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ExamMadeEasyChannel- https://goo.gl/rqkgjN WEBSITE- WWW.UPSC11.COM ©ExamMadeEasy सभी magazine- https://goo.gl/SjS8bp Exam Made Easy Daily Mgazine NEWS PAPER PIB NEWS AIR NEWS MCQ’S 14/10/2017

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    Exam Made

    Easy

    Daily Mgazine NEWS PAPER

    PIB NEWS

    AIR NEWS

    MCQ’S 14/10/2017

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    NEWS PAPER

    हगंर इंडके्स पर और नीच ेजान ेके कारण खोजन ेहोंगे

    ग्लोबल हगंर इंडेक्स के पैमाने पर भारत की जो भयानक तस्वीर पेश की ह ैवह पूरे

    दशे के ललए चचंता का लवषय होनी चालहए।

    संपादकीय

    भूख औरउसके बुरे प्रभावों के बारे में वाॅ चशंगटन लस्ित इंटरनेशनल फूड पॉललसी

    ररसचच इंस्टीटू्यट (आईएफपीआरआई) ने ग्लोबल हगंर इंडेक्स के पैमाने पर भारत की

    जो भयानक तस्वीर पेश की ह ैवह पूरे दशे के ललए चचंता का लवषय होनी चालहए।

    लपछले साल इस पैमाने पर भारत की रैंक 97वीं िी, जो इस साल लगरकर 100वीं हो

    गई ह।ै लवडंबना यह ह ैकक तमाम तरह की परेशालनयों में लिरे रहने वाले नेपाल (72),

    मयांमार(77), श्रीलंका(84) और बांग्लादशे(88) जैसे एलशया के छोटे दशे भी हमसे

    काफी आगे हैं। यहां तक कक उत्तर कोररया की भी लस्िलत हमसे बेहतर ह।ै भारत के

    राष्ट्रवाकदयों के ललए सांत्वना की बात इतनी ही ह ैकक क्रमशः 106 और 107 रैंक के

    साि पाककस्तान और अफगालनस्तान हमसे पीछे हैं। इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली

    बात यह ह ैकक इस पैमाने पर 27वें रैंक के साि चीन हमसे बहुत आगे ह।ै कुपोषण,

    बाल मृत्यु दर, लंबाई के अनुपात में वजन कम होना और बच्चों की लंबाई बढ़ने जैसे

    कारकों के आधार पर लनकाले गए इस सूचकांक पर कई नज़ररये से लवश्लेषण की

    जरूरत ह।ै सबसे पहले तो यही सोचा जाना चालहए कक आलखर कौन से वे कारण हैं,

    लजनके कारण लपछले साल के मुकाबले भारत की रैंक सुधरने की बजाय लगरावट आई

    ह।ै क्या यह लवकास दर में आने वाली कमी का प्रभाव ह ैया कफर नोटबंदी जैसे कडे

    आर्िचक फैसले का? इस तात्काललक कारण की पहचान के साि ही उन बडे कारणों

    पर भी लवचार ककए जाने की जरूरत है, लजनके नाते लपछले दो दशकों में जीडीपी में

    4.5 गुना वृलि और प्रलत व्यलि उपभोग में तीन गुना वृलि हालसल करने के बावजूद

    इस दशे में 19 करोड लोग कुपोलषत हैं। भारत की यह कदक्कत इसललए नहीं ह ैकक वह

    खाद्यान्न उत्पाकदत नहीं करता बलकक ऐसा इसललए है, क्योंकक आम आदमी की

    खाद्यान्न और पोषण सामग्री तक पहुचं नहीं ह।ै उसकी क्रय क्षमता सीलमत ह ैइसललए

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    उसकी िाली सूनी ह ैऔर उसमें पोषण सामग्री की कमी रहती ह।ै लवडंबना यह ह ैकक

