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SIDDHI VINAYAK ONLINE CLASSES 1 https://thehindipage.com/ Join Telegram- https://t.me/bhartibhandar Our Website- https://thehindipage.com/blog/ Join Telegram- https://t.me/siddhivinayakpariwarsangaria Our Youtube Channel- https://www.youtube.com/channel/UCJlUDM0uPI L7kEO0ZMdDcHg का 12 हदी साहम अमाम 07 - मशोधया भैथथरीशयण ग वत नठ न 1. मह गौयव की फात क वाभी गमे | () वैराय हेत () सधध हेत () राय ातत हेत () तीथथ याा हेत उर: () सधध हेत 2. मशोधया को ऩीडा है क उसके ऩनत चरे गए () सोता ह आ छोकर () ऱय बताए बना () चोरी-चोरी () खाना खाए बबना। उर: () चोरी-चोरी 3. कवव के अन साय क नत का ऩ म तीथथर है () भारतवषथ () हमाऱय () गॊगा () सागर। उर: () भारतवषथ अनतरघ याभक न 1. मशोधयाका कामऱऩ मा है ? उर: यशोधराका कायऱऩ खडकाय है। 2. मशोधया द खी म है ? उर: यशोधरा अऩने ऩतत ससधाथथ के चोरी-चोरी चऱे जाने के कारण द :खी है। 3. बायतवषथ अम देश का ससयभौय म है ? उर: भारतवषथ सॊसार का सबसे ाचीन देश होने के कारण अय देश का ससरमौर है। 4. बायतवषथ को क नत का ऩ म तीथथर म कहा जाता है ? उर: भारतवषथ म क त का अऩार वैभव बबखरा ऩा है। रघ याभक न 1. मशोधया की भ र सॊवेदना अऩने शद भ सरखखए। उर: 'यशोधरा' कववता म गौतम ब ध के राजग ह को यागकर चऱे जाने के ऩचात् उनकी ऩनी यशोधरा के लदय म उऩन भाव का मासमथक एवॊ मनोवैऻातनक धचण है। यशोधरा अऩने ऩतत के समवऩथत है। जो उसके ऩत को माय है , वही यशोधरा को भी वीकार है। ससधध हेत उनके जाने म भी वह गौरव अन भव करती है। कत उनके च ऩचाऩ चोरी- चोरी, उससे क छ कहे बबना चऱे जाना उसको बह ऩीा ऩह चाता है। इसम उसको अऩनी उऩेा का भाव

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कऺा 12 हहन्दी साहहत्म

अध्माम 07 - मशोधया भैथथरीशयण गुप्त

वस्तुननष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1. मह गौयव की फात कक स्वाभी गमे|

(क) वैराग्य हेतु (ख) ससद्धध हेतु (ग) राज्य प्राप्तत हेत ु

(घ) तीथथ यात्रा हेतु। उत्तर: (ख) ससद्धध हेतु

प्रश्न 2. मशोधया को ऩीडा है कक उसके ऩनत चरे गए हैं –

(क) सोता हुआ छोड़कर

(ख) ऱक्ष्य बताए बबना (ग) चोरी-चोरी (घ) खाना खाए बबना। उत्तर: (ग) चोरी-चोरी

प्रश्न 3. कवव के अनुसाय प्रकृनत का ऩुण्म तीथथस्थर है –

(क) भारतवषथ (ख) हहमाऱय

(ग) गॊगा (घ) सागर। उत्तर: (क) भारतवषथ

अनतरघुत्तयात्भक प्रश्न

प्रश्न 1. „मशोधया‟ का काव्मरूऩ क्मा है ?

उत्तर: ‘यशोधरा’ का काव्यरूऩ खण्डकाव्य है।

प्रश्न 2. मशोधया दु् खी क्मों है ?

उत्तर: यशोधरा अऩने ऩतत ससद्धाथथ के चोरी-चोरी चऱे जाने के कारण द:ुखी है।

प्रश्न 3. बायतवषथ अन्म देशों का ससयभौय क्मों है?

उत्तर: भारतवषथ सॊसार का सबसे प्राचीन देश होने के कारण अन्य देशों का ससरमौर है।

प्रश्न 4. बायतवषथ को प्रकृनत का ऩुण्म तीथथस्थर क्मों कहा जाता है ?

