shrimad amarkatha mahakavya

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1 आदद भ समऩुरषाम नभ सहज सभाधध विऻान अभयकथाsत ननमभ नमोजजत थभ कयण ीभ अभयकथा भहाकाम (यत वेद) (ी शिि ऩािवती सफाद) ऩाॊचो खडो सहहत यचनाकाय तिदिी सॊत सदगुर ी होयाभदेि जी (देिक ) ऩयभहॊस याजमोग आभ, सॊजम विहाय नकट भेडडकर कारेज, गढ योड, भेयठ

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Page 1: Shrimad Amarkatha Mahakavya

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आदद ब्रह्भ सत्मऩुरुषाम नभ्

सहज सभाधध विऻान अभयकथाsभतृ ननमभ ननमोजजत – प्रथभ प्रकयण

श्रीभद् अभयकथा भहाकाव्म

(सुयत वेद) (श्री शिि ऩािवती सम्फाद)

ऩाॊचो खण्डो सहहत

यचनाकाय तत्िदिी सॊत सदगरुु श्री होयाभदेि जी (देिकुॊ ज)

ऩयभहॊस याजमोग आश्रभ, सॊजम विहाय ननकट – भेडडकर कारेज, गढ योड, भेयठ

Page 2: Shrimad Amarkatha Mahakavya

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श्रीभद् अभयकथा भहाकाव्म

ऩाॊचो खण्डों सहहत

नोट- वप्रमिय मह भहाकाव्म सािवजननक नह ॊ है केिर गरुु भखुि, ऩयभसॊत अथिा ऩयभहॊस अथिा तत्िदिी मोधगमों के शरमे है उनके शरमे मह भजुतत का सेत ुहै।

यचनाकाय तत्िदिी सॊत श्री होयाभदेि जी भहायाज

(ग्राभ दफथुिा िारे)

देिकुॊ ज, ऩयभहॊस याजमोग आश्रभ,

सॊजम विहाय, ऩोस्ट भेडडकर काशरज, भेयठ

द्वितीम सॊस्कयण् िषव 2014 भलू्म्- रू 300/-

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सम्ऩादक / प्रकाशक की ओय से

वप्रम ऩाठकगण,

तत्िदिी ऩयभसॊत श्री होयाभदेि जी भहायाज द्िाया, वप्रम शिष्मों की जजऻासा कक “जगत के ऩयभ तत्ि तथा ऩयभ अभयकथा तत्ि ” जो (श्री शिि जी ने ऩािवती जी के सम्भिु कहा) के सॊम्फन्ध भें उनकी सॊतजुष्ट हेत ुइस अभयकथा भहाकाव्म (शिि – ऩािवती सम्फाद) ऩाॊच िण्डों भे श्री गरुु भहायाज जी की ध्मानािस्था भें जो कुछ उतया है उसे भात्र गरुुभिु, ऩयभसॊत, ऩयभहॊस अथिा तत्िदिी मोधगमों के शरमे उनकी भजुतत के सेत ुरूऩ भें इस अनऩुभ कृनत को प्रसाद रूऩ भें ददमा है।

भझुे विश्िास है कक मह काव्म सॊसाय भें कभवचक्र औय भतृ्म ुचक्र भें बटके प्राखणमों को बि तयनी नाि का कामव कयेगी।

इस भहाकाव्म के ऩरयऩणूव होकय प्रकाशित होने के शरमे श्री इन्रसहाम जी (सहामक अशबमॊता, शस ॊचाई विबाग) ननिासी फयेर का अथाह सहमोग शभरा, जजसके कायण मह भहाकाव्म सऩुात्र ऩयभसॊतों के शरमे एक भोऺ का ियदान शसद्ध होगा।

त्रदुटमों के शरमे ऺभा माचक

आऩका सेिक

सत्मप्रकाि सतसेना

(ट काकाय) (सेिाननितृ्त अधीऺण अशबमॊता जर ननगभ) फी-3/1 याभऩयु गाडवन फयेर

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प्राक्कथन

तत्िदिी सॊत श्री होयाभदेि जी भहायाज अऩने गरुुभिु शिष्मों को उऩदेि कय यहे थे। उन शिष्मों भें से इन्र सहाम . ऻान सागय, चन्रप्रबा एिॊ सत्म प्रकाि सतसेना जी ने भहायाज जी से अभयकथा के यहस्म को जानने की जजऻासा प्रकट की। अऩने शिष्मों के कल्माण हेत ुएिॊ जीिों के उद्धाय हेत ुभहायाज श्री जी ने गोऩनीम मह अभय तत्ि सनुामा जजसकी अभयकथा भहाकाव्म के रूऩ भें आऩ श्री ने यचना कय द । मह काव्म अऩने जन्भ बशूभ ग्राभ दफथुिा जनऩद भेयठ भें प्रायम्ब कयके देिकुॊ ज आश्रभ भेयठ भें सम्ऩणूव ककमा। भहायाज जी ने कई स्थानों ऩय जा जा कय अऩने शिष्मों को अनेकों प्रिचन ददमे एिॊ शिष्मों के घट भें उताया। जो अभय िाॉणी कबी देिताओॊ, ऋवषमों तक ह सीशभत थी, िह अभयकथा भहाकाव्म की यचना कयके भहायाज श्री ने सबी जीिों को भोऺ प्राजतत का द्िाय िोर ददमा है। हभ भहायाज श्री के अनन्त ऋणी हैं, तमोंकक सतमगु से आज तक ऩहर फाय जीिों को मह अभयत्ि प्राजतत का भागव भहाकाव्म रूऩ भें ऩहर फाय आऩ श्रीदेि ने ह प्रदान ककमा है।

भझुे ऩणूव आिा है कक िे सॊतजन, तऩस्िी, मोगी अऩने आत्भोद्धाय के शरमे इस अभयकथा भहाकाव्म की ऩडैी ऩडैी चढ कय अभयत्ि को प्रातत कयेगें। तत्िदिी सॊत श्री होयाभदेि जी भहायाज का मह वििषे उऩहाय यहेगा।

प्रकािक

इन्र सहाम जजऻास ु

सहामक अशबमन्ता शस ॊचाई विबाग, उ0 प्र0

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तत्वदशी ऩयभसॊत श्री होयाभदेव उवाच

स्थान- (देवकुॊ ज) ऩयभहॊस याजमोग आश्रभ सॊजम बफहाय, भेयठ

(धभवऩजत्न श्री जगिती देिी सदहत चाय शिष्म इन्दय सहाम, ऻान सागय, चन्रप्रबा अिनीिदेि तथा सत्मप्रकाि सतसेना के ऻान चचाव प्रश्नों के उत्तय भें मह प्रिचनाॊि ददमा गमा है। जजसभें ऩयभसत्म को जानने की जजऻासा की गई थी।)

वप्रमियों- मह सॊसाय चौयासी राि मोननमों की धाया िारा है इसी धाया के फीच भें इन जीिों को उस जगह ननिास ककमा गमा है जहाॊ चौदह मभ इसकी हय ितत ननगयानी कय यहे है औय चायो िेदों भें उरझाकय िे इसके शरमे मभपाॊस फनामे यित ेहै। िे िेदों का मथाथव ऻान नह ननकार ऩात।े सत्म ऻान को भामा ऻान से ढाॊऩ कय असत्म भें श्रद्धा कयके सफ मभपाॊस भें जकड ेहुिे हैं। उन्ह ॊ भें आनन्द भानकय सत्मानॊद (ब्रह्भानॊद से िॊधचत हो यहे है।) आनन्द भें भस्त है। विषमानॊद तो शभथ्मा एिॊ नयकों भें पाॊसने िारा है। इसके ऩये बजनानॊद है जो प्रब ुपे्रभ का िदु्ध ियैाग्म है। इसी भें ऩणूव होकय जीि ब्रह्भानॊद भें सभाता है।

मह सॊसाय सऩुन की तयह शभथ्मा भामा का भ्रभजार है। भामा के द्िाया ह अनेको ईश्ियों की कल्ऩना साकाय हो यह है। जजसका नाभ ि रूऩ प्रगट हुआ है िह भामा का ह कौतकु है जो नश्िय है। िे ईश्िय नह है। हाॊ मदद रक्ष्म सत्मऩरुुष की बगनत का है तो मे कजल्ऩत ईश्िय बी ियैाग्म आदद द्िाया भामा से ऩये सत्मऩरुुष सागय के ककनाये ऩय तक तो रे जा सकत ेहैं इसके ऩाय नह । जैसे कोई फच्चा न दधू न ऩानी न बोजन न घटु को जानता है ियन ्बिूा होत ेह योने रगता है हाथ ऩाॊि ऩीटता है। जफकक बिू का नाभ बी नह ॊ जानता, न कोई उऩाम कय सकता है। हाॉ योने ऩय उसकी भाता जफ उसे दधू वऩराती है तफ िह िान्त हो जाता है, जफकक िह मह बी नह जानता कक इस सफ कक्रमाओॊ के ऩीछे कौन दधू, कौन भाता, औय कौन ऩीने िारा है ? इसी प्रकाय बजन के नाबी, रृदम, जजव्हा, भ्रभुध्म औय भजस्तष्क मे ऩाॊच केन्र हैं ऩयन्त ुमे बी शभथ्मा है ऩयन्त ुइनके द्िाया अभ्मास कयने से िह जीि ईश्िय की कृऩा का ऩात्र तो फन ह जाता है। भाता जैसे दधू वऩराकय अरग हट जाती है उसी प्रकाय मे ऩाॊचो ध्मानकेन्र तथा चायो अिस्थाऐॊ जागतृ –

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स्िऩन – सषुजुतत औय तरुयमा अऩना अऩना यस देकय अरग हटती जाती है औय तफ मह जीि ब्रह्भानॊद भे तरुयमातीतभतीत अिस्था भें चरा जाता है जहाॊ िह सत्म को प्रातत कय रेता है। प्रेशभमों – भैं केिर िहाॊ का ऻान ह देने नह आमा फजल्क सचिॊड भें जीिों को रे जाने आमा हूॉ। जो भेया अनसुयण कयेंगे ननसन्देह िहाॊ ऩहुॉच सकेगें। जगत भें जजतने कभवकाण्डी जीि हैं िे दधू ऩीत ेफच्चे के सभान हैं। िे ईश्िय म मथाथवता के बेद को तमा जाने ? फस भिुवता से शभथ्मािाद ऩय रडना झगडना जानत ेहैं। कभवकाॊड मोग – उऩासना औय ऻान तो ब्रह्भऻान की अटाय ऩय चढने के िम्फे हैं, सीढ के डॊड ेहैं। कभवकाण्डी ऩहरा डॊडा ह नह छोडत ेिे बरा अजन्तभ डॊड ेको तमा जाने ? ऩणूव सॊत तो एक के फाद एक को त्माग कय इन चायो डॊडो के ऩाय ऩहुॉचत ेहैं।

ऩयभसत्म असत्म भें छुऩामा गमा है। असत्म की शभठास के यस भें डूफे हुिो भें से सत्म की िौज तो वियरे ह कोई कयत ेहैं। सच्चा धभव आत्भधभव है सच्चा ऻान आत्भऻान है सच्ची बजतत सत्मऩरुुष की है। जहाॊ मह सफ शभरे उसी को धभव कहा है उसी की िोज कयनी चादहमे। जो धभव अऩना सत्मगरुु सत्मऩरुुष का साऺात्काय कया सके िह सत्म है अन्मथा तो भामा का भ्रभ ह शभरता है। गरुु ितता ह न हो केिर तत्िऻानी बी न हो। काज तो ऩयभहॊसो से ऩये तत्िदयसी सतगरुु से ह फनेगा। भामा के ऩाय केिर तत्िदयसी सदगरुु ह रे जा सकत ेहैं फाकी सफ उऩाधधमाॊ भामा सागय की रहयों का ह आनन्द ददिाती है। भेये भागव को हॊस ह गहृण कय सकत ेहैं।

भनषु्म की फवुद्ध कार ऩरुुष ने हय र है। सफ असत्म भें अॊधे हो गमे हैं। इसशरमे सत्मऩद को छोडकय सफ भामा के ऩजुाय हो गमे हैं। सत्म का ऻान देने िारो से भामािाद झगडा फढात ेहैं। मह कार सषृ्ट है महाॊ हय जगह भामा का छर है इस भामा सागय को इस देस की ननशभवत कोई बी नाि ऩाय नह कय सकती जफकक कार ऩरुुष सत्मऩरुुष से प्रफर नह हैं। जो सत्मऩरुुष की बजतत कयके सतगरुु के भागव से अगभ अगोचय की अटाय से ऩये अनाभी ऩद चढ जामेगा िह ऩाय होगा अन्मथा िहाॉ का भात्र ऻान होने िारो को बी भामा ह थाभ रेगी। इसशरमे सत्मऩरुुष की बगनत कयो। बफना आत्भऻान औय सत्मऩरुुष की बगनत के कोई बी अऩने सचिॊड देस नह ॊ जा सकता। सत्मऩरुुष ह कार के देस से छुडात ेहै

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औय सभम ऩय जीिों की फॊध छुडाने िारे सॊतो को कार देस भें बेजत ेहैं। मद्मवऩ उनका वियोध बी फहुत होता है असॊत उन्हे सॊत नह कहत ेकपय बी िे अऩना कामव कयत ेजात ेहैं। सचिॊडी सॊतो को असॊत फताकय उनका भागव योका जाता है। सचिॊड का ऻान देने िारे तथा भामा की ह प्रातती कयाने िारे सॊत ितता याहजनी ह कयत ेहैं। बफयरे ऩयभसॊत ह आत्भा को सचिॊड भरू ननिावणदेस भें प्रस्ततु कयत ेहैं। याभ, कृष्ण, शिि, विष्णु आदद ऩयभेश्िय ने अऩने सॊसाय की िबु सयुऺा व्मिस्था के शरमे बेजे है। इन सफकी सश्रद्धा से िाखणमों, उऩदेिों को ग्रहण कयके हभे सत्मधाभ रक्ष्म की ओय फढना चादहमे। मे सबी सॊत अिताय धनी िॊदनीम है। इनसे बिसागय ऩाय होने की तमैाय कयनी है। ऩयन्त ुजग भें उरटा हो यहा है। एक दसूये की नन ॊदा भें उतय कय स्िाथी जन धभव की नीिॊ दहरा यहे है, इसी कायण अफ सॊगठन बॊग होकय धभव नष्ट होने के कगाय ऩय आ चुका है। अफ शबन्न – शबन्न सम्प्रदामों भें बफियने का सभम नह ॊ है ससुॊगदठत होकय धभव फशरष्ठ कयना है। औय सगणु की नाि भें फठै कय ननगुवण की ओय जाना है। तथा उन याहजनों से सािधान होना चादहमे जो अऩने ह सॊम्प्रदाम को शे्रष्ठ भानकय अन्म भतो के साथ विशबन्नता दिाव कय सभाज को बफिेय यहे है औय धभव की नीॊि कभजोय कय यहे हैं। सगणु से ननगुवण तक सबी कऺाॊए अऩने – अऩने स्थान ऩय भहत्िऩणूव एिॊ सहमोगी है। भेया रक्ष्म सगणु से ननगुवण की ओय जाने का है।

इस अभयकथा भहाकाव्म भें सत्मऩरुुष की बगनत का ह भैंने भागव िोरने तथा ददिाने, ि सभझाने का प्रमत्न ककमा है। भझुे आिा है मह भहाकाव्म सचिॊडी सॊतो को भोऺ प्रदान कयेगी।

तत्िदिी ऩयभसॊत श्री होयाभदेि भहायाज

ऩयभहॊस याजमोग आश्रभ

सॊजम विहाय, ननकट भेडडकर काशरज

भेयठ, (उ0 प्र0), बायत

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ननममभत ऩाठ भहात्तभ

दो 0- अकारभतृ्म ुकारसयऩ पऩत ृतऩपण शनन मोग। अभयकथा के ऩाठ से टयै बफघन दखु योग।।।1।।

अकार भतृ्म ु – कारसऩव – वऩत्तयों के तऩवण तथा िननदेि के मोग (साढे साती अथिा ढईमा प्रकोऩ) तथा दिु – योग औय विध्न अभयकथा के ऩाठ से टर जात ेहैं।

दो 0- मोगऺेभ की प्राप्ती फढै ध्मान पवऻान। रोक ऩयरोक फाधा टयै मभर ेऩदी ननयवान।।2।।

इससे मोग ऺेभ प्रातती होती है ध्मान साधना विऻान फढता है, रोक ऩयरोक की फाधा टरती है औय ननिावण ऩद प्रातत होता है।

ऩाठ पवधध – गरुु तथा शिि भनूत व के सभऺ फठैकय धचयाग घऩू जरािें। एक रौटा जर सभऺ यिे। कपय गरुु आयती तथा ननगुवण चाशरमा ऩढकय सत्मऩरुुष अकार ननयाकाय का ध्मान कये कपय ऩाठ श्रािण अथिा पाल्गनु भास की अष्टभी से िरुु कयके अभािस्मा को सभाऩन कये। कािॊड चढाने के फाद घय आकय बी इसका ऩाठ कये। इसी ददन 11 कन्मा मा 11 गामें मा 11 बिूों मा 11 साधू ब्रह्भाणों को बोजन खिरामे। रौटे के जर को ऩाठ के फाद तीन दहस्से कये एक शििशरॊग ऩय दसूया घय भें नछडके तीसया स्िमॊ ऩी रेिे। इस अभयकथा का ऻान विऻान ककसी कुऩात्र तथा अनाधधकाय व्मजतत के सभऺ कयने से ितता का ऩनु्म अनाधधकाय को चरा जाता है । मह गोऩनीम ऩयभतत्ि विऻान है। बगिान शिि ने बी इसको सनुाने के शरमे ऩािवती को एकान्त स्थान भें रे जाना ऩडा था ताकक अनाधधकाय कोई इसको न सनुने ऩामे। मह अभयकथा त्रतेामगु से अफ तक एक गन्दे अॊड ेके िकुा के अभय हो जाने से प्रनतफॊधधत कय द गमी थी जजसे अफ भझु यचनाकाय ने यचना कयके ऩनु् जगद दहताथव / सन्तदहताथव प्रगट कय ददमा है। मह अभय कथा भहाकाव्म सािवजननक नह ॊ है। मह केिर गरुुभखुि सऩुात्र सॊतों ऩयभसॊतो ऩयभहॊसो अथिा तत्िदिी मोधगमों के शरमे भजुतत का ऩािन सेत ुहै। मह सिवत्र कथनीम नह है मह भात्र सऩुात्रों के विधध ऩिूवक ऩाठ कयने मोग्म है। मह जीिों को बत्रताऩ नासनी नौका है।

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यचनाकाय

तत्िदिी सॊत होयाभदेि प्रजाऩनत

सभऩपण वन्दना ऊॉ ऩयभ तत्व नायामणाम हॊ स सोSहॊ गुरूवै नभ्। ननपवपध्नॊ कुरॊ भे देवॊ काव्म यचना कामेसु।। भैं ऩयभ तत्ि नायामण हॊ स सोSहॊ स्िरूऩ गुरुदेि को नभस्काय कयता हूॉ। हे गुरुदेि भेय

मह काव्म यचना का कामव ननविवध्न सम्ऩन्न कय दो। ऊॉ ऩूणपभद् ऩूणपमभदॊ ऩूणापत ्ऩूणपभदचु्मते। ऩूणपस्म ऩूणपभादाम ऩूणपभेवावमशष्मते।।1।। ऩूणव ब्रह्भ ऩयभेश्िय सफ प्रकाय से ऩरयऩूणव है। मह साया जगत बी ऩयभब्रह्भ से ऩूणव है।

इस प्रकाय उस ऩूणव ब्रह्भ भें से ऩूणव जगत ननकारने ऩय बी िह ऩूणव ब्रह्भ ऩूणव ह िेष यहता है। एष हा देव् प्रहदशोSनु सवाप् ऩूवो ही जात् स उ गबे अन्त्। स एव जात् स जननष्मभाण् प्रत्मड् जनाॊस्स्तष्ठनत सवपतोभुख्।।2।।

ननश्चम ह िह ऩूणवदेि सिवददिाओॊ भें व्मातत है( जगत भें ऐसा स्थान कह ॊ नह ॊ है जहाॊ िह न हो) िे ह सत्मऩुरुष ऩयभेश्िय सफसे ऩहरे दहयण्मगबव स्िरूऩ भें प्रगट हुमे थे (अथावत

ब्रह्भाण्ड रूऩ गबव भें िे ह व्मातत हैं। िे ह इस जगत भें आत्भीम रूऩ भें प्रगट हैं। तथा सफ ओय

भुि िारे हैं औय सफको देिने िारे जन-जन भें जस्थत हैं।) मो देवो अग्नौ मो अप्सु मो पवश्वॊ बुवनभापववेश। म ओषधधष ुमो वनस्ऩनतष ुतस्भ ैदेवाम नभो नभ्।।3।।

जो ऩयभात्भदेि जर भें है जो अजग्न भें है जो सभस्त विश्ि रोंकों भें अन्तमावभी रूऩ भें प्रविष्ठ हो यहा है। जो औषधधमों भें िनस्ऩनतमों भे व्मातत हो यहा है उस देि को नभस्काय है

नभस्काय है। त्वभाहददेव् ऩुरष् ऩुयाणस्त्वभस्म पवश्वस्म ऩयॊ ननधानभ।् वेत्तामस वेद्मॊ च ऩयॊ च धाभ त्वमा ततॊ पवश्वभनन्तरूऩ।।4।।

हे प्रबो ! आऩ आदद देि सनातन ऩुरुष हैं। आऩ इस जगत के ऩयभ आश्रम औय जानने

िारे ऩयभधाभ हैं। हे अनॊतस्िरूऩ ! आऩसे ह मह जग ऩरयऩूणव है।

वामुमपभ Sस्ग्नवरूप ण् शशाक्ड् प्रजाऩनतस्त्वॊ प्रपऩताभहश्च। नभो नभस्तेSस्तु सहस्रकृत्व् ऩुनश्च बूमोSपऩ नभो नभस्ते।।5।।

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हे आदददेि ! आऩ िाम ुमभयाज अजग्न िरूण तथा प्रजा के स्िाभी ब्रह्भा औय ब्रह्भा के

वऩता है। आऩको हजायो फाय नभस्काय होिे। नभस्काय होिे। फाय फाय नभस्काय होिे। पऩतामस रोकस्म चयाचयस्म त्वभस्म ऩूज्मष्च गुरगपयीमान।् नभ् ऩुयस्तादथ ऩशृ्ठतस्ते नभोSस्त ुते सवपत एव सवप।।6।। हे प्रबो! आऩ इस चयाचय सकर जगत के वऩता औय गुरुओ से फढकय गुरु हो औय

ऩूज्मनीम हो। हे सिवसभथव प्रबो आऩको आगे से औय ऩीछे से नभस्काय है आऩको सिवत्र सिवप्रकाय से नभस्काय होिे।

तस्भात्प्रणम्म प्रणणधाम कामॊ प्रसादमे त्वाभहभीशभीड्मभ।् पऩतेव ऩुत्रस्म सखेव सखमु् पप्रम् पप्रमामहपमस देव सोढुभ।्।7।। इसशरमे हे अरि ननयॊजन प्रबो ! भैं िय य को आऩके श्री चयणों भें निा कय प्रणाभ

कयके स्तुनत कयने मोग्म आऩकी प्रसन्नता के शरमे प्राथवना कयता हूॉ। हे देि वऩता जैसे ऩुत्र के,

सिा जैसे सिा के तथा ऩनत जैसे ऩजत्न के अऩयाध को ऺभा कय देता है िैसे ह भेये अऩयाध को सहन कयने भें आऩ मोग्म हैं।

जन्भश्र्वऩाक भध्मेSपऩ भेSस्त ुसत्मचयण वन्दनयतस्म। भा वानीश्वय बक्तो बवानन बवनेSपऩ शक्रस्म।।8।। मदद भुझे सत्मऩुरुष ऩयभेश्िय के श्री चयणों की िन्दना भें यहने का अिसय शभरे तो भेया

जन्भ चाण्डारों भें हो जामे तो िह बी भुझे स्िीकाय है ऩयन्त ुआदद ईश्िय की अनन्म बजतत से

यदहत यहकय तो भैं इन्र के भहरों भें बी स्थान नह चाहता। वाय्फम्फुबुजो सतो नयस्म दखुऺम् कुतस्तस्म। बवनत हह सुत्मऩुरषगुयौ मस्म न पवश्वेश्वये बस्क्त।।9।।

कोई जर मा हिा ऩीकय यहने िारा बी तमों न हो जजसकी सत्मऩुरुष अकार औय गुरु भें बजतत न हो उसके दिुो का नास कैसे हो सकता है ?

न नाकऩषृ्ठॊ न च देवयाज्मॊ न ब्रह्भरोकॊ न च ननष्करत्वभ।् न सवपकाभानणखरान ्वणृोमभ हयस्म दासत्वभहॊ वणृोमभ।।10।। भै न तो स्िगव रोक चाहता हूॉ न देितागणों का याज्म चाहता हूॉ औय न भैं ब्रह्भरोक की

ईच्छा यिता हूॉ औय न ननगुवण ब्रह्भ का ह सामुज्म चाहता हूॉ। इस बू भॊडर की ककसी बी िस्त ु

की बी भुझे काभना नह ॊ है। भैं तो उस ऩूणेश्िय हरय (सत्मऩुरुष) की दासता को ह ियण कयता हूॉ। दासानुदास

तत्िदिी ऩयभसॊत श्री होयाभदेि जी भहायाज

ग्राभ दफथुआ, जनऩद– भेयठ

Page 11: Shrimad Amarkatha Mahakavya

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सॊस्थाऩक / स्िाभी ऩयभहॊस याजमोग आश्रभ

देिकुन्ज , सॊजम विहाय गढ योड, भेयठ - 250004

2 – ननगुपण ब्रह्भ चारीसा (आदद देि अगम्म अगोचयाम अनाभीश्िय ध्मान)

दो0- ऩायब्रह्भ ऩयभेश्वय ऩयूण ज्मोनत अनन्त। नभस्काय प्रब ुआऩको आहदश्वय बगवॊत।।1।।

दो0- ऩणूपऩरुष अकार ऩद सवापतीत ननयॊकाय। अबेद अछेद अनन्त ब्रह्भ फाय फाय नभस्काय।।2।।

नभो नभो जगद श्िय स्िाभी । ननयाकाय ननविवकाय अनाभी।। अजय अभय अऺम अविनासी । ऩयभतत्ि सफ घट – घट िासी।। नभो नभो भहा ज्मोनत अनन्ता । ध्मािे सफ ऋवष भनुन सयु सॊता।। तभु से ऩये ऩयभतत्ि न कोई । तभु ह से उत्ऩन्न सफ जग होई।। ननविवकाय ननगुवण ननयाकाया । चेतन्म ज्मोनत सकर जग धाया।। बफन ुकय ऩद सफ कायज कयह ॊ । ऩग बफन ुचरत भिु बफन ुचयह ॊ।। कणव बफन ुसनेु रिै बफन ुरोचन । तभुयो नाभ सकरदु् िभोचन।। सजच्चदानॊद स्िरूऩ अऩाया । सफ विधध कहन सनुन से न्माया।। ननविविाद ननयरेऩ अिॊडा । तभुयो तजे व्मातत ब्रह्भॊडा।। त ूह ब्रह्भा श्री विष्णु त ूह । िॊ िॊ शििभ ्शििामॊ त ूह ।। क्राॊ क्राॊ त ूह जग कारा । क्राॊ क्रीॊ कयार भहाकारा।। जफ न जगत उददत कहुॊ कोई । तभुयो सत्ता तदवऩ होई।। सकर ब्रह्भाण्ड जीि चयाचय । तझुी से जीिन तझुी से रमकय।। सों सों तभु चेतन स्िरूऩभॊ । हॉ हॉ भरू प्रकृनत अनऩूॊ।। ज्मोनत ज्मोनत ऩुॊज तफ धाभा । नदहॊ तहॊ यवि ििी उडगाभा।। तभु प्रकाि यवि ििी प्रकासें । तभुयो तजे धनी सफ बासे।। अनाभी अगभ अरि फसाकय । दहयण्मगबव सतधाभ यचाकय।। ता भॊहधनी तभु ह फन आमे । कार भहाकार तमु्ह ॊ ने जामे।।

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तभुयो प्रणि फूॊद ऊॉ काया । जास ुयधचत बत्ररोक ऩसाया।। याॊ याॊ तभु यभत ेयाभा । घट – घट ज्मोनत तफ अॊि नाभा।। कहन सनुन से ऩये ननयाया । ननरेऩ, रूऩ जगत से न्माया।। भामातीत ननजश्क्रम ननश्चरॊ । ऩयभतत्ि नायामण सफरॊ।। कार भहाकार भतृ्म ुकाऩें । तभुयो बम सफ ब्रह्भॊड थाऩें।। सयु भनुन मोगी तभुको ध्माि ै। तभुयो नाभ भोऺऩद ऩाि।ै। अनन्त असीभ अरि अकार त ू। भझु ऩय आई विऩद टार त।ू। जजस ऩय तभुय ककयऩा आिे । कार जार से भजुतत ऩािे।। तभुय ऩािन िजतत ऩाकय । कये प्रिासन कार काॊऩकय।। तभुसे फडो अन्म नदहॊ कोई । तभु सफ ऩय प्रिासक होई।। कार धनीिब्द ज्मोनत धाया । तभु ह उतारय जीि दहतकाया।। त ूह आदद सदगरुु दाता । सिव व्मातत जगत ननभावता।। ऩजूा जऩ तऩ ननमभ आचाया । कोई न जाम तभुयो द्िाया।। केिर ध्मान मोग आधाया । तभुयो होंदहॊ साऺात्काया।। सोSहभ ्िनृत सदुृढ भोह द जै । ननज स्िरूऩ रूऩ कय र जै।। नभो नभो हे ऩरुुष अनाभी । हॉ सो सोहॉ रूऩ नभाभी।। न्माया ऩरुुष ननयार सत्ता । जेदहके बफना दहरे नह ॊ ऩत्ता।। षोडि धनन देि मभ कारा । तभुयो तजे दटके जग ऩारा।। कौट ब्रह्भाॊड सजृष्ट धायक । नभो नभो हे सफ जग तायक।। जो मह ऩढै ऩाठ चार सा । भजुतत ऩाम बि कष्ट टय सा।। भतृ्म ुकार कष्ट नदह आिे । सोहॊ ज्मोनत ज्मोनत सभािे।। होयाभदेि तये ज्मोनत सभािे । नभन कये ननत िीि झुकािे।।

दो0- आहद देव ऩयभात्भा सफ जग सजृनहाय। नभस्काय प्रब ुआऩको फहता मरमो उफाय।।3।।

दो0- प्रेभ प्रतीनत श्रद्धा से ननत्म कये जो ऩाठ। रोक ऩयरोक फाधा टयै पूटे धचज्जड गाॊठ।।4।।

।। सजच्चदानॊद बगिान की जम ।।

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3 – स्तनुत स्तोत्र

दो0- ऩणूप ब्रह्भ ऩयभज्मोनत ऩुॉज आहद अनाहद अनन्त। नभस्काय जगदीश्वय ध्मावहहॊ सयु भनुन सॊत।।1।।

सिावतीतॊ ब्रह्भ ऩयुातनॊ । विभरभचरॊ ज्मोनत सनातनॊ।। एकॊ नाद बफन्द ुकरातीतॊ । व्मतताव्मतत बत्रगणु यदहतॊ।। चेतन्म िाश्ित िान्त नबातीतॊ । ननयॊजन व्माऩक वियज बिातीतॊ।। त्िभेकॊ ताता त्िभेकॊ च भाता । त्िभेकॊ फॊधुश्च सभुनत प्रदाता।। न जानाशभ सकृुतॊ ऻानॊ च ध्मानॊ । न भॊत्रॊ न तॊत्रॊ ऻानॊ विऻानॊ।। न जानाशभ ऩजूा भि सनु्मासॊ । न तऩॊ दानॊ तीथव उऩिासॊ।। न भें ऩणु्मॊ च तीथवधाभॊ । न बजतत विननत स्तनुत नाभॊ।। विधध हरय रूरॊ त्िभेि बजजन्त । षोड्स धनी ननत नाभ जऩजन्त।। न भें दोषो याग न रोबा । भोह न भद सिु दिु न ऺोबा।। न भें धभव अथव भोऺकाभॊ । न भें ऩनु्मॊ च भॊत्रॊ न नाभॊ।। अहभ धचदानॊद त्िभेकस्िरूऩॊ । सत्म िािित सोSहभ ्सोSहभ।्। ननविवकल्ऩोSहॊ ननयाकायाकयॊ । न फॊधॊ न भोऺो सोSहभ ्सोहभ।्। कारातीतॊ धचदानॊद स्िरूऩॊ । ज्मोनतज्मेनत भहाऩुॊज अनऩूॊ।। त्िभेक ियणॊ अहभ गच्छाशभ । सभऩवमाशभ बजाशभ नभाशभ।। नभो अनादद अनन्त ईश्िय । नभो नभाशभ कायण कायणेश्िय।।

दो0- अरख ननयॊजन सत्मधनी दीजै मह वयदान। तव ननरेऩ बगनत फसे भभ उय भाहीॊ आन।।2।।

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4 – अखॊड ध्मान मोग

सगुन्धमतुत भदृरु भन्द भन्द थी ऩिन भनोहय चर यह । ऩाकय सभीय िेगानन्द थी ऩषु्ऩन ऩॊिरय दहर यह ।।

ददनकय कुछ रोदहत हो चरा राशरभा गगन ऩय थी खिर । िनै् िनै् यविकय ककयण ननज धाभ भें जाकय शभर ।। सामॊकार यॊगीन सहुािना दृष्म भनभॊह आकषवण बय यहा। थे कय यहे िग करोर कह ॊ झय झय झयना झय यहा।।

पैरने रगी ििी की ककयण िीत बी कुछ चर यह । ननहाय मह भन बािन आबा ध्मानस्थ िनृत भचर यह ।।1।।

झट झयने ऩय स्नान कय ऩिवत शे्रणी ऩय ऩद्मासन रगा। कभान सदृि िीॊची देह भौनिनृत ननद्ध्मासन जगा। ऩामा अधधऩत्म प्राण ऩय ईच्छा काभना सफ शभट गई। थी भन की सिव चेष्टाऐॊ ध्मानमोग भॊह शसशभट गई।।

हो गई जागतृ कुन्डर नन ननज ऩथ ऩॊह सयुनत अटर यह ।। साॊसों की ध्िनन स्ित् गनत अियोध यदहत थी चर यह ।।2।।

सनुसान थी िामभुण्डर भें तननक न काहुक आिाज थी। फीती थी अनतश्म विबािय उत सभाधधस्थ सयुनत जहाज थी।। चढ यह गगन भें तीव्रिेग जॊह नदहॊ सयुनत का िाया ऩाय। आनन्दयत था मोगी मोग भें भनहय छवि घट भॊह ननहाय।।

जग दरुवब दसु्तय दृष्म नाना ज्मोनत वज्मोत सम्भिु सर यह । ज्मोनत झरक बफिरय सी रि मोगी की िनृत भचर यह ।।3।।

ऩाय कय सफ चक्र सयुनत तरुयमातीतातीत भें शभर गई।

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हो गई विरम भहा ज्मोत भें मोगी की िनृत खिर गई।। छा गई सगुन्ध अनहद् अफ मोगी निानॊद हुआ विबौय। था ब्रह्भानॊद यस भें विरम जहाॊ ज्मोनत का न ओय छौय।।

उजारा बाय हो गमा अन्त् कयण भें ज्मोनत जर यह । योकर सयुनत िनै् िनै् सजच्चदानन्द भें सयुनत यर यह ।।4।।

नछऩ गई िीघ्र ज्मोनत िह अऩना स्िरूऩ ददिा कयके। फेचैन हुआ ध्मानस्थ मोगी देिा ननज नमन िुरा कयके।। उठा आसन छौड “भैं ब्रह्भ हूॉ” फोरा ऐसे खिरखिर कय। जो िह है िह होयाभ है प्रसन्न बमो ब्रह्भ भें शभरकय।।

शभथ्मा जग शभथ्मा भामा शभथ्मा मह सजृष्ट चर यह । कजल्ऩत खिरौना है मे सषृ्ट एकोब्रह्भ ज्मोनत अटर यह ।।5।।

सॊत श्री होयाभदेि जी

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अभयकथा सॊक्षऺप्त साय

दो0- सनुत सनुत अभयतत्व मशवा, आरस्म फस गई सोम। मशवा सरयस हुॊकाय दई अभय फार शकु होम।।1।।

दो0- अभय कथा की बेद मह ऩावन सॊक्षऺप्त कथसाय। होयाभदेव प्रगट कये सदगरु सोइ हभाय।।2।।

शब्द

आओ सनुाऊॉ एक कहानी । सनेु ििुा औय सोम बिानी।। सनु्न नगय भें एक याजा की बफन ऩयजा यजधानी।।टेक।। ऩदैा कयके ऩतु्री ब्माह तीन सऩुतु्र उऩजामे। दो का तो अबी जन्भ हुआ ना तीजा गबव नदहॊ आमे।। बफना ऩॊथ मे तीनों बटके एक धाम दधू वऩरानी।।1।।

तीनों ने रिे तीन तरूिय चॉह िामे पर सोई। दो सिूे एक उगा नदहॊ था पर पुर बी नदहॊ कोई।। आगे चरे तीन सरयता देखि दो सिूी एक छानी।।2।।

ऩीकय नीय चरे तफ तीनो बविष्म नगय बत्रकामे। तहॊ एक भॊददय तीन नारयमाॊ बोजन यदह ऩकामे।। बफन ऩैंद के तीन ऩतीरे ब्राह्भण तीन खिरानी।।3।।

दो बफन ुदेह तीसया अदृष्म बोजन सफ िा जाई। तीन ऩतीरे खिचडी िािे तदवऩ न ऩेट बयाई।। सात सभनु्र धाय ककरों भें तीनो कये नहानी।।4।।

सातों तारे फॊद ग्रह बफन ताय ऩयजा तमासी। बफन भिु का एक ऩॊडडत ऻानी अभयकथा ननत गासी।। होयाभदेि उजड गई नगय बफयरे अथव रगानी।।5।।

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दो0- ऻानी भऐु मोगी भऐु ; भऐु सोड्षी ऻान। अभय कथा सत्मबेद बफन ुसकर जगद बयभान।।3।।

दो0- अकार भतृ्म ुकारसऩप सढसाती शनन मोग। अभय कथा के ऩाठ से टयैं बफघन दखु योग।।4।।

कुण्डमरनी शस्क्त

(वप्रम सॊत अिनीि देि के प्रश्न कुण्डशरनी तमा है ? के उत्तय भें ददमा गमा प्रिचन)

1. कुण्डशरनी िजतत

अिनीि देि एिॊ वप्रम गरुुभिुो ! हभाये िय य भें एक ऐसी िजतत जन्भ जनभान्तय से सोमी ऩडी यहती है जजसके जागतृ हो जाने से भानि भहाभानि ऩयभसॊत अथावत ब्रह्भ स्िरूऩ तक फन जाता है। इसको कुण्डशरनी िजतत कहत ेहैं मह जफ जागती है तो अनन्त छुऩी हुई ब्रह्भाण्डीम तथा देहस्थ िजततमों का बॊडाय िोर देती हैं। कुण्डशरनी के जगतृ होत ेह उजाव के वििार तपुान उठत ेहै। एक एक उपान आमेगा औय िान्त हो जामेगा। िन ैिन ैअभ्मास से उच्चतभ अनबुनूतमाॊ साधक के साभने आती है तबी उसका ददव्म भागव िुरता चरता है।

उजाव के इन तपूानों से उपानों से बमबीत कबी न होना औय न उसकी गनत को योकना। फजल्क उसके अनरुूऩ सहमोगी फन जाना तफ फड ेफड ेआघात के झटके से रगेंगे। िय य का योआॊ योआॊ तन्त ुतन्त ुकाॊऩने औय झनझनाने रगत ेहैं। तपूानों भें जैसे ऩेडों के ऩत्त ेइधय उधय विशबन्न ददिाओॊ भें उडने रगत ेहैं उसी प्रकाय कुण्डशरनी िजतत के स्रोत अऩने नमे नमे भागव िोरकय पैरने रगत ेहैं।, मह आन्दोरन ककसी प्रकाय की ऩीडा मा बम नह ॊ देता, फजल्क आनन्द स्रोत िोरता है। िजतत स्रोतों की िषाव होने रगती है जो आरौककक ऋवद्ध औय शसवद्धमों के बॊडाय उडरे देती है। जजससे जीिन ननभावण के नमे – नमे भागव ननशभवत होने रगत ेहैं। तफ मह िय य बी एक िोर की तयह प्रतीत होता है। ऐसा रगता है कक िय य है ह नह है। भात्र सफ कुछ उजाव का ऩुॊज है। कुण्डशरनी ऩयभात्भा की भहान िजतत है जजसे भरू प्रकृनत बी कहा जाम तो कुछ हानन नह ॊ होगी। िय य भें आत्भा प्रधान है जो आियणों भें शरतत होकय जीि फन गई है। कुन्डशरनी िजतत ह इसे भरू स्िरूऩ

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भें प्रगट कयके आिागभन चक्र से भतुत कयने भें सभथव होती है। ऩयभात्भा का साऺात्काय कयाने भें कुण्डशरनी की ह प्रधान बशूभका यहती है।

मदद कोई कहे कक ऩयभात्भा भैंने देिा है िह ऐसा है िसैा है तो मह उसका ऻान औय अनबुि उसी को राब देगा। भझुे तो भेया अऩना अनबुि ऻान ह राबकाय फनेगा। मह हभ सफ जानत ेहै कक जजसने जन्भ शरमा है उसे भयना बी है इसशरमे भतृ्म ुबम सदा सफको फना यहता है। मदद हभ भतृ्म ुका बम छोडकय कुण्डशरनी को जागतृ कय रें औय आत्भा को उसके ननजधाभ ऩहुॉचा दें तो कुण्डशरनी की सहामता से जीि ब्रह्भ फन जामेगा। तफ जीिनभयण सभातत हो जामेगा। औय ऩता चर जामेगा कक आत्भा अभय है। जजसकी कुण्डशरनी का जागयण नह है िह जीत ेहुए बी भय चुका है। जन्भ रे रेना, जिान हो जाना, वििाह हो जाना, फारक ऩदैा कय रेना, बोग ऐश्िमव सिु बोग रेना, कपय ज्मादा धन कभा रेना, कपय िदृ्ध हो कय भय जाना मह जीिन नह है। जीिन है चेतन्म सत्ता भें ओतप्रोत हो जाना जीि से ब्रह्भ हो जाना। जीिन की धाया िुरती है हरय ध्मान भें सभाकय कुण्डशरनी के सहमोग से ऩयभतत्ि भें स्नान कय रेना आथावत कुन्डशरनी जागयण ह जीिन है।

2. न कीनत व शभशर न ऩयभात्भा इसशरमे जो व्मजतत ईश्िय को ऩाना चाहता है िह कुण्डशरनी को अिश्म

जगामे कोई कभी प्रमास भें न आने दे। अधूये भागव भें भॊजजर कबी नह आती है। कोई खिराडी िेर ऩयूा ककमे बफना ह भदैान से हट जामे तो िह आउट हो जामेगा उसका अफ तक का सबी प्रमत्न फेकाय हो जामेगा। मह हार आध्मात्भ भें है उसे न कीती शभरेगी न ऩयभात्भा शभरेगा। जो कामव छेडा है उसे ऩयूा ह कयना तबी ऩयभात्भा शभरेगा। फहुत से साधक तो भॊजजर के ननकट ऩहुॉच कय बी रौट आत ेहैं तमोंकक चरत ेचरत ेउनका धैमव टूट जाता है िे थककय अऩना भागव फदर देत ेहैं। उनकी गनत ऐसी जानो जैसे ऩानी के शरमे योज कोई जगह जगह कुऐॊ की िुदाई कयता कपयता हो। उसे सपरता कहाॉ है?

आऩ दृढ ननश्चम से कामव ऺेत्र भें उतयेंगें तो आऩका जीिन ननश्चम ह िजतत स्िरूऩ हो उठेगा। आऩके बीतय की िजतत जागने रगेगी। तफ बीतय औय फाहय की दोंनों िजततमाॊ एक एक शभरकय ग्मायह हो जामेगी। अफ सफ कामव कराऩ

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उसी िजतत के आधीन होगे। भनषु्म स्िमॊ कुछ नह कय ऩामेगा। इसभें कबी सिुद तो कबी दिुद कदठनाईमाॊ बी आमे तो धैमव से अभ्मास कयता ह जामे तमोंकक असपरताऐॊ ज्मादा औय सपरताऐॊ कभ आती है।

कुण्डशरनी भहान उजाव बॊडाय है इसके हाथ ऩयै कुछ नह कपय बी मात्रा भें तत्ऩय यहती है। मोधगमों ने कुण्डशरनी को सऩवणी कहा है जैसे साॊऩ के हाथ ऩाॊि नह ॊ होत,े इसके बी नह ॊ होत।े साॊऩ कुन्डशरनी रगाकय फठैा होता है तो सोमी हुई अिस्था भें मह बी कुन्डर रगामे साड ेतीन रऩेटें रगामे बत्रऩुॊड ऩय सोमी यहती है। जफ जागती है तो रम्फी होकय चरती है औय िय य भें जस्थत चक्रों का भरूाधाय से अनाभी चक्र तक का छेदन बेदन कयना िरुू कय देती है। जैसे साॊऩ जागने ऩय बॊमकय रूऩ धायण कयता है िसेै ह कुण्डशरनी बी ितयनाक रूऩ से उज्िशरत हो जाती है। इसे गरत तय के से छेडोगे तो हानन बी कय देती है। विधध ऩिूवक जगाओ। सतकव यहोगो तो आनन्द स्रोत प्रातत कया देगी। तफ तमु्हाया जीिन बी एक उत्सि फन जामेगा औय विकशसत होकय ऩषु्ऩ की तयह खिर उठेगा।

3. कुण्डशरनी से भहान ऩरयितवन

जफ कुन्डशरनी ऩणूव गनतिीर हो जाती है तो िय य भें आरौककक फदराि आमेगे। िय य का ढाॊचा ह ददव्म रूऩ से चभक उठेगा भन फवुद्ध धचत्त अहभ सबी भें िदु्ध फदराि आने रगेगा। सिवप्रथभ तो कुसॊस्कायो ऩय प्रहाय होने रगेगा, धचत्त जस्थय होने रगेगा। भन िश्मबतू होने रगेगा। िय य भें िकु्राणुओॊ की कभी आने रगेगी। प्रजनन तन्त्र प्रबावित होने रगेगा। जागी हुई कुण्डशरनी तऩे हुिे रोहे के सभान अजग्न रूऩ फन जामेगी तफ कुसॊस्काय जरने रगेंगे। सौम्म िनृत िारे साधकों को मह फदराि कष्टकय नह ॊ होता। इसशरमे अष्टाॊग मोग भें मभ ननमभ ऩहरे शरमे गमे हैं आसन प्राणामाभ कपय प्रत्माहाय औय धायणा को शरमा। कपय ध्मान औय सभाधध को शरमा गमा है।

4. भन का सॊमभ औय गरुु प्रसाद

भन को सॊमशभत यिना साधना भें फडा प्रबाििार होता है। भन सॊमशभत नह हो तो ध्मान भें अनेको विचायो की आकृनतमाॊ उबाय कय िडा कयता यहेगा। जैसे कक जैसा भन िसैा ह बाि। िसैा ह चेहये ऩय उबाय मानी फदराि होगा। भान रो आऩ पे्रभ कयत ेहै तो भिु ऩय प्रसन्नता छामेगी। क्रोध कयोगे तो चेहया तभतभा

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उठेगा। आॉिे स्ित् ह रार हो जामेगी। भठु्दटमाॊ फॊध जामेगी। दाॊत बीॊच जामेंगे। औय भान रो घणृा का बाि हो तो आॉिे शसकुडने रगती हैं नाक चढने रगेगी। नेत्र झेंऩ जामेगें। भन के विचाय िय य भें फडा फदराि स्ित् ह रा देत ेहैं। इसी तयह कुण्डशरनी जागत ेह नमे नमे भौड आने रगत ेहैं।

कुण्डशरनी का वििषे काभ ध्मान भें उत्तभ गनत देता है। ब्रह्भाॊडो की धायाऐॊ जुड जाती है औय साये यहस्म िोर देती है मह कुण्डशरनी, ध्मान के सभम शसय ऩय कऩडा फाॊध रेना चादहमे ताकक आऩकी उजाव फाहय तयॊगे फनकय न फहने रगे इससे कभ सभम भें ज्मादा प्राजतत हो सकेगी। तफ द ऺा आऩके बीतय प्रगट हो जामेगी। द ऺा न द जा सकती है औय न र जा सकती है। द ऺा िह है जो घट भें प्रगट होती है ब्रह्भाण्डीम िजतत स्रोतो को प्रगट कयती है अन्मथा तो द ऺा भात्र शिऺा ह यह जाती है। सॊसाय भें जो बी कुछ उत्कृष्ट होता है िह सफ ऩयभात्भा की ह सत्ता से है। गरुु केिर ऩथ प्रदिवक औय िजतत स्रोत िोरने िारा है िजतत ऩयभात्भा की प्रकृनत कुण्डशरनी द्िाया िुरती है। गरुु को बी जो िजतत प्रातत है िह बी ऩयभात्भा द्िाया प्रदत्त है। ऩयन्त ुिह सफ कृऩा गरुु बफना प्रातत नह होती।

गरुु इन िजतत स्रोतों को धीये धीये साधक की साभथव अनसुाय िोरत ेहैं। तमोंकक 100 िोल्ट ऩािय के फल्फ भें मदद 250 िोल्ट कयेन्ट छोड दोगे तो िह फ्मजू हो जामेगा। इसी प्रकाय कुण्डशरनी की उजाव स्रोत को एक दभ िोर ददमा जामे तो भहान हानन हो जामेगी। मह कामव गरुु का है उन्हे ज्मादा िजतत प्रदान कयने के शरमे वििि न कयो। आिश्मतता से ज्मादा िजतत रेने िारा साधक ऩॊथ विचशरत अिश्म होता है सॊसाय भें सबी गरुु केिर गरुु हैं अथावत शिऺक हैं। सतगरुु िह है जो पे्रजतटकर रूऩ भें कुण्डशरनी जगा कय साधक की आत्भा को नाद औय अनहद के ऩये कार भहाकार के ऩाय सत्मिब्द धाया से जोडकय ज्मोनतधाया द्िाया साऺात्काय कयाता हुआ आत्भ मात्रा ननिावण रोक तक सॊग सॊग चरकय ऩणूव कयाता है। िह तत्िदिी द ऺक सदगरुु है, िषे तत्ििेता सफ शिऺक हैं।

ऩयभात्भा स्िमॊ िजतत ऩुॊज हैं उसका जजतना अॊि जजसके घट भें उतय जामे िह िजततऩात ह गरुु कृऩा है। मह िजतत ऩात सबी भें नह ॊ होता। उसके शरमे अधधकाय फनना ऩडता है। कुण्डशरनी की िजतत जफ वियाट की िजतत से जुड जामेगी तो सभाधध भें िह साधक ब्रह्भाण्ड की ककसी बी स्रोत िजतत से अनशबऻ

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नह यहेगा। िह भानि भहाभानि कृष्ण मा कफीय फन जामेगा। साधना कार के अनबुि भें स्िऩन बी मथाथव होगा उसके शरमे। सॊसाय तो कभव बशूभ है महाॊ जैसा फोमेगें िसैा ह काटेंगे। मह सफ सदगरुु कृऩा ऩय ननबवय कयता है जजसका गरुु मह विषम जानता नह िह कया नह सकता। िह सदगरुु नह भात्र शिऺक है। मह कुण्डशरनी का फदराि शरॊग ऩरयितवन तक कया देता है अथावत ऩरुुष को स्त्री / स्त्री को ऩरुुष रूऩ भें बी राने भें सभथव है। भतृ्म ुको बी कुण्डशरनी की उजाव भतृ कय देती है जजससे जीि अभय हो जाता है। आत्भा की तो कोई न शरॊग है न जानत न धभव कुर मा गोत्र है।

आऩने सनुा होगा कक ह या औय कोमरा एक ह जानत के हैं मा ऐसे सभझो कक कोमरा ह कारान्तय भें ह या फन जाता है। तफ कोमरा अऩना स्तीत्ि िो देता है। अफ ह या फन जाने ऩय कोई नह जानता कक मह ह या ऩहरे कबी कोमरा था। कोमरा शभटा तो ह या फना। कुण्डशरनी का जागणृ अभ्मासगत ऐसी उजाव का स्िरूऩ धायण कय रेता है जजससे जीिात्भा िदु्ध आत्भा फनकय ऩयभात्भा भें विरम हो जाता है। ध्मान बी आऩा शभटाने भें साथवक होता है। मह बी सबी जानत ेहैं कक भतृ्म ुका काभ एक िय य से दसूये िय य भें जीिात्भा को ऩहुॊचा देना है ऩयन्त ुध्मान साधक को ऩहरे िय य भें ह शभटा देता है। औय जीि ध्मान की नाि भें फठैकय उजावधाय भें फहता हुआ एक के फाद दसूया कपय तीसया इसी क्रभ से छ् िय यों को धगयाकय सातिें भें ब्रह्भ स्िरूऩ होकय विरम हो जाता है।

इन्ह िय यों भें िह तत्ि है जजसभें स्नान कयके जीि जीि फनता यहता है भौत को फाय फाय ऩाता है। इसी िय य भें अभतृ बी फनता है जो जीि को अभय कयता है। जीि को ब्रह्भ फनाता है। मदद अभतृ प्रातत कयना है तो ितयो से न डयो। स्िाॊस द्िाया येचक ऩयूक औय कुम्बक प्राणामाभ से विधध ऩिूवक कुन्डशरनी जगा रेनी चादहमे। ऩयन्त ुबौनतक तमास आध्माजत्भक तमास उत्ऩन्न नह होने देती। ध्मान िह अनबुनूत कयाता है जो ऩहरे कबी नह हुई है। ध्मान ह ईश्िय प्राजतत का सत्मभागव है जो प्रातत कयाता है फाकी सफ साधन जानकाय भात्र कयात ेहैं। औय जानकाय तथा प्रजतत भें अथाह अन्तय है। मह ऻान इसी के अनसुाय तीन प्रकाय का है एक अध्ममन जन्म, दसूया अनबुि जन्म औय तीसया प्राजतत जन्म। प्रजतत जन्म ऻान कयाने िारा तत्िदिी सतगरुु रािों भें कोई होता है।

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जैसे कोई सोती नाधगन को जगामे तो िह जागत ेह बॊमकय पुॊ काय भायती है मह हार कुण्डशरनी का है जो जागत ेह सोमे हुमे केन्रो ऩय प्रहाय कयती है। तफ हय िजतत के उजाव स्रोत जागत ेहै तो उनके केन्र बी जागत ेहैं। जफ कुण्डर सषु्भना नाडी भें प्रविष्ठ हो जाती है क्रभि् भरूाधाय स्िाधधष्ठान भखणऩयूक अनहत कॊ ठचक्र तथा आऻाचक्र को िोरकय सहस्त्राय भें सभा जाती है। अफ सहस्त्राय भें कुण्डशरनी वििषे उजाव फन चुकी होती है। अफ इसके भागव भें उसे कोई फाधा नह यह जाती। सहस्त्राय कुन्डशरनी उजाव ऩुॊज का विश्राभ स्थान है। सहस्त्राय वििार है इसभें अनन्त रोक रोकान्तयों के केन्र है जजनकी मात्रा कयाना केिर कोई कोई बफयरा तत्िदिी सदगरुु ह कयाने भें सभथव है। ध्मान की तनभमता से सफ कुछ सरुब हो जाता है तमोंकक ध्मान भें बी उजाव ननदहत होती है। तभु धन्म बाग्म हो जो इन सफ मात्रा को भेये ननदेिन भें ऩणूव कय सके हो।

5.कुन्डशरनन औय अनेक जन्भों के सॊस्काय कुण्डशरनी के सोमे यहने तथा नाबी चक्र के नीचे बत्रकोण भाॊस वऩ ॊड ऩय साड े

तीन रऩेटे रगामे ऩड ेयहने का तमा यहस्म है ? इसके ऩीछे प्रब ुने तमा यहस्म नछऩामा है मह तो सभझाना भजुश्कर है ऩयन्त ुभैं मह यहस्म अिश्म फताना चाहता हूॉ कक इस के साड ेतीन रऩेटे जफ तक रगे है तफ तक आिागभन सॊसाय चक्र कामभ यहेगा ब्रह्भाण्डी स्रोत िजतत ऩुॊज कबी नह िुरेगें औय अऩने भरू देस को आत्भाऐॊ कबी नह जा सकेगी तथा कार चक्र चरता यहेगा। इसके जागयण से मे सबी यहस्म िुरत ेचरे जात ेहैं।

सॊसाय भें चौयासी राि मोननमाॊ फताई गई है जीि सबी मौननमों से गजुय कय भानि मोनी तक आ तो गमा है ऩयन्त ुउन सबी मौननमों की छाऩ मानन सॊस्काय इसके धचत्त भण्डर भें अबी बी सॊनमत यहत ेहैं। जफ कुण्डशरनी िजतत उनके सॊग जाती है तो िे सॊस्काय प्रत्मऺ प्रबाि प्रगट कयने रगे हैं। वऩछरे जन्भ जन्भान्तयों का आऩका सबी िह ऩाटव तरे (जो आऩने ककमा है) को बी उसी दृष्म रूऩ भें दृष्मभान कय देती है। आन्तरयक िय यों के ऺेत्रों को मह कुण्डशरनी ह जगाती है जो िहाॊ िहाॊ के सॊस्कायों से जन्भान्तय का आऩका कभव बोग ददिाती है। आत्भा को छ् िय यों से अरग मह कुण्डशरनी की उजाव िजतत ह ध्मान से उत्ऩन्न उजाव के साथ सऩव के कैं चुर त्मागने की तयह सफको उताय कय आत्भा को सातिें

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िय य ननिावण भें रे जाती है। ननिावण भें रम होत ेह आत्भा देह यदहत हो जाती है। ज्मूॉ ज्मूॉ कुण्डशरनी की उजाव भरूाधाय से उठती है तो प्रत्मेक स्टेिन (चक्रों) भें उसकी उजाव िजतत फढती ह जाती है।

कुण्डशरनी मदद ऩि ुऩक्षऺमों की मौनन भें यह यहे सॊस्काय के ननकट आघात कये तो हभें उसी मोननमो का अतीजन्रम अनबुि ऩनु् कया देती है जैसे भैं ध्मान भें उडकय अनन्त ब्रह्भाण्डों भें जाता यहा हूॉ। जर का अनबुि भछर को है ऩयन्त ुजफ भछर िारे सॊस्काय छाऩ से कुण्डशरनी टकयामेगी तो जर का साया यहस्म प्रगट कया देगी। ऩयन्त ुइसका अथव मह नह है कक कुण्डशरनी मह सफ कुछ सबी साधको को प्रगट कयेगी। मह तत्िदिी गरुु ऩय ननबवय है। तमोंकक तत्िदिी गरुु ह उजाव िजतत को सम्बार कय मथानसुाय रे जाकय मात्रा सपर कयाता है। जो गरुु इस यहस्म को नह जानत ेिे इस कुण्डशरनी का िणवन ऻानात्भक तो कयत ेहैं ऩयन्त ुप्रमोगात्भक रूऩ ऩय ऩदाव डारकय यित ेहैं। तथा रोभडी की तयह जो प्राजतत न होने ऩय मह कहकय चर जाती है कक अॊगयू िटे्ट हैं कहने रगत ेहैं।

धचत सचेत है तो सफ िजततमाॊ सचेत हो जाती है औय तफ सबी केन्रों की उजाव प्रिाह प्राण रूऩ उजाव के साथ मोग उजाव फनकय आत्भा की ओय फहने रगती है औय जफ तक प्राण उजाव का प्रिाह आत्भा की ओय नह ॊ होता तफ तक भनषु्म को आॉतसीजन की अधधक आिश्मतता है ककन्त ुप्राण उजाव जफ आत्भा की औय ननकटतभ चर जाती है तफ कुण्डशरनी की उजाव बी उसी भें शभरकय विरम हो जाती है तफ भानि को आतसीजन की आिश्मतता नह ॊ यहती। इसीशरमे कुछ मोधगमो को हजाय िषो से धयती के बीतय गबव भें तऩ कयत ेहुिे देिे गमे हैं। िहाॉ िह उजाव ह चैतन्म यिती है कोई भयता नह है। इस फात को मूॊ बी कहा जा सकता है कक गहन सभाधध की अिस्था भें स्िाॊस प्रश्िाॊस का आबास बी नह यहता। इस अिस्था का आबास िहाॊ ऩहुॉचे बफना ककसी को कबी नह हो सकता। भोटे तौय ऩय सभाधध का मह अथव कह सकत ेहै कक जफ स्िाॊस का बीतय फाहय आना जाना रूक जाता है तफ धचत्त अत्मन्त सॊतशुरत की अिस्था भैं जा ऩहुॉचेगा िह जस्थनत सभाधध कहराती है।

सभाधध की जस्थनत भें भनषु्म को जीिन का नह ियन अऩने स्तीत्ि का अनबुि होता है। कपय ककसी अन्म अनबुि की आिश्मतता नह ॊ यहती तमोंकक तफ

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धचत्त की जस्थनत आत्भा ऩय ऩहुॉचकय ऩयभात्भा भें छराॊग रगाने की होती है। उस ऐसे साधक की आम ुबी रम्फी तथा स्िेछा ऩय जस्थय हो जाती है। एक िय य से दसूये िय य भें जाने के शरमे मा सोरह चक्र छेदन तत्िदिी गरुु कुण्डशरनी की उजाव के धाया प्रिाह को भोडकय आघात कयाकय सबी द्िाय िोरता जाता है जजससे एक ददन आत्भा ऩयभात्भा तक चर जाती है मदद आत्भऻान हो गमा तो अहॊकाय को कह ॊ स्थान नह शभरता। अहॊकाय ह सफ केन्र की िजतत को फन्द ककमे फठैा है। आत्भा जफ ऩयभात्भा भें रम हो जाती है तो ब्रह्भानॊद भें तयैती है। आत्भा ननयानॊद कबी नह ॊ है। ऩयभात्भस्िरूऩ है ऩयभात्भा सतधचद आनन्द स्िरूऩ है।

ऩयन्त ुअबी बी मात्रा ऩणूव नह ॊ सभझना। अफ तक तो ऐसा हुआ है कक जैसे एक फीज फोमा। िह उगा मात्रा ऩय ननकर ऩडा हो, डार तने रगे कपय पर पूर रगे हो। अबी बी पूर ह फना है अफ पूर भें से इत्र फनना है औय इत्र भें से सगुन्ध प्रातत कयनी है तफ मात्रा ऩणूव होगी। इसी प्रकाय साधक जो महाॊ तक आमा है अफ आत्भा औय ऩयभात्भा दोंनों को बरू जामे तफ िनू्म मा ननिावणािस्था भें विर न होगा। जैसे कक नभक का ऩतुरा सभनु्र की िोज कयत ेकयत ेस्िमॊ ह िोमा गमा। अफ कौन ककस भें सभा गमा। अथावत फूॊद सभनु्र भें सभा गई अथिा सभनु्र फूॉद भें सभा गमा कुछ बी ऩता ककसको यहेगा िहाॊ। िनू्म का अथव (Nothing) नह है। िह ऩणुवता का नाभ है जजसे कबी सभातत नह ककमा जा सकता। भैंने मह गतु्थी आऩ सबी मोगी शिष्मो के सभऺ सभझाकय सरुपाई है। इससे अऩना जीिन उत्सि फनाओ। भेया आशििावद।

(अफ इस विषम को “अभयकथा भहाकाव्म” भें ऩदढमे।)

सॊग्रहकताव प्रिचनकताव श्री सत्मप्रकाि सतसेना सॊत श्री होयाभदेि

फी-3/1 याभऩयु गाडवन, सदगरुु / सॊस्थाऩक

फयेर ऩयभहॊस याजमोग आश्रभ (देिकुॊ ज)

