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EDITOR EDITOR EDITOR EDITOR - - - - PUBLISHER : SNEH THAKORE PUBLISHER : SNEH THAKORE PUBLISHER : SNEH THAKORE PUBLISHER : SNEH THAKORE VASUDHA VASUDHA VASUDHA VASUDHA A CANADIAN PUBLICATI A CANADIAN PUBLICATI A CANADIAN PUBLICATI A CANADIAN PUBLICATI ON ON ON ON Year 8, Issue 31 Year 8, Issue 31 Year 8, Issue 31 Year 8, Issue 31 July July July July-Sept., 2011 Sept., 2011 Sept., 2011 Sept., 2011 kEneDa se p/kaixt saihiTyk pi5ka kEneDa se p/kaixt saihiTyk pi5ka kEneDa se p/kaixt saihiTyk pi5ka kEneDa se p/kaixt saihiTyk pi5ka vsu2a vsu2a vsu2a vsu2a s.padn v p/kaxn s.padn v p/kaxn s.padn v p/kaxn s.padn v p/kaxn Sneh #akur Sneh #akur Sneh #akur Sneh #akur v8R Ð - A.k ËÉ, jula{-istMbr ÊÈÉÉ

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    Year 8, Issue 31Year 8, Issue 31Year 8, Issue 31Year 8, Issue 31

    JulyJulyJulyJuly----Sept., 2011Sept., 2011Sept., 2011Sept., 2011

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  • १ अ

    आमं�ण

    महामा वेदभ�:ु

    म� �वजय क� म�ुध लहर� को �नमं�ण दे रहा हँू।

    और सबको साथ चलन ेके लए भी कह रहा हँू।।

    आज जो मल जाए ँमझुको '*ाण' के सामान सारे,

    म� मटा पाऊँ जगत ्स ेक1ट के 2यवधान सारे।

    आज सपन� म3 नह4,ं म� सच बना दूँ शां�तगाथा,

    हष7 औ' उ9लास ले म� :फर चलूँ आभा व मरेे साथ आए, म� सभी कुछ सह रहा हँू,

    म� �वजय क� म�ुध लहर� को �नमं�ण दे रहा हँू।।

    र?त कण स ेलख रहे ह� आज जो जग क� कहानी,

    Aवय ंमटकर भी मटा दूँ, ?य� न म� उनक� �नशानी।

    ?य� न म� सागर पलट कर �व>व के सब पाप धो दूँ,

    जो बच ेतब शेष भ ूपर, म� उसी म3 द4िCत खो दूँ।

    द4िCत स ेसब जगमगाए,ँ कामनाए ँले रहा हँू,

    म� �वजय क� म�ुध लहर� को �नमं�ण दे रहा हँू।।

    �व>व के 2याकुल, प�तत भय-DAत नर :फर स ेजग3गे,

    जो दबाए Eचर यगु� स,े व ेउभरते अब उठ3 गे।

    रोक पाए कौन उनक� चाल को जो Iान चाह3,

    कौन ऐसा है जगत ्म3, जो सबल क� राह आए।

    पाप क�, अभशाप क�, म� Lृखँलाए ँखो रहा हँू।

    म� �वजय क� म�ुध लहर� को �नमं�ण दे रहा हँू।।

    यह �वजय, जो Aवर भरे आकुल Nदय म3 मAुकुराता,

    द4नता क� Oूर गलय� म3 :फरे ना

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    सॊऩादकीम २ वन्दे भातयभ की यचना कफ, याजेश्वय प्रसाद नायामण ससॊह ६ कैसे औय क्मों? काव्म की सजजना कृष्णभुयायी 'ववकर' ९ ननज बाषा भें ही देश की ससदे्धश्वय १० अस्मभता की ऩहचानशब्द डॉ. सन्तोष खन्ना १२ सड़क की रम डॉ. सुषभ फेदी १४ ाज़र देवकी नन्दन 'शाॊत' २२ हाॉ भैं औयत ह ॉ डॉ. भधुरयभा ससॊह २३ प्रीत न जाने कोम ववजम अमथाना २४ ऩयख आमथा नवर २६ बायतीम मवाधीनता सॊग्राभ उऩेन्र नाथ 'अनन्म' २७ औय भहवषज अयववन्द याष्र डॉ. तुकायाभ वभाज ३३ जनतॊत्र यभाशॊकय ससॊह ३४ चाॉदनी चौक की जुफानी अरका ससन्हा ३६ भानव जीवन सशवयाभ नतवायी 'सशव' ४० कल्ऩना का यहमम रोक - डॉ. हेभा उननमार ४१ रुरनाथ मह तुॊग हहभारम भेया है डॉ. श्माभ ससॊह शसश ४२ कववमों का बोराऩन अननर जोशी ४३ वाणी-वन्दना भहेश प्रसाद ऩाण्डमे 'भहेश' ४४ आभॊत्रण भहात्भा वेदसबऺु: १ अ ाज़र डॉ. दीऩॊकय गुप्त ४४ अ

    16 Revlis Crescent, Toronto, Ontario M1V-1E9, Canada. TEL. 416-291-9534 Annual subscription..........$25.00

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    सॊऩादकीम ऩयभ वप्रम कभरा ससॊघवी जी के वैमस्क्तक व साहहस्त्मक सास्न्नध्म से शुरू हुई बायत मात्रा आनॊददामी यही. जहाॉ एक ओय कभरा जी का ठाकुय साहफ व भुझसे अनेक सुमवाद ुव्मॊजनों को खाने का ऩुन:-ऩुन: आग्रह स्जह्वा को यसप्राववत कयता यहा, वहीॊ साहहस्त्मक ववचाय-ववभशज भन भस्मतष्क को. ससॊघवी जी की मभनृत-उऩस्मथनत हभ तीनों के फीच दज़ज होती यही. ठाकुय साहफ व भैं कभरा जी की आत्भीमता के सदैव आबायी हैं. श्री तजेेंर शभाज, श्री अस्जत याम एवॊ डॉ. सुषभा आमज के सौजन्म से डी.ए.वी. कॉरेज, मभुना नगय भें एक अत्मन्त सपर अॊतयाजष्रीम सम्भेरन सम्ऩन्न हुआ. तीनों ही सॊमोजकों ने अऩने-अऩने ऺेत्र भें उत्कृष्ट कामज कय इस सॊगोष्ठी को ऩयभोत्कृष्ट फनामा. भुझ ेबी महाॉ आभॊत्रत्रत ककमा गमा एवॊ एक सत्र के अध्मऺभॊडर भें यखा गमा. आबायी ह ॉ. श्रीभती जम वभाज का सास्न्नध्म सदैव की बाॉनत आत्भीमताऩ णज सुखद यहा. डॉ. वभाज की मनेहहर प्रशॊसा सदैव उत्साहवधजक होती है. आबाय. जहाॉ इस सम्भेरन भें कुछ ऩुयाने साथी सभरे वहीॊ कुछ नए बी फने. दोनों ही हाथों भें आनॊददामी रड्ड . सशऺाप्रद, आत्भीमताऩ णज, भधुय वातावयण स्जसे छोड़त ेसभम प्रनतबागगमों के नमन सजर होना मवाबाववक था. श्री ब्रजेन्र त्रत्रऩाठी की सौजन्मता से साहहत्म अकादभी हदल्री के त्रत्रहदवसीम कामजक्रभ भें उऩस्मथत होने का सौबाग्म प्राप्त हुआ. कैनेडा से गमे श्री एवॊ श्रीभती गौड़ के ज्मेष्ठ सुऩुत्र कुणार का कृनतका से वववाह-गठफन्धन व वववाह सॊफॊधी सबी कामजक्रभ बव्म रूऩ से सम्ऩन्न हो अतुरनीम बायतीम सॊमकृनत की झरक हदखात ेहुए भहोत्सव के रूऩ भें ऩरयणणत हुए. श्री गौड़ ने इस अवसय ऩय ठाकुय साहफ को फड़ ेबाई के रूऩ भें अऩने ऩरयवाय भें सस्म्भसरत कय हभें गौयवास्न्वत ककमा; हभ गौड़ ऩरयवाय की सदाशमता के आबायी हैं. महाॉ से गमे सुधा, त्रफन्द ुएवॊ उनके ऩरयवायों ने वय-ऩऺ की मनेहहरता व आत्भीमता को उद्भाससत ककमा. श्री अननर जोशी एवॊ आई.सी.सी.आय. के श्री अजम गुप्ता के सौजन्म से उऩभहाननदेशक श्री अनवय हरीभ व श्रीभती भभता कासरमा की अध्मऺता भें सम्ऩन्न हुए श्री हयजेंर चौधयी की ऩुमतक 'जाने क्मा होगा' के ववभोचन सभायोह भें सादय आभॊत्रत्रत हो ठाकुय साहफ व भैं गौयवास्न्वत हुए. डॉ. हेभा उननमार की 'केदायखण्ड' (धभज, सॊमकृनत, वामतुसशल्ऩ एवॊ ऩमजटन) ऩुमतक का ववभोचन डॉ. कणज ससॊह ने ककमा तथा अध्मऺ श्री कुरानन्द बायतीम तथा भुख्म व ववसशष्ट अनतगथ थे ऩद्मश्री डॉ.श्माभ ससॊह शसश एवॊ प्रो. ऩुष्ऩेश ऩॊत. सभायोह अत्मॊत सपर यहा. डॉ. शसश के सौजन्म से भुझ ेइस अवसय ऩय सहबागगता प्राप्त हुई, आबायी ह ॉ. भाननीम डॉ. कणज ससॊह ने महाॉ भेयी ऩुमतक 'उऩननषद-दशजन' व 'वसुधा' ऩत्रत्रका की सयाहना की, आबाय. 'अभय उजारा' के सॊऩादक डॉ. अशोक सभश्र एवॊ 'नुक्कड़' के डॉ. अववनाश वाचमऩनत का अनामास घय ऩय आना, साहहस्त्मक एवॊ वैमस्क्तक आनॊदानुब नत से बय गमा. 'बायतीम धयोहय' के प्रधान सॊऩादक श्री ववजम शॊकय नतवायी से फहुत ववचाय-ववननभम हुआ. 'बोजन से बेषज' के अन्तगजत वे एक फहुत भहत्वऩ णज कामज कय यहे हैं. बायतीम बोजन प्रणारी द्वाया जन-जन के अनेकानेक मवाम्म सम्फन्धी भुद्दों ऩय ववचाय-ववभशज हुआ. 'आधाय-सशरा के सॊऩादक श्री हदवाकय बट्ट घय ऩय आए; साहहस्त्मक व करा सम्फन्धी ववषमों ऩय ववचायों का आदान-प्रदान हुआ. सुश्री अचजना डनैनमर भेये साहहत्म ऩय ऩीएच.डी शोध कय यही हैं तथा डॉ. कृष्ण कुभाय अग्रवार डी.सरट. कयने की मोजना फना यहे हैं; अत: उनसे इस हदशा भें वाताजराऩ हुआ.