    भारतीय खाद्य लनगम के गोदाम अटे पडे हैं और रेल के लडब्बों में भरा अनाज स्टेशनों

    पर सड रहा ह।ै यह लस्िलत भारतीय लोकतंत्र के मािे पर वह कलंक है, लजसे लमटाने

    के ललए कई बार लोग चीन जैसी तानाशाही का आह्वान करने लगते हैं, जो हमारा

    अभीष्ट नहीं ह।ै भारत को लोकतांलत्रक प्रणाली के भीतर ही इस कलंक को लमटाने का

    संककप करना होगा

    काम ही खुशी ह,ै जॉब दने ेका वादा परूा करें

    वकडच हपै्पीनेस ररपोटच का पूरा एक अध्याय काम पर समर्पचत, सबसे अप्रसन्न

    वही लोग जो बेरोजगार हैं

    गुरुचरणदास

    मेरे सारे पररलचतों ने लपछले माह डोकलाम में भारत-चीन गलतरोध खत्म

    होने पर गहरी राहत महसूस की िी। हफ्तों तक हवा में युि के बादल

    मंडराते रह,े जबकक भारत-चीन को अपने इलतहास के इस लनणाचयक मौके

    पर युि लबककुल नहीं चालहए। हम में से कई लोग भटूान के प्रलत गहरी

    कृतज्ञता महसूस कर रह ेहैं कक वह भारत के साि खडा रहा और हम अन्य

    पडोलसयों से भी ऐसे ही ररश्तों की लशद दत से कामना करते हैं। हाल के वषों

    में भारत को लबजली बेचकर भूटान समृि हुआ ह।ैबशेक, राष्ट्रीय सफलता के

    पैमाने के रूप में सकल िरेलू उत्पाद (जीडीपी) की जगह सकल राष्ट्रीय

    प्रसन्नता (जीएनएच) लाकर भूटान दलुनया में मशहूर हुआ ह।ै पहले मुझे इस

    पर संदहे िा कक सरकारें लोगों को प्रसन्नता द ेसकती ह,ै क्योंकक प्रसन्नता

    मुझे ‘भीतरी काम’ लगता, व्यलिगत रवैये तिा िरेल ू पररलस्िलतयों का

    मामला। हम में स े ज्यादातर लोग नाकाम लववाह, कृतघ्न बच्चों, प्रमोशन

    लमलने यहां तक कक आस्िा के अभाव के कारण दखुी हैं। लेककन, अब मैं अलग

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    तरह से सोचता हू।ं भूटान ने दलुनया को बता कदया ह ैकक ऐसी राज्य-व्यवस्िा

    जो स्वतंत्रता, अच्छा शासन, नौकरी, गुणवत्तापूणच स्कूल स्वास््य सुलवधाएं

    और भ्रष्टाचार से मुलि सुलनलित करे, वह अपने लोगों की भलाई के स्तर में

    व्यापक सुधार ला सकती ह।ै भूटान का आभार मानना होगा कक अब वकडच

    हपैीनेस ररपोटच तैयार होती ह,ै लजसे संयुि राष्ट्र की मान्यता ह।ै 2017 की

    ररपोटच में हमेशा की तरह स्कैं डीनेलवयाई दशे वकडच रैंककंग में सबस ेऊपर हैं।

    अमेररका 14वें तो चीन 71वें स्िान पर ह।ै 1990 की तलुना में प्रलतव्यलि

    आय पांच गुना बढ़ने के बावजूद चीन में प्रसन्नता का स्तर नहीं बढ़ा ह।ै वजह

    चीन की सामालजक सुरक्षा में पतन और बेरोजगारी में हाल में हुई वृलि हो

    सकती ह।ै दखु ह ैकक हम बहुत पीछे 122वें स्िान पर हैं, पाककस्तान नपेाल

    से भी पीछे।

    हमारे पूराने जमींदार मानत ेि ेकक बकेार बैठे रहना मानव की स्वाभालवक

    अवस्िा ह।ै इसके लवपरीत मैं मानता हू ंकक जुनून के साि ककया जान ेवाला

    काम प्रसन्नता के ललए आवश्यक ह।ै वह व्यलि भाग्यवान ह,ै लजसके पास

    ऐसा कोई काम ह,ै लजसे करने में उसे खशुी लमलती ह ैऔर वह उसमें मालहर

    भी ह।ै मैं मानता हू ंकक जीवन का मतलब खुद की खोज नहीं ह ैबलकक खुद

    का लनमाचण ह।ै कफर कोई कैस ेअपने काम और जीवन को उद दशे्यपूणच बनाए?