सॊजम विहाय, भेयठ

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पवषम सचूी

1. भहाकाव्म का भखु्म ऩषृ्ठ ऩाॊचो िण्डों सदहत - I

2. तत्िदिी ऩयभसॊत श्री होयाभदेि के ननदेि - II

3. सम्ऩादकीम - III

4. प्रतकथन - IV

5. तत्िदिी ऩयभसॊत श्री होयाभदेि उिाच - V

6. ननमशभत ऩाठ भहात्तभ - VIII

7. सभऩवण िन्दना - IX

8. ननगुवण ब्रह्भ चार सा - XII

9. स्तनुत स्तोत्र - XIV

10. अिॊड ध्मान मोग - XV

11. सॊक्षऺतत अभयकथा - XVII

12. कुण्डशरनी िजतत - XVIII

13. विषम सचूी - XXVI

प्रथभ खॊड (सतसॊग ऩहद) 1. विनम भॊगर - 1

2. श्रीगरुु गीता - 9

3. श्रीगरुु स्तिनोऩदेि - 25

4. ध्मान साधना ननरूऩण - 29

5. भहाप्ररम - 35

6. साख्म तत्ि वििेचना - 45

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द्पवतीम खण्ड (अभतृ ऩहद) 7. जीिात्भ तत्ि - 52

8. भतृ्मकुार गनत - 56

9. अष्टाॊग मोग - 61

10. कभोत्ऩजत्त विऻान - 70

11. कभवप्रकृनत वििेक - 73

12. िामोऩदद वििेचना - 77

13. ईन्र भोह बॊग - 84

ततृीम खॊड (ननवापण ऩहद) 14. जगद उत्ऩजत्त - 97

15. रोक ऩनत व्मिस्था एिॊ जग यचना - 101

16. कार सजृष्ट यचना एिॊ सयुनत फॊधन - 114

17. सत्म ऩरुुष कार ननयन्जन सम्फाद - 128

18. भहाभामा कौतकु - 139

19. सयुत डौय - 150

20. सॊत सयुत अितयण - 154

21. सयुतमात्रा सहामक सॊत जन - 158

चतथुप खण्ड (अभतृ पवन्द ऩहद) 22. कार ऩय विजम - 168

23. मथा वऩ ॊड ेतथा ब्रह्भाण्ड े - 181

24. कार अनगु्रह - 186

25. अभय रोकमात्रा - 189

सनुत व मात्रा धचत्रण

1. वऩ ॊड देस - 190

2. अॊड ब्रह्भाण्ड देस - 191

3. सचिण्डी दमार देस - 196

26. भन की दौड - 204

27. शिि कोऩ - 210

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28. िकु बमे िकुदेि - 215

ऩॊचभ खण्ड (प्रश्नोत्तय ऩहद) 29. अकह ऩरुुष उऩदेि - 230

30. सयुत मात्रा धचत्रण - 230

31. सत्मोऩदेि - 261

32. सभऩवण बाि - 282

।। श्रीभद् अभयकथा भहाकाव्म ।।

(सयुत िेद) (श्री शिि ऩािवती सम्फाद)

श्रीभद् अभयकथाSभतृ प्रथभ प्रकयण ननमोस्जत प्रथभ िण्ड

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सतसॊग ऩदद 1 – पवनम भॊगर

अनन्त ज्मोनत पवबु् साऺात्कृत्वा भानषपवग्रहॊ। गरुरूऩेण प्रोद्धयनत जीवा् तस्भ ैगरुभ्मो नभ्।।1।। जो अनन्त ज्मोनत ऩुॊज साऺात ऩयभेश्िय है जो भानि की देह भें सभाकय

गरुु स्िरूऩ से जीिों का उद्धाय कयत ेहै उन गरुुजनों को नभस्काय है।

नभामभ सवपसॊतानाॊ मस्म ैहृदमानन यभेनत नाभॊ। तने ऩद कॊ ज नभनभात्रणे सवपऩाऩ ैप्रभचु्मत।े।2।। उन सभस्त सॊतजनों को भैं नभस्काय कयता हूॉ जजनके रृदम भें हरय नाभ

फसा हुआ है तथा जजनके चयण कभरों भें नभनभात्र से ह सभस्त ऩाऩों से छुटकाया हो जाता है।

आहद देवॊ नभस्तभु्मॊ प्रसीद भभ ऩयभेश्वय्। ब्रहहतॊ तजेभहाऩुॊजॊ नभस्तभु्मॊ नभोsस्ततुे् ।।3।। जो सफके आदद देि ऩयभेश्िय उनको नभस्काय है। भहा ज्मोनत स्िरूऩ

ऩयब्रह्भ ऩयभेश्िय को नभस्काय है, नभस्काय है।

अणखर पवश्वाधायॊ व्माप्तॊ मेन चयाचयभ।् सवपऩाऩ हयॊ देवॊ तॊ अनन्त ज्मोनत नोम्महभ।्।4।। जो अखिर विश्ि के अधाय है जो चयाचय बतूों भें व्मातत है। जो सभस्त

ऩाऩों का हयण कयने िारे देि है। उन अनन्त ज्मोनतश्िय को भैं नभस्काय कयता हूॉ।

रूकभवणप प्रकाशऩुॊजॊ मोsसौ ऩरुषोऩयभ।् सॊतमा नभस्न्त मॊ शाश्वतॊ तॊ नभामभ ऩयात्ऩयॊ।।5।। जो रूकभिणव प्रकािऩुॊज ऩयभ ऩरुुष ऩयभेश्िय है औय जजसको सॊतजन नभन

कयत ेहैं उन ऩयात्ऩयब्रह्भ को भैं नभस्काय कयता हूॉ।

ननत्मॊ शदु्धॊ ननमरपप्तॊ ऩणूपऩरुष सनातनभ।् नभामभ कायणकायणाम नभो नभामभ ऩहहभाभ।्।6।। जो ननत्म, िदु्ध, ननशरवतत, सनातन ऩणूव ऩरुुष है औय कायणों के कायण

भहाकायण है को भैं नभता हूॉ, नभन कयता हूॉ िे भेय यऺा कये।

नभामभ कष्ट पवभोचनाम वेदात्ऩयॊ रोकात्ऩयॊ हदव्मॊ। अनामभधाभ ननवापणरूऩॊ मस्म ैत ेनभो नभ्।।7।।

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भैं सॊकटो का नास कयने िारे िेदो से ऩये औय रोको से ऩये, ददव्म ऩरुुष को नभस्काय कयता हूॉ, जो अनाभीधाभ, ननिावण स्िरूऩ है उनको नभस्काय है, नभस्काय है।

दो0- सयुसॊत ससुज्जन मनत सनत ऩायब्रह्भ जगदीश। ऩयभाभतृ्व फयनन करूॊ आन बफयजो शीश।।1।।

हे सभस्त सयु, सॊतो, साधुजनों, मनतमों औय ऩनतव्रता जस्त्रमों तथा ऩायब्रह्भ जगद श्िय प्रबो ! भैं ऩयभ अभयतत्ि का िणवन कयता हूॉ तभु सबी भेये िीि ऩय आकय वियाजभान हो जाओ।

ऩयभतत्व नायामण प्रब ुसवपधभपऻ बगवान हरय। ऺभस्व अऩयाध कृतोभमा ननपवपध्नॊ काव्म ऩणूप कुर।।8।।

हे ऩयभतत्ि नायामण प्रब ु ! सिवधभो के ऻाता बगिान श्रीहरय भेये सफ ऩाऩों को ऺभा कयके मह काव्म ऩणूव कया देना।

दो0- अभतृत्व गोऩनीम अनत चहॊ “होयाभ” फखान। गोऩ अगोऩ कमरमगु बए बस्क्त ऻान कल्मान।।2।।

अभतृतत्ि अनत अगोऩनीम है जजसका भैं होयाभदेि िणवन कयना चाहता हूॉ। कशरमगु भें गोऩनीम बी अगोऩनीम हो जाता है औय बजतत ऻान से ह कल्माण हो जाता है।

मतपरॊ नास्स्त तऩसा मोग सभाधधनाॊ। भहत्तकरौ तत्परॊ रबत ेबस्क्त नाभ कीतपनात।्।9।।

जो पर तऩस्मा मोग साधना औय सभाधधजस्थनत से प्रातत नह होता इस भहान कशरमगु भें िह पर बजतत औय हरय नाभ कीतवन से प्रातत हो जाता है।

दो0- प्रथभ बत्रजुग जे अभयतत्व गोऩ न कीन्ह फखान। सो सचखॊडी ऻान करौ कधथहैं सॊत सजुान।।3।।

ऩहरे तीन मगुों भें जो अभयतत्ि गहु्म था जजसका फिान नह ॊ ककमा जाता था। िह सचिण्ड का ऻान कशरमगु भें सॊत ऩरुुष कहेंगे।

दो0- हौं अल्ऩऻ फयनन करॉ बमूर जे त्रहुट होम। दास भनतभॊद जाननके ऺभहु सॊतजन भोम।।4।।

भैं थोडी फवुद्ध िारा, ऩयभतत्ि का िणवन कयता हूॉ। मदद बरूिि कोई त्रदुट हो गई हो तो भनतभॊद दास जानकय हे सॊतजनो भझुे ऺभा कय देना।

दो0- “होयाभ” स्व् अन्तस सखुाम आगभातीत शधुच साय।

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रेखऊॊ ऩयभाभतृ तत्व ऩावन भसु्क्त शबुद्वाय।।5।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक भैं अऩने अन्त्कणव के आनन्दयस के शरमे

िेद िास्त्रों से ऩये ऩवित्र साय तत्ि को शरिता हूॉ मह ऩयभतत्ि अभतृ ऩािन भोऺ का िबु द्िाय है।

छ0- स्जनके भन जग भामा फमस नहीॊ पऩऩास बव छूटन की। नहहॊ रूधच मभ पाॊस नास अरू भामा ग्रस्न्थ पूटन की।। श्रीहरय ऩद बगनत प्रेभ नहीॊ स्जऻासा नहहॊ ब्रह्भ ऻानन की। “होयाभदेव” नतन्हके सन्भखु नहहॊ आमस ुएहह फखानन की।।1।।

जजनके भन भें बिभामा ह फसी हुई है सॊसाय चक्र से छूटने की तमास नह ॊ है। जो जन्भ भयण रूऩी नयक जार नष्ट होने की रूधच नह ॊ यित ेहैं औय जजनको भामा ग्रजन्थ के पूटने की इच्छा ह नह ॊ है। जजनकी श्रीहरय के चयणों भे पे्रभभमी बजतत नह ॊ है औय ब्रह्भऻान की जजऻासा नह है। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक उनके सम्भिु इस अभतृस्िरूऩ ऩयभतत्ि को फिैान कयने की आऻा नह ॊ है।

दो0- ससुॊत पववेकी ऩायखी जगत बफयत सजुान। “होयाभ” इकान्त सऩुात्र सन कयहु ससुाय फखान।।6।।

श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक उत्तभ सॊत वििेकी ऩायिी जगद वियतत सज्जन सऩुात्र सॊत के सभऺ ह एकान्त भें इस शे्रष्ठ तत्ि का फिैान कयना चादहमे।

दो0- सायद शषे सयेुश भहेश बफधध न सकहहॊ फखान। सो दयुरब ऩयभतत्व की रेखहुॊ काव्म भहान।।7।।

जजसका सयस्िती, िषेनाग, इन्र, भहेि तथा ब्रह्भा जी बी िणवन नह ॊ कयत ेहैं भैं उस दरुवब ऩयभतत्ि की मह भहान काव्म शरिता हूॉ।

दो0- जनन पऩऩीमर नब को चमर भखु भें उठा ऩहाय। अस दरुपब तत्व यचना करूॊ सदगरु कृऩाधाय।।8।।

भानों की चीॊट ॊ भिु भें ऩहाड उठाकय आकाि को चर हो। ऐस ैह भ ैसभस्त गरुुजनों की कृऩा धायण कयके दरुवब तत्ि की यचना कयता हूॉ।

चौ0- सॊत सयर धचत्त सफ जग जानी । स्वहहत ुअनहहत ुनहह पऩछानी।। सफहह हहताम सदा सखु कयनी । भहहभा अनॊत जाम नहहॊ फयनी।।1।।

सॊत जनों को सॊसाय भें सफ सयर धचत जानत ेहै। िे अऩना स्िाथव दहत तथा अनदहत नह ॊ जानत।े िे सफ के दहतषेी सदा सिु देने िारे है। उनकी भदहभा अनन्त है िणवन भें नह ॊ आती।

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चौ0- बतू बपवष्म कार वतपभाना । प्रनऊॊ हौं सफ सॊत सजुाना।। गहृस्थी फीच सॊत जे होई । ता सभ उच्च न भानऊॊ कोई।।2।।

बतू बविष्म ितवभान कार के सबी साधु ऩरुुषों को भैं प्रनाभ कयता हूॉ औय जो गहृस्थी भें सॊत होत ेहैं भैं उनके सभान उच्च ककसी को नह भानता।

चौ0- फनवासी सन्मासी पवऻाता । ककयऩा मस ॊधु दमा प्रदाता।। देउ एक वय भाॊग कय जौयी । यचना कृनत सपुर ब ैभौयी।।3।।

तथा फनिासी सन्मासी विद्िान कृऩा शस ॊधु दमा प्रदाता सबी से भैं एक िय भाॊगता हूॉ भेय मह यचना कक कृनत सपर होिे।

चौ0- भभ भग सगुभ सपुर सफ कीजै । सेवक जान कृऩा भोही दीजै। भैं सफ सॊतन की ऩग धूया । कृऩा प्रसाद काव्म कयो ऩयूा।।4।।

सफ भेया भागव सयर औय सपर कयो। भझुे सेिक जानकय भझुे अऩनी कृऩा दो। भैं सफ सॊतो की ऩग धूशर हूॉ। आऩ सफ अऩनी कृऩा प्रसाद से काव्म को ऩयूा कयो।

दो0- सभुन सभुन सॊग साधधके द्पवयेप भधु सॊग्रहाम। त्मूॊ “होयाभ” सायतत्व गहह रेखहुॊ काव्म यचाम।।9।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक जजस प्रकाय बौंया ऩषु्ऩ ऩषु्ऩ का सॊग साधकय

भधु इकट्ठा कयता है उसी प्रकाय मह सायतत्ि गहृण कयके भैं मह काव्म यचना कयता हूॉ।

छ0- कमरभर हयण भॊगर कयन सनुत प वाहन भनुन भन भोहहतॊ। होइहहॊ पप्रम बनननत मह जनन उड्गन भध्म शशी शोमबतॊ।। गरुकृऩा पवबानत बनननत भभ कहहहॊ सनुहहॊ जे धचत्त धरय। “होयाभदेव” सो भॊगर सनेही रेंहहॊ पर चारय काज करय।।2।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक कशरमगु के ऩाऩों को हयने तथा भॊगर कयने

िारा भनुनमों के भन को भोदहत कयने िारा सयुनत का िाहन मह भेय काव्म यचना इतनी वप्रम होगी जैसे कक तायागण के फीच भें चन्रभा सिुोशबत होता है। गरुुकृऩा को िौशबत कयने िार भेय इस काव्म को धचत्तधय कय जो कहेगा औय सनेुगा िह सभुॊगर पे्रभी अऩने चायों कामव (धभव, अथव, काभ औय भोऺ) को सपर फना रेता है।

सो 0- ईन्रसहाम गॊगवाय, ऻानसागय सत्मप्रकाश वा।

फणूझऊ अभय सत्मसाय, एक हदवस प्रबा अवनीश सॊग।।1।।

एक ददन ईन्र सहाम गॊगिाय, ऻान सागय, सत्मप्रकाि सतसेना ने चन्रप्रबा औय अिनीि के साथ सत्मसाय के विषम भें ऩछूा।

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छ0- ऩहैठ ननकट सो चारय मशष्म कीन्ही पवनम सद्भावहीॊ। कक जगद को ऩयभतत्व स्जस जानन न शषे कुछ ऩावहीॊ।।

कवन ऩयभ अभयकथा तत्व श्री मशव बवानी सन कही।

आऩ सऩुात्र गय जानन हभ कहहु देव सतसाय वही।।3।।

एक ददन भेये उन चायों शिष्मों बततों (श्री ऻानसागय, श्री सत्मप्रकाि सतसेना एिॊ चन्रप्रबा तथा श्री ईन्र सहाम गॊगिाय) ने सद्भािना भें ननकट फठैकय विनती की कक हे गरुुदेि ! जगत का ऩयभतत्ि तमा है जजसे जानने के फाद कुछ बी िषे नह यहता है ? तथा जो ऩयभ अभयकथा तत्ि श्री शिि ने बगिती ऩािवती के सम्भिु कहा, िह तमा है ? मदद आऩ हभें सऩुात्र जानत ेहों तो िह सतसाय कहो।

दो0- कहत “होयाभदेव” तफ सो तत्व कीन्ह फखान। मत्र तत्र कथनीम नहीॊ कहुॊ जे अवतरय ध्मान।।10।।

श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक भैं िह तत्ि िणवन कयता हूॉ जो भझुे ध्मानस्थ अिस्था भें उतया है। िह मत्र तत्र कथनीम नह ॊ है।

चौ0- जेहह त ेईश कभप रहहॊ जैसा । देहहॊ तहेह साभथप फर तसैा।। ईश कृऩा फस सफ फरशारी । मथा मथा सॊत सयु जगऩारी।।1।।

ईश्िय जजससे जैसा कामव रेना चाहत ेहैं उसको िसैी ह साभथव फर प्रदान कयत ेहैं। ईश्िय कृऩा से ह सफ फरिार होत ेहैं, कपय िसैा िसैा ह िे सॊतजन औय देितागण जगत के प्रनतऩार होत ेहैं।

चौ0- अहेतकुी दमा सबी ऩय ताहीॊ । नाहीॊ द्वेष कोउ जीव प्रदाहीॊ।। नतहह रोक चेतन्म प्रकासा । ऩयो सभस्ष्ट जीव घटाकासा।।2।।

उसकी अहेतकुी दमा सबी ऩय फनी यहती है। िह ककसी जीि को द्िेष प्रदान नह ॊ कयता। उसी के रोक का चेतन्म प्रकाि सभजष्ट जीि के घटाकाि भें ऩडा है।

चौ0- हरय बफभखु बमे जीव सॊसायी । तदपऩ सो नहीॊ जीव बफसायी।। स्वमॊ बमो देपव देवस्वरूऩा । यधच रोक स्वमॊ तहॊ बऩूा।।3।।

प्रब ुसे विभिु होकय जीि सॊसाय हो गमा है। ऩयन्त ुप्रब ुने जीि को बरुामा नह ॊ है। िह स्िमॊ ह देिी देिताओॊ के स्िरूऩ भें नाना रोक यचकय स्िमॊ उनभें अधधश्िय है।

चौ0- आऩ ही ब्रह्भा पवष्णु भहेषा । आऩ ही देव नय मऺ पवशषेा।। सकर भहाऩरुष जग भाहीॊ । सो नतहह तजे पवबनूत रूऩाहीॊ।।4।।

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िह आऩ ह ब्रह्भा विष्णु औय भहेि है औय आऩ ह देि हैं, भानि हैं मऺ हैं औय वििषे हैं। सॊसाय भें सभस्त भहाऩरुुष उसी की तजे (चेतन्माॊि) विबनूत स्िरूऩ भें है।

चौ0- नतहह पवसारय भामा जग टूरा । तात ेजीव गहह सखु दखु शरूा।। कोउ धनन को ननयधन ननयफर । ऩजू्म अऩजू्म ऻानी को भढूर।।5।।

जीि उसी को बरूकय भामा भें पॊ स गमा है। इसशरमे दिु सिु की िशूर चढता है। तबी तो कोई धनिान है तो कोई ननधवन औय ननफवर है, कोई ऩजू्म कोई नतयस्काय मोग्म है कोई ऻानी औय कोई भिूव है।

दो0- मथा मथा स्वबाव जीव फनहहॊ फॊधनकाय।

तथा तथा प्रकृनत तहेी “होयाभ” ऩॊथ प्रसाय।।11।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक जीि का जैसा स्िबाि फॊधनकाय फनता जाता

है प्रकृनत उसको िसैा भागव िोरती यहती है।

चौ0- बमूर सऩुॊथ जीव गड्ढ ओया । बागई जात ुनहहॊ कॊ हु ऺोया।। तदपऩ प्रब ुफहु प्रफॊध कयहीॊ । ताकक जीव सऩुथ अनसुयहीॊ।।1।।

सत्भागव बरूकय जीि गड्ढे की ओय दौड जात ेहैं जजसका कह ॊ छोय नह ॊ है। कपय बी ऩयभेश्िय फहुत सी व्मिस्था कयता है ताकक जीि सन्भागव ऩय चर ऩड।े

चौ0- कायन मह सो दइ उऩदेशा । अऩया पवद्मा वेद पवशषेा।। ऩया पवद्मा कहह सन वयैागी । स्जन्ह स्जऻासा भोऺ अनयुागी।।2।।

इसी कायण उसने िह उऩदेस ददमा जो अऩया विद्मा रूऩ वििषे िेद है। ऩया विद्मा ियैागी सॊतों के सभऺ कह है जजनकी जजऻासा भोऺ अनयुागी है।

चौ0- ननयॊजन याज्म असॊखम ब्रह्भॊडा । इक इक भॊह तॊह अनन्त रोकॊ डा।। प्रनत प्रनतअॊड सयु भनुन तहॊ नाना । ननज ननज सषृ्टी प्रफॊध

धथयाना।।3।। ननयॊजन याज्म भें असॊख्म ब्रह्भाण्ड है औय एक एक भें िहाॊ अनन्त अॊडरोक

है। प्रत्मेक अॊडरोकों भें िहाॊ नाना देिता औय ऋवष हैं जो अऩनी अऩनी सषृ्ट का प्रफॊध कयत ेहैं।

चौ0- अगणणत सषृ्टी रोकान्तय नाना । जेत ेसयुसरुय यचन सॊधाना।। स्वॊम सत्मधनन नतन्ह अॊश रूऩा । धायहहॊ जग अस भहत्ता

अनऩूा।।4।।

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नाना रोकान्तयों भें अगखणत सषृ्ट मों भें जजतने देिी देिता यचना सम्बारत ेहै उन सफभें अॊिरूऩ से सत्मऩरुुष स्िमॊ ह जगत को धायण कयता है। ऐसी उसकी अनठूी ह भदहभा है।

दो0- व्मक्ताव्मक्त द्व ैरूऩ स्वमॊ, जगदीश्वय जगदाधाय।

आऩे आऩ जग जीव स्वमॊ आऩे आऩ कयताय।।12।।

व्मतताव्मतत (साकाय ननयाकाय) दोंनों स्िरूऩों भें स्िमॊ जगदाधाय जगद श्िय ह है। िह अऩने आऩ ह जगद औय जीि रूऩ फना हुआ है औय अऩने आऩ ह कयताय स्िमॊ है।

चौ0- कछुक भनजु एसो जग भाहीॊ । सगणु ननगुपण मबन्न मबन्न रखाहीॊ।। जर अरू बाऩ भरू इक जैसे । सगणु ननगुपण ऐकत्व तसेै।।1।।

सॊसाय भें कुछ ऐसे भनषु्म बी है जो ननगुवण सगणु भें शबन्नता दिावत ेहैं। जैसे जर औय बाऩ भरूत् एक होत ेहैं िसेै ह सगणु ननगुवण एक ह तत्ि है।

चौ0- व्मक्त स्वरूऩ ब्रह्भाशॊ साकाया । अव्मक्तरूऩ जानी ननयाकाया।। जनन जर रहय मबन्नता नाहीॊ । सगणु ननगुपण ब्रह्भ दोऊ नाहीॊ।।2।।

ब्रह्भ का जो अॊि व्मतत है िह साकाय है औय जो अव्मतत है िह ननयाकाय है। जैसे जर औय रहयों भें शबन्नता नह है उसी प्रकाय सगणु औय ननगुवण ब्रह्भ दो नह ॊ है।

चौ0- हौं ध्मानस्थ सभाधध कारा । देणखउ ज्मोनत स्वरूऩ पवशारा।। देखत देखत हरय हय रूऩा । बमऊ सो दनुतऩुॊज अनऩूा।।3।।

भैंने ध्मानस्थ सभाधध भें वििार ज्मोनत स्िरूऩ देिा। देित ेदेित ेिह श्रीहरय औय िॊकय जी के स्िरूऩ का हो गमा। िह ज्मोनतऩुॊज अनऩुभ था।

चौ0- एक ही देह हरय हय देखी । कीन्ही नतृ्म पवधचत्र पवषखेी।। अस ब्रह्भरूऩ मशव कय फानी । रेखहुॊ अभय कथा जग जानी।।4।।

भैंने श्रीविष्णु औय िॊकय जी को एक ह देह भें देिा जजन्होने विधचत्र औय वििषे नतृ्म ककमा। उन ऐस ैह ब्रह्भरूऩ शिि की िाणी जजसे सॊसाय ने अभयकथा जाना है शरिता हूॉ।

दो0- भभ कय सो ब्रह्भ रेखनी स्वमॊ मरणखअ ब्रह्भ ऻान।। “होयाभदेव” साॊचीॊ कहह मभथ्मा भभ फरयमान।।13।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक उस ब्रह्भ की रेिनी भेय हाथ फन गमे हैं जो

स्िमॊ ब्रह्भऻान शरित ेहैं। भैं मह सच्ची फात कहता हूॉ भेय फडाई तो शभथ्मा है।

दो0- देवकुॊ ज आश्रभ “होयाभ” सऩुात्र समुशष्मशचुाभ।

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कीन्ह ऩयगट नतन्ह सन मह ऩयभतत्व सतनाभ।।14।।

श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक देिकुॊ ज आश्रभ ऩय भेये सऩुात्र उत्तभ शिष्मों के सभऺ मह ऩयभतत्ि सतनाभ भैंने प्रगट ककमा है।

दो0- भनुन नायद इक शबु हदवस गमऊ उभा चयणाय।

कुशरऺेभ प्रसॊग करय फोरे सभम पवचाय।।15।।

एक िबु ददन श्री नायद भनुन बगिती उभा के श्रीचयणों भें गमे। कुिर भॊगर प्रसॊग के फाद िे सभम विचाय कय फोरे कक –

चौ0- सनुहु भात ुमह पवनम हभायी । कहहुॊ पवचारय तमु्हहीॊ हहतकायी।। जफ रग अभय तत्व नहीॊ जाना । तफ रधग बफयथा तऩ मऻ ऻाना।।1।। भाता हभाय मह विनती सनुो जो भैं तमु्हाये शरमे दहतकाय भान कय कहता

हूॉ। जफ तक अभय तत्ि को नह ॊ जाना जाता तफ तक साये तऩ मऻ ऻान व्मथव है।

चौ0- देवाधधदेव भहेश पवऻानी । अजहुॊ अभयतत्व नाहीॊ फखानी।। हयभखु सोइ सनुो पवऻाना । तफ तभु ऩाइहैं गनत ननयफाना।।2।।

देिाधधदेि भहादेि विऻानी हैं उन्होने आज तक अभयतत्ि का फिान नह ककमा है। श्री शिि के भिु से तभु िह विऻान सनुो तफ तभु ननिावण गनत को प्रातत कय सकोगी।

चौ0- सो ऩयभतत्व भात ुजे जानी । बमऊ अभय मभ त्रास नसानी।। सो ऩनुन जनभभयण नहहॊ आवा । मशव अभय तभु मभपॊ द ऩावा।।3।।

भाता जी ! जो उस ऩयभतत्ि को जान रेता है िह अभय हो जाता है उसका मभपॊ द नष्ट हो जाता है। िह कपय जनभ भयण भें नह ॊ आता। शिि िॊकय जी तो अभय है औय तभु मभपॊ द को प्रातत होती यहती हो।

चौ0- दृढ पवश्चम तफ कीन्ह बवानी । सो सनुन ऩाऊॉ ऩद ननयफानी।। शरै मशखय जहॉ यत मशव ध्माना । जाइ ननकट ननज काज फखाना।।4।। तफ बगिती उभा ने दृढ ननश्चम कय शरमा कक िह अभय तत्ि सनुकय

ननिावण ऩद प्रातत करूॉ गी। तफ ऩिवत की चोट ऩय जहाॊ शिि जी ध्मान भें फठेै थे उनके ननकट जाकय भनोयथ कहने रगी।

दो0- देणख उभा हठ प्रफर अनत ऩनुन ऩनुन मशव टयकाम। पवपर पववश भहेश तद अचयज उभा रखाम।।16।। उभा की प्रफर हठ देिकय शिि फाय फाय टारने रगे ऩयन्त ुअऩने को वििि

औय विपर देिकय तफ भहेश्िय ने उभा की ओय आश्चमव से देिा।

दो0- फोरे तद श्री नीरकॊ ठ कहहु सभुणुख भनबाम।

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सो पवऻान ऩयगट करूॊ तव भन सॊशम जाम।।17।।

तफ श्री नीरकॊ ठ भहादेि फोरे कक हे सभुखुि ! भैं जो तमु्हाये भन बामे िह विऻान प्रगट कयता हूॉ जजससे कक तमु्हाये भन का सॊिम नष्ट हो।

छ0- शरै मशखय सतसॊग सनुन ननत सफ सयु सॊत जन आवहहॊ। जेहह हहम पे्रभ सबुगनत हरय मशव फानी गहइ हयसावहहॊ।।

भदु भॊगर अभोघ अभीयस पऩफइ दखु दारूण बव बम बॊजहहॊ।

“होयाभदेव” फडॊ बाग्म समाने सतसॊग सनुहहॊ सॊत ऩद कॊ जहहॊ।।4।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक ऩिवत की चोट ऩय सतसॊग को सनुने के शरमे

सबी देिता तथा सॊतजन ननत आत ेहैं। जजनके रृदम भें श्रीहरय की सच्ची प्रेभभमी उत्तभ बजतत है िे श्री शिि जी की िाणी को गहृण कयके हवषवत होत ेहैं। आनन्दभनम अचूक अभतृयस का ऩान कयके सॊसाय का दारूण दिु औय बि बम नष्ट हो जाता है। िे फड ेह बग्मिार धीय ऩरुुष है जो विद्िान सॊतजन के चयण कभरों भें सतसॊग सनुत ेहैं।

दो0- “होयाभदेव” अभतृयस जाकी औतरय धाय। ननस्ज भन रूधच हहत ुसोई ; रेखहुॊ सॊक्षऺप्त साय।।18।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक जजस अभतृयस की धाया भझुभें उतय है भैं

िह अऩने भन की रूधच के शरमे सॊक्षऺतत साय रूऩ भें शरिता हूॉ।

2 – श्रीगुर गीता

दो0- मशव सन ऩावपती प्रश्न करय सनुहहॊ सयु सॊत सभाज।। शरै मशखय अभतृ सबी ऩीफहहॊ तस्ज ननज काज।।19।। शिि सभऺ ऩािवती प्रश्न कयती है औय देिगण तथा सॊत सभाज सनुता है।

ऩिवत की चोट ऩय अऩने अऩने कामव छोडकय सबी जन अभतृ को ऩीत ेहैं।

दो0- ननगुपण सगणु ऩयभातभा ऩयभगरु दाताय। “होयाभ” कथहुॉ नभन करय सॊक्षऺप्त गरुतत्व साय।।20।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक ननगुवण सगणु ऩयभात्भा स्िरूऩ श्री ऩयभ गरुु

दाताय को नभन कयके भैं सॊक्षऺतत गरुुतत्ि साय शरिता हूॉ।

दो0- गॊधयव मसद्ध भनुनन भध्म धगरय मशखय कैराश। पवस्स्भत मशवा शॊकय ननकट बई स्जऻास प्रकाश।।21।।

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एक फाय गॊधिों शसद्धों औय भनुनमों के फीच कैराि ऩिवत की चौट ऩय विजस्भत हुई ऩािवती को िॊकय जी के ननकट एक जजऻासा जागतृ हुई।

दो0- वहदऊ ऩावपती हे मशवौ बवगरु देवन देव। कयहहॊ नभन तभुको सदा ; सयुासयु सॊत सफ सेव।।22।। ऩािवती जी फोर हे शिि ! बि गरुु देिाधध देि ! सदा सबी सयु असयु औय

सॊतजन तमु्हे नभन कयत ेहैं औय सेिा कयत ेहैं।

दो0- ब्रह्भा श्रीऩनत इन्राहदक सफ जग तभुयी सेव। “होयाभ” कयत तभुको नभन तभु ककहह नभन ससेुव।।23।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक ब्रह्भा, श्रीविष्ण,ु इन्राददक साया सॊसाय

तमु्हाय सेिा कयता है तभुको नभन कयता है कपय तभु ककसकी नभन औय सेिा कयत ेहो?

चौ0- देणख मह हौं अनत चककताहू । ककभ फाताॊ मह नाथ फझुाहू।। तभु धभपऻ व्रतनामक बगवन । कहहु शम्बो प्रथभ गरु भहहमन।।1।। मह देिकय भझुे फहुत ह आश्चमव हो यहा है कक मह तमा फात है ? हे

स्िाभी फताओ तभु धभव के ऻाता अधधष्ठाओॊ के बगिान हो। सफसे ऩहरे गरुु भदहभा भझुे फताओ।

चौ0- को ऩथ गहै जीव ब्रह्भ होहीॊ । कहहु नाथ पप्रम रख भोहीॊ।। भैं तभु नभन चयणयज दासी । करय ककयऩा सोई ऩद गासी।।2।। औय हे स्िाभी ! ककस ऩथ से जीि ब्रह्भ रूऩ होता है। भझुे वप्रम जानकय हे

नाथ फताओ। भैं आऩकी चयण यज दासी आऩको नभन कयती हूॉ। कृऩा कयके िह ऩद भझुसे कहो।

चौ0- एहह पवनती सनुन फायम्फाया । गहह अन्तस्थ आनन्द अऩाया।। स्जऻास ुमशष्म रख हयस पवशारा । होहहॊ प्रसन्न गरु देव दमारा।।3।। मह विनती फायम्फाय सनुकय अन्त्कणव भें अऩाय आनन्द गहृण ककमा। जैसे

जजऻास ुशिष्म को देिकय वििार हषव होता है िसेै ह गरुुदेि दमार प्रसन्न हो जात ेहैं।

चौ0- फोरे शॊकय मह गपु्त ऻाना । कफहु ऩवूप हौं नाहीॊ फखाना।। रख तभुयी सद्भगनत बवानी । गरुतत्व भहहभा कहुॊ सफ भानी।।4।। मह गतुत ऻान श्री िॊकय जी इस प्रकाय कहने रगे कक हे ऩािवती ! तमु्हाय

उत्तभ बगनत को देिकय जो सबी ने भानी है उस गरुुतत्ि की भदहभा को कहता हूॉ।

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दो0- ऩयाबगनत यत बक्त जो देव सभ गरु धधमाम। कधथत पवषम प्रकामशत नतहह सऩुात्र सॊत सफ ऩाम।।24।। जो बततजन प्रब ुकी ऩयाबजतत भें यत है औय ईष्ट के सभान ह गरुु की

अयाधना कयत ेहैं मह कधथत विषम उनके ह सभऺ प्रकाशित होत ेहैं इसे साये सऩुात्र सॊत ह प्रातत कयत ेहैं।

चौ0- जे सद्गरु सोइ मशव फखाना । जे मशव सो ही गरु सजुाना।। इह कयहीॊ जो सॊशम अनेका । सो गरुत्व अऻान की टेका।।1।। जो सदगरुु है िह शिि िणवन ककमा गमा है औय जो शिि है िह सॊत

सजुान सदगरुु जाना गमा है। इसभे जो अनेक प्रकाय के सॊिम कयत ेहैं िे गरुुतत्ि की अऻानता ऩय दटके हुमे हैं।

चौ0- सनुहु बवानी कहुॊ तत्व सोई । तीन रोक कहह दयुरब जोई।। भहादेवी मह सत्म कय जानो । गरु ब्रह्भ नहहॊ आन पऩछानो।।2।। हे बिानी सनुो ! भैं िह तत्ि कहता हूॉ जजसे रोकों भें दरुवब कहा गमा है।

हे भहादेिी मह सत्म जान रो कक गरुु साऺात ऩणूवब्रह्भ है उसकी अन्म रूऩ भें ऩहचान न कयो।

चौ0- वेद ऩयुान श्रुनत शास्त्र साये । भॊत्र तॊत्र सफ फहु प्रकाये।। शवै शास्क्त भन भत ेअनेका । भ्रमभत धचत्त बयभाम प्रत्मेका।।3।। िेद ऩयुाण श्रुनत िास्त्र तथा अनेकों प्रकाय के साये भन्त्र ििै िजतत ऩजूक

अनेको भनभत भ्रशभत धचत्त को औय बी भ्रभात ेहैं।

चौ0- जऩ तऩ तीयथ व्रत अऩाया । करयत दान मऻ फहु प्रकाया।। जफ रग गरु तत्व नहहॊ जानी । सकर सकुयभ बफयथ बवानी।।4।। बिानी ! अऩाय जाऩ, तऩ, तीथव, व्रत तथा फहुत प्रकाय से ककमे गमे दान

औय मऻ जफ तक गरुु तत्ि का ऻान न हो तफ तक साये ऩनु्म कभव व्मथव हैं।

दो0- आत्भा अरू सद्गरु अमबन्न सभुणुख मही सत्मसाय। “होयाभ” भनुनजन चाहहअ ऩावहु जतन अऩाय।।25।। हे सभुखुि ! आत्भा औय सद्गरुु अशबन्न है मह सत्म साय है। श्री होयाभदेि

जी कहत ेहै कक भनुन जनों को चादहमे कक िे अथाह मत्न कयके इसकी प्राजतत कयें।

चौ0- जास ुजीव बमे ब्रह्भ सभाना । रख साधुता सो सत्म फखाना।। श्री सदगरु चयण यज ऩावा । जीव शदु्ध ब ैऩाऩ नसावा।।1।।

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जजससे जीि ब्रह्भ सभान हो जाता है तमु्हाय साधुता देिकय िह सत्म कहता हूॉ जजससे श्री सदगरुु के चयणों की धूशर ऩाकय जीि िदु्ध हो जाता है औय उसके साये ऩाऩ नष्ट हो जात ेहैं।

चौ0- ननज गरु चयणोंदक ऩाना । शषे नीय ननज शीष चढाना।। सकर जगद भॊह तीयथ साये । करय असनान ऩाम पर बाये।।2।। अऩने गरुुदेि का चयणोंदक प्रातत कयें औय िषे जर को अऩने शसय ऩय

चढाना चादहमे। सॊसाय भें जजतने बी तीथव हैं उनभें स्नान कयके अऩाय पर प्रातत होता है।

चौ0- कयहु गरु चयणोदक ऩाना । गरु झूॊठन बोज्म ननत खाना।। गरु भयुनत को ध्मान रगावा । गरु नाभ जऩ धचत्तहहॊ सभावा।।3।। औय अऩने गरुु के चयणों का जरऩान कयके गरुु की झूठॊन बोजन को ननत

िाना चादहमे। गरुु भनूत व का ध्मान रगािे औय गरुु का नाभ जऩ धचत्त भें धायण कयें।

चौ0- जनभभयण अऻान नसायक । ऻान पवयाग देंहहॊ बव तायक।। गरु चयणोदक जे ननत ऩावा । कयभ जार काहट भकुुतावा।।4।। जनभ भयण औय अऻान का नास कयने िारा तथा ऻान ियैाग्म देकय बि

से तायने िारा गरुु का चयणोदक जो ननत प्रातत कयत ेहैं िे अऩना कभवचक्र नष्ट कयके भतुत हो जात ेहैं।

दो0- नाभ कीतपन ननजगरु अनन्त मशव कीयतभान।

“होयाभ” नाभ धचॊतन गरु शधुच मशवधचॊतन जान।।26।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक अऩने गरुु का नाभ कीतवन को शिि का

अनन्त कीतवन भानना चादहमे औय गरुु नाभ धचन्तन को ऩािन शिि धचॊतन जानना चादहमे।

चौ0- स्जन ऩद धूमर ननश्चम जानी । बवसागय भॊह सेत ुसभानी।। अस सदगरु ऩद हौं फनन दासा । ननत्म नभहूॊ कयहूॊ उऩासा।।1।। जजनके चयणों की धूशर बिसागय भें सेत ुके सभान ननश्चम कयके जानी गई

है ऐसे सद्गरुु के चयणों की भैं दास फनकय नभन कयता हूॉ औय उऩासना कयता हूॉ।

चौ0- जाकय ककयऩा भात्र बवानी । नासत भोह अरू शोक भहानी।। सो ब्रह्भरूऩ गरु मसय नाऊॊ । ऩनुन ऩनुन नभन ऩदभ यज ऩाऊॊ ।।2।।

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हे बिानी ! जजनकी कृऩा भात्र से भहान भोह औय िोक नष्ट हो जात ेहैं ऐसे ब्रह्भ स्िरूऩ गरुुदेि को भैं िीि निाता हूॉ औय फायम्फाय उन्हें नभन कयके चयणयज प्रातत कयता हूॉ।

चौ0- रख काशीखॊड गरु ननवास ू। गरुचयणोदक गॊगा बास।ू। गरु पवश्वेश्वय बव उद्धायक । ननश्चम गरु ऩणूपब्रह्भ तायक।।3।। गरुु के ननिास गहृ को कािी ऺेत्र जानो औय गरुु चयणोदक भें तो गॊगा ह

बासती है। गरुु विश्िेश्िय है ; बि उद्धायक है। गरुु ननश्चम ह तायनहाय ऩणूवब्रह्भ होता है।

चौ0- सदगरु सेवा गमा फखानी । श्री गरु देह अऺमवट जानी।। पवष्णुऩाद गरु ऩद ऩावन । ऩयभ परद सफ ुअनत भनबावन।।4।। सदगरुु की सेिा गमा तीथव कह गई है श्री गरुु की देह अऺमिट जानी गई

है। औय गरुुऩद विष्णुऩद है जो ऩयभ परदामक औय सफको अनत भन बािन हैं।

दो0- ननत्म समुभय गरु भयूनत सदा जऩउ गरु नाभ। गरु आऻा मसय ऩय धयै गरु मबन्न बाव न थाभ।।27।। इसशरमे ननत्म गरुु भनूत व का सशुभयन तथा सदा गरुु के नाभ का जाऩ कये।

औय गरुु की आऻा को शसय ऩय धायण कये। इससे शबन्न बािना भन भें न दटकामे।

चौ0- ब्रह्भ वाक्म श्री गरु भखु भाहीॊ । कयहु ध्मान जनन सनत पऩम ुध्माहीॊ।। ननज गहृ जानत कीयनत त्मागी । सदगरु चयण आश्रम रागी।।1।। श्री सदगरुु देि के भिु भें ब्रह्भिाणी होती है उनका ध्मान ऐसे कये जैसे

सती स्त्री अऩने ऩनत का ध्मान धायण कयती है। अऩने घय जानत औय फडतऩन को त्माग कय सदगरुु देि के चयणों भें रगा यहे।

चौ0- „ग‟ु नतमभय „रू‟ तजे प्रकासी । ननश्चम गरु अऻान पवनासी।। „ग‟ु बवयोग „र‟ नतष नासा । योग ननवारय गरुशब्द बासा।।2।। „ग‟ु अॊधकाय है „रू‟ तजे प्रकाि है। ननसॊदेह गरुु अऻान का नास कयने िारा

है। „ग‟ु बियोग है „रु‟ उसका विनासक है। इसशरमे योग से भजुतत ददराने िारा गरुु िब्द प्रकाशित है।

चौ0- „ग‟ु गणुातीत „रू‟ रूऩातीता । तात ेगरु गणुरूऩ अतीता।। „ग‟ु भामा „रू‟ भामा टायै । सयुभनुन ऩजू्म दयुरब गरु धायै।।3।। „ग‟ु गणुातीत है „रू‟ रूऩातीत है इसशरमे गरुु गणु औय रूऩ दोंनों से ऩये है।

„ग‟ु भामा है। „रू‟ भामा नासक है इसशरमे सभस्त देवि देिता औय सॊतजनो से ऩजू्म गरुु दरुवब है उन्हे धायण कयें।

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चौ0- भन प्राण अरू इन्री शयीया । ननज सकृुत अथप भेघा सधुीया।। वाणी कयभ गरु अऩपण कीजै । बवसागय से भसु्क्त रीजै।।4।। भन, प्राण, इजन्रमाॉ, िय य, अऩने ऩनु्म, धन, फवुद्ध, िाणी औय कभव को गरुु

को अऩवण कय देिे औय बिसागय से भजुतत को गहृण कय रेिे।

दो0- गरु ब्रह्भा, गरु नायामण गरु देव भहादेव। गरु साऺात ऩयॊब्रह्भ गरु चयण नभ सेव।।28।। गरुु ब्रह्भा है, गरुु नायामण है। गरुु ह देि है भहादेि है। गरुु साऺात ऩयभ

ब्रह्भ है इसशरमे गरुु चयणों भें नभन कये औय सेिा कये।

चौ0- अऻान नतमभय योग सफ ऩीया । ग्रमसत भानव नमन दखुीया।। ऻान श्राका अॊजन जे खोरे । अस गरु चयण नभन ननत फोरे।।1।। अऻान रूऩी अॊधकाय के योग की सभस्त ऩीडाओ से ग्रशसत भानि के दिुी

नेत्रों को जो ऻान श्राका के अॊजन से िोर देता है ऐसे सदगरुु के चयणों भें ननत नभस्काय कहना चादहमे।

चौ0- जे अणखर ब्रह्भाण्ड अथामा । व्माप्त चयाचय बतू सभदुामा।। नतहह धाभ दयसावत जोई । नभऊॊ ननत्म भैं सदगरु सोई।।2।। जो अथाह अखिर ब्रह्भाण्ड भें चयाचय बतू प्राखणमों भें व्मातत है उसके धाभ

को जो ददिाता है भैं ऐसे सदगरुु देि को ननत्म नभन कयता हूॉ।

चौ0- स्थावय जॊगभ व्माप्त चयाचय । ब्रह्भ रखाम अस गरु नभन कय।। बत्ररोक व्माप्त जे अमसऩद दाम । नभो नभो श्री गरु देवाम।।3।। ऩयभ ऩयभात्भा को जो स्थािय जॊगभ चयाचय प्राखणमों भें ददिाता है ऐस ै

गरुुदेि को नभस्काय कयना चादहमे। जो बत्ररोकी भें व्मातत ऩयभात्भा के अशसऩद को प्रदान कयाने िारा है उस श्री सदगरुु देि को नभस्काय है नभस्काय है।

चौ0- ननमभश कार जेहह के भखु धाया । मशव स्वरूऩ ननजातभ फाया।। मशव अरू आतभ दयस कयाम । नभो नभो श्री गरु देवाम।।4।। ननशभष कार भें ह जजनके भिु की िब्द धाया शििस्िरूऩ (कल्माणकाय )

ननज आत्भा का उद्धाय कयने िार है औय शिि (कल्माण स्िरूऩ ब्रह्भ) औय आत्भा का साऺात्काय कया देती है उन श्री गरुुदेि को नभस्काय है नभस्काय है।

दो0- चेतन्म शाश्वत शास्न्तभम नबातीत ननयॊजनभ।् नाद बफन्द ुकरातीत मो तस्भ ैश्री गरुवे नभ।्।29।। जो चेतन्म ननत्म िान्त आकाि से ऩये ऩयभेश्िय है नाद बफन्द ुऔय करा से

अतीत है उन श्री गरुुदेि को नभस्काय है नभस्काय है।

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चौ0- आतभ तत्व धचत्तस पवषमायी । जाग्रत सऩुन, ससुसु्प्त अऩायी।। करय प्रगट जे मससही हदखाता । नभो नभो अस सदगरु दाता।।1।। जो धचत्त के विषम औय अऩाय जागनृत स्िऩन औय सषुजुतत अिस्था प्रगट

कयाके आत्भतत्ि, शिष्मों को ददिा देता है उस सदगरुु दाता को नभस्काय है, नभस्काय है।

चौ0- जेहह घट उदम ब्रह्भ की ऻाना । ब्रह्भ ऻानी नहहॊ उय अमबभाना।। अनन्म बस्क्त जेहह मह बावाम । नभो नभो श्री गरु देवाम।।2।। जजसके घट भें ब्रह्भऻान उदम हो गमा है मदद उस ब्रह्भऻानी के रृदम भें

अशबभान नह ॊ हुआ है औय जजसका अनन्म बजतत का बाि है ऐसे श्री गरुुदेि को नभस्काय है नभस्काय है।

चौ0- नाना रूऩ सकर सॊसाया । तदपऩ जो तत मबन्न ननयाया।। तत कामप कायण रूऩ अथामा । नभो नभो श्री गरु देवामा।।3।। मह साया सॊसाय नाना रूऩों िारा है कपय बी जो उस से शबन्न औय ननयारा

है उसके अथाह कामव कायण रूऩ श्री गरुुदेि को नभस्काय है नभस्काय है।

चौ0- जो सफ पवधध ऻान फर ऩयूा । तत्व पवबपूषत भसु्क्तदत्त सयूा।। ननज ऻानानर कयभ नसाम । नभो नभो श्री गरु देवाम।।4।। जो सिवप्रकाय से ऻान सम्ऩन्न ऩणूव तत्िो से विबवूषत औय भजुततदाता देि

है औय जो अऩनी ऻान अजग्न से कभों को नष्ट कय देता है उस गरुुदेि को नभस्काय है नभस्काय है।

दो0- सदगरु से अनतकय तत्व नहहॊ नाहीॊ तऩ अधधकाम। “होयाभ” अनतकय ऻान नहहॊ नभहुॊ गरु देवाम।।30।। सदगरुु से फढकय तत्ि नह है औय ना ह अधधक तऩस्मा है। श्री होयाभदेि

जी कहत ेहैं गरुु से फढकय ऻान नह ॊ है भैं गरुुदेि को नभन कयता हूॉ।

चौ0- श्रीहरय बव गरु भभ ईष्ट सोइ । सवप बतूात्भ भभातभ नसोइ।। आहद अनाहद गरु सत्मदेवा । गरु शब्द सभ अन्म न खेवा।।1।। श्रीहरय ह जगदगरुु है िे ह भेये स्िाभी हैं। िे सभस्त बतू प्राखणमों की

आत्भा हैं। िे भेय आत्भा है भैं उनको नभन कयता हूॉ। गरुु आदद अनादद सत्मदेि है। गरुु के िब्द के सभान दसूया कोई िेिनहाय नह ॊ है।

चौ0- गरु भध्म स्स्थत मह जग साया । जग भें स्स्थत गरु अऩाया।। नहीॊ गरु सभ कोउ अधधकाम । नभो नभो श्री गरु देवाम।।2।।

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मह साया विश्ि गरुु भें जस्थत है औय गरुु ह विश्ि भें जस्थत है। गरुुदेि के सभान फढकय दसूया कोई नह है। इसशरमे गरुुदेि को नभस्काय है, नभस्काय है।

चौ0- प्रपवष्ठ सकर सॊसायी वन भें । हदसा बयभ कायन धचत्तमन भें।। जो जीवही सद्ऩॊथ रखाम ै। नभो नभो श्री गरु देवाम।ै।3।। इस सॊसाय रूऩी िन भें ददसा भ्रभ के कायण अन्त्कणव भें जो जीिो को

सच्चा भागव ददिाता है उन श्री गरुुदेि को नभस्काय है। नभस्काय है।

चौ0- गॊग ऩादोदक बत्रताऩ नसाम । नभो नभो श्री गरु देवाम।। अऻान दॊमसत सऩप भहाभॊत्राम । नभो नभो श्री गरु देवाम।।4।। जजनके चयणों का जर श्री गॊगा है जो बत्रताऩों को नष्ट कयता है। उन श्री

गरुुदेि को नभस्काय है, नभस्काय है। जो अऻान रूऩी नाग से डसे हुमे भनषु्म के शरमे भहाभॊत्र रूऩ है उन श्री गरुुदेि को नभस्काय है नभस्काय है।

चौ0- ध्मान भरू गरु भनूत प बावन । ऩजूा भरू गरु ऩद ऩावन।। भॊत्र भरू गरु वाक्म भहाना । भसु्क्त भरू गरु ककयऩा जाना।।5।। गरुु भनूत व ह ध्मान की भरू भें सफको बामी है गरुु के ऩवित्र चयण ह सफ

ऩजूाओॊ की भरू है। गरुु का िातम ह भहान भरू भॊत्र है औय भजुतत का भरू बी गरुु कृऩा ह जानी गई है।

दो0- सात मसॊधु असनान पर एतहेह ऩावन जान। श्री गरु ऩद जर पवन्द के सहस्त्रव ैअॊश सभान।।31।। सातों सभनु्रों के स्नान का पर श्री गरुुदेि के चयणों के जर की फूॊद के

सहस्त्रिें अॊि के सभान है उसे इतना ऩवित्र जानो।

चौ0- मशव रूठे गरु यऺण दाई । गरु रूठे नहहॊ कोउ सहाई।। तात ेसद्गरु शयणी आवा । भात्र गरु ऩद धचत्तहीॊ सभावा।।1।। मदद शिि रूठ जामे तो सदगरुु यऺा कय देत ेहैं ऩयन्त ुमदद गरुु रूठ जामें

तो कोई सहामता नह ॊ कयता। इसशरमे सदगरुु के श्री चयणों भें आना चादहमे औय एक भात्र गरुु चयणों को धचत्त भें सभा रेना चादहमे।

चौ0- मथा भधुऩ अनत भधु काभा । सभुन सभुन जतन यत गाभा।। त्मूॊ मशष्म ऩयभऻान हहतावा । इक तस्ज दसूय गरु हढॊग जावा।।2।। जैसे बौंया अधधक भधु की ईच्छा से ऩषु्ऩ ऩषु्ऩ ऩय प्रमासयत जाता है उसी

प्रकाय शिष्म ऩयभतत्ि ऻान के शरमे एक गरुु को छोडकय दसूये गरुु के ऩास जाता है।

चौ0- देणख न सकहहॊ अॊधा यपव जैसे । भढू न रखहहॊ रूऩ गरु तसेै।।

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कौहटन रूहढ तौरय गरु ताये । बत्रसॊध्मा अस गरु नभकाये।।3।। श्री गरुुदेि के स्िरूऩ को भढू भनषु्म उसी तयह नह ॊ देि ऩाता जैसे कक

अॊधा व्मजतत सयूज को नह ॊ देि सकता। गरुु कयोडों रूदढमों को तोडकय शिष्म का कल्माण कयता है ऐसे गरुुदेि को बत्रकार की ऩजूा भें नभस्काय कयना चादहमे।

चौ0- सनुहु पप्रमे गरुऩद मगुराई । जे जे हदसा ऩयहहॊ शौमबताई।। त ेत ेहदसा नभन ननत करयम ै। चयण कभर ननज भस्तक धरयम।ै।4।। औय हे वप्रमे सनुो ! गरुु के दोनो चयण जजस जजस ददसा भें ऩडत ेहै उधय

ह सिुोशबत होत ेहैं। औय उस उस ददिा भें ननत नभन कयो औय चयण कभरों को अऩने भस्तक ऩय धायण कयो।

दो0- जास ुऩयभतय कछु नहीॊ नेनत नेनत कहह वेद। भन फचन कभपस ुसत्म रख अयाध्मउ गरु सवेुद।।32।।

जजससे ऩयभतय कुछ नह ॊ है जजसे िेद नेनत नेनत कहत ेहै उन गरुुदेि को सिविेता रूऩ भें भन िचन औय कभव से सत्म को देिे औय अयाधना कये।

चौ0- ऩाम प्रसाद गरु ककयऩा सेवा । ब्रह्भा पवष्णु मशवाहदक देवा।। यचत जगत गहह सभयथ कयणी । सदगरु ऩदभ बजै ननत शयणी।।1।। गरुु की कृऩा ि सेिा का प्रसाद प्रातत कयके ब्रह्भा विष्णु शििाददक

देितागण सॊसाय की यचना (उत्त्ऩजत्त जस्थनत प्ररम) आदद कयने की साभथवता गहृण कयत ेहैं इसशरमे उनकी ियण भें ननत सदगरुु के चयणों को बजना (आयाधना) कयनी चादहमे।

चौ0- देव पऩत ृमऻ गॊधयव चायण । यीपष भनुन मसद्ध मोगी बव कायण।। गरु बफभखु चय भसु्क्त न होई । घटचक्रहह सभ बटकत सोई।।2।। गॊधिव, वऩत,ृ मऺ, चायण, ऋवष, भनुन, शसद्ध, मोगी, बिकायण अधधष्ठाता

कोई हो जो गरुु विभिु विचयता है उसकी भजुतत नह ॊ होती िह तो कुम्बकाय के चक्र के सभान फतवनों की तयह बटकता यहता है।

चौ0- भनुन ककन्नय मऺ गॊधयव देवा । नहहॊ जानत पवधधवत गरु सेवा।। वेहदक छान्दस समुऻ कृतानी । गरुत्व ऩणूप स्वरूऩ न जानी।।3।। भनुन, ककन्नय, मऺ, गॊधिव औय देिता बी विधधित गरुु सेिा को नह ॊ

जानत।े िेददक ऻानी ताककव क उत्तभ मऻ कभवकाण्ड कयने िारे बी गरुुत्ि के ऩणूव स्िरूऩ को नह ॊ जानत।े

चौ0- जो गरु सन ननज ऻान फखाने । यत अहॊकाय भान अऩभाने।। बटकत जूनन रछ चौयासी । ऩाम न सद्गनत जीव अपवनासी।।4।।

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जो भनषु्म गरुु के सभऺ अऩना ऻान फिान कयता है औय भान अऩभान के अहॊकाय भें यहता है िह राि चौयासी मौननमों भें बटकता कपयता है। िह अविनासी जीि सद्गनत को प्रातत नह ॊ कयता।

दो0- सनु ुभहादेवी ध्मान धरय जो सवापनन्द प्रदाम। बोग भोऺ पवषम दामक सदगरु शीश ननवाम।।33।। हे भहादेिी ध्मान से सनुो ! जो सकर आनन्द प्रदान कयत ेहैं औय बोग

औय भोऺ विषम के दाता है उन सदगरुुदेि को िीि निाना चादहमे।

चौ0- ऩायब्रह्भ श्री गरु मसभयामभ । ऩायब्रह्भ श्री गरु बजामभ।। ऩायब्रह्भ श्री गरु नभामभ । ऩायब्रह्भ श्री गरु वदामभ।।1।। भैं ऩायब्रह्भ स्िरूऩ श्री गरुुदेि को स्भयण कयता हूॉ। भैं ऩायब्रह्भ स्िरूऩ श्री

गरुु को बजता हूॉ। भैं ऩायब्रह्भ स्िरूऩ श्री गरुु को नभन कयता हूॉ। भैं ऩायब्रह्भ स्िरूऩ श्री गरुु के विषम भें कहता हूॉ।

चौ0- गरु ऩद फणुझअ बव दावानर । भयूधा कभर भध्म शशीभॊडर।। सहस्त्र दर हॊस ऩाश्र्व नतकोणा । ता भध्म चहॊ गरु मसभयन

होणा।।2।। गरुु चयणों भें सॊसाय की दािाजग्न फझुती है। ब्रह्भयॊध्र भें कभर के भध्म भें

चन्र भॊडर है औय सहस्त्र दर कभर भें हॊस ऩाश्र्ि बत्रकोण के भध्म भें श्री गरुु का स्भयण कयना चादहमे।

चौ0- गरु से अधधक गरु से अधधकभ । नहहॊ कछु जगत गरु से अधधकभ।। मह मशव शासन मह मशव शासन । मह मशव शासन मह मशव शासन।।3।। गरुु से अधधक गरुु से अधधक गरुु से अधधक सॊसाय भें कुछ नह है। मह

शिि िासन है मह शिि िासन है मह शिि िासन है मह शिि िासन है।

चौ0- ननत्म शबु ननयाबास ननयाकाया । ननभपर फोधस्वरूऩ अऩाया।। भोऺानन्द ऩयभब्रह्भ वषृ्टी । कयै वास भझु भें गरु दृष्टी।।4।। ननत्म िबु ननयाबास ननयाकाय ननभवर फोधस्िरूऩ एिॊ अऩाय भोऺानॊद िार

ऩयब्रह्भ की िषाव (धाया) िार गरुु दृष्ट भझुभें िासा कये।

दो0- चतयुानन सशुासन मह अनबुव उभा पवचारय। जानन दयसन हहत मह सदगरु ऩद सतसारय।।34।। हे उभा ब्रह्भा जी के उत्तभ िासन भें मह अनबुि द्िाया मतुत है कक

जानने औय देिने मोग्म केिर सच्चा साय सदगरुु के चयण हैं।

चौ0- भहादेवी मह सनु ुभभ फानी । जे गरु नीॊदा कयहहॊ अऻानी।।

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सो नय घौय नयक गनत ऩावा । जफ रधग यपव शशी नब धावा।।1।। औय हे भहादेिी भेय िाणी मह सनुो ! जो व्मजतत गरुु नन ॊदा कयता है िह

अऻानी है िह जफ तक चन्र समूव आकाि भें गभन कयत ेहैं तफ तक घोय नयकों की गनत ऩाता है।

चौ0- तभु अथवा हुॉ जे कहह फोरे । गरु सभीऩ पवद्वता घोरे।। वन अथवा जरहीन प्रदेसा । होवहहॊ सो ब्रह्भ याऺस बेसा।।2।। जो गरुुदेि को तभु अथिा “हुॉ” कहकय फोरता है औय गरुु के ऩास अऩनी

विद्िता ददिाता है िह िन अथिा ककसी जरह न प्रदेि भें ब्रह्भ याऺस के बेष भें होता है।

चौ0- ऩयूण तत्व गय ऻाता कोई । गरु तजाम भनभखुी होई।। आवत भतृ्मकुार जफ घेया । भहापवऺेऩ होम दखु डयेा।।3।। सम्ऩणूव तत्िों का ऻाता होकय बी जो गरुु का त्माग कय भनभखुि हो जाता

है तफ भतृ्मकुार का नघयाि आता है। तफ उसे भहान दिुों का घय शभरता है औय उसका भहान विऺेऩ होता है।

चौ0- गरु काज कब ुरॊघ न कीजै । बफन ुफझूे गरु कायज रीजै।। गरु कय हदसा श्रद्धा सदबावा । बफन ुनभन नहहॊ शमनी तजावा।।4।। गरुु के कामव का कबी बी उरॊघन नह ॊ कयना चादहमे औय बफना फझूे गरुु

कामव को स्िमॊ नदहॊ रेना चादहमे। गरुु की ददसा भें श्रद्धा औय सद्भाि से बफना नभन ककमे िमन आसन नह ॊ त्मागना चादहमे।

दो0- गरु की यहे बफन ुआमस ुजे काहु करय उऩदेश। अधभ मोनन सो बोगहीॊ ऩावहहॊ अतरु करेश।।35।। अऩने गरुु के यहत ेबफना आऻा जो ककसी को उऩदेि कयता है िह नीच की

मौनी बोगता है औय अतलु्म करेि ऩाता है।

चौ0- गरु आश्रभ भदऩान न रीजै । गरु सन वाक्मऩटु नही कीजै।। शमैा सेवन फहैठ न ऩासा । दास सभान गरु ऩद फासा।।1।। गरुु के आश्रभ भें भदऩान नह ॊ कयना चादहमे औय गरुु के सभाने अऩनी

चतयुाई न कये। गरुु की िमैा का सेिन न कये औय न उसके ननकट फठेै दास की तयह गरुु चयणों भें ननिास कयें।

चौ0- गरु अमबष्ट ऩादकुा आसन । शमैा ठाभ तककस कछु वासन।। सश्रद्धा सफ ही नभस्काये । छुऐ न कदा बमूर ऩग डाये।।2।।

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गरुु अशबष्ट ऩादकुा आसन िमैा तथा फठैने की जगह तककमा मा कोई िस्त्र सफको सश्रद्धा नभस्काय कयना चादहमे। कबी बी बरू के बी ऩयै न डारे न उसे छूना चादहमे।

चौ0- भग चमर चर ैगरु ऩद ऩाछै । बमूर न गरु की छामा राछै।। बडक बेष मा पवबषुण कोई । गरु सन धायण करयम न सोई।।3।।

यास्त ेभें चरत ेसभम गरुु के ऩद के ऩीछै चरना चादहमे। बरू कय बी गरुु की ऩयछाई को नह ॊ राॊघना चादहमे तथा बडकाऊ बेष मा कोई आबषूण बी गरुु के साभने धायण न कयें।

चौ0- गय गरु नीॊदक सम्भखु आवा । जीब न नतहह गय काहट सकावा।। तफहहॊ वेधग सो कुअस्थाना । त्माग पप्रमे हहट दयूई जाना।।4।। औय मदद कोई गरुु नीॊदक साभने आ जामे तो उसकी जीभ्मा काट दे औय

मदद जीभ्मा न काट सके तो तफ उस कुस्थान का फडी जल्द से त्माग कये औय हे वप्रमे ! िहाॊ से हटकय दयू चरे जाना चादहमे।

दो0- सनुहु बवानी ऋपष भनुन सयु नागस ुशापऩत कोम। भतृ्मकुार ऩीडडत बम सदगरु यऺक सोम।।36।। औय बिानी सनुो ! ऋवष भनुन देिता औय नाग से कोई िावऩत हो मा

भतृ्मकुार के बम से ऩीडडत हो उसकी सदगरुु ह यऺा कय सकत ेहैं।

चौ0- गय गरु सो अमबशापऩत कोई । देपव देव यऺक नहहॊ होई।। ऋपष भनुन सॊत आहदत्म साये । सभथप न कोउ शाऩ दखु टाये।।1।। औय मदद कोई गरुु से अशबिावऩत हो जामे तो देवि देिताओॊ से बी उसकी

यऺा नह ॊ हो ऩाती। ऋवष भनुन सॊत देिता सबी कोई बी उसके अशबिाऩ के दिु को टारने भें सभथव नह हैं।

चौ0- ऩजूा भान दॊडधय कोई । बेष यॊगाम ससुॊत न होई।। जो ब्रह्भ रूऩ तत्वदयसी ऻाना । अस ब्रह्भ ऻानी गरुत्व ऩजुाना।।2।। ऩजूा औय सम्भान ऩाने से मा दॊड धायण कयने से कोई बेष यॊगिा कय

उत्तभ सॊत नह ॊ हो जाता। फजल्क जो ब्रह्भरूऩ तत्िदिी ऻानी है उस ब्रह्भऻानी का ह गरुुत्ि ऩजुता है।

चौ0- घटाकाश धथत पहटक सभाना । ऩयात्ऩय ब्रह्भ हौं ध्मान रगाना।। पहटक पहटक जनन दयऩन दयऩन । त्मूॊ प्रकाश सयुत भहॊ चेतन।।3।।

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स्पदटक भखण के सभान रृदमदेि (घटाकाि) भें जस्थत ऩयात्ऩय ब्रह्भ का भैं ध्मान रगाता हूॉ जैसे स्पदटक भखण से स्पदटक भखण औय दऩवण से दऩवण प्रकाशित होता है उसी तयह आत्भा भें ऩयब्रह्भ प्रकाशित होता है।

चौ0- गरु भहहभा सनुन फाहढ पऩऩासा । कहहहॊ उभा हहम दृढ बफसवासा।। तभु जगदीश स्वमॊ हे स्वाभी । अचयज गरु चयण अनगुाभी।।4।। उभा फोर कक गरुू भदहभा सनुकय तमास फढ गई है औय भेये रृदम भें मह

दृढ विश्िास हो गमा है कक हे स्िाभी तभु स्िमॊ जगद ि होकय बी आश्चमव है कक गरुु चयणों के अनगुाभी हो।

दो0- कहत ऩावपती हे प्रबो कक पऩ ॊड को ऩद गान। रूऩातीत अरू रूऩ ककभ कयहु हे मशव फखान।।37।। तफ ऩािवती कहती है कक हे प्रब ुवऩ ॊड तमा है ? ऩद ककसको कहा गमा है ?

