॥६८& 80000/6 ///७5 [)२८४९।८ ०

126
॥६८& 80000/6 ///७5 [)२८४९।८

Upload: others

Post on 15-Nov-2021

2 views

Category:

Documents


0 download

TRANSCRIPT

॥६८& 80000/6 ///७5 [)२८४९।८ ०

(|

/-२७/| | |3२/४रि

[०

00 47686 / 0 ए८68 | ए503_/0॥५॥।

कटील तार, [ आयरलणड क शरमर उपनयासकार हालकन क 390८0 ९४॥८५

का अविकल अनवाद |]

* अनतवादक :

शयाम सन‍यासी

शसवरती अश कार

मछशरो का एक छोटा-सा नगर पोल शराइल शराफ मन दवीप क पशचिमी

भाग पर बसा हआ ह। पील स थोड दकषिण म हटकर नोकातो नाम की एक बढी-सी जमोदारी ह। नोकालो की ऊची भमि पर स एक बनदरगाह,

परकाशसतभ, ओर पानी म लगर डाल मछकतिया; पकडनवालटकारव भोर:दर- दर तक फला समदर दखा जा सशचता ह। समदरी किनार शरौरजमीदारी क बीच म पहाडियो की एक काली लकीर खडी ह। उन पहाडियो क & ग तज

शोर नकील ह। सबस ऊची पददाडी पर एक चोकोन बज ह। बजज को वहा

क लोग 'कोरीनस फॉली' कहत ह। 'कोरीनस फॉली' क नीच एक कबरसतान ह और कबरसतान को घर हए पतथरो की एक छोटी-सी दीवाल ह।

समदर इतना पास द कि दर तक उसकी गजना सनाई पढती ह। गरमियो म तो जब समदर की ओर स हवा बहती ह तो साथ म कषार भी

उडाऋर लती आती ह। भरडोस-पडोस का दशय यदयपि मोहक नही ह, फिर भी मन को मोदद लनवाला ह। सरदी म सय की धप क सपतान यहा की शानति मीठी लगती ह ।

पहाडियो क बीच म कषि-घर ह। पहाडियो की मधर ऊषमा स बढ

निशचित सो रददा-जसा लगता ह। मकान काफी बडा ह | पडोस म ओर भी अनको कोठरिया ह। एक सकडी गलली-हारा वह घर सडक स सकषगन ह। गकनी क दोनो ओर छोट-छोट वकष उग रह ह ।

इस जमीदारी को राबट करदन नाम का एक किसान कषगान पर जोतता ह ,राबत उस बढा दवो गया ह; परनत उसकी सफरति अब भी यवको-जसी

ह। अब भी वद आरतीन ऊपर चढाकर अकडता हआ चलता ह । नोकोजो की यह जमीदारी जोतत-बोत उसन अपनी ,उमर बरिताई द। उसक पहल

छ कटील तार

बाप-दादा भी इसी जमीन को जोतत-बद थ। इस जञमीन क साथ उनक जीवन समबनधित ह। वह उनक कटमब का एक अग हो गई ह।

राबट बढा हआ ओर फिर उसका बटा यवक दवोकर उपकी बगलल म झा खडा हआ तो बढ न शरपनी जिममदारिया उस सोप दी। भरतर वह अपरी

जिनदगी क अनतिम कषण आराम स बितान घर म ही पड रहता । रविवार

क सिवा शायद हो घर स बाहर निकलन ता ।

छडापा ह भाई | दल तो अब चतलला सकता नही। उपदश क दो शबद

किसी शरजञानी को सना सक तो मन को शानति मिलल ।--कहता वदद गिरजा-

घर म जा पादरी का थोडा-बहत काम कर आता । उसकी पतनी मर गई ह। रलव सटशन की ओर जरमोदारी का जो बडा-

सा दरवाजा ह, उसक सामन कक पटरीक क गिरज म वद दफनाई गई ह। उसक जवान लडक का नाम भी शबरट ही ह। परनत सभी उस रोबी क

सस‍नह-भर छोट-स नाम स पकारत ह। एक लदकी भी ह। उसका नाम मोना ह |

रोबी २६ वरष का मसताना यवक ह। उसकी आख खब चमकीली ह। हरी धरती क समान ताजगी स भरा डसका चहरा । ओर बाप का तो वषड दाहिना हाथ ही ह ।

मोना लगभग तईस वष की कमारी ह; परनत उस कमारी तो कोई ही

कह । उसका पषट और भरा शरीर दख जवॉमद की याद ताजञा होती ह। मजबत चौडो छाती, पषट-रनाय, सथिर कदम, सीधी दह-यषटि, बढी-बडी और मॉजरी आख और भरमरो स काल कश--योवरन की साकषात मरति ही हो जस।

मा की झतय क बाद स मोना ही खती ओर उस पर काम करनवाल मजदर--साथियो--की साजष-सभाजञ रखती ह। वह कर सो वयवसथा ओर वदद कदद सो हकम । उसका भाई ओर बढा-बाप भी उसक +क८ जखलार चलत ह। सभी को उसकी शकति और बदधि म विशवास ह ।

मोना क हदय म मदकता नही ह ; परनत उस मिनन मिनन गय ह।

कटील तार ५

उसका एक मितर किसी छोटी-सी जमीदारी का भावी जरमीदार शरी जॉन

कारलट नाम का वयकति ह | नोछालो की हद एक दसर को छतो ह। वह मोना

क प/स अकसर आया करता ह ; परनत जसा वह बढगा ह, वसी ही बढगी ओर विचितर उसकी परम की रीति भी ह ।

'सार डगलस को दध परा द सक, इतन जानवर यदि हम दोनो- ही क

पास हो तो कितनी भरचछी बात ह ९!

पसतक की भाषा जितनी सरलता स पढी जा सरती ह, उतनी ही सरलता

स मोना उसक मनोभावो को ताड जाती ह और उपतकी मननाक उडा उस

घर भजञ दती ह।

नोकालो की परधिरनश जमीन म खती नही होती । परितरार भर क लिए

साल-भर तक आसानी स अनन का परबनध दवो जाय, उतन दवी भाग म गढ

झौर जौ बोय जात ह और बाकी का भाग चारागाह क लिए छोड दिया

जाता ह। उनका मखय वयवसाय ही पील शाहर को दध दन का ह । इसलनिए गोचर-भमि भी आवशयक ह दी ।

सबरर ६ बज गवालिन शराती ह। सात बज दध की बालिटिया भरी जाती

ह। सभी बालटिया तब तक एक बढ स टल म रख दी जञाती ह ओर मोना

उनह शहर म धकरजकर ल जाती ह ।

2 >< ९

4९१४ की अगसत क पररमतिक दिन ह। रविवार का ततरसवी सथ

झाकाश म उगा ह । मोना बई दरवाज स बाहर निकजञी। एक धडाक की

आावाजञ सनकर वह चकषित-सी खडी रह गई। वह समझी कि किसी लाइकफर-

बोट की तोप छटन की शरावाजञ होगी | उसन समदर की झर निगाह घमाई ।

समदर निरदष बालक क समान ऊब रहा था। दर तक कही कोई जददात

दीख नही एक रहा था | फिर यद आवाजञ कसी ९ दरब म स पक मरगा बाग दता ह। पहाडी पर चढती बकरियो को

दखता हआ रोबी का कतता भझता ह। बाड पर खिलन पीज फरलो पर मध:

६ कटी ल तार

मकखिया गनगना रही ह। गहर आसमानी रग क आराकाश म एक चडल पषठछी गाता हआ उडा जा रहा ह । सबरा जितना उललास भरा ह, उतनी ही शलता!समयी एक कमारी दध का भरा ठला ढकलती हई शहर की शोर चली जा रही ह। उस ठलल क पदियो स च-चा की शरावाज यकसा निकल रही ह। घस, इसक सिवा सब चद नीरव ह ।

पील शहर म पहचकर मोना दखती ह कि जहाज क खलासियो जसी नीज रग की पोशाक पहन लोग-बाग घर म स सडक पर निकलल रह ह । व सब अपन बीवी-बचचो शरोर परिवार स विदा लत हए अनतिम ननसकार करत

ह और परसन‍न-वदन सटशन की ओर चल जा रह ह । यह भाग दोड कसी ह ?--मोना एक रननी स पछठी ह। 'तरह नही मालम १ यदध आरमभ हो गया ह। आराज स भरती शर दवोन

लगी ह। डगलस दवीप-समह स चार जहाज भरकर आदमी कषाम पर जा रह ह ।!

यदध ? किसक साथ १ 'किसक साथ ९ भर, जमनो क साथ | जमनी न बलजियम पर हमला

कया ह । हाथी न सदल-बल चीटी पर चढाई की ह । यरोप को दसरी सरकारो न नशस जरमनी को शिकषा दन बलजियम की मदद करन का निशचय

किया ह।' 'तब तो जमनी म भी, . ,' 'सब जगह ...सभी जगह । फिर यदध का अथ ही क‍या ? अब तो सतरियो

को भी तयार होना चाहिए ।' ५ २५ /५

नोकातलो की ओर लौटती हई मोना न रोबी को भी झआावश म भरा हआ दखा ।

तमह भी समाचार मिकष गय ९?

धशर यदध तो आग ह। उस फलत दर ही कितनी लगती ह ।'

कटी ल तार ७

यवको को अपनी जवानी का परमाण दन क लिए एक सचचा

झवलर मिला ।”

“इसस शका ही कया ह १ म ती, , दखता तो सही !* रोबी की काली आख शोर चमकन लगती ह । वह खतो पर एक निगाह

डालता ह, पक हए पोढ गन‍नो की ओर वह दखता ह | मोसस काट क झोर फिर...

एक पखवारा बीत जाता ह | दवीप पर खब हलतचलतल मची ह। किचनर की आवाज यहा ओर वहा सन पडती ह-..'तमदार राजा ओर तमदार दश को झाज तमदारी आवशयकता ह।! दीवालो पर यही अकषर हरएक जगह दीख पडत ह। अखबारो म भी यही शीषक छप रहत ह। और दर-दर क भागो स यवकदल इसका उततर दन दोड पढता ह |

मोना और रोबी रात-दिन जगकर मोसम काट रह ह । मोना का भरादश किपती कदर रकना जानता ही नही ।

'हाय ! म परष कयो नहो हई १" यही शभ भावना सथायी रह ।'

'परनत छीकरियो यदध म कषयो नही जा सकती १

उदद | छोकरिया व वहा कया करगी १

मोना शरपना मह फला लती ह ।

५ २५ 4९

फसकलष काटी का चदझी ह, निराई भी हो गई ह। भरव कवल ओसाना

बाकी ह । रोबी शददर म गया ह, घर पर बाप-बटी अकल दी ह । वदध बचारा गमभीर हो गया ह । उस करीमिया का यदध और उसक परिणाम याद झात ह ।

पिता 5:हता ह--रोबी बहत उतावलली कर रहा ह । मोना उततर दती ह-- इसम शरनोशापन कया ह ! सभी गोबी तफान की तरह घर म घसता ह।

घर कटी ल तार

भरती हो गया। पिताजी, मोना, म सनिक की हसियत स लशकर म भती हो गया ह ।'

मोना उसक गल लिपट गई। 'मरा भाई मरा वीर, बहादर !' मोना भाई को पयार करती ह, बदध चप ह। ओर फिर सोन क कषिए चपचाप चतना जाता ह।

थोड दिन और बीत जात ह। रोबी की बिदाई का दिन आा लगता ह। समझ होती ह। घर क सभी वयकति भोजन करन बठ । वदध सबक मधय म सथान गरहण करता ह। इधर-उधर नोकर बठत ह। मोना परोस रही ह, रोबी खाकी वदी पहन भीतर आता ह। मोना भाई की पोशाक दखकर चकित रह

जाती द-मरा भाई दतना सनदर तो कभी नही छवगता था।

'पिताजी, मोना, जाता ह । विदा सभी को नमसत ।'-- रोबी फोजी ढक की सलनापत करता हआ उतसाह स बोला ।

मोना रोबी को विदा दन बढ दरवाजञ तक उपतक साथ-साथ जाती ह। लमब कदम रखतो हई वह उतसाह-परवक बात करती ह- रोबी, मरा वीर भाई रोबी | पर तम कितन वीर दवो यह तो तब मालम होगा हि तमन यदध म कितन जमनो को मौत क घाट उतारा | किर दात पीसती हई कहती ह-- जमन, बदसारा, नीच ! पर, मझ यदध म क‍यो नही क जात १ म उन पापियो को कचच-ऊ-कचच ही चतरा जाडऊ।

बडी सडक पर खब कोलाहल हो रहा ह। घर-घर म यवक ओर माता- पिता यदध की बात जञोर-शोर स कर रह ह। एक सनिक टकडी तललइटी म

बस किसी गाव स आरती, कच-गीत गाती, बध स कदमो स सटशन की ओर

जा रही ह । उनकी खाकी वरदिया मोना म उतसाह का तफान भर दती ह,

फिर धीम-घीम वह घर म वापिस जलोट आती ह। लोग अपन मकानो स

उस टकडी को दखन पविर निकालत ह। वातावरण चारो ओर र हष-धवनियो स गनन उठता ह ।

रोबरी उस टकडी म मिल जाता ह । वह कक पटिक और वकषो की शरट

कटल तार ९

म छिप जाता ह।तब तक मोना उमरकी ओर दखती रहती ह। बढा बाप उस

समय भारी हदय लिय बिसतर म पडा ह। ईशवरचछा को कोन जञान

सका ह ९ रोबी को विदा हए दो महीन बीत जात ह। मोना खतीबारी का काफी

अचछा परबनध करती ह। रोबी को शरनपसथिति म भी सती काम-काज

सरकलता-पवक चलत रहत ह। परतयक सपताह रोबी का एक कराड शराता ह।

शर शर ह पतर काफी विनोद-भर ह । यहॉ-वढो जोशील वाकयो की भी भर-

मार रहती ह । वह लिशवता--यदध तो मजदार खलन ह। यदध एक महान साहस ह | अतच वह लाम पर भजा जायगा।' पर बाद क पतनन छाट शरोर गभीर होत जात ह ; परनत डनस चिनता नही टपकती । थोड स ही समय म दतयो का नाश हो जायगा और वह घर लौट आयगा |

रात म वयाल क बाद बछ पिता अगीठी क पास बठत ह ओर एक अगरजनी पतर सबको पढ सनात ह। मोना उस सनकर भभक उठती ह “इन कमबखत जरमनो को ईशवर कयो नही नसतनाबद कर दता ह । काश वह ईशवर ददोती...! वदध खामोश ही रहता ह; फिर जब खद! क बट क उपदश

पढन का समय होता ह उपतस पढा नही जाता ह। वदढठ चपचाप थो जाता

ह। भावी शरगमय ह। कौन जानता ह कि यह सब किस मदान हत की

पररणा स हो रहा ह । सरदी पडन कगती ह । रात ठणडी और भयका दहोन लगती ह। वदध

बानदन म दोनवाल कषटयक समाचार पढता ह। जिन जरमनो को अगर जषो

न नम$-हलवाल ओर पराम|णिक सवक समझ था, व जासस निकल । एक जपजनीन कनदन पर उडता हआ दीख पडा था। यदयपि उसस कलोगो की

रतय की कोई रिपोरट नही ह, फिर भी जमन गोला-बारी करन स नही

चक होग ।'...

'खरकार सभी को कयो नहो जलखान म टस दती द?” मोना बोल

उठती ह--एक-एक को पकडकर | दममी दवरोही, खनी !

१० कटील तार

बढ न बाइबिल खोली थी, डस बसी ही बनद कर दी ओर सोन की तयारी करन लगा। ।

'इप छीकरी का हदय करितना कठोर ह ९ लीगल +लकता। 5 अजनबममनम मन जननी. 5०5

|

करिसमस क दिन आय, वसन‍त आया, घरती म बीज बोय गय, वसनत- भर वबरो स बनद पश ओर भ फिर चरन क लिए टकरी एर चढन लगी।

परनत यदध अब भी चाल ह; रोची शरभी लोटकर घर नही थआराया । वसनत का आराहमाद-दयक सवरा ह। पीजनगर स ठला ढकलती हई

' मोना वापिस लोटती ह। घर झा वह दखती ह कि तीन थरादमी उसक वदध पिता क साथ खत पर चहलकदमी करत हए बातचीत कर रह ह उनम स

एक की पोशाक किसी शरफसर जसी ह और बाकी क दोनो आरादमियो न

रशमी टोप और हलक ओबर-कोट पहन रख ह । वह बह दरवाज स घसती ह, तभी कोई चोथा शरादमी टकरी की ओर

स उतरकर इनम शामितर होता ह। उसन कवल एक बनडी पहन रखी ह।

उसको बगल म बनदक दबी ह ओर दो कतत उसक साथ-साथ चलन आ। रह ह। मोना उस चोथ वयकति को पहचानती ह। बह उनका जमीदार ह। उसक

पास स ठला ढकरलती हई मोना सनती ह; 'परनत लडाई समापत दोन पर कया होगा ९ यदध क बाद खतो का कया होगा ९?

जञमीदार न कहटा--तब को चिनता न करो। इस भली परकार स समझ लो कि जब तक जीवित हो यही रहोग । तमदार बाप-दादाओ न इस जञमीन

को जोता-बोया ओर राबट, तमहार लडक भी इस जोतत-बोत रहग । मोना ठला छोड घर म चली जाती ह। जब सभी चल जात ह, वदध

भीतर आता ह ओर रकता-रकता उसस सतर बच कहता हऐन जो. वयकति

आय थ, उनम एक तो सवय इस दवीप का गवनर था। दसर दोनो वयकति भी सरकारी कमचारी थ ।

कपील तार १९

'मालम पडता ह कि सरकार तर विचारो स परिचित हो गई ह।' मोना न पदा--कयो १

'त ही न कहती थी हि सनी जमनो को जल म ट स दना चाहिए १?

तो इसम नवरीनता कौन-सी ह १!

'घरकार शरव यही करन जा रही ह ।'

'कया जमनो को कद म डालन जा रही ह १'

'हा । व कही गडबड न मचाय, इसलिए उनह नजर कद की छावनियो

म पहचान की वयवसथा हो रही ह ।' “'बरिलकल ठीक ह। बदमाश, जःसली करना चाहत ह। परनत हा, व

राजय-करम वारी यहा क‍यो आय थ १ पावरनर ही उनह जञाया धा। उनका खयाल ह कि छाबनी क लिए

नोकालो स बढकर दसरी ओर जगह नही ह ।' मोना कषण-भर अरव।क हो जाती द और फिर कहती ह --तो ऊभन लोगो

क लिए हम शरपनी जनम-भमि छोडकर चला जाना होगा। हस यहा स

निकाल दिय जायग कया १

बदा कद ता ह -- ठीक ऐसी बात ठो नही ह। फिर जो योजना डसक

सामन रखी गई थी, उस समझता ह । वह ओर उनका कटमबर भकत ही

वही रह ओर उनकी पहाडी पर की गोचर-भमि भी वसी ही रह, परनत उनह

छावनियो को दध दना होगा । 'रथात‌ जरमनो को जीवित रखन क लिए हम काम कर | भौर उनकर

भाई हमार यवको को फरानस भौर जमनो क मदान म मारत रह । ना यह कभी नददी हो सकता ॥'

उसक पिता को चाहिए कि वदद बिलकल मना कर द ।

'जिललकक मना कर दना ।? जब तक जमीन का खाता खतम नही दो

जाता, जमीन उनकी ह ओर व सना कर सकत ह । कह दना गवनर को कि छावनी क लिए अनय कही जगह तललाश कर।

१२ कटी ल तार

बढा समझता ह कि इसक सिवा दसरा कोई रासता नही ह। यदध क समय सरकार जो भी मागगी, दना होगा ।

मोना कहती ह--तो सरकार भल ही खत ल ल। दरम कहठो दसरी जगह चल जायग।

बदरा फिर समभझाता ह कि हमस ऐस भी न हो सकगा और यह कि म इस वयवसथा को सवीकार कर चका ह ।

“उनह मरी तो झरावशयकता नही न होगी !!

'उनह तरी आवशयकता तो ह ही, व किपरी सी को छावनी क समीप आग दना उचित नही समझत, फिर भी उनह' एक खतरो की आवशयकता ञआा पडी हद ।'

'तो वह सतरी म ही क‍यो ह ९ बढा पछता ह--तवर कया मझ भकरला छोडकर ही चली जायगी | म

दिनो दिन बढा होता जा रहा ह शरोर रोबी भी यदध म गया ह...

'अरचछा पिताजी, , ५

मोना वही रहन क लिए राजी होती ह। पिता की खातिर वह वहा

रहन क जञिए तयार हो जाती ह। परनत जमनो क बीच रहन शरोर उनकी

झावशयकताओ को परी करन क विचार-मातर स ही उस घणा होती ह ।

“इसकी उपकषा यदध म जाना की हजञार गना शररिक शरचछा होता ।

2५ २५ २५ ५

पनवरदद दिन क बाद इट, चना, लकडी शरोर कटील तार क मोट-मोट

बणउल जागीर की जमीन पर वग-पवक झान लगत ह। सारा दिन शोर

झाधी-आाधी रात तक कितन ही बढई ओर राज काम करत ह। दवर खतो म बदसरत सफद पतथरो क रासत तयार होत ह। कषि-घर स ऋड दरव[ज तक जो शीतकष दरियाजञी भर दोनो ओर वकषोवालो गलली थी। उस काटकर साफ किया जाता ह। खिलत पषषोवाजी बाढ को काट-पीटरकर जहा खती पर काम

कट: ल तार १३

करनवाल साथियो, मजदरो क रहन की जगह थी, घास तथा अनाज भरन की कोठरिया थी, वहा ऊपर और नीच डामर पोत दिया जाता ह।

मोना तो दखकर सतबब रह जाती ह, कहा गया डउसरकना हरा खत १ कहा

गया विशाल भमिपट और खला मदान ? मोना उस भयकर जाद! कहद ती ह।

जागीर का अरषरिकाश दकषिणी भाग वटील तार की ददरी दीवार स घर

दिया जाता ह। इस कटील तार की बाड म स बाहर निकलन का परयतर

करनवाल का रोम-रोम छिद जायगा । जगली जानवरो को बनद करन का

मानो पिजरा दवी हो । पहल नमबर का कमपाउणड थोड ही दिनो म तयार

होकर काम म आन योगय हो जञायगा |

जागीर पर सतरियो म अच कवल अरकती मोना ही ह। बाकी की सभी

मजदर सतरियो को छटटो द दी गई। और उनक सथान पर परष और लडक रख गय ह। पहल वहा लिजञा किननीस नाम की एक खबररत लडकी भी थी। वह सार पील नगर को अपन हगारो पर नचा सकती थी। यदध म

जञन स पहल रोबी भी उसकी ओर आकरषित होन कषगा था । यदयपि रोबी

चला गया था, परनत वह वहा स जाना नही चाहती थो। मोना उस भी न

रख सको ।

>< >< छ >< साफ का समय ह। सोना न टरन की सीटी की अआवाजञ सनी। सटशन

स अनतिम गाडी रवाना हो चकी थी ओर उसक बाद वह 'खट-खट' की झआाव/ज सनती ह, मानो सनिक कच कर रह हो ।

जमनो का पहला गिरोह आता ह। मोना अपन मकान की लिडकी म स ४न‍ह दखती ह, जस काल साप चल आरा रह दवो । इस तरह सभी काल

रग की पोशाक पदन एक साथ दो-दो आदमी कवमबी कतार म चल आ रह

ह। मोना क शरर स कप-कपी छटती ह । दसर दिन खिडकी स स वह ऐस ही और अधिक जमनो को आत हए

दखती ह । सभी शभानवाकनो क चहर चिनतागरसत ह; उन पर ससकारी भाव

१छ कटील तार

ह। गोशाला की शरोर जाती हई मोना एक पहरदार स कहती ह-- दखन-

भावन म तो य बर नही कगत। उनम क अधिरकाश लोग खशदाल थ ।

कोई-कोई तो मालदार भी थ। कछक लनदन म वयापारी पढियो क मातरिक भ ओर चन की जिनदगी बसर करत थ। बढा बाप मोना स कहता ह--बचारो न कभी ऐसा रददी भोजन नदटी खाया। यह उनह अचछा भी नही कराता ।

अचछा नही लगता ९ शतान कहो क ! तो कया इनह यहा महमानगिरी

क लहलिए लाया गया ह। इन बदमाशो को ऐसी खराक भी कयो दी जाय ९? बढा शानति स आख मद लता ह। 'परभ, शरपन खी बालको स विलग

हए इन बचार कदियो को सदबदधि द टनक अपराध छवमा कर ।'

'तो कया हमार यवक जो इनक अरतयाचारो का जबाब दन गय ह, अपन सतरी-पतनो को साथ ल गय ह | जाम पर हमार भाइयो को जसा खाना मिलता

ह, यह कया उसस भी खराब ह ? नालायकर ! बदमाश कही क !

2५ 2५ ५ ><

झोर दो सपताह बीत जात ह। जाववाल। वह गोरकषघनधा बढता ही

जाता ह । जागीर की दाहिनी झोर दसर नसबर को छावनी तयार हो जाती ह।

आज फिर मोना लोगो क चलन की 'खट-खट' की शरावाजञ सनती 8।

जमनो की दसरी टऋडी पहची ह। पहल आनवालो की भरपकषा य अधिक बर दीख पढत ह। गनद भोर भिखमगो जस | उनस स अधिकाश लिवरपल भोर गलासगो बनदरगाह म या स8% म फिरत जहाजो पर स पकडकर लाय गय खलासी थ । य सब अकडत हए चल आ रह थ या वख चलनन की कोशिश करत । हखत, गात ओऔऔर जोर-जोर स विटलात हए व जञोग भीवर परवश करत ह । ह

मोना दरवाज म खडी रह उनह दखती। व भी मोना की-ओर घर-घरकर

दखत ह ओर किसो अपरिचित जबान म उसक बार म कछ कददत ह, फिर चगबन लत हो ; इस तरह दवोठो को पचकारत ह।

कटोल तार १५

भोना क रीम-रोम म शराग कषरा जाती ह।

नामद कतत, ..!' घह कहता ह--बटी, त अरतीव कठोर ह ।

२५ 2५ 2५ 2५

थोड दिन बाद रोबी का पनन शराता ह। शरव वह लफटिननट क पद पर ह

ओर उसम उतसाह भी खब ह। अरब तक उसन बरी स घरी परिसथिति का भी सामना किया ह; परनत अब बाजी पलटनवाली ह। उस गपत समाचार

मिल ह कि एक जोरदार हमला होगा ओर वह पहली बार ऋरट पर भजञा

जायगा । वह बहत उतसक ह । झोर शोर स तथारिया की जा रही ह। विसतत समाचार थोड ही दिनो म परकट छिय जञायग ।

“इसलिए, पिताजी, परणाम ! ओर यदध म स विजयी हो जलोट सक, ऐए

झाशीवाद दोजिए । मोना स कह दीजिए कि इस पनन का धोढा-सा अश मन

पिछली रात फौजी शरतचिकनारियो की सभा म सनाया था । जिस सब सन एक साथ कट उठ थ -गञतर की लडकी ह। जोश इस कहत ह | फिर एक मजर

न कहा--यदि अपन पास कवलल एक हजार यवक हो तो फिर एक महाोन स

अधिक दिन यदध न करना पढ | रोची क पतर क बाद एक सपताह बरीत जाता ह। विजय क समाचार पतरो

म परकाशित होत ह। दशमन भाग खड होत ह शर उनकी हार निशचित ह । बदध अपनी आदत क अनसार अरधिकाश मौन ही रहता ह। परनत

डाकिया क आन क समय वह बाहर रासत पर भरा खढा होता ह। जब समदर

म सरय शरसत होता दीखता ह, वह अपनी चरट स धशना निकालता खडा रहता ह ।

रोबी का दसरा पतर शरभी नही आया ह। झाज मोना डाकिय को सरद की तरह छावती स परवश करत दखती ह। उसक हाथ स पतर ह ; परनत सिर उसका झका हआ दह। उसक हदय म जस कगढा हो रहा ह। डाकिया

बिना कछ बोल दवी नीरव वदध क हाथ म पनन द दता ह भोर चला जाता ह ।

१६ कटील तार

बढा लिफाफ को इधर-उधर स पलवटकर दखता ह। लिफाफा बढा-सा

ह भोर उस पर कछ छपा भी ह। अनत म मन को इढ बनाकर लिफाफा फाढता ह। कॉपत हाथो स पतर बाहर निकाल उस टकर-टकर दखता ह। वदद पढन का परयतन करता ह। परनत उपतस पढा नददो जाता। मोना उसक

पास शआराती ह । बढा टाहप किया हशरा पनन मोना को द दता ह। पास क वकष का सहारा लता हआ पिसा कहता ह--बटी, जरा पढ तो !

