज दखकर
दवराज इ gt का भी तJ छ सा लगा
3वनती क उ होन0 राजा स चलन क
ग4 आ6ा ल चल Gदय राजा
दवगण स दर मगल का अवसर जान
फल बरसात ह नगाड़ बजा-बजा
चल अपन-अपन 3वमान पर चढ़कर वो
उ9 साह म0 भर ीराम का 3ववाह दखन
जनकपर दख इतन अनरCत हो गय दवता
अपन-अपन लोक लग बहत तJ छ लगन
3वltच मb डप और अलौAकक रचनाए
दख रह ह वो चAकत होकर
नगर क ी-प4ष 4प क भb डार
सशील सजान a ठ धमा 9 मा और सघड़
उ ह0 दख Bभाहन हो गय दवी-दवता
जस तार हो जात च gtमा क सामन
अपनी तो उसम0 कोई करनी न दख
बहत ह आ- चय माना वय EFमा न
तब शवजी न सब दवताओ को समझाया
मत भलो तम लोग आ- चय म0
यह ीसीताजी और ीरामजी का 3ववाह ह
धीरज रख 3वचार तो करो Uदय म0
िजनका नाम मा लन स ह
सार अमगल क जड़ कट जाती
चार पदाथ मी म0 आ जात
य वह जगत माता-3पता ह ीसीतारामजी
इस Bकार दवताओ को समझाकर शवजी
चल आग बढ़ाकर अपन न द-वर को
उधर दवताओ न दशरथजी को दखा
प सGहत Bस न मन जा रह थ वो
साधओ और EाFमण क मb डल
ऐसी शोभा द रह थी साथ उनक
मान सवा कर रह0 हो उनक
सम त सख शरर धारण कर क
चार प साथ म0 सशोभत ह ऐस
मानो सD पण मो ह शरर धर
ीराम क स दर छ3व को दख
पाव तीजी सGहत चल शवजी पलक स भर
- याम शरर और 4प मनोहर
पीत व जो (बजल को लजात
शर9पKण मा क 8नम ल च gtमा सा मखड़ा
ीराम चल 3ववाह क आभषण सजाक
- 115 -
Gदn य सिJचदान दमयी अलौAकक स दरता
दखत ह जो लभा ल मन को
भाइय सGहत चल जा रह ीराम
नचात हए अपन चचल घोड़ को
सर वती भी वण न कर नह सकती
िजस घोड़ पर ह ीराम सवार
मान कामदव वय अ- व बन गय ह
सबका मन मोह रहा इस Bकार
ीरामच gtजी क Gदn य 4प पर
ऐस अनरCत हए महादव शवजी
अपन प gtह न लगन लग ] यार
जी भर कर दख रह उ ह0 शवजी
ीरामच gtजी क अनपम शोभा दख
लu मीजी सGहत 3वa णजी मोGहत हो गय
पर EFमाजी अपन कवल आठ न जान
उ ह0 जी भर दखन को ] यास रह गय
दवताओ क सनाप8त वामी का8त कय
दख रह उ ह0 अपन बारह न स
गौतमजी क शाप को परम Gहतकार मान
दवराज इ gt दख रह हजार न स
दवगण Bस न राजाओ का समाज ह3ष त हो
कह रहा ीराम क जय हो जय हो
ऐसी अलौAकक बारात और Gदn य द हा दख
व सब कह रह जय हो जय हो
रानी सहाltगन िय को बलाकर
परछन क लय मगलgtn य लगी सजान
गज-गामनी च gtमखी स दर िया
अपन गान स लगी कोयल को लजान
सर वती लu मी पाव ती और सयानी दवागनाए
ी वष धर जा मल र8नवास म0
सब कोई हष क 3वशष वश ह
सो Aकसी न भी न पहचाना उ ह0
ीरामजी को द ह0 क 4प म0 दख
जसा आन द हआ सनयनाजी क मन म0
हजार सर वती और शषजी भी
उस आन द का वण न नह कर सकत
पचश द पचs व8न और मगलगान हो रह
और बरस रह ह फल गगन स
इस Bकार ीरामजी मb डप म0 आय
सब आनिदत हो रह उनक दश न स
आसन पर बठा और आरती कर
धन-धा य 8नछावर कर रह िया
EFमा आGद दवता कौतक दख रह
a ठ EाFमण का सा वष बना
नाई बाट भाट और नट
8नछावर पा झककर आशीष द रह
लौAकक और वGदक सब 8न8तया 8नभा
दोन राजा Bम स गल मल रह
- 116 -
फल बरसात यश गा रह दवता
ऐसा 3ववाह आज तक नह दखा
सब Bकार स समान साज-समाज
और बराबर क समltधय को यह दखा
दवताओ क स दर स9 य वाणी सनकर
दोन ओर छा गयी अलौAकक Bी8त
स दर पावड़ और अs य दत हए
दशरथजी को मb डप म0 ल आय जनकजी
3वltच रचना और मb डप क स दरता दख
म8नय क मन भी हर गय
तब सजान जनकजी न अपन हाथ स
वय ला सबक लय सहासन रC ख
अपन कल क इa ट दवता क समान
पजा क वसa ठजी क उ होन0
Aफर और ऋ3ष-म8नय क पजाकर
3वनय कर आशीवा द पाया उ होन0
Aफर महादवजी क समान जानकर
राजा दशरथजी क पजा क उ होन0
तद तर उनक सD ब ध स अपना भाY य
और वभव-3व तार को सराहा उ होन0
उसक बाद सब बरा8तय का जनकजी न
दशरथजी क समान ह आदर स9 कार Aकया
दवतागण जो EाFमण का वश बनाय थ
(बना पहचान उनका भी स9 कार Aकया
आन दन द Gदn य द ह को दखकर
सब ह अपनी सध-बध भल हए
सजान ीराम न दवताओ को पहचान
मानसक पजा कर उ ह0 आसन Gदय
तब उltचत समय जान वसa ठजी न
आदरपव क शतान दजी को बला भजा
कहा शी ह राजकमार को ल आइय
3ववाह का मगलसमय आ पहचा
ब3+मती रानी परोGहत क वाणी सन
बड़ी Bस न ह चल सKखय क साथ
a ठ दवागनाए जो िय क वश म0 ह
सबक Bाण3Bय चल रानी क साथ
सब मल सीताजी का गार कर
लवा ल चल मb डप म0 उ ह0
सभी स दVरया सोलह गार Aकय ह
म8न भी s यान छोड़ द दख िज ह0
वण नातीत ह सीताजी क स दरता
ब3+ छोट और महान मनोहरता उनक
जब बरा8तय न उ ह0 आत दखा
मन ह मन Bणाम करन लग सभी
जब सीताजी मb डप म0 आयी
म8नराज पढ़न लग शा8तपाठ
दोन ग4ओ न मलकर Aकय
अवसरानकल र8त और कलाचार
- 117 -
Aफर दवताओ क पजा करवायी
Bकट हो पजा fहण कर रह वो
मधपक आGद जो पदाथ चाहत ह म8न
तरत वण पा म0 सवक दत वो
वय सय दव BमसGहत अपन कल क
बता दत ह सभी र8तया
आदरपव क व सD प न क जा रह
दोन कल 8नभा रह सभी र8तया
इस Bकार दवताओ क पजा कराक
स दर सहासन Gदया म8नय न सीताजी को
ीसीता-रामजी का आपस का पर पर Bम
मन ब3+ और वाणी स पर ह वो
हवन क समय अिYनदव शरर धारण कर
बड़ ह सख स fहण करत ह आह8त
और सार वद EाFमण का वष धारण कर
बताय द रह ह सब 3ववाह क 3वltध
जनकजी क पटरानी और सीताजी क माता
Aकस Bकार उनका बखान हो सकता
3वधाता न उ ह0 सवारकर तयार Aकया ह
बटोरकर सब सयश सकत सख और स दरता
a ठ म8नय न बलवाया उ ह0
सहाltगन िया लवा लायी आदर क साथ
जनकजी क बायी ओर व सोह रह ऐस
जस मनाजी शोभत ह Gहमाचल क साथ
प3व सगिधत और मगल जल स भर
सोन क कलश और मKणय क परात0
लाकर ीरामच gtजी क सD मख रC खी
राजा और रानी न अपन हाथ स
जो चरण शवजी क Uदय म0 बसत
िजनका मरण Uदय को 8नम ल कर दता
िजनको छन स अह या न परमग8त पायी
और परम प3व िज ह0 बतलात ह दवता
उ ह चरण को पखार रह राजा-रानी
यह दख कर रह ह सब जय-जयकार
राजा और रानी पलAकत हो रह Bम स
Uदय म0 छा रहा ह हष अपार
वर और क या क हथलय को मलाकर
दोन कल क ग4 शाखोJ चार करन लग
पाKणfहण हआ दखकर EFमाGद दवता
मनa य और म8न आन द स भर गय
लोक और वद क र8त को कर
महाराज जनकजी न Aकया क यादान
ीराम क सावल मनोहर मरत को दख
3वदहजी को न रहा दह का भान
वर और क या द रह ह भावर
सब लोग सख पा रह उ ह0 दखकर
मKणय क खभ म0 जगमगाती उनक छ3व
मान र8त-अनग दख रह Bकट होकर
- 118 -
म8नय न आन दपव क भावर Aफराकर
नग सGहत सब र8तय को Aकया परा
ीराम सीताजी क सर म0 सदर द रह
वण न स पर ह यह शोभा
मान कमल को लाल पराग स
अJ छj तरह स परा भर कर
अमत क लोभ स साप
च gtमा को रहा भ3षत कर
Aफर जब वसa ठजी न आ6ा द
द हा और दिहन बठ एक आसन पर
चौदह भवन म0 उ9 साह भर गया
इस महान मगल को B9 य दख कर
तब वसa ठजी क आ6ा पाकर
माb डवीजी तक8त जी और उम लाजी को
महाराज जनकजी न बलवा लया
भरत शv न लu मणजी सग याहन को
अपन-अपन अन4प जोड़ी को दखकर
व सब ह3ष त हो रह मन म0
स दर दिहन0 स दर द ह क साथ
शोभा पा रह एक ह मb डप म0
सब प को बहओ सGहत दखकर
अवध नरश ऐस आनिदत ह मानो
य6 +ा योग और 6ानA=या सGहत
चार फल व पा गय ह
सब 3वltधय और र8तय सGहत
3ववाह Aकय गय सब कमार क
जनकजी न इतना दहज Gदया
मb डप भर गया धन-धा य स
हाथी-घोड़ और दास-दासया
अनक व तए ltगनती स पर
आदर सGहत fहण कर दशरथजी न
याचक को Gदया जो चाहा िजसन
तब हा थ जोड़कर कोमल वाणी स
बारात का सD मान करत जनकजी बोल
म8नय क पजा एव व दना कर
राजा हाथ जोड़ सबस बोल
भाव ह चाहत ह दवता और साध
C या कछ उनको कोई द सकता
Bम स ह बस वो Bस न हो जात
धन-दौलत स Vर- ता होता न उनका
Aफर भावसGहत जनकजी हाथ जोड़कर
राजा दशरथजी स बोल Bम स
हम सब Bकार स बड़ हो गय
ह राजन आपक साथ सD ब ध जोड़ क
इस राज-पाट सGहत हम दोन को
(बना दाम क लय सवक जा8नय
हमार प(य को टहलनी मानकर
नयी-नयी दया कर पालन किजय
- 119 -
Aफर सय कल क भषण दशरथजी न
जनकजी को सD मान का 8नltध कर Gदया
दोन क Uदय Bम स पVरपण ह
उनक 3वनय न उनको ध य कर Gदया
दवतागण फल बरसा रह ह गगन स
और आन द छा रहा ह सब ओर
तब सKखया मगलगान करती ल चल
वर-वध को भीतर क ओर
बार-बार दखती ह ीराम को
और सकचा जाती ह सीताजी
Bम क ] यास उनक न
हर रह स दर मछलय क छ3व
वभावत स दर ीराम का सावला शरर
उसक शोभा लजाती करोड़ कामदव को
महावर स यCत कोमल चरण-कमल
लभात जो म8नय क मन4पी भौर को
प3व और मनोहर पील धोती उनक
हर लती ह बाल-सय क H यो8त
स दर AकAकणी और कGटस कमर म0
3वशाल भजाओ म0 शोभा बाजब द क
पीला जनऊ और हाथ क अगठj
चरा लत ह व सबक ltच9त
दप पर लग मKण और मोती
चौड़ी छाती पर आभषण शोभत
कमल स न कान म0 कb डल
मख तो खज़ाना सार स दरता का
सब नगर क िया और दवसदVरया
द ह को दखकर तोड़ रह 8तनका
सहाltगन िया वर और वधओ को
कोहबर म0 ला करन लगी लौAकक र8त
पाव तीजी और सर वतीजी लहकौर सखा रह
र8नवास हास-पVरहास का बना 8नltध
हाथ क कगन क मKणय म0
दखी जो राम क छ3व म काती
इस डर स छ3व हो जाय न ओझल
सीताजी हाथ न lिaट को Gहलाती
ल जाय गय व Aफर जनवास को
सभी Bस न मन द रह आशीवा द
दवता चल अपन-अपन लोक को
चार जोडया चल दशरथजी क पास
Aफर तरह-तरह क रसोइया बनवाकर
जनकजी न बरा8तय को बलवा भजा
आदर क साथ सबक चरण धोय
और यथायोY य पीढ़ो पर 3वठलाया
मासपारायण यारहवा वाम
- 120 -
तब दशरथजी ीराम और भाइय क
चरण को धोया मltथलाप8त जनक न
उltचत आसन पर (बठलाकर सभी को
चतर रसोइय लग भोजन परोसन
भोजन करत समय गालया गा रह िया
िजसन बना Gदया भोजन अमत समान
चार Bकार क इतन n यजन बन
िजनका कौन कर सकता भला बखान
हस रह ह राजा दशरथजी
समयानकल िय का n यवहार दखकर
जनकपर म0 8न9 य नय मगल हो रह
Gदन-रात बीत रह जस पल भर
तब एक Gदन महाराज दशरथ न
कहा ग4 वसa ठजी को Bणाम और पजन कर
ह म8नराज आपक कपा स पण काम हो गया
सजी-धजी गाय0 दिजय EाFमण को बलाकर
a ठ म8नय क समह-क-समह आय
राजा न Aकया सबको दb डवत Bणाम
Aफर चार लाख कामधन सी गाय को
सजा कर Aकया उ होन0 उनका दान
EाFमण स आशीवा द पा आनिदत हए
Aफर बला भजा याचक को उ हन
पछ-पछकर सोना मKण माKणक Gदय
जो और िजतना भी चाहा िजसन
गणानवाद गात और जय हो कहत
व सब Bस न हो घर को चल
इस Bकार 3ववाह का उ9 सव हआ
कौन उस आन द का वण न कर सक
बार-बार 3व- वामजी क चरण म0
सर नवाकर कहत ह राजा दशरथ
ह म8नराज यह आपका कपा-Bसाद ह
आपक कपा स सफल हए मर मनोरथ
सब Bकार स सराहना करत ह दशरथजी
जनकजी क नह शील और ऐ- वय क
B8तGदन सवर व 3वदा मागत ह
पर Bम स रोक लत ह उ ह0 जनकजी
8न9 य नया आदर बढ़ता जाता ह
हजार Bकार स होती ह रोज महमानी
8न9 य नया आन द और उ9 साह रहता ह
दशरथजी क जान क Aकसी न न मानी
जब बहत Gदन य ह बीत गय
म8नय न समझाया जनकजी को जाकर
तब जनकजी न म(य को बलवाया
कहा खबर कर दो र8नवास म0 जाकर
बारात का वापस जाना जान कर
जनकजी Bम क वश हो गय
जनकपरवासी भी ऐस हो गय उदास
मान स धया म0 कमल सकचा गय
- 121 -
आत समय बराती जहा-जहा ठहर थ
वहा-वहा सब सामान भजा जनकजी न
हजार हाथी घोड़ रथ और बल
Aफर स अ पVरमत दहज Gदया जनकजी न
इस Bकार सब सामान सजाकर
भज Gदया अयोs या नगर को उस
बारात चलगी सन 3वकल हो गयी रा8नया
मान मछलया छटपटा रह थोड़ जल म0
बार-बार सीताजी को दती ह सखावन
प8त को ] यार और सोहाग अचल हो
सास-ससर और ग4 क सवा करना
प8त का 4ख दख आ6ा पालन हो
सयानी सKखया अ9 य त नह क वश
ी धम सखला रह कोमल वाणी स
माताए सब प(य को Uदय स लगा
C य रची िया कह रह EFमाजी स
तभी भइयसGहत ीराम Bस नता पव क
जनकजी क महल चल 3वदा करान
नगर क ी-पष सब दौड़ पड़
इन 3Bय महमान को जी भर दखन
4प क सागर भाइय को दख
सारा र8नवास ह3ष त हो उठा
सासए 8नछावर और आरती करती ह
Bम स उनका Uदय भर उठा
Bम क वश हो बारD बार व
लगन लगी ीराम क चरण
Bी8तवश लH जा रह नह गयी
उनका नह कौन कर सकता वण न
भाइय सGहत ीरामजी को उ होन0
उबटन लगाकर नान करवाया
नय व Gदय पहनन को उ ह0
Bम स षटरस भोजन करवाया
तब सअवसर जानकर ीरामच gtजी न
शील नह और सकोच सGहत कहा
महाराज अयोs यापर चलना चाहत ह
ह माता हम0 Bस न मन किजय 3वदा
और हम0 अपना बालक जानकर
सदा अपना Bम बनाय रKखय
सनत ह र8नवास उदास हो गया
Bमवश मह स बोल नह 8नकलत
सब कमाVरय को Uदय स लगा
प8तय को सyपकर बहत 3वनती क
सीताजी को ीरामच gtजी को सम3प त कर
कहा जानत ह आप सबक Uदय क
पVरवार नगर राजा और मझको
Bाण स 3Bय ह सीता हम सबको
इसक शील और नह को दखकर
अपनी दासी मानकर रKखयगा इसको
- 122 -
तम पण काम हो सजान-शरोमKण हो
Bम ] यारा ह तD ह0 ह राम
तम भC त क गण क fाह ह
दोष क नाशक दया क धाम
ऐसा कह चरण पकड़ चप रह गयी
मान वाणी समा गयी Bम4पी दलदल म0
नह स सनी हई a ठ वाणी सनकर
बहत सD मान Aकया सास का ीराम न
तब ीरामच gtजी न हाथ जोड़कर
बारD बार Bणाम Aकया हाथ जोड़त हए
आशीवा द पाकर और सर नवाकर
Aफर भाइयसGहत ीरघनाथजी चल
नह स शltथल हो गयी रा8नया
ीराम क मधर म8त Uदय म0 लाकर
Aफर धीरज धारण कर कमाVरय को बला
भ0टन लगी उ ह0 बार-बार गल लगाकर
पहचाती ह Aफर मलती ह उनस
पर पर Bी8त नह दती उ ह0 (बछड़न
क4णा और 3वरह वश हो गयी माताए
तब सKखय न अलग Aकया उ ह0
िजन तौता-मना को पाला जानकजी न
कह रह ह व n याकल होकर
कौन अपना धीरज 9 याग नह दगा
rsquoवदह कहा हrsquo उनक वचन सनकर
जब पश-पी ऐस 3वकल हो रह
तब कस मनa य क दशा कह जाय
तब भाइय सGहत वहा आय जनकजी
Bम स आस आख म0 भर आय
परम वराY यवान कहलात थ जनकजी
पर उनका भी धीरज भाग गया
लगा लया जानकजी को Uदय स
6ान का उनका बाध टट गया
ब3+मान मिय न समझाया उ ह0
तब सजी हई पालAकया मगवायी उ होन0
स दर महत जान गणशजी को मरण कर
क याओ को पालAकय पर चढ़ाया उ होन0
बहत Bकार स समझाकर उ ह0
िय का धम कल क र8त सखायी
3व- वास पा सवक दास-दासी साथ कर
शभ महत म0 क उनक 3वदाई
EाFमण और मिय क समान सGहत
राजा जनक उ ह0 पहचान साथ चल
EाFमण को दान-दणा द दशरथजी
बरा8तय क साथ अयोs यापर को चल
3वनती कर B8तिaठत जन को लौटाया
और आदर सGहत बलवाया सब मगन को
गहन कपड़ घोड़ हाथी दकर उ ह0
धन दौलत स सD प न कर Gदया सबको
- 123 -
बार-बार दशरथजी कहत ह लौटन को
पर Bमवश जनकजी लौटना नह चाहत
तब दशरथजी रथ स उतर खड़ हो गय
और Bमा बहन लग न स उनक
तब जनकजी अमतमयी वचन बोल
ह महाराज आपन मझ बड़ी बड़ाई द
दशरथजी न Aकया उनका बड़ा सD मान
उनक Bी8त Uदय म0 समाती न थी
सर नवाया जनकजी न म8नमb डल को
Aफर आदर सGहत मल दामाद स अपन
बोल ह राम कस क4 आपक Bशसा
बसत आप म8नय और शवजी क Uदय म0
=ोध मोह मद और ममता को 9 याग
योगीजन साधना करत ह िजनक लय
सव n यापक EFम अn यCत अ3वनाशी
ltचदान द
8नग ण गण सागर वद कहत िजनक लय
मन वाणी और अनमान स पर
न8त-न8त कह वद करत िजनक मGहमा
सिJचदान द सव दा और सव था 8न3व कार
उ ह आप न मझ बना लया अपना
जरा स Bम स आप Bस न हो जात
यह सब कह रहा इसी बल पर
आपक चरण मरा मन कभी न छोड़
यह मागता ह म आपस हाथ जोड़कर
Bम स पa ट जनकजी क वचन न
पण काम ीरामच gtजी को बहत सतa ट Aकया
3पता और ग4 क समान जान
ीराम न ससर जनकजी का सD मान Aकया
Aफर भरत लu मण शv नजी स मल व
मलकर आशीवा द Gदया जनकजी न उ ह0
पर पर Bम क वश होकर व
लग बार-बार आपस म0 सर नवान
Aफर जनकजी न 3व- वामजी क चरण पकड
चरण क रज को सर स लगाया
ह मनी- वर मर मन म0 3व- वास ह
आपक कपा स ह मन यह सब पाया
बार-बार 3वनती कर और सर नवाकर
राजा जनक लौट आशीवा द पाकर उनस
तब डका बजाकर चल बारात
लोग दख रह उ ह0 सख स
प3व Gदन अयोs यापर आ पहची बारात
बाज-नगाड़ ढोल-शहनाइया लग बजन
Bस न हो उठ सब नगर वासी
घर बाजार गल-चौराह लग सजन
तोरण s वजा-पताका मb डपो स
सज गय नगर क सार बाजार
मगल-कलश घर-घर बनाय गय
- 124 -
राजमहल क शोभा बनी अपार
झड-क-झड मल चल स हाltगन िया
गा रह मगलgtn य और आरती सजाय
सध-बध भल सब माताए Bमवश
ऐसी Bस न मान चार पदाथ पाय
अनराग स भर सामान सजा परछन का
आरती ल मगलगार कर रह माताए
सार नगर म0 आन द छा रहा
दवता आकाश स बरसा रह मालाए
शभ समय जान आ6ा द वसa ठजी न
तब दशरथजी न Bवश Aकया नगर म0
नगरवासी ीरामजी को दख Bस न हो उठ
िया Bस न हो रह दख चार दिहन0
सबको सखी करत य आय राज_वार पर
परछन और आरती करन लगी माताए
अनक व तए 8नछावर कर उ होन0
अपना जीवन ध य मान रह माताए
चार मनोहर जोडय को दखकर
सर वती न सार उपमाए खोज डाल
पर दत नह बनी कोई भी उपमा
सभी उपमाए उ ह0 तJ छ नजर आयी
तब महल म0 ल चल उ ह0 माताए
ल जाकर स दर सहासन पर बठाया
धप दप नव_य स पजा क उनक
सभी माताओ न य परमान द पाया
ज य योगी पा गया हो परम त99 व
ज म का दVरgt मानो पारस पा गया
गग क मख सर वती आ (बराजी हो
या शरवीर य+ म0 3वजय पा गया
इनस भी सौ करोड़ गना H यादा
आन द पा रह ह सभी माताए
C यAक रघकल क च gtमा ीरामजी
3ववाह कर भाइय सGहत घर आय
माताए लोकर8त कर रह ह
और द हा-दिहन0 सकचा रह
इस आन द और 3वनोद को दख
ीराम मन-ह-मन मसकरा रह
मन क सभी वासनाए पर हई जान
भल-भा8त पजा दवता और 3पतर को
व दना कर व यह वरदान मागती
भाइयसGहत ीराम का क याण हो
आशीवा द द रह अ तVर स दवता
माताए आनिदत हो ल रह आचल भर
तद तर राजा न बलवा लया बरा8तय को
सD मा8नत Aकया उ ह0 व -आभषण द कर
नगरवासय को भी Gदय कपड़-गहन
घर-घर म0 बजन लग बधाव
िजसन जो मागा राजा न Gदया
- 125 -
Aफर ग4जन सGहत महल म0 व आय
चरण धोकर नान करवाया EाFमण को
पजन कर भल-भा8त उ ह0 भोजन करवाया
राजा न पजा-Bशसा क 3व- वामजी क
और अपन भाY य को ध य जान सराहा
Aफर राजा न क वसa ठजी क पजा
बहत Bी8त थी उनक Uदय म0
प सGहत सार सD पि9त अ3प त कर
वीकार करन क 3वनती क राजा न
Bस न हो आशीवा द Gदया म8न न
Aफर चल ीसीता-राम Uदय म0 रख कर
राजा न सब EाFमण िय को बलवाया
और व -आभषण Gदय स दर-स दर
Aफर नगर क सौभाY यवती िय को
बलवा कर राजा न द पGहरावनी
सब नगी इJ छानसार नग ल रह
उनक इJ छा जान द रह महाराज शरोमKण
3Bय और पजनीय महमान को
सD मा8नत कर 3वदा Aकया राजा न
उ9 सव को सराहत फल बरसात
दवगण भी चल लोक को अपन
बहओ सGहत प को दख कर
बहत हष हआ राजा क मन म0
सब वता त रा8नय को कह सनाया
बड़ी Bशसा क जनकजी क उ होन0
तब दशरथजी न रा8नय स कहा
पराय घर आ~ बहए बJ ची ह अभी
जस पलक0 न को रखती ह
वस ह इ ह0 रखना आप सभी
लड़क थक रह नीद क वश हो
इ ह0 ल जाकर कराओ शयन
मKणय स जड़ सवण क पलग (बछवाय
रा8नय न सन य स दर वचन
स दर शयन क वण न स पर
माताओ न ल जा सलाया ीराम को
उ होन0 बार-बार द भाइय को आ6ा
तब व भी जाकर गय सो
ीराम क कोमल स दर अग को दख
माताए कह रह ह आपस म0
ताड़का मारच सबाह जस रास को
ह तात Aकस तरह मारा तमन
म8न क कपा स ह ई- वर न
टाल द तD हार बलाय0 बहत सी
चरणधल लगत ह तर गयी अह या
धनष तोड़ जनकजी क B8त6ा पर क
3वव3वजय का यश जानकजी को पाया
सब भाइय को याहकर घर आय
3व- वामजी क कपा स यह सब हआ
- 126 -
हमन जीवन क सब मनोरथ पाय
3वनय भर उ9तम वचन कह कर
सब माताओ को ीराम न सतa ट Aकया
Aफर ग4जन क चरण को मरण कर
न को नीद क वश म0 Aकया
नीद म0 भी उनका सलोना मखड़ा
सs या म0 लाल कमल सा सोह रहा
सासए स दर बहओ को ल सो गयी
मानो सपr न मKणय को 8छपा लया
प3व EFममहत म0 Bभ जाग
भाट और मागध न Aकया गण-गान
नगर क लोग जोहार करन आय
सब भाइय न Aकया ग4जन को Bणाम
Aफर महाराज दशरथ क साथ जाकर
सरय म0 नान Aकया चार भाइय न
उसक बाद सs या-व दनाGद कर
आकर Bणाम Aकया 3पता क चरण म0
Uदय स लगा लया राजा न उ ह0
तदन तर व बठ ह3ष त हो आ6ा पाकर
Aफर म8न वसa ठजी और 3व- वामजी आय
राजा प सGहत लग उनक चरण जाकर
वसa ठजी कह रह ह धम क इ8तहास
राजा र8नवाससGहत सन रह उसको
वसa ठजी न आनिदत होकर वण न Aकया
म8न 3व- वाम जी प3व करनी को
स9 य ह य बात0 वामदवजी बोल
3व- वामजी क क8त छायी तीन लोको म0
यह सनकर सबको बड़ा आन द हआ
अltधक उ9 साह ीराम-लu णम क Uदय म0
8न9 य नय मगल आन द और उ9 सव
सब ओर अयोs या म0 छायी खशया
3व- वामजी रोज जान को कहत ह
पर 3वनय कर रोक लत राजा-रा8नया
अ त म0 जब 3व- वामजी न 3वदा मागी
राजा प सGहत आग खड़ हो गय
ह नाथ यह सार सD पदा आपक ह
म तो आपका सवक ह कहन लग
ह म8न लड़क पर कपा करत रGहय
और दश न दत रGहयगा मझ भी
राजा पVरवारसGहत चरण म0 ltगर पड़
Bमवश मह स बात नह 8नकलती
बहत Bकार स आशीवा द द कर
EाFमण 3व- वाम वहा स चल पड़
भाइय क साथ ीराम पहचान चल
नवानपारायण तीसरा वाम
- 127 -
Aफर म8न क आ6ा पाकर लौट
ीरामच gtजी का 4प दशरथजी क भिCत
मन ह मन 3व- वामजी सराहत जा रह
ीरामजी का यश (लोक म0 छा गया
सव लोग उनक गाथा गा रह
जब स ीरामच gtजी 3ववाह कर घर आय
सारा आन द आ बसा अयोs या म0
Bभ क 3ववाह म0 जो आन द-उ9 साह हआ
शष-शारदा भी वण न कर नह सकत
अपनी वाणी को प3व करन क लय
तलसी न यश कहा ीराम का
वरना तो उनका चVर अपार समgt ह
Aकस क3व न पार पाया उसका
जो सादर इसको सन कर गाव0ग
व Bभ कपा स सदा सख पाव0ग
ीरामजी का यश मगल का धाम ह
जो इस गाव0ग सदा आन द पाव0ग
मासपारायण बारहवा वाम
- 128 -
lsquoीरामचरतमानसrsquo
वतीय सोपान
lsquoअयो याका डrsquo
गोद म0 िजनक Gहमाचलसता पाव तीजी
म तक पर गगा च gtमा ललाट पर
दव म0 a ठ सवo- वर पापनाशक
मर रा कर0 सदा व शवशकर
Bस न हई न जो राH याभषक सन
न मलन हई बनवास क दख स
ीरामजी क मखार3व द क वह शोभा
सदा स दर मगलमयी हो मर लय
नीलकमल स - याम और कोमल अग
ीसीताजी ह िजनक वाम अग म0 3वराजमान
हाथ म0 िजनक अमोध बाण और धनष
व ीरामच gtजी वीकार कर0 मरा Bणाम
ीग4 चरण-कमल क रज स
अपन मन4पी दप ण को करक साफ
कहता ह 8नम ल यश ीरघनाथ का
जो चार फल करा दता ह Bा] त
जब स ीराम 3ववाह कर घर आय
8नत-नय मगल हो रह अयोs या म0
ऋ3+-स3+ और सD पि9त4पी नGदया
उमड़-घमड़ आ मल अयोs या4पी सागर म0
नगरवासी ीरामच gtजी क मख च gt को दख
सखी हो रह ह सब Bकार स
अपना मनोरथ सफल दख माताए खश ह
राजा Bस न ीराम क गण-शील स
सबक Uदय म0 ह ऐसी अभलाषा
कहत ह व मनाकर महादव को
अपन जीत-जी राजा दशरथ
यवराज का पद द द0 ीराम को
एक समय महाराज दशरथ न
दप ण म0 दखा चहरा अपना
कान क पास सफद बाल दख
सोचा वCत 8नकल गया Aकतना
C य न ीराम को यवराज पद दकर
लाभ नह लत अपन जीवन का
शभ Gदन और शभ समय पाकर
अपना 3वचार वसa ठजी को जा कहा
राजा न कहा ह म8नराज स8नय
सब Bकार सब योY य हो गय ीराम
िजस Bकार 3Bय ह वो मझको
श और म को भी 3Bय ीराम
- 129 -
आपका आशीवा द ह शरर धारण कर
मान हमार सौभाY य स हो रहा सशोभत
ग4 चरण-रज शीश लगान वाल
सब कछ सहज ह कर लत अिज त
अब एक ह अभलाषा ह मन म0
जो आपक अनfह स ह पर होगी
राजा क सहज Bम स Bस न हो
म8न न पछा C या अभलाषा ह आपक
ह राजन आपका नाम और यश ह
सार मनचाह व तओ को ह दन वाला
आपक इJ छा करन क पहल ह
ह राजन उसका फल उ9 प न हो जाता
अपन जी म0 उ ह Bस न जान
ह3ष त हो कोमल वाणी स बोल राजा
ह नाथ मर जीत जी ह आप
ीराम को यवराज बनान क द0 आ6ा
बस एक यह लालसा ह बाक
Aफर चाह शरर रह या चला जाय
दशरथजी क स दर मगलमय वचन सन
म8न Bस न हो मन ह मन मसकाय
बोल िजनस 3वमख हो लोग पछतात
भजन (बना जी क जलन न जाती
वह वामी ीराम आपक प हए
प3व Bम क जो ह अनगामी
अब दर न किजय ह राजन
शी ह सब ज4र सामान सजाय0
शभ Gदन और सब मगल तभी ह
जब ीरामच gtजी यवराज हो जाय0
राजा न सम जी और सवक को बलवाया
कहा यGद पच को मत अJ छा लग
तो ीरामच gtजी का राज8तलक किजय
इस शभ काम म0 दर न लग
सब आनिदत हो गय स वचन सन
महाराज को दन लग व दआय0
हाथ जोड़ 3वनती करत ह म ी
ह जग9 प8त आप अन त जीवन पाय0
Aफर म8न आ6ानसार मिय न
सब a ठ तीथr का जल मगवाया
सम त औषltध फल फल र9 न आGद
सब Bकार का मगल सामान मगवाया
सारा नगर s वजा-पताका स सजाकर
कल दवता और EाFमण क कर पजा
मनी- वर न िजस काम क लय आ6ा द
मान पहल स ह कर रC खा था
ीराम क राH यभषक क खबर सनकर
बधाव बजन लग धम स अवधपर म0
शभ शकन हो मगल अग फड़करन लग
ीराम और सीताजी दोन क तन म0
- 130 -
पलAकत हो कह रह एक-दसर स
सचना द रह य भरत क आन क
बहत Gदन हो गय न8नहाल गय उ ह0
मन म0 आती ह उनस मलन क
यह फल शकन का कछ और नह
भरत सा ] यारा नह कोई जगत म0
Gदन-रात भरत क लय सोचत राम
जस कछए का मन रहता अड़ म0
इसी समय यह मगल समाचार सन
सारा र8नवास ह3ष त हो उठा
जस च gtमा को बढ़त दख समgt म0
लहर का 3वलास सशोभत होता
आभषण और व बाट0 रा8नय न
दवी-दवताओ और नाग को पजा
सभी ी-पष ह3ष त हए नगर म0
3वधाता को उ होन0 अपन अनकल समझा
तब ीराम को समयोltचत उपदश दन
राजा न वसa ठजी को महल म0 भजा
उनका आगमन सनकर दरवाज पर आकर
ीराम न उनक चरण म0 सर टका
Aफर अs य द पजा कर सD मान Aकया
और सीताजी सGहत चरण पश Aकय उनक
Aफर बोल ह नाथ ऐसी ह नी8त ह
इस दास को ह आप बला भजत
परत आपन यहा वय पधारकर
इस घर का प3व कर Gदया आज
अब जो आ6ा हो म वह क4
वामी क सवा म0 ह सवक का लाभ
इन Bम स सन वचन को सनकर
म8न न Bशसा करत हए कहा
ह राम आप सय वश क भषण ह
आप ऐसा C य न कह0 भला
Aफर व बोल महाराज दशर थजी न
तयार क ह आपक राH याभषक क
सो आज आप सब सयम किजय
िजसस यह आशा पर हो राजा क
खद हआ ीराम क Uदय म0
हम सब भाई ज म0 एक ह साथ
खाना-पीना खल-कद य6ोप3वत
3ववाह आGद उ9 सव भी हए साथ
पर इस 8नम ल वश म0 हो रह
अनltचत बस यह एक बात ह
Aक और सब भाइय को छोड़कर
राH याभषक हो रहा बड़ भाई का ह
ीरामच gtजी क मन क य भाव
उनका यह स दर Bमपण पछतावा
तलसीदासजी कहत ह हरण कर ल
भCत क मन क सD पण कGटलता
- 131 -
तभी आन द म0 मY न लu मणजी आय
3Bय वचन कह राम न Aकया सD मान
नगर क सब लोग Bस न हो रह
3वधाता पर कर रहा उनक अरमान
भरतजी जो गय हए थ न8नहाल
लोग मना रह ज द आ जाव0
और इस राH याभषक का उ9 सव दख
अपन न का व सफल पाव0
इधर लोग कर रह कल क Bतीा
उधर कच= दवता 3वv न मना रह
बार-बार सर वतीजी क पर ltगरकर
सब क सब 3वनय कर रह
कह रह ह माता हमार 3वपि9त दख
