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ततततत ततततत

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तन्त्रों को वेदों के काल के बाद की रचना माना जाता है और साहित्यक रूप में जिस प्रकार पुराण ग्रन्थ मध्ययुग की दार्शनिक-धार्मिक रचनायें माने जाते हैं उसी प्रकार तन्त्रों में प्राचीन-अख्यान, कथानक आदि का समावेश होता है। अपनी विषयवस्तु की दृष्टि से ये धर्म, दर्शन, सृष्टिरचना शास्त्र, प्रचीन विज्ञान आदि के इनसाक्लोपीडिया भी कहे जा सकते हैं। ........................स्वास्थ्य के लिये टोटके

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Page 1: Tantra Sadhna(Hindi)

तंत्र साधना

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1. तंत्र शास्त्र भारत की एक प्राचीन वि�द्या है। तंत्र गं्रथ भग�ान शिश� के मुख से आवि�भ!"त हुए हैं। उनको पवि�त्र और प्रामाणि*क माना गया है। भारतीय साविहत्य में 'तंत्र' की एक वि�शिशष्ट स्थि0वित है, पर कुछ साधक इस शशि4 का दुरुपयोग करने लग गए, जि9सके कार* यह वि�द्या बदनाम हो गई। कामी, क्रोधी, लालची, इनसे भशि4 न होय । भशि4 करे कोइ स!रमा, 9ावित �रन कुल खोय ॥ 9ो तंत्र से भय खाता हैं, �ह मनुष्य ही नहीं हैं, �ह साधक तो बन ही नहीं सकता! गुरु गोरखनाथ के समय में तंत्र अपने आप में एक स�Bत्कृष्ट वि�द्या थी और समा9 का प्रत्येक �ग" उसे अपना रहा था! 9ी�न की 9टिEल समस्याओं को सुलझाने में के�ल तंत्र ही सहायक हो सकता हैं! परन्तु गोरखनाथ के बाद में भयानन्द आटिद 9ो लोग हुए उन्होंने तंत्र को एक वि�कृत रूप दे टिदया! उन्होंने तंत्र का तात्पय" भोग, वि�लास, मद्य, मांस, पंचमकार को ही मान शिलया ! “मदं्य मांसं तथा मत्स्यं मुद्रा मैथुनमे� च, मकार पंच�ग"स्यात सह तंत्रः सह तान्त्रिन्त्रकां” 9ो व्यशि4 इन पांच मकारो में शिलप्त रहता हैं �ही तांवित्रक हैं, भयानन्द ने ऐसा कहा! उसने कहा की उसे मांस, मछली और मटिदरा तो खानी ही चाविहए, और �ह विनत्य स्त्री के साथ समागम करता हुआ साधना करे! ये ऐसी गलत धरना समा9 में फैली की 9ो ढोंगी थे, 9ो पाखंडी थे, उन्होंने इस श्लोक को महत्�प!*" मान शिलया और शराब पीने लगे, धनोपा9"न करने लगे, और म!ल तंत्र से अलग हE गए, ध!त"ता और छल मात्र रह गया! और समा9 ऐसे लोगों से भय खाने लगे! और दूर हEने लगे! लोग सोचने लगे विक ऐसा कैसा तंत्र हैं, इससे समा9 का क्या विहत हो सकता हैं? लोगों ने इन तांवित्रकों का नाम लेना बंद कर टिदया, उनका सम्मान करना बंद कर टिदया, अपना दुःख तो भोगते रहे परन्तु अपनी समस्याओं को उन तांवित्रकों से कहने में कतराने लगे, क्योंविक उनके पास 9ाना ही कई प्रकार की समस्याओं को मोल लेना था! और ऐसा लगने लगा विक तंत्र समा9 के शिलए उपयोगी नहीं हैं!

परन्तु दोष तंत्र का नहीं, उन पथभ्रष्ट लोगों का रहा, जि9नकी �9ह से तंत्र भी बदनाम हो गया! सही अथZ में देखा 9ायें तो तंत्र का तात्पय" तो 9ी�न को सभी दृष्टिष्टयों से प!*"ता देना हैं!

9ब हम मंत्र के माध्यम से दे�ता को अनुक! ल बना सकते हैं, तो विफर तंत्र की हमारे 9ी�न में कहाँ अनुक! लता रह 9ाती हैं? मंत्र का तात्पय" हैं, दे�ता की प्राथ"ना करना, हाथ 9ोड़ना, विन�ेदन करना, भोग लगाना, आरती करना, धुप अगरबत्ती करना, पर यह आ�श्यक नहीं विक लक्ष्मी प्रसन्ना हो ही और हमारा घर अक्षय धन से भर दे! तब दुसरे तरीके से यटिद आपमें विहम्मत हैं, साहस हैं, हौसला हैं, तो क्षमता के साथ लक्ष्मी की आँख में आँख डालकर आप खडे़ हो 9ाते हैं और कहते हैं विक मैं यह तंत्र साधना कर रहा हूँ, मैं तुम्हें तंत्र में आबद्ध कर रहा हूँ और तुम्हें हर हालत में सम्पन्नता देनी हैं, और देनी ही पडे़गी!

पहले प्रकार से स्तुवित या प्राथ"ना करने से दे�ता प्रसन्ना न भी हो परन्तु तंत्र से तो दे�ता बाध्य होते ही हैं, उन्हें �रदान देना ही पड़ता हैं! मंत्र और तंत्र दोनों ही पद्धवितयों में साधना वि�ष्टिध, प!9ा का प्रकार, न्यास सभी कुछ लगभग एक 9ैसा ही होता हैं, बस अंतर होता हैं, तो दोनों के मंत्र वि�न्यास में, तांत्रो4 मंत्र अष्टिधक तीक्ष्* होता हैं! 9ी�न की विकसी भी वि�परीत स्थि0वित में तंत्र अच!क और अविन�ाय" वि�धा हैं.

आ9 के युग में हमारे पास इतना समय नहीं हैं, विक हम बार-बार हाथ 9ोडे़, बार-बार घी के टिदए 9लाए,ं बार-बार भोग लगायें, लक्ष्मी की आरती उतारते रहे और बीसों साल दरिरद्री बने रहे, इसशिलए तंत्र ज्यादा महत्�प!*" हैं, विक लक्ष्मी बाध्य हो ही 9ायें और कम से कम समय में सफलता ष्टिमले! बडे़ ही व्य�स्थि0त तरीके से मंत्र और साधना करने की विक्रया तंत्र हैं! विकस ढंग से मंत्र का प्रयोग विकया 9ायें, साधना को प!*"ता दी 9ायें, उस विक्रया का नाम तंत्र हैं! और तंत्र साधना में यटिद कोई न्य!नता रह 9ायें, तो यह तो हो सकता हैं, विक सफलता नहीं ष्टिमले परन्तु कोई

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वि�परीत परिर*ाम नहीं ष्टिमलता! तंत्र के माध्यम से कोई भी गृह0 �ह सब कुछ हस्तगत कर सकता हैं, 9ो उसके 9ी�न का लक्ष्य हैं! तंत्र तो अपने आप में अत्यंत सौम्य साधना का प्रकार हैं, पंचमकार तो उसमें आ�श्यक हैं ही नहीं! बल्किnक इससे परे हEकर 9ो प!*" पवि�त्रमय सान्त्रित्�क तरीके, हर प्रकार के व्यसनों से दूर रहता हुआ साधना करता हैं तो �ह तंत्र साधना हैं! 9नसाधार* में इसका व्यापक प्रचार न होने का एक कार* यह भी था विक तंत्रों के कुछ अंश समझने में इतने कटिoन हैं विक गुरु के विबना समझे नहीं 9ा सकते । अतः ज्ञान का अभा� ही शंकाओं का कार* बना। तंत्र शास्त्र �ेदों के समय से हमारे धम" का अणिभन्न अंग रहा है। �ैसे तो सभी साधनाओं में मंत्र, तंत्र एक-दूसरे से इतने ष्टिमले हुए हैं विक उनको अलग-अलग नहीं विकया 9ा सकता, पर जि9न साधनों में तंत्र की प्रधानता होती है, उन्हें हम 'तंत्र साधना' मान लेते हैं। 'यथा विपण्डे तथा ब्रह्माण्डे' की उशि4 के अनुसार हमारे शरीर की रचना भी उसी आधार पर हुई है जि9स पर प!*" ब्रह्माण्ड की। तांवित्रक साधना का म!ल उदे्दश्य शिसजिद्ध से साक्षात्कार करना है। इसके शिलए अन्तमु"खी होकर साधनाए ँकी 9ाती हैं। तांवित्रक साधना को साधार*तया तीन माग" : �ाम माग", दणिक्ष* माग" � मधयम माग" कहा गया है। श्मशान में साधना करने �ाले का विनडर होना आ�श्यक है। 9ो विनडर नहीं हैं, �े दुस्साहस न करें। तांवित्रकों का यह अE!E वि�श्वास है, 9ब रात के समय सारा संसार सोता है तब के�ल योगी 9ागते हैं। तांवित्रक साधना का म!ल उदे्दश्य शिसजिद्ध से साक्षात्कार करना है। यह एक अत्यंत ही रहस्यमय शास्त्र है । च!ँविक इस शास्त्र की �ैधता वि��ाटिदत है अतः हमारे द्वारा दी 9ा रही सामग्री के आधार पर विकसी भी प्रकार के प्रयोग करने से प!�" विकसी योग्य तांवित्रक गुरु की सलाह अ�श्य लें। अन्यथा विकसी भी प्रकार के लाभ-हाविन की जि9म्मेदारी आपकी होगी। परस्पर आणिyत या आपस में संविक्रया करने �ाली ची9ों का सम!ह, 9ो ष्टिमलकर सम्प!*" बनती हैं, विनकाय, तंत्र, प्र*ाली या शिसस्Eम (System) कहलातीं हैं। कार है और चलाने का मन्त्र भी आता है, यानी शुद्ध आधुविनक भाषा मे ड्राइवि�न्ग भी आती है, रास्ते मे 9ाकर कार विकसी आन्तरिरक खराबी के कार* खराब होकर खडी हो 9ाती है, अब उसके अन्दर का तन्त्र नही आता है, यानी विक विकस कार* से �ह खराब हुई है और क्या खराब हुआ है, तो यन्त्र यानी कार और मन्त्र यानी ड्राइवि�न्ग दोनो ही बेकार हो गये, विकसी भी �स्तु, व्यशि4, 0ान, और समय का अन्दरूनी ज्ञान रखने �ाले को तान्त्रिन्त्रक कहा 9ाता है, तो तन्त्र का प!रा अथ" इन्9ीविनयर या मैकेविनक से शिलया 9ा सकता है 9ो विक भौवितक �स्तुओं का और उनके अन्दर की 9ानकारी रखता है, शरीर और शरीर के अन्दर की 9ानकारी रखने �ाले को डाक्Eर कहा 9ाता है, और 9ो पराशशि4यों की अन्दर की और बाहर की 9ानकारी रखता है, �ह ज्योवितषी या ब्रह्मज्ञानी कहलाता है, जि9स प्रकार से विब9ली का 9ानकार लाख कोशिशश करने पर भी तार के अन्दर की विब9ली को नही टिदखा सकता, के�ल अपने वि�षेष यन्त्रों की सहायता से उसकी नाप या प्रयोग की वि�ष्टिध दे सकता है, उसी तरह से ब्रह्मज्ञान की 9ानकारी के�ल महस!स कर�ाकर ही दी 9ा सकती है, 9ो �स्तु जि9तने कम समय के प्रवित अपनी 9ी�न विक्रया को रखती है �ह उतनी ही अच्छी तरह से टिदखाई देती है और अपना प्रभा� 9रूर कम समय के शिलये देती है मगर लोग कहने लगते है, विक �े उसे 9ानते है, 9ैसे कम �ोnEे9 पर �n� धीमी रोशनी देगा, मगर अष्टिधक समय तक चलेगा, और 9ो �n� अष्टिधक रोशनी अष्टिधक �ोnEे9 की �9ह से देगा तो उसका चलने का समय भी कम होगा, उसी तरह से 9ो विक्रया टिदन और रात के गु9रने के बाद चौबीस घंEे में ष्टिमलती है �ह साक्षात समझ मे आती है विक कल oंड थी और आ9 गम| है, मगर मनुष्य की औसत उम्र अगर साo साल की है तो 9ो 9ी�न का टिदन और रात होगी �ह उसी अनुपात में लम्बी होगी, और उसी विक्रया से समझ में आयेगा.जि9तना लम्बा समय होगा उतना लम्बा ही कार* होगा, अष्टिधकतर 9ी�न के खेल बहुत लोग समझ नही पाते, मगर 9ो रो9ाना वि�णिभन्न कार*ों के प्रवित अपनी 9ानकारी रखते है �े तुरत फु़रत में अपनी सEीक राय दे देते है.यही तन्त्र और और तान्त्रिन्त्रक का रूप कहलाता है. तन्त्र परम्परा से 9ुडे हुए आगम ग्रन्थ हैं। इनके �4ा साधार*तयः शिश�9ी होते हैं। तन्त्र का शाब्दि�दक उद्भ� इस प्रकार माना 9ाता है - “तनोवित त्रायवित तन्त्र” । जि9ससे अणिभप्राय है – तनना, वि�स्तार, फैला� इस प्रकार इससे त्रा* होना तन्त्र है। विहन्दू, बौद्ध तथा 9ैन दश"नों में तन्त्र परम्परायें ष्टिमलती हैं। यहाँ पर तन्त्र साधना से अणिभप्राय "गुह्य या ग!ढ़ साधनाओं" से विकया 9ाता रहा है।

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तन्त्रों को �ेदों के काल के बाद की रचना माना 9ाता है और साविहत्यक रूप में जि9स प्रकार पुरा* ग्रन्थ मध्ययुग की दाश"विनक-धार्मिम�क रचनायें माने 9ाते हैं उसी प्रकार तन्त्रों में प्राचीन-अख्यान, कथानक आटिद का समा�ेश होता है। अपनी वि�षय�स्तु की दृष्टिष्ट से ये धम", दश"न, सृष्टिष्टरचना शास्त्र, प्रचीन वि�ज्ञान आटिद के इनसाक्लोपीविडया भी कहे 9ा सकते हैं। ........................स्�ास्थ्य के शिलये EोEके

1॰ सदा स्�0 बने रहने के शिलये रावित्र को पानी विकसी लोEे या विगलास में सुबह उo कर पीने के शिलये रख दें। उसे पी कर बत"न को उnEा रख दें तथा टिदन में भी पानी पीने के बाद बत"न (विगलास आटिद) को उnEा रखने से यकृत सम्बन्धी परेशाविनयां नहीं होती तथा व्यशि4 सदै� स्�0 बना रहता है।

2॰ हृदय वि�कार, र4चाप के शिलए एकमुखी या सोलहमुखी रूद्राक्ष yेष्ठ होता है। इनके न ष्टिमलने पर ग्यारहमुखी, सातमुखी अथ�ा पांचमुखी रूद्राक्ष का उपयोग कर सकते हैं। इस्थिच्छत रूद्राक्ष को लेकर yा�* माह में विकसी प्रदोष व्रत के टिदन, अथ�ा सोम�ार के टिदन, गंगा9ल से स्नान करा कर शिश�9ी पर चढाए,ं विफर सम्भ� हो तो रूद्राणिभषेक करें या शिश�9ी पर “ॐ नम: शिश�ाय´´ बोलते हुए दूध से अणिभषेक कराए।ं इस प्रकार अणिभमंवित्रत रूद्राक्ष को काले डोरे में डाल कर गले में पहनें।

3॰ जि9न लोगों को 1-2 बार टिदल का दौरा पहले भी पड़ चुका हो �े उपरो4 प्रयोग संख्या 2 करें तथा विनम्न प्रयोग भी करें :- एक पाचंमुखी रूद्राक्ष, एक लाल रंग का हकीक, 7 साबुत (डंoल सविहत) लाल ष्टिमच" को, आधा ग9 लाल कपडे़ में रख कर व्यशि4 के ऊपर से 21 बार उसार कर इसे विकसी नदी या बहते पानी में प्र�ाविहत कर दें।

4॰ विकसी भी सोम�ार से यह प्रयोग करें। बा9ार से कपास के थोडे़ से फ! ल खरीद लें। रवि��ार शाम 5 फ! ल, आधा कप पानी में साफ कर के णिभगो दें। सोम�ार को प्रात: उo कर फ! ल को विनकाल कर फें क दें तथा बचे हुए पानी को पी 9ाए।ं जि9स पात्र में पानी पीए,ं उसे उnEा कर के रख दें। कुछ ही टिदनों में आश्चय"9नक स्�ास्थ्य लाभ अनुभ� करेंगे।

5॰ घर में विनत्य घी का दीपक 9लाना चाविहए। दीपक 9लाते समय लौ प!�" या दणिक्ष* टिदशा की ओर हो या दीपक के मध्य में (फ! लदार बाती) बाती लगाना शुभ फल देने �ाला है।

6॰ रावित्र के समय शयन कक्ष में कप!र 9लाने से बीमारिरयां, दु:स्�पन नहीं आते, विपतृ दोष का नाश होता है ए�ं घर में शांवित बनी रहती है।

7॰ प!र्णि*�मा के टिदन चांदनी में खीर बनाए।ं oंडी होने पर चन्द्रमा और अपने विपतरों को भोग लगाए।ं कुछ खीर काले कुत्तों को दे दें। �ष" भर प!र्णि*�मा पर ऐसा करते रहने से गृह क्लेश, बीमारी तथा व्यापार हाविन से मुशि4 ष्टिमलती है।

8॰ रोग मुशि4 के शिलए प्रवितटिदन अपने भो9न का चौथाई विहस्सा गाय को तथा चौथाई विहस्सा कुत्ते को ब्दिखलाए।ं

9॰ घर में कोई बीमार हो 9ाए तो उस रोगी को शहद में चन्दन ष्टिमला कर चEाए।ं

10॰ पुत्र बीमार हो तो कन्याओं को हल�ा ब्दिखलाए।ं पीपल के पेड़ की लकड़ी शिसरहाने रखें।

11॰ पत्नी बीमार हो तो गोदान करें। जि9स घर में स्त्री�ग" को विनरन्तर स्�ास्थ्य की पीड़ाए ँरहती हो, उस घर में तुलसी का पौधा लगाकर उसकी yद्धाप!�"क देखशल करने से रोग पीड़ाए ँसमाप्त होती है।

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12॰ मंटिदर में गुप्त दान करें।

13॰ रवि��ार के टिदन ब!ंदी के स�ा विकलो लड्डू मंटिदर में प्रसाद के रूप में बांEे।

14॰ सदै� प!�" या दणिक्ष* टिदषा की ओर शिसर रख कर ही सोना चाविहए। दणिक्ष* टिदशा की ओर शिसर कर के सोने �ाले व्यशि4 में चुम्बकीय बल रेखाए ंपैर से शिसर की ओर 9ाती हैं, 9ो अष्टिधक से अष्टिधक र4 खींच कर शिसर की ओर लायेंगी, जि9ससे व्यशि4 वि�णिभन्न रोंगो से मु4 रहता है और अच्छी विनद्रा प्राप्त करता है।

15॰ अगर परिर�ार में कोई परिर�ार में कोई व्यशि4 बीमार है तथा लगातार औषष्टिध से�न के पश्चात् भी स्�ास्थ्य लाभ नहीं हो रहा है, तो विकसी भी रवि��ार से आरम्भ करके लगातार 3 टिदन तक गेहंू के आEे का पेड़ा तथा एक लोEा पानी व्यशि4 के शिसर के ऊपर से उबार कर 9ल को पौधे में डाल दें तथा पेड़ा गाय को ब्दिखला दें। अ�श्य ही इन 3 टिदनों के अन्दर व्यशि4 स्�0 महस!स करने लगेगा। अगर EोEके की अ�ष्टिध में रोगी oीक हो 9ाता है, तो भी प्रयोग को प!रा करना है, बीच में रोकना नहीं चाविहए।

16॰ अमा�स्या को प्रात: मेंहदी का दीपक पानी ष्टिमला कर बनाए।ं तेल का चौमुंहा दीपक बना कर 7 उड़द के दाने, कुछ शिसन्दूर, 2 ब!ंद दही डाल कर 1 नींब! की दो फांकें शिश�9ी या भैरों 9ी के शिचत्र का प!9न कर, 9ला दें। महामृत्यु9ंय मंत्र की एक माला या बEुक भैर� स्तोत्र का पाo कर रोग-शोक दूर करने की भग�ान से प्राथ"ना कर, घर के दणिक्ष* की ओर दूर स!खे कुए ंमें नींब! सविहत डाल दें। पीछे मुड़कर नहीं देखें। उस टिदन एक ब्राह्म* -ब्राह्म*ी को भो9न करा कर �स्त्राटिद का दान भी कर दें। कुछ टिदन तक पणिक्षयों, पशुओं और रोविगयों की से�ा तथा दान-पुण्य भी करते रहें। इससे घर की बीमारी, भ!त बाधा, मानशिसक अशांवित विनश्चय ही दूर होती है।

17॰ विकसी पुरानी म!र्तित� के ऊपर घास उगी हो तो शविन�ार को म!र्तित� का प!9न करके, प्रात: उसे घर ले आए।ं उसे छाया में सुखा लें। जि9स कमरे में रोगी सोता हो, उसमें इस घास में कुछ ध!प ष्टिमला कर विकसी भग�ान के शिचत्र के आगे अब्दिग्न पर सांय, ध!प की तरह 9लाए ंऔर मन्त्र वि�ष्टिध से ´´ ॐ माध�ाय नम:। ॐ अनंताय नम:। ॐ अच्युताय नम:।´´ मन्त्र की एक माला का 9ाप करें। कुछ टिदन में रोगी स्�0 हो 9ायेगा। दान-धम" और द�ा उपयोग अ�श्य करें। इससे द�ा का प्रभा� बढ़ 9ायेगा।

18॰ अगर बीमार व्यशि4 ज्यादा गम्भीर हो, तो 9ौ का 125 पा� (स�ा पा�) आEा लें। उसमें साबुत काले वितल ष्टिमला कर रोEी बनाए।ं अच्छी तरह सेंके, जि9ससे �े कच्ची न रहें। विफर उस पर थोड़ा सा वितnली का तेल और गुड़ डाल कर पेड़ा बनाए ंऔर एक तरफ लगा दें। विफर उस रोEी को बीमार व्यशि4 के ऊपर से 7 बार �ार कर विकसी भैंसे को ब्दिखला दें। पीछे मुड़ कर न देखें और न कोई आ�ा9 लगाए। भैंसा कहाँ ष्टिमलेगा, इसका पता पहले ही माल!म कर के रखें। भैंस को रोEी नहीं ब्दिखलानी है, के�ल भैंसे को ही yेष्ठ रहती है। शविन और मंगल�ार को ही यह काय" करें।

19॰ पीपल के �ृक्ष को प्रात: 12 ब9े के पहले, 9ल में थोड़ा दूध ष्टिमला कर सींचें और शाम को तेल....19॰ पीपल के �ृक्ष को प्रात: 12 ब9े के पहले, 9ल में थोड़ा दूध ष्टिमला कर सींचें और शाम को तेल का दीपक और अगरबत्ती 9लाए।ं ऐसा विकसी भी �ार से शुरू करके 7 टिदन तक करें। बीमार व्यशि4 को आराम ष्टिमलना प्रारम्भ हो 9ायेगा।

20॰ विकसी कब्र या दरगाह पर स!या"स्त के पश्चात् तेल का दीपक 9लाए।ं अगरबत्ती 9लाए ंऔर बताशे रखें, विफर �ापस मुड़ कर न देखें। बीमार व्यशि4 शीघ्र अच्छा हो 9ायेगा।

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21॰ विकसी तालाब, क! प या समुद्र में 9हां मछशिलयाँ हों, उनको शुक्र�ार से शुक्र�ार तक आEे की गोशिलयां, शक्कर ष्टिमला कर, चुगा�ें। प्रवितटिदन लगभग 125 ग्राम गोशिलयां होनी चाविहए। रोगी oीक होता चला 9ायेगा।

22॰ शुक्र�ार रात को मुठ्ठी भर काले साबुत चने णिभगोयें। शविन�ार की शाम काले कपडे़ में उन्हें बांधे तथा एक कील और एक काले कोयले का Eुकड़ा रखें। इस पोEली को विकसी तालाब या कुए ंमें फें क दें। फें कने से पहले रोगी के ऊपर से 7 बार �ार दें। ऐसा 3 शविन�ार करें। बीमार व्यशि4 शीघ्र अच्छा हो 9ायेगा।

23॰ स�ा सेर (1॰25 सेर) गुलगुले बा9ार से खरीदें। उनको रोगी पर से 7 बार �ार कर चीलों को ब्दिखलाए।ं अगर चीलें सारे गुलगुले, या आधे से ज्यादा खा लें तो रोगी oीक हो 9ायेगा। यह काय" शविन या मंगल�ार को ही शाम को 4 और 6 के मध्य में करें। गुलगुले ले 9ाने �ाले व्यशि4 को कोई Eोके नहीं और न ही �ह पीछे मुड़ कर देखे।

24॰ यटिद लगे विक शरीर में कष्ट समाप्त नहीं हो रहा है, तो थोड़ा सा गंगा9ल नहाने �ाली बाnEी में डाल कर नहाए।ं

25॰ प्रवितटिदन या शविन�ार को खे9ड़ी की प!9ा कर उसे सींचने से रोगी को द�ा लगनी शुरू हो 9ाती है और उसे धीरे-धीरे आराम ष्टिमलना प्रारम्भ हो 9ायेगा। यटिद प्रवितटिदन सींचें तो 1 माह तक और के�ल शविन�ार को सींचें तो 7 शविन�ार तक यह काय" करें। खे9ड़ी के नीचे ग!गल का ध!प और तेल का दीपक 9लाए।ं

26॰ हर मंगल और शविन�ार को रोगी के ऊपर से इमरती को 7 बार �ार कर कुत्तों को ब्दिखलाने से धीरे-धीरे आराम ष्टिमलता है। यह काय" कम से कम 7 सप्ताह करना चाविहये। बीच में रूका�E न हो, अन्यथा �ापस शुरू करना होगा।

27॰ साबुत मस!र, काले उड़द, म!ंग और ज्�ार चारों बराबर-बराबर ले कर साफ कर के ष्टिमला दें। कुल �9न 1 विकलो हो। इसको रोगी के ऊपर से 7 बार �ार कर उनको एक साथ पकाए।ं 9ब चारों अना9 प!री तरह पक 9ाएं, तब उसमें तेल-गुड़ ष्टिमला कर, विकसी ष्टिमट्टी के दीये में डाल कर दोपहर को, विकसी चौराहे पर रख दें। उसके साथ ष्टिमट्टी का दीया तेल से भर कर 9लाए,ं अगरबत्ती 9लाए।ं विफर पानी से उसके चारों ओर घेरा बना दें। पीछे मुड़ कर न देखें। घर आकर पां� धो लें। रोगी oीक होना शुरू हो 9ायेगा।

28॰ गाय के गोबर का कण्डा और 9ली हुई लकड़ी की राख को पानी में ग!ंद कर एक गोला बनाए।ं इसमें एक कील तथा एक शिसक्का भी खोंस दें। इसके ऊपर रोली और का9ल से 7 विनशान लगाए।ं इस गोले को एक उपले पर रख कर रोगी के ऊपर से 3 बार उतार कर सुया"स्त के समय मौन रह कर चौराहे पर रखें। पीछे मुड़ कर न देखें।

29॰ शविन�ार के टिदन दोपहर को 2॰25 (स�ा दो) विकलो बा9रे का दशिलया पकाए ंऔर उसमें थोड़ा सा गुड़ ष्टिमला कर एक ष्टिमट्टी की हांडी में रखें। स!या"स्त के समय उस हांडी को रोगी के शरीर पर बायें से दांये 7 बार विफराए ंऔर चौराहे पर मौन रह कर रख आए।ं आते-9ाते समय पीछे मुड़ कर न देखें और न ही विकसी से बातें करें।

30॰ धान क! Eने �ाला म!सल और झाड! रोगी के ऊपर से उतार कर उसके शिसरहाने रखें।

31॰ सरसों के तेल को गरम कर इसमें एक चमडे़ का Eुकड़ा डालें, पुन: गम" कर इसमें नींब!, विफEकरी, कील और काली कांच की च!ड़ी डाल कर ष्टिमट्टी के बत"न में रख कर, रोगी के शिसर पर विफराए।ं इस बत"न को 9ंगल में एकांत में गाड़ दें।.........................ऋ* मुशि4 भैर� साधना- हर व्यशि4 के 9ी�न में ऋ* एक अणिभशाप है !एक �ार व्यशि4 इस में फस गया तो धस्ता चला 9ाता है ! स!त की चिच�ता धीरे धीरे मष्तश पे हा�ी होती चली 9ाती है जि9स का असर स्�0 पे होना भी स्�ाणिभक है ! प्रत्येक व्क्यती पे छ विकस्म का ऋ* होता है जि9स में विपत्र ऋ* मात" ऋ* भ!ष्टिम ऋ*

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गुरु ऋ* और भ्राता ऋ* और ऋ* जि9से ग्रह ऋ* भी कहते है !संसारी ऋ* (क9" )व्यशि4 की कमर तोड़ देता है मगर ह9ार परयत्न के बाद भी व्यशि4 छुEकारा नहीं पाता तो मेय!स हो के खु़दकुशी तक सोच लेता है !मैं 9हां एक बहुत ही सरल अनुभ!त साधना प्रयोग दे रहा हु आप विनहचिच�त हो कर करे बहुत 9nद आप इस अणिभशाप से मुशि4 पा लेंगे ! वि�ष्टिध – शुभ टिदन जि9स टिदन रवि� पुष्य योग हो 9ा रवि� �ार हस्त नक्षत्र हो श!कल पक्ष हो तो इस साधना को शुरू करे �स्त्र --- लाल रंग की धोती पहन सकते है ! माला – काले हकीक की ले ! टिदशा –दणिक्ष* ! सामग्री – भैर� यन्त्र 9ा शिचत्र और हकीक माला काले रंग की ! मंत्र संख्या – 12 माला 21 टिदन करना है ! पहले गुरु प!9न कर आज्ञा ले और विफर yी ग*ेश 9ी का पंचौपचार प!9न करे तद पहश्चांत संकnप ले ! के मैं गुरु स्�ामी विनब्दिखलेश्वरा नन्द 9ी का शिशष्य अपने 9ी�न में स्म0 ऋ* मुशि4 के शिलए यह साधना कर रहा हु हे भैर� दे� मुझे ऋ* मुशि4 दे !9मीन पे थोरा रेत वि�शा के उस उपर कुक्म से वितको* बनाए उस में एक पलेE में स्�ाल्किस्तक शिलख कर उस पे लाल रंग का फ! ल रखे उस पे भैर� यन्त्र की 0ापना करे उस यन्त्र का 9ा शिचत्र का पंचौपचार से प!9न करे तेल का टिदया लगाए और भोग के शिलए गुड रखे 9ा लड्डू भी रख सकते है ! मन को स्थि0र रखते हुये मन ही मन ऋ* मुशि4 के शिलए पाथ"ना करे और 9प शुरू करे 12 माला 9प रो9 करे इस प्रकार 21 टिदन करे साधना के बाद स्मगरी माला यन्त्र और 9ो प!9न विकया है �ोह समान 9ल प्र�ाह कर दे साधना के दोरान रवि� �ार 9ा मंगल �ार को छोEे बच्चो को मीoा भो9न आटिद 9रूर कराये ! शीघ्र ही क9" से मुशि4 ष्टिमलेगी और कारोबार में प्रगवित भी होगी ! मंत्र—ॐ ऐं क्लीम ह्रीं भम भैर�ाये मम ऋ*वि�मोचनाये महां महा धन प्रदाय क्लीम स्�ाहा !!....................पारिर�ारिरक क्लेश विन�ारक तंत्र ( उपाय ) अक्षर लोग हमारे पास नोकरी – विब9नेश – आर्थिथ�क संकE – वि��ाह – संतान – या विफर शारीरिरक तकलीफ यह सारी परेशानी ज्यादा लेकर आते और उनमे से ज्यादातर लोगो से �ाता"लाप में यह सामने आता हें की उनके घर और 9ी�न में क्लेश भी हें जि9स �9ह से �ो परेशान हें, यटिद पारिर�ारिरक 9ी�न सुखमय हो और परिर�ार के सभ्यो का संप!*" सहयोग ष्टिमलता हो तो व्य4 शीघ्र ही उन्नवित को प्राप्त करता हें – में यहाँ कुछ ऐसे उपाय दे रहा हू 9ो कर के आप अपने 9ी�न से क्लेश को ष्टिमEा करे 9ी�न को सुखमय बना शके .

... परिर�ार के सभी सदस्यों को साल में एक बार विकसी नदी या सरो�र में एक साथ स्नान करना चाविहए

... अगर आपके परिर�ार में विकसी मविहला सदस्य की �9ह से कलश उत्पन्न हो रहा हो तो उस मविहला का स्�भा� शांत करने के शिलए उसे एक चांदी की चैन में चांदी के पत्र पर चंद्रमा का यन्त्र बन�ाकर उसे धार* कर�ाना चाविहए ( विकसी भी सोम�ार को

... अगर आपके परिर�ार में विकसी पुरुष सदाशय की �9ह से क्लेश उत्पन्न हो रहा हो तो उस पुरुष से हर सोम�ार को चा�ल का दान कर�ाए और हररो9 स!यBदय के समय स!य" को 9ल अप"* कर�ाए, अ�श्य उसका स्�भा� शांत होगा

... अगर आपके परिर�ार में स्त्री �ग" में परस्पर तना� या वि��ाद की �9ह से क्लेश उत्पन्न हो रहा हो तो ध्यान रहे की सभी मविहला सदस्य कभी लाल �स्त्र एक साथ नहीं पहने और हो शके तो उन मविहलाओ से कहे की �ो माँ दुगा" का प!9न अ�श्य करे

... अगर आपके परिर�ार में पुरुष �ग" में परस्पर तना� या वि��ाद की �9ह से क्लेश उत्पन्न हो रहा हो तो यह घर के में एक कदम्ब �ृक्ष की डाली लाकर घर में रखनी चाविहए ( डाली में कमसे कम ७ अखंविडत पते्त होने चाविहए ) हर प!र्णि*�मा को ये डाली ले 9ाकर �ही कदम्ब �ृक्ष के आगे छोड़ दे और �ह से दूसरी ले आये इस तरह १८ प!र्णि*�मा तक करे और साथै में उन पुरुषों को कहे की �ो yी हरी वि�ष्*ु के दश"न अ�श्य करे

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... अगर परिर�ार के यु�ा ए�ं �ृद्ध व्यशि4 के विबच में तना� या वि��ाद की �9ह से क्लेश उत्पन्न हो रहा हो तो घर के हर एक कक्ष के दर�ा9े पर हर प!र्णि*�मा के टिदन सुबह अशोक के पत्तों का तोर* बनाकर लगाना चाविहए

... यटिद उपरो4 उपायों के बा�9!त भी घर में ज्यादा ही क्लेश उत्पन्न हो रहा हो तो प्रत्येक व्यशि4 की कंुडली के अनुसार समस्या का समाधान करना चाविहए............................ Pandit Rajesh Dubey ज्योवितष को भी आधुविनक वि�षयों ए�ं परम्पराओं की 9ानकारिरय रखना चाविहए. 9ब कभी ज्योवितष आपनी रचनाओं को या लेख को रखे तो विनभ|क होना चाविहए. प्राचीनकाल में �ात्सायन ऋविष ने विनभ|क होकर कोलाचार 9ैसे ग!ढ़ वि�षय ग्रन्थ शिलखे थे आ9 इसक्रम में 9ानकारी है 9ो ज्योवितष के अनुसार है.( फोEो Eेग के�ल प्रस्ता�ना के शिलए है.) 9ब कभी विकसी स्त्री की 9न्म कंुडली में शुक्र ,राहु,शविन तीन ग्रहों की युवित होती है तो �ह अंग प्रदश"न करने में अणिभरुशिच रखती है.यहाँ तक की ऐसी स्त्री नगर-�धु योग की भागी होती है. 9ावितका के सप्त भा�गत शुक्र राहु हो तो �ह कामुक ,स्�ेक्छाचारी बहु-पुरुष गामी होती है. मांस,शराब आटिद का से�न करने�ाली होती है.झगडाल! स्�ाभा� होता है. 9ावितका के सात�े भा� में शुक्र हो तो �ो पुष्ट अन्गो�ाली होती है ए�म टिदखने में आकष"क होती है . आपने सुन्दरता के बल पर पराये पुरुषों से छल-कपE करते हुए धन हर* करती है. शुक्र के साथ शविन हो सात�े भा� में तो आपने से कम उम्र के यु�ा से भोगी होती है. पे्रम प्रसंग में अनेको यु�ाओं से सम्बन्ध बनाने �ाली होती है.नगर �धु योगी होती हैै. ...............................................................................................................................................................अंक ज्योवितष के अनुसार विनन्म उपाय करे म!लांक १ - yी ग*ेश की प!9ा करे और महीने में एक रवि��ार को गेहू दान करे म!लांक २ - महालक्ष्मी की प!9ा करे और महीने में एक सोम�ार को चा�ल का दान करे म!लांक ३ – yी ग*ेश और लक्ष्मी की साथ में प!9ा करे और महीने में एक गुरु�ार को चने की दाल का दान करे म!लांक ४ – yी हनुमान9ी का प!9न करे और महीने में एक शविन�ार को काले वितल का दान करे म!लांक ५ – yी हरी वि�ष्*ु का प!9न करे और महीने में एक बुध�ार को साबुत मंुग का दान करे म!लांक ६ – आशुतोष शिश� का प!9न करे और महीने में एक बार बुध�ार को गाय को हरा चारा डाले म!लांक ७ - हररो9 शिश�चिल�ग पर 9लाणिभषेक करे और हर मंगल�ार को सफे़द वितल का दान करे म!लांक ८ – yी कृष्* का प!9न करे और महीने के हर शविन�ार को साबुत मुंग का दान करे म!लांक ९ - yी भैर� का प!9न करे और महीने में हर मंगल�ार को मस!र की दाल का दान करे......................हरिरद्रा कnप तंत्र हरिरद्रा सामान्यतः हnदी के नाम से प्रचशिलत हें जि9से हम रो9बरो9 के खाने के मसलो में इस्तमाल करते हें असल में यह एक पोंधे की 9ड़ हें | हnदी कई प्रकार की होती हें 9ैस आ�ा हnदी , दारू हnदी, कशिल हnदी इत्यादी | हमारे दैविनक प्रयोग में आने�ाली हnदी विपत्त �*| और नारंगी दो प्रकार की होती हें इसमे कोई कोई गांo काले रंग की भी ष्टिमल 9ाती हें परन्तु यह काले रंग की गांo सही होना 9रुरी हें, यह गांo ऊपर से काली और अंदर से कत्थई रंग की होती हें | इसकी 9ड़ से कप!र के 9ैसी सुघंध आती हें | काली हnदी के पोंधो पर गुछेदार पीले रंग का पुष्प ब्दिखलता हें

यह काली हnदी टिदखने में जि9तनी कुरूप, अनाकष"क और अनुपयोगी हें उतनी ही अष्टिधक म!nय�ान दुल"भ और टिदव्य गु* यु4 होती हें | अगर आपको कशिल हnदी ष्टिमल 9ाये तो बहोत ही अच्छी बात हें ( कृपया सा�धान बा9ार में ज्यादातर नकली हnदी ही प्राप्त होती हें ) उसे घर लाकर उसे प!9ा के 0ान पर रख ले, �ैसे यह कशिल हnदी 9हा भी रहती हें �हा सह9 ही yी समृजिद्ध का आगमन होने लगता हें | इस टिदव्य कशिल हnदी को कोई नए �स्त्र में चा�ल और चांदी के शिसक्के या Eुकडे़ के साथ रख कर उसका पंचोपचार प!9न कर उस कपडे को गांo बांध ले और उसे अपने 9हा आप पैसे रखते हें �ह कोई बक्से में रख दे तो अ�श्य आपको आश्चय" 9नक अथ"लाभ प्राप्त होगा .. कृपया लाभ उoाये....................तंत्र क्या है..कंुडशिलनी क्या होती है....क्या होती है इसकी 9ाग्रत और सुप्त अ�0ा....साधक कैसा होता है....और योगी कैसा होता है....क्या इन दोनों में कोई भेद है....क्या है टिदव्या भ!ष्टिम या

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दे� भ!ष्टिम....और शिसद्ध स्थि0वित कैसी होती है....ऐसी कौन सी विक्रया हो सकती है 9ो उपरो4 प्रश्नों को ना शिसफ" सुलझा दे बल्किnक यथाशिचत �ो उत्तर भी दे 9ो स�" माननीय हो... विकसी भी चीज़ को समझने के शिलए कम से कम आ9 के युग में ये बहुत 9रुरी हो गया है की कही गयी बात के पीछे कोई oोस तक" काम करता हो और यही स्थि0वित आ9 तंत्र के क्षेत्र में भी बनी हुई है...अपनी अपनी 9गह पे हम सब 9ानते हैं की कोई भी साधना शुरू करने से पहले हमे इस बात को 9ानने की 9nदी होती है की इससे लाभ क्या होगा...तो मेरा अध्ययन मुझे बताता है की तंत्र ही 9ी�न है, ये कोई कोरी कnपना नहीं बल्किnक एक oोस ज्ञान है. ज्ञान के�ल तब तक ज्ञान रहता है 9ब तक की �ो प!री तरह से आपकी पकड़ में नहीं आ 9ाता पर 9ैसे ही आप उसके अंश वि�शेष को 9ानकर उसे अपने आधीन कर लेते हैं तो �ही ज्ञान...वि�ज्ञान बन 9ाता है, �ो वि�ज्ञान जि9समें आपका 9ी�न परिर�त"न करने की क्षमता होती है. तंत्र भी एक ऐसा ही वि�ज्ञान है पर हम इसमें वि�9यी हो सके उसके शिलए 9रूरी है कंुडशिलनी 9ागर*. हम सब 9ानते हैं की हमारे शरीर में इड़ा (9ो की चंद्र का प्रतीक है), पिप�गला (9ो स!य" रूप में है) और सुष्मना (9ो चन्द्र और स!य" में समभा� 0ाविपत करती है) वि�धमान हैं 9ो क्रम अनुसार दणिक्ष* शशि4, �ाम शशि4 और मध्य शशि4 के रूप में हैं...और इन शशि4यों का वित्रको* रूप में 9ो आधार पिब�दु है �ो शिश� है पर ये पिब�दु शिसफ" बोल देने से शिश� रूप नहीं ले लेता इसके शिलए तीनो वित्रकोविनये शशि4यों को 9ागृत होना पड़ता है अथा"त शिश� तभी अपने चरम रूप में 9ाग्रत होते है 9ब तीनो शशि4याँ 9ो की आटिदशशि4 माँ काली, माँ तारा और माँ रा9रा9ेश्वरी के रूप में हैं �ो 9ागती हैं क्योविक शशि4 के विबना शिश� अध!रे हैं .माँ काली की 9ाग्रत अ�0ा में शिश� या पिब�दु के शिश�मय होने की प्रथम स्थि0वित है...पर इस �4 शिश� श� अथा"त विक्रया हीन रहते हैं...माँ तारा के 9ाग 9ाने से शिश� अपने श्व्त्� में चरम रूप में होते हैं और रा9रा9ेश्वरी माँ के 9ागने से शिश� का श्व्त्� तो भंग हो 9ाता है पर �ो पिन�द्रा में चले 9ाते हैं पर एक साधक के शिलए ये प!री प्रविक्रया कंुडशिलनी 9ागर* ही होती है क्योविक इसमें भी नाणिभ कंुड में 0ाविपत कमलासन खुलता है पर रा9रा9ेश्वरी माँ भग�ती उसमें वि�रा9मान नहीं होती �ो वि�रा9मान होती है गुरु कृपा से...और 9ब गुरु की कृपा दीक्षा या शशि4पात से प्राप्त हो 9ाती है तो स्थि0वित बनती है आनंद की, वि�ज्ञान की और विफर सत्य की...जि9से योगी अपनी भाषा में खंड, अखंड और महाखंड की अ�स्थि0वित में �र्णि*�त करते हैं....9हाँ हम में और हमारे इष्ट में कोई भेद नहीं होता है �ो मैं और मैं �ो बन 9ाते हैं.......................-:मंत्र प्रयोग:- म!ल मंत्र में संपुE लगा देने से यह मंत्र महामृत्युञ्जय हो 9ाता है।लघु मृत्युं9य तथा बहुत से ऐसे मंत्र है,जि9सका 9प विकया 9ाता है।9ी� को मृत्यु मुख से खींच लाते है,मृत्युं9य।आ9 तो हमेशा भय लगा रहता है विक कब क्या हो 9ाय।ग्रह के अशुभ दशा या दैवि�क,दैविहक प्रभा�,तंत्र या कोई भी अविनष्टकारी प्रभा� को दूर कर देते है पल में।पुरा परिर�ार सुरणिक्षत रहता है,छोEा रोग हो या असाध्य विबमारी,आपरेशन हो या महामारी,कोई खो 9ाय या कोई भी संकE आन पडे़ मृत्युं9य की कृपा से सब कुछ अच्छा हो 9ाता हैं।मृत्युं9य मंत्र ३२ अक्षर का "त्र्यम्बक मंत्र" भी कहलाता हैं ।"ॐ" लगा देने से यह ३३ अक्षर का हो 9ाता हैं,इस मंत्र में संपुE लगा देने से मंत्र का कई रूप प्रकE हो 9ाता है।गायत्री मंत्र के साथ प्रयोग करने पर यह "मृतसं9ी�नी मंत्र" हो 9ाता हैं।मंत्र प्रयोग के शिलए "शिश� �ास" देखकर ही 9प शुरू करें।शिश� मंटिदर में मंत्र 9प करने पर कोई विनयम की पाबन्दी नहीं हैं।यटिद घर में प!9न करते है तो पहले पार्थिथ�� शिश� प!9न करके या शिचत्र का प!9न कर घी का दीपक अप"* कर,पुष्प,प्रसाद के साथ कामना के शिलए दायें हाथ में 9ल,अक्षत लेकर संकnप कर ले।विकतनी संख्या में 9प करना है यह विन*"य कर ले साथ ही 9प माला रूद्राक्ष का ही हो।एक विनणिश्चत संख्या में ही 9प होना चाविहए।ह�न के टिदन "अब्दिग्न�ास" देख लेना चाविहए।आ9 मै "मृत्युं9य प्रयोग" दे रहा हूँ,वि�ष्टिध संणिक्षप्त हैं प!री yद्धा के साथ प्रयोग करे,और शिश� कृपा देखे।साथ ही शिश� पार्थिथ�� प!9न वि�ष्टिध yा�* में दे दंूगा।गुरू,ग*ेश प!9न के बाद शिश� प!9न कर,प!�" टिदशा में ऊनी आसन पर बैo एकाग्र शिचत 9प करना चाविहये।आचमनी विनम्न मंत्र से कर संकnप कर ले।दाए ँहाथ मे 9ल लेकर मंत्र बोले मंत्र १.ॐ केश�ाय नमः।9ल पी 9ाए। २.ॐ नाराय*ाय नमः।9ल पी 9ाए। ३.ॐ माध�ाय नमः।9ल पी लें। अब हाथ इस मंत्र से धो ले।४.ॐ हृविषकेषाय नमः।