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    ऩद्मश्री ववब वषत डॉ. श्माभ ससॊह शसश की अध्मऺता भें इस्न्दया गाॊधी भुक्त ववश्वववद्मारम के सभायोह भें ठाकुय साहफ व भझु ेरयसचज पाउॊ डशेन इॊटयनेशनर की ओय से ऩुष्ऩ-गुच्छ व शॉर से सम्भाननत ककमा गमा, साथ ही भुझ े रयसचज पाउॊ डशेन की ओय से 'फ़ेरोसशऩ' प्रदान की गई, तथा 'साहहत्म बायती हदल्री' की ओय से भुझ े'साहहत्म बायती सम्भान' प्रदान ककमा गमा. आबायी ह ॉ. डॉ. अननर ससॊह व्माख्माता तथा सह-सभन्मवक, डॉ. भभता ससॊह व्माख्माता तथा यस्जमराय, डॉ. ऋचा ससॊह सॊऩादक 'सभ्मता सॊमकृनत' के सॊमोजन भें तथा डॉ. ऩ णज ऩार के सॊचारन भें सभायोह फड़ ेही सयाहनीम ढॊग से सम्ऩन्न हुआ. भेये साथ भॊचासीन थे डॉ. श्माभ ससॊह शसश, श्री सत्म ऩार ठाकुय, डॉ. एस.के. सभश्र, एवॊ डॉ. सॊतोष खन्ना. सबी सशऺक वगज, छात्र, छात्राओॊ ने फढ़-चढ़कय इस आमोजन भें बाग रेकय इसे अत्मन्त सपर एवॊ गचयमभयणीम फनामा. कुरुऺेत्र ववश्वववद्मारम के डॉ. भहाससॊह ने हदल्री सभरने आकय कुरुऺेत्र ववश्वववद्मारम भें प्राप्त हुईं ऩुयानी भधुय मभनृतमों भें औय नई मभनृतमों को जोड़ कय उन्हें नवजीवन प्रदान ककमा. उन्हीॊ के साथ आई थीॊ----- सुश्री ऩयववन्दय कौय. साहहत्म औय करा ऩय हुई वाताजराऩ भें गुजये सभम का आबास केवर औय केवर घड़ी ने ही हदमा. हदल्री ववश्वववद्मारम से सॊरग्न नेहरू प्रेस डी.ए.वी. कॉरेज के तत्वावधान भें डॉ. हयीश जोशी, डॉ. भीना शभाज, डॉ. आशा यानी के सॊमोजकत्व भें एक यसऩ णज काव्म-सॊध्मा का आमोजन सपरता ऩ वजक सम्ऩन्न हुआ. इस अवसय ऩय भुझ े ववसशष्ट अनतगथ का गौयव प्रदान कयने हेतु धन्मवाद. प्राचामज डॉ. याभजी नायामण, डॉ. जगभोहन एवॊ सबी सशऺक-वगज एवॊ छात्र-छात्राओॊ ने ऐसा सभाॉ फाॉधा जो अववमभयणीम फन गमा. 'नमा स यज' के सॊऩादक डॉ. दीऩॊकय गुप्त जफ बी ननवास-मथान ऩय आए साहहस्त्मक चचाजओॊ भें साथजक सभम गुजया. 'जहॉ जहॉ चयण ऩड़ ेयघुवय के' के रेखक डॉ. याभ अवताय जी से ववमताय से याभ-कथा ऩय चचाज हुई. च ॉकक भैं बी याभ-कथा ऩय आधारयत शोध-प्रफॊध सरख यही ह ॉ, अत: ववचाय-ववननभम इस दृस्ष्ट से बी आनॊददामी यहा. प्रवासी सॊसाय के सॊऩादक श्री याकेश ऩाॊड ेस्जस आत्भीमता से सभरे वह अकथनीम है. ऩस्ण्डता याकेश यानी व उनके सहमोगगमों द्वाया दमानन्द सॊमथान का वावषजकोत्सव एवॊ भहात्भा वेदसबऺु: जमॊती सभायोह डॉ. श्माभससॊह शसश जी की अध्मऺता तथा श्री फनायसी ससॊह जी व डॉ. गोवव ॊद फल्रब जोशी जी के सॊचारन भें कुशरता एवॊ सपरताऩ वजक भनामा गमा. भुझ ेबी वहाॉ फोरने हेतु आभॊत्रत्रत ककमा गमा. आबायी ह ॉ. डॉ. कणज ससॊह के जन्भोत्सव ऩय शयीक होने का अवसय सभरा. सुखद अनुबव हुआ. जीवन ऩय हुई चचाज कभजमथरी औय वानप्रमथ तक जा ऩहुॉची. कणज ससॊह जी का ववववध ऺते्रों औय अनेक बाषाओॊ का ऻान मतुत्मनीम है. श्रीभती नगेन्र ऋवष तथा डॉ. भधु बल्रा के सौजन्म से इॊडडमा इॊटयनेशनर सेंटय औडोटोरयमभ भें 'जैऩनीज़ टी सेयेभोनी' देखने का अवसय प्राप्त हुआ. इस प्रथा का जन्भ गॊबीय ववचाय-ववननभम हेतु हुआ था ऩय फाद भें मह एक आदत के रूऩ भें ऩरयवनतजत हो गमा. सुश्री याकेश कुभायी शभाज जी की सदाशमता ब रना आसान नहीॊ है. हहन्दी की दशा एवॊ हदशा ऩय चचाज हुई. उनके भागजदशजन की आबायी ह ॉ. डॉ. नयेंर कोहरी जी की आत्भीमता, डॉ. भधुरयभा कोहरी जी की भधुयता भें घुर सदैव ही ठाकुय साहफ व भुझ ेआनॊहदत कयती यही है; ईश्वय मह अऺत यखे.