रूऩातीत औय रूऩ तमा है? हे शिि इसका िणवन कयो।

चौ0- फोरे मशव आद्मा पऩ ॊड धानी । हॊस ही ऩद पवद्वान फखानी।। बफन्द ुज्मोनत ही रूऩ पऩछानो । रूऩातीत अऺम ब्रह्भ जानो।।1।। शिि िॊकय जी फोरे कक वऩ ॊड की िजतत कुन्डर नन है। विद्िानो ने हॊस देस

(ब्रह्भधाभ) को ऩद कहा है। औय तभु बफन्दसु्िरूऩ ज्मोनत को रूऩ सभझो औय रूऩातीत अविनािी ऩणूव ब्रह्भ को जानो।

चौ0- सनुहु सभुणुख भकु्त जन सोई । पऩ ॊड ऩद रूऩ रूऩतय जोई।। गरु ध्मान बमे ब्रह्भ सभाना । सो सवपत्र भकु्त जन जाना।।2।। हे सभुखुि सनुो ! भतुत िह व्मजतत है जो वऩ ॊड, ऩद, रूऩ औय रूऩातीत है।

िह गरुु ध्मान भें र न ब्रह्भ के सभान हो जाता है िह चाहे जहाॊ यहे सिवत्र उस व्मजतत को भतुत ह जानो।

चौ0- जेनतक सखु वीतयागी इकन्ता । सो नहहॊ चक्रवनृत जनकन्ता।। ब्रह्भ यमसक ईन्दय तचु्छ जाने । ककभ सखु तद बऩूनत को भाने।।3।। जो सिु िीतयागी को एकान्त भें है िह चक्रिनृत सम्राट को नह ॊ है औय जो

ब्रह्भर न है िह इन्र को बी तचु्छ जानता है कपय एक याजा का सिु बी तमा सिु भाने ?

चौ0- गरु भायग यत कैवल्म ऩावा । तात ेनभन गरु बगनत सभावा।। भ ैही ब्रह्भ दसूय कछु नाहीॊ । गरु शब्द सेवन वन कक जाहीॊ।।4।।

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गरुु भागव भें रम यहने से कैिल्म प्रातत होता है इसशरमे नभन कयता हुआ गरुु बजतत भें सभा जािे। भ ैह ब्रह्भ हूॉ, दसूया कुछ नह है। गरुु के इस िब्द के सेिन के शरमे िन जाने की तमा आिश्मतता है ?

दो0- ककॊ अभतूप की ऩजूा जऩ ककमभ अव्मक्त ब्रह्भ ध्माम। गरु स्वरूऩ रख ऩायफनत सहज सभाधधस्थ ऩाम।।38।। औय हे ऩािवती ! जजसका कोई आकाय नह ॊ उसकी तमा ऩजूा औय जऩ कयें

औय अव्मतत (ननयाकाय) का तमा ध्मान कयें ? फस सच्चे गरुु का (अऩने घट भें) स्िरूऩ देिो जो सहज सभाधध अिस्था भें प्रातत होता है।

चौ0- मशव पवष्णु देपव ऩजून बायी । गरु पवहीन ननयथपक सायी।। मशष्म रव्म गरु हदमे भैं याजी । भन्त्र ऩादकुा गपु्त ऩखाजी।।1।।

मदद कोई शिि ऩजूा विष्णु ऩजूा औय देवि ऩजूा भें रगा हुआ है। ऩयन्त ुगरुुह न है तो साय ऩजूा ननयथवक है। मदद कोई गरुु को कोई िस्त ुबेंट कयता है तो भैं प्रसन्न होता हूॉ। गरुु का भॊत्र औय ऩादकुा गतुत यिनी चादहमे।

चौ0- ऻानहीन मभथ्मा दम्बकायी । स्वमॊ न नतयइ फचन मसस तायी।। मात्रा बेद कैवल्म नहहॊ जाने । नतहह तज अन्म गरु ऩद ऩाने।।2।।

ऻानह न, शभथ्माचाय ि दम्बिारा तथा जो अऩनी मात्रा स्िमॊ तो ऩयू नह कय ऩामा हो औय शिष्म को नतयाने का िचन देता हो औय कैिल्म ऩद (ननिावणधाभ) की मात्रा का बेद बी नह जानता हो उस गरुु को त्मागकय दसूये गरुु की चयण ियण प्रातत कय रेनी चादहमे।

चौ0- जेहह के भखु गरु भॊत्र पवयाजा । होवहहॊ मसद्ध सकर नतष काजा।। गरु ऩतु्र मा मशष्म अधधकायी । ऩाम शयण रे सयुत उफायी।।3।।

जजसके भिु भें गरुुभॊत्र वियाजता है उसके साये कामव शसद्ध होत ेहैं। गरुु ऩतु्र मा गरुु अधधकृत शिष्म की ियण भें जाकय अऩनी आत्भा का उद्धाय कय रेना चादहमे।

चौ0- गरु कामा ऩणूप जफ होई । गरु अधधकृत मसस सयनोई।। गरु सन्तोष जीव भकुुता3वा । सकर भनोयथ ऩयूण ऩावा।।

सो ननमशवासय ब्रह्भ सभावा । तीन रोक यत सभ यस बावा।।4।।

ऐसा तफ कये जफ गरुु का िय य ऩयूा हो जामे तफ गरुु अधधकृत शिष्म की ियण चरे जाना चादहमे। मदद गरुु सन्तषु्ट हो जाता है तो सभस्त भनोयथ ऩयेू हो जात ेहैं, औय िह साधक ददन यात ब्रह्भ भें ह सभामा यहता है औय तीनों रोकों भें सभताबाि भें यहता है।

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दो0- जहॊ जॊह गरु फासा कये तॊह ऩयूण शधुचधाभ।

ऩावन जानन सयेुश सफ हषप पवचयत “होयाभ”।।39।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक जहाॊ जहाॊ गरुु ननिास कये, िह ॊ िह ॊ ऩय ऩयूण

ऩािन धाभ है। सबी देिगण उसे ऩािन जानकय िहाॊ हषव से विचयण कयत ेहै।

चौ0- गरु ही देव गरु ही धयभा । गरु ऩयभतऩ ननष्ठा कयभा।। गरु ऩयभतय अन्म न धाभी । हौं बत्रवाय मह मशवा कथाभी।।1।।

गरुु ह देि हैं गरुु ह धभव है। गरुु ऩयभतऩ ननष्ठा औय कभव है। गरुु से फढकय दसूया ऩद नह ॊ है ऩािवती ! भैं मह तीन फाय कहता हूॉ।

चौ0- धन्म भात पऩत ुगौत ुकुरासा । धन्म धन्म जन्भे गरु दासा।। कौहट जन्भ जऩ तऩ मऻ साये । गरु सन्तोश भात्र परकाये।।2।।

िह भाता वऩता गौत्र तथा कुर धन्म है जहाॊ गरुु बतत जन्भ रे औय िह धयती बी धन्म धन्म है। कयोडों जन्भों के सभस्त मऻ तऩस्मा हरय नाभ जऩ केिर गरुु के सन्तषु्ट हो जाने से परदामी हो जात ेहैं।

चौ0- भन्द बाग्म सो सकनत पवहीना । गरु बफभखु नयक दखु रीना।। गरु कृऩा बफन ुअधोगनत ऩावे । धन फर पवद्मा ननश्पर जावे।।3।।

गरुु सेिा से विभिु होकय िह शिष्म अबागा औय िजततह न है औय भहा नयक भें दिु बोगता है। गरुु की कृऩा के बफना अधोगनत प्रातत होती है। उसके धन फर औय विद्मा बी ननष्पर हो जात ेहैं।

चौ0- मद्मपऩ बफयॊधच मशव पवष्णु होई । रूर देव औॊतय मसद्ध कोई।। ऩॊडडत पऩत्तय ताऩस मऺ ऻानी । गरु पवहीन पवपर सफ जानी।।4।।

चाहे ब्रह्भा, विष्णु, शिि हों मा कोई रूर देि शसद्ध मोगी मा अिताय हो मा ऩॊडडत, वऩत्तय, तऩस्िी, मऺ औय ऻानी हों गरुु की कृऩा के बफना सफ ननश्पर हैं।

दो0- नाभभात्र गरु को तजै मसस धन रव्म हयाम।

ब्रह्भ दयसी ऻाता नहहॊ मसस सॊताऩ फढाम।।40।।

फहुत से गरुु केिर नाभ भात्र के गरुु हैं उनको त्माग देना चादहमे तमोंकक िे शिष्म का धन औय िस्त ुहयण कयत ेहैं िे ब्रह्भदिी ऻाता नह ॊ होत।े केिर शिष्म भें सॊताऩ ह फढात ेहैं।

चौ0- भौनी बाषी दोऊ प्रकाया । तत्वऻ कछुक गरु जग साया।। सनु ुपप्रमे बाषी मशष्म तायक । भौनी गरु राब नहहॊ कायक।।1।।

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भौन यहने िारे औय ितता दो प्रकाय के गरुु होत ेहैं साये जगत भें कुछ ह तत्िऻ गरुु होत ेहैं। औय वप्रमे ! सनुो, फोरने िारा गरुु ह शिष्म को बि सागय से उताय सकता है। भौनी (चुऩ यहने िारे) गरुु से कोई राब नह ॊ प्रातत हो सकता।

चौ0- कौहट जनभ सॊग्रह सफ ऩाऩा । कटहहॊ ननशॊक नाभ गरु जाऩा।। गरु सभ देव पऩता अरू भाता । दसूय नहहॊ ऻान उदगाता।।2।।

कयोडों, जन्भो के सॊग्रदहत सभस्त ऩाऩ गरुु प्रदत्त नाभ के जाऩ से ननसॊदेह कट जात ेहैं। गरुु के सभान देिता औय वऩता ऻान उत्ऩन्न कयने िारा दसूया कोई नह ॊ है।

चौ0- कुर ऩपवत्र गरु की सेवा । जास ुतपृ्त होहहॊ सफ देवा।। ब्रह्भस्वरूऩ गरुयेको ऻानी । गरु बफन ुकौहट शास्त्र रजानी।।3।।

गरुु की सेिा से कुर ह ऩवित्र हो जाता है जजससे सबी देिगण ततृत हो जात ेहैं। एक भात्र ब्रह्भ स्िरूऩ ऻानी गरुु के बफना कयोडों धभव ग्रन्थ रजज्जत होत ेहैं।

चौ0- सफ जग रखहु एक ब्रह्भ रूऩा । सोsहभ ्ऩयभधाभ ही बऩूा।। जे गरु मह तत्वऻान प्रदामा । करूॊ प्रणाभ अस गरु देवामा।।4।।

साये विश्ि को एक ब्रह्भ स्िरूऩ भें देिो। ऩयभधाभ का स्िाभी भैं ह हूॉ जो गरुु मह तत्ि ऻान प्रदान कयता है ऐसे गरुुदेि को भैं प्रणाभ कयता हूॉ।

दो0- सो इकाऺय प्रदाम जो मशष्म न नतहह श्रदे्धम।

शत ्मौनी स्वानहह गहे ; जनभ चॊडुर गहृ रेम।।41।। िह एकाऺय (सो sहभ)् को जो गरुु प्रदान कयता है औय शिष्म उसभें श्रद्धा

नह ॊ यिता है तो िह सौ मौनन कुत्ता फनकय कपय चाॊडार के घय भें जन्भ रेता है।

दो0- गरु तजैइ भतृ्म ुसभझ दरयरी भन्त्र तजाम।

गरु अरू भॊत्र दोउ तजै यौयव नयक मसधाम।।42।।

गरुु को त्मागने से सभझो भतृ्म ुहो गई है। भन्त्र त्मागने से दरयदर हो जाता है। गरुु औय भॊत्र दोंनों त्मागने से िह नयक को जाता है।

दो0- मशव कोऩ गरु यऺ है गरु कोऩ न यऺा कोम।

“होयाभदेव” गरु कृऩा ; कुगनत कफॊहु न होम।।43।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक शििजी कोऩ कये तो गरुु यऺा कय देत ेहैं मदद

गरुु कोऩ कये तो यऺक कोई नह ॊ है। गरुु की कृऩा से कबी बी दगुवनत नह ॊ होती।

दो0- जो ऩापऩन को दयुरब अनत ; मशवा कहह सो साय। अनेक जनभ ऩनु्म पर से मभरॊहह गरु ऩतवाय।।44।।

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हे शििा जो ऩावऩमों को दरुवब कहा गमा है िह सच्चा साय भैंने तभुसे कह ददमा है अनेकों जन्भों के ऩनु्मों के पर से सतगरुु बिसागय िेिन हाय शभरता है।

दो0- सबा बफसजपन हो गई सफ श्रोता ननज गहृ जामॊ।

जम जमकाय मशव की कयें भन ही भन सखु ऩामॊ।।45।।

सतसॊग सबा विसजजवत होने ऩय सबी श्रोतागण अऩने धाभ जाने रगे औय शिि बगिान की जम जमकाय कयने रगे। सफ ने भन ह भन फडा सिु प्रातत ककमा।

इनत श्रीभद् अभय कथा मशव मशवा सम्फादे (सयुत वेद) प्रथभ ऩडाव ्

3 – श्रीगरु स्तवनोऩदेश

दो0- अग्र हदवस मशव सों मशवा फणुझऊ स्तवन ुसाय।

गरु भहहभा सनुन प्रसन्न भन सॊशम बई ऺमकाय।।46।।

अधग्रभ ददिस उभा ने शिि से ऩछूा कक अफ गरुु स्तिन विचाय कय कहो तमोंकक गरुु भदहभा सनु कय भेया भन प्रसन्न हो गमा है। सफ सॊिम दयू हो गमे हैं।

दो0- फोरे हय गरु द्व ैस्वरूऩ ननयाकाय साकाय।

इक फझुाई देह धयै दसूय घटहहॊ सम्हाय।।47।।

श्री शिि फोरे कक गरुु के दो स्िरूऩ हैं जो ननयाकाय औय साकाय हैं। एक तो साकाय रूऩ से देह धायण कय सभझाता है औय दसूये ननयाकाय स्िरूऩ से गरुु घट भें उतय कय शिष्म की सम्बार कयता है।

चौ0- जेहहॊ घट सतगरु ऩयगट नाहीॊ । घटाकाश सम्बार न ताहीॊ।। फझुाई रखाइ गरु सयुत चढावे । तात ेगरु ऩद फमर फमर जावे।।1।।

जजसके घट भें सतगरुु प्रगट नह ॊ होता उसकी घटाकाि भें सम्बार नह ॊ होती। सदगरुू सभझा फझुाकय साऺात्काय कयाता हुआ शिष्म की सयुत को गगन भण्डरों भें चढाई कयाता है। इसशरमे गरुु चयणों भें फशरहाय जािे।

चौ0- ऊॉ ऩयभतत्व नायामणाम । नभो नभो श्री गरु देवाम।। ऊॉ स्वरूऩ ननरूऩण हहताम । नभो नभो श्री गरु देवाम।।2।।

ऩयभेश्िय स्िरूऩ ऩयभतत्ि नायामण को जो कक गरुु स्िरूऩ है, नभस्काय है, नभस्काय है। जो ऩयभतत्ि के दहत भें ननरूऩण कयने िारे हैं उन गरुुदेि को नभस्काय है, नभस्काय है।

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चौ0- ऊॉ स्वच्छ प्रकामश सयुत हहताम । नभो नभो श्री गरु देवाम।। ऊॉ स्वरूऩ तजे ऩयभ गरुव ै। ऩॊजय पवरीन आत्भा फरूव।ै।3।।

ब्रह्भस्िरूऩ अऩनी आत्भा के स्िच्छ प्रकाि के शरमे भैं ऩयभ श्रीगरुु देि को नभस्काय कयता हूॉ। ब्रह्भ स्िरूऩ तजेोभम ऩयभगरुु को भैं नभस्काय कयता हूॉ, नभस्काय कयता हूॉ।

चौ0- ऩयभ ईष्ट कैवल्म रूऩाम । नभो नभो श्री गरु देवाम।। भैं अस ऩयभगरु आवाहामभ । ऩजूामभ मशवचके्र थाऩमामभ।।4।।

भैं ऩयभ ईष्ट कैिल्म स्िरूऩ श्री गरुु देि को नभस्काय कयता हूॉ, नभस्काय कयता हूॉ। भैं ऐस ैजो ऩयभगरुु हैं का आिाह्न कयता हूॉ औय ऩजूता हूॉ औय अऩने शििचक्र भें स्थाऩना कयता हूॉ।

दो0- ऩयभतत्व नायामणाम हॊस सोहभ ्सतगरु देव।

ननपवपध्नॊ सभाधध मसद्ध कुर नभहुॉ गरुऩद सेव।।48।।

ऩयभ तत्ि नायामण हॊस स्िरूऩ सदगरुु देि “िह भैं हूॉ ” इस बाि से ईच्छा कयता हूॉ कक िे ननविवध्न भेय सभाधध अिस्था को शसद्ध कयें भैं उनके चयणों भें नभता हूॉ औय सेिा कयता हूॉ।

चौ0- करूॉ पवनती ननत श्रीगरु देवा । ननश्चम ब्रह्भ रूऩ तभु खेवा।। तभु सतगरु यपव पवष्णु सभाना । आत्भ रूऩ भोहह नाथ फनाना।।1।।

भैं सदा श्री गरुु देि की विनती कयता हूॉ। हे गरुुदेि तभु ननजश्चत ह ब्रह्भस्िरूऩ हो, िेिनहाय हो। तभु सद्गरुुदेि समूव औय विष्णु सभान हो हे नाथ भझुे आत्भ रूऩ फना दो।

चौ0- गरु ऩजूा बफन ुईष्ट जो ध्मावा । ताही तजे बयैव रइ जावा।। कयता धयता हयता गरु भाने । सकर देव मसद्ध मसपद्धन ऩाने।।2।।

गरुु की ऩजूा बफना जो ईष्ट की अयाधना कयता है उसकी बजतत का तजे बयैि हय रेता है। गरुु को कताव, धताव औय हयता भानना चादहमे तमोंकक सभस्त देि, शसद्ध ऩरुुष उन्ह से शसवद्ध ऩात ेहैं।

चौ0- ऩजूा कार गरु गरुनारय । गरु ऩतु्र गरुकृत आम द्वारय।। तस्ज ऩजूा अपऩ गरु सभाना । ऩजूउ नतन्ह ऩषु्ऩ गॊध चढाना।।3।।

ऩजूा कयत ेसभम बी मदद गरुु अथिा गरुु ऩजत्न, गरुु ऩतु्र मा गरुु अधधकृत कोई सॊत द्िाय ऩय आ जामे तो ऩजूा को छोड कय उनका गरुु के सभान ह ऩजून कयें औय उन्हें ऩषु्ऩ सगुॊध चढानी चादहमे।

चौ0- गरु बफन ुनइमा खेवट नाहीॊ । नाभ जहाज बव मसॊधु भाहीॊ।।

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तत्वदयसी गरु जग फहु थौया । कयहहॊ ऩाय मसस कार कठोया।।4।।

तमोंकक गरुु के बफना नाि का िेिनहाय कोई नह है गरुु का िब्द बिसागय भें जहाज है। जगत भें तत्िदिी गरुु फहुत ह थोड ेहोत ेहैं जो शिष्म को कठोय कार के ऩाय कयत ेहैं।

दो0- जैसे करस घट कुम्ब का एक ही अथप “होयाभ”। देवभॊत्र अरू गरु तथा ; इकाथप नहहॊ बेदाभ।।49।। जैसे करस घडा मा घट का एक ह अथव होता है श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं

कक िसेै ह देिभॊत्र औय गरुु का एक ह अथव है, इसभें कोई बेद नह ॊ है।

चौ0- मशष्म सोइ स्जन्ह गरु ऩग चीना । गरु सेवक पप्रम भदहीना।। तन भन धन यत सदगरु चयणी । सो अधधकृत रेम ननज शयणी।।1।।

शिष्म िह है जो गरुु चयणों भें सभवऩवत है। जो गरुु सेिक वप्रम तथा गिवह न हो तथा तन भन धन से सदगरुु चयणों भें जुडा हुआ हो ऐसा िह शिष्म ियण भें रेने का अधधकाय है।

चौ0- ननज सम्भान मश भद यत जोई । जानत गरु जनन भानव कोई।। सो मसस कदा रोक ऩयरोका । नहीॊ चैन बयइ दखु शौका।।2।।

औय जो अऩनी ह सम्भान औय फडाई के भद िारा हो ; गरुु को भानि भात्र ह जानने िारा हो ; िह शिष्म कबी बी रोक ऩयरोक भें िाजन्त नह ॊ ऩाता, दिु िौक ह बोगता है।

चौ0- जे जन सदगरु रोही होई । ता सभ अधभ जगत नहहॊ कोई।। भतृ्मकुार जाइ अस रोका । जहॊ कृतघन ब्रह्भ घानतन खोका।।3।।

औय जो व्मजतत सदगरुु का रोह होता है उसके सभान जगत भें नीच कोई नह ॊ है। िह भतृ्मकुार भें ऐसे रोंकों भे चरा जाता है जहाॉ कृतघ्न औय ब्रह्भ घाती जन ठहयत ेहैं।

चौ0- सात देह अरू षोड्स थाना । गरु बफना नहहॊ बेदन ऩाना।। मदपऩ पवयॊधच हरय हय होई । बफन ुगरु ऩायणख भोष न सोई।।4।।

सातों िय य औय सोरह चक्रों का बेदन गरुु के बफना प्रातत नह ॊ होता। मद्मवऩ िह शिि हरय औय ब्रह्भा ह हों उनको बी बफना तत्िदिी (ऩायखि) सदगरुु बफना भोऺ नह ॊ होता।

दो0- गरु बफभखु जो देखहहॊ सयुगण ब ैप्रनतकूर।

“होयाभदेव” सकृत अपऩ अहहहॊ ऩाऩ की भरू।।50।।

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इसशरमे जो गरुु बफभिु को देिता बी है देिगण उसके प्रनतकूर हो जात ेहैं। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक उसके ऩनु्म बी ऩाऩ का भरू फन जात ेहैं।

चौ0- ऩवूप जनभ सॊग्रह कृनतकोषा । उदम शधुचय ऩनु्नपर ऩोषा।। ऩावहहॊ तत्वदयसी गरु गॊगा । अन्मथा नाहीॊ ऩाम सतसॊगा।।1।।

ऩिूव जन्भ के कभों का सॊग्रदहत कोष उदम होकय ऩवित्र ऩनु्मपर के ऩोषण से ककसी तत्िदयसी सदगरुु की ऻानगॊगा प्रातत होती है अन्मथा उसे सतसॊग बी प्रातत नह ॊ होता।

चौ0- ककहह कायण गरु देह तजाई । गरु अधधकृत सॊत शयणी जाई।। तदगरु रूऩ रखे नतहह भाहीॊ । ऩाम सयन ननज मोग कभाहीॊ।।2।।

मदद ककसी कायण गरुु देह त्माग देतें हैं तो उन्ह गरुु से अधधकृत सॊत की ियण भें जाना चादहमे। तफ उसभें सदगरुु स्िरूऩ को देंिें औय ियण गहृण कयके अऩनी मोग साधना की कभाई कयें।

चौ0- गय वाहन चारक भरय जाई । तफ कोऊ दसूय चारक आई।। वाहन चराम रक्ष्म ऩहुॉचावा । वतपभान गरु भोऺ प्रदावा।।3।।

मदद ककसी िाहन का चारक भय जाता है तफ कोई दसूया चारक आता है जो िाहन को चराकय रक्ष्म तक ऩहुॉचाता है। उसी प्रकाय ितवभान गरुु ह भोऺ प्रदान कयाता है। (भतृात्भा सदगरुु कपय कोई भोऺ नह ॊ दे सकता)

चौ0- केवर गहृण भात्र भॊत्र गरु के । जीव न भकु्त होंही बव तयके।। करय बेदन घट ब्रह्भण्ड साया । ऩावत ऩयभ ऩयभेश्वय द्वाया।।4।।

केिर गरुु गहृण कयने भात्र से मा गरुु भॊत्र से जीि बिसागय से तयके भतुत नह ॊ हो जाता है। िह सभस्त ब्रह्भाण्ड का अऩने ह घट भें बेदन कयके ह कोई ऩयभेश्िय का द्िाय प्रातत कयता है।

दो0- शब्दधाय वा ज्मोनतधाय जो गरु मसस जगाम।

“होयाभदेव” नभन नतहह ऩद यज भाथ चढाम।।51।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक िब्दधाया औय ज्मोनतधाया को जो गरुु जागतृ

कय देता है उसको नभन कये औय श्री चयणों की धूर भस्तक ऩय चढािे।

चौ0- सदगरु जहाज अरख से राव ै। जीव फठैाम बव मसॊधु नतयाव।ै। सयुत ननयत घट सयुत चढाव ै। सॊग सम्बार सचखॊड ऩठाव।ै।1।।

सदगरुु ऩयधाभ अरि रोक से जहाज रेकय आत ेहैं औय उसभें जीॊिों को बय बय कय बिसागय से ननकारत ेहैं तथा शिष्म की सयुत को सयुत ननयत मोग से

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जोड कय चढाई कयत ेहैं तथा साथ साथ यहकय सम्बार कयत ेहुिे सचिॊड धाभ ऩहुॉचत ेहैं।

चौ0- तदपऩ भढू अशबु गहै फानी । जनन शकूय पवष्ठा भॊडयानी।। ऻानी सॊत शबुाशबु फानी । गहहहॊ शबुभ जनन हॊस दधुध छानी।।2।।

कपय बी सॊसाय भें भिूवजन अिबु फानी ह गहृण कयत ेहैं जैसे िकूय विष्ठा ऩय ह भॊडयाता है। औय ऻानी सॊत जनों की िबु औय अिबु िाणी भे से िबु को ह गहृण कयता है जैसे कक हॊस दधू औय ऩानी को पाडकय अरग कय रेता है।

चौ0- अनतकय गरुडभ जग भॊह पमरहैं । नाभ दान व्मौऩाय छमरहैं।। मसस ग्रस्न्थ खोमरअ नहहॊ जानी । तदपऩ बयोस ुमभपन्द नसानी।।3।।

सॊसाय भें फहुत ह गरुुडभ पूरे परेंगे जजनके द्िाया नाभ दान व्मौऩाय प्रऩॊच ह है। िे गरुु शिष्म की ग्रजन्थ नह ॊ िोरेंगे औय बयोसा मभ पाॊस शभटाने का देंगे। अथावत िे नाभदान तो कयेंगे ऩयन्त ुद ऺा (ददव्मदृजष्ट) नह ॊ दे सकत।े

चौ0- धन्म शयण जे गरु तत्वदयसी । सयुत ऩथ बेहद ऩयभगरु ऩयसी।। मशष्महह सयुत घट गभन सम्हाये । नतन्हकय ऩदकॊ ज नभन हभाये।।4।। उनके धन्म बाग्म हैं जो तत्िदिी गरुु की ियण भें हैं तमोंकक उन्होने

सयुतमात्रा के बेद को जानने िारे ऩयभ गरुु का स्ऩिव ककमा है। गरुु शिष्म की सयुत की घट भें सम्बार कयता है। उसके चयण कभरों भें हभाये नभस्काय हैं।

दो0- ननज गरु की ऩजूा कये दसूय को अऩभान।

“होयाभ” नयक फासा कये केनतक तऩ मऻ ऻान।।52।। जो अऩने गरुु की तो ऩजूा कयता है औय दसूये गरुुजनों की अऩभान कयता

है श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक चाहे ककतने ह मऻ तऩ औय ऻान हों तो बी िह नयकों को जाता है।

दो0- फहौरय धयभ ग्रन्थ शास्त्र ; चुनन चुनन मह सायाॊश। मत्र तत्र मशव कथन “होयाभ” यचई गरुत्व प्रबाॊश।।53।। फहुत से धभवग्रन्थों िास्त्रों का सायाॊि चुन चुन कय मह जहाॉ तहाॉ से सम्िाद

रूऩ भें गरुुत्ि भदहभा का अॊि यचना की है।

दो0- जो गरुू गीता ननत ऩढै ज्मोनत ध्मान धचत्तताम।

“होयाभ” ऩयभ ऩद ऩाइहैं माभहहॊ सॊशम नाम।।54।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक शिि ने कहा कक हे उभा, जो गरुु गीता का

ननत्म मह ऩाठ कयेगा औय ज्मोनत ध्मान भें धचत्त रगामेगा िह ऩयभ ऩद को प्रातत कयेगा इसभें सॊिम नह ॊ है।

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दो0- सबा पवसजपन हो गई सयुगण ननज गहृ जाम।

नभन कयत जै जै कयत भन ही भन हयसाम।।55।।

सतसॊग सबा का विसजवन हो गमी सबी देिता अऩने अऩने धाभ जाने रगे औय नभस्काय कयके जमकाय कयने रगे औय भन ह भन हवषवत हो गमे।

4 – ध्मान साधना ननरूऩण

दो0- प्रात् कार अधग्रभ हदवस कैराश मशखय भहान।

सयु गण सॊत जन आमऊ, हहत ुसतसॊग यसऩान।।56।।

अगरे ददन प्रात् कार भहान कैराि की चोट ऩय देिता औय सॊतजन सतसॊग सधुा का यसऩान कयने आ गमे।

दो0- सनुहु धगरयजा सऩुात्र तभु सफ सॊतन की सॊत।

कहु गोऩनीम साय सफ जाको आहद न अॊत।।57।।

सनुो धगरयजा ! तभु सऩुात्र हो सफ सॊतो की सॊत हो जजसका आदद न अन्त है अफ भ ैिह सफ गोऩनीम साय कहता हूॉ।

चौ0- फोरे मशव अफ कहउ बवानी । कवन सॊशम तमु्हये भन ठानी।। जानी सऩुात्र साय सफ बाखूॊ । कोउ दयुाव आज नहहॊ याखूॊ।।1।।

बगिान शिि फोरे कक हे बिानी ! अफ तभु फताओॊ तमु्हाये भन भें कौन सा सॊिम यह गमा है ? तमु्हे सऩुात्र जानकय भैं साया ितृाॊत कहूॊगा कोई बी नछऩाि आज नह ॊ यिूॊगा।

चौ0- फोरी मशवा नाथ सभझाई । सयुग सखु तभु काहे तजाई।। शभशान बमूभ तभु ककभ बावा । जहॊ कॊ कार ऩग ऩग बफखयावा।।2।।

तफ उभा बगिती फोर कक हे नाथ मह सभझाओ कक आऩने स्िगव के सिुों को तमों त्माग यिा है औय तमु्हे िभिान बशूभ तमों ऩसन्द हैं ? जहाॉ कदभ कदभ ऩय कॊ कार बफिये ऩड ेयहत ेहैं।

चौ0- ग्रीध मसमाय फहुय धचरसाहीॊ । भतृक भाॊसा नचु नचु खाहीॊ।। हू हू हू धुनन जम्फकु कयहीॊ । ठौय अऩावन अनत भन डयहीॊ।।3।।

महाॉ गीध औय शसमाय फहुत धचल्रात ेहैं औय भतृक का भाॊस नोच नोच कय िात ेहैं औय महाॉ हू हू हू की ध्िनन शसमाय कयत ेहैं। इस अऩवित्र स्थान भें भन फहुत डयता है।

चौ0- कायन कवन नाथ मह ठाभा । फसत कयत तऩास ककहह काभा।।

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तफ श्रीहय मह फचन उच्चायी । सनुहु उभा कहूॊ सॊशम टायी।।4।।

औय हे स्िाभी ! ककस कायण इस स्थान भें ककस भनोयथ के शरमे ननिास कयके तऩस्मा कयत ेहो। तफ श्रीहय भहादेि ने मह िचन कहे कक उभा ! सनुो, भैं तमु्हाया सॊिम हयण कयने के शरमे कह यहा हूॉ।

दो0- ननत्म फसहीॊ भभ बतूगण इह बमूभ शभशान।

जग नश्वय ननत देखहूॊ फसत पवयाग उय आन।।58।।

भेये बतूगण इस िभिान बशूभ भें फसत ेहैं औय भैं महाॉ देिता हूॉ कक साया जगत नश्िय है इससे भेये भन भें ियैाग्म आकय फसता है।

चौ0- यहहूॊ ननयन्तय ध्मान सभाहीॊ । बफना ध्मान भोऺ ऩद नाहीॊ।। सहज ऻान सो गरु प्रदाने । तीन कार ननगयुा नहहॊ जाने।।1।।

इसशरमे भैं ननयन्तय ध्मान भें सभामा यहता हूॉ तमोंकक बफना ध्मान भोऺ ऩद नह ॊ शभरता। उसी सहज ऻान को सदगरुु प्रदान कयता है। ननगयुा व्मजतत को तीनों कार (बतू – बविष्म – ितवभान) भें बी इसकी जानकाय नह ॊ होती।

चौ0- तस्ज आरस्म अरू अहॊकाया । यहऊॊ गरु आमस ुमसयधाया।। गपु्त बेद मह देह दयुाई । खुरत बेद ब्रह्भाण्ड उहदताई।।2।।

आरस्म औय अहॊकाय को त्मागकय भैं सदा गरुु आऻा धायण कयके यहता हूॉ। इस िय य भें गोऩनीम यहस्म नछऩे हुिे हैं, जजनके िुरत ेह ब्रह्भाण्ड का साया यहस्म प्रगट हो जाता है।

चौ0- जे जन गरु शयण यत होई । नतहह सभ ऩनु्मवान नहहॊ कोई।। भात – पऩता अरू सदगरु ऩजूा । नहहॊ सभान मऻ तऩव्रत दजूा।।3।। जो व्मजतत गरुु की ियण भें रगा है उसके सभान ऩनु्मिान दसूया कोई नह ॊ

है भाता वऩता औय गरुु की ऩजूा के सभान दसूये मऻ औय तऩ नह ॊ हैं।

चौ0- जाऩय ककयऩा सदगरु कयहीॊ । देव दनजु करय अनहहत डयहीॊ।। हौं शभशान पवयक्ती धायी । कयहुॊ ध्मान ननज भोष तमैायी।।4।।

जजसऩय सदगरुु कृऩा कयत ेहै, देिता औय असयु कोई बी उसका अनदहत कयने भें डयत ेहैं। भैं िभिान बशूभ भें वियतत होकय अऩने भोऺ ऩद की तमैाय कयता यहता हूॉ।

दो0- कई हदवस सयु भनुन सन मशव दीन्ही सतसॊग।।

सऻुान दान तऩ मऻ पर कहह पवधध फस प्रसॊग।।59।।

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कई ददन सयु भनुन औय सॊतों के सभऺ शिि िॊकय जी ने सतसॊग ददमा औय प्रसॊग अनसुाय उत्तभ ऻान, दान, तऩ औय मऻ के पर का विधध अनसुाय फिान ककमा।

चौ0- उभा कहह ये देव देवेश्वय । कायण कवन मह जीव चयाचय।। कायण – अकायण भतृ्म ुऩावा । सो सफ भोही देउ फझुावा।।1।। बगिती उभा ने कहा कक हे देि देिेश्िय ! ककस कायण मह चयाचय जीि

कायण मा अकायण भतृ्म ुको प्रातत होत ेहैं िह सफ भझुे सभझा दो।

चौ0- तफ भहेश्वय फचन उच्चायी । कायण अकायण भतृ्म ुकटायी।। जैसा कयभ तथा पर ऩाता । सकर जीव मत काराघाता।।2।।

तफ भहेश्िय फोरे कक कायण औय अकायण भतृ्म ुएक कटाय है। जैसा कोई कभव कयता है िसैा ह िह पर ऩाता है। इसप्रकाय साये जीिों ऩय मह कार का आघात होता ह यहता है।

चौ0- जड चेतन सॊमोग मह जीवा । चेतन्म ननत्म, अननत्म जड कीवा।। काराक्राॊत जीणप जफ देहा । चरइ जात ुतन ुजीव तजेहा।।3।।

मह जीि जड औय चेतन्म का सॊमोग भात्र है चेतन्म तत्ि ननत्म है औय जड तत्ि अननत्म है। कार के आक्राॊत से जफ देह दफुवर हो जाती है तो इस िय य को त्माग कय जीिात्भा इसभें से चर जाती है।

चौ0- देह त्माग भतृ्म ुकहरावा । देव दनजु राॊघ न ऩावा।। सदा अभय जगद कोउ नाहीॊ । जनभ भयण सफ जीव पॊ दाहीॊ।।4।।

देह का त्माग ह भतृ्म ुकहराती है जजसे देिता असयु कोई बी राॊघ नह ॊ ऩात।े सॊसाय भें सदा कोई अभय नह ॊ है महाॊ सफ जीि जनभ भयण के पॊ दे भें पॊ से हुए हैं।

दो0- ननज कार आइ जे भयइ सो कायण भतृ्म ुजान।

अकायण भतृ्म ुअकार कहह दयुघटना फरवान।।60।।

जफ अऩना कार आ जाता है तफ जो भयता है िह कायण भतृ्म ुकहराती है। अकायण होने िार भतृ्म ुअकार भतृ्म ुकह गई जो फरिान दघुवटना से हो जाती है।

दो0- सदा सत्म मह आत्भा नहहॊ बत्रमर ॊग पवकाय।

धचतवासा जौनन ऩयै कयभ पाॊस आधाय।।61।।

मह आत्भा तो सदा सत्म है इसभें बत्रशर ॊगों का विचाय ह नह ॊ है जैसे धचत्त िासना होती है िसैी ह मौनी भें कभों के आधाय से चर जाती है।

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चौ0- नभस कयभ वाचा अनकूुरा । सो जन असयु नयक गहह शरूा।। हहॊसक चोय ऩयतीम ुगाभी । नीच कयभ जन मभऩयु जाभी।।1।।

भन िचन औय कभव के अनकूुर िह व्मजतत आसरुय नयकों की ऩीडा बोगता है। दहॊसक, चोय, ऩयनाय गभन कयने िारा नीच कभव िारा व्मजतत मभऩयु जाता है।

चौ0- ऩश ुसयीसऩृ बफटऩ जे प्रानी । ऩवूप जनभ आसयुवनृत सानी।। भन फच कयभ सफहीॊ हहतावा । सो जन नयक ऩीय नहहॊ ऩावा।।2।।

ऩि ुसऩव बफच्छू आदद तथा िृऺ मोननमों भें जो प्राणी हैं िे ऩिूव जन्भ भें आसरुय िनृत भें पॊ से हुिे थे। जो प्राणी भन िचन औय कभव से सफके दहतषैी हैं िे व्मजतत नयकों की ऩीडा को प्रातत नह ॊ होत।े

चौ0- भन वाणी भदु भदृरु सबुावा । भात पऩत ुगरु सशु्रुषा ऩावा।। ऩयसेवा यत ऩय कल्माना । सो जन सयुग रोक प्रस्थाना।।3।।

भन िाणी आनॊद औय भधुय स्िबाि, भात – वऩता औय गरुु सेिा को प्रातत कयने िारा, ऩय सेिा भें यत, ऩय कल्माण कयने िारा िह व्मजतत सयुग रोक को प्रस्थान कयता है।

चौ0- धयभ दान व्रत तऩ मऻ नाभा । दोनउ रोक भहासखु धाभा।। देणख दीन दणुख सहामक जोई । मभ आदेश सखु धाभ फसोई।।4।।

धभव, दान व्रत तऩ मऻ औय सतनाभ से दोंनों रोंकों भें भहा सिुधाभ है औय ककसी द न दिुी की जो सहामता कयता है मह मभ के आदेि से सिुद धाभ भें फसामा जाता है।

दो0- मभयत्म ुननकट भानषु तफ कयहीॊ प्राण ककथ त्माग।

कहहु भोही सो साय तत्व फझूत उभा शौबाग।।62।।

तफ सौबाग्मिती उभा ने ऩछूा कक अफ भझुे िह तत्ि कहो कक जफ भतृ्म ुका सभम ननकट आता है तफ प्राणी ककस प्रकाय प्राणों का त्माग कयता है।

चौ0- फोरे मशव अफ सनुो बवानी । स्वबापवक जतनमसद्ध भतृ्म ुजानी।। ईच्छा कार कार जफ आवा । सो स्वबापवक भतृ्म ुकहावा।।1।।

शिि जी फोरे कक अफ बिानी ! सनुो, मह भतृ्म ुस्िबाविक औय मत्न शसद्ध जानी गई है। जफ कार ईच्छा से सभम आ जाता है िह स्िाबाविक भतृ्म ुकहराती है।

चौ0- जानफझू जो प्राणी तजाई । जतन मसद्ध सो भहा दखुदाई।। जफ रधग प्राण अन्त नहहॊ होई । शदु्ध धचत्त सत्म कयभ सभोई।।2।।

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जो कोई जान फझूकय (आत्भ हत्मा) से प्राण त्मागता है िह मत्न शसद्ध भतृ्म ुकहराती है। जो भहादिुदामी है। इसशरमे जफ तक प्राणान्त न होिे तफ तक सत्म कभों भें ह सभामे यहना चादहमे।

चौ0- हरय समुभयन यत ऩय उऩकायी । ऩनु्म रोक नतहह सयुत मसधायी।। देस धभप हहत ुजे तन ुत्मागी । ऩनु्म रोक सो गभन फडबागी।।3।।

जो हरय सशुभयन औय ऩयोऩकाय भें रगा यहता है उसकी रूह ऩनु्म रोंकों को चर जाती है। औय जो अऩने देस धभव के दहत भें िय य त्मागता है िह फडबागी ऩनु्म रोंकों को चरा जाता है।

चौ0- काभ क्रोध बम तन ुअवसावा । आतभहत करय नयकहहॊ जावा।। कछुक सॊत ऐसे जग भाहीॊ । जीवन भकु्त सदा सखु ऩाहीॊ।।4।।

काभ, क्रोध, बम के ििीबतू जो देह त्मागता है मा आत्भ हत्मा कयके िय य त्मागता है िह नयकों भें जाता है। ऩयन्त ुसॊसाय भें कुछ ऐसे बी व्मजतत हैं जो सदा जीिन भजुतत का आनन्द ऩात ेहैं।

छ0- जन जीवन बरय जे कभप करय नतन्ह धचतस सॊस कय छाऩ फनन। भतृ्म ुकार नतन्ह सकर दृष्म सन आवहहॊ सो जीव सनन।।

अनतकरयत कभप जीवन बरय जे, सॊस जीव सन आवहीॊ।।

“होयाभदेव” नतन्ह बाव रीन मभदतू जीव गहह जावहीॊ।।5।। अऩने जीिन बय भें जो व्मजतत जो जो कभव कयता है उनकी धचत्त भॊडर

भें सॊस्कायों की छाऩ फन जाती है औय भतृ्म ुके सभम उनका साया दृष्म जीि के सभऺ प्रकट हो जाता है। इस प्रकाय उस जीि ने जो कभव अऩने जीिन भें अधधक से अधधक ककमा है जफ जीि के सन्भिु िह सॊस्काय आ जाता है श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं तफ उसी बाि भें र न हुिे जीि को मभदतू रेकय चरे जात ेहैं।

दो0- कुसॊस सों नयकहह गनत शबुसॊस सयुग ऩठाम।

मोगी ननस्ज भधूाप नछहद जहॊ फासा तहॉ जाम।।63।।

फयेु सॊस्कायों से नकों की गनत शभरती है औय िबु सॊस्कायों से स्िगव बेजा जाता है, ऩयन्त ुमोगी जन अऩनी कऩारयॊध्र छेदकय मथा स्थान चरे जात ेहैं।

चौ0- सत्म कहूॊ सनुो पप्रमे बवानी । भतृ्मकुार ननकट स्जहह जानी।। नतहह सन तद फॊधु सतुनायी । एक ही धयभ भतृक हहतकायी।।1।।

हे वप्रम बिानी ! भ ॊ सच कहता हूॉ कक जजसका भतृ्म ुसभम ननकट जाना जामे तफ उसके साभने फॊधु फाॊधि ऩतु्र औय स्त्री को भतृक के दहत के शरए एक ह धभव है।

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चौ0- बजन कीयतन भॊत्र सतनाभा । मभयतक हेत ुजऩउ अपवयाभा।। जे जन एहह सकृुनत तफ कयहीॊ । श्री हरयध्मान भतृक भन तयहीॊ।।2।।

उस सभम भतृक के दहत के शरमे देय ककमे बफना (अविरम्फ) िड ेहोकय सत्मऩरुुष का नाभ, भॊत्र, बजन औय कीतवन का जऩना िरुु कय देंिें। मह सकृुनत तफ जो भानि कयत ेहैं तो भतृक का भन श्रीहरय के ध्मान भें नतय जाता है।

चौ0- स्जहह के भीत तद योदन कयहहॊ । भतृक ऩॊथ अशबु गनत फयहहॊ।। अॊतभनत सो गनत सफ जानी । अन्तकार सत्म बजन कल्मानी।।3।।

औय जजसके भीत फॊधु फाॊधि उस सभम रूदन भचात ेहैं तो भतृक का भागव अिबु गनत को चरा जाता है। सफ जानत ेहैं कक जैसी अॊतकार भें भनत िसैी ह गनत होती है। अन्तकार भें तो सत्मबजन ह कल्माणकाय है।

चौ0- जफ सो भतृक देह तस्ज जावा । अघनासक हरय पवननत गावा।। अयथी उठाम जाइ शभशाना । कयउ पवधधवत कृनत अन्ताना।।4।।

औय जफ िह भतृक देह त्माग चरे तो उसके ऩाऩ नासक श्रीहरय की विनती कये। इसके फाद अथी उठाकय िभिान भें जाकय विधधित अॊनतभ कक्रमा कभव कयें।

दो0- ऐनत ही उऩदेश आज हौं कहह तमु्हे सनुाम।

“होयाभदेव” नभन करय ननज ननज ऩयु सफ जाम।।64।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक तफ श्री शिि जी ने कहा कक फस आज इतना

ह उऩदेि िचन भैंने तमु्हे सनुा ददमा है। तफ तो सफ नभन कयत ेहुिे अऩने रोंकों को चरे गमे।

5 – भहाप्ररम

दो0- मथा सभम अधग्रभ हदवस आमहु सॊत सभाज।

श्री मशव सतसॊग बाषऊ सयई स्जऻासनु्ह काज।।65।।

अगरे ददन ननमत सभम ऩय साया सॊत सभाज आ गमा। औय श्री शिि जी सतसॊग कहने रगे जजससे जजऻासओुॊ के भनोयथ ऩयेू होने रगे।

चौ0- ऩयुातन कार भहातऩधायी । धभपऻ पवयक्त प्रजा हहतकायी।। समूपऩतु्र ववैस्त भन ुयाजा । चहुॉ हदमस याज्म भहासखु साजा।।1।।

ऩयुातन कार भें भहा तऩस्िी, धभव ऻाता, सॊसाय से वियतत औय प्रजा के दहतषैी समूव के ऩतु्र याजा ििैस्ित भन ुका चायों ददिाओॊ भें भहासिुदामी याज्म था।

चौ0- ननजी सतुहह साम्राज्म सोंऩाई । गमऊ घोय वन मोग कभाई।।

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तऩसारीन फीनत फहुकारा । बमे प्रगट पवधध कभर पवशारा।।2।।

अऩने ऩतु्र को साम्राज्म सौंऩकय घोय िनिण्ड भें तऩस्मा (मोग की कभाई) कयने चरे गमे। तऩस्मा भें र न फहुत सभम फीतने ऩय एक ददन वििार कभर ऩय आसीन श्री ब्रह्भा जी प्रगट हो गए।

चौ0- फोरे पवयॊधच भन भसुकावा । भाॊगऊ शे्रष्ठ वय जो बावा।। तव तऩसा प्रसन्न अनत होई । हों प्रगटेउ सॊशम नहहॊ कोई।।3।।

भन ह भन भसु्कायात ेहुिे ब्रह्भा जी फोरे कक तभुको जो शे्रष्ठ िय बामे, भाॉग रो। तमु्हाय तऩस्मा से भैं अनत प्रसन्न होकय प्रगट हुआ हूॉ, इसभें कोई सॊिम नह ॊ है।

चौ0- भाॊगेऊ भन ुदोउ कय जोयें । एकहह वय काभा भन भोयें।। होउॉ सभथप सवप यऺावा । घोय भहा ऩयरम जफ आवा।।4।।

तफ भन ुनें दोंनों हाथ जोड कय भाॉगा कक भेये भन भें एक ह िय की काभना है कक जफ घोय भहाप्ररम हो तफ भैं सफकी यऺा कयने भें सभथव होऊॉ ।

दो0- सॊत सोई जाके हृदम ऩयहहत फसे सदाम।

अरय भीत जान ैनहीॊ ऩयभायथ फयसाम।।66।।

सन्त िह है जजनके रृदम भें सदा ऩयदहत फसता है। िे ित्र ुऔय शभत्र भें अॊतय नह ॊ कयत,े फस सफ ऩय ऩयभाथव ह फयसात ेहैं।

चौ0- ऩुनन भनु अखण्ड साधना कीन्ही । हरय की अटर बस्क्त गहह रीन्ही।। प्राणामाभ ध्मान अभ्मासा । ऩामेऊ घट भॉह ऩयभ प्रकासा।।1।।

तफ भन ुने अिण्ड साधना प्रायम्ब कय द औय प्रब ुकी अटर बजतत प्रातत कय र । प्राणामाभ औय ध्मान के अभ्मास द्िाया अऩने घट भें भहाप्रकाि प्रातत कय शरमा।

चौ0- गरु ब्रह्भा दत्त पवधध अनसुाया । ऩामेऊ अभय धाभ अपवकाया।। षोडस दयुग छेहद तन भाहीॊ । ननज सयुतहह सचखण्ड चढाहीॊ।।2।।

श्री गरुु ब्रह्भा जी द्िाया फताई विधध के अनसुाय उन्होने अविकाय ऩयभधाभ प्रातत कय शरमा। उन्होने सोरह चक्रों को बेद कय अऩनी सयुत को चढा कय सचिण्ड भें ऩहुॉचा ददमा।

चौ0- वाम ुऩदी धारय ननज कामा । ध्मानाधाय अभीयस ऩामा।। ठाड ेजर करय जोग कभाई । भतृ्म ुजीत भहा गनत ऩाई।।3।।

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उन्होने अऩने देह भें प्राण िाम ुकी गनत को धायण कयके ध्मान के आधाय ऩय अभतृ प्रातत कय शरमा। उन्होने जर भें िड ेहोकय मोग को कभामा औय भतृ्म ुविजम की ऩयभ गनत प्रातत की।

चौ0- पऩतय तरयऩ हहत बरय जर झायी । हदवस एक जर यपव बयऩायी।। एक भीन भन ुकयतर आई । दमाबाव सो यछा ऩयदाई।।4।।

िह एक ददन अऩने वऩत्रों का तऩवण कयने के शरमे जरझाय बयकय समूव को जर अऩवण कय यहे थे कक एक भछर उनकी हथेर ऩय आ गई जजसे उन्होने दमा बाि से सयुऺा प्रदान की।

दो0- ननजहह कभॊडर भाहीॊ यणख ताहह सयुऺा हेत।

अचयज एकै हदवस सो ; बा षोडशाॊगरु ऩेत।।67।। उन्होने उसे सयुऺा के शरए अऩने कभण्डर भें यि शरमा, ऩयन्त ुआश्चमव था

कक िह भछर एक ह ददन भें सोरह अॊगरु भोट हो गई।

चौ0- यऺ यऺ भो कहह धचल्रावा । सॊत जानन भैं तव सयनावा।। तफहहॊ नयेश फयो घट भाहीॊ । डायी भीन नतहह सयुछा दाहीॊ।।1।।

तफ िह भछर भेय यऺा कयो भेय यऺा कयो धचल्रामी औय कहा कक भैं सॊत जानकय आऩकी ियण आमी हूॉ। तफ भहायाजा भन ुने उसे फड ेघड ेभें डारकय उसे सयुऺा प्रदान कय द ।

चौ0- एक ही यात ताही तन फाढा । उच्चस्वय त्राहहभाभ मरसाढा।। तहॉ त ेताहह याव ननकसामा । रघ ुऩोखय ततछन ऩहुॉचामा।।2।।

उस भत्स्म ने एक ह यात भें अऩनी देह फढा र औय “भझुे फचाओ” मह ऊॉ चे स्िय भें आिाज ननकार । तफ याजा ने उसे िहाॉ से ननकार कय तत्ऺण एक छोटे ऩोिय भें ऩहुॉचा ददमा।

चौ0- अग्र हदवस ऩनुन भन ुतहॉ गमऊ । अचयज रखा भीन फड बमऊ।। याजन ताहह सयोवय रावा । देह फढा फहु यछ यछ गावा।।3।।

अगरे ददन भन ुिहाॉ ऩनु् गमे तो आश्चमव देिा कक भत्स्म औय फडा हो गमा है। तो याजा उसे एक तराफ भें रे आमा। ऩयन्त ुिह अऩना िय य औय फढाकय फहुत फाय यऺा कयो यऺा कयो गाने रगा।

चौ0- ऩनुन नऩृ गॊग धाय भॉह डायी । एकहहॊ यैन बमो तन बायी।। तफ नयेश सागय ऩहुॉचावा । तहॉ अपऩ भच्छ शयीय फढावा।।4।।

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कपय याजा ने उसे गॊगा की धाय भें डार ददमा जहाॉ िह एक ह यात भें फढकय वििार िय य िारा हो गमा। तफ याजा ने उसे सभनु्र भें ऩहुॉचा ददमा। ऩयन्त ुिहाॉ बी िह अऩना आकाय फढाने रगा।

दो0- तफ नयेश भन ही भनस अनतकय कीन्ह पवचाय।

कय जोयी फोरे सबम को तभु भच्छ अऩाय।।68।।

तफ याजा भन ुने भन ह भन फहुत विचाय ककमा। कपय बमबीत होकय हाथ जोड कय फोर ऩड ेकक हे वििार भत्स्म, इस रूऩ भें तभु कौन हो ?

