sanskritdocuments.org · title ॥ श्री राम चरित मानस ॥ .. shri ram...

142
॥ ौी राम चिरत मानस ॥ .. Shri Ram Charit Manas .. sanskritdocuments.org August 20, 2017

Upload: others

Post on 10-Oct-2019

15 views

Category:

Documents


0 download

TRANSCRIPT

  • ॥ ौी राम चिरत मानस ॥.. Shri Ram Charit Manas ..

    sanskritdocuments.org

    August 20, 2017

  • .. Shri Ram Charit Manas ..

    ॥ ौी राम चिरत मानस ॥

    Sanskrit Document Information

    Text title : Shri Ram Charit Manas - Balkand

    File name : manas1_i.itx

    Category : raama, tulasIdAsa

    Location : doc_z_otherlang_hindi

    Author : Goswami Tulasidas

    Language : Hindi

    Subject : philosophy/hinduism/religion

    Transliterated by : Mr. Balram J. Rathore, Ratlam, M.P., a retired railway driver

    Description-comments : Awadhi, Converted from ISCII to ITRANS

    Acknowledge-Permission: Dr. Vineet Chaitanya, [email protected]

    Latest update : March 12, 2015

    Send corrections to : [email protected]

    Site access : http://sanskritdocuments.org

    This text is prepared by volunteers and is to be used for personal study andresearch. The file is not to be copied or reposted without permission, forpromotion of any website or individuals or for commercial purpose.

    Please help to maintain respect for volunteer spirit.

    August 20, 2017

    sanskritdocuments.org

  • ॥ ौी राम चिरत मानस ॥

    ॥ ौी राम चिरत मानस ॥॥ ौी गणशेाय नमः ॥ौीजानकीवभो िवजयतेौी रामचिरत मानसूथम सोपान(बालकाड)ोक

    वणा नामथ सघंानां रसानां छसामिप।मलानां च का रौ वे वाणीिवनायकौ ॥ १ ॥भवानीशरौ वे ौािवासिपणौ।याां िवना न पँयि िसाःाःमीरम ॥् २ ॥वे बोधमयं िनं गंु शरिपणम।्यमािौतो िह वबोऽिप चः सवऽ वते ॥ ३ ॥सीतारामगणुमामपुयारयिवहािरणौ।वे िवशुिवानौ कबीरकपीरौ ॥ ४ ॥उविितसहंारकािरण ेशहािरणीम।्सव ौयेर सीतां नतोऽहं रामवभाम ॥् ५ ॥यायावशवित िवमिखलं ॄािददवेासरुायादमषृवै भाित सकलं रौ यथाहेॅ मः।यादवमकेमवे िह भवाोधिेतीषा वतांवऽेहं तमशषेकारणपरं रामामीशं हिरम ॥् ६ ॥नानापरुाणिनगमागमसतं यद ्रामायणे िनगिदतं िचदतोऽिप।ाःसखुाय तलुसी रघनुाथगाथा-भाषािनबमितमलुमातनोित ॥ ७ ॥सो. जो सिुमरत िसिध होइ गन नायक किरबर बदन।करउ अनमुह सोइ बिु रािस सभु गनु सदन ॥ १ ॥मकू होइ बाचाल पगं ु चढइ िगिरबर गहन।

    manas1_i.pdf 1

  • ॥ ौी राम चिरत मानस ॥

    जास ु कृपाँ सो दयाल िवउ सकल किल मल दहन ॥ २ ॥नील सरोह ाम तन अन बािरज नयन।करउ सो मम उर धाम सदा छीरसागर सयन ॥ ३ ॥कंुद इं सम दहे उमा रमन कना अयन।जािह दीन पर नहे करउ कृपा मद न मयन ॥ ४ ॥बदंउ गु पद कंज कृपा िसधं ु नरप हिर।महामोह तम प ुजं जास ु बचन रिब कर िनकर ॥ ५ ॥

    बदंउ गु पद पम परागा। सुिच सबुास सरस अनरुागा ॥अिमय मिूरमय चरून चा। समन सकल भव ज पिरवा ॥सकृुित सभं ु तन िबमल िबभतूी। मजंलु मगंल मोद ूसतूी ॥जन मन मजं ु मकुुर मल हरनी। िकएँ ितलक गनु गन बस करनी ॥ौीगरु पद नख मिन गन जोती। सिुमरत िद िृि िहयँ होती ॥दलन मोह तम सो सूकास।ू बड़े भाग उर आवइ जासू ॥उघरिहं िबमल िबलोचन ही के। िमटिहं दोष ख भव रजनी के ॥सझूिहं राम चिरत मिन मािनक। गपुतु ूगट जहँ जो जिेह खािनक ॥दो. जथा सअुजंन अिंज ग साधक िस सजुान।कौतकु दखेत सलै बन भतूल भिूर िनधान ॥ १ ॥

    गु पद रज मृ मजंलु अजंन। नयन अिमअ ग दोष िबभजंन ॥तिेहं किर िबमल िबबके िबलोचन। बरनउँ राम चिरत भव मोचन ॥बदंउँ ूथम महीसरु चरना। मोह जिनत ससंय सब हरना ॥सजुन समाज सकल गनु खानी। करउँ ूनाम सूमे सबुानी ॥साध ु चिरत सभु चिरत कपास।ू िनरस िबसद गनुमय फल जासू ॥जो सिह ख परिछि रावा। बदंनीय जिेहं जग जस पावा ॥मदु मगंलमय सतं समाज।ू जो जग जगंम तीरथराजू ॥राम भि जहँ सरुसिर धारा। सरसइ ॄ िबचार ूचारा ॥िबिध िनषधेमय किल मल हरनी। करम कथा रिबनदंिन बरनी ॥हिर हर कथा िबराजित बनेी। सनुत सकल मदु मगंल दनेी ॥बटु िबास अचल िनज धरमा। तीरथराज समाज सकुरमा ॥सबिहं सलुभ सब िदन सब दसेा। सवेत सादर समन कलेसा ॥

    2 sanskritdocuments.org

  • ॥ ौी राम चिरत मानस ॥

    अकथ अलौिकक तीरथराऊ। दइे स फल ूगट ूभाऊ ॥दो. सिुन समझुिहं जन मिुदत मन मिहं अित अनरुाग।लहिहं चािर फल अछत तन ु साध ु समाज ूयाग ॥ २ ॥

    मन फल पिेखअ ततकाला। काक होिहं िपक बकउ मराला ॥सिुन आचरज करै जिन कोई। सतसगंित मिहमा निहं गोई ॥बालमीक नारद घटजोनी। िनज िनज मखुिन कही िनज होनी ॥जलचर थलचर नभचर नाना। ज े जड़ चतेन जीव जहाना ॥मित कीरित गित भिूत भलाई। जब जिेहं जतन जहाँ जिेहं पाई ॥सो जानब सतसगं ूभाऊ। लोकँ बदे न आन उपाऊ ॥िबन ु सतसगं िबबके न होई। राम कृपा िबन ु सलुभ न सोई ॥सतसगंत मदु मगंल मलूा। सोइ फल िसिध सब साधन फूला ॥सठ सधुरिहं सतसगंित पाई। पारस परस कुधात सहुाई ॥िबिध बस सजुन कुसगंत परह। फिन मिन सम िनज गनु अनसुरह ॥िबिध हिर हर किब कोिबद बानी। कहत साध ु मिहमा सकुचानी ॥सो मो सन किह जात न कैस। साक बिनक मिन गनु गन जसै ॥दो. बदंउँ सतं समान िचत िहत अनिहत निहं कोइ।अजंिल गत सभु समुन िजिम सम सगुधं कर दोइ ॥ ३(क) ॥सतं सरल िचत जगत िहत जािन सभुाउ सने।बालिबनय सिुन किर कृपा राम चरन रित दे ॥ ३(ख) ॥

    बिर बिंद खल गन सितभाए।ँ ज े िबन ु काज दािहने बाए ँ ॥पर िहत हािन लाभ िज केर। उजर हरष िबषाद बसरे ॥हिर हर जस राकेस रा स।े पर अकाज भट सहसबा स े ॥जे पर दोष लखिहं सहसाखी। पर िहत घतृ िज के मन माखी ॥तजे कृसान ु रोष मिहषसेा। अघ अवगनु धन धनी धनसेा ॥उदय केत सम िहत सबही के। कंुभकरन सम सोवत नीके ॥पर अकाज ुलिग तन ु पिरहरह। िजिम िहम उपल कृषी दिल गरह ॥बदंउँ खल जस सषे सरोषा। सहस बदन बरनइ पर दोषा ॥पिुन ूनवउँ पथृरुाज समाना। पर अघ सनुइ सहस दस काना ॥बिर सब सम िबनवउँ तहेी। सतंत सरुानीक िहत जहेी ॥

    manas1_i.pdf 3

  • ॥ ौी राम चिरत मानस ॥

    बचन बळ जिेह सदा िपआरा। सहस नयन पर दोष िनहारा ॥दो. उदासीन अिर मीत िहत सनुत जरिहं खल रीित।जािन पािन जगु जोिर जन िबनती करइ सूीित ॥ ४ ॥