मोना पढती ह : 'यदध-सतरी शोक क साथ सचित करत ह कि... वहद रक जाती ह। बढा सब सपषट रप स समझ जाता ह ।

रोबी मारा गया ।

वदध लडखढाकर गिर पडता ह, मानो उस पर बिजजनी गिर पडी हो |

'मोना क मह स चीख निकलतन जाती ह। खत पर काम करनवाल नौकर दोड आत ह। सब मिलकर बढ को घर म ल जात ह। उस बिसतर पर सलाया जाता ह। समीप दवी रहनवाकषा पहल कपाउणड का एक अगरज डाकटर आता ह ।

वदध को आघात तो अवशय लगा ह ; परनत ढर जसी कोई बात नही ह। उस बिसतर म ही शरोर शानत पढा रहना चाहिए। उसकी बीमारी का

वासतविक इलाज ह कि उस ऐसा कोई भी पननया शरजबार न दिया जाय

जो उस अरशानत कर द ।

मोना की शराखो म आस नही ह। उसकी झाख चमकती ह ओर साख तजञी स चकषन लगती ह। उसक मन म जरमनो क लषिए घणा क भाव यहा

तक बढ जात ह कि वह एक भी शबद नही बोजन सकती। उनहोन उसक भाई

को मार डाला और पिता को चोट पहचाई, ईशवर अवशय उसका बदला कषगा । कसर स ही नही, परनत परतयक जमन स ईशवर इसका परा-परा बदला लगा।

यदि ऐसा न हआ, ईशवर न बदलना न लिया तो समफना चाहिए कि ससार म ईशवर ह ही नही ।

कटील तार १७

३ ओर ठीन महीन बीत जात ह | छवनो म कदियो को सखया चढती ही

जाती ह | जलर, दसर अधिकरारी ओर सिपाहो मिलञाऊर लराभग दो इजार आदमी ह | सभय नजरबनिदिया की सखया तो पतनचाघव इजञार स भी अधि होगी । जहा हर ओर खशनमा खत थ वहा अब मकान खड हो गय ह। बाड क बीच म सती धरती, तब , कोठरिया, ओर बरक मानो खान दोडत ह । सभी पर जस शतान की कालली छाया फिर गई ह। जलर क घर स शरतमग कषि- घर ओर दसर लकडी क घर ह। लकडो क घरो म गाय, .भड ओर बकरिया रखी जाती ह | गोशाल। क समोप मजदर साथिरो क रहन का महान ह।

सतताईस दजार परषो स मोना दवी अरलतो एक खतरी ह। कितन दी जल-

अधिकारी उस 'नोकातलो की माता” कहत ह। भाई की रतय और पिता को

लगी चोट स होनव।ल दःस का परथम आवग कम हो गय। ह । उसका काम

पहल ही की तरह नियमानकल छोता ह। गोशाला क जीवो को तो पालना-

पोसना आवशयक ह ही । जमनो क आन स पदल जब वह नोक।लो नही छोड सककी तो इस समय जब कि डसका पिता शायपरा-शायी ह, वद ऊस जा सकती ह ।

यथासमभव वह अरपना जयादा स जयादा समय पिता क पास बयतीद

करन का परयतन करती ह। रात होत ही खबको वयाल करा वह इसक पास पसतक सनान बठ जाती ह । बाप की इचछानसार अब वह कवनन तरइबिलल ही पढती ह ओर भजन गाती द। परनत मनोविनोद क जलिए कडठ भी नही

पढा जाता द । बढा पढल स बहत अधिक बदल गया ह। उसझऊ अपतर म

क डआहट भर गई ह ओर हदय एकदम बदलन गया ह। जब वह अकला पडा रहता ह, तो पापियो को हई सजञा का सन दवी सन धयान करता ह ।

मोना सतय दवी कददा करती थी कि य कलोग नक क दवी योगय ह। इनक लिए कोई भी सजञा बरी नही ।

र‌

श८ कटी ल तार

करिसमस आता ह--झऔर फिर दसरा करिसमस ; वसन‍त आता ह और

फिर दसरा चसन‍त । एकरस जडता म वयतीत दवोता छावनी का जोबन मोना

दखती ह। पॉजड म बनद जानवरो की भाति कदी सबर डठत ह। इचर-

उधर इकटठा होत ह, निशवासस लत हए दिन बितात ह और रात क अधर म सो जात ह। अनधकार स फायदा उठा कही व भाग न जाय, इसलिए

दर-दर तक परकाश का परबनध किया गया ह। कभी-कभी मोना सनती ह कि

कदी विदरोह कमन पर उतार होत ह, पर उस निरदयता-पचक दबा दिया

जाता ह | पहल कमपाउणड क कदियो न एक बार भोजन क समय उपदरव

करन की चषटा की । 'ऐसा भोजन दो पश भी नहो खारयग ।' कदद उनहोन

थाजिया फकना शर की, पर व गोली स उडा दिय गय । बाकी सभी करदियो न चपचाप भोजन कर लिया । मोना क हदय स लश-मातर करणा जागरत नही होती । वदद कहती ह---इन लोगो क जञिए ऐसी हो सजा ठीक ह ।

तीसर कमपाउणड क कदियो क बार म एक बार सिपाही जो बात-चीत करत थ, उस सन मोना कान म अगलिया डाजन लती ह । सभी कछदी असभय दगणो क शिकार ह। मोना बड चाव स सनती ह कि इस परकार क दगणा क लिए उनह किस परकार की सजा दी जाती ह | काम स जब कभी उस इन

कमपाउणड क पास स निकलना होता ह, तब उस लगता ह जस व कदी इसकी ओर घरी दषटि स दख 'ही-ही' कर हसत ह। 'साल बनदर, ..!” वह

पसीन-पसीन हो जाती ह। मोना को लगता ह जस व उसक कपड सरीचकर

फाड डालग... 'जगली-शोदद !' आती गरमियो क एक मजदार सवर मोना समदध की ओर स एक बनदक

की शरावाजञ सन जाग पढती ह। बाहर निकलकर वह बनदरगाह म एक

फौजी जददाज को लगर डालत दखती ह। फिर अधिकारियो की भाग-दोड की

आवाज सनती ह। लन‍दन स गदद-मतरी छावनी दखन आय ह ओर जल अपिकारियो न गवनर को बला भजा ह ।

उन तीनो बड अधिकारियो को जल का चककर लगात हए रखती ह।

कटी ल तार १९

फिर कषिघर क समीप स निकरतकन उनह जल-अधिकरारो क यहा भोजन करन

जात दखती ह। मोना रासत की ओर खलनवाली रसोईघर की खिडको म

खडी हो वहा स किसी की करोधभरी वाणी सनती ह।

धतब आप दसरी शर कया आशा रखत ह ? जीत-जागत 'अआदमी को

कतत की तरह बनद रख आप लोग यह आशा रखत ह कि वह सचचरितर बन ।

व मरद तो नही कि गग, बहर दवो बठ रह । अरब यदि उनम हगण घर कर तो क‍या आशचरय ह ? ओर फिर यह कहा का नयाय ह कि (उनह इसी लिए नीच! कहा जाय ! यदि इसका कोई उपाय ह तो वह काम ह! कवल

काम ही !!

इसक बाद थोड ही दिनो म इट आरान लगती ह ओर एक कारखाना

बनन लगता ह। एक महीना बीतत न बीतत उसम स काटन, पीटन और

कछ बनान की आवाज आन लगती ह। कदियो को काम मिल गया ह । दख-सन मोना हसती ह--य पश कभी मनषय हो सकत ह! असभव, कभी नहो ।

छावनी क बाहर धान क पक खत लददरान लग । लनाई क दिन आा गय ह ; परनत लनाई कर सक या मजदरी कर सक । ऐसा तो परतयक आदमी यदध पर चला गया ह। किसान निसास डालत ह। 'हाय, पका धान यो ही धरती पर बिखर सड जायगा। अकरलष हाथो काम कस खतम होगा १!

एक रात समाचार मिलत ह कि जिन कदियो का वयवहार अचछा होगा उनह समीप क खत म काम करन भजा जायगा और दसर दिन सबर तो मोना कई कदियो को बाहर निकलत दखती भी ह।

अर, इन बदमाशो का विशवास ही कया १ इसस तो डछट तक-

लीफ होगी ।' परनत एक महीन म तो दसरी ही विपतति आ खडी हई। कदियो क

नाम जो पनन आत, अधिकारी उनकी बराबर जाच-पढताल करत और मजर टटोन पर ही थ कदियो को दिय जात थ। अधिकाश पतनन तो उनक दश-सथित

२० कटील तार

मितरो क ही झात थ ; परनत इधर तो कितनो ही क नाम अगरज किसानो की

कषडकियो क परम-पनन आन लग । य व लडकिया थी, जिनहोन खरता म काम करत समय जमन कदियो क साथ मितरता की थी। एक छोकडी न तो अपन जमन-परमी को लिखा था कि उस एक इस शभरकार की वदना होन लगी ह, जिसक विषय म बह कछ भी नही जानती और अब उसकी मालकिन उस

काम पर नही रखगी। यह जलडकी लषिजञा किननीस थी। नाम सनकर मोना न मार करोध क अपन होठ काट डाल।

डसक करोध का पार न था| लिजञा किन‍नीस का भाई भी यदध म गया

था । वशयाए कही की । जब इनक भाई इनक लिए और अपन दश क लिए

यदध म लडन गय ह, वहा लडत और मरत ह, वब य छोकरिया जन भिखारियो की बाहो स समाती ह। बस, इन कननटाओ को तो तोप क सह उडा दना चाहिए ।

“नही, यदद भी ठीक नही । पहल तो इनह कोड मारन चाहिए यदि मर

हाथो म सतता हो तो म इनह भर बाजञार म कोड मारत-मारत इनकी चमडी ही उधड द ।' द

मोना क हदय म बिलकल दया नही ह। वह नही समझ पाती कि

जमन कदियो स शरधिक स अधिक घणा कस की जाय। उनक चहर दखत ही उस कपककपी आती ह ओर उनकी गआवाजञ सन वह अपन कान बनद कर

ललती ह । फिर भी पिता की खातिर उस वददी रहना पडता ह शरौर साक-सवर कदिया को दध भी दना पडता ह ।

>< /< हर

वरष क भरनतिम दिन ह। सबह सात बज वहद दध क डिबब भरती ह। कदी उनह लन आत ह। इन सब क चहर कस ह | मानो चहर पर कालिख

पोत दी गई हो । व उस सलाम करत ह ; परनत वह तो सामन तक नही

दखती । जब सभी लौट गय तो वह पाती ह कि तीसर कमपाउनडवालो का डिबबा झभी गो-शाकषा क पास जसा का तसा रखा हआ ह। यह डिबबा

कटी ल तार २१

खॉसत हए ओर ऊघत हए सबस अरनत म आनवाल लडक का था। मोना

जान क लिए पीठ फरती ह कि आवाज आती ह :--यह क‍या मर लिए ह ९ खह चोक उठती ह। उस आवाज म 'कछ' ऐसी बात ह जो मोना को

झाकरषित कर लती ह। वह आवाजञ मोटी ओर ककश न थी, शरतयत सीठी ओर गमभीर थी । एक छन उस लगता ह कि यह आवाज रोबी की ह।

वह सहज भाव स पीछ की ओर मढकर दखती ह। यह यवक तो कोई

दसरा दी ह। मोना न उस पहल कभी नही दखा था। कोई तीसक वरष को उमर होगी । लमबी, पतलली शरोर सीधी दह, पतल कश ओर चमकती अरख, भावकतामय भरावदार चहरा, कया यह यवक जमन हो सकता ह !

कषण-भर चप रदद मोना पछती ह--कषया तम कदी हो १ जी हा | जो आदमी नितयपरति शराता था, आज सबदद उसकी लहवाकी

नस टट गई ह ओर वहद असपतातन म रखा गया ह, उसक बदल म मझ झाना पडा ह।'

तमहारा नास !?

ऑसकर ।'

आसकर...'

ऑसकर दईन ।' “तीसर कमपाउणड म हो !'

जञी हा ।!

थोडी दर मोना उसकी ओर टकटकी बाध दखतो, रददती ह, फिर जस एकदम कछ याद हो आया हो । कहती ह--अचछा ; यह डिबबा तमहारा ह |

उठाकर चलत बनो | याद‌ रखो, तम कदी हो, तमह मर साथ बातचीत करन का बिलकल परयतन नदटी करना चाहिए ।

जी, कतजञ ह---कह ऑसकर अपना टोप उतार सकञाम करता ह ।

वह सतरियो क आग-आग चकषा जाता ह। मोना दरवाज म स शोर फिर

गो-शाला की खिडकी स स जात हए भॉसकर की पीठ की झोर दखती दवी रहती ह।

शर कटी ल तार

झाज जान कयो सारा दिन काम करत समय भी उसका मन उदास ह ।

थोढी-सी भजन होन स ही नोकरो को डॉट दती ह । रात को वयाल‌ होन क

बाद जब विता पढन क लिए नीच बलाता ह तो जवाब शााता ह। बाबजी,

झाज नहो | सिर दद कर रहा ह ।

अगीटी क अाग वह अकली बठी रहती ह। जान किस विचार म बढ दी

सवरा दवी जाता ह !

अनार 3० परथारभत रवाना

ह.

एक शोर महीना बीत जाता ह। मोना क भीतर दवनदद मचा ह। कोई ववोर उसक मन म भरा पठा ह। उसका विगध करन म उस परति-दिन बहत*

जोर लगाना पडता ह।

यह ससभव ह। यह दवो कस सकता ह ! यह भठ ह। दोष मरा ही

ही ह ।---वह विचारन लगती ।

अपन मन क चोर स बचन क लिए पगरब वह गरपना जयादातर समय

पिता क पास हवटी वयतीत करती ह। बढा भी अब जमनो स घणा करन लगा

ह। जिनहन उसक एकाकी पतर को मार डालना, उनह वह कभी कषमा नही

करगा । 'परभ की नाशकारी शकति जागरत हो रोर शतर नषट हो जाय ! शतान की

अभिलाषा, शरो परभ परी न होन पाय। धघकत अजञार उन पर बरसाना !

उनक शरीर सड जाय और कीडो स विलल-बिला उठ ! भयकर रौरव नक म व डाल जाय ओर कभी उनका उदधार न हो ।

झपन कमर म बठी मोना बढ बाप क शबद सनती ह। दोनो कमरो क

बीच कवल एक पतली-सो दीवार ह। वदध क शठदा क साथ वह अगनी

झानतरिक इचछा का समावश करना चाहती ह ; परनत डसक मन म हठात‌

ऐस भाव उठत ह--नही, नही ! ऐसी परारथना योगय नही | यह बहत ही

कटील तार २३

कर ह । बाइबिल म डविड न ऐसी पराथना की ह, परनत वह तो सजजन

नही दषट था ।

इसस बचन वह कदियो क परति अधिक कगोर हो मन को सान‍तवना दन

का परयतन करती ह। सतर लोगा क साथ ऑसकर जब गोशाला म आता तो वह उसक सामन तक नहो दखतो। शरॉसकर जब कभी उसस बोलन का

परयतन करता ह तो वह उस दलकार दती ह; अथवा वह जो बोलता ह उस

न सनन का परयतन करती ह। परसत एक दिन उस सनना पडता ह--लड- विग भर गया ।?

'कोन-सा लढविग

जिसक बदल म दध लन शराता ह।

“वह जिस अनिदरा हो गई थी !”

'हा, रात ही सर गया । कबन उस दफनायग । बाईस वरष का ही था। शरभी तो मछो की रख तक न फटी थी। अरपनी मा का इकलोता बटा था। मा भी बचारी विधवा थी । मझ ही उस यह दःखद समाचार लिखन पडग | समाचार पढत ही डसका हदय टट जायगा ।'

मोना क कणठ म जान क‍या होन लगता ह। उसकी शवाखो की कोर

आस आत ह ; परनत अपनी परी ताकत लगा वह बोलती ह--

'हा, पर वही तो अपनी सा का इकललोता नहो ह। यदध छडनवालतो को

इसका सोच-विचार पहल स ही कर लना चाहिए था ।

झॉसकर डसक इन हदयहीन शबदो को शनता रहता ह ओर फिर बिना कछ बोल ही चला जाता ह। मोना को खयाल आता ह कि वह उसक

गछछ ही दखती रही ह। वह उपची समय चहरा घमा लती ह शरोर उसक मह त अनायास निकरल पडता ह--ह ईशवर ! उस लगता ह कि अपन हाथो ञा काट लना इसस कही अचछा ह।

ऑसकर तो नियमानसार रोज ही आता ह। एक सपताह बाद वह अपन

गराथ एक पटी लकर आता ह। गोशाकषा क दरवाज की ओर वह उखर पटी

२४ कटील तार

को रख दता ह। लडविग की मरा न यह पटी भजी ह। इसम नकलली फलो- वाली काच की एक फलदानी ह। जमनो म मरनवालल की कतर क पापत ऐसी फलदानो रखन की परथा ह ।

मोना वषटी खडी ह । पटी का दकना खोल वह फलदानी और उसक साथ का लख मोना को

बताता ह ।

'लडविग की कबर क पास इस रख शान क लिए उसकी मा न मझ

लिखा ह । परनत उस कया मालम कि हम बाहर जा ही नही सकत ह ।' मोना पटी की ओर ऊकती ह । लख जमन म था । यह लख कया ह ९

मा क शाशवत परम सहित... मोना को कगता ह जस किसी न उसकी छाती म छरा भोक दिया हो ।

पर वह सीधी खडी हो कहती ह--मरा इसस क‍या समबनध ? इस यहा स

उठा जाओो ।

शॉसकर चकका जाता ह, परनत पटी वही छोड जाता ह ।

मोना काम म वयसत हो जाती ह। वह पटी को भन जान का परयतन

करती ह। सारा दिन वह परयतन करती रहती ह। परनत पटी उसकी शाखो

झाग रहती ह। और साफ को सब काम समापत कर यह करोध म भर उस

पटी को उठा लती ह । फिर उस धीर स कोट क नीच छिपा छावनी क बड

दरवाजहञ की भोर चलन दती ह ।

पटी की तरफ कभी उसक मन म कोमल भाव जागमत‌ दवोत ह ; परनत

फर मन उगर हो कह उठता ह--कया इसी लिए म इस कबब पर रखन जाती

ह १ म तो इस जस बन तस अपनी आखो स दर करन जा रही ह। कक

पटरिक को ओर जाती हई बह इसी तरह क तरक-वितक करती ह।

जगह ददन म उस कठिनाई नही होती । छावनी बनन क बाद स आज

कत जितन जरमन मर, यही कबर म गाढ गय । जमीन क इसी छोट-स टकड

कटील तार रप

पर सबकी कतन बनी ह। कबरो पर सफद पतथर की तखतिया कलगाई गई ह । ओर उन पर विदशी नाम खोद गय ह। अनतिम कतर क पास वह फलदानी रखती ह और पटी स अपन को मकत करती ह।

नही नही, इसम दोष दवी कया | आदमी का ही तो यह काम ह !!

वह कितना ही परयतन करती द, कितन ही हाथ-पाच पदाढती ह; परनत अपन मन म डस जमन यवक थोर उसको आस गिराती मा को दर हटा नही पाती ।

>< ५ ५

मोना क कान घोड की टापो की आवाजञ सनत ह ओर एक सवार उसक सामन आा खडा होता ह । वह तो जललर ह। वदद मोना क साथ बात करन

लगता ह | सॉक को भोजन करन स पदलन घोड पर चढ यो घम भान की

उसकी आदत द ।

मोना क सवासथय-समाचार पछ वह सवय ही जो कछ कददन आया था, उस कहन की शरआत करता ह।

'कया तमही लडविग की कबर पर फलदानी रख आई थी १?

मोना का हदय घडकन तवगता ह ; परनत वह भरपनी हिममत बटोर सच ही कददती ह--जी दवॉ !

झधिकारो गमभार हो जाता ह । |मोना क परति उसक हदय म जो परम

ह, उसक वशीभत हो वह झरद सवर म कहता ह--दखो बटो, दमार जसो क

हदय दया स शरोत-परोत तो होत ही ह, परतयक क हदय म दया होना भी

चाहिए और यह सवाभाविक भी ह कि इन कदियो म स झिसी क पति

तमह दया की अनभति भी हो ; परनत बटी, यदि मझ बढ की सलाह मानन

योगय हो तो यही स रक जाना ।

मोना उसको सलाइ मानन की पराणपरण स चषटा करती ह ; पर उस परयतन म उसका हदय फटा जाता ह, डसस स खन टपकन कषनता ह। वह पिता क पास ही बठी रहती ह, परनत उसस भी शानति नही मिलती ।

२६ कटील तार

वदध का सवासथय अब सधर रहा ह। करसी म बठ सकन जितनी शकति उसम आन लगी ह । अरढोस-पडढोस क किसानो स भी अब वह बिना किसी

भय क मिल सकता ह |

परनत एक दिन एक मकस किसान कहता ह--जमनो की एक सबमरीन

न हमारा एक बडा-सा जहाज डबो दिया, जिसम हजारो शरादमी डब मर । बढा यह सनकर जोश म शरा उछजन पढता ह--शर ककरमियो ! शतानो !

कयो ईशवर इनह नषट नही कर डालता !| उस सबपररीन क कपतान की नोद

हराम हो जाय | कयामत तक उस शानति न मिल | डबनवालो का आतनाद

उस पागल बना द शोर शरनत म उस रोरव नरक म गिरना पड । मोना न चप रहन का शरसीम परयतन किया, पर उसक मह स निकलष दी

पडा--- पिताजी, शानत हो जाइए । डाकटर न कथा कहा था १

बढा चप हो जाता ह । 'किसी को भी नरक म पडन का शाप दना एक भल ईसाई का काम तो

नही ह ।--धोम-घधीम इतना शर कह वह चप हो जाती ह । परनत बोलन क बाद वह सवय ही शरपन शहदो स शरम अनभव करती

ह। वहा स उठकर अपनी कोठरी म भाग जाती ह। उसका विशवास ह कि

यह मठ तो नही बोली, पर उसका ईसाईपन तो दभ ही ह।

पगरो परभ मरी रकषा कर | मझ बचा ! किसी तरह मझ बदा । जमनो

को तो घिककारना ही चाहिए। उन‍ह तो कडा-स-कडा दरड मिलना चाहिए।

जरमनो क परति उसकी ऐसी ही भावना होनी चाहिए; परनत इधर कछ

दिनो स वह ऐसी इचछा नही कर सकती । और इस विषम परिसथिति म स झपन आरापको उबारन वह परमशवर स परा५थना करती ह ।

५ हर ५

गरमी क दिन थ। एक दिन सचर जलन-अधिकरारी मोना क पिता को

बलात ह। वह उस ऊपर ल जाती ह। अधिकारी चमड का छोटा-सा बटनआ खोलता ह भोर उसम स एक तमगा निकाकञता ह।

कटी ल तार २७

बढ न पछा--यह क‍या ह ९

'विकटोरिया करॉस ह भाई ! तमहार बट न यदध म जो बहादरी दिखाई थी, उसक सममानारथ हमार राजा न यह भिजवाया ह।'

वदध गीली आखो को पोछ डालता ह ओर कहता ह--पर अब इस

पहिननवाला ह ही कोन ९

'म बताऊ--अधिकारी बोल!--तमदहारी लडकी क‍यो न पहन १ हज दी क‍या ह?

(बिलकल ठीक, जरर पहन गी ।---कहकर मोना उस रपट ललती ह

शोर भरपनी छाती पर कषटका भी लती ह ।

दसर दिन शरपनी छाती पर तमगा लटकाय हए वह अरभिमान स

चलती ह । ऑसकर आता ह ओर वह बार-बार उस दखती ह । झासकर भी

उस दखता ह। यह कया ह १ कहा स मिलला ९ आदि पछता ह। ऊचा सिर किय दढ आरवाजञ म वह रोबी क पराकरम सनाती ह।

सनकर शरॉसकर जवाब म कहता ह--तब तो तमदारा भाई बहत ही अचछा रहा होगा ।

मोना चप हो जाती ह। उसका शरमिमान और उपतकी दढता गायब हो जाती ह । ह

५ >< ८

अगरजी अखबार तो शरात ही रहत ह । एक सॉम किसी अखबार म वह

जमन क ककतयो क साथ एक अगरजञ पनर का जो उसन शअपन कटसबियो को लिखा था, पढती ह । उस पतर म दशमनो की उदारता का वरणान था। वहद अगरज पनतन-लखक बलजियम म किसी गोलाबारी म घायल होकर रण कषतर म

रतय को परतीकषा कर रहा था। रात स शरचानक उसन दर पर दीपक का कषीण परकाश दखा । आध मीज तक पट क बल ।घसीटता हआ वह एक किसान की कोपडो म पहचा ; वह किसान जमन था।

परनत सभी जमन बर नहो होत । यह किसान सारशविक विचारो और

ण८ कटी ल तार

शदध हदयवाला था । उस समथ उसक अगल बरामद म विजयोनमतत जमन

झफसर शराब पीत शरौर ऊननजलल बकत हए पढ थ। उस वोर किसान न पन जीवन को सकट म डाल ओर सबकी निगाहो स बचा उस पअगरजञ

सिपाही को अपन घर म छिपा लिया। सारो रात डसन उसकी सवा-सशरषा

की ओर सवर चालाकी स उस भाग जञान दिया । किसी असपषट भावकता ओर शरॉसकर क विचारो स पररित हो मोना बहद

पतर अपन पिता को सनान गई । वह कहती ह--सभी जातियो ओर राषटरो म बर आदमी ह तो भतत

झादमी भी ह । कया वह जमन किपतान भकञा नही था १ सनकर उसक पिता का चहरा कठोर हो जाता ह और गसस म उसक

परह स निकतन पडता ह--- भतना ? कोन जानता ह कि वह उसी कडक का पिता, हा जिसन तर

भाई की छाती म गोलो मारी । मोना क हाथ स अखबार गिर पडता ह। वहद भागकर चलनी जाती ह।

टटत सवर म वदध कहता ह--यह छोकरी, अब पदहल जितनी कठोर नही एही | यह बदल कस गई १ इस हो कया गया ?

एक दिन खवर मोना कछ सनती ह। उसक अनतर म छिप बठ शतर स चदद मकाबला कर सक, ऐसी वह बात ह ।

छावनी स ,पाच होत थ। चोथ नमबर का हाता पददाडी की बगज म था । उस हात का एक करदी अपनी तयार की हई गपत सरग स भागन का

परयतञ करता हआ पकडा जाता ह। जल-अफसर को यह मकदमा सौपा जाता ह। पीज की सिविलकोट म सकदमा चलनता ह। जमनो की हराम- छोरी का इसस विशष परावा ओर कया दिया जञाय ९

कटील तार र‌९‌

मोना भागती हई कोरट जाती ह । पलिघत, चपरासी और नागरिक कोट म स हए ह। गवनर भी आया ह ओर वह बड वकीलो की बद पर बठा ह। कदी क दोनो ओर सिपाही खड ह। मोना उस दखत ही चोक पढती

ह। उसकी घारणा थी कि कदी भयकर चहरवाला शोर महादषट होगा। परनत यह तो पीला, पतला और खबसरत जवान था। उसको विदधल आखो

म बखार की खमारोी थी । खतरिया क कपतान ओर कदियो क बयान स उसका अपराध साबित होता

ह । दो महीन स वह अपन बिसतर क नीच स सरग खोद रहा था । वह सरग

छावनी क कटील तारो क बिराव स बाहर खोदी गई यी। जब सभी कदो सो जात, तब वह अपना काम करदा। खदाई म निकलनी मिददी वह छावनी क अनदरवातल गिरजा की खली जमीन म डाल दता था। भागनवाली रात

को ठीक अरनतिम कषण स एक सिपाही न उस पकड लिया। सिपाही को

समाचार दनवाला अपराधी का पडोसो एक दसरा जमन कदी ही था । बीमार जस इस आदमी को जल म आराम की जिनदगो कयो शरचछी

न लगी १ क‍यो दो-दी महीन तक वह जागता रहा १ कयो उसन इतना

परिशरम किया ? आदि विचारो स ही कदी क परति मोना क विचार बदलव

गय थ ; परनत जब ममवधक वाणी म ओर बीच म अटकत और कॉपत सवर म कदी न गवनर क परशनो का उततर दिया तो मोना अरपन झॉस न

रोक सकी । उसको छाती पर लट#ता तसगा भी भीग गया ।

वह नाई था। एक अगर जञ खी क साथ उसका विवाह हआ था, दो

बाकषक मो थ | विधाह क बाद उसका विचार एक राषटरीय पनन निकालन का

था; परनत पस इकट दोत ही डसकी पलनो बीमार पडी। यह पहली परसति

का समय था, इसलिए समदध' किनार ल जान। पढा । फिर उसन एक दकान की, जिसम बची हई जमा-पजी सवाहा हो गई ।

गवनर न टोका--समय बरबाद मत करो । खास विषय पर आशरो ! कदी अपनी बात झाग चलाता ह।

३० कटी ल तार

जब वह छावनी म शराया तो उसकी पतनी परतिसपताह पतर लिखती ओर अपन तथा बचचो क कशल-समाचार दती रहती थी। उसकी लडकी गर-

सरकारी पाठशाला म जान लगी थी ; शिकषक जब उसस पछत--तरा पिता

कटा ह ? तो वह जवाब दती--यदध म । यही उसको मा न सिखाया था ; परनत भरनत म सचची बात परकट हो गई । तब दसर विदयारथियो क माता-

पिताओ न उस रकल स निकाल बाहर करन की माग की । शअरब वह किसी

भी पाठशाला म न जा सकती थी | सडढको पर भटकना ही उसक पहल पडा।

गवनर चीखता ह---जलदी खतस कर। तर भागन क साथ इसका

कया समबनध ह । मोना का मन गवनर को एक चॉाटा मारन का हो आता ह।

“महाशय, इतन स ही समापत नही हो सकता ।! बढा वकील कहता द--हा, आग कहो । उसक बाद मझ मरी पतनो क पनर मिलना बनद हो गय। परनत मर एक

पडोसी न पनन म लिखा. . .