अब संकnप करे।संकnप अपने कामना अनुसार छोEा,बड़ा कर सकते है।दाए ँहाथ में 9ल,अक्षत,बेलपत्र,द्रव्य,सुपारी रख संकnप करें। संकnप "ॐ वि�ष्*ुर्ति��ष्*ुर्ति��ष्*ुःyीमद ्भग�तो

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महाप!रूषस्य,वि�ष्*ुराज्ञया प्र�त"मानस्य अद्य ब्रह्मा*ोऽहविन विद्वतीये पराध· yी श्वेत �ाराहकnपे,�ै�स्�त मन्�न्तरे अष्टापि��शवित तमे कशिलयुगे कशिल प्रथमचर*े भारत�ष· भरतखण्डे 9म्ब!द्वीपे आया"�त̧क देशान्तग"ते अमुक सं�तसरे महांमागnयप्रद मासोतमे मासे अमुक मासे अमुकपक्षे,अमुकवितथौःअमुक�ासरे,अमुक गोत्रोत्पन्नोहं अमुक शमा"हं,या �मा"हं ममात्मनःyुवित स्मृवित,पुरा*तन्त्रो4 फलप्राप्तये मम 9न्मपवित्रका ग्रहदोष,दैविहक,दैवि�क,भौवितक ताप स�ा"रिरष्ट विनरसन प!�"क स�"पाप क्षयाथ¹ मनसेल्किप्सत फल प्रान्त्रिप्त प!�"क,दीघा"यु,वि�पुलं,बल,धन,धान्य,यश,पुष्टिष्ट,प्राप्तयथ"म सकल आष्टिध,व्याष्टिध,दोष परिरहाथ"म सकलाभीष्टशिसद्धये yी शिश� मृत्युं9य प्रीत्यथ" प!9न,न्यास,ध्यान यथा संख्याक मंत्र 9प करिरष्ये।" ग*ेश प्राथ"ना ग9ाननं भ!तग*ाटिद सेवि�तं कविपत्थ9म्ब! फलचारूभक्ष*म्।उमासुतं शोक वि�नाशकारकं नमाष्टिम वि�घ्नेश्वर पाद पंक9म्॥नागाननाय yुवितयज्ञवि�भ!विषताय,गौरीसुताय ग*नाथ नमो नमस्ते॥ॐ yी ग*ेशाय नमः।

गुरू प्राथ"ना गुरूब्र"ह्मा,गुरूर्ति��ष्*ु,गुरूद·�ो महेश्वरः।गुरू साक्षात परब्रह्म तस्मै yी गुरू�े नमः॥

गौरी प्राथ"ना ॐ नमो देव्यै महादेव्यै शिश�ायै सततं नमः।नमः प्रकृत्यै भद्रायै विनयताः प्र*ताः स्मताम्॥

वि�विनयोग अस्य त्र्यम्बक मन्त्रस्य �शिसष्ठ ऋविषःअनुषु्टप छन्दःत्र्यम्बक पा�"तीपवितद·�ता,त्र्यं बी9म्,�ं शशि4ः,कं कीलकम्,स�·ष्टशिसद्धयथ· 9पे वि�विनयोगः। ऋष्याटिदन्यास ॐ �शिसष्ठष"ये नमःशिशरशिस।अनुषु्टप् छन्दसे नमः मुखे।त्र्यम्बकपा�"तीपवित दे�तायै नमः हृटिद।त्र्यं बी9ाय नमः गुह्ये।�ं श4ये नमः पादयोः।कं कीलकाय नमः नाभौ। वि�विनयोगाय नमःस�ा"गें। करन्यास त्र्यम्बकम् अंगुष्ठाभ्यां नमः।य9ामहे त9"नीभ्यां नमः।सुगंधिध� पुष्टिष्ट�द्ध"नं मध्यमाभ्यां नमः।उ�ा"रूकष्टिम� बन्धनात् अनाष्टिमकाभ्यां नमः।मृत्योमु"क्षीय कविनष्टिष्ठकाभ्यां नमः।मामृतात् करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः। हृदयाटिदन्यास ॐ त्र्यम्बकं हृदयाय नमः।य9ामहे शिशरसे स्�ाहा।सुगन्धिन्ध� पुष्टिष्ट�द्ध"नं शिशखायै �षE्।उ�ा"रूकष्टिम� बन्धनात् क�चाय हुं।मृत्योमु"क्षीय नेत्रत्रयाय �ौषE्।मामृतात् अस्त्राय फE्। ध्यान हस्ताभ्यां कलशद्वयामृतरसैराप्ला�यन्तं शिशरो द्वाभ्यां तौ दधतं मृगाक्ष�लये द्वाभ्यां बहन्तं परम्।अंकन्यस्तकरद्वयामृतघEं कैलासकान्तं शिश�ं स्�च्छाम्भो9गतं न�ेन्दुमुकुEं दे�ं वित्रनेतं्र भ9े। मंत्र ॐ त्र्यम्बकं य9ामहे सुगन्धिन्ध� पुष्टिष्ट�ध"नम् उ�ा"रूकष्टिम� बन्धनान्मृत्योमु"क्षीय मामृतात्॥ ह�न वि�ष्टिध 9प के समापन के टिदन ह�न के शिलए विबn�फल,वितल,चा�ल,चन्दन,पंचमे�ा,9ायफल,गुगुल,करायल,गुड़,सरसों ध!प,घी ष्टिमलाकर ह�न करे।रोग शान्त्रिन्त के शिलए,दू�ा",गुरूचका चार इंच का Eुकड़ा,घी ष्टिमलाकर ह�न करे।yी प्रान्त्रिप्त के शिलए विबn�फल,कमलबी9,तथा खीर का ह�न करे।ज्�रशांवित में अपामाग",मृत्युभय में 9ायफल ए�ं दही,शत्रुविन�ार* में पीला सरसों का ह�न करें।ह�न के अंत में सुखा नारिरयल गोला में घी भरकर खीर के साथ पु*ा"हुवित दें।इसके बाद तप"*,मा9"न करे।एक कांसे,पीतल की थाली में 9ल,गो दूध ष्टिमलाकर अं9ली से तप"* करे।मंत्र के दशांश ह�न,उसका दशांश तप"*,उसका दशांश मा9"न,उसका दशांश का शिश�भ4 और ब्राह्म* को भो9न कराना चाविहए।तप"*,मा9"न में म!ल मंत्र के अंत मे तप"* में "तप"यामी" तथा मा9"न मे "मा9"यामी" लगा लें।अब इसके दशांश के बराबर या १,३,५,९,११ ब्राह्म*ों और शिश� भ4ों को भो9न कर आशिश�ा"द ले।9प से प!�" क�च का पाo भी विकया 9ा सकता है,या विनत्य पाo करने से आयु �ृजिद्ध के साथ रोग से छुEकारा ष्टिमलता है। मृत्युञ्जय क�च वि�विनयोग अस्य मृत्युञ्जय क�चस्य �ामदे� ऋविषःगायत्रीछन्दः मृत्युञ्जयो दे�ता साधकाभीष्टशिसद्धय"थ 9पे वि�विनयोगः। ऋष्याटिदन्यास �ामदे� ऋषये नमःशिशरशिस,गायत्रीच्छन्दसे नमःमुखे,मृत्युञ्जय दे�तायै नमःहृदये,वि�विनयोगाय नमःस�ा¹गे। करन्यास ॐ 9!ं सःअगुष्ठाभ्यां नमः।ॐ 9!ं सः त9"नीभ्यां नमः।ॐ9!ं सः मध्याभ्यां नमः।ॐ9!ं सःअनाष्टिमकाभ्यां नमः।ॐ9!ं सःकविनष्टिष्ठकाभ्यां नमः।ॐ9!ं सःकरतलकरपृष्ठाभ्यां नमः। हृदयाटिदन्यास ॐ9!ं सः हृदयाय नमः।ॐ9!ं सःशिशरसे स्�ाहा।ॐ9!ं सःशिशखायै �षE्।ॐ9!ं सःक�चाय हुं।ॐ9!ंसःनेत्रत्रयाय �ौषE्।ॐ9!ं सःअस्त्राय फE्। ध्यान हस्ताभ्यां.....उपरो4 ध्यान ही पढ ले। शिशरो मे स�"दा पातु मृत्युञ्जय सदाशिश�ः।स त्र्यक्षरस्�रूपो मे �दनं च महेश्वरः॥ पञ्चाक्षरात्मा भग�ान् भु9ौ मे परिररक्षतु।मृत्युञ्जयस्त्रिस्त्रबी9ात्मा ह्याय! रक्षतु मे सदा॥ विबn��ृक्षसमासीनो

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दणिक्ष*ाम!र्तित�रव्ययः।सदा मे स�"दा पातु षE्पित्र�शद ्�*"रूपधृक्॥ द्वापि��शत्यक्षरो रूद्रः कुक्षौ मे परिररक्षतु।वित्र�*ा"त्मा नीलकण्oः कण्oं रक्षतु स�"दा॥ शिचन्तामणि*ब|9प!रे ह्यद्ध"नारीश्वरो हरः।सदा रक्षतु में गुह्यं स�"सम्पत्प्रदायकः॥ स त्र्यक्षर स्�रूपात्मा क! Eरूपो महेश्वरः।मात"ण्डभैर�ो विनत्यं पादौ मे परिररक्षतु॥ ॐ 9!ं सः महाबी9 स्�रूपस्त्रिस्त्रपुरान्तकः।ऊध्�"म!घ"विन चेशानो मम रक्षतु स�"दा॥ दणिक्ष*स्यां महादे�ो रके्षन्मे विगरिरनायकः।अघोराख्यो महादे�ःप!�"स्यां परिररक्षतु॥ �ामदे�ः पणिश्चमायां सदा मे परिररक्षतु।उत्तरस्यां सदा पातु सद्यो9ातस्�रूपधृक्॥

इस क�च को वि�ष्टिध वि�धान से अणिभमंवित्रत कर धार* करने का वि�शेष लाभ हैं।महामृत्युञ्जय मंत्र का बड़ा महात्मय है।शिश� के रहते कैसी शिचन्ता ये अपने भ4ों के सारे ताप शाप भस्म कर देते है।शिश� है तो हम है,यह सृष्टिष्ट है तथा 9गत का सारा वि�स्तार है,शिश� भोलेभाले है और उनकी शशि4 है भोली शिश�ा,यही लीला हैं।................."महामृत्युञ्जय शिश�".....(प्रा*ों के रक्षक) शिश� आटिद दे� है।शिश� को समझना या 9ानना सब कुछ 9ान लेना 9ैसा हैं।अपने भ4ों पर परम करू*ा 9ो रखते है,जि9नके कार* यह सृष्टिष्ट संभ� हो पायी है,�ह एकमात्र शिश� ही है।शिश� इस ब्रह्माण्ड में सबसे उदार ए�ं कnया*कारी हैं।अनेक रुपों में शिश� शिसफ" दाता हैं।सम्प!*" लोक के सभी दे�ता और देवि�याँ महा ऐश्वय"शाली हैं,परन्तु शिश� के पास सब कुछ रहते हुए भी �े �ैरागी हैं।कार* �े ही विनराकार और साकार प!*" ब्रह्म हैं।शिश� पल पल विकतने वि�ष पीते है,कहना क्या?दक्ष प्र9ापवित ने अपनी पुत्री सती का कन्यादान विकया था,शिश� दमाद थे।परन्तु एक बार विकसी सभा में सभी दे�ों की उपस्थि0ती में दक्ष के आने पर सभी दे�ता और ॠविषग* सम्मान में दक्ष को प्र*ाम करने लगे,परन्तु शिश� कुछ नही बोले।इस बात को स्�यं का अनादर समझ कर दक्ष शिश� को भ!तों का स्�ामी,�ेद से बविहष्कृत रहने �ाला कह अपमान करने लगे,परन्तु शिश� ने कुछ नहीं कहा। कुछ काल बाद दक्ष प्र9ापवित ने एक बहुत बडे़ यज्ञ का आयो9न कनखल क्षेत्र में रखा सभी दे�ी,दे�ता,ॠविष,मुविन सविहत असुर,न�ग्रह,नक्षत्र मण्डल को भी विनमंवित्रत विकया परन्तु शिश� को नही बुलाया।कार* शिश� के अपमान के शिलए ही यज्ञ रखा गया था।शिश� भ4 दष्टिधशिच शिश� के विबना यज्ञ को अमंगलकारी बताकर �हां से चले गये।अणिभमानी लोगों का यही हाल है �ो थोड़ी सी शशि4 आ 9ाने पर अपने को स�"ज्ञ समझ लेते है।रोविह*ी संग चन्द्रमा को 9ाते देख सती को 9ब इस बात का ज्ञान हुआ विक मेरे विपता के यहां यज्ञ में ये 9ा रहे है तो आश्चय" हुआ विक हमे क्यों नही बुलाया?�े शिश� 9ी के समीप 9ाकर बोली विक स्�ामी मेरे विपता ने हमें यज्ञ में नहीं बुलाया विफर भी मैं 9ाना चाहती हूँ।सती को शिश� नें समझाया विक विबन बुलाए 9ाना मृत्यु के समान हैं,परन्तु सवित द्वारा हo करने पर शिश� ने आज्ञा प्रदान की।यज्ञ में 9ब शिश� की विनन्दा सुन सती ने आत्मदाह कर शिलया तो शिश� ने अपनी 9Eा से �ीरभद्र तथा काशिलका को प्रकE कर असंख्य ग*ों के साथ दक्ष यज्ञ के वि�नाश के शिलए भे9ा।क्या परिर*ाम हुआ अंहकारी,दे�,दान� के साथ दक्ष का भी शिसर मुण्डन हो गया।विफर शिश� की दया ही थी विक ब्रह्मा 9ी के स्तुवित से प्रसन्न होकर दक्ष को पशु मुख देकर अभय दान प्रदान विकया। शिश� है तो सारी सृष्टिष्ट हैं।शिश� का एक रूप है "महामृत्युञ्जय" 9ो सभी को अमृत प्रदान करते है।आ9 प्रकृवित हमारे वि�रूद्ध हो गई है,कार* हम उस टिदव्य प्रकृवित को ही नष्ट कर रहे हैं।हम शायद ज्यादा बुजिद्धमान �ैज्ञाविनक हो गये है।इतने ही अगर हम योग्य हो गये है तो,महामारी,भ!कम्प और गंगा आटिद नदीयों की अशुद्धता,आसुरी बुजिद्ध चिच�तन को बदलने का वि�ज्ञान क्यों नहीं ढ! ढँ लेते हैं।हर युग में वि�ज्ञान रहा है।द्वापर में कृष्* के समय भी इस सृष्टिष्ट में आसुरी प्र�ृवित की कमी नहीं थी,तभी तो महाभारत 9ैसा युद्ध हुआ था।आ9 उन्हीं आसुरी 9ी�ों का ज्यादा वि�कास हो रहा समा9 में,शिश� को मनाना होगा स्तुवित से प्रसन्न करना होगा तभी संतुलन होगा।भ4ी तो आ9 बहुत से लोग कर रहे है।भग�त कृपा,टिदव्य दश"न भी ज्यादा से ज्यादा हो रहे है,परन्तु हमारी आँखे कभी प्रभु को खो9ती भी हैं क्या।शिश� तो सदा हमारे सामने ही खडे़ है क्या हम उन्हें देख पाते है,नहीं!कार* हमेशा व्यथ" की ची9ों को देख अपनी आँखो को थका लेते है,जि9स कार* से अब उ9ा" ही नहीं रही तीसरे नेत्र से देखने की हममे।शिश� व्याकुल हैं हमारे शिलए पर हमे तो भशि4 करने का भी ढंग नही है।हमे भी तो शिश� के शिलए व्याकुल होना पडे़गा।हम दुशमन है अपने परिर�ार के,अपनी संतान के अपनी नयी पीढी के जि9से अपने अंहकार �श पि��ध्�स के राह पर ले 9ा रहे है,कार* शरीर,मन,बुजिद्ध से हम रोगग्रस्त है।यहाँ बस शिश� मृत्युञ्जय की अराधना से ही हम स्�0 हो पायेंगे।इस वि�षम परिरस्थि0वितयों से बचने के शिलए शिश� कृपा ही

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एकमात्र सहारा है।मृत्यु क्या है?शिसफ" शरीर के मृत्यु की बात नहीं हैं यह,हमारे इच्छाओं की मृत्यु।हमारे 9ी�न की बहुत सी भौवितक 9रूरते,�ंश और समा9 की अ�नवित तथा कोई भी अभा� मृत्यु ही तो हैं।.......................मैं आ9 यहाँ पार्थिथ�� प!9न की वि�ष्टिध दे रहा हँू इसे कोई भी कम समय में कर शिश� की कृपा प्राप्त कर सकता है।शिश� सबके अराध्य है एक बार भी टिदल से कोई बस कहे "ॐ नमः शिश�ाय" विफर शिश� भ4 के पास क्ष* भर में चले आते है। -:पार्थिथ�� शिश� चिल�ग प!9ा वि�ष्टिध:- पार्थिथ�� शिश�चिल�ग प!9न से सभी कामनाओं की प!र्तित� होती है।इस प!9न को कोई भी स्�यं कर सकता है।ग्रह अविनष्ट प्रभा� हो या अन्य कामना की प!र्तित� सभी कुछ इस प!9न से प्राप्त हो 9ाता है।स�" प्रथम विकसी पवि�त्र 0ान पर पु�ा"णिभमुख या उतराणिभमुख ऊनी आसन पर बैoकर ग*ेश स्मर* आचमन,प्रा*ायाम पवि�वित्रकर* करके संकnप करें।दायें हाथ में 9ल,अक्षत,सुपारी,पान का पता पर एक द्रव्य के साथ विनम्न संकnप करें। -:संकnप:- "ॐ वि�ष्*ुर्ति��ष्*ुर्ति��ष्*ुः yी मद ्भग�तो महा पुरूषस्य वि�ष्*ोराज्ञया प�"तमानस्य अद्य ब्रह्म*ोऽहविन विद्ववितये पराध· yी शे्वत�ाराह कnपे �ै�स्�त मन्�न्तरे अष्टापि��शवित तमे कशिलयुगे कशिल प्रथमचर*े भारत�ष· भरतखण्डे 9म्ब!द्वीपे आया"�त·क देशान्तग"ते बौद्धा�तारे अमुक नामविन सं�त सरे अमुकमासे अमुकपके्ष अमुक वितथौ अमुक�ासरे अमुक नक्षते्र शेषेशु ग्रहेषु यथा यथा राशिश 0ानेषु स्थि0तेषु सत्सु ए�ं ग्रह गु*ग* वि�शेष* वि�शिशष्टायां अमुक गोत्रोत्पन्नोऽमुक नामाहं मम काष्टियक �ाशिचक,मानशिसक ज्ञाताज्ञात सकल दोष परिरहाथ¹ yुवित स्मृवित पुरा*ो4 फल प्राप्तयथ¹ yी मन्महा महामृत्युञ्जय शिश� प्रीत्यथ¹ सकल कामना शिसद्धयथ¹ शिश� पार्थिथ��ेश्वर शिश�शिलगं प!9नमह करिरष्ये।"

तत्पश्चात वित्रपुण्ड और रूद्राक्ष माला धार* करे और शुद्ध की हुई ष्टिमट्टी इस मंत्र से अणिभमंवित्रत करे... "ॐ ह्रीं मृवितकायै नमः।" विफर "�ं"मंत्र का उच्चार* करते हुए ष्टिमEी् में 9ल डालकर "ॐ �ामदे�ाय नमःइस मंत्र से ष्टिमलाए। १.ॐ हराय नमः, २.ॐ मृडाय नमः, ३.ॐ महेश्वराय नमः बोलते हुए शिश�चिल�ग,माता पा�"ती,ग*ेश,कार्तित�क,एकादश रूद्र का विनमा"* करे।अब पीतल,तांबा या चांदी की थाली या बेल पत्र,केला पता पर यह मंत्र बोल 0ाविपत करे, ॐ श!लपा*ये नमः। अब "ॐ"से तीन बार प्रा*ायाम कर न्यास करे। -:संणिक्षप्त न्यास वि�ष्टिध:- वि�विनयोगः- ॐ अस्य yी शिश� पञ्चाक्षर मंत्रस्य �ामदे� ऋविष अनुषु्टप छन्दःyी सदाशिश�ो दे�ता ॐ बी9ं नमःशशि4ःशिश�ाय कीलकम मम साम्ब सदाशिश� प्रीत्यथÀ न्यासे वि�विनयोगः। ऋष्याटिदन्यासः- ॐ �ामदे� ऋषये नमः शिशरशिस।ॐ अनुषु्टप् छन्दसे नमः मुखे।ॐ साम्बसदाशिश� दे�तायै नमः हृदये।ॐ ॐ बी9ाय नमः गुह्ये।ॐ नमः श4ये नमः पादयोः।ॐ शिश�ाय कीलकाय नमः नाभौ।ॐ वि�विनयोगाय नमः स�ा¹गे। शिश� पंचमुख न्यासः ॐ नं तत्पुरूषाय नमः हृदये।ॐ मम् अघोराय नमःपादयोः।ॐ चिश� सद्यो9ाताय नमः गुहे्य।ॐ �ां �ामदे�ाय नमः मस्तके।ॐ यम् ईशानाय नमःमुखे। कर न्यासः- ॐ ॐ अंगुष्ठाभ्यां नमः।ॐ नं त9"नीभ्यां नमः।ॐ मं मध्यमाभ्यां नमः।ॐ चिश� अनाष्टिमकाभ्यां नमः।ॐ �ां कविनष्टिष्टकाभ्यां नमः।ॐ यं करतलकर पृष्ठाभ्यां नमः। हृदयाटिदन्यासः- ॐ ॐ हृदयाय नमः।ॐ नं शिशरसे स्�ाहा।ॐ मं शिशखायै �षE्।ॐ चिश� क�चाय हुम।ॐ �ाँ नेत्रत्रयाय �ौषE्।ॐ यं अस्त्राय फE्। "ध्यानम्" ध्यायेविनत्यम महेशं र9तविगरिर विनभं चारू चन्द्रा�तंसं,रत्ना कnपोज्ज�लागं परशुमृग बराभीवित हस्तं प्रसन्नम। पदमासीनं समन्तात् स्तुतम मरग*ै �या"घ्र कृपित� �सानं,वि�श्वाधं वि�श्व�न्धं विनब्दिखल भय हरं पञ्च�क्तं्र वित्रनेत्रम्। -:प्रा* प्रवितष्ठा वि�ष्टिधः- वि�विनयोगः- ॐ अस्य yी प्रा* प्रवितष्ठा मन्त्रस्य ब्रह्मा वि�ष्*ु महेश्वरा ऋषयःऋञ्य9ुःसामाविनच्छन्दांशिस प्रा*ख्या दे�ता आं बी9म् ह्रीं शशि4ः कौं कीलकं दे� प्रा* प्रवितष्ठापने वि�विनयोगः। ऋष्याटिदन्यासः- ॐ ब्रह्मा वि�ष्*ु रूद्र ऋविषभ्यो नमः शिशरशिस।ॐ ऋग्य9ुः सामच्छन्दोभ्यो नमःमुखे।ॐ प्रा*ाख्य दे�तायै नमःहृदये।ॐआं बी9ाय नमःगुहे्य।ॐह्रीं श4ये नमः पादयोः।ॐ क्रौं कीलकाय नमः नाभौ।ॐ वि�विनयोगाय नमःस�ा¹गे। अब न्यास के बाद एक पुष्प या बेलपत्र से शिश�चिल�ग का स्पश" करते हुए प्रा*प्रवितष्ठा मंत्र बोलें। प्रा*प्रवितष्ठा मंत्रः- ॐ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं �ं शं षं सं हं शिश�स्य प्रा*ा इह प्रा*ाःॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं �ं शं षं सं शिश�स्य 9ी� इह स्थि0तः।ॐ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं �ं शं षं सं हं शिश�स्य स�·जिन्द्रयाणि*,�ाङ् मनस्त्�क् चकु्षः yोत्र जि9ह्वा घ्रा* पाणि*पाद पाय!प0ाविन इहागत्य सुखं शिचरं वितष्ठन्तु स्�ाहा।अब नीचे के मंत्र से आ�ाहन करें। आ�ाहन मंत्रः- ॐ भ!ः पुरूषं साम्ब सदाशिश�मा�ाहयाष्टिम,ॐ भु�ः पुरूषं साम्बसदाशिश�मा�ाहयाष्टिम,ॐ स्�ः पुरूषं साम्बसदाशिश�मा�ाहयाष्टिम।अब शिशद्ध 9ल,मधु,गो

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घृत,शक्कर,हnदीच!*",रोड़ीचंदन,9ायफल,गुलाब9ल,दही,एक,एक कर स्नान कराये",नमःशिश�ाय"मंत्र का 9प करता रहे,विफर चंदन, भस्म,अभ्रक,पुष्प,भांग,धतुर,बेलपत्र से yृंगार कर नै�ेद्य अप"* करें तथा मंत्र 9प या स्तोत्र का पाo,भ9न करें।अंत में कप!र का आरती टिदखा क्षमा प्राथ"ना का मनोकामना विन�ेदन कर अक्षत लेकर विनम्न मंत्र से वि�स9"न करे,विफर पार्थिथ�� को नदी,कुआँ,या तालाब में प्र�ाविहत करें। वि�स9"न मंत्रः- गच्छ गच्छ गुहम गच्छ स्�0ान महेश्वर प!9ा अच"ना काले पुनरगमनाय च। "गुरु मविहमा"..........(सद्गरुुओं का साष्टिन्नध्य) "yी ग*ेश":-(शिश� शशि4 के प्यारे) yी स्�ामी "महामृत्युञ्जय शिश�".....(प्रा*ों के रक्षक)........"पार्थिथ�� में बसे शिश� कnया*कारी" शिश� सनातन दे� हैं।दुविनयां में जि9तने भी धम" है �े विकसी न विकसी रूप या नाम से शिश� की ही अराधना करते है।ये कही गुरू रूप में प!ज्य है तो कही विनगु"*,विनराकार रूप में।शिश� बस एक ही हैं पर लीला �श कइ रूपों में प्रकE होकर 9गत का कnया* करते हैं।शशि4 इनकी विक्रया शशि4 है।सृष्टिष्ट में 9ब कुछ नहीं था तब सृ9न हेतु शिश� की शशि4 को साकार रूप धार* करना पड़ा और शिश� भी साकार रूप में आ पाये इसशिलए ये दोनों एक ही हैं।भेद लीला �श होता है।और इसका कार* तो ये ही 9ानते हैं क्योपिक� इनके रहस्य को कोई भी 9ान नहीं सकता और 9ो इनकी कृपा से कुछ 9ान गये उन्होनें कुछ कहा ही नहीं,सभी मौन रह गए।शिश� भोले औघड़दानी है इसशिलए दाता है सबको कुछ न कुछ देते है,देना उनको बहुत विप्रय है।ये भा� प्रधान दे� है,भशि4 से प्रसन्न हो 9ाते है,तभी तो ये महादे� कहलाते है।....................भैर� कृपा भैर� भ4 �त्सल है शीघ्र ही सहायता करते है,भर*,पोष* के साथ रक्षा भी करते है।ये शिश� के अवितविप्रय तथा माता के लाडले है,इनके आज्ञा के विबना कोई शशि4 उपासना करता है तो उसके पुण्य का हर* कर लेते है कार* टिदव्य साधना का अपना एक विनयम है 9ो गुरू परम्परा से आगे बढता है।अगर कोई उदण्डता करे तो �ो कृपा प्राप्त नहीं कर पाता है। भैर� शिसफ" शिश� माँ के आज्ञा पर चलते है �े शोधन,विन�ार*,रक्ष* कर भ4 को लाकर भग�ती के सन्मुख खड़ा कर देते है।इस 9गत में शिश� ने जि9तनी लीलाए ंकी है उस लीला के ही एक रूप है भैर�।भैर� या विकसी भी शशि4 के तीन आचार 9रूर होते है,9ैसा भ4 �ैसा ही आचार का पालन करना पड़ता है।ये भी अगर गुरू परम्परा से ष्टिमले �ही करना चाविहए।आचार में सात्�ीक ध्यान प!9न,रा9शिसक ध्यान प!9न,तथा तामशिसक ध्यान प!9न करना चाविहए।भय का विन�ार* करते है भैर�।...भैर� स्�रुप इस 9गत में सबसे ज्यादा 9ी� पर करू*ा शिश� करते है और शशि4 तो सनातनी माँ है इन दोनो में भेद नहीं है कार* दोनों माता विपता है,इस शिलए करू*ा,दया 9ो इनका स्�भा� है �ह भैर� 9ी में वि�द्यमान है।सृष्टिष्ट में आसुरी शशि4यां बहुत उपद्र� करती है,उसमें भी अगर कोई वि�शेष साधना और भशि4 माग" पर चलता हो तो ये कई एक साथ साधक को कष्ट पहुँचाते है,इसशिलए अगर भैर� कृपा हो 9ाए तो सभी आसुरी शशि4 को भैर� बाबा मार भगाते है,इसशिलये ये साक्षात रक्षक है।................."भय का विन�ार* करते है".....(भैर�) अनुभ!वितयाँ बEुक भैर� शिश�ांश है तथा शा4 उपासना में इनके विबना आगे बढना संभ� ही नहीं है।शशि4 के विकसी भी रूप की उपासना हो भैर� प!9न कर उनकी आज्ञा लेकर ही माता की उपासना होती है।भैर� रक्षक है साधक के 9ी�न में बाधाओं को दूर कर साधना माग" सरल सुलभ बनाते है।�ह समय याद है 9ब विबना भैर� साधना विकये ही कई मंत्रों पुश्चर* कर शिलया था तभी एक रात एकांत माता मंटिदर से दूर हEकर आम �ृक्ष के नीचे आसन लगाये बैoा था तभी ग9"ना के साथ 9ोर से एक चीखने की आ�ा9 सुनाई पड़ी,न9र घुमाकर देखा तो एक सुन्दर टिदव्य बालक हाथ में सोEा शिलए खड़ा था और उसके आसपास फैले हnके प्रकाश में �ह बड़ा ही सुन्दर लगा।मैं आ�ाक हो गया और सोचने लगा ये कौन है तभी �ो बोले विक "रा9 मुझे नहीं पहचाने इतने टिदनो से मैं तुम्हारी सहायता कर रहा हूँ और तुमने कभी सोचा मेरे बारे में परन्तु तुम विनत्य मेरा स्मर*,नमस्कार करते हो 9ाओ काशी शिश� 9ी का दश"न कर आओ।" मैंने प्र*ाम विकया और कहा हे बEुक भैर� आपको बार बार नमस्कार है,आप दयालु है,कृपालु है मैं सदा से आपका भ4 हूँ,मेरे भ!ल के शिलए आप मुझे क्षमा करे।मेरे ऐसा कहने से �े प्रसन्न मुद्रा में अपना टिदव्य रूप टिदखाकर �हाँ से अदृश्य हो गये।मुझे याद आया विक कटिoन साधनाओं के समय भैर�,हनुमान,ग*ेश इन तीनों ने मेरा बहुत माग"दश"न विकया था,तथा आ9 भी करते है।9ी�न में कहीं भी भEका� हो या कटिoनाई भैर� बताते है विक आगे क्या करना चाविहए,तभी 9ाकर सत्य का राह समझ में आता है।..मंत्र शशि4 प!*"तय: ध्�विन वि�ज्ञान के शिसद्धान्तों पर आधारिरत है। इनमें प्रयु4 होने �ाले णिभन्न णिभन्न श�दों का 9ो गुंथन है---�ही महत्�प!*" है, अथ" का समा�ेश गौ* है। विकतने ही बी9 मन्त्र ऎसे हैं, जि9नका खींचतान

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के ही भले ही कुछ अथ" गढ शिलया 9ाए, �स्तुत: उनका कुछ अथ" है नहीं। ह्रीं, क्लीं, yीं, ऎं, हुं, यं, फE इत्याटिद श�दों का क्या अथ" हो सकता है, इस प्रश्न पर कैसी भी माथापच्ची करना बेकार है। उनका स्ृ9न इस आधार पर विकया गया है विक उनका उच्चार* विकस स्तर का शशि4 कम्पन उत्पन करता है। और उनका 9प करने �ाले, उसके अभीष्ट प्रयो9न तथा बाह्य �ाता�र* पर क्या प्रभा� पडता है। और 9ो मानशिसक, �ाशिचक और उपांशु 9ाप की बात कही 9ाती है, उसमें भी शिसफ" ध्�विनयों के हnके भारी विकए 9ाने की प्रविक्रया ही काम में लाई 9ाती है। मैं समझता हूँ विक उपरो4 लेखों सविहत इस पोस्E को पढकर आप श�द तथा मन्त्र की सामर्थ्यय", शशि4यों ए�ं 9गत पर पडने �ाले उनके प्रभा�ों से अचे्छ से परिरशिचत हो चुके होंगें। चशिलए इस वि�षय को ओर अष्टिधक वि�स्तार न देते हुए विपछली पोस्E में आपसे कहे अनुरूप आपको आ9 एक ऎसे मन्त्र के बारे में बताना चाहूँगा----जि9सका प्रत्यक्ष प्रभा� आप स्�यं अनुभ� कर सकते हैं। पारिर�ारिरक अशान्ती, आपसी �ैचारिरक मतभेदो का हारक मन्त्र :- कभी कभी ग्रह दोष अथ�ा अन्य विकन्ही बाह्य या आन्तरिरक कार*ों के फलस्�रूप पवित-पस्त्रित्न,विपता-पुत्र,भाई-भाई अथ�ा अन्य विकन्ही सदस्यों के बीच आपसी मतभेद उत्पन होकर घर परिर�ार की शान्ती में वि�घ्न उत्पन हो 9ाता है। ओर ऎसा प्रतीत होता है विक 9ैसे सभी पारिर�ारिरक सम्बंध विबगडते 9ा रहे हैं, जि9नके कार* मन अशान्त ए�ं अधीर हो उoता है। हर समय कुछ अविनष्ट हो 9ाने का भय मन में बना रहता है। यहाँ मैं 9ो मन्त्र आपको बता रहा हूँ----ये 9ाविनए विक ऎसी विकसी भी स्थि0वित के उन्म!लन के शिलए ये मन्त्र सचमुच रामबा* औषष्टिध का काय" करता है। ऎसा नहीं विक इसके शिलए आपको कोई प!9ा अनुष्ठान करना पडेगा या अन्य विकसी प्रकार की कोई सामग्री, कोई माला इत्याटिद की 9रूरत पडेगी। न कोई पाo प!9ा, न सामग्री, न माला या अन्य कैसे भी विनयम, वि�ष्टिध-वि�धान की कोई आ�श्यकता नहीं और न ही समय का कोई विनणिश्चत बन्धन। आप अपनी सुवि�धा अनुसार 9ैसा और 9ब, जि9तनी मात्रा में चाहें उतना 9ाप कर सकते हैं। बस मन्त्र ए�ं ष्टिमलने �ाले उसके सुफल के बारे में yद्धा बनाए रब्दिखए तो समजिझए कुछ ही टिदनों में आपको इसका प्रत्यक्ष लाभ टिदखलाई पडने लगेगा। मन्त्र है :- ॐ क्लीं वि�घ्न क्लेश नाशाय हुँ फE.......................शत्रु-मोहन

“चन्द्र-शत्रु राहू पर, वि�ष्*ु का चले चक्र। भागे भयभीत शत्रु, देखे 9ब चन्द्र �क्र। दोहाई कामाक्षा दे�ी की, फ!ँ क-फ!ँ क मोहन-मन्त्र। मोह-मोह-शत्रु मोह, सत्य तन्त्र-मन्त्र-यन्त्र।। तुझे शंकर की आन, सत-गुरु का कहना मान। ॐ नमः कामाक्षाय अं कं चं Eं तं पं यं शं ह्रीं क्रीं yीं फE् स्�ाहा।।” वि�ष्टिधः- चन्द्र-ग्रह* या स!य"-ग्रह* के समय विकसी बारहों मास बहने �ाली नदी के विकनारे, कमर तक 9ल में प!�" की ओर मुख करके खड़ा हो 9ाए। 9ब तक ग्रह* लगा रहे, yी कामाक्षा दे�ी का ध्यान करते हुए उ4 मन्त्र का पाo करता रहे। ग्रह* मोक्ष होने पर सात डुबविकयाँ लगाकर स्नान करे। आo�ीं डुबकी लगाकर नदी के 9ल के भीतर की ष्टिमट्टी बाहर विनकाले। उस ष्टिमट्टी को अपने पास सुरणिक्षत रखे। 9ब विकसी शतु्र को सम्मोविहत करना हो, तब स्नानाटिद करके उ4 मन्त्र को १०८ बार पढ़कर उसी ष्टिमट्टी का चन्दन ललाE पर लगाए और शतु्र के पास 9ाए। शतु्र इस प्रकार सम्मोविहत हो 9ायेगा विक शतु्रता छोड़कर उसी टिदन से उसका सच्चा ष्टिमत्र बन 9ाएगा।..............................न9र उतारने के उपाय १॰ बच्चे ने दूध पीना या खाना छोड़ टिदया हो, तो रोEी या दूध को बच्चे पर से ‘आo’ बार उतार के कुत्ते या गाय को ब्दिखला दें। २॰ नमक, राई के दाने, पीली सरसों, ष्टिमच", पुरानी झाड! का एक Eुकड़ा लेकर ‘न9र’ लगे व्यशि4 पर से ‘आo’ बार उतार कर अब्दिग्न में 9ला दें। ‘न9र’ लगी होगी, तो ष्टिमचZ की धांस नहीँ आयेगी। ३॰ जि9स व्यशि4 पर शंका हो, उसे बुलाकर ‘न9र’ लगे व्यशि4 पर उससे हाथ विफर�ाने से लाभ होता है। ४॰ पणिश्चमी देशों में न9र लगने की आशंका के चलते ‘Eच �ुड’ कहकर लकड़ी के फन|चर को छ! लेता है। ऐसी मान्यता है विक उसे न9र नहीं लगेगी। ५॰ विगर9ाघर से पवि�त्र-9ल लाकर विपलाने का भी चलन है। ६॰ इस्लाम धम" के अनुसार ‘न9र’ �ाले पर से ‘अण्डा’ या ‘9ान�र की कले9ी’ उतार के ‘बीच चौराहे’ पर रख दें। दरगाह या कब्र से फ! ल और अगर-बत्ती की राख लाकर ‘न9र’ �ाले के शिसरहाने रख दें या ब्दिखला दें। ७॰ एक लोEे में पानी लेकर उसमें नमक, खड़ी लाल ष्टिमच" डालकर आo बार उतारे। विफर थाली में दो आकृवितयाँ- एक का9ल से, दूसरी कुमकुम से बनाए। लोEे का पानी थाली में डाल दें। एक लम्बी काली या लाल रङ्ग की विबन्दी लेकर उसे तेल में णिभगोकर ‘न9र’ �ाले पर उतार कर उसका एक कोना शिचमEे या सँडसी से

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पकड़ कर नीचे से 9ला दें। उसे थाली के बीचो-बीच ऊपर रखें। गरम-गरम काला तेल पानी �ाली थाली में विगरेगा। यटिद न9र लगी होगी तो, छन-छन आ�ा9 आएगी, अन्यथा नहीं। ८॰ एक नींब! लेकर आo बार उतार कर काE कर फें क दें। ९॰ चाक! से 9मीन पे एक आकृवित बनाए। विफर चाक! से ‘न9र’ �ाले व्यशि4 पर से एक-एक कर आo बार उतारता 9ाए और आoों बार 9मीन पर बनी आकृवित को काEता 9ाए। १०॰ गो-म!त्र पानी में ष्टिमलाकर थोड़ा-थोड़ा विपलाए और उसके आस-पास पानी में ष्टिमलाकर शिछड़क दें। यटिद स्नान करना हो तो थोड़ा स्नान के पानी में भी डाल दें। ११॰ थोड़ी सी राई, नमक, आEा या चोकर और ३, ५ या ७ लाल स!खी ष्टिमच" लेकर, जि9से ‘न9र’ लगी हो, उसके शिसर पर सात बार घुमाकर आग में डाल दें। ‘न9र’-दोष होने पर ष्टिमच" 9लने की गन्ध नहीं आती। १२॰ पुराने कपडे़ की सात शिचजिन्दयाँ लेकर, शिसर पर सात बार घुमाकर आग में 9लाने से ‘न9र’ उतर 9ाती है। १३॰ “नमो सत्य आदेश। गुरु का ओम नमो न9र, 9हाँ पर-पीर न 9ानी। बोले छल सो अमृत-बानी। कहे न9र कहाँ से आई ? यहाँ की oोर ताविह कौन बताई ? कौन 9ावित तेरी ? कहाँ oाम ? विकसकी बेEी ? कहा तेरा नाम ? कहां से उड़ी, कहां को 9ाई ? अब ही बस कर ले, तेरी माया तेरी 9ाए। सुना शिचत लाए, 9ैसी होय सुनाऊँ आय। तेशिलन-तमोशिलन, च!ड़ी-चमारी, काय0नी, खत-रानी, कुम्हारी, महतरानी, रा9ा की रानी। 9ाको दोष, ताही के शिसर पडे़। 9ाहर पीर न9र की रक्षा करे। मेरी भशि4, गुरु की शशि4। फुरो मन्त्र, ईश्वरी �ाचा।” वि�ष्टिध- मन्त्र पढ़ते हुए मोर-पंख से व्यशि4 को शिसर से पैर तक झाड़ दें। १४॰ “�न गुरु इद्यास करु। सात समुद्र सुखे 9ाती। चाक बाँध!ँ, चाकोली बाँध!ँ, दृष्ट बाँध!ँ। नाम बाँध!ँ तर बाल विबरामनाची आविनङ्गा।”

वि�ष्टिध- पहले मन्त्र को स!य"-ग्रह* या चन्द्र-ग्रह* में शिसद्ध करें। विफर प्रयोग हेतु उ4 मन्त्र के यन्त्र को पीपल के पत्ते पर विकसी कलम से शिलखें। “दे�दत्त” के 0ान पर न9र लगे हुए व्यशि4 का नाम शिलखें। यन्त्र को हाथ में लेकर उ4 मन्त्र ११ बार 9पे। अगर-बत्ती का धु�ाँ करे। यन्त्र को काले डोरे से बाँधकर रोगी को दे। रोगी मंगल�ार या शुक्र�ार को प!�ा"णिभमुख होकर ताबी9 को गले में धार* करें। १५॰ “ॐ नमो आदेश। त! ज्या ना�े, भ!त पले, पे्रत पले, खबीस पले, अरिरष्ट पले- सब पले। न पले, तर गुरु की, गोरखनाथ की, बीद याहीं चले। गुरु संगत, मेरी भगत, चले मन्त्र, ईश्वरी �ाचा।” वि�ष्टिध- उ4 मन्त्र से सात बार ‘राख’ को अणिभमन्त्रिन्त्रत कर उससे रोगी के कपाल पर टिEका लगा दें। न9र उतर 9ायेगी। १६॰ “ॐ नमो भग�ते yी पाश्व"नाथाय, ह्रीं धर*ेन्द्र-पद्मा�ती सविहताय। आत्म-चकु्ष, पे्रत-चकु्ष, विपशाच-चकु्ष-स�" नाशाय, स�"-ज्�र-नाशाय, त्रायस त्रायस, ह्रीं नाथाय स्�ाहा।” वि�ष्टिध- उ4 9ैन मन्त्र को सात बार पढ़कर व्यशि4 को 9ल विपला दें। १७॰ झाड! को च!nहे / गैस की आग में 9ला कर, च!nहे / गैस की तरफ पीo कर के, बच्चे की माता इस 9लती झाड! को 7 बार इस तरह स्पश" कराए विक आग की तपन बच्चे को न लगे। तत्पश्चात् झाड! को अपनी Eागों के बीच से विनकाल कर बगैर देखे ही, च!nहे की तरफ फें क दें। कुछ समय तक झाड! को �हीं पड़ी रहने दें। बच्चे को लगी न9र दूर हो 9ायेगी।

१८॰ नमक की डली, काला कोयला, डंडी �ाली 7 लाल ष्टिमच", राई के दाने तथा विफEकरी की डली को बच्चे या बडे़ पर से 7 बार उबार कर, आग में डालने से सबकी न9र दूर हो 9ाती है।

१९॰ विफEकरी की डली को, 7 बार बच्चे/बडे़/पशु पर से 7 बार उबार कर आग में डालने से न9र तो दूर होती ही है, न9र लगाने �ाले की धुंधली-सी शक्ल भी विफEकरी की डली पर आ 9ाती है। २०॰ तेल की बत्ती 9ला कर, बच्चे/बडे़/पशु पर से 7 बार उबार कर दोहाई बोलते हुए दी�ार पर शिचपका दें। यटिद न9र लगी होगी तो तेल की बत्ती भभक-भभक कर 9लेगी। न9र न लगी होने पर शांत हो कर 9लेगी। नोE :- न9र उतारते समय, सभी प्रयोगों में ऐसा बोलना आ�श्यक है विक “इसको बच्चे की, ब!ढे़ की, स्त्री की, पुरूष की, पशु-पक्षी की, विहन्दू या मुसलमान की, घर �ाले की या बाहर �ाले की, जि9सकी न9र लगी हो, �ह इस बत्ती, नमक, राई, कोयले आटिद सामान में आ 9ाए तथा न9र का सताया बच्चा-ब!ढ़ा oीक हो 9ाए। सामग्री आग या बत्ती 9ला दंूगी या 9ला दंूगा।´..........................................शत्रु-मोहन

