लॉकडाउन · लॉकडाउन अर्थव्यवसरा y קü...

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  • लॉकडाउनअर्थव्यवसरा

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    विशेष विविटल अंक

    देश को भूख से बचाने वाली खेती-ककसानी पर सबसे अकिक मार, राहत की दरकार

    l महा कोरोना सदमाl कशव कवश्वनाथन का नजररया l बेरोजगारी पर महेश वयास

    twitter.com/outlookhindi facebook.com/outlookhindi RNI NO. DELHIN/2009/26981

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    अंदर

    कवर फोटोः त्रिभुवन त्िवारी

    12 लॉकडॉउन सबसे बड़ा सह़ाऱा16 कोरोऩा पर एमस ड़ायरेकटर से ब़ातचीत 17 पजंाबः मुखयमंत्ी कैपटन अमररंदर ससंह की रणनीसत18 त्दलीः लॉकड़ाउन ही सह़ाऱा- सतयेंद्र जैन 19 छत्ीसगढः लड़ाई के स़ाधन पय़ायाप्त- टीएस ससंहदेव 40 कोरोऩा संकट में अवस़ाद क़ा स़ाय़ा घऩा

    20कोरोना सकंट के बीच ककसान

    26 डॉ. टी. हकः सकस़ानों को च़ासहए मदद

    27 त्वजय सरदानाः अफव़ाहों की म़ार

    30 इंटरवययः आर.एस. सोढी, एमडी, अमूल

    31 वी.एम. त्संहः कुछ कदम असनव़ायया

    06 अमेररकाः कयों हटे बननी सैंडसया

    08 जममय-कशमीरः दब़ाव में बदल़ा फैसल़ा

    10 त्िव त्वश्वनाथनः प्रव़ासी मजदूरों को भूल गए

    47 त्िलमः बॉलीवुड की सवदेशी टेंशन

    बेरोजगारी और कारोबारी संकट लॉकडाउन 2

    33 उद्ोग के स़ामने श्रसमकों क़ा संकट36 नौकररयों पर खतऱा व़ासतसवक39 रोजग़ार संकट पर महेश वय़ास से ब़ातचीत

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  • परीक्षा की घडीआउटलुक के 6 अप्रैल 2020 के अंक में हरवीर सिंह की बात िही है सक पूरी दुसिया ऐिे दुष्चक्र में फंिी है सिििे सिकलिे के सलए अिाधारण कदमों और उपायों की िरूरत है। कोसवड-19 महामारी िे सिपटिा स्चसकतिकों और िरकार के िाथ ही आम आदमी के सलए भी परीक्ा की घड़ी है। ‘मंसदर के बाद एक और भूसम सववाद’ रपट िे यह िािकर दुख हुआ सक श्ीराम की मूसतति लगािे के सलए ढाई िौ पररवारों को उिाड़ा िा रहा है। कुलदीप कुमार िे ठीक सलखा है सक आि के दौर में िभी पासटटियों िे तातकासलक सवाथथों के सलए मूलयों और आदर्थों को सतलांिसल दे दी है। दलबदल के कारण लोकतंत्र का मखौल बि रहा है।

    केशव रषाम सिंघल | अिमेर, रािसथाि कठोरतषा िे इलषाज

    लॉकडाउि में गरीबों को भोिि ि समलिे पर प्र्ांत भूषण िे ििसहत यास्चका दायर की है। अच्ा होता सक वे कोटटि िािे के बिाय भूखों को भोिि कराते। इििे उनहें भी पौसटिक आहार ििीब होता। गरीब वरैिे भी क्ारंटाइि और आइिोलेर्ि िरैिे भारी-भरकम र्बदों िे डरा हुआ है। इि लोगों को भोिि के िाथ अच्छे वयवहार की भी िरूरत है। िबसक कु् लोग असपतालों िे भाग-भाग कर िमसया को और बढा रहछे हैं। इििे िंक्रमण बढ रहा है। िरकार को इि पर भी धयाि देिे की िरूरत है। िरकार िखत िहीं होगी, तो लॉकडाउि का िौ फीिदी फायदा िहीं समलेगा।

    पषार्थ िुनील कषािषार | धुले, महाराष्ट्र

    घर में रहें, िुरसक्त रहेंिोर्ल सडसटेंसिंग और लॉकडाउि के सियमों का उल्ंघि करिे वालों को िमझिा ्चासहए सक िरकार हमारी भलाई के सलए ही घर में रहिे को कह रही है। िो भी इि सियम को तोड़ कर बाहर सिकल रहछे हैं वे िमाि के दूिरछे लोगों को भी परछेर्ािी में डाल िकते हैं। कोरोिावायरि िे लड़ाई की डगर कसठि है। यह ि्च है सक लोग इििे ठीक भी हो रहछे हैं लेसकि सफर भी बेहतर हो सक हम िावधािी बरतें। िब तक देर् में कोसवड-19 का प्कोप है, घर में रहिा ्चासहए।

    रषाधेश्षाम तषाम्रकर | ठीकरी, मधय प्देर्

    पत्र

    Îçÿæ‡æÑ ãñUÎÚUæÕæÎ ØæÎç»ÚUè Õé·¤ SÅUæòÜ, 040-66764498, çâ·¢¤ÎÚUæÕæÎ ©US×æÙ Õé·¤ SÅUæòÜ, 9912850566

    ©UîæÚÑ çÎËÜè - ¥æ§üÕè°¿ Õé@â °¢ÇU ×ñ‚ÁèÙ çÇUçSÅþUµØêÅUâü, 011-43717798,011-43717799, ܹ٪¤ - âéÖæcæ ÂéSÌ·¤ Ö¢ÇUæÚU Âýæ. çÜç×ÅðUÇU, 9839022871, U¿¢ÇUè»É¸U - ÂéÚUè ‹ØêÁ °Áð´âè, 9888057364, ÎðãUÚUæÎêÙ- ¥æçÎˆØ ‹ØêÁ °Áð´âè, 9412349259, ÖæðÂæÜ- §¢çÇUØÙ ‹ØêÁ °Áð´âè, 9826313349, ÚUæØÂéÚ- ×é·é¢¤Î ÂæÚðU¹ ‹ØêÁ °Áð´âè, 9827145302, ÁØÂéÚU-ÙßÚUˆÙ Õé·¤ âðÜÚU, 9829373912, Á`×ê- Âýèç×ØÚU ‹ØêÁ °Áð´âè, 9419109550, ŸæèÙ»Ú- ÁðÂè ‹ØêÁ °Áð´âè, 9419066192, Îé»ü (ÀUîæèâ»É¸)U - ¹ð×·¤æ ‹ØêÁ °Áð´âè, 9329023923