    इस सवाल के जवाब में मैं कभी-कभी लमत्रों के साि यह िॉट गेम खेलता हू।ं

    मैं उनस ेकहता हू,ं ‘आपको अभी-अभी डॉक्टर ने कहा ह ैकक आपके पास जीन े

    के ललए तीन महीन ेशेष हैं। शुरुआती सदमे के बाद आप खुद से पूछत ेहैं मुझ े

    अपने बच ेहुए कदन कैसे लबतान ेचालहए? क्या आलखरकार मुझे कुछ जोलखम

    उठाने चालहए? क्या मुझे ककसी के प्रलत अपने प्रेम का इजहार कर दनेा

    चालहए, लजससे मैं बचपन स ेगोपनीय रूप से प्रमे करता रहा हू ं? मैं लजस

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    तरह ये कुछ माह चज़ंदगी जीता हू,ं वैसे ही मुझ ेपूरी चज़दंगी जीनी चालहए।

    बचपन से ही हमें कडी मेहनत करने, स्कूल में अच्छे अंक लाने और अच्छे

    कॉलेज में प्रवेश लनेे को कहा जाता रहा ह।ै यूलनवर्सचटी में ककसी अज्ञात क्षते्र

    में खोज करने की बजाय हम पर ‘उपयोगी लवषय’ लेने पर जोर डाला जाता

    ह।ै अंतत: हमें अच्छी-सी नौकरी लमल जाती ह,ै योग्य जीवनसािी से लववाह

    हो जाता ह,ै हम अच्छे से मकान में रहने लगते हैं और शानदार कार लमल

    जाती ह।ै यह प्रकक्रया हम अगली पीढ़ी के साि दोहराते हैं। कफर 40 पार

    होने के बाद हम खुद से पूछते हैं, क्या जीवन का अिच यही ह?ै हम अगले

    प्रमोशन के इराद ेसे लडखडाते आगे बढ़ते हैं, जबकक चज़ंदगी पास से गुजर

    जाती ह।ै हमने अब तक अधूरी चज़ंदगी जी ह ैऔर यह बहुत ही त्रासदीपूणच

    नुकसान ह।ै

    जब हम छोटे िे तो ककसी न ेहमें जीलवका कमाने’ और ‘जीवन कमाने’ का

    फकच बताने की जहमत नहीं उठाई। ककसी ने प्रोत्सालहत नहीं ककया कक हम

    अपना जुनून तलाशें। हमने मानव जालत की महान ककताबें नहीं पढ़ीं, लजसमें

    अपनी चज़ंदगी में अिच पैदा करन ेके ललए अन्य मानवों के संिषच का वणचन ह।ै

    हममें से बहुत कम महानतम संगीतकार मोजाटच की तरह भाग्यवान हंॅ ै,

    लजन्हें तीन साल की उम्र में ही संगीत का जुनून लमल गया। आपको जुनूनी

    काम लमल गया ह ैइसका पता इससे चलता ह ैकक जब काम करते हुए आपको

    लगता ही नहीं कक आप ‘काम’ कर रह ेहैं। अचानक पता चलता ह ैकक शाम

    हो गई ह ैऔर आप लंच लेना ही भूल गए हैं। खुशी का मरेा आदशच, गीता में

    कृष्ण के कमचयोग के लवचार के अनुरूप ह।ै कमच स ेखुद को अलग करने की

    बजाय कृष्ण हमें इच्छा रलहत काम यानी लनष्काम कमच की सलाह दतेे हैं।

    यानी काम से कोई स्वािच, व्यलिगत श्रेय अिवा पुरस्कार की कामना रखना।

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    जब कोई काम में डूब जाता ह,ै तो मैं पाता हू ंकक उसका अहकंार गायब हो