वकीलल---उसम फया लिखा था १

कदी न कहना शर किया । डसकी बडी-बडी शाख अमानषी तज स

चमक रही थो।

एक दसरा जमन कदी मर साथ था जिस किनददी कारणो स छोड दिया

गया। वहद नमबर एक का बदसाश था। उसन मरी पलनो को फसलाया । मर निराधार सतरी-बालक आराशरय तो खोज ही रह थ। इस समाचार न मर मसतिषक म उघल-पधल मचा दी । मझ इचछा हई कि डस दषट का खन

कर डाल । भर इसी लिए मन जल म सरग बनाई कि भाग निकल। गवनर-- अचछा ही हआ कि तम पकड गय । उस सात दिन की कद, सखी रोटी ओर पानी की सजञा सनाई गई । इसक बाद मोना वहा कषण-भर भी न ठहर सकी । यदि वदद ठददरती तो

उसक मह स चीख निकल पडती । वह शीघरता-पवक घर लोट आई । बधा हआ कदी जब सिपाहियो क पहर म घर लौट रददा था तो मोना घर पर ही

कटी ल तार ३१

थी । उसन खिडकी म स कदी को दखा | करोधित होता ओर ओऔठ काटता

हआ वह बचारा निराशा की साधषात‌ मरति जसा सिर नीचा किय चपचाप चला जा रहा था ।

जव जनो क विजय-समाचार शरजबारो म छपत ह तो बढा उततजित

हो जाता ह ओर जोर-जोर स <िढलान कगता ह--ईशवर, त यह कया

करता ह ? तर य शतान दशमन अभी तक कस थआराग बढ रह ह ९ इनह नषट

कर | इनका खतयानाश हो जाय | इनका नाम-निशान तक भिट जाय |

मोना इस सन नही सकती । उपत लगता ह जस उसका पिता ईशवर-

दरोषठ कर पाप म पड रहा ४! वह पशचातताप करती हट। ददध उसक सामन

दखता रहता ह। उसकी सम म कछ नही आता । वह कहवा ह--सममत नही पडता छि इस लडकी को कया हो गया १ जमनो क लिए इस कितनी

घणा थी | अरब बह उनक परति क‍यो दया दिखाती ह ! यह बदलल क‍यो गई ह !

नितय सबर वह कटील तारो क घर की उस ओर खतो म काम करत

जवान लढक-लडकिय को दखती ह । रोबी औरोर वह भी यो ही करास करत थ

झोर अब रोज रात को मोत की जसी कालली बारकनो को दखती ह। इसका मन भी अब उस जन नाई की भॉति छावनी स भाग जाना चाहता ह।

ओर विचितरता यह ह कि यह जानत हए भी कि यदि उस भाग जान का गरवसर मिकतता तो भी वह भाग न सकती । जान क‍यो ९

शॉसकर अपन अचछ चाल-चलन क कारण कदियो का कपतान बना दिया जाता ह । अब वह जहा मन चाह, वहा बर क भन‍दर घम-फिर सकता ह। तो भी वह मोना स शायद दवी मिनता और मिलनता तो शायद दवी बोलता ।

एक दिन वह शरकल दधशाकषा क दवार आराता ह। उसकी मटटी म कछ था।

बह हाथ फललाकर पछता ह--जानती हो यह कया ह ?

रोबी की चादी की घडी |! झआरकर क पास यह कहा स १

'कददो स मिली १?

'मनहस क मर घर स । मर एक परा० लदपाठी न भजी ह ।'

३२ कटील तार

“उनक पास हा स आई ?' आसकर परी बात सनाता ह ।

अगरजञो क गरनतिम हमल की शरआत म उमपतका मितर एक खाई म घायल होता ह। सिर पर स सन-सन करती हई गोलियो छट रही ह । व छापनी मा को याद करता हझला पडा रहा। लशकर चजना गया। शरचानक उसन एक अगरजञ यवक को बोलत हए सना--दखो, म हस यवक को चीखता हआ नही सन सकता । म इस भीतर लाता ह। फिर वह अगरज

सनिक अपनी थाई स बाहर निकलकर शऑॉस‍कर क मितर को भीतर ल आता

ह। परनत एक जमन को बचान म वह रचय घायल दवो जाता ह। अगरज सनिक उन दोनो को वददी एक गढदद म पास-पास सला चलल जात ह। जान कब तक व दोनो वही पढ रह । शरॉसकर क मितर न होश म शराकर पाया कि.

बह खद तो बच जायगा ; पर उसका अगरज साथी मरनवाला ह। उचच

पटदादर यवक न ( फोज म लफटिनशट था ) जोर लगाकर अपन जब भ हाथ डाला शोर एक घडी बाहर निकालनी। फिर उसन ऑसकर क कहा --- भाई, इधर दखो ! यदि तम जी जाओ ओर अपन घर पहचो तो मरी वढधिन को यह भज दना । वह नोकाजो म रददती ह ।'

मोना सारी रात बिसतर पर तडपती रहती ह। डर स अधर म दखती

ह।अगरजञ सनिक क पनन की बात याद कर वह पिता को घडी नही दिख-

कषाती । यह उस छिपाकर रख दती ह। मोत क पास स आई हो इस तरह वह घडी को दखत डरती ह ।

अचानक उस खयाल आता ह कि यह कस सभव हआ ! दो वीर एक गददद म पढ हए ह। एक को नोकालो म बसनवाली बहिन याद भराती ह

और दसरा जरमन क किसी घर म बसनवाली मा को याद करता ह। य दोनो कषस मिनर बन सकत ह! बीच म कौन-सा शतान विष की यह गाठ बोता ह !

ह ईशवर यह आदमी लडता क‍यो ह (?

कटी ल तार ३३

द मोना महसस करतो ह कि प‌याहती का परारमभ हो गया | वह भतरी

भाति जान गई कि आसकर को वदद सतत झोर रात म सो जान क पहल तो

झचशय याद कर लती ह। सबर जगत भी पढहली याद अर.सकर की दी

आती ह । म कहा जा रही ह १'-.६स परशन का खयाल आत ही उसका हदय

तडप उठता ह । और वह सपरक नही पाती कि कया किया जाय ! बाजी उसक हाथ स निकल गई । उसक विचार उस डरात ह। कजजा और भय स उसका गला रष जाता ह ।

एक बार फिर वही मनकस किसान मोना क पिता स मिलन शआाता ह झोर इस बार दिन-दहाड लनदनपर आकरमण होन की बात सना उस आधात पहचा जाता ह।

झाकाश सवचछ था। दोपहर का समय था। एक पराथमिक शाला म

तीन म छः वरष की उमर क लगभग एक सौ बालक छटटी क पहल पर।रथना कर रह थ। पराथना समापत होत न होत आकलाश स दो बस गिरत ह। चोट स दस बालक तो डसी समय सर गय ओर पचासक घायल हो गय । जमन वाययानो स स य बम गिर थ। बह भीषण हतया-काणड आखो स दखा

नही जा सकता था। कोमल कलनियो जपत बालको क कचल हए अगो को उनकी माताए तक पहचान न सकी । व घर स दोडी-दौडी आई, तब तक तो

य खन स तर-बतर दवो गय थ। डस बातनी किसान की बात समापत होन आई कि मोना घर स चकनी

जाती ह। करोध स कापता हआझा वदध अपनी टॉग पछाडता ह, लकडी

पटकता ह और शाप दता ह । सन मोना कॉप उठती ह। 'झर, सतयानाश हो जाय इनका | आख फट जाय इनकी ! इनक शरीर

म कोढ फट, कोढ | कोई न बच ! भगवान इनस राई-रफतो का लखा क ! झोदद, नराधम |! पापी |?

३१४ कटी ल तार

लन‍दन की सरकार को इसका हचित उततर दना चाहिए। एक अगर जञ

बालतक क बदल हजार जरमन बालको को तोप क मह उडा दना चाहिए ।

मोना पहल तो बदध को शान‍त करन का परयतन करती ह और फिर

सममभाती ह | जो अगनजञ बालक मार गय, उनह गलाब क फल जस जमन बालको क मारन स लाभ कया दवोगा !

बालक तो निषपाप ह...' <

(निषयाप ? सदा ऐस ही निषपाप रहग ? शराज जो कछ उनक बड-बढ

कह रह ह, बड होकर व भी यददी करग । द भगवान, त कहा ह | इन सबको

धजञ म मिला द ।

"पिताजी, यह आप क‍या कह रह ह १ (कषयो न कह ? पर छोडो, तभ यदद हो क‍या गया ? त इनका इतना

पकषपात क‍यो करन लगी । तर शरनतर म ऐसी कया भावन। ह जो इतन हर-

फर हो रह ह ९" य शबद भाल की नोक की तरह उसक हदय को छद दत ह। वह

कोठरी स बाहर भाग जातो ह ।

परनत थोडी ही दर म उस दसरा विचार शराता ह। पिताजी क करन म

झठ दी क‍या ह ! बालको को हतया ! अर, यह तो शतानो का ही काम ह !

सोम को जब वह बाहर निकलती ह तो आरकर इस कम॥उड म स

बाहर आकर मिलता ह। मोना निगाहद बचा लती ह ; परनत आरासकर उस

खदी रखता ह भोर कहता ह भखबार म समाचार पढ ( पवढ (!

मझ, उसझा दःख ओर लजजा ह।' यह कहन की आवशयकता नही। कया यह समभव नही कि जनो क

साथ भी हमार भाई ऐसा ही कर' मोना कद दवी दती ह ।

आरकर उस कछ कददना चाहता ह; परनत वदद तो सिर उठाय चककी हटी

जाती द ।

कटी ल तार ३५

एक सपताह बीत जाता ह। मोना को ऑसकर क कोई समाचार न मिल | इचछानसार शपान-जान की शराजञा होन स ही वह उसस बचता होगा !

लनदन म होनवाल उस ककतय क लिए अरब उस कोई विशष दख नही होता | लडाई तो आखिर कडाई ही ह | ईशवर क परिय बालको क आग सभी परकार की विजय हय ह। परनत यदधकाल म इस कौन याद रखता ह। सिवा उस शरकली क कोई भी याद नही रखता कि--बालको की पजा तो

मरी पजा ह ।

य धबद दो हजञार वरष पहल बोल गय ह तो भी...

२५ ५ ९ 2

करिसमस समीप आता ह| तीसरा करिसमस ! मोना अखबारो स पढती ह--पशचिमी सीमा पर दोनो पकष फ सनापति करिसमस क उपलकष म चार

घयट यदध बनद रखन क लिए राजी होत ह। आज स दो दजञार वरष पव को

एक घटना का समरण शराज भी कितना पविनन ह। उसकी रमति म यदध- विराम ! तो छावनी म भी ऐसा ही कोई भरायोजन कयो न किया जाय | वहद झॉसकर को अपन विचार बतलाती ह |

बहत उतम | ऐस कह परसगो म भी ईसा न जो जञान दिया, उस पातनन की इचछा बढ सोभागय की बात ह । जल-अधिकारी मरी बात शाति स सनता ह ओर वह हदय का मी बडा भकता ह। वह यह सनकर अवशय दी

झाननदित होगा ।*

काम मिलन क बाद स कदियो म कछ मनषयता आरा गई थी। उनक मनोविनोद क साधन भो कछ ससवत दो गय थ। परतयक कमपाउणड क

झतग-अलग सडल थ। सिपाहियो को भी खयाल आराया कि हमार भी ऐस

मडल हो तो शरचछा रह और उनक भी मडल बन | परतयक मढलल तरदद-तरद क कारय-करम की योजना क( एक दसर को आननदित करता था।

ऑसकर जल-अधिकरारी को करिपमस की याद दिलाता ह, और उसक डपलकष म कदियो क तषिप किसी धारमिक कारयकरम की योजना बनान क लिए

३६ कटील तार

पराथना करता ह। जल-अरधिकारी उसकी परारथना सवीकार कर लता ह। उसकी इस उदारता स ऑसकर की हझख भीनी हो जाती ह--ओऔर फिर एकाएक

लोगो की शभ वततिया जाग पढती ह। सभी परमातमा की पराथना करन

लगत ह--- जय हो ! उस सवशकतिमान परमशवर की जग हो | मानव-जाति पर

शानति और शभचछाए वयापत हो !

मोना इस परारथना स गदगद‌ हो जाती ह। वह तदककीन हो खडी रह जाती ह ।

वदध पिता तो खराट की नीद ल रहा ह।

रात को गयारदद बज कमर म मोना बठी ह। तार चमक रह ह । चोद का

परण परकाश खिडकी की राहद कमर म था रहा ह ओर चटाई पर चादनी

बिखर रही ह। बाहर छावनी भी चादती म नहाकर पविननता म मगन हो रही ह ।

चमरत बरफ म छावनी सफद दीख पढती ह। इस वरष को छोड पिछल तीन साल बिना बरफ गिर हदी बीत थ । सरदियो क इस शवत आचछादन क

नीच मकत नागरिक ओर बनदी सब भद-भाव भल एक हो गय ह । सबयाट को रात ह ।॥ हवा तक आावाजञ नही करती। पाचवव नमबर क

कमपाउणड स शर।घ मील की दरी पर एक कतता भ कता ह | नव वरष क परथम परहर की परतीकषा म पचचीस हजार कदी नीरचता-पवक जाग रह ह तब साडियो म एक माशर झिललियो की आवाजञ क सिवा और सब शान‍त ह। ऐसी ही दसरी आवाजञ परशानत समदर को और सोय हए वदध क खररादो की ह; परनत इसस तो शानति और भी गमभीर दवोती जा रही ह।

मोना जागती बठी ह। दोहर झाध शरीर तक खीच बिसतर पर आख

मीच वह बठी ह। एक कषण उसक मन म होता ह कि वह रॉबी की घडी निकाल उसम चाभी द और अपनी कलाई पर बाध ; परत दसर ही कषण वह 'मा' की आवाज सनती ह। वह वसी की वललीददी बटी रह जाती ह।

ह हा कटील तार

पीछ का गिरजाघर एक मील दर ह, फिर भी मोना को विशवास ह कि इस गसभीर शानति म उसक घयट की आवाज अवशय सन पडगी ।

उस फरास की रण-भमि का जयाल हो आता ह| वहा सी ऐसा ही पवितर

शानति छाई होगी | तोपो की गडगडाहट और बम क घढाक बनद होग । मातर खाइयो की ओर स अवरदध मानव-समदर का घीर-गभीर घोष गज

रहा होगा और उस पर सनिगध घवतन चादनी का चनदरातप फला होगा । जय हो उस परभ की! परम परममय उस परवरहम ही जय हो !' बारह बजन म पनदरह मरिनट का समय द ओर वह खडी होकर खिडकी

क पाल जाती ह। पीडित औरौर तरसत जगत‌ पर आज झानय!ला यह सोस‍य,

ईशवरीय और रदवसयमय परकाश सथायी हो ।

उसक चहर पर परकाशित करता हआ चाद चमक रहा ह। बरफर को कफचलती हई 'कच' की धवनि-जपी उस सन पढती ह। सतनरियो की बदली होती ह । नई टरडी उनकी जगह ल रही ह। हल फच की वयवसथित पद-

धवनि क पीछ दसरी अरवयवतथित पद धवनि सन पडती ह। यदद पद‌-धवनि मोना ह खतो स काम करनवाल मजरो की ह ।

ओर तब,-- धीसी दवा क सन‌-सन‌-सी पीकष क दरसथ गिरजाघर स घणट की शरावाजञ

सन पडती ह। एक, ..दो. . .तीन ...की सधर धवनि म बारह बजत ह और साथ दवी घतिपाहियो का एक झणड एक साथ गाता ह---

“॥टा धीरट आठ ५ णा पी ढराणपारत ( जब बरफ भरती पर छा जात ह )

फिर तीसर कमप।डणड म स गीत की धवनि सन पढती ह। मोना को

कगता ह कि शरॉसकर इन सब म ऊच सवरो स गा रहा होगा---

[८९9 था ला5छए बात ८एशा फिर पाचव' नगबर क कमपाटणड स गीत की एक कडी गाई जाती ह।

पाचव क बाद दसर, दसर क बाद पहल झोर पहल क बाद दर क चौथ

३८ कटी ल तार

कमपा: णड म स अतञग-अलग समहो म एक-एक कडी गाई जाती ह। और

अनत स पाचो कमपाउणड एक सरवर म गात ह।

०, ३०८|-- 00॥7 5 ही€ जितठ ० तारा, ( नोएल, नोएवट--इजारल का राजशवर जनमा »

गीत गाय दवी जा रह ह। समीप स ओर दर स एक दवी सवर म सन पढता ह --

४ | 84 ५70|५ ॥0॥(, . सनत ही मोना की अखो स अशरपरवाह फट निकलषता ह। अब डसकी

समझ म गराया कि क‍यो उसन ऑसकर को इस विषय की सलाह दी और

कयो उसन इस सदप सवीकार कर लिया । बस, अब यदि शानति सथापित हो

जाय तो इन दोनो को बिललग रखनवाली कटील तारो की यह बाढ टट जाय।

झो ईशवर | उसक शवाघोचछ वास स खिडकी का काच घधला दवो गया ह तो भी वह

सपषट दख सकी कि कोई मकान की ओर आा रहा ह। वह कोई परष ह और शराबी या घायल को तरदद लडखडाता हआ चल रहा ह। वह मखय दवार क पास ही झा खडा हआ | क‍या उस भरम तो नही दवो रहा ह १ नही तो ; पर

कया कददा जा सकता ह! ऐसी दशा म वह कॉपती हई दरवाजा खोलन

सीढी की ओर बढती ह ।

टबलन पर जललती हई बतती क परकाश म वह बादर दखती ह। सचमच

कोई बाहर आकर खडा ह। झॉसकर ९

ऑसकर क एक हाथ म टरमन वकष की शाखा द और दसर म हलक नील रग का काशज। उसको टोपी कपाल स उची खिसक गई ह शरोर लत।ट पर पसीन की बद ह। उसकी आख फट गई ह ओर चहरा सफद पढ गया ह।

भीतर आा जाऊ ९१

हा ; अवशय !!

ऑसकर घर म गरता ह। इसझ पहल वह अनदर कभी नही शगराय! था ।

फटील तार ३९

बदध क बठन की परानी और टटी हई करसी पर वह बठता ह। मोना न पछा- कया ह ९

उसक हाथो म कागज दत हए उसन कहा--दखो, शरभी दवी आया ह । झाज रात की डाक दर स आई | उसकी शआचाजञ धीमी होती जा रही ह ।

मोन। चिटठी हाथ म ल कषती ह। चह अगरजी म ही लिखी हई ह । उस दीपक क पास ल जाकर मोना पढती ह।

“अमरिकन राजद तवाघ--मनहम ।

परनदम म सरा घर ह ।' <६:तर क साथ लिखा जाता ह कि... धवस | बस !?

मोना पनन का बाकी अश मन ही सन पढती ह। अमरिकन र। जदत न

झसकर को लिखा था कि आधी रात क समय शअगरजञो की झोर स किय गय

एक हमल म वह घर बम की चपट म शरा गया, जिसम उसकी मा ओर छोटी बहिन रहती थी ।, . .जिस खणड म उसकी बहिन सो रददी थी, बह नषट हो गया ।

मोना चीज पडती ह। शरोर वह ऊच सवर म पढन लग जाती ह ; छोटी बचची का कही पता नही । ऐसा विशवास ह कि. , “बस करो | झाग मत

पढी, मत पढी ।!

दोनो क बीच कषण-भर को मौन छा जता ह। कवल बीच-बीच म झोसका की रघो हई सिसकिया शरोर मोना क शवासोचछ वास उस भग करत ह।

'तमदारी बहिन ही न ९

'झ उसक बार म तमह उस रात कहन ही वाला था।' जानती ह?-- मोना बोली। उस अपन उन कहद हए शबदो की याद

करक पशचाताप होन लगा ।

कवल दस दवी वरष की थी। दसरो को भी पयारी कगती थी। परति- सपताह घसीट-घसीटकर वदद अपन दवाथो मझ पनन लिखती थी ओर अपन बनाय हए चितर भजती थी।

९२० कटी ल तार

पिताजी तो जब वह कवजञ दध-सही बचची थी, तभी मर गय थ। उस दिन स म ही उसक लिए भाई और पिता सब कछ था ओर शरब, . ,नही,

एकदम वयथ, सभी कछ वयथ ह । मोना भी कछ नही बोज पाती। आसकर कददता ही जञा रहा ह--वयथ

ह, सभी कछ वयथ ह । वदद इथलियो म मह छिपा लता ह और मोना अगलनियो स स बहत

ओऑसञरा को दखती ह ।- भिशनोन | बहन मिनोन !

तब भी मोना चप दवी रदती ह। अनत म आसकर उठ खडा होता ह --

कया कह १ अब मरा कोई नही रहा । उसक चहर पर भयकर निराशा फल रही ह। वह जान क जलिए पीठ

फिराता ह । मोना क लिए अब असमभव ह। वह एक ऐस वगरशाज शरावग

स जो न रोका जा सकता ह न वश म किया जा सकता ह ओर न धीमा दी

किया जा सकता ह, उसक गल पर हाथ डाल दती ह, "ऑसकर, शरोषकर !? इदसो बीच ऊपर को मजिल पर सोया वदध गीतो की धवनि स जाग जाता

ह। उनह सनन क लिए वह बिसतर पर बठ गया। पराथना-गीत सनकर उसका हदय पहल तो नमर दवो जाता ह; परनत बाद म और भी कठोर हो पढता ह । उसका मसतिषक भभक उठता ह। शानति ? उसक पयार पतर को

मारनवाल जरमनो का जहा तक सतयानाश न हो जाय, उस शानति नही चाहिए । शभरावश का दोरा खतम होत ही वह थोडा शानत दो जाता ह। इसी

समय निचली भजिल पर उस खटपट की आवाजञ शरोर किसी परष का कणठ- सवर सन पढता ह | बीच-बीच स मोना क बोढान की आवाज भी झा जाती ह६। उसन सोचा कि मकस कमारिकाए बढ सवर नव-वरष का अभिननदन करन आई होगी, पर साथ ही उसक मन म एक बरा विचार उठता ह भोर वह जोर लगाकर बिसतर म उठ खडा होता ह ।

बिसतर म स उठकर वह अपना लबादा पहनता ह भोर लडकी क लिए इधर-उचर भमटकता ह। शरोर फिर सीढियो की ओर बढता ह। सीढियो क

कटील तार 28

ऊपरी भाग पर घोर अरनधकार छाया हआ था। परनत रसोई-+र म दोपक जल रहा था और उसका कषीण परकाश जीन पर पड रददा था। वह बडी कठिनाई

स नीच उतरन लगता ह। ; झआसकर ओर मोना को नही मालम कि व कब तक एक दसर स अलतिगन

म बध रह । शायद एक दवी कषण तक |! परनत व अपन पीछ घधम-धम को बढती हई शरावाजञ को रनकर चौक उठ। मोना न दखन को प!छ की ओर मह फिराया और सीढियो पर अपन पिता को खडा हआ पाया ।

बदध का चहरा परत जघा हो गया । उसझी आखो स चिनगारियोा निकत रही ह, फट मह ओर कॉपत झोठो स जस व कछ बोलन या शवास लन का परयतन कर रददा ह। अनत म वह दोनो परयततो म सफल होता ह और खब जोरो स चीखता हशरा भोना पर अपना गससा उतारता ह।

'कलटा | वयभिचारिणी । कया यही तर परिवरतन का कारण था ? तरा भाई तो फरानस क मदानो म झतय की गोद म सोया ओर त एक जमत की

भनाओरो म ! तक शानति न मिल ! परमशवर कर तरा सतवानाश,..! बढ का गलला रच गया | उसक चहर का रग उड गया ओर वह लड-

सढाकर भरती पर गिर पडा ।

मोना क सभलन स पहल ही साथी किसान घस आकर बढ को खडा

करत ह। मोना दलरा दरवाजा बनद करना भल गई थी। वही स उनहोन बढ का चौखना पछारना सना और भीतर दौड आय ।

.. व सब मिलकर बहोश बढ को बिसतर पर सलात ह। मोना सनन खढी ह कि सिर पर गाजञ ही टट गिरी हो । एक डरावनी काली छाया डस घर

ह। अनत म अपन शरापको सभाल वह आसकर को दखन इधर-उधर निगाह फिराती ह ; परनत वह तो कभी का चला गया था ।

७9२ कटी ल तार

9 ।

दसरो बार को बहोशी क बाद बढा बिना कछ बोल ही मर गया । मोना

उसक पास सतत जागती बठी रही | बढ को होश म शराया जान वह अनत:-

करण स पराथना करती ; परनत मन म ऐसा भी कछ भाव रहता कि वह होश म न अआय त अचछा ।

बढ का अत-काल आ पहचा। पशचातताप क आवग स मोना वयाकलञ हो

गई। वह किकततवय-विमद हो गई और साध ही उसक मन म यदद भाव भी

ह कि उसन कछ भी बरा नही किया ।

जग क शरगन म सबरा भरन को ह । मोना अकली बढ क पास बठी

ह। पित-परम क परचड आवग क वरशीभत हो वह चिहकना पढी--पिताजी, वह मर वश की बात न थी । म अरसदवाय थी मर पिता ! मझ कषमा कर दो न पिताजी |

बढ की आख सदा क लिए बनद हो गई। मोना निशचकष ओर सतबध

बठी रही ।

बढा कक पटरिक क कबरसतान म अपन वशवालो की बगल म दफना दिया गया । जमन कबरो की बगल म दी उनस घणा करनवाल बढ की कबर

खोदी गई थी ।

बढ की झतय छा समाचार सनत ही कई रिशतदार मातम मनान आा पहच। इसक पहल मोना न उनम स शरषिकनश को नही दखा था। आज उनक आन का कारण वह शाघर ही जान गई | कोई काका था तो कोई फफा। कोई भतीजा था और कोई भॉजञा। कोई मामा क साल क फफ का बहनोई

था और कोई दादा क भाज का काका था। य सबर समबनधी कमप-अधिकारी

स शराजञा ल कषि-घर म आ इकटरा हए। इनक साथ एक पादरी भी था।

सभी क जोर दन पर पादरी न बढ का दान-पतर पढना शर किया | उसम

कवल एक लकीर थी --- मरी समसत सपतति म शरपनी बटी क नाम कर जाता ह।

यह सनकर सभी सबधी जलन-सन उठ--'सभी अककजी हस छोचऋऊरी क

कटील तार ४३

माम १ बाया हम पर बहत पयार रखत थ। अवशय इसस हमार लिए भी

कछ लिखा ददोगा | कया इसम दसर किसी का कछ भी दकर नही ह १! 'नही ।

'उनक समारक क लिए ही उनहोन हमार नाम कोई चीज लिखी दवोगी !” जो नही | दोहतो, म सच ही कहता ह । इसम ऐसी कोई बात नही

लिखी गई । सभी कछ मोना क नाम ह।' 'ठीऋ, तब थही उनह भोग।' ओर व सब जान क लिए उठ। जब व सीढिया उतर रह थ, मोना न सना-- बढा इस छोकरी को पहचान

नही सका | यह तो म कददता ह कि जिस दिन यदद छिनाल सब मालष-मतता किसी हरामखोर क दवाथ म सौप दगी, करतन स भी बढा चीतकार डठगा, यदि

ऐसा नही तो म शरपना नाम बदल द ।

मोन। अगीठी क पास हाथ फलाय बठी रही। रात बहत बीत चकी, अगीठी म क कोयल भी बक गय, फिर भरी वह उठी नही | उसी समय उधन सडक स खत पर काम करनवाल मजरो की बात-चीत सनी--

'यह ताढ-सी कषमबी ओर पटिय सी चोढी | इसी न बढ को मारा ह । 'झोर नही तो कया ९ ह 'ऐसी छो #री क हाथ नीच म तो काम नही करन का ।? 'हमारा भी यदी विचार ह।' 'अर, कसा जमाना आया ह! एक ब-घर-बार क जमन पर ही फिदा हो

गई ! न तो बढ बाप का खयाल किया शरोर न दश का दवी। रद अपना दी

खबाल भल बठी । राम | रापत !! इन मजरो न बढ की ग।लिया सनी थी। कछ इधर-5उघर स भी सन

लिया था। ओर अब बात म अपनी ओर स नमक-मिच लगाकर इधर उधर फला रह थ ।

एक-दो सपतह बाद किपती न किसी बहान स व मोना स छटटी माग रघाना होन कग । मोना बिना कछ पछ-ताछ डनका हिसाब कर दतो।

9७ कटील तार

तीन दिन स वह शरकली ह। परतिदिन जल-अधिकारी उसक पास आता ओर परम भर शबदो म कहता--बहत बरा हशरा बटी ; परनत शरव अफसोस करना वयथ ह, त अकली ह और कोई तर यहा कास करन नही झायगा। मरा एक विचार ह। यदि तझ कोई अपतति न हो तो जल क सिपाददियो को

तरी सहायता करन क लिए भज द

जी नही | ऐसी कोई आवशयकता तो नही ह ।' 'तो किसी जमन को. . .'

दोनो शबदो पर जञोर दती हई वह बोली --जी नही |

'परनत सोच तो सहो बटी ! इतना बढा खत ओर ...! 'मरी शरीर मजबत ह, म ही अकरली सभाल लगी दादा !!

यह अरसमभव ह। सोलदद तो गाय ही ह।' 'यद तो कछ भी नही। इनम आधी तो ढॉठ ह, उनह चरन भज दगी।

बाकी को म सभाल सकगी ।? 'फिर भा त खरी ह। ऐस जञोगो क बीच अरकल रहन म तझ डर नही

मालम होगा ?'