    ÂêßüÑ ÂÅUÙæ- §üSÅUÙü ‹ØêÁ °Áð´âè, 9334115121, ÕÚUæñÙè -…ØæðçÌ ·é¤×æÚU Îîææ ‹ØêÁÂðÂÚU °Áð´ÅU, 9431211440, ×éÁRȤÚUÂéÚU-¥‹Ùê ×ñ‚ÁèÙ âð´ÅUÚ,U 9386012097, ×æðÌèãUæÚUè- ¥¢ç·¤Ì ×ñ‚ÁèÙ âð´ÅUÚU, 9572423057, ·¤æðÜ·¤æÌæ- çßàææÜ Õé·¤ âð´ÅUÚ,U 22523709/22523564, ÚU梿è- ×æòÇUÙü ‹ØêÁ °Áð´âè, 9835329939, ÚUçß ·é¤×æÚU âæðÙè, 9431564687, Á×àæðÎÂéÚU-ÂýâæÎ ×ñ‚ÁèÙ âð´ÅUÚ, 2420086, Õæð·¤æÚUæð-ç˜æÜæð·¤è çâ¢ãU, 9334911785,ÖéßÙðàßÚU-°. ·ð¤. ÙæØ·¤, 9861046179, »éßæãUæÅUè- Îé»æü ‹ØêÁ °Áð´âèÁ, 9435049511 Âçà¿×Ñ Ùæ»ÂéÚ-UÙðàæÙÜ Õé·¤ âð´ÅUÚU, 8007290786, ÂæÆU·¤ ÕýÎâü, 9823125806U, Ùæçâ·¤- ÂæÆU·¤ ÕýÎâü, ®wzx-wz®{}~}, Âé‡æð- â¢Îðàæ °Ù °â °Áð´âè, 020-66021340,¥ãU×ÎæÕæÎ-·ð¤ ßè ¥Á×ðÚUæ °¢ÇU â¢â, 079-25510360/25503836, ×é¢Õ§ü- ΢»Ì ‹ØêÁ °Áð´âè, 22017494

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    िमषाज कषा नुकिषानआउटलुक के 23 मार्च के अंक में पेश देश की राजधानी ददल्ी के कुछ दिस्सों भड़के दंगे की भयावि और दद्चनाक त्सवीर मानवता को शम्चशार करती िै। लगातार दो ददनों तक जारी आगजनी, मार-काट, गोलीबारी और दिं्सा में लगभग परा्स बेक्सूर लोगों की जानें गईं। ्सैकड़ों लोग घायल हुए। यि ्सब तब हुआ जब अमेररका के राष्ट्रपदत ददल्ी आ रिे थे। ऐ्से ्समय में तो वयवसथा और राक-रौबंद िोनी रादिए थी। पुदल्स और प्रशा्सन में ्सदरियता की कमी थी। जादत, धम्च और ्संप्रदाय के नाम पर आप्सी लड़ाई और वैमनसय गिरे जखम छोड़ जाते िैं। यि देश और ्समाज के दलए नुक्सानदायक ्सादबत िोता िै। ‘धू धूकर जली दजंददगयां’ और ‘नफरत के शोलों का नया मंजर’ शीर्चकों के लेख अचछे लगे। अब डगमगाती अथ्चवयवसथा को पटरी पर लाने की रुनौती िमारे ्सामने िै।

    ्ुगल सकशोर | रां्ची, झारखंड

    पुरस्कृत पत्र

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  • आजकल

    इस समय समूची दुनिया और हमारा देश कोनिड-19 महामारी से जीतिे की जंग लड़ रहा है। इसके नलए सबसे प्रभािी कदम के रूप में 25 माच्च से लागू 21 नदि के लॉकडाउि को अब सरकार िे 3 मई तक बढा नदया है। अब लॉकडाउि 40 नदि का हो गया है। कुछ राजयों में इसकी अिनि अनिक होगी, कयोंनक िहां 22 माच्च के Òजिता करयू्चÓ या उसके एकाि नदि पहले से ही लॉकडाउि लागू कर नदया गया था। यह लॉकडाउि दुनिया में सबसे बड़ा और सखत मािा जा रहा है, इसनलए इसकी कीमत भी हमें दूसरों से जयादा चुकािी पड़ रही है। भनिषय में भी कीमत चुकािे का यह दौर जारी रहेगा, कयोंनक देश में चुनिंदा क्ेत्ों को छोड़कर तमाम आनथ्चक गनतनि नियां ठप हो गई हैं।

    पहले लॉकडाउि की अिनि के बीच में ही प्रिािमंत्ी िे अपिा िारा ‘जाि है तो जहाि है’ से बदलकर ‘जाि भी जहाि भी’ कर नदया। देश के लोगों, खासकर सबसे गरीब और कमजोर िग्च पर बेरोजगारी और भुखमरी की मार कुछ हद तक नदखिे लगी थी। कामकाजी आबादी के इस 90 फीसदी िग्च के पास ि कोई सामानजक सुरक्ा है, ि आनथ्चक सुरक्ा। इसनलए प्रशासनिक मशीिरी और िेताओं को समझिा चानहए था नक लॉकडाउि के मायिे देश की सारी जिता के नलए एक से िहीं होते। नकसी संपन्न शहरी इलाके और हाउनसंग सोसायटी में रहिे िाले मधय िग्च और बेहतर आय स्ोत िाले लोगों के मुकाबले गरीबों, प्रिासी मजदूरों और कामगारों के नलए लॉकडाउि के मायिे अलग हैं। यही िजह है नक लॉकडाउि की अिनि बढाए जािे के साथ ही मुंबई और सूरत जैसे शहरों में प्रिासी मजदूरों के िैय्च िे जिाब दे नदया। िे अपिे गांि-घर जािे की मांग के साथ सड़क पर उतर आए। इस तरह के िाकये केंद्र और राजय सरकारों के देश के हर आदमी का खयाल रखिे के दािों की भी पोल खोलते हैं। लगभग भुखमरी और पैसे की तंगी झेल रहे गरीब तबके से जुड़ी खबरें लगातार बढ रही हैं। प्रिािमंत्ी िरेंद्र मोदी िे 14 अप्रैल के संबोिि में कहा नक यह तबका उिका पररिार है और उिका उनहें सबसे अनिक खयाल है, लेनकि जमीिी हकीकत अलग है।

    सोशल नडसटेंनसंग या लोगों के मेलजोल या आिाजाही रोकिे की रणिीनत इसनलए भी सही कही जा सकती है कयोंनक हमारे पास नचनकतसा संसािि और ढांचागत सुनििाएं पया्चप्त िहीं हैं। पहले 21 नदि के लॉकडाउि िे केंद्र और राजय सरकारों को बीमारी के नकसी बड़े खतरे में तबदील होिे के पहले तैयाररयां करिे और इसके हॉटसपॉट नचननित करिे का मौका नदया है। लेनकि सही ससथनत का आकलि करिे के नलए देश के अनिकांश राजयों में टेसट की संखया बहुत सीनमत है। अभी तक हम प्रनत दस लाख लोगों में केिल 176 टेसट के औसत पर ही आ पाए हैं जबनक अमेररका में यह आंकड़ा 8,900 टेसट का है।

    दसूरी ओर, महामारी और लॉकडाउि के चलते अथ्चवयिसथा भीषण संकट में फंस गई है। अभी तक सरकार की तरफ स ेतो कोई आनिकाररक आकलि िहीं आया है लनेकि िैसविक संसथाओं के आकलि नचंता बढाि ेिाले हैं। अंतरराष्टीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) का कहिा है नक चाल ूसाल में भारत की जीडीपी िृनधि दर नगरकर 1.9 फीसदी रह जाएगी, निवि बैंक ि ेइसके 1.6 से 2.8 फीसदी के बीच रहि ेका अिुमाि लगाया है। आइएमएफ के मतुानबक, 2020 में निवि अथ्चवयिसथा तीि फीसदी नसकुड़ जाएगी। बाक्कलजे ररसच्च का कहिा है नक 2020 में भारत की निकास दर शूनय हो जाएगी तो ÒिोमुराÓ ि ेशूनय से भी आिा फीसदी िीचे जािे का अिमुाि जारी नकया है। एक ररसच्च संसथाि का आकलि है नक एक सप्ताह के लॉकडाउि से अथ्चवयिसथा का िकुसाि करीब 26 अरब डॉलर का है। सरकार ि े15 अप्रलै को जो गाइडलाइि जारी की हैं, उिमें शततों के साथ 20 अप्रलै स ेचनुिदंा आनथ्चक गनतनिनिया ंखोलिे की बात है। निशेषज्ों का माििा है नक आम आदमी के साथ ही कृनष और इकोिॉमी के दूसरे के्त्ों के नलए आठ से दस लाख करोड़ रुपये के पैकेज की फौरि जरूरत है। दुनिया के अनिकाशं देशों ि ेकाफी बडे़ और समग्र पैकेज घोनषत नकए हैं, लनेकि हमारी सरकार ि ेकोई खास पैकेज का ऐलाि िहीं नकया है। राजयों को जीएसटी और अनय मदों में देय रानश भी परूी तरह मुहैया िहीं करा पा रही है, तानक ि ेमहामारी से जगं में कुछ सबल हो सकें।