    जाता ह।ै जुनून के साि, खुद को भुलाकर ककया गया काम बहुत ऊंची

    गुणवत्ता का होता ह,ै क्योंकक आप अहकंार के कारण भटकते नहीं। जीवन

    कमाने की यह मेरी रेलसपी ह ैऔर यही प्रसन्नता का रहस्य ह।ै इस में प्रसन्नता

    के दो अन्य स्रोत जोडना चाहूगंा : लजस व्यलि के साि आप जीवन जी रह े

    हैं, उससे प्रेम करें और कुछ अच्छे लमत्र बनाएं। जहां तक लमत्रों की बात ह ैतो

    पंचतत्र भी यही सलाह दतेा ह,ै ‘लमत्र’ दो अक्षरों का रत्न ह,ै उदासी, दखु और

    भय के लखलाफ आश्रय और प्रेम और भरोसे का पात्र। भूटान ने चाह ेवकडच

    हपैीनेस ररपोटच का लवचार लाया हो पर 2017 की सूची में यह 95वें स्िान

    पर ह।ै लपछल ेसाल के मुकाबले भारत चार पायदान लखसककर 122वें स्िान

    पर पहुचं गया और जालहर ह ैयह उस राष्ट्र के ललए बहुत ही हताशाजनक ह,ै

    जो ‘अच्छे कदन’ का इंतजार कर रहा ह।ै भारत की कम रैंककंग के ललए

    लजममेदार ह ैजॉब का अभाव, लनचले स्तर पर भ्रष्टाचार, दशे में व्यवसाय

    करने में परेशालनयां और कमजोर गुणवत्ता की लशक्षा स्वास््य सुलवधाएं,

    लजनमें लशक्षक डॉक्टर प्राय: नदारद होते हैं। भारत न े समृलि में रैंककंग

    सुधारी ह,ै क्योंकक यह दलुनया की सबसे तेज बढ़ती अिचव्यवस्िाअॅोॅं में

    शुमार हो गया ह ैऔर समृलि फैल रही ह।ैवकडच हपैीनेस ररपोटच का एक पूरा

    अध्याय काम पर समर्पचत ह।ै चूंकक हममें से ज्यादातर लोग अपना जीवन

    काम करत ेहुए लबताते हैं तो काम ही हमारी प्रसन्नता को आकार दतेा ह।ै

    ररपोटच बताती ह ैकक सबसे अप्रसन्न लोग वे हैं, जो बेरोजगार हैं। इसीललए

    प्रधानमंत्री मोदी यकद 2019 का चुनाव जीतना चाहते हैं तो उनके ललए जॉब

    दनेे का वादा पूरा करना इतना जरूरी ह।ै

    न्यालयक सकक्रयता में बना रह ेसतंुलन

    डॉ. एके वमाच

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    कदकली-एनसीआर क्षेत्र में दीपावली पर प्रदषूण रोकने के ललए पटाखों की