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“चन्द्र-शत्रु राहू पर, वि�ष्*ु का चले चक्र। भागे भयभीत शत्रु, देखे 9ब चन्द्र �क्र। दोहाई कामाक्षा दे�ी की, फ!ँ क-फ!ँ क मोहन-मन्त्र। मोह-मोह-शत्रु मोह, सत्य तन्त्र-मन्त्र-यन्त्र।। तुझे शंकर की आन, सत-गुरु का कहना मान। ॐ नमः कामाक्षाय अं कं चं Eं तं पं यं शं ह्रीं क्रीं yीं फE् स्�ाहा।।” वि�ष्टिधः- चन्द्र-ग्रह* या स!य"-ग्रह* के समय विकसी बारहों मास बहने �ाली नदी के विकनारे, कमर तक 9ल में प!�" की ओर मुख करके खड़ा हो 9ाए। 9ब तक ग्रह* लगा रहे, yी कामाक्षा दे�ी का ध्यान करते हुए उ4 मन्त्र का पाo करता रहे। ग्रह* मोक्ष होने पर सात डुबविकयाँ लगाकर स्नान करे। आo�ीं डुबकी लगाकर नदी के 9ल के भीतर की ष्टिमट्टी बाहर विनकाले। उस ष्टिमट्टी को अपने पास सुरणिक्षत रखे। 9ब विकसी शतु्र को सम्मोविहत करना हो, तब स्नानाटिद करके उ4 मन्त्र को १०८ बार पढ़कर उसी ष्टिमट्टी का चन्दन ललाE पर लगाए और शतु्र के पास 9ाए। शतु्र इस प्रकार सम्मोविहत हो 9ायेगा विक शतु्रता छोड़कर उसी टिदन से उसका सच्चा ष्टिमत्र बन 9ाएगा।.....................................दूकान की विबक्री अष्टिधक हो- १॰ “yी शुक्ले महा-शुक्ले कमल-दल विन�ासे yी महालक्ष्मी नमो नमः। लक्ष्मी माई, सत्त की स�ाई। आओ, चेतो, करो भलाई। ना करो, तो सात समुद्रों की दुहाई। ऋजिद्ध-शिसजिद्ध खा�ोगी, तो नौ नाथ चौरासी शिसद्धों की दुहाई।” वि�ष्टिध- घर से नहा-धोकर दुकान पर 9ाकर अगर-बत्ती 9लाकर उसी से लक्ष्मी 9ी के शिचत्र की आरती करके, गद्दी पर बैoकर, १ माला उ4 मन्त्र की 9पकर दुकान का लेन-देन प्रारम्भ करें। आशातीत लाभ होगा। २॰ “भँ�र�ीर, त! चेला मेरा। खोल दुकान कहा कर मेरा। उoे 9ो डण्डी विबके 9ो माल, भँ�र�ीर सोखे नपिह� 9ाए।।” वि�ष्टिध- १॰ विकसीशुभ रवि��ार से उ4 मन्त्र की १० माला प्रवितटिदन के विनयम से दस टिदनों में १०० माला 9प कर लें। के�ल रवि��ार के ही टिदन इस मन्त्र का प्रयोग विकया 9ाता है। प्रातः स्नान करके दुकान पर 9ाए।ँ एक हाथ में थोडे़-से काले उड़द ले लें। विफर ११ बार मन्त्र पढ़कर, उन पर फ!ँ क मारकर दुकान में चारों ओर विबखेर दें। सोम�ार को प्रातः उन उड़दों को समेE कर विकसी चौराहे पर, विबना विकसी के Eोके, डाल आए।ँ इस प्रकार चार रवि��ार तक लगातार, विबना नागा विकए, यह प्रयोग करें। २॰ इसके साथ यन्त्र का भी विनमा"* विकया 9ाता है। इसे लाल स्याही अथ�ा लाल चन्दन से शिलखना है। बीच में सम्बस्त्रिन्धत व्यशि4 का नाम शिलखें। वितnली के तेल में बत्ती बनाकर दीपक 9लाए। १०८ बार मन्त्र 9पने तक यह दीपक 9लता रहे। रवि��ार के टिदन काले उड़द के दानों पर शिसन्दूर लगाकर उ4 मन्त्र से अणिभमन्त्रिन्त्रत करे। विफर उन्हें दूकान में विबखेर दें।....................................१॰ हनुमान रक्षा-शाबर मन्त्र “ॐ ग9"न्तां घोरन्तां, इतनी शिछन कहाँ लगाई ? साँझ क �ेला, लौंग-सुपारी-पान-फ! ल-इलायची-ध!प-दीप-रोEल॒ँगोE-फल-फलाहार मो पै माँगै। अञ्जनी-पुत्र प्रताप-रक्षा-कार* �ेविग चलो। लोहे की गदा कील, चं चं गEका चक कील, बा�न भैरो कील, मरी कील, मसान कील, पे्रत-ब्रह्म-राक्षस कील, दान� कील, नाग कील, साढ़ बारह ताप कील, वित9ारी कील, छल कील, शिछद कील, डाकनी कील, साकनी कील, दुष्ट कील, मुष्ट कील, तन कील, काल-भैरो कील, मन्त्र कील, कामरु देश के दोनों दर�ा9ा कील, बा�न �ीर कील, चौंसo 9ोविगनी कील, मारते क हाथ कील, देखते क नयन कील, बोलते क जि9ह्वा कील, स्�ग" कील, पाताल कील, पृर्थ्य�ी कील, तारा कील, कील बे कील, नहीं तो अञ्जनी माई की दोहाई विफरती रहे। 9ो करै �ज्र की घात, उलEे �ज्र उसी पै परै। छात फार के मरै। ॐ खं-खं-खं 9ं-9ं-9ं �ं-�ं-�ं रं-रं-रं लं-लं-लं Eं-Eं-Eं मं-मं-मं। महा रुद्राय नमः। अञ्जनी-पुत्राय नमः। हनुमताय नमः। �ायु-पुत्राय नमः। राम-दूताय नमः।”

वि�ष्टिधः- अत्यन्त लाभ-दायक अनुभ!त मन्त्र है। १००० पाo करने से शिसद्ध होता है। अष्टिधक कष्ट हो, तो हनुमान9ी का फोEो Eाँगकर, ध्यान लगाकर लाल फ! ल और गुग्ग!ल की आहुवित दें। लाल लँगोE, फल, ष्टिमoाई, ५ लौंग, ५ इलायची, १ सुपारी चढ़ा कर पाo करें।...............................“शाबर मन्त्र साधना” के तर्थ्यय १॰ इस साधना को विकसी भी 9ावित, �*", आयु का पुरुष या स्त्री कर सकती है। २॰ इन मन्त्रों की साधना में गुरु की इतनी आ�श्यकता नहीं रहती, क्योंविक इनके प्र�त"क स्�यं शिसद्ध साधक रहे हैं। इतने पर भी कोई विनष्ठा�ान् साधक गुरु बन 9ाए, तो कोई आपणित्त नहीं क्योंविक विकसी होने�ाले वि�के्षप से �ह बचा सकता है। ३॰ साधना करते समय विकसी भी रंग की धुली हुई धोती पहनी 9ा सकती है तथा विकसी भी रंग का आसन उपयोग में शिलया 9ा सकता है। ४॰ साधना में 9ब तक मन्त्र-9प चले घी या मीoे तेल का दीपक प्रज्�शिलत रखना चाविहए। एक ही दीपक के सामने कई मन्त्रों की साधना की 9ा सकती है। ५॰ अगरबत्ती या ध!प विकसी भी प्रकार की प्रयु4 हो सकती है, विकन्तु शाबर-मन्त्र-साधना में ग!गल

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तथा लोबान की अगरबत्ती या ध!प की वि�शेष महत्ता मानी गई है। ६॰ 9हाँ ‘टिदशा’ का विनद·श न हो, �हाँ प!�" या उत्तर टिदशा की ओर मुख करके साधना करनी चाविहए। मार*, उच्चाEन आटिद दणिक्ष*ाणिभमुख होकर करें। मुसलमानी मन्त्रों की साधना पणिश्चमाणिभमुख होकर करें। ७॰ 9हाँ ‘माला’ का विनद·श न हो, �हाँ कोई भी ‘माला’ प्रयोग में ला सकते हैं। ‘रुद्राक्ष की माला स�Bत्तम होती है। �ैष्*� दे�ताओं के वि�षय में ‘तुलसी’ की माला तथा मुसलमानी मन्त्रों में ‘हकीक’ की माला प्रयोग करें। माला संस्कार आ�श्यक नहीं है। एक ही माला पर कई मन्त्रों का 9प विकया 9ा सकता है। ८॰ शाबर मन्त्रों की साधना में ग्रह* काल का अत्यष्टिधक महत्त्� है। अपने सभी मन्त्रों से ग्रह* काल में कम से कम एक बार ह�न अ�श्य करना चाविहए। इससे �े 9ाग्रत रहते हैं। ९॰ ह�न के शिलये मन्त्र के अन्त में ‘स्�ाहा’ लगाने की आ�श्यकता नहीं होती। 9ैसा भी मन्त्र हो, पढ़कर अन्त में आहुवित दें। १०॰ ‘शाबर’ मन्त्रों पर प!*" yद्धा होनी आ�श्यक है। अध!रा वि�श्वास या मन्त्रों पर अyद्धा होने पर फल नहीं ष्टिमलता। ११॰ साधना काल में एक समय भो9न करें और ब्रह्मचय"-पालन करें। मन्त्र-9प करते समय स्�च्छता का ध्यान रखें। १२॰ साधना टिदन या रावित्र विकसी भी समय कर सकते हैं। १३॰ ‘मन्त्र’ का 9प 9ैसा-का-तैसा करं। उच्चार* शुद्ध रुप से होना चाविहए। १४॰ साधना-काल में ह9ामत बन�ा सकते हैं। अपने सभी काय"-व्यापार या नौकरी आटिद सम्पन्न कर सकते हैं। १५॰ मन्त्र-9प घर में एकान्त कमरे में या मजिन्दर में या नदी के तE- कहीं भी विकया 9ा सकता है। १६॰ ‘शाबर-मन्त्र’ की साधना यटिद अध!री छ! E 9ाए या साधना में कोई कमी रह 9ाए, तो विकसी प्रकार की हाविन नहीं होती। १७॰ शाबर मन्त्र के छः प्रकार बतलाये गये हैं- (क) स�ैया, (ख) अढै़या, (ग) झुमरी, (घ) यमरा9, (ड़) गरुड़ा, तथा (च) गोपाल शाबर।..................................शाबर मन्त्रों का आशयः- स्�॰ �ामन शिश�राम आप्Eे ने सन् १९४२ ई॰ में अपने ‘संस्कृत-कोष’ में ‘शाबर’ श�द की वु्यत्पणित्त इस प्रकार दी है; ‘शब (�)-र-अ*्-शाबरः, शा�रः, शाबरी।’ अथ" में ‘9ंगली 9ावित’ या ‘प�"तीय’ लोगों द्वारा बोली 9ानी�ाली ‘भाषा’ बताया गया है। �ह एक प्रकार का मन्त्र भी है, इसका �हँ कोई उnलेख नहीं है। गोस्�ामी तुलसीदास 9ी ने ‘yीरानचरिरतमानस’ (सं�त् १६३१) में शाबर मन्त्रों का महत्त्� स्�ीकार विकया है, यह भी रहस्योद्घाEन भी विकया है विक इस ‘साबर-मन्त्र-9ाल’ के स्रष्टा भी शिश�-पा�"ती ही हैं। कशिल विबलोविक 9ग-विहत हर विगरिर9ा, ‘साबर-मन्त्र-9ाल’ जि9न्ह शिसरिर9ा। अनष्टिमल आखर अरथ न 9ाप!, प्रगE प्रभा� महेश प्रताप!।। आधुविनक काल में महा-महोपाध्याय स्�॰ पस्थिण्डत गोपीनाथ कवि�रा9 9ी ने अपने प्रशिसद्ध ‘तान्त्रिन्त्रक-साविहत्य’ ग्रन्थ के पृष्ठ ६२३-२४ में ‘शाबर’- सम्बन्धी पाँच पाण्डुशिलविपयों का उnलेख विकया हैः १॰ शाबर-शिचन्तामणि* पा�"ती-पुत्र आटिदनाथ वि�रशिचत, २॰ शाबर तन्त्र गोरखनाथ वि�रशिचत, ३॰ शाबर तन्त्र स�"स्�, शाबर मन्त्र, तथा ५॰ शाबर मन्त्र शिचन्तामणि*। उ4 पाँच पाण्डुशिलविपयों में सा प्रथम पाण्डुशिलविप एशिशयाटिEक सोसाइEी बंगाल के स!चीपत्र में संख्या ६१०० से सम्बस्त्रिन्धत है। विद्वतीय पाण्डुशिलविप की चार प्रवितयों का उnलेख कवि�रा9 9ी ने विकया है। पहली उ4 सोसाइEी की स!ची-पत्र ६०९९ से सम्बस्त्रिन्धत है, दूसरी म॰म॰ हरप्रसाद शास्त्री के वि��र* की सं॰ १।३५९ है। तीसरी प्रवित डेकन काले9, प!ना स!चीपत्र ५८० है। चौथी प्रवित की तीन पाण्डुशिलविपयों का उnलेख है, 9ो संस्कृत वि�श्ववि�द्यालय, �ारा*सी के स!चीपत्र की संख्या २३८६७, २४८१५ और २४५७९ पर �र्णि*�त है। ये तीनों अप!*" है। तृतीय पाण्डुशिलविप ‘शाबर-तन्त्र-स�"स्�’ के सम्बन्ध में अपुष्ट कथन शिलखा है। चतुथ" पाण्डुशिलविप की तीन प्रवितयों का उnलेख हुआ है। पहली प्रवित एशिशयाटिEक सोसाइEी के स!चीपत्र की संख्या ६५५८ है। दूसरी प्रवित बड़ौदा पुस्तकालय के अकाराटिद स!चीपत्र की संख्या ५६१४ पर है। तीसरी प्रवित की दो पाण्डुशिलविपयां संस्कृत वि�श्ववि�द्यालय, �ारा*सी के स!चीपत्र की संख्या २३८५६ और २६२३२ से सम्बद्ध है। पञ्चम पाण्डुशिलविप एशिशयाटिEक सोसाइEी के स!चीपत्र की संख्या ६१०० पर उस्थिnलब्दिखत है। ‘उ॰प्र॰ विहन्दी सं0ान’ द्वारा प्रकाशिशत ‘विहन्दू धम" कोश’ में सम्पादक डा ॰ चन्द्रबली पाण्डेय ने ‘शाबर’ श�द को अपने ‘कोश’ में 0ान तक नहीं टिदया है-9बविक ‘शबर-शंकर-वि�लास’, ‘शबर-स्�ामी’, ‘शाबर-भाष्य’ 9ैसे श�दों को उन्होनें सस्त्रिम्मशिलत विकया है। yीतारानाथ तक" -�ाचस्पवित भट्टाचाय" द्वारा संकशिलत ए�ं चौखम्भा संस्कृत सीरी9 आविफस, �ारा*सी द्वारा प्रकाशिशत प्रख्यात ‘�ृहत् संस्कृताणिभधानम्’ (कोश) में भी ‘शबर’ या ‘शाबर’ श�द का उnलेख नहीं है। उ4 वि�श्लेष* के पश्चात भी शाबर वि�द्या स�"त्र भारत में अपना एक वि�शिशष्ट अल्किस्तत्� तथा प्रभा� रखती है। �स्तुतः देखा 9ाये तो समस्त वि�श्व में शाबर वि�द्या या समानाथ| वि�द्या प्रचलन में है। ज्ञान की संज्ञा भले ही बदल 9ाये म!ल भा�ना तथा विक्रया �ही रहती है।.......................................स�ा"रिरष्ट

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विन�ार* स्तोत्र ॐ गं ग*पतये नमः। स�"-वि�घ्न-वि�नाशनाय, स�ा"रिरष्ट विन�ार*ाय, स�"-सौख्य-प्रदाय, बालानां बुजिद्ध-प्रदाय, नाना-प्रकार-धन-�ाहन-भ!ष्टिम-प्रदाय, मनो�ांशिछत-फल-प्रदाय रक्षां कुरू कुरू स्�ाहा।। ॐ गुर�े नमः, ॐ yीकृष्*ाय नमः, ॐ बलभद्राय नमः, ॐ yीरामाय नमः, ॐ हनुमते नमः, ॐ शिश�ाय नमः, ॐ 9गन्नाथाय नमः, ॐ बदरीनाराय*ाय नमः, ॐ yी दुगा"-देव्यै नमः।। ॐ स!या"य नमः, ॐ चन्द्राय नमः, ॐ भौमाय नमः, ॐ बुधाय नमः, ॐ गुर�े नमः, ॐ भृग�े नमः, ॐ शविनश्चराय नमः, ॐ राह�े नमः, ॐ पुच्छानयकाय नमः, ॐ न�-ग्रह रक्षा कुरू कुरू नमः।। ॐ मन्ये�रं हरिरहरादय ए� दृष््ट�ा द्रषे्टषु येषु हृदय0ं त्�यं तोषमेवित वि�वि�क्षते न भ�ता भुवि� येन नान्य कणिश्वन्मनो हरवित नाथ भ�ान्तरेऽविप। ॐ नमो मणि*भदे्र। 9य-वि�9य-पराजि9ते ! भदे्र ! लभ्यं कुरू कुरू स्�ाहा।। ॐ भ!भु"�ः स्�ः तत्-सवि�तु�"रेण्यं भगB दे�स्य धीमविह ष्टिधयो यो नः प्रचोदयात्।। स�" वि�घ्नं शांन्तं कुरू कुरू स्�ाहा।। ॐ ऐं ह्रीं क्लीं yीबEुक-भैर�ाय आपदुद्धार*ाय महान्-श्याम-स्�रूपाय टिदघा"रिरष्ट-वि�नाशाय नाना प्रकार भोग प्रदाय मम (य9मानस्य �ा) स�"रिरषं्ट हन हन, पच पच, हर हर, कच कच, रा9-द्वारे 9यं कुरू कुरू, व्य�हारे लाभं �ृद्धिद्ध� �ृद्धिद्ध�, र*े शत्रुन् वि�नाशय वि�नाशय, प!*ा" आयुः कुरू कुरू, स्त्री-प्राप्तिप्त� कुरू कुरू, हुम् फE् स्�ाहा।। ॐ नमो भग�ते �ासुदे�ाय नमः। ॐ नमो भग�ते, वि�श्व-म!त"ये, नाराय*ाय, yीपुरूषोत्तमाय। रक्ष रक्ष, युग्मदष्टिधकं प्रत्यक्षं परोक्षं �ा अ9ी*¹ पच पच, वि�श्व-म!र्तित�कान् हन हन, ऐकाष्टिÖकं द्वाष्टिÖकं त्राष्टिÖकं चतुरष्टिÖकं ज्�रं नाशय नाशय, चतुरब्दिग्न �ातान् अष्टादष-क्षयान् रांगान्, अष्टादश-कुष्ठान् हन हन, स�" दोषं भं9य-भं9य, तत्-स�¹ नाशय-नाशय, शोषय-शोषय, आकष"य-आकष"य, मम शतंु्र मारय-मारय, उच्चाEय-उच्चाEय, वि�दे्वषय-वि�दे्वषय, स्तम्भय-स्तम्भय, विन�ारय-विन�ारय, वि�घ्नं हन हन, दह दह, पच पच, मथ मथ, वि�ध्�ंसय-वि�ध्�ंसय, वि�द्रा�य-वि�द्रा�य, चकं्र गृहीत्�ा शीघ्रमागच्छागच्छ, चके्र* हन हन, पा-वि�द्यां छेदय-छेदय, चौरासी-चेEकान् वि�स्फोEान् नाशय-नाशय, �ात-शुष्क-दृष्टिष्ट-सप"-चिस�ह-व्याघ्र-विद्वपद-चतुष्पद अपरे बाह्यं ताराणिभः भव्यन्तरिरकं्ष अन्यान्य-व्याविप-केशिचद ्देश-काल-0ान स�ा"न् हन हन, वि�दु्यन्मेघ-नदी-प�"त, अष्ट-व्याष्टिध, स�"-0ानाविन, रावित्र-टिदनं, चौरान् �शय-�शय, स�Bपद्र�-नाशनाय, पर-सैन्यं वि�दारय-वि�दारय, पर-चकं्र विन�ारय-विन�ारय, दह दह, रक्षां कुरू कुरू, ॐ नमो भग�ते, ॐ नमो नाराय*ाय, हुं फE् स्�ाहा।। oः oः ॐ ह्रीं ह्रीं। ॐ ह्रीं क्लीं भु�नेश्वया"ः yीं ॐ भैर�ाय नमः। हरिर ॐ उस्थिच्छष्ट-देव्यै नमः। डाविकनी-सुमुखी-देव्यै, महा-विपशाशिचनी ॐ ऐं oः oः। ॐ चविक्रण्या अहं रक्षां कुरू कुरू, स�"-व्याष्टिध-हर*ी-देव्यै नमो नमः। स�" प्रकार बाधा शमनमरिरष्ट विन�ार*ं कुरू कुरू फE्। yीं ॐ कुस्थि�9का देव्यै ह्रीं oः स्�ाहा।। शीघ्रमरिरष्ट विन�ार*ं कुरू कुरू शाम्बरी क्रीं oः स्�ाहा।। शारिरका भेदा महामाया प!*¹ आयुः कुरू। हेम�ती म!लं रक्षा कुरू। चामुण्डायै देव्यै शीघ्रं वि�ध्नं स�¹ �ायु कफ विपत्त रक्षां कुरू। मन्त्र तन्त्र यन्त्र क�च ग्रह पीडा नडतर, प!�" 9न्म दोष नडतर, यस्य 9न्म दोष नडतर, मातृदोष नडतर, विपतृ दोष नडतर, मार* मोहन उच्चाEन �शीकर* स्तम्भन उन्म!लनं भ!त पे्रत विपशाच 9ात 9ादू Eोना शमनं कुरू। सन्त्रिन्त सरस्�त्यै कस्त्रिण्oका देव्यै गल वि�स्फोEकायै वि�णिक्षप्त शमनं महान् ज्�र क्षयं कुरू स्�ाहा।। स�" सामग्री भोगं सप्त टिद�सं देविह देविह, रक्षां कुरू क्ष* क्ष* अरिरष्ट विन�ार*ं, टिद�स प्रवित टिद�स दुःख हर*ं मंगल कर*ं काय" शिसद्धिद्ध� कुरू कुरू। हरिर ॐ yीरामचन्द्राय नमः। हरिर ॐ भ!भु"�ः स्�ः चन्द्र तारा न� ग्रह शेषनाग पृर्थ्य�ी देव्यै आकाशस्य स�ा"रिरष्ट विन�ार*ं कुरू कुरू स्�ाहा।। ॐ ऐं ह्रीं yीं बEुक भैर�ाय आपदुद्धार*ाय स�" वि�घ्न विन�ार*ाय मम रक्षां कुरू कुरू स्�ाहा।। ॐ ऐं ह्रीं क्लीं yी�ासुदे�ाय नमः, बEुक भैर�ाय आपदुद्धार*ाय मम रक्षां कुरू कुरू स्�ाहा।। ॐ ऐं ह्रीं क्लीं yीवि�ष्*ु भग�ान् मम अपराध क्षमा कुरू कुरू, स�" वि�घ्नं वि�नाशय, मम कामना प!*¹ कुरू कुरू स्�ाहा।। ॐ ऐं ह्रीं क्लीं yीबEुक भैर�ाय आपदुद्धार*ाय स�" वि�घ्न विन�ार*ाय मम रक्षां कुरू कुरू स्�ाहा।। ॐ ऐं ह्रीं क्लीं yीं ॐ yीदुगा" दे�ी रूद्रा*ी सविहता, रूद्र दे�ता काल भैर� सह, बEुक भैर�ाय, हनुमान सह मकर ध्�9ाय, आपदुद्धार*ाय मम स�" दोषक्षमाय कुरू कुरू सकल वि�घ्न वि�नाशाय मम शुभ मांगशिलक काय" शिसद्धिद्ध� कुरू कुरू स्�ाहा।।

एष वि�द्या माहात्म्यं च, पुरा मया प्रो4ं ध्रु�ं। शम क्रतो तु हन्त्येतान्, स�ा"श्च बशिल दान�ाः।। य पुमान् पoते विनत्यं, एतत् स्तोत्रं विनत्यात्मना। तस्य स�ा"न् विह सन्त्रिन्त, यत्र दृष्टिष्ट गतं वि�षं।। अन्य दृष्टिष्ट वि�षं चै�, न देयं संक्रमे ध्रु�म्। संग्रामे धारयेत्यम्बे, उत्पाता च वि�संशयः।। सौभाग्यं 9ायते तस्य, परमं नात्र संशयः। द्रुतं सदं्य 9यस्तस्य, वि�घ्नस्तस्य न

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9ायते।। विकमत्र बहुनो4ेन, स�" सौभाग्य सम्पदा। लभते नात्र सन्देहो, नान्यथा �चनं भ�ेत्।। ग्रहीतो यटिद �ा यत्नं, बालानां वि�वि�धैरविप। शीतं समुष्*तां यावित, उष्*ः शीत मयो भ�ेत्।। नान्यथा yुतये वि�द्या, पoवित कशिथतं मया। भो9 पते्र शिलखेद ्यन्तं्र, गोरोचन मयेन च।। इमां वि�द्यां शिशरो बध्�ा, स�" रक्षा करोतु मे। पुरूषस्याथ�ा नारी, हस्ते बध्�ा वि�चक्ष*ः।। वि�द्र�न्त्रिन्त प्र*श्यन्त्रिन्त, धम"ल्किस्तष्ठवित विनत्यशः। स�"शतु्ररधो यान्त्रिन्त, शीघ्रं ते च पलायनम्।।

‘yीभृगु संविहता’ के स�ा"रिरष्ट विन�ार* खण्ड में इस अनुभ!त स्तोत्र के 40 पाo करने की वि�ष्टिध बताई गई है। इस पाo से सभी बाधाओं का विन�ार* होता है। विकसी भी दे�ता या दे�ी की प्रवितमा या यन्त्र के सामने बैoकर ध!प दीपाटिद से प!9न कर इस स्तोत्र का पाo करना चाविहये। वि�शेष लाभ के शिलये ‘स्�ाहा’ और ‘नमः’ का उच्चार* करते हुए ‘घृत ष्टिमणिyत गुग्गुल’ से आहुवितयाँ दे सकते हैं।.......................................ब9रङग �शीकर* मन्त्र “ॐ पीर ब9रङ्गी, राम लक्ष्म* के सङ्गी। 9हां-9हां 9ाए, फतह के डङ्के ब9ाय। ‘अमुक’ को मोह के, मेरे पास न लाए, तो अञ्जनी का प!त न कहाय। दुहाई राम-9ानकी की।” वि�ष्टिध- ११ टिदनों तक ११ माला उ4 मन्त्र का 9प कर इसे शिसद्ध कर ले। ‘राम-न�मी’ या ‘हनुमान-9यन्ती’ शुभ टिदन है। प्रयोग के समय दूध या दूध विनर्मिम�त पदाथ" पर ११ बार मन्त्र पढ़कर ब्दिखला या विपला देने से, �शीकर* होगा।..................................................आकष"* हेतु हनुमद-्मन्त्र-तन्त्र “ॐ अमुक-नाम्ना ॐ नमो �ायु-स!न�े झटिEवित आकष"य-आकष"य स्�ाहा।” वि�ष्टिध- केसर, कस्तुरी, गोरोचन, र4-चन्दन, शे्वत-चन्दन, अम्बर, कप!"र और तुलसी की 9ड़ को ष्टिघस या पीसकर स्याही बनाए। उससे द्वादश-दल-कलम 9ैसा ‘यन्त्र’ शिलखकर उसके मध्य में, 9हाँ पराग रहता है, उ4 मन्त्र को शिलखे। ‘अमुक’ के 0ान पर ‘साध्य’ का नाम शिलखे। बारह दलों में क्रमशः विनम्न मन्त्र शिलखे- १॰ हनुमते नमः, २॰ अञ्जनी-स!न�े नमः, ३॰ �ायु-पुत्राय नमः, ४॰ महा-बलाय नमः, ५॰ yीरामेष्टाय नमः, ६॰ फाnगुन-सखाय नमः, ७॰ विपङ्गाक्षाय नमः, ८॰ अष्टिमत-वि�क्रमाय नमः, ९॰ उदष्टिध-क्रम*ाय नमः, १०॰ सीता-शोक-वि�नाशकाय नमः, ११॰ लक्ष्म*-प्रा*-दाय नमः और १२॰ दश-मुख-दप"-हराय नमः। यन्त्र की प्रा*-प्रवितष्ठा करके षोडशोपचार प!9न करते हुए उ4 मन्त्र का ११००० 9प करें। ब्रह्मचय" का पालन करते हुए लाल चन्दन या तुलसी की माला से 9प करें। आकष"* हेतु अवित प्रभा�कारी है।.............................................आकष"* ए�ं �शीकर* के प्रबल स!य" मन्त्र १॰ “ॐ नमो भग�ते yीस!या"य ह्रीं सहस्त्र-विकर*ाय ऐं अतुल-बल-पराक्रमाय न�-ग्रह-दश-टिदक्-पाल-लक्ष्मी-दे�-�ाय, धम"-कम"-सविहतायै ‘अमुक’ नाथय नाथय, मोहय मोहय, आकष"य आकष"य, दासानुदासं कुरु-कुरु, �श कुरु-कुरु स्�ाहा।” वि�ष्टिध- सुय"दे� का ध्यान करते हुए उ4 मन्त्र का १०८ बार 9प प्रवितटिदन ९ टिदन तक करने से ‘आकष"*’ का काय" सफल होता है। २॰ “ऐं विपन्0ां कलीं काम-विपशाशिचनी शिशघ्रं ‘अमुक’ ग्राह्य ग्राह्य, कामेन मम रुपे* �श्वैः वि�दारय वि�दारय, द्रा�य द्रा�य, पे्रम-पाशे बन्धय बन्धय, ॐ yीं फE्।” वि�ष्टिध- उ4 मन्त्र को पहले प�", शुभ समय में २०००० 9प कर शिसद्ध कर लें। प्रयोग के समय ‘साध्य’ के नाम का स्मर* करते हुए प्रवितटिदन १०८ बार मन्त्र 9पने से ‘�शीकर*’ हो 9ाता है।........................................३॰ काष्टिमया शिसन्दूर-मोहन मन्त्र- “हथेली में हनुमन्त बसै, भैरु बसे कपार। नरचिस�ह की मोविहनी, मोहे सब संसार। मोहन रे मोहन्ता �ीर, सब �ीरन में तेरा सीर। सबकी न9र बाँध दे, तेल शिसन्दूर चढ़ाऊँ तुझे। तेल शिसन्दूर कहाँ से आया ? कैलास-प�"त से आया। कौन लाया, अञ्जनी का हनुमन्त, गौरी का गनेश लाया। काला, गोरा, तोतला-तीनों बसे कपार। विबन्दा तेल शिसन्दूर का, दुश्मन गया पाताल। दुहाई कष्टिमया शिसन्दूर की, हमें देख शीतल हो 9ाए। सत्य नाम, आदेश गुरु की। सत् गुरु, सत् कबीर। वि�ष्टिध- आसाम के ‘काम-रुप कामाख्या, के्षत्र में ‘कामीया-शिसन्दूर’ पाया 9ाता है। इसे प्राप्त कर लगातार सात रवि��ार तक उ4 मन्त्र का १०८ बार 9प करें। इससे मन्त्र शिसद्ध हो 9ाएगा। प्रयोग के समय ‘काष्टिमया शिसन्दूर’ पर ७ बार उ4 मन्त्र पढ़कर अपने माथे पर Eीका लगाए। ‘Eीका’ लगाकर 9हाँ 9ाएगेँ, सभी �शीभ!त होंगे।................................. शिसद्ध �शीकर* मन्त्र

१॰ “बारा राखौ, बरैनी, म!ँह म राखौं काशिलका। चण्डी म राखौं मोविहनी, भु9ा म राखौं 9ोहनी। आग! म राखौं शिसलेमान, पाछे म राखौं 9मादार। 9ाँघे म राखौं लोहा के झार, विपण्डरी म राखौं सोखन �ीर। उnEन काया, पुnEन �ीर, हाँक देत हनुमन्ता छुEे। रा9ा राम के परे दोहाई, हनुमान के पीड़ा चौकी। कीर करे बीE विबरा करे, मोविहनी-

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9ोविहनी सातों बविहनी। मोह देबे 9ोह देबे, चलत म परिरहारिरन मोहों। मोहों बन के हाथी, बत्तीस मजिन्दर के दरबार मोहों। हाँक परे णिभरहा मोविहनी के 9ाय, चेत सम्हार के। सत गुरु साहेब।” वि�ष्टिध- उ4 मन्त्र स्�यं शिसद्ध है तथा एक सज्जन के द्वारा अनुभ!त बतलाया गया है। विफर भी शुभ समय में १०८ बार 9पने से वि�शेष फलदायी होता है। नारिरयल, नींब!, अगर-बत्ती, शिसन्दूर और गुड़ का भोग लगाकर १०८ बार मन्त्र 9पे। मन्त्र का प्रयोग कोE"-कचहरी, मुकदमा-वि��ाद, आपसी कलह, शत्रु-�शीकर*, नौकरी-इण्Eरव्य!, उच्च अधीकारिरयों से सम्पक" करते समय करे। उ4 मन्त्र को पढ़ते हुए इस प्रकार 9ाँए विक मन्त्र की समान्त्रिप्त oीक इस्थिच्छत व्यशि4 के सामने हो।...........यटिद शरीर स्�0 है तो 9ी�न का हर सुख अच्छा लगता है और यटिद शरीर ही स्�0 नहीं हैं तो विकसी भी सुख में म9ा नहीं आता। यटिद आप भी विकसी असाध्य रोग से पीस्थिÚडत हैं तो नीचे शिलखे हनुमान मंत्र का 9प मंगल�ार को करें इससे आपका रोग दूर हो सकता है। यह हनुमान मंत्र इस प्रकार है-

मंत्र

हनुमन्नं9नी सुनो �ायुपुत्र महाबल:।

अकस्मादागतोत्पांत नाशयाशु नमोस्तुते।।

9प वि�ष्टिध

- प्रवित मंगल�ार सुबह 9nदी उoकर स�"प्रथम स्नान आटिद विनत्य कम" से विन�ृत्त होकर साफ �स्त्र पहनें।

- इसके बाद हनुमान9ी की प!9ा करें और उन्हें चिस�दूर तथा गुड़-चना चढ़ाए।ं

- इसके बाद प!�" टिदशा की ओर मुख करके कुश का आसन ग्रह* करें।

- तत्पश्चात लाल चंदन की माला से ऊपर शिलखे मंत्र का 9प करें।

- इस मंत्र का प्रभा� आपको कुछ ही समय में टिदखने लगेगा।................. स!य" को �रु* दे�ता का नेत्र भी माना 9ाता है, स!य" को कई पुत्र और पुवित्रयां हैं ! ऐसा कहा 9ाता है की वि�स्�कमा" की पुत्री संज्ञा उनकी स�Ûमु"ख पत्नी हैं !इन्हीं के गभ" से यम और यमुना का 9न्म हुआ ! इनकी दूसरी पत्नी का नाम छाया बताया 9ाता है,इनके गभ" से शविन और ताप्ती का 9न्म हुआ !

कविपरा9 सुग्री� और दान�ीर क*" इन्हीं के �ंस9 थे !

पशिछरा9 गरु* के बडे़ भाई अरु* स!य" के सात घोडे़ �ाले रथ के सारशिथ माने गए हैं ! ये सात घोडे़ स!य" की सात ज्योवितओं के रंग हैं ! बैगनी ,नीला,आसमानी,हरा,पीला,नारंगी और लाल ये सातों रंग ष्टिमलकर प्रकाश-पंु9 बनाते हैं ! इसे स!य" की धुप का रंग कहा 9ाता है !!

ओम स!या"य: नमह !! ॐ ॐ ......... अशुभ ग्रहों का उपाय विकस प्रकार से करे: 1. स!य" : बहते पानी में गुड़ बहाए।ँ स!य" को 9ल दे, विपता की से�ा करे या गेहूँ और तांबे का बत"न दान करें., 2. चंद्र : विकसी मंटिदर में कुछ टिदन कच्चा दूध और चा�ल रखें या खीर-बफÜ का दान करें, या माता की से�ा करे, या दूध या पानी से भरा बत"न रात को शिसरहाने रखें. सुबह उस दुध या पानी से विकसी कांEेदार पेड़ की 9ड़ में डाले या चन्द्र के शिलए चा�ल, दुध ए�ं चान्दी

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के �स्तुए ंदान करें. 3. मंगल : बहते पानी में वितल और गुड़ से बनी रे�ास्थिÚडयां प्र�ाविहत करे. या बरगद के �ृक्ष की 9ड़ में मीoा कच्चा दूध 43 टिदन लगातार डालें। उस दूध से णिभगी ष्टिमट्टी का वितलक लगाए।ँ या ८ मंगल�ार को बंदरो को भुना हुआ गुड और चने ब्दिखलाये , या बडे़ भाई बहन के से�ा करे, मंगल के शिलए साबुत, मस!र की दाल दान करें 4. बुध : ताँबे के पैसे में स!राख करके बहते पानी में बहाए।ँ विफEकरी से दन्त साफ करे, अपना आचर* oीक रखे ,बुध के शिलए साबुत म!ंग का दान करें., माँ दुगा" की आराधना करें . 5. बृहस्पवित : केसर का वितलक रो9ाना लगाए ँया कुछ मात्रा में केसर खाए ँऔर नाणिभ या 9ीभ पर लगाए ंया ब्ृहस्पवित के शिलए चने की दाल या विपली �स्तु दान करें. 6. शुक्र : गाय की से�ा करें और घर तथा शरीर को साफ-सुथरा रखें, या काली गाय को हरा चारा डाले .शुक्र के शिलए दही, घी, कप!र आटिद का दान करें. 7. शविन : बहते पानी में रो9ाना नारिरयल बहाए।ँ शविन के टिदन पीपल पर तेल का टिदया 9लाये ,या विकसी बत"न में तेल लेकर उसमे अपना क्षाया देखें और बत"न तेल के साथ दान करे. क्योंविक शविन दे� तेल के दान से अष्टिधक प्रसन्ना होते है, या हनुमान 9ी की प!9ा करे और ब9रंग बा* का पथ करे, शविन के शिलए काले साबुत उड़द ए�ं लोहे की �स्तु का दान करें. 8. राहु : 9ौ या म!ली या काली सरसों का दान करें या अपने शिसरहाने रख कर अगले टिदन बहते हुए पानी में बहाए , 9. केतु : ष्टिमट्टी के बने तंदूर में मीoी रोEी बनाकर 43 टिदन कुत्तों को ब्दिखलाए ँया स�ा विकलो आEे को भुनकर उसमे गुड का चुरा ष्टिमला दे और ४३ टिदन तक लगातार चींटिEयों को डाले, या कला सफे़द कम्बल कोटिढयों को दान करें या आर्थिथ�क नुकासन से बचने के शिलए रो9 कौओं को रोEी ब्दिखलाए.ं या काला वितल दान करे, अपना कम" oीक रखे तभी भाग्य आप का साथ देगा और कम" oीक हो इसके शिलए आप मजिन्दर में प्रवितटिदन दश"न के शिलए 9ाए.ं, माता-विपता और गुरु 9ानो का सम्मान करे , अपने धम¹ का पालन करे, भाई बनु्धओं से अचे्छ सम्बन्ध बनाकर रखें., विपतरो का yाद्ध करें. या प्रत्येक अमा�स को विपतरो के विनष्टिमत्त मंटिदर में दान करे, गाय और कुत्ता पालें, यटिद विकसी कार*�श कुत्ता मर 9ाए तो दोबारा कुत्ता पालें. अगर घर में ना पाल सके तो बाहर ही उसकी से�ा करे, यटिद सन्तान बाधा हो तो कुत्तों को रोEी ब्दिखलाने से घर में बड़ो के आशी�ा"द लेने से और उनकी से�ा करने से सन्तान सुख की प्रान्त्रिप्त होगी . गौ ग्रास. रो9 भो9न करते समय परोसी गयी थाली में से एक विहस्सा गाय को, एक विहस्सा कुत्ते को ए�ं एक विहस्सा कौए को ब्दिखलाए ंआप के घर में हमेसा बरक्कत रहेगी, ........... 9न्म कंुडली आप के 9ी�न में प्रकाश ला सकती है , अगर विकसी का 9न्म टिदन , 9न्म समय और 9न्म 0ान एकदम oीक है तो विकसी भी वि�द्वान से अपनी कंुडली के बारे में गड़ना 9रुर कराए ँ… 9न्म पवित्रका के अनुसार काय" करने से 9ी�न में प्रायः सफलता ष्टिमलती है…. कमB के अनुसार अचे्छ – बुरे फल ष्टिमलते है,�ैटिदक वि�ष्टिधयों द्वारा विकया गया उपाय कभी खाली नहीं 9ाता है , अचे्छ कमZ से आप अपनी विकस्मत बना भी सकते है और उसे ख़राब भी कर सकते है ..….. 9न्म पवित्रका से अनेक लाभ है … कंुडली में १२ भा� होते है प्रत्येक भा� का अपना फल है 9ैसे :- १-आपके 9ी�न में कौन कौन सी परेशाविनयां हैं, और कब आएगी…? , शरीर क्यों और कब साथ नहीं देता इसका पता होना चाविहए।…? इन्शान के अन्दर सभी गु* होते हुए भी �ो आब्दिखर लाचार क्यों रहता है ….? २- धन – सम्पवित सम्बंष्टिधत 9ानकारी …? . धन का संग्रह ना होना , ३- आपकी कुण्डली में कहीं दोष तो नहीं 9ो आपके भाई बहन के साथ सम्बन्ध खराब कर दे और साझेदारी या व्यापर करने में आप को आपर में कलह करना पडे़.,…? ४- मकान , �ाहन, 9मीन-9ायदाद लेने के बाद या अचानक काम में नुक्सान या लेने के बाद भी सुख- सुवि�धा�ो में कमी या आपके घर में क्लेश क्यों रहता है ? ५. विकस वि�षय को चुने 9ो आप को नई उचाई पर ले 9ायेगा…? साथ ही संतान के बारे में 9ाने की हमारे बचे्च दुख का कार* तो नही बन रहें हैं और आगे साथ देगे भी या नहीं …..? ६- आपके 9ी�न में कौन सा बुरा �4 कब और कैसे आएगा , कहीं आपके ष्टिमत्र ही शतु्र न बन 9ाये , या आप का अपना ही शारीर आप का साथ न छोड़ दे .. दुघ"Eना या विबमारी कैसे आ सकती है, कहीं ऐसा तो नहीं विक जि9सके शिलए आपने अपना प!रा 9ी�न अच्छा करें �ही आपको धोखा दें .?, ७- आपकी कुण्डली में शादी के बाद 9ी�न साथी का सुख है या नहीं और होगा भी तो कब होगी , पे्रम वि��ाह करने के बाद भी तलाक की मुशीबत न आये …? ८- वि�देश यात्रा … कंुडली में 9न्म 0ान से दूर 9ाने को ही वि�देशा यात्रा कहते है ,,,,? अकस्मात दुघ"Eना कही आप की 9ी�न में तो नहीं होगी….? ९- आप का भाग्य आप का साथ देगा या नहीं , कही आप अपना कीमती समय बस य!ँ ही मौ9 मस्ती में गु9ार रहे है, आपको बहुत ज्यादा सफलता क्यों नही ष्टिमलती या

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कब ष्टिमलेगी ?….? १०- व्यापर करे तो कौन सा करें , विपता से विकतना सहयोग ष्टिमलेगा , पैवित्रक सम्पवित ष्टिमलेगी या नहीं ,.. ११- 9ी�न में लाभ होगा या नहीं और होगा भी तो कब होगा और कैसे या हमारे बडे़ भाई – बहन या सगे सम्बन्धी साथ देगे या नहीं , ..? १२ भा� हमें हानी के बारे में बताता है 9ैसे विकस काय" को करे जि9ससे हमें हानी न हो या कही आपका विबज़नस पाE"नर ही आप को नुकसान न पहुंचा दे , या जि9से आप अपना समझते है �ो शिसफ" आप की दौलत से प्यार करते है ….. जि9स भा� में 9ो ग्रह अशुभ फल प्रदान करे उसका हमें उपाय करना चाविहए , ........... 9य भग�वित देवि� नमो �रदे 9य पापवि�नाशिशविन बहुफलदे। 9य शुम्भविनशुम्भकपालधरे प्र*माष्टिम तु देवि� नरार्तित�हरे॥1॥ 9य चन्द्रटिद�ाकरनेत्रधरे 9य पा�कभ!विषत�क्त्र�रे। 9य भैर�देहविनलीनपरे 9य अन्धकदैत्यवि�शोषकरे॥2॥ 9य मविहषवि�मर्दिद�विन श!लकरे 9य लोकसमस्तकपापहरे। 9य देवि� विपतामहवि�ष्*ुनते 9य भास्करशक्रशिशरो�नते॥3॥ 9य षण्मुखसायुधईशनुते 9य सागरगाष्टिमविन शमु्भनुते। 9य दु:खदरिरद्रवि�नाशकरे 9य पुत्रकलत्रवि��ृजिद्धकरे॥4॥ 9य देवि� समस्तशरीरधरे 9य नाकवि�दर्थिश�विन दु:खहरे। 9य व्याष्टिधवि�नाशिशविन मोक्ष करे 9य �ाञ्िैछतदाष्टियविन शिसजिद्ध�रे॥5॥ एतद्व्यासकृतं स्तोतं्र य: पoेष्टिन्नयत: शुशिच:। गृहे �ा शुद्धभा�ेन प्रीता भग�ती सदा॥6॥ भा�ाथ" :- हे �रदाष्टियनी देवि�! हे भग�वित! तुम्हारी 9य हो। हे पापों को नष्ट करने �ाली और अनन्त फल देने �ाली देवि�। तुम्हारी 9य हो! हे शुम्भविनशुम्भ के मुण्डों को धार* करने �ाली देवि�! तुम्हारी 9य हो। हे मुष्यों की पीडा हरने �ाली देवि�! मैं तुम्हें प्र*ाम करता हँू॥1॥ हे स!य"-चन्द्रमारूपी नेत्रों को धार* करने �ाली! तुम्हारी 9य हो। हे अब्दिग्न के समान देदीप्यामान मुख से शोणिभत होने �ाली! तुम्हारी 9य हो। हे भैर�-शरीर में लीन रहने �ाली और अन्धकासुरका शोष* करने �ाली देवि�! तुम्हारी 9य हो, 9य हो॥2॥ हे मविहषसुर का मद"न करने �ाली, श!लधारिर*ी और लोक के समस्त पापों को दूर करने �ाली भग�वित! तुम्हारी 9य हो। ब्रह्मा, वि�ष्*ु, स!य" और इन्द्र से नमस्कृत होने �ाली हे देवि�! तुम्हारी 9य हो, 9य हो॥3॥ सशस्त्र शङ्कर और कार्तित�केय9ी के द्वारा �जिन्दत होने �ाली देवि�! तुम्हारी 9य हो। शिश� के द्वारा प्रशंशिसत ए�ं सागर में ष्टिमलने �ाली गङ्गारूविपणि* देवि�! तुम्हारी 9य हो। दु:ख और दरिरद्रता का नाश तथा पुत्र-कलत्र की �ृजिद्ध करने �ाली हे देवि�! तुम्हारी 9य हो, 9य हो॥4॥ हे देवि�! तुम्हारी 9य हो। तुम समस्त शरीरों को धार* करने �ाली, स्�ग"लोक का दश"न कराने�ाली और दु:खहारिर*ी हो। हे व्यष्टिधनाशिशनी देवि�! तुम्हारी 9य हो। मोक्ष तुम्हारे करतलगत है, हे मनो�ास्थिच्छत फल देने �ाली अष्ट शिसजिद्धयों से सम्पन्न परा देवि�! तुम्हारी 9य हो॥5॥