    नजस हाल में हमारी अथ्चवयिसथा पहले से ही पहुुंच गई थी, इस झटके के बाद उसे मंदी से बचािा काफी मुस्कल है। कुछ निशेषज् इसे 1979-80 के दौर जैसी बता रहे हैं, तो दुनिया में 1930 की महामंदी का हिाला नदया जा रहा है। इससे पहले नक हम इस पर गौर करते, एक दूसरी ही कोनशश शुरू हो गई। नजस तरह से कई जगहों पर अलपसंखयकों पर हमले, उिके कारोबारी नहतों पर चोट और एक असपताल में कोनिड-19 के मरीजों को िम्च के आिार पर बंटे िाड्ड में रखिे की खबरें आई हैं, िह महामारी से लड़िे में देश की एकजुटता को कमजोर करिे िाली हैं। इस मोचचे पर सरकार को सखती अपिािी चानहए और इस तरह के निभाजि पर अंकुश लगािे के नलए जरूरी कदम उठािे चानहए।

    @harvirpanwar

    हकीकत तो कुछ और

    हरवीर सिंह

    मुंबई और सूरत जैसे

    वाकये देश के हर

    आदमी का खयाल

    रखने के केंद्र और

    राजय सरकारों के

    दावों की पोल खोलते

    हैं, प्रधानमंत्ी ने

    भी गरीब तबके को

    अपना पररवार बताया

    पर हकीकत अलग

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  • अंदरखाने

    कोरोना काल में योगी का परहेज

    क्या कोरोनया संक्रमण कयाल में कयाम करते हुए ्ूपी के मुख्मंत्ी ्ोगी आदित्नयाथ अपने कुछ मंदत््ों से िूरी रख रहे हैं? पॉवर कॉरीडोर में चचयाचा तेज है। कोरोनया को ्ूपी में हरयाने के दलए सीएम कडी मेहनत कर रहे हैं। वे सुबह अफसरों की बैठक लेते हैं तो शयाम को फीलड में समीक्या करते हैं। कई दजलों के िौरे करके भी सीएम ने अफसरों को कसकर रखया है। लेदकन चचयाचा जोरों पर है दक सीएम ने एकयाध मंत्ी को छोडकर दकसी को इस कयाम में लगयाने की जरूरत ही नहीं समझी।

    आखिर कयों कटे-कटे हैं मंत्ी जी

    िे श और प्रिेश में कोरोनया संकट मंडरया रहया है लेदकन छत्ीसगढ़ के एक मंत्ी जी मुंबई चले गए। मुंबई से ही वीदड्ो कॉन्फ्ेदसंग के जररए कैदबनेट की बैठक में शयादमल हुए। इस पर हल्या मचया तो वे आए, पर हयाथ में क्यारंटयाइन की सील लगवयाकर। कोरोनया के रोकथयाम अदभ्यान में मंत्ी जी को अहम भूदमकया दनभयानी थी, लेदकन पहली बैठक में ही मंत्ी जी को नहीं बुलया्या ग्या। अब बैठक में बुलया्या भी जयाएगया, तो क्यारंटयाइन के नयाते नहीं जयाएंगे। चचयाचा है दक सब कुछ ठीक नहीं चल रहया है।

    समय का िेल

    दशवरयाज दसंह चौहयान ने एमपी के मुख्मंत्ी की कमयान संभयालते ही अफसरों पर तलवयार चलयानी शुरू कर िी। सबसे पहले मुख् सदचव को बिल दि्या और अपनी पसंि के अफसर को ले आए। अफसरों कया आनया-जयानया लगया रहतया है, पर कमलनयाथ के दन्ुक्त अफसर को एक हफते में मुख् सदचव की कुससी छोडनी पडी, ्ह एक ररकॉड्ड है। दपछली सरकयार में खयास रहीं िो मदहलया अफसरों को भी दशवरयाज ने दकनयारे कर दि्या। बडे पुदलस अदधकयारी भी हटया दिए। अब कयांग्ेस दशवरयाज पर तबयािलया उद्ोग चलयाने कया आरोप लगया रही है। कमलनयाथ के रयाज में ्ही आरोप भयाजपया नेतया लगया्या करते थे। ्ह तो सम् कया खेल है।

    हेल्थ मंत्ी की सेहत

    कोरोनया ने ्ूपी के सवयास्थ् मंत्ी ज् प्रतयाप दसंह को ऐसया जकडया दक वे अपने सवयास्थ् की चचयाचा छोडकर कहीं भी नजर ही नहीं आ रहे हैं। कोरोनया की आशंकया से दिरे मंत्ी जी अब सवसथ बतयाए जया रहे हैं पर लगतया है दक महकमे पर उनकी डोर कमजोर हो गई है। उनकी कमी पूरी कर रहे हैं दचदकतसया दशक्या मंत्ी सुरेश खन्या। उन्हें न केवल मुख्मंत्ी के सयाथ बैठकों में िेखया जया रहया है बललक मेदडकल कयालेज असपतयालों में भी िौरे कर रहे हैं। दसंगर कदनकया कपूर की पयाटसी में दशरकत से चदचचात हुए मंत्ी के दस्यासी भदवष् पर अब मीदड्या की पैनी नजर है।

    कोरोना संकट अभूतपूर्व है, लोगों के जीरन और आजीवरका पर प्रभार को लेकर

    अवनश्चितता है। ग्ेट लॉकडाउन 1930 के ग्ेट वडप्रेशन के बाद की सबसे बडी मंदी

    लाएगा। आव््वक हालात 2008 के रैश्विक वरत्ीय संकट से भी जयादा खराब होंगे

    गीता गोपीनाथ, चीफ इकोनॉमिस्ट, अंतरराष्टीय िुद्ा कोष

    संकट में भी उनकी बल्े-बल्े

    कोरोनया संक्रमण से कई लोगों पर पहयाड टूट पडया, लेदकन कुछ ऐसे लोग भी हैं, दजनकी दकसमत चमक गई। छत्ीसगढ़ में ऐसे ही एक आइएएस अदधकयारी हैं, जो दपछले 15 महीने से पररदृश् से गया्ब थे और लोग उनके ससपेंड होने कया क्यास लगया रहे थे। ्े अदधकयारी दपछली सरकयार में महतवपूणचा भूदमकया में थे। भूपेश सरकयार ने उन्हें ्याि करनया ही छोड दि्या थया। लेदकन सरकयार को अचयानक कोरोनया संकट में उनकी ्याि आ गई और उन्हें कोरोनयावया्रस से दनपटने वयाले दवभयाग में ही महतवपूणचा दजममेियारी िे िी गई। कहते हैं दक बुरया सम् भी दकसी-दकसी के दलए शुभ समयाचयार लेकर आतया है।