चौ0- फाढहहॊ देह भच्छ कय जैसे । सभयथ नाहहॊ अन्म करय तसैे।। सभयथ भहहभा केशव धायी । ननहहव ऩयीऺा कोउ हभायी।।1।।

जजस प्रकाय आऩका भत्स्म िय य फढ यहा है। ऐसा कयने िारा कोई औय सभथव नह ॊ है। ऐसी भदहभा िारे सभथव तो स्िमॊ बगिान केिि ह हो सकत ेहैं। मह ननश्चम ह हभाय कोई ऩय ऺा है।

चौ0- नभो नभो हे आहद अनन्ता । ध्मावहहॊ तमु्हहहॊ सकर सयु सन्ता।। भैं अनतदीन सशुयण तमु्हायी । कयहु कृऩा हे जन हहतकायी।।2।।

हे आदद अनन्त तमु्हे नभस्काय है, नभस्काय है । तभुको देिता औय सॊत सबी ध्मात ेहैं। भैं अनतद न आऩकी ियण हूॉ। हे कृऩार, बतत दहतकाय भझु ऩय कृऩा कयो।

चौ0- श्रीहरय भत्स्म स्वरूऩ दमारा । फोरे कृऩा फचन नतस कारा।। सस्न्नकट भहा ऩयरम कारा । फडुडहैं कानन ब ूधगरय भारा।।3।।

तफ उसी सभम भत्स्म स्िरूऩ, दमार ुश्रीहरय ने कृऩा कयके मह िचन फोरे कक हे याजा ! भहा प्ररम का सभम अनत ननकट आ गमा है जजसभें मह धयती, िन औय ऩिवत सभहू सफ डूफ जामेगें।

चौ0- नौका काष्ठ पवशार फनाकय । इक इक जोडा जीव चयाचय।। फीज फनस्ऩनत सकर प्रकायी । कयहु सयुऺा नाव सॉबायी।।4।।

अत् तभु एक काष्ठ की वििार नाि फनिाओ औय उसभें सबी चय (भानि, ऩि,ु ऩऺ आदद) तथा अचय (ऩेड, ऩौधे) तथा जीिों के एक एक जोड ेतथा सफ प्रकाय की िनस्ऩनतमों के फीज रेकय नाि भें चढ जाओ औय उनकी सॊबार कय सयुऺा कयो।

दो0- सनुहुॉ उभा ऩयरम मदा फाढहहॊ बान ूताऩ।

जगत चयाचय पवनसहीॊ ऩाइ भहा ऩयराऩ।।69।।

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बगिान शिि फोरे कक हे उभा (तथा सॊतो) जफ प्ररम आती है तो समूव का ताऩ इतना फढ जाता है कक जगत के चयाचय जीि अत्मन्त विराऩ कयत ेहुए नष्ट हो जात ेहैं।

चौ0- ऩनुन श्रीहरय भनहुहॊ सभझावा । झॊझाननर जफ नाव डडगावा।। तद हौं भच्छ रूऩ धय अइहैं । नाव तोय भभ सीॊग फॊधइहैं।।1।।

कपय श्री बगिान हरय ने याजा भन ुको सभझामा कक प्ररमकार भें जफ झॊझाननर (प्रचॊड िाम ुिेग) से तमु्हाय नाि डगभगाने रगेगी तफ भैं ददव्म भत्स्म रूऩ धायण कयके आऊॉ गा अऩनी सीॊग भें तमु्हाय नाि फॉधिा रूॉगा।

चौ0- ऩयरमोऩयान्त प्रायम्बकारा । भनवन्तय अधधऩनत पवशारा।। तभु सवपऻ धीय फरशारी । हुइअहु नऩृनत जगत प्रनतऩारी।।2।।

प्ररम के फाद प्रायम्ब कार भें तभु इस वििार भनिन्तय के अधधऩनत, जगत का ऩारन कयने िारे, सिवऻ, धीय औय फरिान याजा हो जाओगे।

चौ0- तद भन ुकीन्ही सपु्रश्न बफचायी । केनतक कार प्ररम बमकायी।। भहापवनाश ननकट कस जननहौं । केहह पवधध जीव सयुऺा करयहौं।।3।।

तफ याजा भन ुने विचाय कयके अच्छा प्रश्न ककमा कक हे हरय बमकाय प्ररम आने भें ककतना सभम िषे है। औय भैं कैसे जानूॉगा कक अफ भहाविनाि ननकट आ गमा है। औय तफ भैं जीिों की सयुऺा ककस प्रकाय करूॉ गा।

चौ0- तद श्रीहरय राधग सभझाने । ऩयरम कार ननकट तफ जाने।। सतत सार शत ्इहह बतूर ऩय । बफन ुवषाप दु् ख जीव चयाचय।।4।।

तफ श्रीहरय ने सभझात ेहुिे कहा कक प्ररम कार तफ ननकट जानना जफ इस ऩथृ्िी ऩय रगाताय एक सौ िषव तक िषाव नह ॊ होगी जजससे चयाचय जीि भहान दु् ि झेरेंगे।

छ0- जफ सप्त समूप अॊगाय फयसहहॊ त्राहह त्राहह सफ प्राणी कहे। बफन ुवसृ्ष्ट ब ूदयुमबऺ व्माऩ ैगयहहॊ जीव ऩीया सहे।।

धरय रूऩ फडवानर बमानक रोक सकर बस्भावहीॊ।

जॊगर जयहहॊ बइ याख ढेयी सकर जगत पवनसावहीॊ।।6।।

जफ समूव का ताऩ इतना अधधक हो जामेगा भानों सात समूव शभरकय अॊगाये फयसा यहे हों। तफ सफ प्राणी त्राह – त्राह कहने रगेंगे, ऩथृ्िी ऩय िषाव के बफना दशुबवऺ (अकार) व्मातत हो जाएगा, सफ रोग ऩीडा सह सह कय भयने रगेगें, फडिानर (जॊगर की आग) बमानक रूऩ धय कय पैरेगी, प्रखणमों को बस्भ कय देगी

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औय साये जॊगर जराकय याि की ढेय फना देगी। इस प्रकाय साये जगत का विनाि हो जाएगा।

दो0- सॊवत ्प बीभनाद वराहक दोण ्चण्ड् पवद्मनुत शौण।

सप्त भेघ ढाऩहहॊ गगन, फयसत भसूर त्रोण।।70।।

तफ सॊितव, बीभनाद, फराहक, रोण, चण्ड, विद्मनुत औय िौण नाभ के सातों प्रकाय के भेघ आकाि को ढक रेंगें जजससे घोय भसूराधाय िषाव होगी।

चौ0- सप्त मसॊधु जर एकभ एका । फडूहहॊ धया नहीॊ कहुॉ टेका।। तव यक्षऺत प्राणी फधच जइहैं । तात नाव भभ सीॊग फॊधइहैं।।1।।

तफ सबी सात सागयों का जर फढकय शभर जाएगा औय ऩथृ्िी इतनी डूफ जामेगी कक कह ॊ टेक नह ॊ शभरेगी। ऩयन्त ुतभु औय तमु्हाये द्िाया सयुक्षऺत ककए गए चयाचय जीि नाि भें फच जामेगें। तफ हे तात ! तभु उस नाि को भेये सीॊग भें फाॉध देना।

चौ0- अस कहह ब ैहरय अदृष्म होवा । भन ुरागे फड ऩोत सॊजोवा।। शनै् शनै् आममस सोइ कारा । धचन्ह उदम बमे प्ररम पवशारा।।2।।

ऐसा कहकय श्रीहरय अन्तध्मावन हो गए औय याजा भन ुवििार नाि फनिाने रगे। िनै् िनै् िह सभम बी आ गमा जफ वििार प्ररम की धचन्ह उदम हो गए।

चौ0- सहसा एक कार अस आवा । फाढेऊ बान ुताऩ दु् ख दावा।। जननत सप्त बान ुइक साथा । धया गगन ननज ताऩ उगाथा।।3।।

सहसा एक सभम ऐसा आ गमा कक समूव की दु् िदामी गभी इतनी फढ गई भानो सात समूव एक साथ शभरकय ऩथृ्िी औय आकाि भें अऩना ताऩ उगर यहे हों।

चौ0- फयसा रयत ुशत ्फयस न आई । जीव चयाचय भरय भरय जाई।। नाव पवशार अनठू फनाकय । बये फीज अरू मगु्भ चयाचय।।4।।

सौ िषव तक िषाव ऋत ुनह ॊ आई जजससे चयाचय जीि भयने रगे। इस भध्म भें याजा ने एक अनठूी वििार नाि फना र जजसभें उन्होंने सफ िनस्ऩनतमों के फीज औय सफ चयाचय जीिों की एक एक जोडी चढा र ।

दो0- उभा प्ररम कारहहॊ सकर जीव देह तस्ज जामॉ।

दृश्म न अस सो देखहीॊ जीव साभयथ नामॉ।।71।।

बगिान शिि फोरे, हे उभा, प्ररम कार भें सबी जीिों का देहािसान हो जाता है, अत् िे इस दृश्म को नह ॊ देि ऩात।े िे इसके शरए साभथव ह न हैं।

चौ0- बान ुअनर ब ूबेहद अथामा । ऩहुॉधच यसातर रधग बमदामा।। फाइस सहस्र मोजन नब प्रानी । होहहॊ बस्भ अस ताऩ बवानी।।1।।

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समूव की अथाह अजग्न ऩथृ्िी को बेद कय यसातर ऩहुॉच कय बमदामी रगने रगती है। हे बिानी उस ताऩ से फाईस हजाय मोजन तक आकाि के ऩऺी बी जरकय बस्भ हो जात ेहैं।

चौ0- शन ै– शन ैनब भेघ धथयाहीॊ । चहुॉ हदमस वाम ुप्रचॊड पुयाहीॊ।। दामभनन दभक गयज अनत बाया । ढाऩहहॊ वारयद व्मोभ अऩाया।।2।।

धीये धीये आकाि भें फादर छा जात ेहैं, चायों ओॊय प्रचॊड िाम ुिेग से चरने रगती है, बफजर अत्माधधक चभकती है, फादर घोय गजवन कयत ेहैं औय घनघोय फादर साये आकाि भें छा जात ेहैं।

चौ0- फयसहहॊ भेघ भसूराधाया । फाढहहॊ नीय ढापऩ थर साया।। घोय अभॊगर भहाबॊमकय । फडूहहॊ धगरय वन नागय ग्राभ घय।।3।।

भेघ भसूराधाय िषाव कयत ेहैं औय इसका जर ऩयेू थर को ढक रेता है। इस घोय अभॊगरकाय भहाबमॊकय िजृष्ट से साये ऩिवत, जॊगर, नगय, ग्राभ औय उसभें ननशभवत बिन डूफ जात ेहैं।

चौ0- फडूइ ब ूअथाह जर भाहीॊ । यपव शमश उड्गन तजे नसाहीॊ।। होहहॊ एक सफ ऩायाफाया । होंहहॊ अदृश्म सकर सॊसाया।।4।।

ऩथृ्िी अथाह जर भें डूफ जाती है, समूव, चन्र औय तायागणों भें तजे नह ॊ यहता, सफ सभनु्रों का जर फढकय एकाकाय हो जाता है औय साया सॊसाय ददिाई नह ॊ देता।

दो0- “होयाभदेव” चायी हदमस, गहन घोय अन्धकाय। ठौय हठकाना कहुॉ नहीॊ, जर ननधध व्माप्त अऩाय।।72।।

श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक चायों ओय घना, बमािह अॊधकाय था औय चायों ओय सभनु्र पैरा हुआ था औय कह ॊ आश्रम का स्थर नह ॊ था।

चौ0- तयैहहॊ नऩृ कय ऩोत अनाथा । हदसाहीन नहहॊ केवट साथा।। बफकर भन ूसफ जीव ननयासा । सॊग सप्त रयमस देहहॊ उयआसा।।1।।

याजा भन ुका ऩोत अनाथ सा बफना केिट के ददिा ह न तयै यहा था। उसभें फठेै याजा विकर थे औय सफ जीिों की जोडी ननयाि थी। ऩयन्त ुउनके साथ सतत ऋवष बी फठेै थे जो उन्हे आश्िासन दे यहे थे।

चौ0- झॊझावात नाव चॊह ऩरटी । कब ुआगे कब ुसयकहहॊ उरटी।। फीत ेहदवस अनेक दखुायी । घोय अॉधेयी शीत फमायी।।2।।

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तजे िाम ुके झौंके नाि को ऩरटने की चेष्टा भें थे ऩयन्त ुउनका फडा ऩोत कबी आगे चरता था तो कबी उरटा सयकता था। इसप्रकाय घोय अॊधकाय औय िीत िाम ुसे कॉ ऩाने िारे अनेक दु् िदामी ददन फीत यहे हैं।

चौ0- तफ नऩृ रयसी जीव सभदुाई । ध्मावहहॊ श्रीहरय पवनती गाई।। नभो नभो जगदीश्वय स्वाभी । नभो नभो घट अॊतयजाभी।।3।।

तफ याजा भन ुऔय सतत ऋवषमों ने सफ जीिों सदहत शभरकय श्रीहरय का ध्मान ककमा औय विनती गाई, “हे जगत के ईश्िय औय स्िाभी आऩको नभन है, नभन है। हे सफ प्राखणमों के अॊतमावभी आऩको नभस्काय है, नभस्काय है।“

चौ0- हभ असहाम धथयहहॊ नहहॊ नावा । वाम ुनतमभय अरूशीत कॉ ऩावा।। त्राहह वमभ ्हे कृऩा ननधाना । तव बफन ुनाहीॊ ठौय हठकाना।।4।।

हभ असहाम हैं, नौंका जस्थय नह ॊ हो यह , िाम ुिेग, अॉधेया औय घोय िीत हभे कॉ ऩा यहे हैं, हे कृऩा ननधान आऩके बफना हभाया कह ॊ ठौय औय दठकाना नह ॊ है, हभाय यऺा कयो।

दो0- तफ अनतदयू जरधध भॊह प्रगटौ ऩुॊज प्रकास।

तजे बान ुसभ आमऊ ; जॉह भन ुऩहैठ उदास।।73।। तफ अत्मधधक दयू सभरु भें समूव के सभान तजे िारा प्रकाि का ऩुॊज उदम

हुआ औय जहाॊ याजा भन ुउदास फठेै थे, िहाॉ आ गमा।

चौ0- सो दनुत ऩुॉज ऩोत हढॊग आमी । भच्छ सरूऩ भहा सखुदामी।। भस्तक शोमबत मस्रॊग बफसारा । छत्र सशुोमबत याट पवमारा।।1।।

िह ज्मोनत ऩुॊज नौंका के सभीऩ आकय अत्मन्त सिुदामी भत्स्म स्िरूऩ फन गमा जजसके भस्तक ऩय वििार सीॊग था औय श्री व्मारयाट (िषे नाग) उन ऩय छत्र फन कय सिुोशबत हो यहे थे। अथावत श्रीहरय का मह प्रथभ अिताय भत्स्मािताय था।

चौ0- करय प्रनाभ नऩृ आमस ुभाॊगेउ । झऩहट स्रीॊग भॊहह रॊगय डायेउ।। सहहत सप्तरयमस बऩू भहाना । करय साष्टाॊग कीन्ह गनु गाना।।2।।

याजा भन ुने उन्हे प्रणाभ कयके उनसे अनभुनत भाॉगी औय झऩट कय उनके सीॊग भें अऩने ऩोत का रॊगय डार ददमा। कपय भहान याजा ने सतत ऋवषमों सदहत उन्हें दण्डित प्रणाभ ककमा औय उनके गणुों का फिान कयने रगे।

चौ0- भच्छ रूऩ अवताय नयामन । यहहहॊ सवपदा बगत ऩयामन।। कहह कवन हदसी चरुॉ रई नावा । कहहु भन ूजे तव भन बावा।।3।।

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श्री नायामण बगिान का मह अिताय भत्स्म रूऩ भें है। मे सिवदा बतत ऩयामण यहत ेहैं। उन्होने कहा कक हे याजा भन ुतमु्हाये भन भें जो बाि है उसे कहो कक भैं इस नाि को ककस ददिा भें रे चरूॉ।

चौ0- फोरेउ भन ुजहहॊ सों जर आई । ठाऊॉ सोइ भोहह देउ हदखाई।। तफ सो भीन वेग अनत धामउ । प्रगट अथाह नीय तहॉ आमउ।।4।।

याजा भन ुफोरे कक भझुे िह स्थान ददिा द जजमे जहाॉ से मह जर आ यहा है। तफ िह भत्स्म नाि सदहत िेग से दौडा औय िहाॉ रे आमा जहाॉ से अथाह जर प्रगट हो यहा था।

दो0- देणख देदीप्मभान मशश ुभखु उगरहहॊ जर स्रोत।

यपव असॊखम राजत तहाॉ अचयज शीतर ज्मोत।।74।।

िहाॉ याजा ने एक ऐसे देद तमभान शिि ुके दिवन ककए जजनके साभने भानो असॊख्म समूव रजज्जत हो जामें ऩयन्त ुआश्चमव है कक उसकी ज्मोनत िीतर थी। िह शिि ुअऩने भिु से जर का स्रोत रगाताय उगर यहा था।

चौ0- करयत ऩयनाभ भन ुमशशरुूऩा । जेहह के दयस छयहहॊ अघकूऩा।। जोरय ऩानन नऩृ पवनती गाई । नभो नभो हे प्रब ुबवयाई।।1।।

याजा भन ुने ज्मोनत प्रकाि रूऩ शिि ुबगिान को जजनके दिवन से ऩाऩ सभहू का ऺयण (नाि) हो जाता है, प्रणाभ ककमा औय हाथ जोड कय विनती गाई, हे सॊसाय के स्िाभी प्रब,ु आऩको नभस्काय है, नभस्काय है।

चौ0- फोरे हरय तफ भदृरु सबुाऊ । अफ कुत चरहु कहहु जगयाऊ।। भन ुकहह ठाउॉ हदखावहु तयुतय । जॊहवा जर प्रपवष्म वेधगकय।।2।।

श्रीहरय फोरे हे जगदाधीि तमु्हाया सौम्म स्िबाि है। अफ फताओ कहाॉ चरूॉ। याजा भन ुने कहा कक तयुन्त िह स्थान ददिाईमे जहाॉ मह फढा हुआ जर रगाताय िीघ्रता से प्रविष्ठ हो यहा है।

चौ0- तफ अनतवेग भच्छ रइ नावा । आमहु जहॉ सफ नीय सभावा।। तहॉ बऩूार मशश ुसोइ, देखा । पऩमत नीय भखु खोमर बफसेखा।।3।।

तफ भत्स्म (श्रीहरय) नाि रेकय अनतिेग से िहाॉ आए जहाॉ िह जर सभा यहा था। िहाॉ याजा ने शिि ुदेिा (जजसके भिु से ऩिूव स्थर भें जर ननकर यहा था) जो अफ वििषे रूऩ से भिु िोरकय जर ऩी यहा था।

चौ0- ऩाइ ऩयस सोइ मशश ुअमबयाभा । सॊग सप्तरयमस कीन्ही प्रनाभा।। रतु हहभाहर-मशखय हरय आमेहु । फाॉधध ऩोत फहु ऻान सनुामेहु।।4।।

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याजा ने सतत ऋवषमों सभेत उस सनु्दय रूधचय शिि ुका दिवन ऩाकय प्रणाभ ककमा। तफ भत्स्मािताय श्रीहरय िीघ्र दहभारम की चोट ऩय आ गमे जजसभें नौका फाॉधकय इन्होंने फहुत ऻान सनुामा।

दो0- भत्स्म रूऩ ओझर बमेउ प्रगटेउ ऩुॊज प्रकास।

ऩनुन हरष्टेउ सोइ मशश ुतहॉ ; अडउे बयभ की पाॉस।।75।। उसके फाद श्रीहरय का भत्स्म रूऩ ओझर हो गमा अथावत िे अॊतध्र्मान हो

गए तबी एक प्रकाि का ऩुॊज (सभहू) प्रगट हो गमा। उसके फाद िहाॉ बी िह शिि ुदृजष्टगत हो गमा जजसभें भ्रभ की पाॉस अड गई अथावत रृदम भें भ्रभ उत्ऩन्न हो गमा।

चौ0- ववैस्वत ऩछेूऊ कय जोयी । को तभु शषे पवशषे बत्रऩोयी।। को तभु ब्रह्भा मशव जगदीसा । ऩनुन ऩनुन फन्दउ करय नत सीसा।।1।।

तफ याजा ििैस्ित भन ुने हाथ जोड कय ऩूॉछा कक आऩ िषे, वििषे, बत्रऩोय , ब्रह्भा, शिि अथिा जगद ि (विष्णु) भें से कौन हैं ? भैं ऩनु्ऩनु् आऩको नतभस्तक होकय आऩकी िन्दना कयता हूॉ।

चौ0- सो मशश ुतद वचन उच्चायी । अऺय नायामण नाभ हभायी।। भभ आमस ुमसय धरय सफ देवा । ऋपष भनुन सॊत सॊग जगद प्रसेवा।।2।। उस शिि ुने तफ मह कहा कक भेया अविनािी श्री नायामण नाभ है भेय

आऻा को सबी देितागण शियोधामव कयके ऋवषमों भनुनमों औय सॊतों के साथ जगत का सॊचारन कयत ेहैं।

चौ0- जे जन कयभ कयहहॊ जग जैसा । भाभ प्रकृनत देहहॊ पर तसैा।। सत्म धयभ सकुयभ भोहह बावा । छमर ऩाखॊडड अधभ दखु ऩावा।।3।। जो भानि सॊसाय भें जैसा कभव कयता है भेय प्रकृनत िसैा ह पर देती है।

भझुे सत्म धभव तथा सत्मकभव अच्छे रगत ेहैं। छशरमा ऩािॊडी ऩाऩी तो दिु ह बोगत ेहैं।

चौ0- तऩ मऻ तीयथ व्रत जपऩ नाभ ू। सॊत मोगी ऩावहहॊ भभ धाभ।ू। शन ैशन ैसफ जर घहट जइहैं। नतून सषृ्टी कार ऩनुन अइहैं।।4।।

तऩस्मा – मऻ – तीथव – व्रत नाभ सशुभयन कयने िारे सॊत औय मोगीजन ह भेया धाभ प्रातत कय ऩात ेहैं। अफ धीये धीये मह साया जर घट जामेगा औय नि सषृ्ट कार कपय आमेगा।

चौ0- तफ तभु कयहु असॊबव प्रसाया । जाऩहहॊ नाभ जनन जीव हभाया।। ऋपष भनुन सरुय सयुगण साये । भभ आमस ुबव काज सॊवाये।।5।।

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तफ तभु जगत का ऐसा विस्ताय कयो जजससे कक जीि हभाये नाभ जाऩ कये। ऋवष भनुन देिी देिगण सबी भेय आऻा से सॊसाय का कामव सम्बारें।

दो0- मशश ुरूऩ सो ज्मोनत ऩुॉज सकर बेद सभझाम।

देखत ही अदृश्म बमो भनुन भन ुधन्म धन्म गाम।।76।।

शिि ुस्िरूऩ िह ज्मोनतऩुॊज सभस्त ऻान बेद सभझाकय देित ेह देित ेअदृश्म हो गमा औय सभस्त भनुनजन तथा याजा भन ुधन्म है, धन्म है कहने रगे।

दो0- सनुो मशवा कायण मह सफके हरय प्रनतऩार।

सज्जन के श्रीहरय सखा दषु्टन को भहाकार।।77।।

हे शििा सनुो इस कायण से सफके प्रनतऩारक श्रीहरय ह है। सज्जन ऩरुुषों के श्रीहरय सिा है औय दषु्टों के शरमे िह भहाकार है।

दो0- सॊत सबा पवसस्जपत बई श्रोता गमऊ ननज धाभ।

ननत ऻानगॊग सफ नहावहहॊ करय मशव ऩद प्रनाभ।।78।।

सॊत सबा विसजजवत हो गई सबी श्रोतागण अऩने धाभ को चरे गमे। इस प्रकाय ननत्म सबी सयु सॊत, ऻान गॊगा भें स्नान कयत ेऔय श्री शिि जी के चयणों भें प्रणाभ कयत ेथे।

6 – साॊखम तत्व पववेचना

दो0- अधग्रभ हदवस सतसॊग भहॊ फोरी मशवा बफचाय।

जीव जीवनभकु्त होहहहॊ कहहु नाथ सोइ साय।।79।।

अगरे ददन सतसॊग भें ऩािवती जी विचाय कयके फोर कक हे स्िाभी जीि जजससे जीिन्भतुत होता है िह साय तत्ि कहो।

दो0- सो अभयतत्व कहहु भोहह जहॊ नहहॊ ब्माऩेहीॊ कार।

सो अपवनाशी सत्म का कयहु गान जगऩार।।80।।

भझुसे िह अभयतत्ि कहो जहाॊ कार नह ॊ जा सकें उसी अविनासी सत्म का हे जग प्रनतऩार िणवन कयो।

चौ0- तफ भहादेव मशवानी सॊगा । फहाने राग ऻान शधुच गॊगा।। तफ भहादेव हरय गणु गाई । शान्त सबा मह साॊखम सनुाई।।1।।

तफ भहादेि ऩािवती के साथ ऩयभ ऩािन ऻान गॊगा फहाने रगे। तफ भहादेि जी ने श्रीहरय का गणुगान कयके िान्त सबा भें मह साॊख्म ऻान सनुामा।

चौ0- फोरे मशव भोऺ ऩदी सनुाऊॊ । सनुो उभा अभयतत्व फयसाऊॊ ।।

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भोऺ सभ शे्रम ऩद नहह दजूा । ऩयभसॊत भनुनजन मह ऩजूा।।2।।

श्री शिि बगिान फोरे कक अफ भैं भोऺ ऩदद सनुाता हूॉ औय अभतृ तत्ि की फयसात कयता हूॉ। उभा सनुो ! भोऺ से शे्रष्ठ दसूया कोई ऩद नह है, ऩयभसॊतों ने इसी को ध्मामा है।

चौ0- नहहॊ तहाॊ याज्म भतृ्म ुकारा । अपवनाशी ऩद अरग ननयारा।। जनभ भयण जया दखु नाहीॊ । सयुत न्हाम अमभयस भाहीॊ।।3।।

िहाॉ भतृ्म ुऔय कार का साम्राज्म नह ॊ है। मह अरग ह ननयारा अविनासी ऩद है। इसभें जन्भ भयण िदृ्धािस्था औय विऩजत्तमा नह ॊ है िहाॉ सयुनत अभतृ ऩीती है औय उसभें स्नान कयती है।

चौ0- दीऩ जये जनन जाई अॊधेया । नासत अॊध जफ ऻान सवेया।। भढू कूऩ जर रणख हयषावा । पवऻ कूऩ तमर वस्त ुरखावा।।4।।

द ऩक के जर जाने से जैसे अॊधेया चरा जाता है उसी प्रकाय जफ इस ऻान का सिेया हो जाता है तो अॊधकाय रूऩी अऻान का विनास हो जाता है।

दो0- ब्मोभहहॊ ज्मोनत पगण अपऩ जनभ भयण सफ ऩाम।

“होयाभ” चयाचय न कोऊ सदेह अभय हुई जाम।।81।। आकास भें नऺत्र शसताये चन्र समूव बी जन्भ भयण को सबी प्रातत होत ेहैं।

श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक चयाचय जगद भें कोई ऐसा नह ॊ है जो देह सदहत अभय हो जामे।

दो0- सयुत शब्द दनुत धाय चहढ कयहहॊ गभन सचखॊड।

पवजम कार ऩहॉ जे करय सो जन अभय अखॊड।।82।।

ऩयन्त ुसयुनत िब्द औय ज्मोनतधाया ऩय चढकय सचिॊड भे गभन कयता हुआ जो मोगी सॊत कार ऩय विजम कय रेता है िह भानि अिॊड औय अभय हैं।

चौ0- भोष से शे्रष्ठ तत्व नहहॊ कोई । ऻानी सॊत तहॉ सयुत सभोई।। पवयॊधच रधग असथावय प्रानी । अभयऻान बफना जग हानी।।1।।

भोऺ से शे्रष्ठ तत्ि नह ॊ है। ऻानी जन उसी भें अऩनी सयुनत को रगात ेहैं। ब्रह्भा से रेकय स्थािय प्राखणमों तक सबी की अभयऻान के बफना सॊसाय भें फडी हानन हो यह है।

चौ0- अस को जीव नहहॊ जग भाहीॊ । रोक कयभ करय मभहह रॊघाहीॊ।। कभपन पर ननश्चम पर दावा । बोग बफना नहहॊ कदा नसावा।।2।।

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सॊसाय भें ऐसा कोई बी प्राणी नह ॊ है जो रोक (दनुनमा) के कभों को कयता हुआ मभयाज्म को राॊघ जामे। कभों का पर ननजश्चत बोगना ऩडता है, जो कक बोगे बफना कबी बी नष्ट नह ॊ होत।े

चौ0- सदगरु आमस ुपवधध पवधाना । अभतृऩद मनुत दीऺा ऩाना।। तत्वदयसी सदगरु की सयना । भोऺ गभन ऩरुषायथ कयना।।3।।

सदगरुुदेि की आऻा विधध विधान से अभतृ ऩद के मोग के शरमे द ऺा प्रातत कये। औय तत्िदिी सदगरुु बगिान की ियण भें भोऺ मात्रा के शरमे ऩरुुषाथव कयना चादहमे।

चौ0- भोऺ ऻान जग दोउ प्रकाया । साॊखम अरू मोग श्रीहरय उच्चाया।। ऩच्चीस तत्व सऻुान साॊखम को । ताभॊह ऩयभतत्व आतभ को।।4।।

सॊसाय भें भोऺ का ऻान दो प्रकाय का है जो श्रीभन्नायामण ने साॊख्म औय मोग कहा है। साॊख्म का ऩच्चीस तत्िों का उत्तभ ऻान है जजनभें आत्भऻान ऩयभतत्ि है।

दो0- फीस अरू चारय तत्व प्रकृनत ऩस्च्चसवाॊ आत्भऻान।

सो सवपबतूान्तआपत्भा स्जस जानन न शषेइ आन।।83।।

चौफीस तत्ि प्रकृनत के हैं ऩच्चीसिाॊ आत्भऻान है। िह सिव बतूान्तयात्भा को जो जानता है उसे जानने के फाद अन्म कुछ िषे नह यहता।

चौ0- आत्भ तत्व ही ऩरुष कहावा । जास ुसकर तत्व उद्भावा।। नय ननवासधाभ नायामण । उत्ऩस्त्त धथनत जग ऩयरम कायण।।1।।

आत्भतत्ि ह ऩयभ ऩरुुष कहराता है जजससे सबी तत्िों की उत्ऩजत्त होती है मह नय (ऩरुुष) जजस धाभ भें ननिास कयता है िह नायामण है। जो जगत की उत्ऩजत्त जस्थनत औय प्ररम का कायण है।

चौ0- ऩयात्ऩय अव्मक्त ज्मोनत ननयाया । यपव सन हरय ऩयभतत्व उच्चाया।। सो ऩयब्रह्भ स्वरूऩ पऩछाने । सो sहभ ्अस्स्भ रूऩ रखाने।।2।। ऩयात्ऩय अव्मतत (ननयाकाय) ननयारा ज्मोनत स्िरूऩ ऩयभतत्ि को श्रीहरय ने

समूव के साभने कहा था। उसी ऩयब्रह्भ स्िरूऩ की ऩहचान कयो। औय “िह भैं हूॉ िह तभु हो “ इस सोSभजस्भ स्िरूऩ का साऺात्काय कयो।

चौ0- आतभऻान प्राप्त कय कोई । अभरयत ऩाम अभय जन सोई।। आतभ ऻानी ऩाऩ न ब्माऩ ू। भेटहहॊ जनभ भयण सॊताऩ।ू।3।।

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जो व्मजतत आत्भऻान को प्रातत कय रेता है िह अभतृ प्रातत कयके अभय हो जाता है। आत्भऻानी को ऩाऩ नह ॊ व्मातत।े िे तो अऩने जनभ भयण का दिु भेट रेत ेहैं।

चौ0- इह रोक बतू सभदुामा । उतऩस्त्त स्स्थनत ऩयरम ऩामा।। अऺयातीत ऩयभ ऩद ऩावन । ननयगणु देस ऩयभहॊस जावन।।4।।

इस भतृ रोक भें सभस्त चयाचय बतूगण उत्ऩजत्त जस्थनत औय विनास को ऩात ेहै। ऩािन ऩयभ रोक तो अऺयातीत है उस ननगुवण देस भें तो ऩयभहॊसात्भा ह जाती है।

दो0- ननजात्भ तीयथ तस्ज मशवा जे अन्म तीयथ जाम। सो अऻानी भॊदभनत भणण तस्ज काॊच ही ऩाम।।84।।

इसशरमे हे ऩािवती अऩनी आत्भा के तीथव को त्मागकय जो अन्म तीथों भें जाता है िह अऻानी भॊदफवुद्ध भखण को त्मागकय काॊच को गहृण कयता है।

चौ0- भन फच कृनत सभुनत स्जन्ह होई । बतूहहॊ प्रनत न ऩाऩ करय सोई।। तद ननअॊहकाय बम शोकातीता । सो जन ब्रह्भस्वरूऩ ऩनुीता।।1।। जजनकी अऩने भन िचन औय कभों भें सभुनत है औय िह ककसी प्राणी के

प्रनत ऩाऩ नह ॊ कयता। तफ िह ननयहॊकाय बम औय िोक से ऩये ऩयभ ऩािन ब्रह्भस्िरूऩ हो जाता है।

चौ0- नीॊदा पवनती सभयस बावा । सो जन ऩणूपब्रह्भ ्ऩद ऩावा।। सनुहु सभुणुख भभ अभतृ वाचा । आत्भऻान बफन ुभोष न साॊचा।।2।।

जो नन ॊदा औय स्तनुत भें सभान बाि िारा है िह व्मजतत ऩणूव ब्रह्भ के ऩद को ऩाता है। हे सभुखुि भेये अभतृ िचन को सनुो ! आत्भऻान के बफना साॊचा भोऺ नह है।

चौ0- शोक सहस्त्र बमथान शतानी । ऩॊडडत भकु्त भढू पवकरानी।। धनऺम भीत देह अवसाई । हाम हाम कहह भढू ऩीयाई।।3।।

ऩॊडडत जन हजायों िोक औय सैंकडो बम के घाटों से गजुयता हुआ भतुत हो जाता है। जफकक भिूव उसभें व्माकुर हो जाता है। औय धन के नष्ट हो जाने तथा वप्रमजनों के देहान्त से हाम हाम कहता हुआ भिूव व्मजतत ऩीडडत हो जाता है।

चौ0- पप्रम बफमोग अपप्रम सॊमोगा । ककहह कय ऻानी ऩीय न बोगा।। जहॊ आशस्क्त दोष तहॉ देखी । वयैागाधाय पवयक्त पवशखेी।।4।।

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वप्रम िस्त ुके विमोग भें औय अवप्रम के सॊमोग भें ऻानिान व्मजतत ककसी की बी ऩीडा नह ॊ बोगता। जहाॊ िह इनभें आसजतत का दोष देिता है िहाॊ िह वििषे ियैाग्म द्िाया वियतत हो जाता है।

दो0- मस ॊधु फीच फहु काष्ठ मथा मभरन औय अरगाव।

“होयाभ” तीम सतु भीत जन सदा सभागभ ऩाव।।85।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक जजस प्रकाय सभरु भें फहुत सी रकडडमाॊ शभर

जाती है औय ऩनु् अरग अरग हो जाती है उसी प्रकाय स्त्री ऩतु्र तथा वप्रमजनों का सभागभ शभरता यहता है।

चौ0- अऻात घाटस ुचयाचय आवा । ऩनुन अऻातहहॊ घाट सभावा।। अस समुोग पवमोग प्रबाऊ । ऻानी न ऩीडडत धचत्त हयसाऊ।।1।।

प्राणी अऻात घाट से महाॊ आत ेहै कपय अऻात घाट को चरे जात ेहैं। ऐसा ह सॊमोग विमोग का प्रबाि है। ऻानीजन इसभें ऩीडडत नह ॊ होत ेउनका धचत्त प्रसन्न यहता है।

चौ0- सयुऩनत ईन्र सयुगसखु बोगा । तहवाॊ दखु अपऩ आवहहॊ सॊमोगा।। ननत्म धथय सखु दखु कहु नाहीॊ । सभम ऩये सफ आवहहॊ जाहीॊ।।2।।

देियाज ईन्र स्िगव सिु बोगत ेहैं िहाॊ बी दिुों का सॊमोग हो जाता है सिु दिु कह ॊ बी सदा जस्थय नह यहत।े सभम अनसुाय सफ आत ेऔय जात ेयहत ेहैं।

चौ0- चारय सभनु्र भेखरा स्जहह के । धयाजमी नहहॊ भन सखु नतहह के।। इक ऺत्र याज्म कयहहॊ जे यावा । ताको ननस्ज इकयाष्र कहावा।।3।।

जजनकी चायों सभनु्र तक सीभाऐॊ हैं। ऩथृ्िी ऩय विजम ऩा चुके हैं। उनके बी भन को सिु नह है। जो याजा एक ऺत्र याज्म कयता है उसका उसभें अऩना एक ह याष्र कहराता है।

चौ0- याष्र भाहीॊ नतष नगयी ऐका । ताभॊह नतहह बवन इक टेका।। एक ही कऺ नतष गहृ भाहीॊ । कऺ भाॊझ शमैा इक ऩाहीॊ।।4।।

उस याष्र भें उसका एक ह नगय है। उस नगय भें उसका एक घय भें ननिास है। उस घय भें बी उसका एक ह कऺ है औय उस कऺ भें बी एक ह िमैा रगी होती है।

दो0- इस्न्रमाॊ दयुफर जात ुतहॉ ऩर ऩर आम ुपवघटाम।

भतृ्म ुसफहहॊ मसय ऩय खडी “होयाभ” कहुॊ सखु नाम।।86।।

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िहाॊ बी इजन्रमाॉ दफुवर होती है ऩर ऩर भें आम ुघटती जाती है। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक भतृ्म ुतो सफके शसय ऩय िडी है इसशरमे सिु कह ॊ बी नह ॊ है।

चौ0- फझूत मशवा हे बवयामा । जया भतृ्म ुकक ननवनृत उऩामा।। फोरे हय तऩ आत्भ ऻाना । मोगसाध्म सो ऩीय रॊघाना।।1।।

शििा ने ऩछूा कक हे बि स्िाभी ! जया औय भतृ्म ुसे छुटकाया ऩाने का तमा उऩाम है ? तफ भहादेि फोरे कक आत्भऻान तऩस्मा औय मोग साधना से िह ऩीडा राॊघी जा सकती है।

चौ0- सहस्त्र तऩ भख तीयथ दाना । तदपऩ न जया भतृ्म ुपवनसाना।। कार ऩाश फाहहय कोउ नाहीॊ । जफ रधग सयुत ननजरूऩ न ऩाहीॊ।।2।।

सहस्त्र तऩ, मऻ, तीथव, औय दान होने ऩय बी जया औय भतृ्म ुका नास नह ॊ होता तमोंकक कार की ऩकड से फाहय कोई नह ॊ है ; जफ तक कक सयुनत अऩने भरू स्िरूऩ को प्रातत नह ॊ कय रेती।

चौ0- अचयज ननत भयहहॊ जन नाना । देणख पवयाग धचत नहीॊ आना।। नासवान जग कक भभतहेा । देखत छाडड जात ुसफ नेहा।।3।।

आश्चमव है कक प्राणी ननत्म भयत ेहैं कपय बी उन्हे देिकय धचत्त भें ियैाग्म नह ॊ आता। इस नासिान सॊसाय से तमा भोह है ? महाॊ देित ेह देित ेसफ प्राणी सफसे नेहा छोड कय चरे जात ेहैं।

चौ0- कहहुॊ मशवा हौं अनबुव साया । सत्म हरय बजन भषृा सॊसाया।। तात ेउदासीन यहहु जग भाहीॊ । ननजातभ यभण भॊह धचत्त राहीॊ।।4।। उभा ! भैं साया अनबुि कहता हूॉ साॊचा एक श्रीहरय का बजन ह है, सॊसाय

तो शभथ्मा है। इसशरमे सॊसाय भें उदासीन यहो औय अऩनी आत्भा भें धचत्त रगाकय यभण कयो।

दो0- “होयाभदेव” भामा सदा जीव ब्रह्भ के फीच। ब्रह्भ खीॊचन ननस्ज ओय हैं भामा बव छर खीॊच।।87।।

श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक जीि औय ब्रह्भ के फीच भें सदा भामा यहती है ऩयन्त ुब्रह्भ अऩनी तयप िीॊचता है औय भामा जग प्रऩॊच भें िीॊचती है।

चौ0- ऩाॊच अरू फीस तत्व को ऻाना । साॊखम मोग सफ शास्त्र फखाना।। भरू नीमनत अव्मक्त कहाई । जास ुसो भहतत्व प्रगटाई।।1।।

ऩच्चीस तत्िों का ऻान ह फस िास्त्रों ने साॊख्म फतामा है। भरू प्रकृनत अव्मतत कहराती है जजसभें से िह भहतत्ि को प्रगट कयती है।

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चौ0- तास ुउऩस्ज चौफीस ुककरयमाहीॊ । जे जानन सो पवद ुकहाहीॊ।। ऩॊच्चीसवाॊ तत्व आत्भ जानो । सफ कायण कय कायण भानो।।2।।

उसी से चौफीस तत्िों की कक्रमामें उत्ऩन्न होती है जो मह जानता है िह विद्िान कहराता है। ऩच्चीसिाॊ तत्ि आत्भा को जानों औय इसे ह सफ कायणों का कायण सभझो।

चौ0- उध्र्वरोक सतगणु ऩहुॊचावा । भध्मरोक यजगणु प्रदावा।। अधौगनत गभन तभोगणु कायन । बत्रगणु जार प्राकयनत धायन।।3।।

सतोगणु उध्र्िरोकों भें ऩहुॉचा है औय यजोगणु भध्म रोको को प्रदान कयाता है। औय अधौगनत भें जाने का कायण तभोगणु होता है। इन बत्रगणुों को प्रकृनत धायण कयती है।

चौ0- भहत्त भहत्ता भेधा प्राना । अहॊकाय ताऩय फरवाना।। साकाय सषृ्टी कायन ऩॊचबतूा । जगद चयाचय फॊध्मो कभपसतूा।।4।।

भहतत्ि की भदहभा से फवुद्ध औय प्राण उत्ऩन्न होत ेहै औय उनके ऊऩय फशरष्ठ अहॊकाय उत्ऩन्न होता है। साकाय सषृ्ट का कायण ऩाॊच बतू है, जजनसे चयाचय प्राणी अऩने कभवसतू्र भें फॊधे हुिे हैं।

दो0- ईच्छा द्वेष सखु दखु देह सकर नसैगप पवकाय।

“होयाभ” ऩयात्ऩय आत्भा भन वाणी अगम्म अऩाय।।88।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक िय य के सिु दिु ईच्छा द्िेष मे सफ

प्राकृनतक विकाय हैं। इन सफसे ऩये आत्भा है जो भन िाणी से अगम्म औय अऩाय है।

दो0- बत्रगणु प्रकृनत मबन्न मशवे अन्म न कताप कोम।

“होयाभ” सवप पवधध कभपयत ऻानी न फॊधन होम।।89।। बत्रगणु प्रकृनत से शबन्न हे शििे ! कोई औय कताव नह ॊ है। श्री होयाभदेि जी

कहत ेहैं कक सिव प्रकाय से कभव कयता हुआ बी ऻानी को कोई इसका फॊधन नह ॊ होता।

दो0- मशवभखु साॊखम तत्व सनुन सॊत सभाज हयषाम।

गमऊ कहइ सफ ननज गहृ नभ् मशवो नभ् मशवाम।।90।।

श्री शिि बगिान के भिु से साॊख्म तत्ि सनुकय सॊत सभाज हवषवत हुआ औय सफ अऩने अऩने गहृ को नभ् शििे नभ् शििाम कहत ेहुमे चरे गमे।

इनत श्रीभद् अभयकथा मशव मशवा सम्फादे (सयुत वेद) द्पवतीम ऩडाव ्

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।। श्रीभद् अभयकथा भहाकाव्म ।।

(सुयत िेद) (श्री शिि ऩिवती सम्फाद)

द्वितीम िण्ड

अभतृ ऩदद (अभयनाथ गहुा गोष्ठी) 7 – जीवात्भ तत्व

दो0- सवुावसय देणख नायदभनुन इकान्त मशवा हढॊग जाम।

ऩनु् अभयत्व प्रसॊग की भन स्जऻासा राम।।91।।

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नायद भनुन ने उत्तभ अिसय देिकय एकान्त भें बगिती शििा के ऩास जाकय ऩनु् अभयतत्ि की उनके भन भें जजऻासा जगा द ।

चौ0- वनपवहाय गमेऊ मशव जफहहॊ । आमहु नायद मशवा हढॊग तफहहॊ।। धगरय कैराश मशवा हहत ुजानी । करय प्रनाभ ननज सीख फखानी।।1।।

जफ शिििॊकय जी िनविहाय के शरमे गमे हुिे थे तफ ऩािवती के ऩास नायद भनुन आ गमे औय कैराि ऩिवत ऩय शििानी का दहत जानकय प्रणाभ कयके उनसे अऩनी ऩयाभिव का िणवन ककमा कक –

चौ0- भन अचयज भाता मह भोया । रूण्ड भार मशव काहे पऩहोया।। तभु मह बेद जानन नहहॊ भाता । जानहु सो सफ मशव पवऻाता।।2।।

हे भाता ! भेये भन भें मह आश्चमव है कक बोरेनाथ (गरे भ)े रूण्डों की भारा ककस शरमे धायण ककमे यहत ेहै? हे भाता ! तभु तो मह बेद नह ॊ जानती हो। तभु इस बेद को जानो तमोंकक इस साये बेद के शिि जी ऻाता हैं।

चौ0- अस कहह नायद भनुन गमऊ । बवानी भन अनत सकुधचत बमऊ।। नीरकॊ ठ जफ तहॉवाॊ आई । हठ कय मशवा फणूझ सकुचाई।।3।। ऐसा कहकय नायद भनुन तो चरे गमे। औय ऩािवती का भन फडा ह सकुॊ धचत

हो गमा। कपय जफ िहाॊ श्री शिििॊकय जी आ गमे तो हठ ऩिूवक ऩािवती जी सकुचाकय फझूने रगी कक –

चौ0- कहऊ नाथ मह रूण्डन भारा । कायन कवन तभु कॊ ठ पऩहारा।। फाय फाय मशव रधग टयकानी । फझुत ऩनुन ऩनुन हठवत बवानी।।4।।

हे स्िाभी ! भझुे फताओ मह रूण्डों की भारा आऩने अऩने गरे भें ककस कायण से धायण की हुई है ? तफ शिि जी फाय फाय इस फात को टारने रगे ऩयन्त ुहठ ऩिूवक ऩािवती फाय फाय ऩछूने रगी।

दो0- अटर मशवा हठ प्रफर जफ न सकइ मशव टाय।

फोरे बवानी बेद सनु ुमह रूण्ड तोय कऩाय।।92।।

जफ श्री शिि जी ऩािवती की अटर औय प्रफर हठ को नह ॊ टार सके तो तफ फोरे कक ऩािवती सनुो ! मह सफ रूण्ड तयेे ह कऩार (शसय) हैं।

चौ0- अज रधग देह धारय तभु जेत े। सो सफ रूण्डभार भभ तते।े। जनभ भयण तभु ऩनुन ऩनुन ऩावा । हौं अपवनाशी अभय कहावा।।1।।

आज तक तभुने जजतने िय य धायण ककमे हैं िे सफ उतने ह भेये रूण्डभार हैं। तभु तो फायम्फाय जनभ भयण प्रातत कयती हो औय भैं अविनािी हूॊ अभय कहराता हूॉ।

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चौ0- अभय बेद तभु नाहहॊ पवजानी । तात ेजनभ भयण गनत सानी।। तफ मशवा मह फचन उच्चायी । कहहु अभय बेद हहतकायी।।2।।

औय तभु अभय बेद नह ॊ जानती हो इसशरमे जनभ भयण चक्र भें पॊ सती यहती हो। तफ ऩािवती मह फचन फोर कक िह दहतकाय अभय बेद भझुसे कहो।

चौ0- ननयॊजन ठाभ खौज मशव रागे । शषेनाग झीर अहह त्मागे।। भहागनुस धगरय तजे रम्फोदय । ऩॊचतयनी ऩॊचतत्व पवछोकय।।3।।

तफ श्री शिि जी ननजवनस्थान की िोज कयने रगे उन्होने िषेनाग झीर ऩय सऩों को त्माग ददमा। भहागनुस ऩिवत ऩय गणेि जी को छोड ददमा तथा ऩॊचतयनी भें ऩॊचतत्िों का त्माग कय ददमा।

चौ0- सवप तस्जत गए अभय गहुामा । नतम सॊग ऩेहठ इकेव रबुामा।। तहॉ मशव तद अस भामा पेयी । जीव जन्त ुबाधगऊ तज देयी।।4।।

इस प्रकाय सफ कुछ छोड कय अभय गपुा भें चरे गमे। िहाॊ रबुामभान एकान्त भें ऩजत्न के साथ फठै गमे। तफ शिि जी ने ऐसी भामा पेय कक सबी जीि जन्त ुअविरम्फ बाग कय चरे गमे। ताकक कोई औय न सनु सके इसशरमे श्री शिि ने काराजग्न को प्रगट कयके सबी जीिो को िहाॊ से बगा ददमा।

दो0- तफ अवनीश श्री मशव कहह मह सआुतभ पवऻान।

“होयाभदेव” फयनऊ सोई सनुो धरय धचत ध्मान।।93।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक हे अिनीि श्री शिि जी ने जो मह उत्तभ

आत्भ विऻान कहा है िह भैं िणवन कयता हूॉ धचत भें ध्मान रगाकय सनुो।

दो0- आत्भतत्व न सहज सरुब गरु बफना नहहॊ ऻान।

ननज भरू बफसारय आत्भा नघरय छर कार भहान।।94।।

आत्भतत्ि सहज ह सरुब नह ॊ होता औय गरुु बफना इसका ऻान नह ॊ होता। मह आत्भा अऩना भरू स्िरूऩ बरूकय भहान कार प्रऩॊच भें नघय गई है।

दो0- मशव फोरे हे सभुणुख तभु अनत पप्रम भोम।

आत्भ तत्व फयनउ सकर दयुाव न याखुॊ कोम।।95।।

श्री शिि फोरे कक हे सभुखुि ! तभु भझुे फहुत वप्रम हो इसशरमे साया आत्भ तत्ि कहता हूॉ तभु से कोई नछऩाि नह ॊ यिूॊगा।

श्रो0- धभापधभप ऩाय ऩयभतत्व इदभात्भ भकु्त सवपदा।

आत्भतीथप ऻात्वा शषे् ऻेमत्व नान्म बवेत।।10।।

धभव औय अधभो से ऩये ऩयभतत्ि मह आत्भा सिवदा भतुत है। इस आत्भ तीथव को जानकय जानने मोग्म दसूया तत्ि कुछ बी नह िषे यहता।

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श्रोक0- सवपमभदॊ जनादपनो पवश्व व्माप्तॊ नान्मत्तत।

सो Sहॊ सचत्वॊ स च सवपबतूान्तयात्भा।।1।। मह सफ कुछ विश्िव्मातत तत्ि ह श्रीहरय (ऩणूव ऩयभेश्िय) है इससे ऩये कुछ

नह है िह भैं हूॉ िह त ूहै औय िह सभस्त बतूों की अन्तयात्भा है।

छ0- बमऊ फन्दी भामा भाॊझ भ्रवुगहुा स्स्थत भहा ज्मोनत स्वरूऩॊ। सवपत्र व्माप्त शौमपशारी अऺम अजय अभय शास्न्त रूऩॊ।।

जानन अनाहद जीवात्भ तत्वत याजमोगी भनुनजन ऩावहीॊ।

“होयाभ” आत्भा अगाढ उदधध बफन ुऻेम न भोऺ सभावहीॊ।।7।। भ्रिु भध्म केन्र जस्थत मह ज्मोनत स्िरूऩ आत्भा भामा के ऩदे भें यहकय

सिवत्र व्मातत, िौमविार अजय अभय अऺम औय िान्तस्िरूऩ है। इस अनादद जीिात्भ तत्ि को जानकय याजमोगी ऋवष भनुन जन प्रातत कयत ेहैं। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक आत्भा अथाह सागय है जजसे जाने बफना कोई भोऺ भें नह ॊ सभाता।

दो0- कफहु जनभ नहहॊ आत्भा कफहु न भतृ्म ुप्राप्त।

फधातीत मशव ऩयुातनन अगम्म शाश्वत व्माप्त।।96।।

आत्भा कबी जन्भ नह ॊ रेती औय न कबी भतृ्म ुको प्रातत होती है। मह िधातीत कल्माण स्िरूऩ अनादद अगम्म िाश्ित औय व्मातत है।

दो0- “होयाभ” न शस्त्र छेदहहॊ गरा सकइ नहहॊ नीय। जया सकइ नाहीॊ अनर कफहु न शोष्म सभीय।।97।।

श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक इसको िस्त्र छेद नह ॊ सकते, जर गरा नह ॊ सकता, अजग्न जरा नह ॊ सकती, औय िाम ुसिुा नह ॊ सकती।

दो0- मथा तजई जीणप फसन नय ऩट नतून धारय।

धायहहॊ नतून देह देही जीणप देह उतारय।।98।।

जजस प्रकाय दफुवर िस्त्र को त्मागकय भानि नमे िस्त्र धायण कयता है उसी प्रकाय जीि ऩयुाने जीणव देह को त्माग कय नमे देह को धायण कयता है।

दो0- सनुो मशवा अफ तमु्हहह सन आत्भ तत्व पवऻान।

कस आत्भा जीवा बई हौं कयहुॊ सत्म फखान।।99।।

शििा सनुो ! अफ भैं तमु्हाये सभऺ आत्भ तत्ि के विऻान को कक ककस प्रकाय आत्भा जीि हो गई है ? उस सत्म का भैं फिान कयता हूॉ।

चौ0- यचना षट्भॊडरमतु ज्मोनतभपम । जीव ऩरयभाऩ अॊगषु्ठ भात्र भम।। भॊडर सफ इक तें अधधकाई । ऩयतस्थऩयत प्माज की नाई।।1।।

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मह जीिात्भा छ् ज्मोनतभवम भॊडरों से मतुत यचना िारा औय अॊगषु्ठ भात्र ऩरयभाऩ िारा है। प्रत्मेक भॊडर एक से एक फढकय है जो तमाज की तयह एक के ऊऩय एक ऩतव सी चढे हुमे है।

चौ0- प्रथभ वाह्म ब्रह्भ भॊडर ज्मोनत । गगन सदृश अथाम पवबोनत।। ब्रह्भ भॊडर गबपस्थ भॊडर भरूा । ऩया प्राकृनत अॊश अनकूरा।।2।।

प्रथभ िाह्म ब्रह्भ भॊडर ज्मोनत है जो आकास के सदृि अथाह विबनूत रूऩ है। इस ब्रह्भ भॊडर के गबव भें (बीतय) भरू भॊडर है जो ऩया प्रकृनत का अॊि है औय उसके अनकूुर है।

चौ0- ऩीतवयण व्माऩक बत्रगणुानत । मर ॊग देह जीवात्भ गहृणानत।। इह भॊडर भॊह भनसाई अॊशा । ऻान कयभ दनुत इन्री दसाॊशा।।3।।

मह ऩीरे िणव का है जजसभें बत्रगणु व्मातत है मह जीिात्भा की शर ॊग देह है जजसे िह धायण कयती है। इस प्रकाय प्रकृनत भॊडर के बीतय भानस अॊि यहता है तथा ऻान कभव औय दसो इजन्रमों की अॊि ज्मोनत है।

चौ0- प्राकृनत भॊडर भाॊझ भहाना । तीसय सकू्ष्भ भॊडर प्राना।। प्राण मह सफ ुशस्क्तन्ह सयोता । जेहह बफन ुजगद अचेतन सोता।।4।।

प्रकृनत भॊडर के गबव भें भहान तीसया सकू्ष्भ प्राण भॊडर है। मह प्राण सभस्त िजततमों का स्रोत है जजसके बफना साया जगत अचेतन होकय सोमा यहता है।

दो0- प्राण प्रकृनत भॊडर भॊह भेधा तत्व असथान।

“होयाभ” आत्भ सॊमोग से अहहहॊ प्राण चेतान।।100।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक प्राण औय प्रकृनत भॊडरों के फीच भें फवुद्ध तत्ि

का स्थान है औय आत्भा के चेतन्म सॊमोग से ह प्राण चेतन्म होता है।

चौ0- प्राण भॊडर भॊह नीर हया सा । चतथुप भॊडर अहॊकाय ऩयासा।। सत यज तभ गणु मथा प्रबावा । नतन्ह सफ ज्मोनत अहभ प्रगटावा।।1।। प्राण भॊडर भें नीरा हया यॊग जैसा चौथा अहॊकाय भॊडर ऩडा हुआ है सत यज

तभ गणु का जैसा प्रबाि होता है। उन्ह की सफ ज्मोनतमों भें अहॊकाय प्रगट होता है।

चौ0- अहॊकाय गबप भॊह भॊडर ऩॊचभ । धचतभॊडर सवपसॊकरऩ सऺभ।। ऩायदशी शकु्रा धचत्त फखाना । सत यज तभ गणु प्रबाव ुनाना।।2।।

अहॊकाय भॊडर के गबव भें ऩाॊचिा भॊडर धचत्त भॊडर है जो सिव सॊकल्ऩो से सऺभ है धचत्त ऩायदिी ितुर िणव का कहा गमा है जजस ऩय सत यज औय तभ गणुों के नाना प्रबाि होत ेयहत ेहैं।

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चौ0- षष्टभ भॊडर धचत्त के भाहीॊ । ऩयदाय कणक सभ आत्भ साॊहीॊ।। षठभॊडरमनुत आतभा । बई जीव तस्ज होहहॊ ऩयभात्भा।।3।।

धचत्र के बीतय छठा भॊडर जो ऩयदाय के कण के सभान है स्िमम्ब ूआत्भा का भॊडर है। इस प्रकाय छ् भॊडरों की मनुत (जोड) से मह आत्भा जीिात्भा फन गई है इन सफको त्मागने ऩय ऩयभात्भा हो जाती है।

चौ0- एहह भॊडर सप्तकोष शयीया । सयुनत फॊधन अवरोकहहॊ धीया।। ताभॊह षोड्सचक्र पवशारा । सफ ऩॉह भामा याखहहॊ तारा।।4।।

इन्ह भॊडरों के सात कोष िय य हैं जजनभें फवुद्धभान जन सयुनत का फॊधन देिा कयत ेहैं। उनभें ह सोरह चक्र वििार है। उन सफ ऩय भामा तारा डारे यिती है।

दो0- सात शयीय षोड्स चक्र जफ रधग छूटत नाम।

“होयाभ” कहे सॊतो सनुो जीव न ननजघय जाम।।101।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक जफ तक सात िय य औय उनभें जस्थत सोरह

चक्र नह छूटत,े सॊतो सनुो ! तफ तक जीि ननज घय नह ॊ जाता।

8 – भतृ्मकुार गनत

दो0- फोरे मशव हे बगवती अफ कक करूॊ फखान।।

भनोहय दृष्म झीर तट खग रौहटउ फसेया आन।।102।।

श्री शिििॊकय जी फोरे कक हे बगिती ! अफ फताओ भैं तमा िणवन करूॉ ? िहाॉ झीर के ककनाये ऩक्षऺमों का भनोहय दृष्म है ऩऺी फसेये के शरमे िाऩस आ गमे हैं।

दो0- तद वहदऊ ऩायफती को गनत भतृ्मकुार।

तन ुतजत जीव व्माकुर ब ैकहहु बेद प्रनतऩार।।103।।

तफ ऩािवती फोर कक भतृ्म ुकार की तमा प्रककमा है ? हे ऩारनहाय जीि देह त्मागत ेसभम व्माकुर होता है इसका बेद सभझाओॊ।

दो0- फोरे मशव भतृ्म ुननसॊक फधच ऩावहहॊ नहहॊ कोम।

ऻानी तजत तन ुहयषइ भॊदभनत ऩीडडत होम।।104।।

शिि फोरे कक भतृ्म ुननसॊक है उससे कोई बी नह ॊ फचा हुआ है। कपय बी ऻानी जन देह सहषव त्माग देत ेहै औय भिूवजन फहुत ऩीडडत होत ेहैं।

चौ0- तजहहॊ जीव जफ बौनतक देहा । सोइ कार कार नतहह गेहा।।

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अन्तहहॊ बाव जेहहॊ देह तजावा । ताॊही भाहीॊ रम गनत गभनावा।।1।।

जीि जफ स्थूर देह त्मागता है उसी सभम उसे कार ग्रस रेता है। अॊनतभ सभम जो बी बाि भें होकय देह त्मागता है िह उसी भें रम हुआ उसी गनत भें मात्रा कयता है।

चौ0- कुवासा मनुतसॊग कुगनत ऩावा । सदवासा यत सदगनत जावा।। आवत भतृ्मकुार जफ घेया । होहहहॊ असह्म पवऩद कय डयेा।।2।।

फयु िासनाओॊ के सॊमोग से दगुवनत प्रातत होती है औय सद्भािना से सद्गनत प्रातत होती है। जफ भतृ्मकुार का नघयाि होता है तफ फडी असहनीम ऩीडा डयेा डारती है।

चौ0- बफच्छुवन सहस्त्र दॊस की ऩीया । ऩाम अऻानी तजत शयीया।। जे जन प्राण वश्म करय रीना । भतृ्मऩुीय सो सफ तज दीना।।3।।

सहस्त्र बफछुओॊ के डॊक भायने जैसी ऩीडा अऻानी जन िय य त्मागत ेसभम बोगत ेहै। औय जजस व्मजतत ने प्राण को िश्म भें कय शरमा होता है िह साय भतृ्म ुऩीडा को छोड चुका होता है।

चौ0- योभ योभ यमभ प्राण शयीया । नख मसख ऩयूण व्माप्त तसीया।। देही ननकट भतृ्म ुजफ आने । अॊग अॊग मसभटत मह प्राने।।4।।

योभ योभ भें प्राण िय य भें यभा हुआ है। औय नि से शििा तक उसका तजे व्मातत यहता है। जीि के भतृ्म ुजफ ननकट आती है तफ मह प्राण अॊग अॊग से शसभटने रगता है।

चौ0- मही णखॊचाव कष्ट कय भरूा । जास ुजीव गहह ऩीय प्रनतकूरा।। मोगी ध्मानी प्राणामाभा । बफना ऩीय तन ुसहज तजाभा।।5।।

प्राण का मह िीॊचाि कष्टों की जड है जजससे जीि प्रनतकूर ऩीडा ऩाता है। प्राणामाभी ध्मानस्थ मोगी बफना ऩीडा ह िय य को सहज ह भें त्माग देता है।

दो0- शन ैशन ैनस नाडी से सन सन णखॊचमाॊ प्रान।

ननस्ष्क्रम इस्न्रमाॊ बई देही यहे नहहॊ बान।।105।।

जफ धीये धीये नसों नाडडमों भें से सन सन कयता हुआ प्राण खिॊचता है। तफ जीि की इजन्रमाॊ ननजष्क्रम हो जाती है औय उसे अऩना कोई बान नह यहता।

चौ0- नमन खुमर दीषत कछु नाहीॊ । जीभ्मा यहे न फोरत जाहीॊ।। कॊ ठरूद्ध भरूयछा तद होवा । शन ैशन ैहृदम गनत खोवा।।1।।

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आॉिे िुशर यहती है ऩयन्त ुकुछ बी नह ॊ द िता, जीभ्मा होत ेहुमे बी फोरा नह ॊ जाता। कॊ ठ अिरूद्ध हो जाता है। तफ उसे भछूाव आ जाती है तमोकक धीये धीये रृदम की गनत सभातत होती जाती है।

चौ0- जीव बफकर तानस गनत सायी । ऩावहहॊ जीव आऩदा बायी।। पऩ ॊड तस्ज प्राण खौऩरय आवा । अऻात शस्क्त तद फॊहद फनावा।।2।।

जीि व्माकुर होता है औय साय तनाि कक्रमा आयम्ब हो जाती है। तफ जीि फडी विऩजत्त ऩाता है। इस प्रकाय जीि वऩ ॊड को छोडकय कऩार भें आता है तफ कोई अऻात िजतत उसे फन्द फना रेती है।

चौ0- भन भेघा ऩनुन बमऊ सचुारू । करयत कभप रणख कोष पवचारू।। अनतकय कभप शबुाशबु जोई । आइ धथयइ सन बाव सभोई।।3।।

भन फवुद्ध ऩनु् सकक्रमािान होत ेहै तफ जीि अऩने ककमे गमे कभों को देिकय उस कोष ऩय विचाय कयता है। उसका जो कभव िबु अथिा अिबु अधधकाॊि होता है जफ िह साभने आकय ठहय जाता है तफ िह उसी भें सभा जाता है।

चौ0- अऻात शस्क्त तद प्राण रूॊ धावा । पऩ ॊड ककहह नछर जीव ननकसावा।। अहभ दसोस्न्र धचत्त भन भेधा । ऩॊच प्राण सफ सॊस तन ुछेधा।।4।।

तफ अऻात िजतत उसके प्राण को अिरूद्ध कय देती है औय स्थूर देह के ककसी बी नछर से जीिात्भा को फाहय ननकार देती है। अहभ धचत्त, भन फवुद्ध औय दसो इजन्रमाॊ ऩाॊच प्राण औय सभस्त सॊस्कायो से मतुत देह का छेदन हो जाता है।

दो0- भतृ्मकुार जे धीय जन समुभयत स्जन्ह स्जन्ह बाव।

तन ुतजत नतन्ह बाव यत अन्तहहॊ तत तत ऩाव।।106।।

भतृ्म ुकार भें जो फवुद्धभान जन जजन जजन बाि का स्भयण कयता हुआ देह त्माग कयता है उसी बाि भें र न िह अन्त भें उसी उसी बाि को प्रातत होता है।

चौ0- ननकसत प्राण जफहहॊ ककहह द्वाया । नासहहॊ ऻान बान नतहह साया।। स्थूर देह तस्ज भयूछा जागे । दीषत धयनन देह ऩरय आगे।।1।।

जफ प्राण ककसी द्िाय से ननकरता है तफ उसका सभस्त ऻान बान नष्ट हो जाता है। कपय जफ स्थूर देह त्माग देने ऩय भयूछा से जागता है। तफ उसे अऩना स्थूर िय य आगे ऩडा हुआ ददिाई देता है।

चौ0- सकू्ष्भ प्राण तन ुघमु्र सभाना । देणख स्थूर प्रगटहहॊ भखु काना।। छाभ सभान यधच मरॊग शयीया । प्राण देह तफ गभन कयीया।।2।।

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सकू्ष्भ प्राण िय य धुिें के सभान है। स्थूर को देि कय उसभें बी भिु कान आदद प्रगट हो जात ेहैं। कपय छामा के सभान शरॊग िय य यचकय जीिात्भा प्राण देह से गभन कयता है।

चौ0- ऩयरोक गभन जीव जफ कयहहॊ । बोनतक डौय ऺम योध न ऩयहहॊ।। षठभॊडर दनुत ऩुॊज मह जीवा । कयभ सॊस सॊग गभन कयीवा।।3।।

जीि जफ ऩयरोक गभन कयता है। उसकी बौनतक देह से डौरय कट जाने से कोई अियोध नह ॊ अडता। इस प्रकाय छ् भण्डरों का ज्मोनतऩुॊज मह जीिात्भा कभव सॊस्कायों के साथ गभन कयता है।

चौ0- कयभकोष ऩवूपजन्भ सॊस्काया । होहहहॊ ऩनुजपनभ तथाकाया।। सदगनत जाइ ससुज्जन ऻानी । बोगहहॊ दयुगनत अधभ अऻानी।।4।।

औय ऩिूव जन्भ के कभव सॊस्कायों से ऩनुजवन्भ उन्ह के अनसुाय ह होता है। सॊतजन विऻानी जन सद्गनत को जात ेहैं औय अधभ अऻानी जन भहादिु बोगत ेहैं।

दो0- प्राणगनत साधक आधीन जे ननत कीन्ह अभ्मास।

प्राण खीॊचन सॊकट देह मोगी के नहहॊ ऩास।।107।।

प्रणों की गनत साधक के आधीन यहती है जजसने कक ननत प्राणामाभाभ्मास ककमा है। प्राणों की खिॊचना से देह सॊकट उस मोगी के ऩास नह ॊ यहता।

चौ0- जन्भ भयण क्रभ तफ रधग रागा । जफ रधग जीव वासा अनयुागा।। वासा फस कयभ सफ होंई । साधन – मोग कयभ ऺम सोई।।1।। जन्भ भयण का क्रभ तफ तक रगा यहता है जफ तक जीि को िासनाओॊ से

प्रेभ है तमोकक िासना के आधीन ह साये कभव होत ेहैं औय मोग साधना से कभव नष्ट होत ेहैं।

चौ0- बफसारय कतापऩन दृष्टा होवा । तद नतहह कयभ जार सफ खोवा।। मोगाभ्मास ससुतसॊग तयणी । प्राणाधीन भनवा फस कयणी।।2।।

इसशरमे कतावऩन को त्मागकय दृष्टा हो जािे तफ उसके कभव जार सबी ऺम हो जात ेहैं। मोगाभ्मास औय ननत्म सतसॊग से तथा प्राणों को आधीन कयने से भन को िॊि भें कये।

चौ0- नाडी शोधन जे ननत कयहीॊ । ताही जीवात्भ उध्र्वगनत फयहीॊ।। नाना नाडी व्माप्त शयीया । सषु्भन शे्रष्ठ स्जहह शौधत धीया।।3।।

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औय जो व्मजतत नाडी का िौधन ननत्म कयत ेहैं उनकी जीिात्भा उच्च गनत को ियण कयती है। इस िय य भें नाना नाडडमाॊ हैं जजनभें सषु्भना शे्रष्ठ है उसे ह विद्िान जन िौधधत कयत ेहैं।

चौ0- शबुगनत हरय सखुभन ठहयाई । स्जहीॊ गभन भोऺ सॊत ऩाई।। तहाॊ ननजात्भ ज्मोनत जगावे । ऩनुन ऩयभेश्वय ज्मोनत सभावे।।4।।

प्रब ुने िबुगनत सषु्भना भें ठहयाई है जजसभें गभन कयने से सॊत जन भोऺ प्रातत कयत ेहैं। इसशरमे िह ॊ ऩय अऩनी आत्भ ज्मोनत को जगािे औय कपय ऩयभेश्िय की ज्मोनत भें सभा जािे।

दो0- मोगाभ्मासी आतभा सखुभन जाइ अॊतकार।

“होयाभ” यपवरोके ऩहुॊच वाऩमस नहहॊ जग जार।।108।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक मोगाभ्मासी आत्भा अन्तकार भें सषु्भना भें

जाकय समूव रोंकों भें ऩहुॊचती है िहाॊ से कपय उसकी इस सॊसाय जार भें िाऩसी नह ॊ होती।

चौ0- प्राणाभ्मास ननऩणु सन्मासी । इस्च्छत द्वाय प्राण ननसकासी।। अगणणत नछर कामा यधच याखै । नऊ दय प्रभखु सॊत जन बाखै।।1।।

प्राणाभ्मास कयने िारा ननऩणु सन्मासी (वियतत भानि) अऩने इजच्छत द्िाय से प्राण को ननकारता है। िय य भें अगखणत नछर यचे हुमे है सॊतो ने उनभें नौ द्िाय प्रभिु कहे हैं।

चौ0- नऊद्वाये कभप प्राण तजेहीॊ । सगुनत कुगनत ऩावत सफ देहीॊ।। दसभद्वाय गोऩ तन भाहीॊ । गरुकृऩा बफन ुऩावत नाहीॊ।।2।।