    लबक्री पर प्रलतबंध लगाने के सवोच्च न्यायालय के फैसले पर सहमलत-

    असहमलत का जो लसललसला कायम हुआ, वह शायद इस पवच तक जारी रहन े

    वाला ह।ै इस फैसले को लेकर तरह-तरह के तकच -लवतकच हैॅ ैॅं। लोकतंत्र में

    कोई अंलतम सत्य नहीं होता, कफर भी लसयासी फलक पर जनता का बहुमत

    और संवैधालनक फलक पर सवोच्च न्यायालय के लनणचय को स्वीकार करन ेकी

    बाध्यता होती ह।ै पटाखों की लबक्री पर रोक वाल ेफैसले के पीछे एक नेक

    इरादा कदखता ह,ै लेककन इसका एक आर्िचक पहलू भी ह।ै कदकली-एनसीआर

    के लजन तमाम व्यापाररयों ने एक माह पहल ेसवोच्च न्यायालय के फैसले में

    संशोधन के बाद उन्हें खरीदा उनके नकुसान की भरपाई कौन करेगा? क्या

    दीपावली के बाद पटाखों की लबक्री में ढील दने ेसे इस नुकसान की भरपाई

    हो जाएगी? क्या ऐसा लनणचय कुछ महीने पहल ेनहीं ललया जाना चालहए िा

    या क्या इसे अगले वषच के ललए नहीं टाला जा सकता िा? सवाल यह भी ह ै

    कक ऐसा फैसला कदकली-एनसीआर के ललए ही क्यों? पूरे दशे में यह प्रलतबधं

    क्यों नहीं? क्या और शहरों में प्रदषूण की समस्या नहीं? सवोच्च न्यायालय के

    लनणचय से ऐस ेसवालों के साि यह बलुनयादी सवाल भी उठा ह ै कक क्या

    संलवधान न्यायपाललका को अपनी शलियों का लवस्तार करने की इजाजत

    दतेा ह?ैहमारे संलवधान लनमाचताओं ने अमेररका की तरह न्यालयक-सवोच्चता

    और लिटेन की तरह संसदीय-सवोच्चता का लसिांत स्वीकार नहीं ककया िा।

    उन्होंने व्यवस्िालपका और न्यायपाललका में संतुलन बनाया िा, लेककन

    काफी समय से सवोच्च न्यायालय ने इस संतुलन को दरककनार कर न्यालयक

    सवोच्चता की स्िापना कर दी ह।ै 1973 में केशवानंद भारती मुकदमे में शीषच

    न्यायालय ने संलवधान के मूल ढांचे का लसिांत प्रलतपाकदत ककया िा। इसके

    अनुसार संसद या मंलत्रमंडल के ककसी लनणचय को वह न केवल इस आधार

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    पर लनरस्त कर दगेा कक वह संलवधान के प्रावधानों के लवरुि है, वरन इस

    आधार पर भी कक वह संलवधान के मलू ढांचे के अनुकूल नहीं ह।ै ध्यान रह े

    कक सवोच्च न्यायालय ने अंलतम रूप से मूल ढांचे को पररभालषत नहीं ककया

    ह।ै यह एक ऐसी तलवार ह ैजो अदशृ्य ह ैऔर जो संसद या सरकार के ककसी

    भी लनणचय पर ‘न्यालयक टं्रप काडच की भी तरह ह।ै सवोच्च न्यायालय ककसी

    भी कानून या लनणचय को यह कहकर लनरस्त कर सकता ह ैकक वह संलवधान

    के मूल ढांचे के प्रलतकूल ह।ै

    1980 में वररष्ठ अलधविा कलपला चहगंोरानी न े लबहार की जेलों में बंद

    असंख्य कैकदयों की ररहाई के ललए सवोच्च न्यायालय में यालचका दायर की

    िी। हुसैनआरा खातून बनाम गृह सलचव लबहार नाम वाले इस मुकदमे में

    न्यायमूर्तच पीएन भगवती की खंडपीठ ने 40000 कैकदयों की ररहाई के आदशे

    कदए। जलस्टस भगवती ने अनु. 39ए के तहत मुफ्त न्यालयक मदद को सािचक

    करने के ललए सवोच्च न्यायालय में एक ‘जनलहत यालचका अनुभाग की

    स्िापना की। तबसे व्यलियों, गैर-सरकारी संस्िाओं व सामालजक समूहों की

    ओर से जनलहत यालचकाओं की बाढ़-सी आ गई ह,ै अदालत का काफी समय

    ले लेती हैं।बीते 37 वषों कई ‘प्रोफेशनल जनलहत यालचकावादी प्रकट हो गए

    हैं। भारत जैसे बडे दशे में असंख्य समस्याएं हैं और लवधानमंडलों व सरकारों

    की अकमचण्यता तिा उपेक्षा के चलते नागररकों की अनलगनत गंभीर

    समस्याएं अनुत्तररत हैं। जनता को न्यायपाललका की सकक्रयता अपनी

    समस्याओं का एकमात्र लनदान लगती ह।ै अनेक न्यायाधीश भी सामालजक

    संवेदनशीलता के चलते जनलहत यालचकाओं की उपेक्षा नहीं कर पाते, लेककन

    इससे न्यायालय का मूल काम बालधत होता ह।ै ऐसे में जरूरत इसकी ह ैकक

    जनलहत यालचकाओं से लनपटने के ललए न्यायपाललका अमेररकी पैटनच पर

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    ककसी जूरी लसस्टम का सूत्रपात करे लजससे सामालजक सरोकारों से जुडे

    मसले जनता के सहयोग से लनपटाए जा सकें ।

    हर छोटे-बडे मामले को सुलझाने की प्रवृलत्त से एक सवाल यह भी उठ रहा

    ह ैकक सलंवधान ने सवोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों को नागररकों के