उत्तर: भारतवषथ में प्रकृतत का अऩार वैभव बबखरा ऩड़ा है।

रघुत्तयात्भक प्रश्न

प्रश्न 1. मशोधया की भूर सॊवेदना अऩने शब्दों भें सरखखए। उत्तर: 'यशोधरा' कववता में गौतम बुद्ध के राजगहृ को त्यागकर चऱे जाने के ऩश्चात ्उनकी ऩत्नी यशोधरा के रृदय में उत्ऩन्न भावों का मासमथक एवॊ मनोवैऻातनक धचत्रण है। यशोधरा अऩने ऩतत के प्रतत समवऩथत है। जो उसके ऩतत को मान्य है, वही यशोधरा को भी स्वीकार है। ससद्धध हेतु उनके जाने में भी वह गौरव अनुभव करती है। ककन्तु उनके चऩुचाऩ चोरी-चोरी, उससे कुछ कहे बबना चऱे जाना उसको बहुत ऩीड़ा ऩहुॉचाता है। इसमें उसको अऩनी उऩेऺा का भाव

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प्रतीत होता है यह उऩेऺा उसके ववरह द:ुख को दनूा कर देती है।इस सॊकऱन में यशोधरा की सहज नारीगत वेदना , ऺोभ, सॊताऩ के साथ-साथ उसके माततृ्व और वात्सल्य का भी प्रभावशाऱी अॊकन है। यही इस कववता की मूऱ सॊवेदना है।

प्रश्न 2. “दु् खी न हों इस जन के दु् ख से ऩॊक्क्त भें मशोधया ने „जन‟ शब्द का प्रमोग ककसके सरए ककमा है?

उत्तर: “दखुी न हों इस जन के दु् ख से ’ ऩॊप्तत में ‘जन’ शब्द का प्रयोग यशोधरा ने स्वयॊ अऩने सऱए ककया है। यद्यवऩ उसे इस बात की ऩीड़ा है कक उसके ऩतत ने उसकी उऩेऺा की है , वह उसको बबना बताए घर से चऱे गए हैं। इससऱए यशोधरा आत्मग्ऱातन में भरकर स्वयॊ को ससद्धाथथ की ऩत्नी या अधाांधगनी ना कह कर एक साधारण मनुष्य अथाथत 'जन' कहती है।

प्रश्न 3. “उऩारम्ब दूॉ भैं ककस भुख से ”-मशोधया ने मह क्मों कहा है?

उत्तर: मनुष्य प्जस से प्रेम भाव रखता है उसी को उऩाऱम्भ दे सकता है। ससद्धाथथ अऩनी ऩत्नी यशोधरा से बबना कुछ कहे सुने चोरी-चोरी घर त्याग कर चऱे गए हैं और इससे यशोधरा बहुत आहत भी है, थे ससद्धाथथ प्रेम ऩूवथक यशोधरा से गहृ त्याग के सऱए अनुमतत माॊगते तो ही यशोधरा को अऩने ऩतत के इस महान कायथ ऩर असभमान होता ऩरॊतु ससद्धाथथ ने यशोधरा की ऩूणथतया अऩेऺा करती और उनके प्रेम को अनदेखा कर हदया। यहद ससद्धाथथ दाॊऩत्य प्रेम का तनवाथह करते तो ही यशोधरा उन्हें उऱाहना देना उधचत समझती है। ऩतत के उऩेऺा ऩूणथ व्यवहार को देखकर रृदय में उठने वाऱी ऩीड़ा के कारण यशोधरा ने ऐसा कहा है।

प्रश्न 4. कवव ने बायतवषथ को ब-ूरोक का गौयव क्मों फतामा है ? अऩने शब्दों भें सरखखए।

उत्तर: प्राकृततक वैभव से समदृ्ध भारत भूसम ऋवषया-महवषथयों की भूसम रही है। इस भूसम ऩर अनेक वीर ,

ऋवष-मुतन. दानी और धचॊतकों ने जन्म सऱया है। भारत भूसम सॊसार के सम्ऩूणथ देशों में ससरमौर है यह वह ऩुण्य भूसम है ; प्जसके तनवासी समस्त ववद्याओॊ एवॊ कऱा-कौशऱ के प्रथम आचायथ रहे हैं। कवव ने इस कारण भारत को ऩथृ्वी का गौरव बताया है।

ननफन्धात्भक प्रश्न

प्रश्न 1. “मशोधया‟ के ऩहठत काव्माॊश के आधाय ऩय मशोधया की चारयत्रिक ववशषेताएॉ प्रकट कीक्जए।

उत्तर: ‘यशोधरा’ के ऩहठत काव्याॊश में यशोधरा के चररत्र की तनम्नसऱखखत ववशषेताएॉ व्यप्जजत हुई हैं-

1. ववयहहणी नानमका- इस काव्याॊश की नातयका यशोधरा है। यशोधरा के ऩतत ससद्धाथथ उसे रात में सोते हुए छोड़कर तऩस्या के सऱए चऱे गए। वह उनके ववरह में व्याकुऱ है यशोधरा के ववरह का सुॊदर धचत्रण इस काव्याॊश में हुआ है।

2. उऩेक्षऺता नानमका- यशोधरा के प्रतत ससद्धाथथ जब गहृ त्याग ककया तो इस सॊबॊध में यशोधरा से बबल्कुऱ भी ववचार-ववमशथ नहीॊ ककया और उसे बबना बताए ही आधी रात में घर से तनकऱ गए। इस तरह उन्होंने यशोधरा और उनके प्रेम की ऩूणथतया उऩेऺा की है।