कछ ऐसा किजय ीराम वन चल0 जाय0
राज8तलक न हो व राH य 9 याग द0
तो हमारा सब काय स+ हो जाय
खड़ी-खड़ी पछता रह शारदा
कमलवन हत ह~ हम त क रात
पर दवता समझा रह उ ह0
ीरामच gtजी को हष होता न 3वषाद
आप तो जानती ह ह उनका Bभाव
जीव कम वश ह दख-सख को पाता
सो हमार Gहत हत अयोs या जाइय
अब और दर न किजय ह माता
सकोच म0 डाल Gदया उ ह0 उ होन0
व सोच रह इनक ब3+ ह ओछj
दख नह सकत और का ऐ- वय
ऊचा 8नवास पर करनी ह नीची
पर रास का वध होगा यह सोच
व आयी दशरथजी क पर अयोs या
ककयी क एक म दब3+ दासी थी
अपयश क 3पटार बनायी वह मथरा
उसक ब3+ फर चल सर वतीजी
तब नगर को सजा दखा मथरा न
लोग स जाना राH याभषक हो रहा
कस यह काम (बगड़ सोचा उसन
ककयीजी क पास गयी मथरा तब
पछा उ होन0 त C य ह उदास
मथरा कछ उ9तर नह दती
बस लबी-लबी लती ह सास
रानी हसकर कहन लगी क त
ह बहत बढ़-चढ़ कर बोलन वाल
C या लu मण न तझ दb ड Gदया ह
तब भी मथरा कछ नह बोल
काल नाltगन सी फफकार रह वो
डरकर रानी न पछा उसस
अर त कछ कहती C य नह
राजा और सब प ह कशल स
- 132 -
यह सनकर कबर मथरा क
Uदय म0 हई बड़ी ह पीड़ा
बोल C य कोई सीख दगा हम0
बात क4गी म Aकसका बल पा
राजा यवराज पद द रह ीराम को
उ ह0 छोड़ आज कशल ह Aकसक
कौस या को 3वधाता बहत दाGहन हए
तम वय जा C य नह दख लती
परदश म0 ह तD हारा प
पर सोच नह कछ भी तD ह0
जानती हो हमार वश ह वामी
उनक चतराई नह Gदखती तD ह0
मथरा क 3Bय वचन सनकर
पर मन क मल जानकर उस
रानी न डपटकर कहा मथरा को
चप रह ऐसा न कहना Aफर स
कान लगड़ और कबड़ को
जानना चाGहय कGटल और कचाल
उनम0 भी ी और दासी खासकर
यह कह ककयीजी मसकरा द
Aफर बोल ह 3BयवाGदनी मथरा
=ोltधत नह ह म तझ पर
स दर मगलदायक Gदन वह होगा
िजस Gदन होगा ीराम का 8तलक
सय वश क सहावनी र8त ह यह
बड़ा वामी छोटा भाई सवक होता
तझ जो अJ छा लग माग ल
यGद कल सचमच 8तलक ह राम का
सहज वभाव स सब माताए
कौस या सी ] यार ह राम को
मझ पर तो उनका 3वशष नह ह
जाच कर दखा ह मन राम को
यGद 3वधाता कपा कर Aफर ज म द0
तो ीराम प ह बह हो सीता
ीराम Bाण स भी 3Bय ह मझ
उनक 8तलक स तझ ोभ कसा
सौगध दती ह तझ भरत क
छल-कपट छोड़कर कह सच-सच
हष क समय 3वषाद कर रह
मझ इसका कारण कह झट-पट
तब मथरा न कहा बात0 बनाकर
ताड़न ह योY य ह ह रानी म तो
मरा अभागा कपाल फोड़न ह योY य ह
जो भल बात भी लगती बर आपको
जो झठj-सJ ची कहत ह बनाकर
व ह 3Bय लगत ह तमको
अब म भी ठकरसहाती कहा क4गी
वरना Gदन-रात चप रहगी म तो
- 133 -
परवश Aकया 3वधाता न मझ
कोई राजा हो C या हा8न हम0
तD हारा अGहत हमस दखा नह जाता
भल हई अब मा करो हम0
अिथर ब3+ और माया वश होन स
गढ़ कपट भर वचन को सनकर
ककयी न मथरा का 3व- वास कर लया
उस अहतक Gहत करन वाल जानकर
भीलनी क गान स मोGहत Gहरनी सी
रानी बारD बार पछ रह उसस आदर स
अपना दाव सफल हआ जान मथरा
खब 3व- वास जमाकर बोल रानी स
ह रानी तमन जो यह कहा
Aक सीता-राम 3Bय ह मझ
सो म भी श हो जात ह
यह बात सच थी बस पहल
सय कमल का पौषण करता
पर वह जला दता उस जल (बना
समय रहत ह कछ उपाय कर लो
C यAक सौत कौस या चाहती तD ह0 उखाड़ना
तम कछ कपट-चतराई जानती नह
राजा मन क मल मीठ मह क
कौस या न अपनी बात बना ल
भरत को अपन न8नहाल भज क
राजा का तम पर 3वशष Bम ह
कौस या सौत होन स सह नह सकती
राजा को जाल रच वश म0 कर लया
Aफर भी तD हार आख0 नह खलती
राम का 8तलक हो उltचत ह यह
पर आग C या होगा तम नह जानती
Aफर सकड़ सौत क कहा8नया सनाकर
दोन क बीच 3वरोध क दवार खीच द
होनहारवश 3व- वास हो गया ककयी को
रानी न Aफर भी पछा उसस
वह बोल तयाVरया होत पखवाड़ा हो गया
पर तमन खबर पाई ह आज मझस
तD हार Gहतषी ह सो सच कहती ह
राज8तलक 3वपि9त का बीज ह तमको
चाकर करोगी तभी तम रह सकोगी
दध क मC खी हो गयी तम तो
कgt न दख Gदया था 3वनता को
वस ह दख तD ह0 दगी कौस या
भरत कारागार क हवा खाय0ग0
और लu मण पद पायग0 सहकार का
मथरा क कड़वी वाणी सनत ह
ककयी कल सी लगी कापन
तब मथरा न समझाया उसको तो
ककयी को लगी वह ] यार लगन
- 134 -
ककयी बोल सीध वभाव क कारण
म दाया-बाया कछ नह जानती
मन कभी Aकसी का बरा न Aकया
C य दव 3वपरत ह नह जानती
नहर जाकर जी लगी म चाह
पर चाकर सौत क नह क4गी
दव िजस श क वश रख
उसका मरना अJ छा अपा जीन क
जब बहत दन वचन कह रानी न
(याचVर फलाया उ ह0 सनकर कबर न
बोल C य ला रह हो मन म0 Y ला8न
िजसन तD हारा बरा चाहा बराई मलगी उ ह0
तम कहो तो म उपाय बतलाऊ
राजा ह तD हार सवा क वश म0
रानी बोल तम जो कहोगी क4गी
तम तो सोचती हो मर Gहत म0
मथरा न सब तरह कबल करवाकर
तज Aकया अपनी कपट4पी छर को
जस बल का पश मौत नह दखता
बस चरता रहता हर-हर घास को
तब मथरा बोल तमन कहा था
राजा क पास दो वचन ह धरोहर
अपना भाY य सधार सकती हो तम
आज व दोनो वचन राजा स मागकर
जब राजा राम क सौगध खा ल0
तब तम राजा स वचन मागना
मागना बनवास राम क लय
और भरत क लय राH य मागना
बड़ी बर घात लगा कहा मथरा न
आज क रात ह काम बना लना
जाओ अब तम कोप भवन म0
राजा पर सहसा 3व-वास मत कर लना
Bाण सी 3Bय जान कबर को
रानी न Aकया उसक ब3+ का बखान
कोई तझसा नह मरा Gहतकार
त मझ बहती को हई नाव समान
3वधाता जो कर द मरा मनोरथ परा
तो म तझ बना ल आख क पतल
इस तरह बहत Bकार उस आदर द
ककयी जान-बझ कोपभवन को चल
कलह बीज दासी वषा ऋत सी
ककयी क कब3+ जमीन बोन को
कपट4पी जल पर अकर फट 8नकला
वरदान प9त स दख4पी फल होन को
अपनी दa ट ब3+ स नa ट हो गयी
ककयी कोपभवन म0 सोयी जा
महल और नगर म0 धम मच रह
यह कचाल कोई कछ नह जानता
- 135 -
आनिदत हो नगर क सब लोग
साज सज रह शभ मगलाचार क
राज_वार म0 बड़ी भीड़ हो रह
ह3ष त हो रह सखा ीराम क
कौन ह ीरघनाथजी क समान
शील और नह को 8नबाहन वाला
आपस म0 बड़ाई कर रह उनक
ज म-ज म उनका सवक बना दाता
सबक यह अभलाषा ह नगर म0
पर ककयी का Uदय जल रहा
नीच का मत हर लता चतराई
कसग8त स Aकसका हआ भला
सs या को ककयी क महल गय महाराज
मान साात नह 8नa ठरता क पास गया
कोपभवन का नाम सन सहम गय महाराज
डर क मार उनका मख सख गया
िजनक भजाओ क बल पर इ gt
रहत ह रास स 8नभ य होकर
वd क चोट भी जो सह लत
पa प-बाग स रह गय हार कर
डरत-डरत ककयी क पास गय व
बड़ दखी हए दख दशा उसक
पराना मोटा कपड़ा पहन हए ह
खबर नह कछ Aकसी चीज क
कसी फब रह यह कवषता उसको
मान भावी 3वपदा क सचना द रह
राजा नजदक जा पछ रह ह उस
पर वह राजा का हाथ झटक द रह
=ोltधत नाltगन सी दख रह ककयी
दोन वरदान क वासनाए जीभ सी
और व दोन वरदान जहरल दात
तलाश िज ह0 मम थल को काटन क
तलसीदासजी कहत ह होनहार क वश
राजा समझ रह कामदव क =ड़ा इस
बार-बार तरह-तरह स पछ रह
बार-बार सब तरह समझा रह उस
Aफर रामजी क सौगध खा बोल
कछ भी कपट कर नह म कहता
बरा वश 9 याग मनचाहा माग ल
अपना मनोहर 4प आभषण स सजा
यह सन और रामजी क सौगध 3वचार
म दब3+ ककयी हसती हई उठj
मानो कोई भीलनी मग को दख
फदा बनाकर तयार हो उठj
अपन जी म0 ककयी को सUद जान
दशरथजी पलAकत हो BमसGहत बोल
ह भाम8न तरा मनचीता हो गया
घर-घर बज रह आन द क बधाव
- 136 -
कल ह यवराज बना रहा राम को
सो ह सनयनी त मगलसाज सज
यह सन उसका कठोर Uदय फटन लगा
मान कोई बालतोड़ फोड़ा गया हो पक
पर यह भार पीड़ा 8छपा ल उसन
जस चोर क प9 नी Bकट नह रोती
राजा लख नह रह उसक कपट-चतराई
पढ़ायी हई थी वह कGटल मथरा क
य_य3प राजा नी8त म0 8नपण ह
परत (याचVर ह अथाह समgt सा
तब ककयी न ऊपर Bम बढ़ाकर
न और मह मोड़ हसत हए कहा
माग-माग तो कहा करत ह आप
पर दत-लत कछ भी नह कभी
दो वरदान दन को कहा था आपन
पर सदह ह उनक मलन म0 भी
राजा बोल अब म समझा
मान करना परम 3Bय ह तD ह0
तमन व वर कभी माग नह
और वभाव वश याद नह रहा हम0
झठ-मठ दोष दो ना मझ तम
दो क बदल चार वर माग लो चाह
रघकल म0 सदा स र8त चल आयी
Bाण चल जाय0 पर वचन न जाय
अस9 य स बढ़कर कोई पाप नह
स9 य ह जड़ सम त सक9 य क
उस पर ीराम क शपथ 8नकल पड़ी
सीमा मर पb य और नह क
इस Bकार बात पC क कराकर
दब 3+ ककयी राजा स हसकर बोल
मान कमत 4पी बाज को छोड़न
उसन उसक आख पर क पी खोल
राजा का मनोरथ स दर वन ह
सख पय का समदाय स दर
भीलनी क तरह छोड़ना चाहती ह
ककयी अपना वचन4पी बाज भयकर
वह बोल एक वर तो यह दिजय
Aक राज8तलक हो मर प भरत का
और दसरा वर यह दिजय मझ
Aक राम बनवास काट0 चौदह बरस का
ककयी क य कोमल वचन सनकर
अ9 यत 3वकल हो उठ राजा
कछ कहत न बना रग उड़ गया
H य (बजल स झलसा व ताड़ का
मासपारायण तरहवा वाम
- 137 -
सोचन लग हाय यह C या कर डाला
अयोs या नगर को उजाड़ कर Gदया
3वपि9त क सlढ़ नीव डाल द
Aकस अवसर पर यह C या हो गया
मारा गया ी का 3व- वास कर
जस योगी को अ3व_या नa ट कर दती
राजा को य 3वचार करत दख
=ोltधत हो बोल दब 3+ ककयी
C या भरत आप क प नह
या मझ दाम दकर खरद लाय
बाण सा लगा मरा वचन आपको
अपना वचन 8नबाह चाह ना 8नभाय0
स9 य छोड़ अपयश लिजय जगत म0
समझा था यह माग लगी चबना
राजा श(ब दधीltच और बल न
सब कछ 9 याग वचन 8नभाया अपना
जल पर मान नमक 8छड़क रह हो
ऐस कड़व वचन कह रह ककयी
=ोध 4पी नगी तलवार सी Gदखी
उस समय महाराज दशरथ को ककयी
कब3+ उस तलवार क मठ
और 8नa ठरता ह धार उसक
कबर 4पी सान पर तज हई
भयानक और कठोर बहत ह
तब राजा अपना जी कड़ा करक
बहत ह नता स बोल उसस
C य कह रह हो ऐस बर वचन
भरत और राम दोन ह मझ एक स
म अव- य सबर ह दत भजगा
भरत-शv न तरत आ जाय0ग सनकर
अJ छा Gदन शोधवाकर कर सब तयार
भरत को राH य द दगा डका बजाकर
राम को राH य का लोभ नह ह
और भरत पर बड़ा Bम ह उनका
म ह छोट-बड़ का मन म0 3वचार
बड़ को राज8तलक दन जा रहा था
राम क सौ सौग ध खा कहता ह म
कौस या न इस 3वषय म0 कछ न कहा
(बना तमस पछ यह Aकया सब कछ
इसी स मरा यह मनोरथ खाल गया
अब =ोध छोड़ मगल साज सजो
शी ह भरत हो जाय0ग यवराज
पर तमन जो यह दसरा वर मागा
यह बना ह मर दख का काज
मरा Uदय जल रहा उसक आच स
यह Gद लगी =ोध ह या ह सJ चा
सब कहत ह राम बड़ साध ह
=ोध 9 यागकर राम का अपराध तो बता
- 138 -
त भी बहत नह करती थी उसस
कह वह सब तो नह था झठ
िजसका वभाव श को भी अनकल ह
वह C य कछ करगा माता क B8तकल
ह 3Bय 3वचारकर वर माग त
जी न सकगा म राम क (बना
ककयी न कहा आप कछ भी कर0
आपक कोई भी चाल मझस चलगी ना
या तो जो मन मागा वह दिजय
या Aफर ब8नय अपयश क भागी
कौस या न जसा मरा भला चाहा ह
साका कर उसको फल दगी वसा ह
यGद सवरा होत ह राम
म8न वष धर नह जात वन
तो ह राजन 8नि-चत जान लिजय
आपका अपयश होगा मरा मरन
ऐसा कह उठ खड़ी हई ककयी
मानो =ोध क नद उमड़ी हो
राजा दशरथजी व को जड़ स उखाड़
3वपि9त4पी समgt क ओर जा रह जो
राजा न समझ लया ककयी का हठ
तब चरण पकड़ कर क 3वनती उसस
कहा मर म9 य का कारण मत बन
राम को रख ल िजस Aकसी Bकार स
पर जब दखा उ होन0 रोग असाs य ह
हा राम कह ltगर पड़ भम पर
n याकल हो शरर शltथल पड़ गया
कोई श द आता नह जबान पर
ककयी तब कड़व-कठोर वचन बोल
मानो घाव म0 भर रह हो जहर
जो अ त म0 ऐसा ह करना था
तो lsquoमागrsquo lsquoमागrsquo कहा Aकस बल पर
ठहाका मार हसना और गाल फलाना
C या य दोन हो सकत एक साथ
दानी भी कहाना और कजसी भी करना
लड़ाई तो लड़ पर ना होव घात
या तो वचन ह छोड़ दिजय
या Aफर किजय धय को धारण
स9 यtती क लय 8तनक क समान ह
ी प घर प| वी और धन
ककयी क मम -भद वचन सनकर
त जो चाह कह राजा न कहा
मरा काल 3पशाच हो लग गया तझ
वह तझस यह सब कहला रहा
भरत तो भलकर भी राजपद नह चाहत
होनहारवश कम8त बसी तर जी म0
यह सब मर पाप का पVरणाम ह
जो 3वधाता 3वपरत हो गया कसमय म0
- 139 -
तर उजाड़ी हई यह स दर अयोs या
Aफर बसगी ीराम क Bभता होगी
सब भाई ीराम क सवा कर0ग
और तीन लोक म0 उनक बड़ाई होगी
कवल तरा कलक और मरा पछतावा
यह Aकसी तरह भी नह जायगा
अब जीत जी बोलना ना मझस
दर चल जा मझ मह ना Gदखा
बहत तरह स समझाकर उसको
ltगर पड़ प| वी पर महाराज
पर कपट-सया8न ककयी बोलती नह
मान मसान-स3+ का कर रह Bयास
व याकल राजा राम-राम रट रह
मानो पी (बना पख हो बहाल
मना रह वो हो ना सवरा
ीराम स कह ना कोई य हाल
ह रघकल क ग4 सय भगवान
आप उदय कर0 न कल अपना
अयोs या का ऐसा हाल दखकर
आपक Uदय म0 होगी बड़ी पीड़ा
3वलाप करत-करत हो गया सवरा
वा_य बजन लग राज-_वार पर
भाट 3व4दावल गवय गान कर रह
बाण जस लगत राजा को Uदय पर
मी और सवक Bतीा कर रह
C य नह जाग अवधप8त अभी तक
3पछल पहर ह जाग जाया करत वो
पर आज उन सबको हो रहा अचरज
तब व सब सम स बोल
ह सम जी जाओ राजा को जगाओ
उनक आ6ा पा हम सब काम कर0
ज द स आप रावल को जाओ
पर महल का भयानक हाल दख
डर रह ह महल म0 जात हए वो
ऐसा लग रहा मान काट खायगा
3वषाद न डरा डाल रखा हो
जब सम जी न जा कर दखा
राजा दशरथ पड़ थ भम पर
उ ह0 दखकर तब ककयी यह बोल
राजा जागत रह ह आज रात भर
राम-राम रट सबरा कर Gदया
बतलात नह कछ भी पछन पर
तम ज द राम को बला लाओ
तब समाचार पछना वापस आ कर
सब दख-समझ सम तजी चल
कछ कचाल कर ह रानी न
व वहा गय जहा ीराम थ
और लया साथ म0 उ ह0 उ हन
- 140 -
रघवशमKण ीराम न जा कर दखा
राजा पड़ ह बर हालत म0
सख ओठ शरर जल रहा ह
पास ह ककयी भर =ोध म0
कोमल क4णामय वभाव ीराम का
जीवन म0 दख दखा पहल बार
धीरज धर माता ककयी स पछा
वो भी समय का कर क 3वचार
ह माता C य दखी ह 3पताजी
कारण कहो 8नवारण हो सक िजसस
ककयी न कहा ह राम सनो
बहत नह करत ह राजा तम स
दो वरदान राजा न कहा था द0ग
मझ जो अJ छा लगा मागा मन
उस सन राजा सोच म पड़ गय
य तD हारा सकोच छोड़ नह सकत
इधर प का नह उधर B8त6ा
इसी धम -सकट म0 पड़ ह राजा
कर सकत हो तो राजा6ा शरोधाय करो
ताAक इस C लश स उबर0 राजा
बधड़क ऐस कड़वा बोल रह ककयी
सनकर कठोरता भी n याकल हो उठj
जीभ धनष वचन बहत-स तीर
8नगाह0 राजा 4पी 8नशान पर Gटक
सय कल क सय आन द8नधान ीरामजी
मन म0 मसकरा कर बोल माता स
माता-3पता क वचन का जो अनरागी
ध य ह माता-3पता सतa ट ह िजसस
वन म0 म8नय का होगा मलाप
मरा सब तरह क याण ह िजस म0
उसम0 भी Aफर 3पताजी क आ6ा
और तD हार सD म8त ह इस म0
आज 3वधाता अनकल लगत ह
Aक राH य मलगा Bाण3Bय भरत को
यGद इसक लय भी वन न जाऊ
सबस बड़ा मख ltगना जाऊगा तब तो
ऐसा मौका कोई भी न च कगा
जो सअवसर आपन Gदया ह आज
इतनी सी बात पर 3पताजी n याकल ह
इस बात पर मझ नह होता 3व- वास
ीराम क सीध-सरल वचन सनकर भी
टढ़ा ह जान रह ह ककयी उ ह0
जस य_य3प जल समान ह होता ह
पर टढ ह चलती ह जक उसम0
ीराम का 4ख पा ह3ष त ककयी
बोल कपटपण नह का कर Bदश न
तD हार और भरत क सौगध मझ
3वGदत नह मझ कोई और कारण
- 141 -
ह तात अपराध योY य नह तम
बिक सबको सख दन वाल हो
तम जो कह रह हो स9 य ह
माता-3पता क वचन म0 त9 पर हो
बलहार तD हार 3पता को वह बात कहो
बढ़ाप म0 इनका अपयश न हो िजसस
िजस पb य न उ ह0 तमस प Gदय
उltचत ह आदर दना ह उस
ककयी क मख म0 य शभ वचन
मगध म0 गया आGद तीथ स लगत
पर ीराम को अJ छ लग माता क वचन
H य गगा म0 सब जल शभ ह रहत
इतन म0 मछा दर होन पर
ीराम को चरण म0 पड़ता दखा राजा न
मख स व कछ कह नह सकत
बस उनको Uदय स लगा लया उ होन0
मन म0 EFमाजी को मना रह राजा
Aक ीरामजी जाय0 न वन को
Aफर 8नहोरा करत महादवजी स कहत ह
दख दर किजय सवक जान मझको
Bरक4प स सबक Uदय म0 ह आप
ऐसी ब3+ दिजय आप ीराम को
मरा वचन 9 याग शील- नह को छोड़
ीरामच gt कदा3प न जाय0 वन को
चाह अपयश हो नa ट हो जाय सयश
म नरक म0 ltग4 वग चला जाय
दसह दख आप मझस सहन करा ल0
पर ीराम आख स दर न जाय0
इस तरह सोच 3वचार कर रह राजा
पर मन उनका प9त सा डोल रहा
उधर ीराम न Bमवश जान 3पता को
3वनीत भाव स उनस यह कहा
बस इतनी सी बात क लय
इतना दख पाया ह तात आपन
मझ पहल Aकसी न न बताया
माता स पछकर यह जाना मन
उनस यह सारा Bसग सनकर
बड़ी Bस नता हई ह मझ
ह 3पताजी नहवश सोचना छोड़
Bस न हो आ6ा दिजय मझ
Aफर बोल उसका ह ज म ध य ह
िजसका चVर सन 3पता आनिदत ह
चार पदाथ उसक मी म0 रहत
िजसको माता-3पता Bाण स 3Bय ह
आ6ा पालन कर ज द लौट आऊगा म
अत कपा कर आ6ा दिजय मझ
माता स 3वदा माग आता ह
यह कह ीराम वहा स चल Gदय
- 142 -
शोकवश कोई उ9तर द न सक राजा
ककयी चपचाप खड़ी दखती रह
(बJ छ का जहर जस चढ़ता ह
नगर म0 फल यह बात वस ह
इस अ3Bय बात को सनकर नगरवासी
सर धन रह 3वलाप कर रह
बनत-बनत बात (बगाड़ द 3वधाता न
सब लोग ककयी को दोष द रह
प9त पर बठ पड़ काट डाला
सख म0 घोल Gदया जहर शोक का
ीराम इस Bाण स 3Bय थ
Aफर न जान C य ठानी कGटलता
स9 य ह कहत ह क3व जन
ी वभाव अथाह भद भरा होता
परछायी भल ह पकड़ी जाय
िय क चाल कोई नह जानता
आग C या जला नह सकती
समgt म0 C या समा नह सकता
अबला C या नह कर सकती
काल स कौन बचा रहता
C या स C या कर Gदया 3वधाता न
राजा (बना 3वचार वर द बठ
ककयी क बात मानन पर अड़ रह
वय दख क पा बन बठ
कोई कह रहा ी क वश होन स
मानो जाता रहा उनका गण और 6ान
जो सयान ह उ ह0 दोष नह दत
श(ब दधीltच हVरशच gt का करत बखान
कोई भरतजी क सD म8त बतात इसम0
कोई झठ कहत ऐसी बात को
ऐसी बात स पb य नa ट हो जाय0ग
Bाण स 3Bय ह राम भरत को
च gtमा चाह आग बरसान लग
चाह अमत 3वष समान हो जाय
पर त यह कदा3प सभव नह
Aक भरतजी ीराम क 3व4+ जाय0
कोई एक 3वधाता को दोष दत ह
अमत Gदखाकर 3वष द Gदया िजसन
खलबल मच गयी सब सोच म0 पड़
आन द उ9 साह क जगह ल दख न
ककयी क 3Bय माननीय बड़ी-बGढया
सीख दन लगी शील क सराहना कर
पर ककयी को बाण स लगत ह
उनक बात का होता नह कछ असर
व कहती ह राम ] यार थ तD ह0
ना कभी सौ8तयाडाह Aकया तमन
कौस या या राम न C या अपराध Aकया
Aक राम को भज रह हो वन म0
- 143 -
C या सीताजी छोड़ द0गी प8त का साथ
C या लu मणजी घर पर रह सक0 ग
C या अयोs या का राजा भोग0ग भरतजी
C या राम (बन राजा जी3वत रह सक0 ग
=ोध छोड़ दो Uदय म0 ऐसा 3वचारकर
शोक और कलक क कोठj मत बनो
अव- य ह द दो भरत को यवराजपद
पर ीराम को वन मत जान दो
भख नह ह ीराम राH य क
3वषयासिCत उनम0 ह ह नह
कोई शका मन म0 ना लाओ
राम कोई 3वv न डाल0ग नह
इतन पर भी मन न मान तो
तम राजा स यह वर माग लो
ीराम ग4 क घर जा कर रह0
वन-गमन का वचन वापस ल लो
िजस तरह यह शोक और कलक मट
वह उपाय कर कल क रा कर
दसर और कोई बात न चला
लौटा ल ीराम को हठ कर
तलसीदास कहत ह सय क (बना Gदन
च gtमा (बन H य फक हो जाती रात
वस ह अयोs या शोभाहन हो जायगी
जो मानी न तमन हमार यह बात
पर कGटला कबर क सखायी हई
ककयी न इसपर Gदया ना कान
सब समझा-बझा हारकर चल द
ककयी को म दब3+ अभाltगन जान
नगर क सब लोग 3वलाप कर रह
और अनक गालया द रह ककयी को
3वयोग क आशका स य n याकल हो रह
H य जल सखन पर जलचर n याकल ह
माता कौस या क पास गय ीराम
मख Bस न ह मन म0 चौगना चाव
बड़ भाई का ह राज8तलक C य होता
मन स मटा यह 3वषाद का भाव
चरण म0 सर नवाया ीराम न
माता न उठा लगा लया Uदय स
उनका आन द कछ कहा नह जाता
न भर आय Bम म0 जल स
Aफर व बोल ह तात कहो
कब वो शभ लY न ह आन दकार
नहा-धो कर 3पता क पास जाना
माता जाती ह तम पर बलहार
माता क ऐस वचन सनकर भी
ीराम का मन उन पर ना अटका
अ9 यत कोमल वाणी स माता स बोल
3पता न मझ राH य Gदया ह वन का
- 144 -
मरा बड़ा काम बनन वाला ह वहा
सो त Bस न मन स द आ6ा मझ
मर नहवश भलकर भी डरना नह
लौटकर Aफर चरण म0 Bणाम क4गा तझ
ीराम क य न और मीठ वचन
बाण स लग माता क Uदय म0
कौस याजी वस ह सहमकर रह गयी
जस जवासा सख जाता ह वषा म0
Uदय का 3वषाद कछ कहा नह जाता
पर धीरज धर कहा माता न
Bाण स 3Bय हो तम 3पता को
Aफर Aकस कारण बनवास Gदया उ होन0
तब 4ख दखकर ीरामच gtजी का
मी क प न समझाया सब कारण
सब सन वह गगी सी हो गयी
उनक दशा का नह हो सकता वण न
ना तो रोक सकती ह व उनको
ना ह कह सकती चल जाओ वन
धम और नह म0 _व _व हो रहा
Aफर मन को समझाकर बोल य वचन
ह तात अJ छा Aकया तमन
3पता क आ6ा को जो माना
सब धमr का शरोमKण धम
3पता क आ6ा पर कर लाना
लशमा भी मझ दख नह इसका
राH य क जगह बनवास द Gदया
पर भरत महाराज और Bजा को
भार C लश होगा तD हार (बना
ह तात कवल 3पता क आ6ा हो
तो माता को बड़ी जान 4क जाओ
पर यGद माता-3पता दोनो न कहा हो
तो उनक आ6ा कदा3प ना ठकराओ
वन क दवी-दवता माता-3पता हग
और पश-पी तD हार चरण क सवक
राजा को अ त म0 बनवास ह उltचत ह
पर तD हार यवाव था ह दख क कारक
ह रघवश 8तलक वन बड़ा भाY यवान ह
और यह अवधनगर ह बड़ी अभागी
यGद म कह मझ साथ ल चलो तो
सोचोग माता बहान स मझ रोकना चाहती
ह प तम सबक परम 3Bय हो
Bाण क Bाण और Uदय क जीवन
तम कहत माता म वन को जाऊ
म बठj पछताती सनकर तD हार य वचन
यह सोचकर झठा नह बढ़ाकर
हठ नह करती म ह बटा
पर माता का नाता जान कर मझ
तम भल न जाना ह बटा
- 145 -
H य पलक0 आख क रा करती
दव और 3पतर तD हार रा कर0 वस
जल ह तD हार बनवास क अवltध
3Bयजन और कटD बी ह मछल स
दया क खान धम क धर हो तम
ऐसा 3वचारकर वह उपाय तम करना
सबक जीत-जी िजसस वापस आ मलो
यह 8न- चय कर वन को गमन करना
सबक पb य का फल परा हो गया
3वपरत हो गया कGठन काल हमार
ऐसा कह चरण स लपट माता
कस जी पाऊगी म (बना तD हार
Uदय स लगा लया माता को राम न
Aफर समझाया उ ह0 कोमल वचन कहकर
तभी यह समाचार सन सीताजी अकला उठj
सास क चरण म0 बठj शीश झकाकर
आशीवा द Gदया सास न कोमल वाणी स
n याकल हो उठj सकमार सीता को दखकर
उधर प8त स प3व Bम करन वाल
सीताजी सोच रह ह नजर झकाकर
Bाणनाथ वन को चलना चाहत ह
दख0 साथ होगा उनका Aकस पb यवान स
शरर और Bाण दोन साथ जाय0ग
या इनका साथ होगा कवल Bाण स
नख स धरती करद रह सीताजी
उसस नपर स जो श द हो रहा
मान Bमवश नपर 3वनती कर रह
उनक चरण का सग छट न जरा
जल बहा रह सीताजी न स
माता कौस या बोल उ ह0 दखकर
ह तात सनो सास-ससर कटD बी
] यार करत ह इ ह0 Bाण स बढ़कर
राजाओ क शरोमKण ह इनक 3पता जनक
और सय कल क सय ह ससर इनक
इस सय कल4पी कमलवन को Kखलानवाल
गण और 4प क भb डार ह प8त इनक
Aफर 4प क राश गण और शीलवाल
] यार जानक पवध पायी ह मन
आख क पतल बना कर Bम बढ़ाया
अपन Bाण लगा रC ख ह इनम0 मन
क पलता क समान बहत तरह स
नह4पी जल स सीचकर पाला इ ह0
फलन-फलन क समय 3वधाता हए वाम
C या पVरणाम होगा इसका पता न मझ
पलग Gहडोल और गोद को छोड़कर
प| वी पर पर न रC खा सीता न
सजीवनी जड़ी समान रखवाल करती रह म
ब9ती हटान को भी कभी कहा न मन
- 146 -
वो ह तD हार साथ वन जाना चाहती ह
C या आ6ा होती ह उस ह रघनाथ
च gtमा क Aकरण का रस चाहनवाल चकोर
कस मला सकती ह सय स आख
अनक दa ट जीव ज त 3वचरत वन म0
Aकस तरह सीता वहा रह सकगी
त वीर क बदर स जो डर जाती
कस उनका सामना वह कर सकगी दव सरोवर क कमलवन म0 1वचरण वाल ह3सनी
योY य ह C या तलय म रहन क
ऐसा 3वचारकर जसी तD हार आ6ा हो
वसी ह शा द जानकजी को म
माता बोल यGद सीता घर म0 रह0
तो बहत सहारा हो जाय मझको
माता क 3Bय वाणी सनकर ीराम न
3Bय वचन कह सतa ट Aकया माता को
माता क सामन कछ कहत सकचात
पर ऐसा अवसर Aक कहना पड़ा
बोल ह राजकमार मर सखावन सनो
मन म0 समझ न लना अ यथा
जो चाहती हो अपना और मरा भला
तो मरा कहा मान रहो घर म0
मर आ6ा-पालन सास क सवा होगी
सब तरह स भलाई ह इस म0
सास-ससर क सवा सवपVर धम ह
माता क मन को बहलाती रहना
म भी आ6ा पालन कर शी लौटगा
बड़ा ह C लशदायक ह बन म0 रहना
भम पर सोना व कल व पहनना
क द-मल फल का भोजन होगा
और Aफर व भी मल0 ना मल0
तरह-तरह क कa ट को सहना होगा
वन क योY य नह हो तम
इसस लोग मझ अपयश द0ग
मानसरोवर म0 पल-बढ़ हसनी
खार समgt ल गय लोग कह0ग
वाभा3वक ह Gहत चाहत ग4 और वामी
उनक बात जो सर चढ़ाकर नह मानता
उसक Gहत क हा8न अव- य होती ह
Aफर पीछ वह सर धनकर पछताता
3Bयतम क कोमल मनोहर वचन सनकर
जल भर आया जानकजी क न म0
ऐसी जलानवाल हई यह शीतल सीख
जस चादनी चकवी को शरद ऋत म0
मासपारायण चौदहवा वाम
- 147 -
कछ उ9तर दत नह बनता उनस
पर n याकल हो उठj व यह सोचकर
मर वामी मझ छोड़कर जाना चाहत ह
तब कहन लगी सास क पाव पड़कर
ह द3व मा किजय मर Gढठाई
मझ Gहतकार शा द Bाणप8त न
परत मन मन म0 जान लया Aक
प8त-3वयोग समान नह दख जग म0
ह Bाणनाथ ह दया क धाम
ह स दर सखदायी ह सजान
आपक (बना वग भी मर लय
ह वामी ह नरक क समान
माता-3पता भाई-बहन प-पी
सास-ससर ग4 और भी वजन सभी
सय स भी बढ़कर तपान वाल ह
प8त क (बना य Vर- त-नात सभी
भोग रोग स गहन भार भर
और ससार यम-यातना क जस
जीव दह (बना नद जल (बना
ह नाथ ी प8त (बना वस
आपका साथ होन मा स ह
मर लय सभी सख ह सलभ
वन क पश-पी मर कटD बी हग
व क छाल ह 8नम ल व
पण कट वग सा सख दन वाल
वन दवी-दवता सास ससर समान
कशा और प9त क स दर साथर
Bभ क साथ मनोहर तोशक समान
क द मल फल ह अमत स फल
पहाड़ अयोs या क राजमहल स
ण-ण म0 Bभ क चरण क दश न
आनिदत कर0ग मझ चकवी को Gदन स
ह नाथ आपन वन क बहत स
दख भय 3वषाद और सताप कह
पर व सब मलकर भी ह कपा8नधान
आपक 3वयोग क समान नह लगत
साथ ल लिजय ह Bभ मझ
सबक Uदय क जानन वाल ह आप
यGद चौदह वष अयोs या म0 रखत ह
तो मझ जी3वत नह पाय0ग आप
ण-ण आपक चरणकमल दखत रहत
थकावट न होगी मझ माग चलन म0
सब Bकार स आपक सवा क4गी
और आपको Bस न रखगी वन म0
Bभ क साथ रहत मर ओर दख
इतनी GहD मत ह भला Aकस म0
म सकमार बन यहा पर सख भोग
और आपको उltचत जाना वन म0
- 148 -
जब ऐस कठोर वचन सनकर भी
ह Bभ मरा Uदय न फटा
तो मालम होता ह य पामर Bाण
भीषण दख सह0ग आपक 3वयोग का
बहत n याकल हो गयी सीताजी यह कहकर
सभाल न सक व अपन आप को
तब जान लया ीरघनाथजी न जी म0
रख न सक0 गी सीताजी अपन Bाण को
तब कपाल ीरामच gtजी न कहा
सब सोच छोड़कर मर साथ चलो
आज 3वषाद करन का अवसर नह
तरत वनगमन क तयार करो
3Bय वचन कह सीताजी को समझाया