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    रखनऊ भें डॉ. शॊब नाथ जी व चॊदा नाथ जी का फाग-फगीचा ग्रॊथों भें वणणजत नन्दन वन की अनुब नतमों से बय देता है. जहाॉ व्मस्क्तगत रूऩ से इतनी आत्भीमता से उन्होंने हभें अऩने घय भें सदमम के रूऩ भें यखा वहीॊ साहहत्म-ऺुधा को बी साहहत्माभतृ से मवमॊ ऩोवषत कयने के साथ ही साथ अन्म साहहत्मकायों की साहहत्म-गॊगा भें बी डुफककमाॉ रगाने के अवसय हदमे, उसके सरए धन्मवाद शब्द ऩमाजप्त नहीॊ है. वहाॉ साहहत्म के साथ-साथ स्जस तयह अध्मात्भ ऩय चचाज हुई उसका सॊफर रे, ईश्वय से प्राथजना कयती ह ॉ कक वह दोनों ऩरयवायों ऩय इसी तयह कृऩा-दृस्ष्ट फनामे यखे. रखनऊ भें ही डॉ. दाऊजी गुप्त ने एक काव्म सॊगोष्ठी का आमोजन ककमा स्जसभें कववमों के साथ ही साथ उनके ऩ ये ऩरयवाय ने बी वहाॉ उऩस्मथत हो सॊगोष्ठी की शोबा फढ़ाई. सम्ऩ णज ऩरयवाय की सदाशमता के सरए हभ दोनों आबायी हैं. व्मस्क्तगत रूऩ से उन्होंने ठाकुय साहफ व भुझ ेजो पे्रभ-ऩरयऩ णज सम्भान हदमा औय साथ ही साथ भुझ े'चतेना साहहत्म ऩरयषद्' की ओय से प्रशस्मत-ऩत्र देकय सम्भाननत ककमा, उसके प्रनत बी आबाय. इस दौयान सभरे रखनऊ के सबी साहहत्मकायों की यचनाएॉ 'वसुधा' के इस अॊक व आगाभी अॊकों को सभदृ्ध कयती यहेंगी. इस मात्रा के दौयान जन-जन भें उत्साह की रहय औय याष्र के प्रनत अतुरनीम गौयव के हभ साऺी बी यहे जफ बायत ने कक्रकेट का ववश्व कऩ जीता. श्री उऩेन्र नाथ जी ने अनेक अवसयों ऩय अऩनी साहहत्म-रगन से असबब त ककमा है. उन्होंने स्जतना आदय, पे्रभ, ठाकुय साहफ औय भुझ ेहदमा है उसके सरए केवर धन्मवाद कहना मथोगचत न होगा, ऩय साथ ही द सये शब्द बी कभ ही ऩड़ेंगे. अत: ठाकुय साहफ व भैं उनकी सुख, सभवृद्ध के सरमे उन्हें आशीवाजद वचन देना चाहेंगे. उऩेन्र जी के सौजन्म से ही याजनीनत औय साहहत्म को कभजऺ ेत्र फनाने वारे साधु प्रवसृ्त्त के डॉ. प्रसन्न ऩातसानी जी से ऩरयचम हुआ. इस अनोखे सस्म्भश्रण की प्रकृनत वारे सयर मवबाव स्जन्हें भैं फाफा फुराती ह ॉ, से साहहत्म ऩय चचाज हुई. उनकी कववताओॊ भें प्रकृनत वणजन औय उनके रूऩक फड़ ेही भनोहय हैं. 'वसुधा' के साहहत्मकाय डॉ. अशोक चक्रधय जी को 'एप.आई.ई पाउॊ डशेन का याष्रीम ऩुयमकाय', डॉ. उषादेवी कोल्हटकय को त्रब्रहान भहायाष्र भॊडर द्वाया 'आटज, कल्चय एॊड सरटयेचय एवाडज पॉय हद ईमय २०११', डॉ. कुॉ वय फेचैन को 'ऩॊ॰ हयप्रसाद शामत्री साहहत्म भनीषी सम्भान' तथा नीयज व्मास जी को साहहत्म ऩुयमकाय से अरॊकृत ककमा गमा है. ठाकुय साहफ, वसुधा व भेयी ओय से फधाई. आऩको मह जान कय प्रसन्नता होगी कक रयसचज पाउॊ डशेन इॊटयनेशनर द्वाया हहन्दी भें ऩहरा ऐनतहाससक ग्रॊथ 'साभास्जक ववऻान हहन्दी ववश्व कोश' ऩाॉच बागों भें प्रकासशत हुआ है स्जसभें डढ़े हजाय ऩषृ्ठ तथा तीन सौ ऩचास प्रववस्ष्टमाॉ हैं. बायत के ऩ वज याष्रऩनत डॉ. शॊकय दमार शभाज ववश्वकोश-ससभनत के सॊयऺक यहे हैं. ववश्वकोश के प्रधान सॊऩादक (भानद) वरयष्ठ साहहत्मकाय ऩद्मश्री डॉ. श्माभ ससॊह शसश हैं जो आजकर 'ववश्व हहन्दी साहहत्म का इनतहास' ग्रॊथ के भानद प्रधान सॊऩादक हैं औय भैं सहमोगी सॊऩादक ह ॉ. हहन्दी भें अऩने ढॊग का मह ऩहरा कामज अफ तक प्रकासशत हहन्दी साहहत्म के सबी इनतहासों से हट कय होगा. इस ग्रॊथ भें हहन्दी साहहत्म के इनतहासों का वववयण, देश-ववदेश का हहन्दी साहहत्म (प्रवासी, योभा, मामावय साहहत्म), हहन्दी-इतय बाषा-बाषी साहहत्म, सभीऺा साहहत्म, अनुवाद साहहत्म, आहदवासी दसरत साहहत्म, नायी-ववभशज साहहत्म, फार साहहत्म, इॊटयनेट हहन्दी साहहत्म तथा हहन्दी सेवी सॊसाय व देश-ववदेश की प्रनतस्ष्ठत हहन्दी ऩत्रत्रकाओॊ का ऩरयचम आहद सभाहहत होगा. आऩसे ववनम्र ननवेदन है कक आऩ मवसरणखत ककन्हीॊ ऩाॉच चमननत ऩुमतकों का सॊक्षऺप्त वववयण, व्मस्क्तगत ऩरयचम तथा अऩने ऩासऩोटज-साइज़ गचत्र सहहत मह साभग्री बेज कय अनुग्रहहत कयें. महद आऩके कोई ऩरयगचत इस शे्रणी भें आत ेहों तो उन्हें बी मह स चना देने की कृऩा कयें. 'ववश्व सॊवाद' सॊमथा के अन्तगजत बी साहहत्म औय करा के ऺेत्र भें