9ो कहीं भी रहकर पवि�त्र भा� से विनयमप!�"क इस व्यासकृत स्तोत्र का पाo करता है अथ�ा शुद्ध भा� से घर पर ही पाo करता है, उसके ऊपर भग�ती सदा ही प्रसन्न रहती हैं॥6॥ ............. दस महावि�द्यायें शशि4 गं्रथों में दस महावि�द्याओं का �*"न ष्टिमलता है,लेविकन 9न yुवित के अनुसार इन वि�द्याओं का रूप अपने अपने अनुसार बताया 9ाता है,यह दस वि�द्या क्या है और विकस कार* से इन वि�द्याओं का रूप संसार में �र्णि*�त है,यह दस वि�द्यायें ही क्यों है इसके अला�ा और क्यों नही इससे कम भी होनी चाविहये थी,आटिद बातें 9नमानस के अन्दर अपना अपना रूप टिदखाकर भ्रष्टिमत करती है। .......... शविनश्चरी अमा�स्या पर शविनदे� का वि�ष्टिध�त प!9न कर पया"प्त लाभ उoा सकते हैं :- 1. स�"प्रथम विनत्यकम" से विन�ृत हो स्नानोपरांत माता-विपता के चर* स्पश" करें। 2. भो9न में उड़द दाल, गुड़ वितल के पक�ान, मीoी प!ड़ी बनाकर शविनदे� को भोग लगाकर गाय, गरीब, कुत्ते को भो9न कराने के बाद स्�यं भो9न करें तथा प्रशाद बांEे। इस टिदन केसरीया, काला �स्त्र पहनना लाभदायक � अनुक! ल रहेगा। 3. शविन अमा�स्या के टिदन संप!*" yद्धा भा� से पवि�त्र करके घोडे की नाल या ना� की पेंदी की कील का छnला मध्यमा अंगुली में धार* करें। (विकसी योग्य पंविडत 9ी से ज़रूर प!छ ले, धार* करने से पहले) 4. शविन अमा�स्या के टिदन 108 बेलपत्र की माला भग�ान शिश� के शिश�चिल�ग पर चढाए। 5. शविन�ार को साबुत उडद विकसी णिभखारी को दान करें.या पणिक्षयों को ( कौए ) खाने के शिलए डाले। 6. शविन ग्रह की �स्तुओं का दान करें, शविन ग्रह की �स्तुए ंहैं –काला उड़द,चमडे़ का 9!ता, नमक, सरसों तेल, तेल, नीलम, काले वितल, लोहे से बनी �स्तुए,ं काला कपड़ा आटिद। (योग्य पंविडत 9ी से ज़रूर प!छ ले, दान करने से पहले) 7. उडद के आEे के 108 गोली बनाकर मछशिलयों को ब्दिखलाने से लाभ होगा । 8. १६ शविन�ार स!या"स्त्र के समय एक पानी �ाला नारिरयल, ५ बादाम, कुछ दणिक्ष*ा शविन मंटिदर में चढायें

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। (योग्य पंविडत 9ी से ज़रूर प!छ ले) 9. शविन को दरिरद्र नाराय* भी कहते हैं इसशिलए दरिरद्रो की से�ा से भी शविन प्रसन्न होते हैं, असाध्य व्यशि4 को काला छाता, चमडे के 9!ते चप्पल पहनाने से शविन दे� प्रसन्न होते हैं । 10. शविन�ार को हनुमान मजिन्दर में प!9ा उपासना कर तथा प्रसाद चढायें । 11. शविन के कोप से बचने के शिलये मंगलम!र्तित� yी ग*ेश की भशि4 भी बहुत मंगलकारी है। इसशिलए शविन�ार को yी ग*ेश प!9न में 21 दू�ा" या मोदक का भोग लगाएं और काम पर 9ाते समय yी ग*ेश म!र्तित� से काय"शिसद्धी और शविन कोप � अविनष्ठ से रक्षा की कामना करें। 12. शुक्र�ार की रात स�ा-स�ा विकलो काले चने अलग-अलग तीन बत"नों में णिभगो कर रख दें। शविन�ार की सुबह नहाकर साफ �स्त्र पहनकर शविनदे� का प!9न करें और चनों को सरसौं के तेल में छौंककर इनका भोग शविनदे� को लगाए ंऔर अपनी समस्याओं के विन�ार* के शिलए प्राथ"ना करें। इसके बाद पहला स�ा विकलो चना भैंसे को ब्दिखला दें। दूसरा स�ा विकलो चना कुष्ट रोविगयों में बांE दें और तीसरा स�ा विकलो चना अपने ऊपर से ऊतारकर विकसी सुनसान 0ान पर रख आए।ं इस EोEके को करने से शविनदे� के प्रकोप में अ�श्य कमी होगी।

मेष राशिश पीपल के पेड़ के नीचे 11 उड़द की ढेरी पर 11 सरसों के तेल के दीपक रखें। �ृष राशिश मां भग�ती के मंटिदर में 11 घी के और 11 सरसों के तेल के दीपक 9लाए ं� yीचर*ों में चुन्नी भेंE करें। ष्टिमथुन राशिश मां भग�ती के yीचर*ों में 11 घी के और 11 सरसों के तेल के दीपक 9लाए।ं कक" राशिश पीपल के पेड़ के नीचे 11 सरसों के तेल के दीपक � 11 डली गुड़ रख दें। चिस�ह राशिश भग�ान शिश� के मंटिदर में 21 सरसों के तेल के दीपक 9लाए।ं कन्या राशिश हनुमान 9ी yीचर*ों में 11 सरसों के तेल के दीपक 9लाए।ं तुला राशिश स!यBदय से प!�" बरगद के पेड़ के नीचे 24 सरसों के तेल के दीपक 9लाए।ं �ृणिश्चक राशिश घर के मुख्य द्वार के बाहर 11 सरसों के तेल के दीपक 9लाए।ं धनु राशिश भग�ान शिश� के मंटिदर में 24 सरसों के तेल के दीपक 9लाए।ं मकर राशिश पीपल के पेड़ में 11 दीपक 9लाए।ं कंुभ राशिश अपनी छत के ऊपर 11 सरसों के तेल के दीपक 9लाए।ं मीन राशिश हनुमान 9ी के मंटिदर में सरसों के तेल के 24 दीपक 9लाए।ं ............ भग�ान yीकृष्* कहते हैं- ब्राह्म*क्षवित्रयवि�शां श!द्रा*ां च परन्तप।कमा"णि* प्रवि�भ4ाविन स्�भा�प्रभ�ैगु"*ैः॥(गीता १८/४१) 'ब्राह्म*, क्षवित्रय और �ैश्यों के तथा श!द्रों के कम" स्�भा� से उत्पन्न गु*ों द्वारा वि�भ4 विकए गए हैं। यह कम"भ!ष्टिम है, यहाँ विकसी का भी कम" व्यथ" नहीं 9ाता। इस धरा-धाम में सभी को अपने कमZ का फल स्�य ही भोगना पड़ता है , अचे्छ कम" इन्शान को अच्छा और बुरे कम" इन्शान को बुरा बनती है .. कम" के कारन ही कोई 9ी�ात्मा रा9ा बन 9ाती है और कम" के कारन ही कोई णिभखारी बन 9ाता है ,

गोस्�ामी तुलसीदास9ी ने रामाय* में शिलखा है विक :-“कम" प्रधान वि�स्� रशिच राखा, 9ो 9स करपिह� तो तस फल चाखा”

अथा"त ईश्वर ने संसार को कम" प्रधान बना रखा है, इसमें 9ो मनुष्य 9ैसा कम" करता है, उसको �ैसा ही फल प्राप्त होता है । इस धरती पर जि9तने भी प्रा*ी हैं, �े सब अपने-अपने संशिचत कमZ के कार* ही संसार में चक्कर लगाया करते हैं। अपने विकए कमZ के अनुसार �े णिभन्न-णिभन्न योविनयों में 9न्म लेते हैं। विकए हुए कमZ का फल भोगे विबना प्रा*ी का छुEकारा नहीं होता।अच्छा कम" करेगा, अच्छा फल ष्टिमलेगा; बुरा कम" करेगा बुरा फल ष्टिमलेगा । कम" के फल से कोई भी बच नहीं सकता । हमारा सुख-दु:ख सभी हमारे अचे्छ और बुरे कमZ का नती9ा है । हमारा अगला 9न्म कैसा और कहाँ होगा यह विपछ्ले 9न्मों के कमZ के आधार पर विनधा"रिरत होता है । कम"फल अ�श्य ही भोगना पड़ता है :-प्रत्येक मनुष्य को अपने विकए कम" का फल अ�श्य भुगतना पडता है। ईश्वर ने 9ी� को मनुष्य योविन में अचे्छ कम" करके आ�ागमन के चक्कर से छुEकारा पाने का प्रयास करने के शिलए भे9ा है। 9ी� को पशु पक्षी और अन्य योविनयों में उसके द्वारा विकए गए कमB का फल भुगतने के शिलए भे9ा 9ाता है। इसशिलए इन्हें भोग योविन कहा 9ाता है। के�ल मनुष्य योविन ही ऐसी है जि9समें 9ी� अपने विपछले कमB का फल भोगता है और अचे्छ और बुरे कम" कर अपने आगे के 9ी�न को सफल और असफल बना सकता है। �ह अचे्छ कम" करके मोक्ष के माग" पर अपने कदम बढा सकता है अथ�ा बुरे कम" करके अपने पतन का माग" अपना सकता है। इसीशिलए संत समझाते हैं विक

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अगर इस 9न्म में और अगले 9न्मों में भी सुखी होना चाहते हो तो “मनसा- �ाचा-कम"*ा “विकसी का भी बुरा ना करो । याविन मन से, कम" से और �चन से विकसी का भी बुरा न सोचो और न करो ।नाभु4ं क्षीयते कम" कnपकोटिEशतैरविप। अ�श्यमे� भो4व्यं कृतं कम" शुभाशुभम्।।(नारद पुरा*ः प!�" भागः 31.69-70)

चाहे कोई देखे या न देखे विफर भी कोई है 9ो हर समय देख रहा है, जि9सके पास हमारे पाप-पुण्य सभी देख रहा है, जि9सके पास हमारे पाप-पुण्य सभी कमZ का लेखा-9ोखा है। इस दुविनया की सरकार से शायद कोई बच भी 9ाय पर उस सरकार से आ9 तक न कोई बचा है और न बच पायेगा। विकसी प्रकार की शिसफारिरश अथ�ा रिरश्वत �हाँ काम नहीं आयेगी। उससे बचने का कोई माग" नहीं है। कम" करने में तो मान� स्�तंत्र है पिक�तु फल में भोगने में कदाविप नहीं, इसले हमेशा अशुभ कमZ का त्याग करके शुभ कम" करने चाविहए।

9ो कम" स्�यं को और दूसरा को भी सुख-शांवित दें तथा देर-स�ेर भग�ान तक पहुँचा दें, �े शुभ कम" हैं और 9ो क्ष* भर के शिलए ही (अ0ायी) सुख दे तथा भवि�ष्य में अपने को � दूसरों को भग�ान से दूर कर दें, नरकों में पहुँचा दें उन्हें अशुभ कम" कहते हैं।

विकये हुए शुभ या अशुभ कम" कई 9न्मों तक मनुष्य का पीछा नहीं छोडते। प!�"9न्मों के कमZ के 9ैसे संस्कार होते हैं, �ैसा फल भोगना पड़ता है। ............ रह भेष9 9ल प�न पE पाइ कु9ोग सु9ोग !! होहिह� कुबस्तु सुबस्तु 9ग लखहिह� सुलच्छन लोग !! ग्रह , ओषष्टिध , 9ल , �ायु और �स्त्र .. ये सब भी कुसंग और सुसंग पाकर संसार मेँ बुरे और भले पदाथ" बन 9ाते हैँ ,चतुर ए�ं वि�चारशील पुरुष ही इस बात को 9ान पाते हैँ ! महाकवि� yी गोस्�ामी तुलसीदास 9ी कहते है , इस संसार में संगवित का अत्यंत प्रभा� है , हम जि9स प्रकार की संगवित करेंगे हमारी प्रकृवित भी सदै� उसी प्रकार की होगी , भले ही कोई �स्तु विकतनी भी महत्�प!*" ए�ं उपयोगी क्यों ना हो विकन्तु यटिद उसकी संगवित या प्रभा� सम्यक रूपे* विकसी अ�ांछनीय �स्तु के साथ हो 9ाता है तब उसका 9ी�नोपयोगी स्�भाब 9ी� हंता भी हो सकता है !!

संगवित सुगवित ना पा�विह परे कुमवित के धन्ध !!राखो मेल कप!र के हींग ना होय सुगंध !! ............. उपाय

जि9स टिदन विकसी काय" वि�शेष के शिलए 9ाना हो उस टिदन 9nदी उoकर स्नान आटिद विनत्य कामों से विनपEकर सबसे पहले भग�ान yीग*ेश का प!9न करें। उन्हें ध!प-दीप, फ! ल, दू�ा" आटिद चढ़ाए।ं गुड़-धविनए का प्रसाद अर्तिप�त करें। इसके बाद ग*ेश9ी के सामने बैoकर रुद्राक्ष या पन्ना की माला से ऊँ गं ग*पतये नम: मंत्र का यथाशशि4 9प करें। 9ब घर से विनकलने �ाले हों तब yीग*ेश को चढ़ाई दू�ा" में से थोड़ी दू�ा" अपनी 9ेब में रख लें।

इस उपाय से विनणिश्चत रूप से आपका हर सोचा हुआ काम 9nदी और oीक से हो 9ाएगा ............ लाल विकताब के अनुसार क्या दान करें क्या ना करें :- अंकुर नागौरी सय" के उच्च होने पर गुड़ या गेहूं का, मंगल के उच्च होने पर मीoी �स्तुओं का, बुध उच्च �ाले व्यशि4 को कलम और घडे़ का दान, बृहस्पवित के उच्च होने पर पीली �स्त,ैु चने की दाल, सोना और पुस्तक का, शुक्र के उच्च होने पर परफ्य!म � रेडीमेड कपड़ों का, शविन के उच्च होने पर अंडा, मांस, तेल � काले उड़द का दान नहीं करना चाविहए। यटिद आपकी 9न्म पवित्रका में चंद्र चतुथ" भा� में है तो आपको कभी भी दूध, 9ल अथ�ा द�ा का म!nय नहीं लेना चाविहए। यटिद आपकी पवित्रका में गुरु सात�ें भा� में हो तो आपको कभी भी कपडे़ का दान नहीं करना चाविहए अन्यथा स्�यं �स्त्रहीन हो 9ायेंगे। अथा"त आप पर इतना अष्टिधक आर्थिथ�क संकE आ 9ायेगा विक आपके स्�यं के पहनने के शिलए कपडे़ भी नहीं बचेंगे। गुरु यटिद न�म भा� में बैoे हों तो मंटिदर आटिद में अथा"त विकसी भी प्रकार के धार्मिम�क काय" के शिलए दान नहीं करना चाविहए। यटिद आपकी 9न्मपवित्रका में शविन, आo�ें भा� में हो तो कभी भी भो9न, �स्त्र या 9!ते आटिद का दान नहीं करना चाविहए। यटिद दशम भा� में बृहस्पवित ए�ं चतुथ" में चंद्र हो तो मंटिदर बन�ाने पर व्यशि4 झ!oे मामले में 9ेल भी 9ा सकता है। यटिद

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स!य" सात�ें या आo�ें घर में वि�द्यमान हो तो 9ातक को सुबह शाम दान नहीं करना चाविहए। उसके शिलए वि�ष पान समान साविबत होगा। 9ातक का शुक्र नौ�ें खाने में हो और �ह अनाथ बच्चे को गोद ले तो स्�यं अनाथ हो 9ाता है। यटिद शविन प्रथम भा� में तथा बृहस्पवित पंचम भा� में हो तो ऐसे व्यशि4 द्वारा तांबे का दान करने पर संतान नष्ट हो 9ाती है। अष्टम भा�0 शविन होने पर मकान बन�ाना मृत्यु का कारक होगा। जि9न व्यशि4यों का दूसरा घर खाली हो तथा आo�ें घर में शविन 9ैसा क्र! र ग्रह वि�द्यमान हो, उन्हें कभी मंटिदर नहीं 9ाना चाविहए। बाहर से ही अपने इष्टदे� को नमस्कार करें। यटिद 6, 8, 12 भा� में शत्रु ग्रह हों तथा भा� 2 खाली हों तो भी मंटिदर न 9ायें। 9न्मपत्री में केतु भा� सात में हो तो लोहे का दान नहीं करना चाविहए। 9न्मपत्री के चौथे भा� में मंगल बैoा हो तो �स्त्र का दान नहीं करना चाविहए। राहु दूसरे भा� में हो तो तेल � शिचकनाई �ाली ची9ों का दान नहीं करना चाविहए। स!य"-चंद्रमा ग्यारह�ें भा� में हो तो शराब � कबाब का से�न न करें। नहीं तो आर्थिथ�क स्थि0वित खराब हो 9ायेगी। स!य"-बुध की युवित ग्यारह�ें भा� में हो तो अपने घर में कोई विकरायेदार नहीं रखना चाविहए। बुध यटिद चौथे भा� में हो तो घर में तोता नहीं पालना चाविहए। यटिद पाले तो माता को कष्ट होता है। 9न्मपवित्रका के भा� तीन में केतु हो तो 9ातक को दणिक्ष*मुखी घर में नहीं रहना चाविहए। चंद्र -केतु एक साथ विकसी भी भा� में हो तो 9ातक को विकसी के पेशाब के ऊपर पेशाब नहीं करना चाविहए। यटिद 9न्मपवित्रका के विकसी भी भा� में बुध-शुक्र की युवित हो तो गदे्द पर न सोयें। यटिद भा� पांच में गुरु बैoा हो तो धन का दान नहीं करना चाविहए। एक बार भ�न विनमा"* शुरू हो 9ाये तो उसे बीच में ना रोकें । अन्यथा अध!रे मकान में राहु का �ास हो 9ायेगा। चतुथ| (4) न�मी (9) और चतुद"शी (14) को नया काय" आरंभ न करें क्योंविक ये रिर4ा वितशिथ होती हैं। इन वितशिथयों को कोई भी काय" शिसद्ध नहीं होता। ............. "ॐ अमुक-नाम्ना ॐ नमो �ायु-स!न�े झटिEवित आकष"य-आकष"य स्�ाहा।"

वि�ष्टिध- केसर, कस्तुरी, गोरोचन, र4-चन्दन, शे्वत-चन्दन, अम्बर, कप!"र और तुलसी की 9ड़ को ष्टिघस या पीसकर स्याही बनाए। उससे द्वादश-दल-कलम 9ैसा ‘यन्त्र’ शिलखकर उसके मध्य में, 9हाँ पराग रहता है, उ4 मन्त्र को शिलखे। ‘अमुक’ के 0ान पर ‘साध्य’ का नाम शिलखे। बारह दलों में क्रमशः विनम्न मन्त्र शिलखे-

१. हनुमते नमः, २. अञ्जनी-स!न�े नमः, ३. �ायु-पुत्राय नमः, ४. महा-बलाय नमः, ५. yीरामेष्टाय नमः, ६. फाnगुन-सखाय नमः, ७. विपङ्गाक्षाय नमः, ८. अष्टिमत-वि�क्रमाय नमः, ९. उदष्टिध-क्रम*ाय नमः, १०. सीता-शोक-वि�नाशकाय नमः, ११. लक्ष्म*-प्रा*-दाय नमः और १२. दश-मुख-दप"-हराय नमः।

यन्त्र की प्रा*-प्रवितष्ठा करके षोडशोपचार प!9न करते हुए उ4 मन्त्र का ११००० 9प करें। ब्रह्मचय" का पालन करते हुए लाल चन्दन या तुलसी की माला से 9प करें। आकष"* हेतु अवित प्रभा�कारी है। ........... होरा काया"ऽकाय" वि��ेचना

रवि� की होरा - संगीत �ाद्याटिद शिशक्षा, स्�ास्थ्य, वि�चार औषधसे�न, मोअर यान, स�ारी, नौकरी, पशु खरीदी, ह�न मंत्र, उपदेश, शिशक्षा, दीक्षा, अस्त्र, शस्त्र धातु की खरीद � बेचान, �ाद-वि��ाद, न्याय वि�षयक सलाह काय", न�ीन काय" पद ग्रह* तथा राज्य प्रशासविनक काय", सेना संचालन आटिद काय" शुभ।

सोम की होरा - कृविष खेती यंत्र खरीदी, बी9 बोना, बगीचा, फल, �ृक्ष लगाना, �स्त तथा रत्न धार*, औषध क्रय-वि�क्रय, भ्रम*-यात्रा, कला-काय", न�ीन काय", अलंकार धार*, पशुपालन, स्त्रीभ!ष* क्रय-वि�क्रय करने हेतु शुभ।

मंगल की होरा - भेद लेना, ऋ* देना, ग�ाही, चोरी, सेना-संग्राम, युद्ध नीवित-रीवित, �ाद-वि��ाद विन*"य, साहस कृत्य आटिद काय" शुभ, पर मंगल का ऋ* लेना अशुभ है।

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बुध की होरा -ऋ* लेना अविहतकर तथा शिशक्षा-दीक्षा वि�ष्ज्ञयक काय", वि�द्यारंभ, अध्ययन चातुय" काय", से�ा�ृणित्त, बही-खाता, विहसाब वि�चार, शिशnप काय्र विनमा"* काय", नोटिEस देना, गृह -प्र�ेश, रा9नीवित वि�चार, शालागमन शुभ है।

गुरू की होरा- ज्ञान-वि�ज्ञान की शिशक्षा, धम"-न्याय वि�षयक काय", अनुष्ठान, साइंस, कान!नी � कला संकाय शिशक्षा आरंभ, शांवित पाo, मांगशिलक काय", न�ीन पद ग्रह*, �स्त आभ!ष* धार*, यात्रा, अंक, अेक्Eर, इं9न, मोEर, यान, औषध से�न � विनमा"* शुीा साथ ही शपथ ग्रह* शुभद।

शुक्र की होरा - गुप्त वि�चार गोष्ठी, पे्रम-व्य�हार, ष्टिमत्रता, �स्त्र, मणि*रत्न धार* तथा विनमा"*, अंक, इत्र, नाEक, छाया-शिचत्र, संगीत आटिद काय" शुभ, भंडार भरना, खेती करना, हल प्र�ाह, धन्यरोप*, आयु, oान, शिशक्षा शुभ।

शविन की होरा - गृह प्र�ेश � विनमा"*, नौकर चाकर रखना, धातुलोह, मशीनरी, कलपु9Z के काय", ग�ाही, व्यापार वि�चार, �ाद-वि��ाद, �ाहन खरीदना, से�ा वि�षयक काय" करना शुभ। परन्तु बी9 बोना, कृविष खेती काय" शुभ नहीं। ................ दत्ताते्रय भग�ान् दत्ताते्रय भी yीवि�द्या के एक yेष्ठ उपासक थे । दु�ा"सा के समान ये भी आ स!या गभ" से समुद्भतू थे । प्रशिसद्ध के अनुसार इन्होंने शिशष्यों के विहतसाधन के शिलए yीवि�द्या के उपासनाथ" yीदत्त -संविहता नामक एक वि�शाल ग्रन्थ की रचना की थी । बाद में परशुराम ने उसका अध्ययन करके पचास खण्डों में एक स!त्र ग्रन्थ की रचना की थी । कहा 9ात है विक इनके बाद शिशष्य सुमेधा ने दत्त -संविहता और ‘परशुराम कnप स!त्र ’ का सारांश लेकर ‘वित्रपुर -रहस्य ’ की रचना की । प्रशिसजिद्ध यह भी है विक दत्ताते्रय ‘महावि�द्या महाकाशिलका ’ के भी उपासक थे । ............ yी हनुमान 9ी के बारह नाम ... १.हनुमान २.अं9नी सुन! ३.महाबल ४.�ायु पुत्रा ५.समेष्ट ६.फाnगुन सख ७.पिप�गाक्ष ८.आष्टिमत वि�क्रम ९.दघीक्रम* १०.सीता शोक वि�नासन ११.लक्ष्म* प्रा* दाता १२.दस ग्री� दप"हा नाम की मविहमा--- प्रातः काल सो कर उoते ही जि9स भी अ�0ा में हो इन बारह नामों को ११ बार लेने �ाला व्यशि4 दीघा"यु होता है|विनत्य विनयम के समय नाम लेने से ईष्ट की प्रान्त्रिप्त होती है|दोपहर में नाम लेने �ाला व्यशि4 लक्ष्मी�ान होEा है|संध्या के समय नाम लेने �ाला व्यशि4 पारिर�ारिरक सुखों से तृप्त होता है|रावित्र को सोते समय नाम लेने �ाले व्यशि4 की शत्रु पर 9ीत होती है|उपरो4 समय के अवितरिर4 इस बारह नामों का विनरंतर 9प करने �ाले व्यशि4 की yी हनुमान 9ी महारा9 दसों टिदशाओं से ए�ं आकाश-पाताल से रक्षा करते हैं|यात्रा के समय ए�ं न्यायालय में पडे़ वि��ाद के शिलए यह बारह नाम अपना चमत्कार टिदखायेंगे|लाल स्याही से मंगल�ार को भो9पत्र पर ये बारह नाम शिलखकर मंगल�ार के ही टिदन ताबी9 बाँधने से कभी शिसर दद" नहीं होगा|गले या बा9! में तांबे का ताबी9 ज्यादा उत्तम है|भो9पत्र पर शिलखने के काम आने �ाला पैन या साइन पैन नया होना चाविहए| ............ अप्सराये अत्यंत संुदर और 9�ान होती हैं. उनको संुदरता और शशि4 वि�रासत में ष्टिमली है. �ह गुलाब का इत्र और चमेली आटिद की गंध पसंद करती हैं। तुमको उसके शरीर से बहुत प्रकार की खुशब! आती महस!स कर सकते हैं. यह गन्ध विकसी भी पुरुष को आकर्तिष�त कर सकती हैं। �ह चुस्त कपडे़ पहनना के साथ साथ अष्टिधक गहने पहना पसंद करती है. इनके खुले-लंबे बाल होते है। �ह हमेशा एक 16-17 साल की लड़की की तरह टिदखती है। दरअसल, �ह बहुत ही सीधी होती है। �ह हमेशा उसके साधक को समर्तिप�त रहती है। �ह साधक को कभी धोखा नहीं देती हैं। इस साधना के दौरान अनुभ� हो सकता है, विक �ह साधना प!री होने से पहले टिदखाई दे। अगर ऐसा होता है, तो अनदेखा कर दें। आपको अपने मंत्र 9ाप प!रा करना चाविहए 9ैसा विक आप इसे विनयष्टिमत रूप से करते थे। कोई 9nदबा9ी ना करे जि9तने टिदन की साधना बताई हैं उतने टिदन पुरी करनी चाविहए। काम भा� पर विनयंत्र* रखे। �ासना का साधना मे कोई 0ान नहीं होता हैं। अप्सरा परीक्ष* भी ले सकती हैं। 9ब सुंदर अप्सरा आती है तो साधक सोचता है, विक मेरी साधना प!*" हो गया है। लेविकन 9ब तक �ो वि��श ना हो 9ाये तब तक साधना 9ारी रखनी चाविहए। केई साधक इस मोड़ पर, अप्सरा के साथ यौन कnपना लग 9ाते है। यौन भा�नाओं से बचें, यह साधना ख़राब करती हैं। 9ब संकnप के अनुसार मंत्र 9ाप समाप्त हो और �ो आपसे अनुरोध करें तो आप उसे गुलाब के फ! ल और कुछ इत्र दे। उसे दूध का बनी ष्टिमoाई पान आटिद भेंE दे। उससे �चन ले ले की �ह 9ी�न-भर

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आपके �श में रहेगी। �ो कभी आपको छोड़ कर नहीं 9ाएगी और आपक कहा मानेगी। 9ब तक कोई �चन न दे तब तक उस पर वि�श्वास नही विकया 9ा सकता क्योंविक �चन देने से पहले तक �ो स्�यं ही चाहती हैं विक साधक की साधना भंग हो 9ाये। विकसी भी साधना मैं सबसे महत्�पु*" भाग उसके विनयम हैं. सामान्यता सभी साधना में एक 9ैसे विनयम होते हैं. परतंु मैं यहाँ पर वि�शेष तौर पर यणिक्ष*ी और अप्सरा साधना में प्रयोग होने �ाले विनयम का उnलेख कर रहा हूँ । अप्सरा या यणिक्ष*ी साधना में ऊपर 9ो अण्डरलाइन और हरे रंग से शिलखे गये विनयम ही प्रयोग में आने �ाले विनयम हैं । 1. ब्रह्मचये : सभी साधना मैं ब्रह्मचरी रहना परम 9रुरी होता हैं. सेक्स के बारे में सोचना, करना, विकसी स्त्री के बारे में वि�चारना, सम्भोग, मन की अपवि�त्रा, गन्दे शिचत्र देखना आटिद सब मना हैं, अगर कुछ वि�चारना हैं तो के�ल अपने ईष्ट को, आप सदै� यह सोचे विक �ो सुन्दर सी अलंकार यु4 अप्सरा या दे�ी आपके पास ही मौ9ुद हैं और आपको देख रही हैं. और उसके शरीर में से ग़ुलाब 9ैसी या अष्टगन्ध की खुशब! आ रही हैं । साकार रुप मैं उसकी कnपना करते रहो . 2. भ!ष्टिम शयन : के�ल 9मीन पर ही अपने सभी काम करें. 9मीन पर एक �स्त्र विबछा सकते हैं और विबछना भी चाविहए 3. भो9न : मांस, शराब, अन्डा, नशे, तम्बाक! , लहसुन, प्या9 आटिद सभी का प्रयोग मना हैं. के�ल सान्त्रित्�क भो9न ही करें. 4. �स्त्र : �स्त्रो में उन्ही रंग का चुना� करें 9ो दे�ता पसन्द करता हो. ( आसन, पहनने और दे�ता को देने के शिलये) (सफेद या पीला अप्सरा के शिलये ) 5. क्या करना हैं :- विनत्य स्नान, विनत्य गुरु से�ा , मौन, विनत्य दान, 9प में ध्यान- वि�श्वास , रो9 पु9ा करना आटिद अविन�ाय" हैं. और 9प से कम से कम दो- तीन घंEे पहले भो9न करना चाविहए 6. क्या ना करें :- 9प का समय ना बदले्, क्रोध मत करो , अपना आसन विकसी को प्रयोग मत करने दो, खाना खाते समय और सोकर 9ागते समय 9प ना करें. बासी खाना ना खाये, चमडे का प्रयोग ना करना, साधना के अनुभ� साधना के दोरान विकसी को मत बताना (गुरु को छोडकर) 7. मंत्र 9प के समय कृपा करके नींद,् आलस्य, उबासी, छींक, थ!कना, डरना, चिल�ग को हाथ लगाना , बक्�ास, सेल फोन को पास रखना, 9प को पहले टिदन विनधारिरत संख्या से कम-ज्यादा 9पना , गा-गा कर 9पना, धीमे- धीमे 9पना, बहुत् ते9-ते9 9पना, शिसर विहलाते रहना, स्�यं विहलते रहना, मंत्र को भुल 9ाना ( पहले से याद नहीं विकया तो भुल 9ाना ), हाथ-पैंर फैलाकर 9प करना, विपछ्ले टिदन के गन्दे �स्त्र पहनकर मंत्र 9प करना, यह सब काय" मना हैं (हर मंत्र की एक मुल ध्�विन होती हैं अगर मुल ध्�विन- लय में मंत्र 9पा तो मज़ा ही 9ायेगा, मंत्र शिसजिद्ध बहुत 9nद प्राप्त हो सकती हैं 9ो के�ल गुरु से शिसखी 9ा सकती हैं ) 8. याटिद आपको शिसजिद्ध करनी हैं तो yी शिश� शंकर भग�ान के कथन को कभी ना भुलना विक " जि9स साधक की जि9व्हा परान्न (दुसरे का भो9न) से 9ल गयी हो, जि9सका मन में परस्त्री (अपनी पस्त्रित्न के अला�ा कोई भी) हो और जि9से विकसी से प्रवितशोध लेना हो उसे भला केसै शिसजिद्ध प्राप्त हो सकती हैं " 9. और एक सबसे महत्�पु*" विक आप जि9स अप्सरा की साधना उसके बारे में यह ना सोचे विक �ो आयेगी और आपसे सेक्स करेंगी क्योंविक �ासना का विकसी भी साधना में कोई 0ान नहीं हैं । बाद विक बातें बाद पर छोड दे । क्योंविक सेक्स में उ9ा" नीचे (मुलाधार) की ओर चलती हैं 9बविक साधना में उ9ा" ऊपर (सहस्त्रार) की ओर चलती हैं 10. विकसी भी स्त्री �ग" से के�ल माँ, बहन, पे्रष्टिमका और पत्नी का सम्बन्ध हो सकता हैं । यही सम्बन्ध साधक का अप्सरा या दे�ी से होता हैं । 11.यह सब �ाक शिसद्ध होती हैं । विकसी के नशिसब में अगर कोई चीज़ ना हो तब भी देने का समथ" रखती हैं । इनसे सदै� आदर से बात करनी चाविहए। ............ 9ी�न से हर समस्या का समाधान शास्त्रों में बताया गया है। एक उपाय तो ये है विक हम अपनी मेहनत से और स्�यं की समझदारी इन समस्याओं को दूर करने का प्रयास करें और दूसरा उपाय है धार्मिम�क काय" करें। हमें प्राप्त होने �ाले सुख-दुख हमारे कमZ का प्रवितफल ही है। पुण्य कम" विकए 9ाए तो दुख का समय 9nदी विनकल 9ाता है। शास्त्रों के अनुसार गाय, पक्षी, कुत्ता, चींटिEयां और मछली से हमारे 9ी�न की सभी समस्याए ंदूर हो सकती हैं। 1.यटिद कोई व्यशि4 विनयष्टिमत रूप से गाय को रोEी ब्दिखलाए ंतो उसके ज्योवितषीय ग्रह दोष नष्ट हो 9ाते हैं। गाय को प!ज्य और पवि�त्र माना 9ाता है, इसी �9ह से इसकी से�ा करने �ाले व्यशि4 को सभी सुख प्राप्त हो 9ाते हैं। 2. इसी प्रकार पणिक्षयों को दाना डालने पर आर्थिथ�क मामलों में लाभ प्राप्त होता है। व्य�साय करने �ाले लोगों को वि�शेष रूप से प्रवितटिदन पणिक्षयों को दाना अ�श्य डालना चाविहए। 3. यटिद कोई व्यशि4 दुश्मनों से परेशान हैं और उनका भय हमेशा ही सताता रहता है तो कुते्त को रोEी ब्दिखलाना चाविहए। विनयष्टिमत रूप से 9ो कुत्ते को रोEी ब्दिखलाते हैं उन्हें दुश्मनों का

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भय नहीं सताता है। 4.क9" से परेशान से लोग चींटिEयों को शक्कर और आEे डालें। ऐसा करने पर क9" की समान्त्रिप्त 9nदी हो 9ाती है। 5. जि9न लोगों की पुरानी संपणित्त उनके हाथ से विनकल गई है या कई म!nय�ान �स्तु खो गई है तो ऐसे लोग यटिद प्रवितटिदन मछली को आEे की गोशिलयां ब्दिखलाते हैं तो उन्हें लाभ प्राप्त होता है। मछशिलयों को आEे की गोशिलयां देने पर पुरानी संपणित्त पुन: प्राप्त होने के योग बनते हैं। इन पांचों को 9ो भी व्यशि4 खाना ब्दिखलाते हैं उनके सभी दुख-दद" दूर हो 9ाते हैं और अक्षय पुण्य की प्रान्त्रिप्त होती है। .............. अनुभुत ज्�रहर बशिलदानव्रत - शिचरकालीन ज्�रकी शान्त्रिन्तके शिलये मेने ये व्रत और उपाय विकया और पु*"तः लाभ हुआ ।लगातार बुखार विफर oीक विफर बुखार ,समझ ना पङते देख ये व्रत और ऊपाय करे ,द�ाई भी लेते रहे । क्रष्* अष्टमीके अपराह्णमें चा�लोंके च!*"से मनुष्यकीआकृवितका पुतला बनाकर उसके हलदीका लेप करे । मुख, हदय, कण्o और नाणिभमें पीली कौड़ी लगा�े, विफर खसके आसनपर वि�रा9मान करके उसके चारों को*ोंमें पीले रंगकी चार पताका लगा�े तथा उनके पास हलदीके रससे भरे हुए पीपलकेपत्तोंके पत्तोके चार दोने रखे और ' मम शिचरकालीनज्�र9विन तपापतापाटिदशप्रशमनाथ¹ ज्�रहबशिलदानं करिरष्ये । ' यह संकnप करके पुतलेका प!9न करे । सायंकाल होनेपर ज्�र�ाले मनुष्यकी ' ॐ नमो भग�ते गरुडासनाय त्र्यम्बकाय स्�ल्किस्तरस्तु स्�ल्किस्तरस्तु स्�ाहा । ॐ कं oं यं सं �ैनतेयाय नमः । ॐ ह्लीं क्षः के्षत्रपालाय नमः । ॐ oः oः भो भो ज्�र yृ*ु yृ*ु हल हल ग9" ग9" नैष्टिमणित्तकं मौहूर्णित्त�कं एकाविहकं द्वयाविहकं त्र्याविहकं चातुर्थिथ�कं पाणिक्षकाटिदकं चफE् हल हल मुञ्च मुञ्च भ!म्यां गच्छ गच्छ स्�ाहा ।' इस मन्त्नसे तीन या सात आरती उतारकर प!�B4 पुतलेको प!9ा - सामग्रीसविहत विकसी �ृक्षके म!ल, चौराहे या श्मशानमें रख आ�े । इस प्रकार तीन टिदन करे और तीनों ही टिदनोंमें न4व्रत ( रावित्रमें एक बार भो9न ) करे । स्मर* रहे विक पुत्तलप!9न बीमारके दणिक्ष* भागके 0ानमें करना चाविहये । इससे ज्�र9ातव्याष्टिधयाँ शीघ्र ही शान्त होती हैं ............... काल भैर� का नाम सुनते ही एक अ9ीब-सी भय ष्टिमणिyत अनुभ!वित होती है। एक हाथ में ब्रह्मा9ी का कEा हुआ शिसर और अन्य तीनों हाथों में खप्पर, वित्रश!ल और डमरू शिलए भग�ान शिश� के इस रुद्र रूप से लोगों को डर भी लगता है, लेविकन ये बडे़ ही दयालु-कृपालु और 9न का कnया* करने �ाले हैं।

भैर� श�द का अथ" ही होता है भर*-पोष* करने �ाला, 9ो भर* श�द से बना है। काल भैर� की चचा" रुद्रयामल तंत्र और 9ैन आगमों में भी वि�स्तारप!�"क की गई है। शास्त्रों के अनुसार कशिलयुग में काल भैर� की उपासना शीघ्र फल देने �ाली होती है। उनके दश"न मात्र से शविन और राहु 9ैसे क्र! र ग्रहों का भी कुप्रभा� समाप्त हो 9ाता है। काल भैर� की साल्कित्त्�क, रा9शिसक और तामसी तीनों वि�ष्टिधयों में उपासना की 9ाती है।

इनकी प!9ा में उड़द और उड़द से बनी �स्तुए ं9ैसे इमरती, दही बडे़ आटिद शाष्टिमल होते हैं। चमेली के फ! ल इन्हें वि�शेष विप्रय हैं। पहले भैर� को बकरे की बशिल देने की प्रथा थी, जि9स कार* मांस चढ़ाने की प्रथा चली आ रही थी, लेविकन अब परिर�त"न आ चुका है। अब बशिल की प्रथा बंद हो गई है।

शराब इस शिलए चढ़ाई 9ाती है क्योंविक मान्यता है विक भैर� को शराब चढ़ाकर बड़ी आसानी से मन मांगी मुराद हाशिसल की 9ा सकती है। कुछ लोग मानते हैं विक शराब ग्रह* कर भैर� अपने उपासक पर कुछ उसी अंदा9 में मेहरबान हो 9ाते हैं जि9स तरह आम आदमी को शराब विपलाकर अपेक्षाकृत अष्टिधक लाभ उoाया 9ा सकता है। यह छोEी सोच है।

आ9कल धन की चाह में स्�*ा"कष"* भैर� की भी साधना की 9ा रही है। स्�*ा"कष"* भैर� काल भैर� का साल्कित्त्�क रूप हैं, जि9नकी प!9ा धन प्रान्त्रिप्त के शिलए की 9ाती है। यह हमेशा पाताल में रहते हैं, 9ैसे सोना धरती के गभ" में होता है। इनका प्रसाद दूध और मे�ा है। यहां मटिदरा-मांस सख्त �र्जि9�त है। भैर� रावित्र के दे�ता माने 9ाते हैं। इस कार* इनकी साधना का समय मध्य रावित्र यानी रात के 12 से 3 ब9े के बीच का है। इनकी उपस्थि0वित का

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अनुभ� गंध के माध्यम से होता है। शायद यही �9ह है विक कुत्ता इनकी स�ारी है। कुते्त की गंध लेने की क्षमता 9ग9ाविहर है।

दे�ी महाकाली, काल भैर� और शविन दे� ऐसे दे�ता हैं जि9नकी उपासना के शिलए बहुत कडे़ परिरyम, त्याग और ध्यान की आ�श्यकता होती है। तीनों ही दे� बहुत कड़क, क्रोधी और कड़ा दंड देने �ाले माने 9ाते है। धम" की रक्षा के शिलए दे�ग*ों की अपनी-अपनी वि�शेषताए ंहै। विकसी भी अपराधी अथ�ा पापी को दंड देने के शिलए कुछ कडे़ विनयमों का पालन 9रूरी होता ही है। लेविकन ये तीनों दे�ग* अपने उपासकों, साधकों की मनाकामनाए ंभी प!री करते हैं। काय"शिसजिद्ध और कम"शिसजिद्ध का आशी�ा"द अपने साधकों को सदा देते रहते हैं।

भग�ान भैर� की उपासना बहुत 9nदी फल देती है। इस कार* आ9कल उनकी उपासना काफी लोकविप्रय हो रही है। इसका एक प्रमुख कार* यह भी है विक भैर� की उपासना क्र! र ग्रहों के प्रभा� को समाप्त करती है। शविन की प!9ा बढ़ी है। अगर आप शविन या राहु के प्रभा� में हैं तो शविन मंटिदरों में शविन की प!9ा में विहदायत दी 9ाती है विक शविन�ार और रवि��ार को काल भैर� के मंटिदर में 9ाकर उनका दश"न करें। मान्यता है विक 40 टिदनों तक लगातार काल भैर� का दश"न करने से मनोकामना प!री होती है। इसे चालीसा कहते हैं। चन्द्रमास के 28 टिदनों और 12 राशिशयां 9ोड़कर ये 40 बने हैं।

प!9ा में शराब, मांस oीक नहीं हमारे यहां तीन तरह से भैर� की उपासना की प्रथा रही है। रा9शिसक, साल्कित्त्�क और तामशिसक। हमारे देश में �ामपंथी तामशिसक उपासना का प्रचलन हुआ, तब मांस और शराब का प्रयोग कुछ उपासक करने लगे। ऐसे उपासक वि�शेष रूप से श्मशान घाE में 9ाकर मांस और शराब से भैर� को खुश कर लाभ उoाने लगे।

लेविकन भैर� बाबा की उपासना में शराब, मांस की भेंE 9ैसा कोई वि�धान नहीं है। शराब, मांस आटिद का प्रयोग राक्षस या असुर विकया करते थे। विकसी दे�ी-दे�ता के नाम के साथ ऐसी ची9ों को 9ोड़ना उशिचत नहीं है। कुछ लोगों के कार* ही आम आदमी के मन में यह भा�ना 9ाग उoी विक काल भैर� बडे़ क्र! र, मांसाहारी और शराब पीने �ाले दे�ता हैं। विकसी भी दे�ता के साथ ऐसी बातें 9ोड़ना पाप ही कहलाएगा।

गृह0 के शिलए इन दोनों ची9ों का प!9ा में प्रयोग �र्जि9�त है। गृह0ों के शिलए काल भैर�ाष्टक स्तोत्र का विनयष्टिमत पाo स�Bत्तम है, 9ो अनेक बाधाओं से मुशि4 टिदलाता है। काल भैर� तंत्र के अष्टिधष्ठाता माने 9ाते हैं। ऐसी मान्यता है विक तंत्र उनके मुख से प्रकE होकर उनके चर*ों में समा 9ाता है। लेविकन, भैर� की तांवित्रक साधना गुरुगम्य है। योग्य गुरु के माग"दश"न में ही यह साधना की 9ानी चाविहए।

काल भैर� की उत्पणित्त और काशी से संबंध

कथा-एक पहली कथा है विक ब्रह्मा 9ी ने प!री सृष्टिष्ट की रचना की। ऐसा मानते हैं विक उस समय प्रा*ी की मृत्यु नहीं होती थी। पृर्थ्य�ी के ऊपर लगातार भार बढ़ने लगा। पृर्थ्य�ी परेशान होकर ब्रह्मा के पास गई। पृर्थ्य�ी ने ब्रह्मा 9ी से कहा विक मैं इतना भार सहन नहीं कर सकती। तब ब्रह्मा 9ी ने मृत्यु को लाल ध्�9 शिलए स्त्री के रूप में उत्पन्न विकया और उसे आदेश टिदया विक प्राणि*यों को मारने का दाष्टियत्त्� ले। मृत्यु ने ऐसा करने से मना कर टिदया और कहा विक मैं ये पाप नहीं कर सकती। ब्रह्मा9ी ने कहा विक तुम के�ल इनके शरीर को समाप्त करोगी लेविकन 9ी� तो बार-बार 9न्म लेते रहेंगे। इस पर मृत्यु ने ब्रह्मा9ी की बात स्�ीकार कर ली और तब से प्राणि*यों की मृत्यु शुरू हो गई।

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समय के साथ मान� समा9 में पाप बढ़ता गया। तब शंकर भग�ान ने ब्रह्मा 9ी से प!छा विक इस पाप को समाप्त करने का आपके पास क्या उपाय है। ब्रह्मा9ी ने इस वि�षय में अपनी असमथ"ता 9ताई। शंकर भग�ान शीघ्र कोपी हैं। उन्हें क्रोध आ गया और उनके क्रोध से काल भैर� की उत्पणित्त हुई। काल भैर� ने ब्रह्मा9ी के उस मस्तक को अपने नाख!न से काE टिदया जि9ससे उन्होंने असमथ"ता 9ताई थी। इससे काल भैर� को ब्रह्म हत्या लग गयी।

काल भैर� तीनों लोकों में भ्रम* करते रहे लेविकन ब्रह्म हत्या से �े मु4 नहीं हो पाए। ऐसी मान्यता है विक 9ब काल भैर� काशी पहंुचे, तब ब्रह्म हत्या ने उनका पीछा छोड़ा। उसी समय आकाश�ा*ी हुई विक तुम यहीं विन�ास करो और काशी�ाशिसयों के पाप-पुण्य के विन*"य का दाष्टियत्त्� संभालो। तब से भग�ान काल भैर� काशी में 0ाविपत हो गए।

कथा-दो दूसरी कथा यह भी है विक एक बार दे�ताओं की सभा हुई थी। उसमें ब्रह्मा 9ी के मुख से शंकर भग�ान के प्रवित कुछ अपमान9नक श�द विनकल गए। तब शंकर भग�ान ने क्रोध में हंुकार भरी और उस हुंकार से काल भैर� प्रकE हुए और ब्रह्मा 9ी के उस शिसर को काE टिदया जि9ससे ब्रह्मा 9ी ने शंकर भग�ान की पिन�दा की थी। काल भैर� को ब्रह्म हत्या दोष लगने और काशी में �ास करने तक की आगे की कथा पहली कथा 9ैसी ही है।