Aफर आशीवा द लया कौस या माता स
माता न कहा लौटकर ज द आना
दख पाऊ िजसस म तD ह0 Aफर स
यह दख Aक माता अधीर हो गयी ह
इतनी अltधक क बोल नह 8नकलता
अनक Bकार स उ ह0 समझाया ीराम न
वह नह वण न नह Aकया जा सकता
तब सास क पाव लग बोल सीताजी
म बड़ी ह अभाltगनी ह ह माता
आप क सवा करन क समय दव न
मरा मनोरथ 3वफल कर Gदया माता
सीताजी क ऐस माम क वचन सनकर
बार-बार उ होन0 उ ह0 लगाया Uदय स
Aफर बोल जब तक गगा-यमना बह
तब तक अचल तD हारा सहाग रह
जब पाय य समाचार लu मणजी न
व n याकल हो उदास-मह उठ दौड़
रोमाltचत और किDपत हो रहा शरर
अधीर हो ीराम क चरण-कमल पकड़
कछ कह नह सकत दन हो रह
मान मछल 8नकाल द गयी जल स
नह जानत व C या होन वाला ह
C या ीराम ल चल0ग साथ म0 अपन
तब नी8त म0 8नपण ीरामच gtजी बोल
ह तात अधीर मत होओ Bम म0
ग4जन क शा जो माथ रखत
उनका ह जीवन सफल होता जग म0
ह भाई Uदय म0 ऐसा जानकर
माता-3पता क चरण क करो सवा
भरत-शv न भी घर पर नह ह
महाराज क मन म0 दख ह मरा
ऐस म0 यGद तD ह0 साथ ल जाऊ
तो अयोs या हो जायगी सभी Bकार अनाथ
िजसक राH य म0 Bजा दखी रहती ह
वह राजा नरक म0 जाता ह तात
- 149 -
ऐसी नी8त 3वचार तम घर रह जाओ
यह सन n याकल हो गय लu मणजी
इन वचन स व ऐस सख गय
जस कमल पाल का पश पात ह
चरण पकड़ तब व बोल राम स
दास ह म मर वामी ह आप
C या इसम मरा वश चल सकता
यGद यह मझ जो छोड़ द0 आप
य_य3प आप क सीख ह अJ छj
पर बाहर ह यह मर साम| य स
नी8त और शा क व ह अltधकार
धारण करनवाल जो धम -धर क
म तो आपक नह म0 पला
माता-3पता ग4 को नह जानता
मर तो सव व ह आप ह
आपक सवाय और कछ नह चाहता
मन वचन और कम स जो
Bम रखता हो आपक चरण म0
वह भला C या 9 यागन योY य ह
यह कह लu मणजी लपट चरण म0
भाई क कोमल और मद वचन सनकर
दया8नltध न उठाकर गल स लगाया
बोल माता स जाकर 3वदा माग आओ
लu मणजी न अपना मन चाहा पाया
माता स 3वदा मागन गय लu मणजी
सब सनकर समाजी सहमी ऐस
वन म0 चार ओर आग लगी दख
असहाय Gहरनी सहम गयी हो जस
लu मणजी यह सोच सकचा रह
कह नहवश य काम (बगाड़ न द0
मा स 3वदा मागत डरत ह
कह य मझ जान द0 ना द0
समाजी सोच रह ककयी न
बर तरह यह घात लगाया
पर कसमय जान धय धारण कर
कोमल वाणी स लu मणजी को समझाया
त तात जानकजी माता ह तD हार
और नह ीराम 3पता क समान
यGद व दोन वन जात ह तो
तD हारा अयोs या म0 कछ भी नह काम
ग4 माता-3पता भाई दवता और वामी
इनक सवा करनी चाGहय Bाण क समान
Aफर ीराम तो सबक वाथ रGहत सखा ह
Uदय क भी जीवन Bाण क Bाण
पजनीय और 3Bय लोग जहा तक
मानन योY य सब रामजी क नात स
ऐसा जान उनक साथ वन जाओ
और जीन का लाभ उठाओ जगत म0
- 150 -
बड़ा ह सौभाY य ह हम दोन का
ीराम-चरण म0 तमन पाया थान
िजसका प ीरघनाथजी का भC त हो
वह माता पवती वरना बाझ समान
सD पण पb य का सव9तम फल यह
वाभा3वक Bम हो ीसीताराम चरण म0
सब तरह स उनक सवा करना
कोई C लश न पाव0 व वन म0
इस Bकार उपदश द लu मणजी को
वन जान क आ6ा द समाजी न
Aफर आशीवा द Gदया 8नत-नया Bम हो
ह तात तD हारा उनक चरण म0
माता क चरण म0 सर नवाकर
तरत चल Gदय लu मणजी ऐस
सौभाY यवश कGठन फद को छड़ाकर
कोई Gहरण भाग 8नकला हो जस
वहा गय जहा ीरघनाथजी थ
बड़ Bस न हए व मन म0
उधर नगर क सभी ी-पष
बहत उदास थ अपन मन म0
सीताजी सGहत ीराम और लu मण
महाराज क पास गय राजमहल म0
नहवश n याकल हो महाराज उ ह0
सीन स लगा लत ह अपन
भयानक सताप स 8घर महाराज स
चरण म0 सर नवा 3वदा मागी
बोल 3Bय क Bमवश Bमाद करन स
जगत म0 अपयश और 8न दा होगी
यह सनकर नहवश राजा न
बठा लया राम को बाह पकड़कर
बोल तD हार लय म8न लोग कहत ह
तम वामी हो सवक सम त चराचर
शभ और अशभ कमr क अनसार
ई-वर Uदय म0 3वचारकर फल दत
जसा जो करता वसा फल पाता
वद क नी8त सब यह कहत
Aकत यहा इसस 3वपरत हो रहा
कर कोई फल कोई पा रहा
Bभ क लला बड़ी 3वltच ह
कौन जगत म0 समझ पा रहा
राजा न इस Bकार उ ह0 रोकन को
छल छोड़कर बहत स Bयास Aकय
पर धीर धम -धर धर ब3+मान राम
उ ह0 4कत हए न जान पड़
ऐसा दख सीताजी को समझाया उ होन0
वन क दसह दख को कहकर सनाया
पर सीताजी का मन राम चरण म0 अनरCत
Aकसी भी तरह स डगन नह पाया
- 151 -
सम जी और वसa ठजी क पि9नय न भी
कहा सीताजी को वन न जान को
बोल व तD ह0 तो बनवास न Gदया
मानो अपन सास-ससर क कहन को
सीताजी को य बात0 अJ छj न लगी
पर कह न सक कछ सकोच वश
य बात0 सन ककयी तमककर उठj
वन जान का सामान Gदया लाकर रख
Aफर बोल राम स ह रघवीर
Bाण स 3Bय हो तम राजा को
शील और नह नह छोड़0ग राजा
कभी न कह0ग तD ह0 वन जान को
बड़ा सख पाया ीराम न यह सन
पर राजा को य बाण स लग
म8छ त हो गय राजा य सोचकर
अब भी य अभाग Bाण न गय
उधर म8न का सा वष धारण कर
सीता और लu मण सग चल ीराम
राजमहल स 8नकल EाFमण को बलाकर
वश म0 Aकया द आदर और दान
Aफर दास-दासय को ग4जी को सyपकर
कहा माता-3पता बन रKखय इ ह0
Aफर सबको हाथ जोड़कर ीराम न कहा
वह कVरय िजसम0 महाराज सखी रह0
Aफर परवासय स बोल ह चतर सH जन
आप लोग कVरयगा वह उपाय
िजसस मर कोई भी माता
मर 3वरह स दखी होन न पाय
इस Bकार सबको समझाकर ीराम
ग4-चरण म0 सर नवाकर चल
Aफर गणश पाव ती और महादव को मना
उनका आशीवा द पाकर वन को चल
भार 3वषाद अयोs या म0 छा गया
और बर शकन होन लग लका म0
उधर दवलोक म0 भी सब लोग
हए हष और 3वषाद क वश म0
हष इसलय Aक नa ट हग रास
3वषाद अयोs यावासय क दख क कारण
उधर महाराज मJ छा स जागकर
कहन लग हाय राम चल गय वन
पर न जान Aकस सख क लय
नह 8नकल रह0 ह मर Bाण
इसस अltधक और C या n यथा होगी
िजसक कारण 8नकल0ग य Bाण
Aफर धीरज धर सम तजी स कहा
तम रथ ल ीराम सग जाओ
दोन कमार और सकमार जानक को
वन Gदखा चार Gदन बाद लौटा लाओ
- 152 -
यGद दोन भाई ना भी लौट0
C यAक सJ च ह ीराम वचन क
तो तम हाथ जोड़कर 3वनती करना
कम स कम जानकजी को लौटा द0
जब सीताजी वन को दखकर डर0
तो मौका दखकर मर सीख कहना
सास-ससर न कहा ह लौट चलो
कभी ससराल कभी 3पता घर रहना
यGद सीताजी लौट आय0 तो
हो जायगा मर Bाण को सहारा
वरना मरा तो मरण ह होगा
3वधाता क आग C या ह चारा
राजा क आ6ा पाकर सम जी
रथ जड़वाकर तरत वहा गय
सीतासGहत दोन भाई थ जहा
रथ पर चढ़ा उ ह0 ल चल
ीरामच gtजी को जात हए दख
सब लोग हो लय साथ उनक
बहत तरह समझाकर लौटात ह राम
पर व वापस आ जात Aफर क
बड़ी डरावनी लग रह ह अयोs यापर
मानो अ धकारमयी कालरा( ह हो
भयानक ज तओ स लग रह लोग
एक-दसर को दख डर रह वो
पश-पी भी 3वयोग म0 n याकल हो
जहा-तहा पर खड़ ह ऐस
मान Aकसी ltचकार न ltच म0
खीचकर रख Gदया हो उ ह0 जस
फल स पVरपण सघन वन सा नगर
नगरवासी बहत स पश-पी स
3वधाता न ककयी को भीलनी बना
जला Gदया उस भयानक दावानल स
ीराम क (बना Aकस काम का नगर
सोच कर सब लोग नगर छोड़ चल
िजनको ीराम क चरण-कमल ] यार ह
3वषय-भोग कर नह सकत वश म0
बJ च और बढ़ को घर म0 छोड़
सब लोग हो लय ीराम क साथ
पहल Gदन तमसा नद Aकनार राम न
सबको साथ ल वहा Aकया 8नवास
Bजा को Bम क वश दखकर
gt3वत हो उठा Uदय ीराम का
बहत तरह समझा-बझाकर लोग को
वापस अयोs या लौट जान को कहा
परत Bमवश लोग लौटत नह लौटाय
शील और नह छोड़ा नह जाता
जब हार-थकरकर सो गय लोग
ीराम न उ ह0 लौटान का उपाय 3वचारा
- 153 -
सम जी स व बोल ह तात
रथ क खोज मारकर हाAकय रथ को
और Aकसी उपाय स बात न बनगी
बस यह माग ह लौटान का उनको
ीशकरजी क चरण म0 सर नवाकर
राम-सीता लu मण चढ़ रथ पर
मी सम जी न उनक बठत ह
चला Gदया रथ खोज 8छपाकर
सबरा होत ह जब लोग जाग
राम चल गय शोर मच गया
सब लोग n याकल हो रह ऐस
जस समgt म0 जहाज डब गया
एक-दसर स कह रह ह वो
हम0 C लश होगा यह जान ीराम न
छोड़ Gदया ह हम लोग को यहा
C या रC खा ह ऐस जीन म0
इस Bकार Bलाप करत हए वो
लौट आय अयोs या नगर को
चौदह वष क अवltध क आशा स
रख हए ह व अपन Bाण को
उधर ीराम गवरपर जा पहच
जहा गगाजी को दb डवत क उ हन
नान करत ह सब म मट गया
जल पीकर मन Bस न Aकया उ हन
िजनक मरण मा स ज म-म9 य का
महान म भी तरत जाता हर
उनक म का मटना कसा
यह तो कवल ह लौAकक लला भर
(गण स रGहत मायातीत Gदn य सिJचदान द
सय कल क s वजा4प ीराम भगवान
मनa य क सlश ऐस चVर करत ह
भवसागर तरन को जो पल समान
8नषादराज गह न जब पायी खबर
ब ध-बा धव क साथ भ0ट ल चला
अपार हष था उसक Uदय म0
दb डवत कर Bभ को दखन लगा
कशल पछj Bभ न पास बठाकर
8नषादराज न कहा Bताप आपक चरण का
आज स म भी ltगना जाऊगा भाY यवान
यह प| वी धन घर सब ह आपका
म तो सपVरवार आपका सवक ह
अब गवरपर पधाVरय कपा कर
ीराम न 3पता क आ6ा बतलायी
चौदह वष रहना नह नगर जाकर
बड़ा दख हआ गह को यह सनकर
ी-प4ष कर रह बात आपस म0
कहो तो व माता-3पता कस ह
सकमार बालक को Gदया बनवास िज हन
- 154 -
कोई कहता ह अJ छा Aकया राजा न
इस बहान हम0 दश न हय इनक
उधर 8नषादराज न अशोक व क नीच
ठहरन क n यव था क उनक
फल-फल और पानी अपन हाथ स
लाकर रख Gदय वहा 8नषादराज न
उन सबन जब खा-पी लया
लu मणजी लग ीरामजी क पर दबान
Aफर Bभ ीरामच gtजी को सोत जानकर
लu मणजी उठ सम जी को कहा सोन को
और वय धनष-बाण स सजकर
वीरासन म0 बठ गय पहरा दन को
उधर गह न भी 3व- वासपा पहरदार
8नयCत कर Gदय जगह-जगह पर
Aफर वय भी लu मणजी क पास जा बठा
कमर म0 तरकस धनष पर बाण चढ़ाकर
Bभ को जमीन पर सोत दखकर
Bमवश 8नषादराज को 3वषाद हो आया
पलAकत शरर जल बहन लगा न स
दशरथजी का महल उस मरण हो आया
कहन लगा इ gtभवन स स दर महल
प3व 3वलण पVरपण सब साधन स
जो सीताराम वहा 3वाम करत थ
दख नह जात व ऐसी दशा म0
घास-फस क साथर पर थक
सोय हए ह आज व दोन
Bाण सी सभार होती थी िजनक
प| वी पर सोय ह आज व दोन
महाराज जनकजी 3पता ह िजनक
Bभाव Bस+ ह िजनका जगत म0
ससर इ gt क म प8त ीराम
वो ह जानकजी सोयी ह जमी प
C या य दोन वन क योY य ह
3वधाता B8तकल होता नह Aकसको
सच ह कम Bधान ह जग म0
भाY य न भला बk शा ह Aकसको
बड़ी कGटलता क ककयनGदनी न
बनवास द Gदया ीसीता-राम को
क हाड़ी बनी सय कल4पी व हत
दखी कर Gदया सD पण जगत को
तब 6ान वराY य और भिCतरस सनी
कोमल वाणी स बोल लu मणजी
कोई Aकसी को दख-सख नह दता
अपन ह Aकय को भोगत ह सभी
सयोग-3वयोग भला-बरा जीना-मरना
और जहा तक जजाल ह जगत क
जो कछ दखा सना 3वचारा जाता
मोह ह मल म0 ह इन सब क
- 155 -
जस व] न म0 राजा रक हो जाय
या कगाल हो जाय वामी वग का
तो भी जागन पर लाभ ना हा8न
यह l- य-Bपच भी दखना चाGहय वसा
=ोध नह करना चाGहय सोचकर ऐसा
न n यथ दोष दना चाGहय Aकसी को
मोह4पी रा( म0 सोन वाल ह सब
Gदखायी दत ह उ ह0 व] न अनक
योगी जागत ह इस ज गत4पी रा( म0
परमाथ और छट हए Bपच स
जागा हआ जानना चाGहय तभी जीव को
वराY य हो जाय जब सभी भोग स
3ववक होन पर जब मोह मट जाता
Bम तब होता ीरघनाथ चरण म0
मन वचन कम स उनक चरण म0 Bम
यह सव a ठ प4षाथ ह जग म0
परमव त परEFम अ3वगत अलख अनाGद
अनपम 3वकाररGहत भद-श य ह ीराम
न8त-न8त कह वद 8न4पण करत िजनका
मनa य-तन धर लला करत व ीराम
ह सखा मन म0 ऐसा समझकर
मोह 9 याग ीसीताराम चरण म0 Bम करो
िजनको भजन स जग-जजाल मट जात
8न9 य-8नर तर उनका ह भजन करो
Aफर सवरा होन पर ीराम जाग
नान-s यान कर बड़ का दध मगवाया
छोट भाई लu मणजी सGहत उस दध को
जटा बनान हत सर पर लगवाया
उदास हो गय सम जी यह दख
बोल कोसलनाथ का था यह कहना
वन Gदखाकर और गगा नान कराकर
दोन भाइय को तरत लौटा लाना
ऐसी आ6ा महाराज न द थी
अब Bभ कह0 क4 म वस
यह कह ltगर पड़ ीराम चरण पर
और रोन लग बालक क जस
Aफर बोल कपा कर वह किजय
िजसस अयोs या हो न अनाथ
मी को उठा धय बधात हए
ीराम न कहा स8नय ह तात
अपन सभी धम -स+ा त छान डाल
धम हत करोड़ कa ट सह लोग न
वद शा और पराण भी कहत ह
धम स बढ़कर कछ न माना उ होन0
मासपारायण पहवा वाम
- 156 -
सहज ह पा लया मन वह धम
अपयश छा जायगा िजस छोड़न स
करोड़ म9 य सा सताप दता ह अपयश
इसस अltधक C या कह ह तात आपस
आप जाकर 3पताजी क चरण पकड़कर
3वनती करयगा व हमार ltच ता न कर0
आप भी 3पता स ह Gहतषी ह हमार0
3पताजी दखी न होव0 कछ ऐसा कर0
n याकल हो गया 8नषादराज सब सन
तभी लu मणजी न कछ कड़वी बात कह
बहत ह अनltचत जानकर उस ीराम न
सौगध Gदलायी सम जी को कह0 न कह
तब सम जी न राजा का सदश कहा
सह न सक0 गी सीता C लश वन क
जस भी हो सीता को लौटा लाना
वरना जी ना सकगा अकला रह क
मायक या ससराल जहा जी चाह
वह रह लगी सीता सख स
कहा नह जा सकता जस कहा
राजा न िजस दनता और Bम स
3पता का सदश सनकर ीराम न
अनक Bकार स सीख द सीता को
कहा जो तम घर को लौट जाओ
दर कर दोगी सबक ltच ता को
तब सीताजी न कहा ह तात स8नय
परम 6ानी और क4णामय ह आप
C या छाया शरर का छोड़ सकती ह
C या Aकरण0 कर सकती सय -च gt का 9 याग
इस Bकार Bममयी 3वनती कर सीताजी
बोल सम जी स आप ह 3पता समान
बदल म0 आपको उ9तर दना अनltचत ह
पर मा किजय मझ आ9त जान
वामी क चरणकमल क (बना जगत म0
मर लय n यथ ह सभी नात
प8त क (बना 3पता क घर क
सख और ऐ-वय भी मझ नह भात
च=वत साट ह मर ससर कोसलराज
चौदह लोक म0 Bकट ह Bभाव िजनका
आग होकर इ gt भी वागत करता ह
आध सहासन पर बठन को थान दता
ऐस ससर और माता क समान सासए
ीरघनाथ चरण (बना सखदायक नह लगत
दग म वन जगल पश-पी नद पहाड़
मझ सखदायी होग0 Bाणप8त क सग रहत
सो ह तात सास-ससर क पाव पकड़
कहना व मर सोच न कर0
कोई xम दख या थकावट न मझ
धनधा र Bाणनाथ और दवर साथ ह मर
- 157 -
ऐस n याकल हए सम जी यह सन
जस साप मKण खो जान पर
कछ सनता नह Gदखाई नह दता
कर नह सकत कछ वो मगर
बहत तरह समाधान Aकया ीराम न
पर सम जी को शाित मलती नह
बहत य9 न Aकया साथ ल चलन का
पर रघनाथ क आग कछ चलती नह
उनक आजा भी टाल नह जा सकती
वश नह चलता कछ कम -ग8त पर
तब सर नवाकर ऐस लौट सम जी
जस कोई n यापार मलधन लटन पर
जब सम जी न रथ को हाका
घोड़ ीराम क ओर दख GहनGहनात
यह दख 8नषाद लोग 3वषाद वश
अपना सर धन-धनकर पछतात
पश भी n याकल िजनक 3वयोग म0
Bजा माता-3पता जीत रह0ग कस
तब ीराम गगा तीर पर आय
और मागी उ हन नाव कवट स
ीराम कह रह ह नाव लान को
Aफर भी कवट नाव नह लाता
कहता ह जान लया आपका मम
चरणधल स पाषाण मनa य बन जाता
प9 थर क शला स दर ी हो गयी
उस पर मर नाव ह काठ क
यGद वह भी कह ी बन जाय
तो मार जायगी मर तो रोजी
और कोई गण नह ह मझम0
कस पVरवार का पालन क4गा म
यGद आप पार जाना चाहत ह
तो पहल द0 मझ चरण पखारन
चरण धो नाव चढ़ा लगा आपको
और कोई उतराई म नह चाहता
आपक दहाई और सौगध दशरथजी क
म तो सवक ह आपक चरणकमल का
लu मणजी भल ह मार0 तीर
पर जब तक पर न लगा पखार
तब तक ह तलसी क नाथ कपाल
उता4गा नह म आपको उस पार
Bमा सCत य अटपट वचन सनकर
हस जानकजी और लu मण को दख ीराम
Aफर कवट स बोल जो चाह कर
पर ज द पार उतारन का कर इतजाम
एक बार नाम मरण करत ह िजनका
मनa य उतर जात भवसागर स पार
और दो पग म0 (लोक नापी िज हन
वो ह कवट स कह रह उतारो पार
- 158 -
Bभ क इन वचन को सनकर
मोGहत हो गयी ब3+ गगाजी क
परत Bभ क पदनख को दखत ह
Aफर ह3ष त हो गयी दवनद गगाजी
अपनी उ9 पि9त का थान दखकर
नa ट हो गया मोह उनका
व समझ गयी क Bभ ीराम
मनa य 4प म0 कर रह ह लला
कठौत म0 जल ल आया कवट
और धोन लगा ीराम क चरण
पVरवार सGहत Aफर वह चरणोदक पीकर
Aकया 3पतर का भवसागर स तरण
आन दपव क Aफर नाव म0 बठाकर
पार उतारा कवट न उनको
Bभ क मन म0 सकोच हआ
Aक Gदया नह कछ कवट को
तब प8त क Uदय क जाननवाल
सीताजी न अपनी अगठj उतार
जब ीराम दन लग वह अगठj
कवट न कर उनस 3वनती भार
बोला ह नाथ आपक चरण धोकर
C या कछ नह पा लया मन
अब तक तो बस मजर क थी
आज जीन का फल पा लया मन
मर दोष दख और दVरgtता सार
दर हो गय सब क सब आज स
ह नाथ आपक चरणकमल पखार कर
ध य भाग हो गया म आज स
अब कछ नह चाGहय मझ ह नाथ
लौटती बर जो द0ग म लगा
तब भिCत का वरदान Gदया Bभ न
और नान कर क शव-पजा
उधर सीताजी न 3वनती क गगाजी स
ह माता परा किजयगा मरा मनोरथ
िजसस प8त और दवर क साथ
पन पजा क4 आपक म लोट जब
सीताजी क Bम स सनी 3वनती सनकर
a ठ वाणी सनाई द गगा-जल स
ह रघबीर क 3Bयतमा जानक सनो
तD हारा Bभाव जगत म0 मालम न Aकस
तम हार कपा स लोग लोकपाल हो जात
सब स3+या करती ह तD हार सवा
तमन जो मझको बड़ी 3वनती सनायी
मझ बड़ाई द मझ पर कर कपा
Aफर भी ह द3व आशीवा द दगी तD ह0
म अपनी वाणी को सफल होन को
प8त और दवर सग लौटोगी तम
पाओगी जगत म0 स दर यश को
- 159 -
मगल क मल वचन य सनकर
बड़ी ह आनिदत हई सीताजी
तब ीराम न 8नषादराज स कहा
अब वापस जाओ घर तम भी
यह सन हाथ जोड़ा बोला गह
कछ Gदन करन द0 मझ सवा
वन म0 आपक पण कGट बना दगा
Aफर जसा कह0ग म क4गा वसा
उसका वाभा3वक Bम दख राम न
अपन साथ ल लया गह को
उधर उसन अपन लोग को बला
सतोष करा 3वदा Aकया उनको
तब गणशजी और शवजी का मरण कर
और गगाजी को सर नवाकर ीराम
8नषादराज लu मणजी सीताजी को साथ ल
चल Gदय वन क ओर ीराम
रात (बता दसर Gदन Bा तकाल म0
दश न Aकय तीथ राज Bयागराज क
स9 य मी +ा ] यार ी
ीवणीमाधवजी स Gहतकार म उनक
चार पदाथr स भb डार भरा ह
वह पb यमय Bा त स दर दश राजा का
दग म मजबत और स दर गढ़ वह
व] न म0 भी श नह सकत पा
गगा यमना और सर वती का सगम
अ9 यत सशोभत सहासन ह उसका
अयवट छ सा मन कर लता मोGहत
दश न स ह दर हो जाती दVरgtता
पb या9 मा प3व साध सवा करत उसक
और पात ह सब मनोरथ मन क
वद और पराण क समह भाट ह
जो बखान करत 8नम ल गणगान उसक
अपन ीमख स Bभ ीराम न
मGहमा कहकर सनायी तीथ राज क
Aफर आकर (वणी का Aकया दश न
जो ह सब मगल को दन वाल
तब Bभ भर_वाजजी क पास आय
और चरण म0 दb डवत Aकया उनक
म8न न गल स लगा लया उ ह0
पा लया फल को सभी पb य क
Bम सGहत आदर स9 कार Aकया म8न न
कहा मरा जीवन आज सफल हो गया
आपक दश न स कताथ हो गया म
अपन Bम का वरदान द0 कर0 कपा
मन वचन कम स छल छोड़कर
जब तक हो न जाता दास आपका
तब तक करोड़ो उपाय करन पर भी
कोई भी मनa य सJ चा सख नह पाता
- 160 -
म8न क भिCत स आनिदत हए ीराम
पर सकचा गय लला क lिaट स
तब अपन ऐ- वय को 8छपात हए
म8न का सयश कहा अनक Bकार स
बोल ह मनी- वर िजस आप आदर द0
वह बड़ा और गणसमह का घर
इस Bकार दान 3वन हो रह
अ8नव चनीय सख अनभव कर रह पर पर
उन लोग क आन क खबर पा
सभी बनवासी तप वी म8न आ गय
ीराम न उन सबको Bणाम Aकया
नलाभ पा व आनिदत हो गय
लौट ीराम क सौ दय क सराहना करत
ीराम न रात वह 3वाम Aकया
Aफर Bातकम स 8नव9त हो 8नकल पड़
म8न स आग का माग दVरयात Aकया
म8न मन म हसकर कहत ह उनस
आपक लय सगम ह सभी माग
तभी म8न क अनक शa य आ गय
बोल हमारा दखा हआ ह माग
तब पण या9 मा ध य चार शa य को
म8न न कर Gदया ीराम क साथ
ी-पष दौड़-दौड़ कर दखत उनको
ज म का फल पाकर हो जात सनाथ
तद तर ीराम न 3वनती कर
लौटा Gदया म8न क शa य को
मनचाहा भिCत का पाया वरदान
Aफर म8न क पास लौट गय वो
तब यमनाजी पार उतर व सब
लोग अपना काम छोड़ दौड़त आय
उनक मन म0 बहत सी लालसाय0 ह
पर पVरचय पछत व सकचाय
उनम0 जो वयोव+ और चतर थ
पहचाना ीराम को यिCत स उ हन
सब कथा उ होन0 लोग को सनायी
बहत दखी हए व मन म0 अपन
उसी अवसर पर वहा एक तप वी आया
जो स दर तजपज छोट अव था का था
वरागी वष क3व ग8त नह जानत उसक
मन वचन कम स ीराम-Bमी था
अपन इa टदव Bभ राम को पहचान कर
जल भर आया उसक न म0
ltगर पड़ा चरण म0 दb ड क भा8त
उठा कर Uदय स लगाया Bभ न
कोई महादVरgt पारस पा गया हो
इतना अltधक आन द हआ उस
Bम और परमाथ शरर धर मल ह
दखन वाल दख कह रह उस
- 161 -
Aफर लगा वह लu मणजी क चरण
Bम स उमगकर उठाया उस उ हन
Aफर सीताजी क चरणधल सर लगायी
छोटा बJ चा जान आशीवा द Gदया उ हन
तब 8नषादराज न दb डवत क उस
उसन 8नषाद को ीरामजी का Bमी जाना
सो आनिदत होकर वह मला 8नषाद स
8नषाद न भी बहत आन द माना
वह तप वी अपन न4पी दोन स
करन लगा ीराम क सौ दय का पान
ऐस आनिदत हआ वह जस भख को
मल गया हो मनचाह भोजन का दान
उधर गाव क िया कह रह
ह सखी कहो व माता-3पता ह कस
ऐस सदर-सकमार को वन भज Gदया
n याकल हो रह व सब नह स
तब ीराम न सखा गह को समझाया
उनक आ6ा मान चला वह घर को
Aफर उ होन0 यमनाजी को Bणाम Aकया
और Bस नतापव क चल Gदय आग को
दान भाइय क अग म0 राजltचह दख
आत-जात लोग पड़ रह अचD भ म0
समझ नह आता H यो8तष शा झठा ह
या कोई रह य ह इस बात म0
भार जगल और दग म रा ता
8तस पर साथ म0 ी सकमार
व कहत ह हम साथ चल0
पहचा आय0 जहा इJ छा हो तD हार
इस Bकार व Bमवश पलAकत हो
न म जल भरकर पछत
Aक त कपाल ीराम 3वनय कर
नह सGहत उ ह0 लौटा दत
रा त म0 बस गाव और परव दखकर
नाग और दवताओ क नगर य कहत
Aकस शभ घड़ी म0 य नगर बस
ीराम को दख जो ध य हो रह
जहा-तहा ीराम क चरण पड़ रह
अमरावती स भी बढ़कर व हो रह
रा त म0 बसन वाल पb या9माओ का भाY य
दवता भी उनक सराहना कर रह
िजन तालाब और नGदय म0
ीसीताराम लu मण कर लत नान
दवसरोवर और दवनGदय का भाY य भी
नह उन नद-तालाब क समान
िजस व क नीच Bभ जा बठत
क पव भी करत ह बड़ाई उसक
ीराम क चरण रज पश कर क
अपना बड़ा सौभाY य मान रह प| वी
- 162 -
चल जा रह ह ीसीताराम लu मण
8नकलत जब Aकसी गाव क पास
तब उनका आना सन बालक-बढ़
सब काम-काज छोड़ आ जात पास
दख उ ह0 मगन हो जात Bम स
वण न नह क जा सकती उनक दशा
कोई उनक साथ आग चल जा रह
Aकसी क शltथल हो रह मनो-दशा
कोई उनक 3वाम का करत Bब ध
कोई शीतल जल कर रहा अपण उ ह0
तब सीताजी को थक हई जानकर
घड़ी भर 3वाम Aकया ीरघनाथ न
चकोर क तरह त मय हए लोग
दख रह ीरामच gtजी क मखच gt को
नवीन तमाल व सा वण राम का
लजा रहा जो करोड़ कामदव को
दामनी क सी का8त वाल लu मणजी
नख स शखा तक स दर मन भात
दोन व कल व पहन तरकस कस
हाथ म0 धनष-बाण शोभा पात
सर पर स दर जटाओ क मकट
व थल भजा और न ह 3वशाल
शरदपKण मा क च gtमा स स दर मख
मन को मोह लत उनक कपाल
Bम क ] यास व लोग गाव क
8न त ध रह जात ह उ ह0 दखकर
सीताजी क पास जाती ह िया
पर कछ पछ नह पाती सकचाकर
बार-बार सब उनक पाव लगती ह
कहती ह सहज ह सीध-साद वचन
बरा न मा8नयगा हम0 गवार जानकर
आपको दख शीतल हो गय हमार मन
परम स दर य दोन राजकमार
का8त िजनस पायी र9 न न
- याम और गौर वण Aकशोर अव था
कमल स न पाय ह इ होन0
अपनी स दरता स कामदव को लजान वाल
ह समKख कहो तो कौन ह य तD हार
ऐसी Bममयी स दर वाणी सनकर
सीताजी सकचायी बोल मन म0 मसका क
य जो सहज वभाव स दर गौरवण ह
लu मण छोट दवर ह य मर
Aफर अपना मख ढ़क इशार स कहा
य - यामवण (ीरामच gtजी) प8त ह मर
मासपारायण सोलहवा वाम
नवानपारायण चौथा वाम
- 163 -
यह जान ऐस आनिदत ह~ व िया
मान कगाल पा गया हो खज़ाना
पर पड़ सीताजी को आशीष दती ह
बना रह सदा-सदा सहाग तD हारा
पाव ती सी ] यार हो तम प8त को
ह द3व हम पर कपा न छोड़ना
हम बारD बार हाथ जोड़ 3वनती करती ह
जब लौट0 आप इसी राह लौटना
मधर वचन कह-कहकर सीताजी न
भल-भा8त सतa ट Aकया उन सबको
तभी ीरामजी का 4ख जान लu मणजी न
लोग स माग पछा आग जान को
यह सनत ह व उदास हो गय
मान मल हई सD पि9त 8छन गयी
पर कम क ग8त समझ उ हन
सगम माग क द सD म8त
चल लu मणजी और जानकजी सGहत ीराम
लोग दन लग दोष दव को
लगता ह 3वधाता 8नरकश 8नद यी ह
िजसन वन भजा इन राजकमार को
जब 3वधाता न इ ह0 बनवास Gदया
तब भोग-3वलास n यथ ह बनाय उसन
जब य नग पाव चल रह ह
अनक वाहन n यथ ह रच उसन
जब य सोत कश और प9त पर
Aकसलय बनाय पलग और (बछौन उसन
जब इनका 8नवास बनाया पड़ क नीच
n यथ ह बनाय उH जवल महल उसन
जो य क दमल और फल खात ह
और पहनत ह व9 कल व म8नय स
तब 3वधात न n यथ पVरम कर
C य रची तरह-तरह क चीज0 जग म0
कोई कहता EFमा क बनाय नह
Bकट हए ह य अपन आप ह
चौदह भवन म0 खोजकर दख लो
ऐस ी-पष मल0ग कह नह
इ ह0 दख 3वधाता मY ध हो गया
लगा बनान ी-पष इन जस
पर जब वह इसम0 सफल न हआ
जगल म0 ला 8छपा Gदया इ ह0
कछ कहत ह हम कछ नह जानत
पर परम ध य मानत ह अपन को
और हमार समझ म0 व भी पb यवान ह
जो दख रह ह और दख0ग इनको
इस Bकार 3Bय वचन कह-कहकर
Bमा भर रह सब न म0
कहत ह य सकमार शरर वाल
कस चल0ग इन दग म वन म0
- 164 -
िया 3वकल हो नहवश कह रह
यGद जगद- वर न इ ह0 बनवास Gदया
तो इनक कोमल चरण क अन4प
प| वी को पa पमय C य नह कर Gदया
जो लोग दख न सक ीराम को
पछत ह व गय हग कहा तक
जो समथ ह दौड़कर दश न करत ह
बJ च बढ़ अबलाए रह गए हाथ मलकर
िजस-िजस गाव स गजर रह ीराम
उनक दश न कर लोग आनिदत हो रह
पर ऐस सकमार को बनवास दन वाल
माता-3पता को व दोष द रह
सीताजी और लu मणजी सGहत ीराम
चल जा रह दखत हए वन को
आग ीराम पीछ लu मणजी सशोभत
तप वी वश म0 शोभा पा रह दोन
ीराम और लu मणजी क मs य
सशोभत हो रह ह सीताजी ऐस
जस EFम और जीव क बीच माया
बध और च gtमा क बीच रोGहणी जस
ीराम क चरणltच ह भम पर
चल रह बचाकर उ ह0 सीताजी
और उन दोन क चरणltच ह को
अपन दाGहन रख चल रह लu मणजी
उन तीन क स दर Bी8त
वण न क नह जा सकती वाणी स
चरा लया ltच9त पश-पय का भी
जो दख मY न हो जात Bमान द स
इन ] यार पltथक को िजसन भी दखा
भव का अगम माग तय कर लया
व] न म0 भी िजनक व बटोह आ बस
ीराम का परमधाम उसन पा लया
तब सीताजी को थक हई जानकर
उस Gदन वट-व क नीच 4क वो
अगल Gदन वा मीAकजी क आम आय
और दखा उनक अ8त स दर आम को
कमल और फल Kखल रह आम म0
म त भyर कर रह ह गजार
पश-पी कोलाहल कर रह ह
बर का मन म0 आता न 3वचार
रघa ठ ीरामजी का आगमन सनकर
म8न वा मीAकजी लन आय उ ह0
दb डवत Aकया ीरामच gtजी न म8न को
आशीवा द Gदया 3वBa ठ म8न न उ ह0
आदर स9 कार Aकया म8न न उनका
बड़ा आन द व मना रह मन म0
तब ीरघनाथ न हाथ जोड़कर
सब कथा बतायी 3व तार स उ ह0
- 165 -
Aफर कहा 3पता क आ6ा का पालन
माता का Gहत भरत का राजा होना
यह सब मर पb य का Bभाव ह
ह Bभो मझ आपक दश न होना
ह म8नराज आपक चरण क दश न स