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    सॊमकृनत के उन्नमन हेतु कामज हो यहा है स्जसभें डॉ. शसश व भेये साथ ही जभजनी से सौम्म प्रकृनत के ववद्वान डॉ. रुगानी जुड़ ेहुए हैं. इस फीच आऩ सफकी शुब-काभनाओॊ से भेयी दो ऩुमतकों, 'अनोखा साथी' कहानी-सॊग्रह तथा 'काव्माञ्जसर' काव्म-सॊग्रह का बी प्रकाशन हुआ. अऩनी जन्भमथरी, ऩावन-ऩुनीत गचत्रक ट जाने का बी सौबाग्म प्राप्त हुआ. वहाॉ कनाजटक की अम्भाॉ, स्जन्होंने भुझ ेयाभ-कथा ग्रॊथों ऩय आधारयत शोध-प्रफन्ध सरखने का कामज-बाय सौंऩा हुआ है, से इस ववषम सम्फॊगधत काफ़ी चचाज हुई. उनका भागजदशजन एवॊ आशीवाजद भेये सरए अभ ल्म है. गचत्रक ट के नन्हें याजा, भेये नन्हें बइमा व ऩरयवाय ने बी सदा की तयह हभ दोनों को ऩारयवारयक आत्भीमता से तो ओत-प्रोत ककमा ही साथ ही याभ-कथा सम्फॊगधत अनेक भनीवषमों से बी सभरवामा. इस फाय गुरु जी, जगत ् गुरु मवाभी याभबराचामजजी के वहाॉ न होने से उनकी अनुऩस्मथनत खरी. हाॉ, कभ से कभ अदयणीम फुआजी, सभधीजी, कुरऩनत जी, अवनीशजी से आनॊददामी सभरन हुआ. नन्हें बइमा के सौजन्म से एक फहुत भहती आमोजन भें ववसशष्ट अनतगथ होने का सौबाग्म प्राप्त हुआ. जगत ् गुरु याभबराचामज ववकराॊग ववश्वववद्मारम के छात्र-छात्राओॊ ने सशऺक-वगज की सॊयऺता भें, वहाॉ के कुछ ऺेत्रों भें घय-घय जाकय कुयीनतमों के प्रनत तथा अच्छे मवाम्म के सरए भेडडकर व अन्म मवाम्म-सम्फॊगधत सॊमथाओॊ के प्रनत जन-जाग्रनत का भहत्वऩ णज असबमान चरामा स्जसभें उन्हें काफ़ी सपरता बी सभरी. वहाॉ, कभ से कभ भुझ,े एक औय सुखद आश्चमाजनुब नत हुई, भुख्म अनतगथ जो इस ऺते्र के सुऩरयॊटेंडेंट ऩुसरस हैं, उन्होंने हहन्दी साहहत्म भें डॉक्टयेट प्राप्त की है. कैनेडा के सरए वाऩसी मात्रा से कुछ घण्टे ऩहरे प्रवासी दनुनमा की कणजधाय श्रीभती सयोज शभाज एवॊ भाननीम अननर जोशी जी, जीवन की व्ममत आऩाधाऩी औय सभम की भायाभायी के फावज द बी अऩने अभ ल्म सभम से सभम ननकार कय ठाकुय साहफ व मनेह को अऩनी मनेही गॊगा भें आकण्ठ डुफो प्राववत कयने के सरए ननवास ऩय आमे. उन अकथनीम ऺणों की मभनृत सदा हभाये साथ यहेगी, कबी ध सभर नहीॊ होगी. टोयाण्टो ने एक कवव-यत्न खो हदमा. कई बाषा के ऻाता, व्मवसाम से गणणतऻ, रृदम से कवव डॉ. ब्रजयाज ककशोय कश्मऩ जी अफ हभाये फीच नहीॊ यहे. उनकी कभी सदैव खरेगी. उनकी ऩत्नी श्रीभती याज कश्मऩ, जो मवमॊ बी कवनमत्री हैं व उनके ऩरयवाय को, ईश्वय से ठाकुय साहफ व भेयी प्राथजना है कक वह उन्हें इस द:ुख को सहन कयने की शस्क्त दे. अणखर ववश्व हहन्दी ससभनत म .एस.ए. एवॊ म .के. ऺेत्रीम हहन्दी सम्भेरन तथा कथा म .के. के रॊदन सम्भेरन आभन्त्रण के प्रनत आबाय के साथ-साथ, हहन्दी के प्रचाय, प्रसाय, ववकास, उन्नमन के सरए सभवऩजत इनसे जुड़ ेसबी हहन्दी-पे्रसभमों को नभन. मवाधीनता सॊग्राभ के सेनानी, स्जनके यक्त की एक-एक फ ॉद के हभ आबायी हैं, स्जनके कायण ही आज हभ मवतॊत्र बायत के बायतीम होने का गौयव प्राप्त कय सके हैं, को श्रद्धाॊजसर अवऩजत कयत ेहुए,

    सादय,

    समनेह,

    मनेह

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    वॊदे भातयभ की यचना कफ, कैसे औय क्मों?

    याजेश्वय प्रसाद नायामण ससॊह फॊगार भें फॊगरा के रेखक, कवव औय उऩन्मासकाय तो फहुत से हुए हैं, ऩय फॊककभ फाफ की अऩनी एक शैरी थी औय उन्होंने 'वॊदे भातयभ'् गीत सरखकय अऩने को अभय कय हदमा। भुझ ेमाद आत ेहैं वे हदन जफ एक तयप मह गीत रोगों भें मवतॊत्रता-सॊग्राभ के सरए जोश ऩैदा कयता था वहीॊ द सयी ओय देश की ऩयतॊत्रता ऩय उन्हें दखुी कयता था। सन १९३८ भें हयीऩुय (वायदोरी ताल्रुका) भें काॊगे्रस का जो अगधवेशन हुआ था, वैसा कोई औय नहीॊ हुआ। साया प्रफॊध सयदाय ऩटेर का था। राखों की बीड़ थी ऩय शाॊनत इतनी कक महद एक करभ हाथ से गगय जाती तो उसकी आवाज कानों भें आ ऩड़ती, गयज मह कक ऐसा आदेश-ऩारन ककसी काॊगे्रस भें देखने को नहीॊ सभरा। भैं त्रफहाय के डसेरगेटों के फीच फैठा हुआ था, ऩय सबी डसेरगेट चुऩ शाॊत बाव से गाॉधीजी औय उनके साथ सुबाष फाफ के आने की प्रतीऺा कय यहे थे। सहसा गाॉधीजी राठी सरमे हुए औय सुबाष फाफ गाॉधी टोऩी ऩहने हुए आकय भॊच ऩय खड़ ेहो गमे। रोगों ने तासरमाॉ ऩीटीॊ औय ववद्माऩीठ की कुछ रड़ककमों ने "वॊदे भातयभ"् गाना आयॊब ककमा। देश-पे्रभ की बावना से ओत-प्रोत राखों की बीड़ यो ऩड़ी - ऐसा आकषजण था उस गीत भें। नौहाटी का बक्क्तभम वातावयण : फॊककभ फाफ का जन्भ करकत्त ेसे कुछ भीर की द यी ऩय स्मथत नौहाटी नाभक नगय भें सन १८३६ भें हुआ था। वे एक सॊऩन्न जभीॊदाय ऩरयवाय भें जन्भे थे। उनका ऩुश्तैनी भकान ककसी याजभहर से कभ न था। उनके वऩता श्री मादव चॊर चटजी एक फड़ ेजाने-भाने व्मस्क्त थे, साहहस्त्मक एवॊ याधा-कृष्ण के ऩयभ बक्त बी। उन्होंने अऩने ऩुयाने घय से प्राम: डढ़े ककरोभीटय द य जाकय देवर ऩाड़ा भहल्रे भें एक ववशार दो भॊस्जरे बवन का ननभाजण ककमा, स्जसके भध्म भें श्री याधा-कृष्ण का भॊहदय फनवामा। जहाॉ ऩ जा-अचजना तो एक ऩॊडडत कयता था ऩय याधाजी की सुॊदय अष्टधातु की फनी हुई प्रनतभा की सेवा के सरए एक अरग ऩरयचारयका यखी गमी थी, जो याधाजी की सेवा अथाजत श्रृॊगाय, ऩ जा आहद कयती। उन्हें प्रनतहदन नमी ऩीरे यॊग की साड़ी ऩहनामी जाती, तबी भॊहदय का ऩट खुरता औय सकैड़ों दशजनाथी, जो खड़ ेहोकय ऩट खुरने की प्रतीऺा कयत ेयहत ेथे, साष्टाॊग प्रणाभ कयत ेऔय ऩुजायी से प्रसाद रेत।े भकान के ववशार हात ेभें यथ-शोबा मात्रा बी सावन के भहीने भें ननकरा कयती थी (वैसे ही - जैसे श्री जगन्नाथ ऩुयी भें) यथ ऩय कृष्ण-फरयाभ के ववग्रह होत।े इस अवसय ऩय हात ेभें एक छोटा-भोटा भेरा बी रगता, स्जसभें हय चीज की छोटी-छोटी दकुानें होतीॊ तथा सॊगीत का आमोजन बी होता। फॊककभ फाफ का एक कभया भॊहदय के ऩास ही था, स्जसभें फैठकय उन्होंने अऩने अनेक उऩन्मासों के अगधकाॊश हहमसे सरखे थे। इनके मे उऩन्मास फॊगरा साहहत्म की ननगध है : १. दगेुश नॊहदनी २. कऩार-कुॊ डरा ३.भणृासरनी ४.ववष-वृऺ ५. इॊहदया ६. कृष्णकाॊतये वीर ७. चॊरशेखय ८. आनॊद भठ ९. देवी चौधयानी तथा १०. सीतायाभ इत्माहद। इन उऩन्मासों भें फॊककभ फाफ का सफसे ऩहरा उऩन्मास 'दगेुश नॊहदनी' है, स्जसभें एक वीय ऺत्राणी की कथा है। मे साये उऩन्मास उन्होंने अऩने सरखने के कभये औय अजुजना झीर के तट ऩय फैठकय सरखे थे। अजुजना झीर कयीफ छह ककरोभीटय भें पैरी हुई है औय चायों ओय तयह-तयह के घने वृऺ तथा धान के खेत इसके सौंदमज ऩय चाय चाॊद रगात े हैं। भैं इसे देखकय चककत यह गमा। फॊककभ फाफ के 'वॊदे भातयभ'् भें फॊगार का जो रूऩ गचत्रत्रत है, वह ह -फ-ह इस झीर भें भानो अॊककत हो। इसे देखत ेही मभयण हो जाता है -