    म अपनी िदिस की िनहोरा। ित िनज ओर न लाउब भोरा ॥बायस पिलअिहं अित अनरुागा। होिहं िनरािमष कबँ िक कागा ॥बदंउँ सतं असन चरना। खूद उभय बीच क बरना ॥िबरत एक ूान हिर लेह। िमलत एक ख दान दहे ॥उपजिहं एक सगं जग माह। जलज जक िजिम गनु िबलगाह ॥सधुा सरुा सम साधू असाध।ू जनक एक जग जलिध अगाधू ॥भल अनभल िनज िनज करततूी। लहत सजुस अपलोक िबभतूी ॥सधुा सधुाकर सरुसिर साध।ू गरल अनल किलमल सिर ाधू ॥गनु अवगनु जानत सब कोई। जो जिेह भाव नीक तिेह सोई ॥दो. भलो भलाइिह प ैलहइ लहइ िनचाइिह नीच।ुसधुा सरािहअ अमरताँ गरल सरािहअ मीच ु॥ ५ ॥

    खल अघ अगनु साधू गनु गाहा। उभय अपार उदिध अवगाहा ॥तिेह त क गनु दोष बखान।े समंह ाग न िबन ु पिहचान े ॥भलेउ पोच सब िबिध उपजाए। गिन गनु दोष बदे िबलगाए ॥कहिहं बदे इितहास परुाना। िबिध ूपचं ु गनु अवगनु साना ॥ख सखु पाप पु िदन राती। साध ु असाध ु सजुाित कुजाती ॥दानव दवे ऊँच अ नीच।ू अिमअ सजुीवन ु मा मीचू ॥माया ॄ जीव जगदीसा। लि अलि रंक अवनीसा ॥कासी मग सरुसिर बमनासा। म मारव मिहदवे गवासा ॥सरग नरक अनरुाग िबरागा। िनगमागम गनु दोष िबभागा ॥दो. जड़ चतेन गनु दोषमय िब की करतार।सतं हंस गनु गहिहं पय पिरहिर बािर िबकार ॥ ६ ॥

    अस िबबके जब दइे िबधाता। तब तिज दोष गनुिहं मन ु राता ॥काल सभुाउ करम बिरआई। भलेउ ूकृित बस चकुइ भलाई ॥सो सधुािर हिरजन िजिम लेह। दिल ख दोष िबमल जस ु दहे ॥खलउ करिहं भल पाइ ससुगं।ू िमटइ न मिलन सभुाउ अभगंू ॥

    4 sanskritdocuments.org

  • ॥ ौी राम चिरत मानस ॥

    लिख सबुषे जग बचंक जऊे। बषे ूताप पिूजअिहं तऊे ॥उधरिहं अतं न होइ िनबा। कालनिेम िजिम रावन रा ॥िकएँ कुबषे साध ु सनमान।ू िजिम जग जामवतं हनमुानू ॥हािन कुसगं ससुगंित ला। लोकँ बदे िबिदत सब का ॥गगन चढ़इ रज पवन ूसगंा। कीचिहं िमलइ नीच जल सगंा ॥साध ु असाध ु सदन सकु सार। सिुमरिहं राम दिेहं गिन गारी ॥धमू कुसगंित कािरख होई। िलिखअ परुान मजं ु मिस सोई ॥सोइ जल अनल अिनल सघंाता। होइ जलद जग जीवन दाता ॥दो. मह भषेज जल पवन पट पाइ कुजोग सजुोग।होिह कुबु सबु ुजग लखिहं सलुन लोग ॥ ७(क) ॥सम ूकास तम पाख ँ नाम भदे िबिध की।सिस सोषक पोषक समिुझ जग जस अपजस दी ॥ ७(ख) ॥जड़ चतेन जग जीव जत सकल राममय जािन।बदंउँ सब के पद कमल सदा जोिर जगु पािन ॥ ७(ग) ॥दवे दनजु नर नाग खग ूते िपतर गधंब ।बदंउँ िकंनर रजिनचर कृपा कर अब सब ॥ ७(घ) ॥

    आकर चािर लाख चौरासी। जाित जीव जल थल नभ बासी ॥सीय राममय सब जग जानी। करउँ ूनाम जोिर जगु पानी ॥जािन कृपाकर िकंकर मो। सब िमिल कर छािड़ छल छो ॥िनज बिुध बल भरोस मोिह नाह। तात िबनय करउँ सब पाही ॥करन चहउँ रघपुित गनु गाहा। लघ ु मित मोिर चिरत अवगाहा ॥सझू न एकउ अगं उपाऊ। मन मित रंक मनोरथ राऊ ॥मित अित नीच ऊँिच िच आछी। चिहअ अिमअ जग जरुइ न छाछी ॥छिमहिहं सन मोिर िढठाई। सिुनहिहं बालबचन मन लाई ॥जौ बालक कह तोतिर बाता। सनुिहं मिुदत मन िपत ु अ माता ॥हँिसहिह कूर कुिटल कुिबचारी। ज े पर षन भषूनधारी ॥िनज किवत केिह लाग न नीका। सरस होउ अथवा अित फीका ॥जे पर भिनित सनुत हरषाही। त े बर पुष बत जग नाह ॥जग ब नर सर सिर सम भाई। जे िनज बािढ़ बढ़िहं जल पाई ॥

    manas1_i.pdf 5

  • ॥ ौी राम चिरत मानस ॥

    सन सकृत िसधं ु सम कोई। दिेख परू िबध ु बाढ़इ जोई ॥दो. भाग छोट अिभलाष ु बड़ करउँ एक िबास।पहैिहं सखु सिुन सजुन सब खल करहिहं उपहास ॥ ८ ॥

    खल पिरहास होइ िहत मोरा। काक कहिहं कलकंठ कठोरा ॥हंसिह बक दार चातकही। हँसिहं मिलन खल िबमल बतकही ॥किबत रिसक न राम पद ने। ित कहँ सखुद हास रस ए ॥भाषा भिनित भोिर मित मोरी। हँिसब े जोग हँस निहं खोरी ॥ूभ ु पद ूीित न सामिुझ नीकी। ितिह कथा सिुन लागिह फीकी ॥हिर हर पद रित मित न कुतरकी। ित कँ मधरु कथा रघवुर की ॥राम भगित भिूषत िजयँ जानी। सिुनहिहं सजुन सरािह सबुानी ॥किब न होउँ निहं बचन ूबीन।ू सकल कला सब िबा हीनू ॥आखर अरथ अलंकृित नाना। छंद ूबधं अनके िबधाना ॥भाव भदे रस भदे अपारा। किबत दोष गनु िबिबध ूकारा ॥किबत िबबके एक निहं मोर। स कहउँ िलिख कागद कोरे ॥दो. भिनित मोिर सब गनु रिहत िब िबिदत गनु एक।सो िबचािर सिुनहिहं समुित िज क िबमल िबवके ॥ ९ ॥

    एिह महँ रघपुित नाम उदारा। अित पावन परुान ौिुत सारा ॥मगंल भवन अमगंल हारी। उमा सिहत जिेह जपत परुारी ॥भिनित िबिचऽ सकुिब कृत जोऊ। राम नाम िबन ु सोह न सोऊ ॥िबधबुदनी सब भािँत सवँारी। सोन न बसन िबना बर नारी ॥सब गनु रिहत कुकिब कृत बानी। राम नाम जस अिंकत जानी ॥सादर कहिहं सनुिहं बधु ताही। मधकुर सिरस सतं गनुमाही ॥जदिप किबत रस एकउ नाही। राम ूताप ूकट एिह माह ॥सोइ भरोस मोर मन आवा। केिहं न ससुगं बडन ु पावा ॥धमूउ तजइ सहज कआई। अग ूसगं सगुधं बसाई ॥भिनित भदसे बु भिल बरनी। राम कथा जग मगंल करनी ॥छं. मगंल करिन किल मल हरिन तलुसी कथा रघनुाथ की ॥गित कूर किबता सिरत की सिरत पावन पाथ की ॥ूभ ु सजुस सगंित भिनित भिल होइिह सजुन मन भावनी ॥

    6 sanskritdocuments.org

  • ॥ ौी राम चिरत मानस ॥

    भव अगं भिूत मसान की सिुमरत सहुाविन पावनी ॥दो. िूय लािगिह अित सबिह मम भिनित राम जस सगं।दा िबचा िक करइ कोउ बिंदअ मलय ूसगं ॥ १०(क) ॥ाम सरुिभ पय िबसद अित गनुद करिहं सब पान।िगरा मा िसय राम जस गाविहं सनुिहं सजुान ॥ १०(ख) ॥