जो उन नौ द्िायों से कभावनसुाय प्राणों को त्मागत ेहैं िे िबु अिबु गनत को ऩात ेहैं। इस िय य भें दसिाॊद्िाय गतुत होता है। जो गरुु कृऩा के बफना नह ॊ प्रातत होता।

चौ0- सषुभन स्स्थत अगणणत रोका । गभहहॊ सतॊ गहह सतगरु चौका।। ब्रह्भयन्र भॊह सषुभन द्वाया । गभहहॊ सॊत कैवल्म अऩाया।।3।।

सषु्भना भें जस्थत अगखणत रोक हैं जजन्हें सॊत जन सदगरुु के ईिाये से गहृण कयता है। ब्रह्भयन्ध्र भें सषु्भना के द्िाया सॊत अऩाय कैिल्म ऩद भें गभन कयत ेहैं।

चौ0- षोड्स तीयथ सषुभन भाहीॊ । उरहटधाय चहढ ऩावउ ताहीॊ।। जे जे केन्र कयउ धथय प्राना । त ेत ेरोक जीव प्रस्थाना।।4।।

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सषु्भना भें सोरह तीथव (चक्र) है उरदट धाया भें चढकय उन सफको प्रातत कयो। प्राण को जजस जजस केन्र (चक्र) भें जस्थय कयत ेहैं उसी उसी रोक भें जीि प्रस्थान कयता जाता है।

छ0- कहीॊ अस्स्थ चभप घ्राण स्रोत फनन कहुॊ धचत भन भेघा अहभ फने। कहीॊ चऺु अश्रु रूधधय राय तन भाॊही सजृना नसैगप जने।।

अस ननमभपत अभतृ तन ुभाहीॊ ऩायखी कोउ बफयरा गहह।

“होयाभ” ऩाई सो अभतृ स्रोत अगणणत सयु सॊत भोष रहह।।8।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक जैसे िय य भें कह ॊ अजस्थ, चभव, घ्राण स्रोत

फनत ेहै, कह ॊ धचत्त फवुद्ध भन औय अहभ फनत ेहैं औय कह ॊ प्रकृनत चऺु आॊस,ु यतत औय राय की यचना यचती है उसी तयह देह भें अभतृ का ननभावण होता है। जजसे कोई वियरा ह ऩायिी गहृण कयता है। उस अभतृ स्रोत को ऩाकय अगखणत देिता भनुन औय सॊतों ने भोऺ प्रातत कय र है।

दो0- सषु्भन शोधन सॊत कयत अन्तहहॊ अभतृ गत प्रान।

कऩाय गभन ननकमस मशवे कयहहॊ भोऺ प्रस्थान।।109।।

शििे ! सॊत जन सषु्भना का िौधन इसशरमे कयत ेहैं ताकक अन्तकार भें उसके प्राण अभतृ भें जाकय ब्रह्भयन्ध्र भें मात्रा कयत ेहुमे ननकरकय भोऺ को चरे जामे।

9 – अष्टाॊग मोग

दो0- ऻान सागय अरू चन्रप्रबा फणूझऊ सभम बफचारय।

याजमोग पववयण देहू जे मशव मशवा उच्चारय।।110।।

ऻान सागय औय चन्रप्रबा ने सभम विचाय कय ऩछूा कक श्री शिि जी ने शििानी को जो फतामा िह याजमोग विियण प्रदान कयो।

दो0- “होयाभ” मोग फयनऊॊ समुभय गरु धचतराम। मथा अष्टाॊग मोग मह मशव कहह मशवा सनुाम।।111।।

श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक भैं सदगरुु देि को धचत भें फठैा कय मोग का िणवन कयता हूॉ जो आष्टाॊग मोग शिि जी ने शििा को सनुामा था।

चौ0- सत्म अहॊसा ब्रह्भचमप धायी । अस्तमेाऩरयग्रह गणुकायी।। प्रथभ अॊग मभ मोग कहाई । साधक सो जो मह भनबाई।।1।।

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सत्म, अदहॊसा, ब्रह्भचमव धायण कयना, ऩयामी िस्त ुकी चोय न कयने का गणु, मह मोग का प्रथभ अॊग “मभ” कहराता है। जजसके भन भें मह अच्छा रगता है, िह साधक है।

चौ0- सत्मऩारन दृढभनत जफ सॊता । होहहॊ नतहह सत्म श्राऩ वय भन्ता।। साधक मसद्ध अहहॊसा जफहीॊ । तस्ज वयै सफ सॊग यहे तफहीॊ।।2।।

सत्म का ऩारन सदुृढ ऩारन फवुद्ध जफ सॊत की हो जाती है तफ उसके श्राऩ ियदान औय भन्त्रणा सत्म होत ेहै औय जफ साधक को अदहॊसा शसद्ध हो जाती है तफ ियै त्माग कय सबी उसके सॊग यहने रगत ेहैं।

चौ0- ब्रह्भचमप फरदेहहॊ सफ अॊगा । जागत भनत उयजा नव यॊगा।। गपु्त ऩरयणाभ ननकट तफ आवा । दृढभनत सदुृढ असतमे अबावा।।3।।

औय ब्रह्भचमव सबी अॊगो को फशरष्ठ कयता है तथा फवुद्ध जाग्रत होती है औय ऊजाव के नमे नमे यॊग उदम हो जात ेहै। तफ उसके ननकट गोऩनीम ऩरयणाभ आत ेहैं। जफ उसे दृढभनत हो जाती है औय अस्तमे का अबाि हो जाता है।

चौ0- ऩवूप जनभ सफ बेद पवजाना । गय करय दृढ ऩथ मोग ध्माना।। शदु्ध पवचाय पवनम्र सदाचायी । इत उत रोक ऩाम मश बायी।।4।।

िह ऩिूव जन्भों के साये यहस्म जान रेता है मदद ध्मान मोग, ऩॊथ, सदुृढ कय रेता है। िदु्ध विचाय विनम्रता सदाचाय व्मजतत रोक ऩयरोक भें मि को प्रातत कय रेता है।

दो0- सौच सॊतोष स्वाध्माम तऩ यत हरय प्राणीधान।

“होयाभ” औज फर फाढहहॊ दसूय अॊग ननमभान।।112।। सौच (अन्दय फाहय की ऩवित्रता) सन्तोष तऩस्मा स्िाध्माम तथा श्रीहरय भें

सभऩवण होने से श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक औजादद शसवद्धमाॊ प्रातत हो जाती है। मह मोग का दसूया “ननमभ” अॊग है।

दो0- “होयाभ” सौच सभथप फस फाढहहॊ भनत वयैाग। सॊमभ फस काभा टये ननभपर भन फडबाग।।113।।

श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक सौच की साभथाव भें ऻान ियैाग फढत ेहै औय सॊमभ कयने से ईच्छाऐॊ शभटती है औय भन ननभवर हो जाता है। ऐसा साधक मोगी फड ेबाग्म िारा है।

चौ0- याग द्वेष काभा सफ टयहहॊ । भन ननजात्भ यभण कयहहॊ।। सॊतोष सभान सखु अन्म नाहीॊ । देणख पवचारय ऩटर भन भाहीॊ।।1।।

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उसके याग द्िेष काभनाऐॊ सफ शभट जाती है औय भन ननजात्भा भें यभण कयता है। सॊतोष के सभान सिु दसूया नह ॊ है। मह अऩने भन ऩटर ऩय विचाय कयके देि रो।

चौ0- तऩ यत अघभर जीयण जानी । होहहहॊ भन सॊमभी पवऻानी।। स्वाध्माम हरय सत्वगणु दीना । ईष्टहहॊ मभरन जीव अकुरीना।।2।।

तऩस्मा भें र न होने से ऩाऩ भर दफुवर होत ेजाने गमे हैं औय भन सॊमभी तथा विऻानी हो जाता है। स्िाध्माम से ईश्िय म सत्िगणु प्रातत होता है औय अऩने ईष्ट देि से शभरने को जीि व्माकुर होता है।

चौ0- ईश्वय प्राणीधान जफ सॊता । साध्म सभाधध यभहहॊ बगवॊता।। तीसय आसन अॊग उच्चायी । जाकय पवधध फहुय प्रकायी।।3।।

सॊत को जफ ईश्िय सभऩवण बाि उत्ऩन्न हो जाता है तफ िह सभाधध साध्मकय प्रब ुभें सभा जाता है। तीसया मोग का अॊग “आसन” कहा है। जजसकी फहुत प्रकाय की विधधमाॊ है।

चौ0- साधक आसन जो हहतकायी । यहहु यत सोइ साध्म सखुायी।। आसन जफ साधक धथय होई । द्वॊद आघात ऩीय नहहॊ कोई।।4।।

साधक को जो आसन दहत प्रद हो उसे ह साधकय उसभें सिु ऩिूवक प्रमत्न से रगा यहे। साधक को जफ आसन जस्थय हो जाता है तफ उसे कोई द्िॊद आघात औय ऩीडा नह ॊ होती।

दो0- अनत शे्रष्ठ मोगाॊग चतथुप ननममभत प्राणामाभ।

याजमोग आधाय खम्फ सत्म कहहहॊ “होयाभ”।।114।। मह चौथा अॊग अनत शे्रष्ठ है। मह ननमशभत “प्राणामाभ” है। श्री होयाभदेि

जी सत्म कहत ेहैं कक मह याजमोग का आधाय िम्फ है।

चौ0- येचक ऩयूक ऩनुन ऩनुन प्राना । होहहॊ नाडीभर नष्ट सजुाना।। कहत मशव तभु सनुो बवानी । धचत्त सॊस ऺम पवनसहीॊ अघानी।।1।।

प्राण की फाय फाय येचक औय ऩयूक कयने से विद्िान जनों का नाडी भर नष्ट हो जाता है। श्री शिि जी कहत ेहैं कक हे शििा तभु सनुो ! तफ धचत्त के सॊस्काय नष्ट हो जात ेहैं औय ऩाऩों का नास हो जाता है।

चौ0- प्राणामाभ अभ्मास अऩाया । सॊधचत कयभ कोष सफ ऺाया।। होहहॊ ननफर अपवद्माहद करेषा । कटहहॊ धचत्तई दयुावयण शषेा।।2।।

अऩाय प्राणामाभ अभ्मास से सॊधचत सभस्त कभवकोष नष्ट हो जाता है। तफ अऻानादद करेष दफुवर हो जात ेहै औय धचत्त के िषे दयुाियण नष्ट हो जात ेहैं।

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चौ0- आवयण मही ऻान सफ ढाॊऩा । जास ुजीव भद भोहहत शाऩा।। धचत ऩट सॊस ऺम जफ होई । प्रकासहहॊ ऻान जीव भकु्त सोई।।3।। इन्ह ॊ आियणों ने साया ऻान ढाॊक शरमा है जजसके कायण जीि अहभ ्(गिव)

से भोदहत हुआ अशबिावऩत है। जफ धचत्त के साये सॊस्काय नष्ट हो जात ेहैं तफ ऻान प्रकाशित होता है औय साधक भतुत हो जाता है।

चौ0- बफन ुतत्वदयसी साध्म मह नाहीॊ । सनुहु साय सफ देहुॊ फझुाहीॊ।। ऩायखी सदगरु स्जन्ह ऩामा । नतन्ह सभान को धनन जग जामा।।4।।

बफना तत्िदिी सदगरुु मह साध्म नह है। सनुो ! भैं मह साया साय तत्ि सभझा कय कहता हूॉ। जजसने तत्िदिी (ऩायिी) गरुु प्रातत ककमा है। उसके सभान धनन जग भें कौन जन्भा है ?

दो0- जीवनधाय कामाऩरुय ऩॊचरूऩ यभहहॊ मह प्रान।

प्राणाऩान सभान व्मान ऩॊचभ वाम ुउदान।।115।।

जीिन का आधाय कामा नगय भें मह प्राण ऩाॊच प्रकाय से यभा हुआ है जो प्राण – अऩान – व्मान सभान औय ऩाॊचिा उदान िाम ुहै।

चौ0- तनऩरुय ठाभ प्राण भखु घ्राणा । नामसका रधग उय व्माप्त ननदाणा।। अधो ओय गभहहॊ पवधध नाना । गबप भरभतू्र बफडारय अऩाना।।1।।

इस देह नगय भें प्राण िाम ुका स्थान भिु औय घ्राण है जो नाशसका से रृदम तक स्िाबाविक रूऩ से व्मातत है। अऩान िाम ुगबव तथा भर भतू्र को फाहय ननकारता हैऔय विशबन्न प्रकाय से ऊऩय नीचे को गभन कयता है।

चौ0- नाबीस ुऩद रधग अऩान फहहहॊ । नाबी सीभ उय सभाॊ सहुावहहॊ।। खान ऩान की सफ यस ऩावा । पवपवध अॊग मह सभाॊ ऩठावा।।2।।

अऩान िाम ुनाशब से ऩयैों तक फहता है। नाबी से रृदम सीभा तक सभान िाम ुका याज्म है। िान ऩान के साये यसों को प्रातत कयके सभान िाम ुिय य भें विशबन्न अॊगों को ऩहुॊचाता है।

चौ0- वाम ुव्मान सवप व्माप्त शयीया । पवचयत अॊग अॊग नस नीया।। कॊ ठ कऩार कोभद असथाना । कयहहॊ प्रमान मह वाम ुउदाना।।3।।

व्मान िाम ुसभस्त िय य भें व्मातत है जो िय य के अॊग अॊग भें नस नाडडमों भें विचयण कयता है औय कॊ ठ से कऩार कोभर स्थान है, जहाॊ उदान िाम ुगभन कयता है।

चौ0- भतृ्मकुार सकू्ष्भ देहाकाया । ननकसत जीव उदान आधाया।। वाम ुउदान सॊममभत जफहहॊ । ननकसत जीव ब्रह्भयॊर तफहहॊ।।4।।

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भतृ्मकुार सकू्ष्भ देह भें जीि उदान िाम ुद्िाया ननकरता है। उदान िाम ुऩय जफ सॊमभ हो जाता है तफ जीि ब्रह्भयन्ध्र भें से ननकरता है।

दो0- अनत बोजन अनतबखू वा अनतश्मारस्म ननराथप। “होयाभ” अनत जाग्रण अपऩ मोग न सधहहॊ मथाथप।।116।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक अधधक बोजन कयने मा अधधक बिूा यहने

औय अधधक आरश्म मा नीरा से औय अधधक जागने से बी मोग मथाथवरूऩ से साध्म नह है।

चौ0- ऩॊचभ अॊग “प्रत्माहाय” कहाई । भधथ भनोवनृत अन्त्ऩयु राई।। योधउ भन करय केन्र धथयाना । पवयागाभ्मास फस दृढ जाना।।1।।

ऩाॊचिा मोग का अॊग प्रत्माहाय है जजसके द्िाया भन की िनृतमों को (फाहय से शसभेट कय) घट बीतय िाऩस राना है। भन को योककय एक केन्र ऩय जस्थत कयना है। दृढ ियैाग्म औय अभ्मास से मह फस भें हो जाता है। ऐसा जाना गमा है।

चौ0- याजमोग खम्फ प्रत्माहाया । जास ुभन अवयोधधत बाया।। प्रत्माहाय मसपद्ध मसद्ध जफहहॊ । इस्न्दमाॉ ननग्रह होवहहॊ तफहहॊ।।2।।

प्रत्माहाय याजमोग का स्तम्ब है जजसके द्िाया भन बाय रूऩ से अियोधधत होता है। जफ साधक को प्रत्माहाय शसद्ध हो जाता है तफ इजन्रमों ऩय सॊमभ हो जाता है।

चौ0- एक ही केन्र भनोवसृ्त्त धारय । यहउ अडडग न डडगे रक्ष्मारय।। मोगी जन मह धायणा भानी । मोग अॊग षष्टभ कहह ऻानी।।3।।

भनोिजृत्त को एक ह केन्र ऩय धायण कयो औय अडडग यहो। रक्ष्म न दहरने ऩािे। इसी को मोधगमों ने “धायणा” भाना है जो मोग का षष्टभ अॊग ऻानी जन कहत ेहैं।

चौ0- धायणगनत धायणा कहराई । जे करय सभाधध रूधचय फनाई।। ऩनुन ऩनुन भन पवषमन भॉह जावा । अटर धायणा वश्मकरय रावा।।4।।

धायण गनत ह धायणा कहराती है जो सभाधध को रूधचकय फना देती है। भन फाय फाय विषमों भें जाता है औय अटर धायणा उसको िि भें राती है।

दो0- भनहह वेग धीभा कये खीॊचत यहै शयीय।

योक योक भन केन्र कये फाॊधध प्राण झनझीय।।117।।

भन के िेग को धीभा कयो औय िय य को िीॊच कय यिे। भन को फाय फाय प्राण की जॊजीय भें फाॊध कय केजन्रत कये।

चौ0- रक्ष्म एक स्जहहॊ धचत्त उरूझाहीॊ । सभाधधहहॊ अन्मयोध तद नाहीॊ।।

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धायणगनत धचत्त ध्मेमकाया । असभी बाव अबाव अऩाया।।1।।

धचत्त को जजस एक ह रक्ष्म ऩय रगामे तफ सभाधध भें दसूया अियोध नह ॊ होता। धायण गनत धचत्त को ध्मेमाकाय (रक्ष्माकाय) कयती है उसभें अऩनेऩन का बी अबाि होता है।

चौ0- एहह अवस्था भन रमयावा । सो सप्तभ अॊग ध्मान कहावा।। बमऊ ध्मान यत जफ फहु कारा । सयुत सभाधधस्थ क्रभ ननयारा।।2।। मह अिस्था है जजसभें भन रम होता है औय िह अिस्था मोग का सातिाॊ

अॊग “ध्मान” कहराती है। जफ ध्मान भें फहुत सभम तक रगे यहत ेहैं तो सभाधध भें सयुनत का ननयारा ह क्रभ हो जाता है।

चौ0- बज सतनाभ मदपऩ पवऩदाहू । नाहीॊ सयुग सखु नतहह सभताहू।। पवऩद आम नय उच्च करय हेत ू। जगद बोग बीनत जनन येत।ू।3।।

चाहे विऩजत्तमाॊ आमे सतनाभ बजना चादहमे। उसकी सभता भें स्िगव के सिु कुछ नह ॊ है। विऩजत्तमाॊ भनषु्म को ऊचाॊ उठाने के शरमे आती है। सॊसाय के बोग तो येत की द िाय जैसे हैं।

चौ0- जे सॊत सयुनत ध्मान सभावा । मोगारूढ ऩयभऩद ऩावा।। ध्मान बफना ननश्पर तऩ जाऩ ू। मदपऩ सहैहहॊ फहुरय सॊताऩ।ू।4।।

जो सॊतजन अऩनी सयुनत को ध्मान भें र न कयत ेहैं िे मोगारूढ होकय ऩयभऩद को ऩा रेत ेहैं। ध्मान के बफना तऩ जऩ सफ ननश्पर है चाहे ककतने ह सॊताऩ सहन ककमे गमे हों।

दो0- सयुनत को अभतृ बोज्म है ऩावहहॊ साधइ ध्मान।

जीव भकु्त होवहहॊ तदा सयुती कयत असनान।।118।।

सयुनत का बोजन अभतृ है जजसे ध्मान साधकय प्रातत कयत ेहैं। तबी जीि भतुत हो जाता है जफ सयुनत ध्मान भें स्नान कयती है।

चौ0- ध्मान एक फीज की नाई । जा भॊह अॊकुय पवटऩ दयुाई।। फीज फोई दउ सकृुत ऩानी । शषे घहटत सफ स्वमॊ रखानी।।1।।

ध्मान एक फीज की बाॊनत है जजसभें िृऺ का अॊकुय छुऩा होता है। फस फीज को सत्कभों का ऩानी देत ेयहो िषे सफ कुछ स्िमॊ ह घदटत होता ददिाई देगा।

चौ0- ध्मानगनत इक सतत प्रतीऺा । भन भनत अहभ सभाप्त सभीऺा।। काॉचा पर टूटत नहीॊ तौये । बफन ुप्रमास सो ऩयहहॊ ऩाकौये।।2।।

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ध्मान की गनत एक ननयन्तय प्रतीऺा है जजसभें भन फवुद्ध औय अहभ की सभीऺा सभातत हो जाती है। कच्चा पर तोडने से नह टूटता, ऩकने ऩय स्िमॊ ह धगय जाता है।

चौ0- जर सॊग मदु्ध कयहहॊ जफ प्रानी । चाहहहॊ सोSपऩ तहेह फडुानी।। भतृक फहहहॊ ननस्श्क्रम होई । जर Sपऩ फाधा कयहहॊ न कोई।।3।। जफ प्राणी जर से मदु्ध कयता है तो जर बी उसे डुफोना चाहता है। भदुाव

जर ऩय ननजश्क्रम है इसशरमे िह फहता जाता है ; जर बी उसे कोई फाधा नह ॊ कयता।

चौ0- तात ेध्मान इक भौन अऩाया । भन भनत अहभ नहीॊ फौऩाया।। जफ भन भनत भौन बइ बॊगा । फॊद बए द्वाय हरय प्रसॊगा।।4।।

इसशरमे ध्मान एक अथाम भौन अिस्था है जहाॉ ऩय भन, फवुद्ध औय अहभ का व्मौऩाय नह है औय जफ भन औय फवुद्ध का भौन बॊग हो जाता है तफ प्रब ुसे प्रसॊग का द्िाय फॊद हो जाता है।

दो0- ध्मान गगन की खोद है जैसे कूऩ खुददान।

खोदत खोदत ऩाम जर सयुती ब्रह्भ मभरान।।119।।

ध्मान एक आकाि की िुदाई है। जैसे कक कुआ िोदा जाता है औय िोदत ेिोदत ेजर प्रातत हो जाता है उसी प्रकाय सयुनत का ब्रह्भ से शभरन हो जाता है।

चौ0- ध्मान एक छराॊग हभ जाना । इक तस्ज दसूय सरय तट ऩाना।। ध्मान बफना ननश्पर तऩ जाऩ ू। जीव भकु्त गभन करय ध्माऩ।ू।1।।

हभने तो ध्मान एक छराॊग जानी है जैसे कक नद का एक ककनाया त्माग कय दसूये तट को ऩामा जाता है। ध्मान के बफना तो तऩ औय जाऩ ननश्पर है जीि ध्मान सभाधध भें गभन कयके भजुतत ऩाता है।

चौ0- ध्मान एक उयजा हभ जानी । जनभ जनभ कभपकोष जयानी।। ध्मान भनहह पवषम कब ुनाहीॊ । सयुनत पवषम ऩयभसॊत सभाहीॊ।।2।।

ध्मान एक ऊजाव रूऩ भें हभने जानी है जो जन्भ जन्भान्तय के कभवकोष को जरा देती है। ध्मान भन का विषम कदावऩ नह ॊ है मह तो सयुनत का विषम है जजसभें ऩयभसॊत सभात ेहै।

चौ0- ध्मान गनत ऩयूण मभहट जावन । तफहहॊ सयुत ब्रह्भमसॊधु सभावन।। बफन ुऺम फीज वृऺ नहीॊ होई । नहहॊ सागय बई सरयता कोई।।3।।

ध्मानािस्था, एक ऩणूवतमा शभट जाना है तबी सयुनत ब्रह्भ भें सभा जाती है औय बफना शभटे फीज िृऺ नह फनता औय न कोई नद बफना शभटे सभनु्र फनती है।

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चौ0- आऩा मभटे जीव शदु्ध बमऊ । भानव मभटे ब्रह्भ ऩद रमऊ।। एहह सफ होंहहॊ ध्मानहहॊ कारा । भोऺ मान मह ध्मान पवशारा।।4।।

आऩा (अहभ) शभटने ऩय ह जीि िदु्ध होता है। औय भनषु्म शभटने ऩय ब्रह्भ स्िरूऩ भें रम हो जाता है। मह सफ कुछ ध्मानस्थ कार भें हो जाता है इस प्रकाय भोऺ का मान मह वििार ध्मान ह है।

चौ0- सॊस्काय भॊह सॊमभ करय मोगी । जानत ऩवूप जनभ कृनत बोगी।। धचत्त सॊस्काय ऺमहहॊ जफ साये । सभाधध ननवेश कैवल्म ननहाये।।5।।

औय सॊस्कायों भें सॊमभ कयने से मोगी अऩने ऩिूव जन्भों के ककमे गमे बोगों को बी जान रेता है। तफ धचत्त के सॊस्काय नष्ट हो जात ेहै तफ मोगी सभाधध भें अऩने को कैिल्म भें प्रविष्ठ हुआ देिता है।

दो0- बान ुभॊह सॊमभ आप्त गय प्रगटहहॊ रोक पवऻान।।

“होयाभ” भमॊक सॊमभ करय उदमहहॊ उड्ग्न ऻान।।120।। मदद समूव भें सॊमभ शसद्ध हो जामे तो रोक रोकान्तय विऻान प्रगट हो जाता

है श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक चन्रभा भें सॊमभ कयने से तायागण का ऻान उदम होता है।

दो0- रुव ताया से तायागनत नामब सॊमभ तन ुऻान।

कॊ ठ कूऩ सॊमभ करय बखू पऩऩास नसान।।121।।

ध्रुिताये भें सॊमभ कयने से तायों की गनत का तथा नाबी भें सॊमभ कयने से िय य का ऻान हो जाता है औय कॊ ठ कूऩ भें सॊमभ कयने से बिू तमास का नास हो जाता है।

दो0- कुभापकाय नाडी सॊमभ धचत्त अरू तन ुधथय होम।

भधूाप ज्मोनत सॊमभ धथरय मसद्ध दयसन पर सोम।।122।।

कुभावकाय नाडी भें सॊमभ कयने से धचत्त औय तन जस्थय हो जात ेहैं भधूाव ज्मोनत भें सॊमभ जस्थनत भें शसद्धों के दिवन का उसे पर शभरता है।

चौ0- वरयष्ठ गनत मोगी जफ ऩावा । अगणणत रोकऩनत सन आवा।। देव देवेश रोकेश मसद्ध दपषपत । सवप ननहारय मोगी बमे हपषपत।।1।।

मोगी जफ िरयष्ठ गनत प्रातत कय रेता है तफ उसके सभऺ अगखणत रोक स्िाभी आत ेहैं। उसे देि देिेश्िय रोकऩनत शसद्धों के दिवन होत ेहैं। उन सफ को देिकय मोगी फडा हवषवत होता है।

चौ0- फड ेबाग्म हौं नय तन ऩावा । ऋपद्ध मसपद्ध सॊग सयु गण आवा।। रोक ऩयरोक ब्रह्भाण्ड ऩनुन ऩाया । हौं देख कपयत मथानसुाया।।2।।

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भेये फड ेबाग्म हैं जो भैंने भानि देह ऩाई है। भेये सभऺ देिगण ऋवद्ध शसवद्ध रेकय आत ेहैं। भैं मथानसुाय रोक ऩयरोक ब्रह्भाण्ड तथा ब्रह्भाण्डों के ऩाय सफ कुछ देिता कपयता हूॉ।

चौ0- भैं अनत शे्रष्ठ ईश सॊत तोया । कयहहॊ मसद्ध सयु आदय भोया।। अस अमबभान नासकय भरूा । यहहु सजग त्माग जनन सरूा।।3।।

इसशरमे हे ऩयभेश्िय भैं तयेा अनत शे्रष्ठ सॊत हूॉ तमोंकक शसद्ध ऩरुुष औय देितागण बी भेया आदय कयत ेहैं इसप्रकाय का अशबभान नास की जड है। इससे सतकव यहना चादहमे। इसे सशूर सभझकय त्माग देिें।

चौ0- देव प्ररोब देहहॊ पवधध नाना । चहॊहहॊ साध्म की ध्मान डडगाना।। बमूर तेंहह भ्रभ जार न ऩयहू । ऺणणक जानन सफ रक्ष्म अनसुयहू।।4।।

देिगण विविध प्रकाय का प्ररोबन देत ेहै। औय साधक का ध्मान डडगाना चाहत ेहैं। बरूकय बी उनके भ्रभ जार भें न ऩडो। ऺखणक जानकय अऩने रक्ष्म का अनिुयण कयना चादहमे।

दो0- नीॊदक हहतषैी साधु को चुन चुन दोष ऩचाम।

स्वमॊ नयक फासा कये साधुन शे्रष्ठ फनाम।।123।।

साधु का तो नीॊदक ह दहतषैी है जो चुन चुनकय साये दोषों को ऩचा जाता है। िह स्िमॊ तो नयकों भें जाता है ऩयन्त ुसाधु को शे्रष्ठ फनाता है।

दो0- कहत “होयाभदेव” अज कधथहौं कयभ पवऻान। तभु सफकी सॊशम टयै नाहीॊ कयभ मरऩान।।124।।

श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक अफ भैं कभव विऻान कहूॊगा जजससे तभु सफकी सॊिम शभटेगी औय तभु कभों भें शरऩामभान नह ॊ हो सकोगे।

दो0- मशष्मन सॊग हपषपत प्रबा, सनुन ननजातभ ऻान।

मशव मशवा सम्फाद मह ऩयभतत्व कल्मान।।125।।

शिष्मों के सॊग चन्रप्रबा मह ननजात्भ तत्ि ऻान सनुकय फहुत ह प्रसन्न हुई तमोंकक शिि ऩािवती का मह सम्फाद ऩयभ कल्माणकाय ऩयभतत्ि है।

10 – कभोत्ऩस्त्त पवऻान

दो0- फणूझ मशवा हे चन्र भौमर कभोत्ऩस्त्त पवऻान।

कहहु प्राॊजर फचन तभु सपु्रॊशसनीम भहान।।126।।

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ऩािवती ने ऩछूा कक हे चन्रभौशर तभु भहान औय शे्रष्ठ प्रिॊसनीम हो। अफ भझुसे सयर एिॊ स्ऩष्ट फचनों भें कभोत्ऩजत्त विऻान को कहो।

दो0- कहहह मशव हे ऩायफती बफन ुकभप जीव नहहॊ कोम।

कभप भॊह अकभप देणख जे ननमरपप्त कभपणा सोम।।127।।

श्री शििजी कहत ेहैं कक हे ऩािवती बफना कभव कोई जीि नह ॊ है कपय बी जो कभव भें अकभव देिता है िह कभो से ननशरवतत है।

चौ0- सकर कयभ इस्न्रॊम प्रगटोई । सो सफ कहह ननदोष दसोई।। आऩहह हभ कयभ नहहॊ कीन्ही । बमऊ सोइ जे भन यधच दीन्ही।।1।।

सभस्त कभो को इजन्रमाॊ प्रगट कयती है ऩयन्त ुिे सफ कहती है कक हभ दस की दस ननदोष है तमोंकक अऩने आऩ हभने कभव नह ककमे ; िह होता है जो भन यच देता है।

चौ0- हौं ऩयफस कहह भन अकुराई । भनन सोई जेहह भनत सझुाई।। सतयज तभ गणु मथा प्रबावा । ऩयफस भेधा कयभ नचावा।।2।।

भन ने अकुराकय कहा कक भैं तो ऩयामे आधीन हूॉ िह भनन कयता हूॉ जो फवुद्ध सझुाि देती है। सत – यज – तभ गणुों का जैसा जैसा प्रबाि होता है उसी के अनसुाय फवुद्ध ऩयफस है जजसे कभव सॊस्काय नचात ेहै।

चौ0- भेधा कहह कछु हौं नहहॊ दोषा । आमस ुभनहहॊ देहुॊ अनकुोषा।। मथा मथा स्जहह कोष सॊस्काया । तथा तथा रख आमस ुडाया।।3।। फवुद्ध कहती है कक भेया कुछ दोष नह है भैं तो कभवकोष के अनसुाय ह भन

को आऻा देती हूॉ। जैसा जैसा जजसका सॊस्काय कोष है िसैा िसैा ह देिकय आऻा कयती हूॉ।

चौ0- सॊस पे्रयणा भेधा जागी । तद सो भनहह सॊदेश प्रेषागी।। गौका रधग अमस आमस ुआवा । नसैगप सबुाऊ कयभ प्रगटावा।।4।।

सॊस्कायो की पे्रयणा से फवुद्ध जागती है तफ िह भन को सॊदेिा बेजती है इसी प्रकाय इजन्रमों तक आऻा आती है प्राकृनतक स्िबाि कभो को प्रगट कयता है।

दो0- धीय ससुज्जन पववेक यत यहहहॊ पवयक्त कभपजार।

गणु ही गणु भॊह फयतहहॊ जाननअ नहहॊ बचूार।।128।।

विद्िान ियैागिान व्मजतत कभव चक्र से वियजतत यित ेहैं िे गणु (बत्रगणु) ह गणु भें फतव यहे है ऐसा जानकय उनभें विचशरत नह ॊ होत।े

चौ0- ऩनुन ऩनुन बव छर नाचत प्रानी । रयत ैबयै जनन यहटहह ऩानी।। अऩया प्रकृनत जार यचाहीॊ । जनभ भयण जीव उरूझाहीॊ।।1।।

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जीि फायम्फाय सॊसाय प्रऩॊच भें नाचता है जैसे कक कुएॊ भें ऩानी रयतता औय बयता यहता है। मह सफ चक्र अऩया प्रक्रनत यचती यहती है औय जीि को जनभभयण चक्र भें उरझाती यहती है।

चौ0- जीव प्रकृनत ब्रह्भ अनाहद । बव नाटक नतउ ऩात्र मभसाहद।। प्राकृनत चेतहहॊ ब्रह्भ आधाया । जास ुसजृना चेतन्म सॊचाया।।2।।

जीि प्रकृनत औय ब्रह्भ अनादद है। औय सॊसाय नाटक के तीनों फहाना भात्र ऩात्र है। प्रकृनत ब्रह्भ आधाय ऩय चेतन्म होती है जजससे चेतन्म सषृ्ट का सॊचारन होता है।

चौ0- पवयस्क्त हीन अऻ अहॊकायी । ऩावत बफऩद ऩीय सफ बायी।। आसस्क्त धारय कभप जे कयहीॊ । ताही सयुत कयभ गनत बयहीॊ।।3।।

वियजतत यदहत अऻानी अहॊकाय जन उसभें फहुत बाय विऩजत्त औय ऩीडा प्रातत कयत ेहै। औय जो आसजतत धायण कयके कभव कयता है उसकी सयुनत कभवगनत को बोगती है।

चौ0- पवयक्त धीय ननश्काभी ध्मानी । मसद्ध सभथप याजमोग भहानी।। ईश दयस साधन याजमोगा । नाहीॊ गपु्त कछु देणख प्रमोगा।।4।।

वियतत धीय ननश्काभी ध्मानी जन भहान याजमोग के सभथव शसद्ध है। ईश्िय साऺात्काय का याजमोग साधन है। इसभें कुछ बी गतुत नह यहता प्रमोग कयके देिा है।

दो0- जीव कयभ गय चहॊ न करय होइ न सकहहॊ स्वतन्त्र।

रेत कयाहहॊ पववश करय जीव फॊध्मो प्रकृनत मॊत्र।।129।।

मदद जीि कभव न बी चाहे तो बी िह स्ितन्त्र नह ॊ हो सकता। प्रकृनत वििि कयके उससे कभव कया रेती है तमोंकक जीि प्रकृनत मॊत्र भें फॊधा हुआ है।

दो0- ननज ननज प्रकृनत सबुाउ फस कयहहॊ जीव चेष्टाम।

स्वबाव पवयोध दयुगभ अनत ऩरयवतपन सहजु ऩाम।।130।।

अऩनी अऩनी स्िबाि प्रकृनत के आधीन जीि सभस्त चेष्टामें कयता है उसका वियोध फहुत कदठन है। ऩयन्त ुऩरयितवन सयरता से प्रातत हो सकता है।

दो0- मशवा प्रकृनत धथनत जीवा बकु्तहहॊ नसैगप गणुान।

कायन बत्रगणुासस्क्त फस सबुासबु जुनन जन्भान।।131।।

हे शििा ! प्रकृनत भें जस्थनत जीि प्रकृनत के ह गणुों को बोगता है। इसी बत्रगणु आसजतत आधीन उसका िबुािबु मोननमों भें जन्भ होता यहता है।

चौ0- ब्राह्भण ऺत्री वशै्म अरू शदूय । जानत नहहॊ मे फयग भनकुय।।

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सम्बव सवप जानतन के भाहीॊ । चारय फयण कय जन जन्भाहीॊ।।1।।

ब्राह्भण, ऺत्री, िशै्म औय िरू मे जानतमाॉ नह ॊ है। मे भन ुद्िाया यचे गमे चायिणव हैं। सभस्त जानतमों भें ह फन चायों ियण के भनषु्म जन्भ रेत ेहैं।

चौ0- ब्राह्भण जो सॊमभी तऩधायी । तत्ववेता जग जीव उद्धायी।। ऺत्री सो जो अनाथ यछावा । देस धभपहहत प्राण ननछावा।।2।।

ब्राह्भण िह है जो सॊमभी, तऩस्मािान, तत्ििेता (आत्भऻानी) औय जगत का उद्धाय कयने िारा है। ऺत्री िह है जो अनाथ की यऺा कयता है औय याष्र तथा धभव दहत भें अऩनी प्राण न्मौछािय कय देता है।

चौ0- वशै्म कभप कृपष फाणणज कयहहॊ । सफहह दान वनृत उदय बयहहॊ।। शरू सकर जन सेवा सभानी । कभापनसुाय चऊ फयग फखानी।।3।।

िशै्म का कभव कृवष औय िाखणज्म कयना है तथा दान िनृत से सफ जीिों का उदय बयता है। औय िरू सफकी सेिा भें सभािे। इस प्रकाय भन ुने मे चाय िगव कहे हैं।

चौ0- शरु सकुभप यत ब्राह्भण होई । पवप्र अशबुकृनत शदूय सोई।। हरय बफभखु प्रनतजना अछूता । भन ुफाॊधधऊ जन चायी सतूा।।4।।

िरू सत्मकभव भें रगकय ब्राह्भण हो जाता है औय िह ब्राह्भण अिबु कभव से िरू हो जाता है। प्रत्मेक व्मजतत मदद हरय बगनत से विभिु है तो िह अछूत है। इस प्रकाय भन ुने चायों िगो भें भानि को फाॊधा है।

चौ0- कभप सबुाऊ स्जन्ह सकृृनत धायी । कयभ कयत कयता भनत हायी।। दृष्टा बए सॊमभ गौ कयैहहॊ । कयभ कयत कभपपॊ द न ऩयैहहॊ।।5।।

जजसने अऩने कभव स्िबाि भें सत्मकभो को धायण ककमा है औय कभव कयत ेहुमे बी कतावऩन की भनत का नास कय शरमा है औय जो दृष्टा फन कय इजन्रमों ऩय सॊमभ कय रेत ेहैं िे कभव कयत ेहुमे बी कभव के पॊ दे भें नह नघयत।े

छ0- जफ रधग सरुब नय देह मह ननमनत सतू्र जन कयभकयैहौं। कभप प्रकृनत बवहह शे्रम कयभ जार बफना जग धथनत ऺयैहौं।।

बत्रगणु फॊधन प्रनतऩर डायहहॊ शीश चढ्मौ ननज शासन कयैहौं।।

जे जन शबुाशबु कभप पवयक्त सो न कदा कभपपॊ द ऩयैहौं।।9।।

औय जफ तक मह भानि देह सरुब है प्रकृनत सतू्र भें फॊधे यहकय कभव तो कयने ह ऩडगेें। कभव प्रकृनत जगत भें शे्रष्ठ है औय कभवचक्र के बफना जगत की व्मिस्था नष्ट हो जाती है। इसशरमे िह प्रनतऩर बत्रगणुी फॊधन डारती यहती है औय

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जीि के िीि ऩय चढकय प्रिासन कयती यहेगी। जो जन िबुािबु कभो भें वियतत है िह कबी बी कभो के पॊ दे भें नह ऩडगेें।

दो0- जफ रधग धचत्त सॊस्काय शषे तफ रधग भोष न ऩाम।

ऺमहहॊ सो ध्मानस्थ गभन सयुनत ननज गहृ जाम।।132।।

जफ तक धचत्त भें सॊस्काय िषे यहता है तफ तक भोऺ नह ॊ शभरता है औय सभस्त सस्काय ध्मान भें जाने से नष्ट होत ेहै तफ सयुनत अऩने ननज देि को चर जाती है।

11 – कभपप्रकृनत पववेक

दो0- कभप यहहत जग जीव नहीॊ प्रकृनत रेहहॊ कयाम।

आसस्क्त फॊधन कयत पवयस्क्त भोऺ प्रदाम।।133।।

कभव से यदहत कोई जीि सॊसाय भें नह है तमोंकक प्रकृनत उससे कभव कया रेती है। कभो भें आसजतत ह फॊधन कयती है औय वियजतत भोऺ प्रदान कयती है।

छ0- कक कभप अकभप पवकभप बमे नहहॊ ननणपम भेघा पववश फनन। करयत बफचारय सकृुनत कदा पर प्रनतकूर प्राकृनत जनन।।

कहुॊ औसय अकभप कभप बमो कहुॊ सकुभप अपऩ अकभप फनन।।

कभपहहॊ अकभप अकभपहहॊ कभप रख अमरप्त मोगी मसयोभनन।।10।।

कौन सा कभव अकभव तथा विकभव हो जाता है इसका ननणवम कयने भें फवुद्ध वििि है कबी – कबी विचाय कयके सकुभव ककमा जाता है ऩयन्त ुप्रकृनत प्रनतकूर फना देती है। ककसी अिसय ऩय अकभव कभव फन जाता है औय कह ॊ सकुभव बी अकभव फन जाता है। ऩयन्त ुउत्तभ मोगी जन कभव भें अकभव तथा अकभव भें कभव देिकय उससे ननशरवतत हो जात ेहैं।

दो0- काभना आशस्क्त यहहत कभप दग्ध ऻानास्ग्न ननश्काभ।

आत्भवत जे जग ऩखैहहॊ सो ऩॊडडत “होयाभ”।।134।।

काभना आिजतत यदहत कभव ननष्काभ बाि ऻानाजग्न भें दग्ध हो जात ेहैं। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक जो सॊसाय को आत्भस्िरूऩ भें देिता है िह ऩॊडडत है।

चौ0- ज्वमरत अनर बष्भ वन जैसे । ऻानानर बस्भहहॊ कृनत तसेै।। सफ ऩापऩन से गय फड ऩाऩा । पवऻानवान नाहीॊ सॊताऩा।।1।।

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प्रज्िशरत अजग्न जजस प्रकाय िन को बस्भ कय डारती है उसी प्रकाय ऻानाजग्न कृत कभो को बस्भ कय देती है। गय कोई सफ ऩावऩमों से बी फढकय ऩाऩी है विऻानिान होने ऩय उसे कोई सॊताऩ नह ॊ होता।

चौ0- कछुक भनजु ऐसे जग भाहीॊ । बजन रीॊन ऩरू सकृुत नाहीॊ।। जफ सो जन मभ रोक मसधावा । सकृुत बफन ुनहहॊ बजन ऺभावा।।2।।

कुछ भानि सॊसाय भें ऐसे बी है जो बजन भें तो र न यहत ेहैं ऩयन्त ुसकुभव नह ॊ कयत।े जफ ऐसा भानि मभ रोक जाता है तो बफना सकुभव उसे बजन ऺभा नह ॊ कयाता।

चौ0- सॊशमवान जे भानषु ऻानी । इत उत रोक नहीॊ सखुसानी।। भ्रभत कपयत भामा कय पे्रया । जनभ भयण दखु आऩद डयेा।।3।।

जो अऻानी जन सॊिमिान है उन्हे इस रोक भें औय ऩयरोक भें सिु िाजन्त नह ॊ शभरती िह तो भामा का पे्रया भ्रभता कपयता है। उसे जन्भभयण का दिु रगा यहता है तथा आऩजत्तमों का डयेा रगा यहता है।

चौ0- धयभनाभ फॊध्मो अॊधवासा । कयहहॊ कुकभप भनोयथ आसा।। ताही सयुत अधौगनत ऩावा । अॊतकार ननकृष्ट जुनन जावा।।4।।

औय जो धभव के नाभ ऩय अॊधविश्िासों भें फॊधा यहता है औय अऩने भनोयथ के शरमे कुकभव कयता यहता है उसकी सयुनत नीच गनत ऩाती है तथा अन्त सभम भें ननकृष्ट मौननमों भें चर जाती है।

दो0- ज्मूॊ जरभध्म कभर फसे त्मूॉ ऻाननन की यहन।

मशवा सभऩणप याभ ऩद सदा सखुानॊद गहन।।135।।

जैसे कभर जर भें फसता है; ऻाननमों की यहन बी िसैी ह है। िे हे शििा ! याभ चयणों भें सभऩवण कयके सदा गहन सिुानॊद ऩात ेहैं।

चौ0- जे ऩद ऻानी ऻानस ुऩावा । सो ऩद कयभ अकाभ उगावा।। जे भन काॊऺा वयै न द्वेषा । सखु दखु द्वन्द सभ धीय पवशषेा।।1।।

औय जजस ऩद को ऻानी जन ऻान से ऩात ेहैं उस ऩद को अकताव कभव से ऩदैा कय रेत ेहैं औय जजसके भन भें न तो आिा है न ियै है न द्िेष है िह वििषे फवुद्धभान सिु दिु औय द्िन्द भें सभान यहता है।

चौ0- ऩश्मत ेऩश्महहॊ गहृणत्म गहहहॊ । वदत्मे वदहहॊ सनुनत्मे सनुहहॊ।। जगद कयभ सफ करय न कयहहॊ । कभापकभप सो मरप्त न ऩयहहॊ।।2।।

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िह देिकय बी नह ॊ देिता, गहृण कयके बी गहृण नह कयता, िह फोरत ेहुमे बी नह फोरता, सनुत ेहुए बी कुछ नह सनुता औय सॊसाय के कभव कयता हुआ बी कुछ नह ॊ कयता। िह कभव औय अकभव भें कबी शरतत नह ॊ होता।

चौ0- कयनी बयनी जीवहह रागी । तदपऩ जीव कयभ अनयुागी।। जीव देह जे गणु सॊग त्मागे । नतहह फस ऩनुजपनभ कभप जागे।।3।।

जीि को कयनी औय बयनी रगी हुई है कपय बी जीि कभावनयुागी है। मह जीि देह को जजन्ह गणुों के सॊग त्मागता है उसी के आधीन ऩनुजवन्भ भें कभव जागतृ होता है।

चौ0- सयुत नसैगप बत्रगणु बोगा । सतत बोग प्राकृनत प्रमोगा।। आऩ प्रकृनत कयभ उगाहीॊ । आऩहहॊ आऩ ऩनुन बोधगउ जाहीॊ।।4।।

सयुनत प्राकृनतक बत्रगणुों को बोगती है। मे ननयन्तय बोग प्रकृनत के प्रमोग है। प्रकृनत आऩ ह तो कभो को उत्ऩन्न कयती है कपय अऩने से आऩ ह बोगी जाती है।

दो0- प्राकृनत द्व ैस्वरूऩ मशवा जीवहह चक्र चराम।

इक यभण फॊधन पुये दसूय भोष प्रदाम।।136।।

शििे ! प्रकृनत के दो स्िरूऩ जीिों के ऊऩय चक्र चरात ेयहत ेहैं। जजनभें एक भें यभण कयने से तो फॊधन होता है औय दसूया भोऺ प्रदान कयता है।

दो0- जफ रधग जीव रखहहॊ अऻ ; ऩयब्रह्भ मबन्न ननज रूऩ। तफ रधग भोहहत कयभ पॊ द ऩीडडत धथरय बवकूऩ।।137।।

अऻानी जीि जफ तक अऩना रूऩ ब्रह्भ से शबन्न देिता है तफ तक ह कभवचक्र भें भोदहत यहता है औय ऩीडडत होकय बिकूऩ भें नघया यहता है।

दो0- जफ जानहहॊ “भ ैब्रह्भ हूॉ” ब्रह्भ स्वरूऩ सभाम। होहहॊ न मरप्त सो कभपणा ननसॊशम अभतृ ऩाम।।138।।

औय जफ मह जान रेता है कक “भ ैब्रह्भ हूॉ ” औय ब्रह्भ स्िरूऩ भें ह सभा जाता है तफ िह कभो भें शरतत नह यहता औय ननसॊिम अभतृ को प्रातत कय रेता है।

दो0- सो मो ब्रह्भात्भबाव यत ताको ब्रह्भ ही जान।

ऻानानर नतहह कयभ सॊस नष्ट बमेऊ यत ध्मान।।139।।

िह व्मजतत जो ब्रह्भात्भ बाि भें र न है उसे ब्रह्भ ह जानो तमोंकक उसके आनाजग्न भें ध्मानयत अिस्था भें सफ कभव सॊस्काय नष्ट हो चुके होत ेहैं।

चौ0- मऻ तऩ तीयथ कीयत दाना । सवप सयुग कय हेत ुफखाना।।

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ऩनु्म कयभ पर सयुग ऩठावा । पवपवध बोग सखु दान प्रदावा।।1।।

मऻ तऩ तीथव कीतवन औय दान आदद सफ स्िगव के ह शरमे कहे गमे हैं। ऩनु्मकभो का पर स्िगव भें बेजता है औय विविध प्रकाय बोग दान प्रदान कयता है।

चौ0- कभप मऻ यधच देवत्व ऩावा । ऩनु्म ऺीण रौहटअ ऩनुन आवा।। बगनत सकर मोगन की भाता । ऋपष भनुन सयु आश्रम दाता।।2।।

सत्म कभवकाॊड कयने से देित्ि प्रातत होता है औय ऩनु्मों के सभातत होत ेह ऩनु् मह ॊ रौटकय आना ऩडता है। बगनत तो सबी मोगों की जननी है। जो ऋवषमों भनुनमों को बी आश्रम प्रदान कयने िार है।

चौ0- बफना सभऩपण बगनत न होई । ननश्काभ बाव बफन ुसरुब न सोई।। आत्भ भॊह नहहॊ सखु दखु यागा । फॊधन भोऺ पवषम भन रागा।।3।।

सभऩवण के बफना बगनत नह ॊ होती जो कक ननश्काभ बािना के बफना सरुब नह है। आत्भा भें कह ॊ सिु दिु याग नह ॊ है। फॊधन औय भोऺ तो भन के विषम है।

चौ0- धचतसवासना सॊमभ याखैं । आत्भ भाहीॊ ऩयभात्भ झाखैं।। सगणु ध्मान ऩरुहट ननयाकाया । सॊत रखहहॊ सभाधध ऩसाया।।4।।

अऩने अन्त्कयण की िासनाओॊ ऩय सॊमभ यिना चादहमे औय आत्भा भें ह ऩयभात्भा को देिना चादहमे। इस प्रकाय सगणु ध्मान को ननगुवण ध्मान भें ऩरट कय सॊत जन सभाधध भें मह सफ सॊसाय देित ेहैं।

दो0- “होयाभ” इह सॊसाय भें गय चाहे ननयफान। पवषमासस्क्त तस्ज गहे ; सयुतशब्द मोग भहान।।140।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक इस सॊसाय भें मदद ननिावण ऩद चाहत ेहो तो

विषमों से आसजतत हटाकय भहान सयुनत िब्द मोग को गहृण कयो।

दो0- दाशपननकता सॊसाय की ऩणूप होत स्जस ठाभ।

तॊह त ेप्रायम्ब भरू सत्म सयुत गभन “होयाभ”।।141।।

सॊसाय बय की जजस केन्र ऩय दािवननकता ऩणूव हो जाती है। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक िहाॊ से आगे ह भरू सत्म का आयम्ब होता है औय सयुनत मात्रा कयती है।

दो0- “होयाभदेव” भनभणुख सन कदा न कीजै गान। न ऩठे सनेु धचत्तरावहहॊ ताको ऩाभय जान।।142।।

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श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक भनभखुि भनषु्मों के सभऺ इसका कबी फिैान न कये। जो न ऩढता, सनुता औय धचत्त भें नह ॊ राता उसको ऩाभय अधभ सभझना चादहमे।

12 – वामो ऩहद पववेचना

दो0- अभतृ फचन मशवभखु सनुन मशवा अनतश्म हयषाम।

अभयकथा यस फाहढऊ सनुन सनुन प्मास न जाम।।143।।

श्री शिि जी के भिु से अभतृ फचन सनुकय ऩािवती फहुत अधधक प्रसन्न हो गई। उसे अभयकथा का यस फढता गमा जजसे सनु सनु कय बी उसकी तमास नह ॊ जाती।

दो0- भनहय सभम पवचारय मशवा फोरी पवनम्र सबुाव।

गय प्रबो अनत प्रसन्न तभु वामोऩहद सनुाव।।144।।

तफ भनोहय सभम विचाय कय श्री ऩािवती विनम्र स्िबाि से फोर कक हे प्रबो ! मदद आऩ भझु ऩय अनत प्रसन्न हों तो िामोऩदद सनुाओ।

चौ0- को पवधध मोगी वामसुरूऩा । धायहहॊ मोगस्थ गनत अनऩूा।। होहहॊ जीव अभय कथा सोई । कयहुॊ फखान न सॊशम कोई।।1।।

ककस प्रकाय से मोगी िाम ुरूऩ होकय मोग भें अनऩुभ गनत धायण कयता है औय जजस कथा से जीि अभय होता है िह भझुसे फिान कयो ताकक कोई सॊिम न यहे।

चौ0- गय भोहहॊ सत्म पे्रभ तमु्हाया । ऩावन ऩनतव्रत ऩणूप हभाया।। कहहु नाथ अभयकथा सोई । भतृ्म ुऩाय जीव स्जस होई।।2।।

औय मदद भझुभें तमु्हाया सच्चा पे्रभ है औय हभाया ऩािन ऩनतव्रत ऩणूव है तो हे स्िाभी ! िह अभयकथा कहो जजससे जीि भतृ्म ुको राॊध जात ेहै।

चौ0- फोरे मशव अफ सनुो बवानी । वरयष्ठ प्रश्न तभुयी हभ जानी।। कौतकु कहहुॊ प्राण कय साया । जास ुमभटहहॊ भतृ्म ुदखु बाया।।3।।

औय श्री शिि बगिती से फोरे कक अफ तभु सनुो ! हभने तमु्हाया िरयष्ठ प्रश्न जान शरमा है। भैं प्राण का साया कौतकु कहता हूॉ जजससे भतृ्म ुका बाय दिु शभट जाता है।

चौ0- जे जन प्राण गनत वश्म कीन्ही । सकर शस्क्त स्रोत गहह रीन्ही।। प्राण पवयोध भतृ्म ुनहीॊ जानी । ब्माय व्रत मह भहत्त सहुानी।।4।।

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जजस व्मजतत ने प्राण की गनत को िि भें कय शरमा है उसने सभस्त िजततमों का स्रोत ऩा शरमा है। प्राणों का वियोध भतृ्म ुनह ॊ जाना गमा है। मह तो प्राणामाभ की सहुानी भहत्ता है।

छ0- इक सत ्इक उय सयोरूह जहॊ नाडी पवशषे सषु्भन कहह। गमऊ कऩार छौय ओय सो मोधगन्ह भोऺ तयनी महह।।

सषु्भन भाॊझ सधुचत्रणी नारी ताभॊह सकू्ष्भ फजया अहहीॊ।

ताही भाहीॊ रूऩा भॊह मोगी सयुत चढाई भोष गहहीॊ।।11।।

रृदम कभर से एक सौ एक नाडडमाॊ है जजनभें सषु्भना वििषे कह गई है जो कऩार छौय की ओय गई है। मोधगमो की मह भोऺ नाइमा है। सषु्भना के बीतय धचत्रणी नाडी है जजसभें सकू्ष्भ फज्रा नाडी होती है औय उस के फीच भें रूऩा नाडी है जजसभे मोगी अऩनी सयुनत चढाकय उत्तभ भोऺ प्रातत कयता है।

दो0- नाबी ऩदभ से जफ उहठफ चहढ आद्मा उच्च छौय।

ऩदे ऩदे भन पवषम ऩयत कटत जात ुसफ ओय।।145।।

औय जफ नाबी ऩदभ से उठकय कुन्डशरनी िजतत उध्र्ि ओय को चढती जाती है तफ ऩद ऩद ऩय भन की विषम ऩयत सफ तयप कटती जाती है।

चौ0- ऩनुन फोरे मशव भदृरु फानी । भतृ्मकुार ननकट जफ जानी।। यहहु यत प्राणामाभ सखुारा । बा मोगस्थ ऩरयमास सॊबारा।।1।।

कपय श्री शिि जी भदृरु फचन फोरे कक जफ जानो की भतृ्म ुसभम ननकट आ गमा है तफ प्राणामाभ भें सिुऩिूवक रग जामे औय प्रमास को सॊबार कय मोगस्थ हो जामे।

चौ0- अस प्रककरयमायत अधपभासा । स्जनतअ रेहहॊ कार की पाॊसा।। घटाकास धथनत प्राण शयीया । मोगानर उद्दीप्त कयीया।।2।।

ऐसी प्रकक्रमा भें आधा भास र न यहकय कार की पाॉस जीत रेत ेहैं। इसशरमे प्राण को िय य भें घटाकाि भें जस्थय कये औय मोगाजग्न को उद्दीतत कय रेिे।

चौ0- सो सफ पवधध अनर सहाई । बीतय फाहय सवपत्र सभाई।। ऻान पवऻान उत्साह उगाना । मह गनत वामोऩहद प्रधाना।।3।।

उन सफ विधधमों भें मह मोगाजग्न सहामक होती है जो िय य के फाहय औय बीतय सिवत्र सभाई यहती है औय ऻान – विऻान का उत्साह उत्ऩन्न कयती है। मह गनत प्रधान िामोऩदद है।

चौ0- जे जन वाम ुननज फस कयहीॊ । सकर जगद पवजम सखु बयहीॊ।।

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जीव हहताम प्रब ुजग याचा । त्माग बाव गहह कथन उवाचा।।4।।

जो भानि िाम ुको अऩने आधीन कय रेत ेहैं िे साये जगत ऩय विजम सिु बोगत ेहैं। प्रब ुने जीिो के दहत के शरमे मह जगत यचामा है तथा इसे त्माग की बािना से गहृण कयने का फचन कहा है।

प्रवचनाॊश्- श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक “ऻान सागय जी ! अज ऩयभब्रह्भ अविनासी

ऩयभेश्िय ने “अजा” नाभक भहान जडतत्ि से मह भानि देह यची है औय िह अऩने आधश्रत देिगणों के साथ इस देह भॊददय भें स्िमॊ यहने रगा है। अज ऩयभेश्िय को अऩने शरमे ककसी आधाय की आिश्मतता नह है ऩयन्त ुउसने अऩने अज जीिात्भा अभतृऩतु्र के बोग के शरमे स्थूर औय सकू्ष्भनत सकू्ष्भ जग की यचना कय द । औय मह कहा कक इसे त्माग की बािना से बोगो। वििषे फात मह है कक विश्िवऩता ने अऩने भहान ऩतु्र के शरमे अऩने से शभरती जुरती अनत सनु्दय देि नगय अमोध्मा अथावत भानि देह फनाई है। भोऺ की ओय जाने का एक भात्र स्थूर िय य ह साधन है। इसशरमे –

ऻानननष्ठो पवयक्तोSपऩ धभपऻो पवस्जतसे्न्रम्। बफना देहSपऩ मोगेन, न भोऺॊ रबत ेपवधे।। अथावत हे विधे ! ऻानी वियतत जजतजेन्रम औय धभवऻ सॊत बी देहरूऩी

साधन के बफना मोग के द्िाया भोऺ प्रातत नह कय सकता। इस प्रकाय अन्म िय यों अथिा मोननमों भें तो सिवथा ह असम्बि है। इस प्रकाय हभने देिा है कक मह भानिदेह केिर बोग विरास के द्िाया अऩवित्र कयने मोग्म नह है। इसका भखु्म प्रमोजन भोऺधाभ तक जाना है। ऩयन्त ुव्मजतत को इस देहऩरुय का तननक बी ऻान नह होता कक इसभें अगखणत ह ये औय यत्न तथा भोऺ भखण तक का िजाना बया ऩडा है। इस भानि को तो स्थूर िय य का बी ऻान नह ॊ। सकू्ष्भ कायण औय भहाकायण िय यो का तो तमा ऻान हो सकेगा। इस देह को सभझने की आिश्मकता है। इस िय य के अन्दय के सभस्त िजाने प्राणिाम ुकी चाफी से िुर जात ेहैं। जनभ भयण तक की कक्रमा उसके आधीन हो जाती है।

दो0- जया जनभ भतृ्म ुपवजम गय जागतृ अमबरास।

मोग ऩयामण ध्मान साधना कय धायणा अभ्मास।।146।।

मदद जन्भ भतृ्म ुऔय िदृ्धािस्था ऩय विजम ऩाने की अशबरासा जाग गई है तो मोग ऩयामण ध्मान साधना का अभ्मास धायण कयो।

चौ0- जनन रहुाय पोंकक भखु धौंका । कायज मसद्धहहॊ अननरहह झौंका।।

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त्मूॊ मोगी प्राणामाभ पवकासा । ऩाम अयाध्म दयस घटाकासा।।1।।

जैसे रहुाय धोंकनी के भिु भें पूॊ क भायता है औय िाम ुके झौंके से अऩना कामव शसद्ध कय रेता है उसी प्रकाय मोगी प्राणामाभ का विकास कयके अऩने घटाकाि भें अऩने अयाध्म देि का दिवन प्रातत कय रेता है।

चौ0- प्राण आमाभ ही प्राणामाभा । कयहहॊ गभन सयुनत ननज धाभा।। ननजगजृ जाइ यपव शशी प्रत्वामा । जाइ भोष कोउ रौहट न आमा।।2।।

प्राण का वियोध ह प्राणामाभ है जजसके द्िाया सयुनत ननजदेस को गभन कयती है। अऩने ननजधाभ भें जाकय समूव चन्रभा बी िाऩस रौटकय आ सकत ेहैं ऩयन्त ुभोऺ (ननिावण) भें जाकय कोई रौटकय नह ॊ आता।

चौ0- अमभ हहत ुजे शत ्फयस तऩासी । ऩीफइ जरबफन्द कुशानकुासी।। प्राणामाभ अभ्मास आधाया । सो पर मोगी सहजहहॊ धाया।।3।।

जो साधक सौ िषव तऩकय कुिा की नोक के जरबफन्द ुके सभान अभतृ को ऩाता है। उस पर को प्राणामाभ अभ्मास द्िाया मोगी सहज ह भें धाय रेता है।

चौ0- जे जन प्राणामाभ ननत कयहहॊ । ऩाइ ब्रह्भऩद सॊस भर ऺयहहॊ।। दीक्षऺत भानव ब्राह्भण होई । जानत फयण कुरवॊश न कोई।।4।।

औय जो भानि ननत प्राणामाभ कयता है उसके सॊस्काय भर नष्ट हो जात ेहै। औय िह ब्रह्भऩद को प्रातत कय रेता है। ऐसा द क्षऺत भानि ह ब्राह्भण होता है इसभें जानत िगव कुर औय िॊि कुछ नह ॊ है।

दो0- तस्ज आरस्म एकान्त जे यत ननत प्राणाभ्मास।

स्वछॊद गगन पवचयण कये जनभ भतृ्म ुनहीॊ ऩास।।147।।

औय जो भानि आरस्म त्मागकय एकान्त भें ननत प्राणामाभ भें रगा यहता है िह आकाि भें स्िछॊद विचयता है। उसके ऩास जन्भभयण नह ॊ आता।

चौ0- होहहहॊ नतहह गनत वाम ुसभाना । मसद्ध स्वरूऩ फर शौमपवाना।। हौं देपव सो तभुही सभझावा । अफ सनु तजे मसपद्ध कस दावा।।1।।

उसकी गनत िाम ुके सभान हो जाती है औय िह िौमविान तथा फर भें शसद्ध स्िरूऩ होता है। हे देिी ! िह सफ भनेै तमु्हे ह सभझामा है अफ तभु सनुो कक तजेस ककस प्रकाय शसवद्ध प्रदान कयता है।

चौ0- ऩावन शाॊत इकान्त स्थाना । कोभद सखुद कुशासन राना।। भ्रभुध्मदेस अनर प्रकास ू। यत धचॊतन कय प्राण अभ्मास।ू।2।।

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ऩवित्र औय िान्त एकान्त स्थान भें कोभर औय सिुदामी कुिा का आसन रगािे कपय भ्रभुध्म केन्र भें अजग्न के प्रकाि का सतत धचॊतन यत प्राणामाभ अभ्मास कयना चादहमे।