3. सभवऩथत ऩत्नी- यशोधरा ऩूणथतया अऩने ऩतत को समवऩथत ऩत्नी के रूऩ में धचबत्रत हुई है। यशोधरा स्वयॊ कहती है कक- 'मैंने मुख्य उसी को जाना जो भी मन में ऱाते

सखख, वे मुझसे कहकर जाते'

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जो बात उनके ऩतत को स्वीकार होती उसी को उन्होंने स्वीकार ककया है वह ससद्धाथथ की बात को हमेशा मान देती थी।

4. वीय ऺिाणी- यशोदा वीर ऺत्राणी है। वह ऺत्राणी के धमथ का ऩाऱन के सऱए सदा तैयार रहती है। यशोधरा कहती है कक जब भी समय आया है तब हम ऺत्राखणयों ने स्वयॊ ही अऩने ऩततयों को अऩने हाथों से तैयार करके रणभूसम में भेज देती हैं।

प्रश्न 2. भैथथरीशयण गुप्त जी को बायतीम साॊस्कृनतक नव जागयण कार का याष्रकवव क्मों कहा जाता है?

उत्तर: मैधथऱीशरण गुतत को राष्रकवव इससऱए माना जाता है। तयोंकक गुतत जी की रचनाओॊ में राष्रीयता ,

स्वदेश प्रेम , युगीन चतेना और भारतीय सॊस्कृतत की छाऩ ऩूरी तरह हदखाई देती है 'भारत-भारती' नामक रचना से इन्हें अत्यधधक ऱोकवप्रयता प्रातत हुई। गुतत जी की रचनाओॊ में मानव जीवन और समाज के ववववध अॊगों की समस्याओॊ का धचत्रण हुआ है। उनमें भारतीय सॊस्कृतत की प्राचीनता के प्रतत ऩूज्य भाव है तो नए ऩररवतथन के प्रतत भी तीव्र उत्साह है। द्वववेदी युगीन आदशथवादी नैततकता , ऩववत्रता, ऩौराखणक आख्यानों की तकथ सॊगत व्याख्या एवॊ समसामतयक राष्रीय हऱचऱों की तीव्र गूॉज उनके काव्य में है वे सामाप्जक उत्ऩीड़न , राजनीततक दासता तथा धासमथक सॊकीणथता के ववरोधी हैं। उन्हें भारतीय साॊस्कृततक नव जागरण का कवव कहा जाता है। देश एवॊ मातभृूसम के प्रतत गवथ तथा गौरव , राष्रीय जागरण से ओत-प्रोत भारत भारती की कववताओॊ ने इन्हें राष्रकवव के रूऩ में प्रततप्ष्ठत ककया है।

प्रश्न 3. बायत की शे्रष्ठता ‟ भें असबव्मक्त बावों को अऩने शब्दों भें सरखखए।

उत्तर: ‘भारत की शे्रष्ठता’ शीषथक काव्याॊश मैधथऱीशरण गुतत की प्रससद्ध रचना ‘भारत-भारती’ से उद्धतृ है। इस काव्याॊश मैं कभी नहीॊ भारत की शे्रष्ठता के ववषय में तनम्नसऱखखत भाव व्यतत ककए हैं- 1. अतीत का गौयव गान- इस काव्याॊश में भारतवषथ के अतीत के गौरव का भव्य धचत्र अॊककत हुआ है। भारत इस ऩथृ्वी ऱोक का गौरव है। यह प्रकृतत का मनोरम क्रीड़ास्थऱ है। यहाॉ ऩवथतराज हहमाऱय तथा ऩावन गॊगा नदी है। यह ऋवष-मुतनयों की तऩोभूसम है।

2. ववश्व का ससयभौय- भारत सॊसार के सभी देशों में सवथशे्रष्ठ है। प्राचीन देश भारत सॊसार के देशों का ससरमौर है। इस सॊसार में इतना अधधक ऩुरातन देश कोई दसूरा नहीॊ है। ऩथृ्वी ऩर ईश्वर की जो देन है उन सबका भण्डार भारत में ही हुआ है। भारत भूसम ऩर ही ब्रह्मा जी ने सपृ्ष्ि का आरम्भ ककया है। 3. ऻान का बॊडाय- इस ऩावन भूसम के तनवासी आयथ कहऱाते हैं। आयथ ऻान-ववऻान और कऱा-कौशऱ के ऻाता तथा ववद्वान हैं। समस्त सॊसार को उन्होंने ही ऻान की दीऺा दी है। हम भारतीय उनकी ही सॊतान हैं।

प्रश्न 4. बायतवषथ के अतीत की ववशषेताओॊ ऩय प्रकाश डासरए। उत्तर: भारत की शे्रष्ठ का नमक काव्याॊश में गुतत जी ने भारत की अनेकानेक ववशषेताओॊ का वणथन ककया है उनमें से प्रमुख ववशषेताएॊ तनम्नसऱखखत हैं- 1. सॊसाय का प्राचीनतभ देश- भारत इस सॊसार का प्राचीनतम देश है। सॊसार में सवथप्रथम इसी देश में सपृ्ष्ि आरम्भ हुई थी। इस देश के तनवासी आयथ कहऱाते थे। आयथ शे्रष्ठ ऩुरुष थे। वे ऻान-ववऻान के ऻाता तथा कऱा-कौशऱ के ववद्वान थे। भारत के ऱोगों ने ही समस्त सॊसार को ऻान ससखाया था।