    मिन मािनक मकुुता छिब जसैी। अिह िगिर गज िसर सोह न तसैी ॥नपृ िकरीट तनी तन ु पाई। लहिहं सकल सोभा अिधकाई ॥तसैिेहं सकुिब किबत बधु कहह। उपजिहं अनत अनत छिब लहह ॥भगित हते ु िबिध भवन िबहाई। सिुमरत सारद आवित धाई ॥राम चिरत सर िबन ुअवाए।ँ सो ौम जाइ न कोिट उपाए ँ ॥किब कोिबद अस दयँ िबचारी। गाविहं हिर जस किल मल हारी ॥की ूाकृत जन गनु गाना। िसर धिुन िगरा लगत पिछताना ॥दय िसधं ु मित सीप समाना। ाित सारदा कहिहं सजुाना ॥ज बरषइ बर बािर िबचा। होिहं किबत मकुुतामिन चा ॥दो. जगुिुत बिेध पिुन पोिहअिहं रामचिरत बर ताग।पिहरिहं सन िबमल उर सोभा अित अनरुाग ॥ ११ ॥

    जे जनमे किलकाल कराला। करतब बायस बषे मराला ॥चलत कुपथं बदे मग छाड़ँ।े कपट कलेवर किल मल भाड़ँ ॥बचंक भगत कहाइ राम के। िकंकर कंचन कोह काम के ॥ित महँ ूथम रखे जग मोरी। धग धरमज धधंक धोरी ॥ज अपन े अवगनु सब कहऊँ। बाढ़इ कथा पार निहं लहऊँ ॥तात े म अित अलप बखान।े थोरे मँ जािनहिहं सयान े ॥समिुझ िबिबिध िबिध िबनती मोरी। कोउ न कथा सिुन दइेिह खोरी ॥एते पर किरहिहं ज े असकंा। मोिह त े अिधक ते जड़ मित रंका ॥किब न होउँ निहं चतरु कहावउ।ँ मित अनुप राम गनु गावउँ ॥कहँ रघपुित के चिरत अपारा। कहँ मित मोिर िनरत ससंारा ॥जिेहं मात िगिर मे उड़ाह। कह तलू केिह लेख े माह ॥समझुत अिमत राम ूभतुाई। करत कथा मन अित कदराई ॥दो. सारद ससे महसे िबिध आगम िनगम परुान।

    manas1_i.pdf 7

  • ॥ ौी राम चिरत मानस ॥

    निेत निेत किह जास ु गनु करिहं िनरंतर गान ॥ १२ ॥सब जानत ूभ ु ूभतुा सोई। तदिप कह िबन ु रहा न कोई ॥तहाँ बदे अस कारन राखा। भजन ूभाउ भािँत ब भाषा ॥एक अनीह अप अनामा। अज सिदानदं पर धामा ॥ापक िबप भगवाना। तिेहं धिर दहे चिरत कृत नाना ॥सो केवल भगतन िहत लागी। परम कृपाल ूनत अनरुागी ॥जिेह जन पर ममता अित छो। जिेहं कना किर की न को ॥गई बहोर गरीब नवेाज।ू सरल सबल सािहब रघरुाजू ॥बधु बरनिहं हिर जस अस जानी। करिह पनुीत सफुल िनज बानी ॥तिेहं बल म रघपुित गनु गाथा। किहहउँ नाइ राम पद माथा ॥मिुन ूथम हिर कीरित गाई। तिेहं मग चलत सगुम मोिह भाई ॥

    दो. अित अपार ज े सिरत बर ज नपृ सते ु करािहं।चिढ िपपीिलकउ परम लघ ु िबन ु ौम पारिह जािहं ॥ १३ ॥

    एिह ूकार बल मनिह दखेाई। किरहउँ रघपुित कथा सहुाई ॥ास आिद किब प ुगंव नाना। िज सादर हिर सजुस बखाना ॥चरन कमल बदंउँ ित केर।े परुवँ सकल मनोरथ मरेे ॥किल के किब करउँ परनामा। िज बरन े रघपुित गनु मामा ॥जे ूाकृत किब परम सयान।े भाषाँ िज हिर चिरत बखान े ॥भए जे अहिहं ज े होइहिहं आग। ूनवउँ सबिहं कपट सब ाग ॥हो ूस दे बरदान।ू साध ु समाज भिनित सनमानू ॥जो ूबधं बधु निहं आदरह। सो ौम बािद बाल किब करह ॥कीरित भिनित भिूत भिल सोई। सरुसिर सम सब कहँ िहत होई ॥राम सकुीरित भिनित भदसेा। असमजंस अस मोिह अदँसेा ॥तुरी कृपा सलुभ सोउ मोर।े िसअिन सहुाविन टाट पटोरे ॥दो. सरल किबत कीरित िबमल सोइ आदरिहं सजुान।सहज बयर िबसराइ िरप ु जो सिुन करिहं बखान ॥ १४(क) ॥सो न होइ िबन ु िबमल मित मोिह मित बल अित थोर।कर कृपा हिर जस कहउँ पिुन पिुन करउँ िनहोर ॥ १४(ख) ॥किब कोिबद रघबुर चिरत मानस मजं ु मराल।

    8 sanskritdocuments.org

  • ॥ ौी राम चिरत मानस ॥

    बाल िबनय सिुन सुिच लिख मोपर हो कृपाल ॥ १४(ग) ॥सो. बदंउँ मिुन पद कंज ु रामायन जिेहं िनरमयउ।सखर सकुोमल मजं ु दोष रिहत षन सिहत ॥ १४(घ) ॥बदंउँ चािरउ बदे भव बािरिध बोिहत सिरस।िजिह न सपनेँ खदे बरनत रघबुर िबसद जस ु॥ १४(ङ) ॥बदंउँ िबिध पद रने ु भव सागर जिेह की जहँ।सतं सधुा सिस धने ु ूगटे खल िबष बानी ॥ १४(च) ॥

    दो. िबबधु िबू बधु मह चरन बिंद कहउँ कर जोिर।होइ ूस परुव सकल मजं ु मनोरथ मोिर ॥ १४(छ) ॥

    पिुन बदंउँ सारद सरुसिरता। जगुल पनुीत मनोहर चिरता ॥मन पान पाप हर एका। कहत सनुत एक हर अिबबकेा ॥गरु िपत ु मात ु महसे भवानी। ूनवउँ दीनबधं ु िदन दानी ॥सवेक ािम सखा िसय पी के। िहत िनपिध सब िबिध तलुसीके ॥किल िबलोिक जग िहत हर िगिरजा। साबर मऽं जाल िज िसिरजा ॥अनिमल आखर अरथ न जाप।ू ूगट ूभाउ महसे ूतापू ॥सो उमसे मोिह पर अनकूुला। किरिहं कथा मदु मगंल मलूा ॥सिुमिर िसवा िसव पाइ पसाऊ। बरनउँ रामचिरत िचत चाऊ ॥भिनित मोिर िसव कृपाँ िबभाती। सिस समाज िमिल मनँ सरुाती ॥जे एिह कथिह सनहे समतेा। किहहिहं सिुनहिहं समिुझ सचतेा ॥होइहिहं राम चरन अनरुागी। किल मल रिहत समुगंल भागी ॥दो. सपनेँ साचेँ मोिह पर ज हर गौिर पसाउ।तौ फुर होउ जो कहउेँ सब भाषा भिनित ूभाउ ॥ १५ ॥

    बदंउँ अवध परुी अित पाविन। सरजू सिर किल कष नसाविन ॥ूनवउँ परु नर नािर बहोरी। ममता िज पर ूभिुह न थोरी ॥िसय िनदंक अघ ओघ नसाए। लोक िबसोक बनाइ बसाए ॥बदंउँ कौसा िदिस ूाची। कीरित जास ु सकल जग माची ॥ूगटेउ जहँ रघपुित सिस चा। िब सखुद खल कमल तसुा ॥दसरथ राउ सिहत सब रानी। सकृुत समुगंल मरूित मानी ॥करउँ ूनाम करम मन बानी। कर कृपा सतु सवेक जानी ॥

    manas1_i.pdf 9

  • ॥ ौी राम चिरत मानस ॥

    िजिह िबरिच बड़ भयउ िबधाता। मिहमा अविध राम िपत ु माता ॥सो. बदंउँ अवध भआुल स ूमे जिेह राम पद।िबरत दीनदयाल िूय तन ु तनृ इव पिरहरउे ॥ १६ ॥

    ूनवउँ पिरजन सिहत िबदे। जािह राम पद गढ़ू सने ॥जोग भोग महँ राखउे गोई। राम िबलोकत ूगटेउ सोई ॥ूनवउँ ूथम भरत के चरना। जास ु नमे ॄत जाइ न बरना ॥राम चरन पकंज मन जास।ू बधु मधपु इव तजइ न पासू ॥बदंउँ लिछमन पद जलजाता। सीतल सभुग भगत सखु दाता ॥रघपुित कीरित िबमल पताका। दडं समान भयउ जस जाका ॥सषे सहॐसीस जग कारन। जो अवतरउे भिूम भय टारन ॥सदा सो सानकूुल रह मो पर। कृपािसधं ु सौिमिऽ गनुाकर ॥िरपसुदून पद कमल नमामी। सरू ससुील भरत अनगुामी ॥महावीर िबनवउँ हनमुाना। राम जास ुजस आप बखाना ॥सो. ूनवउँ पवनकुमार खल बन पावक यानधन।जास ु दय आगार बसिहं राम सर चाप धर ॥ १७ ॥