चौ0- तद प्रभाद यहहत दीए हीना । नतमभय देस सो ज्मोनत रखीना।। सतत प्रमास हदवस इक आवा । तीसय नतर भहाज्मोनत उदावा।।3।।

कपय प्रभाद यदहत होकय द ऩक यदहत अॊधेये स्थान भें िह ज्मोनत देिे। इस प्रकाय ननयन्तय प्रमास से एक ददन ऐसा आ जाता है कक नतसया नतर भहा ज्मोनत प्रकाि उत्ऩन्न कयता है।

चौ0- सहज कयाॊगरु पवधध दोउ ननैा । कछुक दाबफअ सदगरु सनैा।। इकाग्र धचत्त भहुुयत आधी । हटभहटभ उड्गन देणख सभाधी।।4।।

अऩने हाथों की अॊगशुरमों से दोनो नेत्रों को सहज (सयरता) से सदगरुु के सॊकेतानसुाय कुछ दफामे। इस प्रकाय आधे भहुतव एकाग्रधचत्त से सभाधी अिस्था भें ताया गण की दटभदटभ देित ेहैं।

दो0- सॊत तदन्तय नतमभयठाभ ; ध्मानहहॊ ईष्ट मभराऩ। ज्मोनत स्वरूऩ ऩयब्रह्भ रणख ; टयहहॊ व्माधध बव ताऩ।।148।। तदन्तय सॊत का ध्मानस्थ अॊधेये स्थान भें ह अऩने ईष्टदेि से शभराऩ हो

जाता है। तफ ज्मोनतस्िरूऩ ऩायब्रह्भ का साऺात्काय कयने से सॊसाय के ताऩ औय व्माधधमाॊ शभट जाती है।

चौ0- श्वेत रार ऩीरी हयी कारी । ईन्दय चाऩ सभान यॊगारी।। हटभहटमभ तजे बत्रसेणु नाई । आयम्ब कार मोगी सन आई।।1।। श्िेत, रार, ऩीर , हय औय कार ईन्र धनषु के सभान यॊगीर बत्रसेणुओॊ के

तयह तजेस की दटभदटभाहट आयम्ब कार भें मोगी के सम्भिु आती है।

चौ0- बौहों भध्म फार यपव सभाना । दोषहहॊ तजेस अनर भहाना।। मोगी ननज भन ईच्छानसुायी । धायई धचत करय क्रीडा सायी।।2।।

तथा बौहों के भध्म फार समूव के सभान भहान अजग्न का तजेस (ज्मोनत प्रकास) द िता है। मोगी अऩने भन की ईच्छानसुाय इन साय कक्रडाओॊ को कयता है औय धचत्त भें धायण कयता है।

चौ0- ऩठैहहॊ शान्त कायण तत्व भाहीॊ । मसपद्ध अणणभाहद सहजहहॊ ऩाहीॊ।। दृष्मादृष्म ऩदाथप रणख जाने । अदृश्म होइ सो गगन प्रमाने।।3।।

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कपय कायण तत्ि भें िान्त फठैकय अखणभादद शसवद्धमाॊ सहज ह भें प्रातत कय रेता है। तथा गोचय औय अगोचय सबी िस्तओुॊ को देि रेता है औय जान रेता है। औय अदृष्म होकय आकाि भें विचयण कय रेता है।

चौ0- तभस ऩाय भहज्मोनत अऩाया । हौं मशवा सोई ब्रह्भ ननहाया।। जफ रधग सो ब्रह्भ दयस न होई । भतृ्म ुकार राॉघहहॊ नहहॊ कोई।।4।।

हे शििे ! अॊधकाय के ऩाय अऩाय भहाज्मोनत स्िरूऩ उस ब्रह्भ को भैंने देिा है। जफ तक उस ब्रह्भ का साऺात्काय नह ॊ हो जाता कोई बी भतृ्म ुऔय कार को नह ॊ राॊघ ऩाता।

चौ0- जाग्रत सऩुन सषुऩुनत तरुयमा । तरुयमातीत अतीत कैवरयमा।। थूर सकू्ष्भ कायन भहकायन । एहह दसा बव कायन तायन।।5।। जागतृ, स्िऩन, सषु्ऩनत, तरुयमा, तरुयमातीत से ऩये कैिल्म ऩद है मे ह

स्थूर सकू्ष्भ कायण भहाकायण आदद अिस्थाऐॊ ह बि का कायण औय बि से तायणहाय है।

दो0- सनुो मशवा तजेसतत्व हौं तभु सन कीन्ह फखान।

कार पवजम जास ुकरयत जीव अमभयस ऩान।।149।।

औय हे कल्माणी सनुो ! भैंने तमु्हाये सभऺ तजेस तत्ि का िणवन कय ददमा है। जजससे जीि कार ऩय विजम प्रातत कयके अभतृ का यसऩान कयता है।

चौ0- धचत्त फसरई आसन सखुदाई । ऩहैठ एकान्त ध्मानस्थ होइ जाई।। देह उध्र्व करय अॊजमर फाॊधा । चोंचरय भखु करय वामो साॊधा।।1।।

सिुदामी आसन ऩय धचत्त को िश्म कयके एकान्त भें फठै कय ध्मानस्थ हो जाना चादहमे औय देह को ऊऩय को कयके अॊजशर फाॊधकय चोंच की तयह भिु कयके िाम ुको सीॊचना चादहमे।

चौ0- शन ैशन ैवाम ुयस ऩीवा । तार ुऩरयत अमभ फनू्द सभीवा।। वामवुत सो फनू्द सीॊचावा । जीवन दामनन तत्व कहावा।।2।।

इस प्रकाय धीये धीये िाम ुका यस ऩीिे औय तार ुभें धगयने िार अभतृ की फनू्द को सभो रेना चादहमे। िाम ुकी तयह उस फूॊद को सीॊचना मह जीिन दानमनन तत्ि कहराता है।

चौ0- सो शीतर जर अभरयत ऩावन । ननत ऩीफइ भनुन भतृ्म ुनसावन।। व्माप्त न तद नतहह बखू पऩमास ू। हदव्म देह भहातजे उगास।ू।3।।

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उस िीतर जर ऩािन अभतृ को भनुनजन ननत ऩीकय भतृ्म ुका नास कयत ेहै। तफ उनको बिू तमास बी नह ॊ रगती औय भहातजे ददव्म देह भें उत्ऩन्न हो जाता है।

चौ0- वेग तयुॊग फर हस्ती सभाना । गरूड दृष्टी दयूस्थ शब्द काना।। देवहह शत ्फयीस जीए जानी । फहृस्ऩनत सभ बत्रकार पवऻानी।।4।।

उस मोगी का िेग अश्ि औय फर हाथी के सभान हो जाता है। दृष्ट गरूड जैसी तथा दयूस्थ िब्द कानो भें आने रगत ेहै। औय िह देिताओॊ के सौ िषव तक जीवित यहना जान रेता है तथा िहृस्ऩनत के सभान बत्रकार विऻानी हो जाता है।

दो0- अफ सनुहु वयानने अनत गोऩनीम शधुच साय।

कीन्हे वॊधचत सयुगण अपऩ याणख दयुाई धाय।।150।।

औय हे ियानने अफ तभु अनत गोऩनीम ऩािन सायतत्ि सनुो भैंने उससे देिताओॊ को बी िॊधचत कयके छुऩाकय यिकय धायण ककमा हुआ है।

छ0-साधक ननत सदगरु कृऩा गहह पवधध जाननअ मोग सभावहहॊ। जतन जुयाम भौरय ननस्ज जीबा तार ुभाहीॊ सठावहहॊ।।

इह पवधध सो रम्फ कार जतन गरघाॊटी रागी आवहहॊ।

“होयाभदेव” तद सधुा स्राव सो समुोगी अमभयस ऩावहहॊ।।12।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहै कक साधक ननत अऩने सदगरुु की कृऩा से मह

विधध जानता है औय मोग भें सभा जाता है तथा मत्नऩिूवक अऩनी जीभ्मा को भौडकय तार ुभें सठा रेत ेहै। इस विधध से उसे रम्फे सभम तक प्रमत्न यत गरघाट ॊ तक रगाकय रे आता है। तफ अभतृ का स्राि से िह उत्तभ मोगी अभतृ का यसऩान कयता है।

दो0- जे जन सद्गरु ऩायणख अभी शब्द धचतराम।

सोहॊ सोहॊ कहह केत ेभएु नतरय सोहॊ फनन जाम।।151।।

जो सज्जन सतगरुु ऩायखि है िे अभतृ िब्द को धचत्त भें धयत ेहै। सोहॊ सोहॊ कहकय तो ककतने ह भय गमे। िे ह नतये है जो सोहॉ स्िरूऩ हो गमे हैं।

दो0- ऩहहरे पर ऩक्का रगे कच्चा होइ धगयजाम।

दसूय ऩथृभ कच्चा रगे पवटऩइ ऩनुन जुरय जाम।।152।।

एक पर (जीिात्भा) ऩहरे ऩतका होता है िह जफ कच्चा हो जाता है तफ धगय जाता है (अथावत जफ जीि ब्रह्भ था तफ ऩतका था भामा भें कच्चा होकय धगय गमा है)। दसूया पर (जीिात्भा) ऩहरे कच्चे हैं िह ऩक कय ऩनु् िृऺ ऩय रग जाता है।

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दो0- ब्रह्भ से धगया जीव फना एहह काॊचा जीवऩुन।

जीव ऩके ऩनुन ब्रह्भ बमे होम कार ऩरयछ्नन्न।।153।।

ब्रह्भ से छूटकय जो जीि फनता है मह उसका कच्चा ऩन है। जीि ऩक कय ऩनु् ब्रह्भ हो जाता है औय कार से अरग हो जाता है।

13 – ईन्र भोह बॊग

दो0- सनुन सनुन ऻान पवऻान प्रबो भन उऩजत स्जऻास।

कहह मशवा जीव अभतृ सतु् अचज फॊध्मो मभपाॊस।।154।।

ऩािवती फोर कक हे प्रबो ! मह ऻान विऻान सनु सनु कय भेये भन भें जजऻासा उऩजती जाती है औय आश्चमव है कक अभतृ ऩतु्र जीिात्भा मभ के पाॊस भें फॊधा हुआ है।

दो0- नाथ कहहु वतृान्त सोइ होम पवयाग पवकास।

कारातीत को जगऩनत केहह फर सफ ुजग बास।।155।।

हे स्िाभी ! िह ितृान्त कहो जजससे ियैाग्म का विकास होिे। कार से ऩये जगद श्िय कौन है औय मह साया जगत ककस सत्ता से बास यहा है?

चौ0- फोरे मशव सनुहु मशवे ऻाना । जास ुजीव ऩावहहॊ कल्माना।। जफ रधग ननस्ज स्वरूऩ न जाने । तफ रधग कार जार बयभाने।।1।।

तफ श्री शिि फोरे कक हे शििे ! मह ऻान सनुो, जजससे जीि कल्माण ऩाता है जफ तक ननजज स्िरूऩ का ऻान नह ॊ होता तफ तक ह कार के जार भें बयभत ेकपयत ेहैं।

चौ0- जनन वामोरयफ घन नब दौया । भ्रभत कपयत नहीॊ धथय ठौया।। स्वरूऩ ऻान बफना मह प्रानी । ऩाम भहादखु नाना खानी।।2।।

जजस प्रकाय िाम ुके द्िाया उडामा हुआ फादर आकाि भें दौडता कपयता है, औय भ्रभता कपयता है। उसे कह ॊ ठौय नह ॊ शभरती उसी प्रकाय स्िरूऩ ऻान के बफना मह प्राणी नाना मौननमों भें भहादिु ऩाता यहता है।

चौ0- दखु बरय सखु हेत ुजो ऩाई । एक ननमभष सो कार नसाई।। तफ सो जीव ग्रमसत भहशौका । मथा खानन जानहहॊ सखु गौका।।3।।

सिु के शरमे िह जीि दिु बयकय जो कुछ ऩाता है कार उसे ननशभष भें ह नष्ट कय डारता है। तफ िह जीि भहा िोक भें डूफा जाता है। िह तो जैसी जैसी मौननमों भें होता है उसी की इजन्रमों के सिुों को जानता है।

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चौ0- भ्रभत सदई भामा कय पे्रया । ऩरय तचु्छ खानन न चहहहॊ ननफेया।। जन फर तन धन तीम ुऩसाया । सफहह देणख फड बाग्म पवचाया।।4।।

औय सदा भामा का पे्रया हुआ बटकता है औय तचु्छ मोननमों से चाह कय बी छुटकाया नह ॊ ऩाता। फस जन फर िय य धन औय स्त्री द्िाया कुटुम्फ को देिकय अऩने को फड ेबाग्म िारा भानता है।

दो0- ऩनुन ऩनुन ननज ऩरयश्रभयत परत न रणख ऩरयवाय।

ननबपम आतयु ऩयरव्म गहह कुकभप कयत अऩाय।।156।।

औय फाय – फाय ऩरयश्रभ भें रगा यहकय बी अऩने ऩरयिाय को परता पूरता न देिकय ननबवम होकय आतयुता से ऩयामे धन को गहृण कयता है औय अऩाय कुकभव कयता यहता है।

चौ0- सो भॊद बाग्म पवपर जफ होई । कुटुम्फ बयण साभथप न कोई।। तफ धचन्तातयु आहें बरयमाॊ । सॊग छाडड सफ दरूय करयमाॊ।।1।।

िह भॊद बाग्म प्राणी जफ विपर हो जाता है औय कुटुम्फ ऩारने भें कोई साभथव नह यहती तथा धचॊतातयु होकय आहें बयता है औय िे सबी साथ छोड कय उसे दयू कय देत ेहैं।

चौ0- कयत अनादय तफ सफ भीता । जनन वदृ्ध गौजय कृषक कीता।। भखु कुरऩ फरहीन शयीया । सफ पवधध ऩाम भहादखु ऩीया।।2।।

औय िे सबी वप्रमजन अनादय कयत ेहैं जैसे कक िदृ्ध फरै का ककसान कयता है। भिु कुरुऩ औय िय य फरह न हो जाता है औय सबी प्रकाय से भहादिु औय ऩीडा प्रातत कयता है।

चौ0- तदपऩ मशवे नहहॊ जाधग पवयागा । छूटत नाहीॊ कुटुम्फ अनयुागा। जनन स्वान टूक ऩइ ऩरहीॊ । सो पवधध ताही जीवन सरहीॊ।।3।।

कपय बी शििे ! उसे ियैाग्म नह जागता कुटुम्फ का भोह नह ॊ छूटता। जैसे कक कुत्ता टुकडों ऩय ऩरता है उसी तयह उसका जीिन फीतता है।

चौ0- शन ैशन ैभतृ्म ुसन आवा । तफ बफन ुसकृुत अनत ऩछतावा।। सम्भखु देणख बमॊक मभदतूा । बमातयु होई झयहहॊ भरभतूा।।4।।

धीये धीये भतृ्म ुसाभने आ जाती है तफ बफना सत्कभव फहुत ऩछताता है। औय सम्भिु बमॊकय मभदतूों को देिकय बमबीत होकय भरभतू्र ननकर जाता है।

दो0- अनत दयुगभ भायग तहॉ पवह्वर बखू पऩऩास।

घाभ दावानर रूॉ तऩत थकक थकक चरत उदास।।157।।

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आगे फहुत ह दगुवभ भागव िहाॉ ऩय है बिू तमास से व्माकुर होता है। घाभ औय दािाजग्न की रूॉ तऩाती है औय थक थक कय उदास हुआ चरता है।

चौ0- मातना देह डारय सो देंहीॊ । जननअ याजबट फाॊधध चरेहीॊ।। भदुगर भाय देहहॊ मभ दासा । व्माकुर जीव सहहहॊ सफ ुत्रासा।।1।।

उसे मातना िय य भें डार देत ेहै भानो याज्म कभवचाय फाॊधकय चरे हों। मभदतू भदु्गर भायत ेहै। जीि व्माकुर होकय सफ मातनाऐॊ सहन कयता है।

चौ0- मोजन सहस्त्र ननन्माफ ैदयूी । मभऩयु आम ऩीय सहे ऩयूी।। बफना सकृुनत नाहीॊ फधच ऩावा । मभ आदेस नयकऩरुय जावा।।2।।

ननन्मानि ैसहस्त्र मोजन की दयू ऩय मभरोक आता है। िहाॉ िह ऩयू ऩीडा सहता है। िह बफना सकृुनत फच नह ॊ ऩाता औय मभ आदेि से नयक रोक चरा जाता है।

चौ0- कोऊ धधकती अनर जयई । नधुच कोऊ भाॊस उदय धगद्ध बयई।। कोऊ को चूॊहट चूॊहट सफ भाॊसा । खावहहॊ फसृ्श्चक पवषधय डाॊसा।।3।।

िहाॊ कोई धधकती अजग्न भें जरता है ककसी के भाॊस को नोच नोच कय धगद्ध ऩेट बयत ेहै। ककसी का साया भाॊस काट काट कय बफच्छू सऩव औय डाॊस िा जात ेहैं।

चौ0- नयकहहॊ जीव ऩयइ ऩनछताहीॊ । जतन कये फॊध छूटत नाहीॊ।। ऩाऩरूऩ ऩाथेम सॊग जीवा । इह तन छाडड इकेव गभीवा।।4।।

नयकों भें जीि धगयकय ऩछतात ेहैं प्रमत्न कयके बी फॊध नह ॊ छूटती। ऩाऩ रूऩ सॊस्कायों के सॊग सॊग मह (बौनतक) िय य छौडकय अकेरा ह िहाॊ ऩय आता है।

दो0- इह पवधध नाना जौनन नयक, जीव सफहह करय बोग।ु

भानव जौनन ऩावहहॊ कदा प्रब ुककयऩा सॊजोग।ु।158।।

इस प्रकाय नाना मौननमों भें जीि सफका बोग कयके भानि मौनन को प्रातत कयता है जजसभें प्रब ुकी कृऩा का ह समुोग होता है।

चौ0- भात ुगयब जफ ऩणूप शयीया । फाढहहॊ ताऩ भरभतू्तय ऩीया।। कयत पवचारय स्भनृत जगाई । ननरा कार सऩुन की नाई।।1।।

भाता के गबव भें जफ िय य ऩणूव हो जाता है तफ भरभतू्र की ऩीडा का ऩाऩ फढ जाता है। तफ विचाय कयता है औय स्भनृत को ननरा कार भें स्ितन की तयह जगाता है।

चौ0- तफ सो जीव ईच्छ पववसावा । ननजकृत कयभ फहुय ऩनछतावा।। कयत पवनम सभऺ कयताया । कयहु भकु्त भोहह जग उद्धाया।।2।।

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तफ िह जीि ननकरने की ईच्छा कयता है औय ननज कृत कभो ऩय फहुत ऩछताता है। प्रब ुसे अनेकों विनती कयता है कक भझुे भतुत कयके जगत से उद्धाय कय दो।

चौ0- सकृुत बस्क्त करयहौं व्रत रेंहूॉ । पवषम पवकाय धचत्त नहहॊ देंहूॉ।। बस्जहौं तोय नाभ शधुच धाभा । सॊत शयण यत यहौं अनगुाभा।।3।।

भैं प्रनतऻा रेता हूॉ कक ऩनु्म कभव औय बजतत करूगाॊ, विषम विकायों को धचत्त भें नह आने दूॊगा। तयेे धाभ औय नाभ की साधना भें जुड जाऊॊ गा औय सॊतो की ियण भें तयेा नाभ जऩूॉगा।

चौ0- पवनम सनुत प्रब ुदेहहॊ छुयाई । आवत बवहहॊ ऩनुन पॊ हद जाई।। बफन ुवयैाग्म पवषम अऩनाई । नाचत जगरय यहट की नाई।।4।।

इस प्रकाय विनती सनुकय प्रब ुउसे छुडा रेत ेहै ऩयन्त ुफाहय बि भें आकय ऩनु् ऩनु् पॊ द जाता है। औय बफना ियैाग्म विषमों को अऩना रेता है। औय यहट की फाजल्टमों की तयह नाचता यहता है।

दो0- सयुऩनत अपऩ भामा ग्रमसत फहहहॊ सरयता बत्रधाय।

ननस्ज आत्भ उद्धाय तस्ज कयहहॊ बोग साकाय।।159।।

ईन्र के सभान देिगण बी भामा भें ग्रशसत होकय उसकी बत्रधाया (सत यज तभ) भें िह जात ेहैं औय ननजात्भोद्धाय त्मागकय बोगों को ह साकाय कयत ेहैं।

दो0- फोरी मशवा हे नीरकॊ ठ ईन्दय कस बयभाम।

जे इक शत इक मऻ करय तऩ फस सो ऩद ऩाम।।160।।

श्री शििा फोर कक हे नीरकॊ ठ ! ईन्र कैसे भ्रशभत हो जाता है जो एक सो एक मऻ तथा तऩस्मा कयके उस ऩद को ऩाता है?

दो0- मशव फोरे ईन्र सयुऩनत भन भें कीन्ह पवचाय।

जनन फकुैॊ ठ हौं देणखमाॊ करूॊ बवन साकाय।।161।।

श्री शििजी फोरे कक सयुऩनत ईन्र ने भन भें विचाय फनामा कक भनेै अऩनी आॉिें से जैसा फैंकुन्ठ देिा है, िसैा ह एक भहर साकाय करूॊ गा।

चौ0- शत ्फयीष बफश्वकयभ ुबफतावा । बवन ऩणूप तदपऩ नहहॊ ऩावा।। धचनमस बवन सो ननत ननत जेता । ईन्र न बाम नसावहहॊ ततेा।।1।।

इस प्रकाय विश्िकभाव ने सौ िषव बफतामे कपय बी भहर ऩयूा नह ॊ कय ऩामा। िह जजतना भहर ननत धचनता था इन्र को अच्छा नह ॊ रगता था इसशरमे उसे धगया देता था।

चौ0- ईन्रदेव अनफुॊध इक राई । ऩणूप बवन बफन ुगहृ नहहॊ जाई।।

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बफसकभाप बई तात ेउदासी । कायण कवन सो ननजगहृ जासी।।2।।

इन्र ने एक ितव रगा यिी थी कक िह भहर ऩणूव ननभावण ककमे बफना अऩने घय नह जा सकता। इस कायण विश्िकभाव को उदासी हो यह थी कक िो ककस कायण अऩने घय जामे।

चौ0- तफ सो कीन्ही श्रीहरय ध्माना । कयहु भकु्त भोहह कृऩा ननधाना।। पवनम सनुत श्रीहरय भनुन बेषा । आमऊ जहॊ सो बवन पवशषेा।।3।।

तफ उसने श्रीहरय का ध्मान ककमा औय विनम की कक हे कृऩाननधान भझुे भतुत कय दो। विनम सनुकय श्रीहरय के बेष भें िहाॊ आमे जहाॊ वििषे भहर का ननभावण हो यहा था।

चौ0- सॊत फोरे हे ईन्र भहाना । असम्बव बवन फकुैॊ ठ सभाना।। शत फयीष बफसकयभा रागी । पवयथा काभा तव भन जागी।।4।।

िे सॊत फोरे कक हे भहान इन्र फकुैॊ ठ के सभान भहर असम्बि है। सौ िषव विश्िकभाव को रग चुके हैं। तमु्हाये भन भें मह व्मथव की काभना जाग गई है।

दो0- सॊत बेष कभराऩनत ऩनुन ऩनुन ईन्र फझुाम।

बवन भोह ग्रमसत सयेुश दृढ भनत भानहहॊ नाम।।162।।

सॊत बेषधाय श्रीविष्णु जी ने फाय फाय इन्र देि को सभझामा ऩयन्त ुसयुऩनत इन्र भहर के भोह भें ग्रशसत था उसका दृढ ननश्चम था इसशरमे िह भानता नह ॊ था।

चौ0- श्रीहरय तॊह इक तरूवय देखा । स्जहह भरूहहॊ बनूछर पवशखेा।। असॊखम बफरेहर ुफाॊधध कताया । ननकसऊ फाहय आय न ऩाया।।1।।

िह ॊ ऩय श्रीहरय ने एक िृऺ देिा। उसकी जड भें एक वििषे बफर था। कताय फाॊध कय असॊख्म चीटें जजनका कुछ आय ऩाय नह ॊ था फाहय ननकर यहे थे।

चौ0- सकर बफरेहुमर जे तभु देखी । ननज ननज कार सफ ईन्र पवशखेी।। प्रबतुा ऩाम बमे सखु बोगी । बमऊ ऩतन बफन ुसकृुनत मोगी।।2।।

मे सभस्त चीॊटे तो तभु देि यहे हो िे सफ अऩने अऩने सभम के वििषे इन्र हैं। मे प्रबतुा ऩाकय बोगी विरासी हो गमे थे इसशरमे सकृुनत सॊमोग के बफना इनका ऩतन हो गमा।

चौ0- हरय समुभय भठकाभा तजाई । बफन ुसदकयभ अद्मौगनत जाई।। सत्ता ऩाम दरुऩमोग कयहहॊ । सत्ता छीनत भहादखु बयहहॊ।।3।।

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बिन की इच्छा छोडकय हरय बजन भें रग जा। बफना ऩनु्मों के ऩतन हो जाता है। तमोंकक जो सत्ता ऩाकय दरुुऩमोग कयता है उससे सत्ता छीन र जाती है। तफ िह फड ेदिु बयता है।

चौ0- फाय फाय सो भनुन सभझावा । प्रफर हठ नहीॊ ईन्र तजावा।। तहेीॊ अवसय अवधू इक आई । ऩावन इक मसयधारय चटाई।।4।।

िह भनुन फाय फाय सभझाता यहा। ऩयन्त ुप्रफर हठ इन्र ने नह ॊ छोडी तफ उस सभम एक अिधूत आ गमे जजसने अऩने शसय ऩय एक िदु्ध चटाई यिी हुई थी।

दो0- “होयाभदेव” ननज शीश ऩय रघ ुचटाई धारय। रोभचक्र छनतमन पवकट अवधू ऩीय अऩारय।।163।।

श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक उसने शसय ऩय छोट सी एक चटाई धायण की हुई थी तथा छाती ऩय एक विकट रोभचक्र (घाि) था जजसकी उसे अऩाय ऩीडा हो यह थी।

दो0- अवधू सम्भखु देणख तफ ईन्दय कीन्ह प्रनाभ।

सादय बफठाई सस्न्नकट भन हयपषत “होयाभ”।।164।।

तफ इन्र ने अिधूत को साभने देिकय प्रणाभ ककमा। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक उन्हे आदय सदहत अऩने ऩास बफठाकय इन्रदेि का भन फडा प्रसन्न हुआ।

चौ0- ईन्र ऩरयचम फझुावन रागे । जनन सबुाग्म नतहह के जागे।। को तभु श्माभर फाभन देहा । शीश चटाई काहे धरय रेहा।।1।।

कपय इन्र देि उनका ऩरयचम ऩछूने रगे भानो आज इन्र के बाग्म जाग यहे हैं कक तभु साॊिरे यॊग के फाभन िय यधाय कौन हो औय अऩने शसय ऩय चटाई तमों धायण ककमे हुिे हो ?

चौ0- को तव वॊश कुतो गहृ ग्राभा । आमउ कुतो कवन तभु नाभा।। ईन्रफदन सनुन बावकु फानी । फोरे पवनम्र अवधूत भहानी।।2।।

औय तभु ककस िॊि के हो तमु्हाया घय ग्राभ कहाॊ है ? तमु्हाया तमा नाभ है औय तभु तमों आमे हो ? इन्र के भिु से बाि बय फातें सनुकय िह भहान अिधूत विनम्रता से फोरे कक -

चौ0- हौं अनाभी जगद कहाहीॊ । वॊशहीन ग्राभ गहृ नाहीॊ।। न कोउ भाता पऩता हभायी । तद कक वॊश कुर ग्राभ उच्चायी।।3।।

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भैं तो सॊसाय भें अनाभी (बफना नाभ का) कहराता हूॉ िॊि कोई नह , न कह ॊ घय औय ग्राभ है। औय हभाय कोई भाता वऩता बी नह ॊ है। तफ भैं अऩना िॊि कुर ग्राभ तमा फताऊॊ ?

चौ0- आम ुअनतकय रघतुभ भोयी । कायन एहह न सम्ऩदा जौयी।। नाहीॊ कोऊ कहें बवुन फनामा । रघ ुआम ुककभ करूॉ उऩामा।।4।।

भेय आम ुफहुत थोडी है। इस कायण भैंने कोई सम्ऩदा नह जौडी औय न कह ॊ कोई अऩना बिन फनामा। बरा ! थोडी सी आम ुके शरमे मे उऩाम तमा करूॉ ?

दो0- जहॉ देणख अनकूुर थर तहॉ चटाई बफछाम।

भभ आनन्द पवश्राभ तहॉ कोऊ न धचन्ता आम।।165।।

भैं तो जहाॉ अनकूुर स्थान देिता हूॉ िह ॊ अऩनी चटाई बफछा रेता हूॉ। िह ॊ विश्राभ कय रेता हूॉ। भझुे कोई धचन्ता नह ॊ सताती।

चौ0- बफहॊमस ईन्र फोरे भदृफुानी । केनतक तभु आम ुरघकुानी।। स्जहह कायन तभु बवुन न याॊचा । कपयहहॊ अवधूत सॊत जनन साॊचा।।1।।

इन्र देि हॊसकय भीठी िाणी भें फोरे कक तमु्हाय ऐसी ककतनी कभ से कभ (थोडी) आम ुहै जजसके कायण तभुने अऩने शरमे कोई बिन नह फनामा औय जैसे कोई ऩयभ सच्चे सॊत हो ऐसे अिधूत फने कपयत ेहों।

चौ0- कहह अवधूत सनु ुआम ुहभायी । सहस्त्र फाय फीनत जुग चायी।। एनत फडी पवबावयी कीता । तद बफयॊधच हदवस इक फीता।।2।।

तफ अिधूत फोरा कक भेय आम ुसनुो सहस्त्रफाय चायो मगु फीत जात ेहै औय इतनी ह फडी यात्री ऩयू कयके तफ ब्रह्भा जी का एक ददन फीतता है।

चौ0- ब ूफडूड तद ऩयरम होई । कहॊ ककहह ठाभ न यऺा कोई।। फीतइ हदवस तीन सौ साठा । सौ बफधध फयष एक नतहह गाठा।।3।।

तफ प्ररम हो जाती है ऩथृ्िी डूफ जाती है कह ॊ ककसी जगह कोई सयुऺा नह होती। इसी प्रकाय जफ तीन सौ साठ ददन फीत जात ेहैं िह ब्रह्भा जी का एक िषव सॊगदठत है।

चौ0- इह पवधध ब्रह्भा आम ुसायी । सौ फयीष मह गणना बफचायी।। ब्रह्भा कयहहॊ तद ऩणूप शयीया । होवहहॊ पवरम ब्रह्भानॊद सीया।।4।।

इसी प्रकाय से ब्रह्भा की साय आम ुकी गणना सौ िषव का विचाय कयो तफ ब्रह्भा जी अऩना िय य ऩणूव कय रेत ेहै तफ िह ब्रह्भानॊद स्रोत भें विरम हो जाता है।

दो0- अनन्त कौहट ब्रह्भाण्ड है बफधध हरय हय सफ भाॊहीॊ।

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कार ऩयूण ब ैब्रह्भ रम कौतकु फधचअ नाहीॊ।।166।।

ब्रह्भाण्ड अनन्त कौट है। सफ भें उनके ब्रह्भा विष्णु औय शिि है। जो अिधध ऩणूव हो जाने ऩय ब्रह्भ भें रम हो जात ेहै। इस कौतकु से कोई बी नह ॊ फच ऩाता।

दो0- असॊखम दान ऩनु्म भख पर रेहहॊ उच्चऩद कोम।

“होयाभदेव” दरुऩमोग सों वेगहहॊ ऩदच्मतु सोम।।167।। कोई जीि असॊख्म दान ऩनु्म औय मऻों के पर स्िरूऩ उच्च ऩद प्रातत कय

रेता है श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक उस ऩद सत्ता का दयुोऩमोग हो जाने से िह ऩदच्मतु हो जाता है।

चौ0- असॊखम फाय मह कौतकु देखा । जाकय कहुॊ ऩाय नहहॊ रेखा।। वतपभान जो ब्रह्भा उद्भासा । आम ुऩयूण फयष ऩचासा।।1।।

भैंने असॊख्म फाय मह िेर देिा है जजसका कह ॊ न ऩाय है औय न रेिा है। अफ ितवभान भें जो ब्रह्भा वियाजभान है उनकी ऩचास िषव की आम ुऩणूव हुई है औय–

चौ0- फयष इक्मावन अफ जे रागी । वीसोनअ्ष्टवाॊ सतमगु जागी।। सनुहु सहस्त्र चौकरय ऻाना । इक हदवस बफधध आम ुप्रभाना।।2।।

अफ जो उनका इतमािनिाॊ िषव रगा हुआ है। उसका मह अटठाईसिाॊ सतमगु है। अफ तभु सहस्त्र मगुों की चौकडडमों का ऻान सनुो जो कक ब्रह्भा की एक ददन की आम ुका प्रभाण है।

चौ0- एक हदवस ब्रह्भा के भाहीॊ । चौदस ईन्र मभ भन ुअवसाहीॊ।। तात ेईन्र भन कयों पवचाया । केनतक ईन्र बमे अजसाया।।3।।

एक ददन जो ब्रह्भा का है उसभें चौदह इन्र मभ औय भन ुउतय जात ेहैं। इसशरमे इन्र भन भें विचाय कयो कक आज तक ककतने ईन्र हो चुके हैं।

चौ0- अफ सनु आम ुबफधध के ऩाया । तफ रागे कछु बेद हभाया।। हौं सत्मधाभ ननयारा फासी । अजय अभय अकथ अपवनासी।।4।।

अफ तभु ब्रह्भा के ऩाय भेय आम ुसनुो तफ कुछ हभाया बेद चरेगा। भैं सत्मरोक का ननयारा ननिासी हूॉ जन्भ औय भयन से ऩये अकथ औय अविनासी हूॉ।

चौ0- चारयशत्फीस ईन्र अवसाना । एक भास बफधध आम ुप्रभाना।। एहह बाॊनत शत ्फयष जु फीती । ब्रह्भा ऩणूप ननजाम ुकीती।।5।।

चाय सौ फीस ईन्र उतय जाने ऩय ब्रह्भा की एक भास की आम ुका प्रभाण है। इसी तयह सौ िषव जफ फीत जात ेहैं िह ब्रह्भा की ऩणूव आम ुहो जाती है।

छ0- सहस्त्र पवयन्ची देह तजई तद हरय ननजभरू सभावहीॊ।

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इह पवधध द्वादस हरय अवसहहॊ तद रूर इक ऩरक धगयावहीॊ।।

इकादस रूर तस्ज ननज शासन अस ननमभष ईश कय कहह।

सहस्त्र ईश पवरमइ अभयऩयु तद शषे पवशषे शस्क्त यहह।।13।।

सहस्त्र ब्रह्भाओॊ के देह त्मागने ऩय श्रीहरय अऩने भरू स्िरूऩ भें सभा जात ेहै। इस प्रकाय द्िादस विष्णु चरे जाने ऩय रूर की तफ एक ऩरक धगयती है। औय इकादस रूरों के अऩना अऩना िासन त्मागने ऩय ऐसी ननशभष सभम ईश्िय का कहा गमा है। औय ऐसे ह सहस्त्र ईश्ियों के अभय ऩद भें विरम हो जाने ऩय बी िषे वििषे िजतत यह जाती है।

छ0- सहस्त्र फाय शस्क्त साम्राज्म ऩयूण जफहहॊ होई जावहीॊ। सो भहाकल्ऩ अवधध प्रभाण गणणत न फयनन आवहीॊ।।

सो सफ कौतकु पवरोकक हौं अऺम अनन्त भोहह जाननमे।

“होयाभदेव” अस आम ुप्रभाण ईन्र ननजी भन भाननमे।।14।। औय सहस्त्रिाय िजतत साम्राज्म जफ ऩणूव हो जात ेहै िह एक भहाकल्ऩ की

अिधध है। जो गणना भें िणवन नह ॊ हो ऩाती। भैं मह साया कौतकु देिता हूॉ। भझुे अविनासी औय अनन्त जानो। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक ऐसा ह भेया आम ुप्रभाण हे इन्र ! तभु अऩने भन भें भानो।

दो0- सनुहु रोभचक्रहह कथा सनुनउ चककत ऩनछताम।

ऩणूप अवधध एक ईन्र जफ ; रोभ टूहट इक जाम।।168।। अफ रोभचक्र (घाि) की कथा सनुो जजसे सनुकय आश्चमव होगा औय

ऩछताना ऩडगेा। जफ एक इन्र की अिधध ऩणूव हो जाती है तफ (भेय छाती से) एक फार टूट जाता है।

दो0- याव सयु सॊत सत्मगरु जफ नहहॊ जीव हहताम।

तफ तफ रोभ टूहट धगये धगयइ घाव फन जाम।।169।।

जफ याजा देिता सॊत औय सदगरुु जीि का दहत नह ॊ कयत ेतफ तफ भेय छाती के फार उिड कय धगयत ेहै जजनके धगयने से घाि फन जात ेहै।

दो0- जफ कोऊ सॊत सतगरु सचखॊड जीव ऩठाम।

“होयाभदेव” तफ रोभचक्र कछुक अॊश बरय जाम।।170।। औय जफ कोई सॊत सदगरुु ककसी जीि को सचिॊड बेजता है श्री होयाभदेि

जी कहत ेहैं कक तफ रोभचक्र (फारतोड घाि) का कुछ अॊि बय जाता है।

चौ0- सॊत देत फहु सचखॊड ऻाना । जानन न सचखॊड जीव ऩठाना।। ननयॊजन पाॊसा सो नहहॊ तौयहहॊ । कथनन ऻान जीव झकझौयहहॊ।।1।।

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फहुत से सॊत सचिण्ड ऻान फहुत देत ेहैं ऩयन्त ुिे जीिो को सचिॊड बेजना नह ॊ जात।े िे कार की पाॊस नह ॊ तोडत ेकेिर कथनी ऻान से ह जीिों को झकझोयत ेयहत ेहैं।

चौ0- तात ेईन्र अस बफयती धायो । काभ बोग तस्ज ऩयहहत फायो।। नहहॊ तें शीघ्र ऩतन होई जइहैं । बफरेहुमर सभ भहादखु ऩइहैं।।2।।

इसशरमे ईन्र ! ऐसी िनृत धायण कयो कक काभना औय बोगो को त्मागकय ऩयदहत फढाओॊ। नह तो तमु्हाया िीघ्र ह ऩतन हो जामेगा औय चीटों के सभान भहादिु ऩाओगे।

चौ0-वहदऊ शधचऩनत तद भसुकाई । कक मभ भन ुअपऩ अवसाई।। दई उत्तय अवधूता फोरे । बेद बत्रदेव भन ुमभ खोरे।।3।।

तफ िधच ऩनत इन्र भसु्कयात ेहुमे फोरे कक तमा मभ औय भन ुका बी ऩतन हो जाता है। तफ अिधूत (सत्मऩरुुष) फोरे औय तीनों देि (ब्रह्भा, विष्णु औय शिि) तथा मभ औय भन ुका बी बेद िोरा कक –

चौ0- ऩॊचदेव ऩतन शीघ्र नहहॊ होवा । श्रुनत भायग कदा नहीॊ खोवा।। स्वसखु बोग नीनत तभु तौया । तात ेऩावहहॊ दॊड कठोया।।4।।

इन ऩाॊचो देिो का िीघ्र ऩतन नह ॊ होता तमोंकक िे श्रुनत भायग को कबी नह िोत।े अऩने सिु औय बोगों के शरमे तभु नीनत तोड देत ेहो इसशरमे कठोय दॊड ऩात ेहो।

चौ0- बफधध हरय हय इह बवसागय । सत्मधयभ सकुयभ यचाकय।। बगती अॊकुय प्रसव कीवा । नासहहॊ सकर ताऩ जग जीवा।।5।।

ब्रह्भा विष्णु औय शिि इस बिसागय भें सत्म धभव सकृतों को यचकय उनभें बजतत का अॊकुय पैरात ेहैं औय साये जगत के जीिों का साया सॊताऩ नष्ट कयत ेहैं।

चौ0- जास ुजीव कुगनत नहहॊ ऩावा । कारहह ताऩ सयुऺा दावा।। इह पवधध कारदेस बत्रदेवा । कयहहॊ भाभ काज की सेवा।।6।।

जजससे जीि कुगनत नह प्रातत कयत ेऔय िे कार के ताऩ से सुऺ ा प्रदान कयत ेहैं इस प्रकाय कार देस के ब्रह्भा विष्णु औय शिि भेया ह कामव कयत ेहैं औय सेिा कयत ेहैं।

दो0- अवधूत सॊत अदृष्म बमे टरय सयुऩनत अऻान।

सन्भखु श्रीहरय देणखके कीन्ह नभन गणुगान।।171।।

अिधूत सॊत तो अदृष्म हो गमे औय इन्र की अऻानता शभट गई औय सम्भिु श्रीहरय को देिकय उनको नभन तथा गणुगान कयने रगे।

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दो0- पवस्स्भत ईन्र ननहारय हरय फोरे सभम पवचाय।

फडबाग्म सरुब कार मह व्मथप न कय पवषमाय।।172।।

तफ श्रीविष्णु बगिान इन्र को चककत देिकय सभम विचाय कय फोरे कक मह सभम फडा ह बाग्म से सरुब होता है इसे विषमों के पॊ दे भें व्मथव न कयो।

चौ0- स्वमॊ धनी सचखॊड दमारा । आमऊ बेष अवधूत धयारा।। जफ मह जगद नहहॊ कहॊ कोई । नतहह सत्ता तदपऩ तहॊ होई।।1।।

स्िमॊ सचिॊड के दमार सत्मऩरुुष ह अिधूत का बेष धायण कयके आमे थे। जफ मह जगत कह ॊ बी कुछ बी नह यहता उसकी (सत्मऩरुुष की) सत्ता कपय बी िहाॊ यहती है।

चौ0- सो अनन्त अरूऩ अनाभा । सतधचदानॊद स्वरूऩ सत्मधाभा।। अज पवयज अनीह अकारा । प्रनत पे्रभी ऩयभ दमारा।।2।।

िह सत्मऩरुुष जजसका कोई रूऩ औय नाभ नह ॊ है िह सचिॊड धाभ भें सत्मधचद आनन्द स्िरूऩी है। िह कबी जन्भ नह ॊ रेता। िह वियज (गबव भें न आने िारा) है। सिवकाभनाओॊ से यदहत औय कार से ऩये है। िह ियण भें आमे हुिे का पे्रभी औय ऩयभ दमार ुहै।

चौ0- प्रकाश स्रोत जगद भें जेत े। जेनत ज्मोत व्मम रव्म तते।े। सो दनुत ऩुॉज स्रोत अपवनासी । व्मम यहनत शषे धचदयासी।।3।।

सॊसाय भें जजतने प्रकाि स्रोत हैं उनभें जजतनी ज्मोनत है उतना ह रव्म िचव होता यहता है। िह (ऩयभब्रह्भ) भहाज्मोनत ऩुॊज अऺम है जो व्मम यदहत, िषे तथा चेतन्म यासी है।

चौ0- शब्दातीत अऺम अनाभा । भामा कार तहॉ नहीॊ गाभा।। ताकी बगनत जे जन कयहीॊ । ब्रह्भ स्वरूऩ होइ बव तयहीॊ।।4।।

िह िब्दातीत अविनािी औय अनाभी है। भामा औय कार िहाॊ नह ॊ जा सकत।े उसकी जो व्मजतत बजतत कयता है िह ब्रह्भस्िरूऩ होकय बि से तय जाता है।

दो0- नहीॊ तहॉ यपव शशी मामभनन नाहीॊ अनर प्रकास।

अखॊड अछेद अबेद ऩद नतहह तजेस यपव बास।।173।।

िहाॊ समूव, चन्रभा, बफजर नह ॊ है न िहाॊ अजग्न का प्रकाि है। िह अिॊड अछेद औय अबेद ऩद है उसी के प्रकास से समूव प्रकाशित होता है।

चौ0- गोचय जगत अगोचय होई । यहहहॊ न द्वतै बान तहॉ कोई।। सो ननयाकाय अकाम अपवकाया । शषे पवशषे सदैव अऩाया।।1।।

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जफ मह दृष्मभान जगत अदृष्म हो जाता है तफ िहाॊ कोई द्िेत का बान नह ॊ यहता। िह ननयाकाय अिय य औय अविकाय ईश्िय ह सदैि िषे औय वििषे यहता है।

चौ0- जे जन धीय भोऺ की काभा । कयहहॊ ध्मान सो एहह अनाभा।। जे भनत भॊद जगद अमबरासा । कयहहॊ व्रत तऩ मऻ उऩासा।।2।।

जजन फवुद्धभान जनों को भोऺाशबराषा होती है िे इसी अनाभी प्रब ुका ध्मान कयत ेहै औय जजन्ह भढू भनत को सॊसाय की काभना होती है िे व्रत तऩ मऻ औय उऩासना आदद कयत ेयहत ेहै।

चौ0- औसय नय तन ऩाई सजुाना । कयहहॊ जतन भोऺऩद ऩाना।। एकहहॊ रक्ष्म ऩरुष अनाभी । यहहहॊ साधना यत अनगुाभी।।3।।

ससुज्जन व्मजतत भानिदेह के अिसय को ऩाकय भोऺ प्राजतत का प्रमत्न कयत ेहैं। उनका एक ह रक्ष्म अनाभी है उसी के अनगुाभी होकय साधना कयत ेयहत ेहैं।

चौ0- भढू भनजु नहहॊ ऻान मथायथ । कयहहॊ जतन जग ऺम ऩदायथ।। एहह ठानी तभु ईन्दय काभा । बोगत बोग नाहीॊ पवश्राभा।।4।।

भिूव व्मजतत को मथायत का ऻान नह होता िे तो जगद के नश्िय ऩदाथों के शरमे प्रमत्न कयत ेहै। इन्र तभुने मह काभना ठान यिी है, बोग बोगने भें तमु्हे विश्राभ नह ॊ है।

दो0- सनुहु ईन्र भभामस ुमह ; पवसकयभा भकुुताव। जे कछुक बफधध फस सरुब यहहु पवयक्त सभाव।।174।।

इन्र सनुो ! तमु्हे मह भेय आऻा है कक विश्िकभाव को भतुत कय दो औय बाग्मिि जो कुछ तमु्हे प्रातत हो गमा है उसभें वियततबाि से सभामे यहो।

दो0- श्रीऩनत अदृश्म बमे, ईन्र भनहहॊ पवचारय।

बफसकयभा भसु्क्त दई हहम ऩयभायथ धारय।।175।।

श्रीविष्णु जी बी अदृष्म हो गमे तफ इन्र ने भन भे विचाय कयके विश्िकभाव को भतुत कय ददमा औय ऩयदहत भें रग गमे।

दो0- जो मह ऩठहहॊ सनुहहॊ कथा सत्मबगनत भन राम।

बव ताऩ बफनसहहॊ मशवा नाहीॊ कार पॊ दाम।।176।।

इस कथा को जो ऩढता, सनुता है उसके भन भें सत्मऩरुुष की बगनत बय जाती है औय हे कल्माणी उसके सॊसाय ताऩ नष्ट हो जात ेहै औय उसे कार नह ॊ पॊ साता।

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दो0- कथा सनुत गद्गद् बई मशवा कीन्ह जमकाय।

ऩढे सनेु वयदान भभ फढे न ताऩ सॊसाय।।177।।

कथा को सनुकय गद्गद् होकय ऩािवती जम जमकाय कयने रगी औय फोर जो इसे ऩढेगा, सनेुगा भेया ियदान है उसे सॊसाय का ताऩ नह ॊ व्माऩेगा।

दो0- श्री मशव ऻान प्रसॊग तफ दीन्ही अधप पवयाभ।

अथप यजनी फीनत बई राधग कयन पवश्राभ।।178।।

तफ श्री शिि जी ने ऻान प्रसॊग भें अधव वियाभ प्रदान ककमा। आधी यात्री फीत गई है औय दोंनों विश्राभ कयने रगे।

इनत श्रीभद् अभयकथा श्री मशव ऩावपती सम्फादे (सयुत वेद) ततृीम ऩडाव ्

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।। श्रीभद् अभयकथा भहाकाव्म ।।

(सुयत िेद) (श्री शिि ऩिवती सम्फाद)

ततृीम िण्ड

ननिावण ऩदद (अभयनाथ गहुा गोष्ठी) 14 – जगद उत्ऩस्त्त

दो0- कहत “होयाभ” गोप्मानतगोप्म कयहुॊ प्रगट सत्मसाय। प्रथभ नतयजुग खारी गमे बफन सचखॊड प्रचाय।।179।।

श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक भैं सत्मसाय जो कक अनत गोऩनीम से गोऩनीम है को प्रगट कयता हूॉ। ऩहरे तीन मगु (सतमगु त्रतेामगु औय द्िाऩय मगु) सचिॊड के प्रचाय के बफना िार चरे गमे।

दो0- रोककयता सत्मऩरुष ; स्वमॊ गबप नही आम।

यज फीयज सॊउ उऩजत नहहॊ अकार दमार अथाम।।180।।

जगद का कताव स्िमॊ कबी गबव भें नह ॊ आता औय ना ह यज औय िीमव से उत्ऩन्न होता है। िह तो कार से ऩये दमार औय अथाम है।

चौ0- कोऊ कदा नहहॊ ऩणूप साभयथ । कयै फखान सत्मऩरुष मथायथ।।

मशव मशवा मभस मह सम्वादा । भैं “होयाभ” जतनऊॊ उद्गादा।।1।। ककसी की कबी बी ऩणूव साभथव नह ॊ है कक जो सत्मऩरुुष का मथाथव फिान कय सके। भैं होयाभदेि शिि ऩािवती सम्िाद के फहाने से इसको कुछ प्रगट कयने का प्रमत्न कयता हूॉ।

चौ0- आगभ ननगभ ऋपष भनुन सॊता । बमऊ पवपर गान सत्मकॊ ता।

भैं भनतभॊद साभयथ नाहीॊ । करूॊ फखान गान सत्म साॉहीॊ।।2।।

सभस्त िेद िास्त्र ऋवष भनुन औय सॊतजन सत्मऩरुुष का िणवन गणुगान कयने भें विपर हो गमे है भैं तो भनत भॊद हूॉ भेय साभथव नह है कक सत्मऩरुुष जगद श्िय का फिान औय गान कय सकूॊ ।

चौ0- अऺम अनाहद अनन्त बवीशा । कार भहाकार नभन कयीशा।।

सो सत्मऩरुष चहॉ गय कयहीॊ । ऩर राधग सफ जीव बव तयहीॊ।।3।।

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िह अविनािी अनादद अनन्त औय सभस्त विश्ि का स्िाभी है। कार औय भहाकार बी िहाॊ नभन कयत ेहैं। मदद िह सत्मऩरुुष अकार चाहे तो ऩर बय भें साये जीिों को भतुत कय सकता है।

चौ0- कारहह ननमभ फॊधे सफ प्रानी । वचन फद्ध सत्मधनन भहानी।।

अफ तभु सनुो मशवा गपु्तऻाना । स्जहह जानी सो गहह कल्माना।।4।।

ऩयन्त ुसबी प्राणी कार के ननमभ भें फॊधे हुमे हैं औय भहान सत्मऩरुुष धनी फचनों भें फधें हुमे हैं। इसशरमे हे शििानी ! अफ तभु िह गतुत ऻान सनुो जजसको जानकय सफ कल्माण को प्रातत कयत ेहैं।

दो0- प्रथभ सनुो हे हहभसतुा जीव प्रकृनत ब्रह्भऻान।

को पवधध जीव ऩथृक बमे प्रगटेऊ पवश्व पवतान।।181।।

हे दहभसतुा ! सफसे ऩहरे तभु प्रकृनत औय ब्रह्भ का ऻान सनुो। ककस तयह साये जीि अरग – अरग हुमे; औय ककस तयह सम्ऩणूव विश्ि (अनन्तॊ ब्रह्भाण्डों) का विस्ताय हुआ ?

चौ0- ऩयथभ ऩयूण ऩरुष अनाभी । अनन्त असीभ अणखर बव स्वाभी।।

उऩस्ज ईच्छा बमऊॉ जगरूऩा । प्रगहट ततऺण तयॊग अनऩूा।।1।।

आयम्ब भें ऩणूव ऩयभेश्िय अनाभी जो कक अन्त यदहत असीभ औय अखिर विश्ि का स्िाभी है को इच्छा उत्ऩन्न हुई कक भैं जगदरूऩ हो जाऊॉ उसी सभम उसके स्िरूऩ से एक तयॊग उत्ऩन्न हुई जो अदबतु थी।

चौ0- ईश्वय तयॊग ही प्राकृनत भरूा । यचत पवश्व सत्म ननमभानकूुरा।।

ऩयूण ब्रह्भ सागय दनुत बाया । असॊखम बफन्द ुबमो अॊश ननमाया।।2।।

जगद श्िय की िह तयॊग ह भरू प्रकृनत है जो सभस्त विश्ि को सत्मधनन के ननमभानकूुर यचती है। ऩणूव ब्रह्भ अनाभीश्िय वििार ज्मोनतसागय ह असॊख्म फनू्द (अॊि) रूऩों भें अरग अरग प्रगट हुआ है।

चौ0- भरूप्राकयनत भहतत्व जामा । जास ुबत्रगणु अहभ उगामा।। अहभ भहत्त मभमर शब्द यचामा । शब्द से नब ऩनुन अननर उदामा।।3।।

भरू प्रकृनत ने भहतत्ि को उत्ऩन्न ककमा जजससे बत्रगणुी अहॊकाय की उत्ऩजत्त हो गई। अहॊकाय औय भहतत्ि ने शभरकय िब्द उत्ऩन्न ककमा। कपय िब्द से आकाि औय कपय िाम ुकी उत्ऩजत्त हुई।

चौ0- शब्दमतु नब करय ककरयमा सभीया । प्रगट बमो ऩुॉज अनर तसीया।। अनर तन्भात्रा ऩाॊच प्रकायी । जास ुवाम ुमभमर तजे प्रसायी।।4।।

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िब्द मतुत आकाि भें िाम ुने कक्रमा कयके अजग्न तत्ि को प्रगट ककमा। औय अजग्न की तन्भात्राऐॊ जो ऩाॊच प्रकाय की हैं, से शभरकय िाम ुतत्ि ने तजे को उत्ऩन्न ककमा।

दो0- तजे से यस यस से जर ; जर से गॊध उऩजाम। गॊधकय तन्भात्रा मभरी ऩायधथव तत्व उगाम।।182।।

तजे से यस, यस से जर औय जर से गॊध उत्ऩन्न कयके गॊध की तन्भात्राओॊ के सॊमोग से ऩाधथवि तत्ि को उत्ऩन्न ककमा है

दो0- तजेऩुॊज पवकृत स्वमॊ अहभ इस्न्रमाॊ दस प्रगटाम।

नतन्ह अमबभानी दसाहदत्म स्जहह भन बऩू यचाम।।183।।

तजे ऩजुॊ से विकृत होकय अहभ ने स्िमॊ दस इजन्रमो को उत्ऩन्न ककमा औय उनके दस अशबभानी देिता उत्ऩन्न कयके उनके ऊऩय भन को याजा फना ददमा है।

दो0- ऩॊच बतूहह तनभातयाॉ पवकाय स्वरूऩ यभाम।

स्वमॊ भहत्त पवकाय मनुत ब्रह्भ सॊग कक्रमा ऩाम।।184।।

स्िमॊ भहतत्ि ने विकाय स्िरूऩ ऩॊच भहाबतूों की तन्भात्रा (िब्द, स्ऩिव, यस, रूऩ औय गॊध) को अऩने भें सभाकय उनकी विकाय ऩनुत से ब्रह्भ के साथ कक्रमा ऩाकय –

दो0- तफ एक रूऩ सफ तत्व ऩुॉज इकॊ ड फीज प्रगटाम।

“होयाभ” हहयण्मगबप मही सयुनत कोष अथाम।।185।। तफ साये तत्िों को एक रूऩ कयके फीजरूऩ एक अॊडा उत्ऩन्न ककमा। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक मह दहयण्मगबव है जहाॊ सभस्त जीिों का अथाम बॊडाय (फीजरूऩ भें) है।

दो0- ऩयभतत्व मह आत्भा भामा फस बई जीव।

त्मूॉ नाना स्वरूऩ भॊह प्रब ुसफ रीरा कीव।।186।।

ऩयभतत्ि मह आत्भा भामा के आधीन जीि फन गई है। इस प्रकाय स्िमॊ ऩणूव ब्रह्भ ऩयभेश्िय ने नाना स्िरूऩों भें सभस्त र रा की है।

चौ0- ब ूआऩो नब अनर सभीया । भन भनत अहभ अष्ट प्रकीया।।

अष्टधा मह जड प्रकृनत फखानी । कभपऻान दस इस्न्रमाॊमबभानी।।1।।

ब-ूजर-नब-अजग्न-िाम-ुभन भेधा औय अहभ मे आठ प्रकाय की अष्टधा जड प्रकृनत कह गई है। उनके कभवऻान रूऩी दस इजन्रम अशबभानी अधधष्ठाता है।

चौ0- चेतनरूऩ ऩयाप्रकृनत ननयायी । धायत जगद ननमभानसुायी।।

प्रकृनत ननमभ जगत अनकूरा । कछु नहहॊ उदम ननमभ प्रनतकूरा।।2।।

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चेतनस्िरूऩी मह ऩयाप्रकृनत ननयार ह है (सभजष्ट रूऩी है) जो अऩने ननमभानसुाय विश्ि को धायण कयती है। प्रकृनत के सभस्त ननमभ जगत के अनकूुर है। कुछ बी ऐसा उदम नह ॊ होता जो ननमभ के प्रनतकूर हो।

चौ0- प्राकृनत ननमभ प्रब ुईच्छा जाने । दोउ प्रकृनत रमारम असथाने।।

सफ जग भोहहत नतयगणु बावा । प्रकृनत मन्त्र जगदीश चरावा।।3।।

प्रकृनत के ननमभ को प्रब ुकी इच्छा सभझना चादहमे जो कक दोंनों प्रकृनतमों (ऩया तथा अऩया प्रकृनत) के रम औय उदम स्थान है। साया जगत तीन गणु (सत यज तभ) से भोदहत है। इस प्रकृनत मन्त्र को जगद श्िय चरात ेहैं।

चौ0- प्राकृनत चास्क्क जगदीश कुम्हाया । देंम गनत सफ यचहहॊ ऩसाया।।

ऩया प्रकृनत सचखॊड यचावा । कार जगद अऩया उदावा।।4।।

प्रकृनत एक चाक है औय कुम्हाय जगद श्िय है। जो प्रकृनत को गनत देकय साय सषृ्ट का विस्ताय यचता है। ऩया प्रकृनत सचिॊड की यचना कयती है औय अऩया प्रकृनत कारदेस की यचना कयती है।

दो0- ऩनुन ऩनुन उतऩस्त्त पवनास सकर बतू सभदुाम।

प्राकृनत फस अवरम्फ कयत ऩयूण ऩरुष अकाम।।187।।

फाय फाय प्राकृनतक सषृ्ट मों की उत्ऩजत्त औय विनास तथा सभस्त बतूगणों को ननयाकाय जगद श्िय सत्मऩरुुष प्रकृनत ऩय आधारयत कयत ेहैं।

चौ0- नसैगप अनाहद आकाय पवनासी । यॊग रूऩ छम रम ननज यासी।।

ऩनुन ऩनुन नसैगप बई फहु रूऩा । प्ररम कार रमहहॊ ब्रह्भ बऩूा।।1।।

मह प्रकृनत अनादद है इसके आकाय विनासिीर है। इसका यॊग रूऩ नष्ट होने ऩय मह अऩने भरू भें सभा जाती है। प्रकृनत फायम्फाय फहुत से रूऩों भें ऩरयिनत वत होती यहती है औय प्ररम कार भें जगद स्िाभी ऩणूवब्रह्भ भें रम हो जाती है।

चौ0- गौ से दधुध दधुध से भराई । भराई हहयाई घतृ उगाई।।

त्मूॉ ऩयभेश्वय जगद यचामा । ब्रह्भाॊश प्रकृनत जीव फनामा।।2।।

गाम से दधू, दधू से भराई, औय भराई को बफरोकय घी उत्ऩन्न होता है उसी प्रकाय ऩयभब्रह्भ ने मह विश्ि यचामा है औय ब्रह्भाॊि को ह जीि औय प्रकृनत फनामा है।

चौ0- ओतप्रोत स्जमभ भनका धागा । प्रकृनत पऩयोम त्मूॉ ईश सभागा।।

प्राकृनत मौनन उगहहॊ सॊसाया । ऩनुन ऩनुन क्रभ ननमभानसुाया।।3।।

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जैसे भारा के फीजों भें धागा ओत प्रोत होता है उसी प्रकाय ऩणूवब्रह्भ की प्रकृनत रूऩी धागे भें स्िमॊ ईश्िय वऩयोमा हुआ है। प्रकृनत मौनन से ह साया सॊसाय उत्ऩन्न होता है। फायम्फाय मह सषृ्ट चक्र ननमभानसुाय चरता यहता है।

चौ0- फीज प्रदक सो पऩत ुऩयभेश्वय । फीज रूऩ सफ जीव चयाचय।। फीज ब्रह्भ सफबतू कोषामा । प्राकृनत खानी स्वमॊ सभामा।।4।।

फीज प्रदान कयने िारा िह वऩता ऩयभेश्िय है जो सकर चयाचय जीिों का फीज रूऩ है। ब्रह्भ ह सभस्त बतू बॊडाय का फीज है। इसप्रकाय स्िमॊ ह िह प्रकृनत की मौननमों भें सभामा है।

दो0- नसैगापतीत अऺम अजय अनऩुभ ज्मोनत सोम।

भामा रूऩ सागय पवधचत्र राॉघ के मभरनी होम।।188।।

िह ऩणूवब्रह्भ अनऩुभ ज्मोनत स्िरूऩ अजय औय अविनािी है तथा प्रकृनत से ऩये है इस विधचत्र भामा (प्रकृनत) को राॊघ कय ह उससे शभरना होता है।

15 – रोक ऩनत व्मवस्था एवॊ जग यचना

दो0- अवनीशा फणूझऊ मह कस यधच सषृ्टी कार।

“होयाभदेव” तदभदृ ुवचन फोरे भहादेव दमार।।189।। अिनीि देि ने मह ऩछूा कक कार ने सषृ्ट ककस प्रकाय यची है ? श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक तफ दमार ुश्री शिि जी भधुय िचन फोरे।

दो0- आहद अनाहद अनाभ प्रब ुननज ईच्छा आधीन।

अगम्म अगोचय अरख यचे सत्म ऩरुय सत्तासीन।।190।।

आदद अनादद अनाभी प्रब ुने अऩनी इच्छा के अनसुाय अगभ अगोचय औय अरि को सत्मरोक की सत्ता भें जस्थनत अनसुाय यचना की।

चौ0- अऺम ऩयूण ऩरुष अनाभी । ननयाकाय ननरेऩ जगस्वाभी।। असॊखम मसयषटी अगोचय धाभा । असॊखम धनी तहॉ मबन्न मबन्न नाभा।।1।।

िह अविनािी अनाभी ननयाकाय ननरेऩ ऩणूवब्रह्भ जगद का स्िाभी है। असॊख्म सषृ्ट माॊ अगोचय धाभ भें हैं जजनके असॊख्म धनी ऩरुुष है। िहाॉ उनके शबन्न शबन्न नाभ है।

चौ0- मबन्न मबन्न सफ के प्रशासन । ब्रह्भानन्द बोग ुसखुदासन।।

अगभ यचाई अगभ कहावा । अरख ननयॊजन अरख सभावा।।2।।

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उन सफभें सफके अरग अरग प्रिासन है औय ब्रह्भानॊद का बोग है, सिुी साम्राज्म है। िह ऩयभेश्िय अगभ रोक यचाकय अगभ ऩरुुष कहराता है औय अरि रोक भें यहकय अरि ननयॊजन नाभ से सभामा हुआ है।

चौ0- अरख भहॊ सयुनत फीज फनाई । अरखहह हहयण्मगबप सभाई।।

जफ सतरोक यची ऩयभेश्वय । सयुत व्मवस्था कीन्ह सत्मेश्वय।।3।।

सभस्त आत्भाऐॊ अरि रोक भें फीज रूऩ फनाई गई है औय उन्हे अरि के गबव (दहयण्म गबव) भें सभा शरमा। जफ ऩयभेश्िय ने सतरोक को यचा था तफ सभस्त आत्भाओॊ की व्मिस्था सत्मऩरुुष ने ह की थी।