सब पb य सफल हो गय आज हमार
अब जहा आपक आ6ा हो कह0
कछ Gदन कGटया बना रह0 हम सार
कोई म8न जहा उ_वग न पाय
C यAक जहा म8न जन दख पात ह
व राजा (बना अिYन क ह
दa ट कमr स ह भ म हो जात ह
ीराम क सहज ह सरल वाणी सनकर
6ानी म8न वा मीAक बोल ध य ध य
ह राम आप ऐसा C य न कह0ग
आप वद क मया दा का करत ह रण
आप वद मया दा क रक जगद- वर ह
और जानकजी आपक व4पभता माया
जो आपक कपा का 4ख पाकर
सजन पालन और सहार करती जगत का
हजार म तक वाल सपr क वामी
प| वी को करन वाल सर पर धारण
इस समय बन आपक छोट भाई
सम त चराचर क वामी शषजी लu मण
आप वय रास क 3वनाश हत
राजा का 4प Aकय ह धारण
अगोचर अn यCत अकथनीय अपार ह आप
न8त-न8त कह वद करत ह वण न
जगत l- य और आप la टा ह राम
EFमा 3वa ण शकर को भी नचान वाल
जब व भी नह जानत आपका मम
Aफर भला कौन आपको जानन वाल
वह जानता िजस आप जना दत
और जानत ह बन जाता व4प आपका
3वकार स रGहत ltचदान दमय दह आपक
यह रह य बस अltधकार भCत जानता
दवता और सत क काय क लय
नर शरर धारण कर लला करत
मख आपको दख Bा] त होत मोह को
पर 6ानीजन सख को Bा] त करत
आप जो कहत ह करत ह
उltचत ह ह वह सब तो
C यAक जसा वाग भर कोई
चाGहय वसा ह नाचना भी तो
आपन पछा Aक म कहा रह
परत म यह पछत सकचाता ह
जहा आप न ह वह थान बताय
तब म आपक लय थान Gदखाऊ
- 166 -
म8न क Bममय वचन सनकर
ीराम सकचाकर मन म0 मसकराय
तब वा मीAक न हसकर ीराम को
अमत स भर य वचन सनाय
ह रामजी अब म व थान बताता ह
जहा आप तीन कर सकत ह 8नवास
जो आपक कथा सनत रहत त] त नह होत
उनक Uदय म0 आपक लय स दर 8नवास
और चातक स िजनक न लाला8यत रहत
आपक मघ4पी दश न क लय सदा
आपक गण4पी मोती िजनक जीभ चगती रहती
उनक Uय म0 आप 8नवास कर0 सदा िजनक- ना3सका आपका साद 4हण करती रहती
और जो आपको भोजनाGद सब अप ण करत
ग4 EाFमण दवता और आपक चरण-पजा
और जो Uदय म0 आपका ह भरोसा रखत
िजनक चरण चलकर जात आपक तीथr म0
राम-नाम जपत पVरवार सGहत आपको पजत
भोजन कराकर जो दान दत EाFमण को
ग4 को आपस भी बड़ा जान सवा करत
और इन सबका बस यह फल मागत
Aक 8न9 य-8नर तर Bी8त हो आपक चरण म0
सीताजी और लu मणजी सGहत ह Bभ आप
बसय उन सबक Uदय 4पी मGदर म0
काम =ोध मद अभमान न िजनको
मोह लोभ ोभ न राग-_वष
न कपट न दD भ न माया ह
ह रघनाथ किजय उनक Uदय म0 Bवश
सबक 3Bय और Gहत करन वाल सबक
सख-दख Bशसा-8नदा समान िजनको
स9 य और 3Bय वचन 3वचारकर बोलत
सोत-जागत आपक ह शरण रहत जो
आप ह िजनक अन य शरण ह
उनक मन म0 बसय ह राम आप
पराया धन परायी ी स पर जो
उनक Uदय म0 8नवास कVरय आप
ह3ष त होत दसर क सD पि9त दखकर
दखी होत जो और क दख स
Bाण क समान आप िज ह0 ] यार ह
सशोभत ह उनक Uदय आप स
वामी सखा माता 3पता और ग4
सब कछ आप ह ह ह राम िजनक
अवगण छोड़ गण fहण करत जो
ह राम रGहय आप उनक बन क
EाFमण और गौ क लय सकट सहत
गण आपक दोष को समझत अपना
सब Bकार स आपका ह भरोसा िजनको
उनक Uदय को घर बनाइय अपना
- 167 -
जा8त पा8त धन धम बड़ाई
] यारा पVरवार सख दन वाला घर
ह राम आप उसक Uदय म0 रGहय
जो रहता कवल आपको धारण कर
वग नरक और मो समान िजस
धनधा र आपको ह जो सव दखता
मन वचन और कम स आपका दास
ह राम उसका Uदय हो 8नवास आपका
िजसको कभी कछ भी नह चाGहय
और आपस वाभा3वक Bम ह िजसका
उसक मन म0 8नर तर बसय आप
ह राम वह अपना घर ह आपका
इस Bकार म8नa ठ वा मीAकजी न
रहन योY य 8नवास बतलाय ीराम को
Aफर व बोल अब इस समय क लय
सखदायक आम बतलाता ह आप को
ltचकट पव त पर 8नवास किजय आप
सब स3वधा ह आपक लय वहा
हाथी सह Gहरन और पी बसत ह
सदर वन और सहावना पव त ह वहा
पराण म0 Bशसनीय नद बहती ह
िजस अनसया वहा लायी अपन तपोबल स
गगाजी क धारा म दाAकनी नाम ह उसका
प3व कर दती ह जो सब पाप स
अ( आGद बहत स a ठ म8न बसत
लन रहत जो योग जप और तप म0
ह राम सबका पVरम सफल किजय
चलकर रGहय पव त a ठ ltचकट म0
तब सीताजी सGहत दोन भाइय न
आकर नान Aकया म दाAकनी नद म0
बड़ा अJ छा घाट लगा वह उ ह0
सो वह ठहरन को कहा Bभ न
तब लu मणजी न पया वनी नद क
उ9तर क ऊच Aकनार को दखा
धनष जसा चार और एक नाला था
नद म दाAकनी उस धनष क B9 यचा
ltचकट मान अचल शकार सा
शम दम दान4पी बाण िजसक
कलयग क पाप Gहसक पश स
बच नह सकत जो 8नशान स उसक
लu मणजी न वह थान Gदखलाया
बहत पसद आया वह ीराम को
जब दवताओ न उनका 4ख जाना
चल साथ लकर व 3व- वकमा को
कोल और भील क भष म0 आकर
प9त और घास क बनाय घर स दर
वण नातीत दो स दर कGटया बनायी
रहन लग Bभ उनम0 आ कर मासपारायण सहवा वाम
- 168 -
दवता नाग Aक नर और GदC पाल
आय उस समय व सब ltचकट म0
और दख दर होन का आ- वासन पा
लौट गय अपन-अपन लोक म0
ltचकट म0 रघनाथ को आया जानकर
बहत स म8न आय दश न को
यथायोY य सD मान Aकया ीराम न उनका
सब साधना करन लग 8नभक हो
कोल-भील और अ य बनवासी भी
ीराम क दश न करन को आय
जोहार कर भ0ट दत ह वो
ऐस आनिदत मान दVरgt खजाना पाय
हाथ जोड़कर कहत ह Bभ स
हमार भाY य हआ आपका शभागमन
व प| वी वन माग पहाड़ ध य ह
ह नाथ रC ख जहा-जहा आपन चरण
हम सब भी पVरवार सGहत ध य ह
िज हन दश न Aकया आपका न भरकर
हम सब आपक सब तरह सवा कर0ग
बड़ी अJ छj जगह चनी ह आपन 3वचारकर
वद और म8नय को भी अगम ह जो
व क4णा क धाम सन रह Bम स
उ ह0 तो कवल Bम ह ] यारा ह
भC त क वश Bभ हो जात Bम स
जबस ीरघनाथ रह वन म0 आकर
तब स वन हो गया मगलदायक
अनको Bकार क व फल-फल रह
तन उन पर स दर बल क मb डप
क पव समान वाभा3वक स दर ह व
मान छोड़कर आय हो न दन वन को
भौर क पिCतया गजार करती ह
पय क चहचहाट भल लगती कान को
हाथी सह बदर सअर और Gहरन
य सब बर छोड़ 3वचरत साथ
शकार को Aफरत ीराम क छ3व दख
सब होत 3वशष आन द को Bा] त
दवताओ क वन भी उस वन को सहात
सब नGदया म दाAकनी क करती बड़ाई
ltचकट का यश सभी पव त गात
3व s याचल न (बना पVरम ह पाई बड़ाई
जीव शोकरGहत हो जात ीराम को दख
अचर सखी हो रह चरण क रज पाकर
य सभी मोपद क अltधकार हो गय
उनका सौभाY य वण न हो सकता C य कर
मन वचन और कम स लu मणजी
सवा सब तरह ीराम क करत
ीसीताराम का अपन ऊपर नह जानकर
सपन म0 भी घर क याद न करत
- 169 -
सीताजी भी Bस न ह ीराम क साथ
अनरCत उनका मन ीराम चरण म0
सो वन 3Bय लगता हजार अवध सा
3Bयतम ीराम बस बस उनक मन म0
िजन ीरामच gtजी क मरण मा स
8तनक सा 9 याग दत भCतजन भोग-3वलास
उनक प9 नी और जगतमाता सीताजी क लय
कछ भी आ- चय जनक नह सख का 9 याग
सीताजी और लu मणजी को िजसस सख मल
ीरामजी वह कहत और करत ह
Bाचीन कथाए और कहा8नया कहत ह भगवन
लu मणजी और सीताजी सख स सनत ह
अयोs या को याद कर ीरामजी क
भर आता ह जल न म0
Aकत Aफर समय-कसमय समझकर
धीरज धर लत ह व मन म0
सीताजी और लu मणजी क सभाल
रखत ह ीरामच gtजी इस Bकार स
न क गोलक क सभाल
पलक0 रखती ह िजस Bकार स
दसर तरफ लu मणजी और सीताजी
ीराम क सवा करत ह ऐस
कोई अ6ानी मनa य शरर क
सवा करता हो िजस Bकार स
उधर 8नषादराज जब वापस लौटा
सम जी को दखा रथ क साथ उसन
8नषाद को अकल वापस लौटा दखकर
n याकल हो सम जी धरती पर ltगर पड़
घोड़ भी दण Gदशा क ओर दख
िजधर ीरामच gtजी गय थ दख GहनGहनात
न तो घास चरत ह न पानी पीत
कवल आख स जल को बहात
तब Aकसी तरह स 8नषादराज न
सम जी को धय रखन को समझाया
कोमल वाणी स 3वभ न कथाए कह
जबरद ती सम जी को रथ पर बठाया
पर त ीरामजी क 3वरह वदना स
शltथल हो व रथ हाक नह सकत
घोड़ तड़फड़ात ठjक स चल नह पा रह
ठोकर खात कभी पीछ को तकत
राम लu मण या जानक का नाम सनकर
घोड़ दखन लगत उस ओर ] यार स
कस कह जा सकती ह उनक 3वरह दशा
मKण क (बना साप n याकल हो जस
मी और घोड़ क यह दशा दखकर
8नषादराज 3वषाद क वश हो गया
तब उसन अपन चार उ9तम सवक बला
उ ह0 सारथी क साथ कर Gदया
- 170 -
लौटा 8नषादराज सम जी को 3वदा करक
3वरह और दख अपार ह उसका
उधर सम जी भी सोच रह ह
ीरघवीर (बना जीना ltधC कार ह उनका
हाथ मलकर सर पीटकर पछतात ह
मान कजस खो बठा खजाना धन का
या मान कोई बड़ा भार वीर
घबराकर य+ म0 पीठ Gदखाकर भागा
बड़ा भार सतापा हो रहा Uदय म0
चहरा उनका बदरग हो गया
मह स वचन नह 8नकलत उनक
सोच रह अयोs या म0 दखगा C या
C या उ9तर दगा म लोग को
C या कहगा म जब माताए पछ0गी
कस कहगा म उनको यह सब
वन चल गय सीता राम लu मणजी
िजनका जीवन ीरघनाथजी क ह अधीन ह
C या कहगा उ ह0 जब महाराज पछ0 ग
लu मण सीता और राम का समाचार सन
8तनक क तरह व तन 9 याग द0ग
ीराम4पी जल क (बछड़त ह
मरा Uदय फटा न जो कचड़ सा
इसस म जानता ह 3वधाता न
मझ यह lsquoयातनाशररrsquo ह Gदया
इस तरह पछतावा करत लौट सम जी
3वनती कर चार 8नषाद को लौटाया
नगर म0 Bवश करत Y ला8न हो रह
सारा Gदन एक पड़ क नीच (बताया
अ धरा होन पर अयोs या म0 घस
Aफर चपक स व गय महल म0
उनको अकल दख n याकल हो गया र8नवास
पछन पर श द आता नह मह म0
राजा को पछत गय कौस याजी क महल
दखा उ ह0 मलन ltगर हए प| वी पर
ऐसी 3वकल दशा हो रह महाराज क
H य सD पाती ltगरा हो पख जलन पर
बार-बार पकारत ह व राम को
Aफर हा लu मण हा जानक कहन लगत
सम जी न जयजीव कह Bणाम Aकया
सनत ह राजा n याकल हो कर उठ
Uदय स लगा लया सम को उ हन
Aफर पछन लग कहो कहा ह राम
C या उ ह0 अपन साथ लौटा लाय हो
या कर गय वो बन को B थान
ीराम का शील- वभाव याद कर
सोच करत ह राजा अपन Uदय म0
राH य क जगह बनवास द Gदया
Aफर भी 3वषाद हआ न मन म0
- 171 -
ऐस प क (बछड़न पर भी
जो अब तक गय न मर Bाण
तो भला कौन होगा मझस बढ़कर
अभागा या पापी कोई मर समान
ह सखा ीराम लu मण जानक जहा ह
मझ भी शी वह पहचा दो
वरना म स9 य भाव स कहता ह
Aक मर Bाण ह तयार चलन को
बार-बार पछत ह राजा मी स
सम जी कह रह कोमल वाणी स
ह दव आप धीर 6ानी पष ह
और जानत ह आप सब Bकार स
ज म-मरण सख-दख क भोग
हा8न-लाभ मलना-(बछड़ना ] यार का
काल और कम क अधीन ह सब
Gदन और रात क तरह होना इनका
दख-सख म0 रोत ह3ष त होत मख
पर दोन समान होत धीर को
आप 3ववक 3वचारकर धीरज धVरय
और 9 याग दिजय ह नाथ शोक को
Aफर बतलाया सब हाल वहा का
और कहा जो ीराम न कहा था
ह 3पताजी आपक आ6ा का पालन कर
Aफर लौट कर दश न क4गा आपका
और कहा था माताओ क चरण पकड़
उनका सब तरह स समाधान करना
कोशलप8त 3पताजी िजसम0 कशल रह0
तम सब तरह वह Bय9 न करना
बार-बार चरण कमल को पकड़कर
ग4 वसa ठजी स मरा सदशा कहना
Aक व महाराज को वह उपदश द0
िजसस छोड़ द0 मर बार म0 सोचना
परवासय कटिDबय स अनरोध करना Aक
महाराज को सखी रखन क कर0 चa टा
भरत स कहना Aक राजपद पान पर
Bजा का पालन माताओ क सवा करना
माता-3पता और वजन क सवा कर
भाईपन को ह भाई अ त तक 8नबाहना
मर Aकसी Bकार स सोच न कर0
3पताजी का उसी Bकार स रखना
लu मणजी न कछ कठोर वचन कह
पर ीराम न बरज अनरोध Aकया मझस
और बार-बार मझ सौगध Gदलायी Aक
लu मण का लड़कपन कहना ना Aकसी स
सीताजी भी कछ कहना चाहती थी
परत नहवश शltथल हो गयी वो
वाणी 4क गयी न म0 जल
शरर रोमाच स गया n या] त हो
- 172 -
तभी रामच gtजी का 4ख पा कर
नाव चला द कवट न
इस Bकार ीराम चल Gदय
बस खड़ा दखता रह गया म
कस कह म अपन C लश को
जो यह सदशा ल जीता लौट आया
ऐसा कह उनक वाणी 4क गयी
मन Y ला8न क वश हो आया
प| वी पर ltगर पड़ राजा सनत ह
होन लगी भयानक जलन Uदय म0
सब रा8नयॉ 3वलाप कर रो रह ह
कोहराम मच गया अयोs या नगर म0
राजा क Bाण कb ठ म0 आ गय
3वकल हो गयी इिgtया सब उनक
उनक ऐसी मरणास न िथ8त दखकर
समयानकल वचन कहन लगी कौस याजी
ह नाथ धीरज धर सोltचय
अपार समgt ह 3वयोग राम का
अयोs या जहाज आप कण धार ह
सारा समाज इस जहाज पर चढ़ा
जो आप मन म0 धीरज रख0ग
तभी सब लोग पार पहच पाय0ग0
यGद मान ल0ग आप मर 3वनती
Aफर सीता-राम लu मण स मल पाय0ग
कौस याजी क कोमल वचन सनकर
राजा न आख0 खोलकर दखा
मान तड़पती हई दन मछल पर
शीतल जल Aकसी न हो 8छड़का
धीरज धर कर राजा उठ बठ
सम कहो कहा ह ीराम
कहा ह लu मण जानक कहा ह
य 3वलाप करत रात बीती यग समान
तभी राजा को याद आ गयी
अध तप वी क शाप क बात
सब कथा कौस या को कह सनायी
वणकमार क 3पता न जो Gदया शाप
Aफर कहन लग बहत Gदन जी लया
ीराम सीता लu मण क (बना म
मर Bम का Bण िजसन न 8नबाहा
C या क4गा रखकर इस शरर का म
राम-राम कह Aफर राम कहकर
Aफर राम-राम कह Aफर कहकर राम
सरलोक को सधार गय राजा दशरथ
राम क 3वरह म0 तज Gदय Bाण
जीन और मरन का फल तो
बस राजा दशरथजी न ह पाया
जीत जी ीराम का मख-च gt दखा
उनका 3वरह मरन का 8नम9त बनाया
- 173 -
शोक क मार n याकल हो रह रा8नया
ltगर-ltगर पड़ रह व धरती पर
दास-दासीगण भी 3वलाप कर रह
शोकमY न हो रहा अयोs या म0 हर घर
सब गालया दत ह ककयी को
नहन कर Gदया सार जगत को िजसन
यो 3वलाप करत वह कGठन रात बीती
Bात काल सब 6ानी-म8न आय मलन
तब वसa ठ म8न न समय क अनकल
उपदश द शोक दर Aकया सबका
Aफर एक नाव म0 तल भरवाकर
राजा का शरर उसम0 Gदया रखवा
दत को बलवाकर कहा lsquoज द जाओrsquo
दौड़कर जाओ ज द भरत क पास
म9 य का समाचार Aकसी स न कहना
कहना ग4जी न बलवाया तD ह0 Aकया याद
उधर भरतजी को हो रह अपशकन
दखत थ भयकर व] न रात को
और जागन पर Aकया करत थ
बर-बर तरह क क पनाय0 अनक
अ8नa ट शाित क लय व B8तGदन
4gtाभषक करत और दान दत थ
महादवजी को Uदय म0 मनाकर उनस
माता-3पता और सबक कशल मागत थ
व इस तरह ltच ताf त थ जब
तभी अयोs या स दत आ पहच
ग4जी क आ6ा कान स सनत ह
तरत ह अयोs या क लय चल पड़
मन म0 बहत सोच हो रहा था
Aकसी तरह पहच जाय ज द स अयोs या
यग सा बीत रहा था हर पल
जान Aकतनी दर हो गयी आज अयोs या
नगर म0 उनक Bवश करत ह
अपशकन होन लग तरह-तरह क
कौव बर जगह बठ काव-काव कर रह
3वपरत बोल रह ह सयार और गदह
बड़ी पीड़ा हो रह भरत क Uदय म0
मन ह मन बर k याल उठ रह
बहत भयानक लग रहा सब नगर
नद-तालाब बगीच शोभाहन हो रह
ीराम क 3वयोग स दखी हए
पश-पय क दशा दखी नह जाती
नगर क लाग कछ कहत नह
भरतजी स भी बात पछj नह जाती
प क अयोs या पहचन क सनत ह
ककयी उठ दौड़ी आरती सजाकर
भरत-शv न को महल म0 ल आयी
ह3ष त हो दरवाज पर ह मलकर
- 174 -
कवल ककयी ह ह3ष त Gदखती ह
मान भीलनी न जला Gदया हो जगल
प को सोचवश और मनमार दख
पछन लगी अपन नहर का मगल
सब कशल भरतजी न कह सनायी
Aफर अपन कल क पछj कशल-मगल
पछा कहा ह 3पताजी और माताऐ
कहा ह मर भाई ीराम-लu मण
तब न म0 कपट का जल भरकर
ककयी शल स चभती बोल वचन
3वधाता न (बगाड़ Gदया काम जरा सा
राजा न कर Gदया दवलोक को गमन
यह सनत ह 3वषाद क मार भरत
n याकल हो ltगर पड़ भम पर
3वलाप कर कहन लग म उनको
दख भी न सका अितम समय पर
Aफर धीरज धर सD हल कर उठ
पछा 3पता क म9 य का कारण
कGटल और कठोर ककयी न सना द
अपनी सब करनी-धरनी Bसन मन
ीरामच gtजी का वन जाना जानकर
भल गया भरतजी को 3पता का मरण
सार अनथ का वय को कारण जान
बोलती बद हो गयी रह गय स न
प को n याकल दख समझान लगी ककयी
मानो लगा रह हो नमक जल पर
ह तात राजा सोच क योY य नह
व इ gtलोक गय सख और यश भोगकर
सोच छोड़ दो ऐसा 3वचारकर
और समाज सGहत करो राH य नगर का
बहत सहम गय भरत यह सनकर
मानो घाव पर पश हआ अगार का
लबी सास लकर बोल ह पा3पनी
नाश कर Gदया कल का तन
यGद तर ऐसी ह दa ट इJ छा थी
तो ज मत ह C य न मार Gदया तन
पड़ को काटकर सीचा प9त को
मछल बचान को पानी उलच डाला
मरा Gहत करन जाकर उलटा तन
मरा सबस बड़ा अGहत कर डाला
सय वश सा वश दशरथ स 3पता
और राम-लu मण स भाई मल मझ
पर 3वधाता पर कछ वश नह चलता
C या Aकया जाए मर माता बनाया तझ
जब तन यह बरा 8न-चय ठाना
टकड़ C य न हो गय तर Uदय क
तर जीभ न गल ऐसा वरदान मागत
C य न पड़ गय तर मह म0 कड़
- 175 -
कस 3व- वास कर लया राजा न तरा
शायद 3वधाता न हर ल ब3+ उनक
3वधाता भी नह जानता िय का Uदय
Aफर कस जानत व तर Uदय क
सम त चराचर म0 भला कौन ह ऐसा
िजस ] यार नह ीरघनाथ Bाण स
बर लग तझ वो सबक 3Bय ीराम
मह काला कर चल जा दर यहा स
ीरामजी क 3वरोधी तर Uदय स
उ9 प न Aकया ह 3वधाता न मझ
दसरा कौन ह मर जसा पापी
n यथ ह कछ कहता ह म तझ
माता क कGटलता सनकर शv नजी क
सभी अग जल रह ह =ोध स
पर उनका कछ वश चलता नह
तभी वहा आ गयी कबर सज क
उस सजा दख =ोध म0 भरकर
कबर क कबर पर मार एक लात
वह ltच लाती मह क बल ltगर पड़ी
कबड़ टटा और टट गय सब दात
वह कहन लगी C या (बगाड़ा मन
जो भला करत बरा फल पाया
झटा पकड़कर घसीटन लग शv नजी
पर दया8नltध भरत न उस छड़ाया
Aफर दोन चल कौस याजी क पास
मलन उदास सख गया शरर उनका
मानो सोन क स दर क पलता को
वन म0 मार गया हो पाला
भरत को दखत ह उठ क दौड़ी
पर ltगर पड़ी चC कर आ जान स
ltगर पड़ उनक चरण म0 भरतजी
पछन लग 3पता कहा ह उनस
कहा ह मर दोन भाई और सीताजी
यह सब कस हो गया अनथ
ककयी जगत म0 C यो ज मी
C य मझ कल-कलक को ज मा n यथ
3पताजी वग म0 वन म0 ीराम
कत सा म ह इन सबका कारण
बास क वन म0 आग बना म
दाह दख और सब दोष का कारण
भरतजी क कोमल वचन सनकर
माता कौस या Aफर सभलकर उठj
लगा लया छाती स भरत को
न स आस बहान लगी
सरल वभाव माता न Bम स
दोन भाइय को लगा लया गल
शोक और नह Uदय म0 समाता नह
मान राम-लu मण Aफर आ मल
- 176 -
Aफर बोल भरत स धय धरो
बरा समय जानकर शोक 9 याग दो
काल और कम क ग8त अमट जान
Uदय स हा8न और Y ला8न 9 याग दो
ह तात Aकसी को दोष मत दो
3वधाता हो गया सब तरह मझ उलटा
इनत दख पर भी िजला रहा ह मझ
कौन जानता ह उस C या भा रहा
ह तात 3पता क आ6ा स राम
चल Gदय वन को व आभषण 9 याग
कोई हष 3वषाद न था उनक मन म0
सीता और लu मण भी हो लय साथ
पर म न तो साथ गयी वय
ना अपन Bाण ह उनक साथ भज
जीना और मरना तो राजा न जाना
मरा Uदय कठोर 8नकला वd क जस
कौस याजी क वचन को सनकर
राजमहल शोक का 8नवास बन गया
3वलाप करन लग भरत-शv न भी
तब कौस याजी न Uदय स लगा लया
अनक Bकार स समझाया भरत को
3ववक भर बात0 सनायी कहकर
भरतजी न भी सब माताओ को समझाया
पराण और वद क कथाए कहकर
Aफर छलरGहत प3व वाणी स बोल
जो पाप होता वजन को मारन स
यGद इस काम म0 मरा मत हो
तो महापातक पाप सब लग0 मझ
ीहVर और शकरजी क चरण को छोड़
भयानक भत और Bत को जो भजत
ह माता यGद इसम0 मरा मत हो
तो 3वधाता मझ उनक सी ग8त द
चगलखोर दसर क पाप को कह दत
कपट कलह3Bय कGटल और =ोधी
वद क 8न दक धम दहन वाल
और जो ह 3व-व भर क 3वरोधी
लोभी लD पट और लालltचय स
परायी िय क रहत जो ताक म0
उनक ह सी ग8त को म पाऊ
यGद मर सD मि9त हो इस काम म0
भाता नह िजनको सतसग कभी
और 3वमख परमाथ माग स
सहाता नह हVर-हर का सयश
मनa य तन पा भजन नह करत
वदमाग क B8तकल जो चलत
वष बनाकर जगत को छलत
यह भद यGद म जानता भी होऊ
तो शकरजी मझ उनक सी ग8त द0
- 177 -
वाभा3वक सरल और सJ च वचन सनकर
माता कौस या लगी भरतजी को कहन
ह तात मन वचन और शरर स
तम ता सदा हो राम क अपन
च gtमा चाह लग 3वष चआन
पाला लग चाह आग बरसान
जलचर जल स 3वरCत हो जाय0
6ान हो जाय पर मन न मान
यह सब हो जाय लAकन Aफर भी
B8तकल नह हो सकत तम राम क
तD हार सD म8त यGद कोई इसम0 कह
सख और शभग8त पाव0ग न व] न म0
ऐसा कहकर माता कौस या न
लगा लया भरतजी को Uदय स
हो गयी व ऐसी Bम-3वFवल
बहन लग Bमा उनक आख स
तब वसa ठजी और वामदवजी न आकर
बहत तरह स भरतजी को समझाया
कहा ह तात मन म0 धीरज धर
करो वह काम िजसका समय हो आया
उठ भरतजी ग4 का आदश सन
और कहा सब तयाVरया करन को
Aफर सब माताओ क चरण पकड़कर
Bाथ ना क उनस सती न होन को
3वltध-3वधान स तब भरत न
स दर ltचता बनाई सरय तट पर
3पता क दह को अिYन- नान करा
8तलाजल द 3वltधपव क नान कर
जहा जसी आ6ा द वसa ठजी न
भरतजी न हजार Bकार Aकया वसा ह
श+ हो 3वltधपव क सब दान Gदय
अनक सवाVरया गौए घोड़ और हाथी
सहासन गहन कपड़ और अ न
प| वी धन-धा य और मकान
भदव EाFमण पVरपण काम हो गय
भरतजी स पाकर मनचाहा दान
3पताजी क लय भरत न जो Aकया
लाख मख स कहा नह जा सकता
तब शभ Gदन शोध वसa ठजी आय
म(य और सब महाजन को बला भजा
बठ गय जब सब राजसभा म0
दोन भाइय को बलवा लया म8न न
सब कथा बखानी राजा का यश गाया
शरर 9 यागकर Bम 8नबाहा िज हन
और ीराम का गण-शील बखानत
न म0 जल भर आया म8न क
Aफर लu मण और सीताजी क बड़ाई करत
म8न शोक और नह म0 मY न हो गय
- 178 -
(बलख कर कहा म8न न ह भरत
होनहार होती ह बलवान बड़ी
हा8न-लाभ जीवन-मरण यश-अपयश
य सब ह हाथ 3वधाता क ह
Aफर Aकसको कोई दोष Gदया जाय
और n यथ ह =ोध Aकया जाय Aकस पर
3वचार करो मन म0 ऐसा ह तात
सोच क योY य नह ह राजा दशरथ
सोच उltचत उस EाFमण क लय
वद न जान 3वषय-भोग म0 लन
सोच उltचत उस राजा क लय
नी8त न जान Bजा को समझ हन
सोच उltचत उस व- य क लय
अ8तltथ स9 कार नह धनी हो कजसी करता
सोच उltचत उस शgt क लय
EाFमण का अपमान 6ान का घमड करता
पन उस ी का सोच उltचत ह
प8त स छल कGटल और कलह करती
और सोच उस EFमचार का उltचत ह
EFमचय छोड़ मानता न आ6ा ग4 क
सोच करना चाGहय उस गह थ का
मोहवश कम -माग का जो 9 याग करता
सोच करना चाGहय उस सयासी का
6ान-वराY य हन द8नया म0 फसा रहता
वानB थी वह सोच करन योY य ह
तप या छोड़ भोग अJ छ लगत िजस
सोच चगलखोर और अकारण =ोधी का
3वरोध माता-3पता ग4 और बा धव स
सब Bकार स सोच करना चाGहय उसका
जो दसर का अ8नa ट करता रहता
दया नह िजसको और क लय
बस अपना ह पोषण करता रहता
और वह तो सब तरह सोच योY य
छल छोड़ हVर का भCत न होता
कौसलराज दशरथ सोच क योY य नह
िजनसा राजा हआ न आग होगा
EFमा 3वa ण शव इ gt और GदC पाल
सब दशरथजी क गण क कथाए कहत
उनक बड़ाई कोई कस कर िजनक प
ह राम लu मण तम और शv न सरख
राजा सब Bकार स बड़भागी थ
n यथ ह उनक लय करना 3वषाद
यह सन-समझकर सोच 9 याग दो
रखो राजा क आ6ा सर-माथ
राजपद Gदया ह तमको राजा न
स9 य करना चाGहय 3पता का वचन तD ह0
वचन क लय 9 याग Gदया ीराम को
और आह8त शरर क द द 3वरह म0
- 179 -
Bाण स अltधक उ ह0 वचन 3Bय थ
सो स9 य करो 3पता क वचन को
सर चढ़ाकर पालन करो उनक आ6ा
सब तरह स भलाई मलगी तम को
3पता क आ6ा मान परशरामजी न
सर काट डाला अपनी माता का
यया8त को प न जवानी द द
पाप या अपयश प को न लगा
3पता क वचन जो पालन करत
अनltचत और उltचत का 3वचार छोड़कर
अ त म0 वग म0 8नवास करत ह
सख और सयश क पा होकर
सो शोक 9 याग करो Bजा का पालन
वग म0 राजा सतोष पाव0ग इसस
तमको पb य और स दर यश मलगा
Aकसी तरह का दोष लगगा न इसस
वद Bस+ और शा सD मत ह
वह राज8तलक पाता 3पता िजस द
सो Y ला8न 9 याग राH य करो तम
Gहत जानो तम अपना इन वचन म0
ीराम और जानकजी इसस सख पाव0ग
और कोई पिbडत इस अनltचत न कहगा
कौस याजी आGद सब माताओ को भी
Bजा क इस सख म0 सख मलगा
जो तD हारा और ीराम का सD बध जान लगा
वो सभी Bकार स मानगा भला तमस
ीराम क लौटन पर सyप दना उ ह0 राH य
और उनक सवा करना स दर नह स
म ी हाथ जोड़कर कह रह ह
ग4जी क आ6ा-पालन अव- य किजय
ीरघनाथजी क अयोs या लौटन पर
जो उltचत हो Aफर वसा ह किजय
कौस याजी भी धीरज धर कह रह
ह तात ग4जी क आ6ा का करो आदर
और 9 याग कर दना चाGहय 3वषाद का
काल क इस कGठन ग8त को जानकर
ीराम वन म0 महाराज वग म0
और तम ऐस कातर हो रह हो
Bजा मी कटD ब और माताओ क
सबक एक तम ह सहार हो
3वधाता को B8तकल काल को कठोर जान
ग4 क आ6ा अनसार ह काय करो
माता तD हार बलहार जाती ह तात
Bजा का पालन कटिDबय का दख हरो
सबक वचन को भरतजी न सना
माता क वाणी सन n याकल हो गय
उनक न- कमल आस बहाकर
3वरह 4पी अकर को सीचन लग गय
- 180 -
उनक वह दशा दखकर उस समय
सध भल गयी सबको अपन शरर क
सब लोग आदरपव क सराहना करन लग
वाभा3वक Bम क सीमा ीभरतजी क
धय क धर को धारण करन वाल
कमल क समान हाथ को जोड़कर
सबको उltचत उ9तर दन लग
भरतजी वचन को मान अमत म0 डबोकर
स दर उपदश Gदया ग4जी न मझ
यह सD म8त ह Bजा-मी आGद क
माता न भी आ6ा द उltचत समझकर
सर चढ़ाना चाहता ह उस म भी
ग4 3पता माता वामी और सUद
Bस न मन स माननी चाGहय उनक बात
उltचत-अनltचत 3वचारन स धम जाता ह
और सर पर चढ़ता ह पाप का भार
आप तो मर भलाई क कह रह ह
पर सतोष नह होता मर Uदय म0
म उ9तर द रहा ह मा किजय
साध-पष दKखय क दोष नह ltगनत
3पता वग म0 ह ीराम वन म0
पर मझ कह रह राH य करन को
इसम0 आप मरा क याण समझत ह
या चाहत आपका काय स+ हो
मरा क याण तो ीसीताराम क चाकर म0
सो छjना माता क कGटलता न उस
मन मन म0 अनमान कर जान लया
मरा क याण नह Aकसी अ य तरह स
C या म य इस शोक क समदाय राH य का
लu मण ीराम सीताजी क चरण दख (बना
जस कपड़ क (बना गहन का बोझ n यथ
और EFम-3वचार n यथ ह वराY य (बना
भोग n यथ ह जस रोगी शरर को
हVर-भिCत (बना जस जप-योग n यथ
स दर दह n यथ ह H य जीव (बना
वस ह ीराम (बना मरा जीवन n यथ
ीराम क पास जान क आ6ा दिजय
एक ह आक मरा Gहत ह इसी म0
मझ राजा बना अपना भला चाहत ह आप
यह कह रह ह आप मोह क वश म0
सख चाहत ह आप मर राH य स
मोह क वश होकर ह सोचत ऐसा
ककयी का प राम 3वमख 8नल H ज
कहा होगा कोई अधम मर जसा
मासपारायण अठारहवा वाम
- 181 -
स9 य कहता ह आप मरा 3व-वास कर0
राजा होना चाGहय धम शील n यिCत को ह
आप हठ कर मझ H य ह द0ग राH य
प| वी पाताल म0 धस जायगी 9 य ह
कौन होगा मझ जसा पापी
बना ीसीताराम क बनवास का कारण
और उनक (बछड़त ह राजा न
वय कर लया वग को गमन
और म सार अनथr का कारण
सन रहा ह यहा बठ सब बात0
ीरघनाथ क (बना यह घर दख
और उपहास सहकर भी Bाण न जात
इसका यह कारण ह Aक य Bाण
आसCत नह ह ीराम चरण म0
भम और भोग क ह भख ह
वd सा कठोर Uदय पाया मन
कारण स काय कGठन होता ह ह
दोष नह ह कछ मरा इसम0
ककयी स उ9 प न दह क Bमी
पामर Bाण अभाग मर तन म0
लu मण ीराम और सीता को वन Gदया
वग भजकर प8त का Aकया क याण
वय 3वधवा बनी और अपयश पाया
Bजा को Gदया शोक और सताप
मझ सख यश और उ9तम राH य Gदया
बना Gदया ककयी न सबका काम
इसस अJ छा अब मझको C या होगा