2. सभ्मता औय सॊस्कृनत का कें द्र- भारत ने दसूरे देशों में सभ्यता और सॊस्कृतत की सशऺा दी थी।

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प्राचीन भारत सुसॊस्कृत और सभ्य तो था ही वह सम्ऩन्न भी था। यही कारण है कक भारत को ववश्व गुरु कहा जाता है। 3. अनुऩभ प्राकृनतक सौंदमथ- भारत भूसम की प्राकृततक सुषमा अद्ववतीय थी। यह भूसम शस्य-श्यामऱा थी। यहाॉ ववववध ऋतुएॉ समय ऩर आती और जाती थीॊ। तरह-तरह की वनस्ऩततयाॉ इस देश में उत्ऩन्न होती थीॊ। ईश्वर ने अऩनी समस्त ववभूततयाॉ सवथप्रथम इसी देश को प्रदान की थीॊ।

4. उच्च भानवीम आदशथ- यहाॉ धन-धान्य का भण्डार था। ऱोग सुखी और समदृ्ध थे। प्राचीन भारत के तनवासी सुसॊस्कृत, सभ्य तथा सशक्षऺत थे, वे ऩरोऩकारी, दानी, स्नेही तथा सेवाभावी थे। यह देश उच्च मानवीय आदशों का कें द्र था। इस प्रकार भारत का अतीत अत्यन्त गौरवऩूणथ था।

कऺा 12 हहन्दी साहहत्म - अध्माम 06 – मशोधया - भैथथरीशयण गुप्त

कवव ऩरयचम

याष्रकवव की उऩाथध से सम्भाननत बायतीम सॊस्कृनत के भहान ्उद्गाता श्री भथैथरीशयण गुप्त का जन्भ उत्तय प्रदेश के थचयगाॉव (क्जरा झाॉसी) भें सन ् 1886 भें हुआ गुप्त जी द्वववेदी मगु के सवाथथधक रोकवप्रम प्रनतननथध कवव हैं।

गुप्त जी की यचनाओॊ भें याष्रीमता , स्वदेश प्रेभ , मगुीन चतेना औय बायतीम सॊस्कृनत की छाऩ ऩयूी तयह हदखाई देती है। बायत-बायती नाभक यचना से इन्हें अत्मथधक रोकवप्रमता प्राप्त हुई। देश एवॊ भातबृसूभ के प्रनत गवथ तथा गौयव , याष्रीम जागयण से ओत-प्रोत 'बायत बायती ' की कववताओॊ ने इन्हें याष्रकवव के रूऩ भें प्रनतक्ष्ठत ककमा बायत सयकाय ने इन्हें याज्म सबा का सदस्म बी भनोनीत ककमा।

गुप्त जी की यचनाओॊ भें भानव जीवन औय सभाज के ववववध अॊगों की सभस्माओॊ का थचिण हुआ है। उनभें बायतीम सॊस्कृनत की प्राचीनता के प्रनत ऩजू्म बाव है तो नए ऩरयवतथन के प्रनत बी तीव्र उत्साह है। द्वववेदी मगुीन आदशथवादी ननैतकता, ऩवविता, ऩौयाखणक आख्मानों की तकथ सॊगत व्माख्मा एवॊ सभसाभनमक याष्रीम हरचरों की तीव्र गूॉज उनके काव्म भें है वे साभाक्जक उत्ऩीडन , याजनीनतक दासता तथा धासभथक सॊकीणथता के ववयोधी हैं। उन्हें बायतीम साॊस्कृनतक नव जागयण का कवव कहा जाता है।

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गुप्त जी ने खण्डकाव्म, प्रफन्धकाव्म, नाटक एवॊ अनहूदत काव्म आहद ववधाओॊ भें सरखा है। इनकी यचनाओॊ भें बायतबायती ', 'जमद्रथवध', 'ऩॊचवटी', 'गुरुकुर,'झॊकाय,

'साकेत, 'मशोधया', 'द्वाऩय, 'जमबायत, ससद्धयाज', 'ववष्णु वप्रमा आहद ववशषे उल्रेखनीम हैं। 'साकेत' भहाकाव्म ने गुप्त जी को कीनतथ के सशखय ऩय ऩहुॉचामा , क्जसभें याभ के ऩावन चरयि को आधनुनक ऩरयवेश भें थचत्रित कयते हुए उऩेक्षऺता उसभथरा के चरयि को त्मागभमी नायी के रूऩ भें थचत्रित ककमा गमा है ।