'म तो ऐसा कोई कारण नही दखती ।' छः महीन बीत गय। फरिपमस क बाद स शआसकर दीखा ही नही ।

उसकी शकति शरोर सचचरिननता की अचछी धाक थी और इसी लिए वह छावनी म कहो भी सवतननरता-पवक झा-जा सकता था। यह जानकर मोना रोमाटडित हो जाती ह। साथ ही वह एक परकार की चोट का अरनभव करती ह। कटील तारो क फलाव तक झान-जान की सवततरता होत हए भी शआरासकर उसस सट क‍यो नही करता ९ यदद बात सोचकर मोना को कई बार दद होता ह। साथ दटी यह सोचती ह कि यदि ञआरासकर आराया तो वह उसतक सामन खडी

नदी हो सकगी, वहा स भाग जायगी ।

फिर भी जान क‍यो उस इस बात का धयान बना रददता ह कि आसकर सदा उसकी बगल म दी ह। वह कितनी ही जददी कयो न उठ, री दवारा

कटील तार घ५

नही हो सकनवाल खत क मोट काम कोई कर ही डालता ह। और वह 'कोई' दघरा दो ही कौन सकता ह।

किसी अजनौकक और अचशय शकति की परणा स वह उतसाह स भर

दिन बिताती ह । रात म मीठी नीद सोती ह । परनत एक दिन ऐसा आया

कि उसकी सभी हिममत छट गई । कमप म शरफवाह फलन लगी कि पशचिमी सीमा पर दशमनो की ओर स

एक जबदसत इमला होनवाला ह। ओर उस निषफलन करन क लिए सरकार न बड पमान पर तयारिया शर कर दी। परतयक कशल और विशवासी आदमी सना स भरती कर लिया गया | छावनी क सभी परान सिपाही फरोनन

म बला लिय गय । उनकी जगह पर जो सिपाददी आय, व एकदम शरससकारी, लटर और चरितर-हीन ह | जलखान पर उनही की रखवाली ह ।

इन नय सिपादहियो का हवलवदार परा राधस था। उस कषिघर क

पडोस म दसर नमबर क हात स रखा गया। उसक शबद उसकी चरितन-

हीनता क दयोतक थ। उसी क मातहत लोगो का कददना ह कि वह एक

शराबखान का कलाज ह शरोर एक लदकी पर अतयाचार करन क अभियोग

म सजञा भी काट शराया ह।

मोना महसस करती ह कि वह इस लफग की निगाह पढ चकी ह। वह मोना क बार म अकसर पछ-ताछ किया करता और बर डहदशय स उसका पीछा भी करता। कभी वह मोना क सनत उसकी गनदी मजाक भी

उडाता । बहान बनाकर वह कषिवर म ताक-माक करता ओर बीत करन का

परयतन करता | एक रात तो उसन दरवाजञा खटखटान की भी हिसमत की ।

राव क समय छावनी म परण शानति ह और किसी की छाया तक नही दीख पडती । बिना इस बात की जॉच-पडताल किय कि दरवाजञा खटखटान

बाला कोन ह, मोना न दवार खोल दिय। हवलदार भीतर परवश करना

चाहता ह ; परनत मोना डॉट दती ह। वह चिरौरी करता ह; फसलाता ह

और घमको दता ह। अनत स कबदसती घस आन का परयतन करता ह ।

४६ कटी ल तार

यही बहत धीर-धार बोजला--बवकफी मत कर ; परान द मही तो, , . मोना उसक सिर म दरवाजञा भिडाकर बनद करन क लिए परा जोर

लगाती ह । उसम परचणड शकति ह ; पररत विरोधी उसस भी अधिक शकति- शाली ह । वह मोना को हटा सकन म सफल हआ | उसी समगर उसक पीछ एक भरोर वयकति दीख पडा। मोना भविषय की कलपना कर कॉप उठी।

परनत पोछ आानवातता ऑसकर था। वह दोनो हाथो की बाह चढा इस

बदमाश की घटी पकढ सडक पर उठा पटकता ह | हवलदार दरवाजञ स पनदरह

फट दर जा गिरता ह। थोडी दर तक वह बहोश पडा रहता ह ; परनत

अनत म बिना चो-चपड किय चलन दता ह। आरॉपकर भी उसी समय मोना स

कछ कह बिना दवी पीठ फिराकर चलना जाता ह।

44 ५ २५

मधय गरमी क दिन ह। सथानीय घडदोड क खल शर हो गय ह।

कदी उसम अननद-पवक भाग लत ह, परनत अधिकारियो क मतानसार य कदियो की समझ स पर ह । सिपाहियो क परिवरतन क बाद स छावनी का चरिनन बहत ही अरषट हो गया । कोई पकड न पाय इतनी सफाई स शराब भी शआरान लगी ह। 'अमीर लोगो की बरक' नाम स पकार जानवाल पहल

नमबर क अहात म पहली बार पकरढी जाती ह।

अधिकारियो को सनदद होत ही व एक नजरकद अमीर तसमब की ततलाशी लत ह। वहा आध दजन आदमी बरी, शमपन ओर सिगार भरादि पीत हए पकड गय । इसक बाद तो सार बनदीगह की बारीकी स तललाशी ली गई ; परनत उसल लाभ कछ भी नही हआ । तलाशी लन स दिलल चराता हआझा

सिपाहियो का हवलदार किसी तरह का सपषटीकरण नही कर पाया ।

दसरी बार दसर नमबर क कमपाउणड स इसस भी भरघिक बरी हालत म कदी पकड जात ह। उस शरहमत म जयादातर कदी खासी थ । एक बार उनक बीच ताडी क नश म दगा दवो गया ; परनत उस रगड म स भी

विशष किसी परकार की जानकारी नदटो मिल सकी ।

करष)ल तार ७७

इन लोगो को इसक लिए पस कहा स मितनत थ ? छावनी म शागतर कस शराती थी ९ जल क कारखान शरोर खतो म काम करन पर उनह जो प घा

मिलनता, वह बहत हो कम होता और फिर वह जलन की बऊ म कदिया क नाम जमा हो जाता जो उनकी मतति क समय मिलनवाला धा। दवढादार स

जवाब तलब किया गया, पर वह थोला ही नहो। कदियो न भी कछ नही बतलाया ।

एक दिन सबर उठत ही मोना असकर को दसर कमपाउयड क कदियो

स कछ कहत हए सनती ह । खतनासी उनमतत की तरह मदठिया बॉधत हए इस तरदद का भाव बतलला रह ह - दख लग, दख पाजी को। थोडी दर बाद

हवतलदार पहली कमपाउणड की शोर स शराता हशरा दीखता ह। चिललाकर वह लोगो स वरखर जान क लिए कहता ह। उततजित-सा वह असर की

ओर घमता ह । फासला अधिक होन स मोना उनकी बातचीत सन न सकी ; परनत आआासकर बिना कछ उततर दिय ही चला जाता ह ।

एक घणट बाद जब कि बड गौशाला म काम कर रददी थी, उसन दसर नगबर क कमपाउणड स चीजन-पकारन को तीखी आवाज सनी। काम यहा

छोडकर दरव',ज म शरा खटटी हई। आआासकर तिन लोगो को समभा रहा था,

व शरोर दसर सौ-ए% कदी एक आदमी क पीछ पागल शिकारी कततो की तरह

पड थ । कद। दत पीसत ह ओर चिलज'त ह ओर एक चीखत हए अदमी क पीछ भाग-दौड कर रह ह। उनहोन उसका कोट फाड डाला ओर ऊपर का शरीर नगा कर दिया। उसस बचन क जञिए वह दधर स उधर भाग रहा ह । उसझी पीठ पर मार पड रददी ह। वह गिरता ह, लात खाता ह, ओर फिर उठकर भागता ह। शअहात क दरवाज पर खड सिपाही उस छडान भाग आत ह। व गोढी चलान का डर बतलान क लिए राइफल दिखलात ह, परनत

कद। उनकी राइफरल ही छीन लत ह। व वहा स भाग भात ह। भयानक शोरगल हो रदद। ह । सारा शरददाता कोलाइल ओर वोढ-फोड की झावाज स गज रददा ह । 'चोर | बदमाश | पकडी | मारो |[* क‍

८ कटी ल तार

मोना को दरवाज पर किसी न नही रोका । बिना कछ सोच-विचार वह

दौड पढती ह। उस डर हआ कि ऑसकर पर शराफव आई ह। शराब क नश म कमत बाह चढाय कदियो को अपन सजबत हाथो स ढकलनती हई बह झाग बढती ह ।

“हटो, खबरदार जगली !'--परनत उसकी शञआवाजञ स अधिक तो उसक

मजबत शरोर स ही व कञोग पीछ हटत ह। ओर मोना उस हतभाग क

समोप जा पहचती ह| वह उसक चरणो पर गिर पडता ह। उसक सिर ओर

मदद स रकत बह रददा ह और वह दया की परारथना करता ह ।. , . वह वयकति वो हवलनदार था।

जब उसन अपन बचानवाल को दखा तो पाव चमकर बोला--मा,

मझ बचा !

इसी बीच पढोख क अहात स सशसतर सिपाहियो की दकडी आ पहची। उततजित कदी कषण भर म गायब हो गय । व अपनी जगहो पर पहच कमबतत

ओडठकर चपचाप सरो जात ह । सिपाही हवहलदार को ल जात ह । दिन म मोना सनती ह कि छः आदमियो को पकडकर पील क जलखान

म बनद कर दिया ओर आसकर उनम स एक ह। उसक बाद उस दसरा समाचार यह मिला कि दसर सवर ही उनकी शरदालवत म पशी होगी ।

अआऑॉसकर पर कौन-सा अपराध लगाया गया होगा? अरदाकषत का निमनतरण न मिलन पर भी मोना न डपसथित रहन का निशचय कर जिया ह। उसक

मन म यह शका जागरत हई कि उसक सिर अनिषट क बादजञ मडरा रह ह

फिर भी जान का उसका नथशविय अभरडिग था ।

गायो क रभान स पहल ही वह जाग जाती ह। गौशाला का काम एक- दम समापत कर वदद पीज की 'भोर चकष दती ह। भदाकषत सिपाददिियो और

कटील तार ५९

नागरिको स खचाखच भरी ह। बडी कठिनाई स वह अनदर घसती ह। ओर दरवाज क पास ही बठन का सथान पा लती ह !

उसक परचन क समयर काम शर हो गया था। कदी मच पर खड थ झोर उनकी पीठ मोना की ओर थी । गनद-मल बाल तथा कपडोवाल पाच तो खलासी ह ओर छटा आसकर । सबक पीछ वह सीधा खडा ह। गवरनर भी डपसथित ह । गवनर क एक ओर हाई बलिफ ह शरोर दसरी औरोर जलत- झधिकारी | हवलदार सिर पर मोटी पददी बाथ गवाहो क कठघर म खडा ह। इस समय वह सरकारी वकील क परशनो का उततर द रहा था।

हा, हवलद।२, बतलाओ तम कया कददत हो १

हवलदार साहब, £जर, सरकार, मालिक भरादि अभिननदनो क बाद

छक-फककर सलाम बजाता द और अरपनी बात शर करतम ह। बात कल को ह। समय यही होगा । वढ अपनी दनिक डयटी क झअज-

सार जब दलर नमबर क कमपाउणड म घसा तो बिना किसी परकार की शरतावनी ओर किसी योगय का(ण क बिना दवी उसक ऊपर कई कदी हट पढ।

जवगभग दो सो करदी रदद होग ; परनत परमख उनम :यहा खड हए कदी ही

थ । इनम क पाच तो दसर नमबर क भरदटात क ही ह ओर छटठवा तौसर झददात स दौढकर आझआय[ और उसी न सतरसत अगरशरिक शराफत की। कमप

कषला न होन स उस आन-जान को सविधा द ओर इस सवतनतरता का उसन इस तरदद दशपयोग किया ।

दवाई बलिफ न जिरद को--उमर यदद कस कह सकत हो ! “उसन जो बात कहो, उनह मर सहकारियो न सना; परनत हजर इस

मामल स तो सतरय मन ही उसको जवानी सनी ह ९' कया बात सनी ९?

'हजर, जब म पदल अददात म अमीर लोगो क तमब क पीछ खढा था।

मन इस दसर अददात क लवोगो स कदत हए सना कि मर। खातमा कर दिया जाय ।

५५० कटील तार

गवनर न पछठा--कया तर साथ उसकी कोई अदावत ह ? जी हा सरकार, सकप तो वह बहत ही खार खाता ह । 'हसका का रण क‍या ह ?' “हजर, यह तो म नही जानता ।' “उसका नाम क‍या ह १? 'शॉसकर | हजर ऑसकर !' गवनर न हकम दिया--आसकर दवाजिर करिया जाय । ऑसकर पीछ स सापतन खडा हआ छि मोना की आख चमर उडी। वह

कदी ह, इसलिए उस सौगनध लन की आवशयकरता नही । गवाह क पीजड स बरिलकल नीच खढ होन पर भी उसकी गदन ड.ची

ह। जब कदियो को झोर स जञिरह करनवाला वरकातन उसस सवाल पछता ह तो वह बिना घबराय परया शानति स उततर दता ह ।

'हवलवदार को जबानी तमन सनी १? जी हा १!

“तमहार बार म इसन जो कछ कहा, वह सच ह १! “पक भी शबद सही नहो ह ।' 'डस दिन इस पर जो हमला हशरा, उसम तमन भाग लिया था (? (कतई नही ।! (वो कया दसर कदियो स तमन ऐसा करन क लिए कददा था ९! जी नही | मन उनस ऐसा कछ भी नहो कहा ; परनत हवतनदार को

जसा मन इस समय समझा ह, वसा उस समय समझा होता तो झवशय कहता ।

कया तम बतलला सकत हो कि इस समय तमन उस किस खप म दखा ह !

'कि बह बदमाश ह, चोर ह, यह जञोगो को धमकाकर पस वसन करता ह, उनस बरा बरताव करता ह ।'

कटील तार ५९

“यदि तमन यदद बात पहल जान ली होती तो तम कदियो स कया कददत १ “इसका दम न निकलन जाय तब तह पीटन क कषिए ।! कया तम इस बात को सवीकार करत दवो १!

जजञी हा।'

गवनर हाई बलषिफ की ओर मडकर बोला--कया हसस आग बढना जररी ह ? यह आदमी कहता ह कि इसन शरपराध म धतयकष या शरपरतयकष किसी तरह का भाग नही लिया, परनत हवलदार की बात स कौन-सी बात

विशषकर आधार-भत ह । हाई बलिफ भी इस राय स सहमत ह। बचाव पकष क वकील की

इचछा दसर कदियो की सफाई दिलान की थी, परनत इस बात पर स उनका सजञाया जाना अनावशयक समझता गया ।

सरकारी वकील बोलला--म इन छः कदियो को कडी स कडी सनञा [3

जान क पकष म ह। एक सनिक अफसर जब कि चह अपनी डयटी पर दवो, उल पर हस तरह का बबर आकरमण भयकरतम अरपराध ह ।

जरियो क बीच कछ विचार-विनियम होता ह, जिस मोना सन न सकी। हाई बलिफ निरयाय सनान क लिए खडा हझा।

'यह एक भयकरर अपराध ह। इस तरह की अवयवसथा शरीर मार-पीट यदि जल म चलनन दी जाय तो परी सना उस पर अधिकार पान म असमरथ होगी । इसलिए परजा की सख और शानति क लिए हमारा कतचय ह कि ऐस

सभय कदियो को भी. ..!'

महोदय, एक परिनिट ठहरिए !--किसी नारी क गगभोर कणठ-सवर स

कषण-भर क लिए हाई बलजनिफ की शरावाजञ डब जाती ह । दसर ही कषण मोना मारग बनाती हई आग बढती ह । वकील उसस

परिचित ह । उसका विशवास ह कि वह मकदम को अधिक जोरदार बनान क लिप आ रही ह, इसलिए वह रककर कहता द--गरही वह यवती ह जिसन हवलदार को उततजञित कदय क पज स छढाया था और जिसका

५२ कटील तार

डदलख मन अपनी बात क परारमभ म किया था । यदि समय अधिक न हआ तो बह इसम कदियो क चरितर और हत क बार म कछ बतलायगी ।

मोना बोली---जी नही, मझ कदियो क चरितर क बार म कछ नही कहना ह। म दवलदार क चरितर क बार म बतललाना चाहती ह ।

द जरियो की टबल पर कछ गनगनाहट दवोती ह; परनत अनत म दवाई

बजलिफ की आवाज झराई--तमह जञो कछ कहना हो कह सकती हो ।

मोता गवाह क कटघर म जा खडी होती ह। वह सोगनध लती ह;

परनत इन विधियो स शोर वकीकषो, नयायाधीशो ओर जनता को अपनी झोर ताकत हए दखकर वह काप उठती ह। फिर भी जब उसस १शन पछ जान कषग तो वह बिना को प और सथिरता स उनका उततर दती ह।

“हयबवदार क बार म तमह कछ कददना ह ।'

जञी हॉा।'

'कदना कया ह ?'

(कि वह दए ह और सना क लिए अरपमान-जनक ह ।' गवनर अपना चशमा जगाकर उसकी ओर दखता ह। वह शरारत की

हसी हसकर बोला--तब तो तम सना क बार म कछ जानती हो । तमददारी छातरी पर लटकनवाला यह तमगा कसा ह !

गरदन ऊची कर मोना न उततर दिय!ः--यदद विकषटो रिया करास ह। यदध म यह मर ,भाई को मरत-मरत मितलला ओर बादशाह न इस मर पिता क पास भिजवाया।

गवनर की नाक पर स चशमा खिसक जाता ह। उसका चटटरा कठोर

दो जाता ह। थोडी दर की शानति क बाद हाई बलिफ न पछा--ह वलनदार क बार स ८म जो कछ कददना चाहती दवो, कया बह तमदवारा निजजी अनभव ह १

'ी हा, निजी अनभव ही ह ।' मोना कटघर की सलषारख पकडती ह। उसकी अगलिया कॉप रही ह ।

यदद घोखन का परयतन करती ह ; परनत उस शबद नही मिलत । फिर वह

कटील तार ५३

झाख ऊची कर जस सवगत ही कदद रदी दो--पमम! यह क‍या हो गया। फिर सिर को मटका द बोलना शर करती ह और थलती दी रददती ह। कस हवलदार न उस पर आकरमण किया, कस जब कि वह अकरजञी ओर असददाय थी, उसन घर म जबदसस‍ती घसना चाहा, कस वहद घसन दवी बातञा था कि झासकर न आकर उस धकल दिया ओर उसकी रकषा की ।

अपनी बात को समापत करती हई वह बोली--परदि इसम कोई भदावत ह तो वद दवलदार को ह, आासकर को नही ।

यात समापत होत ही अदालत म गनगनाइट होन लगी। हाई बलिफ

डठा और शरासकर स पछा--कया यदद बात सच ह ? झासकर न उततर दिया--मभ खद ह कि इस महिला ही न यह बात

कही, परनत यह बिलकल सचची ह ।

आख लाल-लाल करता ओर सिर हिलाता हआ दवलनदार चीखा-- मठ, साफ झठ ।

'कठ (--आऑसकर जोश म आकर ओर हवलदार की ओर दवाथ लमबा कर बोला---ताच की जाय | जब मन इसकी गदन पकडी मरी अगलियो क निशान इसक गल म बन गय थ। दख लिया जाय कि व निशान वहा अब भी ह या नही १

हवलदार झपना सिर झोर गदन छिपान का परयतन करता ह। परनत

डसक पहल ही नयाय करनवालनो न उसकी गदन पर चार अगलनियो और एक झगठ क काल निशान दख लिय ।

जब बात यहा तक आरा पहची तो बचाव क वकीजञ न खढ होकर दसर कदियो को सफाई दन क लिए बललाय जान की आजञा मागी !

एक क बाद एक पाचो वयकति खड हए ओर सभी न एक ही बात दददराई जय भाग-दोड हई तो इवलदार कदियो को उस पर विशवास रखन का ऋाशवासन द उनकी आमदनी क पस दक म जमा करन ल जाता ; परनत कभो उसन पस जमा किय दी नही। इस मामल म कई बार कदियो की

५छ कटील तार

जीत हई ; परनत दवलदार सदा ही मठ बोला। परनत अनत म उसकी बदसाशी पकडी गई।

शॉसकर न हस जल अधिकारी स शिकायत करन को सलाह दी ; पर हमन तो सवय उस पकडकर उसकी तलाशी लन का निशचय किया था। यह

तो शराब का नशा कछ अधिक हो जान स इस तरह की जयादती दो गई ।'

हघलदार गरजा--गलत, एकदम गलत । कदियो क पीछ स एक आवाजञ आराई--कछ भी गलत नही ह। यह

झावाजञ कदियो को कोरट म लानवाल एक सिपाही की थी। मच क पिछलत

हिसस स आग बढ वह बोला--डजर, मरा भी बयान लिखा जाय । हवलदार गससा होकर चिललाया--ऐ रडकक‍लीफ, जो कछ कहट सभत-

कर कहना । यहा मठ नही चल सकगा । जी हा, म यद जानता ह। आपकी मठ कितनी दर चककी ? ओर इसी

लिए झापकी बात सच लगती ह ।! २डकलीफ की बात कदियो स मिलती-जलती ह। उसन .बतलाया कि

हवतवदार अपन सिपादहियो को भी हसी तरदद लटवा ह ।

झोर छावनी म शराब आती ह, सिगार आत ह ओर अमीरो की बठक म जो कछ भी भरवाहनीय वसतए आती ह, व सब इसी हवालदार का परताप

ह। इस वयवसाय स उस बहत नफा होता ह। दो दिन पहल इसन खब नशा किया था ओर बक रहा था कि बक म उसक नाम पाच सौ पौणड जमा ह ।

इसक ब।द को: का कराम शीघरता-पवक खतम कर दिया गया। गवबनर को भय था कि और कोई भणडा फटगा । कदियो को एक दिन बनद जकष की सजा दी गई जो व हवालात म पहल ही भगत चक थ। इसलिए उनह पनः छावनी म भज दिया गया।

कोट समापत होत दी जल-अधिकारी न हवलदार स कददा--अब छाबनी: म तमहारी झावशयकता नही। कल ही झपन जान का परबनध करो। शम ह !

कटील तार ५५

तम जस दो-चार नाललायको क कारण दवी सारी जनता को बरा समभन का मोका इन जरमन कदियो को मिला ।

सिपादियो स घिर हए करदी छावनी की ओर रवाना होत ह। ऑसकर मोना क पास ही स गजरता ह ; परनत वह सिर ककाय चला ही जाता ह।

अ।न आप म शरत ही मोना सोचरी ह कि उसन कदियो क लिए कछ नही किया । वह सब तो उसक अपन लिए था। नागरिक उसझ पास स

गजरत हए उत घणा भरी दषट स दखत ह। कोट रो स सभी क निकतलष जान पर दी उधन बाहर निकलन की दविममत की । परनत बाहर दो जलोगो म कणड क कणड सीढियो ओर दरवाजञो क आस-पापत जमा थ। जप ही वदद बाहर निकलली कि लोगो न 'शम-शम! क नार लगाना शर किय ।

'दवोही | दगाबाज !!

'अपन घर म आाग लगानवाली !?

'एक आवार क बचाव म अपन ही दशवासी क विरदध बयान दन म जीभ नही कट गई !'

बढी घरमातमा !!

तव-स ग पतथर पर पानी गिरन स जसी आवाज दोती ह, वसी ही पक-सी शरावाज मोना क पीछ-पीछ शराती ह--रखो वह ह । वह जा रही

ह | भर वह ! क‍ जब वह वककषा की ओट होती ह, तभी आवाजञ आना बनद होती ह।

आधी दर पहचत ही डस जकष-अधिकारी की मोटर मिली। वह मोना स बातचीत करन क लिणए अपनी मोटर ठहराता ह। उसका हमशा का

सनिगभ ओर परसन‍न चहरा इस समय गमभीर और डगन दो गया ह। 'म जानता ह कि तन सब कछ नयाय क लिए किया ह। फिर भी

बहत बरा किया। मझ तर लिए <ज ह। तझ चप ही रहना चाहिए था।' उसझ घर पहचन स पढकष ही करी छावनी म भा चक ह। भदातत म

डसन जो बयान दिया, वह हवा की तरह सारी छावनी म फल गया।

५६ कटील तार

डसक घर पहचत ही दसर अददात क खलासी कदी कि जिनहोन डसक साथ झशिषट बरताव किया था, सिर स टोपिया उतार उसको अभयधना क कषिए‌

आ पहचत ह । मोना न उनकी ओर दखा तक कही। घबराइट और लखजजा

क मार वह धर म घस गई । सारा दिन काम म उसका मन नही लगा। रात दवोत ही बह बढ पिता

की करसी म घमगम स गिर पडती ह। घणटो वह आच क सामन बठी रही।

उस यदध भी याद नही रददा कि सवर स उसन कछ भी नही खाया ह । सब कछ समापत हो गया। बनद मटटी उसन सवय दी खोल डाली |

जिस बात को वह अपन थआप स छपाकर रखना चाहती थी जिसको वह सवय

सवीकार नही करतो थी, वही उसन वलनद‌ आवाजञ म कग-माहिर कर दो ।

मोना शरॉस‍कर को पयार करती ह। अगर ज छोकरी एक जमन को पयार कर ती

ह । जरसनो पर सबस शरधिक घणा रखनवाली मोना ही एक जमन को पयार

करती ह । अपन मन को इस बात को सवय वही नही मानती थी ; परनत झाञ तो यह बात सपतार-परसिदध हो चकी ह। लोग कहत ह कि उसक पिता का खन किया | यदि यह सच ह तो भराज दसरी बार उसन अपन पिता का खन किया ह। ऐसी बात सावजनिक रप स कहकर उसन अपन कटमब पर

लञावनछन लगा लिया ।

'परनत बात मर दवाथ की न रही थी। म अरसहाय थी ।' डसक मसतिषक

म विचार उठत ह; परनत उसी सानतवना फिर भी नही मिलती ।

धकषण भर क लषिए वहद सोचती ह कि उसन अपन आप पर कलक ओढ लिया । उस अपना मह छिपाकर रखना चाहिए। नोकालो म अब वह कस रह सकगी ? परनत दसर ही कषण उसक सामन आरकर आता ह। उस तो

यही रहना पढग।। - उसका हदय रो उठा--नही, नही, यह भी नई

हो सकता |

ऑसकर न शरदालत स उसक बार म जो कछ कददा, उसकी याद भात ही

सिर ऊचा उठा, वह सोचन कषगती ह--पर क‍यो १ इसम बरा ह 'ही क‍या ह

कटी ल तार ५७

सोन क पदल जब वह दरवाज म ताला लगान गई, किवाडो की दराज म उस एक चिटटी खोसी हई मिलली । कदिय| क नोट पर जसा एक पतर था। झकषर अरपरिचित थ ; परनत परिचय की मोना को जररत न थी। वह जानती थी ।

उसम कवल इतना ही लिखा था--खदा दाफिजञ | ईशवर तमहारा

कलयाण कर।

हारदिक आरावग क वशीभत हो वह पतनन को भरोठो स लग। लती ह। दसर ही कषण सीढिया चढत हए उस अपन पिता का समरण हो आता ह। उस पर परानी दबजता सवार हो जाती ह -पिता, परभ मझ कषमा करो। म असहाय ह।

कक... 2००० + 0 ०अनल साय ->कलकक

करितमय फिर आया | यदध-काल का यह अशरनतिम करिसतमपत ह।। यदध म सममिलित राषटरो को शरोर स दो सदिस डाकटर यरोप-भर को जलो का निरीकषण करन क लिए नियकत किय गय ह । नोकालो भी शआाय।

पाचो अहयतो का निरीकषण कर चकन क बाद व दध को जाच करन क

ल८ कषि-पर म आत ह । दोनो खशदिल आदमी ह। मोना उनह अपन साथ चाय पीन का निमनतरण दती ह ।

भोजन-गद म चाय पीत समय व बात करत ह ; परनत मोना जब ददियो की शिकायत क बार म कहती ह तो व उस ओर कोई धयान नही दत । एक तो मह भी -विगाडता ह|

एक कदी कटठता था कि आल सडढ हए होन स खाय नही जञा सकत । जो साजनट उनक साथ था, वह बोला--उसकी बात पर विशवास न कर डउमा | मएछा पककनाय सजा ल | नोती समपाय: खाता शाखा: अभी चाट पय पोगयाप ॥

पषप कटील तार

एक डाकटर बोला--म इतन/ ठो कह सचहता ह कि कदी की बात सच न थी ; परनत साथ ही साजनट का वयवहार भी मानवोचित नही था।

मोना न पछा--कया सभी जगह यही हाल ह १ जमनी क भी यही

हाल ह ९ 'जमनी जसा कपरबनध तो और कही नहो दखा । वहा क कमचारियो क

हदय म कदियो क परति लश-मातर दया नही ह। ओर खासकर अगर ज कदी

तो पशशरो स भी गया-दीता जीदन जीत ह।'

'परनत वासतव म तो यह यदध द दटी ऐसी सतयानाशी चीज | हारनवाल को यह उनमतत बनाकर नषट होन को पररणा करती ह और जीतनवालो को राकषस ही बना दती ह।'

«४ किन सभी जगह ऐसा नही दवोता !!

'नही दवोतवा ? तो, , तो परमशवर की अशरसीम कपा ।'

फिर डाकटर मोना को दधशाला की सफाई, दध की उततमता आदि क लिए धनयवाद दत ह | व पछत ह कि तम अरकली यह सब कस कर पाती

हो | मोना ऑसकर क बार म बतलात डरती ह, इसलिए बोली--प शरककनी

ही सब कछ कर लती ह ।

(वाद १! एक डाकटर बोला--म तो मानता ह कि सचच दि स दो हाथ जितना काम कर लत ह; बिना दिल स बाईस हाथ उतना नही कर सकत । “

सरा डाकटर बोला - लडाई म भी तो यही सिदध/नत काम करता ह । यदध-भमि पर भो यही हआ ह। यही कारण अगरजो की विजय और जलमनो की पराजय का ह।

जरमनी की पराजय ९” मोना बोल उठी--तो कया लडाई समापत हो गई । 'न समापत हई तो अब हो जायगी और बहत ही जढदी हो जायगी।

झधिक हआ तो दशतन एक-आध बार ओर जोर लगा ढग ; परनत उसस यदध क अधिक दिन टिकन की आशका नही ह ।'

कटी ल तार ५१९.

मोना का हदय परसन‍नता स नाच उठता ह। कया यह सचमच समभव ह कि लडाई समापत हो जायगी ? बनद हो जायगी ? शरोद, परमशवर की असीम

कपा | फिर तो उसक ओर झॉस‍कर क बीच कोई भी अडचन न रहगी । झॉरकर जमन होन की वजह स नही ; परनत उसक दश की सरकार क

विरदध मोना क दश की सरकार कञढ रही ह, इसलनिए जनता उन दोनो क

परम को सह नही सकती | डनक शम का रोडा जातिभद नही यदध ह। यदध बनद होत ही सभी कठिनाइया सरकष हो जायगी ।

ह ईशवर. यदध को बनद‌ करा ! यदध को बनद करा | बनद करा । सबरा

होत ही मानो पर थता करती ह। साक पढत ही मोना पराथना करती ह। रात को सफन म भी वह पराथना करती ह : यदध बनद करा !