    सुजराभ ्सुपराभ ्भरमज शीतराभ शमम श्माभराभ ्भातयभ।् वॊदे भातयभ ्

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    फॊककभ फाफ के उऩन्मासों भें 'आनॊद भठ' सफसे ववख्मात औय सवोऩरय है। 'आनॊद भठ' का नाभ औय ववषम दोनों ही त्रत्रकोण ऩय आधारयत है। इस कथा का भ र फॊगार का भहा दसुबजऺ है, जो सय जॉन शोय की रयऩोटज के भुतात्रफक सन १७६९-१७७० भें हुआ था। वह एक ऐसा वक्त था, जफ सोने से ज्मादा भ ल्मवान अन्न था। सोना देने ऩय बी अन्न प्राप्त होनेवारा न था। भाॉ की गोद भें फच्च ेद ध के सरए तड़ऩ-तड़ऩकय भय जात ेथे औय उनके साभने ही राश को चीर, ससमाय, कौआ नोच-नोचकय खात ेथे। एक तयप प्रकृनत का ताॊडव-नतृ्म, द सयी तयप नवाफों का शासन, जहाॊ प्रशासक थे भुसशजदाफाद के नवाफ भीयजापय। भगय रगान की वस री शाह आरभ से दीवानी प्राप्त कय कॊ ऩनी ने अऩने हाथों भें री थी। दोनों शासकों के फीच रयआमा की स्मथनत कापी दमनीम हो गमी। कोई सहामता तो थी नहीॊ, महद कुछ था तो ससपज शासन का जुल्भ। इस जुल्भ के ववयोध भें प्रनतशोध की बावना से उठोरयत अऩने भठाधीशों के आदेश से सॊन्माससमों ने ववरोह ककमा। ऩरासी की रड़ाई के फाद कॊ ऩनी फॊगार औय उड़ीसा की दीवानी (फादशाह शाह आरभ से उसने दीवानी हाससर की थी) हाससर कय अऩनी सत्ता मथावऩत कयने भें रगी हुई थी। ऩरयणाभ मह हुआ कक अथज की व्मवमथा तो कॊ ऩनी के हाथों भें थी औय शासन नवाफ के हाथों भें। त्रफहायी का एक दोहा है -- "दसुह दयुाज प्रजाननको, क्मों न फढ़े द:ुख द्वॊद अगधक अॊधेयों जग कयत, सभरी भावस यववचॊद।।" अथाजत, जफ दअुभरी होती है -- प्रजा ऩय दहुये शासकों का शासन होता है -- तो प्रजा के द:ुख फेतयह फढ़ जात ेहैं, जैसे अभावस की यात स मज औय चॊर के एक साथ सभर जाने से सवाजगधक गहयी कारी हो जाती है। मही हार फॊगार का हो यहा था। एक ओय कॊ ऩनी की सयकाय ववत्त के भाभरों भें अऩना अगधकाय भजफ त कयने भें रगी हुई थी, स्जसके सरए उसने दीवानी हाससर की थी। द सयी ओय नवाफों के शासन से देश की जनता कुचर यही थी। मही कायण था सॊन्माससमों को हहॊदओुॊ के यऺाथज ववरोह कयना ऩड़ा। उनका दर गाॉव-गाॉव जा-जाकय हहॊदओुॊ को प्रोत्साहहत कयने के सरए मह गीत गाता हुआ ववचया कयता था --

    वॊदे भातयभ,् वॊदे भातयभ ्सुजराभ ्सुपराभ ्भरमज शीतराभ।्

    शमम श्माभराभ ्भातयभ।्। वॊदे भातयभ।्। शुभ्र ज्मोत्सना ऩुरककत मासभनीभ।्।

    सुहाससनी सुभधुय बावषणी। सुखदाॊ वयदाॊ भातयभ।्।

    वॊदे भातयभ।् त्रत्रशॊत्कोहट कॊ ठ कर-कर नननाद कयारे, द्ववत्रत्रशत्कोहट बुजेधनृत मवय कय वारे।

    के फेरे भा तुभी अफरे, फहुफर धायणीभ ्नभासभ तायणीभ।्

    रयऩुदर वायणीभ ्भातयभ।्। वॊदे भातयभ।्। 'आनॊदभठ' की रोकप्रप्रमता : इस तयह से फॊककभ फाफ ने त्रत्रकोणात्भक कथा को 'आनॊद भठ' भें फड़ी कुशरता से उस सभम की स्मथनत का सजीव गचत्रण कयत ेहुए हदखरामा है। कहना न होगा कक मह ऩुमतक फॊगार भें अनतशम रोकवप्रम हुई औय घय-घय भें 'वॊदे भातयभ'् गीत गामा जाने रगा। हहॊदओुॊ के सरए इस गीत ने सॊजीवनी-फ टी-सा काभ ककमा। प्रमतुत है इस रोकवप्रमता का एक प्रभाण। सन १९०१ भें जफ गुरूदेव यवीॊरनाथ टैगोय अऩनी ऩुत्री भाधवीरता के वववाह के सॊफॊध भें भेये शहय भुजफ्पयऩुय भें ऩधाये तो महाॊ के