ऩाठ-ऩरयचम

प्रस्तुत सॊकरन गुप्त जी के प्रससद्ध काव्म मशोधया से सॊकसरत ककमा गमा है मशोधया भें गौतभ फदु्ध के याजगहृ को त्मागकय चरे जाने के ऩश्चात ्उनकी ऩत्नी मशोधया के रृदम भें उत्ऩन्न बावों का भासभथक एवॊ भनोवऻैाननक थचिण है। गौतभ फदु्ध अऩनी ऩत्नी मशोधया एवॊ ऩिु याहुर को सोता हुआ छोडकय चरे जाते हैं। प्रात् कार होने ऩय मशोधया को जफ ऩता रगता है , तो वह आत्भग्रानन से बयकय वेदना प्रकट कयती है। उसे इस फात का अथधक दु् ख है कक उसके ऩनत उसे त्रफना फताए चरे गए वह कहती है कक ऐसा कयके उन्होंने सम्बवत् हभ ऺिाणी नारयमों को सभझने भें बरू कय दी है। हभ ऺिाणी नारयमाॊ देश की यऺा के सरए अऩने ऩनतमों को खुशी-खुशी यण ऺेि भें बेज देती हैं कपय वे तो जगत कल्माण हेतु ससद्थध प्राप्त कयने के सरए गए हैं इस सॊकरन भें मशोधया की सहज नायीगत वेदना, ऺोब, सॊताऩ के साथ-साथ उसके भाततृ्व औय वात्सल्म का बी प्रबावशारी अॊकन है।

सन्दबथ एवॊ प्रसॊग सहहत व्माख्माएॉ - मशोधया

1. ससद्थध-हेतु स्वाभी गमे, मह गौयव की फात,

ऩय चोयी-चोयी गमे, मही फडा व्माघात।। सखख, वे भझुसे कहकय जात,े

कह, तो क्मा भझुको वे अऩनी ऩथ-फाधा ही ऩात े

भझुको फहुत उन्होंने भाना, कपय बी क्मा ऩयूा ऩहचाना?

भैंने भखु्म उसी को जाना, जो वे भन भें राते। सखख,

वे भझुसे कहकय जाते।

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शब्दाथथ – ससद्ध-हेतु = सपरता ऩाने के सरए। व्माघात = चोट, ऩीडा।

सन्दबथ तथा प्रसॊग – प्रस्तुत काव्माॊश हभायी ऩाठ्म-ऩसु्तक सयम ूभें सॊकसरत ‘मशोधया’ शीषथक कववता से उद्धतृ है। इसके यचनमता याष्र-कवव भथैथरीशयण गुप्त हैं। ससद्धाथथ अऩनी ऩत्नी मशोधया तथा ऩिु याहुर को यात भें सोता छोडकय चऩुचाऩ तऩस्मा कयने के सरए घय से चरे गए है। उनका इस प्रकाय जाना मशोधया को फहुत ऩीडा देता है। वह अऩने कष्ट की फात अऩनी सखी को फता यही है।

व्माख्मा– ससद्धाथथ मशोधया को सोते हुए छोड कय गहृ त्माग कय देते हैं। इसी सॊदबथ भें मशोधया कहती है- हे सखख, भेये स्वाभी (ऩनत) ससद्थध प्राप्त कयने के सरए गए हैं। मह फात भझु ेगौयव प्रदान कयने वारी है , ककन्तु वह भझुको त्रफना फतामे चऩुचाऩ चरे गए, मह फात भझु ेअत्मन्त चोट ऩहुॉचा यही है। हे सखख , महद वे भझुसे फताकय जाते तो भझु ेइतना कष्ट न होता । महद वे भझुको फता देते तो क्मा भ ैउनको ससद्थध के सरए जाने से योकती ? भैं जानती हूॉ कक उन्होंने भझुको फहुत भाना है ,

ककन्तु तफ बी वह भझु ेऩयूी तयह ऩहचान नहीॊ ऩाए। भैंने कबी उनकी उऩेऺा नहीॊ की। जो फात उनको ठीक रगती थी , भैंने सदैव उसको ही स्वीकाय ककमा है। ऩयन्तु वह भझुको त्रफना फताए ही चरे गए। महद वे भझुसे कहकय जाते तो भझु ेइतनी ऩीडा न होती। ववशषे –

1. मशोधया की व्मथा का भासभथक थचिण हुआ है। 2. मशोधया ससद्धाथथ को फहुत पे्रभ कयती है , उनका चऩुचाऩ जाना मशोधया ऩीडा

ऩहुॉचा यहा है। 3. अनपु्रास तथा ऩनुरुक्क्त अरॊकाय हैं। गीनतकाव्म शरैी है। 4. बाषा सयर, सयस खडी फोरी है।

2. स्वमॊ ससुक्ज्जत कयके ऺण भें, वप्रमतभ को, प्राणों के ऩण भें, हभीॊ बेज देती हैं यण भेंऺाि धभथ के नाते।। सखख, वे भझुसे कहकय जाते।

हुआ न वह बी बाग्म अबागा, ककस ऩय ववपर गवथ अफ जागा?