    किपपित रीछ िनसाचर राजा। अगंदािद ज े कीस समाजा ॥बदंउँ सब के चरन सहुाए। अधम सरीर राम िज पाए ॥रघपुित चरन उपासक जते।े खग मगृ सरु नर असरु समते े ॥बदंउँ पद सरोज सब केर।े ज े िबन ु काम राम के चरेे ॥सकु सनकािद भगत मिुन नारद। जे मिुनबर िबयान िबसारद ॥ूनवउँ सबिहं धरिन धिर सीसा। कर कृपा जन जािन मनुीसा ॥जनकसतुा जग जनिन जानकी। अितसय िूय कना िनधान की ॥ताके जगु पद कमल मनावउ।ँ जास ु कृपाँ िनरमल मित पावउँ ॥पिुन मन बचन कम रघनुायक। चरन कमल बदंउँ सब लायक ॥रािजवनयन धर धन ु सायक। भगत िबपित भजंन सखु दायक ॥दो. िगरा अरथ जल बीिच सम किहअत िभ न िभ।बदउँ सीता राम पद िजिह परम िूय िख ॥ १८ ॥

    बदंउँ नाम राम रघवुर को। हते ु कृसान ु भान ु िहमकर को ॥िबिध हिर हरमय बदे ूान सो। अगनु अनपूम गनु िनधान सो ॥

    10 sanskritdocuments.org

  • ॥ ौी राम चिरत मानस ॥

    महामऽं जोइ जपत महसे।ू कास मकुुित हते ु उपदसेू ॥मिहमा जास ुजान गनराउ। ूथम पिूजअत नाम ूभाऊ ॥जान आिदकिब नाम ूताप।ू भयउ सु किर उलटा जापू ॥सहस नाम सम सिुन िसव बानी। जिप जईे िपय सगं भवानी ॥हरष े हते ु हिेर हर ही को। िकय भषून ितय भषून ती को ॥नाम ूभाउ जान िसव नीको। कालकूट फ दी अमी को ॥दो. बरषा िरत ु रघपुित भगित तलुसी सािल सदुास ॥राम नाम बर बरन जगु सावन भादव मास ॥ १९ ॥

    आखर मधरु मनोहर दोऊ। बरन िबलोचन जन िजय जोऊ ॥सिुमरत सलुभ सखुद सब का। लोक ला परलोक िनबा ॥कहत सनुत सिुमरत सिुठ नीके। राम लखन सम िूय तलुसी के ॥बरनत बरन ूीित िबलगाती। ॄ जीव सम सहज सघँाती ॥नर नारायन सिरस स ुॅ ाता। जग पालक िबसिेष जन ऽाता ॥भगित सिुतय कल करन िबभषून। जग िहत हते ु िबमल िबध ु पषून ।ाद तोष सम सगुित सधुा के। कमठ सषे सम धर बसधुा के ॥जन मन मजं ु कंज मधकुर स।े जीह जसोमित हिर हलधर स े ॥दो. एकु छऽ ु एकु मकुुटमिन सब बरनिन पर जोउ।तलुसी रघबुर नाम के बरन िबराजत दोउ ॥ २० ॥

    समझुत सिरस नाम अ नामी। ूीित परसपर ूभ ुअनगुामी ॥नाम प इ ईस उपाधी। अकथ अनािद ससुामिुझ साधी ॥को बड़ छोट कहत अपराध।ू सिुन गनु भदे समिुझहिहं साधू ॥दिेखअिहं प नाम आधीना। प यान निहं नाम िबहीना ॥प िबसषे नाम िबन ुजान। करतल गत न परिहं पिहचान ॥सिुमिरअ नाम प िबन ु दखे। आवत दयँ सनहे िबसषे ॥नाम प गित अकथ कहानी। समझुत सखुद न परित बखानी ॥अगनु सगनु िबच नाम ससुाखी। उभय ूबोधक चतरु भाषी ॥दो. राम नाम मिनदीप ध जीह दहेरी ार।तलुसी भीतर बाहरेँ ज चाहिस उिजआर ॥ २१ ॥

    नाम जीहँ जिप जागिहं जोगी। िबरित िबरंिच ूपचं िबयोगी ॥

    manas1_i.pdf 11

  • ॥ ौी राम चिरत मानस ॥

    ॄसखुिह अनभुविहं अनपूा। अकथ अनामय नाम न पा ॥जाना चहिहं गढ़ू गित जऊे। नाम जीहँ जिप जानिहं तऊे ॥साधक नाम जपिहं लय लाए।ँ होिहं िस अिनमािदक पाए ँ ॥जपिहं नाम ु जन आरत भारी। िमटिहं कुसकंट होिहं सखुारी ॥राम भगत जग चािर ूकारा। सकृुती चािरउ अनघ उदारा ॥च चतरु कँ नाम अधारा। यानी ूभिुह िबसिेष िपआरा ॥चँ जगु चँ ौिुत ना ूभाऊ। किल िबसिेष निहं आन उपाऊ ॥दो. सकल कामना हीन जे राम भगित रस लीन।नाम स ुू मे िपयषू हद ितँ िकए मन मीन ॥ २२ ॥

    अगनु सगनु इ ॄ सपा। अकथ अगाध अनािद अनपूा ॥मोर मत बड़ नाम ु त। िकए जिेहं जगु िनज बस िनज बतू ॥ूोिढ़ सजुन जिन जानिहं जन की। कहउँ ूतीित ूीित िच मन की ॥एकु दागत दिेखअ एकू। पावक सम जगु ॄ िबबकूे ॥उभय अगम जगु सगुम नाम त। कहउेँ नाम ु बड़ ॄ राम त ॥ापकु एकु ॄ अिबनासी। सत चतेन धन आनदँ रासी ॥अस ूभ ु दयँ अछत अिबकारी। सकल जीव जग दीन खारी ॥नाम िनपन नाम जतन त। सोउ ूगटत िजिम मोल रतन त ॥दो. िनरगनु त एिह भािँत बड़ नाम ूभाउ अपार।कहउँ नाम ु बड़ राम त िनज िबचार अनसुार ॥ २३ ॥

    राम भगत िहत नर तन ु धारी। सिह सकंट िकए साध ु सखुारी ॥नाम ु सूमे जपत अनयासा। भगत होिहं मदु मगंल बासा ॥राम एक तापस ितय तारी। नाम कोिट खल कुमित सधुारी ॥िरिष िहत राम सकेुतसुतुा की। सिहत सने सतु की िबबाकी ॥सिहत दोष ख दास रासा। दलइ नाम ु िजिम रिब िनिस नासा ॥भजंउे राम आप ु भव चाप।ू भव भय भजंन नाम ूतापू ॥दडंक बन ु ूभ ु की सहुावन। जन मन अिमत नाम िकए पावन ॥ ।िनिसचर िनकर दले रघनुदंन। नाम ु सकल किल कष िनकंदन ॥दो. सबरी गीध ससुवेकिन सगुित दीि रघनुाथ।नाम उधारे अिमत खल बदे िबिदत गनु गाथ ॥ २४ ॥

    12 sanskritdocuments.org

  • ॥ ौी राम चिरत मानस ॥

    राम सकंुठ िबभीषन दोऊ। राख े सरन जान सब ु कोऊ ॥नाम गरीब अनके नवेाज।े लोक बदे बर िबिरद िबराज े ॥राम भा किप कटकु बटोरा। सते ु हते ु ौम ु की न थोरा ॥नाम ु लेत भविसधं ु सखुाह। कर िबचा सजुन मन माह ॥राम सकुल रन रावन ु मारा। सीय सिहत िनज परु पग ु धारा ॥राजा राम ु अवध रजधानी। गावत गनु सरु मिुन बर बानी ॥सवेक सिुमरत नाम ु सूीती। िबन ु ौम ूबल मोह द जीती ॥िफरत सनहँे मगन सखु अपन। नाम ूसाद सोच निहं सपन ॥दो. ॄ राम त नाम ु बड़ बर दायक बर दािन।रामचिरत सत कोिट महँ िलय महसे िजयँ जािन ॥ २५ ॥मासपारायण, पहला िवौाम