आप ल रह मझ राज8तलक का नाम
ककयी स ज म लकर जगत म0
कछ भी अनltचत नह यह मर लय
3वधाता न बना द मर सब बात
Aफर आप लोग C य सहायता कर रह
िजसक पीछ कfह लग ह
ऊपर स पीडत हो वायरोग स
Aफर उसी को डक मार द (बJ छ
उसका इलाज Aकया जाय मGदरा स
ककयी प को जो कछ योY य था
चतर 3वधाता न वह Gदया मझ
पर दशरथ-प राम का छोटा भाई
यह बड़ाई n यथ ह मल मझ
आप भी टका कढ़ान को कह रह
राजा6ा अJ छj ह सभी क लय
म Aकस-Aकस को कस उ9तर द
िजसक जसी 4ltच हो वसा ह कह
मर कमाता ककयी समत मझ छोड़कर
कGहय कौन कहगा Aकया अJ छा काम
मर सवा कौन ह चराचर म0
िजस ीराम न ] यार Bाण क समान
- 182 -
जो परम हा8न ह Gदखती नह
Gदख रहा ह बड़ा लाभ सभी को
बरा Gदन मरा Aकसी को दोष नह
सब उltचत ह ह आप कहत ह जो
सशय शील और Bम क वश ह आप
और बहत सरल Uदय ह ीराम क माता
उस पर भी 3वशष नह करती ह मझ
सो नहवश कह रह वो दख मर दनता
जगत जानता ग4जी 6ान क समgt ह
व भी साज सज रह मर 8तलक का
स9 य ह 3वधाता क 3वपरत होन पर
हर कोई Bाणी क 3वपरत हो जाता
ीरामच gtजी और सीताजी को छोड़कर
कोई नह कहगा इसम0 मर सD म8त नह
म उस सखपव क सनगा और सहगा
C यAक जहा पानी कचड़ होता ह ह वह
जगत बरा कहगा न परलोक का सोच
सोच ह बस ीसीताराम क दख का
जीवन का लाभ तो पाया लu मण न
झठ-मठ म अभागा C य पछताता
ीरामजी क चरण क दश न बगर
जायगी न मर जी क जलन
सबको सर झका दनता स कहता ह
बस यह उपाय मानता ह मरा मन
मर मन म0 बस यह 8न- चय ह
Bात होत ह चल दगा वन को
शरण म0 सD मख आया हआ दखकर
मा कर द0ग वो दनानाथ मझको
शील सकोच कपा और नह क घर
अ8नa ट न Aकया कभी श का उ हन
य_य3प म टढ़ा ह पर उनका गलाम
आशीवा द द0 म लौटा लाऊ उ ह0
य_य3प मरा ज म कमाता स हआ
और ह दa ट तथा दोषयCत भी
Aफर भी भरोसा ह मझ ीराम का
मझ अपना जानकर 9 याग0ग न कभी
] यार लग सबको भरतजी क वचन
मान ीराम क Bम4पी अमत म0 पग
3वयोग4पी भीषण 3वष स जल सब लोग
मान बीजसGहत म सनत ह जाग उठ
माता मी ग4 और सभी लोग वहा
नहवश n याकल हो गय बहत ह
सब भरतजी को सराह कर कहत ह
साात म8त ह आप ीराम Bम क
ह तात आप ऐसा C य न कह0
Bाण स ] यार ह आप राम को
ककयी क कारण आप पर सदह कर
नीच और मख ह होगा वह तो
- 183 -
साप क पाप और अवगण को
उसक मKण नह करती ह धारण
बिक 3वष दख और दVरgtता
सब दर हो जात ह उसक कारण
आपन बहत अJ छj बात 3वचार
हम डबत हओ को Gदया सहारा
Bाण3Bय लगन लग सभी को भरतजी
सबन उनक साथ चलन का 3वचारा
कोई नह घर 4कन को तयार
Uदय म0 हष ीराम क दश न हग
सब अपनी-अपनी सवाVरया सजा रह ह
Bात होत ह भरतजी सग रवाना हग
उधर भरतजी न घर जाकर 3वचार Aकया
यह सार सD पदा ह ीरघनाथजी क
उltचत n यव था Aकय (बना उस छोड़ना
बनायगा मझ वामी स gtोह का भागी
सवक वह जो Gहत सोच वामी का
चाह कोई करोड़ दोष C य न द
ऐसा 3वचार 3व- वासपा सवक को बलाया
जो व] न म0 भी धम स न डग
सब भद समझाकर सावधान कर
योY यता अनसार 8नयCत Aकया उ ह0
सब n यव था कर रक को रख
भरतजी कौस या माता को चल मलन
पालAकया सजवायी माताओ क लय
नगरवासय क रात बीती जागत
भरतजी न म(य को बला कहा
8तलक का सामान ल चल सजाक
कहा वन म0 ह म8न वसa ठजी
कल यह सब राH य द0ग ीराम को
यह सनकर व दना क म(य न
चल हाथी घोड़ सब सामान सजा क
सबस आग चल वसa ठजी रथ पर
अ धती और अिYनहो का सामान सजाकर
Aफर तजोमय EाFमण क समह चल
अपनी-अपनी सवाVरय पर चढ़-चढ़कर
रथ पर चढ़ चल सब परवासी
स दर पालAकय पर चढ़ रा8नया चल
सब सख छोड़ ीरामजी वन म0 ह
यह सोच दोन भाई चल पदल ह
उनका नह दख सब BममY न हो गय
चलन लग पदल सब सवाVरया छोड़कर
तब कौस या माता न Bम स समझाया
तो दोनो भाई चल रथ पर चढ़कर
पहल Gदन तमसा पर वास कर
दसर Gदन मकाम Aकया गोमती Aकनार
दध फलाहार या एक बार ह भोजन
इस Bकार चल सब tत 8नभात
- 184 -
जब सब पहच गवरपर क समीप
8नषादराज न सन 3वचार Aकया Uदय म0
भरत क मन म0 अव- य कपट ह
वरना सना C य लत भरत साथ म0
छोट भाई सGहत ीराम को मारकर
समझत ह 8नa कb टक राH य क4गा सख स
पहल तो बस कलक ह लगा था
हाथ धोना पड़गा अब तो जीवन स
जट जाय0 सब द9 य-दव भी जो
कौन जीत सकता ह भला राम को
3वष क बल0 अमतफल नह दती
C या आ- चय इसम0 भरत कर रह जो
ऐसा 3वचार गह न साltथय स कहा
सब लोग मरन क साज सजा लो
रोक दो सब घाट को मलकर
भरत सGहत सभी लोग को डबा दो
उतरन न दगा गगा पार उ ह0 म
चाह Bाण ह चल जाय इस म0
ीराम का काम और णभगर जीवन
ऐसी म9 य लखी होती Aकसक भाY य म0
मारा गया तो भी यश पाऊगा म
जो जीता तो भी यश मलगा मझ
ीराम चरण म0 िजसक भिCत नह
माता n यथ ह ज म दती उस
कहा साltथय को धनष-बाण ल आओ
हष क साथ चल पड़ सब 8नषाद
अपन-अपन अ -श सजा कर वो
जोश म0 भर चल साधन ीराम-काज
सब वीर जोश म0 भर कह रह
जीत जी पाव पीछ न रख0ग
ह 8नषादराज आप अधीर न ह
प| वी को 4b ड-मb डमयी कर द0ग
जब 8नषादराज न कहा ढ़ोल बजाओ
बायी ओर छjक हई इतना कहत ह
शकन 3वचारन वाल न कहा
शकन अJ छा ह जीत होगी आपक ह
तब एक बढ़ न शकन 3वचार कहा
लड़ाई न होगी मल लिजय भरत स
भरत ीराम को मनान जा रह ह
3वरोध नह ह ऐसा लगता ह मझ
यह सन 8नषादराज गह न कहा
करना नह चाGहय कछ (बना 3वचार
म जाकर भरतजी का भद लता ह
इतन0 घाट को रोक लो तम सार
वर और Bम 8छपाय नह 8छपत
यह कह भ0ट का समान सजाया
8नषादराज न म8नराज वसa ठजी को दख
नाम बता दर स दb डवत Bणाम पहचाया
- 185 -
म8न न उसको राम का ] यारा जान
आशीवा द Gदया और बतलाया भरत को
यह ीराम का म ह सनत ह
रथ स उतर भरत चल मलन को
अपना नाम गाव और जा8त बताकर
माथा टक जोहार क 8नषादराज न
उसको यो दb डवत करत दखकर
उठाकर सीन स लगा लया भरत न
िजसक छाया स भी बचत लोग
इस तरह गल लगात दख उस
ध य-ध य कह सरहात दवता
फल बरसा रह ह वो नभ स
भरतजी ऐस पलAकल हो रह0 ह
मान लu मणजी ह मल गय उ ह0
िजनका नाम लन स धल जात पाप
उस गल लगया था उ ह राम न
कम नाशा का जल गगा म0 मलन पर
कौन नह उस सर पर रखता
वा मीAकजी EFम समान हो गय
सब जानत ह जपकर lsquoमरा-मराrsquo
मख शबर और पामर चाb डाल
खस यवन कोल और Aकरात
राम नाम कहत ह प3व हो जात
हो जात (भवन म0 3वk यात
Aकस को बड़ाई द न राम न
यग-यग स चल आ रह यह रत
य दवता मGहमा कह रह राम-नाम क
सन-सनकर अयोs यावासी हो रह ह3ष त
Bम सGहत 8नषादराज स मलकर
कशल-म पछj भरतजी न उसस
भरतजी का शील और नह दखकर
तन-मन क सध भल गयी उस
टकटक लगा दखता रहा गह भरत को
Aफर हाथ जोड़कर करन लगा व दना
कशल क मल आपक चरण का दश न कर
तीन लोक म0 कशल जान लया अपना
अब आपक परम अनfह स
करोड़ कल सGहत मरा हो गया क याण
मर करतत और कल को समझकर
और Bभ ीराम क मGहमा का कर s यान
कपट कायर कब3+ और कजा8त
लोक और वद स म अ जान
पर जब स ीराम न मझ अपनाया
तब स हो गया 3व- व क भषण समान
उसक Bी8त और स दर 3वनय सनकर
Aफर छोट भाई शv नजी मल उनस
Aफर 8नषाद न अपना नाम ल-लकर
आदरपव क जोहार क सब माताओ स
- 186 -
लu मण समान समझ व आशीवा द दती ह
सखपव क िजओ तम सौ लाख वषr
नगरवासी 8नषाद को दख य Bस न हए
मान लu मणजी को ह दख रह ह
सब कह रह जीन का लाभ इसी का
ीरामजी न गल स लगाया इस
परम आनिदत हो 8नषादराज तब
सबको साथ लवा ल चला अपन
इशार स बताया सब साltथय को
सब उनक लय स3वधाए जटान लग
गवरपर दख Bम क कारण
भरतजी क सब अग शltथल हो गय
8नषादराज क क ध पर हाथ रख
इस Bकार शोभा पा रह0 ह वो
मान 3वनय और Bम वय ह
साात शरर धारण Aकय हए ह
दश न Aकय जग-पाव8न गगा क
और ीरामघाट को Bणाम Aकया भरत न
सब परवासी Bणाम कर आनिदत हो रह
ीराम-चरण म0 Bम मागा उ होन0
भरतजी न कहा ndash ह गग आपक रज
सखदायी और कामधन ह सवक क लय
हाथ जोड़ मागता Aक मरा वाभा3वक Bम
कभी कम न हो ीसीताराम क लय
Aफर नान कर ग4जी क आ6ा ल
भरत-शv न चल कौस या माता क पास
चरण दबाकर कोमल वचन कह-कहकर
सब माताओ का Aकया उ होन0 स9 कार
ीसीता राम और लu मण जहा सोय
पछा 8नषादराज स वह थान ह कहा
प3व अशोक क नीच 3वाम Aकया था
8नषादराज भरतजी को ल गया वहा
अ9 यत Bम स सादर दb डवत कर
भरतजी न साथर क कर BGदणा
ीराम चरण क रज आख म0 लगायी
कहत नह बनती Bम क अltधकता
दो-चार वण कण जो वहा दख
सीताजी समान समझ रख लया सर पर
उनक न Bममयी जल स भर ह
और Y ला8न का भार रखा Uदय पर
कहा 8नषाद स सीताजी क (बना
काितहन हो रह ह य कण वण क
भोग और योग दोन िजनक वश म0 ह
उन जनकसता क तलना क4 म Aकस स
सय कल सय दशरथ िजनक ससर ह
और Bाणनाथ ीरघनाथ ह िजनक
जो इतन बड़ Aक बड़ाई पान वाल
उनक बड़ाई स होत ह बड़
- 187 -
उन a ठ प8तtता िय म0 शरोमKण
सीताजी क यह कशशया दखकर
C य हहराकर फट नह जाता मरा Uदय
वd स भी कठोर ह यह ह शकर
बहत सदर और ] यार करन योY य ह
कोई हआ न होगा भाई लu मण सा
वन म0 सब तरह क 3वपि9तया सह रह
िजनक तन न लगी कभी गम हवा
ज म ल उजागर कर Gदया जग को
4प शील सख सम त गण क सागर
परवासी ग4 माता-3पता सभी को
ीराम का वभाव ह सख का सागर
कौन ltगन सकता ीरामजी क गण को
मगल और आन द क भb डार ह वो
3वधाता क ग8त बड़ी ह बलवान ह
प| वी पर कश (बछाकर सोत ह वो
कभी दख का नाम न सना उ होन0
3पता और माताए सभाल करत थ उनक
वह अब जगल म0 पदल Aफरत ह
भोजन म0 बस क द-मल और फल ह
ltधC कार ह अमगल क मल ककयी को
B8तकल हो गयी जो प8त स
मझ पापी और अभाग को ltधC कार ह
सब उ9 पात हए िजसक कारण स
कल-कलक बना पदा Aकया मझ 3वधाता न
और कमाता न बना Gदया वामीgtोह मझ
यह सन 8नषादराज न कहा ह नाथ
दोष तो ह B8तकल 3वधाता क ह माथ
बावल बना Gदया माता ककयी को उसन
3वधाता का ह Aकया-धरा ह सारा
ीराम को आप समान 3Bय न कोई
कपा क धाम ह वो जानता जग सारा
ीराम क ठहरन का थान जानकर
सब आतर हो दखन चल वह थान
न म0 जल भर-भर लत ह
पVर=मा करत ह और करत ह Bणाम
कोई भरत क नह क सराहना करत
कहत ह खब 8नबाहा Bम भरत न
सब 8नषाद क Bशसा करत ह
कहत ह जीन का फल पाया उसन
यो जागत रह रात भर सब
सवरा होत ह नाव पर चढ़ चल
ग4जी को Aफर माताओ को चढ़ाया
चार घड़ी म0 गगा पार हो लय
आग Aकया 8नषादगण को भरत न
और सना चलायी पीछ उनक
माताओ ग4जी और EाFमण चल तब
भरतजी पदल चल (बना सवार क
- 188 -
उ9तम सवक बार-बार कहत ह
ह नाथ सवार हो लिजय घोड़ पर
भरत कहत ह पदल ह गय ीराम
कस चल म घोड़ या रथ पर
मझ उltचत ह सर क बल चल
सवक का धम कGठन होता ह सबस
उनक दशा दख और कोमल वाणी सन
सवकगण गल जा रह Y ला8न स
BमसGहत सीताराम कहत-कहत
पहच Bयाग म0 व तीसर पहर
उनक चरण म0 छाल ऐस चमकत
जस ओस क बद कमल-कल पर
भरतजी पदल ह चलकर आय ह
यह जान सारा समाज दखी हो गया
नान Aकया सबन - वत-- याम जल म0
EाFमण को दान द सD मान Aकया
गगाजी और यमनाजी क लहर0 दख
भरतजी का तन पलAकत हो उठा
हाथ जोड़कर बोल ह तीथ राज
म अपना धम छोड़ आपस भीख मागता
न अथ क इJ छा न धम क
न काम या Aफर मो चाहता
ज म-ज मातर ीराम-चरण म0 Bम हो
बस आपस म यह वरदान मागता
भल ह ीरामजी मझ कGटल समझ0
चाह लोग ग4gtोह तथा वामीgtोह कह0
पर ीसीताराम क चरण म0 मरा Bम
आपक कपा स हर Gदन बढ़ता ह रह
मघ चाह भला द चातक क सध
जल मागन पर वd या प9 थर ltगरा द
चातक क रटन घटन स B8तa ठा घटगी
Bम बढ़न म0 भलाई उसक सब तरह स
जस आग म0 तपन पर
सोना 8नम ल हो चमक जाता
3Bयतम क चरण म0 Bम स
वस ह Bमी का गौरव बढ़ जाता
भरतजी क वचन सनकर (वणी स
स दर मगलकार कोमल वाणी हई
ह तात भरत तम सब तरह साध हो
ीराम को तम सा कोई 3Bय नह
अथाह Bम ह ीराम चरण म0 तD हारा
तम n यथ Y ला8न कर रह मन म0
पलAकत हो गय भरतजी यह सन
हष छा गया उनक Uदय म0
ध य ह ध य ह कहकर दवता
भरतजी पर फल बरसान लग
Bयागराज म0 रहन वाल साध-सत
भरतजी क Bम को सराहन लग
- 189 -
तब भरतजी गय म8न भर_वाज क पास
और दb डवत कर Bणाम Aकया उनको
म8न न उठाकर लगा लया Uदय स
और आशीवा द द कताथ Aकया उनको
भरतजी सर नवाकर ऐस बठ
मान धरती म0 घस जाना चाहत ह
सोच रह ह यGद म8न कछ पछ0 ग
तो C या उ9तर दगा म उनको
उनक शील और सकोच को दख
ऋ3ष बोल हम पा चक सब खबर
3वधाता क Aकय पर वश नह चलता
Y ला8न न करो माता क करतत याद कर
ह तात ककयी का भी दोष नह
सर वती (बगाड़ गयी थी ब3+ उनक
लोक और वद दोन को मा य ह
3पता िजस द पाता ह राH य वह
होनी बलवान ह होकर ह रहती
3वधाता क ग8त भला Aकसन जानी
जो कोई इसम0 मान दोष तD हारा
तो वो ह असाध अधम और अ6ानी
राज करन पर भी तD ह0 दोष न होता
सनकर ीराम को भी सतोष ह होता
पर अब तो बहत अJ छा Aकया ह तमन
यह मत तD हार लय सबस उltचत था
ीराम चरण म0 Bम होना ह
सम त मगल का मल जगत म0
सो वह तो तD हारा जीवन-धन ह
कौन बड़भागी तD हार समान जगत म0
ह भरत सनो ीराम क मन म0
Bम पा नह कोई तम सा दसरा
तम मान शररधार ीराम क Bम हो
तम सा राम-Bमी होगा न दसरा
घटगा नह तD हारा यह यश4पी 8नम ल च gtमा
बिक यह तो Gदन-Gदन होगा और दना
Gदन-रात सभी को यह परम सख दगा
ककयी का ककम 4पी राह fसगा कभी ना
ीराम क अमत4पी Bम स पण
द3षत नह यह च gtमा Aकसी दोष स
यह अमत सलभ Aकया तमन प| वी पर
अब रामभCत त]त ह ल पी क इस
राजा भगीरथ जो गगाजी को लाय0
िजसका मरण ह सब मगल क खान
दशरथजी क गण बखानगा C या कोई
जगत म0 कोई नह िजनक समान
िजनक शील और Bमवश हो कर
आकर Bकट हए वय भगवन ीराम
पर तमन क8त 4पी यह च gtमा Gदया
तD हारा Uदय ीराम Bम का धाम
- 190 -
ह भरत सनो हम झठ नह कहत
उदासीन तप वी हम वन म0 रहत
कहत नह हम Aकसी क मह दखी
न Aकसी स कोई Bयोजन ह रखत
सब साधन को उ9तम फल हम0
ीसीता-राम-लu मण का हआ दश न
उस महान फल का परम फल यह
जो आज हआ यहा तD हारा दश न
ध य ध य हो तम ह भरत
जीत लया जग अपन यश स तमन
यह कह म8न Bम-मY न हो गय
और नभ स फल लग बरसन
भरतजी भी BममY न हो गय
ीसीताराम Uदय म0 Bमा नन म0
म8नय क मb डल को Bणाम कर
तब भरतजी बोल गदग_ वाणी म0
म8नय का समाज और Aफर तीथ राज
सJ ची सौगध स भी यहा होती हा8न
कछ बनाकर यGद यहा कहा जाय
तो इसस नीच कोई होगी न करनी
आप सव 6 ह अ तया मी ह ीराम
माता ककयी क कछ सोच नह मझ
न मर मन म0 यह दख ह Aक
जगत म0 कोई नीच समझगा मझ
न परलोक का डर न शोक 3पता का
उनका पb य और यश सब जानत जग म0
ीराम और लu मण स उ हन पाय प
िजनक (बछड़त ह तन 9 यागा पल म0
C या Bसग Aफर उनक लय शोक का
सोच मझ ह बस इसी बात का
ीराम लu मण और सीताजी (बना जती क
वन-वन Aफरत वष बनाय म8नय का
व कल व क द-मल को भोजन
प| वी पर सोत ह प9त (बछाकर
सद-गम वषा हवा सहत ह
रह जाती ह मर छाती जलकर
Gदन म0 भख न लगती मझको
रात म0 नीद न मझको आती
सारा जग खोज क दख लया
इस करोग क औषध मझ न पाती
माता क कमत पाप क मल बढ़ई न
हमार Gहत को बसला बना लया
कलह4पी ककाठ का कय बनाकर उसस
बनवास4पी कम पढ़कर उस गाड़ Gदया
यह सारा कठार मर लय रचकर
8छ न-भ न कर डाला सार जगत को
इस कयोग क मटन का उपाय
ीरामच gtजी का लौटना Aफर अवध को
- 191 -
भरतजी क वचन सनकर सभी न
बहत Bकार स बड़ाई क उनक
म8न न कहा तD हारा दख मट जायगा
ीराम-चरण क दश न करत ह
Aफर बोल हमार 3Bय अ8तltथ बन
जो क द-मल ह वीकार किजय
भरतजी बोल आपक आ6ा का पालन
हमारा धम ह आप आदश किजय
3व- वासपा सवक को बलाकर म8न न
क द-मल फल लान को कहा उ ह0
पर बहत बड़ महमान को यौता ह
मन-ह-मन यह ltच ता हई उ ह0
जसा दवता वसी ह पजा हो
यह सोच ऋ3+-स3+य Aकया याद
म8न क याद करत ह व आ गयी
और पछन लगी C या आ6ा ह नाथ
म8न न कहा शv न और समाज सGहत
भरतजी n याकल ह ीराम क 3वरह म0
उनक ठjक स आ8त| य-स9 कार कर
उनक म को दर करो ण म0
ीभरतजी स अतलनीय अ8तltथ को पाकर
बड़भाltगनी समझन लगी व अपन को
कहन लगी हम0 आज वह करना चाGहय
िजसस यह सारा राज समाज सखी हो
तरत ह बहत स स दर घर बना
सब ठाट-बाठ का सामान रख Gदया
सब Bकार क सामfी उपल ध करा
अनक सवक को सवा म0 रख Gदया
पहल और को मनचाहा 8नवास द0
Aफर कटD ब-सGहत 8नवास Gदया भरत को
म8न a ठ क ऐसी ह आ6ा थी
व जान गय थ भरतजी क मन को
म8नa ठ न अपन तप क बल स
अनठा वभव रच Gदया एक ह पल म0
म8न क Bभाव को दख भरत को
लोकपाल क लोक भी लग तJ छ लगन
आसन सज स दर व और चदोल
फल-फल और भोजन तरह-तरह क
सयमी पष भी दख 3वचलत हो जाय0
चार पदाथ उपल ध डर म0 सबक
वस त ऋत (3वध हवा चल रह
हष और 3वषाद हो रहा साथ म0
हष सब भोग सामltfया दख हो रहा
3वषाद हो रहा ीराम 3वयोग म0
भोग 3वलास चकवी भरतजी चकवा
और खल ह म8न क आ6ा
िजसन दोन को रC खा आम म0
और ऐस ह सवरा हो गया
- 192 -
जस बहलय _वारा एक ह 3पजर म0
रखन पर भी चकवी-चकवा मलत नह
वस ह भोग-सामltfय क बीच रह
भरतजी न मन स भी उनको छआ नह
Bातकाल तीथ राज म0 नान कर
म8न क आ6ा ल चल भरतजी
न उनक पर म0 जत ह
न उनक सर पर ह छाया ह
ीराम-लu मण और सीताजी क
रा त क बात0 पछत ह गह स
उनक 3वाम- थल और व को दख
Bम-Uदय म0 रोक 4कता नह उनक
भरतजी क यह Bममय दशा दखकर
गगन स फल बरसान लग दवता
पर क तल धरती कोमल हो गयी
और माग बन गया मल मगल का
बादल छाया Aकय जा रह ह
बह रह ह सख दन वाल हवा
उनक जात ऐस सखदायी हआ माग
जसा रामजी क जात भी न हआ
सम त चराचर िज हन राम को दखा था
हो गय परमपद क वो अltधकार
परत अब भरतजी क दश न स तो
तरत पा गय व परमपद भार
बड़ी बात नह यह भरतजी क लय
िज ह0 वय मरण करत रहत ह ीराम
व भी तरन-तारन वाल हो जात
जो भी एक बार कह लत ह राम
Aफर भरतजी तो उनक ] यार भाई ह
तो माग मगलदायक हो न कस
स+ साध और a ठ म8न कह कर
अपन Uदय म0 हष -लाभ कर रह
भरतजी क इस Bम क Bभाव को दख
दवराज इ gt को यह सोच हो गया
कह इनक Bमवश लौट न जाय0 राम
(बगड़ न जाय हमारा काम बना-बनाया
ग4 बह प8तजी स कहा इ gt न
ह नाथ ीराम-भरत का मल न हो
बनी-बनायी बात (बगड़ना चाहती ह
कछ ऐसा किजय जो इसका तोड़ हो
दवराज क बात सन म कराय बह प8त
सहनयन इ gt को न-रGहत समझा
उलटकर उसक ऊपर ह आ पड़ती ह
मायाप8त क सवक सग जो माया करता
मासपारायण अठारहवा वाम
- 193 -
जो उनक भCत का अपराध करता ह
जल जाता ह वह उनक =ोधािYन म0
इस मGहमा को दवा साजी जानत ह
कथा Bस+ ह लोक और वद म0
ीरामजी वय िजन भरतजी को जपत ह
कौन Bमी होगा ीराम को उन सा
यह 3वचार अपन मन स 8नकाल दो
इसस क8तपय भी हमारा क याण न होगा
परम3Bय ह ीराम को सवक अपन
अपन सवक क सवा म0 सख मानत
उनक सवक स यGद कोई बर कर
तो उस बड़ा भार बर व मानत
य_य3प व सम ह (बना राग-_वष क
पाप-पb य गण-दोष गहत न Aकसी का
कम को ह Bधान कर रC खा ह उ हन
जो जसा करता ह फल वसा ह भोगता
तथा3प भCत और अभCत क Uदयानसार
करत ह n यवहार व सम और 3वषम
अगन अलप अमान एकरस ीराम न
भCत क कारण ह Aकय गण धारण
सदा अपन सवक को 4ltच रखत आय
वद पराणाGद सब साी ह इसक
कGटलता छोड़ दो ऐसा Uदय म0 जानकर
और Bी8त करो चरण म0 भरत क
ह दवराज इ gt ीरामच gtजी क भCत
सदा ह दसर क Gहत क सोचत
Aफर भरतजी तो ह भCत क शरोमKण
सो (ब कल भी डरो न तम उनस
स9 यB8त6ा और दव Gहतकार ह राम
और भरतजी चलत ह आ6ानसार उनक
तम n यथ ह मोहवश n याकल हो रह
भरतजी का इसम0 कोई दोष ह नह
बह प8तजी क a ठ वाणी को सनकर
बड़ा आन द हआ इ gt क मन म0
ltच ता मट गयी दवराज इ gt क
भरतजी क सराहना कर लग फल बरसान
उधर BममY न हो चल जा रह भरतजी
चलत-चलत आ गय यमनाजी क तट पर
भरत-सGहत सारा समाज Bम3वFवल हो गया
ीराम क तन सा जल का रग दखकर
पर जब यह सोचा उहोन0 मन म0
ज द ह ीराम क दश न कर0ग
तो 3वरह4पी समgt म0 डबत-डबत
3ववक4पी जहाज पर व चढ़ गय
उस Gदन 8नवास कर यमना तट पर
सबर ह सब लोग पार हो गय
आग अJ छj-अJ छj सवाVरय पर a ठ म8न
बाक सब लोग उनक पीछ हो लय
- 194 -
बहत ह साद वष-भषा म0
चल रह ह पदल भरत-शv न
सवक म और मीप साथ म0 ह
करत जा रह ह ीराम का समरन
माग म0 बसन वाल ी-पष
सब काम-काज छोड़ दौड़ जात
दोन भाइय को दख आ- चय चAकत ह
उ ह0 राम-लu मण सा ह व पात
पर सदह हो रहा उ ह0 दखी दख
साथ म0 न सीता न व कल व
उस पर इनक आग चल जा रह
चतरltगनी सना लकर अ -श
जो सच जानत सराहत ह उ ह0
Bशसा करत ह शील और नह क
कहत ह ीराम को मनान जा रह
कौन इनक समान भला होगा बड़भागी
भरतजी का भाईपना भिCत और आचरण
कहन-सनन स दख दोष दर होत
थोड़ा ह उनक लय कछ भी कहना
ीराम क भाई ऐस C य न होत
उनक गण सन और दशा दखकर
िया कहती योY य नह य ककयी क
कोई कह रह यह ककयी का दोष नह
Aकया ह यह सब 3वधाता ह न
पर हमार लय तो अनकल ह ह यह
कहा लोक और वद-3वltध स हन हम
यह महान पb य का पVरणाम4प दश न
अ यथा Aकस Bकार कर सकत थ हम
गाव-गाव आन द और आ- चय हो रहा
मान म4भम म0 क पव उग गया हो
भाY य खल गय उ ह0 दखन वाल क
सहलवासय को H य Bयाग मल गया हो
अपन और ीरामजी क गण को सनत
चल जा रह ह भरतजी भजत ीराम
व तीथr को दख नान करत ह
आम और मGदर दख करत ह Bणाम
माग म0 मलन वाल स पछत
Aकस वन म0 मल0ग उ ह0 ीराम
जो लाग कहत हमन उ ह0 दखा ह
भरतजी को लगत व राम समान
सबको लालसा ह Bभ स मलन क
मगलसचक शकन हो रह ह सबको
समाज सGहत भरतजी को उ9 साह हो रहा
दख ज द मटगा मल0ग ीराम उनको
Bम म0 सब मतवाल हो रह
अग शltथल पग डगमगा रह
मनोरथ कर रह अपन जी का
Bमवश 3वFवल वचन कह रह
- 195 -
तभी वाभा3वक ह सहावना पव तशरोमKण
कामदltगVर Gदखलाया रामसखा 8नषाद न
िजसक 8नकट ह पयिवनी क तट पर
8नवास बनाया सीतासGहत दोन भाइय न
जयघोष क उ होन0 पव तa ठ को दख
सारा राजसमाज मY न हो उठा Bम म0
मान ीरामजी अयोs या लौट चल0 ह
कहा नह जा सकता वह Bम श द म0
सब ऐस शltथल हो रह Bम म0
Aक Gदन भर दो ह कोस चल सक
(बना खाय-3पय ह 4क रात को
सबह होत ह भरतजी आग चल
उधर ीराम जाग रात शष रहत ह
सीताजी अपना व] न सनान लगी उ ह0
Bभ 3वयोग म0 सत] त शरर भरत का
समाजसGहत आत दखा उ होन0 िज ह0
उदास दन और दखी ह सब
सासओ को भी दखा और वश म0
ीरामजी क न म0 जल भर आया
लला स हो गय सोच क वश म0
लu मण स बोल यह व] न नह अJ छा
सनायगा कोई बहत ह बर खबर
ऐसा कह भाई सGहत नान Aकया उ होन0
साधओ का सD मान Aकया शव-पजन कर
दव-पजन और म8नय क व दना कर
दखन लग ीराम उ9तर Gदशा को
धल छा रह पश-पी 3वकल हो
भाग आ रह उनक आम को
सोचन लग Bभ C या कारण ह
तभी कोल-भील न आकर बतलाया
आनिदत हो पलक स भर गय वो
न म0 उनक जल भर आया
Aफर सोच वश हो गय वो
C या कारण ह भरत क आन का
Aफर एक न आकर य कहा Aक
उनक साथ ह भार चतरltगनी सना
एक तरफ 3पता का वचन
दसर तरफ सकोच भाई का
Bभ ीराम सोच म0 पड़ गय
जानत थ व वभाव भरत का
अपन ltच9त को ठहरान क लय
नह पात व कोई भी थान
साध सयान मर कहन म0 ह भरत
यह जानकर हो गया उनका समाधान
उधर ीराम को ltचितत दख
समयानकल नी8तयCत वचन बोल लu मण
ह वामी आपक (बना पछ कहता ह
समझ न इस मरा अनltचत आचरण
- 196 -
ह नाथ आप सव 6 म0 शरोमKण ह
पर म कहता ह अपनी समझ स
आप सUद शील नह Bमी 3व- वासी
सबको समझत आप अपन ह स
परत Bभता पाकर मढ़ 3वषयी जीव
Bकट कर दत अपन असल 4प को
भरत नी8त6 साध चतर आपक Bमी ह
सारा जगत जानता इस बात को
व भी आ ज आपका पद पाकर
चल ह धम क मया दा मटाकर
आप वन म0 अकल असहाय ह
यह सोच भरत आय ह सना लकर
यGद कोई कपट या कचाल न होती
तो रथ घोड़ हाथी Aकस सहात
पर भरत का ह इसम0 दोष C या
कौन राजपद पा बौरा नह जात
सब जानत ह इनक कथा
च gtमा सहबाह (शक इ gt नहष
नीच न होगा राजा वन सा कोई
जो लोक और वद दोन स हआ 3वमख
C यAक श और ऋण को कभी
जरा भी शष नह रखना चाGहय
उltचत ह Aकया यह उपाय भरत न
उस ऐसा ह करना ह चाGहय
पर भरत न यह अJ छा न Aकया
जो असहाय समझ आपका Aकया 8नरादर
पर अJ छj तरह समझ ल0ग व आज
सfाम म0 आपका =ोधपण मख 8नहारकर
इतना कह नी8तरस भल गय लu मणजी
वीररस छा गया उनक शरर म0
ीरामच gtजी क चरण क व दना कर
अपना वाभा3वक बल व लग कहन
ह नाथ मरा कहा अनltचत न मा8नय
कम नह Bचारा ह हम0 भरत न
आKखर कहा तक सहा जाय जब
वामी साथ और धनष हा थ म0
(य जा8त रघकल म0 ज म
Aफर म अनरागी सवक आपका
धल भी सर चढ़ जाती ह
जब कोई उस पर लात मारता
य कह सर पर जटा बाध
कहा हाथ म0 धनष-बाण सजाकर
भरत-शv न रणशया पर सोव0ग
आपक 8नरादर का मझस फल पाकर
अJ छा हआ जो सारा समाज एक ह
आज क4गा सब 3पछला =ोध Bकट
जस सह हाltथय का झड कचल डालता
और जस बाज लव को लता लपट
- 197 -
वस ह छोट भाई और सना सGहत
पछाडगा मदान म0 म भरत को
आपक सौगध यGद शकरजी भी सहायता कर0
तो भी अव- य मार डालगा म उनको
लu मणजी को =ोध म0 तमतमाया दख
और उनक स9 य सौगध को सनकर
भयभीत हो उठ लोग सभी
और लोकपाल भागना चाहत घबड़ाकर
तभी आकाशवाणी हई ह तात
कौन नह जानता तD हार Bताप को
परत उltचत अनltचत खब 3वचारकर
तभी करना चाGहय Aकसी काम को
वद और 3व_वान सभी कहत ह
जो करत कछ भी (बना 3वचार
ब3+मान नह कह जात ह वो
जो ज द करत Aफर पीछ पछतात
सकचा गय लu मणजी दववाणी सनकर
ीराम-सीता न Aकया उनका सादर सD मान
बोल तमन बड़ी स दर नी8त कह
सबस कGठन राH य का होता अभमान
मतवाल होत राजमद4पी मGदरा स व
साधओ का सग कभी न Aकया िज होन0
ह लu मण सनो भरत सा उ9तम पष
दखा न सना सिaट म0 Aकसी न
अयोs या क राH य क तो बात ह C या
EFमा 3वa ण या महादव का पद पाकर भी
भरत को राH य का मद होना असD भव ह
H य ीरसमgt नह फाड़ सकती बद काजी क
चाह अधकार 8नगल जाय सय को
आकाश समाकर मल जाय बादल म0
गोपद िजतन जल म0 डब जाय अग 9 यजी
चाह प| वी अपनी माशीलता छोड़ द
चाह कछ भी असभव सभव हो जाय
पर राजमद हो नह सकता भरत को
तD हार शपथ 3पताजी क आन लता ह
भरत सा a ठ भाई मलगा न Aकसी को
गण4पी दध और अवगण4पी जल मला कर
3वधाता न रचा यह ससार सम त
परत भरत न हस4प ज म लकर
गण और दोष को कर Gदया 3वभC त
गण fहण और अवगण4पी जल 9 याग कर
उिजयाला कर Gदया जगत म0 भरत न
उनका गण शील और वभाव कहत-कहत
ीरघनाथजी मY न हो गय Bमसमgt म0
कौन कपा क धाम Bभ सम
कहन लग यह दख सब दवता
यGद भरत न ज मत धरती पर