    कोरोना की खसयासत

    दिल्ी सरकयार ने आजयािपुर फल और सबजी मंडी में आने वयाले लोगों के दलए दन्म बिल दिए हैं। इसको लेकर केंद्ी् कृदि मंत्याल् के अदधकयारी खफया हैं। उनकया कहनया है दक सुबह कया सम् सबजी के दलए और शयाम कया सम् फलों के दलए रखया ग्या है। अब दिल्ी सरकयार को इतनी सी बयात समझ नहीं आती दक अदधकयांश करोबयारी और ररटेल नेटवक्क फल और सबजी िोनों कया कयाम करते हैं लॉकडयाउन और महयामयारी के िौर में वह िो बयार मंडी कैसे आएंगे। इसकया खयादम्याजया दकसयानों को भुगतनया पड रहया है। वैसे मंत्याल् के कॉरीडयार में तो कहया जया रहया है दक सबजी वयाले रयाजनीदतक रूप से आम आिमी पयाटसी के करीबी मयाने जयाते हैं, इसदलए उनके दहत पहले जबदक फल वयालों को भयाजपया कया करीबी मयानया जयातया है। अब इस तरह के मयाहौल में भी रयाजनीदत करनया ठीक तो नहीं है। लेदकन रयाजनीदत करने वयाले कोई मौकया नहीं छोडते हैं।

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  • डेमोक्रेटिक पािटी करे ओहदेदारों में बहुत कम लोग हैं जो बर्टी सैंडस्स की राजर्ीटत को पसंद करते हैं। दरअसल, उर्की राजर्ीटत अमेररकी र्ागररकों करे र्जररए में आमूलचूल बदलाव लार्े वाली है।

    अमेररकी पांत वरमोंि करे सीर्ेिर सैंडस्स दुटर्या करे इस सबसे अमीर देश में अमीर-गरीब करे बीच बढ़ती खाई करे घोर आलोचक हैं। उनहोंर्े अमीरों पर जयादा कर का बोझ डालर्े और सबकरे टलए बेटसक

    यूटर्वस्सल हेल्थकरेयर करे पक्ष में लगातार पचार टकया है। सैंडस्स लाखों करोड़ डॉलर करे एजुकरेशर् और मेटडकल लोर् माफ करर्े की मांग करते रहे हैं। उर्की इर् मांगों र्े र् टसफ्फ उर्की अपर्ी पािटी में, बललक दूसरों करे टलए भी खतरे की घंिी बजा दी है। लेटकर् जो बात सबसे अटिक असर पैदा कर रही ्थी, वह ्थी गैर-बराबरी करे पुरार्े और शाश्वत मुद्े को बार-बार उठार्ा। सभी चुर्ावी रैटलयों में चुटर्ंदा

    अमीरों और बड़ी तादाद में गरीब अमेररटकयों करे बीच संपटति करे अंतर को वे पमुखता से उठाते रहे हैं। ऐसे समय जब लोग पूंजीवादी वयवस्था करे फायदे पर सवाल उठा रहे हैं और जयादा समार्ता वाले टवश्व की मांग कर रहे हैं, उर्करे वामपं्थी टवचारों से लोगों का आकट््सत होर्ा कोई आश्चय्सजर्क बात र्हीं ्थी। सववेक्षण करे र्तीजे बताते हैं टक 20 साल से कम उम्र करे जो मौजूदा मतदाता हैं, वे अपर्ी टपछली पीढ़ी की

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    सैंडस्स के पीछे हटने के मायने

    अमेरिका

    अगर अमेररकी राष्ट्रपटत चुर्ाव में मतदाताओं का दायरा अमेररका से बाहर भी होता तो शायद बर्टी सैंडस्स को अगला राष्ट्रपटत बर्र्े से रोकर्ा मुल्कल हो जाता। लेटकर् 78 साल करे इस डेमोक्रेि उममीदवार र्े 8 अपैल को चुर्ावी दौड़ से अपर्ा र्ाम वापस ले टलया। इससे यह बात एक बार टफर साटबत हुई टक

    डेमोक्रेटिक पािटी करे ओहदेदारों में बहुत कम सैंडस्स की वामपंथी राजनीटत

    करे प्रशंसक, मगर कोरोना करे बाद करे दौर में उनकरे टवचार प्रासंटगक रहेंगे

    प्रणय शमामा

    काांतिकािी तिचािकः बर्नी सैंडसमा चुर्ाि में पीछे हटे पि असि बदसितूि कायम

  • तुलना में समाजवाद को ज्ादा पसंद करते हैं।सैंडस्स बड़ी अमेररकी कंपनन्ों, अरबपनत्ों

    और वॉल स्ट़्ीट की आलोचना करते रहे हैं। बड़ी संख्ा में अमेररकी मतदाता, खासकर ्ुवा, उनके नवचारों से प्रभानवत हैं। ्ह़ी नहीं, अमेररका से बाहर भ़ी उनके प्रशंसक काफी हैं। ्हां तक नक बहुत से ्ुवा भारत़ी् भ़ी चाहते थे नक अगर अनुमनत नमले तो वे अमेररका जाकर बननी सैंडस्स के पक्ष में चुनाव प्रचार करेंगे।

    इसमें कोई संदेह नहीं नक बराक ओबामा के बाद अमेररका का कोई अन् नेता दुनन्ा के दूसरे देशों में उतना नहीं पसंद नक्ा ग्ा, नजतना बननी सैंडस्स को लोगों ने पसंद नक्ा। लेनकन सैंडस्स और ओबामा के ब़ीच काफी अंतर है। ओबामा अफ्ीकी-अमेररकी मूल के, अमेररका के पहले अश्ेत राष्ट्रपनत थे। वे ्ुवा, स्पष्टवाद़ी और बेहतऱीन वक्ा थे। हर मौके पर अपने श्ोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते थे। तुलनातमक रूप से देखें तो सैंडस्स नबलकुल नवपऱीत प्रकृनत वाले व्क्क् हैं। वे वृद्ध हैं, 78 साल के सैंडस्स सभ़ी प्रत्ानश्ों से ज्ादा उम्र के और श्ेत हैं, ओबामा की तरह वे मध्मागनी भ़ी नहीं हैं। वे ऐसे कांनतकाऱी हैं जो अपऩी वामपंथ़ी नवचार्धारा को व्क् करने से डरता नहीं। नकस़ी प्रोफेसर की तरह भाषणों में उनका लहजा उपदेशातमक रहता है, ओबामा की तरह वे मनमोहक वक्ा नहीं हैं। दोनों के ब़ीच एक और बडा अंतर ्ह है नक बननी सैंडस्स अफ्ीकी-अमेररकी मतदाताओं को अपऩी तरफ खींचने में नवफल रहे। हालांनक उनहोंने बड़ी संख्ा में ्ुवाओं और अ्धेड उम्र के कामकाज़ी वग्स को प्रभानवत नक्ा। वास्तव में देखा जाए तो अश्ेत लोगों का समथ्सन नहीं नमलना, उनके प़ीछे हटने की एक बड़ी वजह हो सकत़ी है, बावजूद इसके नक वे लंबे सम् तक डेमोकेनटक पाटनी के प्रत्ानश्ों में सबसे आगे रहे।