    नाम ूसाद सभं ु अिबनासी। साज ुअमगंल मगंल रासी ॥सकु सनकािद िस मिुन जोगी। नाम ूसाद ॄसखु भोगी ॥नारद जानउे नाम ूताप।ू जग िूय हिर हिर हर िूय आपू ॥नाम ु जपत ूभ ु की ूसा। भगत िसरोमिन भ े ूहला ॥ीवुँ सगलािन जपउे हिर नाऊँ। पायउ अचल अनपूम ठाऊँ ॥सिुमिर पवनसतु पावन नाम।ू अपन े बस किर राख े रामू ॥अपत ु अजािम गज ु गिनकाऊ। भए मकुुत हिर नाम ूभाऊ ॥कह कहाँ लिग नाम बड़ाई। राम ु न सकिहं नाम गनु गाई ॥दो. नाम ु राम को कलपत किल कान िनवास।ुजो सिुमरत भयो भागँ त तलुसी तलुसीदास ु॥ २६ ॥

    चँ जगु तीिन काल ितँ लोका। भए नाम जिप जीव िबसोका ॥बदे परुान सतं मत ए। सकल सकृुत फल राम सने ॥ान ु ूथम जगु मखिबिध ज। ापर पिरतोषत ूभ ु पजू ॥किल केवल मल मलू मलीना। पाप पयोिनिध जन जन मीना ॥नाम कामत काल कराला। सिुमरत समन सकल जग जाला ॥राम नाम किल अिभमत दाता। िहत परलोक लोक िपत ु माता ॥निहं किल करम न भगित िबबकूे। राम नाम अवलंबन एकू ॥कालनिेम किल कपट िनधान।ू नाम समुित समरथ हनमुानू ॥

    manas1_i.pdf 13

  • ॥ ौी राम चिरत मानस ॥

    दो. राम नाम नरकेसरी कनककिसप ु किलकाल।जापक जन ूहलाद िजिम पािलिह दिल सरुसाल ॥ २७ ॥

    भायँ कुभायँ अनख आलसँ। नाम जपत मगंल िदिस दसँ ॥सिुमिर सो नाम राम गनु गाथा। करउँ नाइ रघनुाथिह माथा ॥मोिर सधुािरिह सो सब भातँी। जास ु कृपा निहं कृपाँ अघाती ॥राम सुािम कुसवेकु मोसो। िनज िदिस दिैख दयािनिध पोसो ॥लोकँ बदे ससुािहब रीत। िबनय सनुत पिहचानत ूीती ॥गनी गरीब मामनर नागर। पिंडत मढ़ू मलीन उजागर ॥सकुिब कुकिब िनज मित अनहुारी। नपृिह सराहत सब नर नारी ॥साध ु सजुान ससुील नपृाला। ईस असं भव परम कृपाला ॥सिुन सनमानिहं सबिह सबुानी। भिनित भगित नित गित पिहचानी ॥यह ूाकृत मिहपाल सभुाऊ। जान िसरोमिन कोसलराऊ ॥रीझत राम सनहे िनसोत। को जग मदं मिलनमित मोत ॥दो. सठ सवेक की ूीित िच रिखहिहं राम कृपा।उपल िकए जलजान जिेहं सिचव समुित किप भा ॥ २८(क) ॥हौ कहावत सब ु कहत राम सहत उपहास।सािहब सीतानाथ सो सवेक तलुसीदास ॥ २८(ख) ॥

    अित बिड़ मोिर िढठाई खोरी। सिुन अघ नरकँ नाक सकोरी ॥समिुझ सहम मोिह अपडर अपन। सो सिुध राम कीि निहं सपन ॥सिुन अवलोिक सिुचत चख चाही। भगित मोिर मित ािम सराही ॥कहत नसाइ होइ िहयँ नीकी। रीझत राम जािन जन जी की ॥रहित न ूभ ु िचत चकू िकए की। करत सरुित सय बार िहए की ॥जिेहं अघ बधउे ाध िजिम बाली। िफिर सकंुठ सोइ की कुचाली ॥सोइ करतिूत िबभीषन केरी। सपनेँ सो न राम िहयँ हरेी ॥ते भरतिह भटत सनमान।े राजसभाँ रघबुीर बखान े ॥दो. ूभ ु त तर किप डार पर त े िकए आप ुसमान ॥तलुसी कँ न राम स े सािहब सीलिनधान ॥ २९(क) ॥राम िनका रावरी है सबही को नीक।ज यह साचँी है सदा तौ नीको तलुसीक ॥ २९(ख) ॥

    14 sanskritdocuments.org

  • ॥ ौी राम चिरत मानस ॥

    एिह िबिध िनज गनु दोष किह सबिह बिर िस नाइ।बरनउँ रघबुर िबसद जस ुसिुन किल कष नसाइ ॥ २९(ग) ॥

    जागबिलक जो कथा सहुाई। भराज मिुनबरिह सनुाई ॥किहहउँ सोइ सबंाद बखानी। सनुँ सकल सन सखु ु मानी ॥सभं ु की यह चिरत सहुावा। बिर कृपा किर उमिह सनुावा ॥सोइ िसव कागभसु ुिंडिह दीा। राम भगत अिधकारी चीा ॥तिेह सन जागबिलक पिुन पावा। ित पिुन भराज ूित गावा ॥ते ौोता बकता समसीला। सवदँरसी जानिहं हिरलीला ॥जानिहं तीिन काल िनज याना। करतल गत आमलक समाना ॥औरउ जे हिरभगत सजुाना। कहिहं सनुिहं समझुिहं िबिध नाना ॥दो. म ै पिुन िनज गरु सन सनुी कथा सो सकूरखते।समझुी निह तिस बालपन तब अित रहउेँ अचते ॥ ३०(क) ॥ौोता बकता यानिनिध कथा राम कै गढ़ू।िकिम समझु म ै जीव जड़ किल मल मिसत िबमढ़ू ॥ ३०(ख)

    तदिप कही गरु बारिहं बारा। समिुझ परी क मित अनसुारा ॥भाषाब करिब म सोई। मोर मन ूबोध जिेहं होई ॥जस क बिुध िबबके बल मरे। तस किहहउँ िहयँ हिर के ूरे ॥िनज सदंहे मोह ॅम हरनी। करउँ कथा भव सिरता तरनी ॥बधु िबौाम सकल जन रंजिन। रामकथा किल कष िबभजंिन ॥रामकथा किल पनंग भरनी। पिुन िबबके पावक कँ अरनी ॥रामकथा किल कामद गाई। सजुन सजीविन मिूर सहुाई ॥सोइ बसधुातल सधुा तरंिगिन। भय भजंिन ॅम भके भअुिंगिन ॥असरु सने सम नरक िनकंिदिन। साध ु िबबधु कुल िहत िगिरनिंदिन ॥सतं समाज पयोिध रमा सी। िब भार भर अचल छमा सी ॥जम गन महँु मिस जग जमनुा सी। जीवन मकुुित हते ु जन ु कासी ॥रामिह िूय पाविन तलुसी सी। तलुिसदास िहत िहयँ लसी सी ॥िसवूय मकेल सलै सतुा सी। सकल िसि सखु सपंित रासी ॥सदगनु सरुगन अबं अिदित सी। रघबुर भगित ूमे परिमित सी ॥दो. राम कथा मदंािकनी िचऽकूट िचत चा।

    manas1_i.pdf 15

  • ॥ ौी राम चिरत मानस ॥

    तलुसी सभुग सनहे बन िसय रघबुीर िबहा ॥ ३१ ॥राम चिरत िचतंामिन चा। सतं समुित ितय सभुग िसगंा ॥जग मगंल गनु माम राम के। दािन मकुुित धन धरम धाम के ॥सदगरु यान िबराग जोग के। िबबधु बदै भव भीम रोग के ॥जनिन जनक िसय राम ूमे के। बीज सकल ॄत धरम नमे के ॥समन पाप सतंाप सोक के। िूय पालक परलोक लोक के ॥सिचव सभुट भपूित िबचार के। कंुभज लोभ उदिध अपार के ॥काम कोह किलमल किरगन के। केहिर सावक जन मन बन के ॥अितिथ पू िूयतम परुािर के। कामद घन दािरद दवािर के ॥मऽं महामिन िबषय ाल के। मटेत किठन कुअकं भाल के ॥हरन मोह तम िदनकर कर स।े सवेक सािल पाल जलधर स े ॥अिभमत दािन दवेत बर स।े सवेत सलुभ सखुद हिर हर स े ॥सकुिब सरद नभ मन उडगन स।े रामभगत जन जीवन धन स े ॥सकल सकृुत फल भिूर भोग स।े जग िहत िनपिध साध ु लोग स े ॥सवेक मन मानस मराल स।े पावक गगं तरंग माल स े ॥दो. कुपथ कुतरक कुचािल किल कपट दभं पाषडं।दहन राम गनु माम िजिम इधंन अनल ूचडं ॥ ३२(क) ॥रामचिरत राकेस कर सिरस सखुद सब का।सन कुमदु चकोर िचत िहत िबसिेष बड़ ला ॥ ३२(ख) ॥