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    फॊगारी सभाज ने उन्हें प्रथभ भान-ऩत्र (नोफेर ऩुयमकाय प्रास्प्त के कई सार ऩहरे) प्रदान ककमा था। सबा भें खासी बीड़ हुई औय रोगों ने फड़ ेचाव से गुरूदेव के बाषण को सुना औय अॊत भें उनसे अनुयोध ककमा कक वे अऩने भुख से एक गीत गाकय सुनाएॊ। इस अनुयोध ऩय उन्होंने जो गीत गामा, वह 'वॊदे भातयभ'् ही था। अॊगयेजी का प्रसाय-प्रचाय : ऩरासी की रड़ाई के फाद फॊगार भें अॊगयेजों की सत्ता धीये-धीये भजफ त होने रगी उन्हीॊ हदनों याजा याभ भोहन याम के अथक प्रमास से त्रब्रहटश ऩासरजमाभेंट ने ईमट इॊडडमा कॊ ऩनी को मह आदेश हदमा कक वह बायतवषज भें अॊगयेजी सशऺा का आयॊब कये औय इस आदेशानुसाय राडज फेंहटक ने कई सॊमथाएॊ खुरवामीॊ। इनभें सफसे प्रथभ था करकत्ता का पे्रससडेंसी कॉरेज जो सन १८२० भें मथावऩत हुआ। अॊगयेजी सशऺा के तहत पे्रससडेंसी कॉरेज बायत का ही नहीॊ फस्ल्क एसशमा का सफसे ऩहरा कॉरेज था। पे्रससडेंसी कॉरेज की मथाऩना के फाद करकत्ता ववश्वववद्मारम की ससृ्ष्ट हुई, स्जसका ववमताय फॊगार से रेकय ऩॊजाफ तक था औय इस देश के दक्षऺण हहमसे को छोड़कय फाकी सबी हहमसों भें जो कॉरेज मथावऩत हुए, उन सफकी ऩयीऺाएॉ करकत्ता ववश्वववद्मारम ही सरमा कयता था। ककसे कराभ न होगा महाॉ मह कहना कक नौहाटी नगय गॊगा के ककनाये ऩड़ता है। गॊगा के उस ऩाय चनेसुया नगय है। ककसी सभम मह फ्ाॊस के अगधकाय भें था। क्राइव औय फ्ाॊसससी जनयर डुप्रे के फीच रड़ाई चरी थी औय अॊत भें दोनों के फीच इस शतज ऩय सुरह हुई कक फॊगार भें चॊदयनगय औय चेनसुया तथा भरास भें ऩाॊडडचयेी फ्ाॊस के अगधकायगत होंगे। तदनुसाय मे फ्ाॊस के अगधकाय भें आमे औय महाॊ फ्ें च की ऩढ़ाई शुरू हुई। चनेसुया भें : चनेसुया भें फॊककभ फाफ के वऩता के सभत्र फॊगार के प्रससद्ध उऩन्मासकाय ब देव भुखोऩाध्माम यहा कयत ेथे। इन दोनों के फीच फड़ी भैत्री थी। आना-जाना फना यहता था। इसको आसान कयने के सरए फॊककभ फाफ के वऩता ने गॊगा औय अजुजना झीर के फीच (द यी फहुत कभ थी)। एक नहय फनवामी औय एक नौका अजुजना भें यखी, स्जस ऩय चढ़कय वे चनेसुया जात ेऔय अजुजना भें मदाकदा सैय ककमा कयत ेथे। गॊगा से रगे यहने के कायण अजुजना झीर का ऩानी कभ नहीॊ होता। मह नहय शामद अफ बी वतजभान है। फॊककभ फाफ के फाद कोई ऩुत्र नहीॊ था औय उनकी भारी हारत बी खयाफ हो चरी तो उनके वऩता का फनवामा हुआ ववशार भहर धीये-धीये खॊडहय हो चरा। उनके तीन नाती थे, उनके ऩास उतना ऩैसा नहीॊ कक भयम्भत कया सकें । ऩरयणाभ मह हुआ कक फॊककभ फाफ के देहावसान के फाद मे भहर खॊडहय का रूऩ धायण कयने रगे। उनके नाती करकत्ता चरे गमे। खॊडहय ननवास - अफ सॊग्रहारम : फॊगार सयकाय ने भकान के कुछ हहमसे जो अबी बी अच्छी अवमथा भें हैं तथा फॊककभ फाफ के सरखने-ऩढ़ने का कभया तथा सशव औय याधा वल्रब के भॊहदय अऩने हाथ भें कय सरमे हैं औय इसे एक सॊग्रहारम का रूऩ दे डारा है। दशजक इन्हें स्जरे के डडस्मरक्ट भस्जमरेट से ऩयसभट रेकय ही देखने जा सकत ेहैं। वतजभान सभम भें नौहाटी औय शहयों की तयह एक उन्नत शहय फन गमा है औय वहाॊ का 'टेननस फॉर साईज' का भशह य यसगुल्रा आज बी फनता है। महाॊ का प्रससद्ध भहल्रा बाॊटऩाड़ा आज बी सॊमकृत ववद्मा का कें र फना हुआ है। बाॊटऩाड़ा, जो शहय से प्राम: आधा ककरोभीटय की द यी ऩय है, के ब्राह्भणों के ऩरयवाय आज बी ऩयॊऩयागत जीवन-शैरी अऩनामे हुए हैं। ऩय फॊककभ फाफ के कायण जो गरयभा उसे प्राप्त थी, वह अफ कहानी फनकय यह गमी है। बायतेंद ुहरयश्चॊर ने सरखा था --

    कहेंगे सफेई नैंन बरय-बरय ऩाछे प्माये हरयश्चॊर की कहानी यहह जामेगी

    ववषमाॊतय न होगा महाॉ मह फताना कक फॊककभ फाफ (फॊककभचॊर चट्टोऩाध्माम) के ऩरयवाय की एक कन्मा का वववाह हभाये नगय भुजफ्पयऩुय भें हुआ था। वह अफ बी जीववत हैं औय महीॊ ससुयार भें यहती

    हैं। इस रेख भें फॊककभ फाफ के सॊफॊध की अगधकाॊश फातें उन्हीॊ से सुनी हुई हैं, अत: प्राभाणणक हैं।

  • 8, 31 * * * * * * * * * * * * 2011 * * * * * * * * * * * * 9

    काव्म की सजजना कृष्णभुयायी 'प्रवकर' ससृ्जत शब्द-छवव रेखनी-त सरका से करा काव्म-बा की ककमा अचजना।। वन्दना भें स्जसे ननत्म-प्रनत था फुरामा। नभन ्के सरमे सवजदा ससय झुकामा। सतत ्साधना भें यहा यत ननयन्तय सरखे गीत अगणणत स्जन्हें गुनगुनामा।। द्वाय भन का खुरा भरै साया धुरा, कपय ननखयती गमी ससवद्धदा साधना। रेखनी से फयसती यही बावना। ऩ णज होती यही कल्ऩना-काभना। शब्द फयफस अधय से कपसरत ेयहे गीत-गॊगा फही तसृ्प्त-आमवादना। फात ही फात भें छॊद ऩ या हुआ मों अनामास ही काव्म की सजजना।। प्रीनत के गीत हभको न अच्छे रगे। सॊकटों से हभाये हैं रयश्त ेसगे। आज सॊत्रास-कुण्ठा-घुटन ऩर यही पे्रभ के बाव अफ तक न सोकय जगे। काव्म की देख रम बाग जामेगा बम जीत हो गीत की भ्राॊनत की वजजना।।

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    ननज बाषा भें ही देश की अक्मभता की ऩहचान