यह भी मान्यता है विक धम" की मया"दा बनाए ंरखने के शिलए भग�ान शिश� ने अपने ही अ�तार काल भैर� को आदेश टिदया था विक हे भैर�, तुमने ब्रह्मा9ी के पांच�ें शिसर को काEकर ब्रह्म हत्या का 9ो पाप विकया है, उसके प्रायणिश्चत के शिलए तुम्हें पृर्थ्य�ी पर 9ाकर माया 9ाल में फंसना होगा और वि�श्व भ्रम* करना होगा। 9ब ब्रह्मा 9ी का कEा हुआ शिसर तुम्हारे हाथ से विगर 9ाएगा, उसी समय तुम ब्रह्म हत्या के पाप से मु4 हो 9ाओगे और उसी 0ान पर 0ाविपत हो 9ाओगे। काल भैर� की यह यात्रा काशी में समाप्त हुई थी। .............. दारिरद्रय् नाशक ध!मा�ती साधना 9ी�न में कई बार ऐसे पल आ 9ाते है की हम विनराश हो 9ाते है,अपनी गरीबी से अपनी तकलीफों से,और इस बात को नहीं नाकारा 9ा सकता की हर इन्सान को धन की आ�श्यकता होती है 9ी�न के ९९ % काम धन के आभा� में अध!रे है यहाँ तक की साधना करने के शिलए भी धन लगता है,तो क्यों और कब तक बैoे रहोगे इस गरीबी का रोना लेकर क्यों ना इसे उoा कर फेक टिदया 9ाये 9ी�न से.मेरे सभी प्यारे भाइयो और बहनों के शिलए एक वि�शेष साधना दे रहा हु जि9ससे उनके आर्थिथ�क कष्ट माँ की कृपा से समाप्त हो 9ायेंगे.ये मेरी अनुभ!त साधना है आप संपन्न करे और माँ की कृपा के पात्र बने. साधना सामग्री. एक स!पड़ा,स्फटिEक या तुलसी माला. वि�ष्टिध: यह साधना ध!मा�ती 9यंती से आरम्भ करे,समय रावित्र १० ब9े का होगा,आप सफे़द �स्त्र धार* कर सफे़द आसन पर प!�" मुख कर बैo 9ाये.सामने ब9ोE पर स!पड़ा रख कर उसमे सफे़द �स्त्र विबछा दे विफर उसमे ध!मा�ती यन्त्र 0ाविपत करे,इसके बाद गाय के कंडे से बनी भस्म यन्त्र पर अप"* करे घी का दीपक 9लाये,पेoे का भोग अप"* करे,माँ से प्राथ"ना करे की में यह साधना अपनी दरिरद्रता से मुशि4 के शिलए कर रहा हु आप मेरी साधना को सफलता प्रदान करे तथा मेरे सभी कष्टों को दूर कर दे.इसके बाद विनम्न मंत्र की एक माला करे ॐ ध!म्र शिश�ाय नमः इसके बाद ध!ं ध!ं ध!मा�ती oह oह की २१ माला करे.विफर पुनः एक माला पहले �ाले मंत्र की करे.9प के बाद टिदल से माँ से प्राथ"ना करे और इस साधना को २१ टिदन तक करे.साधना प!री होने के बाद सुपडे को यन्त्र सविहत उoाकर माँ से प्राथ"ना करे की माँ आप हमारी सभी पापो को क्षमा करे और आ9 आप हमारे 9ी�न के सारे दुःख सारी दरिरद्रता को आपके इस पवि�त्र सुपडे में भर के ले 9ाये है माँ हमारे 9ी�न में कभी दरिरद्रता ना लोEे ऐसी दया करे.इसके बाद.सुपडे और यन्त्र को 9ल में प्र�ाविहत कर दे या विकसी विन9"न 0ान में रख दे.विनणिश्चत माँ की आप पर कृपा बरसेगी और 9ी�न की दरिरद्रता कोसो दूर चली 9ाएगी.साधना के पहले गुरुदे� प!9न तथा ग*पवित प!9न करे ये हर बार बताना आ�श्यक नहीं है.9य ध!मा�ती. ............. yी गुरु स्त�न

गुरुब्र"ह्मा गुरुर्ति��ष्*ुः गुरुद·�ो महेश्वरः | गुरुसा"क्षात परब्रह्म तस्मै yी गुर�े नमः ||

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ध्यानम!लं गुरुम!"र्तित� प!9ाम!लं गुरोः पदम् | मंत्रम!लं गुरो�ा"क्यं मोक्षम!लं गुरोः कृपा ||

अखंडमंडलाकारं व्याप्तं येन चराचरम् | तत्पदं दर्थिश�तं येन तस्मै yी गुर�े नमः ||

ब्रह्मानंदं परम सुखदं के�लं ज्ञानम!र्तिंत� | द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्त्�मस्याटिदलक्षयम् ||

एकं विनत्यंवि�मलं अचलं स�"धीसाक्षीभ!तम् | भा�ातीतं वित्रगु*रविहतं सदगुरंु तं नमाष्टिम ||

त्�मे� माता च विपता त्�मे�, त्�मे� बंधुश्च सखा त्�मे� | त्�मे� वि�द्या द्रवि�*ं त्�मे�, त्�मे� स�¹ मम दे� दे� || ................ गुरुदे� प्रदत ऋ* मुशि4 मैं 9हां एक बहुत ही सरल अनुभ!त साधना प्रयोग दे रहा हु आप विनहचिच�त हो कर करे बहुत 9nद आप इस अणिभशाप से मुशि4 पा लेंगे ! वि�ष्टिध – शुभ टिदन जि9स टिदन रवि�पुष्य योग हो 9ा रवि� �ार हस्त नक्षत्र हो श!कल पक्ष हो तो इस साधना को शुरू करे �स्त्र --- लाल रंग की धोतीपहन सकते है ! माला – काले हकीक की ले ! टिदशा –दणिक्ष* ! सामग्री – भैर� यन्त्र 9ा शिचत्र और हकीक माला काले रंग की ! मंत्र संख्या – 12 माला 21 टिदन करना है ! पहले गुरु प!9न कर आज्ञा लेऔर विफर yी ग*ेश 9ी का पंचौपचार प!9न करे तद पहश्चांत संकnप ले ! के मैं गुरु स्�ामी विनब्दिखलेश्वरा नन्द 9ी का शिशष्य अपने 9ी�न में स्म0 ऋ* मुशि4 के शिलए यहसाधना कर रहा हु हे भैर� दे� मुझे ऋ* मुशि4 दे!9मीन पे थोरा रेत वि�शा के उस उपर कुक्म से वितको* बनाएउस में एक पलेE में स्�ाल्किस्तक शिलख कर उस पे लालरंग का फ! ल रखे उस पे भैर� यन्त्र की 0ापना करे उस यन्त्र का 9ा शिचत्र का पंचौपचार से प!9न करे तेल का टिदया लगाए और भोग के शिलए गुड रखे 9ा लड्डू भी रख सकते है ! मन को स्थि0र रखते हुये मन ही मन ऋ* मुशि4 के शिलए पाथ"ना करे और 9प शुरूकरे 12 माला 9प रो9 करे इस प्रकार 21 टिदन करे साधना केबाद स्मगरी माला यन्त्र और 9ो प!9न विकया है �ोह समान 9ल प्र�ाह कर दे साधना के दोरान रवि� �ार 9ा मंगल �ार को छोEे बच्चो को मीoा भो9नआटिद 9रूर कराये ! शीघ्र ही क9" से मुशि4 ष्टिमलेगी और कारोबार में प्रगवित भी होगी ! 9य गुरुदे� !! मंत्र—ॐ ऐं क्लीम ह्रीं भमभैर�ाये मम ऋ*वि�मोचनाये महां महा धन प्रदाय क्लीम स्�ाहा !! ........... विन�ारक इस्लाष्टिमक अमल आ9 आपको एक इस्लाष्टिमक अमल बताने 9ा रहा हु .जि9सके 9रिरये आप अपने शतु्र पर वि�9य पा सकते है.मात्र उंगली उoाकर यटिद आप इन पाक आयत को पड़ देंगे तो शतु्र अपनी शतु्रता भ!ल 9ायेगा.इसे शिसद्ध करने की अ�ष्टिध ४० टिदन है.इसके बाद 9ब शतु्र आपको तंग करे अपनी त9"नी उंगली उसकी तरफ करे या उसके घर की टिदशा की और करे और इसे ७ बार पड़ दे आखरी में उसका नाम लेकर कह दे की इसकी शत्रुता ख़शतु्र तम हुई.शत्रु शांत हो 9ायेगा.ये अमल इतना बाकमाल है की यटिद मात्र अमल पड़कर उंगली विहला दी 9ाये तो शतु्र का सर उड़ 9ाये,पर उसकी वि�ष्टिध अलग है 9ो हर विकसी को बताना उशिचत नहीं है.�ो योग्य तथा सोम्य लोगो को ही शिसखाई 9ा सकती है.अतः के�ल शतु्र को शांत करने की वि�ष्टिध बता रहा हु.ये अमल आप विकसी भी शुक्र�ार से शुरू करे 9ब स!र9 उगना शुरू हो तब उसकी तरफ मुह करके खडे़ हो 9ाये और इस अमल को पड़ना शुरू करे .अमल पड़ते 9ाये और अपनी त9"नी उंगली पर फ! कते 9ाये.ऐसा १००० बार करे ४० टिदन तक.ये अमल मुकम्मल हो 9ायेगा.और प्रयोग कैसे करना है पहले ही बताया 9ा च!का है. इन्ना अयतैना कल कौसर फ सnली ली र�बीक �न्हर इन्ना शानी अक हु�ल अ�तर ............ प्रचंड पीताम्बरा रुद्राक्ष १.जि9सके धार* कर लेने मात्र से गृह अपनी चल बदल देते है और अनुक! ल हो 9ाते है,न चाहते हुए भी उन्हें हमारे विहसाब से चलना पड़ता है,भग�ती पीताम्बर का ऐसा �ज्र पड़ता है ग्रहों पर की �े म9ब!र हो 9ाते है आपको सुख देने के शिलये. २. जि9सके धार* करने से शतु्र शत्रुता भ!लकर शर* में आ 9ाते है,और उनका स्तम्भन हो 9ाता है.सारी तंत्र बाधा अपने आप समाप्त हो 9ाती है,तथा साधक के 9ी�न में सुख का आगमन होने लगता है.जि9स घर में 0ाविपत होगा �हा कोई तंत्र बाधा असर नहीं करेगी.साधक एक तरह से हर क्षेत्र में सफलता पता है तथा जि9स साधना के �क़्त इसे धार* करेगा �ो साधना अ�श्य सफल होगी ३.इसके धार* करने �ाले की ग्रहस्ती में सुख का आगमन होता है,पारिर�ारिरक समबन्ध मधुर हो 9ाते है. और सबसे बड़ी बात साधना के �क़्त जि9सके शारीर पर ये रुद्राक्ष होगा

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कोई शशि4 साधक का कुछ नहीं विबगड़ पायेगी,ये रुद्राक्ष यम �रु* अब्दिग्न 9ल इन्द्र आटिद के पसीने छुड�ा दे तो और विकसी की बात ही क्या करे.साधक के शिलये ये एक क�च है.शमशान में धार* करके चले गए तो सारी दुष्ट शशि4या साधक से दस हाथ दूर रहती है,और क्या कहू इस रुद्राक्ष के बारे में आप स्�यं करे और इसका चमत्कार देखे. 9nद ही इस रुद्राक्ष को कैसे तैयार विकया 9ाये कैसे शिसद्ध विकया 9ाये इसकी वि�ष्टिध आप सब के विबच लेकर आऊंगा.पर इस रुद्राक्ष को �ही साधक शिसद्ध कर सकता है जि9सने अपने 9ी�न में कभी गुरु मंत्र अथ�ा ॐ नमः शिश�ाय का एक लाख 9प विकया हो.अतः ये साधना उन लोगो को ही दी 9ाएगी यटिद आप मु9ह्से असत्य बोलकर ये साधना लेते है और इसे करते है तो इसके 9�ाबदार �े लोग होंगे जि9न्होंने असत्य बोलकर साधना ली है,क्युकी इस साधना की पहली और आखरी शत" ही यही है की जि9सने गुरु मंत्र अथ�ा ॐ नमः शिश�ाय के 9प एक लाख विकये हो �ो ही इसे करे अन्यथा ये इस साधना से हाविन हो सकती है नहीं,बल्किnक हो ही 9ाएगी ये अEल सत्य है.अतः ये साधना Eाइप होने के बाद में सभी को स!शिचत कर दंूगा आप अपने इमेल देकर प्राप्त कर लेना अगर अपने इस शत" को प!रा कर शिलया हो तो.माँ मेरे सभी साधक भाइयो का कnया* करे.9य माँ ............ भ!त- पे्रत साधना

तंत्र में भ!त - पे्रत का अल्किस्तत्� स्�ीकार विकया गया है | यह माना गया है की मृत्यु के उपरांत मनुष्य को कई बार पे्रत योनी में 9ाना पड़ता है पर पुन9"न्म की अनेक घEनाए इस सम्बन्ध में सोचने के शिलए वि��श कर देती है | मृत्यु के बाद की दुविनया का कही कुछ न कुछ अल्किस्तत्� है | इस बात को स्�ीकार करना पड़ता है | पे्रत योनी में 9ाकर मनुष्य कई बार उत्पाती हो 9ाता है | �ह अनेक प्रकार के आतंक विबखरा देता है | इस प्रकार का उपद्र� शान्त करने का वि�धान तंत्र शास्त्र में है | हमारे योग्य तांवित्रक उनका समय -समय पर प्रयोग करते है | पे्रतों की उपद्र�ी सकती पर विनयंत्र* करने के शिलए विनम्नशिलब्दिखत तंत्र है-

' ॐ ह्रंच ह्रंच ह्रंच फE स्�ाहा | '

ये बहुत ही सरल साधना है | विकसी एकांत 0ान में शिश� 9ी की म!र्तित� की 0ापना कर प्रत्येक अध"रावित्र में २५ बार पाo आ�श्यक है | इस प्रकार विनयष्टिमत रूप से विबना नागा के २५०० ह9ार मंत्र का पाo १०० टिदन तक लगातार करना आ�श्यक है | 9प की माला रूद्राक्ष की होनी चाविहए | टिदशा प!�" या उत्तर की होनी चाविहए | २५०००० ह9ार मंत्र का पाo हो 9ाये तो साधक शिश� 9ी की आकृवित की प!9ा कर आ 9ाये | इस प्रकार की साधना करने के बाद साधक भ!त-पे्रत ग्रस्त विकसी भी व्यशि4 को या 0ान को मु4 कर सकता है | साधक के आदेश का पालन भ!त-पे्रत करते है और साधक भ!त-पे्रत को देख सकता है और उनसे बात भी कर सकता है | ...... .......... सुख-समृजिद्ध के EोEका 1॰ यटिद परिरyम के पश्चात् भी कारोबार oप्प हो, या धन आकर खच" हो 9ाता हो तो यह EोEका काम में लें। विकसी गुरू पुष्य योग और शुभ चन्द्रमा के टिदन प्रात: हरे रंग के कपडे़ की छोEी थैली तैयार करें। yी ग*ेश के शिचत्र अथ�ा म!र्तित� के आगे "संकEनाशन ग*ेश स्तोत्र´´ के 11 पाo करें। तत्पश्चात् इस थैली में 7 म!ं...ग, 10 ग्राम साबुत धविनया, एक पंचमुखी रूद्राक्ष, एक चांदी का रूपया या 2 सुपारी, 2 हnदी की गांo रख कर दाविहने मुख के ग*ेश 9ी को शुद्ध घी के मोदक का भोग लगाए।ं विफर यह थैली वित9ोरी या कैश बॉक्स में रख दें। गरीबों और ब्राह्म*ों को दान करते रहे। आर्थिथ�क स्थि0वित में शीघ्र सुधार आएगा। 1 साल बाद नयी थैली बना कर बदलते रहें।

2॰ विकसी के प्रत्येक शुभ काय" में बाधा आती हो या वि�लम्ब होता हो तो रवि��ार को भैरों 9ी के मंटिदर में चिस�दूर का चोला चढ़ा कर "बEुक भैर� स्तोत्र´´ का एक पाo कर के गौ, कौओं और काले कुत्तों को उनकी रूशिच का पदाथ" ब्दिखलाना चाविहए। ऐसा �ष" में 4-5 बार करने से काय" बाधाए ंनष्ट हो 9ाएगंी।

3॰ रूके हुए कायZ की शिसजिद्ध के शिलए यह प्रयोग बहुत ही लाभदायक है। ग*ेश चतुथ| को ग*ेश 9ी का ऐसा शिचत्र घर या दुकान पर लगाएं, जि9समें उनकी स!ंड दायीं ओर मुड़ी हुई हो। इसकी आराधना करें। इसके आगे लौंग तथा

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सुपारी रखें। 9ब भी कहीं काम पर 9ाना हो, तो एक लौंग तथा सुपारी को साथ ले कर 9ाए,ं तो काम शिसद्ध होगा। लौंग को च!सें तथा सुपारी को �ापस ला कर ग*ेश 9ी के आगे रख दें तथा 9ाते हुए कहें `9य ग*ेश काEो कलेश´।

4॰ सरकारी या विन9ी रो9गार के्षत्र में परिरyम के उपरांत भी सफलता नहीं ष्टिमल रही हो, तो विनयमप!�"क विकये गये वि�ष्*ु यज्ञ की वि�भ!वित ले कर, अपने विपतरों की `कुशा´ की म!र्तित� बना कर, गंगा9ल से स्नान करायें तथा यज्ञ वि�भ!वित लगा कर, कुछ भोग लगा दें और उनसे काय" की सफलता हेतु कृपा करने की प्राथ"ना करें। विकसी धार्मिम�क ग्रंथ का एक अध्याय पढ़ कर, उस कुशा की म!र्तित� को पवि�त्र नदी या सरो�र में प्र�ाविहत कर दें। सफलता अ�श्य ष्टिमलेगी। सफलता के पश्चात् विकसी शुभ काय" में दानाटिद दें।

5॰ व्यापार, वि��ाह या विकसी भी काय" के करने में बार-बार असफलता ष्टिमल रही हो तो यह EोEका करें- सरसों के तैल में शिसके गेहूँ के आEे � पुराने गुड़ से तैयार सात प!ये, सात मदार (आक) के पुष्प, चिस�दूर, आEे से तैयार सरसों के तैल का रूई की बत्ती से 9लता दीपक, पत्तल या अरण्डी के पते्त पर रखकर शविन�ार की रावित्र में विकसी चौराहे पर रखें और कहें -"हे मेरे दुभा"ग्य तुझे यहीं छोडे़ 9ा रहा हँू कृपा करके मेरा पीछा ना करना।´´ सामान रखकर पीछे मुड़कर न देखें।

6॰ शिसन्दूर लगे हनुमान 9ी की म!र्तित� का शिसन्दूर लेकर सीता 9ी के चर*ों में लगाए।ँ विफर माता सीता से एक श्वास में अपनी कामना विन�ेटिदत कर भशि4 प!�"क प्र*ाम कर �ापस आ 9ाए।ँ इस प्रकार कुछ टिदन करने पर सभी प्रकार की बाधाओं का विन�ार* होता है।

7॰ विकसी शविन�ार को, यटिद उस टिदन `स�ा"थ" शिसजिद्ध योग' हो तो अवित उत्तम सांयकाल अपनी लम्बाई के बराबर लाल रेशमी स!त नाप लें। विफर एक पत्ता बरगद का तोड़ें। उसे स्�च्छ 9ल से धोकर पोंछ लें। तब पते्त पर अपनी कामना रुपी नापा हुआ लाल रेशमी स!त लपेE दें और पते्त को बहते हुए 9ल में प्र�ाविहत कर दें। इस प्रयोग से सभी प्रकार की बाधाए ँदूर होती हैं और कामनाओं की प!र्तित� होती है।

८॰ रवि��ार पुष्य नक्षत्र में एक कौआ अथ�ा काला कुत्ता पकडे़। उसके दाए ँपैर का नाख!न काEें। इस नाख!न को ताबी9 में भरकर, ध!पदीपाटिद से प!9न कर धार* करें। इससे आर्थिथ�क बाधा दूर होती है। कौए या काले कुत्ते दोनों में से विकसी एक का नाख!न लें। दोनों का एक साथ प्रयोग न करें।

9॰ प्रत्येक प्रकार के संकE विन�ार* के शिलये भग�ान ग*ेश की म!र्तित� पर कम से कम 21 टिदन तक थोड़ी-थोड़ी 9ावि�त्री चढ़ा�े और रात को सोते समय थोड़ी 9ावि�त्री खाकर सो�े। यह प्रयोग 21, 42, 64 या 84 टिदनों तक करें।

10॰ अक्सर सुनने में आता है विक घर में कमाई तो बहुत है, विकन्तु पैसा नहीं टिEकता, तो यह प्रयोग करें। 9ब आEा विपस�ाने 9ाते हैं तो उससे पहले थोडे़ से गेंहू में 11 पत्ते तुलसी तथा 2 दाने केसर के डाल कर ष्टिमला लें तथा अब इसको बाकी गेंहू में ष्टिमला कर विपस�ा लें। यह विक्रया सोम�ार और शविन�ार को करें। विफर घर में धन की कमी नहीं रहेगी।

11॰ आEा विपसते समय उसमें 100 ग्राम काले चने भी विपसने के शिलयें डाल टिदया करें तथा के�ल शविन�ार को ही आEा विपस�ाने का विनयम बना लें।

12॰ शविन�ार को खाने में विकसी भी रूप में काला चना अ�श्य ले शिलया करें।

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13॰ अगर पया"प्त धना"9न के पश्चात् भी धन संचय नहीं हो रहा हो, तो काले कुत्ते को प्रत्येक शविन�ार को कड़�े तेल (सरसों के तेल) से चुपड़ी रोEी ब्दिखलाए।ँ

14॰ संध्या समय सोना, पढ़ना और भो9न करना विनविषद्ध है। सोने से प!�" पैरों को oंडे पानी से धोना चाविहए, विकन्तु गीले पैर नहीं सोना चाविहए। इससे धन का क्षय होता है।

15॰ रावित्र में चा�ल, दही और सत्त! का से�न करने से लक्ष्मी का विनरादर होता है। अत: समृजिद्ध चाहने �ालों को तथा जि9न व्यशि4यों को आर्थिथ�क कष्ट रहते हों, उन्हें इनका से�न रावित्र भो9 में नहीं करना चाविहये।

16॰ भो9न सदै� प!�" या उत्तर की ओर मुख कर के करना चाविहए। संभ� हो तो रसोईघर में ही बैoकर भो9न करें इससे राहु शांत होता है। 9!ते पहने हुए कभी भो9न नहीं करना चाविहए।

17॰ सुबह कुnला विकए विबना पानी या चाय न पीए।ं 9!oे हाथों से या पैरों से कभी गौ, ब्राह्म* तथा अब्दिग्न का स्पश" न करें।

18॰ घर में दे�ी-दे�ताओं पर चढ़ाये गये फ! ल या हार के स!ख 9ाने पर भी उन्हें घर में रखना अलाभकारी होता है।

19॰ अपने घर में पवि�त्र नटिदयों का 9ल संग्रह कर के रखना चाविहए। इसे घर के ईशान को* में रखने से अष्टिधक लाभ होता है।

20॰ रवि��ार के टिदन पुष्य नक्षत्र हो, तब ग!लर के �ृक्ष की 9ड़ प्राप्त कर के घर लाए।ं इसे ध!प, दीप करके धन 0ान पर रख दें। यटिद इसे धार* करना चाहें तो स्�*" ताबी9 में भर कर धार* कर लें। 9ब तक यह ताबी9 आपके पास रहेगी, तब तक कोई कमी नहीं आयेगी। घर में संतान सुख उत्तम रहेगा। यश की प्रान्त्रिप्त होती रहेगी। धन संपदा भरप!र होंगे। सुख शांवित और संतुष्टिष्ट की प्रान्त्रिप्त होगी।

21॰ `दे� सखा´ आटिद 18 पुत्र�ग" भग�ती लक्ष्मी के कहे गये हैं। इनके नाम के आटिद में और अन्त में `नम:´ लगाकर 9प करने से अभीष्ट धन की प्रान्त्रिप्त होती है। यथा - ॐ दे�सखाय नम:, शिचक्लीताय, आनन्दाय, कद"माय, yीप्रदाय, 9ात�ेदाय, अनुरागाय, सम्�ादाय, वि�9याय, �nलभाय, मदाय, हषा"य, बलाय, ते9से, दमकाय, सशिललाय, गुग्गुलाय, ॐ कुरूण्Eकाय नम:।

22॰ विकसी काय" की शिसजिद्ध के शिलए 9ाते समय घर से विनकलने से प!�" ही अपने हाथ में रोEी ले लें। माग" में 9हां भी कौए टिदखलाई दें, �हां उस रोEी के Eुकडे़ कर के डाल दें और आगे बढ़ 9ाए।ं इससे सफलता प्राप्त होती है।

23॰ विकसी भी आ�श्यक काय" के शिलए घर से विनकलते समय घर की देहली के बाहर, प!�" टिदशा की ओर, एक मुट्ठी घुघंची को रख कर अपना काय" बोलते हुए, उस पर बलप!�"क पैर रख कर, काय" हेतु विनकल 9ाए,ं तो अ�श्य ही काय" में सफलता ष्टिमलती है।

24॰ अगर विकसी काम से 9ाना हो, तो एक नींब! लें। उसपर 4 लौंग गाड़ दें तथा इस मंत्र का 9ाप करें : `ॐ yी हनुमते नम:´। 21 बार 9ाप करने के बाद उसको साथ ले कर 9ाए।ं काम में विकसी प्रकार की बाधा नहीं आएगी।

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25॰ चुEकी भर हींग अपने ऊपर से �ार कर उत्तर टिदशा में फें क दें। प्रात:काल तीन हरी इलायची को दाए ँहाथ में रखकर "yीं yीं´´ बोलें, उसे खा लें, विफर बाहर 9ाए¡।

26॰ जि9न व्यशि4यों को लाख प्रयत्न करने पर भी स्�यं का मकान न बन पा रहा हो, �े इस EोEके को अपनाए।ं प्रत्येक शुक्र�ार को विनयम से विकसी भ!खे को भो9न कराए ंऔर रवि��ार के टिदन गाय को गुड़ ब्दिखलाए।ं ऐसा विनयष्टिमत करने से अपनी अचल सम्पवित बनेगी या पैतृक सम्पवित प्राप्त होगी। अगर सम्भ� हो तो प्रात:काल स्नान-ध्यान के पश्चात् विनम्न मंत्र का 9ाप करें। "ॐ पद्मा�ती पद्म कुशी �ज्र�ज्रांपुशी प्रवितब भ�ंवित भ�ंवित।।´´

27॰ यह प्रयोग न�रावित्र के टिदनों में अष्टमी वितशिथ को विकया 9ाता है। इस टिदन प्रात:काल उo कर प!9ा 0ल में गंगा9ल, कुआं 9ल, बोरिर�ग 9ल में से 9ो उपलब्ध हो, उसके छींEे लगाए,ं विफर एक पाEे के ऊपर दुगा" 9ी के शिचत्र के सामने, प!�" में मुंह करते हुए उस पर 5 ग्राम शिसक्के रखें। साबुत शिसक्कों पर रोली, लाल चन्दन ए�ं एक गुलाब का पुष्प चढ़ाए।ं माता से प्राथ"ना करें। इन सबको पोEली बांध कर अपने गnले, संदूक या अलमारी में रख दें। यह EोEका हर 6 माह बाद पुन: दोहराए।ं

28॰ घर में समृजिद्ध लाने हेतु घर के उत्तरपणिश्चम के को* (�ायव्य को*) में सुन्दर से ष्टिमट्टी के बत"न में कुछ सोने-चांदी के शिसक्के, लाल कपडे़ में बांध कर रखें। विफर बत"न को गेहंू या चा�ल से भर दें। ऐसा करने से घर में धन का अभा� नहीं रहेगा।

29॰ व्यशि4 को ऋ* मु4 कराने में यह EोEका अ�श्य सहायता करेगा : मंगल�ार को शिश� मजिन्दर में 9ा कर शिश�चिल�ग पर मस!र की दाल "ॐ ऋ* मु4ेश्वर महादे�ाय नम:´´ मंत्र बोलते हुए चढ़ाए।ं

30॰ जि9न व्यशि4यों को विनरन्तर क9" घेरे रहते हैं, उन्हें प्रवितटिदन "ऋ*मोचक मंगल स्तोत्र´´ का पाo करना चाविहये। यह पाo शुक्ल पक्ष के प्रथम मंगल�ार से शुरू करना चाविहये। यटिद प्रवितटिदन विकसी कार* न कर सकें , तो प्रत्येक मंगल�ार को अ�श्य करना चाविहये।

31॰ सोम�ार के टिदन एक रूमाल, 5 गुलाब के फ! ल, 1 चांदी का पत्ता, थोडे़ से चा�ल तथा थोड़ा सा गुड़ लें। विफर विकसी वि�ष्*ुण्लक्ष्मी 9ी के ष्टिमन्दर में 9ा कर म!र्णित्त� के सामने रूमाल रख कर शेष �स्तुओं को हाथ में लेकर 21 बार गायत्री मंत्र का पाo करते हुए बारी-बारी इन �स्तुओं को उसमें डालते रहें। विफर इनको इकट्ठा कर के कहें की `मेरी परेशाविनयां दूर हो 9ाए ंतथा मेरा क9ा" उतर 9ाए´। यह विक्रया आगामी 7 सोम�ार और करें। क9ा" 9nदी उतर 9ाएगा तथा परेशाविनयां भी दूर हो 9ाएगंी।

32॰ स�"प्रथम 5 लाल गुलाब के प!*" ब्दिखले हुए फ! ल लें। इसके पश्चात् डेढ़ मीEर सफेद कपड़ा ले कर अपने सामने विबछा लें। इन पांचों गुलाब के फुलों को उसमें, गायत्री मंत्र 21 बार पढ़ते हुए बांध दें। अब स्�यं 9ा कर इन्हें 9ल में प्र�ाविहत कर दें। भग�ान ने चाहा तो 9nदी ही क9" से मुशि4 प्राप्त होगी।

34॰ क9"-मुशि4 के शिलये "ग9ेन्द्र-मोक्ष´´ स्तोत्र का प्रवितटिदन स!यBदय से प!�" पाo अमोघ उपाय है।

35॰ घर में 0ायी सुख-समृजिद्ध हेतु पीपल के �ृक्ष की छाया में खडे़ रह कर लोहे के बत"न में 9ल, चीनी, घी तथा दूध ष्टिमला कर पीपल के �ृक्ष की 9ड़ में डालने से घर में लम्बे समय तक सुख-समृजिद्ध रहती है और लक्ष्मी का �ास होता है।

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33॰ अगर विनरन्तर क9" में फँसते 9ा रहे हों, तो श्मशान के कुए ंका 9ल लाकर विकसी पीपल के �ृक्ष पर चढ़ाना चाविहए। यह 6 शविन�ार विकया 9ाए, तो आश्चय"9नक परिर*ाम प्राप्त होते हैं।

36॰ घर में बार-बार धन हाविन हो रही हो तों �ीर�ार को घर के मुख्य द्वार पर गुलाल शिछड़क कर गुलाल पर शुद्ध घी का दोमुखी (दो मुख �ाला) दीपक 9लाना चाविहए। दीपक 9लाते समय मन ही मन यह कामना करनी चाविहए की `भवि�ष्य में घर में धन हाविन का सामना न करना पडे़´। 9ब दीपक शांत हो 9ाए तो उसे बहते हुए पानी में बहा देना चाविहए।

37॰ काले वितल परिर�ार के सभी सदस्यों के शिसर पर सात बार उसार कर घर के उत्तर टिदशा में फें क दें, धनहाविन बंद होगी।

38॰ घर की आर्थिथ�क स्थि0वित oीक करने के शिलए घर में सोने का चौरस शिसक्का रखें। कुत्ते को दूध दें। अपने कमरे में मोर का पंख रखें।

39॰ अगर आप सुख-समृजिद्ध चाहते हैं, तो आपको पके हुए ष्टिमट्टी के घडे़ को लाल रंग से रंगकर, उसके मुख पर मोली बांधकर तथा उसमें 9Eायु4 नारिरयल रखकर बहते हुए 9ल में प्र�ाविहत कर देना चाविहए।

40॰ अखंविडत भो9 पत्र पर 15 का यंत्र लाल चन्दन की स्याही से मोर के पंख की कलम से बनाए ंऔर उसे सदा अपने पास रखें।

41॰ व्यशि4 9ब उन्नवित की ओर अग्रसर होता है, तो उसकी उन्नवित से ईष्या"ग्रस्त होकर कुछ उसके अपने ही उसके शत्रु बन 9ाते हैं और उसे सहयोग देने के 0ान पर �े ही उसकी उन्नवित के माग" को अ�रूद्ध करने लग 9ाते हैं, ऐसे शत्रुओं से विनपEना अत्यष्टिधक कटिoन होता है। ऐसी ही परिरस्थि0वितयों से विनपEने के शिलए प्रात:काल सात बार हनुमान बा* का पाo करें तथा हनुमान 9ी को लड्डू का भोग लगाए¡ और पाँच लौंग प!9ा 0ान में देशी कप!"र के साथ 9लाए।ँ विफर भस्म से वितलक करके बाहर 9ाए¡। यह प्रयोग आपके 9ी�न में समस्त शतु्रओं को परास्त करने में सक्षम होगा, �हीं इस यंत्र के माध्यम से आप अपनी मनोकामनाओं की भी प!र्तित� करने में सक्षम होंगे।

42॰ कच्ची धानी के तेल के दीपक में लौंग डालकर हनुमान 9ी की आरती करें। अविनष्ट दूर होगा और धन भी प्राप्त होगा।

43॰ अगर अचानक धन लाभ की स्थि0वितयाँ बन रही हो, विकन्तु लाभ नहीं ष्टिमल रहा हो, तो गोपी चन्दन की नौ डशिलयाँ लेकर केले के �ृक्ष पर Eाँग देनी चाविहए। स्मर* रहे यह चन्दन पीले धागे से ही बाँधना है।

44॰ अकस्मात् धन लाभ के शिलये शुक्ल पक्ष के प्रथम बुध�ार को सफेद कपडे़ के झंडे को पीपल के �ृक्ष पर लगाना चाविहए। यटिद व्य�साय में आविकस्मक व्य�धान ए�ं पतन की सम्भा�ना प्रबल हो रही हो, तो यह प्रयोग बहुत लाभदायक है।

45॰ अगर आर्थिथ�क परेशाविनयों से 9!झ रहे हों, तो मजिन्दर में केले के दो पौधे (नर-मादा) लगा दें।

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46॰ अगर आप अमा�स्या के टिदन पीला वित्रको* आकृवित की पताका वि�ष्*ु मजिन्दर में ऊँचाई �ाले 0ान पर इस प्रकार लगाए ँविक �ह लहराता हुआ रहे, तो आपका भाग्य शीघ्र ही चमक उoेगा। झंडा लगातार �हाँ लगा रहना चाविहए। यह अविन�ाय" शत" है।

47॰ दे�ी लक्ष्मी के शिचत्र के समक्ष नौ बणित्तयों का घी का दीपक 9लाए¡। उसी टिदन धन लाभ होगा।

48॰ एक नारिरयल पर काष्टिमया शिसन्दूर, मोली, अक्षत अर्तिप�त कर प!9न करें। विफर हनुमान 9ी के मजिन्दर में चढ़ा आए।ँ धन लाभ होगा।

49॰ पीपल के �ृक्ष की 9ड़ में तेल का दीपक 9ला दें। विफर �ापस घर आ 9ाए ँए�ं पीछे मुड़कर न देखें। धन लाभ होगा।

50॰ प्रात:काल पीपल के �ृक्ष में 9ल चढ़ाए ँतथा अपनी सफलता की मनोकामना करें और घर से बाहर शुद्ध केसर से स्�ल्किस्तक बनाकर उस पर पीले पुष्प और अक्षत चढ़ाए¡। घर से बाहर विनकलते समय दाविहना पाँ� पहले बाहर विनकालें।

51॰ एक हंविडया में स�ा विकलो हरी साबुत म!ंग की दाल, दूसरी में स�ा विकलो डशिलया �ाला नमक भर दें। यह दोनों हंविडया घर में कहीं रख दें। यह विक्रया बुध�ार को करें। घर में धन आना शुरू हो 9ाएगा।

52॰ प्रत्येक मंगल�ार को 11 पीपल के पत्ते लें। उनको गंगा9ल से अच्छी तरह धोकर लाल चन्दन से हर पत्ते पर 7 बार राम शिलखें। इसके बाद हनुमान 9ी के मजिन्दर में चढ़ा आए ंतथा �हां प्रसाद बाEें और इस मंत्र का 9ाप जि9तना कर सकते हो करें। `9य 9य 9य हनुमान गोसाईं, कृपा करो गुरू दे� की नांई´ 7 मंगल�ार लगातार 9प करें। प्रयोग गोपनीय रखें। अ�श्य लाभ होगा।

53॰ अगर नौकरी में तरक्की चाहते हैं, तो 7 तरह का अना9 शिचविड़यों को डालें।

54॰ ऋग्�ेद (4/32/20-21) का प्रशिसद्ध मन्त्र इस प्रकार है - `ॐ भ!रिरदा भ!रिर देविहनो, मा दभ्रं भ!या" भर। भ!रिर घेटिदन्द्र टिदत्सशिस। ॐ भ!रिरदा त्यशिस yुत: पुरूत्रा श!र �ृत्रहन्। आ नो भ9स्� राधशिस।।´ (हे लक्ष्मीपते ! आप दानी हैं, साधार* दानदाता ही नहीं बहुत बडे़ दानी हैं। आप्त9नों से सुना है विक संसारभर से विनराश होकर 9ो याचक आपसे प्राथ"ना करता है उसकी पुकार सुनकर उसे आप आर्थिथ�क कष्टों से मु4 कर देते हैं - उसकी झोली भर देते हैं। हे भग�ान मुझे इस अथ" संकE से मु4 कर दो।)

51॰ विनम्न मन्त्र को शुभमुहूत्त" में प्रारम्भ करें। प्रवितटिदन विनयमप!�"क 5 माला yद्धा से भग�ान् yीकृष्* का ध्यान करके, 9प करता रहे - "ॐ क्लीं नन्दाटिद गोकुलत्राता दाता दारिरद्रय्भं9न। स�"मंगलदाता च स�"काम प्रदायक:। yीकृष्*ाय नम:।।´´

52॰ भाद्रपद मास के कृष्*पक्ष भर*ी नक्षत्र के टिदन चार घड़ों में पानी भरकर विकसी एकान्त कमरे में रख दें। अगले टिदन जि9स घडे़ का पानी कुछ कम हो उसे अन्न से भरकर प्रवितटिदन वि�ष्टिध�त प!9न करते रहें। शेष घड़ों के पानी को घर, आँगन, खेत आटिद में शिछड़क दें। अन्नप!*ा" दे�ी सदै� प्रसन्न रहेगीं।

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53॰ विकसी शुभ काय" के 9ाने से पहले - रवि��ार को पान का पत्ता साथ रखकर 9ायें। सोम�ार को दप"* में अपना चेहरा देखकर 9ायें। मंगल�ार को ष्टिमष्ठान खाकर 9ायें। बुध�ार को हरे धविनये के पत्ते खाकर 9ायें। गुरू�ार को सरसों के कुछ दाने मुख में डालकर 9ायें। शुक्र�ार को दही खाकर 9ायें। शविन�ार को अदरक और घी खाकर 9ाना चाविहये।

54॰ विकसी भी शविन�ार की शाम को माह की दाल के दाने लें। उसपर थोड़ी सी दही और शिसन्दूर लगाकर पीपल के �ृक्ष के नीचे रख दें और विबना मुड़कर देखे �ाविपस आ 9ायें। सात शविन�ार लगातार करने से आर्थिथ�क समृजिद्ध तथा खुशहाली बनी रहेगी। .............. क्या आप इनमें से विकसी लक्ष* से पीविड़त हैं - मतली, भ!ख न लगना, 9ी अच्छा न होना इत्याटिद? हो सकता है विक आप शिसर दद" के लक्ष*ों का अनुभ� कर रहे हों! शिसर दद" शिसर में होने �ाले विकसी

कम, मध्यम या तीव्र दद" को कहा 9ाता है 9ो विक सर में आंखों या कानों के ऊपर, सर के विपछले विहस्से में या गद"न में होता है।

ज् योवितष के माध् यम से दूर भगायें शिसर दद".....

एक चेता�नी! ... यटिद सर में चोE लगने पर आपको अचानक बहुत तेज़, शिसर दद" होता हो या गद"न में अकड़न, बुखार, बेहोशी या आंख या कान में दद" होना इत्याटिद की शिशकायत हो तो यह एक गंभीर वि�कार भी हो सकता है और जि9सके शिलए आपको तत्काल शिचविकत्सीय परामश" लेना चाविहए।

ज्योवितष वि�ज्ञान आपकी मदद कर सकता है!

यटिद विकसी वि�शेषज्ञ को 9न्मकंुडली टिदखाई 9ाए तो �ह बता सकता है विक व्यशि4 में विकन रोगों के आक्र* की अष्टिधक संभा�ना है और उसके स्�ास्थ्य की भा�ी स्थि0वित क्या है। प्राचीन समय में प्रशिसद्ध रोग वि�ज्ञानी विहप्पोके्रE्स सबसे पहले व्यशि4 की 9न्मसंबंधी ताशिलका का अध्ययन करता था और विफर उपचार संबंधी कोई विन*"य लेता था!