पिछल साकष की तरह इस साकष पराथना और जजवसो का कारय-करम नही रखा गया । परसग क शरनकल ही छावनी क पिरजाघर म सामददिक परारथना उपदश झोर भजन का कारय-करम ह। बाहर स कोई लधरन डपरदशक भी

झानवाला ह। नय वरष क परथम परभात म मोना अपन एक बजञ को सानी दन जगाक

ककर बाहर निकलली तो |डसन गिरजाघर स भजनो की रागिनी का सवर

सना । बह गीत सनन क लिए खडी रह जाती ह। आनवाल दिन कदियो की

एक टकडी कायकरम म गान क लिए गीत जमा रही ह और शायद आसकर

हारमो नियम बनना रहा ह ।

गीत की भाषा स वह परिचित ह ; परनत सवर झनजान ह। जब वह छोटी-सी गिरजाधर म गाती---

८3 50९ 50णाएी00 50 (५०06 5 ५४... (ईशवर अभी भी उतना ही परभावशाजञी शरोर परतापी ह... ) एक ही भजन, एक ही धरम, एक दी ईशवर, पक ही बराणकरता फिर भी... कितनी दषटता, कितनी मखता | कस कञोग एक दसर स घणा कर

सकत ह ?

६० कटील तार

नय दिन दिन-भर का काम समापत कर जब वह घर स बाहर निककषी तो

गिरजञाघर का घणटा बजञ रददा था भोर करदियो की टकडिया गिरजाघर की ओर हा रही थी । सबक साथ ऑसकर भी था।

पकाएक मोना को एक विचार सका ; जब धर एक ही ह तो वह इनक साथ गिरजाघर कयो नहो जा सकती ? यदि सतरी को आपतति न हो, बह लान द सकता हो, तो हज ही क‍या ह !

म कया कर रही ह, इस बात का खयाल शरान स पहल दी वह ऊपर जाकर गिरजाघर म जान क कपड पददितती ह और तीसर नमबर क अहात की झोर चल भी पढती ह।

छावनी का गिरजञाघर लकडी क बड स गोदाम जसा ह। एक कोन स

छकडी का मच बना हआ द । जमीन पर बठक नही ह। मच पर छोटी-सी रबल क झाग पक लधरन पादरी काला लबादा पहिन बाइबिल पढ रहा

६ । सामन पॉच:-छः सो झादमी कतार बाघ खड ह। उनह दखकर दया

झाती ह । उनस कितन दी बचच ह; कितन ही जजर बढ ह। कितन ही साफ-सथर कपड पदविन ह तो कई क शरीर पर चौथड कञटक रह ह। किन‍ही क पावो म बढिया जत ह और किन‍हो क जतो म स सतरद जगदद

पाव मॉक रह ह । कई न हजामत करवा रखी ह शरोर कई क चहर दवयसनो स काक पढ रह ह। सभी की आख पादरी पर लगी ह| पादरी की आवाज क सिचा ओर सभी शानत ह।

इस शानति स मच पर जान का दरवाजञा, चर‌रर‌' करता हआ खलता

ह ओर आवाज क साथ ही एक खी सभी को दषटि.गोचर होती ह। सभी उस पदविचानत ह। वह थी नोकालो की माता | कषण-भर वह झपनी झोर

कागी निगाहो स वयसत हो जाती ह। फिर वह किसी क हाथ का सपश झनभव करती ह और उस बठन क जषिए करसी बताई जाती ह। उसक धयान म आ जाता ह कि दौड जाकर बगल क कमर स करसी कोन लञाया होगा !

पाठ क बाद भनननो का कारयकरम ह। पहल पदल पादरी गाता ह। वही

कटील तार ६१

गीत जो उसन रात म सना था। जब गीत दवामोनियम पर गाया जान

छवगा, तो इतन आदभियो क बीच भी वह घटन टककर खडी हो गई ।

गमभीर और सपषट धवनि म जरमन कदी वह भजन गा रह ह, तब उसी सवर ओर धवनि म उस गीत क अगरजी शबद सन पढत ह । पएकखसतरी क

कयरसवर म वह भजन अतयनत मधर हो जाता ह ।

2 5९ 50णा०060 50 (500 5 50॥... सभी करदी उन शददो ओर सवरो म तनमय हो सनक लिए मोन दो जात

ह। मातर एक ही रवर गिरजाघर स गजता ह :

८0 5पाट 500णा;०0 57 (500 5 50... .! किसी अनजान पररणा स सभी की भराख ४द जाती ह। सभी क हदय

एक ताल-सवर स तरगित हो उठत ह। कमर की दीवचार परतिधचनित हो गई ह । सभी मौन सतबध खड ह ।

भजन परा होत ही मोना बठ गई ।

अब पादरी उपदश दन खडा हआ | मोना बीच-बीच म कवल एक-दो

शबद ही समर पाती ह | उसकी आख दरवाज की ओरोर घमती ह। आॉसकर वहा खडा ह । सिर उसका ऊचा ह ओर आखो म परकाश ।

परभ, परभ, यदध बनद कर !! 2५ 2 2८

फिर गरमिया आ पहची। सरय उगता ह और शरसत हो जाता ह। पकषी गात और नाचत ह। सषटि परशान‍त भाव स खिलकर माधरय बिखरा रही ह। परनत यदध जहा का तहा खडा ह। “उसका शरनत दवोता दवी नही। वहा सजन

का आन-द नही ; बरन‍त सहार की भयकरता ह। वहा ह दखियो की झाह, दरदियो की चीख। व रिवस डाकटर कहत थ कि भरधिक हआ तो दशमन एकाध बार और जोर लगायगा। वह भी हो चका। एक जबदरत हमतना दशमन कर चक भौर अब तो तजी स व पीछ हटन कग ह ।

छावनी क करदी सभी समाचारो स परिचित रहत ह। फणट पर कडन-

६२ कटील तार

वबासी अपनी सना क भविषय क साथ उनक उतसाह और जोश का भी पारा

इतरता-चढता रहता ह। पहल व बहत बढ चढकर बात करत थ। सननवातत का हदय कॉप जाता । व लोग कहत कि जरमन सना लनदन पर,हमला करन बढ रही ह | वकिघम-परासाद को गोलो स उदशा दिया जायगा । सार बरिटिश

सामराजय को तहस-नहस कर अमरिका पर हमला किया जायगा शर यो सारी दनिया जीत लग : अरसत शरतर उनकी बात ढीली पढ गई ह। शरव तो कवज जमनी की पराजय क ही समाचार शात ह। उनह बडी चिनता ह ।

छडाई का कया होगा ? शनय ही ? ओर दस व यदि इसी तरह बीत जाय तो लडाई का मल कारण ही लोग भल जाय।

मोना की जिजञासा बहत ही तीचर ह। कया सचमच लडाई का अनत दो

रहा ह ? ऑसकर कया कहता ह ९ कयो वह मर पास नही भर!ःता ९ क‍या वह

यो तो नही सोचता कि उसक आन स मझ तकललीफ होती ह। पर अरनत भ ऑसकर शराता ह । रात का समय ह। मोना उसका कमिपत

करणट-सवर खल दरवाज क पास सनती ह । मोना !!

मोना को नाम लकर उसन शञराज णहलनी बार पकारा |

मोना क शरीर म एक दलकी कपकपी वयाप जाती ह। पिता की रसय क बाद आज पहली बार वह उसक सामन यो कभी खडी नही हई थी ।

अपना परा जञोर कषगाकर मोना बोली--दहो ।

समापत ! मोना, समापत [!

'शरॉसकर , समापत कया ९!

'जमनी दवार गया । हिणडनबगग की सना टट गई । ,बलिन म विदरोह डी गया ।

'शरथात‌ यह कि लडाई समापत हई ९ होना ही चाहिए।

मोना का मन एक परशन पछन क लिए हो झाया। वह पएछना नहो

कटील तार ६३

चाहती फिर भी पछ बिना न रह सकी--असकर, यदध बनद होन स तम

झाननदित दवोग १ कया सचमच आननदित दवोग ?

वह उसकी आखो म निनिमष दखता रहता । फिर दषटि फिरा लता ह। 'मझ मालम नही! कहकर चल दता ह।

आरकर चतना जाता ह। मोना उसकी पठ की और दखती ह। उसकी

आखो म एक दिवय परकाश चमक जादा ह ; परनत हदय की धइकन दगनी

बढ जाती ह ।

१०

दसवी तारीख, नवमबर महीना, और उनन‍नीस सो अठारहवा वरष ।

ऊच कमचारियो क दफतर म दोड-धप मच रही ह। सचर स दवी गवरनर क कमर म टलीफोन की धणटी बनर रही ह ।

एक तरदद स नजरबनदियो की छावनी वीरान जगल द। पवन पर चढ-

कर वहा अफवा ह उडा करती ह। (दोपहर तक तो सभी कदी सचची बात

जान जात ह। कसर को उसी क आदमियो न गाडी स उतार दिया ह। जमनी क परतिनिधि न सनधि की माग पश की ह झोर मिनन राषटर न उस उनस सनधिपतर दकर हसताकषर क लिय चोबीस घणट को महतनत दी ह। यदि हसताकषर न हए तो जददो तक सभी जद-मल स नषट दो जाय, लडाई चलती रहगी । यदि हसताकषर हो गय तो विदयत‌ वग स सारी दनिया म

समाचार पहचा दिय जायग। इस वयवशथा क अनसार गयारद बज तक नोकालो म समाचार पहच जायग । डगलल बनदरगाह क किल स उस समय बनदक छटगी, जदाजो की सीटिया बजगी भर समसत दीपखड क गिरजाघरो की घडिया बजञ उठगी ।

मोना क दष का वारापार नही | यदध की समापति इतनी समीप ह। जिस वसत क लिए वटद हनी परारथनाए करती रददी, वह अब परापत होनवारल

६४ कटील तार

ह। इस दष म भी उसक अनतर म चल रहा सतरष ऊपरी सतह को विदहनन कर दता ह । उस रोबी की याद ञराती ह शरौर मन म होता ह बिलकल

ठीक | यदध का जसा अनत होना चाहिए था टीक वहदी हआ । जिन निरदय

शतरओ न यदध की भाग फललाई भर उसक पयार भाई को नषट कर डाला,

हनह उचित सजञ मिली ह। परनत उस जब शअरसकर की याद आती तो

शसक मन म होता ह कि, . .जान कसा होन लगता ह। ऑस‍कर कहा दोगा ९ सवर वह जब जागी तो रासत पर अरभी तक दिय जतन रह ह। पहली

बात जिसन उसका धयान खीचा, वह एक गनगनाहट थी | धवनि छावनी को

बगल स झा रही थी। अनतिम बात जो उस याद आई, वह कलल रात

बिसतर म सोन स पहल की थी। करदी इधर स उधर जा रह थ। परत छायाओो जस वदद धम रह थ। बात ओर कवल बात कर रह थ | सारी रात कय ।8न‍नहोन बात दवी बात की होगी ; सारी रात क‍या व फिरत दटी रह होग ९

किस मालम ? कल उगनवाला दिन कयामत दवी का दिन दवो। पिछली

रात उनकी मातभमि पराजित दो गई हो, ओर व दश-हीन जगत स असपशय झोर जगत‌ पर भार-रप हो गय हो तो किस मालम १

सबरा होता ह ; दीय बकत ह, मन‍द परकाश म चलतनवाल लोग मोन

को अरिथिर ददधारोी जस लगत थ; परनत शभरभी सब कछ शान‍त ह ।

छावनी क साधारण नियमो को जस व भल बठ ह। शआराज कोई कारखन स नही गया । नाशत क समय घणटी बजती ह। परनत कई तो भख को ही

भल बट ह भोर खल म फिर रह ह । नवमबर क अशरधिरश दिनो जसा ही ञराज का दिन भी ह। सवचछ

झासमान, ठडी हवा ओर समदर पर चमकनवालली किरण वधी ही ह। आगन

स गाय जगालली कर रही ह, पहाडी पर भड' चर रही ह, परकति बसी ही शानत झोर पकरस द ।

मोना दधशाजञा म गई ; परनत भानवाल कदियो क मरमाय हए चहर

कटी ल तार ६५

इ न दख सकी ; पहल अददात म कदी छोट-छोट कणड बनाकर खड ह। पर व बहत धर-धीर बात कर रह ह। दसर अददात क उजडड खलासी १ मौन धारण किय खड ह। उनक बीच स इस समय न तो गाली-गलोज ' शघरोर न शोरगल ।

घयणट क बाद घणट बीतत चलत ह। कटीक तारो की बाड क उस पार ल म जानवाली गाडियो की कतार जसी तोपगाडियो की जाती हई कतार मोना 'खती द। कक पटरिक क धवजदड क पास कोई खडा हशरा कछ कदद रहा ह।

साढ दस बज तो जस सारी पथवी निशचल हो जाती ह। छावनी की तरता ओर उतसकता का पार नही । सभी को दषटि डगलस क किलल की ॥रदीवारी की शोर लगी ह। उनक चहर परत-जल हो गय ह। जड-मलत स खड वकषो जसी उनकी दशा हो रही ह। कितन दी कदी बचन घोड क मीन पर पाव ठोकन की तरदद जमीन खोदा करत थ ; परनत भराज सब ओर

गरव शानति ह।

परनत आसकर कटददा ह ? वह दीखता कयो नही ?

अनत म अफरसरो क कारयातरयो म पराण का सचार दीखता ह। जल-

परधिकारी क तब स टलीफोन की घणटी का सवर सन पडता ह।, सथिर हवा परौर शमशान जसी शानति म वह उसक सवर को जस सनती द ।

“इललो !। कौन १ सरकारी दफतर १...हा. ..! दषताकषर हो गय १ दवो

य ! वादद !?

डसी समय वह पील. क घणटाघर म गयारदद क डक सनती ह झौर डसक रमापत होन स पदल ही तोप छटन की आवाजञ आती ह ।

अवशय वह डगलस बनदरगाह की दिशाओझरो स वलनहटियो को चीरता

हआ आता ह ओर पहाडियो स टकराता भोर छावनी पर छाता हआ समदर 7र फल जाता ह ।

दसर दी कषण जददाज क भपि सीटी बजात ह। समीप ओर दर स गरजञाघरो क घणएटो को आवाज आती ह । उसक पीछ-पीछ पीकष-निवासियो

६६ कटी ल तार

क उन‍मतत आननद की धवनियो ह। सबर स सभी चोक बजार म खड ही

धनतिम समाचारो की परतीकषा करत रह होग ओर इस समय हष।तिरक स पागजन हो नाचत होग ; परसपर भटत होग और ताकषिया बजात होग ।

छावनी क पचचीस हजार बनदी निशचषट हो गय । उनका सबनाश हो गया ; उनकी मातभमि दवार गई थी ।

पर यह भावना एक हासयासपद‌ घटना स नषट हो जाती ह। अमोर जोगो

की बरक' क किसी जमन कदी का एक कपता इस आराकसमिक शोर-गल स चौककर भोकन ओर उछलन-कदन कगा। बचार उस कस की घबराहट सभी

क हसन का घिषय हो जाती ह। कञोग उसक सामन दख-दखकर हसत ह। कछ पतनो बाद पहल नमबर क करदियो म जीवन झाता ह। एक दसर

स हाथ मिकषा व बधाई दत ह। जो हो, कढाई बनद हो गई, भय व छोड डिय जायग। छटग, घर जाकर पतनी-पननो स ओर मा स भिलग। यह झाननद कया कम ह ९

दसर अहात क खलासी भी यह विचार झात-धात पागल हो उठत ह।

व जञोर स चिलला-चिलखाकर गात ह, हसत ह ओर ऊधम मचात ह ।

और झापस म एक दसर को घकियात ह। लका-छिपी और खो-खो खलत ह । दश क साथ उनका समबनध ही कया ९ कोन पहिचानता ह उसल १ जददा

रोटी मिकत, वही उनका दश ह । सारा ससार और दर-दर तक फला समदर ही उनका दश द ।

मोना दधशालला क दरवाज पर कॉपती हई खडी ह । जिसक लिए उसन पराथना की, परतीकषा की ओर झाश। बाधी, उस अपन सामन सपषट दखती ह-.. शानति | समपरण ससार पर शागति फल रहदी ह ! ऐसा अवसर तो जग न पहल कभी न पाया दवोगा। और न कभी भविषय म झायगा। यदध की यह बबरता और पशता किसी यग म खोज नमिललगी। जनता की मरखवा बदधिमानी, घणा झोर ईएया का फिर स झावतन न होगा। वह नषट हो जायगी और फिर ... भोर फिर. . .

कटील तार ६७

अचानक उस अपन पीछ किसी क होन का भाव होता ह। वह समम गई कि पीछ कौन ह ; परनत वहट पीठ नही फिराती ह। कषण-भर दोनो मौन रहत ह ओर फिर दरष-विषाद क मिशरित सवर मोना क मह स निकलत ह- अब तो तम भी घर जा सकोग। आरकर, तमह इपतस परसन‍नता तो

होती हो होगी ॥

कषण-भर मोन रहता ह ओर फिर आऑॉस‍कर धीमी कॉपती आावाफक म उततर

दता ह--नही मोना, तम जानती हो कि मझ आननद नही होता । सहज ही मोना क दवाथ पीछ चलन जात ह ओर दसर ही कषण कोई

कॉपत हाथ उनह दबात ह ।

११ उसक बाद एक मददीना बीत गया, परनत छावनी बसी दी ह। मोना न

तो सोचा था कि इस बीच कदी छट जायग ; परनत व अभी वही ह, खना जाता ह कि जकष अधिकारी शराजञा की परतीकषा कर रह ह ।

छावनी म शरव नियम-वयवसथा नही रही ह। अरमक कढी इस अददात का और अमक उस अरहठात का, ऐसा कोई सपषट भद भी अब नही रह गया ह । जिसको जहा अरचछा लगता ह, वहा जाता ह। घनधचन कवल दो जगह

ह--बढ दरवाज क आग जहा भरी बनदरको का पहरा ह भोर बाड क भाग जहा कटी क तार ह। बनधन रखन की भी शरब आवशयकता नही रही ; कयोकि किसी क भाग जान का डर नही ह। शराज-कलन म तो सभी छटनवाल ह।

मोना को अब काम म काफी मदद मितर जाती ह। करदी कषि-घर स आत-जात ह और जितना कर सकत ह, काम करत ह। व अपन सतरी-बातनको की तसवीर डस बतलात ह ओर अपनी बची पएजी का हिसाब करवा लत ह ।

अनत म सनधि-परिषद‌ बठन ओर जल अधिकारी को आवशयक झआाजञाए मिलन क समाचार भी झा गय । रोजञ दो सो क दविसाब स करदी जददाज पर चढाय जायग झोर छावनी विखर दी जायगी ।

६८ कटील तार

परनत इस छटकार क साथ एक शरत भी रखी गई ह। जिस सनकर

मोना अचरज म डब जाती ह । एक अहात क तीन कदी घर क पास खड रहकर बात करत ह। मोना को गराशचय होता ह कि बात अगरजी म ही

नही, परनत बरिटन क परानतीय उचचारो म होदी ह ।

“य सब लोग मर को जरमन कत ह। पर क कस सकत ह १ इतता-सा पाच बरस का था तो इगलणड आया और पॉच प मिसी पचास का होन आया । पाच बरस का जरमन ओर चार व पॉच पतालिस का इगरज, तो भी मर को कत ह त जरमन ! तर को जरमनी म भजग। एक आदमी कह

रहा था। “अपना भी कछ ठोक नही भया पर तमहार जला ही--? दसरा बोलता

ह--मा की गोद म रहा तभी गिललासगो आया । जिनदगी यही बिताई।

विवाह यदी किया । बचच यही हए | दो लडक लडाई म काम भी आ गय । हस द:ख म विचारी घरवाजञी भी चल बसी। शरवाग रामधरणी न पोीछ

सीतलामाता । और कददत ह कि म परदशी !

तीसरा कहता ह--बावा, अमरी कछ न पछो । इस साली लढाई क

पहल अमर को य तक नही मालम था कि अम कोन ह । लडाई हई और सिरकार न खबर दी कि तम जमनी ह । इसी दवीप पर शरम बढा हआ ह।

अमरा जस को यहा मजिसटरट बनाकर बिठाया ह। अरपतरा लडका को दश झोर राजा क वासस‍त तरी जररत ह कहकर खडाई म ल गया | वो जब

जखमी हो गया तो घायल का लाई म कया काम का ह, ऐसा धोलकर वापिस कर दिया। ओर मजा य ह कि शअमरा जसा को यहा मजिसटरट बनाता ह, अमरा लडका को अगरज मानकर शअमरा ऊपर चोकसी करवाता ह झोर अमर को उसक बाप को जरमनी बोलकर जल म बिठा दता ह। झोर छोकरा स हकम करता ह कि तमर बाप को जमनी भज दो कयोकि वो परदशी ह। य कढाई तो कछ नई ही हई ह। शरमरा घढापा, जमनी क बार म कछ लियाल करन नददी सकता, वहा अम गराकर कया करगा १ छावनी

कटो ल तार ६५९

म आन स पहल ब मा का बचचा को लकर बखत काटता था। अब सरकार

बोल दगा य तो अरगन ज ह इसको जमनी नहो ल जा सकगा । मोना का खन जम गया। इतन अतयाचार, इतनी पशता, इतना खन-

खचचर कया काफी न था, कि उन सबस भयकर शराज इस मानवजाति की

यो हसी उडाई जातो ह | जाति | जाति ! ओरो जाति | ससार क शराध यदधो

की झो जननी | यदध की शरो मल कारण, बता किस दिन वह चराचर विशव का निरमाता ईसा क अनयायियो क मह स इस दभो शबद को

मिटा दगा।

जो बात मोना न सनो व उसक अनतर म गददर घाव करन लगी । यदि सभी जमन रकतवाल फदियो को जमन भज दिया गया तो आसकर को भी जाना पडगा । तब फिर ...!

डसी रात मोना का दरवाजञा खटखटाया जाता ह। भासकर आया ह ।

उसकी अरख फट रददी ह ओर ओठ कॉप रह ह । धवपताचार तो सन दवी होग ९! (हा, तमह भी जाना पडगा ९

जाना ही पडगा । जहा तक मरा दवयातर ह जाना दवी पडगा ।'

५ २५ ५

पहली टकडी “अशरमीरो की बरक' स जञानवाली दह। माहनदार होन स

उनह शत एकदम सवीकत थी। फिर चाह पाक कलन' म रहन को मिल या

'थर गाडन' म इसस उनह कया ? व तो चमतकीकनी कातनी पोशाक, बढिया फरवाला कोट पहन और 'सद कस' लिय गराननद स कच कर गय |

डसक बाद दसर अददात क करदियो का नमबर शराया, उनझी शान-शौकत अमीर लोगो की उपकषा कछ जदी दवी थी। फट जत, तार-तार बिखर कपड

पहन, जल क कारखान म कमाई अरपनी थोडी पजी क साथ बगल म सन

का यला दाब रवाना होत ह। जनवरी महीन की हडकमपी सरदी म मदद औपर जब कि एक दवाथ सर हो नही दख सकता, जलन-अबनिकारी की आजञा

9० कटी लन तार

पात ही व भडो की तरह बरसत पानी म बाहर निकल शराय । यहा आत

समय गान झरोर चिदलञानवाल लोग य जस थ दी नही । सिपाहियो का नया जमादार मोना को सनान लगा डि य लोग णहाज

पर ऐस चढ जस फॉसी क तखत पर चढ रदद हो। एक कोन म सभी ट स-

ठासकर बिठाय नय । जहाज जब रवाना हआ। तो व दवीप क किनार की ओर ताक रह य ।

'शतान, पर बचार गरोब | छावनी को नरक समभनवाल यही छः मददीन बाद यहा 'भराननदाता, हजर' कहकर आन को तयार इवोग /

मोना न पछा--पर कयो य सभी जमन भज जा रह ह १ ऐसी ही झाजञा ह बहन | कोई भी दश अपन दशमनो को रखन क लिए

तयार नहो ह । कवजन थोढ-स अरपवाद ह जब कि उनह रखना दवी पढता ह । जस. . .' औस झिसी जमन की पतनी अगरज हो ओर उनका बयवसाय भी

अगर जी हो ।'

'तो क‍या उनह रहन दत ह १

'मरी ऐसी ही धारणा ह।' मोना का हदय नाच उठा । उसक मन म एक विचार आया । झासकर

को यदि जमनी न जाना हो, तो वह यददी क‍यो न रह १) नोकालो को दी क‍यो

न जोत-बोय

7५ व हर

दसर दिन तीसरी टकढी रवाना हो जान क बाद वह जमीदार क यहा

जान की तयारी करतो ह। आध वरष का हिसाब बाकी ह ओर नवमबर स

खतम होनवाल खात क बार म भी बात-चीत करनी ह ।

बहत बढिया सवरा ह । झाकाश भर रग का दो रददा ह। मीठी चमकीकषी धप फली ह। बरफ क कण घचमकन लग ह। ननह कोमजन पील फल सिर उठा रह ह | लमब करम भरती हई मोना चलनी जा रही ह। वह सोच रही

कटील तार 3१

ह कि जमीदार कया जवाब दगा । शराज स चार बरस पददल उसक पिता न

पछा था-- लडाई सम!पत होन पर कया होगा ९ ओर जमोदार न उततर दिया

था--.हस बात की तो चिनता ही मत करो | जदा तक तम या तमदारी सतान

जीवित ह, कोई भी तमह निकालन क कषिए नही कहगा ।

जमीदार अपन घर क आग ही मिलन गया। उसन गिरजाघर जान क कपड पहन रख ह। अभी ही पील स जलोटा होगा | वहा उस मजिसटरट की

दसियत स बठना पढता ह ।

'जञगान |! बोलनत-बोलत वह मोना को घर म लल जाता ह ।

मोना उस गिनकर सरकारी नोट दती ह और चदद भरपाई की रसीद लिख दता ह | फिर जस छटना चाहता हो, इस तरदद स ल जान क ललिए‌ खडा होता ह। मोना बठी ही रहतो ह और पछती द-- नय खात क बार म

कया होगा |

जमोदार बोजला---आज यह सब रहन दो ।

“आज ही त हो जाय तो ठीक । उस पर मरी और कितनी हवी बात निभर करती ह ।!

जमीदार उसकी ओर निरनिमष दषटि स दखता ह । 'फिर भी सहोदय, अगर भापको यही उचित जचता टवो कि समय पान

पर दवी त किया जाय तो शरभी रहन दीजिए । जमोदार दरवाज तक पहच चका था। वह उस खोलन की तयारी म था

यह सनकर वह मढा ओर बोला- नही नही, फिर भी तो अभी ही कह द । दखो, सच बात यही ह कि उस जमीन म दसरी ही वयवसथा करनवाला ह ।

मोना क घर पर जस बिजली टट गिरी हो । वह एकदम बोलन उठी-- झरथात‌ ९ अरथात आप वह किसी ओर को दना चाहत ह ?

“यदि म दना चाह तो क‍यो न द ? जमीन तो मरी ही ह न १ और म चाह जसा कर सकता ह।

रनत जब खतो परदधावनी बनी थी तो आपन मर पिता को बचन दिया था ।'

र कटील तार

'हा, हा, दिया था। परनत भोजनोी छोकरी, हर समय परिसथिति वसी ही नददी रहती । तर पिता गय, तर पिता का बटा भी गया ।!

'परनत उसकी पतरी तो जीवित ह। उसन ऐसा किया क‍या जिसस. . .!

'ममस कयो पछती ह बटी कि उसकी कढका न ऐसा किया क‍या !!

तो भी साहब, म तो ऐसा कछ नहो जानती। बतलाइए मम म जानना चाहती ह ।!

“यदि तरी ऐसी दवी इचछा ह तो सन | दख, मरी मशा यदद ह कि मरी

जमीन मरी दवी जातिवालना जोत ; शतर-पकष का नही ।'

मोना सतबध रह जाती ह। उसका करोध उसक गल म दी रधा रदद जाता ह । वह सिसक-सिसककर रोन कवगती ह ओर घर की ओर दोढ जाती ह।

झॉसरकर इसी समय घर क आग आकर खडा ह। मोना का चहरा दख-

कर उसन परशन किया । आसकर क बार म बिना कछ कदद बह सारी घटना

कटद सनाती द ।

'तमदारा कटमब तो वरषो प नोकालो म रदद रददा ह ।' “चार पीढडियो स ।'

ओर नोकालो म दवी तमदारा जनम भी हशना १ भहॉ ॥)

“ओह घिककार ह इस नयाय पर, हजारो बार जञानत ह ।? मोना टट जाती ह | नोकालो अब उसका नही रहा। यह सधि |! छया

इसी घडी क लषिए उसन सनधि की परारथना की थी

>< >< >< दिन आत ह और चल जात ह । रोज पक-आाध टरडी जहाज पर चढती

हई दीख पडती ह। दख-दखकर मोना का हदय फटा जातो ह इसी तरह

आासकर की भी बारी शरायगी। परनत उसक जान क विचार-मातर स ही मोना

का सिर फटन कवगता ह। घर क सामन स ही कक पटरिक क गिरनाधघर का चककर लगा एक दिन वह भी सभी क साथ कब कर दगा ।

कटी ल तार ७३

उपचक मन म विदरोह जागता ड। नोकाजञो उसकी अतीचब पयारी जगह

ह। इस भमि क साथ उसक शरननत सधमरण जड हए ह। परनत दवीप पर

कवल यददी तो एक जगह नही ह। नवमबर म उसन सना ह कि एक दसरा खत हॉकन क लिए दिया जानवाला ह। बहत बडा होन क कारण दह

साधारण किसान क लिए अनपयीगी ह। परनत मोना क पास जानवरो की कमी नही थी । छावनी की झावशयकताए »परी करन क लिए उसन अपनी सब पजी ढोरो पर ही खच की थी, इसी लिए आराज डसक पास बहत स ढोर ह। यदि वह उस बडी »मीन को हॉकन क लिय ल स तो फिर उस वह

घरती पढती नही छोडनी पडगी ।

वह उस खत क मालिक क पास जान की तयारी करन ऊपर गई ही थी कि नीच उसन दरवाज पर घोड की टाप सनी ओर थोडो दर म कोई उसका

नाम लकर पकार रहा था। मोना आवाज पहचान गई। वढ जान कारलट

था । मोना को उसको बवकफी पर करोध हो थाता ह। भतष हवी टापता रह,

इस विचार स यह खिडकी म भी नही आराई ; परनत दसर डी कषण उसक

मन म झराया कि चलनो इस बनाया दवी जाय आर वह बाहर गराती ह। जान

कारलट आया तो सददी , परनत धोढ पर दी सवार ह । “कहो, क‍या जान कालट !!