तो कौन धम क धर धारण करता
- 198 -
अ9 यत सखी हए ीसीताराम और लu मण
दवताओ क यह मगल वाणी सन कर
उधर नान-s यान कर आ6ा लकर
भरत चल य तीन थ जहा पर
मन-ह-मन सकचा रह भरतजी
अपनी माता क करनी को समझकर
सोच रह चल जाय0 न कह और
ीराम सीता लu मण मरा नाम सनकर
मझ माता क मत म0 मानकर
थोड़ा ह व जो कछ भी कर0
पर अपन 3वरह और सबध को दख
अव- य ह मझ शरणागत को मा कर0
Bभ चाह0 जसा भी कर0 मर सग
मझ तो उनक ज8तया ह ह शरण
व वामी म 8न9 य दास ह उनका
सम त दोष का म ह ह कारण
चल जा रह यह सब सोचत भरतजी
शltथल हो रह Bम और सकोच स
माता क क बराई लौटाती ह उ ह0
पर चल जात ह भिCत क बल स
जब ीरघनाथ का वभाव समरत ह
पड़न लगत ह ज द-ज द पाव
भरतजी का सोच और Bम दखकर
8नषदराज भल दह क हाव-भाव
मगल शकन सनकर और 3वचारकर
8नषादराज न कहा Aक सोच मटगा
Bभ ीरघनाथ स मलकर हग ह3ष त
लAकन अ त म0 दख ह मलगा
स9 य जान भरतजी न उसक वचन
तभी व आम क समीप जा पहच
वहा क वन-पव ताGद को दख भरतजी
अ9 यत आनिदत हो रह मन म0
जस इ8त क भय स दखी Bजा
पीडत जो तीन ताप महामाVरय स
सखी हो जाती उ9तम राH य म0 जाकर
भरतजी क दशा थी ठjक वस
ीराम क 8नवास स वन क सD पि9त
सशोभत हो रह सखदायी हो रह
मान Aकसी अJ छ राजा को पाकर
सार Bजा सखी हो आनिदत हो रह
सहावना वन ह प3व दश ह
3ववक राजा और वराY य म ी
यम-8नयम यो+ा पव त राजधानी
a ठ रा8नया शाित और सब3+
राH य क सब अग स पण
ीराम चरण क आltत वह राजा
उ9 साGहत हो मोह4पी श को जीत
8नa कb टक राH य कर रहा वह राजा
- 199 -
सख सD पि9त और सकाल नगर म0
म8नय क 8नवास थान शोभा नगर क
अनक पश-पी Bजाओ का समाज
आपसी वर को भल रह रह सभी
झर रह ह पानी क झरन
और ltचघाड़ रह ह मतवाल हाथी
पय क झड Bस न मन कज रह
फल-फल लताओ स लद वाGद
ीराम क पव त क शोभा दखकर
अ9 य त Bम हआ भरतजी क Uदय म0
जस तप या का फल पाकर
तप वी को सख मलता अ त म0
तब दौड़कर ऊच चढ़ गया कवट
कहन लगा भरतजी स भजा उठाकर
य जो व Gदखायी दत ह
िजनक बीच 3वशाल वट-व ह स दर
उसक प9त नील और सघन ह
और लग ह लाल-लाल फल उसम0
घनी छाया सब ऋतओ म0 सखदायक
रचा 3वशष4प स िजस EFमा न
य व उस नद क समीप ह
जहा पण कट छायी ह ीराम क
तलसी क बहत स व लगाय
एक स दर वद छाया म बड़ क
म8नय क सग बठ जहा ीराम
सनत 8न9 य शा वद और पराण
ीसीताजी और भाई लu मण सGहत
यह पर Bभ करत ह 3वाम
न म0 जल भर आया भरत क
उमड़ आया Uदय म0 Bम अपार
Bभ क चरणltचFन दख ह3ष त हो रह
उस रज पर सब कछ रह वार
उनको ऐस Bम 3वFवल दखकर
जड़-चतन सब Bम-मY न हो गय
भल गया 8नषादराज भी रा ता
फल बरसा दवता माग बतान लग
उनक Bम क यह िथ8त दखकर
स+ और साधक भी करन लग Bशसा
यGद प| वी पर भरत ज म न लत
कौन जड़ को चतन चतन को जड़ करता
Bम अमत 3वरह म दराचल पव त
और भरतजी ह समgt अथाह
वय अपन हाथ स मथकर ीराम न
Aकया इस Bम4पी अमत को Bवाह
मासपारायण सोलहवा वाम
नवानपारायण चौथा वाम
- 200 -
सघन वन क आड़ क कारण
लu मणजी नह दख पाय इन सबको
लAकन भरतजी न आFलाGदत होकर दखा
सम त समगल क धाम आम को
उस आम म0 Bवश करत ह
भरतजी का दख और दाह मट गया
मान Aकसी साधनारत योगी को
Bभ-कपा स परमत99 व मल गया
भरतजी न दखा Aक लu मणजी
Bभ क सD मख कछ कह रह ह
सर पर जटा कमर म0 व कल व
और हाथ म0 धनष-बाण सज ह
म8नय और साधओ क समदाय सGहत
सीताजीसGहत Bभ ह वय 3वराजमान
धारण Aकय हए ह व व कल व
सर पर जटा सशोभत तन ह - याम
ीसीता-राम यगल ऐस लग रह
जस कामदव म8नवश Aकय हो धारण
Bभ हसकर िजसक ओर दख लत ह
हर लत ह उसक जी क जलन
स दर म8नमb डल क बीच ऐस
सशोभत हो रह सीताजी और ीराम
मान 6ान क सभा म0 सशरर
साात भिCत और सिJचदान द ह 3वराजमान
छोट भाई शv न और 8नषादराज सGहत
भरतजी का मन मY न हो रहा Bम स
ह नाथ ह गसा~ रा किजय कहकर
व प| वी पर ltगर पड़ दb ड स
पहचान लया लu मणजी न उनको
जान गय भरत कर रह ह Bणाम
एक ओर भाई का Bम खीच रहा
दसर ओर सवा म0 न हो n यवधान
सो न उनस भरत स मलत बनता
न Bमवश व कर सकत उपा
कौन उनक यह द3वधा कर वण न
भाई क Bम पर भार पड़ी सवा
तब म तक नवाकर कहा उ होन0
ह रघनाथजी भरतजी कर रह ह Bणाम
सनत ह Bम स अधीर हो उठ
कह तरकस कह धनष कह बाण
कपा8नधान ीरामच gtजी न भरत को
जबरन उठा लगा लया Uदय स
सबको अपनी सध-बध भल गयी
दख उ ह0 मलत ऐस Bम स
मन ब3+ ltच9त और अहकार भलाकर
दोन भाई पण हो रह परम Bम स
पहच नह EFमा 3वa ण महश क
उस Bम को क3व कह सकता कस
- 201 -
उनक मलन का यह ढग दखकर
भयभीत हो उठ सभी दवता
जब दवग4 न समझाया उ ह0
फल बरसाकर करन लग Bशसा
Aफर ीराम शv न और कवट स मल
बड़ Bम स भरतजी मल लu मण स
तब लu मणजी छोट भाई शv न स मल
Aफर Bम स मल व 8नषादराज स
भरत-शv न न तब उपिथत म8नय स
Bणाम कर मन चाहा आशीवा द पाया
तब सीताजी क चरण पश Aकय
सीताजी न उ ह0 अपन पास बठाया
नह मY न सध-बध नह दह क
य सीताजी को दख 8नि-चत हए भरत
उ ह सब तरह अपन अनकल दख
अपन किपत भय स मCत हए भरत
सबक मन सक प-3वक प रGहत हो गय
कोई कछ न कहता न पछता
तब 8नषादराज 3वनती कर कहन लग
ह नाथ स8नय म जो कछ कहता
म8ननाथ वसa ठजी और सब माताए
सारा समाज आया ह भरतजी क साथ
ग4जी क आगमन क बात सनत ह
उनक पास चल Gदय Bभ वग क साथ
लu मणसGहत दb डवत Aकया चरण म0 राम न
म8न न दौड़कर लगा लया उ ह0 गल स
तब पलAकत हो कवट न Aकया Bणाम
रामसखा जान म8न न लगाया Uदय स
सबको मलन क लय n याकल जान
सबस उनक 4ltच अनसार मल ीराम
सबका सताप मटा Gदया पल भर म0
एक ह साथ सबस मल ीराम
सब माताओ को दखी दख कर
सबस पहल मल व माता ककयी स
काल कम 3वधाता को दोष द
सा9 वना द उ ह0 हर तरह स
Aफर व सब माताओ स मल
समझा-बझाकर सतोष कराया उ ह0
कहा जगत ई- वर क अधीन ह
C य n यथ हम Aकसी को दोष द0
Aफर ग4माता और EाFमण िय क
चरण क व दना क ीराम न
गगा-गौर सम सD मान Aकया उनका
Bस न हो आशीव चन कह उ होन0
Aफर दोन भाई चरण पकड़कर
माता समा क गोद म0 जा ltचपट
Uदय स लगाकर बड़ नह स
Bमाओ स नहला Gदया उ ह0
- 202 -
Aफर सबको आम ल चल वो
सीताजी म8न वसa ठ क चरण लगी
मन चाहा आशीवा द पाकर उनस व
म8न पि9नय सGहत अ4धतीजी स मल
जब सकमार सीताजी न सासओ को दखा
सहम कर आख ब द कर ल उ होन0
राजहस8नया वltधक क हाथ पड़ गयी हो
उनक बर दशा दख ऐसा लगा उ ह0
Uदय स धीरज धर कर तब सीताजी
सब सासओ स पर लगकर मल
सब सासऐ आशीवा द द रह Bम स
Aक तम सदा सहाग स रहो भर
म8न वसa ठजी न समझाया सबको
और राजा क वग गमन क बात कह
अपन B8त 3पता का अ9 यत नह जान
बहत ह n याकल हो गय रामजी
सब दख स आ=ा त हो उठ
म8न वसa ठजी न सबको समझाया
तब समाजसGहत नान Aकया ीराम न
और Aकसी न कछ 3पया न खाया
दसर Gदन म8न वसa ठजी क कह अनसार
A=या 3वltध सD प न कर Bभ श+ हए
िजनका नाम पाप-समह भ म कर डालता
व 8न9 य-श+-ब+ ीराम श+ हए
तब दो Gदन बाद म8न वसa ठ स
बहत ह कोमलता स ीराम न कहा
ह नाथ यहा सब दखी हो रह ह
मझ एक-एक पल यग समान लग रहा
आप यहा राजा अमरावती म0 ह
सनी पड़ी ह अयोs यापर सार
मर Gढठाई मा किजय ह गोसा~
वह किजय जो बात आपन 3वचार
वसa ठजी न कहा ह राम तम हो
धम क सत और दया क धाम
लोग दखी ह तD हार दश न कर
दो Gदन उ ह0 और करन दो 3वाम
ीराम क वचन स भयभीत समाज
कछ शा त हआ सन वसa ठजी क वचन
प3व पयिवनी म0 नान कर वो
ीराम क न भर करत ह दश न
कामदltगVर और वन दखत ह वो
सब दख का अभाव ह वहा
अमत सा जल बरसात झरन
ताप-हरनी (3वध हवा बहती वहा
असk य जा8त क व लताए तण
3व3वध Bकार क फल फल प9त
स दर शलाए शीतल सघन छाया
वन क शोभा कह जा सकती कस
- 203 -
कमल Kखल रह तालाब म0
पश-पी वन म0 कर रह 3वहार
कोल Aकरात भील चीज0 ला लाकर
Kखलात ह सबको कर-कर मनहार
कहत ह व ीराम का Bभाव ह
वरना हमार भला C या ह औकात
जड़ जीव जीव क Gहसा करन वाल
कGटल कचाल कब3+ और कजात
जब स Bभ क चरणकमल दख हमन
हमार दसह दख और दोष मट गय
वनवासय क वचन सनकर अयोs यावासी
उ ह0 सराहन लग Bम स भर गय
उन कोल-भील क वाणी सनकर
व अपन Bम का करत ह 8नरादर
तलसीदास कहत ह यह ीराम क कपा ह
Aक लौहा तर गया नौका को लकर
सब आनिदत हो 3वचरत वन म0
Gदन बीत जा रह पल क समान
िजतनी सासए उतन ह वष बनाकर
सीताजी सबक सवा करती एक समान
ीराम क सवा कोई भद न जाना
सब मायाए ह सीताजी क माया म0
सीताजी न अपनी सवा स कर लया
सब सासओ को अपन वश म0
सीता सGहत दोन भाइय का सरल वभाव दख
कGटल रानी ककयी भर पट पछतायी
कर रह प| वी और यमराज स याचना
पर धरती फट न मौत ह आयी
सब सोच रह ीराम अयोs या जाएग या नह
भरतजी को न नीद आती न भख लगती
सोचत ह Aकस Bकार हो ीराम का राH याभषक
कोई भी 3वltध उनको इसक नह सझती
ग4जी क आ6ा मानकर तो ीराम
अव- य ह अयोs या को लौट चल0ग0
परत ीरामजी क 4ltच जानकर ह
म8न वसa ठजी उ ह0 चलन को कह0ग0
माता कौस या क कहन स भी
ीरघनाथ लौट सकत ह अयोs या को
पर ीरामजी को ज म दन वाल माता
C या कभी ऐसा हठ कर0गी वो
मझ सवक क तो बात ह C या
उस पर भी समय खराब B8तकल 3वधाता
घोर ककम होगा यGद म हठ क4
C यAक कलास स भी भार धम सवक का
एक भी यिCत उनक मन म0 न ठहर
सोचत-सोचत ह बीत गयी रात
Bात होत ह ग4जी न बलावा भजा
सभी लोग भी आ बठ साथ
- 204 -
समयोltचत वचन बोल म8न वसa ठजी
धम धर धर और वत भगवान ह ीराम
स9 यB8त6 वद क मया दा क रक
अवतVरत हए जगत का करन क याण
आ6ाकार ग4 माता और 3पता क
दa ट क सहारक दव क Gहतकार
नी8त Bम परमाथ और वाथ को
त99 व स जानन वाल परम उपकार
EFमा 3वa ण महादव च gt सय
GदC पाल माया जीव सभी कम और काल
सम त Bभता वद-शा म0 वKण त स3+या
सब उनक आ6ा म0 रहत सब काल
अतएव हम सबका Gहत होगा
उनक आ6ा और 4ख रखन म0
अब सब मल वह उपाय करो
सब क सD म8त हो िजस म0
उनका राH याभषक सबक लय सखदायी
यह एक माग मगल और आन द का
अब Aकस तरह व अयोs या चल0
3वचारकर कहो C या उपया हो इसका
Aकसी को कोई उ9तर नह सझा
तब भरतजी बोल हाथ जोड़कर
ह नाथ आप क मGहमा अपार ह
3वधाता भी चलत ह आपस पछकर
अब आप मझस पछत ह उपाय
यह सब अभाY य ह ह मरा
भरतजी क Bममय वचन को सनकर
अ8तशय Bम म8न क Uदय म0 उमड़ा
व बोल ह तात यह बात स9 य ह
पर ह सब यह ीरामजी क कपा स
स3+ नह पात राम3वमख व] न म0 भी
जो भी मलता मलता उनक कपा स
ह तात म0 सकचाता कहन म0
ब3+मान न कहा ह 3वचारकर
छोड़ Gदया करत ह व आध को
अपन व व को जाता हआ दखकर
सो अब तम दोन भरत-शv न
राम-लu मण क जगह रहो वन म0
ह3ष त हो उठ दोन भाई यह सन
परमानद छा गया उनक मन म0
हा8न कम लाभ अltधक Gदखा लोग को
पर माताओ को दख-सख था समान
दो प का 3वयोग तो सहना ह होगा
चाह भरत-शv न या लu मण और राम
भरतजी बोल म8न का कहा करन स
सब जीव को त]त करन का फल होगा
चौदह वष C या ज म-भर रहगा वन म0
मर लय इसस बढ़कर सख C या होगा
- 205 -
भरतजी बोल ऐसा ह किजय ह नाथ
अपन कह अनसार ह n यव था किजय
भरतजी क वचन सन उनका Bम दखकर
सब लाग म8न सGहत 3वदह हो गय
भरतजी क महान मGहमा समgt सी ह
म8न क ब3+ तट पर खड़ी अबला सी
खोज रह उस पार जान क उपाय
पर समgt पार करन का उपाय नह पाती
तब म8न गय ीराम क पास
बोल ह सजान ह सव 6 स8नय
िजसम0 परवासी माताओ भरत का Gहत हो
वह उपाय कपा कर हमस कGहय
आत जन 3वचारकर कहत न कभी
अपना ह दॉव सझता ह जआर को
म8न क बात सन कहन लग ीराम
ह नाथ कGहय आपक आ6ा हो जो
आपका 4ख रखन और आ6ा पालन म0
सब तरह स Gहत ह हम सबका
आप िजसको जसा कह0ग सब तरह स
पालन करगा सब तरह हC म आपका
ह राम सच कहा कहन लग म8न
पर भरत क Bम न 8न3व चार कर Gदया
भरत क भिCत क वश हो गयी ब3+
शभ ह होगा भरत का जो कहा Aकया
सन लिजय आदरपव क भरत क 3वनती
किजय उस पर भल भा8त 3वचार
नी8त और वद का 8नचोड़ 8नकाल
किजय उन सबक सD म8त क अनसार
भरतजी पर ग4जी का नह दखकर
ीराम क Uदय को 3वशष आन द हआ
बोल आपक सौगध और 3पताजी क दहाई
भरत क समान कोई भाई न हआ
अनरागी होत जो ग4-चरण-कमल क
लोक और वद म0 होत ह बड़भागी
और Aफर िजस पर ऐसा नह ग4 का
उस भरत क कौन कर सकता बराबर
छोट भाई क मह पर बड़ाई करन म0
ह नाथ सकचाती ह मर ब3+
भरत जो कह0 भलाई ह उसी म0
यह कह कर ीराम न साध ल च]पी
तब म8न न भरत स कहा ह तात
सब सकोच 9 याग कहो बात Uदय क
ग4 और वामी को अपन अनकल जान
सारा बोझ वय पर जान बोल भरतजी
म8ननाथ न ह 8नबाह Gदया मरा कहना
अब कह C या म और अltधक इसस
अपन वामी का वभाव म जानता ह
अपराधी पर भी कभी =ोध नह करत
- 206 -
मझ पर तो उनका 3वशष नह ह
खल म0 भी कभी रस क न उ हन
मर मन को तोड़ा न कभी भी
खल म0 भी कभी मझ Gदया न हारन
मन भी Bम और सकोचवश
कभी मह नह खोला उनक सामन
Bम क ] यास मर न आज तक
त]त न हए उनक दश न स
पर 3वधाता मरा दलार सह न सका
माता क बहान उसन डाल Gदया अ तर
यह भी कहना आज शोभा नह दता
कौन साध हआ खद को प3व समझकर
माता नीच और म सदाचार साध
यह 3वचार ह करोड़ दराचार समान
माता को कट वचन कह n यथ जलाया
अपन पाप का 3वचार (बना पVरणाम
म अपना Uदय खोज कर हार गया
अपनी भलाई का कोई साधन नह सझता
बस ग4 और वामी क ओर दख
मझ पVरणाम कछ अJ छा जान पड़ता
साध ग4 और वामी क सम
कहता ह स9 य भाव स इस तीथ थान म0
यह Bम ह या Bपच झठ या सच
इस म8न वसa ठ व सव 6 ीराम जानत
n याकल माताए दखी नह जाती
परवासी जल रह दसह ताप स
इन सब अनथr का मल म ह
सब दख सहा मन यह जान क
म8नवष म0 वामी वन चल गय
यह सन कर भी म जीता रह गया
Aफर 8नषादराज का Bम दखकर भी
यह वd सा Uदय फट नह गया
अब यहा आकर दख लया सब
यह जड़ जीव जीता रह सभी सहावगा
िजस ककयी न ीराम को श जाना
उसक प को छोड़ Aकस यह दख सहावगा
Bम 3वनय और नी8त म0 सनी
यह वाणी सन सब 3वFवल हो गय
तब म8न न समाधान Aकया भरत का
Aफर ीराम भरत को समझा कहन लग
ह तात तम n यथ ह करत हो Y ला8न
ई- वर क अधीन ह जीव क ग8त
मर मत म0 तीन काल और लोक म0
कोई पb या9 मा पष तम स बढ़कर नह
तम पर कGटलता क 3वचार मा स
यह लोक और परलोक भी नष ट हो जाता
माता ककयी को व ह दोष दत ह
सतसग न Aकया िज होन0 ग4 और सत का
- 207 -
ह भरत तD हार नाम क मरण मा स
मट जाय0ग0 सब पाप और अमगल
यह प| वी तD हार रC खी रह रह ह
n यथ ह अपन मन को करो न 3वकल
वर और Bम 8छपाय नह 8छपत
पश-पी भी पहचान लत इनको
Aफर मनa य शरर तो भb डार ह गण का
म जानता ह तD हार अ8तशय Bम को
पर C या क4 जी म0 द3वधा ह बड़ी
राजा न मझ 9 याग स9 य को रC खा
Bम-Bण क लय छोड़ Gदया तन
उनका वचन मटत लगता नह अJ छा
पर उसस भी बढ़कर सकोच ह तD हारा
उस पर भी मझ आ6ा द ह ग4 न
इसलय अब तम जो कछ कहो
अव- य ह वह करना चाहता ह म
तम Bस न मन और सकोच 9 याग कर
जो कछ कहो म वह क4 आज
स9 यB8त6 रघकलa ठ ीराम क वचन सन
अ8त Bस न हो उठा सारा समाज
दवगण सGहत इ gt भयभीत हो गय
अब (बगड़ना ह चाहता बना-बनाया काम
कछ उपाय करत नह बनता उनस
मन ह मन ल रह Bभ का नाम
सोच रह Bभ भिCत क वश रहत
सो सब कछ ह भरतजी क हाथ
इसलय 8नण य लया सब दव न
भरतजी क शरण ल0 Bम क साथ
उनका मत सन दवग4 बह प8तजी न कहा
अJ छा 3वचार Aकया बड़ भाY य ह तD हार
ीराम क सवक क सवा अमत फलदाई
भरतजी को भिCत मन म0 आयी ह तD हार
ह दवराज भरतजी का Bभाव तो दखो
पण 4प स वश म0 ह Bभ उनक
भरतजी को ीरामजी क परछाई जान
सब डर 8नकाल दो मन स अपन
दवताओ क सD म8त और सोच सनकर
सकोच हआ अतया मी Bभ ीराम को
भरतजी सब बोझा अपन सर जान
Uदय म0 अनमान लगान लग अनक
सब 3वचार 8नण य Aकया यह अ त म0
Bभ क आ6ा म0 ह ह अपना क याण
अपना Bण छोड़ उ होन0 मरा Bण रC खा
कौन उन सम कपाल भCतव9 सल भगवान
बोल मन क किपत पीड़ा मट गयी
कोई आधार नह था मर सोच का
मझ शरणागत क रा कर आपन
ह शरणागत व9 सल अपना वचन 8नबाहा
- 208 -
B8तकल हो जाय यGद सारा जगत भी
पर आपक कपा हो Aफर C या कहना
क पव क समान ह आपका वभाव
मागत ह मनचाहा फल Bदान करना
ग4 और वामी का नह दखकर
ोभ मट गया कोई सदह न रहा
ह दया8नltध अब वह किजय िजसस
Bभ क ltच9त म0 रह न ोभ बचा
वामी को सकोच म0 डाल अपना भला चाह
8नि-चत ह नीच ब3+ ह उस सवक क
सवक का Gहत सख और लोभ छोड़कर
सदा सवा करत रहना अपन वामी क
आपक लौटन म0 वाथ ह सभी का
पर आपक आ6ापालन म0 सव 3वltध क याण
यह वाथ और परमाथ का सार ह
सम त पb य का फल सख का 3वधान
ह दव मर एक 3वनती सनकर
Aफर जसा उltचत हो वसा किजय
सजाकर लायी गयी ह राज8तलक क सामfी
Bभ का मन मान तो सफल किजय
शv न सGहत मझ वन भजकर
अयोs या लौट सबको सनाथ किजय
या लu मण और शv न को लौटाकर
मझ अपन साथ ल लिजय
या हम तीन भाई वन चल जाय0
आप सीताजी सGहत लौट जाइय अयोs या
ह दयासागर अब आप वह किजय
िजसम0 Bस न हो मन Bभ का
आपन सब भार सख Gदया मझ पर
पर मझम0 नी8त न 3वचार धम का
कह रहा म अपन वाथ क लय
आ9त क ltच9त म0 3ववक नह रहता
वामी क आ6ा सन जो उ9तर द
लाज लजाती दख उस सवक को
म अवगण का ऐसा ह अथाह समgt ह
पर आप साध कह सराहत मझ को
ह कपाल अब वह मत भाता ह मझ
मन सकोच न पाव िजसस वामी का
Bभ क चरण क शपथ स9 य कहता ह
एक यह उपाय ह जग क क याण का
Bस न मन स सकोच 9 याग कर
Bभ आप िजस जो आ6ा द0ग
पालन कर0ग सर चढ़ाकर सब लोग
सभी उलझन0 और उपgtव मट0ग
साध-साध कह सराहन लग दवता
अयोs यावासी असमजस क वश हो गय
तप वी-बनवासी हष मना रह मन म0
पर सकोची ीरघनाथजी चप ह रह गय
- 209 -
Bभ क यह िथ8त दखकर
सार सभा पड़ गयी सोच म0
उसी समय जनकजी क दत आय
म8न न बलवा लया तरत उ ह0
म8नय का सा वष दख राम का
दत क मन म0 दख हआ अपार
म8न वसa ठजी न दत स बात पछj
पछा राजा जनक का कशल-समाचार
म8न का कशल-B- न सन सकचाकर
प| वी पर म तक नवाकर व बोल
ह वामी आपका आदर क साथ पछना
कशल का कारण हो गया ह य
नह तो ह नाथ कशल-म सब
चल गयी सब कोसलनाथ दशरथजी क साथ
य तो सारा जगत अनाथ हो गया
पर मltथला और अवध 3वशष4प स अनाथ
अयोs यानाथ दशरथजी का परलोकगमन सनकर
जनकपरवासी शोकवश हो गय बावल स
तब िज होन0 जनकजी को शोकमY न दखा
व 3वदह ह सोच सक न व ऐस
भरतजी का राH य ीरामजी को बनवास सनकर
बड़ा दख हआ मltथल-वर क Uदय म0
सब सोच-3वचार सभासद स सलाह कर
चार ग]तचर भज जनकजी न अवध म0
कहा अयोs या जा ीरामजी क B8त
भरतजी का भाव पता लगाकर आओ
Aकसी को तD हारा पता लगन न पाव
शीता स यह काय 8नपटा कर आओ
वहा का सब हाल जानकर दत न
जनकजी को आकर सब हाल बतलाया
उस सनकर ग4 राजा म ी सभी का
Uदय नह स अ9 यत n याकल हो आया
जनकजी न भरतजी क बड़ाई कर
यो+ाओ और साह8नय को बलवाया
घर नगर दश म0 रक रखकर
बहत सी सवाVरय को सजवाया
चल पड़ उसी समय महत साधकर
कह 3वाम न Aकया माग म0
जब सब लोग यमनाजी उतरन लग
खबर लन भज Gदया उ होन0 हम0
अपनी बात कह सर नवाया दत न
भील क साथ म8न न 3वदा Aकया उ ह0
सब ह3ष त हए जनकजी का आगमन सन
पर सकोच हो आया ीराम क मन म0
ककयी मन-ह-मन गल जा रह
Aकस स कह और Aकस को दोष द0
नर-नार यह सोचकर Bस न हो रह
इस बहान कछ Gदन और रह सक0 ग व
- 210 -
दसर Gदन सब नान-s यान कर
मना रह सब दवी-दवताओ को
ीरामजी राजा ह रानी ह जानकजी
और यवराज पद मल ीभरत को
ग4 समाज और भाइय समत
अवधपर म0 ीरामजी का राH य हो
और उनका राH य रहत-रहत ह
अवधपर म0 हमारा मरण हो
उनक Bममयी वाणी सन 6ानी म8न भी
अपना 6ान और वराY य कछ नह समझत
करत ह Bमपव क सब Bभ का दश न
Bभ भी आदरसGहत सबको सD मान दत
शील और सकोच क समgt ीराम
Bम क रत का करत ह पालन
सब सराहत ह भाY य अपना-अपना
ीराम मानत ह उ ह0 अपना जन
तभी मltथलाप8त जनकजी का आना सन
सबको साथ ल ीराम चल वग स
उधर पव तराज कामदनाथ को दख जनकजी
पदल ह चल Gदय उतर क रथ स
ीराम क दश न और उ9 साह क कारण
थकावट का C लश हआ न Aकसी को
मन तो ह ीराम-जानकजी क सग
मन क (बना तन क सध Aकस हो
जनकजी क 8नकट आन पर सब
Bम स भर आपस म0 मलन लग
सबन Bणाम Aकया म8नय को
Aफर ीराम जनकजी को लवा ल चल
ीरामजी का आम समgt ह
पVरपण शा तरस4पी प3व जल स
जनकजी का समाज क4ण रस क नद
लय जा रह ह ीरामजी िजस
यह क4णा क नद डबाती जाती ह
6ान और वराY य4पी Aकनार को
शोक भर वचन नद और नाल ह
मलत ह जा इस नद म0 जो
सोच क लबी-लबी सास ह
वाय क झकोर स उठनवाल तरग
तोड़ रह जो अपन वग स
धय 4पी व Aकनार पर उग
भयानक 3वषाद तज धारा नद क
भय और xम असk य च= और भवर
3व_वान म लाह ह 3व_या बड़ी नाव
पर जानत नह उस खन क अटकल
कोल Aकरात ह बचार याी ह
जो नद दख थक गय हारकर
अकला उठा वह समgt जब वह नद
मल उस आम4पी समgt म0 जाकर
- 211 -
शोक स n याकल हो गय दोन राजसमाज
6ान धीरज न लाज रह Aकसी को
दशरथजी क गण और शील को सराहत
शोक समgt म0 डब सब रह ह रो
तलसीदास कहत ह कोई नह ह ऐसा
जो जनकजी क दशा दख BममY न न हो
तब म8नय न समझा-बझा Aकया शात
और धय रखन को कहा जनकजी को
िजन राजा जनक का 6ान4पी सय
भव-4पी रा( का नाश कर दता
C या उन राजा जनकजी क समीप
कभी आ सकत ह मोह और ममता
यह तो मGहमा ह ीसीतारामजी क Bम क
नह इसका कारण लौAकक मोह-ममता
जो लौAकक मोह-ममता पार कर चक
उन पर यह Bभाव Gदखाय0 (बना न रहता
3वषयी साधक और 6ानवान स+ पष
बताय य तीन Bकार क जीव वद न
इनम0 िजनका ltच9त Bभ-Bम स सरस रहता
उसी का बड़ा आदर होता साध-सभा म0
शोभाहन 6ान Bभ Bम (बना
जस जहाज (बना कण धार क
इस Bकार 3वदहराज को वसa ठजी न
समझाया-बझाया हर Bकार स
शोक स पण ी-पष न
(बता Gदया वह Gदन (बना पानी क
3Bयजन और कटिDबय क बात ह C या
पश-पी भी (बना खाय-3पय रह
अगल Gदन नानाGद क बाद
सब वटव क नीच आ बठ
धम नी8त वराY य तथा 3ववकयCत
उपदश Gदय उपिथत म8नय न
तब ीरघनाथजी न 3व- वामजी स कहा
ह नाथ सब लोग 8नराहार ह कल स
जनकजी न कहा अ नाहार उltचत न होगा
तो बनवासी फल-फल ल आय बहत स
ीरामच gtजी क कपा स सब पव त
मनचाहा दन वाल दख हरन वाल हो गय
तालाब नद और वन क सब भाग
सब Bम और आन द स पVरपण हो गय
फल-फल स भर गय लता और व
पश पी भौर0 गा रह मधर वर स
चलन लगी शीतल म द सगिधत हवा
सारा वन भर गया अतलत आन द स
वन क मनोहरता वण न स पर
मान प| वी जनकजी क पहनाई कर रह
जनकपरवासी Bम 3वभोर हो रह
इस Bकार चार Gदन बीत गय य ह
- 212 -
ीसीतारामजी क साथ वन म0 रहना
करोड़ दवलोक स H यादा सखदायक
उ ह0 छोड़ िज ह0 लग घर अJ छा
3वधाता नह ह उनका सहायक
जब दव सबक अनकल हो
तभी ीराम सग रहना हो सकता
म दाAकनीजी का तीन समय नान
मगल का मल दश न ीराम का
चौदह वष पल स बीत जाय0ग
पर हमार ऐस भाY य कहा
सब कह रह हम इस योY य नह
हम वह रह0 रह0 ीराम जहा
उसी समय सनयनाजी क भजी दासया
उltचत अवसर दखकर वहा आयी
कौस या आGद रा8नयो स मलन
जनकराज क र8नवास को पहचा आयी
कौस याजी न सादर सD मान Aकया
और समयोltचत आसन Gदय उ ह0 लाकर
कठोर वd भी 3पघल जात ह
उनका पर पर शील और नह दखकर
शरर पलAकत और शltथल ह
शोक और Bम क आस न म0
सभी ीसीतारामजी क Bम क म8त सी
मान क4णा सशरर उनक वष म0
सीताजी क माता सनयनाजी न कहा
ब3+ बड़ी टढ़ ह 3वधाता क
जो कोमल और 8नदष लोग पर
ढ़ा रहा ह 3वपि9त पर 3वपि9त ऐसी
अमत कवल सनन म0 आता ह
3वष जहा-तहा B9 य दख जात
जहा-तहा कौए उ ल और बगल ह
हस तो एक मानसरोवर म0 ह पात
यह सन समाजी शोक सGहत बोल
बड़ी 3वपरत और 3वltच 3वधाता क चाल
सिaट को बनाता पालता (बगाड़ता
बालक क खल सा ह ह उसका हाल
कौस याजी न कहा Aकसी का दोष नह
दख-सख हा8न-लाभ सब कम अधीन
शभ और अशभ जो भी फल मलता
3वधाता ह जानता उस जानना ह कGठन
3वधाता का Bपच ऐसा अनाGद और अचल
उसक आ6ा रहती सभी क सर पर
महाराज क मरन क जो ltच ता हम करती
करती ह अपना ह Gहत 3वचार कर
Aफर व बोल राम लu मण सीता क
वन गमन का पVरणाम अJ छा ह होगा
मझ इनक इतनी ltच ता नह मन म0
िजतनी ह मझ 3Bय भरत क ltच ता
- 213 -
ई- वर का अनfह और आपका आशीवा द ह
मर चार प और वधऐ ह गगा स
मन कभी ीराम क सौगध नह क
उनक शपथ आज कहती ह स9 य भाव स
भरत क शील गण नता बड़] पन
भाईपन भिCत और भरोस का वण न
सर वतीजी क ब3+ स भी पर ह
जानती ह भरत को सदा स कलभषण
कसौट पर कस जान पर सोना
और र9 न परखा जाता जौहर मलन पर
वस ह पष क परा होती ह
समय पड़न पर उसका चVर दखकर
Aकत अनltचत ह मरा आज ऐसा कहना भी
शोक और नह म0 हो जाता 3ववक कम
लोग कह0ग नहवश ह बड़ाई कर रह ह
पर सच ह कौन हो सकता भरत सम
Aफर कौस याजी न कहा धीरज धर
ह सनयनाजी कौन आपको उपदश द सकता
Aफर भी राजा को समझाकर कGहय
लu मण घर रह0 भरत द0 साथ राम का
मझ भरत का अ9 यत सोच ह
गढ़ Bम ह भरत क मन म0
उनक Bाण को भय न हो जाय
यGद भरत जो 4क जाय0 घर म0
कौस याजी क वाणी को सनकर
सारा र8नवास 8न त ध हो गया
तब समाजी न कहा ह द3व
दो घड़ी रात का समय हो गया
यह सन Bमपव क उठj कौस याजी
और BमसGहत बोल सदभाव स
हमार तो अब ई- वर ह ग8त ह
या मltथल- वर जनकजी सहायक ह हमार
उनका Bम दख और 3वन वचन सन
सनयनाजी न पकड़ लय चरण उनक
ह द3व आपको ऐसी नता उltचत ह ह
महाराज दशरथ प8त ीराम ह प आपक
अपन नीच जन का भी आदर करत ह
Bभ रखत ह उनको Uदय स लगाकर
अिYन धए को और पव त तण को
जस धारण करत ह अपन सर पर
कम मन और वाणी स
हमार राजा तो सवक ह आपक
सदा सहायक तो शव-पाव तीजी ह
कौन समथ सहायक होन म0 आपक
वन जा कर दवताओ का काय साधकर
ीरामच gtजी अचल राH य कर0ग अवध का
सब लोक ीराम क बल स सखी हग
झठा नह हो सकता यह वचन या6व C यजी का
- 214 -
Aफर Bम स पर पड़ आ6ा ल
सीताजी को साथ ल सनयनाजी चल
जानकजी अपन ] यार क टिDबय स
जस जो िजस योY य था उसस वस मल
उधर जनकजी ग4 वसa ठजी क आ6ा पा
डर म0 आकर सीताजी स मल
अपन प3व Bम और Bाण क पाहनी
जानकजी को उ होन0 लगा लया गल
माता-3पता क Bम म0 3वकल हो
सभाल न सक सीताजी वय को
उधर सीताजी को तपिवनी वष म0 दख
3वशष Bम और सतोष हआ 3वदहराज को
बोल दोन कल प3व कर Gदय तन
जगत उH जवल हो रहा तर यश स
3पता न तो नह स सJ ची वाणी कह
पर सीताजी मान समा गयी सकोच म0
सीताजी कछ कहती नह ह
पर सकचा रह ह अपन मन म0