    कीि ू जिेह भािँत भवानी। जिेह िबिध सकंर कहा बखानी ॥सो सब हते ु कहब म गाई। कथाूबधं िबिचऽ बनाई ॥जिेह यह कथा सनुी निहं होई। जिन आचरज ुकर सिुन सोई ॥कथा अलौिकक सनुिहं ज े यानी। निहं आचरज ुकरिहं अस जानी ॥रामकथा कै िमित जग नाह। अिस ूतीित ित के मन माह ॥नाना भािँत राम अवतारा। रामायन सत कोिट अपारा ॥कलपभदे हिरचिरत सहुाए। भािँत अनके मनुीस गाए ॥किरअ न ससंय अस उर आनी। सिुनअ कथा सारद रित मानी ॥दो. राम अनतं अनतं गनु अिमत कथा िबार।सिुन आचरज ु न मािनहिहं िज क िबमल िबचार ॥ ३३ ॥

    16 sanskritdocuments.org

  • ॥ ौी राम चिरत मानस ॥

    एिह िबिध सब ससंय किर री। िसर धिर गरु पद पकंज धरूी ॥पिुन सबही िबनवउँ कर जोरी। करत कथा जिेहं लाग न खोरी ॥सादर िसविह नाइ अब माथा। बरनउँ िबसद राम गनु गाथा ॥सबंत सोरह स ै एकतीसा। करउँ कथा हिर पद धिर सीसा ॥नौमी भौम बार मध ु मासा। अवधपरु यह चिरत ूकासा ॥जिेह िदन राम जनम ौिुत गाविहं। तीरथ सकल तहाँ चिल आविहं ॥असरु नाग खग नर मिुन दवेा। आइ करिहं रघनुायक सवेा ॥ज महोव रचिहं सजुाना। करिहं राम कल कीरित गाना ॥दो. मिह सन बृदं ब पावन सरजू नीर।जपिहं राम धिर ान उर स ुदंर ाम सरीर ॥ ३४ ॥

    दरस परस मन अ पाना। हरइ पाप कह बदे परुाना ॥नदी पनुीत अिमत मिहमा अित। किह न सकइ सारद िबमलमित ॥राम धामदा परुी सहुाविन। लोक सम िबिदत अित पाविन ॥चािर खािन जग जीव अपारा। अवध तजे तन ु निह ससंारा ॥सब िबिध परुी मनोहर जानी। सकल िसिूद मगंल खानी ॥िबमल कथा कर की अरंभा। सनुत नसािहं काम मद दभंा ॥रामचिरतमानस एिह नामा। सनुत ौवन पाइअ िबौामा ॥मन किर िवषय अनल बन जरई। होइ सखुी जौ एिहं सर परई ॥रामचिरतमानस मिुन भावन। िबरचउे सभं ु सहुावन पावन ॥िऽिबध दोष ख दािरद दावन। किल कुचािल कुिल कष नसावन ॥रिच महसे िनज मानस राखा। पाइ ससुमउ िसवा सन भाषा ॥तात रामचिरतमानस बर। धरउे नाम िहयँ हिेर हरिष हर ॥कहउँ कथा सोइ सखुद सहुाई। सादर सनु सजुन मन लाई ॥दो. जस मानस जिेह िबिध भयउ जग ूचार जिेह हते।ुअब सोइ कहउँ ूसगं सब सिुमिर उमा बषृकेत ु ॥ ३५ ॥

    सभं ु ूसाद समुित िहयँ लसी। रामचिरतमानस किब तलुसी ॥करइ मनोहर मित अनहुारी। सजुन सिुचत सिुन ले सधुारी ॥समुित भिूम थल दय अगाध।ू बदे परुान उदिध घन साधू ॥बरषिहं राम सजुस बर बारी। मधरु मनोहर मगंलकारी ॥लीला सगनु जो कहिहं बखानी। सोइ ता करइ मल हानी ॥

    manas1_i.pdf 17

  • ॥ ौी राम चिरत मानस ॥

    ूमे भगित जो बरिन न जाई। सोइ मधरुता ससुीतलताई ॥सो जल सकृुत सािल िहत होई। राम भगत जन जीवन सोई ॥मधेा मिह गत सो जल पावन। सिकिल ौवन मग चलेउ सहुावन ॥भरउे समुानस सथुल िथराना। सखुद सीत िच चा िचराना ॥दो. सिुठ स ुदंर सबंाद बर िबरच े बिु िबचािर।तइे एिह पावन सभुग सर घाट मनोहर चािर ॥ ३६ ॥

    स ूब सभुग सोपाना। यान नयन िनरखत मन माना ॥रघपुित मिहमा अगनु अबाधा। बरनब सोइ बर बािर अगाधा ॥राम सीय जस सिलल सधुासम। उपमा बीिच िबलास मनोरम ॥परुइिन सघन चा चौपाई। जगुिुत मजं ु मिन सीप सहुाई ॥छंद सोरठा स ुदंर दोहा। सोइ बरंग कमल कुल सोहा ॥अरथ अनपू समुाव सभुासा। सोइ पराग मकरंद सबुासा ॥सकृुत प ुजं मजंलु अिल माला। यान िबराग िबचार मराला ॥धिुन अवरबे किबत गनु जाती। मीन मनोहर त े बभातँी ॥अरथ धरम कामािदक चारी। कहब यान िबयान िबचारी ॥नव रस जप तप जोग िबरागा। त े सब जलचर चा तड़ागा ॥सकृुती साध ु नाम गनु गाना। त े िबिचऽ जल िबहग समाना ॥सतंसभा चँ िदिस अवरँाई। ौा िरत ु बसतं सम गाई ॥भगित िनपन िबिबध िबधाना। छमा दया दम लता िबताना ॥सम जम िनयम फूल फल याना। हिर पत रित रस बदे बखाना ॥औरउ कथा अनके ूसगंा। तइे सकु िपक बबरन िबहंगा ॥दो. पलुक बािटका बाग बन सखु सिुबहंग िबहा।माली समुन सनहे जल सचत लोचन चा ॥ ३७ ॥

    जे गाविहं यह चिरत सभँार।े तइे एिह ताल चतरु रखवारे ॥सदा सनुिहं सादर नर नारी। तइे सरुबर मानस अिधकारी ॥अित खल जे िबषई बग कागा। एिहं सर िनकट न जािहं अभागा ॥सबंकु भके सवेार समाना। इहाँ न िबषय कथा रस नाना ॥तिेह कारन आवत िहयँ हार।े कामी काक बलाक िबचारे ॥आवत एिहं सर अित किठनाई। राम कृपा िबन ुआइ न जाई ॥किठन कुसगं कुपथं कराला। ित के बचन बाघ हिर ाला ॥

    18 sanskritdocuments.org

  • ॥ ौी राम चिरत मानस ॥

    गहृ कारज नाना जजंाला। त े अित ग म सलै िबसाला ॥बन ब िबषम मोह मद माना। नद कुतक भयकंर नाना ॥दो. जे ौा सबंल रिहत निह सतं कर साथ।ित कँ मानस अगम अित िजिह न िूय रघनुाथ ॥ ३८ ॥

    ज किर क जाइ पिुन कोई। जातिहं नद जड़ुाई होई ॥जड़ता जाड़ िबषम उर लागा। गएँ न मन पाव अभागा ॥किर न जाइ सर मन पाना। िफिर आवइ समते अिभमाना ॥ज बहोिर कोउ पछून आवा। सर िनदंा किर तािह बझुावा ॥सकल िब ापिह निहं तहेी। राम सकृुपाँ िबलोकिहं जहेी ॥सोइ सादर सर मन ुकरई। महा घोर ऽयताप न जरई ॥ते नर यह सर तजिहं न काऊ। िज के राम चरन भल भाऊ ॥जो नहाइ चह एिहं सर भाई। सो सतसगं करउ मन लाई ॥अस मानस मानस चख चाही। भइ किब बिु िबमल अवगाही ॥भयउ दयँ आनदं उछा। उमगउे ूमे ूमोद ूबा ॥चली सभुग किबता सिरता सो। राम िबमल जस जल भिरता सो ॥सरजू नाम समुगंल मलूा। लोक बदे मत मजंलु कूला ॥नदी पनुीत समुानस निंदिन। किलमल तनृ त मलू िनकंिदिन ॥दो. ौोता िऽिबध समाज परु माम नगर ँ कूल।सतंसभा अनपुम अवध सकल समुगंल मलू ॥ ३९ ॥