    नवंबर में होने वाले राष्ट्रपनत चुनाव के नलए बननी सैंडस्स को राज्ों में काफी प्राइमऱी वोट नमले थे। आ्ोवा, न्ू हैंपशा्र और नेवादा में फरवऱी में हुई वोनटंग में उनहोंने काफी दमदार प्रदश्सन नक्ा था, लेनकन साउथ कैरोनलना में राजऩीनतक माहौल उनके नखलाफ बनने लगा, नजसका फा्दा उनहीं की पाटनी के दूसरे प्रत्ाश़ी जो नबडेन को नमला। एक सम् था जब एम़ी क्ोबूचर, प़ीट बुनटनगएग, माइक बलूमबग्स और एनलजाबेथ वारेन भ़ी डेमोकेनटक पाटनी की तरफ से अपऩी-अपऩी उमम़ीदवाऱी जता रह़ी थीं, लेनकन अंततः ्ह रेस दो श्ेत पुरुषों के ब़ीच रह गई। वॉनशंगटन, फलोररडा, नमनशगन और टेकसास जैसे कई राज्ों के सेंटर-राइट डेमोकेनटक नेता अचानक जो नबडेन के पक्ष में आ गए। तक्क नद्ा ग्ा नक जब प्रत्ानश्ों की संख्ा अन्धक थ़ी तब सैंडस्स का प्रदश्सन अचछा था, लेनकन जब रेस उनके और नबडेन के ब़ीच रह गई, तब उनका प्रदश्सन उतना बऩि्ा नहीं रह ग्ा।

    जो नबडेन के सामने बननी सैंडस्स के हार मानने की एक और प्रमुख वजह ्ह माऩी जात़ी है नक राज्ों में हुए महतवपूण्स नप्रनलनमनऱी चुनाव में ्ुवा डेमोकेट समथ्सक बहुत कम आए। चुनाव़ी नत़ीजों से पता चलता है नक 18 से 38 साल के आ्ु वग्स वाले डेमोकेनटक पाटनी के प्राइमऱी मतदाताओं में 50 फीसद़ी से अन्धक की पहल़ी पसंद सैंडस्स थे। प्रत्ेक राज् में उनहें ्ुवाओं का वोट हानसल हुआ था। लेनकन सुपर ट्ूजडे को हुए मतदान में ्ुवा मतदाताओं ने कम भाग नल्ा और नबडेन ने 14 में से 10 राज्ों में ज़ीत हानसल कर ल़ी।

    कुछ नवशेषज्ों का कहना है नक अमेररकी चुनाव में ्ुवा मतदाता हमेशा कम संख्ा में भाग लेते रहे हैं।

    उनका कहना है नक अमेररका के नकस़ी भ़ी चुनाव में देखें तो ् ुवा मतदाता, बुजुगगों की तुलना में कम संख्ा में वोट देते हैं। ऐसा 1972 में भ़ी हुआ था, जब 26वें संशो्धन के जररए वोट डालने की न्ूनतम उम्र स़ीमा घटाकर 18 वष्स कर द़ी गई थ़ी। ्ुवा मतदाताओं के कम संख्ा में वोट देने का एक बडा कारण पाटनी के नप्रनलनमनऱी चुनाव की जनटल प्रनक्ा को माना जाता है। अभ़ी तक बहुत कम नेताओं ने इस जनटलता के बारे में ्ुवा मतदाताओं को समझाने का प्र्ास नक्ा है। इस़ी का नत़ीजा रहा नक जो ्ुवा सैंडस्स की रैल़ी

    में पहले पहुंचते थे और उनके कांनतकाऱी नवचारों पर प्रफुक्लित होते थे, ऐन चुनाव के नदन उनमें से बहुत थोडे ह़ी मतदान के नलए ननकले।

    बननी सैंडस्स डेमोकेनटक सोशनलस्ट हैं। वे एकमात्र अमेररकी नेता हैं नजनहोंने अपना हऩीमून सोनव्त संघ में मना्ा। सैंडस्स के साथ ऐसा दूसऱी बार हुआ है जब डेमोकेनटक पाटनी के भ़ीतर ह़ी राष्ट्रपनत चुनाव के नलए नामांकन हानसल करने में उनका जबरदस्त नवरो्ध हुआ हो। चार साल पहले भ़ी जब नहलेऱी क्क्ंटन पाटनी की पसंद़ीदा उमम़ीदवार थीं, तब पाटनी ने इस बात की हर मुमनकन कोनशश की थ़ी नक सैंडस्स राष्ट्रपनत चुनाव में डेमोकेनटक पाटनी के उमम़ीदवार न बनें। डेमोकेनटक पाटनी की इस आपस़ी लडाई से ररपक्बलकन पाटनी के उमम़ीदवार डोनालड ट्ंप की ज़ीत की राह आसान हो गई। नपछले चुनाव में बननी सैंडस्स के हर आठ में से एक समथ्सक ने ट्ंप के पक्ष में मतदान नक्ा। कुछ लोगों को डर है नक इस वष्स नवंबर में होने वाले चुनाव में भ़ी ऐसा हो सकता है। शा्द इस़ी को रोकने के नलए जो नबडेन ने बननी सैंडस्स और उनके समथ्सकों की सराहना की। उनहोंने कहा नक सैंडस्स ने एक राजऩीनतक प्रचार ह़ी नहीं चला्ा, बक्लक उनहोंने एक आंदोलन खडा नक्ा। ईमानदार और न्ा्ोनचत अमेररका की शक्क्शाल़ी आवाज बनने के नलए उनहोंने सैंडस्स का ्धन्वाद भ़ी नक्ा।

    अब सवाल है नक जो बननी सैंडस्स अपऩी राजऩीनतक नवचार्धारा को कभ़ी व्क् करने से डरते नहीं थे, वे अपने प़ीछे क्ा छोड गए हैं। जाने-माने नटपपण़ीकार एड ल्ूस ने नपछले मह़ीने फाइनेंशियल टाइम्स में नलखा था, “सैंडस्स चाहे नजस बात पर नबडेन के नखलाफ लडाई में प़ीछे हटें, अमेररका के वामपंनथ्ों में एक कसक रह जाएग़ी।”

    नपछल़ी शताबद़ी की शुरुआत में समाजवाद अमेररका में एक लोकनप्र् नवचार्धारा थ़ी, लेनकन बाद के वषगों में ्ध़ीरे-्ध़ीरे ्ह खतम होत़ी गई। बोलशेनवक कांनत के बाद जब मॉस्को में पहल़ी समाजवाद़ी सरकार बऩी तब अमेररका में समाजवाद़ी नवचार्धारा को देशद्ोह जैसा समझा जाने लगा। लेनकन क्ा अब ्ह नवचार्धारा दुनन्ा के सबसे बडे पूंज़ीवाद़ी देश में लौट रह़ी है? प््सवेक्षकों का मानना है नक सैंडस्स भले ह़ी चुनाव़ी रेस से बाहर हो गए हों, उनके बहुत से नवचार अलग-अलग रूपों में डेमोकेनटक पाटनी के एजेंडे का नहस्सा बन चुके हैं।

    कोनवड-19 वैक्श्क महामाऱी का दुनन्ा की अथ्सव्वस्था पर क्ा असर होगा, इस पर सं्ुक् राष्ट्र की नव़ीनतम ररपोट्ट कहत़ी है, “इससे दुनन्ा भर में कऱीब एक सौ करोड नौकरर्ां जा सकत़ी हैं।” नबलाशक, ्ह देखने ला्क होगा नक इस उभरते पररदृश् में वरमोंट के स़ीनेटर के कांनतकाऱी नवचार कोनवड-19 के घाव से दागदार समाज के ब़ीच संतुलन बनाने में अमेररकी ऩीनत-ननमा्सताओं को नकतना परेशान करेंगे?