कोई व्यशि4 विकस रोग से पीस्थिÚडत होता है, यह इस पर विनभ"र करता है विक उसके भा� या राशिश का संबंध 9न्म कंुडली में कौन से अविनष्टकर ग्रह से विकस रूप में है। ऐसा इसशिलए है विक प्रत्येक राशिश एक या एकाष्टिधक शारीरिरक अंगों से 9ुड़ी होती है। इसके साथ ही प्रत्येक ग्रह �ायु, अब्दिग्न, 9ल या आद्र" प्रकृवित �ाला कोई एक प्रभुत्�कारी गु* शिलए हुए होता है। आयु�·द में इसे �ात-विपत्त-कफ के रूप में बताया गया है। इस तरह राशिश चक्र में अंविकत शारीरिरक अंग और प्रभुत्�कारी ग्रह की वि�शेषता के मेल से यह तय होता है विक विकस व्यशि4 को कौन-सी बीमारी होगी।

शिसर, मल्किस्तष्क ए�ं आंखों, वि�शेष रूप से सर का अगला विहस्सा, आंखों से नीचे और सर के पीछे �ाले विहस्से से लेकर खोपड़ी के आधार तक का विहस्सा मेष द्वारा विनयंवित्रत होता है। यह मंगल को प्रवितपिब�विबत करता है 9ो टिदमाग में अब्दिग्नमय ऊ9ा" का स्रोत है। स!य", चंद्रमा या मेष का कोई अन्य उदीयमान ग्रह जि9स व्यशि4 के साथ 9ुड़ा होगा उसके सरदद" की संभा�ना अन्य लोगों की तुलना में अष्टिधक होगी।

यटिद स!य" पहले, दूसरे या बारह�ें घर में वि�घ्नप!*" है या मंगल बहुत कम9ोर है या नीच के चंद्रमा के साथ दाहक स्थि0वित में है तब ऐसे लोग अधकपारी सरदद" (माइगे्रन) से पीविड़त होंगे। साथ ही यटिद अविनष्टकर स!य" या मंगल छoे घर में बैoा है (व्यशि4 की 9न्म कंुडली में रोगों का द्योतक) तो व्यशि4 सरदद" का शिशकार होगा।

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9न्मपत्री की कम9ोरी और/या 9न्मपत्री में उच्च 0ान पर बैoे अविनष्टकर दे� के कार* एक रोगकारी परिरस्थि0वित विनर्मिम�त होती है। इससे सरदद" की संभा�ना बनती है। म9ब!त स!य" और मंगल, 9ो विक क्रमशः प्रा* क्षमता और ऊ9ा" के प्रतीक हैं, सुरक्षात्मक क�च प्रदान करते हैं। Read: In English �ैटिदक नुस्खे

सबसे आसान पिक�तु बेहद प्रभा�ी उपायों में से एक यह है विक सुबह उoकर स!य" की ओर देखकर कम से कम 42 टिदनों तक 3, 11, 21, 51 या 108 बार ओम स!या"यः नमः या ओम आटिदत्याय नमः या गायत्री मंत्र का 9ाप करें या स!य" नमस्कार करें।

धन्�ंतरिर होम और मंगल होम का आयो9न करने से भी प्रभा�ी तौर पर अविनष्टकर ग्रहों के प्रभा� दूर हो 9ाते हैं और इस प्रकार सरदद" आपसे मीलों दूर चला 9ाता है। ............... हीरे की भांवित कीमती लाभ प्रदान करने �ाली कुछ 9विडयाँ---------------------- ष्टिमत्र 9नों !9रा सोचें....विकतने %लोग ग्रह उपचाराथ" महंगे नग आटिद धार* कर पाते हैं...?मेरे ख़याल से आ9 के इस महंगाई के युग में बहुत कम %लोग महंगे नगों के ए�ं वि�शिशष्ट अनुष्ठान के माध्यम से अपने रुष्ट ग्रह शांत कर पते हैं! और 9ो संपन्न लोग हैं उन्हें भी असली नग ष्टिमले इस की भी प!*" क्या ग्यारंEी है? नग पत्थर विन9|� हैं विफर भी �ो प्रा* प्रवितष्टिष्ठत ए�ं चैतन्य होकर एक स9ी� व्यशि4 को प!*" लाभ प्रदान करने में सक्षम हैं ..तो १ स9ी� �ृक्ष की 9ड़ �नस्पवित वि�ज्ञान के विहसाब से प!*" प्रवितष्टिष्ठत होने के �ाद प्रभा� नहीं डालेगा क्या? ऐसा सोच के मैंने कुछ पंचांग ए�ं वि�द्वद 9नों के माध्यम द्वारा उnलेब्दिखत लेखों के माध्यम से कुछ 9विडयों के प्रयोग मेरे पास आने �ाले लोगों को कराया....जि9स का फल लगभग १ उच्चस्तरीय नग की तरह ए�ं कुछ 9विडयाँ तो उस से भी अष्टिधक कारगर टिदखी...जि9स से प्रभावि�त होकर सभी धविन ए�ं सामान्य परिर�ार �ाले ष्टिमत्र 9न भी इस का लाभ ले सकें इस के शिलए आगे ग्रहों का वि��र* ए�ं उन की शान्त्यथ" कौन से �ृक्ष की 9ड़ी काम करेगी उस के बारे में बताने की प्रयास करँूगा उम्मीद है सही 9ड़ी ग्रह* कर के आप सुष्टिध9न लाभ प्राप्त करेंगे......!! ग्रह --स!य"--(रत्न-माणि*क्य)9ड़ी-बेल �ृक्ष की 9ड़ .. ,,,,,--चन्द्र -(रत्न-मोती) 9ड़ी -ब्दिखरनी की या ढाक की 9ड़ ........मंगल -(रत्न म!ंगा) 9ड़ी -नाग फनी की 9ड़ ........बुध (रत्न -पन्ना) 9ड़ी -वितधारा 9ड़ ........गुरु (रत्न-pukhraaj ) 9ड़ी-bhring रा9 या केले की 9ड़ .......शुक्र (रत्न-heera ) 9ड़ी-चिस�हनी �ृक्ष 9ड़ .......शविन (नीलम) 9ड़ी -विबचु्छ की 9ड़ '''''''राहू (रत्न-गौमेद) जड़ी -सफे़द चन्दन ........केतु (रत्न-लहसुविनया) 9ड़ी-असगंध 9ड़ इन को धार* करते समय ग्रहों के टिदन के विहसाब से उनका यथोपचार प!9न ग्रह रंग के अनुसार कपडे में चैतन्य प्रा* प्रवितष्टिष्ठत कराकर ही धार* करें ....शत प्रवितशत लाभ प्राप्त होगा....जि9न की 9न्म पवित्रका नहीं है �ो भी अपने जि9स नाम का शिसग्नेचर करते है उसी नाम की राशी विनकालकर राशी स्�मी ग्रह अनुसार 9ड़ी धार* कर के प!*" लाभ प्राप्त कर सकते है.... आप का टिदन �् 9ी�न मंगल मय हो .. ............... फशिलत ज्योवितष:--- फशिलत ज्योवितष उस वि�द्या को कहते हैं जि9समें मनुष्य तथा पृर्थ्य�ी पर, ग्रहों और तारों के शुभ तथा अशुभ प्रभा�ों का अध्ययन विकया 9ाता है। ज्योवितष श�द का यौविगक अथ" ग्रह तथा नक्षत्रों से संबंध रखने�ाली वि�द्या है। इस श�द से यद्यविप गणि*त (शिसद्धांत) ज्योवितष का भी बोध होता है, तथाविप साधार* लोग ज्योवितष वि�द्या से फशिलत वि�द्या का अथ" ही लेते हैं। ग्रहों तथा तारों के रंग णिभन्न-णिभन्न प्रकार के टिदखलाई पड़ते हैं, अतए� उनसे विनकलने�ाली विकर*ों के भी णिभन्न णिभन्न प्रभा� हैं। इन्हीं विकर*ों के प्रभा� का भारत, बैबीलोविनया, खल्कि÷या, य!नान, ष्टिमस्र तथा चीन आटिद देशों के वि�द्वानों ने प्राचीन काल से अध्ययन करके ग्रहों तथा तारों का स्�भा� ज्ञात विकया। पृर्थ्य�ी सौर मंडल का एक ग्रह है। अतए� इसपर तथा इसके विन�ाशिसयों पर मुख्यतया स!य" तथा सौर मंडल के ग्रहों और चंद्रमा का ही वि�शेष प्रभा� पड़ता है। पृर्थ्य�ी वि�शेष कक्षा ...में चलती है जि9से क्रांवित�ृत्त कहते हैं। पृर्थ्य�ी के विन�ाशिसयों को स!य" इसी में चलता टिदखलाई पड़ता है। इस कक्षा के इद" विगद" कुछ तारामंडल हैं, जि9न्हें राशिशयाँ कहते हैं। इनकी संख्या 12 है। इन्हें, मेष, �ृष आटिद कहते हैं। प्राचीन काल में इनके नाम इनकी वि�शेष प्रकार की विकर*ें विनकलती हैं, अत: इनका भी पृर्थ्य�ी तथा इसके विन�ाशिसयों पर प्रभा� पड़ता है। प्रत्येक राशिश 30 की होती है। मेष राशिश का प्रारंभ वि�षु�त् तथा क्रांवित�ृत्त के संपातपिब�दु से होता है। अयन की गवित के कार* यह पिब�दु स्थि0र नहीं है। पाश्चात्य ज्योवितष में वि�षु�त् तथा क्रावित�ृत्त

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के �त"मान संपात को आरंभपिब�दु मानकर, 30-30 अंश की 12 राशिशयों की कnपना की 9ाती है। भारतीय ज्योवितष में स!य"शिसद्धांत आटिद गं्रथों से आने�ाले संपात पिब�दु ही मेष आटिद की ग*ना की 9ाती है। इस प्रकार पाश्चात्य ग*नाप्र*ाली तथा भारतीय ग*नाप्र*ाली में लगभग 23 अंशों का अंतर पड़ 9ाता है। भारतीय प्र*ाली विनरय* प्र*ाली है। फशिलत के वि�द्वानों का मत है विक इससे फशिलत में अंतर नहीं पड़ता, क्योंविक इस वि�द्या के शिलये वि�णिभन्न देशों के वि�द्वानों ने ग्रहों तथा तारों के प्रभा�ों का अध्ययन अपनी अपनी ग*नाप्र*ाली से विकया है। भारत में 12 राशिशयों के 27 वि�भाग विकए गए हैं, जि9न्हें नक्षत्र कहते हैं। ये हैं अणिश्वनी, भर*ी आटिद। फल के वि�चार के शिलये चंद्रमा के नक्षत्र का वि�शेष उपयोग विकया 9ाता है। .................... 1 मई 2012 को शाम पांच ब9े से गुरु तारा अस्त हो गया है। (पंचांग भेद से तारीखों में णिभन्नता हो सकती है।) जि9सके कार* वि��ाहाटिद समस्त शुभ कायZ पर रोक लग गई। गुरु अस्त हो 9ाने के कार* मंटिदरों की प्रा* प्रवितष्ठा भी नहीं हो सकेगी ए�ं नए प्रवितष्ठानों के उद्घाEन भी नहीं विकये 9ाने चाविहये। गुरु का उदय 28 मई 2012 को होगा। स!य" से संयु4 गुरु का अस्त होने से कहीं-कहीं �षा" के योग बनेंगे तथा मंहगाई में �ृजिद्ध होगी। ग्रीष्म का प्रभा� भी ते9 होगा तथा प्राकृवितक संकEों की संभा�ानाए ंबनी रहेगी। गुरु अस्त स्थि0वित में ही अपनी राशिश बदलकर �ृषभ में 14 मई 2012 को प्र�ेश करेगा कई पंचांग से 17 मई 2012 से ) तथा इस राशिश में यह अगले 13 माह तक गुरु रहेगे। इसके कार* ष्टिमथुन, तुला, कंुभ राशिश �ाली कन्याओं के वि��ाह विनषेध रहेंगे तथा �ृषभ, मीन, चिस�ह, धनु राशिश �ाली कन्याओं को पीले प!9न के पश्चात वि��ाह विकये 9ा सकते है। कंुभ, तुला या ष्टिमथुन राशिश विक कन्याओ का वि��ाह प!रा एक �ष" तक इंत9ार करना पडे़गा। तीन राशिशयों में शादी का यह अडं़गा गुरु की चाल से लग रहा है।इस दरमयान मंगनी (सगाई) करने के शिलए कोई रोक नहीं है। गुरु क्यों रहेगा एक �ष" : - वि��ाह के शिलए लड़का और लड़की की कंुडली ष्टिमलाकर चंद्र बल देखे 9ाते हैं। चंद्रमा हर दो या स�ा दो टिदन बाद बदल 9ाता है। अकेले लड़के की कंुडली में चंद्र के साथ स!य" बल देखा 9ाता है। स!य" भी हर एक माह बाद बदल 9ाता है, 9बविक लड़की की कंुडली में चंद्र के साथ गुरु देखा 9ाता है। गुरु एक राशिश से दूसरी राशिश में 9ाने के शिलए एक �ष" का �4 लगाता है। ज्योवितष वि�ज्ञान के मुताविबक गुरु ज्ञान देने �ाला होता है। ऐसे में यटिद विबना मुहूत" के शादी की 9ाती है तो इसका असर सीधे दांपत्य 9ी�न पर पड़ता है। गुरु उच्च राशिश का हो, ष्टिमत्र राशिश का हो, स्�यं की राशिश का हो या शुभ न�मान्य का हो तो गुरु के चौथे, आo�ें � बारह�ें घर में होने पर भी वि��ाह हो सकता है। लेविकन 17 मई को गुरु �ृषभ राशिश पर शतु्र राशिश का आ रहा है, इसशिलए ष्टिमथुन, कंुभ और तुला राशिश �ाली लड़विकयों का वि��ाह मुहूत" एक �ष" तक नहीं बनेगा। 28 मई के पश्चात गुरु उदय होगा लेविकन शुक्र के अस्त रहने के कार* �षा" ए�ं त!फान के योग बनेंगे। 9नता के मध्य आपसी तना� तथा सरकार युद्ध की नीवित पर अष्टिधक ध्यान दे सकती है। �ाहन दुघ"Eनाओं के योग भी बनेंगे। राशिश अनुसार फल- मेष, कक" , तुला, मकर- शुभ �ृषभ, चिस�ह, �ृणिश्चक, कंुभ- मध्यम ष्टिमथुन, कन्या, धनु, मीन- ग्रहो के अनुसार ............. कई बार व्यशि4 की समृजिद्ध अचानक रुष्ट हो 9ाती है,सारे बने बनाये काय" विबगड 9ाते है,9ी�न की सारी खुशिशया नारा9 सी लगती हैं,जि9स भी काम में हाथ डालो असफलता ही हाथ लगती है.घर का कोई सदस्य 9ब चाहे तब घर से भाग 9ाता है,या हमेशा गुमसुम सा पागलों सा व्य�हार करता हो,तब ये प्रयोग 9ी�न की वि�णिभन्न समस्याओं का न शिसफ" समाधान करता है अविपतु प!री तरह उन्हें नष्ट ही कर देता और आने �ाले प!रे 9ी�न में भी आपको सपरिर�ार तंत्र बाधा और 0ान दोष ,टिदशा दोष से मु4 कर अभय ही दे देता हैं.

इस मंत्र को यटिद प!*" वि�ष्टिध प!�"क गुरु प!9न संपन्न कर ११०० की संख्या में 9प कर शिसद्ध कर शिलया 9ाये तो साधक को ये मंत्र उसकी तीक्ष्* साधनाओं में भी सुरक्षा प्रदान करता है और यात्रा में चोरी आटिद घEनाओं से भी बचाता है.मंत्र को शिसद्ध करने के बाद जि9स भी मकान या दुकान में उपरो4 बाधाए ंआ रही हो,विकसी पे्रत का �ास हो गया हो या अज्ञात कार*ों से बाधाए ँआ रही हो,उस मकान में बाहर के दर�ा9े से लेकर अंदर तक कुल जि9तने दर�ा9े हो उतनी ही छोEी नागफनी कीलें और एक मुट्ठी काली उडद ले ले.इसके बाद मकान के बाहर आकर प्रत्येक कील पर ५ बार मंत्र पढ़ कर फ!ँ क मारे और उडद को भी फ!ँ क मार कर अणिभमंवित्रत कर ले,जि9तनी कीलो को आप अणिभमंवित्रत करेंगे उतनी बार उडद पर भी फ!ँ क मारनी होगी.अब इस सामग्री को लेकर उस मकान में प्र�ेश करे

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और मन ही मन मन्त्र 9प करते रहे.आब्दिखरी कमरे में प्र�ेश कर ४-५ दाने उडद के विबखेर दे और और उस कमरे से बाहर आकर उस कमरे की दर�ा9े की चौखE पर कील oोक दे.यही विक्रया प्रत्येक कमरों में करे. और आब्दिखर में बाहर विनकल कर मुख्य दर�ा9े को भी कीशिलत कर दे.इस प्रयोग से खोयी खुशिशयाँ �ाविपस आती ही है. ये मेरा स्�यं का कई बार परखा हुआ प्रयोग है. मन्त्र- ओम नमो आदेश गुरुन को ईश्वर �ाचा,अ9री-ब9री बाड़ा बज्जरी मैं बज्जरी बाँधा दशौ दु�ार छ�ा ,और के घालों तो पलE हनुमंत �ीर उसी को मारे,पहली चौकी ग*पती,दू9ी चौकी हनुमंत,ती9ी चौकी में भैरों,चौथी चौकी देत रक्षा करन को आ�ें yी नरचिस�ह दे� 9ी, श�द साँचा,विपण्ड काँचा,चले मन्त्र ईश्वरो �ाचा. .. ................ नाराय*ास्त्रम् ।। हरिरः ॐ नमो भग�ते yीनाराय*ाय नमो नाराय*ाय वि�श्वम!त"ये नमः yी पुरुषोत्तमाय पुष्पदृधिष्ट� प्रत्यकं्ष �ा परोकं्ष अ9ी*¹ पञ्चवि�ष!शिचकां हन हन ऐकाविहकं द्वयाविहकं त्र्याविहकं चातुर्थिथ�कं ज्�रं नाशय नाशय चतुरशिशवित�ातानष्टादशकुष्ठान् अष्टादशक्षय रोगान् हन हन स�"दोषान् भं9य भं9य तत्स�¹ नाशय नाशय आकष"य आकष"य शत्र!न् शत्र!न् मारय मारय उच्चाEयोच्चाEय वि�दे्वषय वि�दे�े्षय स्तंभय स्तंभय विन�ारय विन�ारय वि�घ्नैह"न वि�घ्नैह"न दह दह मथ मथ वि�ध्�ंसय वि�ध्�ंसय चकं्र गृहीत्�ा शीघ्रमागच्छागच्छ चके्र* हत्�ा परवि�द्यां छेदय छेदय भेदय भेदय चतुःशीताविन वि�स्फोEय वि�स्फोEय अश"�ातश!लदृष्टिष्ट सप"चिस�हव्याघ्र विद्वपदचतुष्पद पद बाह्याजिन्दवि� भुव्यन्तरिरक्षे अन्येऽविप केशिचत् तान्दे्वषकान्स�ा"न् हन हन वि�दु्यन्मेघनदी प�"ताE�ीस�"0ान रावित्रटिदनपथचौरान् �शं कुरु कुरु हरिरः ॐ नमो भग�ते ह्रीं हंु फE् स्�ाहा oः oं oं oः नमः ।। ।। वि�धानम् ।। एषा वि�द्या महानाम्नी पुरा दत्ता मरुत्�ते । असुरास्थिञ्जत�ान्स�ा"ञ्च्छ क्रस्तु बलदान�ान् ।। १।। यः पुमान्पoते भक्त्या �ैष्*�ो विनयतात्मना । तस्य स�ा"णि* शिसद्धयन्त्रिन्त यच्च दृष्टिष्टगतं वि�षम् ।। २।। अन्यदेहवि�षं चै� न देहे संक्रमेदध््रु�म् । संग्रामे धारयत्यङे्ग शत्र!न्�ै 9यते क्ष*ात् ।। ३।। अतः सद्यो 9यस्तस्य वि�घ्नस्तस्य न 9ायते । विकमत्र बहुनो4ेन स�"सौभाग्यसंपदः ।। ४।। लभते नात्र संदेहो नान्यथा तु भ�ेटिदवित । गृहीतो यटिद �ा येन बशिलना वि�वि�धैरविप ।। ५।। शपित� समुष्*तां यावित चोष्*ं शीतलतां व्र9ेत् । अन्यथां न भ�ेविद्वद्यां यः पoेत्कशिथतां मया ।। ६।। भ!9"पते्र शिलखेन्मंत्रं गोरोचन9लेन च । इमां वि�द्यां स्�के बद्धा स�"रक्षां करोतु मे ।। ७।। पुरुषस्याथ�ा स्त्री*ां हस्ते बद्धा वि�चेक्ष*ः । वि�द्र�ंवित विह वि�घ्नाश्च न भ�ंवित कदाचनः ।। ८।। न भयं तस्य कु�¹वित गगने भास्करादयः । भ!तपे्रतविपशाचाश्च ग्रामग्राही तु डाविकनी ।। ९।। शाविकनीषु महाघोरा �ेतालाश्च महाबलाः । राक्षसाश्च महारौद्रा दान�ा बशिलनो विह ये ।। १०।। असुराश्च सुराशै्च� अष्टयोविनश्च दे�ता । स�"त्र स्तल्किम्भता वितषे्ठन्मन्त्रोच्चार*मात्रतः ।। ११।। स�"हत्याः प्र*श्यंवित स�" फलाविन विनत्यशः । स�· रोगा वि�नश्यंवित वि�घ्नस्तस्य न बाधते ।। १२।। उच्चाEनेऽपराहे्ण तु संध्यायां मार*े तथा । शान्त्रिन्तके चाध"राते्र तु ततोऽथ"ः स�"काष्टिमकः ।। १३।। इदं मन्त्ररहस्यं च नाराय*ास्त्रमे� च । वित्रकालं 9पते विनत्यं 9यं प्राप्नोवित मान�ः ।। १४।। आयुरारोग्यमैश्वय¹ ज्ञानं वि�द्यां पराक्रमः । चिच�वितताथ" सुखप्राप्तिप्त� लभते नात्र संशयः ।। १५।। ।। इवित नाराय*ास्त्रम् ।।…………. ............. भवि�ष्य अपने आप में कई रहस्य समेEे हुए हैं | यही �9ह हैं विक हम सब अपने भवि�ष्य के बारे 9ानने के शिलय उत्सुक हैं || सभी समस्या का समाधान �ैटिदक वि�ष्टिधयों द्वारा समस्याओं का समाधान... 9न्म कंुडली के द्वारा , वि�द्या, कारोबार, वि��ाह, संतान सुख, वि�देश-यात्रा, लाभ-हाविन, गृह-क्लेश , गुप्त- शत्रु , क9" से मुशि4, सामाजि9क, आर्थिथ�क, रा9विनवितक .व्यापार नौकरी. प्यार 9ी�न साथी.धन लाभ. आर्थिथ�क संपन्नता.संतान की चिच�ता.शिशक्षा, .पारिर�ारिरक अशांवित. और के बारे में. क्या अच्छा होगा ,क्या बुरा होगा होगा ,मेरा अच्छा समय कब आएगा अन्य व्यशि4गत समस्या है यह 9ानना सबके शिलए काफी रोचक होता हैं इन प्रश्नों के उत्तर 9न्म कंुडली से आसानी टिदए 9ा सकते || 9ानने के शिलए सम्पक" करे० yीराम ज्योवितष सदन. पब्दिन्डत आशु बहुगु*ा …….आपकी कोई ज्योवितष संबंष्टिधत है समस्या तो आप अपनी 9ानकारी विनम्न प्रारूप सभी हमारे ईमेल... shriramjyotishsadan16gmail.com... पर भे9े. यथा संभ� पिह�दी में 9ानकारी भे9ने का कष्ट करे..धन्य�ाद.. नोE:-- ये मेरा शोख नही हैं कृप्या आप मु4 से�ा के शिलए कष्ट ना दे... हमसे ...आप .Mob.9411813740..Mob.9760924411. इसी नंबर पर संपक" करें... ............... मनुष्य के 9ी�न में आए टिदन परेशाविनयां आती रहती है। यटिद कुछ साधार* तांवित्रक प्रयोग विकए 9ाए ंतो �ह समस्याए ंशीघ्र ही समाप्त भी हो 9ाती हैं। तांवित्रक प्रयोग में एक ऐसे पत्थर का उपयोग विकया 9ाता है 9ो टिदखने में साधार* होता है लेविकन आश्चय"9नक तरीके से अपना प्रभा� टिदखाता है। उस पत्थर का नाम है गोमती चक्र। गोमती चक्र कम कीमत �ाला

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एक ऐसा पत्थर है 9ो गोमती नदी में ष्टिमलता है। वि�णिभन्न तांवित्रक कायZ तथा असाध...ै्य रोगों में इसका प्रयोग होता है। इसका तांवित्रक उपयोग बहुत ही सरल होता है। 9ैसे-

1- पवित-पत्नी में मतभेद हो तो तीन गोमती चक्र लेकर घर के दणिक्ष* में हल!ं बल9ाद कहकर फें द दें, मतभेद समाप्त हो 9ाएगा।

2- पुत्र प्रान्त्रिप्त के शिलए पांच गोमती चक्र लेकर विकसी नदी या तालाब में विहशिल विहशिल ष्टिमशिल ष्टिमशिल शिचशिल शिचशिल हुक पांच बोलकर वि�सर्जि9�त करें, पुत्र प्रान्त्रिप्त की संभा�नाए ंबढ़ 9ाती हैं।

3- यटिद बार-बार गभ" विगर रहा हो तो दो गोमती चक्र लाल कपडे़ में बांधकर कमर में बांध दें तो गभ" विगरना बंद हो 9ाता है।

4- यटिद कोई कचहरी 9ाते समय घर के बाहर गोमती चक्र रखकर उस पर दाविहना पां� रखकर 9ाए तो उस टिदन कोE"-कचहरी में सफलता प्राप्त होती है।

5- यटिद शतु्र बढ़ गए हों तो जि9तने अक्षर का शतु्र का नाम है उतने गोमती चक्र लेकर उस पर शत्रु का नाम शिलखकर उन्हें 9मीन में गाड़ दें तो शतु्र परास्त हो 9ाएगें ............ त"मान समय में बेरो9गारी एक बहुत बड़ी समस्या है। नौकरी न होने के कार* न तो समा9 में मान-सम्मान ष्टिमलता है और न ही घर-परिर�ार में। यटिद आप भी बेरो9गार हैं और बहुत प्रयत्न करने पर भी रो9गार नहीं ष्टिमल रहा है तो विनराश होने की कोई 9रुरत नहीं है। नीचे शिलखे साधार* उपाय कर आप कुछ ही टिदनों में रो9गार पा सकते हैं।

उपाय

यह उपाय सोम�ार से प्रारंभ करना है। सोम�ार के टिदन सुबह 9nदी उoकर स्नान आटिद विनत्य कम" करने... के बाद पास ही स्थि0त विकसी शिश� मंटिदर में नंगे पैर 9ाए ंऔर शिश�9ी को विबn�पत्र तथा 9ल अर्तिप�त करें। आते-9ाते समय कहीं रुके नहीं तथा माग" में ऊँ नम: शिश�ाय: मंत्र का 9प करते रहें। ऐसा लगातार 21 टिदनों तक करें। 9ब आप कहीं इंEरव्य! देने 9ाए ंतो उसके पहले लाल चंदन की माला से नीचे शिलखे मंत्र का ११ बार 9प करें-

मंत्र- ऊँ �क्रतुण्डाय हुं

मंत्र 9प के बाद इंEरव्य! देने 9ाए।ं अ�श्य ही आपकी मनोकामना प!री होगी।

प्रस्तुतकता" Pandit AshuBahuguna ...............................................................................पेड़-पौधों के EोEके हमारे आसपास पाए 9ाने �ाले वि�णिभन्न पेड़-पौधों के पत्तों, फलों आटिद का EोEकों के रूप में उपयोग भी हमारी सुख-समृजिद्ध की �ृजिद्ध में सहायक हो सकता है। यहां कुछ ऐसे ही सह9 और सरल उपायों का उnलेख प्रस्तुत है, जि9न्हें अपना कर पाoकग* लाभ उoा सकते हैं। वि�n� पत्र : अणिश्वनी नक्षत्र �ाले टिदन एक रंग �ाली गाय के दूध में बेल के पत्ते डालकर �ह दूघ विनःसंतान स्त्री को विपलाने से उसे संतान की प्रान्त्रिप्त होती है। अपामाग" की 9ड़ : अणिश्वनी नक्षत्र में अपामाग" की 9ड़ लाकर इसे ता�ी9 में रखकर विकसी सभा में 9ाएं, सभा के लोग �शीभ!त होंगे। नागर बेल का पत्ता : यटिद घर में विकसी �स्तु की चोरी हो गई हो, तो भर*ी नक्षत्र में नागर बेल का पत्ता लाकर उस पर कत्था लगाकर � सुपारी डालकर चोरी �ाले 0ान पर रखें, चोरी की गई �स्तु का पला चला 9ाएगा। संखाहुली की 9ड़ : भर*ी नक्षत्र में संखाहुली की 9ड़ लाकर ता�ी9 में पहनें तो वि�परीत चिल�ग �ाले प्रा*ी आपसे प्रभावि�त

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होंगे। आक की 9ड़ : कोE" कचहरी के मामलों में वि�9य हेतु आद्रा" नक्षत्र में आक की 9ड़ लाकर ता�ी9 की तरह गले में बांधें। दूधी की 9ड़ : सुख की प्रान्त्रिप्त के शिलए पुन�"सु नक्षत्र में दूधी की 9ड़ लाकर शरीर में लगाए।ं शंख पुष्पी : पुष्य नक्षत्र में शंखपुष्पी लाकर चांदी की विडवि�या में रखकर वित9ोरी में रखें, धन की �ृजिद्ध होगी। बरगद का पत्ता : अश्लेषा नक्षत्र में बरगद का पत्ता लाकर अन्न भंडार में रखें, भंडार भरा रहेगा। धत!रे की 9ड़ : अश्लेषा नक्षत्र में धत!रे की 9ड़ लाकर घर में रखें, घर में सप" नहीं आएगा और आएगा भी तो कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा। बेहडे़ का पत्ता : प!�ा" फाnगुनी नक्षत्र में बेहडे़ का पत्ता लाकर घर में रखें, घर ऊपरी ह�ाओं के प्रभा� से मु4 रहेगा। नीब! की 9ड़ : उत्तरा फाnगुनी नक्षत्र में नीब! की 9ड़ लाकर उसे गाय के दूध में ष्टिमलाकर विनःसंतान स्त्री को विपलाए,ं उसे पुत्र की प्रान्त्रिप्त होगी। चंपा की 9ड़ : हस्त नक्षत्र में चंपा की 9ड़ लाकर बच्चे के गले में बांधें, बच्चे की पे्रत बाधा तथा न9र दोष से रक्षा होगी। चमेली की 9ड़ : अनुराधा नक्षत्र में चमेली की 9ड़ गले में बांधें, शत्रु भी ष्टिमत्र हो 9ाएगंे। काले एरंड की 9ड़ : y�* नक्षत्र में एरंड की 9ड़ लाकर विनःसंतान स्त्री के गले में बांधें, उसे संतान की प्रान्त्रिप्त होगी। तुलसी की 9ड़ : प!�ा" भाद्रपद नक्षत्र में तुलसी की 9ड़ लाकर मल्किस्तष्क पर रखें, अब्दिग्नभय से मुशि4 ष्टिमलेगी।..............................................चमत्कारी तांवित्रक EोEको से करें भाग्य �ृजिद्ध: ................ तांवित्रक EोEकों में काम आने �ाली ची9ों में शिसयार चिस�गी, हत्था 9ोड़ी, काले घोडे़ की नाल और शे्वताक" का अपना अलग ही महत्� है क्योंविक इनके वि�णिभन्न प्रयोगों से चमत्कार घटिEत होते हैं। ऐसे ही कुछ उपायों की 9ानकारी भाग्य में चमत्कार उत्पन्न कर सकती है। लाभ की सीमा अनुभ� करके 9ानी 9ा सकती है। तंत्र का EोEका-साधना भौवितक �स्तुओ पर आधारिरत होता है। वि�णिभन्न प्रकार की चमत्कारी �नस्पवितयों ए�ं प्रकृवित की अनोखी �स्तुओ का वि�ष्टिध-वि�द्गोष के साथ प्रयोग ही व्य�ाहारिरक तंत्र का आधार है। तंत्र-EोEका के�ल तन को सुख देने �ाला होता है। साधना- विक्रया मे मंत्र की भी आ�द्गयकता होती है। पर जि9स प्रकार प्रा*-धार* के शिलए शरीर आ�द्गयक है उसी प्रकार तंत्रEोEका मे अदुभुत दुल"भ �स्तुओं की परम आ�द्गयकता होती है। यहां अनुभ� शिसद्व तांवित्रक EोEका �स्तुओ की प!*" 9ानकारी के शिलये तांवित्रक प्रयोग के बारे में वि�शेष सतक" ता आ�श्यक है। आ9कल बा9ारों में नकली शिसयारचिस�गी � हत्था9ोडी अष्टिधक ष्टिमलती है अतः इनसे �ांस्थिच्छत प्रभा� नही की 9ा सकती। प्रामाणि*क असली �स्तु परीक्ष* कर सा�धानी प!�"क खरीदकर लाभ प्राप्त करें। उससे सफलता अ�द्गय ष्टिमलती है। असली सामग्री शिसद्ध होकर साधक का सभी काय" प!*" करती है ! 1-चिस�यार चिस�गीः-यह पद्गाु तंत्र शास्त्र की अम!nय विनष्टिध है इसको गीदडचिस�गी भी कहते है। �न्य-पद्गाुओं में नरशिसयार के शिसर पर एक प्रकार की गांo होती हैं उसे ही चिस�यार चिस�गी कहा 9ाता है। शिसयारचिस�गी की गाoें तंत्र शास्त्र में अदुभुत शशि4 सम्पन्न बतायी गई है। चिस�यारशिसगी में सुरक्षा, सम्मोहन, �ंद्गाीकर*, सम्पवित �द्ध"न की टिदव्य-शशि4 होती हैं। इसे विकसी वि�द्ग�सनीय तापित्र�क से ही प्राप्त कर विनम्न मंत्र द्वारा 'शिसद्व कुरू-कुरू नमः' मंत्र से शुभ मुहुत" में एक आक के पते पर रखना चाविहए। प!�" में मुख करके चिस�यार चिस�गी को रखना चाविहए। साधक 108 बार एक रूद्राक्ष माला से 11 टिदन तक फ!ं क मारे। आक-पत्र को रो9ाना बदलना चाविहए। ऐसा करने पर शिसयारचिस�गी शिसद्व होगी। शिसद्व होने पर इसे चांदी या स्Eील की विड�बी के अन्दर रखना चाविहए, साथ मे चिस�दूर, लौंग � इलायची रखनी चाविहए। जि9स के पास गीदड चिस�गी होती है उसे आने �ाली दुघ"Eना या शुभ घEना की सत्य स!चना स्�प्न में प्राप्त हो 9ाती है। ऐसे व्यशि4 के घर में सदैं� लक्ष्मी का �ास रहता हैं, उसके नाम की वि�9य पताका फहराती हैं तथा कोई संकE भी उसे छ! नही सकता। चिस�यारचिस�गी के अन्य तंत्र-EोEकेः 1. �ंद्गाीकर* प्रयोगः 'क्क नमः नर-मादा चिस�यारशिसगायः अमुक मम �द्गय कुरू-कुरू स्�ाहाः। जि9स स्त्री पुरूष को अपने �द्गा में करना हो तब अमुक के 0ान पर इस्थिच्छत व्यशि4 का नाम आक के पते पर शिलखकर चिस�यारशिसगी को उसके ऊपर रखे। उपरो4 मंत्र का 9ाप 108 बार कर के फ!ं क मारें। मंत्र 9ाप के समय अमुक के 0ान पर नाम का प्रयोग अ�द्गय करें। शिसयारचिस�गी को विड�बी में बन्द करके लौंगइलायची के साथ रखें। दूसरे टिदन सामने �ाले व्यशि4 को विड�बी में रखी लौंग इलायची ब्दिखला टिदया 9ाय तो �ह व्यशि4 चाहे �ह स्त्री हो या पुरुष या सरकारी अष्टिधकारी, या विकतनी ही कoोर हृदय �ाली स्त्री, प!*"रूप से आपके �श में होगा। यह चमत्कारी प्रयोग पवित-पत्नी पर, गृह क्लेद्गा से परेद्गाान परिर�ार पर कर के लाभ उoायें, तलाक ए�ं आत्म हत्या 9ैसी समस्याओं का गारण्Eी से इला9 संभ� है। योग्य व्यशि4 साक्षात्कार ए�ं प्रवितयोविगता में भी प्रयोग करके उशिचत लाभ प्राप्त कर सकता हैं। 2 धन�ृविद्व के शिलएः-क्क

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नमः नर-मादा चिस�यारशिसगाय मम् घर धन �षा" कुरू-कुरू स्�ाहाः' इस मंत्र का प्रयोग ऋ*-मुशि4 ए�ं धन �ृजिद्ध करने में सक्षम होता है। प!9ा 0ल पर विड�बी का ढक्कन खोल कर आक के पते पर अपना नाम शिलखकर रखें। दीपा�ली की रावित्र को 9ब तक नीदं आये तब तक उपरो4 मंत्र का एक रूद्राक्ष माला से दणिक्ष*ा�त| शंख के सामने 9ाप कर फ!ं क मारें, ऐसा करने से लक्ष्मी की अपार कृपा होगी। साधक के घर धन�षा" होने लगेगी, व्यापार 0ल पर रखने पर बन्द व्यापार भी चलने लग 9ाता है। 0ाई लक्ष्मी की चमत्कारी कृपा बनी रहती है। यह प्रयोग सभी साधक कर सकते है। रवि�-पुष्य, गुरु-पुष्य नक्षत्र योग में भी यह प्रयोग सम्पन्न विकया 9ा सकता है। 3-द्गारीर सुरक्षा के शिलएः-नमः शिसयांरशिसगाय मम् स्�रक्षा कुरू-कुरू स्�ाहा इस मंत्र की साधना साधक को अपनी सुरक्षा हेतु करनी चाविहए। 9ंगल में विकसी एकान्त 0ान पर 9ाकर उतरामुखी बैoकर 108 बार ध!प-दीपक के साथ शिसयारचिस�गी को अणिभमंवित्रत करे शत्रु ए�ं भुत-पे्रत भय, एक्सीडेन्E और असाध्य रोग से सुरक्षा बनी रहती है। साधक की दीघा"यु होकर हमेद्गाा सुखी 9ी�न बना रहता है। यह शरीर के सुरक्षा क�च का काम करती है। उच्चाEन ए�ं तांवित्रक विक्रयाओं का प्रकोप नही होता हैं, साधक को अनायास भय से तुरन्त मुशि4 ष्टिमलती है। यह प्रयोग स्त्री या पुरूष कोई भी साधक कर सकता है। 4-जि9न स्त्रिस्त्रयों के पवित कुसंगवित के कार* विकसी गलत स्त्री की चंुगल में फंस गये हो तो नर-मादा चिस�यारशिसगी के साथ �ालें शिसन्दूर से मांग भरे ए�ं माशिसक धम" के समय पत्नी रात को पवित के बाल काE कर 9लाकर भस्म को चिस�दूर के साथ केले के रस मे वितलक करे तो सब oीक हो 9ायेगा, नारी की कुसंगवित उसी टिदन से छ! E 9ायेगी 5. अगर स्त्री अपनी माह�ारी का र4 ए�ं शिसद्ध चिस�यारशिसगी के साथ के चिस�दूर को ष्टिमलाकर पवित को Eीका लगा दे, तो पवित विनटिद्गचत रूप से �द्गा मे रहता है। यह प्रयोग अन्य स्त्री-पुरुष भी कर सकते हैं 2. हत्था 9ोडीः तंत्र वि�द्या में हत्था9ोडी अपना महत्�प!*" 0ान रखती है। �ास्त� में यह एक पौधे की 9ड है। परन्तु अपनी अदभुत रूपाकृवित और वि�शिचत्र संरचना के कार* साधको के मन को मोह लेती है। इसके विनमा"* में बारीकी के साथ सौंदय" का प!*" समा�ेद्गा है। यह �स्तु �नस्पवित yे*ी में आती है। इसकी उत्पवित भारत, ईरान, इराक, फ्रांस, ै्9म"नी, पाविकस्तान, एटिद्गाया महाद्वीप में सभी 9गह होती है। �नस्पवित होने के कार* यह औषधीय गु*ो मे प्रभा�कारी मानी गई है। परन्तु तांवित्रको द्धारा बहुत मान्यता प्राप्त तंत्र है। तंत्र शास्त्र में इसके अनेक अद्भतु् प्रयोग �र्णि*�त है हत्था9ोडी तंत्र 9गत की शीघ्ै्रा प्रभा�ी चमत्कारी वि�शिचत्र �स्तु है। जि9स व्यशि4 के पास असली शिसद्ध हाथा9ोडी होती है उसके भाग्य को चमका देती है। उसके ब्दिखलाफ कोई भी व्यशि4 कुछ नही कर पाता है। कोE" के मुकदमे में वि�9य प्रान्त्रिप्त तथा शतु्र को �शीभ!त करने में कमाल टिदखाती है। इसे पास रखने से रा9ा � अष्टिधकारी भी �ंद्गाीभ!त हो 9ाते हैं। हाथा9ोडी को स्Eील की विड�बी में लौंग, इलायची � शिसन्दूर के साथ ही रखना चाविहए। असली प्रमाणि*क हाथा9ोडी प्राप्त कर प्रयोग करके लाभ उoा�ें। यटिद विकसी का बच्चा रोता अष्टिधक है ए�ं 9nदी-9nदी बीमार हो 9ाता है तो शाम के समय, हत्था9ोडी के साथ रखे लौंग-इलायची को लेकर ध!प देना चाविहए। यह शविन�ार के टिदन अष्टिधक लाभ देता है। हत्था9ोडी के तांवित्रक EोEका प्रयोग 1-क्क हत्था9ोडी मम् स�" काय" शिसद्ध कुरू-कुरू स्�ाहाः' मंत्र से पीपल के पते पर अपना नाम शिलखकर हत्था9ोड़ी को पत्ते पर रखें। रुद्राक्ष - माला से रो9ाना तीन माला पांच टिदन तक 9ाप करें। इसे शिसद्ध-अणिभमंवित्रत होने पर प!9ा-0ल पर रखें। साधक के सभी काय" करने हेतु 9ागृत हो 9ाती है। 2. �द्गाीकर* के शिलएः-क्क हत्था9ोड़ी अमुक मम् �द्गय कुरू-कुरू स्�ाहाः' शे्वत आक के पते पर सामने �ाले व्यशि4 का नाम शिलख कर हत्था9ोड़ी को विड�बी से विनकाल कर पते पर रखना चाविहए। विफर उपरो4 मंत्र 108 बार स्फटिEक माला से 9प कर फ!ं क मारें तथा उसी टिदन �द्गाीकर* प्रयोग करने �ाले व्यशि4 के पास 9ाना चाविहए ए�ं अपने काम की बात करनी चाविहए। विनद्गचय ही काय" सफल होगा, साघक के कहे अनुसार काय" करेगा। 3-कन्या के शीध्र वि��ाह हेतुः-क्क नमः हत्था9ोडी मम् वि��ाह वि�लंब पतन कुरू-कुरू स्�ाहाः' हर सोम�ार को इस मंत्र के 9ाप से कन्या का वि��ाह शीध्र हो 9ाता है। इसके अला�ा कन्या गायत्री मंत्र भी शिसद्धकर सकती है। इसमें माता 9ी का �ास होता है। आ9 कल तो माता-विपता अपनी कन्याओं को कार-बंगले की 9गह हाथा9ोडी दहे9 में देते हैं जि9ससे पवित � सास �द्गा में रहती हैं परिर�ारिरक गृह क्लेद्गा भी नही होता हैं। दापत्य9ी�न सफलताप!�"क सम्पन्न होता है, तलाक � आत्महत्या 9ैसे महापापो से भी मुशि4 ष्टिमलती है। 4-9ी�न में सफलता हेतुः-क्क ऐं हीं क्ली चामुण्डायै वि�च्चे इस मंत्र द्वारा शिसद्ध की गई हाथा9ोडी 9ी�न के वि�णिभन्न के्षत्रो में साधक को सफलता प्रदान करती है। जि9स घर में

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वि�ष्टिध�त शिसद्ध की गई असली हाथा9ोडी की प!9ा होती है, �ह साघक सभी प्रकार से सुरणिक्षत और yी सम्पन्न रहता है। इसका प्रभा� अच!क होता है। इसका प्रयोग कोई भी साधक स्त्री-पुरूष कर सकता है। यह जि9सके पास भी होगी �ह व्यशि4 अ�श्य ही अद्भतू रूप से प्रभा�द्गााली होगा। उसमे सम्मोहन, �शीकर*, सुरक्षा और सम्पणित्त�द्ध"न की चमत्कारी शशि4 आ 9ाती है। यात्रा, वि��ाद, प्रवितयोविगता, साक्षात्कार, युÚद्ध क्षेत्र आटिद मे साघक की रक्षा करके उसे वि�9य प्रदान करती है। भ!त-पे्रत, �ायव्य आत्माओं का कोई भय नही रहता है, धन सम्पवित देने मे बहुत चमत्कारिरक � प्रामाणि*क शिसद्ध हुई है। हत्था9ोडी के साथ चान्दी का शिसक्का या एक नेपाली रुपया रख देना चाविहए। दैविनक प!9न-दद्गा"न करना बहुत ही लाभकारी होता है। इसकी शशि4 को उतरोतर बढाने के शिलए नर-मादा चिस�यारशिसगी को सामने आक के पते पर रखकर उपरो4 मंत्र से ह�न करना चाविहए। होली, दीपा�ली ै्न�रात्र को मंत्र 9ाप से तीव्र �ंद्गाीकर* प्रयोग सम्पन्न विकये 9ा सकते हैं! 5-पवित को �द्गा में करने के शिलएः-स्त्री अपनी माह�ारी के र4 के साथ तीन-तीन लौंग � इलायची, ै्शिसयारशिसगीं की विड�बी से विनकाल कर भस्म बनायें। महा�ारी के र4 में ष्टिमलाकर पवित को Eीका लगाने से सब oीक हो 9ाता है। पवित दूसरी स्त्री का साथ छोड देता है, अपनी स्त्री को अष्टिघक प्यार करना शुरू कर देगा। यह प्रयोग गारण्Eी से लाभ देता है। 6-यटिद विकसी का बच्चा रोता अष्टिधक है ए�ं 9nदी-9nदी बीमार हो 9ाता है तो शाम के समय, हत्था9ोडी के साथ रखे लौंग-इलायची को लेकर ध!प देना चाविहए। यह शविन�ार के टिदन अष्टिधक लाभ देता है। 7-यटिद घर में लडाई-झगडा � क्लेद्गा अष्टिधक होता हैं तो शुक्ल पक्ष में परिर�ार में सभी सदस्यों के नाख!न काEकर हाथा9ोडी �ाले लोग-इलायची को नाख!न के साथ भ�न कें ब्रह्य0ान पर 9लाकर भस्म बनाकर सभी को Eीका लगायें ए�ं स्त्री मांग भरे तो परिर�ार मे सुख शान्त्रिन्त होती है ! 3-काले धोडे की नालः-द्गाविन�ार के टिदन काले घोडे की नाल को खुल�ा कर घर ले9ाने से प!�" विकसी चौराहे पर तीन बार नाल से मारे, तत्पश्चात नाल को गंगा 9ल � कच्चे दूध से स्नान कराकर अगरबत्ती, ध!प � दीपक के साथ प!9न करना चाविहये। यह नाल पृर्थ्य�ी तत्� से भरप!र होती है क्योविक अद्ग� 9ब दोड लगाता है तब बार-बार नाल पृर्थ्य�ी पर Eकराने के कार* सकारात्मक उ9ा" एकवित्रत कर पृर्थ्य�ी का गुरुत्�ाकष"* बल ए�ं घष"* के कार* चुम्बकीय प्र�ाह के रुप मे काम करती है। शुद्ध-प्रामाणि*क नाल प्राप्त कर तांवित्रक प्रयोग करें तो सफलता ष्टिमलती है।................सुखी दांपत्य 9ी�न हेतु यटिद आपके दांपत्य सुख में कमी है, आपको शतु्र परेशान कर रहे हैं, कारोबार में हमेशा उoा-पEक लगी रहती हो घर में धन की कमी रहती हो या आप शारीरिरक रोगों से ग्रस्त है तो हर रो9 तुलसी के पौधे में 9ल चढ़ाए।ं ऊँ नमो भग�ते �ासुदे�ाय नम:मंत्र का 9ाप करें।೦೦೦೦೦೦೦೦೦೦೦೦೦೦೦೦೦೦೦೦೦೦೦೦೦ ೦೦೦೦೦೦೦೦EोEकों द्वारा चमत्कार:- मानशिसक, आर्थिथ�क ए�ं शारीरिरक कष्टों का विन�ार* EोEके 9ैसे उपायों से हो सकता है लेविकन उसके शिलए मन में वि�श्वास की प!*" शशि4 होनी चाविहए तभी मनका चाहा अ�श्य में ष्टिमलता है क्योंविक वि�श्वास ही फलदायक होता है। ऐसे ही कुछ EोEकों की 9ानकारी प्रस्तुत है इस लेख मेंकृ आर्थिथ�क समृजिद्ध के शिलए :- बहुत समय से आर्थिथ�क स्थि0वित खराब चल रही हो तो 5 �ीर�ार महालक्ष्मी की yृंगार सामग्री मंटिदर में पु9ारिरन को दान में दें। लेविकन दी हुई सामग्री दुबारा उस पु9ारिरन को न दें। इससे आपका व्यापार या आय का साधन सुधरता 9ायेगा। धीरे-धीरे आप महस!स करेंगे। मेहनत करने पर भी आय के पया"प्त साधन नहीं 9ुEा पाने की स्थि0वित में 9 �ीर�ार केसर �ाले ष्टिमoे चा�ल गरीब या म9दूरी करने �ाले म9दूरों को बांEें, 3 �ीर�ार के बाद आपकी मेहनत आपको अच्छा फल देने लगेगी। इस उपाय को आप 45 टिदनों के बाद दोबारा कर सकते हैं, परन्तु साल में 1 या दो बार ही कर सकते हैं। आर्थिथ�क संपन्नता ए�ं घर में अन्न की बरकत बनाये रखने के शिलए गेहूं को विपस�ाते �4 उसमें केसर की पणित्तयां ए�ं तुलसी दल ष्टिमलाकर विपसा लें और उस आEे की बनी हुई रोEी घर में खाने से अन्न और धन की कभी कमी नहीं रहती। न9र के शिलए :-यटिद आप को ए�ं आपके व्य�साय को बार बार विकसी की न9र लग रही हो तो सेंधा नमक शुक्र�ार को पानी में णिभगोकर रात को रखें और शविन�ार को सुबह अपने व्या�साष्टियक 0ल पर उस पानी का पौंछा लग�ायें। 21 शविन�ार लगातार करने से बुरी न9र से बचा 9ा सकता है और 9ातक खुद रात को विफEकरी से दांत साफ करके सोए।ं इस उपाय से न9र दोष से बचा 9ा सकता है। बुरी न9र से बचने के शिलए तांबे का 9 ग 9 ए�ं स�ा इंच मोEा स्�ाल्किस्तक बनाकर मेन गेE पर लगाने से बुरी न9र �ाले लोगों से बचा 9ा सकता है। बुरी न9र का 9ातक पर यटिद बहुत ज्यादा प्रभा� हो रहा