    ससद्धेश्वय ननज बाषा के ववकास से ही देश औय सभाज सशक्त होता है। हहन्दी हभायी अऩनी बाषा है स्जसके सॊफॊध भें मवतॊत्र बायत के सॊववधान भें १४ ससतॊफय, १९४९ को मह प्रावधान ककमा गमा कक मह याजबाषा है, भगय ऩॊरह वषों तक साया काभकाज अॊगे्रजी भें बी साथ-साथ चरता यहेगा। इसी के साथ मह बी सुझाव हदमा गमा कक ऩॊरह वषों की अवगध भें हहन्दी को ववकससत कय सरमा जाएगा। तफ से प्रत्मेक वषज सॊवैधाननक प्रावधान के भुतात्रफक केन्र तथा याज्म सयकायों द्वाया हहन्दी हदवस, हहन्दी सप्ताह, हहन्दी ऩखवाड़ा तथा हहन्दी भाह भनामा जा यहा है, फावज द इसके वही ढाक के तीन ऩात। छ: दशक फीत जाने के फाद बी हहन्दी बाषा उऩेक्षऺत है औय हभायी चतेना भें अबी तक हहन्दी प्रनतत्रफस्म्फत नहीॊ हो ऩाई है। दयअसर केन्र हो मा याज्म सयकाय - हहन्दी के उन्नमन को रेकय कोई साथजक प्रमास हो ही नहीॊ यहा है। हहन्दी को केवर कागज़ी खानाऩ नतज तक सीसभत कय हदमा गमा है। आसबजात्म वगज भें अबी बी अॊगे्रजी का ही फोरफारा है। आणखय मे सफ भानससक बाषाई ववकाय नहीॊ तो औय क्मा है? आज बी सयकायी बाषा के तौय ऩय हहन्दी भें न होकय आॊग्र बाषा भें ही ऩत्र-व्मवहाय का चरन है। हभें आज इस ऩय गॊबीयता से ववचाय कयना होगा कक आज तक हहन्दी ववकससत क्मों नहीॊ हो ऩाई? आणऽय वे कौन-से कायण हैं स्जसके चरत ेबायत की सॊऩकज बाषा हहन्दी को ऩीछे धकेरने का षड्मॊत्र आज तक यचा जा यहा है? जफकक सच तो मह है कक अफ तो हहन्दी कॊ प्म टय औय इॊटयनेट वगैयह की माॊत्रत्रक ववशेषताएॉ बी ग्रहण कय चुकी है। भैं मह नहीॊ कहता कक अॊगे्रजी को छोड़ हदमा जाए। ऻान जहाॉ से रेना हो, रेना चाहहए, ऩहचान तो अऩनी बी फनानी ही चाहहए औय मह ऩहचान एवॊ गरयभा अऩनी बाषा मानन हहन्दी भें ही सभर सकती है। इस दृस्ष्ट से इसे जनभानस के रृदम की बाषा का दजाज सभरना चाहहए स्जसके सरए कोई ठोस मोजना बी फनाई ही जानी चाहहए। हहन्दी कक बावषक सॊमकृनत को देखने ऩय हभें इसभें प्राम: सबी बायतीम बाषाओॊ का सॊमकाय सभरता है, भगय हहन्दी को ककसी ऽास प्रदेश की बाषा कह कय याजनीनतक राब रेने वारे याजनीनतऻों औय व्मवमथा को अऩनी भुट्ठी भें यखने वारे सॊभ्राॊतों की गहयी चार को आभ जनता न तफ सभझ ऩाई थी औय ना ही आज सभझने के सरए तैमाय है। दयअसर, धासभजक आॊदोरन से रेकय मवाधीनता-सॊग्राभ तक भें स्जस हहन्दी ने अऩनी ऺते्रीमता का कबी ऩरयचम नहीॊ हदमा, उसी हहन्दी को कुछ रोगों ने याजनीनतक शतयॊज के बायत ऩय एक प्रदेश दे हदमा - हहन्दी प्रदेश। आज बी इस फात का प्रमोग धड़ल्रे से ककमा जाता है। महद हहन्दी का अथज बाषा के रूऩ भें रें, तो मह मऩष्ट है कक वह बाषा स्जसे हहॊदमुतान के रोग फोरत ेहैं। क्मा हहन्दमुतान केवर उत्तय बायत को कहा जाता है? कतई नहीॊ। उत्तय से दक्षऺण तथा ऩ यफ से ऩस्श्चभ तक पैरे याज्मों एवॊ सॊघ-याज्मऺेत्रों को हहन्दमुतान कहा जाता है। एक अयफ से अगधक आफादी वारे देश बायत के दस याज्मों के ऩचास कयोड़ से ज़्मादा रोग हहन्दी फोरत ेहैं। मही नहीॊ हहन्दी आज दनुनमा की शामद सफसे फड़ी बाषा है। रगबग ३७ देशों भें हहन्दी सभझने वारों की सॊख्मा डढ़े अयफ से ज़्मादा है। हहन्दी की गचॊगायी देश के कोने-कोने से उठ यही है। आणऽय तबी तो हहॊदमुतान के प्राम: सबी ऺेत्रों से प्रकासशत हहन्दी की हज़ायों ऩत्र-ऩत्रत्रकाएॉ हहन्दी की ज्मोनत ननयॊतय

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    जरामे जा यही हैं। वैसे हहन्दी हदवस सयकायी कामाजरमों भें 'खॊड ऩाखॊड ऩवज' बरे हो, भगय सयकाय की सशगथरता औय उदासीनता हहन्दी को याष्रबाषा फनने से योक नहीॊ सकती। हहन्दी बायतीम जनता की आत्भा है औय इस आत्भा की चीऽ भुस्क्तफोध की कववता 'अॊधेये भें' की इन ऩॊस्क्तमों भें कबी न कबी अवश्म सुनाई ऩड़ेगी - 'अफ तक क्मा ककमा जीवन क्मा स्जमा ज़्मादा सरमा औय हदमा फहुत-फहुत कभ भय गमा देश औय जीववत यह गए हभ।' सच तो मह है कक अफ तक हहन्दी को याष्रबाषा घोवषत नहीॊ कयने का कहीॊ गहया अऩयाध-फोध औय ऩश्चाताऩ सयकाय को बी है। महद सयकाय ने अऩने इस सॊवैधाननक सॊकल्ऩ औय ववश्वास की यऺा नहीॊ की है तो मह दबुाजग्मऩ णज है। हहन्दी को याष्रबाषा का दज़ाज हय हार भें सभरना ही चाहहए। सॊमुक्त याष्र सॊघ भें देय-सफेय हहन्दी को जगह जरूय सभरेगी, भगय उसके ऩ वज अऩने ही देश भें इसे सभदृ्ध कयने की ननताॊत आवश्मकता है। हहन्दी की तुरना भें अऩने देश भें अॊगे्रजी को खड़ा कयने की फाध्मता का तुक सभझ से ऩये है। वमतुत: आज़ादी के फाद हभ ननज बाषा के सरए जभजनी, जाऩान, फ्ाॊस, मऩेन तथा इटरी जैसे देशों का अनुसयण नहीॊ कय सके जहाॉ अॊगे्रजी के झॊड ेउतयत ेही सफसे ऩहरे वहाॉ, अॊगे्रजी के अनावश्मक क ड़-ेकयकट से अऩने-अऩने ऩुमतकारम साफ़ ककए गए। इससे बी फढ़कय आश्चमज तो हभें तफ होता है जफ सुनत ेहैं कक इॊग्रैंड के आमयरैंड तक भें अॊगे्रजी का ववयोध हो यहा है। चाॊसय फनज, मऩेंसय, टेननसन औय मकॉट ऽुद इॊग्रैंड के ऩुमतकारमों से गामफ हैं। औय एक हभाया देश बायत है जहाॉ की याजबाषा औय याष्रबाषा हहन्दी अऩभान औय अट्टहास के फीच सहभ यही है, भाथे की त्रफॊदी फनने की तो फात ही छोडड़ए। ऐसे भें दषु्मॊत कुभाय की इन ऩॊस्क्तमों को गात ेहुए कुछ रुदन कयने का भन कयता है - 'ऽास सड़कें फॊद हैं, कफ से भयम्भत के सरए, मे हभाये असबमान की सफसे फड़ी ऩहचान है।' इन सफ ववषभ ऩरयस्मथनतमों के फावज द हभ इस फात से आशास्न्वत हैं कक आज जफ सॊसाय की सात हजाय बाषाओॊ के साभने आने वारे ऩाॉच सारों भें ऩ यी तयह सभट जाने का ऽतया भॉडया यहा है औय हय सप्ताह सॊसाय की एक बाषा हभेशा के सरए ववरुप्त हो यही है, इस देश के सत्तय कयोड़ फोरने-सभझने वारे रोगों की हहन्दी बाषा न तो ववरुप्त हो यही है औय न ही इसके साभने अस्मतत्व का आसन्न सॊकट है। मह हहन्दी ककसी सयकाय औय फाजाय की भोहताज़ नहीॊ है। मह हहन्दी अॊगे्रजी से हाय नहीॊ यही है, फस्ल्क अॊगे्रजी के सुववधाजनक शब्द मवेच्छा से अऩनाकय उसे ऩचात ेहुए उसे अऩने भाकफ़क फना यही है। वह अॊगे्रजी का फड़ ेऩैभाने ऩय हहॊदीकयण कय यही है। वऩछरे हदनों जफ 'मरभडॉग सभसरनेमय' कपल्भ के गुरजाय द्वाया सरखे गाने 'जम हो' को ऑमकय ऩुयमकाय से नवाज़ा गमा, तो हभाये ऩुयाने शासक त्रब्रटेन को अऩना शब्द-कोश फदरना ऩड़ा औय उसभें 'जम हो' को सस्म्भसरत कयना ऩड़ा। दयअसर, हहॊदी को असरी ऽतया उनसे है जो इसे फदरने से योक यहे हैं, जो ससफ़ज औय ससफ़ज सयकाय, सॊचाय औय फाजाय ऩय हटके हैं। जरूयत केवर इस फात की है कक इसभें सुधाय रामा जाए। हभने एक वषज भें हहन्दी के ववकास के सरए क्मा ककमा, इसका भ ल्माॊकन तो एक हदन, एक सप्ताह, एक ऩखवाड़ा मा एक भाह भें हो ही नहीॊ सकता। हभने एक वषज भें ककतनी सपरता ऩाई - इसका आकरन कय