    सैंडस्स बड़ी अमेरिकी

    कंपनियों, अिबपनियों औि

    वॉल स्ट़्ीट के आलोचक िहे

    हैं। अमेरिकी युवा िो उिके

    नवचािों से प्रभानवि हैं ह़ी,

    अमेरिका से बाहि भ़ी उिके

    प्रशंसक काफी हैं

    अमेरिका

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  • रह रहे हैं या फिर फिनहोंने िम्मू-कश्मीर ्ें स्थित फकसमी फिक्षण सं्थिान से 10वीं या 12वीं की परमीक्षा दमी है और सात साल तक यहां अधययन फकया है, उनहें ्थिानमीय फनवासमी ्ाना िाएगा। लेफकन इस कानमून ्ें ग्रुप 4 यानमी चपरासमी िैसमी नौकररयां हमी ्थिानमीय लोगों के फलए आरफक्षत की गईं और बाकी नौकररयां देि भर के उम्मीदवारों के फलए खोल दमी गईं।

    कभमी राजय रहे और बाद ्ें दिाजा घटाकर केंद्रिाफसत क्षेत्र बनाए गए िम्मू-कश्मीर के कानमूनों के ्थिान पर यह आदेि िारमी हुआ है। केंद्र ने राजय के 109 कानमूनों ्ें संिोधन और 29 कानमूनों को खत् फकया है। सरकार ने ‘िेऐंडके के ्थिायमी फनवासमी’ के ्थिान पर ‘िेऐंडके यमूफनयन टेरमीटरमी के फनवासमी’ कर फदया। इस संिोधन के दमूरगा्मी नतमीिे होंगे।

    स्मूचे िम्मू ्ें लोग इससे ठगे हुए ्हसमूस कर रहे हैं। िम्मू के यरुवाओं ने असंतोष िताने के फलए

    सोिल ्मीफडया अफभयान िरुरू कर फदया। िम्मू की एक यरुवतमी अंफकता ि्ाजा ने िेसबरुक पर अपने पांच फ्नट के वमीफडयो ् ें इस आदेि को लोगों का अप्ान बताया। अंफकता ने कहा, “ह्ारा बार-बार अप्ान फकया िा रहा है। सबसे बडा अप्ान तब फकया गया िब कभमी भमी फरिफटिराि के अधमीन नहीं रहे िम्मू- कश्मीर का दिाजा घटाकर यमूटमी बना फदया गया और ह्ारे नेताओं को फगरफतार कर फलया गया। ह् चरुप रहे, कयोंफक उनहोंने कहा फक क्षेत्र ् ें तेि फवकास होगा। डोफ्साइल कानमून िेएेंडके के यरुवाओं के फखलाि सफिजाकल ्ट्ाइक है। आप सोचते हैं फक ह् िवाब नहीं देंगे, तो आप गलत हैं।” उसने कहा फक भािपा िेएेंडके को इस क्षेत्र से बाहर वोट ्िमीन के तौर पर इ्ते्ाल कर रहमी है। अब लोग चरुप नहीं रहेंगे। वह कहतमी है, “यह फहंदमू-्रुस्ल् का ्ा्ला नहीं है। यह ह्ारे सा्मूफहक भफवषय और ह्ारे बच्ों के भफवषय

    का ्ा्ला है। ह् इस अनयाय के फखलाि लडेंगे।”इस वमीफडयो और इसमी तरह के दमूसरे पो्ट को

    िम्मू-कश्मीर ्ें भारमी स्थिजान फ्ला, फिसके कारण भािपा के ्थिानमीय नेतृतव को उन लोगों को चरुप कराना पडा, िो केंद्रमीय नेतृतव को गरुपचरुप तरमीके से गरु्सा िांत करने के फलए कद् उठाने की सलाह दे रहे थिे। सोिल ्मीफडया पो्ट ्ें िम्मू के यरुवक ्ांग कर रहे हैं फक िेएेंडके ्ें फसि्फ उन लोगों को डोफ्साइल सफटटिफिकेट फदया िाए, िो 25 साल या इससे अफधक स्य से यहां रह रहे हैं।

    भारमी दबाव के चलते केंद्र सरकार को तमीन अप्ैल की िा् को संिोधन लाना पडा, फिसके अनरुसार सरकारमी नौकररयां िेएेंडके के फनवाफसयों के फलए आरफक्षत कर दमी गईं। फपछले साल पांच अग्त से पहले िब भारतमीय संफवधान के अनरुचछेद 370 और 35ए प्भावमी थिे, उस स्य ततकालमीन राजय की सभमी नौकररयां िेएेंडके के ्थिायमी फनवाफसयों के फलए आरफक्षत थिीं। अनरुचछेद 370 के तहत िम्मू- कश्मीर का अपना संफवधान थिा, िो िम्मू-कश्मीर का संफवधान कहलाता थिा िबफक अनरुचछेद 35ए बाहर के लोगों को िम्मू-कश्मीर ्ें संपफति खरमीदने से प्फतबंफधत करता थिा और ् थिायमी फनवाफसयों के फलए नौकररयों ्ें आरक्षण सरुफनसचित करता थिा। अनरुचछेद 35ए िेएेंडके सरकार को ततकालमीन राजय के ्थिायमी फनवासमी का दिाजा देने के फलए लोगों का वगगीकरण करने और सरकारमी नौकररयों और अचल संपफति

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    जम्मू ने जीती पहली लड़ाई

    अनरुचछेद 370 और 35ए को फनसषरिय करने के आठ ्हमीने बाद कोफवड-19 ्हा्ारमी के बमीच 31 ्ाचजा की रात को केंद्र सरकार ने प्िासफनक आदेि के िररए एक कानमून को अफधसमूफचत फकया, फिस्ें िम्मू-कश्मीर के फनवासमी होने और सरकारमी नौकररयों ्ें पात्रता की पररभाषा तय की गई। इससे कश्मीर ्ें भारमी फनरािा िैल गई और िम्मू क्षेत्र ्ें गरु्सा भडक गया। इस आदेि ्ें तय फकया गया फक िो लोग िम्मू-कश्मीर केंद्रिाफसत प्देि ्ें फपछले 15 साल से

    आक्रोश देखकर भाजपा सरकार

    करो नौकररयों में आरक्षण पर नई

    नीति बनानी पडी

    श्मीनगर से नसीर गनई

    भविष्य की विंताः घाटी में सरकारी नौकरी के विए परीक्ा देते ्युिा

    जमममू-कशमीर

  • खरीद में लोगों को विशेषाविकार देने के वलए सरकार को अविकार देता था।

    राजौरी के कांग्ेस नेता शाफीक मीर कहते हैं, “डोवमसाइल कानून में संशोिन कर वदया गया है। अब नौकररयां जेएेंडके के वनिावसयों के वलए आरवषित होंगी, न वक यहां के सथायी वनिावसयों के वलए। जेएंडके की नौकररयां सभी के वलए उपलबि हो गई हैं।” मीर, जो जेएेंडके पंचायत एसोवसएशन के अधयषि भी हैं, कहते हैं, “हमने जममू के युिाओं में गुससा देखा है। हर कोई ठगा हुआ महसूस कर रहा है।” भाजपा खुद को मुश्कल में देख रही है और िह केंद्ीय नेतृति से वनयम बदलने का अनुरोि कर रही है। कठुआ में एक िग्ग के लोगों ने भाजपा अधयषि रविंदर रैना के वखलाफ नारेबाजी और प्रदश्गन वकया।