Aक सासओ क सवा छोड़कर
अJ छा नह मरा यहा रहन म0
उनक मन क बात समझकर
3वदा Aकया राजा-रानी न उ ह0
Aफर समय पाकर भरतजी क दशा का
राजा स वण न Aकया रानी न
भरत का ऐसा स दर n यवहार सनकर
उनक यश क सराहना करन लग जनक
भरतजी का धम शील गण और क8त
भला कौन कहन म0 हो सकता समथ
असीम गण सD प न और उपमा रGहत
भरतजी क समान बस ह भरत ह
उनक अपVरमत मGहमा बस ीराम जानत
पर व भी वण न कर सकत नह
य भरतजी का Bभाव वण न कर
राजा न कहा भला ह इसम0 सबका
Aक लu मणजी वापस अवध लौट जाय0
और भरत साथ द0 ीराम का
ीरामचरण म0 भरतजी का Bम
पर ह ब3+-3वचार क सीमा स
व] न म0 भी उनक आ6ा क 3व4+
भरतजी कभी जा नह सकत
इस Bकार भरतजी क गण को कहत
दोन क रात बीत गयी पल म0
उधर सबह उठ वसa ठजी क पास जा
चरण क व दना कर कहा ीराम न
ह नाथ भरत अवधपरवासी और माताए
सभी दखी और n याकल ह शोक स
राजा जनकजी को भी समाज सGहत
बहत Gदन हो गय C लश को सहत
- 215 -
सो ह तात जो उltचत हो किजय
आप ह क हाथ ह सभी का Gहत
उनक सकचाहट और शील- वभाव दख
म8न वसa ठजी हो रह पलAकत
व बोल तD हार (बना ह राम
सब सख उनको ह नरक समान
ह तात तम सब सख का मल हो
आ9 मा क आ9 मा Bाण क Bाण
तD ह0 छोड़ िज ह0 घर सहाता ह
3वधाता 3वपरत ह उन लोग क
ीराम-चरण म0 जहा Bम नह
वह 6ान समान ह अ6ान क
तD हार (बना ह दखी ह सब
जो सखी ह ह सखी तD ह स
जानत हो तम सभी क जी क
आपक आ6ा सर पर ह सभी क
इतना कह म8न गय जनकजी क पास
जाकर ीराम क स दर वचन सनाय
Aफर कहा ह महाराज अब वह किजय
िजसस दोन समाज कछ सखी हो पाय
म8न वसa ठजी क बचनो को सनकर
BममY न हो जनकजी करन लग 3वचार
हम यहा आय यह अJ छा न Aकया
महाराज दशरथ सा छोड न Gदया ससार
तब व भरतजी क पास चल
आग बढ़ वागत Aकया भरत न उनका
व बोल ीराम स9 यtती और धम परायण ह
शील और नह रखनवाल ह सबका
सह रह इसलय सब व सकोचवश
सो तम जो कहो कहा जाय उनस
भरतजी बोल आप 3पता समान पH य ह0
और Gहतषी नह कोई ग4 वसa ठ स
3व- वाम आGद म8न और मिय का समाज
और आज क Gदन 6ान क समgt आप
मझ अपना बJ चा सवक और आ6ाकार समझ
जो उltचत हो करना कGहय ह तात
Aफर भी यहा आप क पछन पर
मौन रहन पर मलन समझा जाऊगा
तथा3प छोटा मह बड़ी बात कहता ह
3वधाता को B8तकल जान मा किजयगा
वद पराण और शा कहत ह
Aक सवाधम कGठन होता ह बड़ा
वामधम और वाथ 3वरोधी ह ससार
बर अधा Bम म0 6ान नह रहता
पराधीन जान मझस कछ न पछकर
ीराम क 4ख और 4ltच क अनसार
सबक सD मत और सबक लय Gहतकार
किजय वह सबक Bम को 3वचार
- 216 -
सराहना करन लग सब भरत क
थोड़ अर पर अथ भरा अपार
जस दपण म0 B8त3वD ब पकड़ा नह जाता
वस ह पकड़ा नह जाता उसका सार
तब जनकजी भरत और म8नय क साथ
चल वहा जहा ीरामजी 3वराजमान थ
उनक Bम-3वFवल और नहमयी दशा दख
दवता घबड़ाकर मन-ह-मन हार
करन लग व सब सर वतीजी स 3वनती
अपनी माया स ब3+ फर द0 भरत क
व बोल भला चादनी भी कह
Bचb ड Aकरणवाल सय को चरा सकती
ीसीताराम का 8नवास ह भरत क Uदय म0
भला कस रह सकता ह वहा अधरा
ऐसा कह व EFमलोक को चल गयी
दवता ऐस n याकल हए H य रा( म0 चकवा
उधर वसa ठजी न सब सवाद कह सनाया
और बोल ह राम जो तम कहो कर0
यह सन हाथ जोड़कर बोल ीराम
ह नाथ आप और जनकजी बड़ ह मर0
आपक रहत मरा कछ कहना अनltचत ह
आपक आ6ा सबक सर पर होगी
उनक बात सन सब तिDभत रह गय
तब भरतजी न सभी क च] पी तोड़ी
सबको Bणाम कर कहन लग भरत
मा किजय मर य कठोर वचन
Aफर उ होन0 सर वतीजी का मरण Aकया
िज होन0 उनक िजFवा पर Aकया आसन fहण
ीसीताजी और ीरामजी को मरण कर
व बोल ह Bभ आप ह मर सव व
सम त गण क भb डार सव 6 सजान
न आपसा वामी न मझसा gtोह सवक
आपक और 3पता क वचन का उ लघन कर
मोहवश समाज बटोरकर म यहा आया
मन सब Bकार स बड़ी Gढठाई क
पर Bभ न उस मर सवा ह मनाया
अपनी कपा और भलाई स
ह नाथ आपन मरा भला Aकया
िजसस मर दषण भषण हो गय
चार ओर मरा यश छा गया
ह नाथ आपक बड़ाई जग-Bस+ ह
वद और शा न गाया ह िजस
परम अधम =र नाितक दa ट को भी
सD मख आया जान शरण म0 ल लत
ऐसा कौन कपाल वामी जो
सज द सवक का सारा समान
उस पर अपनी कछ करनी न समझ
उलट सवक क सकोच का रख s यान
- 217 -
भजा उठाकर Bण रोपकर कहता ह
कोई नह ऐसा दसरा सवा आपक
Bवीण हो जात पश-पी सीखकर
परत व सखानवाल क अधीन रहत
इस Bकार सवक क (बगड़ी बना
उ ह0 सD मान द साध-शरोमKण बना Gदया
और कौन हठपव क पालन करगा
अपनी (बरदावल का भला आपक सवा
शोक नह या बालक- वभाव स
आपक आ6ा न मान म चला आया
तो भी आपन अपनी ओर दखकर
इसम0 कछ भी अनltचत न पाया
आपक चरण क दश न कर जाना Aक
वभाव स ह अनकल ह आप मझ पर
इतनी बड़ी चक होन पर भी
Aकतना अनराग ह वामी का मझ पर
म िजसक जरा भी लायक न था
ऐसी कपा कर ह आपन मझ पर
मन जो मन म0 आया वो कहा
ह नाथ मा कर0 मझ आ9त जान कर
सUद ब3+मान और a ठ मालक स
बहत कहना ह बड़ा अपराध
सो ह दव अब मझ आ6ा दिजय
आपक आ6ा पालन मरा धम ह नाथ
बहत 3ववश हो गय Bम स भरत
न म0 जल शरर पलAकत हो उठा
n याकल हो चरण पकड़ लय राम क
उनका नह समप ण कहा नह जाता
हाथ पकड़कर कपास ध ीराम न
बठा लया अपन पास भरत को
मन-ह-मन सब सराहन लग
भरतजी क भिCत और भाईपन को
उधर छल और मलन-मन इ gt
सोच रहा बस अपन ह लाभ क
Aकसी पर नह कह उसका 3व- वास
कौए क समान ह र8त उसक
पहल तो कमत कर कपट बटोरा
डाल Gदया उचाट सबक सर पर
दवमाया स सबको मोGहत कर Gदया
पर ीराम Bमवश हआ कम ह असर
भय और उचाट क वश होन स
िथर नह ह Aकसी का भी मन
ण म0 घर अJ छा लगन लगता ह
ण म0 अJ छा लगन लगता वन
मन क इस द3वधामयी िथ8त स
दखी हो रह ह सार Bजा
मन-ह-मन ीरामजी हसन लग
Bजा क दख यह उचाट दशा
- 218 -
भरत जनकजी म8नजन और मी
और 6ानी साध-सत को छोड़कर
बाक सब पर दवमाया लग गयी
जो िजस योY य था वसी उस पर
सब ltचलKखत स दख रह
सकचाय हए सखाय स वचन बोलत
भरतजी क Bी8त और 3वनय का
भला श द कस वण न कर सकत
भरतजी का मरण करन स िजसको
सलभ न हआ Bम ीराम का
उस n यिCत क समान भला
अभागा कौन द8नया म0 होगा
तब ीराम न सबक दशा दखकर
दश काल समाज और अवसर 3वचारकर
कहा ह भरत तD हार समान तम ह हो
कौन हो सकता ह तम स बढ़कर
जानत हो तम सबका क9त n य
अपना और मरा धम भी पता
तम पर परा भरोसा ह मझ
Aफर भी समयानसार म कछ कहता
ह तात 3पताजी क (बना हमार बात
सD हाल रC खी ह कवल ग4वश कपा न
वरना हमार सGहत Bजा पVरवार कटD ब
सब क सब बबा द हो रहत
यGद असमय सय अ त हो जाय
तो Aकस C लश न होगा जग म0
वस ह ह यह असामा8यक म9 य 3पता क
पर बचा लया म8न और म ltथल- वर न
सब राज-काज और धम का पालन
सभव ह सब ग4जी क ह कपा स
उनका अनfह ह हमारा रक ह
सब शभ ह होगा उनक कपा स
माता 3पता ग4 और वामी क आ6ा
उसका पालन ह सार धम का
तम वह करो और मझस भी कराओ
यह साधन ह दाता सब स3+य का
इस 3वचार भार सकट सहकर भी
सखी करो Bजा और पVरवार को
मर 3वपि9त तो सबन बाट ल ह
पर चौदह वष बड़ी कGठनाई ह तमको
तD ह0 कोमल जानकर भी म
कह रहा ह तमस 3वयोग क बात
अनltचत नह यह बर समय म0
a ठ भाई ह तब दत साथ
सब BममY न हो गय यह सनकर
भरतजी का सारा 3वषाद मट गया
Bमपव क Bणाम कर व बोल ह नाथ
मझ ज म लन का लाभ मल गया
- 219 -
ह कपाल अब जसी आ6ा हो
सादर क4 उस सर पर धारण
पर िजसस इस अवltध का पार पा जाऊ
ह नाथ द0 मझ कोई ऐसा अव मबन
ह दव आपक अभषक क लय
लता आया ह जल सब तीथr का
अब उनक साथ C या Aकया जाय
ह नाथ कGहय C या ह आपक आ6ा
और एक मनोरथ ह मर मन म0
जो भय और सकोचवश कहा नह जाता
जब ीराम न पछा तो व बोल
ह नाथ म यह वन- दखना चाहता
आपक चरण-ltचFन स अAकत यह भम
नद-तालाब ltचकट क प3व थान
पश-पी और वन-पव त क समह
और भी इस क उ9तम थान
Bभ न कहा अ( ऋ3ष क आ6ा स
जहा चाहो वहा वन म0 3वचरो
और व जहा क लय आ6ा द0
उसी थान पर प3व जल था3पत करो
ीराम-भरत का सवाद सन
दवता ह3ष त हो लग फल बरसान
म8न वसa ठ जनकजी और सभासद
पलAकत हो मन म0 लग हषा न
दख और सख दोन को समान जानकर
माता कौस या न और को धय बधाया
सब ीराम क बड़] पन क चचा कर रह
भरत क अJ छपन स सबन सख पाया
तब अ( ऋ3ष न भरतजी स कहा
यहा पव त क समीप ह एक कआ सदर
इस प3व और अमत जस तीथ जल को
था3पत कर दिजय उसी क अ दर
म8न अ(जी क आ6ा पा भरत न
जल क सब पा कर Gदय रवाना
Aफर छोट भाई और साध-समाज सGहत
भरतजी चल जहा था वह कआ सहाना
जब उस पb य थल म0 जल रख Gदया
तब अ( ऋ3ष बोल आनिदत होकर
ह तात यह अनाGद स+ थल ह
जो रह गया था ल] त होकर
तब सवक न वहा एक कआ बनाया
और वह प3व जल उसम0 रख Gदया
अबस इसको लोग भरतकप कह0ग
जो तीथ जल क कारण प3व हो गया
Aफर सब लोग गय ीराम क पास
अ(जी न तीथ का पb य Bभाव सनाया
धम -चचा करत वह रात बीत गयी
इस Bकार बात-बात म0 सवरा हो आया
- 220 -
सवर भरत-शv न वन-xमण को चल
कोमल चरण चल रह (बना जत क
यह दख प| वी सकचाकर कोमल हो गयी
शीतल म द सगिधत हवा लगी चलन
दवता फल बरसाकर बादल छाया कर
व फल-फलकर तण अपनी कोमलता स
मग दखकर पी स दर वाणी बोलकर
सब उनक सवा करन लग ऐस
जभाई लत समय भी राम कहन स
सलभ हो जाती ह सभी स3+या
तब ीरामजी क ] यार भरत क लय
इसम0 भला आ- चय क बात ह C या
स दर प3व और Gदn य थान दखकर
भरतजी पछत ह और अ(जी बता रह
कह नान कह Bणाम करत ह भरत
कह ीराम-लu मण का मरण कर रह
भरतजी का वभाव Bम और सवाभाव दख
आशीवा द दत ह वन-दवता आनिदत होकर
ढ़ाई पहर तक य घमत ह भरतजी
और Bभ-चरण क दश न करत ह लौटकर
पाच Gदन म0 सब वन घम लया
छठव0 Gदन आ जटा सब समाज
वह 3वदा करन का अJ छा Gदन ह
पर Bभ को कछ कहत आती ह लाज
ताक कर सबक ओर Bभ ीराम
Aफर सकचाकर ताकन लग प| वी को
उनका शील सराह सोचत ह सभी
मल0ग कहा ऐस वामी Aकसी को
सजान भरतजी ीरामजी का 4ख दखकर
दb डवत कर हाथ जोड़कर कहन लग
ह नाथ आपन मर सब 4ltचया रC खी
सबन मर लय सब सताप सह
आपन भी बहत Bकार स दख पाया
अब आ6ा द0 ह वामी मझ
जाकर चौदह वष अवध का सवन क4
Aफर आपक चरण का दश न मल मझ
ह गोसा~ आपक Bम और सD ब ध स
परवासी और कटD ब सब ह आनिदत
आपक लय भव-दख म0 जलना अJ छा
आपक (बना मो भी ह 8निदत
आप सजान सबक Uदय क जानत
हमारा पालन कर0ग और 8नबाह0ग हम0
मर दनता और आपक नह न मलकर
जबरन ढठ बना Gदया ह मझ
इस बड़ दोष को दर कर ह वामी
सकोच 9 यागकर मझ दिजय शा
भरतजी क यह 3वनती सनकर
सार सभा न क उनक Bशसा
- 221 -
भरतजी क दन और छलरGहत वचन सन
समयानसार वचन कह कपाल ीराम न
ग4 वसa ठजी और महाराज जनक को
मर तD हार सबक ltच ता ह उ ह0
उनक हमार सर पर रहत
व] न म0 भी C लश नह ह हम0
मरा और तD हारा तो धम यह ह
Aक 3पताजी क आ6ा का पालन कर0
ग4 3पता माता और वामी क
आ6ा का पण पालन करन स
सवक का कभी पतन नह होता
चाह कमाग पर भी चलना पड़
दश खजाना पVरवार आGद का भार
ग4 चरण-रज पर सब ह 8नभ र
तम तो ग4 माता म(य क शा मान
बस राजधानी क रा करत रहना भर
तलसीदास कहत ह ीराम न कहा
मKखया होना चाGहय मख क समान
जो खान-पीन को तो एक-अकला
पर सब अग को दता जान
बहत तरह स समझाया राम न
पर हआ नह सतोष भरत को
चाहत थ कोई अवलD बन मल जाय
पर सकोच हो रहा था ीराम को
इधर तो भरत का शील और Bम
उधर ग4जन मी और समाज
आKखर भरत क Bमवश ीराम न
कपा कर पावर द भरत क हाथ
आदरपव क सर पर रखी भरत न
Bजा क Bाण क मान पहरदार
भरतजी क Bम-र9 न क लय 8तजोर
रघकल क रा हत दो Aकवाड़
a ठ कम क लय दो हाथ स
8नम ल न धम क राह चलान को
जसा ीसीता-राम क रहन स होता
ऐसा आन द Uदय म0 हआ भरत को
Bणाम कर 3वदा मागी भरत न
ीराम न उ ह0 लगा लया Uदय स
उधर इ gt न बरा मौका पाकर
लोग को भरमा Gदया उJ चाटन स
पर वह कचाल भी Gहतकार हो गयी
सजीवनी हो गयी जीवन क लय
वरना 3वयोग4पी रोग स घबड़ाकर
Bाण पर बन आती लोग क लय
ीरामजी क कपा न उलझन सधार द
गल मल रह व भाई भरत स
धीरज क धर न धीरज 9 याग Gदया
Bमा बहन लग उनक न स
- 222 -
म8नजन और जनकजी स धीर-धर धर
मन सोन सा जो कस चक थ
8नलoप ह रचा था EFमा न िजनको
जगत4पी जल म0 थ जो प9त स
व भी ीरामजी और भरतजी क
उपमारGहत अपार Bम को दखकर
वराY य सGहत तन मन वचन स
रह गय उसम0 व मY न हो कर
भरतजी स भ0टकर समझाया राम न
Aफर शv न को लगा लया Uदय स
सवक और मी भरतजी का 4ख पा
चलन क तयाVरया लग करन
Bभ क चरणकमल क व दना कर
और उनक आ6ा को रख सर पर
म8न तप वी वनदवता सीताजी लu मण
चल उनस भ0ट और Bणाम कर
छोट भाई लu मणजी समत ीराम न
सर नवा जनकजी क बहत बड़ाई क
ह दव दयावश आपन बहत दख पाया
समाज सGहत वन क सब तकलफ0 सह
अब आशीवा द दकर पधाVरय नगर को
यह सन जनकजी न धीरज धर गमन Aकया
Aफर ीराम न 3वa ण और शव समान समझ
EाFमण और साधओ का सD मान Aकया
Aफर दोन भाई गय सनयनाजी क पास
चरण व दना कर आशीवा द पा लौट आय
Aफर नगर 8नवासी मी आGद लोग को
यथायोY य Bणाम कर 3वदा कर आय
माता ककयी स 8न- छल Bम स मलकर
उनका सारा सकोच ीराम न मटा Gदया
उधर सीताजी नहर क कटिDबय स मल
और सासओ क गल लगी Bणाम Aकया
उनक शा सन मनचाहा आशीवा द पा सीताजी
दोन ओर क Bी8त म0 समायी रह
Aफर रघनाथ न माताओ को पालAकय पर चढ़ाया
मन मार कर सार Bजा वापस लौट रह
वसa ठजी और अ4 धतीजी क चरण व दना कर
हष -3वषाद सGहत ीसीताराम लu मण लौट आय
Aफर 8नषादराज और वनवासय को 3वदा कर
बड़ क छाया म0 बठ भरत क गण गाय
उनक दशा दख फल बरसाय दव न
Aफर अपनी घर-घर क कह दशा
Bणाम कर आ- वासन Gदया ीराम न
तब उनक मन म0 कोई डर न रहा
लu मणजी और सीताजी सGहत Bभ
पण कट म0 हो रह ह ऐस सशोभत
मान वराY य भिCत और 6ान तीन
शरर धारण कर हो रह ह शोभत
- 223 -
भरत जनकजी वसa ठजी सGहत सब
3वFवल ह ीरामच gtजी क 3वरह म0
Bभ क गण मन म0 मरण कर
सब माग म0 चपचाप चल जा रह
पहल Gदन सब पार हय यमना क
वह Gदन बीत गया (बना भोजन क
दसरा मकाम गगा उतर गवरपर म0 हआ
जहा सब Bब ध Aकया 8नषादराज न
Aफर सई उतर नान Aकया गोमती म0
चौथ Gदन सब अयोs या जा पहच
चार Gदन अयोs या 4क राज-काज सD हलाकर
सारा साज-सामान ठjक कर जनकजी लौट
ीरामच gtजी क पन दश न क लय
नगरवासी 8नयम और उपवास करन लग
भषण और सख-भोग को छोड़कर
व अवltध क आशा पर जीन लग
म(य और 3व- वासी सवक को समझाकर
भरतजी न अपन-अपन काम पर लगाया
Aफर छोट भाई शv नजी को बलाकर
माताओ क सवा उनक िजD म0 ठहराया
EाFमण को बला Bणाम कर भरत न
कहा जो भी काम ह दिजयगा आ6ा
Aफर Bजा और नागVरक को बसाकर
दb डवत Bणाम Aकया ग4जी क घर जा
8नयमपव क रहन क उनस आ6ा मागी
ग4जी न कहा पलAकत शरर हो
तम जो कछ समझोग कहोग करोग
जगत म0 धम का सार होगा वो
यह सन शा और आशीवा द पाकर
भरतजी न H यो8त3षय स अJ छा Gदन सधवाया
Aफर उस Gदन Bभ क चरणपादकाओ को
आदर स सहासन पर 3वरािजत करवाया
माता कौस या और ग4जी को शीश नवाकर
और Bभ क चरणपादकाओ क आ6ा पाकर
धम -धर धारण करन म0 धीर भरतजी
रहन लग न दfाम म0 पण कट छाकर
सर पर जटाजट म8नय स व कल व
प| वी को खोद कश क आसनी (बछायी
भोजन व बरतन tत 8नयम सभी म0
ऋ3षय क कGठन धम क र8त अपनायी
9 याग Gदय सब सख क साधन
मन तन वचन स तण तोड़कर
शरर घट रहा पर मन-Bस न ह
Bभ-Bम बढ़ रहा 8न9 य नया होकर
शम दम सयम 8नयम और उपवास आGद
भरतजी क Uदयाकाश क न स
3व- वास ह उस आकाश का zवतारा
अवltध का s यान समान पKण मा क
- 224 -
वामी ीराम क म8त Bकाशत अकाशगगा सी
रामBम ह अचल और कलकरGहत च gtमा
उनक रहनी करनी भिCत और गण क
भला कौन क3व कर सकता गणना
8न9 य B8त पादकाओ का पजन करत ह
समाता नह ह Bम Uदय म0 उनक
और पादकाओ स आ6ा माग-माग कर
राज-काज करत ह व सब Bकार क
पलAकत शरर ीसीताराम Uदय म0
राम-नाम जपती रहती ह रसना
ीसीता-राम लu मण रहत ह वन म0
पर भरतजी क Uदय म0 ह बसना
दोन ओर क िथ8त समझकर
सराहना करत ह सब भरतजी क
उनक tत और 8नयम को सनकर
सकचा जात ह साध-सत भी
भरतजी का परम-प3व आचरण
सब आन द और मगल का खजाना
कलयग क पाप-C लश को हरता
महामोह4पी रा( क लय सय समाना
पाप समह4पी हाथी क लय सह सा
सार सताप क दल का नाश करन वाला
ीराम Bम 4पी च gtमा का अमत ह
भCत को सब सख-शा8त दन वाला
ीसीतारामजी क Bम4पी अमत स पVरपण
भरतजी का ज म यGद नह होता
तो म8नय क मन को भी अगम
कGठन tत का पालन Aकस स होता
दख दVरgtता सताप दभाGद दोष का
अपन सयश क बहान हरण कौन करता
और कलकाल म0 इस शठ क जस
लोग को Bभ क सD मख कौन करता
तलसीदास कहत ह जो कोई भी
भरतजी क चVर को आदर सGहत सन0ग
सासाVरक 3वषय-रस स वराY य पाकर
ीसीतारामजी क चरण म0 Bम कर0ग
मासपारायण इ क सवा वाम
वतीय सोपान समा त
- 225 -
lsquoअर यका डrsquo
धम क मल 3ववक क सागर
पाप 3वनाशक (ताप को हरन वाल
ीराम क 3Bय शकरजी को Bणाम
मोह4पी बादल को हटान वाल
जलयCत मघ स स दर आन दघन
हाथ म0 धनष-बाण तरकस कमर म0
भजता ह म Bभ ीरामच gt को जो
ीसीता लu मण सGहत चल रह माग म0
गढ़ ह गण ीराम क ह उमा
िज ह0 समझकर भCत वराY य पा जात
लAकन जो भगवान स 3वमख ह
व महामढ़ मोह fसत हो जात
परवासय और भरतजी क Bम का
मन अपनी ब3+ अनसार गण-गान Aकया
अब सनो सबक मन को भान वाल
व चVर िज ह0 Bभ न वन म0 Aकया
एक बार Bभ न अपन हाथ स
फल स भा8त-भा8त क गहन बनाय
स दर फGटक शला पर बठ Bभ न
आदर सGहत गहन सीताजी को पहनाय
तभी दवराज इ gt का मख प जय त
कौए का 4प धर बल दखन आया
भागा जो सीताजी क चरण म0 चच मार
Bभ न सीक का बाण चढ़ाया
दन क Bमी कपाल भगवन सग
छल Aकया उस मख जय त न
म स BVरत उस बाण क भय स
भाग चला वह कौआ Bाण को बचान
असल 4प धर 3पता क पास गया
पर रC खा न पास उस राम3वरोधी को
सभी लोक म0 भागता Aफरा जय त
पर बठन तक Aकसी न न पछा उसको
काकमशिbडजी कहत ह ह ग4ड़ स8नय
रामgtोह को भला कौन रख सकता
माता म9 य सी 3पता यमराज स
अमत 3वष सा उसक लय हो रहता
म शओ सी करनी करन लगत
गगाजी वतरणी सी हो जाती उसको
सम त जगत उसक लय दावानल सा
ीरामच gtजी क 3वमख हो जाता जो
- 226 -
तब n याकल दख उस नारद न
कहा ीराम ह बचा सकत ह तझ
जाकर चरण पकड़ लय Bभ क
कहा रा किजय मा किजय मझ
आपक अतलत Bभता म जान न पाया
पा लया फल मन अपन कम का
ह उमा तब Bभ न कपा कर उसको
छोड़ Gदया काना कर एक आख का
बहत भीड़ हो गयी जब ltचकट म0
Bभ चल Gदय अ(जी क आम को
उठकर दौड़ म8न Bभ को भाता दख
दb डवत Aकया दोन भाइय न म8न को
उठाकर Uदय स लगा लया म8न न
Bमाओ स नहला Gदया दोन को
आदरपव क म8न उ ह0 आम म0 ल आय
और हाथ जोड़ करन लग त8त वो
ह भCतव9 सल ह कपाल कोमल वभाववाल
नम कार करता ह ह Bभ म आपको
8नता त स दर - याम आवागमन छड़ान वाल
ह कमलनयन छड़ानवाल सब दोष को
असीम ह आपका परा=म और ऐ-वय
धनष-बाण धार तीन लोक क वामी
सय वश क भषण शव-धनष तोड़न वाल
असर क नाश करनवाल दव सखदायी
कामदव क श शवजी पजत आपको
EFमा आGद दवता सवा करत आपक
3वश+ 6ानमय 3वfह ह सख क खान
सीताजी लu मण सGहत पजा करता आपक
जो मनa य म9 सर रGहत होकर
आपक चरण-कमल का सवन करत
तक -3वतक 4पी तरग स पण
ससार4पी समgt म0 Aफर नह ltगरत
इिgtय-8नfह कर जो आपको भजत
Bा] त होत व अपन व4प को
सव समथ इJ छारGहत ई-वर सनातन परम
तरय अपन व4प म0 िथत ह जो
3वषयी पष क लय अ9 य त दल भ
पर क पव स अपन भCत क लय
सम स दर प| वीप8त ह जानकनाथ
मझ अपन चरण क भिCत दिजय
इस त8त को आदरपव क पढ़न वाल
Bा] त होत ह Bभ क परमपद को
Aफर सर नवाकर म8न बोल ह नाथ
कभी न छोड़ म आपक चरणकमल को
Aफर परम शीलवती और 3वन ीसीताजी
अनसयाजी क चरण पकड़कर मल उनस
उ होन0 उ ह0 Gदn य व व आभषण पहनाय
जो 8न9 य 8नम ल और सहान बन रहत
- 227 -
उनक बहान मधर और कोमल वाणी स
ऋ3षपि9न कहन लगी िय क धम बखानकर
माता 3पता भाई सभी Gहत करन वाल ह
परत प8त होता ह इन सबस बढ़कर
अधम ह वह ी जो
करती नह अपन प8त क सवा
धय धम म और ी
3वपि9त म0 ह इनक होती परा
व+ रोगी मख 8नध न या दन
चाह =ोधी हो या अधा बहरा
ऐस प8त का भी अपमान करन स
ी यमपर म0 पाती ह दख गहरा
तन मन वचन और कम स
सवा करना प8त क चरण क
ी क लय बस यह एक धम
यह एक tत और 8नयम यह
वद पराण और सत सब कहत
चार Bकार क प8तtताए ह जगत म0
उ9तम प8तtताए ऐसा भाव रखती ह
प8त को छोड़ न पष जगत म0
भाई 3पता या प सा दखती ह
मs यम णी क प8तtता िया
धम या मया दा हत जो बची रहती
व होती 8नD न णी क िया
मौका न मलन स या भयवश
बनी रहती ह प8तtता जो ी
ऐसी ी को तो ह राजकमार
समझना जगत म0 अधम ी ह
और प8त को धोखा दनवाल
पराय पष स र8त जो करती
ऐसी ी तो सौ क प तक
रौरव नरक म0 ह पड़ी रहती
प8तtत-धम fहण करती छल छोड़कर
(बना पVरम परमग8त वह ी पाती
लAकन प8त क B8तकल जो चलती
ज म-ज म जवानी म0 3वधवा हो जाती
ज म स ह अप3व होन पर भी
प8त सवा स अनायास शभ ग8त पाती
इसी कारण वद उनका यश गात ह
और भगवान को 3Bय लगती lsquoतलसीजीrsquo
तD हारा तो नाम ह ल-लकर
िया पालन कर0गी प8तtत धम का
तD ह0 तो ीरामजी Bाण स 3Bय ह
जगत Gहत हत क मन यह कथा
परम सख पाया जानकजी न सनकर
आदरपव क सर नवाया उनक चरण म0
तब कपाल ीराम न म8न स कहा
आ6ा हो तो जाऊ अब दसर वन म0
- 228 -
सवक जान मझ पर कपा करत रGहय
यह सनकर 6ानी म8न बोल Bम स
EFमा शव सनकाGद िजनक कपा चाहत
व Bभ आप बोल रह इतनी कोमलता स
अब मन लu मीजी क चतराई समझी
िज होन आपको ह भजा सब दवता छोड़कर
िजनक समान अ9 य त बड़ा नह कोई
उनका शील भला ऐसा होगा न C यकर
Aकस Bकार कह ह वामी जाइय
आप अ तया मी ह कGहय आप ह
यह कह म8न Bभ को दखन लग
आख स बह Bमाओ क नद
अ9 यन Bम स पण ह म8न
शरर पलAकत न ताक रह Bभ को
मन म0 सोच रह Aकस कारण स
दख र हा म इिgtय स पर Bभ को
ीरामच gtजी का स दर 8नम ल यश ह
कलयग क पाप का नाश करनवाला
न धम 6ान न योग जप इसम0
बस ीराम-भजन ह पार लगान वाला
म8न क चरण कमल म0 सर नवाकर
सबक वामी ीरामजी चल वन को
दोन भाइय क बीच सीताजी शोभत ऐस
जस EFम और जीव क बीच माया हो
नद वन पव त और दग म घाGटया
अपन वामी को पहचान रा ता द दत
जहा-जहा दव ीरघनाथजी जात ह
वहा-वहा बादल छाया करत जात
माग म0 उ ह0 Aकराध रास मला
मार डाला ीराम न सामन आत ह उस
उसन तरत स दर 4प धारण कर लया
अपन परम धाम को भजा Bभ न उस
Aफर लu मणजी और सीताजी सGहत Bभ
वहा आय जहा म8न शरभगजी थ
Bभ का मख-कमल दख आदर सGहत
उसका पान कर रह न म8न क
म8न न कहा ह कपाल रघबीर
म EFमलोक को जा रहा था
इतन म0 सना आप वन म0 आव0ग
तब स आप क राह दखता रहा
आज आपको दखकर ह नाथ
शीतल हो गयी ह मर छाती
सब साधन स हन ह म पर
अपना सवक जान आपन कपा क
यह आपका एहसान नह ह भCत-मनचोर
आपन अपन Bण क ह रा क
अब इस दन क क याण हत 4Aकय
जब तक शरर छोड़ शरण न ल आपक
- 229 -
जप-तप सब अप ण कर Bभ को
बदल म0 भिCत का वरदान ल लया
Aफर योगािYन स अपना शरर जला
Bभ चरण म परमपद पा लया
शरभगजी क यह दल भ ग8त दखकर
ऋ3षसमह त8त कर रह Bभ ीराम क
और कह रह जय हो जय हो जय हो
ह शरणागतGहतकार क4णाकद आपक
Aफर आग वन म0 चल रघनाथ
बहत स म8नगण साथ हो लय उनक
एक जगह हडय का ढर दखकर
दया8नधान न दया कर पछा म8नयो स
व बोल आप सव 6 और अ तया मी ह
सब जानत हए भी पछ रह हम स
रास न सब म8नय को खा डाला
यह सन जल छलक आया न स
तब भजा उठाकर Bण Aकया राम न
म रास स रGहत कर दगा प| वी को
Aफर सम त म8नय क आम म0 जाकर
दश न एव सD भाb ण का सख Gदया उनको
म8न अग 9 यजी क एक शa य थ सतीu ण
बड़ी Bी8त थी भगवान म0 उनक
मन वचन कम स थ रामचरण क सवक
Aकसी अ य पर भरोसा नह व] न म0 भी
H य ह Bभ का आगमन सना उ होन0
अनक मनोरथ लय दौड़ शीता स
ह 3वधाता C या दनब ध ीरघनाथजी
दया कर0ग दaट पर भी मझ जस
C या व छोट भाई लu मणजी सGहत
मझस मल0ग अपन सवक क भा8त
मर Uदय म0 lढ़ 3व- वास नह होता
भिCत 6ान वराY य नह मझ म0 कछ भी
सतसग योग जप य6 न Aकया
न ह lढ़ अनराग Bभ चरण म0
हा Bभ क इस बान का भरोसा
अन य सवक 3Bय होता ह उ ह0
Bभ क इस बात का मरण आत ह
म8न आन दमY न हो कहन लग मन म0
अहा Bभ क मखार3व द क दश न कर
न को ध य क4गा आज म अपन
ह भवानी म8न Bम म0 पण मY न ह
उनक वह दशा कह नह जाती
उ ह0 Gदशा 3वGदशा और रा ता
सझ नह रहा ह कह कछ भी
कौन ह और कहा जा रहा ह
यह भी म8न अब नह जानत
कभी आग कभी पीछ चलन लगत ह
Bभ क गण गा-गाकर नाचन लगत
- 230 -
Bगाढ़ BमाभिCत Bा] त कर ल म8न न
Bभ आड़ म0 8छपकर दख रह
म8न का अ9 यत Bम दखकर भवभयहार
उनक Uदय म0 Bकट हो गय
Uदय म0 Bभ क दश न पाकर म8न
बीच रा त म0 िथर हो बठ गय
उनका शरर रोमाच स भर गया
तब ीरघनाथ उनक पास आ गय
जाग नह म8न कस भी जगान स
C यAक Bभ क s यान म0 मY न थ व
तब ीरामजी न अपना राज4प 8छपा लया
और चतभ ज 4प म0 व Bकट Uदय म0
अपन इa ट- व4प क अ तधा न होत ह
बहत ह n याकल हो उठ म8न
जस a ठ सप n याकल हो जाता
जब खो जाती ह उसक मKण
सीताजी और लu मणजी सGहत अपन सामन
म8न न दखा - यामस दर 3वfह ीराम को
लाठj क तरह ltगर पड़ चरण म0
Bभ न उठा Uदय स लगाया उनको
म8न टकटक लगाय दख र ह Bभ को
मान ltच म0 लखकर बनाय गय ह
तब धीरज धर बारD बार चरण छए
और अपन आम म0 ल गय Bभ को
कहन लग कस आपक क4 त8त
मGहमा अपार और ब3+ अ प ह मर
ह Bभ आपको 8नर तर नम कार करता ह
आप ह रा करनवाल ह मर
ह नीलकमल क माला स - याम तनधार
जटाओ का मकट व कल व पहन हए
नम कार करता ह ह ीराम आपको
हाथ म0 धनष कमर म0 तरकस कस हए
मोह4पी वन का जलान हत अिYन
सत4पी कमल को Kखलान हत सय स
रास4पी हाltथय को पछाड़न हत सह
भव4पी पी को मारन हत बाज स
ह अ4ण नयन और स दर वष वाल
ह सीताजी क न4पी चकोर क च gtमा
शवजी क Uदय4पी मानसरोवर क बालहस
आपका Uदय 3वशाल ह और 3वशाल भजा
ह सशय4पी सप को fसन को ग4ड़
3वषाद 3वनाशक आवागमन को मटनवाल
ह कपा क समह नम कार आपको
ह दवताओ क रक आन द दनवाल
ह 8नग ण सगण 3वषम और सम4प
ह 6ान वाणी और इिgtय स पर
ह अनपम 8नम ल सD पण दोषरGहत ीराम
नम कार आपको ह Bभ मर रा कर0
- 231 -
जो भCत क लय क पव क बगीच ह
काम =ोध मद लोभ को डरानवाल
ससार4पी समgt स तरन को सत स
व आप ीरामजी मर रा करनवाल