क्जसने अऩनामा था, त्मागा। यहे स्भयण ही आते! सखख, वे भझुसे कहकय जाते।

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शब्दाथथ – प्राणों का ऩण = जीवन का फाजाय अथाथत ्मदु्ध बसूभ। यण = मदु्ध। ऺाि-धभथ = ऺत्रिम का कतथव्म। सन्दबथ तथा प्रसॊग – प्रस्तुत काव्माॊश हभायी ऩाठ्म-ऩसु्तक सयम ूभें सॊकसरत ‘मशोधया’ शीषथक कववता से उद्धतृ है। इसके यचनमता याष्र-कवव भथैथरीशयण गुप्त हैं। मशोधया को ऩीडा इस फात की है कक उसके ऩनत ससद्धाथथ ने उसको गहृ-त्माग के सम्फन्ध भें कुछ बी नहीॊ फतामा । महद वह उसको फताकय जाते तो वह उनको जाने के सरए स्वमॊ ही सहषथ कह देती।

व्माख्मा – मशोधया कहती है कक हभ ऺिाखणमाॉ स्वदेश की यऺा के सरए मदु्ध का आह्वान होने ऩय अऩने वप्रम ऩनतमों को अस्ि-शस्ि से सजाकय मदु्ध बसूभ के सरए ववदा कयती हैं। उसभें थोडा बी ववरम्फ नहीॊ होता। मदु्ध बसूभ भें प्राणों का फाजाय सजा होता है। ककन्तु हभ ऺत्रिम नारयमाॉ अऩने ऺत्रिम धभथ का ऩारन भें देय नहीॊ कयती हैं। हे सखी काश ! वह भझुसे कहकय जाते। भझु ेउन्होंने मह सौबाग्म बी प्रदान नहीॊ ककमा। भझु ेतो अऩने ऺिाणी-धभथ के ऩारन कयने ऩय गवथ कयने का अवसय बी प्राप्त नहीॊ हुआ। कबी क्जसने भझु ेअऩनी अधाांथगनी के रूऩ भें अऩनामा था, अफ उसने ही भझुको त्माग हदमा है। अफ तो भेयी मही काभना है कक वह भझुको माद आते यहें। हे सखख, महद वे भझुसे फताकय जाते तो भझु ेइतना द:ुख न होता। ववशषे –

1. कवव ने मशोधया की व्मथा का सजीव एवॊ भासभथक थचिण ककमा है। 2. ववमोग शृॊगाय यस का सुॊदय थचिण है। अनपु्रास तथा रूऩक अरॊकाय है। 3. गीनत शरैी है। 4. बाषा सॊयर, सयस तथा ववषमानकूुर है।

3. नमन उन्हें हैं ननष्ठुय कहत,े

ऩय इनसे जो आॉस ूफहत,े

सदम रृदम वे कैसे सहत?े

गमे तयस ही खाते। सखख,

वे भझुसे कहकय जाते।

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शब्दाथथ – ननष्ठुय = दमाहीन, ननदथम। सदम = दमार।ु सन्दबथ तथा प्रसॊग – प्रस्तुत काव्माॊश हभायी ऩाठ्म-ऩसु्तक सयम ूभें सॊकसरत ‘मशोधया’ शीषथक कववता से उद्धतृ है। इसके यचनमता याष्र-कवव भथैथरीशयण गुप्त हैं। मशोधया के ऩनत ससद्धाथथ गहृ त्माग कय चरे गए हैं। इससे दु् खी मशोधया अऩनी सखी से अऩने सॊताऩ की चचाथ कय यही है। अऩने ऩनत को उसको त्रफना फताए चऩुचाऩ चरे जाना आहत कय यहा है।

व्माख्मा – ऩनत के ववमोग भें दखुी मशोधया कहती है कक हे सखख , भेये नेि कहते हैं कक भेये ऩनत ननदथम हैं तबी तो वह त्रफना फताए चऩुचाऩ चरे गए हैं। ककन्तु मह फात सच नहीॊ है वह अत्मन्त दमार ुहैं। महद वह भझु ेफताकय घय से जाते तो भेयी आॉखों से द:ुख के कायण आॉस ूफहने रगते। उन आॉसओुॊ को दमार ुरृदम वारे भेये वह वप्रमतभ सहन नहीॊ कय ऩाते। भझु ऩय तयस खाकय ही उन्होंने भझ ेकुछ नहीॊ फतामा औय वह चऩुचाऩ चरे गए। काश ! वह भझु से कहकय वन के सरए प्रस्थान कयते। ववशषे –

1. मशोधया को प्रतीत होता है कक चऩुचाऩ जाकय बी ससद्धाथथ ने उस ऩय दमा ही प्रदसशथत की है।

2. गीनत छन्द है। 3. ववप्ररॊब श्रृॊगाय यस है। 4. सयर, सयस तथा प्रवाहऩणूथ खडी फोरी है।

4. जाएॉ, ससद्थध ऩावें वे सखु से,

दु् खी न हों इस जन के दु् ख से

उऩारम्ब हूॉ भैं ककस भखु से?