    अपने दवषिणपंथी विचार के वलए मशहूर जममू के िकील अकुंर शमा्ग भाजपा पर िोखा देने और तीन वदन के भीतर ही डोवमसाइल कानून बदलकर अलगाििादी ताकतों के आगे झुकने का आरोप लगाते है। शमा्ग ने आउटलुक को बताया, “जममू जेएेंडके के बाकी भारत में पूरी तरह शावमल होने का पषििर

    था। डोवमसाइल कानून विसतृत रणनीवत का वहससा था। लेवकन भाजपा अलगाििावदयों और पावकसतान के सामने झुक गई।” पावकसतानी प्रिानमंत्ी इमरान खान ने डोवमसाइल कानून की आलोचना की है। पाक पीएम इसे जेएेंडके में अिैि रूप से आबादी का सिरूप बदलने के प्रयास के तौर पर “वहंदूिादी मोदी सरकार” का कदम बताया।

    जममू के लेखक जफर चौिरी कहते हैं, “ऐसे मुद्ों पर पावकसतान का वचंता जताना समसयाएं पैदा करता है और दवषिणपंथी ताकतें विरोि प्रदश्गन करने के लोगों के अविकार का उल्ंघन करने लगती हैं। इस बार हम सब एक साथ हैं। यह जेएेंडके के लोगों और केंद् सरकार के बीच लडाई है।” उनका कहना है, “समसया तब पैदा होने लगती है जब पावकसतान ऐसे मुद्ों पर बोलने लगता है। इिर अवतिादी सोच

    िाले लोग हम पर पावकसतान की भाषा बोलने के आरोप लगाने लगते हैं।” इस बार सरकार ने सामूवहक आकांषिा और इच्ा के अनुसार रुख बदला है।

    अपनी पार्टी के अधयषि अलताफ बुखारी कानून की आलोचना करने िाले पहले नेता थे। उनहोंने सरकार से समीषिा करने की मांग की। तीन अप्रैल को बुखारी ने कहा वक कानून में बदलाि होगा। उसी शाम सरकार ने वनयम बदल वदए। िह कहते हैं वक जममू- क्मीर का हर मुद्ा केंद् से जुडा है। 15 माच्ग को गृह मंत्ी अवमत शाह ने बुखारी के प्रवतवनविमंडल को आश्ासन वदया था वक षिेत् में आबादी का सिरूप बदलने की सरकार की मंशा नहीं है। जेएेंडके की डोवमसाइल पॉवलसी दूसरे राजयों से बेहतर होगी।

    क्मीर में यह संशोिन कोई खुशी नहीं ला सका, बशलक इससे आशंकाएं और बढ़ गईं वक भाजपा घार्ी में आबादी का सिरूप बदलेगी। वप्ले आठ महीनों में पहली बार अलगाििादी नेता मीरिाइज उमर फारूक के नेतृति िाली हुरररियत काॅनफ्ेंस ने कहा वक जममू- क्मीर में आबादी का सिरूप बदलने की प्रवरिया अगसत 2019 में शुरू हुई थी। अब इसे वनयोवजत तरीके से आगे बढ़ाया जा रहा है। डोवमसाइल कानून

    इसी का वहससा है। कानून की वखलाफत करने िालों को वगरफतारी की क्मीर के पुवलस प्रमुख की चेतािनी के बािजूद क्मीररयों ने विरोि करना बंद नहीं वकया। वशषिाविद अतहर वजया ने वलखा, “नौकरशाहों और बडे नेताओं के रूप में उपवनिेशिादी राषिस सिच्ंद हैं। पय्गिेषिक कहते हैं वक डोवमसाइल कानून में बदलाि भी हजारों अप्रिासी क्मीरी मुशसलमों और 1947 से ही पावकसतान और अनय देशों में वनिा्गवसत हजारों लोगों का मताविकार ्ीन सकता है। लोग इस कानून को इजरायल की तरह का “गेम पलान” मान रहे हैं, वजसके तहत श्ीनगर और दूसरे वजलों में बशसतयां बन सकती हैं।

    पूि्ग वित्त मंत्ी हसीब द्ाबू कहते हैं वक इसका अहम पहलू यह है वक डोवमसाइल कानून की

    अविसूचना जारी होने के दो वदन के भीतर ही संशोिन कर वदया गया। उनहोंने कहा, “संिैिावनक वयिसथा की जगह असथायी और एकतरफा कानून लागू वकया गया है। इसका दुषपररणाम यह होगा वक इन पर अनौपचाररक रूप से सौदेबाजी भी हो सकती है।

    मानिाविकार काय्गकता्ग खुररिम परिेज इस कानून को लोगों को अविकारविहीन और िंवचत करने के प्रयासों के तौर पर देखते हैं। िह कहते हैं, “अनुच्ेद 370 और 35ए को समाप्त करने के बाद क्मीर में अब कोई भ्रम नहीं है वक भाजपा की और केंद् की असली मंशा कया है। लेवकन जममू के लोगों के वलए यह बडा झर्का है, वजनहें उममीद थी वक सरकार उनके वहतों की रषिा करेगी।” वफलहाल जममू के लोगों ने लडने का फैसला वकया है। इससे पता चलेगा वक यह षिेत् भाजपा को कहां तक झुका पाता है।

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    जम्मू-कश्मीर

    कोरोना के बहाने पेड़ों पर ननशाना

    कोरोनािायरस का निीनतम िाहक कौन है? अगर क्मीर घार्ी के अविकाररयों की मानें तो विदेशी

    प्रजावत के पॉपलर के पेड कोरोना फैला सकते हैं। दवषिणी क्मीर में अनंतनाग वजले के वजलाविकारी ने सभी मादा ‘रवशयन पॉपलर ट्ी’ की कर्ाई करने के आदेश वदए हैं। वजलाविकारी के अनुसार, बसंत ऋतु आने िाली है। पेड से रोएंदार पराग कण वगरकर हिा में तैरने लगते हैं। वकसी भी सतह को ्ूकर हलकी सी हिा में िे दोबारा उडने लगते हैं। इस तरह उनसे कोरोना का संरिमण एक से दूसरे सथान पर फैलने का खतरा है।

    पेड मावलकों को कर्ाई करने के वलए कहा गया है। अगर िे ऐसा नहीं करते हैं तो उनके वखलाफ काररििाई होगी। वजलाविकारी ने पुवलस और िन विभाग को आदेश लागू करिाने का वनददेश वदया है।

    क्मीर घार्ी में ये पेड उगाने की शुरुआत 1982 में विश् बैंक से सहायता प्राप्त सामावजक िावनकी काय्गरिम के तहत हुई थी। रवशयन पॉपलर नाम का यह पेड पशचिमी अमेररका की प्रजावत का है वजसे अमेररका में ईसर्न्ग कॉर्निुड कहते हैं। क्मीर में लोग देसी के प्रजावत के बजाय इसे उगाना पसंद करते हैं कयोंवक इसका विकास तेजी से होता है। तीन साल में पेड 20 से 30 फुर् लंबा हो जाता है और इसकी आयु 40 साल होती है। इसका इसतेमाल मुखय तौर पर फलों की पैकेवजंग के वलए बॉकस बनाने में वकया जाता है। षिेत् में 1.5 करोड पेड होने का अनुमान है।