िजनक भजाओ का Bताप अतलनीय
बल क धाम कवच धम क
िजनक गणसमह आन द दनवाल ह
व ीराम सदा मरा क याण कर0
सगण 8नग ण और अ तया मी आपको
जो जसा जानत ह वो वसा जान
मर Uदय म0 तो आप इसी 4प म0
ह कोसलप8त कमलनयन अपना घर बनाव0
भलकर भी न भल म सवक ह
और आप ीरघनाथजी वामी ह मर
बहत Bस न हए Bभ यह सनकर
लगा लया उ होन0 म8न को Uदय स
और कहा जो चाहो वर माग लो
म8न न कहा जो अJ छा लग आपको
Bभ न भिCत वराग य और 6ान का
Bस न होकर वर Gदया म8न को
तब म8न न मनचाहा वर मागा
कहा छोट भाई लu मणजी और सीताजी सGहत
धनष-बाणधार आप िथर होकर ह Bभ
मर Uदयाकाश म0 ह च gtमा स शोभत
एवम त कह ीरामच gtजी ह3ष त हो
अग 9 य ऋ3ष क आम को चल
सतीu णजी बोल ग4जी का दश न पाय
और यहा आय बहत Gदन हो चल
आम पहच ग4जी क पास गय सतीu णजी
और दb डवत कर उनस कहन लग
ह नाथ आप िजनका जप करत रहत ह
व ह आय ह आज आप स मलन
यह सनत ह अग 9 यजी उठ दौड़
Bभ को दखत ह न भर आय
दोन भाई म8न क चरण म0 ltगर पड़0
म8न ह3ष त ह उ ह0 गल स लगाय
बहत Bकार स Bभ क पजा कर
म8न न कहा कौन भाY यवान ह मझ सा
अ य म8न भी दश न क लय आ गय
सबन Bभ को अपन सD मख बठ दखा
तब ीरघनाथजी न म8न स कहा
ह Bभो आपस तो कछ 8छपाव नह
म िजस कारण आया आप जानत ह
इसी स समझाकर कछ कहा नह
वह म दिजय मझ ह Bभो
िजसस मा4 म म8न gtोह रास को
Bभ क वाणी सन म8न मसकाय
बोल C या समझ यह पछा मझको
- 232 -
आपक भजन क ह Bभाव स ह नाथ
जानता ह कछ थोड़ी सी मGहमा आपक
अन0क EFमाb ड क समह िजसक फल ह
गलर क 3वशाल व सी माया आपक
उन फल क भीतर रहनवाल ज तओ स
सम त चराचर जीव रहत ह जगत म0
उन फल का भण करनवाला कराल काल
वह भी सदा रहता ह आपक भय म0
सम त लोकपाल क वामी होकर आपन
मनa य क भा8त B- न Aकया ह मझस
म मागता ह ीसीताजी और लu मणजी सGहत
आप सदा-सदा मर Uदय म0 बस0
Bगाढ़ भिCत वराY य और सतसग दिजय
और अटट Bम आपक चरणकमल म0
य_य3प आप अखb ड और अन त EFम ह
पर म Bम मानता आपक इस व4प म0
सवक को बड़ाई Gदया करत ह आप
इसी स यह B- न आपन पछा मझस
दb डकवन म0 पचवट नामक थान ह
अपन चरणकमल स प3व किजय उस
हर लिजय म8न गौतमजी क शाप को
म8नय पर दया कर किजय वहा 8नवास
उनक आ6ा पाकर ीरामच gtजी चल Gदय
और शी ह जा पहच पचवट क पास
भ0ट हई वहा गzराज जटाय स
उसक साथ बहत Bकार स Bम बढ़ाकर
Bभ ीरामच gtजी गोदावरजी क समीप
रहन लग वहा एक पण कट छाकर
डर जाता रहा तबस म8नय का
पव त नद तालाब भर गय शोभा स
जहा B9 य ीरामजी वय 3वराजमान ह
उस वन का वण न हो सकता Aकस स
एक बार Bभ जब सखासीन थ
लu मणजी न पछा सरल भाव स
6ान वराY य माया और भिCत
ई- वर और जीव का भद समझाय0 मझ
मर शोक मोह xम नa ट हो जाय0
और आपक चरण म0 Bी8त हो िजसस
ह नाथ आपक चरणरज क सवा क4
इसलय सब समझाकर कGहय मझस
ीरामजी न कहा ह तात कहता ह
थोड़ ह म0 सब समझाकर तD ह0
म और मरा त और तरा माया ह
िजसन जीव को कर रC खा वश म0
3वषय को और जहा तक मन जाता
ह भाई माया ह जानना इन सबको
उसक भी दो भद कहता ह
एक को 3व_या अ3व_या कहत दजी को
- 233 -
दख4प और दोषयCत ह अ3व_या
ससारकप म0 पड़ा हआ ह जीव िजसस
3व_या क वश म0 गण होत ह
जगत क रचना होती ह िजसस
Bभ स BVरत होती ह 3व_या
अपना बल कछ भी नह ह उसक
6ान वह जहा कोई भी दोष नह
और समान4प स EFम दखता सब म0
सार स3+य और तीन गण को
जो 9 याग चका हो 8तनक क समान
और Aकसी चीज क चाह न हो
कहना चाGहय उस ह परम वराY यवान
माया ई- वर और अपना व4प
जो नह जानता वह जीव कहाता
सबस पर और माया का Bरक
ब धन और मो दनवाला ई- वर कहाता
वराY य धम स 6ान योग स
मो 6ान स वद म0 वKण त
पर भिCत स शी Bस न होता ह
और भिCत भCत को करती ह3ष त
सत क कपा स मलती भिCत
िजसस जीव मझ सहज पा जात
मन वचन कम स मर आltत
अपन Uदय म0 मझ वो सदा पात
इस भिCतयोग को सनकर लu मणजी न
Bभ ीरामजी क चरण म0 शीश नवाया
इस Bकार वराY य 6ान गण नी8त कहत
पचवट म0 रहत कछ समय (बताया
शप णखा नामक रावण क एक बGहन थी
नाltगन सी भयानक और दa ट Uदय क
घमती-Aफरती एक बार गयी पचवट म0
दोन राजकमार को दख 3वकल हो गयी
काकभशिbडजी कहत ह ndash ह ग4ड़ जी
शप णखा जसी रासी धमा 6ान-श य ी
मनोहर पष को दख चाह कोई हो
अपन मन को नह रोक सकती
स दर 4प धर Bभ क पास जाकर
उसन बहत मसकरा कर उनस कहा
तम सा पष और मझसी ी
3वधाता न यह सयोग 3वचारकर रचा
मर योY य पष जगत भर म0 नह
मन तीन लोक को दखा खोजकर
इसी स म अब तक रह कमार
अब कछ मन माना ह तD ह0 दखकर
Bभ न सीताजी क ओर दखकर
कहा Aक मरा छोटा भाई ह कमार
तब वह लu मणजी क पास गई
व कोमल वाणी स बोल इस Bकार
- 234 -
ह स दर म तो पराधीन दास ह
अत होगा न तD ह0 मझस कछ सभीता
Bभ समथ ह कौसलपर क राजा ह
व जो कछ कर0 उ ह0 सब सहाता
सवक सख भखार सD मान n यसनी धन
लोभी यश n यभचार शभग8त चाह
आकाश दहकर दध लना चाहत ह व
जस अभमानी चार फल चाह
लौटकर गयी वह ीरामजी क पास
उ होन0 Aफर उस लu मणजी क पास भजा
लu मणजी न कहा ndash तD ह0 वह वरगा जो
लH ज़ा को तण तोड़कर 9 याग दगा
तब Kखसयाकर ीरामजी क पास गई वह
और Gदखाया उसन अपना 4प भयकर
सीताजी को भयभीत दखकर Bभ न
लu मणजी स कहा इशारा दकर
लu मणजी न बड़ी फत स उसको
कर Gदया (बना नाक और कान क
मान इस तरह उसक हाथ उ होन0
द डाल हो रावण को चनौती
रCत बहन लगा ऐस उसक शरर स
काल पव त स H यो ग4 क धारा
3वलाप करती गई खर-दषण क पास
रो-राकर उनक पौ4ष को 8घC कारा
पछन पर समझाकर कहा शप णखा न
सना तयार कर रास क झड दौड़
अनक भयानक हltथयार धारण Aकय ह
और शप णखा को कर रखा ह आग
गरजत ललकारत चल जा रह वो
अपशकन हो रह पर ltगनत नह
कह रह दोन भाइय को पकड़ लो
ी छjन लो उ ह0 मार दो वह
तब ीरामजी न लu मण स कहा
सीताजी को ल जाओ सरत क दरा म0
लu मणजी सीताजी सGहत धनष-बाण ल चल
और कGठन धनष को चढ़ाया रघनाथ न
पकड़ो-पकड़ो पकारत रास दौड़त आय
और घर लया Bभ को चह ओर स
पर Bभ क सौ दय-माधय -8नltध दख
वो उन पर बाण नह छोड़ सक
तब खर-दषण न मी स कहा
कह ऐसा अB8तम सौ दय दखा न हमन
यह अनपम पष वध योY य नह ह
य_य3प हमार बहन को क4प Aकया इसन
कहो अपनी 8छपायी ी हम0 द दो
और दोन भाई जीत जी लौट जाओ
उनक बात सनकर मसकराकर बोल ीराम
हम (य ह हम0 डर न Gदखाओ
- 235 -
ढढत ह शकार हत तम जस पश
और लड़ सकत ह हम काल स भी
द9 यकल नाशक और म8नय क रक
दa ट को दb ड दत बालक होन पर भी
यGद बल न हो तो घर लौट जाओ
पीठ Gदखान वाल को म नह मारता
दत न जाकर सब बात0 कह तो
खर-दषण का Uदय अ9 य त जल उठा
अपन भयानक अ -श उठा दौड़ रास
तो ीराम न धनष का कठोर टकार Aकया
िजस सन रास बहर और n याकल हो गय
उस समय उ ह0 कछ भी होश न रहा
Aफर जब उ होन0 आ=मण Aकया Bभ पर
Bभ न उनक अ -श काट डाल
फफकारत सप स चलत बाण स घबरा
रास वीर अपनी पीठ Gदखाकर भाग
तब खर-दषण और (शरा
तीन भाई बोल =+ होकर
जो रण स भागकर जायगा
अपन हाथ उसका कर0ग वध
तब रास दोन तरह मरना जान
लौटकर Bहार करन लग Bभ पर
Bभ न बहत स बाण छोड़
मार डाला रास को काट-काट कर
व माया कर Aफर उठ खड़ होत ह
कट हए अग उड़ रह गगन म0
उनक धड़ जहा-तहा ltगर पड़त ह
Aफर उठत ह और लगत ह लड़न
अपनी सना को n याकल दखकर
(शरा और खर-दषण आग बढ़
भयानक आ=मण Aकया रास यो+ाओ न
ीराम न भी उन पर बाण छोड़
सब रास सनाप8तय क Uदय म0
दस-दस बाण मार ीराम न
रास चौदह हजार Bभ अकल
तब एक कौतक Aकया Bभ राम न
एक-दसर को राम-4प दख श सना
आपस म0 ह य+ करक लड़ मर
ऐस ण भर म0 मार डाला उनको
और कपा कर द उ ह0 परम-पद पदवी
ह3ष त हो फल बरसान लग दवता
तब लu मणजी सीताजी को ल आय
शप णखा न जाकर रावण को भड़काया
बहत Gदन तन य ह (बताय
शराब पीकर Gदन भर सोया रहता ह
श सर पर खड़ा ह खबर नह
अिYन रोग पाप श वामी और सप
कभी इ ह0 छोटा कर समझना चाGहय नह
- 236 -
बहत Bकार 3वलाप कर कह रह शप णखा
तर जीत-जी मर C या दशा हो गयी
उसक बात सन n याकल हो गय सभासद
रावण न पछा Aकसन ऐसी GहD मत क
वह बोल अयोs या नरश दशरथ क प
वन म0 शकार खलन जो आय
मझ उनक करनी ऐसी समझ पड़ती ह
Aक प| वी को रास-रGहत करन आय
िजनक भजाओ का बल पाकर म8न
वन म0 8नभ य हो लग ह 3वचरन
Gदखत बालक स पर काल समान
लग ह दa ट का वध करन म0
अतलनीय बल और Bताप ह उनका
शोभा क धाम राम नाम ह उनका
उनक साथ एक त4णी स दर ी ह
सौ र8त 8नछावर ऐसा 4प ह उसका
उ ह राम क छोट भाई न
मर नाक और कान काट डाल
खर-दषण मर सहायता करन आय
पर व सब राम न मार डाल
खर-दषण और (शरा का वध सनकर
जल उठ सब अग रावण क
बहत Bकार शप णखा को बल बखाना
पर ltच ता बस गयी भीतर मन क
दवता मनa य असर नाग और पय म0
कोई मर सवक को भी पा नह सकता
खर-दषण तो मर समान ह बलवान थ
सवा भगवान उ ह0 और कौन मार सकता
यGद वय भगवान न ह अवतार लया
तो हठपव क म उनस बर क4गा
और Bभ क हाथ अपन Bाण गवाकर
अनायास ह भवसागर स तर जाऊगा
भजन न होगा इस तामस शरर स
तो मन वचन कम स ह यह 3वचार
दोन का हरा उनक ी को हर लगा
यGद मनa य4प म0 ह वो कोई राजकमार
सो अकला ह चला रावण रथ चढ़कर
गया समgt तट पर जहा मारच रहता था
ह पाव ती यहा ीराम न जो यिCत रची
सनो मझ स तम वह स दर कथा
क द-मल लन वन गय जब लu मण
जानकजी स हसकर बोल Bभ ीराम
ह 3Bय अब म कछ नर-लला क4गा
तब तक तम करो अिYन म0 3वाम
ीरामजी न H य ह समझाकर कहा
सीताजी समा गयी अिYन म0
अपनी ह छायाम8त वहा रख द
वसी ह शील- वभाव और 4प म0
- 237 -
भगवान न जो कछ लला रची
इस रह य को लu मणजी न भी न जाना
उधर वाथ और नीच रावण वहा गया
जहा मारच था और उसको सर नवाया
दखदायी होता ह नीच का झकना भी
जस अकश धनष साप (ब ल का झकना
ह भवानी दa ट क मीठj वाणी को भी
(बना ऋत क फल सी भयकार समझना
तब मारच न रावण क पजा कर
आदरपव क उसस पछा ह तात
Aकस कारण आप इतन n यf ह
और C य अकल ह आय ह आप
अभमान सGहत सार कथा कह रावण न
और कहा उस कपट-मग बनन को
वह बोला व नर-4प म0 ई- वर ह
िजलात-मारत व ह सब जीव को
भलाई नह उनस वर करन म0
उनका 3वरोध करन स मलगी न सफलता
3व- वामजी क य6-रा हत गय थ य
तब मझ (बना फल का बाण मारा था
ण भर म0 सौ योजन पर आ ltगरा
कट-भग सी हो गई मर दशा
ीराम-लu मण दोन भाइय को दखता ह
िजधर दखता ह उ ह0 दखता ह वहा
िजसन ताड़का और सबाह को मार
ण म0 तोड़ Gदया धनष शवजी का
खर-दषण और (शरा को मार डाला
ऐसा Bचb ड बल C या मनa य हो सकता
लौट जाइय कल क कशल 3वचार
यह सन रावण =+ हो उठा
दव चन कह और पछा रावण न
मझसा यो+ा कह हो तो बता
तब मारच न Uदय म0 अनमान Aकया
इन नौ का 3वरोध करन म0 नह क याण
श धार भद जानन वाला समथ वामी
व_य भाट क3व रसोइया मख और धनवान
दोन Bकार स अपना मरण दख
ीराम क हाथ मरन क सोची उसन
उनक दश न का हष मन म0 समाया
पर यह बात Bकट न कर उसन
सोच रहा परम 3Bयतम को दख
उनक चरण म0 लगाऊगा अपना मन
िजनका =ोध भी मो दनवाला ह
उनक हाथ स होगा मरा मरण
धनष-बाण लय मर पीछ Aफरत
Bभ को Aफर-Aफर कर म दखगा
भला मझसा कौन होगा ध यभागी
Bभ क हाथ अपन Bाण तजगा
- 238 -
जब पहचा रावण उस वन क 8नकट
तब मारच माया स मग बन गया
वण न स पर था वह कपट-मग
िजसका सारा शरर था मKणय स सजा
सीताजी न उस मग को दख
कहा इसक छाल ह बहत ह स दर
व बोल ह कपाल रघबीर स8नय
इसका चमड़ा ला Gदिजय इस मारकर
दवताओ का काम बनान हत ीराम
सब जानत हए भी ह3ष त हो उठ
Aफर लu मणजी को समझाकर कहा
सावधानी स सीताजी क रखवाल कर0
माया-मग क पीछ दौड़ रह Bभ
िजनको वद न8त-न8त कह रह जात
8छपता छल करता दर ल गया उ ह0
जब दखा मग न उ ह0 पीछ आत
तककर कठोर बाण मारा ीराम न
िजसस ltगर पड़ा वह मग प| वी पर
पहल उसन lsquoहा लu मणrsquo जोर स कहा
Aफर Bाण 9 याग ीराम का मरण कर
उसक Uदय का Bम पहचान Bभ न
म8नय को भी दल भ ग8त द उस
असर को भी अपना परमपद द Gदया
दवता Bभ क त8त कर रह ऐस
उधर सीताजी न जब lsquoहा लu मणrsquo सना
भयभीत हो व बोल लu मण स
तD हार बड़ भाई बड सकट म0 ह
सहायता क लय पकार रह ह तD ह0
लu मणजी न हसकर कहा ndash ह माता
िजनक xकGट3वलास स Bलय हो जाता
व] न म0 भी उन Bभ ीराम पर
C या कभी कोई सकट आ सकता
तब सीताजी कछ मम -वचन बोल
होनीवश लu मणजी भी उ_3वY न हो उठ
वन और Gदशाओ क दवताओ को सyप
सीताजी को छोड़ लu मणजी चल पड़
सना मौका दखकर तब रावण
स यासी बन सीताजी क 8नकट आया
िजसक डर स दवता भी कापत थ
वह क9त सा भडहाई क लय आया
अनक Bकार क सहावनी कथाए रचकर
राजनी8त भय और Bम Gदखलाया उसन
सीताजी न कहा ndash ह य8त गोसा~ सनो
दa ट क तरह ह वचन कह तमन
भयभीत हो गयी सीताजी रावण न जब
अपना नाम बताया और असल 4प Gदखाया
तब गहरा धीरज धरकर सीताजी न उसको
Bभ आ रह ह अर दa ट कह धमकाया
- 239 -
सह क ी क चाह म0 H य खरगोश
वस ह त कालवश हआ अर रावण
य सनत ह उस =ोध आ गया
पर चरण-व दना क मन-ह-मन
Aफर =ोltधत हो रथ म0 बठाकर
सीताजी को ल चला आकाश माग स
बड़ी उतावल स चला जा रहा ह
पर रथ नह हाका जा रहा उसस
सीताजी 3वलाप कर रह थी
C य भला Gदया ndash ह नाथ मझ
rsquoहा लu मणrsquo तD हारा दोष नह था
अपन =ोध का ह फल मला मझ
सीताजी का भार 3वलाप सनकर
जड़-चतन सब दखी हो गय
गzराज जटाय न उनक वाणी सन
पहचान लया Aक सीताजी ह य
यह दख Aक रास लय जा रहा ह
वह बोला ह पी भय मत कर
Aफर वd सा रावण क ओर दौड़ा
और 4कन को कहा उस ललकार कर
कहा जानकजी को छोड़ घर चला जा
वरना ीराम क =ोध म0 भ म होगा
जब रावण न कोई उ9तर न Gदया
तब ltग+ उसक ओर =ोध कर दौड़ा
बाल पकड़ नीच उतार लया रावण को
घायल कर Gदया चोच स मार-मार कर
एक घड़ी तक रावण म8छ त पड़ा रहा
Aफर कटार 8नकाल जटाय क काट पर
जब प| वी पर ltगर पड़ा जटाय
सीताजी को ल चला Aफर रावण
सीताजी य 3वलाप कर रह ह
जस n याध क जाल म0 फसा Gहरन
पव त पर बठ हए बदर को दख
हVरनाम ल व डाला सीताजी न
इस Bकार हर ल गया उ ह0 रावण
और ल जाकर रखा अशोक वन म0
बहत Bकार स भय और Bी8त Gदखा
जब वह दa ट थक-हार गया
तब सब n यव था ठjक कर उसन
अशोक व क नीच उ ह0 रख Gदया
िजस Bकार कपट मग क साथ
दौड़ चल थ उसक पीछ रामजी
उसी छ(ब को Uदय म0 रखकर
हVरनाम रटती रहती ह सीताजी
नवानपारायण छठा वाम
- 240 -
उधर लu मणजी को अपनी ओर आत दख
बहत ltच ता Bकट क ीरघनाथ न
कहा जानकजी को छोड़ Gदया अकला
मर आ6ा का पालन Aकया न तमन
वन म0 Aफरत रहत रास क झड
सीता आम म0 नह लगता मन म0
लu मणजी न चरण पकड़ हाथ जोड़ कहा
ह नाथ मरा कछ दोष नह इसम0
आम म0 जा सीताजी को न दख
बहत n याकल और दन हो गय ीराम
अनक Bकार स समझाया लu मणजी न
तब सीताजी को ढढन0 लग ीराम
लताओ और व स पछ रह ह
पश-पय स पछत कहा ह सीता
साधारण मनa य स 3वरह म0 n याकल
अज मा अ3वनाशी Bभ कर रह नर-लला
आग जान पर उ होन0 जटाय को दखा
कपा8नधान न सर पर फरा हाथ
पश करत ह उसक सब पीड़ा मट
कहा रावण न क यह दशा ह नाथ
उसी दa ट न हरा जानकजी को
दण Gदशा को ल गया ह वो उ ह0
करर क तरह व 3वलाप कर रह थी
यह बतान को Bाण रोक रख थ मन
अ तकाल िजनक नाम स मिCत मलती
वह Bभ आप सामन खड़ ह मर
Bभ न कहा Bाण रोक रKखय ह तात
जटाय न कहा दह रC ख अब Aकस लय
तब न म0 जल भर बोल ीराम
a ठ कमr स आपन पायी ग8त दल भ
िजनक मन म0 दसर का Gहत बसता
उनक लय जगत म0 कछ नह दल भ
शरर छोड़ आप मर परमधाम जाइय
C या द आपको आप तो ह पण काम
वग म0 जा सीताहरण 3पताजी स न कGहय
दशमख वय जा कहगा यGद म ह राम
ltग+ दह 9 याग हVर 4प धरा
और Gदn य व ाभषण पहन ltग+ न
- याम शरर 3वशाल चार भजाए
Bम और आन द क आस आख म0
त8त कर रहा आपक जय हो
अनपम 8नग ण और सगण ह आप
अनाGद अज मा अn यCत एक अगोचर
भव-मय हार सत-Gहतकार आप
नम कार करता ह ह ीराम आपको
(लोक क वामी EFम n यापक 8न3व कार
Aफर अखb ड भिCत का वर पाकर
Bभ क परमधाम चला करता जयकार
- 241 -
दाहकम आGद सार A=याए Bभ न
वय अपन हाथ यथा3वltध क
पय म0 भी अधम उस ltग+ को
योltगय को भी दल भ परमग8त द
शवजी कहत ह ndash ह पाव ती सनो
अभाग ह 3वषय स अनराग करत
Aफर दोन भाई चल आग को
वन क सघनता दखत जात
सघन वन भरा लता और व स
उसम0 ह बहत स सह और हाथी
रा त म0 कबध रास को मारा
उसन अपन शाप क बात कह
कहा दवा सा म8न न शाप Gदया था
आपक दश न स जो मट गया
Bभ बोल जो EाFमण स gtोह करता
समझो उसका सम त पb य ह मट गया
मन वचन और कम स कपट छोड़
जो भदव EाFमण क सवा करता
मझ समत EFमा शव आGद दवता
सबको अपन वश म0 वो करता
8नज-धम समझाकर कहा Bभ न
उसक Bी8त दख Bभ को वह भाया
तदन तर उनक चरण म0 सर नवा वह
आकाश म0 चला ग धव - व4प Aफर पाया
Aफर ीरामजी गय शबर क आम
मतगजी क वचन याद Aकय उसन
चरण म0 ltगर पड़ी BममY न हो गयी
और बार-बार लगी चरण म0 पड़न
चरण धो और स दर आसन पर (बठा
मीठ-रसील फल ला Gदय Bभ को
Bभ बार-बार Bशसा करत ह उनक
और BमसGहत खा रह ह फल को
Aफर हाथ जोड़ त8त करन लगी शबर
बोल म म दब3+ नीच अधम ी ह
ीरघनाथ न कहा ndash ह भाम8न सन
म तो बस भिCत ह मानता ह
जा8त पा8त कल धम बड़ाई
धन बल कटD ब गण और चतरता
य होन पर भी भिCतहन मनa य
(बन जल क बादल जसा ह लगता
कहता ह तझस अब अपनी नवधा भिCत
सावधान हो सन कर मन म0 धारण
पहल भिCत ह सतो का सतसग
दसर BमसGहत मर कथाओ का वण
तीसर 8नराभमान हो ग4-चरण क सवा
चौथी कपट छोड़ मर गण का गान
वद म0 Bस+ मर पाचवी भिCत ह
lढ़ 3व- वास और मर म का गान
- 242 -
छठj शील दम बह कमr स वराY य
8नर तर सतपष क आचरण म0 लग रहना
सातवी भिCत जगत को मझमय जान
सत को मझस भी अltधक कर समझना
आठवी भिCत ह सतोषी हो रहना
भल स भी दखता न दोष और का
सरलता 8नa कपटता मरा भरोसा Uदय म0
हष -3वषाद रGहत होना नवी भिCत का
इन नवधा भिCत म0 कोई भी हो
ी-पष हो चाह जड़ हो या चतन
अ9 यत 3Bय वह भCत मझ होता
और त तो ह इन सबस सD प न
सो जो ग8त योltगय को भी दल भ ह
वह सलभ हो गयी ह आज तर लय
मर दश न का परम अनपम फल यह ह
सहज व4प सलभ हो जाता जीव क लय
Aफर पछा सीताजी क 3वषय म0
वह बोल सब जानत पछत ह आप
पपा सरोवर को जाइय सfीव मल0ग
उ ह स सीताजी क हाल जान0ग आप
Aफर योगािYन स अपनी दह 9 यागकर
शबर दल भ हVरपद म0 लन हो गयी
3व3वध कम अधम और मत शोकBद ह
तलसी उ ह0 9 याग लो शरण Bभ क
तब उस वन को भी छोड़ चल Bभ
3वरह क तरह Bभ कर रह 3वषाद
कह रह जरा वन क शोभा तो दखो
इस दख Aकसक मन म0 होगा न 3वषाद
सभी पश-पी अपन जोड़ सGहत ह
मान कर रह ह सब 8न दा मर
Gहर8नया अपन Gहरन स कह रह ह
तD हार नह इ ह0 खोज ह वण -मग क
हाथी हltथ8नय को साथ रख शा दत
ी को कभी अकला नह छोड़ना चाGहय
दखत रहना चाGहय भल-भा8त पढ़ा शा भी
राजा को वश म0 न समझना चाGहय
यवती ी शा और राजा
वश म0 रहत नह Aकसी क
इस स दर वस त को तो दखो
भय उ9 प न कर रहा (बना 3Bया क
3वरह स n याकल बलहन और अकला जान
कामदव न सltगय सग बोल Gदया धावा
पर दखा जब म भाई क साथ ह
तो सना को रोक वय डरा डाला
शोभत हो रह व नाना Bकार स
कोयल कज रह भyर गजार रह
जगत म0 उ ह वीर क B8तa ठा
जो इ ह0 दख भी धीर बना रह
- 243 -
कामदव को ी का बड़ा भार बल
उसस जो बच जाय यो+ा a ठ वह
काम =ोध और लोभ अ9 यत Bबल दa ट
ध कर दत मन म8नय का भी
लोभ को इJ छा और दD भ का बल
काम को बल ह कवल ी का
और =ोध को कठोर वचन का बल ह
a ठ म8न 3वचारकर कहत ह ऐसा
ह उमा ीराम गणातीत चराचर क वामीसव 6
य बात0 कह Gदखा रह कामय क दनता
लAकन िजन पर Bस न होत कपाल भगवान
वह माया-4पी इ gtजाल म0 नह भटकता
Aफर Bभ गय पपा सरोवर तीर पर
सत क Uदय सा 8नम ल जल उसका
रग-(बरग कमल उसम0 Kखल ह
मान Bभ को दख कर रह Bशसा
स दर पय क बोल सहावनी लगती
बलाय लती हो मान जात पltथक को
फल क बोझ स झक रह व
बड़ी सD पि9त पा परोपकार झक जात H य
नान Aकया Bभ न तालाब म0
Aफर लu मणजी सGहत छाया म0 बठ
नारदजी क Uदय म0 3वशष सोच हआ
Bभ को इस तरह जब दखा बठ
ऐसा अवसर Aफर न मलगा सोचकर
रामचVरत का गान करत नारद आ पहच
दb डवत करत दख उठा लया Bभ न
बहत दर तक लगाय रC खा Uदय स
Aफर कशल पछ बठा लया पास म0
लu मणजी न आदर सGहत उनक चरण धोय
3वनती कर और Bभ को Bस न जान
नारदजी न हाथ जोड़कर य वचन कह
ह वभाव स ह उदार ीरघनाथजी
स दर अगम और सगम वर क दनवाल
एक वर मागता ह वह मझ दिजय
य_य3प आप अ तया मी ह सब जाननवाल
Bभ बोल आप वभाव जानत ह मरा
C या म 8छपाव करता ह अपन भCत स
मझ कौन सी ऐसी व त 3Bय ह
िजस ह म8न a ठ तम माग नह सकत
नारदजी बोल य_य3प Bभ क अनक नाम ह
वद कहत व एक-स-एक ह बढ़कर
तो भी ह नाथ राम नाम सबस बढ़कर हो
भिCत4पी पKण मा म0 रह च gtमा बनकर
कपा8नधान न lsquoएवम तrsquo कहा म8न स
म8न न ह3ष त हो चरण म0 शीश नवाया
Aफर पछा जब मोGहत Aकया मझ माया स
Aकस कारण तब मरा 3ववाह न कराया
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Bभ बोल हष क साथ कहता ह
जो अन य भाव स कवल मझ भजत
म सदा उनक वस ह रा करता ह
जस माता-3पता बालक क करत
बJ चा जब तक छोटा रहता ह
माता उस हर खतर स बचाती
सयाना होन पर Bम तो रहता
पर पहल सी वो बात न रहती
6ानी मर Bौढ़ प स ह
पर तमसा सवक छोट शश समान
मर सवक को मरा बल रहता ह
6ानी को रहता 6ान का भान
मर भCत 6ान होन पर भी
भजत रहत ह कवल मझको
6ानी को अपन श का 3वनाश
वय करना पड़ता ह उसको
काम =ोध लोभ और मद आGद
य सब Bबल सना ह मोह क
इनम0 माया क साात म8त ी
दनवाल होती ह दाण दख क
मोह4पी वन को 3वकसत करन को
ी वस त ऋत सी होती
जप तप 8नयम4पी सब जल थान को
fीa म4प होकर सब सोख लती
मढ़क 4पी काम =ोध मद म9 सर को
वषा ऋत हो ह3ष त करती
बर वासनाए कमद क समgt स
िज ह0 शरद ऋत सा सख दती
सम त धम कमल क झड ह
3वषयसख द Gहमऋत सी जला डालती
Aफर ममता4पी जवास क वन को
शशर ऋत सा हरा-भरा करती
पाप4पी उ ल समह क लय यह ी
सख दनवाल घोर अ धकारमय रा( सी
ब3+ बल शील स9 य4पी मछलय क लय
चतर पष इस कहत बसी सी
अवगण क मल पीड़ा दनवाल
यवती ी सब दख क खान
सो तD ह0 3ववाह करन स रोका था
मन अपन जी म0 ऐसा जान
पलAकत हो गय म8न यह सनकर
बोल ऐसी रत Bभ क सवा कहा
जो xम को 9 याग उ ह0 नह भजत
ऐस अ6ानी और अभाग और कहा
Aफर नारदजी न पछ सत क लu ण
Bभ बोल व होत काम =ोध रGहत
लोभ मोह मद म9 सर छत नह उनको
िथर ब3+ 9 यागी मतहार और प3व
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सावधान रह मान दत और को
Bशसा और अभमान स दर ह रहत
स दह स सव दा छट हए होत ह
मर भिCत स अltधक कछ न समझत
जप तप tत दम सयम 8नयम
+ा मा मी दया और मGदता
ग4 गो3व द और EाFमण स Bम
स9 य माग का अनसरण करना सदा
मर ललाओ को गात-सनत र हत
अहत और क Gहत म0 लग रहत
ह म8न सत क िजतन गण ह
शष और शारदा भी कह नह सकत
पकड़ लय नारदजी न Bभ क चरण
बारD बार सर नवा EFमलोक को चल
तलसीदास कहत ह व पष ध य ह
सब आशा छोड़ हVर क रग म0 रग
( अर यका ड समा त )
मासपारायण बाईसवा वाम
तीसरा सोपान समा त
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lsquo किक धाका डrsquo
अ8त स दर बलवान 3व6ान क धाम
a ठ धनध र वद क _वारा विदत
गौ एव EाFमण क समह क Bमी
माया स नर-4प म0 हए अवतVरत
a ठ धम क लय कवच-स व4प
सबक Gहतकार ीसीताजी क खोज म0 लग
पltथक4प रघकल a ठ ीराम और लu मणजी
दोन भाई 8न- चय ह भिCतBद ह हम0
ध य ह व पb या9 मा पष जो
भगवान ीशD भ को s यात रहत
और ीरामनाम4पी अमत का जो
पान 8न9 य 8नरन तर करत रहत
बसत ह जहा वय ीशव-पाव ती
मिCत क ज मभम 6ान क खान
C य न रहा जाय काशी म0 जाकर
उस पाप का नाश करनवाल जान
जला रहा था जो सब सर को
उस हलाहल का पान कर लया िजसन
कौन कपाल होगा उन शकर समान
र म द मन C य न भजता त उ ह0
Aफर ीरघनाथजी वहा स आग चल
ऋa यमक पव त 8नकट आ गया
सfीव जो रहत थ वहा डर गय
हनमानजी को पता लगान को कहा
बोल तम EFमचार का वष धर जाओ
जो बात हो इशार स मझ बतलाना
यGद व बाल क भज हए ह तो
उltचत ह मझ यहा स चल जाना
EाFमण का वष धर हनमानजी गय
म तक नवाकर इस Bकार पछन लग
ह वीर सावल और गोर शरर वाल
कौन ह आप C य य वन म0 Aफर रह
अथवा आप ह जगत क मल कारण
सD पण लोक क वामी वय भगवान
जो लोग को भवसागर स तारन हत
लला कर रह प| वी पर मनa य समान
ीराम न कहा हम दशरथजी क प ह
3पता क आ6ा मान आय ह वन म0
राम-लu मण नाम ह हम दोन भाईय क
मर प9 नी को हर लया ह रास न
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हम उस ह खोजत-Aफरत ह
बस यह पVरचय ह हम दोन का
हमन तो अपना चVर कह सनाया
ह EाFमण अब कGहय हम0 अपनी कथा
Bभ को पहचान चरण पकड़ हनमानजी
प| वी पर ltगर दb डवत करन लग
पलAकत शरर वाणी मौन हो रह ह
Aफर ह3ष त हो Bभ स कहन लग
ह वामी जो मन पछा याय था
वषr बाद दख म पहचान न पाया
पर आप मनa य क तरह पछ रह
C या Bभ न भी मझ भला Gदया
ह नाथ मझम0 बहत स अवगण ह
पर भल न जाय वामी सवक को
ह नाथ जीव आपक माया स मोGहत
आपक कपा का ह भरोसा उसको
ह रघवीर आपक शपथ कर कहता ह
भजन-साधन म कछ भी नह जानता
सवक वामी क प माता क
ह नाथ भरोस हो 8नि-चत हो रहता
ऐसा कहकर अकलाकर हनमानजी
ltगर पड़ Bभ क चरण म0
अपना असल 4प Bकट कर Gदया
Bम छा गया उनक Uदय म0
उठाकर Uदय स लगा लया Bभ न
बोल मन म0 Y ला8न न मानना
लu मण स भी अltधक 3Bय हो तम
सवक मझ अ9 यत 3Bय ह जानना
C यAक अन य ग8त होता ह सवक
खद को सवक सदा ह मानता
और जग म0 िजतन चर-अचर ह
सबको अपन Bभ का 4प जानता
वामी को Bस न दख कर हनमानजी बोल
ह नाथ वानरराज सfीव रहता ह पव त पर
उस दन जानकर 8नभ य कर दिजय
ध य किजय उस अपना म बनाकर
Aफर राम-लu मण को पीठ पर चढ़ा
सfीव क पास ल गय व उ ह0
चरण म0 सर नवा सादर मल सfीव
अिYन क साी म0 म बनाया उ ह0
दोन न Uदय स Bी8त क
कछ भी अ तर नह रC खा
Aफर लu मणजी न ीरामच gtजी का
सारा इ8तहास सfीव स कहा
सfीव न न म0 जल भरकर कहा
ह नाथ जानकजी मल जाय0गी आपको
श क वश 3वलाप करती हई
आकाश माग स जात दखा था उनको