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हो तो उस 9ातक को गले में गोमती चक्र चांदी के अंदर बनाकर धार* कर लेना चाविहए। पन्ना नग धार* करने से भी बुरी आत्माओं ए�ं न9र से बचा 9ा सकता है। क9" मुशि4 के उपाय : बार-बार क9" उतारने के बाद यटिद कोई 9ातक विफर से क9" से यु4 हो 9ाता है तो उस 9ातक को अपने आस-पास के धम" 0ान में घर से नंगे पैर 9ाकर परमात्मा से माफी मांगनी चाविहए ए�ं शिश�9ी पर गन्ने का 9!स चढ़ाते हुए क्क नमो शिश�ाय मंत्र का 9ाप करें। लगातार 108 टिदन करने से धीरे धीरे 9ातक क9" से मु4 हो 9ाएगा। विकसी हनुमान मंटिदर में शविन�ार की रावित्र के समय 9हां पीपल का �ृक्ष हो, आEे का चौमुखी दीपक सरसों का तेल डालकर पीपल के नीचे 9लाए ंऔर हनुमान म!र्तित� की तरफ मुंह करके 11 हनुमान चालीसा का पाo करें। 21 शविन�ार लगातार yद्ध ैाप!�"क करने से व्य�साय की उन्नवित होगी ए�ं क9" से मुशि4 ष्टिमलेगी। रोग मुशि4 के शिलए : बार बार द�ा लेने पर भी विकसी 9ातक का रोग दूर न हो रहा हो तो उस 9ातक को रात के 9 ब9े स�ा विकलो कच्चा दूध लेकर शिश�चिल�ग पर पतली धार में 'क्क नमः शिश�ाय' मंत्र का 9ाप करते हुए चढ़ाना चाविहए। यह ध्यान रहे विक �ह दूध शिश�चिल�ग की 9लेरी से होते हुए �ाविपस विकसी बत"न में ही आए।ं उस दूध को विकसी काले रंग के सांड को विपलाए।ं 45 टिदन लगातार ऐसा करने से 9ातक को द�ा लगने लगेगी और रोग से मुशि4 प्राप्त होगी। ...............मनो�ांशिछत yेष्ठ �र-प्रान्त्रिप्त प्रयोग १॰ भग�ती सीता ने गौरी की उपासना विनम्न मन्त्र द्वारा की थी, जि9सके फलस्�रुप उनका वि��ाह भग�ान् yीराम से हुआ। अतः कुमारी कन्याओं को मनो�ास्थिञ्छत �र पाने के शिलये इसका पाo करना चाविहए। “ॐ yीदुगा"यै स�"-वि�घ्न-वि�नाशिशन्यै नमः स्�ाहा। स�"-मङ्गल-मङ्गnये, स�"-काम-प्रदे देवि�, देविह मे �ास्थिञ्छतं विनत्यं, नमस्ते शंकर-विप्रये।। दुग· शिश�ेऽभये माये, नारायणि* सनातविन, 9पे मे मङ्गले देविह, नमस्ते स�"-मङ्गले।।” वि�ष्टिध- प्रवितटिदन माँ गौरी का स्मर*-प!9न कर ११ पाo करे। २॰ कन्याओं के वि��ाहाथ" अनुभ!त प्रयोग इसका प्रयोग द्वापर में गोविपयों ने yीकृष्* को पवित-रुप में प्राप्त करने के शिलए विकया था। ‘नन्द-गोप-सुतं देवि�’ पद को आ�श्यकतानुसार परिर�र्तित�त विकया 9ा सकता है, 9ैसे- ‘अमुक-सुतं अमुकं देवि�’। “कात्यायविन महा-माये महा-योविगन्यधीश्वरिर। नन्द-गोप-सुतं देवि�, पपित� मे कुरु ते नमः।” वि�ष्टिध- भग�ती कात्यायनी का पञ्चोपचार (१ गन्ध-अक्षत २ पुष्प ३ ध!प ४ दीप ५ नै�ेद्य) से प!9न करके उपयु"4 मन्त्र का १०,००० (दस ह9ार) 9प तथा दशांश ह�न, तप"* तथा कन्या भो9न कराने से कुमारिरयाँ इस्थिच्छत �र प्राप्त कर सकती है। ३॰. लड़की के शीघ्र वि��ाह के शिलए ७० ग्राम चने की दाल, ७० से॰मी॰ पीला �स्त्र, ७ पीले रंग में रंगा शिसक्का, ७ सुपारी पीला रंग में रंगी, ७ गुड़ की डली, ७ पीले फ! ल, ७ हnदी गांo, ७ पीला 9नेऊ- इन सबको पीले �स्त्र में बांधकर वि��ाहेचु्छ 9ावितका घर के विकसी सुरणिक्षत 0ान में गुरु�ार प्रातः स्नान करके इष्टदे� का ध्यान करके तथा मनोकामना कहकर पोEली को ऐसे 0ान पर रखें 9हाँ विकसी की दृष्टिष्ट न पडे़। यह पोEली ९० टिदन तक रखें। ४॰ yेष्ठ �र की प्रान्त्रिप्त के शिलए बालकाण्ड का पाo करे। ५॰ विकसी स्त्री 9ावितका को अगर विकसी कार*�श वि��ाह में वि�लम्ब हो रहा हो, तो yा�* कृष्* सोम�ार से या न�रात्री में गौरी-प!9न करके विनम्न मन्त्र का २१००० 9प करना चाविहए- “हे गौरिर शंकराधा¹विग यथा त्�ं शंकर विप्रया। तथा मां कुरु कnया*ी कान्त कान्तां सुदुल"भाम।।” ६॰ “ॐ गौरी आ�े शिश� 9ी व्याह�े (अपना नाम) को वि��ाह तुरन्त शिसद्ध करे, देर न करै, देर होय तो शिश� 9ी का वित्रश!ल पडे़। गुरु गोरखनाथ की दुहाई।।” उ4 मन्त्र की ११ टिदन तक लगातार १ माला रो9 9प करें। दीपक और ध!प 9लाकर ११�ें टिदन एक ष्टिमट्टी के कुnहड़ का मुंह लाल कपडे़ में बांध दें। उस कुnहड़ पर बाहर की तरफ ७ रोली की पिब�दी बनाकर अपने आगे रखें और ऊपर टिदये गये मन्त्र की ५ माला 9प करें। चुपचाप कुnहड़ को रात के समय विकसी चौराहे पर रख आ�ें। पीछे मुड़कर न देखें। सारी रुका�E दूर होकर शीघ्र वि��ाह हो 9ाता है। ७॰ जि9स लड़की के वि��ाह में बाधा हो उसे मकान के �ायव्य टिदशा में सोना चाविहए। ८॰ लड़की के विपता 9ब 9ब लड़के �ाले के यहाँ वि��ाह �ाता" के शिलए 9ायें तो लड़की अपनी चोEी खुली रखे। 9ब तक विपता लौEकर घर न आ 9ाए तब तक चोEी नहीं बाँधनी चाविहए। ९॰ लड़की गुरु�ार को अपने तविकए के नीचे हnदी की गांo पीले �स्त्र में लपेE कर रखे। १०॰ पीपल की 9ड़ में लगातार १३ टिदन लड़की या लड़का 9ल चढ़ाए तो शादी की रुका�E दूर हो 9ाती है। ११॰ वि��ाह में अप्रत्याशिशत वि�लम्ब हो और 9ावितकाए ँअपने अहं के कार* अनेक यु�कों की स्�ीकृवित के बाद भी उन्हें अस्�ीकार करती रहें तो उसे विनम्न मन्त्र का १०८ बार 9प प्रत्येक टिदन विकसी शुभ मुहूत्त" से प्रारम्भ करके करना चाविहए। “शिसन्दूरपतं्र रजि9कामदेहं टिदव्याम्बरं शिसनु्धसमोविहतांगम् सान्ध्यारु*ं धनुः पंक9पुष्पबा*ं पंचायुधं भु�न मोहन

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मोक्ष*ाथ"म क्लैं मन्यथाम। महावि�ष्*ुस्�रुपाय महावि�ष्*ु पुत्राय महापुरुषाय पवितसुखं मे शीघ्रं देविह देविह।।” १२॰ विकसी भी लड़के या लड़की को वि��ाह में बाधा आ रही हो यो वि�घ्नहता" ग*ेश9ी की उपासना विकसी भी चतुथ| से प्रारम्भ करके अगले चतुथ| तक एक मास करना चाविहए। इसके शिलए स्फटिEक, पारद या पीतल से बने ग*ेश9ी की म!र्तित� प्रा*-प्रवितष्टिष्ठत, कांसा की थाली में पणिश्चमाणिभमुख 0ाविपत करके स्�यं प!�" की ओर मँुह करके 9ल, चन्दन, अक्षत, फ! ल, दू�ा", ध!प, दीप, नै�ेद्य से प!9ा करके १०८ बार “ॐ गं ग*ेशाय नमः” मन्त्र पढ़ते हुए ग*ेश 9ी पर १०८ दू�ा" चढ़ायें ए�ं नै�ेद्य में मोतीच!र के दो लड्डू चढ़ायें। प!9ा के बाद लड्डू बच्चों में बांE दें। यह प्रयोग एक मास करना चाविहए। ग*ेश9ी पर चढ़ये गये दू�ा" लड़की के विपता अपने 9ेब में दायीं तरफ लेकर लड़के के यहाँ वि��ाह �ाता" के शिलए 9ायें। १३॰ पवित-स्त�नम् नमः कान्ताय सद-्भत्र·, शिशरश्छत्र-स्�रुविप*े। नमो या�त् सौख्यदाय, स�"-से�-मयाय च।। नमो ब्रह्म-स्�रुपाय, सती-सत्योद-्भ�ाय च। नमस्याय प्रप!ज्याय, हृदाधाराय ते नमः।। सती-प्रा*-स्�रुपाय, सौभाग्य-yी-प्रदाय च। पत्नीनां परनानन्द-स्�रुविप*े च ते नमः।। पवितब्र"ह्मा पवितर्ति��ष्*ुः, पवितरे� महेश्वरः। पवित�¹श-धरो दे�ो, ब्रह्मात्मने च ते नमः।। क्षमस्� भग�न् दोषान्, ज्ञानाज्ञान-वि�धाविपतान्। पत्नी-बन्धो, दया-शिसन्धो दासी-दोषान् क्षमस्� �ै।। ।।फल-yुवित।। स्तोत्रष्टिमदं महालस्थिक्ष्म, स�·ल्किप्सत-फल-प्रदम्। पवितव्रतानां स�ा"सा*, स्तोत्रमेतचु्छभा�हम्।। नरो नारी yृ*ुयाच्चेnलभते स�"-�ास्थिञ्छतम्। अपुत्रा लभते पुतं्र, विनध"ना लभते ध्रु�म्।। रोविग*ी रोग-मु4ा स्यात्, पवित-हीना पपित� लभेत्। पवितव्रता पपित� स्तुत्�ा, तीथ"-स्नान-फलं लभेत्।। वि�ष्टिधः- १॰ पवितव्रता नारी प्रातः-काल उoकर, रावित्र के �स्त्रों को त्याग कर, प्रसन्नता-प!�"क उ4 स्तोत्र का पाo करे। विफर घर के सभी कामों से विनबE कर, स्नान कर शुद्ध �स्त्र धार* कर, भशि4-प!�"क पवित को सुगस्त्रिन्धत 9ल से स्नान करा कर शुक्ल �स्त्र पहना�े। विफर आसन पर उन्हें विबoाकर मस्तक पर चन्दन का वितलक लगाए, स�ा¹ग में गन्ध का लेप कर, कण्o में पुष्पों की माला पहनाए। तब ध!प-दीप अर्तिप�त कर, भो9न कराकर, ताम्ब!ल अर्तिप�त कर, पवित को yीकृष्* या yीशिश�-स्�रुप मानकर स्तोत्र का पाo करे। २॰ कुमारिरयाँ yीकृष्*, yीवि�ष्*ु, yीशिश� या अन्य विकन्हीं इष्ट-दे�ता का प!9न कर उ4 स्तोत्र के विनयष्टिमत पाo द्वारा मनो-�ास्थिञ्छत पवित पा सकती है। ३॰ प्र*य सम्बन्धों में माता-विपता या अन्य लोगों द्वारा बाधा डालने की स्थि0वित में उ4 स्तोत्र पाo कर कोई भी दुखी स्त्री अपनी कामना प!*" कर सकती है। ४॰ उ4 स्तोत्र का पाo के�ल स्त्रिस्त्रयों को करना चाविहए। पुरुषों को ‘वि�रह-ज्�र-वि�नाशक, ब्रह्म-शशि4-स्तोत्र’ का पाo करना चाविहए, जि9ससे पत्नी का सुख प्राप्त हो सकेगा।.....................स�" -मनोकामना प!र्तित� हेत! भैर� साबर मंत्र प्रयोग टिदन :- कृष्* पक्ष की अष्टमी से शुरु करे (७ टिदन की साधना है ) समय :- रावित्र (९;35) पर टिदशा :- दणिक्ष* आसन:- कम्बल का होना चाविहए प!9न सामग्री :- कनेर या गेंदे के फ! ल ,,बेसन के लड्डू ,,चिस�दूर ,,दो लौंग ,,चौमुखा तेल का दीपक,,ताम्बे की प्लेE ,,लोबान ,,गाय का कच्चा दूध ,,गंगा9ल ,, साधना सामग्री :- भैर� यन्त्र ,, साफnय माला या काले हकीक की माला मंत्र :-""ॐ ह्रीं बEुक भैर� ,बालक �ेश ,भग�ान �ेश ,सब आपत को काल ,भ4 9न हE को पाल ,कर धरे शिसर कपाल,दू9े कर�ाला वित्रशशि4 दे�ी को बाल ,भ4 9न मानस को भाल ,तैतीस कोटिE मंत्र का 9ाल ,प्रत्यक्ष बEुक भैर� 9ाविनए ,मेरी भशि4 गुरु की शशि4 ,फुरो मंत्र ईश्वरो �ाचा "" वि�ष्टिध :- स�" प्रथम गुरु प!9न कर के गुरुदे� से प्रयोग की आज्ञा ले ले ,,विफर अपनी मनोकामना एक काग9 में शिलख कर गुरु यन्त्र के नीचे रख दे ,,और मन ही मन गुरुदे� से साधना की सफलता के शिलए वि�नती करे ,, विफर ताम्बे की प्लेE में भैर� यन्त्र 0ाविपत करे उसे दूध से स्नान कराए ,,विफर गंगा9ल से स्नान कराकर यन्त्र को पोछ ले ,,इस के बाद यन्त्र में चिस�दूर से वितलक लगाये ,,और यन्त्र के सामने दो लौंग 0ाविपत करे,,और उस यन्त्र को लोबान का धुप दे ,,तेल का दीपक अपने बायीं ओर 9ला के रख ले ,,साधना काल तक दीपक अखंड 9लना चाविहए ,,विफर साफnय माला या काले हकीक की माला से विनम्न मंत्र का दो माला 9प करे,,यह प्रक्रम सात टिदन तक करना है ,,आo�े टिदन यन्त्र और माला को 9ल में प्र�ाविहत कर दे.................EोEके का प्रयोग EोEके का प्रयोग करते समय उसके अनुरुप मुहूत्त" का ध्यान अ�श्य रखना चाविहए, ताविक काय" की शिसजिद्ध विनर्ति��घ्न हो सके और करने में कोई बाधा या अड़चन न पडे़ । आकाश में स्थि0त ग्रह, नक्षत्र प्रवितक्ष* ब्रह्माण्ड के पया"�र* को बदलते रहते हैं और उनका प्रभा� 9ड़ � चेतन सभी पदाथZ पर अ�श्य ही पड़ता है । अतः साधना के सम्पादन में टिदन, समय, वितशिथ, नक्षत्र सभी का ध्यान रखना आ�श्यक है । लग्न* �ृष, धनु और मीन लग्न में विकसी भी प्रकार की साधना या अनुष्ठान नहीं करना चाविहए, क्योंविक

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इन लग्नों का प्रभा� साधक को विनराशा, असफलता, दुःख और अ�मानना देने �ाला होता है ।* ष्टिमथुन लग्न भी अनुष्ठान के शिलये प्रवितकुल फलदायी होती है, जि9सका दुष्प्रभा� साधक की संतान को भोगना पड़ सकता है ।* मेष, कक" , चिस�ह, कन्या, तुला, �ृणिश्चक, मकर और कुम्भ लग्न में विकये गये अनुष्ठान शुभ, सुफलदायक, yीसम्पणित्त-दायक और मान बढ़ाने �ाले होते हैं । टिदशा* प!�" टिदशाः- सम्मोहन, दे�-कृपा, साल्कित्त्�क कम" के उपयु4 ।* पणिश्चमः- सुख-समृजिद्ध, लक्ष्मी-प्रान्त्रिप्त, मान-प्रवितष्ठा के शिलये शीघ्रफलदायक ।* उत्तरः- रोगों की शिचविकत्सा, मानशिसक-शान्त्रिन्त, आरोग्य-प्रान्त्रिप्त हेतु ।* दणिक्ष*ः- अणिभचार-कम", मार*, उच्चाEन, शत्रु-शमन हेतु । मास तथा ऋतुमासः-चैत्र - दुःसह-कारक, �ैशाख – धनप्रद, ज्येष्ठ - मृत्यु, आषाढ - पुत्र, yा�* – शुभ, भाद्रपद - ज्ञान-हाविन,आणिश्वन - स�"-शिसजिद्ध, कार्तित�क - ज्ञान-शिसजिद्ध, माग"शीष" - शुभ, पौष – दुःख, माघ - मेघा�ृजिद्ध, फाnगुन – �शीकर* कारक होता है ।ऋतुः-हेमन्त - शान्त्रिन्त, पुष्टिष्ट के अनुष्ठान । �सन्त - �शीकर* । शिशशिशर - स्तम्भन । ग्रीष्म – वि�दे्वष*, मार* । �षा" – उच्चाEन । शरद – मार* ।वितशिथ तथा पक्षवितशिथः- सुख-साधन, संपन्नता के शिलए सप्तमी वितशिथ, ज्ञान ए�ं शिशक्षा के शिलए विद्वतीया, पंचमी � एकादशी शुभ मानी गयी है । शत्रुनाश के शिलये दशमी, सभी कामनाओं के शिलए द्वादशी yेष्ठ होती है ।पक्षः- ऐश्वय", शान्त्रिन्त, पुष्टिष्टकर मन्त्रों की साधना शुक्ल पक्ष में और मुशि4प्रद मन्त्रों की साधना कृष्* पक्ष में प्रारम्भ की 9ाती है।...................EोEकों द्वारा चमत्कार:- मानशिसक, आर्थिथ�क ए�ं शारीरिरक कष्टों का विन�ार* EोEके 9ैसे उपायों से हो सकता है लेविकन उसके शिलए मन में वि�श्वास की प!*" शशि4 होनी चाविहए तभी मनका चाहा अ�श्य में ष्टिमलता है क्योंविक वि�श्वास ही फलदायक होता है। ऐसे ही कुछ EोEकों की 9ानकारी प्रस्तुत है इस लेख मेंकृ आर्थिथ�क समृजिद्ध के शिलए :- बहुत समय से आर्थिथ�क स्थि0वित खराब चल रही हो तो 5 �ीर�ार महालक्ष्मी की yृंगार सामग्री मंटिदर में पु9ारिरन को दान में दें। लेविकन दी हुई सामग्री दुबारा उस पु9ारिरन को न दें। इससे आपका व्यापार या आय का साधन सुधरता 9ायेगा। धीरे-धीरे आप महस!स करेंगे। मेहनत करने पर भी आय के पया"प्त साधन नहीं 9ुEा पाने की स्थि0वित में 9 �ीर�ार केसर �ाले ष्टिमoे चा�ल गरीब या म9दूरी करने �ाले म9दूरों को बांEें, 3 �ीर�ार के बाद आपकी मेहनत आपको अच्छा फल देने लगेगी। इस उपाय को आप 45 टिदनों के बाद दोबारा कर सकते हैं, परन्तु साल में 1 या दो बार ही कर सकते हैं। आर्थिथ�क संपन्नता ए�ं घर में अन्न की बरकत बनाये रखने के शिलए गेहंू को विपस�ाते �4 उसमें केसर की पणित्तयां ए�ं तुलसी दल ष्टिमलाकर विपसा लें और उस आEे की बनी हुई रोEी घर में खाने से अन्न और धन की कभी कमी नहीं रहती। न9र के शिलए :-यटिद आप को ए�ं आपके व्य�साय को बार बार विकसी की न9र लग रही हो तो सेंधा नमक शुक्र�ार को पानी में णिभगोकर रात को रखें और शविन�ार को सुबह अपने व्या�साष्टियक 0ल पर उस पानी का पौंछा लग�ायें। 21 शविन�ार लगातार करने से बुरी न9र से बचा 9ा सकता है और 9ातक खुद रात को विफEकरी से दांत साफ करके सोए।ं इस उपाय से न9र दोष से बचा 9ा सकता है। बुरी न9र से बचने के शिलए तांबे का 9 ग 9 ए�ं स�ा इंच मोEा स्�ाल्किस्तक बनाकर मेन गेE पर लगाने से बुरी न9र �ाले लोगों से बचा 9ा सकता है। बुरी न9र का 9ातक पर यटिद बहुत ज्यादा प्रभा� हो रहा हो तो उस 9ातक को गले में गोमती चक्र चांदी के अंदर बनाकर धार* कर लेना चाविहए। पन्ना नग धार* करने से भी बुरी आत्माओं ए�ं न9र से बचा 9ा सकता है। क9" मुशि4 के उपाय : बार-बार क9" उतारने के बाद यटिद कोई 9ातक विफर से क9" से यु4 हो 9ाता है तो उस 9ातक को अपने आस-पास के धम" 0ान में घर से नंगे पैर 9ाकर परमात्मा से माफी मांगनी चाविहए ए�ं शिश�9ी पर गन्ने का 9!स चढ़ाते हुए क्क नमो शिश�ाय मंत्र का 9ाप करें। लगातार 108 टिदन करने से धीरे धीरे 9ातक क9" से मु4 हो 9ाएगा। विकसी हनुमान मंटिदर में शविन�ार की रावित्र के समय 9हां पीपल का �ृक्ष हो, आEे का चौमुखी दीपक सरसों का तेल डालकर पीपल के नीचे 9लाए ंऔर हनुमान म!र्तित� की तरफ मुंह करके 11 हनुमान चालीसा का पाo करें। 21 शविन�ार लगातार yद्ध ैाप!�"क करने से व्य�साय की उन्नवित होगी ए�ं क9" से मुशि4 ष्टिमलेगी। रोग मुशि4 के शिलए : बार बार द�ा लेने पर भी विकसी 9ातक का रोग दूर न हो रहा हो तो उस 9ातक को रात के 9 ब9े स�ा विकलो कच्चा दूध लेकर शिश�चिल�ग पर पतली धार में 'क्क नमः शिश�ाय' मंत्र का 9ाप करते हुए चढ़ाना चाविहए। यह ध्यान रहे विक �ह दूध शिश�चिल�ग की 9लेरी से होते हुए �ाविपस विकसी बत"न में ही आए।ं उस दूध को विकसी काले रंग के सांड को विपलाए।ं 45 टिदन लगातार ऐसा करने से 9ातक को द�ा लगने लगेगी और रोग से मुशि4 प्राप्त होगी।...................(कुछ अनुभ!त EोEके कौऐ का एक एक प!रा काला पंख कही से ष्टिमल 9ाए 9ो अपने

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आप ही विनकला हो उसे “ॐ काकभ!शुंडी नमः स�"9न मोहय मोहय �श्य �श्य कुरु कुरु स्�ाहा”इस मंत्र को बोलते 9ाए और पंख पर फ!ं क लगाते 9ाए, इस प्रकार १०८ बार करे. विफर उस पंख को आग लगा कर भस्म कर दे. उस भस्म को अपने सामने रख कर लोबान धुप दे और विफर से १०८ बाद विबना विकसी माला के अपने सामने रख कर दणिक्ष* टिदशा की और मुख कर 9ाप करे. इस भस्म का वितलक ७ टिदन तक करे. वितलक करते समय भी मंत्र को ७ बार बोले. ऐसा करने पर स�" 9न साधक से मोविहत होते है मोर के पंख को घर के मंटिदर मे रखने से समृजिद्ध की �ृजिद्ध होती है गधे के दांत पर “ॐ नमो कालरावित्र स�"शतु्र नाशय नमः”का 9ाप १०८ बार कर के उसे विन9"न 0ान मे रात्री काल मे गाड दे तो स�" शत्रुओ से मुशि4 ष्टिमलती है. उnल! का पंख ष्टिमले तो उसे अपने सामने रख कर “ॐ उnलुकाना वि�दे्वषय फE”का 9ाप १००० बार कर उसे जि9स के घर मे फें क टिदया 9ाए �हा पर वि�दे्वष* होता है आक के रुई से दीपक बना कर उसे शिश� मंटिदर मे प्रज्�स्थिnलत करने से शिश� प्रस्सन होते है, ऐसा विनयष्टिमत रूप से करने से ग्रह बाधा से मुशि4 ष्टिमलती है धत!रे की 9ड़ अपने आप मे महत्�प!*" है, इसे अपने घर मे 0ाविपत कर के महाकाली का प!9न कर “क्रीं” बी9 का 9ाप विकया 9ाए तो धन सबंधी समस्याओ से मुशि4 ष्टिमलती है अपने घर मे अपराजि9ता की बेल को उगाए, उसे रो9 धुप दे कर “ॐ महालक्ष्मी �ास्त्रिन्छताथ" प!रय प!रय नमःका 9ाप १०८ बार करे तो मनोकामना की प!र्तित� होती है विन9"न 0ान मे “पे्रत मोक्षं प्रदोमभ�ः”का ११ बार उच्चार* कर के खीर तथा 9ल रख कर आ 9ाए ऐसा ३ टिदन करे तो मनोकामना प!र्तित� मे सहायता ष्टिमलती है. धुप करते समय चन्दन का Eुकड़ा ड़ाल कर धुप करने से ग्रह प्रस्सन रहते है विकसी चेतना�ान मज़ार पर ष्टिमoाई को बांEना अत्यंत ही शुभ माना गया है ऐसा वि��र* कई प्राच्य ग्रंथो मे प्राप्त होता है, इससे सभी प्रकारसे उन्नवित की प्रान्त्रिप्त होती है.................................‘साबर’ मन्त्रों की साधना के प!�" ‘स�ा"थ"-साधक’ मन्त्र को 21 बार 9प लेना चाविहए । इसके बाद अपने अभीष्ट मन्त्र की साधना करें । ‘स�ा"थ"-साधक’ मन्त्र का 9प करते समय ध्यान रखें विक इसका कोई भी श�द या �*" उच्चार* में अशुद्ध न हो । स�ा"थ"-साधक-मन्त्र- “गुरु सo गुरु सo गुरु हैं �ीर, गुरु साहब सुमरौं बड़ी भाँत । चिस�गी Eोरों बन कहौं, मन नाऊँ करतार । सकल गुरु की हर भ9े, घट्टा पकर उo 9ाग, चेत सम्भार yी परम-हंस ।” इसके पश्चात् ग*ेश 9ी का ध्यान करके विनम्न मन्त्र की एक माला 9पें - ध्यानः- “�क्र-तुन्ड, माह-काय ! कोटिE-स!य"-सम-प्रभ ! विनर्ति��घ्नं कुरु मे दे� ! स�"-काय·षु स�"दा ।।” मन्त्रः- “�क्र-तुण्डाय हुं ।” विफर विनम्न-शिलब्दिखत मन्त्र से टिदग्बन्धन कर लें - “�ज्र-क्रोधाय महा-दन्ताय दश-टिदशो बन्ध बन्ध, हूं फE् स्�ाहा ।” उ4 मन्त्र से दशों टिदशाए ँसुरणिक्षत हो 9ाती है और विकसी प्रकार का वि�घ्न साधक की साधना में नहीं पड़ता । नाणिभ में दृष्टिष्ट 9माने से ध्यान बहुत शीघ्र लगता है और मन्त्र शीघ्र शिसद्ध होते हैं । इसके बाद मन्त्र को शिसद्ध करने के शिलए उसका 9प करना चाविहए । विकसी मन्त्र को शिसद्ध करने के शिलए ‘दशहरा’, ‘दीपा�ली’, ‘होली’, ‘ग्रह*-काल′, ‘शिश�रावित्र’, न�रावित्र आटिद स्�यं शिसद्ध प�" माने 9ाते हैं....................काली के अलद-अलग तंत्रों में अनेक भेद हैं । कुछ प!�" में बतलाये गये हैं । अन्यच्च आo भेद इस प्रकार हैं - १॰ संहार-काली, २॰ दणिक्ष*-काली, ३॰ भद्र-काली, ४॰ गुह्य-काली, ५॰ महा-काली, ६॰ �ीर-काली, ७॰ उग्र-काली तथा ८॰ चण्ड-काली । ‘काशिलका-पुरा*’ में उnलेख हैं विक आटिद-सृष्टिष्ट में भग�ती ने मविहषासुर को “उग्र-चण्डी” रुप से मारा ए�ं विद्वतीयसृष्टिष्ट में ‘उग्र-चण्डी’ ही “महा-काली” अथ�ा महामाया कहलाई । योगविनद्रा महामाया 9गद्धात्री 9गन्मयी । भु9ैः षोडशणिभयु"4ाः इसी का नाम “भद्रकाली” भी है । भग�ती कात्यायनी ‘दशभु9ा’ �ाली दुगा" है, उसी को “उग्र-काली” कहा है । काशिलकापुरा*े – कात्यायनीमुग्रकाली दुगा"ष्टिमवित तु तांवि�दुः । “संहार-काली” की चार भु9ाए ँहैं यही ‘ध!म्र-लोचन’ का �ध करने �ाली हैं । “�ीर-काली” अष्ट-भु9ा हैं, इन्होंने ही चण्ड का वि�नाश विकया “भु9ैरष्टाणिभरतुलैव्या"प्याशेषं �मौ नमः” इसी ‘�ीर-काली’ वि�षय में दुगा"-सप्तशती में कहा हैं । “चण्ड-काली” की बत्तीस भु9ाए ँहैं ए�ं शुम्भ का �ध विकया था । यथा – चण्डकाली तु या प्रो4ा द्वापित्र�शद ्भु9 शोणिभता । समयाचार रहस्य में उपरो4 स्�रुपों से सम्बस्त्रिन्धत अन्य स्�रुप भेदों का �*"न विकया है । संहार-काली – १॰ प्रत्यंविगरा, २॰ भ�ानी, ३॰ �ाग्�ाटिदनी, ४॰ शिश�ा, ५॰ भेदों से यु4 भैर�ी, ६॰ योविगनी, ७॰ शाविकनी, ८॰ चस्थिण्डका, ९॰ र4चामुण्डा से सभी संहार-काशिलका के भेद स्�रुप हैं । संहार काशिलका का महामंत्र १२५ �*" का ‘मुण्ड-माला तंत्र’ में शिलखा हैं, 9ो प्रबल-शत्रु-नाशक हैं । दणिक्ष*-काशिलका -कराली, वि�कराली, उमा, मुञु्जघोषा, चन्द्र-रेखा, शिचत्र-रेखा, वित्र9Eा, विद्व9ा, एक9Eा, नीलपताका, बत्तीस प्रकार की

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यणिक्ष*ी, तारा और शिछन्नमस्ता ये सभी दणिक्ष* काशिलका के स्�रुप हैं । भद्र-काली - �ारु*ी, �ामनी, राक्षसी, रा�*ी, आग्नेयी, महामारी, घुघु"री, चिस�ह�क्त्रा, भु9ंगी, गारुडी, आसुरी-दुगा" ये सभी भद्र-काली के वि�णिभन्न रुप हैं । श्मशान-काली – भेदों से यु4 मातंगी, शिसद्धकाली, ध!मा�ती, आद्र"पEी चामुण्डा, नीला, नीलसरस्�ती, घम"Eी, भक" Eी, उन्मुखी तथा हंसी ये सभी श्मशान-काशिलका के भेद रुप हैं । महा-काली - महामाया, �ैष्*�ी, नारचिस�ही, �ाराही, ब्राह्मी, माहेश्वरी, कौमारी, इत्याटिद अष्ट-शशि4याँ, भेदों से यु4-धारा, गंगा, यमुना, गोदा�री, नम"दा इत्याटिद सब नटिदयाँ महाकाली का स्�रुप हैं । उग्र-काली - श!शिलनी, 9य-दुगा", मविहषमर्दिद�नी दुगा", शैल-पुत्री इत्याटिद न�-दुगा"ए,ँ भ्रामरी, शाकम्भरी, बंध-मोक्षणि*का ये सब उग्रकाली के वि�णिभन्न नाम रुप हैं । �ीर-काली -yीवि�द्या, भु�नेश्वरी, पद्मा�ती, अन्नप!*ा", र4-दंवितका, बाला-वित्रपुर-संुदरी, षोडशी की ए�ं काली की षोडश विनत्यायें, कालराणित्त, �शीनी, बगलामुखी ये सभी �ीरकाली ये सभी �ीरकाली के नाम भेद रुप हैं ।............................yी बEुक-बशिल-मन्त्रः- घर के बाहर दर�ा9े के बायीं ओर दो लौंग तथा गुड़ की डली रखें । विनम्न तीनों में से विकसी एक मन्त्र का उच्चार* करें - १॰ “ॐ ॐ ॐ एहे्यविह दे�ी-पुत्र, yी मदापद्धदु्धार*-बEुक-भैर�-नाथ, स�"-वि�घ्नान् नाशय नाशय, इमं स्तोत्र-पाo-प!9नं सफलं कुरु कुरु स�Bपचार-सविहतं बशिल ष्टिममं गृह्ण गृह्ण स्�ाहा, एष बशिल�¹ बEुक-भैर�ाय नमः।” २॰ “ॐ ह्रीं �ं एह्येविह दे�ी-पुत्र, yी मदापद्धदु्धारक-बEुक-भैर�-नाथ कविपल-9Eा-भारभासुर ज्�लप्तित्प�गल-नेत्र स�"-काय"-साधक मद-्दत्तष्टिममं यथोपनीतं बचिल� गृह्ण ्मम् कमा"णि* साधय साधय स�"मनोरथान् प!रय प!रय स�"शत्र!न् संहारय ते नमः �ं ह्रीं ॐ ।।” ३॰ “ॐ बशिल-दानेन सन्तुष्टो, बEुकः स�"-शिसजिद्धदः। रक्षां करोतु मे विनत्यं, भ!त-�ेताल-सेवि�तः।।”೦೦೦9ो तंत्र से भय खाता हैं, �ह मनुष्य ही नहीं हैं, �ह साधक तो बन ही नहीं सकता! गुरु गोरखनाथ के समय में तंत्र अपने आप में एक स�Bत्कृष्ट वि�द्या थी और समा9 का प्रत्येक �ग" उसे अपना रहा था! 9ी�न की 9टिEल समस्याओं को सुलझाने में के�ल तंत्र ही सहायक हो सकता हैं! परन्तु गोरखनाथ के बाद में भयानन्द आटिद 9ो लोग हुए उन्होंने तंत्र को एक वि�कृत रूप दे टिदया! उन्होंने तंत्र का तात्पय" भोग, वि�लास, मद्य, मांस, पंचमकार को ही मान शिलया ! हैं:....................पुरा*ों में श्लोक संख्या सुखसागर के अनुसारः (1) ब्रह्मपुरा* में श्लोकों की संख्या दस ह9ार हैं। (2) पद्मपुरा* में श्लोकों की संख्या पचपन ह9ार हैं। (3) वि�ष्*ुपुरा* में श्लोकों की संख्या तेइस ह9ार हैं। (4) शिश�पुरा* में श्लोकों की संख्या चौबीस ह9ार हैं। (5) yीमद्भा�तपुरा* में श्लोकों की संख्या अoारह ह9ार हैं। (6) नारदपुरा* में श्लोकों की संख्या पच्चीस ह9ार हैं। (7) माक" ण्डेयपुरा* में श्लोकों की संख्या नौ ह9ार हैं। (8) अब्दिग्नपुरा* में श्लोकों की संख्या पन्द्रह ह9ार हैं। (9) भवि�ष्यपुरा* में श्लोकों की संख्या चौदह ह9ार पाँच सौ हैं। (10) ब्रह्म�ै�त"पुरा* में श्लोकों की संख्या अoारह ह9ार हैं। (11) चिल�गपुरा* में श्लोकों की संख्या ग्यारह ह9ार हैं। (12) �ाराहपुरा* में श्लोकों की संख्या चौबीस ह9ार हैं। (13) स्कन्धपुरा* में श्लोकों की संख्या इक्यासी ह9ार एक सौ हैं। (14) �ामनपुरा* में श्लोकों की संख्या दस ह9ार हैं। (15) क! म"पुरा* में श्लोकों की संख्या सत्रह ह9ार हैं। (16) मत्सयपुरा* में श्लोकों की संख्या चौदह ह9ार हैं। (17) गरुड़पुरा* में श्लोकों की संख्या उन्नीस ह9ार हैं। (18) ब्रह्माण्डपुरा* में श्लोकों की संख्या बारह ह9ार हैं।.............................रोग ए�ं अपमृत्यु-विन�ारक प्रयोग ।। yी अमृत-मृत्युञ्जय-मन्त्र प्रयोग ।। विकसी प्राचीन शिश�ालय में 9ाकर ग*ेश 9ी की “ॐ गं ग*पतये नमः” मन्त्र से षोडशोपचार प!9न करे । तदनन्तर “ॐ नमः शिश�ाय” मन्त्र से महा-दे� 9ी की प!9ा कर हाथ में 9ल लेकर वि�विनयोग पढे़ - वि�विनयोगः- ॐ अस्य yी अमृत-मृत्युञ्जय-मन्त्रस्य yी कहोल ऋविषः, वि�राE् छन्दः, अमृत-मृत्युञ्जय सदा-शिश�ो दे�ता, अमुक गोत्रोत्पन्न अमुकस्य-शम"*ो मम समस्त-रोग-विनरसन-प!�"कं अप-मृत्यु-विन�ार*ाथ· 9पे वि�विनयोगः । ऋष्याटिद-न्यासः- yी कहोल ऋषये नमः शिशरशिस, वि�राE् छन्दसे नमः मुखे, अमृत-मृत्युञ्जय सदा-शिश�ो दे�तायै नमः हृटिद, मम समस्त-रोग-विनरसन-प!�"कं अप-मृत्यु-विन�ार*ाथ· 9पे वि�विनयोगाय नमः स�ा"ङे्ग । कर-न्यासः- ॐ अंगुष्ठाभ्यां नमः, 9!ं त9"नीभ्यां नमः, सः मध्यमाभ्यां नमः, मां अनाष्टिमकाभ्यां नमः, पालय कविनष्टिष्ठकाभ्यां नमः, पालय कर-तल-कर-पृष्ठाभ्यां नमः । षडङ्ग-न्यासः- ॐ हृदयाय नमः, 9!ं शिशरसे स्�ाहा, सः शिशखायै �षE्, मां क�चाय हुं, पालय नेत्र-त्रयाय �ोषE्, पालय अस्त्राय फE् । ध्यानः- सु्फटिEत-नशिलन-सं0ं, मौशिल-बदे्धन्दु-रेखा-स्र�दमृत-रसाद्र" चन्द्र-�न्ह्यक" -नेत्रम् । स्�-कर-लशिसत-मुद्रा-पाश-�ेदाक्ष-मालं, स्फटिEक-र9त-मु4ा-गौरमीशं नमाष्टिम ।। म!ल-मन्त्रः- “ॐ 9!ं सः मां पालय पालय ।” पुरश्चर*ः- स�ा लाख मन्त्र-9प के शिलए पाँच ह9ार 9प प्रवितटिदन करना चाविहए ।

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9प के बाद न्यास आटिद करके पुनः ध्यान करे । विफर 9ल लेकर - ‘अनेन-मत् कृतेन 9पेन yी-अमृत-मृत्युञ्जयः प्रीयताम्’ कहकर 9ल छोड़ दे । 9प का दशांश ह�नाटिदक करे । ‘ह�न’ हेतु ‘वितलाज्य’ में ‘विगलोय’ भी डालनी चाविहए । ह�नाटिद न कर सकने पर ‘चतुगु"णि*त 9प’ करने से अनुष्ठान प!*" होता है ए�ं आरोग्यता ष्टिमलती है, अप-मृत्यु-विन�ार* होता है.........................शरीर रक्षा शाबर मन्त्र मन्त्रः- “ॐ नमः �ज्र का कोoा, जि9समें विपण्ड हमारा बैoा । ईश्वर कुञ्जी, ब्रह्मा का ताला, मेरे आoों याम का यवित हनुमन्त रख�ाला ।” प्रयोग ए�ं वि�ष्टिधः- विकसी मंगल�ार से उ4 मन्त्र का 9प करे । दस ह9ार 9प द्वारा पुरश्चर* कर लें । yी हनुमान् 9ी को स�ाया रोE का च!रमा (गुड़, घी ष्टिमणिyत) अर्तिप�त करें । काय" के समय मन्त्र का तीन बार उच्चार* कर शरीर पर हाथ विफराए,ँ तो शरीर रणिक्षत हो 9ाता है ।.........................न�ग्रह शाबर मन्त्र रवि�दे� ह�न - ह�न सामग्रीः- गौघृत तथा अक" की लकड़ी । टिदशाः- प!�", मुद्रा-हंसी, संख्याः- ९ बार या १०८ बार । मन्त्रः- “सत नमो आदेश । गुरु9ी को आदेश । ॐ गुरु9ी । सुन बा योग म!ल कहे बारी बार । सतगुरु का सह9 वि�चार ।। ॐ आटिदत्य खो9ो आ�ागमन घE में राखो दृढ़ करो मन ।। प�न 9ो खो9ो दस�ें द्वार । तब गुरु पा�े आटिदत्य दे�ा ।। आटिदत्य ग्रह 9ावित का क्षवित्रय । र4 रंजि9त कश्यप पंथ ।। कचिल�ग देश 0ापना थाप लो । लो प!9ा करो स!य" नाराय* की । सत फुरै सत �ाचा फुरै yीनाथ9ी के चिस�हासन ऊपर पान फ! ल की प!9ा चढै़ । हमारे आसन पर ऋजिद्ध-शिसजिद्ध धरै, भण्डार भरे । ७ �ार, २७ नक्षत्र, ९ ग्रह, १२ राशिश, १५ वितशिथ । सोम-मंगल शुक्र शविन । बुध-गुरु-राहु-केतु सुख करै, दुःख हरै । खाली �ाचा कभी ना पडै़ ।। ॐ स!य" मन्त्र गायत्री 9ाप । रक्षा करे yी शम्भु9ती गुरु गोरखनाथ । नमो नमः स्�ाहा ।”

सोमदे� ह�न - ह�न सामग्रीः- गौघृत तथा पलाश की लकड़ी । टिदशाः- प!�", मुद्रा-हंसी, संख्याः- ९ बार या १०८ बार । मन्त्रः- “ॐ गुरु9ी, सोमदे� मन धरी बा श!न्य । विनम"ल काया पाप न पुण्य ।। शशी-हर बरसे अम्बर झरे । सोमदे� गु* येता करें । सोमदे� 9ावित का माली । शुक्ल �*| गोत्र अत्री ।। ॐ 9मुना तीर 0ापना थाप लो । कन्हरे पुष्प शिश� शंकर की प!9ा करो ।। सत फुरै सत �ाचा फुरै yीनाथ9ी के चिस�हासन ऊपर पान फ! ल की प!9ा चढै़ । हमारे आसन पर ऋजिद्ध-शिसजिद्ध धरै, भण्डार भरे । ७ �ार, २७ नक्षत्र, ९ ग्रह, १२ राशिश, १५ वितशिथ । मंगल रवि� शुक्र शविन । बुध-गुरु-राहु-केतु सुख करै, दुःख हरै । खाली �ाचा कभी ना पडै़ ।। ॐ सोम मन्त्र गायत्री 9ाप । रक्षा करे yी शम्भु9ती गुरु गोरखनाथ । नमो नमः स्�ाहा ।”

मंगलदे� ह�न - ह�न सामग्रीः- गौघृत तथा खैर की लकड़ी । टिदशाः- प!�", मुद्रा-हंसी, संख्याः- ९ बार या १०८ बार । मन्त्रः- “ॐ गुरु9ी, मंगल वि�षय माया छोडे़ । 9न्म-मर* संशय हरै । चन्द्र-स!य" दो सम करै । 9न्म-मर* का काल । एता गु* पा�ो मंगल ग्रह ।। मंगल ग्रह 9ावित का सोनी । र4-रंजि9त गोत्र भारद्वा9ी ।। अ�न्त्रिन्तका के्षत्र 0ापना थापलो । ले प!9ा करो न�दुगा" भ�ानी की ।। सत फुरै सत �ाचा फुरै yीनाथ9ी के चिस�हासन ऊपर पान फ! ल की प!9ा चढै़ । हमारे आसन पर ऋजिद्ध-शिसजिद्ध धरै, भण्डार भरे । ७ �ार, २७ नक्षत्र, ९ ग्रह, १२ राशिश, १५ वितशिथ । सोम-रवि� शुक्र शविन । बुध-गुरु-राहु-केतु सुख करै, दुःख हरै । खाली �ाचा कभी ना पडै़ ।। ॐ भोम मन्त्र गायत्री 9ाप । रक्षा करे yी शम्भु9ती गुरु गोरखनाथ । नमो नमः स्�ाहा ।”

बुधग्रह ह�न - ह�न सामग्रीः- गौघृत तथा अपामाग" की लकड़ी । टिदशाः- प!�", मुद्रा-हंसी, संख्याः- ९ बार या १०८ बार । मन्त्रः- “ॐ गुरु9ी, बुध ग्रह सत् गुरु9ी टिदनी बुजिद्ध । वि��रो काया पा�ो शिसजिद्ध ।। शिश� धीर9 धरे । शशि4 उन्मनी नीर चढे़ ।। एता गु* बुध ग्रह करै । बुध ग्रह 9ावित का बविनया ।। हरिरत हर गोत्र अते्रय । मगध देश 0ापना थापलो । ले प!9ा ग*ेश9ी की करै । सत फुरै सत �ाचा फुरै yीनाथ9ी के चिस�हासन ऊपर पान फ! ल की प!9ा चढै़ । हमारे आसन पर ऋजिद्ध-शिसजिद्ध धरै, भण्डार भरे । ७ �ार, २७ नक्षत्र, ९ ग्रह, १२ राशिश, १५ वितशिथ । सोम-रवि� शुक्र शविन । मंगल-गुरु-राहु-केतु सुख करै, दुःख हरै । खाली �ाचा कभी ना पडै़ ।। ॐ बुध मन्त्र गायत्री 9ाप । रक्षा करे yी शम्भु9ती गुरु गोरखनाथ । नमो नमः स्�ाहा ।”

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गुरु (बृहस्पवित) ह�न - ह�न सामग्रीः- गौघृत तथा पीपल की लकड़ी । टिदशाः- प!�", मुद्रा-हंसी, संख्याः- ९ बार या १०८ बार । मन्त्रः- “ॐ गुरु9ी, बृहस्पवित वि�षयी मन 9ो धरो । पाँचों इजिन्द्रय विनग्रह करो । वित्रकुEी भई प�ना द्वार । एता गु* बृहस्पवित दे� ।। बृहस्पवित 9ावित का ब्राह्म* । विपत पीला अंविगरस गोत्र ।। शिसनु्ध देश 0ापना थापलो । लो प!9ा yीलक्ष्मीनाराय* की करो ।। सत फुरै सत �ाचा फुरै yीनाथ9ी के चिस�हासन ऊपर पान फ! ल की प!9ा चढै़ । हमारे आसन पर ऋजिद्ध-शिसजिद्ध धरै, भण्डार भरे । ७ �ार, २७ नक्षत्र, ९ ग्रह, १२ राशिश, १५ वितशिथ । सोम-रवि� शुक्र शविन । मंगल-बुध-राहु-केतु सुख करै, दुःख हरै । खाली �ाचा कभी ना पडै़ ।। ॐ गुरु मन्त्र गायत्री 9ाप । रक्षा करे yी शम्भु9ती गुरु गोरखनाथ । नमो नमः स्�ाहा ।”

शुक्रदे� ह�न ह�न सामग्रीः- गौघृत तथा ग!लर की लकड़ी । टिदशाः- प!�", मुद्रा-हंसी, संख्याः- ९ बार या १०८ बार । मन्त्रः- “ॐ गुरु9ी, शुक्रदे� सोधे सकल शरीर । कहा बरसे अमृत कहा बरसे नीर ।। न�नाड़ी बहात्तर कोEा पचन चढै़ । एता गु* शुक्रदे� करै । शुक्र 9ावित का सय्यद । शुक्ल �*" गोत्र भाग"� ।। भो9कर देश 0ापना थाप लो । प!9ो ह9रत पीर मुहम्मद ।। सत फुरै सत �ाचा फुरै yीनाथ9ी के चिस�हासन ऊपर पान फ! ल की प!9ा चढै़ । हमारे आसन पर ऋजिद्ध-शिसजिद्ध धरै, भण्डार भरे । ७ �ार, २७ नक्षत्र, ९ ग्रह, १२ राशिश, १५ वितशिथ । सोम-रवि� मंगल शविन । बुध-गुरु-राहु-केतु सुख करै, दुःख हरै । खाली �ाचा कभी ना पडै़ ।। ॐ शुक्र मन्त्र गायत्री 9ाप । रक्षा करे yी शम्भु9ती गुरु गोरखनाथ । नमो नमः स्�ाहा ।”