    पहली बार नहीं है, जब इस पेड को सिास्थय के वलए हावनकारक बताया गया है। 2014 में हाईकोर्रि में दायर जनवहत यावचका में इन पेडों को कार्ने की मांग की गई थी। हाईकोर्रि ने कहा, “क्मीर में इन पेडों के पराग कणों से सांस की बीमाररयां होती हैं जो जानलेिा हो सकती हैं।” इसके बाद श्ीनगर और अनय वजलों में लाखों पेड कार्े गए। हालांवक कई विशेषज्ञ कहते हैं वक अप्रैल-मई में पॉपलरों पेडों से एलजटी होने के कोई सबूत नहीं हैं। इस आशंका का भी कोई सबूत नहीं है वक इससे कोरोनािायरस फैल सकता है।

    अदंशेाः वायरस के ना् पर पॉपलर पर कुल्ाडमी

  • सदमा वह घाव है जो देह से आतमा में जखम उतार देता है। उसके साथ कलंक और लांछन की छायाएं डोलती आती हैं। अमूमन वह जयादातर आपदाओं के पीछे-पीछे आता है और उसे बाद का असर समझा जाता है। कोरोना वायरस महामारी का सदमा भी ऐसा ही है।

    आज भारत खुद को एक मधयवर्गीय समाज के रूप में देखता है, इसललए वह मधयवर्गीय नजररए से ही कदम बढाता है।

    लॉकडाउन की पूरी अवधारणा एक अनुशासनातमक कार्रवाई की तरह अपनाई र्ई, जैसे लजंदर्ी को एक टाइमटेबल में ढालने की कोलशश हो। यह एक मानलसकता और जीवन-ढरारा है। टाइमटेबल ठहर जाए तो मधयवर्रा अपनी कैद में लसमट जाता है और उसके तय रोजनामचे थम जाते हैं। लॉकडाउन में उच्च मधयवर्रा को बोररयत, तनहाई, बेचैनी, खालीपन और हां, घर से काम का एहसास हुआ। लिर भी, मधयवर्गीय मानलसकता हालशए पर र्ुजर-बसर करने वालों, प्रवासी मजदूरों, बंजारों के प्रलत पूरी तरह बेरुखी लदखाती रही, लजनहें कोरोना वायरस के नतीजे से आया सदमा सबसे पहले लर्ा।

    इस अनौपचाररक समाज का सदमा देशवयापी लॉकडाउन के ऐलान के पल ही र्हरा हो र्या, जब मजदूरों को अपनी नार्ररकता और वजूद बेर्ाना लर्ने लर्ा। प्रवासी मजदूरों ने पाया लक वे हालशए पर बैठे संलदगध और बेकार हैं। इस बेर्ानेपन के झटके से वे भूख और अपमान सहने को अलभशप्त हो र्ए। उनके साथ जीवाणुओं के झुंड जैसा बताराव लकया र्या और सरहदोंं पर उन पर केलमकल का लछड़काव लकया र्या। अलबत्ा, लजंदर्ी के इस सयाह पक्ष से मधयवर्गीय सैलानी भी मुकालबल हुए, जब वे सरहद की ओर भार्े तो वह बंद हो चुकी थी, सामने खड़ी पुललस प्रवासी और अप्रवासी के िक्क से नावालकि थी। अचानक भारत का आम आदमी दुश्चंता और अकेलेपन के खौि में लघर र्या, उसे लर्ा लक घर वापसी के कोई मायने नहीं हैं। प्रवासी लकसी अजीबोर्रीब जीव की तरह चौखटे पर लघरा था, लजसे अिसरशाही पहचानने से ही इनकार कर रही थी। अपना राशन काड्र घर छोड़ आए लबहारी प्रवासी मजदूरों ने खुद को भूख से लाचार पाया। अिसोस!

    बड़े अिसाने में उनकी बेचैनी और डर का कहीं लजक्र तक नहीं है, इससे मानलसक संताप और बढने लर्ा है। इस बेआबरू बताराव में उनहोंने यह भी पाया लक देश के अिसाने में उनकी कोई जर्ह नहीं। वे कोरोना कथा के बलैकहोल और बलैकबॉकस थे। प्रवालसयों को एहसास हुआ लक कुछ आपदाएं दूसरों से कुछ जयादा ही अलर् हैं। मसलन, चक्रवात और बाढ की लवभीलिकाओं में कमोवेश एक जैसी प्रलतलक्रया और अिसाने उभर कर आते हैं लेलकन कोरोना वायरस में लजंदर्ी को राहत पहुुंचाने वाले लमथक बेहद थोड़े हैं।

    अमूमन लजंदर्ी और चहल-पहल से भरी-पूरी झुगर्ी बशसतयां पूरी तरह वीरान हो र्ईं। लॉकडाउन शुरू हुआ तो छोटी-छोटी दुकानों, खोमचों और ढाबों पर पुललस की दलबश पड़ी। रोजाना कमाने-खाने वालों के हाथ कोई रोजर्ार नहीं था। उनहें बस रोज-ब-रोज नए नजारे खुलने का इुंतजार था। बेरोजर्ारी, भूख और अलन्चय ही अनौपचाररक अथरावयवसथा का खौि बन र्या। चेन्ै की एक झुगर्ी बसती में एक औरत ने मुझे बताया, “घरों में बतरान-भाड़े के काम में लर्ी कुछेक औरतों का काम तो चालू है लेलकन हमारे मददों का कया, लजनके पास इधर-उधर मंडराने और इुंतजार करने के लसवा कुछ नहीं है।” इुंतजार वह सदमा है लजसे अमीर-उमरा समझ ही नहीं सकते। इुंतजार आपकी

    पहचान, भरोसे को तोड़ देता है और कालबललयत पर सवाल खड़ा कर देता है। इुंतजार चुपचाप खालीपन लाता है कयोंलक वह बेवजूद बनाता चलता है। झुगर्ी बशसतयां इुंतजार और अलन्चय के सदमे में िंसी हैं, मर्र मीलडया में उनकी जर्ह नामालूम-सी है। वह तो काॅरपोरेट अिसरान के घर से काम करने के जशन में मसत है।

    लजसे आज नार्ररक जीवन कहा जाता है, वह डरावने अलन्चय के दु्चक्र में िंस र्या है। लॉकडाउन हाबस नीलत (16वीं सदी के लरिलटश दाशरालनक थॉमस हाबस मनुषय

    की प्राकृलतक अवसथा के लहमायती थे, लजसमें हर कोई अपने वजूद के ललए दूसरे से लड़ता-लभड़ता है) जमीन पर उतार लाता है, कुछ लनरुंकुश सत्ा के दायरे खींचता है, लजनमें पुललस और क्लक्क र्शत लर्ाते हैं। पुललस तमाम चुनौलतयों से ऐसे लनपटती है, र्ोया सभी कानून-वयवसथा की समसयाएं हों, लजसमें हर कोई लसदांतत: संलदगध होता है। वह लबना सोचे-समझे लाठी भांज देती है, उन पर भी,

    वायरस के वक्त सदमा

    देश्ा के अफसाने में

    प्रवासी मजदूरों के दुख-

    दद्द और खौफ का कहीं

    जजक्र तक नहीं है, इससे

    मानजसक संताप और

    बढ़ जाता है

    महामारी हमारी जजंदगी में उथल-पुथल मचाने के साथ ऐसे जखम दे रही है जजसे ठीक होने में वर्षों लगेंगे

    शिव शवश्वनाथन

    कोशवड-19/नजरिया

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    घि वापसीः काम- धंधे बंद होने पि गांव लौटने को मजबूि श्रशमक

    पीटीआइ

  • जो सरकारी जजम्मेदाररयां जिभाकर लौट रहे होतमे हैं। पुुजलसवालों के इस डराविमे अजिबीपि समे बचा-खुचा ्काि ्ाजलकों िमे ्रीजों, डॉकटर