    रामभगित सरुसिरतिह जाई। िमली सकुीरित सरज ु सहुाई ॥सानजु राम समर जस ु पावन। िमलेउ महान सोन सहुावन ॥जगु िबच भगित दवेधिुन धारा। सोहित सिहत सिुबरित िबचारा ॥िऽिबध ताप ऽासक ितमहुानी। राम सप िसधं ु समहुानी ॥मानस मलू िमली सरुसिरही। सनुत सजुन मन पावन किरही ॥िबच िबच कथा िबिचऽ िबभागा। जन ु सिर तीर तीर बन बागा ॥उमा महसे िबबाह बराती। त े जलचर अगिनत बभातँी ॥रघबुर जनम अनदं बधाई। भवरँ तरंग मनोहरताई ॥दो. बालचिरत च बधं ु के बनज िबपलु बरंग।नपृ रानी पिरजन सकृुत मधकुर बािरिबहंग ॥ ४० ॥

    manas1_i.pdf 19

  • ॥ ौी राम चिरत मानस ॥

    सीय यबंर कथा सहुाई। सिरत सहुाविन सो छिब छाई ॥नदी नाव पटु ू अनकेा। केवट कुसल उतर सिबबकेा ॥सिुन अनकुथन परर होई। पिथक समाज सोह सिर सोई ॥घोर धार भगृनुाथ िरसानी। घाट सबु राम बर बानी ॥सानजु राम िबबाह उछा। सो सभु उमग सखुद सब का ॥कहत सनुत हरषिहं पलुकाह। त े सकृुती मन मिुदत नहाह ॥राम ितलक िहत मगंल साजा। परब जोग जन ुजरुे समाजा ॥काई कुमित केकई केरी। परी जास ुफल िबपित घनरेी ॥दो. समन अिमत उतपात सब भरतचिरत जपजाग।किल अघ खल अवगनु कथन ते जलमल बग काग ॥ ४१ ॥

    कीरित सिरत छँ िरत ु री। समय सहुाविन पाविन भरूी ॥िहम िहमसलैसतुा िसव ा। िसिसर सखुद ूभ ु जनम उछा ॥बरनब राम िबबाह समाज।ू सो मदु मगंलमय िरतरुाजू ॥मीषम सह राम बनगवन।ू पथंकथा खर आतप पवनू ॥बरषा घोर िनसाचर रारी। सरुकुल सािल समुगंलकारी ॥राम राज सखु िबनय बड़ाई। िबसद सखुद सोइ सरद सहुाई ॥सती िसरोमिन िसय गनुगाथा। सोइ गनु अमल अनपूम पाथा ॥भरत सभुाउ ससुीतलताई। सदा एकरस बरिन न जाई ॥दो. अवलोकिन बोलिन िमलिन ूीित परसपर हास।भायप भिल च बधं ु की जल माधरुी सबुास ॥ ४२ ॥

    आरित िबनय दीनता मोरी। लघतुा लिलत सबुािर न थोरी ॥अदभतु सिलल सनुत गनुकारी। आस िपआस मनोमल हारी ॥राम स ुू मेिह पोषत पानी। हरत सकल किल कष गलानौ ॥भव ौम सोषक तोषक तोषा। समन िरत ख दािरद दोषा ॥काम कोह मद मोह नसावन। िबमल िबबके िबराग बढ़ावन ॥सादर मन पान िकए त। िमटिहं पाप पिरताप िहए त ॥िज एिह बािर न मानस धोए। त े कायर किलकाल िबगोए ॥तिृषत िनरिख रिब कर भव बारी। िफिरहिह मगृ िजिम जीव खारी ॥दो. मित अनहुािर सबुािर गनु गिन मन अवाइ।

    20 sanskritdocuments.org

  • ॥ ौी राम चिरत मानस ॥

    सिुमिर भवानी सकंरिह कह किब कथा सहुाइ ॥ ४३(क) ॥अब रघपुित पद पकंह िहयँ धिर पाइ ूसाद ।कहउँ जगुल मिुनबज कर िमलन सभुग सबंाद ॥ ४३(ख) ॥

    भराज मिुन बसिहं ूयागा। ितिह राम पद अित अनरुागा ॥तापस सम दम दया िनधाना। परमारथ पथ परम सजुाना ॥माघ मकरगत रिब जब होई। तीरथपितिहं आव सब कोई ॥दवे दनजु िकंनर नर ौनेी। सादर मिहं सकल िऽबने ॥पजूिह माधव पद जलजाता। परिस अखय बटु हरषिहं गाता ॥भराज आौम अित पावन। परम र मिुनबर मन भावन ॥तहाँ होइ मिुन िरषय समाजा। जािहं ज े मन तीरथराजा ॥मिहं ूात समते उछाहा। कहिहं परसपर हिर गनु गाहा ॥दो. ॄ िनपम धरम िबिध बरनिहं त िबभाग।कहिहं भगित भगवतं कै सजंतु यान िबराग ॥ ४४ ॥

    एिह ूकार भिर माघ नहाह। पिुन सब िनज िनज आौम जाह ॥ूित सबंत अित होइ अनदंा। मकर मि गवनिहं मिुनबृदंा ॥एक बार भिर मकर नहाए। सब मनुीस आौम िसधाए ॥जगबािलक मिुन परम िबबकेी। भरदाज राख े पद टेकी ॥सादर चरन सरोज पखार।े अित पनुीत आसन बठैारे ॥किर पजूा मिुन सजुस बखानी। बोले अित पनुीत मृ बानी ॥नाथ एक ससंउ बड़ मोर। करगत बदेत सब ु तोर ॥कहत सो मोिह लागत भय लाजा। जौ न कहउँ बड़ होइ अकाजा ॥दो. सतं कहिह अिस नीित ूभ ु ौिुत परुान मिुन गाव।होइ न िबमल िबबके उर गरु सन िकएँ राव ॥ ४५ ॥

    अस िबचािर ूगटउँ िनज मो। हर नाथ किर जन पर छो ॥रास नाम कर अिमत ूभावा। सतं परुान उपिनषद गावा ॥सतंत जपत सभं ु अिबनासी। िसव भगवान यान गनु रासी ॥आकर चािर जीव जग अहह। कास मरत परम पद लहह ॥सोिप राम मिहमा मिुनराया। िसव उपदसे ु करत किर दाया ॥राम ु कवन ूभ ु पछूउँ तोही। किहअ बझुाइ कृपािनिध मोही ॥

    manas1_i.pdf 21

  • ॥ ौी राम चिरत मानस ॥

    एक राम अवधसे कुमारा। ित कर चिरत िबिदत ससंारा ॥नािर िबरहँ ख ु लहउे अपारा। भय रोष ु रन रावन ु मारा ॥दो. ूभ ु सोइ राम िक अपर कोउ जािह जपत िऽपरुािर।सधाम सब य तु कह िबबकुे िबचािर ॥ ४६ ॥

    जसै े िमटै मोर ॅम भारी। कह सो कथा नाथ िबारी ॥जागबिलक बोले मसुकुाई। तुिह िबिदत रघपुित ूभतुाई ॥राममगत तु मन बम बानी। चतरुाई तुारी म जानी ॥चाह सनु ै राम गनु गढ़ूा। कीि ू मनँ अित मढ़ूा ॥तात सनु सादर मन ुलाई। कहउँ राम कै कथा सहुाई ॥महामो मिहषसे ु िबसाला। रामकथा कािलका कराला ॥रामकथा सिस िकरन समाना। सतं चकोर करिहं जिेह पाना ॥ऐसइे ससंय की भवानी। महादवे तब कहा बखानी ॥दो. कहउँ सो मित अनहुािर अब उमा सभं ु सबंाद।भयउ समय जिेह हते ु जिेह सनु ु मिुन िमिटिह िबषाद ॥ ४७ ॥

    एक बार ऽतेा जगु माह। सभं ु गए कंुभज िरिष पाह ॥सगं सती जगजनिन भवानी। पजू े िरिष अिखलेर जानी ॥रामकथा मनुीबज बखानी। सनुी महसे परम सखु ु मानी ॥िरिष पछूी हिरभगित सहुाई। कही सभं ु अिधकारी पाई ॥कहत सनुत रघपुित गनु गाथा। क िदन तहाँ रहे िगिरनाथा ॥मिुन सन िबदा मािग िऽपरुारी। चले भवन सगँ दकुमारी ॥तिेह अवसर भजंन मिहभारा। हिर रघबुसं ली अवतारा ॥िपता बचन तिज राज ु उदासी। दडंक बन िबचरत अिबनासी ॥दो. अदयँ िबचारत जात हर केिह िबिध दरसन ु होइ।गु प अवतरउे ूभ ु गएँ जान सब ु कोइ ॥ ४८(क) ॥

    सो. सकंर उर अित छोभ ु सती न जानिहं मरम ु सोइ ॥तलुसी दरसन लोभ ु मन ड लोचन लालची ॥ ४८(ख) ॥

    रावन मरन मनजु कर जाचा। ूभ ु िबिध बचन ुकी चह साचा ॥ज निहं जाउँ रहइ पिछतावा। करत िबचा न बनत बनावा ॥एिह िबिध भए सोचबस ईसा। तिेह समय जाइ दससीसा ॥

    22 sanskritdocuments.org

  • ॥ ौी राम चिरत मानस ॥

    ली नीच मारीचिह सगंा। भयउ तरुत सोइ कपट कुरंगा ॥किर छ मढ़ू हरी बदैहेी। ूभ ु ूभाउ तस िबिदत न तहेी ॥मगृ बिध बु सिहत हिर आए। आौम ु दिेख नयन जल छाए ॥िबरह िबकल नर इव रघरुाई। खोजत िबिपन िफरत दोउ भाई ॥कबँ जोग िबयोग न जाक । दखेा ूगट िबरह ख ताक ॥दो. अित िविचऽ रघपुित चिरत जानिहं परम सजुान।जे मितमदं िबमोह बस दयँ धरिहं क आन ॥ ४९ ॥