शविनदे� ह�न ह�न सामग्रीः- गौघृत तथा शमी की लकड़ी । टिदशाः- प!�", मुद्रा-हंसी, संख्याः- ९ बार या १०८ बार । मन्त्रः- “ॐ गुरु9ी, शविनदे� पाँच तत देह का आसन स्थि0र । साढे़ सात, बारा सोलह विगन विगन धरे धीर । शशिश हर के घर आ�े भान । तौ टिदन टिदन शविनदे� स्नान । शविनदे� 9ावित का तेली । कृष्* कालीक कश्यप गोत्री ।। सौराष्ट्र के्षत्र 0ापना थाप लो । लो प!9ा हनुमान �ीर की करो ।। सत फुरै सत �ाचा फुरै yीनाथ9ी के चिस�हासन ऊपर पान फ! ल की प!9ा चढै़ । हमारे आसन पर ऋजिद्ध-शिसजिद्ध धरै, भण्डार भरे । ७ �ार, २७ नक्षत्र, ९ ग्रह, १२ राशिश, १५ वितशिथ । सोम-मंगल शुक्र रवि� । बुध-गुरु-राहु-केतु सुख करै, दुःख हरै । खाली �ाचा कभी ना पडै़ ।। ॐ शविन मन्त्र गायत्री 9ाप । रक्षा करे yी शम्भु9ती गुरु गोरखनाथ । नमो नमः स्�ाहा ।”

राहु ग्रह ह�न - ह�न सामग्रीः- गौघृत तथा दू�ा" की लकड़ी । टिदशाः- प!�", मुद्रा-हंसी, संख्याः- ९ बार या १०८ बार । मन्त्रः- “ॐ गुरु9ी, राहु साधे अरध शरीर । �ीय" का बल बनाये �ीर ।। धुंये की काया विनम"ल नीर । येता गु* का राहु �ीर । राहु 9ावित का श!द्र । कृष्* काला पैoीनस गोत्र ।। राoीनापुर क्षेत्र 0ापना थाप लो । लो प!9ा करो काल भैरो ।। सत फुरै सत �ाचा फुरै yीनाथ9ी के चिस�हासन ऊपर पान फ! ल की प!9ा चढै़ । हमारे आसन पर ऋजिद्ध-शिसजिद्ध धरै, भण्डार भरे । ७ �ार, २७ नक्षत्र, ९ ग्रह, १२ राशिश, १५ वितशिथ । सोम-रवि� शुक्र शविन । मंगल केतु बुध-गुरु सुख करै, दुःख हरै । खाली �ाचा कभी ना पडै़ ।। ॐ राहु मन्त्र गायत्री 9ाप । रक्षा करे yी शम्भु9ती गुरु गोरखनाथ । नमो नमः स्�ाहा ।”

केतु ग्रह ह�न ह�न सामग्रीः- गौघृत तथा कुशा की लकड़ी । टिदशाः- प!�", मुद्रा-हंसी, संख्याः- ९ बार या १०८ बार । मन्त्रः- “ॐ गुरु9ी, केतु ग्रह कृष्* काया । खो9ो मन वि�षय माया । रवि� चन्द्रा संग साधे । काल केतु याते पा�े । केतु 9ावित का असरु 9ेष्टिमनी गोत्र काला नुर ।। अन्तर�ेद क्षेत्र 0ापना थाप लो । लो प!9ा करो रौद्र घोर ।। सत फुरै सत �ाचा फुरै yीनाथ9ी के चिस�हासन ऊपर पान फ! ल की प!9ा चढै़ । हमारे आसन पर ऋजिद्ध-शिसजिद्ध धरै, भण्डार भरे । ७ �ार, २७ नक्षत्र, ९ ग्रह, १२ राशिश, १५ वितशिथ । सोम-रवि� शुक्र शविन । मंगल बुध-राहु-गुरु सुख करै, दुःख हरै । खाली �ाचा कभी ना पडै़ ।। ॐ केतु मन्त्र गायत्री 9ाप । रक्षा करे yी शम्भु9ती गुरु गोरखनाथ । नमो नमः.............................धम¹-Sanskar 16 संस्कारों में लाइफ मैने9मेंE के स!त्र पिह�दू धम" में विकए 9ाने �ाले 16 संस्कार के�ल कम"कांड या रस्में नहीं हैं। इनमें 9ी�न प्रबंधन के कई स!त्र छुपे हैं। आ9 के भागदौड़ भरे 9ी�न में ये

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स!त्र हमें 9ी�न के भौवितक और आध्यास्त्रित्मक दोनों वि�कास को आगे बढ़ाते हैं। हमें इन संस्कारों में खुद के �ै�ाविहक, वि�द्याथ| और व्य�साष्टियक 9ी�न के स!त्र तो ष्टिमलते ही हैं साथ ही अपनी संतान को कैसे संस्कार�ान बनाए ंइसके तरीके भी ष्टिमलते हैं। पंुस�न संस्कार : इस संस्कार के अंतग"त भा�ी माता-विपता को यह समझाया 9ाता है विक शारीरिरक, मानशिसक ए�ं आर्थिथ�क दृष्टिष्ट से परिरपक्� याविन प!*" समथ" हो 9ाने के बाद, समा9 को yेष्ठ, ते9स्�ी नई पीढ़ी देने के संकnप के साथ ही संतान उत्पन्न करें। नामकर* संस्कार: बालक का नाम शिसफ" उसकी पहचान के शिलए ही नहीं रखा 9ाता। मनोवि�ज्ञान ए�ं अक्षर-वि�ज्ञान के 9ानकारों का मत है विक नाम का प्रभा� व्यशि4 के 0!ल-स!क्ष्म व्यशि4त्� पर गहराई से पड़ता रहता है। इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर नामकर* संस्कार विकया 9ाता है। च!ड़ाकम" संस्कार: (मुण्डन, शिशखा 0ापना) सामान्य अथ" में, माता के गभ" से शिसर पर आए �ालों को हEाकर खोपड़ी की सफाई करना आ�श्यक होता है। विकन्तु स!क्ष्म दृष्टिष्ट से न�9ात शिशशु के व्य�स्थि0त बौजिद्धक वि�कास, कुवि�चारों के परिरस्कार के शिलये भी यह संस्कार बहुत आ�श्यक है। अन्नप्राशसन संस्कार: 9ब शिशशु के दांत उगने लगें, तो मानना चाविहए विक प्रकृवित ने उसे oोस आहार, अन्नाहार करने की स्�ीकृवित प्रदान कर दी है। 0!ल (अन्नमयकोष) के वि�कास के शिलए तो अन्न के वि�ज्ञान सम्मत उपयोग को ध्यान में रखकर शिशशु के भो9न का विनधा"र* विकया 9ाता है। इन्हीं तमाम बातों को ध्यान में रखकर यह महत्�प!*" संस्कार संपन्न विकया 9ाता है। वि�द्यारंभ संस्कार: 9ब बालक/ बाशिलका की उम्र शिशक्षा ग्रह* करने लायक हो 9ाय, तब उसका वि�द्यारंभ संस्कार कराया 9ाता है । इसमें समारोह के माध्यम से 9हां एक ओर बालक में अध्ययन का उत्साह पैदा विकया 9ाता है, �हीं ज्ञान के माग" का साधक बनाकर अंत में आत्मज्ञान की और पे्ररिरत विकया 9ाता है। यज्ञोप�ीत संस्कार : 9ब बालक/ बाशिलका का शारीरिरक-मानशिसक वि�कास इस योग्य हो 9ाए विक �ह अपने वि�कास के शिलए आत्मविनभ"र होकर संकnप ए�ं प्रयास करने लगे, तब उसे yेष्ठ आध्यास्त्रित्मक ए�ं सामाजि9क अनुशासनों का पालन करने की जि9म्मेदारी सोंपी 9ाती है। वि��ाह संस्कार : सफल गृह0 की, परिर�ार विनमा"* की जि9म्मेदारी उoाने के योग्य शारीरिरक, मानशिसक ए�ं आर्थिथ�क सामथ्र्य आ 9ाने पर यु�क-यु�वितयों का वि��ाह संस्कार कराया 9ाता है। यह संस्कार 9ी�न का बहुत महत्�प!*" संस्कार है 9ो एक yेष्ठ समा9 के विनमा"* में अहम भ!ष्टिमका विनभाता है। �ानप्र0 संस्कार : गृह0 की जि9म्मेदारिरयां यथा शीघ्र संपन्न करके, उत्तराष्टिधकारिरयों को अपने काय" सौंपकर अपने व्यशि4त्� को धीरे-धीरे सामाजि9क, उत्तरदाष्टियत्�, पारमार्थिथ�क कायZ में प!री तरह लगा देना ही इस संस्कार का उदे्दश्य है। अन्येष्टिष्ट संस्कार : मृत्यु 9ी�न का एक अEल सत्य है । इसे 9रा-9ी*" को न�ीन-स्फ! र्तित��ान 9ी�न में रूपान्तरिरत करने �ाला महान दे�ता भी कह सकते हैं । मर*ोत्तर (yाद्ध संस्कार): मर*ोत्तर (yाद्ध संस्कार) 9ी�न का एक अबाध प्र�ाह है । शरीर की समान्त्रिप्त के बाद भी 9ी�न की यात्रा रुकती नहीं है । आगे का क्रम भी अच्छी तरह सही टिदशा में चलता रहे, इस हेतु मर*ोत्तर संस्कार विकया 9ाता है। 9न्म टिद�स संस्कार : मनुष्य को अन्यान्य प्राणि*यों में स�"yेष्ठ माना गया है । 9न्मटिदन �ह पा�न प�" है, जि9स टिदन ईश्वर ने हमें yेष्ठतम मनुष्य 9ी�न में भे9ा। yेष्ठ 9ी�न प्रदान करने के शिलये ईश्वर का धन्य�ाद ए�ं 9ी�न का सदुपयोग करने का संकnप ही इस संस्कार का म!ल उदे्दश्य है। वि��ाह टिद�स संस्कार : 9ैसे 9ी�न का प्रांरभ 9न्म से होता है, �ैसे ही परिर�ार का प्रारंभ वि��ाह से होता है। yेष्ठ परिर�ार और उस माध्यम से yेष्ठ समा9 बनाने का शुभ प्रयोग वि��ाह संस्कार से प्रारंभ होता है।

1.

सही रुद्राक्ष पहनकर करें कालसप" दोष विन�ार*

कालस"प योग पर अनेक शोध हुए है। ज्योवितष इसके प्रभा� कम करने के शिलए अनेक उपाय बताते है। कंुडली में मुख्य रूप से बारह तरह के कालसप" योग बताए गए हैं। आपने काल सप" दोष शांवित के शिलए अनेक तरह के उपायों के बारे में सुना होगा, लेविकन क्या आप 9ानते हैं विक के�ल सही रुद्राक्ष धार* करके भी कालसप" योग के प्रभा� को कम विकया 9ा सकता है। - प्रथम भा� में बनने �ाले कालसप" योग के शिलए एकमुखी, आoमुखी और नौ मुखी

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रुद्राक्ष काले धागे में डालकर गले में धार* करें। - दूसरे भा� में बनने �ाले कालसप" योग के शिलए पांचमुखी, आoमुखी और नौमुखी रुद्राक्ष गुरु�ार के टिदन काले धागे में डालकर गले में पहनें। - यटिद कालसप" योग तीसरे भा� में बन रहा हो तो तीनमुखी, आoमुखी और नौ मुखी रुद्राक्ष लाल धागे में मंगल�ार को धार* करें। - चतुथ" भा� में यटिद कालसप" योग हो तो दोमुखी, आoमुखी, नौमुखी रुद्राक्ष सफेद धागे में डालकर सोम�ार को रावित्र के समय धार* करें। - पंचम भा� में बनने �ाला कालसप"योग हो तो पांचमुखी, आoमुखी, नौमुखी रुद्राक्ष पीले धागे में गुरु�ार के टिदन धार* करें। छEे भा� के कालसप" योग के शिलए मंगल�ार के टिदन तीनमुखी आoमुखी और नौमुखी रुद्राक्ष एक लाल धागे में पहनें। - सप्तम भा� में कालसप" योग हो तो छहमुखी, आoमुखी और नौमुखी रुद्राक्ष एक चमकीले या सफेद धागे में रावित्र के समय पहनना चाविहए। - अष्टम भा� में कालसप" योग बन रहा हो तो नौ मुखी रुद्राक्ष धार* करें। - न�म् भा� में कालसप" योग हो तो गुरु�ार के टिदन दोपहर में पीले धागे में पांचमुखी आoमुखी और नौमुखी रुद्राक्ष पहनना चाविहए। - दशम भा� में कालसप" योग हो तो बुध�ार के टिदन संध्या के समय चारमुखी, आoमुखी और नौमुखी रुद्राक्ष हरे रंग के धागे में डालकर धार* करें। - एकादश भा� में यटिद कालसप" योग हो तो एक पीले धागे में दशमुखी, तीनमुखी, चारमुखी रुद्राक्ष धार* करना चाविहए। - यटिद द्वादश भा� में कालसप" योग हो तो शविन�ार के टिदन शाम को सातमुखी, आoमुखी, और नौमुखी रुद्राक्ष काले धागे में डालकर गले में धार* करे उसके बाद कालसप" दोष शांवित की प!9ा के बाद ये रुद्राक्ष धार* करने से कालसप" योग �ाले के 9ी�न से कालसप" योग का प्रभा� कम हो 9ाएगा। इस दोष �ाले 9ातक अद्भतु मानशिसक शांवित ए�ं सुख का अनुभ� करेंगे।

Puja भग�ान की प!9ा में ध्यान रखने योग बातें सामान्यत: प!9ा हम सभी करते हैं परंतु कुछ छोEी-छोEी बातें जि9न्हें ध्यान रखना और उनका पालन करना अवितआ�श्यक है। इन छोEी-छोEी बातें के पालन से भग�ान 9nद ही प्रसन्न होते हैं और मनो�ांशिछत फल प्रदान करते हैं। यह बातें इस प्रकार हैं- - स!य", ग*ेश, दुगा", शिश�, वि�ष्*ु- यह पंचदे� कहे गए हैं, इनकी प!9ा सभी कायZ में करनी चाविहए।- भग�ान की के�ल एक म!र्तित� की प!9ा नहीं करना चाविहए, अनेक म!र्तित�यों की प!9ा से कnया* की कामना 9nद प!*" होती है। - म!र्तित� लकड़ी, पत्थर या धातु की 0ाविपत की 9ाना चाविहए।- गंगा9ी में, शाशिलग्रामशिशला में तथा शिश�चिल�ग में सभी दे�ताओं का प!9न विबना आ�ाहन-वि�स9"न विकया 9ा सकता है।- घर में म!र्तित�यों की चल प्रवितष्ठा करनी चाविहए और मंटिदर में अचल प्रवितष्ठा।- तुलसी का एक-एक पत्ता कभी नहीं तोड़ें, उसका अग्रभाग तोड़ें। मं9री को भी पत्रों सविहत तोड़ें।- दे�ताओं पर बासी फ! ल और 9ल कभी नहीं चढ़ाए।ं- फ! ल चढ़ाते समय का पुष्प का मुख ऊपर की ओर रखना चाविहए।

Devi यह शशि4 मंत्र प!री करे हर आर9!Ú 9ी�न में इच्छाओं का अंत नहीं होता। एक प!री होते ही दूसरी इच्छा पैदा हो 9ाती है। इसी क�ायद में उम्र बढ़ती है और समय बीतता 9ाता है। इस दौरान कुछ इच्छाए ंप!री होती भी है, पिक�तु 9ो अध!री रह 9ाती है। उसके मलाल में इंसान परेशान या बैचेन रहता है। सशिलए इच्छाओं पर विनयंत्र* के शिलए धम" के रास्ते अनेक उपाय बताए गए है। इन उपायों में 9प, प!9ा, ह�न आटिद प्रमुख है। इसी कड़ी में शशि4 आराधना के वि�शेष काल में मातृशशि4 के आ�ाहन और 9प का एक ऐसा उपाय है। जि9ससे 9ी�न से 9ुड़ी हर इच्छा 9ैसे धन, संपणित्त, स्�ास्थ्य, योग्य 9ी�नसाथी आटिद प!री करने में आने �ाली बाधा एक ही मंत्र द्वारा दूर की 9ा सकती है। 9ानते है न�रावित्र के वि�शेष समय में विकया 9ाने �ाला यह उपाय - - न�रावित्र के विकसी भी टिदन दुगा" प!9ा के समय प!�" टिदशा में मुख करके बैo 9ाए।ं- न�रावित्र के टिदन अनुसार दुगा" रुप की यथावि�ष्टिध प!9ा कर 21 नारिरयल लाल कपडे़ पर रखकर लाल चंदन, अक्षत से प!9ा करें। - इसके बाद अपनी कामनाप!र्तित� का संकnप लेकर 21 माला नीचे शिलखे मंत्र का 9प करें - ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै वि�च्चै। - मंत्र 9प रुद्राक्ष की माला से ही करें। - मंत्र 9प प!रे होने पर 21 नारिरयल लाल कपडे़ में बांधकर बहते 9ल में प्र�ाविहत करें या विकसी योग्य ब्राह्म* को दान करें।- yद्धा और आ0ा से विकया गया यह उपाय मनोरथ प!र्तित� में बहुत प्रभा�ी माना गया है।

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2. मालामाल बनाती है yीयंत्र प!9ा

दौलतमंद बनाती है ऐसी लक्ष्मी प!9ा धन या पैसा 9ी�न की अहम 9रुरतों में एक है। आ9 ते9 रफ्तार के 9ी�न में कईं अ�सरों पर यह देखा 9ाता है विक यु�ा पीढ़ी चकाचौंध से भरी 9ी�नशैली को देखकर प्रभावि�त होती है और बहुत कम समय में ज्यादा कमाने की सोच में गलत तरीकें अपनाती है। 9बविक धन का �ास्तवि�क सुख और शांवित मेहनत, परिरyम की कमाई में ही है। ऐसा कमाया धन न के�ल आत्मवि�श्वास के साथ दूसरों का भरोसा भी देता है, बल्किnक रुतबा और साख भी बनाता है। धम" में आ0ा रखने �ाला व्यशि4 ऐसे ही तरीकों में वि�श्वास रखता है। इसशिलए मातृशशि4 की आराधना के इस काल में यहां बताया 9ा रहा है, एक ऐसा ही उपाय जि9सको अपनाकर 9ी�न में विकसी भी सुख से �ंशिचत नहीं रहेंगे और धन का अभा� कभी नहीं सताएगा। यह उपाय है yीयंत्र प!9ा। धार्मिम�क दृष्टिष्ट से लक्ष्मी कृपा के शिलए की 9ाने �ाली yीयंत्र साधना संयम और विनयम की दृष्टिष्ट से कटिoन होती है। इसशिलए यहां बताई 9ा रही है yीयंत्र प!9ा की सरल वि�ष्टिध जि9से कोई भी साधार* भ4 अपनाकर सुख और �ैभ� पा सकता है। सरल श�दों में यह प!9ा मालामाल बना देती है। yीयंत्र प!9ा की आसान वि�ष्टिध कोई भी भ4 न�रावित्र या उसके बाद भी शुक्र�ार या प्रवितटिदन कर सकता है। yीयंत्र प!9ा के पहले कुछ सामान्य विनयमों का 9रुर पालन करें - - ब्रह्मचय" का पालन करें और ऐसा करने का प्रचार न करें। - स्�च्छ �स्त्र पहनें।- सुगंष्टिधत तेल, परफ्य!म, इत्र न लगाए।ं- विबना नमक का आहार लें। - प्रा*-प्रवितष्टिष्ठत yीयंत्र की ही प!9ा करें। यह विकसी भी मंटिदर, योग्य और शिसद्ध ब्राह्म*, ज्योवितष या तंत्र वि�शेषज्ञ से प्राप्त करें। - यह प!9ा लोभ के भा� से न कर सुख और शांवित के भा� से करें। इसके बाद yीयंत्र प!9ा की इस वि�ष्टिध से करें। इसे विकसी योग्य ब्राह्म* से भी करा सकते हैं - न�रावित्र या विकसी भी टिदन सुबह स्नान कर एक थाली में yीयंत्र 0ाविपत करें। - इस yीयंत्र को लाल कपडे़ पर रखें। - yीयंत्र का पंचामृत याविन दुध, दही, शहद, घी और शक्कर को ष्टिमलाकर स्नान कराए।ं गंगा9ल से पवि�त्र स्नान कराए।ं- इसके बाद yीयंत्र की प!9ा लाल चंदन, लाल फ! ल, अबीर, मेंहदी, रोली, अक्षत, लाल दुपट्टा चढ़ाए।ं ष्टिमoाई का भोग लगाए।ं- ध!प, दीप, कप!"र से आरती करें। - yीयंत्र के सामने लक्ष्मी मंत्र, yीस!4, दुगा" सप्तशती या 9ो भी श्लोक आपको आसान लगे, का पाo करें। पिक�तु लालच, लालसा से दूर होकर yद्धा और प!री आ0ा के साथ करें।- अंत में प!9ा में 9ाने-अन9ाने हुई गलती के शिलए क्षमा मांगे और माता लक्ष्मी का स्मर* कर सुख, सौभाग्य और समृजिद्ध की कामना करें। yीयंत्र प!9ा की यह आसान वि�ष्टिध न�रावित्र में बहुत ही शुभ फलदायी मानी 9ाती है। इससे नौकरीपेशा से लेकर विब9नेसमेन तक धन का अभा� नहीं देखते। इसे प्रवित शुक्र�ार या विनयष्टिमत करने पर 9ी�न में आर्थिथ�क कष्टों का सामना नहीं करना पड़ता।

Devi गायत्री के पांच मुखों का रहस्य धार्मिम�क पुस्तकों में ऐसे कई प्रसंग या �ृतांत पढऩे में आते हैं, 9ो बहुत ही आश्चय"9नक हैं। लाखों-करोड़ों दे�ी-दे�ता, स्�ग"-नक" , आकाश-पाताल, कnप�ृक्ष, कामधेनु गाय, इन्द्रलोक....और भी न 9ाने क्या-क्या। इन आश्चय"9नक बातों का यटिद हम शाब्दि�दक अथ" विनकालें तो शायद ही विकसी विन*"य पर पहुंच सकते हैं। अष्टिधकांस घEनाओं का �*"न प्रतीकात्मक शैली में विकया गया है। गायत्री के पांच मुखों का आश्चय"9नक और रहस्यात्मक प्रसंग भी कुछ इसी तरह का है। यह संप!*" ब्रह्माण्ड 9ल, �ायु, पृर्थ्य�ी, ते9 और आकाश के पांच तत्�ों से बना है। संसार में जि9तने भी प्रा*ी हैं, उनका शरीर भी इन्हीं पांच तत्�ों से बना है। इस पृर्थ्य�ी पर प्रत्येक 9ी� के भीतर गायत्री प्रा*-शशि4 के रूप में वि�द्यमान है। ये पांच तत्� ही गायत्री के पांच मुख हैं। मनुष्य के शरीर में इन्हें पांच कोश कहा गया है। इन पांच कोशों का उशिचत क्रम इस प्रकार है:- - अन्नमय कोश - प्रा*मय कोश - मनोमय कोश - वि�ज्ञानमय कोश - आनन्दमय कोश ये पांच कोश याविन विक भंडार, अनंत ऋजिद्ध-शिसजिद्धयों के अक्षय भंडार हैं। इन्हें पाकर कोई भी इंसान या 9ी� स�"समथ" हो सकता है। योग साधना से इन्हें 9ाना 9ा सकता है, पहचाना 9ा सकता है। इन्हें शिसद्ध करके याविन विक 9ाग्रत करके 9ी� संसार के समस्त बंधनों से मु4

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हो 9ाता है। 9न्म-मृत्यु के चक्र से छ! E 9ाता है। 9ी� का 'शरीर' अन्न से, 'प्रा*' ते9 से, 'मन' विनयंत्र* से, 'ज्ञान' वि�ज्ञान से और कला से 'आनन्द की yी�ृजिद्ध होती है। गायत्री के पांच मुख इन्हीं तत्�ों के प्रतीक हैं।

Devi गायत्री की दस भु9ाओं का रहस्य �ैज्ञाविनक तरीके से शोध-अनुसंधान करने के बाद ही दे�ी-दे�ता सम्बंधी मान्यता की 0ापना हुई है। आ9 के तथाकशिथत पढे़ शिलखे लोग दे�ी-दे�ता सम्बंधी बातों को अंधवि�श्वास या अंध yृद्धा कहते हैं, विकन्तु उनका ऐसा सोचना, उनके आधे-अध!रे ज्ञान की पहचान है। शिचत्रों और म!र्तित�यों में दे�ी-दे�ताओं को एक से अष्टिधक हाथ और कई मुखों �ाला टिदखाया 9ाता है। इन बातों के �ास्तवि�क अथ" क्या है? इस तरह के सारे प्रyों और जि9ज्ञासाओं का समाधान हम लगातार करते रहेंगे। इसी कड़ी में आ9 यह 9ानेगे विक गायत्री की दश भु9ाओं का क्या अथ" है:- इंसान के 9ी�न में दस श!ल याविन विक कष्ट हैं। ये दस कष्ट है—दोषयु4 दृष्टिष्ट, परा�लंबन ( दूसरों पर विनभ"र होना) , भय, कु्षद्रता, असा�धानी, क्रोध, स्�ाथ"परता, अवि��ेक, आलस्य और तृष्*ा। गायत्री की दस भु9ाए ंइन दस कष्टों को नष्ट करने �ाली हैं। इसके अवितरिर4 गायत्री की दाविहनी पांच भु9ाए ंमनुष्य के 9ी�न में पांच आस्त्रित्मक लाभ—आत्मज्ञान, आत्मदश"न, आत्म-अनुभ�, आत्म-लाभ और आत्म-कnया* देने �ाली हैं तथा गायत्री की बाईं पांच भु9ाए ंपांच सांसारिरक लाभ—स्�ास्थ्य, धन, वि�द्या, चातुय" और दूसरों का सहयोग देने �ाली हैं। दस भु9ी गायत्री का शिचत्र* इसी आधार पर विकया गया है। ये सभी 9ी�न वि�कास की दस टिदशाए ंहैं। माता के ये दस हाथ, साधक को उन दसों टिदशाओं में सुख और समृजिद्ध प्रदान करते हैं। गायत्री के सहस्रो नेत्र, सहस्रों क*", सहस्रों चर* भी कहे गए हैं। उसकी गवित स�"त्र है। Devi कौन हैं लक्ष्मी, काली और सरस्�ती ? सेकड़ों दे�ी-दे�ताओं �ाले विहन्दू धम" को अज्ञानता�श कुछ लोग अंधyृद्धा �ाला धम" कह देते हैं, विकन्तु संसार में स�ा"ष्टिधक �ैज्ञाविनक धम" कोई है तो �ह सनातन विहन्दू धम" ही है। सामान्य इंसान भी धम" के मम" याविन गहराई को समझ सके, यह सौच कर ही ऋविष-मुविनयों ने वि�श्व की वि�णिभन्न स!क्ष्म शशि4यों को दे�ी-दे�ताओं के रूप में शिचवित्रत विकया है। ईश्वर या परमात्मा अपने तीन कत"व्यों को प!रा करने के शिलए तीन रूपों में प्रकE हुआ- ब्रह्म, वि�ष्*ु और महेश। ब्रह्म को रचनाकार, वि�ष्*ु को पालनहार और महेश को संहार का दे�ता कहा गया है। इस वित्रम!र्तित� की तीन शशि4यां हैं- ब्रह्म की महासरस्�ती, वि�ष्*ु की महालक्ष्मी और महेश की महाकाली।इस तरह परमात्मा अपनी शशि4 से संसार का संचालन करता है। हम विकसी भी �स्तु के बारे में उसका इवितहास इसी क्रम से 9ानते हैं- उसका विनमा"*, उसकी अ�0ा और उसका अंत। इसी क्रम में ब्रह्म-वि�ष्*ु-महेश का क्रम भी वित्रम!र्तित� में कहा गया है। पिक�तु 9ब 9ी�न में शशि4 की उपासना होती है तो यह क्रम उलEा हो 9ाता है - महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्�ती। संहार- हम उन बुराइयों का संहार करें, 9ो बीमारी की तरह हमारे सम!चे 9ी�न को नष्ट कर देती है। बीमारी को 9ड़ से काE कर 9ी�न को बचाए।ं पोष*- 9ब बीमारी कE 9ाए तो शरीर की ताकत बढ़ाने �ाला आहार लेना चाविहए। बुराइयां हEाकर 9ी�न में सद्ग*ुों का रोप* करें, जि9ससे आत्मवि�श्वास म9ब!त हो। रचना- 9ब 9ी�न बुराइयों से मु4 होकर सद्ग*ुों को अपनाता है तो हमारे आदश" व्यशि4त्� का विनमा"* शुरू होता है। संसार संचालन के शिलए परमात्मा को अतुलनीय शशि4, पया"प्त धन और विनम"ल वि�द्या की आ�श्यकता होती है, इसीशिलए उसकी शशि4 महाकाली का रंग काला, महालक्ष्मी का रंग पीला (स्�*") और सरस्�ती का रंग सफेद (शुद्धता) है। हमें 9ी�न में यही माग" अपनाना चाविहए अथा"त समा9 से बुराइयों का नाश और सदाचार का पोष* करें, तभी आदश" समा9 का न�विनमा"* होगा। यह हम तब ही कर सकते हैं 9ब हमारे पास �ीरता, धन और शिशक्षा 9ैसी शशि4यां हों।

भग�ान् से वि�नती प्राथ"ना अथा"त् भग�ान से वि�नती 9ब भी हम विकसी भी परेशानी में फंस 9ाते हैं, जि9सका हल हमारे पास नहीं होता या भग�ान से हमें कोई मनोकामना प!*" कराना हो तो ऐसी परिरस्थि0वित में हम भग�ान से 9ो वि�नती करते हैं उसे प्राथ"ना कहते हैं। प्राथ"ना कई प्रकार से की 9ाती है, 9ैसे: - इच्छाप!र्तित� के शिलए प्राथ"ना- विकसी मनोकामना की प!र्तित� के शिलए भग�ान से 9ो वि�नती की 9ाती है उसे इच्छाप!र्तित� की प्राथ"ना कहते हैं।- सामान्य प्राथ"ना- कई बार विबना विकसी कामना या समस्या के yद्धा और भशि4 से भग�ान की प्राथ"ना की 9ाती है, �ह

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सामान्य प्राथ"ना कहलाती है।- बुराइयों से मुशि4 के शिलए प्राथ"ना- अपनी कम9ोरी � बुराइयों को दूर करने या उनसे लडऩे की शशि4 प्राप्त करने के शिलए भग�ान से प्राथ"ना की 9ाती है। स्�ीकारने की प्राथ"ना- कुछ लोग ईश्वर की मविहमा, सत्ता, प्रभुता को समझकर उसे स्�ीकार कर या मानकर भी प्राथ"ना करते हैं।- धन्य�ाद की प्राथ"ना- मनोकामना की प!र्तित� हो 9ाने पर या 9ी�न सुखमय होने पर भग�ान की कृपा का धन्य�ाद देने के शिलए भी प्राथ"ना की 9ाती है।- मौन प्राथ"ना- प!*" समप"* भा�ना से मौन होकर प्राथ"नाशील हो 9ाना। कैसे करें प्राथ"ना - सरल, हृदय से।- सबके कnया* को ध्यान में रखकर। - हर पल हर समय प्राथ"नामय बनें (कामनामय नहीं)।- यटिद इच्छा भी करें तो उसे प!*" करने की आ9ादी ईश्वर को दें।- 9ी�न और अल्किस्तत्� के प्रवित yद्धा�ान बनें।

3. क्या है भद्रा? 9ब कोई मांगशिलक, शुभ कम" या व्रत-उत्स� की घड़ी आती है, तो पंचक की तरह ही भद्रा योग को भी देखा 9ाता है। क्योंविक भद्रा काल में मंगल और उत्स� की शुरुआत या समान्त्रिप्त अशुभ मानी 9ाती है। हालांविक हर धार्मिम�क व्यशि4 भद्रा के वि�षय में प!री 9ानकारी नहीं रखता, पिक�तु परंपराओं में चली आ रही भद्रा काल की अशुभता को मानकर शुभ काय" नहीं करता। इसशिलए 9ानते हैं विक आब्दिखर क्या होती है - भद्रा। पुरा* अनुसार भद्रा भग�ान स!य" दे� की पुत्री और शविनदे� की बहन है। शविन की तरह ही इसका स्�भा� भी क्र! र बताया गया है। इस उग्र स्�भा� को विनयंवित्रत करने के शिलए ही भग�ान ब्रह्मा ने उसे कालग*ना या पंचाग के एक प्रमुख अंग कर* में 0ान टिदया। 9हां उसका नाम वि�ष्टी कर* रखा गया। भद्रा की स्थि0वित में कुछ शुभ कायZ, यात्रा और उत्पादन आटिद कायZ को विनषेध माना गया। पिक�तु भद्रा काल में तंत्र काय", अदालती और रा9नैवितक चुना� कायZ सुफल देने �ाले माने गए हैं। अब 9ानते हैं पंचांग की दृष्टिष्ट भद्रा का महत्�। विहन्दू पंचांग के पांच प्रमुख अंग होते हैं। यह है - वितशिथ, �ार, योग, नक्षत्र और कर*। इनमें कर* एक महत्�प!*" अंग होता है। यह वितशिथ का आधा भाग होता है। कर* की संख्या ग्यारह होती है। यह चर और अचर में बांEे गए हैं। चर या गवितशील कर* में ब�, बाल�, कौल�, तैवितल, गर, �णि*9 और वि�ष्टिष्ट विगने 9ाते हैं। अचर या अचशिलत कर* में शकुविन, चतुष्पद, नाग और विकस्तुघ्न होते हैं। इन ग्यारह कर*ों में सात�ां कर* वि�ष्टिष्ट का नाम ही भद्रा है। यह सदै� गवितशील होती है। पंचाग शुजिद्ध में भद्रा का खास महत्� होता है। भद्रा का शाब्दि�दक अथ" कnया* करने �ाली होता है। पिक�तु इस अथ" के वि�परीत भद्रा या वि�ष्टी कर* में शुभ काय" विनषेध बताए गए हैं। धम"गं्रथो और ज्योवितष वि�ज्ञान के अनुसार अलग-अलग राशिशयों के अनुसार भद्रा तीनों लोकों में घ!मती है। इसी दौरान 9ब यह पृर्थ्य�ी या मृत्युलोक में होती है, तो सभी शुभ कायZ में बाधक या या उनका नाश करने �ाली मानी गई है। लेविकन अब यह 9ानना भी 9रुरी है विक कैसे माल!म हो विक भद्रा पृर्थ्य�ी पर वि�चर* कर रही है, तो शास्त्रों में यह 9ानकारी भी स्पष्ट है। जि9सके अनुसार - 9ब चंन्द्रमा, कक" , चिस�ह, कंुभ � मीन राशिश में वि�चर* करता है और भद्रा वि�ष्टी कर* का योग होता है, तब भद्रा पृर्थ्य�ीलोक में रहती है। इस समय सभी काय" शुभ काय" �र्जि9�त होते है। इसके दोष विन�ार* के शिलए भद्रा व्रत का वि�धान भी धम"ग्रंथों में बताया गया है। भद्रा का �*"न विहन्दू धम" के पुरा*ों में भी ष्टिमलता है। भद्रा कौन है, उसका स्�रुप क्या है, �ह विक सकी पुत्री है। इस बारे में वि�स्तार से 9ाने इसी �ेबसाईE के भद्रा संबंष्टिधत अन्य आर्दिE�कल में।

Devi दौलतमंद बनाती है ऐसी लक्ष्मी प!9ा

शारदीय न�रावित्र में शशि4 प!9ा का महत्� है। शशि4 के अलग-अलग रुपों में महालक्ष्मी की धन-�ैभ�, महासरस्�ती की ज्ञान और वि�द्या और महादुगा" की बल और शशि4 प्रान्त्रिप्त के शिलए उपासना का महत्� है। दुविनया में ताकत का पैमाना धन भी होता ह इस बार न�रावित्र का आरंभ शुक्र�ार से हो रहा है। इस टिदन दे�ी की प!9ा महत्� है। शुक्र�ार के टिदन वि�शेष रुप से महालक्ष्मी प!9ा बहुत ही धन-�ैभ� देने �ाली और दरिरद्रता का अंत करने �ाली मानी 9ाती है। पुरा*ों में भी माता लक्ष्मी को धन, सुख, सफलता और समृजिद्ध देने �ाली बताया गया है। न�रावित्र में दे�ी प!9ा के वि�शेष काल में हर भ4 दे�ी के अनेक रुपों की उपासना के अला�ा महालक्ष्मी की प!9ा कर अपने व्य�साय से

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अष्टिधक धनलाभ, नौकरी में तरक्की और परिर�ार में आर्थिथ�क समृजिद्ध की कामना प!री कर सकता है। 9ो भ4 नौकरी या व्य�साय के कार* अष्टिधक समय न दे पाए ंउनके शिलए यहां बताई 9ा रही है लक्ष्मी के धनलक्ष्मी रुप की प!9ा की सरल वि�ष्टिध। इस वि�ष्टिध से लक्ष्मी प!9ा न�रावित्र के नौ रातों के अला�ा हर शुक्र�ार को कर धन की कामना प!री कर सकते हैं - - आलस्य छोड़कर सुबह 9nदी उoकर स्नान करें। क्योंविक माना 9ाता है विक लक्ष्मी कम" से प्रसन्न होती है, आलस्य से रुo 9ाती है। - घर के दे�ालय में चौकी पर लाल कपड़ा विबछाकर उस पर चा�ल या अन्न रखकर उस पर 9ल से भरा ष्टिमट्टी का कलश रखें। यह कलश सोने, चांदी, तांबा, पीतल का होने पर भी शुभ होता है। - इस कलश में एक शिसक्का, फ! ल, अक्षत याविन चा�ल के दाने, पान के पते्त और सुपारी डालें।- कलश को आम के पत्तों के साथ चा�ल के दाने से भरा एक ष्टिमट्टी का दीपक रखकर ढांक दें। 9ल से भरा कलश वि�घ्रवि�नाशक ग*ेश का आ�ाहन होता है। क्योंविक �ह 9ल के दे�ता भी माने 9ाते हैं। - चौकी पर कलश के पास हnदी का कमल बनाकर उस पर माता लक्ष्मी की म!र्तित� और उनकी दायीं ओर भग�ान ग*ेश की प्रवितमा बैoाए।ं - प!9ा में कलश बांई ओर और दीपक दाईं ओर रखना चाविहए।- माता लक्ष्मी की म!र्तित� के सामने yीयंत्र भी रखें। - इसके अला�ा सोने-चांदी के शिसक्के, ष्टिमoाई, फल भी रखें। - इसके बाद माता लक्ष्मी की पंचोपचार याविन ध!प, दीप, गंध, फ! ल से प!9ा कर नै�ेद्य या भोग लगाए।ं- आरती के समय घी के पांच दीपक लगाए।ं इसके बाद प!रे परिर�ार के सदस्यों के साथ प!री yद्धा भशि4 के साथ माता लक्ष्मी की आरती करें।- आरती के बाद 9ानकारी होने पर yीस!4 का पाo भी करें। - अंत में प!9ा में हुई विकसी भी गलती के शिलए माता लक्ष्मी से क्षमा मांगे और उनसे परिर�ार से हर कलह और दरिरद्रता को दूर कर सुख-समृजिद्ध और खुशहाली की कामना करें।- आरती के बाद अपने घर के द्वार और आस-पास प!री न�रावित्र या हर शुक्र�ार को दीप 9लाए।ं

दे�ी आपकी राशिश के शिलए विकस दे�ी की प!9ा? पंचोपचार न�रावित्र आराधना का yेष्ठ फल पाने का अ�सर होता है। हर राशिश के लोगों के शिलए न�रावित्र में अलग-अलग दे�ी की उपासना बताई गई है। जि9ससे �े अपनी मनोकामना प!*" करने के शिलए सही प!9ा पाo कर सकें । हर राशिश के ग्रह और नक्षत्रों के आधार पर उनकी अलग-अलग देवि�यां मानी गई हैं। दश महावि�द्या के मुताविबक हर राशिश के शिलए एक अलग महावि�द्या की उपासना करने से, उनके बी9 मंत्रों के 9प से विकसी भी काम में आसानी से सफलता पाई 9ा सकती है। मेष- मेष राशिश के 9ातक शशि4 उपासना के शिलए विद्वतीय महावि�द्या तारा की साधना करें। ज्योवितष के अनुसार इस महावि�द्या का स्�भा� मंगल की तरह उग्र है। मेष राशिश �ाले महावि�द्या की साधना के शिलए इस मंत्र का 9प करें। मंत्र- ह्रीं स्त्रीं हूं फE् �ृषभ- �ृषभ राशिश �ाले धन और शिसजिद्ध प्राप्त करने के शिलए yी वि�द्या याविन षोडषी दे�ी की साधना करें और इस मंत्र का 9प करें। मंत्र- ऐं क्लीं सौ: ष्टिमथुन- अपना गृह0 9ी�न सुखी बनाने के शिलए ष्टिमथुन राशिश �ाले भु�नेश्वरी दे�ी की साधना करें। साधना मंत्र इस प्रकार है। मंत्र- ऐं ह्रीं कक" - इस न�रावित्र पर कक" राशिश �ाले कमला दे�ी का प!9न करें। इनकी प!9ा से धन � सुख ष्टिमलता है। नीचे शिलखे मंत्र का 9प करें। मंत्र- ऊं yीं चिस�ह - ज्योवितष के अनुसार चिस�ह राशिश �ालों को मां बगलामुखी की आराधना करना चाविहए। जि9ससे शतु्रओं पर वि�9य ष्टिमलती है। मंत्र- ऊं हृी बगलामुखी स�"दुष्टानां �ाचं मुखं पदं स्तंभय जि9हंृ कीलय कीलय बुद्धिद्ध� वि�नाशाय हृी ऊं स्�ाहा कन्या- आप चतुथ" महावि�द्या भु�नेश्वरी दे�ी की साधना करें आपको विनणिश्चत ही सफलता ष्टिमलेगी। मंत्र- ऐं ह्रीं ऐं तुला- तुला राशिश �ालों को सुख � ऐश्वय" की प्रान्त्रिप्त के शिलए षोडषी दे�ी की साधना करनी चाविहए। मंत्र- ऐं क्लीं सौ: �ृणिश्चक- �ृणिश्चक राशिश �ाले तारा दे�ी की साधना करें। इससे आपको शासकीय कायZ में सफलता ष्टिमलेगी। मंत्र- yीं ह्रीं स्त्रीं हूं फE् धनु - धन और यश पाने के शिलए धनु राशिश �ाले कमला दे�ी के इस मंत्र का 9प करें। मंत्र- yीं मकर- मकर राशिश के 9ातक अपनी राशिश के अनुसार मां काली की उपासना करें। मंत्र- क्रीं कालीकाये नम: कंुभ- कंुभ राशिश �ाले भी काली की उपासना करें इससे उनके शत्रुओं का नाश होगा। मंत्र- क्रीं कालीकाये नम: मीन- इस राशिश के 9ातक सुख समृजिद्ध के शिलए कमला दे�ी की उपासना करें। मंत्र- yी कमलाये नम:

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विपतरों को नहीं भ!लें अंवितम मौका है, न भ!लें विपतरों की खुशी के ऐसे उपाय

विहन्दू पंचांग के आणिश्वन माह के कृष्*पक्ष याविन yाद्धपक्ष में विपतरों की प्रसन्नता के शिलए अंवितम अ�सर स�"विपतृ अमा�स्या माना 9ाता है। यह वितशिथ इस बार (7 अक्E!बर) को आएगी। कोई yाद्ध का अष्टिधकारी विपतृपक्ष की सभी वितशिथयों पर विपतरों का yाद्ध या तप"* च!क 9ाए ंया विपतरों की वितशिथ याद न हो तब इस वितशिथ पर सभी विपतरों का yाद्ध कर सकते हैं। इसशिलए यह विपतृमोक्ष अमा�स्या या स�"विपतृ अमा�स्या के नाम से प्रशिसद्ध है।

जि9न दंपणित्तयों के यहां ३ पुवित्रयों के बाद एक पुत्र 9न्म लेता है या 9ुड़�ां संतान पैदा होती है। उनको स�"विपतृ अमा�स्या का yाद्ध 9रुर करना चाविहए।

स�"विपत् अमा�स्या को विपतरों के yाद्ध से सौभाग्य और स्�ास्थ्य प्राप्त होता है। धार्मिम�क मान्यता है विक इस वितशिथ पर विपतृ आत्मा अपने परिर9नों के पास �ायु रुप में ब्राह्म*ों के साथ आते हैं। उनकी संतुष्टिष्ट पर विपतर भी प्रसन्न होते हैं। परिर9नों के yद्धाप!�"क yाद्ध करने से �ह तृप्त और प्रसन्न होकर आशी�ा"द देकर 9ाते हैं, पिक�तु उनकी उपेक्षा से दु:खी होने पर yाद्धकता" का 9ी�न भी कष्टों से बाष्टिधत होता है।

स�"विपतृ अमा�स्या के टिदन विपतरों की तृन्त्रिप्त से परिर�ार में खुशिशयां लाने का yाद्धपक्ष का अंवितम अ�सर न च!क 9ाए।ं इसशिलए यहां बताए 9ा रहे हैं कुछ उपाय जि9नका अपनाने से भी आप विपतरों की तृन्त्रिप्त कर सकते हैं -

- स�"विपतृ अमा�स्या को पीपल के पेड़ के नीचे पुड़ी, आल! � इमरती या काला गुलाब 9ामुन रखें। - पेड़ के नीचे ध!प-दीप 9लाए ं� अपने कष्टों को दूर करने की प्राथ"ना करें। विपतरों का ध्यान कर नमस्कार करें। ऐसा करने पर आप 9ी�न में खुशिशयां � अनपेणिक्षत बदला� 9रुर देखेंगे। - घर के मुख्य प्र�ेश द्वार सफेद फ! ल से स9ाए।ं - इस टिदन पांच फल गाय को ब्दिखलाए।ं - विपतरों के विनष्टिमत्त ध!प देकर इस टिदन तैयार भो9न में से पांच ग्रास गाय, कुत्ता, कौ�ा, दे�ता और चींEी या मछली के शिलए 9रुर विनकालें और ब्दिखलाए।ं - यथाशशि4 ब्राह्म* को भो9न कराए।ं �स्त्र, दणिक्ष*ा दें। 9ब ब्राह्म* 9ाने लगे तो उनके चर* छुएं, आशी�ा"द लें और उनके पीछे आo कदम चलें। - ब्राह्म* के भो9न के शिलए आने से पहले ध!पबत्ती अ�श्य 9लाए।ं

इस तरह स�"विपतृ अमा�स्या को yद्धा से प!�"9ों का ध्यान, प!9ा-पाo, तप"* कर विपतृदोष के कार* आने �ाले कष्ट और दुभा"ग्य को दूर करें। इस टिदन को विपतरों की प्रसन्नता से �रदान बनाकर मंगलमय 9ी�न व्यतीत विकया 9ा सकता है। ...........................