आज अथधक वे बाते! सखख, वे भझुसे कहकय जाते। गमे, रौट बी वे आवेंगे, कुछ अऩवूथ-अनऩुभ रावेंगे ?

योते प्राण उन्हें ऩावेंगे?

ऩय क्मा गाते-गात,े सखख, वे भझुसे कहकय जाते।

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शब्दाथथ– ससद्थध = सपरता। इस जन = मशोधया। उऩारम्ब = उराहना। बाते = अच्छे रगते हैं। सन्दबथ तथा प्रसॊग – प्रस्तुत काव्माॊश हभायी ऩाठ्म-ऩसु्तक सयम ूभें सॊकसरत ‘मशोधया’ शीषथक कववता से उद्धतृ है। इसके यचनमता याष्र-कवव भथैथरीशयण गुप्त हैं। मशोधया अऩने ऩनत ससद्धाथथ के घय छोड जाने के कायण फहुत द:ुखी है। वह अऩनी सखी से अऩने भन के द:ुख के फाये भें फातें कय यही है। उसको आशा है कक बववष्म भें कबी उसके ऩनत उसको अवश्म दशथन देंगे।

व्माख्मा– ऩनत ववमोग भें व्माकुर मशोधया कहती है कक हे सखख , भेये ऩनत ससद्थध प्राप्त कयने के सरए चरे जाएॉ , भैं उनको नहीॊ योकुॊ गी। वह सखु ऩामें औय अऩने रक्ष्म को ऩाने भें सपर हों वह भेये फाये भें सोचकय अऩने भन भें दु् खी नहीॊ हों। भैं उनसे कोई उराहना नहीॊ दे यही। भझु ेतो आज वह ऩहरे से बी अथधक वप्रम रगते हैं, अच्छा होता वह भझुसे कहकय जाते। वह चरे तो गए हैं , ककन्तु भझु ेववश्वास है कक वह ऩनु् आमेंगे। जफ वह आमेंगे तो अऩने साथ अऩनी अनोखी उऩरक्ब्ध, अथाथत अऩनी ससद्थधमाॉ बी रामेंगे। आज भैं उनके ववयह भें आॉस ूफहा यही हैं ककन्तु उनसे सभरकय भेया कष्ट सभट जामेगा औय भैं गा-गाकय उनका स्वागत-सत्काय करूॊ गी। हे सखख, महद वह भझुसे कहकय जाते तो ककतना अच्छा होता । ववशषे –

1. मशोधया के ववयह का भभथस्ऩशी थचिण ककमा है। 2. ववमोग श्रृॊगाय यस है। 3. ऩनुरुक्क्त तथा अनपु्रास अरॊकाय हैं। 4. गीनतकाव्म शरैी है। 5. बाषा सयर, सयस तथा ववषमानरुूऩ, बावानकूुर है।

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सन्दबथ एवॊ प्रसॊग सहहत व्माख्माएॉ -बायत की शे्रष्ठता 1. ब-ूरोक का गौयव, प्रकृनत का ऩणु्म रीरा स्थर कहाॉ ?

पैरा भनोहय थगरय हहभारम औय गॊगाजर जहाॉ ।। सम्ऩणूथ देशों से अथधक ककस देश का उत्कषथ है?

उसका कक जो ऋवषबसूभ है, वह कौन, बायतवषथ है।।

शब्दाथथ– ब-ूरोक = धयती । ऩणु्म = ऩववि। रीरास्थर = क्रीडाबसूभ। थगरय = ऩवथत। उत्कषथ = उत्थान। सन्दबथ तथा प्रसॊग – प्रस्तुत काव्माॊश हभायी ऩाठ्म-ऩसु्तक सयम ूभें सॊकसरत ‘बायत की शे्रष्ठता’ शीषथक कववता से उद्धतृ है। इसके यचनमता याष्र-कवव भथैथरीशयण गुप्त हैं। गुप्त जी ने बायत के गौयवशारी अतीत का वणथन कयते हुए उसे सॊसाय का सवथशे्रष्ठ देश फतामा है। बायत का प्राकृनतक सौन्दमथ अनऩुभ है।

व्माख्मा– कवव ऩछूता है कक इस ऩथृ्वी का गौयव कौन-सा देश है ? प्रकृनत की ऩववि क्रीडा बसूभ कौन-सी है। जहाॉ सनु्दय ऩवथत हहभारम तथा गॊगा प्रवाहहत होती है ? वह कौन-सा देश है। जो सॊसाय के सबी देशों भें सवाथथधक उन्नत है ? ऋवष-भनुनमों का ऩावन स्थर कौन-सा है ? कवव स्वमॊ उत्तय देता है कक उस देश को बायतवषथ कहते हैं।

ववशषे –

1. इन ऩॊक्क्तमों भें बायत की भहहभा का गुणगान है।। 2. कवव का उद्देश्म बायतवाससमों के भन भें स्वदेश के प्रनत पे्रभ औय सम्भान

ऩदैा कयना है। 3. अनपु्रास अरॊकाय है। 4. बाषा प्रवाहऩणूथ साहहक्त्मक खडी फोरी है।

2. हाॉ, वदृ्ध बायतवषथ ही सॊसाय का ससयभौय है,

ऐसा ऩयुातन देश कोई ववश्व भें क्मा औय है?