'दख, मजाक नही ह, तझ घनान आया ह कि अगल नवमबर स इस

घरती का खाता मझ मिलनवातना ह। अब म नोऋालो को दॉकनवाला ह

इसलिए. . .! ह 'यह तो म बहत पहल हो स जानती ह । परनत तमहार इस घरती को

होकन क साथ मरा कया समबनध ९!

'म यह जानन आया ह कि त शरब इस जमीन पर कितन दिन तक ओर रहगा १

जमीन का खाता जब तक मर नाम ह तब तक | इसक सिवाय, मददाशय, झाप ओर कया झाशा रखतकही ९

७ कॉटील तार

'परनत छावनी तो उसस पहल दवी उठ जञायगी, आदमी चल जायग ओर तब त दध का कया करगी !'

यदि तम जानना डी चाहत हो तो सनो, इन ललोगो क ञरान स पहल जो करती थी वही ।'

'दो तरी यह आशा मठी ह पिछलल गराहको को फिर स पान की आशा

छोडनी पढगी ।' 'कषयो १?

बस यो दी । सभी यही कहत ह | पडना हो तो किस भी पछ आना। अपन परान गराहको को ही पछ दशना ।'

मोना की आख लाल हो शराती ह| ह | तो मझ भी परवाह नही ह ।

चिनता नही मरा द ध बिक या न बिक ।

मोना घर म जान क लिए घमती ह।

“ठहर, एक और भी बात ह, उस सन जा। जमीन को जो कछ नकसान

पहचा होगा, डसक लिए क‍या करगी ९

कया १'

(नियम की जानकारी तम होना ही चाहिए। सरकारी दसतावज क

अनसार जमीन हॉकनवालो को भराकसमिक दधटनाओ स दवोन वाली दवानियो की मरममत करवानी पडती ह ।'

मोना इस नियम को जानतो थी, परनत भरमी वह इस नियम को भल

ही गई थी । पचचीस हजार शरादमी चार साल तक लगातार इन खता पर रह ह ।

ऐसी जमीन को फिर स जोतन-बोन लञायक बनान म ऐपसता-वसा खच नही होन का । थोडी दविकिवाहट क साथ वदद कॉलट स खच का अनदाजा

पछती ह, झोर वह एक बढी रकम बता दता ह । “'हतना तो इस घरती का तीन सातलन का कगान हआ ।--बह गददरी

सास जती ह सोर उसक चहर का रग उड जाता ह ।

कटी ल तार ७५

मोना बोली-- हतना खब करन क बाद मर पास तो एक फटी कोढी भी नही बच रहगी।

'उदद | तो सरकार क पास स तम कया कम रकरम मिलती ह ? यह साफ

मठ ह कि तर पास कछ बचा न हो । बहत बडी थजनी जमा कर रखी होगी ।! “नही ! कछ नही ह। मन अपना मनाफा ढोरो पर दवी खच किया ह ।' घोड पर स कालट उसक सामन दखता ह भोर अपन पाव पर दवाथ की

पतकनी लकडी मारता हआ, सवर को लमबा कर बोललता ह--ठी ...क, यदद भी अचछा हवी हआ । सभी कछ जमीन दवी पर तो हआ ह !

फिर काठी पर स कद वह मोना क प स आ गया भर जस समझान क सवर म मोना स बोला--दख मोना, कालट को बिललकजञ ही निषठर मत

समझ बठना । इस जमीन पर जो कछ जिस सथिति म ह, उस वसा दी छोढ-

कर चलनी जा ओर फिर तझ या मझ कछ कहन-सनन को आवशयकता न

रदद जञायगी ।

मोना कषण भर चप रही | उसकी सास जोर स चलन कगती ह। वह

बोली--जान कारलट, क‍या तम मझ अपन पिता क खतो पर स एक दम नगी करक निकाजञ दना चाहत हो ९

'अरी छोकरी ! इसम बरा ही कया ह १ म नही, परनत एक कोई दसरा भी यह चाहता ह कि त तरा सरवसव छोडकर उसक पौछ-पीछ परदश चली जाय, कयो मठ कटट रहा ह !!

सनत दवी मोना क रोए खड दवो जात ह। उसका सदद मार गसस स लाल पड जाता ह। तिजञजञी की तरह वह जॉन कॉलट पर टट पढती ह--बदमाश,

चोर उचका, बईमान | निकल यहा स | बाहर निकल ! मरी घरती पर स निकल !

जॉन कॉलट एकदम घोड की पीठ पर उछल बठता ह ; ओर लगाम द

पकडत हए बोकञता ह --कोरट तक घसीटगा, यो दवी नही जान दगा । . पास दवी पडी हई एक लकडी मोना उठाती ह। बाहर निकल ।!

ऊद‌ कटील तार

कॉलिट इवारम ऊची उठती हई लकडी को दखता ह ओर उस अपन पर पडन की परी समभावना दख घोड को एड मारता ह। इस तरह चहट तो

लकडी की मार स बाल-बाल बच गया, परनत घोड क पषट पर वह पडी। घोडा अपन पिछल पाव उछालकर भागा और थोडी दर म अ स शरोकक

हो गया ।

वह सवार घोड की पीठ पर मशकिल स अपन शरीर को सभालता हआ बोलता गया--त झरोर तरा, , ,

कछ सिपाही उस दस दशा म भागत दख खिल-खिलाकर हस पढ ;

परनत मोना का तो हदय दवी फट गया | वह भीतर क कमर म भाग गई झोर सिसकऋ-सिसककर रोन लगी । उसक पयार ढो( ! ओर उनह बचकर उस ह

लिए फिर नोकालो तो कया सार दवीप म भी कही ठौर नही बचती । रात म जब ऑसकर शराया मोना की शरख सती हई थो। मझ सब समाचार मितष गय । यदि म सवतनतर होता तो उस बदमाश

की ५क भी हडडी-पसलली सलामत न बचती | यह म सह नही सकता कि मर जञिए तक इतना सदना पड, मोना, त मरा विचार छोड द ।'

दोनो क बरीच शराज पहली बार परम की ऐसी खली सवीकति हई | मोना कषण-भर मोन रहदी ओर तब बोजनी--कया त यहो चाहता ह ऑसकर, कि म

तक छोड द ! झोरकर न जवाब नहो दिया ! 'त यह चाहता ह हि रएतर क साथ त भी चलना जाय और म तझ कभी

याद न कर |! झोसकर चप रहा ।

ऑसकर, मझ जवाब द !! मझ न पछ मोना |ईशवर ही जानता ह।' जबाब दकर वह चलता

ही गया ।

रो 5

कटी नतार ७5७

१२ इसक बाद चौथी रात को शरॉसकर फिर आया । सदा की भाति आज भी

वह घर क बाहर ही खडा रहा, इसलिए मोना को दहली पर खड रह उमस

बात करनी पढतो ह। शरॉसखर की आख चमक रही ह ; वह उततजञित और

उतावलना-ला दीख पडता ह ।

'मझ एक बात सरी ह।' कया, ..९!

“इतन छोट-स दवीप क निवासिया का ससतिषक यदि कई बार विपरीत

अवसथाओ म सकचित और भावनाहीन हो जापर तो कोई आशवय नही । |

परनत अरगरजञ ऐस नही ह। अगरजी परजा महान ह। यदि त मर साख हगलयड चलन तो. . .!'

“ह गलणड ९! शरोसकर सोना को अपन विषय की सपी बात सनाता ह। मोना न उसक

बार म कभी सना ही नही था | ऑसकर एक कशल इलकषिटक दइजीनियर था

झोर नोकालो म पकडकर लाय जान स पढल बह मरजी म एक पअगर जी

कमपनी म वाषिक एक हजार क वतन पर शान इजीनियर था। यदध शर

हआ तब 'नाजञायक कसर' क कारण उसम स सवदश क कारण उसम स सवदश क परति की समसत सददानभतिया नषट दो गई ।

'आसकर !'

'म सतय कद रहा ह । उन दिनो म अनदर ही शरनदर मार शम क मरा जाता था। यदि मझ सना म भती किया जाता तो शअवशय ही भरती हो जाता, परनत अगरज ऐसा करन क लिए तयार नही थ। उलट इन लोगो न

तो मझ छाबनी म कद कर दिया | जिपत करपनी म म काम करता था, डस मरी अनपसथिति म बहद चकसान होन की सभावना थी, इसकषिए उसन मम

छडान की भरसक कोशिश की, परनत सभी बयथ हआ | शरनत म कमपनी क मनजर न मझस कटटा---ऑसकर, तमदारी कमी तो परी की नददी जा सकगी,

८ पॉटील तार

परनत यदध समापत होन क बाद यदि तमहारी इचछा हो तो आा सकत हो ।

अपनी नोकरी को सथायी ही सममना । वसब ११

सच, मोना | वह कितना भनना था। यदि इतना भना आदमी भी अपनी

बात न निबाह तो मानव-जाति पर स मरा विशवास हट जाय। म... म ...'

पकया १! ह

'म उस लिखन को सोच रहा ह कि मरी मकत का समय आ गया ह । झोर यदि तरी सममति हो कि त मर साथ, . .!

मोना की आख गीली हो जाती ह। यह दखकर ऑसकर चप हो गया |

फिर गद-गद‌ कणठ स बोला--मोना, तम दवीप छोडन क लिए कहन स मझ

दःख होता ह । “नही, इसस शरधिक दःख की बत तो यह द कि दवीप सवय दवी मझ

धकका दकर निकाल रहा द ।' तो कया त मर साथ इगलणड चलगी ९? “हा,..', मोना न जवाब दिया ।

आसकर पतर लिखन क लिए वहा स चटपट चल दिया ।

मोना उस सपताह भर आननदित रहन का परयतन करती ह, परनत कई

शकाए उसक मन म उठती ह शलोर वह घबराती द। एक दिन जल अधिकारी भौर गवनर की बात थोढी-बहत वह सनती ह।

दोनो मकान क नीच खल म छावनी को उठा कितना साम/न कहा ओर कल भजा जाय, इस विषय पर बातचीत करत ह। बातो दवी बातो म सनधि- परिषद‌ को बात भा निकलती ह ।

जल अधिकारी न कषटा--मरा तो अभरजभव ह कि सनधि क पराथमिक चष यदध क अनतिम वरषो स भी खराब होत ह। कितनी करणाजनक सथिति ह ।

गवनर न उततर दिया--यदद- तो ऐसा ही चदछधता रहगा। भाप दी

कटील तार 3९

धतललाहए यदि हम अपन दश-दवोहियो पर विशवापत कर ल तो इभस बढकर और कोन मरख होगा ? जिन जमनो को हमन दषा दिया अब उनह सदा क

लिए ऐस ही दब रहन दत म कशल ह । म आपक मत का नही ह। म तो सानता ह कि यदध क दिनो म जिस

तरह हम अशरनतिम घडी तक कडन का विचार रखत ह, उसी तरह शानति- काल म यदध की परदधाई तक नही पढन दनी चाहिए। कषमा-भावना होन पर दवी यह समभव दवो सकता ह ।'

यदध क पराईमभिक दिवसो म जब कि म सरहद पर था, एक करण धटना घट गई । एक जमन घायल होकर हमार बीच आ गया । उसकी दवालत घहत शोचनीय थी । जब वह परी तरह होश म था, बोलला--कनकष ! ( उन दिनो म सना म कनतन था ) विचितनता तो दखो ! यदि हम खाइयो म मिततत तो तम अपनी मातभमि की खातिर और म अपन पितदश की खातिर

एक दसर को मारम क लिए ततपर हो जात। फिर भी यहा तम मझ अत-

दश की ख।तिर बचान का परयतन कर रह हो ।

'पसी ही बात वह किया करता, और जब उसका शरनतकाल आ पहचा, उसका पिर मरी छाती पर था ओर मरी भजाशरो म उसका शरीर सोया था । मझ यह कहत जरा भी लवजजा नही आराती कि मन उसका कपाल चमा था ।

मोना का सारा अग रनकना उठा । आतदश ! किसका अआतदश !

तमहारा नही, मरा नहो, परनत हम!रा आतदश ! कोन-सा ह वह दश आनवाल ककष समसत जगत ही मरातदश हो रहगा। भोर तब वह और आसकर लिबरपल म बिना डर सख झोर परम-पवक जीवन बिता सकग ।

उसी रात झॉसकर फिर आया। उसका चहरा पीला पढ गया था ओर झोठ कॉपत थ । उसक मह स शबद नहो निकलष पात। उसन एक कागज सामन रखा । वह मरजी की इ.झजनियरिग कमपनी का पतर था ।

'शरीमान‌, दसवो तारीख को दमार सवरगीय वयवसथापक क नाम, कि जी

थदध म काम झाय, लिखा आपका पनन मिलला । दम दःख क साथ दविखना

पपछ कटी लल तार

पढता ह कि आपकी सथ,यी जगह पर हम एक दसरा वयकति मितष गया ह, जिसका काम परण सन‍तोषभनक द। यदि यह खाली रही होती तो भी इम

डस आपको द सकन म अशरसमरथ थ, कयोकि जरमनो क विरदध यहा जो भावना लोगो म फल रही ह, उस दखत हए कोई भी अगर ज मजदर झापक साथ काम करन क लिए तयार नही होता। और आझापका अगरज

पतनी क साथ विवाह करना तो उनकी घणा-भावबा को घटान की अपकषा

बरढानवाला ही होगा। आपका दी. . .!

झॉलकर बोला--इस माना ही नहो जा सकता । 'यदध ! यदध | कब हस यदध का अनत आयगा ९?

लवगता ह कि कभी नहो (--दात पीसत हए ऑसकर चलता गया ।

हदय पर एक घोर रख मोना बिसतर पर पढ जाती ह। अगर जञ जमनो

क साथ काम करन को तयार नही । इगलणड म भी उनक किए सथान नही । फिर आतरश, आतदश ...परनत यदद तो कवल एक छल ह !

५ २८ ><

दसरा सपताह भी बीत चला। छावनी खाली करन का काम निशय ढाई

सो कदियो को जहाज पर चढान क दविखाब स चाल ह। चौथ ओर दसर

अहात की बारी ह। ठीसर कमपाउणड का करम अनतिम रखा गया ह | कयोफि

उसम आसकर जस कई इशजीनियर ह जो छावनी की बिजली आरादि आसानी स बिक सकनवालोी चीजञो को खोलन म काम भरा सकग । पर अनत म उनकी

भी बारी आनवाली ह । ओर फिर, , .फिर कया एक सपताह बाद ऑसकर फिर मिलन आराया। उसक कपाल पर सल पढ

हए ह। ओर आख गडह म घस गई ह । फिर भी उसका उतसाह अपार ह । मोना, मझ अब कदी सका कि हस कया करना चाहिए...'

कषया ९!

अगरजञ भावदीन ओर भसहिषण हो सकत ह; परनत अमन ऐस

नही ह ।'

कटील तार ८१

जमन 'मर भाइयो को तो म पहचानता ह न १ व राकषसो ओर हतयारो की

तरह यदध-भमि पर लडत रह ह। म इस सवीकार करता ह, परनत खबाई समापत दवोन पर व दशमन ८. दोसत समभत ह ।'

'तो, अब तमदारा कया विचार द !! मोना न पछा; परनत जवाब तो वह

जानता ही ह ।

यदि तझ आपतति न हो, यदि त चल सक तो मर साथ जमनी...' जमनी १! मोना को लगा जस धरती घम रही ह ।

भमोना, तझ तरा दश छोडन क लिए कददन म निरी पशता ह, निलत- बजता ह ; परनत त हवीन कददती थी कि यदद दवीप भकका दकर निकाल

रदा ह । मोना जबरदसती उमडत झॉसझो को रोकती ह । ऑसकर, ऑसकर | यदद असमभव ह। दश छोडना? नही दो खकता

झओ।सकर ! यदद विचार दी असझय ह । कषण-भर आसकर चप रददा, फिर कॉपती हई भावाज म बोला--मोना,

ईशवर की सोगनध खाकर कहदता ह कि तझ ललशमातर तकलीफ न होन दगा। छरी परतयक इचछा परी करगा। मोना मर साथ चलकर तझ अफसोस नही

करना पढगा । कषण-भर क लिए भो तझ पछताना न पढगा मोना !

'पर म किस तरह स आ सकगी १?

'जिस तरदद दसरी सतरिया जाती ह। इतन सार लोग झपनी जन पतनियो को झपन साथ नहदी जष जा खकता १?

पतनी ९!

'हा, परनी | गिरजञाघर का पादरी हमारा विवाह कर दगा।' पादरी १?

हा, झाधी रात म या बढ सवर मर दो साथियो की साकषी स ।

'तो कया, तमन उसक साथ बात-चीत भी कर जी ह १ ३

पर कटी ल तार

“हा, उसन कहा ह हि लथरन गिरजा स लधरन पादरी दवारा कराया

गया विवाह जमनी भ जायज दवोता ह। फिर तो जमनी तझ अपनी मान लगा ।'

'परनत, फिर दम कहा. . कहा जायग !*

मव मा ह ।। “तमहारी मा क पास १?

फहा-हा, और कहा ? अददा, कितनी भोजती ह मरी मा | भागयशालियो को ही ऐसी माताए मिलनती ह। जब स म यहा गराया कोई ऐसा सपघादद नही

कि उसकी चिटठी न आई हो । भौर जब दम डसक पास पहचग तो वह मार खशी क पागजन हो जायगी ।'

'परनत ऑसकर, तमह परा विशवास ह कि. , . कि वह तझ सवीकार करगी या नही १ वह शरवशय सवीकार करगी ।

बचारी अब तो मोत क ,समीप पहच रददी ह; मरी बहन को झरतय क बाद स

वह बिककल पकाकिनी दवो गई ह। अब तो हम विवाह ;कर ल, फिर म लषिख कि मा, चिनता सत करना। तरी एक बटी गई तो दसरी बटी म सवा करन ओर तम: परशान करन जञा रहा ह ।'

'पहल ही लिख दखो, भोसकर !!

अवशय । यदयपि इसकी कोई झावशयकता नहो ह फिर भी जसा त

कदद । भर यदि वह तझ अपन लिए नही सवीकार कर--जिसकी मझ जरा भर अनदशा नही ह, ,तो भी मरी खातिर तझ अवशय सवीकार कर लगी ।

'टीक। यदि डनका उततर अनकल हआ तो कया तम जाओग ९?

हा ।'

'यदि ईशवर की कपा हई तो दम इस तरदद सखी हो सकग। इस सत क योगय बनन म मन कितना सटदन किया ह [?

ऑसकर जाता ह। परकाश स निकल वकषो क अनधकार म, जब तक वह नही छिप गया मोना इस दखती रददी। फिर कोठरी म जा अपना मन सम०

कटील तार ८३

मान का परयतन करती ह ; परनत उस चन नही मिलकता | अनत म उस एक मजदार बात याद आ जाती ह। उसक पिता जब बिसतर पर पढ हए थ तब वह पास बठकर उनह सनाया करती थी-..

'जहा त जायगा, म भी जाऊगा। तर आदमी मर भी दोग। तरा ईशवर मरा भी ईशवर होगा ।'

इसक बाद कई-कई दिनो तक काम करती हई भी मोना इसी पद को फिर-फिर गाया करती ह। झोर रात म जब वह सोती ह तो शरॉसकर क साथ अपन भावी जीवन क सवपन दखती ह। उस अशरपनी मा का तो इतना ही समरण ह कि वदद वरषो बिसतर पर पडी रही । इसलिए वह अपन शाप को झसस‍कर की माता की सवा करन म सजम ह। वह बचारी बढी दवो गई ह ओर सवा कर सकन योगय एक-मानर कडकी को खो बटी ह ।

'परनत कया म वहा खाली हाथ दवी जाऊगी ९१ उस जान कारलट की बात याद आती ह। कोट म घसीट जञानबाली

घमकी याद आती ह । वह सोचन लगी कि कवजन मरममत म इतन जानवर दना मखता ह । किघती न किसो की सलाह लनी चाहिए ।

५ ५ ५ ५

बदन, उस आरादमी की बात सच ह ।'-मोना जिस वकील स सलाह कन गई थी, वह बोला ।

तमहार पिता न सरकार क साथ इस तरह का इकरार करन म ही गलती की थी। कवजञ दो दहदी भादमी इसम सहायता द सकत ह। एक जमीदार ओर दसरा नया किसान ।!

“तव झाप अब मझ कया सलाह दत ह १? सभी जानवर बच डालो । मरममत क खच का बरावर भनदाज करवाझो |

जो कछ दन का निकलता हो, द डाजनो भौर बची पजी स नय सिर स काम- काज शर करो।

'झाप ही यदि यदद सब वयवसथा करवा दग तो कपा टवोगी ।

पर कटील तार

मोना भसनन मन स नही, फिर भी निशचिनत होकर इतनी बातचीत करक

उठी ।

यद घर पहची । कपड बदल । भागन म गायो को दहन गई। सदी का सनधयाकाजञीन सरय दरवाज की राह गरपचप राका कि झसस‍कर आया ।

उसका रई जसा सफद चहरा दखकर मोना क हदय म 'बाढ' पढती ह ।

'करयो, कया खबर ह १ इसन का विफल परयरन करता ओर काताज आग बढाता हआ बहद

बोला-- सोच ल, कया होगा ९

माकापनरद)0ः

'पपढ ल न !' कया वह मझ अपन पास रखन क लिए ठयार नही ९ अगरजी म ही लिखा ह । पढ ल, तर लाभ की दवी बात होगी ।' मोना पढती ह :

ऑसकर, तरा पतर पढकर मझ अतिशय दःख हआ। मरा पतर एक ऐसी खरी क साथ विवाह करता ह, जो अगरज ह। अगरज, जिनहोन तरी खबसरत बहन को मार डाला । मरी जिनदगी म म नही जानती कि इसस अधिक भौर कोई करारी चोट झआयगी, ..।'

इसी तरह की बातो स सारा पतर भरा हआ था। यदि झोसकर किसी अगरज पतनी को जमनो म लायगा तो उसकी झपनी मा ही उस घर म घसन न दगी । भोर यदि उपन घर म आन दिया तो सार शहर म बदनामी होगी

झोर छोग उनका बहिषकार कर दग। सब जगह ऐसा ही वातावरण ह। जरमन अगरजो स घणा करत ह। यदध म अगरजञो न जिन अमानषी उपायो स काम लिया ओर सनधि की शरत जितनी निरमम ह उसस उनक परति घणा की भावना शतगनी बढ जाती ह। उन जोगो न खादय-पदारथो की आमद रोककर

हजारो बालको को भखो मरन दिया। खलतलासियो को जददाज सददित छबो दिया । उडाको को विमान सददित जतषा दिया । अब यदध-दढ क भयकर बोर

फटी ल तार प‌

स जरमनी को पीस दना चाहत ह। जमनो की भिखारियो स भी गई.बीती

हालत बना दना चाहत ह। तो कोई भी सचचा जमन कस इस शरगरज जाति

क किसी भी वयकति को अपन घर म घसन द सकता ह । उमर अरगरज सरी स कह दना कि यदि घषदद तकस विवाह करगी तो

उसकी हालत कोढी स भी भरधिक बरी हो जायगी | उस कोई छयगा तक

नही । वह कमी मर घर की दहली जञॉघ न सकगी । ऑसकर, बटा, यढ कस

बतलाऊ कि म तक कितना पयार करती ह। दिन-रात तरी दवी परतीकषा किया करती ह । अब तो मरी उचर भा लगी ह। और कितन साजन जीन की ह ! त हो मझ डबती का सहारा ह।...परनत त एक अगर ज सतरी स विवाह करता

ह, इस समाचार की अपकषा म यह सनना पसनद करगी कि तझ काल साप

न इस किया कि म निपती ही ह ।' पतर समापत कर मोना ऊचा दखती द। उसक सामन भयानक दासय

करता हझना शॉसकर खडा ह ।

'चार-चार साल तक जल की सजञा काटन क बाद यददी सजञा योगय ह । कयो ह न 0 वह फिर जञोर स हस पडा ।

'मझ तो यहा तक विशवास था कि मरी मा मर लिए सब कछ सदन करन को तयार ह। परनत, ..' वह फिर पागजन की तरदद हसा । वह कषोर जषोर स दस रददा ह ।

'लडा।ई न कितना परिवरतन कर ढालला | लडाई सा क हदय को नषट कर

दती ह। सभी जरमन पागल ही हो गय ह कि क‍या ) शअरगरजञ बालको को

भलो मारत ह। अगरजञो न मललादो को डबो दिया। अगर जञो न विमानो”

झोर उनक चालको को जला दिया। झोर तमन कया नही किया। अपन

कतयो को तो याद करो | यदध । यदद यदध | भो जरन जाति, त भी बदधि सरो बठी १!

शोसकर फिर हखता ह। मोना का दम घटन छागा। “वह यही ह। भधिक जीन की नही । झोर म ससार म एक निराघार

८६ कटील तार

कनया स विवाह कर उस अरपन साथ ल जाना चाहता ह, मानन इसी कारण स...

परनत एकाएक उसको हसी बनद हो गई। वह धाईद मार-मारकर रोन

कलगा। वह बोल नही सका। मोना की शाखो स भी शास करन लग। उसका हदय गदगद‌ हो गया । वह बोली--ओऑसकर, सभी दोष मरा ही ह । म तमदार--मा-बट क-भरम म अनतराय होकर भाई ह। तम शरकल ही घर जाओ। उस वदधा का हदय मत तोडी । तम अपन दश .जाशरो । मा क

पास जाओो ।

झॉोटकर भपना गरमगीन चहरा उठाकर ऊच सवर स बोजञा--दश ९

माता 0 जो दयादवीन ह, जो बदधिददीन ह, वदद दश १ .एसी माता ९ न मरा

कोई दश ह, न कोई मरी माता ह। घर जाना | कसा घर ९ किसका घर नही इस जीवन म तो कभी नही ।

दसर ही कषण पीठ फिरा, मोना उस रोक उसस पहल ही, वह लमब डग भरता हशरा दर निकल जाता ह।

अकली होत ही वह नितय की भाति काम म मन लगान की कोशिश करती ह | ढोर दहदन ह | दाना दना द । बाकी बच तीन जहाजञो क आदमियो को दध दना ह। परनत इस सब स निपटन क बाद सिवा परिसथिति

सलभान क भोर उसक पास अनय कोई काम नही रदद जाता ह।

झॉसकर की मा उस सवीकार करन को तयार नही, इसलिए जमनी क दवार भी उनक लिए बनद ह। वह ऑसकर को भोर ऑसकर उस चाहता ह। व एक ही जाति ओर राषटर क नही। उनक दश यदध म परसरार एक दसर क विरदध कड थ, इसी लिए अछतो क समान उनह जहा-तहा स धरला जाता

ह। इस विशाल परथवी पर उनक कषिए कही भी सथान नददी ।

झॉसकर | उस कितनी वदना भगतनी पढ रहदी ह | मोना विचारती ह।

कटील तार पऊ

१३ चौथ और पाचव झहात क आदमी, तीन-चौधाई सिपाहदी और अधिरकाश

अधिकारी चतमन गय | भराज कोई नया भझादमी जलन का काठ-कमणडल खोोदन भाया ह ।

लड किया क डन मकानो को एक नकषर दख आरा वहद कटोल तारो की बाड

क पास आया और एक चबतर पर चढकर सब कछ दखता ह। इसी समय मोना दगधशाजञा क दरवात पर आती ह ।

आगनतक अमरिकन ह। सवभाव स विनोदी ओर खब बोलनवाला द। बात शर करन क कषिए हसकर माफी मागता हआ वह पछता ह- क पि-घर

तो नही ही बचा जायगा न १

'स इस विषय म कछ नहो जानती, मददोदय ! शराप जमीदार स पछिएगा।'

तमस नही ? इस समय तो दस खत पर तमदी ही दो न १

जी हा, परनत म तो अब छोड दनवाली ह।' हा, हा, याद अपया। तमहार विषय म तो मन कछ सना भी ह भोर

यहा स रम कहा जाओरोगी १?

अरभी तक तो कछ भी निरणाय नही कर सकरी ह ।'

अमरिकन उस ऊपर स नीच तक एक निगाह म जस नापता-सा दख लता ह फिर हसता हआ कहता ह--दमार दश म चकनो, बहन ! हमार वहा झनको जातियो क सतरी-परष ह | तम भी उनम चलकर सममिलित हो जाओ ।

मोना चोकती ह। मजाक म ही कहा गया हो फिर भी उस इसम घ विचारणीय सामगरो मिकषती ह। अमरिका | विभिन‍न जञातियो का मिलन-

गह | ससार की सभी जातिया वा बसी हई ह। सभी को मिलञकर शानित- परवक रहना चाहिए, नही तो जोवन असझय दवो जायगा ।

रात म जब झॉसकर झाया तो वह अभरमरिकन आागनतक की बात उस

सनाती ह। और उसकी आखो स परकाश की दीघपि फट निकलनती ह ।

पद फटील तार

कषयो नही ? हज ही कया ह? वह महान सवततर दश ? इस भयकर यरोप स बचकर विशराम पान क ललिए कितना मधर सथतन ह वह !!