    सभं ु समय तिेह रामिह दखेा। उपजा िहयँ अित हरप ु िबसषेा ॥भिर लोचन छिबिसधं ु िनहारी। कुसमय जािनन कीि िचारी ॥जय सिदानदं जग पावन। अस किह चलेउ मनोज नसावन ॥चले जात िसव सती समतेा। पिुन पिुन पलुकत कृपािनकेता ॥सत सो दसा सभं ु कै दखेी। उर उपजा सदंे िबसषेी ॥सकं जगतबं जगदीसा। सरु नर मिुन सब नावत सीसा ॥ित नपृसतुिह नह परनामा। किह सिदानदं परधामा ॥भए मगन छिब तास ु िबलोकी। अजँ ूीित उर रहित न रोकी ॥दो. ॄ जो ापक िबरज अज अकल अनीह अभदे।सो िक दहे धिर होइ नर जािह न जानत वदे ॥ ५० ॥

    िबंन ु जो सरु िहत नरतन ु धारी। सोउ सब य जथा िऽपरुारी ॥खोजइ सो िक अय इव नारी। यानधाम ौीपित असरुारी ॥सभंिुगरा पिुन मषृा न होई। िसव सब य जान सब ु कोई ॥अस ससंय मन भयउ अपारा। होई न दयँ ूबोध ूचारा ॥जिप ूगट न कहउे भवानी। हर अतंरजामी सब जानी ॥सनुिह सती तव नािर सभुाऊ। ससंय अस न धिरअ उर काऊ ॥जास ुकथा कुभजं िरिष गाई। भगित जास ु म मिुनिह सनुाई ॥सोउ मम इदवे रघबुीरा। सवेत जािह सदा मिुन धीरा ॥छं. मिुन धीर जोगी िस सतंत िबमल मन जिेह ावह।किह निेत िनगम परुान आगम जास ुकीरित गावह ॥सोइ राम ुापक ॄ भवुन िनकाय पित माया धनी।अवतरउे अपन े भगत िहत िनजतऽं िनत रघकुुलमिन ॥

    manas1_i.pdf 23

  • ॥ ौी राम चिरत मानस ॥

    सो. लाग न उर उपदसे ु जदिप कहउे िसवँ बार ब।बोले िबहिस महसे ु हिरमाया ब जािन िजयँ ॥ ५१ ॥

    ज तुर मन अित सदंे। तौ िकन जाइ परीछा ले ॥तब लिग बठै अहउँ बटछािहं। जब लिग तु ऐह मोिह पाही ॥जसै जाइ मोह ॅम भारी। करे सो जतन ु िबबके िबचारी ॥चल सती िसव आयस ु पाई। करिहं िबचा कर का भाई ॥इहाँ सभं ु अस मन अनमुाना। दसतुा कँ निहं काना ॥मोरे कह न ससंय जाह। िबधी िबपरीत भलाई नाह ॥होइिह सोइ जो राम रिच राखा। को किर तक बढ़ाव ै साखा ॥अस किह लगे जपन हिरनामा। गई सती जहँ ूभ ु सखुधामा ॥दो. पिुन पिुन दयँ िवचा किर धिर सीता कर प।आग होइ चिल पथं तिेह जिेहं आवत नरभपू ॥ ५२ ॥

    लिछमन दीख उमाकृत बषेा चिकत भए ॅम दयँ िबसषेा ॥किह न सकत क अित गभंीरा। ूभ ु ूभाउ जानत मितधीरा ॥सती कपटु जानउे सरुामी। सबदरसी सब अतंरजामी ॥सिुमरत जािह िमटइ अयाना। सोइ सरबय राम ु भगवाना ॥सती की चह तहँँ राऊ। दखे नािर सभुाव ूभाऊ ॥िनज माया ब दयँ बखानी। बोले िबहिस राम ु मृ बानी ॥जोिर पािन ूभ ु की ूनाम।ू िपता समते ली िनज नामू ॥कहउे बहोिर कहाँ बषृकेत।ू िबिपन अकेिल िफर केिह हतेू ॥दो. राम बचन मृ गढ़ू सिुन उपजा अित सकंोच।ुसती सभीत महसे पिहं चल दयँ बड़ सोच ु॥ ५३ ॥

    म सकंर कर कहा न माना। िनज अयान ु राम पर आना ॥जाइ उत अब दहेउँ काहा। उर उपजा अित दान दाहा ॥जाना राम सत ख ु पावा। िनज ूभाउ क ूगिट जनावा ॥सत दीख कौतकुु मग जाता। आग राम ु सिहत ौी ॅाता ॥िफिर िचतवा पाछ ूभ ु दखेा। सिहत बधं ु िसय स ुदंर वषेा ॥जहँ िचतविहं तहँ ूभ ुआसीना। सवेिहं िस मनुीस ूबीना ॥दखे े िसव िबिध िबंन ुअनकेा। अिमत ूभाउ एक त एका ॥

    24 sanskritdocuments.org

  • ॥ ौी राम चिरत मानस ॥

    बदंत चरन करत ूभ ु सवेा। िबिबध बषे दखे े सब दवेा ॥दो. सती िबधाऽी इिंदरा दखे अिमत अनपू।जिेहं जिेहं बषे अजािद सरु तिेह तिेह तन अनुप ॥ ५४ ॥

    दखे े जहँ तहँ रघपुित जते।े सि सिहत सकल सरु तते े ॥जीव चराचर जो ससंारा। दखे े सकल अनके ूकारा ॥पजूिहं ूभिुह दवे ब बषेा। राम प सर निहं दखेा ॥अवलोके रघपुित बतरे।े सीता सिहत न बषे घनरेे ॥सोइ रघबुर सोइ लिछमन ु सीता। दिेख सती अित भई सभीता ॥दय कंप तन सिुध क नाह। नयन मिूद बठै मग माह ॥बिर िबलोकेउ नयन उघारी। क न दीख तहँ दकुमारी ॥पिुन पिुन नाइ राम पद सीसा। चल तहाँ जहँ रहे िगरीसा ॥दो. गई समीप महसे तब हँिस पछूी कुसलात।लीी परीछा कवन िबिध कह स सब बात ॥ ५५ ॥मासपारायण, सरा िवौाम

    सत समिुझ रघबुीर ूभाऊ। भय बस िसव सन की राऊ ॥क न परीछा लीि गोसाई। की ूनाम ु तुािरिह नाई ॥जो तु कहा सो मषृा न होई। मोर मन ूतीित अित सोई ॥तब सकंर दखेउे धिर ाना। सत जो की चिरत सब जाना ॥बिर राममायिह िस नावा। ूिेर सितिह जिेहं झ ूठँ कहावा ॥हिर इा भावी बलवाना। दयँ िबचारत सभं ु सजुाना ॥सत की सीता कर बषेा। िसव उर भयउ िबषाद िबसषेा ॥ज अब करउँ सती सन ूीती। िमटइ भगित पथ ु होइ अनीती ॥दो. परम पनुीत न जाइ तिज िकएँ ूमे बड़ पाप।ुूगिट न कहत महसे ु क दयँ अिधक सतंाप ु॥ ५६ ॥

    तब सकंर ूभ ु पद िस नावा। सिुमरत राम ु दयँ अस आवा ॥एिहं तन सितिह भटे मोिह नाह। िसव सकंु की मन माह ॥अस िबचािर सकं मितधीरा। चले भवन सिुमरत रघबुीरा ॥चलत गगन भ ै िगरा सहुाई। जय महसे भिल भगित ढ़ाई ॥अस पन तु िबन ु करइ को आना। रामभगत समरथ भगवाना ॥

    manas1_i.pdf 25

  • ॥ ौी राम चिरत मानस ॥

    सिुन नभिगरा सती उर सोचा। पछूा िसविह समते सकोचा ॥की कवन पन कह कृपाला। सधाम ूभ ु दीनदयाला ॥जदिप सत पछूा ब भातँी। तदिप न कहउे िऽपरु आराती ॥दो. सत दय अनमुान िकय सब ु जानउे सब य।की कपटु म सभं ु सन नािर सहज जड़ अय ॥ ५७क ॥

    दयँ सोच ु समझुत िनज करनी। िचतंा अिमत जाइ निह बरनी ॥कृपािसधं ु िसव परम अगाधा। ूगट न कहउे मोर अपराधा ॥सकंर ख अवलोिक भवानी। ूभ ु मोिह तजउे दयँ अकुलानी ॥िनज अघ समिुझ न क किह जाई। तपइ अवाँ इव उर अिधकाई ॥सितिह ससोच जािन बषृकेत।ू कह कथा स ुदंर स