    मौललक अलधकारों की रक्षा करन ेहतेु जो सीमांकन ककया िा, क्या सवोच्च

    अदालत उस े खत्म करना चाहती ह?ै संलवधान के अनु. 32 में सवोच्च

    न्यायालय को केवल मौललक अलधकारों को लागू करवाने के ललए ‘ररट

    (अनुदशे) जारी करने का अलधकार िा। अन.ु 226 के तहत उच्च न्यायालयों

    को ‘ररट जारी करन ेका अलधकार न केवल मौललक अलधकारों को लाग ूकरान े

    के ललए वरन ‘अन्य ककसी भी उदे्दश्य के ललए प्रदान ककया गया िा। उदे्दश्य

    यह िा कक सवोच्च न्यायालय काम के बोझ से बहुत दबा होगा, क्योंकक उस

    पर सभी राज्यों के उच्च न्यायालयों से आने वाली अपीलों और पूरे दशे की

    जनता के मौललक अलधकारों को लागू कराने का दालयत्व होगा। इसके

    अलावा कें द्र-राज्य लववाद या दो राज्यों के बीच लववाद वाल े कुछ ऐस े

    मुकदमे होगें, जो केवल सवोच्च न्यायालय में ही लाए जा सकत े हैं। उच्च

    न्यायालयों में अन.ु 226 के तहत जनलहत यालचकाओं का लनस्तारण तो

    उलचत ह,ै पर सवोच्च न्यायालय द्वारा भी उन सभी मुकदमों की सनुवाई

    करना जो ‘अन्य ककसी भी उदे्दश्य के अंतगचत आत ेहैं, ककतना उलचत और

    संवैधालनक ह?ैअमेररकी संलवधान में ‘कानून की उलचत प्रकक्रया द्वारा वहा ं

    का सवोच्च न्यायालय नागररकों के अलधकारों की रक्षा करता ह,ै जबकक भारत

    में अनु. 21 द्वारा न्यायालय ‘लवलध द्वारा स्िालपत प्रकक्रया के अनुरूप ही ऐसा

    कर सकता ह।ै अमरेरकी न्यायालय ककसी कानून या आदशे को न केवल

    संलवधान के प्रावधानों के आधार पर जांचता ह,ै वरन अच्छे-बुरे होने का भी

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    लनणचय लेता ह,ै जबकक भारतीय न्यायपाललका संलवधान के प्रावधानों के

    अनुसार ही लनणचय दनेे की अलधकारी िी, ककंतु उसन ेइस ेलवस्तार द ेकदया

    ह।ै वह ‘संलवधान के मूल ढांचे के आधार पर ककसी कानून या आदशे को

    लनरस्त कर सकती ह।ै यह अदालत द्वारा स्वय ंको ‘न्यालयक वीटो दनेे जैसा

    ह,ै लजसकी ककपना हमारे संलवधान लनमाचताओं ने कभी नहीं की िी।

    सवोच्च न्यायालय ने न्यालयक लनयुलियों का भी अलधकार कायचपाललका स े

    लगभग छीन-सा ललया ह।ै यह कहन ेमें हजच नहीं कक शीषच न्यायपाललका

    द्वारा अपने संवैधालनक अलधकारों का लवस्तार कर काम के बोझ को बढ़ा

    ललया गया ह।ै अमरेरका में भी 1803 में मारबरी बनाम मेलडसन मुकदमे में

    सवोच्च न्यायालय ने अपने अलधकारों को बढ़ा ललया िा। अन्य दशेों में भी

    यही प्रवलृत्त ह।ै 2007 में सवोच्च न्यायालय के न्यायमूर्तच माकंडेय काटजू न े

    हुए कहा िा, न्यायाधीशों को अपनी लक्ष्मण रेखा खींचनी चालहए और

    सरकार चलाने का प्रयास नहीं करना चालहए…उन्हें राजा की तरह व्यवहार

    नहीं करना चालहए। पवूच मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्तच आनदं भी यह कह चुके