फिर भी एक कठिनाई ह। उसन सना ह कि एक बार जल हो आनवाला

वयकति अमरिका म परवश नही कर सकता । ऑसकर तो चार सालन तक नजर

कद रह चका ह। अमरिका उस अपनी घरती पर चढन दगी ? गिरजावर क पजारी स पछ लिया जाय

दसर दिन परसनन मख ऑसकर वापस झआाया। 'कोई हानि नही दोगी मोना | अमरिका की जकष म नजरकर होती दवी नही।

(किनत एक दसरी कठिनाई भी ह। भमरिकरा म जान क पहल मनषय क पास कछ रकम दवोना चाहिए जिसस कि वह नय दश पर बोझ रप म न पढ जाय ।*

यह रकम भरधिक तो नहो, पर सर पास इतनी भी नही। यदि म सवततर होता तो यही रहकर इतन समय म चार दजञार पोड कमा सकता । किनत कगप क बाहर निकजञा तो मर पास कवजञ पचास ही रह होग।'

'इसस कठिनता जसी तो कोई चीज नही, ऑसकर ! थोड ही समय म यह सारा नीकञाम दवोना ह ओर उसम स दता भरन क बाद तो मर पास, हम दोनो को परा हो जाय, इतना बच जायगा।!

नीलामी क लिए अगला दिन ह; मोना न पराणियो को इकटठा कर-करक घर म कञा खहा किया--चरन छोडी हई गाय, बछड ओर ब-ब करती भड-

बकरिया। टकतरी पर उसका छोटा-सा झणड जो उसन चरन छोड दिया था, उस वह लन गई। भमणढ को सार चोमास चरन दिया था। सपतह म दो बार वह वहा खद जाकर खली द झाती थी। आशा की पक किरण फटी, उसका भविषय परदाशमय डो गया मालस हआ। वह मन दवी मन म गान सगी और चरागाह म स रासता बनाती ऊपर चढन लगी।

ठीक ऊपर 'कोरीरस फॉली' की मीनार क पास पहची। वहा झचान# उसन एक पराणी का छोकना सना। ओर दसर ही कषण टाप बजात तीन

कटी ल तार ८९

जानवर नजर पढ। एक तो उपतका शरपना ही छोट गध क बराबर मढा था और दसर दो बड भौर काल नाथ हए मढ थ। जॉन कॉलट क व दोनो मढ थ। मोना दोनो को पहचानती ह। उसक चरागाह पर दोनो को खला छोड दिया गया था। यदद वह समझ गई ।

कपकपी पदा करनवातली लडाई होन कगी। छोटा मढा खन म सराबोर हो गया और भागन का परयतन करन लगा । किनत बड मढो न दोनो तरफ स उस दबा जिया था, इसलिए उसस भागा न गया। बह दाहिनी तरफ दौढता तो उस तरफ स उस तरफ छा मढा उस सौगो स टककर सारकर बाई तरफ धकका मार दता ओर जब वह बाई तरश भागता तो उस तरफ दसरा मद। उस सीगो की टकवर मारकर दादिनी तरफ भगा दता । इस तरह दोड-दौढकर बद किकततवय-विमद जसा हो गया । शआग-पीछ भी उसक जषिए रोक थी ।

झाखिर मढा एक बार सथिर खढा हो गया। उसकी फटी भरॉखो स चिनग।रिया चमऋन लगी। डसका ऊह जोर-पलोर स सास छोडता टकरी की तरफ कक न लगा।

सामन दी मीनार थी। मीनार क पास एक छट कबनसतान की बाढ थी । इस बाढ क दसरो तरफ सीधी नोकदार टकरी थी भोर उसकी तलहटोी म नीच गददरा समदर लदराता था।

मढा इस तरकर दखकर समदर की आवाज को कछ दर तक सनता रहा ओर फिर जोर स एक छलाग लगाई और पिछल परो पर खडा होकर सामन खड भपन परतिदवनदवी क सिर स सीग भिडा डसक सिर पर अगल पर रखकर उस लाध गया और वहा स फिर कबरसतान क घर क दसरी तरफ मढा जोररा स सास छोडत झोर फटी भाखो स सतनध होकर इस तरफ दखन कवगा और फिर वही पर, मानो कछ हआ ही हो, वह चरन लगा।

लडाई जब तक जारी रहदी, तब तक मोना सधबध खोकर खडी रही, और समापत होन पर वह ठिठक गई। किसी क आन क आशा म उसन नजर घमाई और झोसकर को बगल म खढा पाकर वह चकित हो गई ।

९० कटील तार

भयानक ।'

भयानक ।'

दोनो क मख स एक दवी बात निकली | ऑसकर मीनार पर इलकटरिक का समबनध तोडन को चढा था, वही स

उसन सारी घटना दखी थी ।

'हिलक निदयता की इसस अधिक हद ही कया ९! कददत-कदत ऑसकर क दात बजन लग, "इतनी नी चता--?

मोना उसकी तरफ एकटक दखन लगी। फिर दोनो ीर-धार टऋरी स

उतर गय।

नौलास का दिन झा गया। जल-अरधिकारी न छावनी को दवद म, नीकवाम होन की मजरी द दी। यह उपका मोना क परति आउिरी काय था,

झगल दिन तो उस वढा स चलल दहवी जाना था। मोना न मोटर म जात उस

दखा । शहरी पोशाक म वह पददचान म नही शराता था ; कषि घर क सामन स गजरत हए उसन अपना दट उतारकर मोना स विदा कषी । अश-अण स अगर ज सचचा ह !

जब गयारदद बनन को होत उस समय खान क पास खब हो-हढला

मचा रहता। जल-अधिकारी क हकम स सिपाही मोना की सहायता करन खड हो गय | व बाढ म स तनदरतत भाणियो को बाहर निकालकर बात झोर बछड भोर भडो क मयढ म रखत। ब-ब और शोरगजञ गजन लगा ;

मोना न सब कछ सना, भौर उसस यदद दशय दखा नही गया । वह घर म दरवाजञ क पास खडी दो गई ।

थोढी दर बाद ही दसरी आवाजञ भी होन बगी। वकील क साथ

नीलासी बोलनवाला और उसका कलक झातदा दिखाई दिया। उनक पीछ कई किसान थ। जान काललट सबक बीच म जञोर स हघता और शराग बढ-

चढकर बात करता सबस आग चल रहा था। रसका भावददीन चहरा दख-

कटी ल तार ९१

कर मोना को घणा हई । तीसर दवात को बाढ क दसरी तरफ फीक चहरव।लना

आॉसकर उसकी नजर पढ गया।

थोडी दर निरीकषण दवोन क बाद नीजञामी शर हो गई। वकील न मोट

रप स शरत पढकर सनाई--५एक भी बाको नही रददगा, सार चोपाय बच

दिय जायग ।' फिर नीलाम बोकतनवाला सटल पर खडा हो गया। कलवक डसक नीच करसी पर बठ गया और किसान चारो तरफ घरा बनाकर खड हो गय ।

'महरबानी | शराप सबन माल बराबर दख ही लिया ह। इस तरह क मोक बार-बार नही मिलनत । जान कारलट, साहब | सझ मालम ह कि आप बहत-सा माल खरीदग, इसलिए अब थली का मह खोलल रखिए। आपका नाम कया शराप तो मातत क सचच पारसी ह। शब यही पर झपनी परख

का सबत दीजिएगा ; आपको चलज दता ह।' एक अचछी हषट-पषट गाय को एक सिपाही बीच म लाया । डसकी पाच

धरष की उमर थी। मोना को याद था कि दो वष पहल उसन उसक चालीस

पोणड दिय थ। नीलाम दोन लगा--बोजो, बोलो, बोलो, दस-पनदरद दा, दखो इस तरह अनयाय नही हो सकगा । साठ पोणड दन पर भी ऐसी गाय

नही मिलगी, इतन म नही दिया जा सकता। हा कितना | सोलनद १ समनरदद ? अठारह १ एक-एक बढान म मजा नही । थजञी की भी इसम इजजत

नही। वाह, कितना $ बीस हा, बीस-बीस--बोलो, बीस स जयादा ९? किनत बीस पौणड स अरधिक कोई बढता दी नही था। बहत समय हो

गया, इसलिए बीस म ही बोल खतम कर डाली गई। नञाम १!

जञॉन कालट । आाध घणट स भी कमब वकत ऐसा दवी होता रहा । एक क बाद एक पश

लाया गया ; आधी कीमत भी न कगन क पहल उस एक तरफ कर दिया जाता और हर बार 'नाम १! परशन म जॉन कॉलड ही डपसथित हो जञाता ।

९२ कटील तार

मोना स न रहा गया | लट मार ! जॉन कॉरलट न कई किसानो को रोक लिया। वह जहा बठी थी वहा स उठ गई । उसन सोचा कि खिडकी खोलकर चिलकाऊ, किनत आगन की तरफ हाथ बढात ही उसकी ओऑसकर पर नकर पढी । भासकर लमब कदम बढाता हआ चलना गया। मोना बठ गई।

दसरा घणटा निकल गया | फिर मोना बाहर नही दलती, किनत बाहर जो कोई बोलता, वह उस सनाई दता ।

इसी परकार मातर नीलाम होता रहा । किसान बिना बोली बोल रह नही

सकत थ | नोलाम करनवाला और वकील आपस म कछ कानाफसी करत ह। 'तो जसी शरापकी इचछा ।' नीलाम करनवाला बकीज स कहता ।

वकीकष न सवर को मोटा करक कहा ; 'कपालशरो, यह तो अरब हद हो रही ह। जो म पहल स परकट न करता

होता कि बहत-स चीपाय बच डाजन को ह, तो म नीलामी बनद ही कर दता,

किनत शरव इतनी झाशा तो रखता ह कि आप सचच पारली बनिए | भराप यदद क‍या कर रह ह ? कतरा यह यदध ह १ आप विचार तो कीजिए। झाप राबट करइन को जानत दवोग, वदद तो गजर गय। अब यह उनकी एक कनया ह, उसक परति आप अपनी सहदयता नही बता सकत ९?

कई हसत हए बनद दवो गय, किनत भाव चढानवाल भी कम दो गय

और परिणाम म तो'कोई भी सनन‍दह नही रहा जो नोज!/म शाम तक चलत

रहन का खयाल था, बह दोपहर होत ही खतमर दवो गया । नीलामी न कहा--कपालशरो | शाप सब लोग जो यहा उपसथित रह

झोर नीलाम निरविषन हो जान म जो मदद की, इसक लिए म आप सबको घनयवाद दता ह । शरधिकतर काम, जिसको मन सचना दी, उसक सतःबिक ही उपतका अनत गतरा । आखिर जान कालट न दवी बहत-सा खरीद ढाला ।'

'ईशवर 8स सम।रग बतायगा ।' बकोकष न कहा । 'जिना नीजञाम ह ही मागा दोता तो म इसकी कीमत झधिक द दिया

होता; साहब !? जान काकषट न कहा ।

कटील तार ९३

'टीक ह, किनत आपको इस बातडही शरम भी नही आती, हसस दःख

टटोता ह ।!

मोना सब लोगो को आवाज सनती ह॥ “इस कषतर म जमन को रखन की जो हिममत करगा उसकी तो खबर ली

जानी चाहिए--

'और हमारी एक भी पाई जमन क पास कस जा सकगी, यह भी दम दख लग ।!

गय हए किसानो की बात सनकर मोना गससा दवो जाती ह ।

थोडी दर बाद वकील उसक पास झाया और कहा- मझ यह कहत द:ख होता ह कि झपनी धारणा क अरनसार माजन की कीमत नही मिलनी । जितनी कीमत वसल हई ह, उसम स नितामो क दसर खरच भी मशकिल स निकलग ।' |

'ऐसा क‍या, मर लिए कछ बचता ही नही १ मोना न उततजित होकर खढा ।

वकील नीच दखन लगा 'नही ।' उसक मह स मशकिल स उततर निकला। मानो सिर म चोट लग गयी हो, इस तरह मोना नीच बठ गई | वकीकष

क चल जान क बाद, उसका सिर भन‍ना गया । उसक कानो म कतत का भोकना, मनषयो का कोजाहल, ममनो का 'ब-ब' ओर गायो क रमान की आवाज आन लगी | चोपायो को उनक नय सवामी का नौकर दवाॉक ल गया ।

इसक बाद‌ बढी शा+ति हो गई, पर यह शानति तो उस वजञन की तरह

थी; जिसक नीच वह दब रहा था।

उसकी आखो स अधरा छा गया, उसका अमरिका इस अधर म दिखना बनद हो गया। उसक लिए तो दवोगी कटदी पथवी पर दसरी कोई जगद जहा यह झोर झॉसकर जा सक

सबह का समय हो गया, तब ऑसकर झआया। उसक दवोठ फडक रह थ, उसकी झाख अगार बरसा रही थी। मोना अरसहाय अवसथा म उसक सामन

दख रददी थी, उसम स मानो चतनता ही उड गई थी।

५४ कटाल तार

'परिणाम सन कषिया न १ 'सन बविया ।' दात भीचकर उसन कहददा । 'मनषय इतना नीच हो सकता ह १'

जञीच !! ऑसकर पागकष की तरह सता ह।

पयदध | कितनो भयकाता | कितनी मखता ! ओर यह यदध को जगान- वाल कह जात ह-दशभकत | नही, य लोग तो बदमाशो क भी बदमाश

ह, जो राजाओ म राजा ह, ऐस विशव-भरधिषठाता क सामन चालबाजञी खलन- वाल बदमाश !!

'किनत अधिर विचारन पर ऐसा लगता ह कि यदध की विभीषिका नषट हो जान पर भी ऐसी ही एक खराब वसत दसरी ह *ल

कया

'सलद ! यदध क बाद की यह दगभी सलह | कोगो न माना ह कि यदध

समापत होन पर निदरा आराती ह, बहत-सा विसमत हो जाता ह। कितनी

मखता | इसका विचार दवी कपकपी पदा कर दता ह। य बडढ यवको क भविषय की, भावी परजञा क जीवन की कपती निलजज खितली उडडा रह ह। व कोमती मानव-घन क विनाश को भलकर शराज उसक पस की खवारी, जमीन

का कठजा ओर जड वसतओ क नाश का ही अनदाज आऑकन बठ ह। ओर

पालन म सोत बाजषक को कलाती मा स उसक खन ओर आसशरो स भरपाई करना मागत ह। परजा क विरदध परजा को खडा कर दत ह और परतयक सतरी- परष भर बचच क हदय म ढव ष, शतरता का भयानक विष भर दिया जाता ह। जमन सना को जो अचछा लगता ह, वदद करती ह भोर बरिटिश सना भी जो भरचछा लगता ह, वह करती ह। किनत इनक साथ जमन माता का या अगन जञ पतनी का कया समबनध ह! भोह !'

मोना ऊपर दखती हई खडी ह, मानो भाकाश स किसी की बात को गरहण करन की राह दखती हो ।

कटील तार ९५

अपन हाथ की बात नही रहदी थी, हम असददाय थ। ऐसा हवी था न झोसकर ९१ मोना विचार कर रही थी १

आअसकर न शरपन को सभाला। उसन कषजजा और करणा क मिशरित भाव स, काम करत-करत मल हए मोना क हाथ को कषकर अपन होठो स सपश किया।

मोना, मझ माफ कर दो १'

'तमन सघरष स दर रहन का कितना परयरन किया १ कितना परयरन १? (किनत ईशवर न ही इसही पररणा शरॉसकर क हदय म उतपनन की । इसक

सामन अपना जञोर कितना चकनता ११

'आोर ऑसकर, शरव ईशवर न दवी हमको तयाग दिया ।' झॉसकर सोच ही रहा था। वह बोल डउठा--'नही, ईशवर न हमको जरा

भी नही छोडा ह ९

फिर वह वहा स चलना जाता ह।

का हापममपसान-+मनममक‍ाए- अमान + कस कडम-+फनपककी,

१७

ईसटर क तयोदवार क पहल का शनिवार ह। मोना न सोन क कमर की खिडकी म स कॉका। जहा बाहर दरियातती

का वातावरण था। नहा पचचीस हजार मनषय किसी परकार रहकर भरपनी

जिदगी बितात थ, उस जगदहद काकषी, सखी, वीरान भमि आखो को जललाती

ह। बिना जनम क चार-चार वसनतो की यहो पदाइश हई थी। इस ऊजढ जमीन स स व वसन‍त फिर कब जीवित होग ?

कवल तीसर दवात स कितनी भरवततिया दिखाई दती ह। वहा भी थोड ही

मनषय रहत ह। झरॉसकर को यदद बताया गया कि उस आदविरी टकडी क साथ ही छोडा जायगा, पर भरब छटन का समय दर नही ।

“घर' जयादातर खातनी ह। पराणियो की आव।ज खतम दो गई झोर

९६ कटी ल तार

झासपास की हवा म भी रस नही रहा ह। यह कतरिम शानति हदय म घब-

राहट उतपनन करती ह। तीन-तीन भझादमियो का खत का सखत काम जो

मोना भरझली दी खल खल म कर डाजती थी, उसी मोना स अब पक का भी

खाना नही बनता । फरसत और काम स उस थकावट दवो जाती ह। बसन‍त न अपन झागमन की खबर भज दी। घर क दरवाजञ क सामन

जञमीन पर उसन दोनचार फलञो क पौद डगा दिय। डनम फल खिलन को दो रह थ, पिता की मतय क समय का उस समरण हआ। पिता की कनतर पर

उसन उस दिन यही स ककर फल चढाय थ। इसी इराद स डसन भाज भी

यदो स थोड स फल तोड । घर क आग स वदद चलनतो जाती ह, किनत डसक उस तरफ आजञ कोई

दिखलाई नही दता। दरवाजञ क आग पसिपाहियो क घरो को चाजष उजढ

गई। रासत पर नजर डालती ह तो कोई पटटिक क रासत तक एक भी जीता मनषय दिखाई नही दता ।

एक परथर की तरती क पास यह पहची । उस पर खदा था---''राबट करहन--नोकालोना का निवासी ।” उसक बगल म ही दसरी तडितयो खडी ह, इन कइयो पर जरमन नाम लिख थ। नजरकद क चार वरषो क धोच म मर हए जमतर वहा सो रह थ ;

मानो झतय की शानति म वदध पिता न जमनो क परति अपन दष भाव

दर दिय हो, उस ऐसा करण वातावरण मालम दो रहा था ।

थोड ही फासल पर एक ऊची करतर पर छोटी-छोटी घासत उग रही थी

झोर पास दी फलो का एक काच का गमला रखा हआ था। रोग स मर हए लडवीग की कब पर उसन दी वह रखा था। बकफ और ठड क कारण काच म दरार पढ गई थी, भोर सफद फकनो की सनदरता गायब दवो गई थी। बदध पिता न जमनी क परति घथा-भाव . हदय म पाल झरस‍य पाई थी, किनत उनह कया पता था कि कछ समय बाद धरती माता क हदय म सखोकर वह एक जमन बचच क साथ अपनी परिषटी को एक बना दगी १

कॉटी ल तार ९३

'यह यदध ? भगवान | इतनी नादानी १ इतनी,घणा किस लिए १ मोना कतरसतान स वापस फिर रही थी। उस किसी राजञ की टाझी की

आवाज सनाई दी । जरा ओर झाग चकककर उसन उचर राजञ को दखा। उसक बगल म एक काशाज पडा था ओर सामन सगमरमर की एक तरती पढी थी । उस पर बह कागज म दख-दखकर कछ खोद रहा था। मोना डसक पास गई ।

“(कया करत हो चाचा ९'

'यह दखो न बटी | अपन दश क यवरको न यदध म पराण गवाय ह ।

अपन इलाक स जिनहोन पराण गवाय, उनका नाम खोदता ह।' राज न टाकी को जरा रोका और उततर दिया। मोना उसक बगल स बठकर सवाभाविक तोर पर नामो को पढन कषगी ।

“यहा पीकष का बढा सतमभ ह न ? उसी क दरवाजो क भाग इस तरबती

को समरण-सतमभ मानकर रोपना ह।' राजञ न कददा | ओर इसटर क सोमवार को, हा, परसो ही इसकी उदघाटन-कफरिया छोगी ;

सबह नो बज। उसी समय यहा स यदध म गय अपन यवको का पदलला सस‍टोमर डगछस को खाडी स झआयगा न ? वह रविवार को लिवरपजल स रवाना होकर सोसवार को सबद बराबर यहा पहच जायगा। और इसकी उदघाटन-करिया किसक दवाथो दवारा होगी, यह भी खबर ह १ बनदरगाह क

काड विशप क दवाथो स ; बढ-बड आदमी यहा मौजद होग । गवनर, कमि- शनर, पादरी, डपदशक, बयवसायो और बहत स योगय परतिषठित कलोग । परषो क साथ खरिया और बालक भी आयग।'

मोना का धयान नामावककी पढन स ही था ; इसलिए वह बात तो सन ही नही रही थी ।

त भी आयगी कया १ राज न परशन किया ।

म १! मोना कछ विचार म पढी ओर फिर उततर दिया--नही ।' "नही |! तो राज सकढो बार घनता रहा ह ।

९८ कटील तार

'हा, किसत चाचा, मोना न कहा--इसम रॉबी का नाम तो दिखता ही नहो ।?

राज टॉकी फिर तरती पर झढान हआ कि इस परशन को सनकर ऊचा

दखन कषगा | 'रॉबो ९ रॉबी करहन ? सच १ हस काहज स उसका नाम दवी नही दिया।*

(कयो १ यह यदध म बरिटन क कषिए मरा ह। इस तो विकटोरिया कराख भी परितना था ।!

'मिकषा होगा ।'

'मिलला होगा ।' 'परिकञा होगा ९ तम यह जानत ही हो । तो फिर इसम उसका नाम म

दन का कया कारण १९?

राज अपन काम की तरफ धयान दता ह, टॉकी परथर पर टक-टक होन

होन लगी शरौर वह उदासीनता स उततर दता ह।

'डस बचार न तो दश क लिए बहत कछ किया, किनत किसी दसर न

इसक किय-कराय पर पानी फर दिया ।'

मोना की पीठ पर मानो चाबक पढा । वह वहा स भागी। रासत पर

बहत झाग बढ गई, वहा तक भी उस राजञ की टॉकी सनाई दी, पर मानो

परलयकाकष का तफान आया हो, ऐसा उस मालम हआ । उसक सवजनो को

जीवित रखनवाजञा एक समरण ही उसको घर स बाहर निकाल रखना चाहता

ह | ऐसा उसन कया किया ह ९ किनत अधिक ,गसस क आवश क दसर ही

कषण, उस पर अपनी निरबकषता सवार दवो गई। 'खसार मनषय ही इतन निरदय कस दो सकत ह, यह समझ नही पढता !*

२५ ५ 4

शाम तक उसका मन बढा उदास रहा। फिर झचानक उस ऐसा लगा

कि इसका कारण यदध दोगा, यदध क बाद की सलदट होगी-- इस कारण लोगो क हदय मन चाह दषित बन गय, पर ईशवर न इनम झॉरकर को

कटोल तार ९९

ओर भझोसकर म इस चाहन की परवति पररित की हो तो उस सभाकत लना ईशवर पर निभर ह। अवशय, ईशवर ही इनका उदधार करगा, ईशवर ही लोगो क हदय म सहानभति उतपनन करगा, चददी इनकी झोख खोल गा--तब विशप,

पादरी, शहर का कमिशषर और बहत स भपन काम का पशचातताप करग। 'म निषपाप ह। दसर भी निषपाप कयो नही बन | निरदोष को दोषी

मानन का पाप व कस कर सकग ९१ पराणी तो बहत ही हो गय थ ; इसललिए घर की जररी वसतए खरीदन

व अभरब शहर स जान को थ । दकानदार इनक परति जरा भी समझ स काम

नही लत, किनत उन पर तो दोष या अवहलना का असर होता नही | बहत

कछ खरीदकर वापस घर शअात उनह दर होती ह । इस समय नोकालो का

छोटा रासता एक सकरी गली स होकर जाता ह | गली क नकड पर ही एक

शराबजाना था । आराज इस गली स कछ गढबड मच रही थी, खछ बरामदवाल एक घर

क सामन सतरियो ओर बालको का एक भकणड घर म होत रगड को सनन एकनन हो गया या। एक परष चिलला रहा था, एक छोटी कढकी चीज रही

थी, एक यवा सतरी उस परष को वस ही जवाब द रददी थी और एक बढिया दोनो को शानत करन क लिए सममभा रही थी ।

जवढाई म स मन खच क लिए जो रपय भज थ, व कया तर अपन हस अमन, . .को खिलान !!

'हरी, इसम मरा दोष नही, मन दसरा काम खोजन का परयरन किया, पर किसी को मरी परवा दवी नही हई ।'

(किनत सझ तरी परवाह नही थी | चलष, निकल मर घर स ।' 'म कटठती ह मझ परशान मत कर। मरी बचची को हाथ लगाया तो

याद रखना--!

याद रखना, अचछा ! दखता ह, घर स कस नही निकलती | चल, उठा ल जा अपनी कडकी को (!

१०० फटील तार

हरी | कलीजा ! हरी ! हरी |! क‍या करत हो मरा पट १ थझो हरी, कछ भी हो, ह तरी बहदिन ; ललीजा, अपन भाई स दवी ऐस बोलगी ९” बढिया

झाडा हाथ करती ह भोर घिसकती ह। भीड म की एक खतरी स मोना न पछा : यह कया दो रहा ह ९

अर, वदद कीजा ह न।! तम नही जानती १ भाई लडाई म गया झोर

बाद म बहिन ओर मा एक जमन कदी स दोसती कर बढी और उसस यह लडकी पदा हई । अब भाई लडाई स वापस झा गया ह, उसस यह कस सदन होता ९ इसलिए उस घर स निकाजत बाहर कर रहा ह, यह सवाभा-

विक ही ह ९ और भो कई शराबखान स गजरत हए आदमी वहा खड हो गय।

इसी समय लडाई म स वापस आया भाई, वह सिपाही अपनी बहिन को खोचत हए घर क बाहर ल शराया। वह सतरी छाती स अपनी छोटी बचची को चिपकाय थी । उसक बाल बिखर गय और पीठ पर फल गय । सिपाई। का सिर रला था।

'हट ककषटा | इस अपन जमन पाप को लकर बादर निकलष जा !”

सरी को रासत पर धकका द वह घर म घस गया झोर भडाभड दरवाज बनद कर दिय।

सरी दौढकर दरवाज स जाकर टकराई। 'खोतष, भान द मझ, अनदर आन द मझ !' एक दाथ स अपनी छोटी बचची को थाम दसर हाथ स वह दरवाज को खडखढडा रही थी।

झचानक दरवाजा खलत गबा, ओर डसका भाई दरवाज परआ खडा हआ | 'दख, सन ल, सोमवार को सवर कई मिलकनवाल आयग ओर तथ मर

सामन दख-दखकर दसग तो मझस सहन न होगा। इसकनिए यदि त यहा स न जायगी तो दो मिनट म ही तम..." .

राकषस, निषठर, जगली, त लडाई स मर कयो न गया। त जिनदा घर कषयो भाया (' कषीजा त तज दोकर कटददा ।

कटील तार १०१

यह सनत ही उसका भाई भावश स हो गया । उसकी मटटी खखत हो गई, किनत वह ऊची होकर नोची दवो पाय, इसक पदल दी कवोगो की भीड न इस धकका दिया भौर भीड स मोना को भी धकका लगा, जिसस खरीद हए सामान का भोला जोर स एक सिपाही क मह पर पढा और चढ “उफर' झावाज क साथ नीच गिर पढा ।

उधर वह सिपाही उलनटा सद किय पडा दाफ रहा था तब मोना इकठ

हए शराबियो की तरफ मढी ओर हाथ ऊचा करक बोली । 'तमम स मनषयता दवी नषट हो गई कया ? सब शिकारी कतत बन गय

कया ९ तमद जनम दनवाली एक रतरी थी, इस बहिन क परति बरताव स वह

बचारी शरम स मरी जाती होगी |! - सिपाही को गशत जसा झा गया, वह बठा नही रद सकता था, फिर भी

वह पडा-पडा 'ही-ही' करक हस रहा था, किनत बिना बोल उसस नही!

रददा जाता था। 'दख को यह इसकी बदिन | इसका चरितर तम सबन सना दवी होगा।

मन भी आकर सना। भरी, जब लडाई शर हई तब त कहा थी ओर भाज कषदो ह यह तो याद कर | अपन काम सभातन न, फिर इरम सीख दना। हा...दा'

डसक साथ इकटट हए जलोग दसन लग। और खतिया नीच सिर किय चतमती बनी । मोना सतममित हो गई । सिपाही को उसन जस बात की चोट

सारी थी, उसस भो अधिर जोर स उसक उलटी कषगी | परथर की मति की तरह कितनी ही दर तक वह खडी रदहदी भौर फिर झोजञा उठाकर बिना पीछ दख चकती गई।

हझमी-झभी उस भागय स दी भसछी नीद झा गई ह । झाम तो उसका जरा भी पतरक नही मपा । सबद की गलनाबी स डउल ऐसा कगा कि उसक बरामद म रॉबी परवश करता ह। रॉबी की जतवी उसन समन म कदपना की, चस ही अफसर की पोशाक म वह झा खा हआ। मोना को बराधरयाठ

१०२ कटी ल तार

ह कि रॉबी की रतय हो गई, इसलिए इस दशय को वह असतय नही ठहरा सकती थी ।

'मोना, तीन वरष पहल जो मझ इस बात का पता चलनता तो <स म जान स मार डालता । ईशवर की सोगनध खाकर कहता ह कि डस म जिनदा नही छडता ।'

मोना को सपषट शबद सनाई दिय, उसन बोलन का परयतत किया, किनत उसक मह स स आवाज ही नहो निकलनती थो ।

'रॉब‌...राब‌...ब ...बी, रॉबी !' “दसर किस काम क लिए तमन यह किया ह। यह सब नही समभत

ह, तमहार पिता डी न इस समझा शोर इसी शराघात न उनऊह पराण लिय ।' मोना फिर चितलाना चाहती थी, पर उरक होठ ही नही खल ।

'भमि माग द तो भमि म समा जा। नदी नही मिलनती कि उसम छब

सर 0 यह दख, मरी छाती म तन कितना गहरा घाव किया ह शोर शरब, ..!