बगवान की बव-बनूतमों का मह प्रथभ बण्डाय है। ववथध ने ककमा नय-सकृ्ष्ट का ऩहरे महीॊ ववस्ताय है।

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शब्दाथथ– वदृ्ध = फढूा , प्राचीन । ससयभौय = सवथशे्रष्ठ , सवोच्च । ऩयुातन = ऩयुाना। औय = अन्म, दसूया। बव-बनूत = साॊसारयक वबैव । बण्डाय = सॊग्रह। ववथध = ब्रह्भा। नय-सकृ्ष्ट = जीवों का जन्भ।।

सन्दबथ तथा प्रसॊग – प्रस्तुत काव्माॊश हभायी ऩाठ्म-ऩसु्तक सयम ूभें सॊकसरत ‘बायत की शे्रष्ठता’ शीषथक कववता से उद्धतृ है। इसके यचनमता याष्र-कवव भथैथरीशयण गुप्त हैं। मह ‘बायत-बायती’ का एक अॊश है। कवव ने बायत के अतीत-गौयव का वणथन ककमा है। बायत ववश्व का सवथशे्रष्ठ देश है। वह ऋवषमों की बसूभ है।

व्माख्मा– कवव कहता है कक बायत ववश्व का सवाथथधक प्राचीन देश है। मह सभस्त देशों भें सवथशे्रष्ठ है। बायत के सभान प्राचीन देश सॊसाय भें कोई नहीॊ है। ईश्वय का क्जतना साॊसारयक वबैव है , उस सफका सॊग्रहारम बायत ही है अथाथत ्बायत भें सकृ्ष्ट की सवोत्तभ चीजें ऩामी जाती है। ब्रह्भा ने जीव-जन्तुओॊ की उत्ऩवत्त को कामथ सवथप्रथभ बायतवषथ भें ककमा था। तात्ऩमथ मह है कक सकृ्ष्ट का आयम्ब बायत बसूभ से ही ककमा था।

ववशषे–

1. बायतीम अतीत का गौयव गान है। 2. प्रस्तुत ऩॊक्क्तमाॉ याष्र-बावना से ओत-प्रोत हैं। 3. बाष सयर, ववषमानकूुर तथा प्रवाहऩणूथ है। 4. अनपु्रास अरॊकाय है।

3. मह ऩणु्मबसूभ प्रससद्ध है इसके ननवासी ‘आमथ’ हैं, ववद्मा, करा-कौशर सबी के जो प्रथभ आचामथ हैं। सन्तान उनकी आज मद्मवऩ हभ अधोगनत भें ऩड।े ऩय थचह्न उनकी उच्चता के आज बी कुछ हैं खड।े।

शब्दाथथ– ऩणु्मबसूभ = ऩववि स्थान। आमथ = शे्रष्ठ , एक जानत। आचामथ = सशऺक। अधोगनत = ऩतन। उच्चता = ऊॉ चाऩन।

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सन्दबथ तथा प्रसॊग – प्रस्तुत काव्माॊश हभायी ऩाठ्म-ऩसु्तक सयम ूभें सॊकसरत ‘बायत की शे्रष्ठता’ शीषथक कववता से उद्धतृ है। इसके यचनमता याष्र-कवव भथैथरीशयण गुप्त हैं। गुप्त जी बायत के अतीत कारीन गौयव के गामक हैं। बायत सॊसाय का प्राचीनतभ तथा शे्रष्ठ देश है। महाॉ के ननवासी ववद्वान तथा करा-कौशर भें दऺ थे।

व्माख्मा– कवव कहता है कक बायत ववश्व का ऩववि स्थर है। इस देश के ननवासी आमथ कहराते हैं। आमथ शे्रष्ठ भनषु्म को कहते हैं। वे भहान ्ववद्वान थे तथा अनेक ववधाओॊ औय कराओॊ के सशऺक थे। सवथप्रथभ उन्होंने ही सॊसाय को ससुशक्षऺत फनामा था तथा करा-कौशर की सशऺा दी थी। हभ उन्हीॊ आमों की सॊतान हैं। मद्मवऩ आज हभाया ऩतन हो गमा, ककन्तु अफ बी उनकी शे्रष्ठता की अनेक यचनाएॉ सॊसाय भें शषे हैं।

ववशषे –

1. कवव ने बायत तथा उसके ननवाससमों की शे्रष्ठता का वणथन ककमा है। 2. बाषा सयर है तथा बावों की व्मॊजना भें सभथथ है। 3. अनपु्रास अरॊकाय व ओज गुण है।

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