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    कसभमों-खासभमों को द य कयना होगा, तबी हहन्दी असरी याष्रबाषा के रूऩ भें अऩना मथान फना ऩाएगी। हहन्दी अफ वेफसाइट ऩय बी आ गई है। सॊचाय-भाध्मभ के रूऩ भें हहन्दी का अब तऩ वज ववकास हुआ है। साऺयता फढ़ने के साथ-साथ हहन्दी सभाचाय-ऩत्रों की सॊख्मा औय उनके ऩाठकों की सॊख्मा भें बी सुखद औय आश्चमजजनक ववृद्ध हुई है। अफ देश के ककसी बी बाग भें हहन्दी का ऩहरे जैसा ववयोध नहीॊ है। महाॉ तक कक तसभरनाडु के भुख्मभॊत्री करुणाननगध बी न केवर अऩनी तसभर ऩुमतकों का हहन्दी अनुवाद कया यहे हैं, फस्ल्क चने्नै भें फसे हहॊदीबावषमों के ऩास वोट भाॉगत ेहुए कहत ेसुने गए हैं कक वह हहन्दी ववयोधी नहीॊ हैं। सॊसद भें जो रोग अॊगे्रजी की वकारत कयत ेहैं वे जया अॊगे्रजी भें फोरकय वोट तो भाॉगें। उन्हें ऩता चर जाएगा कक आभजन अॊगे्रजी नहीॊ ननज बाषा को चाहत ेहैं। वैसे बी हहन्दी बाषा देश को बी जोड़ने का भाध्मभ है औय बायतीमों को न केवर हहन्दी फस्ल्क दक्षऺण तथा ऩस्श्चभ बायतीम बाषाओॊ को बी सीखने के सरए आगे आना होगा। हहन्दी बावषमों द्वाया द सयी बाषा सीखने से एक-द सये के प्रनत पे्रभ फढ़ता है औय इससे न ससफ़ज याष्रीम एकता एवॊ अखॊडता को फर सभरता है, फस्ल्क देश की अस्मभता की ऩहचान फनती है। हभ सफ इस फात से अवगत हैं कक बायतीम सभाज का ननभाजण दक्षऺण औय उत्तय भें फनने वारे दो जन-सभुदामों के ऩायमऩरयक सभागभ से हुआ है औय इनभें आनुवाॊसशक इकाइमाॉ एक-द सये से इतनी घुर-सभर गई हैं कक अफ इन्हें अरग फताना सॊबव नहीॊ है। मह प्रभाण उत्तय औय दक्षऺण के फीच ववबाजन कयने वारे याजनीनतक औय साॊमकृनतक प्रमासों को ऽारयज कयत े हैं औय हहन्दी बाषा वहृत्तय बायतीम सभाज के बीतय एकता के स त्र कामभ कयती है।

    शब्द डॉ. सन्तोष खन्ना जफ भैं शब्दों के फीच होती ह ॉ अकेरी नहीॊ होती साथ चरता है सभम आकाश के सॊग धयती इॊरधनुषी हो जाती है सीऩी भें भोती-सी शब्द के अथज औय छववमाॉ उद्भाससत होती हैं। शब्द रयश्त-ेनात,े दोमती, सॊफॊध सफ ननबात ेहैं शब्द अऩनी सॊवेदना-सयोकायों भें करुणा फयसात ेहैं

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    शब्द अऩने अनेकानेक अवतायों भें उजारा बय जात ेहैं। शब्द जफ फन जात ेहैं पे्रयणा भैं एकाएक उठकय चरने रगती ह ॉ नहीॊ देखती तफ यामत ेभें ऩड़ ेऩत्थय झाड़-झॊखाड़, नुकीरे काॉटे ऩवजतों के सशखय ककतने बी हों दगुजभ नहीॊ रुकत े़दभ भैं सफ राॉघ जाती ह ॉ। काभना मही है फना यहे शब्द का साथ हय साॉस के साथ जैसे सागय भें उसभज जैसे फादर भें जर जैसे सुभन भें सुयसब जैसे कान्हा की भुयरी शब्द ही ब्रह्भ है गॊगा-मभुना-सयमवती की तयह सॊवेदना-कल्ऩना-सजृन का सॊगभ शब्द की सत्ता को नभन शब्द की सत्ता को नभन।।

  • 8, 31 * * * * * * * * * * * * 2011 * * * * * * * * * * * * 14

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  • 8, 31 * * * * * * * * * * * * 2011 * * * * * * * * * * * * 15

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    kI zIk ]ma` maoM vanaa- na tao AcCo laD,ko hI bacao rhto hOM AaOr laD,ikyaaoM ka svaBaava BaI [tnaa p@ka hao

    jaata hO ik mana maaifk laD,ka imalanaa hI mauiSkla hao jaata hO.

    naoha kao maalaUma qaa ik mamaI ka [Saara ]sakI saholaI AMSaula kI Aaor qaa. AMSaula ]ntIsa barsa kI hao calaI qaI. tIna saala phlao ek BaartIya maUla ko laD,ko ko saaqa ]saka saMbaMQa baZ,a qaa AaOr daonaao

    ek saaqa rhnao lagao qao. ifr saala Bar baad ]sa laD,ko nao kha qaa ik ]saka AMSaula sao SaadI ka

    ivacaar nahIM. vao caahoM tao yaaoM hI saaqa rhto rhoM. kBaI BaivaYya maoM BaI ]saka SaadI ka [rada haogaa [saka

    BaI kao[- AaSvaasana nahIM qaa.

    AMSaula nao irSta taoD, ilayaa qaa. ]sako baad jaao BaI irSta banao ]saka hSa` kuC eosaa hI hao rha

    qaa. ek laOiTna AmarIkI laD,ka qaa ijasako saaqa vah SaadI nahIM krnaa caahtI qaI. ek kalaa laD,ka

  • 8, 31 * * * * * * * * * * * * 2011 * * * * * * * * * * * * 16

    qaa ijasasao SaadI krnao sao ]sako maaÐ baap naoo sa#t ivaraoQa ikyaa qaa. yaaoM maaÐ baap kI majaI- ko iKlaaf

    jaakr caaho vah SaadI kr hI laotI pr vah irSta Kud hI TUT gayaa.

    Aba vah Acaanak ]natIsa barsa kI ]ma` maoM sanyaaisana bananao kI zana kr baOz gayaI qaI. na tao

    Aba vah vaOsao Jamak Jamak gahnao phnatI qaI, na hI caohro pr gahra maokAp krtI. safod saaD,I phna GaMTao Qyaana maoM lagaI rhtI. ]sanao Apnao ApaT-maoMT maoM hI ek kaonao maoM maUit-yaaÐ rK kr maMidr banaa ilayaa

    qaa.

    Aae idna dixaNa eiSayaa[- saaMskRitk kaya-ËmaaoM kao saMgaizt krtI AaOr naarIvaad kI ihmaayat

    krtI. iktnaI kD,vaahT Bar gayaI qaI AMSaula maoM mad-jaat ko p`it. ek ]ga`naarIvaadI bana kr ]sanao

    yahI kD,vaahT saaro samaaja maoM fOlaanao ka baID,a ]za ilayaa qaa.

    naoha ]sa kD,vaah