रॉबी-रॉबी ...!'

तनदरा म स वह उठ बठी । सरय उदय दवो गया था और उसक असत- वयसत बिछौोन म उसकी परखरता पढ रही थी ।

सवमत ही था, पर सवपन इतना अधिक सपषट ? चारो तरफ स इसक परम को विकरालता घर रहती ह, यहो शरधिक बातो का अरनत आ जाता ह। जगत

झोर जीवन इसक बिए झब रहा नही। इसन जो किया ह, पाप न दवोत हए भी वह पाप क नाम स परिचित दवोता ह, यह थोडी सजञा ह ? इसकी भरपकषा पराण-दयड की सजञा थोडी नही होती | हजार दरज रतय इसस बदवतर ह।

सतय का मारग तो सइल ही ह भोर परिणाम भी हलक ह। किसी को हसका दःख नही हो सकता, सिवा ऑसकर क | किनत रद क जान स तो उधका मारग सरतन दवोता ह। किसी विशष वयथा क बिना वह अपन घर जा सकती द। दोनो म स कोई एक तो झाननद स जी सकता ह। उसक साथ

रहन का ही परतिबनध ह। भोर दखो, दोनो म स एक ही जीवित रहगा ;

कटील तार १०३

झासकर ही जीय तो उसक जीवन क बराबर द, उसक कषिए यही बहत अचछा होगा ।

ऑसकर को दख होगा, य विचार उस काट की तरह चभत ह। झासकर को दख होगा, पर वह तो जलदो ही भला जा सकगा और एक समय दख हलका होत उस सशष की व बडना जागगी, अभी तो बदद जवान ह, इतना भावक भरा होगा, इसकी शायद ही किसी को खबर हो. . .

नही, नही, यहा तक तो हसस बिचारा ही नही जा सकता ।

१२ ईसटर, ईशवर की मधर स मधर समटति ! वपष का सनदर गकलाबी दिन !

मोना जान क पदल आखिरी सख का अनभव करन घर को सजाती ह। यहत कछ काम निबटन क बाद उस खयाजन आया कि डसन अभी नाशता

नही किया, पर अब इसकी जररत ही कया ह) और फिर पय स कितन जञोर स लगी ह ? चाय की तपदयी उसन तयार की ओर खब कढक चाय बना- कर पी गई ।

गिज का घटा बजन कगा ; आखिरी बार उसन गिरजा म हो थान का

विचार किया | किस लिए न जाऊ १ अचछ दिखलाई दत लोग पसनद नही करग, इसलिए १ कछ परवा नही !

- बह बाहर निकली । हवा चतष रही थी। साथ ही फलो की भर वनसपति की सगध बहद रही

थी, समदर क खराश की उसस सगनध मितरी थी ; तरह-तरदद क पकषी आननद स किलोल कर रह थ ।

गिज स जब चद पहची तब घटा बनना बनद हो गया था | वह दर स पहची थी, रासत पर कोई दिखाई न दता था। कपड पहनन म दी उस दर हो गई थी, खड रहन स वह थक गई थी भर बार-बार बठना पडा था, इसस दर हो गई थी ।

१०७ कटील तार

गिरज क सामन जब वह पहची तब आराराधना शर हो चडी थी। अध- खकला दरवाजा वढ दख सकती थी। जकलोग घटन टक थ और पादरी 'पाप का

हकरार' पढ रहा था। लोग उसक पीछ-पीछ थ। अब वह अनदर नही जा

सकती थी । वह बाहर सटकष क पास खडी हो गई | सकल क बचच मच क बाई' तरफ घटन टक सिर ककाय हए थ। ईसटर क नय कपड पहनन को मिलन स उनक चहर खिलन उठ थ। वह भी बचपन म ऐसी ही थी। हदय-

सपरशी इशय था। जब मौत दरवाज पर खडी थी, तब बचपन का जीवन उस बहत पयारा कषगन कगा।

जब कछ भरावाज बनद हई, तब वह शरनदर घसन लगी । कितन ही सखोग उस पोछ खडी जानकर दखन कगो । उसको पसा जलगा कि मानो

झसपशय की तरद उस बाहर खडा रखा गया ह। ऐसा विचार झात दवी वदद

जहा की तदा खडी रही । | ०

आराधना क बाद भजन, पाठ, कीतन झादि होत ह। और फिर आाखिरी उपदश क पदल का भजन बाद स होता ह :

4]८5७, [0५८९ ० ॥9 500,

[.८८ ८ (0 (५४ 00०5०7 49. . ., मोना न कई बार इस गाया ह और फिर भी उस ऐसा लगता कि इसका

झथथ बह आज तक भी नही सममझी। १४॥॥८ धार 290९८7॥॥६ ५/४(८४5 0||, ९/॥॥८ (८ (2॥][25६ 5(0॥ 5 ॥68॥,

मोना तदखनीन हो गई । उस इसकी भी खबर न रही कि उसकी आअराखो

स ऑस बह रद थ। उपदरा शर हो गया | पादरी की झावाज उसक कानो

स टकराती ह । जञो पकषियो क कलरव म, हवा की सिसकारी म भोर खतो

म ममनो क ब-ब सवर म मितन जाती ह। ईश क शरनतिम दिन ह--डसझी रतय और पनरजीवन, उसक शननओ का

रोष और मितरो का कञोप ; बढी करण कदठानी ह, फिर भी कितनी सनदर ह।

कटी ल तार १०५

रतय को वह नीच ठल सकती थी, पर उसन लोभ न रखा था। सवचछा

स उसन झतय को निमनन‍तरण दिया था। किस लिए उसन ऐला किया कयोकि उस विशवास था कि अपन नाश म जगत को रकषा ह। ईश न मरकर

बताया कि अतमा क कलयाण क झयाग सारी वसतए तचछ ह। बन तचछ ह, कीतति (चछ ह, गरीबी और अमरी इसक मारग म कोई रकावट नही

डालत । ईश को अपमान मिला, तचछता मिलली, मितर रह नही, घर रहा नही, म नव-परिवार स दर उस रखा गया, उस जरा भी किसी परकार का

उददग न रहा | उसक हदय म परम ही एक बडी निदचि थी। ससार को परम

करन क बदल उस मोत मिलनी !

और हसी स ससार आज उसक झाग मसतक छकाता ह | आज दो

हजार वरष स उसकी महिमा की यातरा शर हई ह और वह ससार क पनन‍त

तक चाल रहगी। [,८( ॥८ (0 0५ 90507 9५, इश क इन वनो म

हम आराम मिलकगा ।

पादरी का बोलना खतम होता ह ओर वह शभराशीरवाद क वचन शर

करता ह, उसक पहल ही स ना घर की तरफ भाग जाती ह। उसकी शरॉशो

म भास की एक बद नही, उसका हदय झाननद स परफरल ह।

गाज तक वह यही समझ रही थी कि उसन ऐसा काय किया ह रि जिसकी ईशवर स कषमा सागरन पडग , किनत अब उसक हदय म नई भावना उतपनन हई | ईश न परम क कषिए अपना बलषिद[न दिया; वह भी परम क

लिए ही सब कछड सहन करती ह। बलनिदान भी दन जाती ह । ईश न रस‍य पाकर जगठ को जञीवन दिया, किनत डसक कषिएप ऐसा नही ।

विचारो क उठन म उस ऐशथा कगता ह कि ईश क और अपन काय म जरा भी भद नही। खद जो करन की इचछा रखती ह, वद पाप नही, बदिक

पणय ह, इसक पीछ वजिदान की भावना ह। यदध क परिणाम-सवरप घणा स ससार पीढित ह, उस खद वह बचान जाती ह। यहदपि वह जगत म

१०६ कटील तार

सामानय ह, किसी छो इसक काम क विषय म मालम नही दोोता, पर ईशवर तो यह जानन का ही ह ।

पर ऑरकर १ उसन शरॉसकर को कछ कहन का विचार न रखा था | वह उस हतना परम करती थी कि वदद उस ऐसा न करन को समझता था ।

उसका विचार ऐसा था कि मौका दखकर सटक जाऊ, पर य नवीन विचार बाद स उस आय, असकर भी यह नददी जानता था !

घणटो बीत जात ह, उस विशवास ह कि शरज आसकर आयगा | बठी बठी

यह कई पयाल चाय पी जाती ह, यह तो वह भल ही गई ह कि उसन कतल

स कछ खाया नही ह । दसशा की तरह झाज रात भी भरचछी तरदद गजर

गई, बाद म ऑसकर आता ह। आवग भौर उपवास स वह इतनी तो निबतल दो गई ह कि दरवाजा खोलन क लायक भी नही रही ।

हा, ददॉ [?

चद घर म अत! ह । कितन ही दिनो बाद वह अनदर अया ह। वदध को दसरी बार बीमारी का जोर हशरा तब वह झराया था । आकर वह अगाठी क पास उसक बगल म दी बठ जाता ह। उसका चहरा बिलकल सफद दो गया ह | उसकी आवाज भराई हई ह ।

कषया करना ह, भासकर ९

'कछ भी नही, डरन तञायक कछ नही। म तमस कछ कहन आया ह। कया )

कल म छट जाऊगा, मझ हकस मिकन गया द।' 'सबर ही १

हा, आखरी टकडी क साथ रह-सह सिपाही और अफतर भी चकत जायग। कल तो छावनी निञजनन बन जायगी।'

मोना का हदय जोश स घढकन लगता ह। उस वद कपर करन क लषिए‌ इधर-उधर क परशन करती ह।

'कषोग कछ कहत ह १'

कटी ल तार १०७

अर।रकर मम-बधह हसी दवसता ह ओर सहज ही कहता ह कलोग य लोग तो जानत ह झोर कहदत ह कि हम फर वापसत यही ञआराना ह | आज

तो हम भलो मार डालन जमनी म घककजा जा रददा ह; किनत हदय म घणा की आग भरकर हम यही फिर वापस शरायग ।

“इसका मतलब यह कि फिर एक दिन आज की दी तरह भयकर लडाई

होगी ९ 'मतलब तो यही होता ह, शराज जीती हई परजा दवारी हई परजा को जिस

निदयता स कचलन म आननद मानती ह, इसका परिणाम कया दवोगा ! पर ऐसा कभी यदि होन को हो तो भगवान एस। होना रोक, इस दःखी भगत

भोर जगत क दःख जवो क लिए इतना दःख बहत हो चका ह, शरब तो परभ इनह इसस बचा ल शरोर सखी को ,' ह

मोना को ऐसा लगता ह कि वह अचछी तरह समभती ह, पर बोल

नही सकती | ऑ।सघर बात करन का मौकरा जान कहन लगा : यदध क अनत म ससार को तो पक सनदर मौका मिलगा ही । जो

इसका अचछा डपयोग हआ दवोता तो फिर दसरा यदध किसी समय दवोना

समभव नही रहता। किनत परजाओ क विधाता-सतताधारी परषो न 'सलद'

ओर “बठको? म तो शानति की एसी ददशा कर दी कि इस सथिति क बजञाय तो यदध का चतनता ही रहना अचछा था, झोर दख कषो अरपन गिजो को दी,

जञिन गिजो न हम एक समय सिखाया था कि सनिक को तलवार क नीच कलयाण नहो, शारति नही । किनत आज यही गिज कसयाण और शानति क विधातक सनिकको क सिवा और दसरो को परवश नही करन दत। कितनो दाममिकता | कितना अततयाचरण ! आधयातमिकता का कसा वयभिचार [| ऐसा दी होना ह तो कयो न इन आराधना-गहो म आग लना दी जाती ९

कयो न इनक दरवाजञ बनद कर दिय जात ? और कयो न जस ह वस ही रहकर ससार क सामन खड नही रहत ? पर म भरभो आया ह, दसरी बात करन |?

शवय कटील तार

किसकी बात, आसकर १ झॉस‍कर थोडी दर रकता ह ओर फिर बाद म शबदो क परवादद म बहता ह। तझ ढरान की इचछा नही मोना | तथापि बीवा की तरह त पर नही

बीती ; मझ विचलित नही दवोन दती...किनत त ही मरी अब सवसव ह । ओर. . .तठक अकली छोडकर जात...नही, मझस ऐसा होना भरशकय ह, झसमभव ह, कभी समभव नही ।?

पर शओसकर | य लोग तमह जवदरती जददाज म चढा दग तो तम फिर कया कर सकोग १?

असकर पागल की तरदद हसता ह । 'जबदसती ? ससार म सिवा ईशवर क ऐसी कोई शकति नही, जो एक

मनषय स उसकी इचछा क विरदध कछ करा सक --यदि उस मनषय म शकति होती १.

शकति १!

“हा, शकति, , मर कहन का मतलब झभी भी नही समझी १ मोना ! पहल जब मझ यह विचार झाया, तब मझ लगा कि त यह सनकर घबरा

जायगी, शायद बहोश भी हो जाय और शायद मझ मर निरयाय स डिगान का परयरन कर, इसलिए मन तकस कछ न कददन का विचार किया, पर जब थाज रात को हक‍स आया कि मझ सबर जाना पडगा। तब मझ ऐसा कषरा--नदही, मोना झधिचनाश सतियो जसी सामानय नही, मोना बददादर ह, मोना समझ सकती ह कि यही माग उततम ह, इसतनिएप‌--'

मोना समझ जाती ह कि 'इसकषिप' शबद क बाद‌ अब क‍या झाया ह।

उसका हदय बहत झातर दवोता ह, फिर वह कददती ह-- 'कह डालो, ऑसकर | म जान जाऊ, यही बहतर ह ।' झासकर उसक झचिक पास झा जञाता ह। हवा क साथ बात करता हो,

इस परकार यह बोलता ह, दीवालो को भी वह अपनी बात नही सनाना राइता |

कटील तार १०९

'खबदद जब मरी तललाश होगी तब म तो हगा ही नही ? म वहा चला जाऊगा, जहा स मझ कोई पकड न सकगा इसी लिए हवी तकस विदा मागत अभी आया ह | शरपना यह आमिरी मिलनन ह मोना---?

अासकर की आख इतना कहकर मोना को दखन कषगी । उसन यह सोचा

था कि मोना स य आखिरी शबद सहन न दो सकग, वह मरछत हो आयगी, किनत मोना की आख तो जसी की तसी ही रही। वियोग का दख मो इसक हदय म अरब तक हो रहा था, वदद यह सनकर उड गया भोर

हरषावश स उसन अ।सस‍कर को गल लगा लिया ।

ऑसकर | मझ तमहारा वियोग असहय न होगा ९ तम चल जाओग,

अ(सकर की आखो स आस गिरन लगत ह । अ।सकर ! तम चल जाओग तो फिर मरी कसी सथिति १!

“नही, ऐसा न कहदो, मोना !'

'पर दखो, इस ससार स तम विकञीन दवो जाओग कया यह अनिवाय ह, यदि तमह ऐसी ही जगह चल जाना हषट हो कि जहा परजञा-परजा म आपस म

भद-भाव नही, तो हम दोनो साथ दवी वहा क‍यो न चल १!

वाथ ही ९! अऑसकर मोना क तजञोजवजञ चहर की तरफ दखता ह। 'इसलिए कया तम भी --

मोना उसका हाथ पकढती ह। उसका दवाथ कॉप रददा ह; मोना का

हाथ भी कॉपता ह । ऑसकर, टकरी पर की रटो की कढाई याद ह न तमको (?

'हा, जब भागय-विधाताओो की ऐसी ही इचछा हो कि नमन होकर हम जिनदा नही रहना तब नमर क किए एक ही मारग रहता ह कि उस बाढ को कद जाना।!'

मोना सिर भझका दती ह। ऑसकर का शवासोचछव|स जोर स चतनता

ह। मोना झख ऊची कर इसकी तरफ दखती ह, एक कषण तक दोनो क बीच मोन छा जञाता ह, फिर असकर बोला---

११० कटील तार

'तब तम भी ऐसी ही इचछा रखती हो १ सचमच ९१

'सचपमतच | ह

ओऔर फिर मोना अपन परगरम, दवी ओर पागल जस भावो को वयकत करती ह ।

अ।सकर क चहर पर गमभीरता थआ जाती ह, जयो-कयो मोना क विचारो की आभा उसक मसतिषक म छाती ह, तयो-तयो वह तजोमय बनता जाता ह।

'अपनी झतय को तम वयरथ और सख मानत हो ; असकर १ जो ईश न किया वहदी हम नहो कर सकत ९ कया सवचछा-पवक हम इतनी घणा और दिषमता स जगत को चतान म ह अपना बलिदान नही कर सकत १!

अासकर सिर ऊचा करता ह, उसको शोखो स भस बहत ह । “नही, ईशवर का पणय-परताप ऐसा ही परभावशाजञी ह ।' झौर फिर ससार को छोड दना ही डचित परतीत होता ह, इस परकार क

अदभत भावो म व धीर-धीर बात करत ह। जगत को यदध और यदध क परि- णाम-रप अनिषट स बचान क भाव म दोनो तहलीन ह। मदान‌ रतयकषय,

झआातमाओो क उदठारक, शिव न जस खद इलाइल पी लिया और जगत को

जीन दिया, परभ का निरदश हम भरणा करता ह, इसर विचार स थ मगन

बन जात ह ।'

आराधना-गह भकत हो अरषट हो गय हो, किनत ईश कटददो किसी जग बठ थोड ही ह। व अपन विशव-मनदिर म अमरतव भोगत ह।'

'खसच ह सोना, परभ का काय अबाधित ह।'

१६ दसर दिन सबह पाच बज एक यवक ओर एक यवती दर की एक टकरी

पर चढत दिखाई दत ह! टकरी क इस तरफ वीरान काकषी मिददी पर छावनी क छत-विहीन मकान खड ह और डस तरफ समदर क पानी पर अवयवसथित लहर ऊची उठ रही ह।

कटी ल तार १११

झाकाश म अभी थोढा-थोढा अरघरा लहरा रहा ह और इस शरधर की कर घनो हो जाय, इसक पहल ही जलदी-जलदी इनह तर जान की उतावदञी म कही कही थोड तार छिटकन लग। परभात स नीरवता सरोती ह। कही किसी मरग की आवाज भरा जाती ह । इसक अलावा वातावरण की एक

फमरम आवाजञ सनाई दती ह। इसक सिवाय चारो तरफ मौन बयाप रददा ह ।

दोनो एक दसर को साथ चकन रह ह | दोनो परसपर एक दसर का मख

मददी दख सकत | साथ-साथ रह सक, इसलिए एक दसर क हाथ म दाथ

ढाल चल रह ह, व भर धार चल रह ह, इसका एक कारण अधरा तो ह ही, किनत दसर कारण जो ह भी, व दसर कारण उनह सपषट मालम नही । थोड कदम चलकर य सास कन रकत ह। रासत को, जितना दवो सक, उतना लगबा बनान का परयतन करत ह ।

यह इनका शभराखरी परवास ही था |

“ऑसकर, आखिरी वकत म तमस अपन कसरो की म।फी मागती ह। मोना, तरा कोई भी कसर नही ;'

'जो कछ हआ ह, वह परकतिवश ही हआ ह, वबनन असहाय अवसथा म दी हआ ह ।'

कगप स निकल तब सरवतर शानति थी | कसप: म थोढ आदमी थ, थ भी

शानत थ ।

किनत टकरी पर झाध रासत पहच तब पीछ दखन पर नीच कालो जमीन पर कितन ही लोग चलत दोख। थोडी दर म उनक कान म बिगलत की

झावाज आती ह। कदियो की आजिरी टकडी को इकटा किया जाता ह और फिर बहत परकाश होता ह। तब घट की तीकषण आवाज दवोती ह | दवाजरी ली गई होगी और झॉसस‍कर मौजद न होगा।

'मरी खोज क लिए घटा बजा ह।' कहकर भासकर जरा रक जाता ह। इस दरमयान व टावर क छोट कबरसतान की दीवार क झाग भरा जात ह

११३ कटील तार

झोर किसी की नजर न पड जाय, इसलिए काकल भझाकडो क पीछ गायब दो जात ह।

दोनो घप ह | थोडी दर बाद काजली पोशाक पहन कदियो का दल दखन म आता ह । उनक दोनो तरफ पील कपडो म सज पिपाही ह। बहत स करपा 3यड क बाहर कच कर जात ह ।

'सरी खोज बनद कर दी गई, ऐसा मालम होता ह।' ऑसकर कहता ह। दोनो छटकार की सॉस लत ह ।

एक हकम का सवर सनाई पढता ह और फिर कदियो की कालल सॉप जसी कतार चलती दिखाई दती ह। जो बड दरवाडो क बाहर निकलकर

रासत पर चलती दिखाई दती ह । पहल तो 'ठब ठब' ऐस जतो की आवाज

सनाई दती ह। पर पीछ रहद पहरदार जब मोटा जञोह का दरवाजा 'किचढ' आवाज क साथ बनद करता ह, तब कदियो की ऊची हष-धवनि सनाई

दती ह । यह हष-धवनि ह, पर सभी क ऊह स बह एक रबर म नही निकली ।

हसक अनदर भरयकर निराशा ह, ओर इसक पीछ एक गीत का सवर भी ह-- 4>[09५9 (० (९ 09५८ ॥02 ० ०00,

वाला 505 जी ८00५9 पीशा' शा(६४८५$ 000, (0०परा80८ ॥॥ व€कलाशात 9 5७००१ ॥ वकषा0, . .

२५ २५ 2५

थोढ मिनटो म य इशय खतम हो जात ह। और झावाज भी सनाई बनद हो जाती ह।

सब गया-- अपन दश म था जहा इसकी जररत ह ओर चार-चार वध स इनह कद कर रखनवाली जलनो म इनक समरण ही रहग । जल अभी बवितनर पहाड की गोद म शरघरी गफा की तरह सख को खोल पढी ह ।

झचानक सोना को एक विचार सका । रतय वापस फरी जा सकती ह। जीवन का दवार इसक लिए भी खला ह ।

कटी ल तार ११३

झॉसकर | अफसर ओर पहरवाल तो चल गय। हम भी कही भाग जाय तो कोन दवढन पहचगा ! नही भाग सकत ९ कठिन ह !

'कठिन, बहत कठिन, मोना !! 'हा, ठीक, कठिन ही ह ।' ओर फिर दोनो आग बढत ह । परभात की परथम किरण फटती ह। इनक ओर समदर क बीच की जमीन

पर मोपडी थी, इसी समय उमम स एक गीत सनाई दता ह। गानवाली एक सतरी थी ओर मोना की परिचित थी। एक किसान-मननदर न थोड समय पहल ही उसस शादी की थी। उसका पति इस समय खत म गया होग।

झोर वदद काम फरती होगी | कितनी सखी होगी वह ! बार-बार मोना क हदय म निबतता आती ह। काल की अपनी उदातत-

भावना का इस विसमरण होता ह| वह सोचती ह कि दसरी सतरियो क भागय

म जो सख होता ह, वह उस नही मितरा । अपना भागय ही विचितनन ह ।

तझ; इसस पशचातताप दोता ह मोना ९! झरॉसकर उसकी सरफ दखकर

पछता ह, यह सनकर मोना चॉकती ह । “नही, गरॉसकर ! म तो अपनी भावना की, अपन भागय की अदमतता

की बात करती ह । अपन जसा सनदर भागय किसी का भी न होगा !? 'झपनी भावना | अपना भागय ! सतय ही हम भागयवान ह।!

दोनो हाथ म हाथ डाल ऊच चढत चलन जात ह। मोना का कई बार पर लचक जाता ह, पर ऑसकर उस पकड लता ह। (चडल की गीत-धवनि सनाई दती ह; जॉन काल ट क भमन का ब-ब सवर सनाई दता ह। दर दर नीच तलहटी म समदर किनार जञाल टकरियो क नीच पीत शहर पडा द । मकानो स काल घए का समह ऊचा चढ रददा ह |

“झोरकर, तम ठीक समभत हो कि जब कलञोग परसपर तिरसकार नही करत, किसी क दवरय म वर-भाव नही होता-तब यदध भी नहो होता ९!

११७ कटोल तार

(हा मोना | म एसा नही समझता ह, किनत यह सपतय कब आयगा ! शायद इसक पहल पथवी का परलय दवो खका होगा ।!

अवशय, हम अपना बलनिदान बहत ही अचछा लगगा, कारण कि हमन परम की ही भावना हदय म भरी ह और इमन सारी कामनाझो का- तयाग किया ह ।'

हा, परम की ही भावना हमार हदय म ह भोर किसी वसत की कामना

नही रखी । कइकर मोना झॉसकर क दवाथ म स अपना हाथ छडा लती द. झोर दइदता स कदम रखती भरान चलती ह।

जब शिखर क नजदीक व पहचत ह तब समदर की ध-ध आवाज सनाई दती द । ओर समदर की खराशभरी आती हवा उनक मदद क चमड को सखत बनाती ह। अरध-चनदरकार म पव-पशचिम स विसतत आसमानी समदर पढा हआ ह । निरददश ओर ठणड का घर ।

मोना ठिठकती ह । जब कि मजबत स मजबत हदय भी झतय क परथम दरशन स हिममत दवार जाता ह, इस परकार उसक पर ढील पड गय । वह बोलती ह, किनत उसकी आवाजञ म सपषट शिथिकषता दिखाई दती द ।

“बहत दर तो नददी लगती दवोगी, ठीक ह न ओोसकर “बहत दर नही।' 'थोडी ही कषण तगत हाग। 'थोढ दवी कषण ।! और फिर सनातन-काल क लिए हम फिर एक दवो जायग।! 'सनःतन काजन क किए ।*

'जो थोड दी कषणो क दख क बदल म बहत सख मितषवा दवो तो कयो न बह परापत किया जाय ।'

झब हस भय नही रहा । उसक सामन तीकषण घारवातली टकरी की सीधी

बाज दिखाई दती ह। भोर दोनो मिल कत ह भोर साथ चकषत ह। उसकी झाखो स भस निकल रह ह ; पर इसम ईशवर का तज ददी दिखाई दता द ।

कटी ल तार ११५

थोढ दी मिनटो म व किनार पहच जात ह। पौन सौ फीट नीच विविध तल सवर म समदर का गीत चाल ह। ओर मानो छाती फलाकर सास क रहा ह। सरय ऊपर आ जाता ह और परकाश काल रग म रग गया ह। इसक लिवा दसरा सवर सनाई नही दता ।

“इसी जगह पर ९?

“इसी जगदट पर सोना ।'

'तब तमहार अपन विचार क अनसार, ..! हा, उसी क अनसार ।'

झोर फिर विशव-पिता क य दो बालक अपन दवी भाहयो स विरसकत । जीवन म अलग हए और रतय पाकर एक बननवाल, य निरदोष वातमक घटन टक दत ह ।

तब पास झाकर दोनो धीम सवर म गात ह ।

()प7 लितीटा, एवी0 था वी वटकशटा' #णाटर५८ प$ ठएा ॥2८599$5८5. , , 05 9८ 0णिह५ट तोता 9६ 25.955 86०॥5$६ ७६६ ० «* ( हमार दोषो की हम माफो द, इसलवषिए जिसस दम अपन दोष करन-

वाल को माफ कर द ) २५ २८ »०५

व खड हो जात ह, दाथ म हाथ ढावत ह, समनदर क सामन दखत ह। --]८5प, [0१४८ ० ॥9 $505प [ अआसकर कोट क बटन खोल डालता ह, अपना कमरबनद निहालता ह।

दोनो एक दी कमरबनद म बधत ह । दोनो अब झामन-सामन हो गय, हदय स हदय मिललाकर एक बन गय ह।

समय झा गया ह झोसकर ['

हा, मोना !! 'एक भाजिरी चमबन --

११; कटील तार

झआ.सकर अपन दोनो हााथ उसकी कमर म डाल दता ह। दोनो क हॉड

एक दसर क होठो को सपश करत ह । 'परम तम पर ऐसा दी परम रख, जसा परम तमन मझ पर रखा ह।' 'परभ तम पर ऐसा ही परम रख, जसा परम तमन मझ दिया ह। परयाम-' “नहो, परणाम नहो, हम जदा नही होग ।!

'टीक ह, परथाम किस लिए १?

२५ ८ ५

सरय कषितिज स ऊपर आकर झवब तीदकषण किरण फकन कषगा ह। भतल समदर अपना गान चाल ही रख रहा ह ।

थोडी दर बाद भासमानी झाकाश क नीच सरय क तज म नाचत-चमकत पानी पर दकषिण तरफ स धवजा-पताकाओो स खजाया हशना एक जददाज दषटि म झाता दीखता ह। सनिको स वह भरा हआ ह। बहत स सनिक डिनारा दखन डक पर आ खड हए । उततर की तरफ उनका शहर पढता द ।

पील क बनदरगाह स तोप की आवाज छटती ह। फिर जददाज पर बनड का बजना शर दवोता ह। उमग म झाकर सनिक गान कगत ह--

॥९९८९८० हट ॥ण९--गा९$ 0पराताह, [॥ धार 0095 ८णा८ट गणा८. ... . . ह

थोढी दर म गिज का घटा बचन लगता ह। घणट की शरावाजञ ऊची होती जाती ह। भावाज भधिऊ तज होती ह--मानो झाकाश म स उतरती एक झावाजञ को सनाया जायगा, इस तरदद गिज का घणटा बमता ह--

आकाश स झआवाजञ उतरती ह-- शानति | शानति | शानति !