    हैं कक न्यायाधीशों को न्यालयक दसु्साहस स ेबचना चालहए और कानून की

    सीमाओं की उपेक्षा नहीं करनी चालहए। सवोच्च न्यायालय को सुलनलित

    करना होगा कक कैसे जनलहत यालचकाओं के दरुुपयोग को रोका जाए, कैसे

    अपने बोझ को कम ककया जाए और कैसे उन मुकदमों पर ज्यादा ध्यान कदया

    जाए, जो वास्तव में कालबले-गौर हैं। इसके साि ही उस ेकुछ ऐसा भी करना

    होगा कक संलवधान की मूल भावना की उपेक्षा न हो और सरकार के तीनों

    अंगों में पारस्पररक सममान बना रह।े

    ग्रामोदय का संककप

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    प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नानाजी दशेमुख जन्म शताब्दी समारोह में गांवों

    को आत्मलनभचर और गरीबी एवं बीमारी स ेमुि बनाने की जो बात की ह ै

    उससे कोई व्यलि असहमत नहीं हो सकता ह।ै जब तक भारत के गांव सशि

    नहीं होंग ेतब तक भारत लवकलसत हो ही नहीं सकता। प्रधानमंत्री कह रह े

    हैं कक 2022 तक गरीबी भारत को छोड दगेी। हम भी कामना करेंगे कक

    प्रधानमंत्री का यह लवास साकार हो। हालांकक सहसा इस पर लवास नहीं

    होता। आलखर हमारे दशे न े‘‘गरीबी हटाओ’ का नारा पहले भी सुना ह।ै हा,ं

    यह पहली बार ह ैकक ऐस ेहर लक्ष्य के ललए समय सीमा लनधाचररत की गई

    ह।ै तो उममीद रखने में क्या हजच ह?ै लेककन सवाल तो यही ह ैकक ये लक्ष्य

    प्राप्त होंग ेकैस?े प्रधानमंत्री इसके ललए कुछ सूत्र भी द ेरह ेहैं। मसलन, गांव

    के लवकास कायच को लनधाचररत समय सीमा के भीतर और लक्ष्य के अनुरूप

    पूरा ककए जान ेकी जरूरत ह।ै दसूरे, गांव की अपनी जो शलि ह,ै सबसे पहल े

    उसी को जोडते हुए लवकास का मॉडल बनाया जाए। तीसरे, योजनाओं पर

    काम करते हुए यह ध्यान रखना होगा कक वह इस बात पर आधाररत नहीं

    हो कक उसमें ककतना काम ककया (आऊटपुट) गया बलकक इसका पररणाम

    (आऊटकम) क्या रहा? चौिे, हमने ककतना बजट खचच ककया, इस पर जोर

    होने की बजाय, यह ध्यान रखा जाए कक लक्ष्य क्या िा और हमने ककतना

    कायच पूरा ककया? ये सारे सूत्र अगर वाकई इसी तरह साकार हो जाएं तो

    कोई भी लक्ष्य प्राप्त ककया जा सकता ह।ै ककंत ुइसके ललए काम करन ेवाली

    मशीनरी को भी सकंलकपत करना होगा। दभुाचग्य यह ह ै कक हमारे दशे में

    सरकारी तंत्र का बडा अंश अभी भी परंपरागत काम की औपचाररकता पूरी

    करने की मानलसकता से बाहर नहीं लनकल रहा ह।ै इसके बगैर गांवों का

    कायाककप करने का महान लक्ष्य पूरा नहीं हो सकता ह।ै कफर भ्रष्ट व्यवहार

    योजनाओं के सामन ेअभी भी सुरसा की तरह मुंह फैलाए खडा ह।ै इनस ेहर

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    हाल में मुलि पानी होगी। और प्रधानमंत्री ने स्वयं स्वीकार ककया ह ै कक

    जालतवाद का जहर लवकास के सपने को चूर कर दतेे हैं। समाज की

    मानलसकता में बदलाव केवल भाषण से नहीं आ सकता। राजनीलत स्वय ं

    जालतवाद का पोषण कर रही ह।ै जब तक राजनीलत जालतवाद के दायरे स े

    बाहर नहीं आएगी, वह समाज को इसके ललए प्रेररत नहीं कर सकती ह।ै

    प्रधानमंत्री न ेबीमारी तो सही पहचाना ह,ै पर उसका इलाज वे कर पाते हैं

    या नहीं यह दखेने वाली बात होगी।

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