चौ0- एहह बत्रखॊड भें भरू सभावा । आगे सत्मधनी करा मसधावा।।

सतधनी षोडस सतु प्रगटामे । जेहहॊ भखुम सप्त सतऩरुय फसामे।।4।।

इस बत्रिॊड (अगभ, अरि, सतरोक) भें भरू स्िरूऩ सभामा हुआ है। महाॊ से आगे सत्मऩरुुष की करा (अॊि) चरती है जजससे सत्मऩरुुष ने सोरह सतु् प्रगट ककमे जजनभें प्रभिु सात सतु् (धनी ऩरुुष) सतरोक भें फसामे गमे।

दो0- सात धनी सतरोक भॊह सत्म धनन चॊवय डुयाम।

अजय अभय अऺम सदा सत्मऩरुषहहॊ गणु गाम।।191।।

सतरोक भें सात धनी सत्मऩरुुष का चॊिय डुरात ेहैं िे सदा ह अजय अभय औय अविनािी है िे सदा सत्मऩरुुष का ह गणुगान कयत ेहैं।

चौ0- सहजो अॊकुय ईच्छा कुयपभ । सोहॊ अधचन्त भहाऺय नयूभ।।

सो सप्त सतु् भोषकय दाता । ऩयभदमार सचखॊड उदगाता।।1।।

सहज ऩरुुष – अॊकुय ऩरुुष – ईच्छा ऩरुुष – कूयवभऩरुुष – सोहॊ ऩरुुष – अधचन्त ऩरुुष तथा भहा अऺय ऩरुुष ज्मोनत स्िरूऩी मे सातों सतु् भोऺ प्रदान कयने िारे है। मे ऩयभदमार औय सचिॊड का ह उद्गान कयने िारे हैं।

चौ0- सत्म ऩरुष की पवनती कयहीॊ । चॊवय डुयाम नतहह अनसुयहीॊ।।

कयहीॊ जीव सत्मधनन मभराऩा । कोउ न फाधा ननमभ उगाऩा।।2।।

औय सातों धनन सत्मऩरुुष की ह स्तनुत कयत ेहै। चॊिय डुरात ेहै औय उनका ह अनिुयण कयत ेहैं। औय जीिों का सत्मऩरुुष से शभराऩ कयत ेहैं। इनका ऐसा अगाध ननमभ है कक इनको कोई फाधा उत्ऩन्न नह ॊ होती।

चौ0- यहत सबी यत बगती दमारा । ऩयूण तऩ फर जगद सम्बारा।।

सत्मऩरुष कृत यचना सायी । कहीॊ न ऩयहहॊ बव फॊधन बायी।।3।।

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मे सबी सत्मऩरुुष दमार की बगनत भें यहत ेहै औय ऩयेू तऩ फर से विश्ि की सम्बार कयत ेहैं। सत्मऩरुुष द्िाया की गई सभस्त यचना भें कह ॊ बी बि फॊधन नह ॊ ऩडता।

चौ0- ऩनुन सत्मधनी तजे ऩयकास ू। जास ुअष्टभ सतु् उगास।ू।

अष्टभ धनी मह हॊस स्वरूऩा । उच्च सत्र न्मामाधीश अनऩूा।।4।।

कपय सत्मऩरुुष ने अऩने तजे को प्रकाशित ककमा जजससे अष्टभ सतु् का प्रादबुावि हुआ। मह अष्टभ धनी हॊस स्िरूऩ (ननरेऩ) है जो उच्च सत्र न्मामाधीि है।

चौ0- हॊस ऩरुष हहत ुबॊवय यचाई । सतव ननमती धाय सभाई।। इहह भहकार नाभ जग जानी । प्राकृनत मन्त्र बवचक्र पुयानी।।5।।

हॊस ऩरुुष के शरमे बुॊिय रोक की यचना की गई जजसभें प्रकृनत की सत्िधाया सभाई हुई है। मह ऩरुुष भहाकार के नाभ से जाना गमा। मह प्राकृनतक मॊत्र ऩय बि चक्र को चराता है।

दो0- अष्टभधनी अऺयब्रह्भ बई नीॊरा जरठाभ।

नतहह ध्मान सत्म शब्द मभमर प्रगटो अॉड मरराभ।।192।।

अष्टभ धनन अऺय ब्रह्भ को जर की ऩौय ऩय नीरा आ गई। तफ उसकी मोग नीरा भें सत्म िब्द का शभरन हुआ जजससे जर के ऊऩय एक वििषे अनत सनु्दय अॊडा प्रगट हो गमा।

चौ0- बमऊ बॊग जफ नीॊदया अऺय । इक अॊड रणख नतयई जर ऊऩय।। सत्मऩरुष आमस ुभन बावन । मरणख रेख रणख अॊड ऩाइ ऩावन।।1।।

जफ अऺय ऩरुुष की नीॊराॊ बॊग हुई तो देिा कक जर के ऊऩय एक अॊडा तयै यहा है। उस अॊड ेके ऊऩय सत्मऩरुुष की भन बािन आदेि का मह ऩािन रेि शरिा हुआ देिा कक –

चौ0- हौं एहह अद्भतु सतु् ऩठाई । सफ पवधध तमु्हे फयाफयी ऩाई।।

जहॊ रधग आमउ आमइ देंहू । बत्ररोकक याज्म करयहैं कृनत भेहू।।2।।

भैं एक अदबतु धनी बेज यहा हूॉ जो सफ प्रकाय से तमु्हाय फयाफय प्रातत कय चुका है। िह जहाॉ तक आमे आने देना। िह कभो ऩय ननबवय कयके बत्ररोकी के ऊऩय याज्म कयेगा।

चौ0- सत्तय सॊखम चौकरय जुग कारा । करयहैं याज्म ननज ठाभ कयारा।।

जफ नतहह अवधी ऩयूण होवा । भाभ सभीऩ आम तन खोवा।।3।।

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सत्तय सॊख्म चौकडड मगुो के सभम तक िह अऩनी बत्ररोकी भें कठोय याज्म कयेगा। औय जफ उसकी अिधध ऩयू हो जामेगी तफ देह िोकय भेये ह सभीऩ आमेगा।

चौ0- कोऊ न सकहीॊ पवजम नतहह रेहीॊ । कार सतु् हौ सफ फर देंहीॊ।।

अऺयब्रह्भ जफ ऩहठ मह रेखा । बमो गनतभम अॊड पवशखेा।।4।।

कोई बी उस ऩय विजम प्रातत नह ॊ कयेगा। तमोकक भैंने कार धनी को सभस्त िजतत प्रदान कय द है। इस प्रकाय जफ अऺय ब्रह्भ ने मह रेि ऩढा तबी िह अॊडा वििषे रूऩ से गनतिीर हो गमा।

दो0- शन ैशन ैसो अनठू अॊड जो तयैत जर भाहहॊ।।

भखु श्रोत्र भनेहरमाॊ उधग अद्भदु रूऩ यचाहहॊ।।193।।

धीये धीये िह अद्भतु अॊडा जो जर ऩय तयै यहा था उसभें भिु कान भन इजन्रमादद उगने रगी औय एक अद्भदु स्िरूऩ ननशभवत हो गमा।

दो0- सो अॊड पूटत ही मशवा कार ऩरुष प्रगटाम।

नाभ ननयॊजन अऺय दई तजे प्रचॊड अथाम।।194।।

उस अॊड ेके पूटत ेह हे शििा ! कार ऩरुुष प्रगट हो गमा। जजसको अऺय ऩरुुष ने ननयॊजन नाभ प्रदान कय ददमा उसका तजे अथाम औय प्रचॊड था।

दो0- बुॊवयगपुा अष्टभधनी अऺय ऩरुष कहाम।

सत्मऩरुष आऻा बई सॊसायी चक्र चराम।।195।।

बिुॊयगपुा का अष्टभ धनी जो अऺय ऩरुुष कहराता है जजसे सत्मऩरुुष की आऻा हुई। जजसके अनसुाय िह सॊसाय का चक्र चराता है।

दो0- भहासनु्न सनु्न याचै ऩनुन इक सतु् दीन्ही ताज।

ऩॊच भकुाभ ऩॊच गहु्मधनी ननमकु्त अॊधेयी याज।।196।।

कपय भहासनु्न औय सनु्न का ननभावण हुआ एक सतु् को िहाॊ ताज ऩहना ददमा। भहासनु्न भें ऩाॊच गतुत भकुाभों भें ऩाॉच धननमों को अॊधेय याज्मों भें ननमतुत कय ददमा।

दो0- भान सयोवय सय यच्मो उध्र्व सनु्न के देस।

अधौ बत्रगणु भामा बई सत्मऩरुषहह आदेस।।197।।

सनु्न रोक के उध्र्ि स्थान भें एक भान सयोिय की यचना की गई। महाॊ से नीचे बत्रगणुी भामा सत्म ऩरुुष के आदेिानसुाय व्मातत हुई।।

दो0- कछु कारोऩयान्त सनु्न, ऩयगहट धाय पवशषे।

भामाधीन जास ुयच्मो बत्रकुटी सहस्त्र देश।।198।।

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कुछ सभम उऩयान्त सनु्न भे से एक वििषे धाया प्रगट हुई जजससे भामा के आधीन बत्रकुट औय सहस्त्रदर रोक का ननभावण हुआ।

दो0- चौदहवाॊ धनन ऊॉ काय है अ. उ. भ. बत्रगणुधाय।

कार करयत भामा भकुाभ बमगत सफ सॊसाय।।199।।

चौदहिाॊ धनी ऊॉ काय है जजसभें आकाय उकाय औय भकाय की िजतत धाय यहती है मह कार की यधच हुई भामा नगय है इससे साया सॊसाय बमबीत है।

चौ0- ओभ सतु् बत्रकुटी साम्राजा । अजम ब्रह्भ भामावी याजा।।

ब्रह्भाण्ड देस ननयगणु सौऩाई । सत्म ऩरुष की आमस ुऩाई।।1।।

औॊकाय धनी का बत्रकुट भें साम्राज्म है मह अजेम ब्रह्भ भामािी याजा है इस प्रकाय ब्रह्भाण्ड देस ननगुवण धननमों को सौंऩ ददमे गमे हैं औय सबी ने सत्मऩरुुष की आऻा प्रातत कय र है।

चौ0- धनी षोडसी नाभ ननयॊजन । स्वछॊद पवचयत क्रीडा क्रॊ दन।।

बमॊकय प्रजयनन अनर भखु कारा । यॊग रूऩ आकाय ननयारा।।2।।

सोरहिें धनन का नाभ ननयॊजन हैं जो क्रीडा कयता हुआ स्िछॊद कपयता है कार ननयॊजन के अजग्न भिु भें बमॊकय रऩटें है उसका यॊग रूऩ औय आकाय ननयारा है।

चौ0- यत पवषमवासा भद अहॊकायी । कायन ऐहह जग पवषमधायी।।

तीनउ रोक चयाचय जेत े। जीपवत कार अनगु्रह तते।े।3।।

कार विषम िासना भें यत गिवमतुत अहॊकाय है इसीकायण साये जगत ने विषम िासनाओॊ को धायण ककमा है। तीनों रोंकों भें जजतने चयाचय जीि हैं िे उतने ह कार की अनगु्रह ऩय जी यहे हैं।

चौ0- कार ननयॊजन के हहम आवा । चॊहू ऩथृक ब्रह्भाण्ड यचावा।।

इक ऩग ठाडी ऩयुजऩ कीन्ही । सत्तय मगु तऩसा भन दीन्ही।।4।।

कार ननयॊजन के रृदम भें आमा कक अऩनी अरग ह ब्रह्भाण्ड यचना कयनी चादहमे। इसशरमे उसने एक ऩयै िडा होकय बाय जाऩ ककमा औय सत्तय मगुों तक भन तऩस्मा भें रगा ददमा।

दो0- कार ननयॊजन तऩस तजे ऩहुॉचा सचखॊड धाभ।

भनहहॊ पवचारय सत्मऩरुष धामऊ नतहह तऩठाभ।।200।।

कार ननयॊजन की तऩस्मा का तजे सचिॊड धाभ भें ऩहुॊच गमा। तफ भन भें विचाय कयके स्िमॊ सत्मऩरुुष दौड ेहुिे उसके तऩस्मा स्थान ऩय आमे।

चौ0- प्रसन्न बमे भन सत्म दमारा । प्रगटऊ जॊह तऩ करय यत कारा।।

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फोरे धनन भाॊगऊ वय कोई । कायन जेहह तभु तऩ यत होई।।1।।

सत्मऩरुुष का भन प्रसन्न हो गमा औय िे जहाॊ कार बगिान तऩस्मा भें र न थे िहाॊ प्रगट हो गमे। औय सत्मऩरुुष दमार फोरे कक जजस कायण से तभुने मह तऩस्मा की है िह िय भाॊग रो।

चौ0- फोरे ननयॊजन हे ककयऩारा । कक भाॊगऊ भभ भाॊग पवशारा।।

ननज नतयरोकी ऩथृक फसाऊॉ । ननजाधीन चहुॉ सषृ्टी यचाऊॉ ।।2।।

तफ तो ननयॊजन ऩरुुष फोरे कक हे कृऩारा तमा भाॊग ूभेय भाॊग वििार है भैं अऩनी ऩथृक बत्ररोकी फसाना चाहता हूॉ औय अऩने आधीन उसभें सषृ्ट की यचना कयना चाहता हूॉ।

चौ0- सयुत बॊडाय ईश भोहह दीजै । दास जानन मह ककयऩा कीजै।।

कहहफ तथास्त ुसत्मधनी तफ । बत्रकुहट बत्रगणु सफुर दई सफ।।3।।

हे ईश्िय ! भझुे सभस्त सयुत बॊडाय दे द जजमे भझुे दास जानकय मह कृऩा कय द जजमे। तफ सत्मऩरुुष धनी ने तथास्त ुकह ददमा औय बत्रकुदट की बत्रगणुी भामा उत्तभ िजतत सफ उसे प्रदान कय द ।

चौ0- हहयण्म अरख त ेसयुत ऩठाई । भहा सनु्नहह ऩॊचठाभ दयुाई।।

बमो व्मतीत जफहु कछु कारा । जीवहह कोष पवबास्ज पवशारा।।4।।

कपय अरि रोक दहयण्मगबव से सभस्त सयुनतमाॉ (आत्भाऐॊ) बेज कय भहासनु्न की ऩाॊच गतुत सनु्नो भें नछऩा द । जफ फहुत सभम फीत गमा तफ जीि सभदुाम को विबाजजत कय ददमा।

दो0- षोडसी सतु् ननयॊजन मह ऩामो जीव बॊडाय।

जगत यच्मन आमस ुगहह सत्मऩरुष सयकाय।।201।।

सोरहिें धनी कार ननयॊजन ने सयुत बॊडाय प्रातत कय शरमा औय सत्मऩरुुष से जगत यचना कयने की आऻा प्रातत कय र ।

दो0- वय दसूय सत्मऩरुष सन भाॊधगऊ कार भहान।

कयभ चक्रहहॊ फाधहुॊ सयुत बरूैं तफ गणु गान।।202।।

दसूये िय भें भहान कार ने सत्मऩरुुष से भाॊगा कक भैं इन आत्भाओॊ को कभवचक्र भें फाॊधू। औय मे सफ तमु्हाया नाभ गणु गान बरू जामें।

चौ0- सत्मऩरुष तफ वहदऊ पवचायी । जे तभु भाॊधग दई हौं सायी।।

सषृ्टी यचन भामा रव्म जोई । सो सफ कूयपभ सतु् फस होई।।1।।

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तफ सत्मऩरुुष ऩयभेश्िय विचायऩिूवक फोरे कक तभुने जो भाॊगा था िह सफ भैंने दे ददमा है ऩयन्त ुसषृ्ट यचना का सभस्त ऩदाथव (भसारा) जो है िह सफ कुयवभ ऩरुुष के आधीन हैं।

चौ0- तॊह जाइ भाॊगऊ ननज काभा । पवनीत बाव करय करय प्रनाभा।। सभस्त ऩदायथ कुयपभ जफ देहीॊ । तफ तभु ननस्ज सषृ्टी यच रेहीॊ।।2।।

िहाॊ जाकय अऩने काभना के शरमे भाॊग रो औय फड ेविनीत बाि से प्रनाभ कयके भाॊगना औय जफ साया तत्िकोष कुम्र्ब धनी तमु्हे दे दें तफ तभु अऩनी सषृ्ट यच रेना।

चौ0- सनुन वचन भन हयमसत बमऊ । दौरय ननकट कूयपभऩरुय गमऊ।।

सोचत भनहीॊ भोय सभाना । दसूय कोऊ नहीॊ जग आना।।3।।

मह िचन सनुकय भन ह भन हवषवत होता हुआ कार कुयवभऩरुय (बत्रकुट ) भें दौडता हुआ गमा। औय भन से सोचने रगा कक भेये सभान अफ जगत भें दसूया कोई नह ॊ है।

चौ0- कूयपभ देह पवशार फहु बायी । तजेस ज्मोनत स्वरूऩ ननयायी।।

सषृ्टी यचना सकर ऩदायथ । यहहहॊ सयुक्षऺत कुयपभ मथायथ।।4।।

कुयवभ की देह फहुत बाय औय वििार थी जो ननयार ह तजे ऩुॉज ज्मोनत स्िरूऩ थी। सभस्त सषृ्ट यचना के ऩदाथो को कुयवभधनी सयुक्षऺत यिता है।

दो0- गयफ ग्रमसत ननयॊजन तहॉ, जाइ न कीन्ह प्रनाभ।

कार ही कार पवचारय नहहॊ, भाॊधग भामा कोषाभ।।203।।

गिव भें पॊ सा हुआ ननयॊजन िह ॊ गमा ऩयन्त ुप्रणाभ नह ॊ ककमा कार ने सभम का विचाय न कयके भामा का बॊडाया भाॊगा।

चौ0- कहह कुयपभ हे ननयॊजन कारा । हौं कक देऊॉ बफन ुआमस ुदमारा।।

सत्मऩरुष की आमस ुनाहीॊ । तद ककभ भामा तमु्हहीॊ सौऩाहीॊ।।1।।

तफ कुयवभधनन फोरे कक हे कार ननयॊजन भैं बफना दमार की आऻा के भामा कैसे दे दूॉ। भझुे सत्मऩरुुष की आऻा नह है कपय तमु्हे भामा कैसे सौंऩ दूॉ ?

चौ0- जामऊ भामा कोष नहहॊ देंहू । सत्मधनी हढॊग तभु गहह रेंहू।।

तफ सो कार कोऩ करय बायी । काहट कुयपभ बत्रमसय बइु डायी।।2।।

जाओ भैं भामा बॊडाय नह ॊ दूॊगा। सत्मऩरुुष के ननकट जाकय भाॊग रो। तफ तो िह कार फहुत बाय क्रोधधत हो गमा औय कुयवभधनी के तीन शसय काट कय धयती ऩय डार ददमे।

चौ0- कूयपभ बत्रमसय कार जु काटी । बत्रगणु भामा उदय उद्गाटी।।

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बत्रगणु सषृ्टी सकर ऩदायथ । ऩॊचतत्व सॊग प्रगहट मथायथ।।3।।

कुयवभधनी के जो तीन शसय काटे तो उसके उदय भें से बत्रगणुी भामा प्रगट होन रगी। बत्रगणुी सषृ्ट के साये ऩदायथ मथाथव रूऩ से ऩॊचतत्िों सदहत प्रगट हो गमे।

चौ0- यपव शमश नऺत ्उड्गन नाना । बमऊ व्मक्त बॊडाय भहाना।।

रगे कार यचना बव कयने । कण कण भाॊहीॊ भामा बयने।।4।।

समूव चन्रभा नऺत्र औय तायाभण्डर उस भहान बॊडाय से व्मतत होने रगे। तफ तो कार ननयॊजन सषृ्ट यचना कयने रगे औय कण – कण भे भामा ह भामा बयने रगे।

दो0- कहत “होयाभदेव” सनु ुचन्रप्रबा भन राम। कुयपभ सतु् सचखॊड गमे सायी व्मथा सनुाम।।204।।

श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक चन्रप्रबा ! भन देकय सनुो ! तफ कुयवभधनी सचिॊड भें गमे औय िहाॊ साय व्मथा सनुाई।

चौ0- फोरे भहेश्वय सनुहु बवानी । ननयॊजन घषृ्टता कुयपभ फखानी।।

हे सत्मऩरुष ईश अपवनासी । फरहह मोग भोहह कार तयासी।।1।।

श्री शिि बगिान फोरे कक बिानी सनुो ! ननयॊजन की धषृ्टता कुयवभऩरुुष ने सफ कह डार कक हे सत्मऩरुुष हे अविनािी ईश्िय फरऩिूवक भझुे कार ने तयास ददमा है।

चौ0- सषृ्टी यचना सकर भसारा । गमऊ छीननम कार कयारा।।

कारानर तजे दखुदाई । सनभखु नहहॊ कोऊ हटकक ऩाई।।2।।

सषृ्ट यचना का जजतना बी भसारा (तत्ि बॊडाय) था िह सफ कयार कार के द्िाया नछन गमा है। हे प्रब ुकार की अजग्न का तजे फडा दिुदामी है उसके साभने कोई बी दटक नह ॊ ऩाता।

चौ0- तफ सत्मऩयुष सफुचन उच्चायी । कार ताऩ ननश्चम दखु बायी।।

गय भैं नतहहॊ पवरोपऩत करयहैं । सफ जग यचना नतहह सॊग ऺरयहैं।।3।।

तफ सत्मऩरुुष ने उत्तभ फात कह कक ननजश्चत ह कार के ताऩ का बाय दिु है ऩयन्त ुमदद भैं उसको नष्ट कय दूॊगा तो उसके साथ साये विश्ि की यचना का विनास हो जामेगा।

चौ0- षोडस सतु् भभ फॊध्मो इकनारा । एकहह नास सफहहॊ ऺरयमारा।।

भभ यचना अपऩ सॊग ऺम होंहीॊ । दजूै पववश वयदान पऩयोहीॊ।।4।।

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सोरह सतु् जो कक भेय एक ह नार (धाया) से फॊधे हुमे है। एक के नास होने ऩय सफके सफ नष्ट होत ेहैं। औय भेय सषृ्ट बी साथ ह नष्ट हो जाती है। दसूये भैं वििि हूॉ। भैं ियदान देकय उससे फॊधा हुआ हूॉ।

दो0- षोडस सतु् यचना हहत ुकरूॉ नहहॊ कार पवनास।

तदपऩ पववश शाऩऊॉ तहेह कब ुन आम भभ ऩास।।205।।

इसशरमे सोरह सतुो् की सषृ्ट यचनाओॊ के शरमे भैं कार का विनास तो नह कय सकता कपय बी वििि होकय मह िाऩ उसको देता हूॉ कक िह कबी बी भेये ऩास (सतरोक भें) नह ॊ आमेगा।

दो0- भभ दयसन नहहॊ ऩाइहैं कारहह मह अमबशाऩ।

यधच यचन खाइहैं स्वमॊ कोउ अभय नहहॊ छाऩ।।206।।

कार को मह भेया अशबिाऩ है कक िह कबी बी भेया दिवन नह ॊ कय ऩामेगा। औय िह अऩनी बत्ररोकी यचना यचेगा औय स्िमॊ उसे िामेगा। ककसी को बी अभयता की छाऩ नह रगेगी।

चौ0- तद सत्मऩरुष बए अन्तध्मापना । कुयपभसतु् ननज ऩौरय ऩमाना।।

ऩनु् कार ठाभ इक चीन्ही । इक ऩग ठाड ैतऩसा कीन्ही।।1।।

तफ सत्मऩरुुष तो अदृष्म हो गमे औय कुयवभधनी अऩने द्िीऩ भें चरे गमे। कार ने ऩनु् एक स्थान चुनकय एक ऩयै ऩय िड ेहोकय तऩस्मा िरुु कय द ।

चौ0- अखॊड धधआन सभाधी राई । ननयफीज अवस्था ध्मानस्थ ऩाई।।

षोडस मगु तऩसा करय बाया । नतहह तऩ तजे सचखॊड प्रसाया।।2।।

औय सभाधी भें अिॊड ध्मान रगाकय ध्मानस्थ ननफीज अिस्था प्रातत कय र । सोरह मगुो तक तऩस्मा फहुत बाय की जजससे उसकी तऩस्मा का तजे सचिॊड भें जाकय पैर गमा।

चौ0- सत्मऩरुष ऩनुन गमउ सन कारा । प्रचॊड तजे जहॉ ननकमस कयारा।।

फोरे ऩरुष सत्म कहु भोही । कक चाहत अफ देमऊॉ तोही।।3।।

सत्मऩरुुष कार के सम्भिु ऩनु् गमे जहाॊ से उसका कयार प्रचॊड तजे ननकर यहा था। तफ सत्मऩरुुष फोरे कक तमु्हे अफ तमा चाहना यह गई है भझुसे कहो भैं तमु्हे प्रदान करूॊ गा।

चौ0- फीज खेत तद भाॊधगऊ कारा । जेहह बफन ुसजृना नहीॊ सम्बारा।।

सत्मऩरुष तथास्त ुकहऊ । देखत देखत अदृष्म बमऊ।।4।।

तफ कार ने फीजिेत भाॊगा जजसके बफना सषृ्ट की यचना की सम्भार नह ॊ होती थी। सत्मऩरुुष ने तथास्त ुकह ददमा औय देित ेह देित ेअदृष्म हो गमे।

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दो0- कार पवनम सनुन सत्मधनी इक तनमा प्रगटाम।

“होयाभदेव” भोहक अनत आद्मा नाभ कहाम।।207।। कारदेि की विनती सनुकय सत्मऩरुुष ऩयभेश्िय ने एक सतुा उत्ऩन्न कय द । श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक उस मिुनत को आद्मा (मोगभामा) नाभ से जाना गमा है।

दो0- सत्मऩरुष आऻा दई सनुहु सतुा धचतराम।

भभ सषृ्टी सों मबन्न यचन कयहु कार सॊग जाम।।208।।

सत्मऩरुुष ने उसे आऻा द कक हे ऩतु्री धचत्त देकय सनु रो। भेय सचिॊड सषृ्ट से शबन्न कयके कार के साथ यचना कयना। (अथावत भेये जैसी सचिॊड िार अभय सषृ्ट भत यचना)।

छ0- अनत सनु्दय कोभद हृस्टऩषु्ट भदु भोदक सतुा सत्मऩरुष जनी।

देखत रबुाम धचत्त चॊचर फस भन डौमरअ समॊभी ऋपष भनुी।।

सत्मऩरुष आमस ुबई नतहह अफ जाइ ननयॊजन सॊग यहो।

“होयाभदेव” भभ कृऩा दमा तभु ऩॊहू यहे मह वय गहो।।15।। अनत सनु्दय कोभर हष्टऩषु्ट आनन्द भोदक सतुा को सत्मऩरुुष ने उत्ऩन्न ककमा जो देित ेह रबुाने िार तथा फडी चॊचर धचत्तिार थी। जजसे देित ेह ऋवष भनुनमों ि सॊमभी ऩरुुषों का भन ििीबतू होकय डोर जामे। उसे सत्मऩरुुष ने आऻा द कक िह अफ जाकय कार ननयॊजन के साथ यहे। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक सत्मऩरुुष ने कहा कक तभु ऩय भेय कृऩा ि दमा यहेगी मह भेया ियदान गहृण कयो।

चौ0- गमऊ आद्मा तद नतहह धाभा । जहॊ ननयॊजन ध्मान तऩ गाभा।।

देणख कौभारय कार रबुाई । बारयमा रूऩ चहॉ सॊग बफठाई।।1।।

तफ आदद िजतत उसके देस भें गई जहाॊ कार ननयॊजन तऩस्मा भें ध्मान र न थे। उस सकुुभाय को देिकय भन ररचा गमा औय कार ने उसे अऩनी ऩजत्न रूऩ भें ननकट फठैाना चाहा।

चौ0- कहत कार भभ हहत तभु जामी । भभ कायज तभु फनो सहामी।।

हौं तभु मभमर नतयरोक यचावाॊ । कार काभातयु दौरय कसावाॊ।।2।।

औय फोरा कक तभु भेये ह ननशभत्त ऩदैा की गई हो। इसशरमे भेये भनोयथ के शरमे भेय सहामक फनो। भैं तभुसे शभरकय बत्ररोकी की यचना कयता हूॉ। कार ने काभातयु होकय उसे दौड कय कसकय ऩकड शरमा।

चौ0- आद्मा कहे भाभ तभु भ्राता । भोय तोय एकहह पऩत ुभाता।।

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भैं तव नारय नहीॊ मह जानो । बगनन भ्रात सम्फॊध ऩहहचानों।।3।।

आद्मा िजतत फोर की तभु भेये भ्राता हो। भेय औय तये एक ह भाता औय वऩता है। भैं तमु्हाय ऩजत्न नह ॊ हूॉ ; मह जान रो। औय बाई फहन के सम्फॊध की ऩदहचान कयो।

प्रिचनाॊि बािाथव – श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक आद्मा (मोगभामा) ने सख्ती से कह ददमा कक िह कार की नाय नह ॊ ; फहन है। तफ कार ननयॊजन फोरे कक काशभनन ! भैं औय तभु अविनासी है। इतकीस ब्रह्भाण्डो भें भेया याज्म है। तभु भेये साथ ऐसी सषृ्ट यचना यचो औय सॊसाय को ऐसा सेिन कयाओ कक सॊसाय उसी भें उरझ जामे। ककसी को सत्मऩरुुष की मा अऩने देि की सधुध न आ ऩामे। औय सफ जीि जऩ तऩ व्रत आदद कयके हभ दोनों को ह रयझाने भें रगे यहें। तथा सफ भें ऺुधा तमास जगाओ। सफ तयह सत्मऩरुूष का भागव फॊद कय दो। काभ क्रोध भोह रोब अहॊकाय मे ऩाॊचों ह सचिॊड का भागव फॊद यित ेहै इसशरमे इन्हें प्रत्मेक जीि भें जगा दो। सत्मऩरुूष जैसा रोक मह ॊ यच दो ताकक मोगी जन भ्रशभत यहे, सत्मरोक न जा ऩामे। तमु्हाये ऩास तो ऩायस अभी है जजससे सबी काभ ऩणूव होगें। तफ आद्मा ने कहा भैं सत्मरोक भागव फॊद नह करूॊ गी। तफ कार ने कहा त ूभेय ऩजत्न है भैं तझुे फहन नह ॊ िनाऊॊ गा सत्मऩरुुष ने तझुे भेये शरमे यचा है। ऩयन्त ुआद्मा नह ॊ भानी। तफ कार क्रोधधत होकय उसऩय झऩट ऩडा।

चौ0- वमशबतू जफ नाहीॊ बवानी । दौरय झऩहट धरय भखु ननगरानी।।

तफ सो वेधग सत्मऩरुष ऩकुाया । तदपऩ सो बई कार आहाया।।4।।

जफ िह आदद िजतत बिानी िि भें नह आई तफ कार ने दौडकय झऩट शरमा औय भिु भें यिकय ननगर गमा। तफ िह सत्मऩरुुष को ऩकुायने रगी ऩयन्त ुिह, आद्मा िजतत, कार का आहाय फन चुकी थी।

दो0- जोगजीत प्रकटे तबी सत्मऩरुष आऻा धाय।

“होयाभ” सयुनत के तीय से कीन्ह कार ऩय वाय।।209।। तफ िहा भहाज्मोनत ऩुॉज जोगजीत (सत्मऩरुुष का एक सतु् जो उसकी चुॊिय डुराने िारो भें से एक है) प्रगट हुिे जो सत्मऩरुुष की आऻा धायण कयके आमे थे। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक सयुनत के तीय से उसने कार ऩय प्रहाय कय ददमा।

दो0- ननकमस आद्मा फाहय ऩनुन जग ज्मोनत अॊतयधान।

सत्मऩरुष आम आद्मा करय काराधीन भहान।।210।।

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जजससे आद्मा फाहय ननकर गई। कपय िह जग ज्मोनत ऩुॉज अॊतयध्मान हो गमा। कपय सत्मऩरुुष ने स्िमॊ आकय आद्मा िजतत को भहान कार देि के आधीन कय ददमा।

चौ0- आहद शस्क्त बत्ररोक बवानी । सकर साभथप जगद भहानी।।

कार ननयॊजन ननज फस कीता । को सभथप कारहह पवऩयीता।।1।।

आदद िजतत बत्ररोक बिानी जगद की भहायानी है जो सिव साभथव ऩणूव है। उसे कार ननयॊजन ने अऩने िि भें कय शरमा। बरा ! ककसकी साभथव है जो कार के विऩय त होिे।

चौ0- शन ैशन ैफीनत फहु कारा । यॊग रूऩ चहढ आद्मा फारा।।

पवद्मतु तजे नतहह सन राजा । फनन बारयमा कारहह काजा।।2।।

धीये धीये फहुत सभम फीतने ऩय उस आद्मा फारा ऩय यॊग औय रूऩ चढने रगा। विद्मतुीम तजे बी उसके साभने रजज्जत होने रगा। िह कार के भनोयथ के शरमे उसकी ऩजत्न फन गई।

चौ0- बौग बफरास बमे यत दोऊ । स्वछॊद फसत बम नहीॊ कोऊ।।

एक हदवस कहह कार सनुावाॊ । सत्मरोक कब ुहौं नहहॊ जावाॊ।।3।।

औय दोंनों बोग विरास भें र न हो गमे औय स्िछॊद यहने रगे। कोई बम नह ॊ था। एक ददन कार ने सनुाकय कहा कक भैं सत्मऩरुुष के रोक तो कबी जा नह ॊ सकता।

चौ0- तात ेसत्मऩरुष ऩरुय जैसा । ऩथृक द्वीऩ यचऊॉ एक तसैा।।

तद् हभ ननज बत्ररोकक भाहीॊ । करय प्रशासन आनन्द ऩाहीॊ।।4।।

इसशरमे सत्मऩरुुष के सत्मरोक जैसा एक िसैा ह अरग द्िीऩ की यचना करूॊ गा। तफ हभ दोंनों अऩनी ह बत्ररोकी भें प्रिासन कयके ऩयभ आनन्द प्रातत कयेंगें।

चौ0- तफ नहहॊ ऩरयहैं सचऩरुय काभा । अभय होइ फमसहैं ननज धाभा।।

यधच सषृ्टी तफ कार कयारा । बमऊ बत्ररोकी नाथ ननयारा।।5।।

तफ हभें सचिॊड से कोई काभ ह नह ॊ ऩडगेा। फस अभय यहकय अऩनी ह बत्ररोकी भें िासा कयेंगे। इस प्रकाय तफ कार ने (भामा आद्मा िजतत के द्िाया) सषृ्ट यचना कय डार औय स्िमॊ बत्ररोकी का ननयारा ह बत्ररोकीनाथ फन गमा।

दो0- कुयपभ हयाम आद्मा नन ॊगर अऺय ऩरुष बगाम।

कार ननयॊजन फमरष्ठ बमो ननज तऩ सों दय ऩाम।।211।।

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कुयवभऩरुुष को हया कय औय आद्मा िजतत को ननगर कय औय अऺय ऩरुुष को बगाकय औय अऩने तऩ से ियदान ऩाकय, कार ननयॊजन फहुत ह फशरष्ठ हो गमा।

चौ0- भद कायन तदपऩ सो कारा । ऩाइ न दयसन सत्म दमारा।।

सत्मधनी ककयऩा आमशसा । ननज देसहहॊ कार सफ रीसा।।1।।

भद के कायण कपय बी िह कार सत्मऩरुुष का दिवन प्रातत नह ॊ कय ऩाता। औय सत्मऩरुुष की कृऩाओॊ औय आिीिावद अऩने ह देस भें सफ प्रातत कयता यहता है।

चौ0- तीन शीश कूयपभ जे काटी । सत यज तभ गणु धाय प्रगाटी।।

ओभ करा सत यज तभ धाया । आद्मा गयब भॊह कीन्ह सॊचाया।।2।।

कुयवभ के जो तीन शसय काट डारे थे उनभें से सत यज तभ गणुी धाय फह ननकर िे ह ओSभ की सत यज तभ करा की धाया है जजसे आद्मा िजतत के गबव भें सॊचारयत ककमा गमा।

चौ0- सत्मऩरुष तफ कीन्ही पवचायी । कार कयार जीवहहॊ सॊहायी।।

ननज स्वरूऩ बत्रअॊश उगाई । भामा बत्रगणु गबप पऩयाई।।3।।

तफ सत्मऩरुुष ने विचाय ककमा कक मह कार कयार है मह सबी जीिो का सॊहाय कयेगा। इसशरमे ऩयभेश्िय ने अऩने स्िरूऩ भे से तीन अॊिधाया (विबनूतमाॊ) उत्ऩन्न कय द औय भामा के बत्रगणुी गबव भें स्थावऩत कय द ।

चौ0- ऩनुन सतव से ननयॊजन कारा । उत्ऩन्न कीन्है पवष्णु दमारा।।

एहह पवधध यज से ब्रह्भ देवा । यच्मे ऩयस्ऩय तभस ुभहादेवा।।4।।

कपय कार ननयॊजन ने सतोगणु धाया से श्रीविष्णु को दमार ुरूऩ भें उत्ऩन्न ककमा। इसी प्रकाय यज धाया से ब्रह्भा देि को तथा तभ धाया से भहादेि भहेश्िय को उत्ऩन्न ककमा। (कार की कभव औय पर ऩय आधारयत मोजना को सत्मऩरुुष अकार ने जान शरमा था कक कार सबी जीिों को तततशिरा ऩय बनू बनूकय िामेगा उसकी तततशिरा से जीिो को फचाने के शरमे बत्रदेि (ब्रह्भा, विष्णु औय भहेि) जीिो को सत्म धभव न्माम बजन ध्मानादद फताकय फचाने का नाना प्रकाय से प्रमत्न कयत ेयहत ेहैं। इन तीनो देिों के रूऩ भें सत, यज, तभ गणु की ओट से सत्मऩरुुष स्िमॊ ब्रह्भविबनूतमो के रूऩ भें प्रगट हुिे)।

चौ0- छुऩ ैकार सहस्त्रदर जाई । अऩना साया बेद दयुाई।। यचन कयन आमसु दई भामा । ऩतु्रन सॊग सहमोग प्रदामा।।5।।

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कपय कार सहस्त्र दर भें जाकय छुऩ गमा औय अऩना साया बेद बी छुऩा शरमा। तफ भामा बिानी ने सषृ्ट यचने की आऻा दे द । औय ऩतु्रों को अऩना सहमोग साथ साथ प्रदान ककमा।

सो0- बत्रदेवा कीन्ही पवचारय, कवन हभाया जनक ककत। खौस्ज खौस्ज गमे हारय, चतयुानन हय नार कॊ ज।।2।। तीनों देिता ब्रह्भा श्रीविष्णु तथा शिि ने विचाय ककमा कक हभाया वऩता कौन है औय कहाॊ है। तफ तो ब्रह्भा औय भहादेि कॊ िर की नार भें िोजने रगे औय हाय गमे।

दो0- कॊ वर नार भॊह खोस्जमाॊ नार न रागी ऩाय।

ऩनुन ऩहुुऩ ऩॊखरयन आमऊ पवस्भम भनहहॊ अऩाय।।212।।

उन्होने कभर नार भें िोजा ऩयन्त ुकह ॊ बी उस नार का ह ऩाय नह शभरा। कपय िे ऩषु्ऩ की ऩॊिडी ऩय ह आ गमे। उनके भन भें फडा ह विस्भम बया हुआ था।

16 – कार सषृ्टी यचना एवॊ सयुनत फॊधन

दो0- कार सषृ्टी यचना मशवा अफ तोहीॊ कयहुॊ फखान।

पवधध हरय हौं तऩ यत बऐ अखॊड सभाधी ध्मान।।213।।

हे शििा ! कार की सषृ्ट की यचना का भैं अफ फिान कयता हूॉ। जफ हभ ब्रह्भा विष्णु औय भैं तीनों अिॊड ध्मान सभाधी (तऩस्मा) भें र न हो गमे।

चौ0- आहद शस्क्त ऩनुन सनभखु आवा । कीन्ही फाॊता प्रऩॊच यचावा।।

फोरी आद्मा सतु सनु ुफाता । भ ैइक भात्र तमु्हायी भाता।।1।।

आदद िजतत आद्मा बिानी कपय सम्भिु आई औय प्रऩॊच यचकय फातें कयने रगी। आद्मा (मोगभामा) फोर हे ऩतु्रों ! भेय फात सनुो भैं ह एक भात्र तमु्हाय भाता हूॉ।

चौ0- भोय तमु्हाय बफना कोउ दजूा । नहीॊ शषे स्जहह तभु हभ ऩजूा।।

अफ बत्रअॊश नतम ुरूऩ उऩजाऊॊ । फननता रूऩ तमु्हहह ऩरयणाऊॊ ।।2।।

भेये औय तमु्हाये बफना कोई बी दसूया िषे नह है जजसे भैं औय तभु ऩजूोगे अफ भैं तीन अॊि स्त्री रूऩ उत्ऩन्न करूॊ गी। जजन्हें ऩजत्न रूऩ से तमु्हे ह गहृण कयाऊॊ गी।

चौ0- तीन रोक सयजक भोहह जानो । अन्म न ऩजू्म कोऊ ऩहहचानो।।

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भभ आमस ुअऩनो मसय धरयम । सषृ्टी सजृना कायज करयम।।3।।

तभु तीनों रोको की सजृनहाय भझुे ह सभझो। भेये शसिा ककसी औय की ऩहचान न कयो। औय भेय आऻा शसयोधामव कयो तथा सषृ्ट यचना का कामव आयम्ब कयो।

चौ0- तफ बत्रदेव भन कीन्ह बफचाया । मभथ्मा भात ुफचन उच्चाया।।

नहहॊ पवश्वास फचन कहह भात े। बई अदृष्म छर छौरय अऻात।े।4।।

तफ तीनो देिता (ब्रह्भा, विष्णु शिि) ने भन भें विचाय ककमा कक भाता ने शभथ्मा फचन कहे हैं तमोंकक जो फचन कहे हैं उन ऩय विश्िास नह ॊ होता िह छर छोडकय कह ॊ अऻात स्थान भें अन्र्तधान हो गई।

दो0- सहस्त्र द्वीऩ यधच ननयॊजना कुतो नछपऩऊ ततकार।

पवधध हरय हौं जानन नहीॊ आद्मा को ऩहभार।।214।।

सहस्त्र दर कभर द्िीऩ की यचना कयके ननयॊजन उसी सभम कहाॊ नछऩ गमा था इसका ब्रह्भा औय भझु को ऩता नह ॊ चरा। केिर िजतत को ह इसका ऻान था।

चौ0- आद्मा चारय वेद बफधध दीन्है । सचखॊड बेद गोऩ करय कीन्है।।

वेद ऩठन चतयुानन रागी । ऩठत ऩठत बमऊ अनयुागी।।1।।

आद्मा िजतत ने चाय िेद प्रदान कय ददमे जजनभे सचिॊड का बेद गोऩनीम कय ददमा। जफ ब्रह्भा िेदों को ऩढने रगे तो ऩढत ेऩढत ेह उनभें अनयुाग हो गमा।

चौ0- ऩनुन श्रीहरय हय सम्भखु जाई । फोरे पवभराऩनत हयषाई।।

वेद पवयाट कार गणु गावा । जो सफ जग कयता कहहरावा।।2।।

कपय ब्रह्भा जी श्रीविष्णु के सम्भिु जाकय हवषवत हुिे फोरे कक िे िेदों ने वियाट कार ऩरुुष का गणु गामा है जो सभस्त जगत का कताव कहराता है।

चौ0- शीश ब्मोभ स्जहह ऩाॊव ऩातारा । चहुॉ हदमस श्रवण नमन पवशारा।।

तफ बत्रदेव गमऊ सन भाता । फोरे कय जौरय ननज फाता।।3।।

जजसका शसय आकाि भें औय ऩाॊि ऩातार भें है उसके चायों ददसाओॊ भें वििार नेत्र औय श्रोत्र है। तफ तीनो देिता भाता के सम्भिु गमे औय हाथ जोड कय अऩनी फातें कहत ेहुमे फोरे कक –

चौ0- तभु कहह भात ुअन्म नहहॊ कोई । हभ ऩहठ वेद मभमरअ पऩत ुसोई।।

तभुयो कथन नाहीॊ पवश्वास ू। भषृा वाक्म भात ुतभु बास।ू।4।।

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तभुने भाता दसूया कोई नह ॊ है ऐसा कहा है औय हभें िेदों भें ऩढने से िह वऩता शभरा है। इसशरमे तमु्हाये कथन का विश्िास नह होता। भाता ! तभुने शभथ्मा ह िातम कहे है।

दो0- आद्मा कहह गय तभु मह पऩत ुदयसन अमबरास।

अऺत सभुन ऩजुा करय करयमउ ध्मान तऩास।।215।।

तफ आद्मािजतत फोर कक मदद तमु्हे अऩने वऩता के दिवन की अशबराषा है तो अऺत औय ऩषु्ऩों से ऩजूा कयो औय ध्मान साधना कयो।

चौ0- आमस ुऩाम पवधध तभ थाना । बमऊ रीन सभाधध ध्माना।।

इह पवधध व्मतीत बइ फहु कारा । तदपऩ दयस नहहॊ ऩामऊ कारा।।1।।

आऻा ऩाकय ब्रह्भा जी अॊधेये स्थान भें जाकय सभाधी भें र न हो गमे। इस प्रकाय जफ फहुत सभम फीत गमा ऩयन्त ुकपय बी ननयॊजन का साऺात्काय नह ॊ हुआ।

चौ0- तफ आद्मा मह भनहहॊ पवचाया । ब्रह्भा बफना नहहॊ सजृन प्रसाया।।

आद्मा एक सतुा प्रगटाई । गामत्री नतष नाभ धयाई।।2।।

तफ आद्मा ने भन भें मह विचाय ककमा कक ब्रह्भा के बफना सषृ्ट का प्रसायण नह ॊ हो सकता। इसशरमे आद्मा ने एक ऩतु्री (सॊकल्ऩ से) उत्ऩन्न की औय उसका नाभ गामत्री यि ददमा।

चौ0- गामत्री तद फचन उचायी । कायन कवन भोहह भात ुउगायी।।

आद्मा ता सों कहह ननज फाॊता । उत्तय हदमस गमऊ तव भ्राता।।3।।

तफ िह गामत्री फोर कक भाता ! भझुे ककस कायण से उत्ऩन्न ककमा है। तफ आद्मा ने उससे सफ अऩनी फातें कह कक उत्तय ददसा भें तमु्हाये बाई गमे हैं।

चौ0- तभु शीघ्र नतन्ह आवइ रेऊ । सषृ्टी यचना काज करय देऊ।।

ब्रह्भा ननकट गामत्री गमऊ । भात ुफरुाई सॊदेषा हदमऊ।।4।।

तभु िीघ्र जाकय उन्हे रेकय आिो। सषृ्ट यचना का मह कामव कय दो। तफ गामत्री ब्रह्भा के ऩास गई औय भाता के फरुिाने का सॊदेि दे ददमा।

दो0- गामत्री सों ब्रह्भा कहह गय भभ साक्ष्म उचाय।

पऩता दयस हौं कीन्हेऊ तफ चमर सॊग तमु्हाय।।216।।

गामत्री से ब्रह्भा ने कहा कक मदद तभु भेय साऺी कहो कक भनेै वऩता के दिवन कय शरमे है तो भैं तमु्हाये साथ चर सकता हूॉ।

चौ0- गामत्री ऩषु्ऩावनत प्रगटाई । ननज फनतमाॊ साक्ष्म सभझुाई।।

आमऊ तफ सफ ननज भाता । कीन्ह प्रनाभ भन हयष उगाता।।1।।

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तफ गामत्री ने ऩषु्ऩािनत कन्मा को प्रगट कय शरमा औय उसे अऩनी साऺी की फात ेसभझा द । औय कपय सबी भाता के साभने आ गमे औय भन भें िुिी उजागय कयके प्रणाभ ककमा।

चौ0- आद्मा फझूाई हे चतयुानन । कक तभु ककन्ही दयस पऩत ुऩावन।।

बफधध फोरे हौं दयसन ऩाई । ऩहठत ऻान यॊग रूऩ सनुाई।।2।।

आद्मा ने ऩछूा कक हे चतयुानन ! तमा तभुने अऩने वऩता का ऩािन दिवन कय शरमा है ? तफ ब्रह्भा फोरे कक हाॊ भैंने दिवन कय शरमे है। औय ऩढे हुमे ऻान से वऩता के यॊग रूऩ को कह सनुामा।

चौ0- तद गामत्री साक्ष्म नतहह दावा । ऩषु्ऩा सभथपन सकर जुटावा।।

ननयॊजन हढॊग आद्मा तफ जाई । बफधध कथन मभथ्मा सफ ऩाई।।3।।

तफ उसका गामत्री ने साक्ष्म दे ददमा औय ऩषु्ऩािनत कन्मा ने बी उसका सभथवन ककमा आद्मा कपय तो कार के ऩास आ गई औय उसकी कथन को शभथ्मा ऩामा।

चौ0- तद आद्मा ब्रह्भा ऩई धाऩा । कठोय फचन प्रदामई शाऩा।।

कोऊ न तभु जग ऩजूा फरयहैं । तव सफ वॊशज भषृा हॊकरयहैं।।4।।

तफ आद्मा ब्रह्भा के ऩास आिेि भें गई औय कठोय िचनों भें अशबिाऩ दे ददमा कक जगत भें तमु्हाय कोई ऩजूा नह कयेगा औय तयेे िॊिज शभथ्मा फोरने िारे होंगे।

दो0- द्वाय द्वाय तव सॊतनत सफ कभप चक्र की धाय।

ननज स्वायथ मभथ्मा कथन करयहैं ऩयुाण ऩसाय।।217।।

औय तये साय सॊताने कभवचक्र की धाय ऩय द्िाय द्िाय जाकय अऩने स्िाथव के शरमे शभथ्मा कथन से ऩयुाणों का प्रसाय कयेगें।

चौ0- वेद ऩयुान स्वायथ को ऩहठहैं । ऩयभाथप सत्म ऻान नहहॊ सहठहैं।।

ऩनुन गामत्री को दई शाऩा । मभथ्मा साक्ष्म कायन सॊताऩा।।1।।

औय िे िेद ऩयुाण अऩने ह स्िाथव के शरमे ऩढेगें । ऩयभाथव के ननशभत सत्मऻान नह कहेगें। इसके फाद गामत्री को िाऩ ददमा कक शभथ्मा साक्ष्म देने के कायण तभु बी सॊताऩ बयोगी।

चौ0- चारय ऩाॊव गाम तभु होई । पवष्ठा खाम कमरमगु दखु ऩोई।।

तभु ऩषु्ऩा केतकी सभुनु फन । जावई ऩरयहैं धया अऩावन।।2।।

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औय तभु चाय ऩाॊिों िार गाम फनोगी। कशरमगु भें विष्ठा िाओगी औय दिु बयोगी औय ऩषु्ऩािनत तभु केतकी ऩषु्ऩ फनोगी औय ऩथृ्िी ऩय अऩवित्र जगह जाकय ऩडोगी।

चौ0- आद्मा प्रदत्त शाऩ सनुन कारा । बमऊ प्रगट कहह तफ कारा।। आद्मा शाऩ दीन्ह नतन्ह बायी । सषृ्टी यचन अफ होहैं दखुायी।।3।।

आद्मा द्िाया ददमे गमे िाऩ को सनुकय कार ननयॊजन उसी सभम िहाॊ प्रगट हो गमा। औय कहने रगा कक आद्मा तभुने इनको बाय िाऩ ददमा है इससे सषृ्ट यचना अफ दिुों से बय हुई होगी।

चौ0- गय अफ कोऊ सबुट फरवाना । ननफरहह देइहैं ताऩ दखुाना।।

हौं ताही ऩरयशोधन करयहैं । मथा कयभ पर तस सो बरयहैं।।4।।

अफ मदद कोई िीय फरिान व्मजतत ककसी ननफवर को दिु औय सॊताऩ देगा तो भैं उसका ऩरयिोध करूॊ गा। जजसका जैसा कभव होगा िसैा ह िह उसका पर बयेगा।

सो0- फोरे हरय हय बफचाय ; भात ुशाऩ सनुन बफधध दखुी। जहॊ जहॊ बगत हभाय ; तव बगनत ननश्चम पुयै।।3।। भाता से िाऩ सनुकय ब्रह्भा दिुी हुिे। तफ श्रीविष्णु औय शिि विचाय कय फोरे कक जहाॊ जहाॊ हभाये बतत होगें िहाॊ तमु्हाय बी बजतत ननश्चम परेगी।

दो0- गामत्री को शाऩ सनुन श्रीहरय दइ वयदान।

तव नाभ जऩ मऻ जग ऩीया टयै भहान।।218।।

गामत्री का िाऩ सनुकय श्री हरय ने उसे मह ियदान ककमा कक तमु्हाये नाभ जऩ औय मऻ को धायण कयके जगत की फडी फडी ऩीडा टरेगी।

दो0- ऩनुन आद्मा पवष्णु सनभखु ; फोरी पवस्भम धाय। ऩतु्र तभु पऩत ुदयस ककभ ; कीन्ही कहो पवचाय।।219।। कपय आद्मा श्रीविष्णु के सभऺ भन भें फडा विस्भम धायण कयके फोर कक ऩतु्र तभु विचाय कयके फताओ कक तमा तभुने अऩने वऩता के दिवन ककमे हैं ?

चौ0- श्रीपवष्णु सत्म सत्म फझुाई । पऩत ुदयस भात ुनहहॊ ऩाई।।

शषे नाग पुॊ काय पवशारा । भाभ शयीय बमऊ सफ कारा।।1।।

श्रीविष्णु जी ने तो सच सच कह ददमा कक भैंने हे भाता ! वऩता के दिवन नह ॊ ककमे है। ऩयन्त ुवििार िषे नाग की पुॊ कायों से भेया िय य कारा हो गमा है।

चौ0- सनुन सत्म फचन हषप बई भाता । बत्ररोक ऩनत बमउ वयदाता।।

सकर चयाचय तफ गणु गाहैं । ऩजूा अचपन तभुहहॊ प्रदाहैं।।2।।

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मह सत्म फचन सनुकय भाता फहुत प्रसन्न हुई। औय बत्ररोक ऩनत होने का ियदान दे ददमा कक साये चयाचय जगत प्राणी तयेे ह गणुगान कयेगें औय अऩनी ऩजूा अचवना तमु्हे ह प्रदान कयेंगे।

चौ0- ऩनुन मशव सों मह भात ुफझुाई । कहो ऩतु्र ककभ दयसन ऩाई।।

भौन धरय शॊकय यहे ठाड ै। सत्मासत भखु नाहीॊ मरषाड।ै।3।।

कपय शिि से भाता ने मह ऩछूा कक ऩतु्र कहो तमा तभुने दिवन प्रातत ककमे है ? शिि चुऩचाऩ भौन धायण ककमे िड ेयहे। अऩने भिु से सत असत बी नह ॊ कहा।

चौ0- आद्मा कहह ऩतु्र वय भोया । यहउ भौन व्रत यत तऩ घौया।।

मशव भाॊधग तफ भात ुदमारा । कीजै अभय भोहह जगद पवशारा।।4।।

आद्मा ने कहा ऩतु्र भेया मह ियदान है कक तभु भौन व्रत धायण कयके घोय तऩस्मा भें र न यहोगे। तफ शिि ने भाता से भाॊगा कक भझुे सॊसाय भें अभय कय दो।

चौ0- एवभअस्त ुआद्मा उच्चायी । आमस ुदई कयों तऩ बायी।।

ननयॊजन बेद आद्मा नहहॊ खोरी । सषृ्टी सजृन कुर फचनन फोरी।।5।।

आद्मा िजतत ने “एिभSत”ु कह ददमा औय आऻा प्रदान कय द कक तभु बाय तऩ कयो। ऩयन्त ुआद्मा िजतत ने कार ननयॊजन का बेद नह िोरा औय सषृ्ट यचना का िचन कह डारा।

दो0- आद्मा ज्मोनत ननयॊजन छबफ दीन्ही हरय रखाम।

अरख ननयॊजन बाखी नतहह अग्र बेद नहहॊ दाम।।220।।

आद्मा ने श्रीहरय को ज्मोनत ननयॊजन की छवि ददिा द औय उसे ह अरि ननयॊजन फता ददमा इसप्रकाय उसे आगे का बेद नह ददमा।

दो0- ननयॊजन बेद दीन्ही नहहॊ आद्मा कीन्ह गपु्तसाय।

बत्रदेव सषृ्टी यचना कयत यत फर चेतनधाय।।221।।

ऩयन्त ुआद्मा िजतत ने ननयॊजन का बेद नह ॊ ददमा। इसे गतुत यहस्म ह यिा। इस प्रकाय तीनों देिता सषृ्ट की यचना चेतन्म धाय की िजतत के आश्रम से कयने रगे।

चौ0- फीज रूऩ चेतन्म बॊडाया । प्रथभ अभीफा जीव प्रसाया।।

इक कोषी मह जन्त ुअऻानी । सषृ्टी यचन आयम्ब अग्रानी।।1।।

सयुनत के फीज रूऩ चेतन्म बॊडाय से सफसे ऩहरे एक अभीफा नाभक जीि का प्रसाय ककमा। इस अऻानभम एक कोषी जीि से सषृ्ट यचना का प्रायम्ब हुआ।

चौ0- चौदस अॊड नौरख जरजीवा । स्वमॊ शस्क्त मह यचन यधचवा।।

तीस रऺ हौं सथावय प्रानी । पवष्णुसताइस उनद्भज खानी।।2।।

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चौदह राि अडॊज नौ राि जर जीिों की यचना स्िमॊ िजतत ने की कपय तीस राि स्थािय प्राणी भैंने तथा सत्ताईस राि उनद्भज िान मौननमों की यचना श्रीविष्णु ने की।

चौ0- चारय रक्ष्म बफधध पऩ ॊडज यचावा । स्थूर आवयण सयुत चढावा।।

सवोत्तभ नय देह फनाई । ऩाॊच तत्व मनुत यचन यचाई।।3।।

कपय ब्रह्भा जी ने चाय राि वऩ ॊडज प्राणी उत्ऩन्न ककमे औय सयुनत के ऊऩय स्थूर आियण चढा ददमे गमे। सिोत्तभ भानि देह फनाई गई जजसभें ऩॊचतत्िों की मनुत कयके यचना की गई।

चौ0- ब-ूजर-अस्ग्न औय सभीया । चारय तत्व ऩयधान पऩ ॊडडया।। अॊडज तीन उनद्भज द्व ैबतूा । सथावय भखुम ब ूतत्व इकूता।।4।।

ब-ूजर अजग्न औय िाम ुकी चाय तत्ि प्रधानता वऩ ॊड िय यो भें की गई। अॊडज भें तीन तत्ि औय उनद्भज मौननमों भें दो तथा स्थािय भें एक तत्ि (ब ूतत्ि) की भखु्मता यिी गई।

दो0- बतूत्व जगद ऩदाथप भहॊ जरतत्व पवषमन दौय। अनर क्रोध वाम ुप्ररोब नबाकषपण भनत ओय।।222।। ब ूतत्ि की खिॊचाि जगद ऩदाथों की ओय को ; जरतत्ि विषमो की ओय को ; अजग्न क्रोध भें औय िाम ुतत्ि रोब की ओय तथा नब तत्ि की िीॊचाि (आकषवण) ऻान की ओय यहता है।

दो0- आवागभन के देस भें सयुत गहठ देह चारय। बफन ुसतगरु छूटे नहीॊ कहत “होयाभ” पवचारय।।223।। आिागभन के देस भें सयुनत चाय देहों भें गदठ हुई है। जो बफना सतगरुु नह छूटती श्री होयाभदेि जी मह विचाय कय कहत ेहैं।

चौ0- ऩॊचतत्व ननयमभत पऩ ॊड शयीया । गहहहॊ जीव भतृरोक भझीया।। बत्रगणु दसोस्न्र अन्तस चायी । मर ॊग देह गहठ सयुत अऩायी।।1।। बौनतक िय य का ऩाॊच तत्िों से ननभावण ककमा हुआ है जजसे जीि भतृरोक भें गहृण कयता है। तीन गणु, दस इजन्रमाॉ औय चायो अन्त्कयण (धचत्त, फवुद्ध, भन औय अहभ)् द्िाया मह सयुनत शरॊग देह भें गदठत है।

चौ0- तीसय सूऺ भ देह अऩाये । सहस्त्रा बत्रकुटी सयुनत धाये।। अॊतस भन भनत धचत्त अहॊकाया । शब्द ऩयस यस ; रूऩ गॊधाया।।2।।

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तीसय वििार सकू्ष्भदेह है जजसे सयुनत (रूह) सहस्त्रदर कभर से बत्रकुट तक धायण कयती है। भन धचत्त फवुद्ध औय अहॊकाय से अत्कणव फना है तथा इस िय य भें िब्द स्ऩिव यस रूऩ औय गॊध के तत्ि यहत ेहैं।

चौ0- बत्रकुहट सेत ूकायण शयीया । ऩाॊचउ पवषम सयुती सॊगीया।। ताऩय सयुती फीज बफजाने । बत्रकुहट आइ पॊ हद अनजाने।।3।। बत्रकुट से सेत ुसनु्न तक कायण िय य यहता है जजसभें ऩाचों विषम सयुनत के साथ यहत ेहै कायण िय य के ऩये जीिात्भा फीज रूऩ जाननी चादहमे। जो बत्रकुट भें आकय अनजाने पॊ द जाती है।

चौ0- ऩॊचभ सॊकल्ऩ तरुयमा शयीया । जास ुऩाम पवब ुभोष भभीया।। भ्रवुभध्म इक मशवनेत्र पवशारा । तास ुननकमस ऩरय भतृ्म ुजारा।।4।। ऩाॊचिा सॊकल्ऩ (फीजरूऩ) तरुयमा िय य है जजसको प्रातत कयके आत्भा भोऺाभतृ को प्रातत कयती है। भ्रिुभध्म भें एक वििार शिि नेत्र है जजसभें से ननकर कय सयुनत भतृ्म ुचक्र भें धगयती है।

दो0- स्थूर हहत ुस्थूर बोज्म मरॊगदेह सगुॊधध षीय। सकू्ष्भ दृष्टी प्रकाश तपृ्त नाभहहॊ चतथुप शयीय।।224।। स्थूर के शरमे स्थूर बोजन है। शर ॊग िय य सगुॊध की तयगों से तथा सकू्ष्भ िय य दृष्ट प्रकाि से औय कायण िय य नाभ रेने से ह ततृत यहता है।

छ0- नमन औऩरय चारय दरन को भ्रभूध्म अन्तसकॊ वर पवयाजहीॊ। कायज यत चारय दरन चारय फर भन धचत्त भेधा अहभ गाजहीॊ।। ताऩय भतृ्मकुॊ वर षटदरन भॊह षट शस्क्त गनतभम जानऊ। सो षट फर जनभ, अस्त, प्रनाभ, वदृ्ध ऺीन भतृ्म ुभानऊ।।16।। आॉिो से ऊऩय चाय दरो का बभुध्म अॊतसकॊ िर चक्र है जजसभें चाय दरों भें चाय िजतत कामवयत यहती है जो भन धचत्त भेघा औय अहभ नाभ से जानी जाती है। उससे ऩये भतृ्म ुकॊ िरचक्र है जजसके छ् दरो भें छ् िजतत गनतिीर जानी गई है जो जन्भ-अस्त-प्रनाभ-फदृ्ध-ऺीण औय भतृ्म ुनाभ से भानी गई है।

चौ0- गबप भॊह फीयज यज जनभ जभावे । अस्त गबप भॊह अॊग उगावे।। प्रनाभ गबप भॊह णझल्री दावा । वदृ्ध प्राण सॊग अॊग उगावा।।1।। जन्भ िजतत गबव भें यज िीमव को जभाती है। अस्त िजतत गबव भें अॊगो की िवृद्ध कयती है। प्रनाभ िजतत गबव भें खझल्र प्रदान कयती है औय िदृ्ध िजतत प्राण के सहमोग से गबव भें भ्रणु के अॊगो को फढाती है।

चौ0- गबपस्थ मशश ुअॊग छीन पवबाज्म । भतृ्म ुशस्क्त फस गयब त्माज्म।।

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भ्रभुध्म तीसय नतर गहुानी । ऩॊचतत्वगणु सयुत सठुानी।।2।। गबवस्थ शिि ुके अॊगो को ऺीण िजतत विबाजजत कयती है। औय भतृ्म ुिजतत के आधीन गबव का त्माग होता है। भ्रभुध्म भें तीसये नतर की गपुा है जजसभें ऩॊचतत्ि औय बत्रगणु सयुनत के साथ जुड जात ेहैं।

चौ0- तीसय नतर पऩ ॊड येख प्रकासा । स्जहह सभीऩ आऻाचक्र फासा।। सहस्त्र कॊ वर रागी अॉड देसा । ताकय ऩाय ब्रह्भाण्ड पवशषेा।।3।। तीसये नतर औय वऩ ॊड की सीभा ऩय प्रकाि केन्र है जजसके सभीऩ आऻा चक्र का स्थान है। सहस्त्र दर कभर तक अॊड देस है जजसके ऩाय वििषे ब्रह्भाण्ड है।

चौ0- ऩाय ब्रह्भाण्ड दमार अनाभी । सफ जग स्वाभी अन्तयजाभी।।

सहस्त्रदर यधच बत्ररोकक सायी । फसहहॊ दमार धननकभपचायी।।4।।

औय ब्रह्भाण्ड के ऩाय सचिॊड धाभ अनाभी है जो साये जग का स्िाभी औय अॊतमावभी है। इस प्रकाय सहस्त्रदर कभर भें सभस्त बत्ररोकी की यचना की गई जजसके अन्दय दमार ऩरुुष के कामवकताव ऩरुुष फसत ेहै। (महाॊ से नीचे कार सषृ्ट है औय उसी के ऩतु्र कभवचाय धनी फसत ेहैं।)

दो0- पऩ ॊड अॊड देस फॊधध सयुत ; सदा कहाई जीव। “होयाभदेव” अॊडपऩ ॊड तस्ज; सहस्त्रदर बई सीव।।225।। वऩ ॊड औय अॊड देसों भें फॊधकय मह सयुनत सदा जीि कहराती है। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक वऩ ॊड औय अॊड देसों को छोडकय सहस्त्रदर कभर भें सीि कहराती है।

दो0- भान सयोवय हेत ुसनु्न न्हाम कहाहीॊ हॊस। सचखॊड उयजा सरय ननभज्ज ; सयुत बई ऩयभहॊस।।226।।

भानसयोिय सेत ुसनु्न भें स्नान कयके सयुनत हॊस कहराती है औय सचिॊड देस भें ऊजाव गॊगा का स्नान कयके सयुनत ऩयभहॊस हो जाती है।

चौ0- अद्भतु सषृ्टी कार यचाई । तप्तशीरा धरय जीव नचाई।। करा अनेक रखावहहॊ कारा । जीवहह जीवन जास ुबफहारा।।1।। कार ने इसी प्रकाय अद्भतु सषृ्ट यचाई है। साये जीिों को तततिीरा ऩय नचामा है। कार अऩनी अनेकों करा ददिाता है जजससे जीिों का जीिन फेहार हो गमा है।

चौ0- जहॉ जहॉ जीव भोष करय आसा । तॊह कार भखु ऩाम ननयासा।। भामा कार सफही भनत हेयी । कयभन जार जीव सफ घेयी।।2।।

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जहाॊ जहाॊ बी जीि भोऺ की आसा कयता है िह ॊ िह ॊ कार के भिु भें चढता है उसे ननयािा ह शभरती है। कार औय भामा ने सफकी फवुद्ध हयण कय र है औय सफ जीिों को कभव जार भें फाॊध शरमा है।

चौ0- पवभरानाथ मह भन बावा । भथैुन सषृ्टी जगद यचावा।। आद्मा पवनती चतयुानन गामी । कार अरू आद्मा फहु हयसामी।।3।। श्री ब्रह्भा जी के भन भें मह अच्छा रगने रगा की अफ भथैुनी सषृ्ट से विश्ि यचना होिे। ब्रह्भा जी ने आद्मा िजतत की विनती की ; जजससे कार ननयॊजन औय आद्मा फहुत हवषवत हुिे।

चौ0- ब्रह्भा सन आद्मा तफ आवा । भथैुनी सषृ्टी यचन वय दावा।। ब्रह्भा भन अनत प्रसन्न बमऊ । प्रतीऺा यतइ तऩस्मा रमऊ।।4।। तफ ब्रह्भा के सभऺ आद्मा आई औय भथैुनी सषृ्ट यचने का ियदान ददमा जजससे ब्रह्भा का भन फहुत प्रसन्न हुआ औय िे प्रतीऺा भें यहकय तऩ कयने रगे।

दो0- सनुहु मशवा मह गोऩनीम ऩयभ तत्व सतसाय। अदृष्म आद्मा प्रगट बई बत्रदेपव रूऩ साकाय।।227।। हे शििा ! मह गोऩनीम सत्मसाय ऩयभतत्ि सनुो ! अदृष्म आद्मा तीन रूऩों भें (धायाओॊ भें) साकाय होकय प्रगट हो गमी।

दो0- पवष्णु नायी रक्ष्भी बई गामत्री पवधध सॊग। दऺसतुा भभ तीम तमु्ही भभ सन कयऊ प्रसॊग।।228।। िह श्रीविष्णु की नाय रूऩ रक्ष्भी फनी, गामत्री रूऩ से ब्रह्भा के साथ तथा ऩािवती रूऩ भें तभु ह दऺसतुा हो औय भेय ऩजत्न हो जो भेये सम्भिु फठैकय प्रसॊग कय यह हो।

दो0- तैंतीस कौहट हदपव देव कीन्ह जगद प्रसाय। भथैुन सषृ्टी प्रायम्ब बई वेद यचै पवधध चाय।।229।। कपय तो तौनतस कौदट देवि देिताओॊ के साथ जगद प्रसाय ककमा गमा औय भथैुन सषृ्ट प्रायम्ब हुई तथा चाय िेदों की यचना की गई।

चौ0- चायी वेद कार गणु गाई । सत्मऩरुष की बेद दयुाई।। सचखॊड भायग बेद न दीनी । कयभ जार जग फस कय रीनी।।1।। चायों िेद कार का ह गणुगान कयत ेहैं औय सत्मऩरुुष का बेद नछऩाकय यित ेहैं। उनभें सचिॊड के भागव का बेद कह ॊ नह ददमा। इस प्रकाय साया जगत कभवचक्र के िशिबतू कय ददमा है।

चौ0- जफ रधग अगभ ऩरुष नहहॊ बेंटे । तफ रधग जनभ भयन नहहॊ भेटें।।

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सत्म शब्द बफयरा कोऊ ऩावे । मभ पॊ द भेहट अभयऩयु जावे।।2।। जफ तक अगभ ऩरुुष की ऩजूा नह ॊ होगी तफ तक जन्भ भयण का नास नह ॊ होगा। उसके सत्म िब्द को तो कोई बफयरा ह प्रातत कयता है औय मभ का पॊ द शभटा कय अभयऩयु को जाता है।

चौ0- कृबत्रभ नाभ जऩे जभ खाहीॊ । सत्मऩरुष के दयसन नाहीॊ।। तीन जुगन ऩॊडडत छर सारा । बेद न बाखी सत्म दमारा।।3।। कृबत्रभ नाभों के जऩने से तो मभयाज ह िामेगें। सत्मऩरुुष के दिवन नह ॊ हो सकेगें। तीनों मगुों (सतमगु, त्रतेामगु औय द्िाऩय मगु) भें ऩॊडडतों ने मह छर यच ददमा कक सत्मऩरुुष दमार का बेद फिान नह ॊ ककमा। (तमोकक िे उस ऩयभतत्ि को नह जानत ेथे)

चौ0- अभय शब्द की बेद न जानी । सफ जग कार जार बयभानी।।

सत्मनाभ प्रताऩ जन जोई । जीनतअ कार जगद भकु्त होई।।4।। उन्होने अभय िब्द का बेद नह ॊ जाना औय सॊसाय कार जार भें ह भ्रशभत कय ददमा। सतनाभ के प्रताऩ को जो व्मजतत प्रातत कयेगा िह कार को जीत कय बिभतुत होगा।

दो0- कुभनु्दरनन अरू चन्रभा कब ुननकट नहहॊ फास।

तदपऩ प्रेभ यस एक तथा बेहद सत्म के ऩास।।230।।

कुभनु्दरनन औय चन्रभा का ननकट ननिास कबी नह है कपय बी पे्रभयस एक ह है उसी प्रकाय बेद ऩरुुष सत्मऩरुुष के ऩास ह है।

चौ0- तद वहदऊ चन्दया हे देवा । गय तभु प्रसन्न हभायी सेवा।। गरुवय जतन कीस्जमे सोई । सचखॊड धाभ गभन स्जमभ होई।।1।। तफ चन्रप्रबा ने कहा कक हे देि ! मदद आऩ हभ सफ की सेिाओॊ से प्रसन्न हैं तो गरुुिय िह साधन प्रदान कीजजमे जजससे भेया सचिॊड धाभ को गभन हो जािे।

चौ0- तमु्हयो फर हॊसा सखुऩाई । कयभ बयभ तस्ज ननज गहृ जाई।। करय करय जतन मभफॊध न छूटी । कार कयभ की बॊड न पूटी।।2।। औय तमु्हाये फर ऩय हॊस ऩरुुष (ससुज्जन) सिु ऩािें औय कभव का भ्रभ त्माग कय अऩने देस को चरे जािें। महाॊ तो मत्न कयके बी मभ का फॊधन नह ॊ छूटा औय कार तथा कभव का बॊडा नह ॊ पूटा।

चौ0- तभु सचखॊड तस्ज जीव ुकायन । आमहु जीवहह सॊकट टायन।। जभ पॊ द कोऊ न ऩाय फसाई । करय करय जतन जीव पॊ द जाई।।3।।

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तभुने जीिो के दहत के शरमे सचिॊड धाभ छोडा है औय जीिों के सॊकट हयण कयने को आमे हो। मभपॊ दे से ककसी की महा ऩाय नह ॊ फसाती। प्रमत्न कय कयके बी जीि महाॊ पॊ सत ेह जात ेहै।

चौ0- घट घट बयभबतू अस रागी । भामा जार जीव अनयुागी।। चॊडी जोधगन बतू ऩजुाई । ऩनुन ऩनुन नयकहहॊ मात्रा ऩाई।।4।। प्रत्मेक घट भें भ्रभ का बतू ऐसा रगा हुआ है कक जीिों को भामा प्रऩॊच का ह अनयुाग है। इसशरमे चॊडी मोधगनन बतूपे्रभ ऩजुिामे जात ेहैं जजससे फाय फाय नयक की मात्रा प्रातत होती है।

दो0- कहत “होयाभ” प्रबा सनुो सऩुात्र मशष्म ऩहचान। ऩयभतत्व फयनन करूॊ जास ुजीव कल्मान।।231।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक चन्रप्रबा सनुो ! भैं सऩुात्र शिष्म की ऩदहचान कयके औय जजससे जीिों का कल्माण हो ऩयभतत्ि का िणवन कयता हूॉ कक –

दो0- फोरी मशवा हे नीरकॊ ठ सनुन सनुन फढे पऩऩास। सत्मऩरुष के देस का ऻान तमु्हाये ऩास।।232।। तफ शििा फोर कक हे नीरकॊ ठ ! सनु सनु कय भेय तमास फढती जाती है औय सत्मऩरुुष के देस का िह ऻान आऩके ऩास है।

चौ0- फोरे शॊकय सनुो बवानी । कारहहॊ भामा जीव बटकानी।। जफ रधग सत्मनाभ नहहॊ ऻाना । तफ रधग नहीॊ भोष ऩद ऩाना।।1।। तफ शिि िॊकय फोरे कक बिानी सनुो ! कार की भामा जीिों को बटकाती है। जफ तक सत्मनाभ को जाना नह जाता तफ तक भोऺ ऩद प्रातत नह ॊ है।

चौ0- कार सदा सत्मऩरुष कय रोही । नतहह ऩयऩॊच ककॊभ कधथहुॉ तोही।। ऩॊचतत्व मह यधचत शयीया । ताभॊह ऩॊखया ऩवन डुरीया।।2।। कार ननयॊजन तो सत्मऩरुुष का रोह है। उसके प्रऩॊच का तझुसे तमा िणवन करूॉ ? ऩाॊच तत्ि ननशभवत मह िय य है जजसभें ऩिन का ऩॊिा दहरता यहता है।

चौ0- जास ुजीवा स्वाॊस स्वाॊस ऩय । सोहगॉ सोहगॉ जऩई साधध कय।। धयभयाज अस फाजी राई । धोखा डारय जीव बयभाई।।3।। जजसके द्िाया जीि साॊस साॊस ऩय सो Sहभ ्सोSहभ ्का जाऩ साधकय कयता है। ऩयन्त ुधभवयाज ने ऐसी फाजी रगाई है कक जीिों ऩय धोिा डारकय उन्हें बयभा ददमा है।

चौ0- जनभ एक जीव सकृुत करयअ । दसूय बोधग पर रयक्त ऩरयअ।। रयत ेबये जनन यहटहहॊ झायी । जीव त्रस्त मसय कार प्रहायी।।4।।

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जीि एक जन्भ भें तो सकृुत कयता है औय दसूये जन्भ भें उसका पर बोगकय िार हो जाता है। जैसे यहट की फाल्ट भें ऩानी बयता है औय िह िार बी होती है। उसी प्रकाय जीि दिुी है उसके शसय ऩय कार प्रहाय कयता है।

दो0- स्जन्ह शब्दन भें उरूणझ बव ; तऩ करय जाऩे नाभ। सो सफ भामा कारकृनत ; नाहीॊ भोष “होयाभ”।।233।।

जजन िब्दों भें जगत उरझा है तऩ कयता है औय नाभ जऩता है िह सफ भामा औय कार की यचना है। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक उससे भोऺ नह ॊ शभरता।

चौ0- अऺय स्वमॊ दस वेद सनुाई । ब्रह्भा चारय जगद प्रगटाई।। चारय अॊश स्जहह के बफधध छाॊटी । ऋग मजु साभ अथवप प्रगाटी।।1।। अऺय ब्रह्भ ने स्िमॊ दस िेद सनुामे थे ऩयन्त ुब्रह्भा जी ने चाय िेदों को ह प्रगट ककमा है चायों िेदों भें चाय अॊि छाॊट शरमे है जजससे ऋगिेद मजुिेद साभिेद औय अथवििेद उत्ऩन्न हुए हैं।

चौ0- सचखॊड ऻान वेद गपु्त याखा । चारय वेद सफही जग बाखा।। ब्रह्भवेद यपव कहह नायामन । सयुतवेद मशव मशवा सनुामन।।2।। सचिॊड के ऻान िेद को गतुत ह यिा। केिर चाय िेद साये जग को फिान ककमे। ब्रह्भिेद नायामण ने समूव से कहा था औय मह सयुतिेद शिि ऩािवती को सनुा यहे है। (ऩािवती जो भैं तमु्हे सनुा यहा हूॉ मह सयुतिेद अभयकथा के नाभ से प्रचशरत होगा)।

चौ0- अभयकथा मह सयुनत वेदा । जास ुजीव कारफॊध छेदा।। भामा फस यधच यचना कारा । सफ ऩय व्माऩहहॊ ताऩ कयारा।।3।। मह सयुतिेद ह अभयकथा है जजसके द्िाया जीि कार के फॊधनों का छ्दन कय सकता है। कार ने भामा के आधीन सषृ्ट यची है। औय उसका सफके ऊऩय कयार ताऩ व्माऩ यहा है।

चौ0- कार तफहीॊ शास्न्त ऩावा । जफहु जीव दान ऩनु्म बावा।। कायन कारदेस सखु सानी । आवश्मक दान सकृुतानी।।4।। कार ननयॊजन िाजन्त तबी प्रातत कयता है जफ जीिों को दान ऩनु्म अच्छे रगत ेहैं कार देस की सिु िाजन्त के शरमे दान औय सत्मकभव ऩयभ आिश्मक है।

दो0- मशव शॊकय फोरे ऩनुन सनुो मशवा धरय ध्मान। आग रधग सॊसाय भें जग बत्रताऩ भसान।।234।।

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कपय शिि िॊकय फोरे कक शििानी ! ध्मानदेकय सनुो। इस सॊसाय भें आग रगी हुई है औय जग को तीन ताऩों का भसान योग रगा है।

चौ0- जर यहह जर ताऩ यहह धयनी । जरहहॊ ब्मोभ कार की कयनी।। चन्दा सयूज नौरख ताया । जर जर होंहह ननमशहदन ऺाया।।1।। जर जर यहा है धयती तऩ यह है। कार की कयनी से आकाि जर यहा है। चन्र समूव नौरि तायागण सफ ददन यात जर जर कय नष्ट होत ेजा यहे हैं।

चौ0- सकर ऩसाया हौं कक गाऊॉ । कार सों फचहहॊ कवन को ऩाऊॉ ।। ब्रह्भा पवष्णु मशव नेजाधायी । याभकृष्ण व कोउ अवतायी।।2।। सभस्त ऩसाये का भैं तमा फिान करूॊ जो कार से फच ननकरे ; ऐसा ककस को ऩाऊॊ । ब्रह्भा विष्णु शिि नेजाधाय तथा याभ कृष्ण अथिा कोई बी अिताय ऩरुुष–

चौ0- तप्तशीरा जग कार नचावा । कारमसॊधु सतनाभ नतयावा।।

तहाॊ अरख ऩरुष अपवकाया । जहाॉ कार फर सफ पवधध हाया।।3।।

सबी को कार बत्ररोकी जगत भें तततशिरा ऩय नचाता है। महाॊ तो कार के शस ॊधु से सत्मनाभ ह नतयाता है। अविकाय अरि ऩरुुष िहाॊ है जहाॊ कार का सभस्त फर सफ प्रकाय से हाय जाता है।

चौ0- जे घट ऩयगट नाभ सतनाभा । छूटे बयभ अभयऩरुय गाभा।।

कार प्रहाय ढार जगभाहीॊ । सत्म शब्द घट ज्मोनत जगाहीॊ।।4।।

जजसके घट भें सतनाभ प्रगट होता है उसके सभस्त भ्रभ छूट जात ेहै। उसका अभय रोक भें गभन हो जाता है। इस जगत भें कार के प्रहाय को योकने िार ढार सत्मनाभ िब्द औय घट ज्मोनत जगाना है।

दो0- जनन कोल्हू ईऺा पऩयै त्मूॊ ऩीडडत सॊसाय।

जगद चफेना कार का चुन चुन कये आहाय।।235।।

जैसे कोल्हू भें गन्ना वऩरता है उसी प्रकाय सॊसाय ऩीडडत है। मह साया जगत कार का चफेना है इसभें कार चुन चुन कय सफको बोजन फना रेता है।

प्रिचनाॊि्- सॊत श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक् प्रेशभमों ! ऩहरे तो सत्मरोक िासी सत्मऩरुुष बगिान स्िमॊ अकेरे ह थे। िहाॊ के सबी ननिासी सत्मऩरुुष के ह रूऩ के थे। उन्ह के रोक का प्रकाि जो धचदाकाि ऩय ऩड यहा है िह सभजष्ट जीि कहा गमा है। सत्मऩरुुष ने कपय बी जीि को अऩने जैसा फनाने के शरमे उसे िब्द ज्मोनत से चेतन्म कयके िीॊचने का प्रमत्न ककमा है। तफ सभजष्ट जीि को ईच्छा हुई जजससे क्रभि् भन धचत्त फवुद्ध अहभ से

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अन्त्कयण भें काभना का फासा हो गमा है औय “भैं ब्रह्भ हूॉ” का अनबुि हुआ। भैं ब्रह्भ हूॉ का बान ऩयाविद्मा द्िाया अनबुिगम्म होता है जफकक अऩया विद्मा द्िाया मह फात सभजष्ट जीि के स्िाॊि से उत्ऩन्न होती है। अष्ट शसवद्धमाॉ बी इसी से उत्ऩन्न हैं।

इस सॊसाय को आद्मा िजतत मोगभामा ने फनाकय िडा ककमा है। औय आऩ ह इसकी चोट ऩय फठैकय इसे प्रकाशित कय यह हैं। अधचत्म यभत ेयाभ के प्रेभ से ओभ का प्रादुवबाि हुआ है जजससे कार सषृ्ट ि चाय िेद उत्ऩन्न हुिे है। मोगभामा ने ह कार औय दमार के देसों की यचना की है। दमार सषृ्ट अजय अभय िाश्ित यचना है औय कार की सषृ्ट सत्मऩरुुष की आऻा से विनाििीर यची है। इसशरमे महाॊ सबी जीि कार का बोजन फने हुमे है। कार ननयॊजन ह भहाविष्णु फना फठैा है। औय सत्मऩरुुष की धायारूऩ श्रीविष्णु को छुऩाकय यिता है। मह कार न्माम के कायण कयार ददिाई देता है। एक फात औय है मोधगमों भें मोग ऩणूव अिस्था प्रातत होने ऩय नौ ननधधमाॊ तथा अष्ट शसवद्धमाॊ प्रगट होने रगती है जजनकी ऩणूवमोगी काभना बी नह ॊ यिता था। ऩयन्त ुमह मोग की स्िाबाविक अिस्था से अिश्म उत्ऩन्न हो जाती है। औय मदद ककसी भें मे शसवद्धमाॉ प्रगट नह हुई है तो अबी उसका मोग ऩरयऩणूव नह है। सॊसाय के कुछ सज्जन तो ईश्माविि ऐसे मोधगमों का चभत्काय देिकय उन्हे अऻानता से ताॊबत्रक तक कहने रगत ेहैं तमोंकक िे ध्मानमोग के तत्ि से अनशबऻ होत ेहै। जफकक ऩयभसॊत इनके चक्र भें नह ॊ यहता। शसवद्धमाॉ तो उसभें स्ित् प्रगट होती है। तमोककॊ ऐसा कबी नह होता कक द ऩ जरामे औय प्रकाि न हो। मोगी भें िजतत का प्रकाट्म आद्मािजतत की प्रकक्रमा से होना स्िाबाविक है। इन शसवद्धमों को ऩयभसॊत ऩयभाथव भें रगा देत ेहैं औय इनके जार से फचत ेयहत ेहैं

17 – सत्मऩरुष कार ननयॊजन सम्फाद

दो0- ऻानसागय अनत पप्रम भभ फोरे प्रसॊग पवचाय।

कार स्वरूऩ फखानऊॊ को पवधध सयुछ सधुाय।।236।।

भेये ऩयभवप्रम ऻानसागय अग्रिार प्रसॊग का विचाय कयत ेहुिे फोरे कक अफ कार ननयॊजन के स्िरूऩ का िणवन कयो उससे ककस प्रकाय सयुऺा औय सधुाय होगा ?

दो0- तफ “होयाभदेव” हौं कीन्ह प्रगट मह साय। कार ताऩ पवकयार छर सकृुत नाभ आधाय।।237।।

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होयाभदेि जी कहत ेहैं कक तफ भैंने मह यहस्म प्रगट ककमा कक मद्मवऩ कार का ताऩ विकयार है औय छर मतुत है कपय बी इसभें सत्मनाभ औय ऩनु्मकभों का आधाय है।

दो0- आग रगी सॊसाय भें बमऊ जीव उदास।

सचखॊड सों सॊत आवहहॊ कयहहॊ सयुछ ऩरयमास।।238।।

सॊसाय को आग रगी हुई है। जफ जीि उदास हो चुके होत ेहैं तफ सचिॊड से सॊतात्भाऐॊ आती है। औय जीिों की सयुऺा का ऩयूा प्रमास कयती हैं।

चौ0- असॊखम सयु भनुन ऩयजा सॊगा । बमे नष्ट अस कार तयॊगा।।

कारऩतु्र अधधऩनत बव साये । ऩकुाय ऩकुाय करय सफ ुछाये।।1।।

असॊख्म देिता भनुनजन प्रजा के साथ नष्ट हो जात ेहैं ऐसी कार की तयॊगे हैं। कार के ऩतु्र तथा सॊसाय के साये अधधष्ठाताओॊ को कार फरुा फरुा कय नष्ट कयता है।

चौ0- जफ जफ फाढै ऩाऩ जगताऩा । सॊत ससुज्जन ऩाई प्रराऩा।।

आवहहॊ कछुक कार कय दतूा । धयभ धथयाम जग खडग कसतूा।।2।।

सॊसाय भें जफ ऩाऩ औय ताऩ फढता है औय सॊत ि सज्जन ऩरुुष दिु बयने रगत ेहैं तफ कुछ कार के दतू आत ेहैं तफ िे तरिाय के फर ऩय धभव की स्थाऩना कयत ेहैं।

चौ0- क्रास्न्त जगाम सो अनर उगाहीॊ । राख मभटाम दस फीस फचाहीॊ।।

एसौ कार कार की चारा । बमऊ ननदोषी जीव बफहारा।।3।।

िे अजग्न उगर कय क्राजन्त जगात ेहै। औय दस फीस व्मजततमों को फचाने के शरमे रािों को शभटा देत ेहैं। ऐसे सभम भें कार की इस चार से ननदोष जीि बी दिुी हो जात ेहैं।

चौ0- सयुग नयक फकुैॊ ठ कैरासा । बमे ऩणूप यधच बत्रसयु फासा।।

आद्मा जगद ऩसायी भामा । ऩग ऩग कार ननयॊजन गामा।।4।।

सयुग नयक फकुैॊ ठ औय कैराि की यचना ऩणूव होकय ब्रह्भा विष्णु शिि का ननिास होता है तफ मह आद्मा िजतत भामा का प्रसायण कयती है औय ऩग ऩग ऩय कार ननयॊजन का गणुगान कयती है।

दो0- बफधध हरय हय ईन्राहदका भहत्त गान ननज चीन्ह।

सत्मऩरुष बेद दयुाई सफ प्रगट कारभत कीन्ह।।239।।

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ऩयन्त ुब्रह्भा श्रीहरय तथा शिि औय ईन्राददक देिगणों ने अऩनी अऩनी भहत्ता का गणुगान चुना है औय कार भत को ह प्रगट ककमा है। सत्मऩरुुष का साया बेद नछऩा ददमा है।

चौ0- कृतध्न स्वायथ ननज सतु देखी । आद्मा भन बई कुण्ठा पवशखेी।।

तीन सतुा नतष कार यचाई । यम्बा शधच येणु नाभ कहाई।।1।।

तफ अऩने ऩतु्रों को कृतध्न औय स्िाथी देिकय आद्मा िजतत के भन भें वििषे कुॊ ठा हुई जजससे उसने तत्कार तीन ऩबुत्रमाॊ उत्ऩन्न की जजनका यम्बा िधच औय येणु नाभ कहरामा।

चौ0- आद्मा तीनउ आमस ुप्रदावा । हभयी ऩजूा जग ऩयसावा।।

तफ सफ सतुा उरय अकासा । देव गॊधवप चायण भन फासा।।2।।

आद्मा ने तीनों को आऻा द कक सॊसाय भें हभाय ऩजूा पैरािे तफ तीनों ऩबुत्रमाॊ आकास भें उड गई। औय देिों गॊधिो तथा चायणों के भन भें फस गई।

चौ0- ब्रह्भा पवष्णु मशव सयु आना । भोह ऋपष भनुन सॊत सजुाना।।

जीव बमऊ नतन्हहह अनयुागी । इह पवधध आद्मा बगनत जागी।।3।।

औय ब्रह्भा विष्णु औय शिि तथा अन्म देिगण ऋवष भनुन सॊत तथा ऻानी जनों को भोह शरमा। साया विश्ि इनका ह अनयुागी हो गमा। इस प्रकाय आद्मा िजतत की बगनत सॊसाय भें प्रचशरत हो गई।

चौ0- एहह कायण जगद मह साया । आद्मा बत्रसयु ऩौय न ऩाया।।

चौयासी राख जौनन बयभाहीॊ । तप्तशीरा कार जीव सफ खाॊहीॊ।।4।।

इसी के कायण मह साया सॊसाय इस आद्मा औय बत्रदेिों (ब्रह्भा विष्णु औय शिि िॊकय) के धाभ से ऩाय नह ॊ जाता। औय चौयासी राि मोननमों भें भ्रभता यहता है इस प्रकाय तततशिरा ऩय यिकय कार सफ जीिों को िाता है।

दो0- पवशार ऩमोधध बवननधध दयू दयू दोउ ऺौय।

“होयाभ” एक तट वेद हैं आद्मा दसूय ओय।।240।। बिसागय के वििार सभनु्र के दोंनों ककनाये दयू दयू हैं। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक एक ककनाये िेद यहत ेहैं औय दसूये ककनाये ऩय आद्मा िजतत यहती है।

दो0- चौसठ जोधगन पवपवध छर पवचयत सॊग उभॊग।

बरय खप्ऩय जीव ुबक्ष्महहॊ ऩश ुफमर होहहॊ कुसॊग।।241।।

जो अऩनी चौसठ मोधगननमों के साथ भस्ती भें विविध प्रऩॊचों के साथ विचयण कयती है इसीशरमे कुसॊग से जीि ऩि ुफशर होती है। औय िह जीिों का हाथ भें ितऩय रेकय बऺण कयती है।

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चौ0- वेद अरू आद्मा के मसय गाजा । सजग कार चेतन्म साम्राजा।।

ननयॊजन तहॉ भन्त्र अस ऩठहहॊ । नतहह जार कोऊ ऩाय न सठहहॊ।।1।।

सािधान कार का चेतन्म साम्राज्म िेद औय आद्मा के शसय ऩय वियाजभान हैं। उसके जारसे कोई ऩाय नह ॊ जा ऩाता तमोकक कार ननयॊजन उनभें ऐसा ह भॊत्र ऩढता यहता है।

चौ0- कार चढे भेधा जन जन की । हेयहहॊ पेयहहॊ भनत कयभन की।।

तप्तशीरा चहढ जीव पवशारा । सह न सकहहॊ कार छर जारा।।2।।

कार ननयॊजन जनजन की फवुद्ध ऩय चढा फठैा है जो कभों की भनत को दहयाता कपयाता है। जजससे वििार जीि तत्ऩतशिरा ऩय चढे हुिे है। औय कार प्रऩॊच के जार को सहन नह ॊ कय सकत।े

चौ0- आतऩ जीव बफहद दखु ऩाहीॊ । कयत ऩकुाय जगदीश्वय साहीॊ।।

पवधध हरय हय केवट सॊसाया । गहहहॊ जीव जाई ननज द्वाया।।3।।

तऩता हुआ जीि फहुत अधधक दिु ऩाता है औय जगद श्िय प्रब ुकी ऩकुाय कयता है। ब्रह्भा विष्णु औय शिििॊकय सॊसाय के भल्राह फने हुिे है जो जजिों को गहृण कयत ेहैं औय अऩनी ह द्िाय ऩय रात ेहैं।

चौ0- त्राही त्राही होई जग साया । गई ऩकुाय सत्मऩरुष द्वाया।।

तफ सत्मधनी भन कीन्ह पवचाया । भतृखॊड जीव ऩीय बई बाया।।4।।

इस प्रकाय साये जग भें त्राह त्राह होने रगी। तफ सत्मऩरुुष के द्िाय ऩय ऩकुाय ऩहुॊची तो सत्मऩरुुष ऩयभेश्िय के भन भें विचाय ककमा कक भतृरोक भें जीिों ऩय बाय ऩीय ऩडी हुई है।

दो0- कार ताऩ भैं देणखहौं जाइ कार के देस।

जीवा सधु फधु रेहहहौं दइ सचखॊड उऩदेस।।242।।

भैं कार के ताऩ को देिूॊगा कार के देस भें जाऊॊ गा औय सचिॊड का बेद उऩदेि फताकय सबी जीिों की सधु फधु रूॊगा।

दो0- ऻान सागय तफ नीरकॊ ठ मशवा सफ बेद फझुाम।

कायागाय कार यधचत सत्मधनी सोचत जाम।।243।।

ऻानसागय ! तफ श्री िॊकय भहादेि ने शििा को मह साया बेद सभझामा कक कार की यधच हुई कायागाय (देहाियण) के विषम भें सत्मऩरुुष सोचत ेचरत ेयहे कक–

चौ0- कारहह ठाभ मत कक बमऊ । जीव कोउ भभ धाभ न गमऊ।।

तप्तशीरा जफ दृष्टी ऩरयमाॊ । बफकर जीव रणख त्मौंयी परयमाॊ।।1।।

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कार के देस को महाॊ तमा हो गमा जो भेये देस भें अफ कोई बी जीि नह ॊ जाता है। जफ उनकी दृष्ट तततिीरा ऩय ऩडी तो जीिों को व्माकुर देिकय त्मौंरय चढ गई।

चौ0- सत्म शब्द धाय चेतना जागी । बमऊ जीव सत्मधनन अनयुागी।।

फोरे तफ सत्मऩरुष दमारा । भाभ बेद बफन ुजीव बफहारा।।2।।

औय सत्म िब्द की धाया से चेतना जागने रगी। औय सबी जीि सत्मऩरुुष के अनयुागी (बतत) हो गमे। तफ सत्मऩरुुष दमार फोरे कक भेये बेद के बफना ह सफ जीि व्माकुर है।

चौ0- सनुो सनुो सफ सयुत सभदुामा । सफ ऩय कार ननयॊजन छामा।।

आत्भस्वरूऩ ननजभरू पऩछानो । सोह्भस्स्भ भोहह कय जानो।।3।।

हे सभस्त जीिात्भाओॊ सनुो ! तभु सफ ऩय कार ननयॊजन की छामा ऩडी हुई है। तभु अऩना भरू आत्भस्िरूऩ ऩदहचानो। भझुे ह सोहभ ्स्िरूऩ भें जानो।

चौ0- नाभ तीयथ जऩ तऩ मऻ जेत े। बयभ बरुाव कार छर तते।े।

नाद अनहद् शब्द नतहह जारा । मह सकृुनत कार फर ऩारा।।4।।

जजतने बी नाभ तीयथ जऩ तऩ औय मऻ है उतना ह कार का छर है औय भ्रभ बरुािा है। नाद अनहद िब्द सफ उसी का जार है मे ऩनु्म कभव कार के फर को फशरष्ठ कयत ेहैं।

चौ0- सत्मनाभ सत्मधनन कय जानो । अभय शब्द की धाय पऩछानो।।

जो मह अभय शब्द गहह रेंही । ताको कार चक्र नहहॊ सेंही।।5।।

सत्मऩरुुष का साॉचा नाभ जानो औय अभय िब्द की धाया की ऩदहचान कयो। जो इस अभय िब्द को गहृण कय रेता है। उसको कार का चक्र नह ॊ सताता।

दो0- सनुो मशवा साॉची कहूॉ तफ सत्मऩरुष दमार।

सकर बेद सत्मनाभ कहह जास ुघटहहॊ फर कार।।244।।

हे शििानी ! भैं सच कहता हूॉ तफ सत्मऩरुुष दमार ने सत्म नाभ का साया बेद कह ददमा जजससे कार का फर घटता जाता है।

चौ0- कार बगनत बव फॊधनकायी । बगनत दमार बव जीव उफायी।।

भेहटअ चाहूॉ कार ऩसाया । कायण एक पववश करय डाया।।1।।

कार की बगनत तो सॊसाय का फॊधन कयने िार है औय सत्मऩरुुष दमार की बगनत जीिों का उद्धाय कयती है। भैं कार का ऩसाया भेटना तो चाहता हूॉ ऩयन्त ुएक कायण ने भझुे वििि कय यिा है कक –

चौ0- चौदस ईन्र भन ुमभयामा । असॊखम सषृ्टी भाभ सतुामा।।

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एकहह मभटे ऺम सफ होई । तात ेपववस असम्बव सोई।।2।।

चौदह ईन्र चौदह भन ुऔय चौदह मभ तथा असॊख्म सषृ्ट माॊ औय भेये सभस्त सतु् (ऩतु्रगण) एक कार के शभटाने से सबी नष्ट होत ेहै। इसशरए भैं वििि हूॉ औय ऐसा कयना असम्बि है।

चौ0- देणख पवषाद चयाचय जन की । सचखॊड बेद कहह सफ भन की।।

खोमर जाऊॉ सफहह घट भाहीॊ । सत्मसाय तभु तनहहॊ सभाहीॊ।।3।।

चयाचय प्राखणमों की िेदना देिकय सचिॊड का सभस्त बेद अऩने भन से कह डारा कक भैं सफके घट बीतय सत्मधाया िोरकय जाता हूॉ जो तमु्हाये िय य भें ह सभाती है।

चौ0- सकर सतु् सयु तभु बयभाई । ननज अॊश बाखी सोंह फझुाई।।

तभु सफ सयुत भभाॊश सभाना । सोहॉ जाऩ कयहु भभ ध्माना।।4।।

सबी सतु् (धनन ऩरुुषो तथा देिो) ने तमु्हे भ्रशभत कक्रमा है तमु्हे अऩना ह अॊि कह कय सोंह भॊत्र सभझामा है। जफकक तभु सफ भेय अॊि हो सोंह जाऩ से भेया ह ध्मान कयो। (सत्मऩरुुष ऩयभेश्िय ने कहा कक कारदेस की तततशिरा को िाॊत यिने के शरमे तभु महाॊ के तऩ मऻ जऩ तीथव बजन बी कयो ऩयन्त ुगतुत भेये सत्म स्िरूऩ की ध्मान सभाधध अिस्था से प्राजतत बी कयत ेयहना। उसे प्रातत कयाने के शरमे भैं कार देस भें अऩनी अॊि ज्मोनत स्िरूऩ सत्मात्भाऐॊ बेजता यहूॊगा)।

चौ0- तहेह अवसय कार तहॉ आवा । पवपवध कयार स्वरूऩ फनावा।।

चहुॉ ओय भखु ऩावक प्रजयनन । चुन चुन चाहैं चयाचय चयनन।।5।।

उसी सभम िहाॊ कार ननयॊजन आ गमा जजसने विविध प्रकाय से बमॊकय स्िरूऩ फना यिा था। उसके भिु से चायों ओय को अजग्न की रऩटें ननकर यह थी भानो कक चयाचय प्राखणमों को चुन चुन कय चयने िारा है।

दो0- कहत “होयाभ” ऻानी सनुौ फयनऊॊ कार स्वरूऩ। ऩायफनत सन जे कहह श्रीमशव बाष्म अनऩू।।245।।

श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक हे ऻानसागय ! भैं कार के स्िरूऩ का िणवन कयता हूॉ जो शिि ने मह अद्भदु बाष्म ककमा है औय ऩािवती के सभऺ कहा है। उसे सनुो।

चौ0- फोरे मशव हे मशवा बवानी । कार स्वरूऩ कयार बमानी।।

कार कठोय फहु पवधध गयजे । भस्तक साठ सूॊढ इक सयजे।।1।।

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शिि फोरे कक हे शििा बिानी ! कार का स्िरूऩ बमदामक औय कठोय है। महाॊ कठोय कार फहुत प्रकाय से गजवता है। उसके एक सढूॊ औय साठ भस्तक सजृजत है।

चौ0- श्रवन एक नमन चौयासी । अष्ट फदन अनर उद्गासी।।

सत्तय मोजन की गजदॊता । अॊकुशहीन जगद बगवन्ता।।2।।

एक कान चौयासी आॊिे है। आठ भिु है जो अजग्न उत्ऩन्न कयत ेहैं सत्तय मोजन के हाथी जैसे दाॊत है िह अॊकुि यदहत है औय विश्ि का बगिान है।

चौ0- एक दॊत ऩातार सभावा । चुन चुन फासक याज्म नसावा।।

खावहहॊ धयनी दसूय दन्ता । कोऊ न फचे जीव करय अन्ता।।3।।

उसका एक दाॉत ऩातार भें सभामा हुआ है जो चुन चुन कय नाग रोक का विनास कयता है। दसूया दाॉत ऩथृ्िी को िाता है जजससे कोई बी नह फचता मह सफ का अन्त कय देता है।

चौ0- ऋपष भनुन आहदत्म अवताया । सफहह शीश ऩरय कार कुठाया।।

तीसय दॊत गमऊ आकासा । खाम ब्रह्भाण्ड यपव शशी ग्रासा।।4।।

ऋवष भनुन आददत्म औय अिताय सबी के शसय ऩय कार का कुठाय ऩडता है। तीसया दाॉत आकाि तक गमा है जो ब्रह्भाण्ड को िाता है। मह समूव चन्रभा को बी ग्रास फना रेता है।

दो0- चौथे दॊत फयसत अनर कये बत्ररोकी नास।

सूॉढ फढाम घेरय कपयत सयु भनुन ताऩस ग्रास।।246।।

चौथे दाॊत से अजग्न फयसती है जो बत्ररोकी का विनास कयती है। िह सूॉढ फढाकय सयुभनुन तऩस्िी सबी को ग्रास फनाकय सफको घेये कपयता है।

चौ0- सनुन सतनाभ कार बम खाॊहीॊ । अभय शब्द स्जनके घट भाहीॊ।।

सचखॊड सीभा ऩरुष अनाभा । ननशब्द ऩाय शब्द उद्गाभा।।1।।

सत्मनाभ िब्द को सनुने से कार बम िाता है मा जजनके घट बीतय सत्मनाभ िब्द प्रगट हो गमा है िह उनसे डयता है। सचिॊड की सीभा ऩय अनाभी ऩरुुष है इस प्रकाय ननिब्द से ऩाय सत्मनाभ िब्द उददत है।

चौ0- सो शब्द प्रगट करय जे रेहीॊ । तहेह सन कार न फाधा देहीॊ।।

स्वमॊ बवानी हौं सोइ नाभा । ध्मान रीन ननत यहूॊ धथयाभा।।2।।

जो उस िब्द को प्रगट कय रेता है उसके साभने कार फाधा नह ॊ कयता। भैं स्िमॊ हे बिानी ! उसी अभय िब्द सत्मनाभ के ध्मान भें र न यहकय जस्थय यहता हूॉ।

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चौ0- सो ऩयभसॊत जगद फड बागी । तुॊकाय शब्द सतनाभ घट जागी।।

अफ तभु सनुो भोहह धचतरावा । कार चार दमार नहहॊ आवा।।3।।

सॊसाय भें िह ऩयभसॊत फड ेबाग्म िारा है जजसके घट भें तुॊकाय (सत्मनाभ) िब्द जागतृ हो चुका है। अफ तभु भझुे ध्मान से सनुो। कार की चार भें दमार ऩरुुष कबी नह ॊ आता।

चौ0- सत्मऩरुष कय पऩछानन न फोधा । झऩहट वेग कार करय क्रोधा।।

कार कीन्ही असॊखम प्रहाया । सफ पवधध अन्तत कार ही हाया।।4।।

कार ने सत्मऩरुुष की न तो वऩछान की न जान ऩामा फस क्रोध भें तजेी से उन ऩय झऩट ऩडा। कार ननयॊजन ने असॊख्म प्रहाय ककमे ऩयन्त ुअन्त भें कार ह सफ तयह से हाय गमा।

दो0- फणूझऊ कार कवन तभु ; आमहु मत भभ देस।

हस्तऺेऩ सफ पवधध कयत बम नाहीॊ रवरेस।।247।।

तफ कार ने ऩछूा तभु कौन हो महाॊ भेये देस भें तमो आमे हो ? भेया जया सा बी तमु्हे बम नह ॊ है औय सफ प्रकाय से हस्तऺेऩ कय यहे हो।

छ0- हौं कार कयार पवयाट रूऩ भहापवष्णु नाभ ननयॊजन बासे।

ऩाॊच ऩातार शीश आकासा षोड्स मोजन अनर उगासे।।

सत्रह रऺ रधग ऩाॊव ऩसाया रऩकै जीब मभ ताया टूटहहॊ।

मामभनन दभकत भाभनशुासन देणख दन्त बत्रबवुन दभ छूटहहॊ।।17।।

भैं वियाट स्िरूऩ कठोय कार हूॉ भहाविष्णु हूॉ भेया नाभ ननयॊजन उद्भाशसत है। भेये ऩातार भें ऩाॉि औय शसय आकाि तक है। भझुसे सोरह मोजन तक अजग्न उद्दीतत है। औय सत्रह राि मोजन तक भेये ऩाॊि पैरे हुमे है। मदद जीभ्मा रऩक ऩड ेतो मभ रोक बी टूट जाता है। भेये ह अनिुासन से बफजर दभकती है भेये दाॊतों को देिकय तीनों रोकों का प्राण छूट जाता है।

चौ0- कताप धताप जेत ेजग भाहीॊ । सबी भाभ अनशुासन ऩाहीॊ।।

ब्रह्भा पवष्णु मशव मभ देवा । बम खाम कयहहॊ भभ सेवा।।1।।

जगत भें जजतने बी कताव धताव ऩरुुष है िे सफ भेया अनिुासन प्रातत कयत ेहै। ब्रह्भा विष्णु शिि मभयाज तथा देिगण भेया बम िाकय भेय ह सेिा कयत ेहैं।

चौ0- को तभु नाभ कवन तव ग्राभा । कायन कवन आम भभ ठाभा।।

फोरे सत्मऩरुष नतषकारा । सत्मऩरुष भभ नाभ दमारा।।2।।

तभु कौन हो कहाॊ तमु्हाया धाभ है औय ककस कायन से भेये द्िीऩ भें आमे हो। तफ सत्मऩरुुष दमार फोरे कक भैं सत्मरोक का स्िाभी हूॉ भेया नाभ दमार है।

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चौ0- सत्मरोक भॊह यहन हभायी । जहॊ तभु जाई न कब ुबफसायी।।

फचनफद्ध हौं सयुत सौंऩाई । तभु सफ कयभ जार उरूझाई।।3।।

हभाया ननिास सत्मरोक भें है। जहाॊ तभु बरूकय बी कबी नह ॊ जा सकत।े भैंने फचनों भें फॊध कय तमु्हें जीिात्भाऐॊ सौंऩ द थी औय तभुने िे सफ कभवजार भें उरझा द है।

चौ0- भामा पॊ द तमु्ही अस डाया । सयुत सकर दई झोंक अॊगाया।।

गय चाहूॉ तव चेतना सायी । खीॊच रेउॊ तऩ तजे तमु्हायी।।4।।

औय तभुने भामा का ऐसा पॊ दा उनऩय डारा है कक सभस्त सयुतें अजग्न भें झौंक द है गय भैं चाहूॊ तो तये साय चेतना को िीॊच रूॉ औय तमु्हाय साय तऩस्मा की िजतत सभेट रूॊ।

छ0- तभु सत्मऩरुष अकार दमार तफ पवनम कार फहु गावहहॊ।

तमु्ही जनक तव अॊश हौं तव दमा भनत फर ऩावहहॊ।।

भोहह याज्म मत तभुही दीन्हें तव वय प्रनतफॊध यचना करय।

“होयाभदेव” तव चयणदास कहह शीश ऩनुन ऩनुन ऩग धरय।।18।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक तफ कार ननयॊजन ने फहुत विनती गामी कक तभु सत्मऩरुुष दमार हो अकार हो। तभु वऩता हो। भैं तमु्हाया ह अॊि हूॉ। भैं तमु्हाय ह दमा फवुद्ध औय िजतत प्रातत कयता हूॉ। मह याज्म भझुे तमु्ह ने ददमा है। भनेै तमु्हाये ियदान औय प्रनतफॊध (ितों) से मह सषृ्ट यचाई है। भैं तमु्हाया ह चयण सेिक हूॉ ऐसा कहकय फाय – फाय चयणों भें िीि यिने रगा।

दो0- कारदेव पवनती कयत प्रसन्न बमे दमार।

अनफुॊधधत दोनो बमे फचन सके नहहॊ टार।।248।।

कार ननयॊजन विनती कयने रगा जजससे दमार ऩरुुष प्रसन्न हो गमे। तफ दोनो अनफुॊधधत हुिे कक कोई बी ऩयस्ऩयिचनों को नह ॊ टारेगा।

चौ0- भाॊगत कार ऩनुन कय जौये । यहऊ फॊधधत फचनन भोये।।

तीन मगुन परे याज्म हभायी । चौथे मगु तव ऻान प्रसायी।।1।।

कपय तो कार ने हाथ जोडकय भाॊगा कक आऩ भेये िचनों भें फॊधे यहोगे। प्रथभ तीन मगु (सतमगु, त्रतेामगु, द्िाऩय मगु) भें हभाया याज्म परे पूरेगा औय चौथे मगु (कशरकार) भें तमु्हाये ऻान का प्रसायण होगा।

प्रिचनाॊि बािाथव् -

कार ने सोचा कक जफ तीन मगुों भें भेया ह ऻान प्रचाय पैर जामेगा तफ तो चौथे मगु भें सत्मऩरुुष का ऻान कभ ह पैर ऩामेगा तमोंकक भेये ऻान भत की जड े

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तफ तक फहुत गहय छाऩ रेकय जीिों भें सभा चुकी होगी। साथ ह कार ननयॊजन ने मह भाॊगा कक अफ तभु अऩना ऻान स्िमॊ भेये देस भें न पैराना) कार ने सोचा कक न तो भेये देस भें कोई अभयिब्द का नाभ दान कयने िारा होगा न द ऺा (ददव्म दृजष्ट) देने िारा कोई होगा। तफ रूहें मह ॊ पसीॊ यहेंगी।

चौ0- अफ की नाई आइ भभ ठाभा । कफहु न कोऊ जीव धचदाभा।।

ऩवूप जनभ ककहह ऻान न होवा । तभुयो नाभ सधुध सफ खोवा।।2।।

औय आऩ अफ की तयह भेय बत्ररोकी भें कबी बी आकय ककसी जीि को नह चेताओगे। तथा ककसी को बी अऩने ऩिूव जन्भों का ऻान न यहे औय सबी रूहें तमु्हाये नाभ की सधुध फधुध िो देिें।

चौ0- धनी दमार तथास्त ुउचायी । बमऊ कार प्रसन्न अनत बायी।।

तफ दमार अनफुॊधता बाखी । जीवहह हहत ेभोष भग याखी।।3।।

तफ दमार ऩरुुष ने “तथास्त”ु कह ददमा जजससे कार फहुत बाय प्रसन्न हो गमा। तफ दमार ऩरुुष ने अऩनी ितव यिी जजसभें जीिों के दहत के शरमे भोऺ भागव सयुक्षऺत यि शरमा कक –

चौ0- ननगयुी सयुतें जो जग भाहीॊ । सो सफ तऊय ही फॊधन ऩाहीॊ।।

गरुभणुख भाभ बक्त अपवकायी । नतन्हकय भग तभु नाहहॊ बफगायी।।4।।

जो बी भनभखुि ननगयु जीिात्भाऐॊ हो िे सफ तयेे फॊधन को प्रातत होंगी औय जो गरुुभखुि भेय अविकाय बतत होंगी उनके भागव को तभु नह ॊ बफगाडोगे।

दो0- भाभदेसी भभामस ुगहह आइहैं सॊत सजुान।

चौथे मगु कमरकार भॊह करयहैं भभ गणुगान।।249।।

औय भेये देस से भेय आऻा से सॊत ससुज्जन आमा कयेगें। जो चौथे मगु कशरकार भें भेया गणुगान ककमा कयेंगे।

चौ0- कार दमार फीच मह फाता । बई अनफुॊधधत जगद पवखमाता।।

सतधनी ऩनुन गमऊ सचखॊडा । कार अपऩ प्रस्थान ब्रह्भण्डा।।1।।

कार औय दमार के फीच भें मह फातें अनफुॊधधत हो गई जो जगत भें विख्मात है। कपय सत्मऩरुुष सतरोक चरे गमे औय कार ननयॊजन बी ब्रह्भाण्ड को प्रस्थान कय गमे।

चौ0- वेदहह वाणी कार यचाई । श्री चतयुानन आनन प्रगटाई।।

कभपकाण्ड उरूणझ जग साया । फॊद बमो सचखॊड कय द्वाया।।2।।

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िेदो की िाणी कार ने यच द औय श्री ब्रह्भा जी के भिु से प्रगट कया द । इस प्रकाय जगत कभवकाण्ड भें उरझा हुआ है औय सचिॊड का द्िाया फॊद हो गमा है।

चौ0- सयुग नयक कृनतजार बफछामा । ऩाऩ ऩनु्म गनत जग उरूझामा।।

राख जतन चहॉ करय कोउ प्रानी । छूटत नाहीॊ कार छर घानी।।3।।

सयुग नयक के कृत कभों का जार बफछा ददमा गमा है। औय ऩाऩ ऩनु्म गनत भें साया जगत उरझा हुआ है। चाहे रािों प्रमत्न कोई प्राणी कय रे कार के छर की घाणी से कोई नह छूटता।

चौ0- सफ पवधध सचखॊड बेद दयुाई । आऩनुन ऻान कार ऩयसाई।।

गय सचखॊडी आइ कोउ सन्ता । कार ऩठाहहॊ सौ सॊत भगहन्ता।।4।।

सफ प्रकाय से सचिॊड का बेद नछऩा ददमा गमा है औय कार ने अऩना ऻान पैरा ददमा है। मदद कोई सचिॊडी सॊत महाॊ आता बी है तो उसका भागव योकने के शरमे कार अऩने सौ सॊत बेज देता है।

दो0- उतऩस्त्त धथनत प्ररम कयभ उऩासा मोग अरू ऻान।

अनाहद कार वेदहहॊ फसे ऩाछर भाम ुमभरान।।250।।

उत्ऩजत्त जस्थनत प्ररम कभव उऩासना मोग ऻान आदद कार के िेदों भें फसता था ऩयन्त ुवऩछरे सॊतों ने उसभें भामा की शभरोनी बय द है।

दो0- चौथे मगु भॊह अभय कथा सकर भाभ पवऻान।

सचखॊडी सॊत इक आइहैं करयहैं खोमर फखान।।251।।

हे शििा ! चौथे मगु कशरमगु भें भेय अभय कथा का साया विऻान एक सचिॊडी सॊत आमेंगें औय उसका िोरकय िणवन कयेंगे।

चौ0- सनुहु ऻानसागय भभ प्माये । कारहह देस ननमभ अनसुाये।।

कार ननमभ सफ भननअ ऩरयहैं । सखु शास्न्त हहत ुसकृुनत करयहैं।।1।।

भेये वप्रम ऻानसागय सनुो ! कार देस भें कार के ननमभानसुाय कार के ननमभों को सबी को भानना ऩडगेा। इसशरमे अऩनी सिु िाजन्त के शरमे सत्कभव कयने ऩडगेें।

चौ0- कार ताऩ ऩनु्म दान नसावा । तीयथ व्रत मऻ शास्न्त दावा।।

जे जन मथा ननमभ नहहॊ भानन । ऩावहीॊ कार देस फहु हानन।।2।।

कार के ताऩ का विनास दान ऩनु्म कयत ेहैं औय तीथव व्रत औय मऻादद िाजन्त प्रदान कयत ेहैं। जो व्मजतत कार के मथा ननमभ को नह ॊ भानता िह कार देि भें फडी हानन उठाता है।

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चौ0- तात ेकयऊ कयभ ननश्काभा । ध्मान रक्ष्म याणखऊ सत्मधाभा।।

तत्वबेदी सचखॊड सॊत कोऊ । ढूॊहढ नतहह ऩग यज भन ऩोऊ।।3।।

इसशरमे महाॊ ननश्काभ बाि से कभव कयत ेयहना चादहमे औय अऩना ध्मान सत्मऩरुुष के देस सचिॊड भें रक्ष्म कयके यिना चादहमे। सचिॊडी ककसी तत्िबेद गरुु की िोज कयके उनकी चयण धूशर भें भन को यॊग रेना चादहमे।

चौ0- अवसय मह गभन सतरोका । सचखॊडी सॊत सयनी भौका।।

फाय फाय भानव देह नाहीॊ । अवसय जानन सरुक्ष्म सॊधाहीॊ।।4।।

सतरोक जाने का मह अिसय है औय सचिॊडी सॊत की ियण का भौंका है। फाय फाय भानि देह नह ॊ शभरती। अिसय जान कय अऩने उत्तभ रक्ष्म को साध रेना चादहमे।

दो0- “होयाभदेव” कार घाट अगणणत सॊत जगभाम। सचखॊड ऻानी वक्ता अनत ऩयख ऩयख सयनाम।।252।।

श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक कार के घाट के अगखणत सॊत जगत भें यहत ेहैं जो सचिॊड ऻान के अनत ितता भात्र हैं उन्हे ऩयि कय ियण भें जाना चादहमे।

इनत श्रीभद् अभयकथा श्रीमशव मशवा सम्फादे (सयुत वेद) चतथुप ऩडाव ्

18 – भहाभामा कौतकु

दो0- फोरी मशवा हे नीरकॊ ठ जो सचखॊड रक्ष्म राम।

हरय मशव को ऩयभेश्वय, नहीॊ भाने नहहॊ धाम।।253।।

ऩािवती फोर कक हे नीरकॊ ठ ! जो सचिॊड का रक्ष्म रगात ेहैं िे श्रीविष्णु औय भहादेि आऩको ऩयभेश्िय नह ॊ भानत ेऔय न ध्मान कयत ेहैं।

दो0- सो कस तयहहॊ बव ननधध करय भामेश पवयोध।

सो सायतत्व कहहु प्रबो होहहॊ भोहह तत्व फोध।।254।।

िे बिसागय से श्रीविष्णु का वियोध कयके कैसे नतयत ेहैं ? िह साय तत्ि हे स्िाभी भझुसे कहो ताकक भझुे तत्ि फोध होिे।

चौ0- फोरे मशव तभु सनुो बवानी । हरय को ईश नहहॊ जे भानी।।

नहीॊ कृतऻता नतहह स्वीकाया । सो भनतभॊद पॊ दहहॊ हॊकाया।।1।।

शििजी फोरे कक हे बिानी तभु सनुो ! जो भानि श्री हरय को ईश्िय नह ॊ भानत ेऔय न ह उनकी कृतऻता (सबी िस्त ुउन्ह के द्िाया शभरती है मह कृतऻता) स्िीकाय नह ॊ कयत;े िे भिूव अहॊकाय भें पॊ स जात ेहैं।

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चौ0- भषूक कहे मस ॊह सों ररयहौं । सो भयूख ऩनुन ऩनुन बव ऩरयहौं।।

बफना श्रीहरय वातसल्मताई । कोउ न सकइ कार ऩये जाई।।2।।

भानो कक चूहा शस ॊह से रडने को कह यहा है कक भैं रडूगाॊ। िह भिूव फाय फाय बि सागय भें ह ऩडता है। श्रीहरय की िात्सल्मता के बफना कोई बी कार के ऩाय नह ॊ जा सकता। (तमोंकक मह व्मिस्था बी श्रीहरय के द्िाया ह शभरती है)।

चौ0- ब्रह्भाण्ड चीय ऩाय को जावा । साधन मोग भनतुन ुकस ऩावा।।

सो कृऩा श्रीहरय ही फयहीॊ । करय गयुभणुख सफ साधन कयहीॊ।।3।।

ब्रह्भाण्ड को चीय कय ऩाय कौन जा सकता है ? भानि देह औय साधन मोग िह कैसे प्रातत कय सकता है ? मह कृऩा श्रीहरय ह फयदान भें देत ेहैं औय गरुुभखुि फनाकय सचिॊड जाने के साये साधन उऩरब्ध कयत ेहैं।

चौ0- तात ेकारदेस सफ नेभा । करय भानन आदय अरू प्रेभा।।

कयहहॊ श्रीहरय ककयऩा वसैी । भानव भन बा सॊकल्ऩ जैसी।।4।।

इसशरमे कारदेस के साये ननमभ भानकय आदय औय पे्रभ से बगनत कयनी चादहमे। तमोंकक श्रीहरय भानि ऩय िसैी ह कृऩा कयत ेहैं जैसा कक जीि का सॊकल्ऩ होता है।

छ0- जनन मान रक्ष्म आकास गभन तदपऩ गनत हेत ुधयन चयहहॊ।

गनतऩाइ तस्ज धयन खम्फ उरय ननष्काभ होई ननज काज कयहहॊ।।

नतमभ कार देस सफ ुमभ ननमभ वरय काराधधऩनत सत्कायहू।

“होयाभदेव” यत अथक जतन सचखॊड गभन रक्ष्म धायहू।।19।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक जैसे हिाई जहाज का रक्ष्म आकाि भें मात्रा कयना होता है कपय बी गनत ऩाने के शरमे उसे धयती ऩय चरना ऩडता है औय गनत ऩात ेह धयती त्मागकय िह आकाि भें उड जाता है इसप्रकाय ननष्काभ बाि होकय अऩना कामव फना रेता है। उसी प्रकाय कार के देस के सबी मभ ननमभों को धायण कयता हुआ कार के अधधऩनत देितागणों का सत्काय कयता हुआ अऩने अथक प्रमास भें र न यहकय सचिॊड मात्रा का रक्ष्म धायण कयत ेयहना चादहमे।

दो0- अनन्त सषृ्टी अनन्त रोक सफहहॊ सफ ुके भेव।

जहॊ जहॊ हौं देखत कपयौ व्मावस्थाऩक बत्रदेव।।255।।

अनन्त रोंकों भें अनन्त सषृ्ट माॉ हैं सफ भें सफके ईष्ट देि हैं। भैं जहाॊ जहाॊ देिता कपया सफभें ह बत्रदेि (ब्रह्भा, विष्णु औय भहेि) व्मिस्था कयने िारे थे।

दो0- ऻानसागय अफ सनुो भामा कृनत सॊसाय।

कहत मशवाऩनत सनुो मशवा ; सषृ्टीन्ह को पवस्ताय।।256।।

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ऻानसागय ! अफ तभु भामाकृत सॊसाय के विषम भें सनुो जो श्री शिि जी शििानी को कहत ेहैं कक तभु सषृ्ट मों का विस्ताय सनुो।

चौ0- जग सषृ्टा कभरज कहरावा । यजो गणुी प्रवनृत प्रदावा।।

याधच वेद सो ऻान सॊसायी । जग नतहह भानव जनक ऩकुायी।।1।।

जग के सजृनहाय ब्रह्भा जी कहरात ेहैं जफकक िह यजोगणुी प्रिनृत प्रदान कयता है। उसी ने सॊसाय को िेद ऻान यच कय ददमे। सॊसाय उसी को अऩना वऩता कहता है।

चौ0- हदवस एक नायद भनुन आवा । पऩता सभऺ मह प्रश्न फझुावा।।

कहउ पऩता मह यचन तमु्हायी । ककहह प्रकाय तभु भनहहॊ पवचायी।।2।।

एक ददन नायद भनुन िहाॊ आमे औय वऩता श्री ब्रह्भा से प्रश्न ऩछूा कक हे वऩता भझुे मह फताओ कक मह सषृ्ट यचना तमु्हाये भन भें ककस प्रकाय विचाय भें आई ?

चौ0- फोरे पवधध हौं जफ जग आमा । नमन खुमर कॊ ज ऩहैठऊ ऩामा।।

फहौरय पवचारय हौं तद कीन्है । कभर खौज करय भन चीन्है।।3।।

तफ ब्रह्भा जी फोरे कक भैं जफ जगत भें प्रगट हुआ तफ आॊि िोरने ऩय अऩने को कभर ऩय फठैा ऩामा था। तफ भैंने फहुत ह विचाय ककमा औय भन भें चाहा कक कभर की िौज कयनी चादहमे।

चौ0- फीनत कार ऩाई नहहॊ छौया । पववश ननयाश हौं रौहटऊ दौया।।

कछुक कार फीनत जफ गमऊ । आद्मा ननकट आई मह कहऊ।।4।।

फहुत सभम फीतने ऩय कह ॊ उसका छोय नह ॊ शभरा। तफ भैं वििि औय ननयाि होकय दौड कय िाऩस रौट आमा। कपय कुछ सभम फीतने ऩय आद्मा िजतत भहाभामा भेये ननकट आकय कहने रगी कक –

दो0- भानव सषृ्टी यचहु ऩतु्र ; हभयी आमस ुभान।

ननश्चम सपर तभु होइहैं मह भेयो वयदान।।257।।

ऩतु्र ! हभाय आऻा भानकय भानि सषृ्ट की यचना कयो मह भेया तभुको ियदान है तभु ननश्चम ह सपर होगे।

चौ0- को पवधध हौं यचूॉ सषृ्टी सायी । पवस्स्भत भन ब ैकीन्ह पवचायी।।

जफ कोऊ जतन ऩाम हौं नाहीॊ । सभाधी धारय ध्मानस्थ सभाहीॊ।।1।।

तफ भेया भन विजस्भत हुआ औय भन भें विचाय आमा कक भैं साय सषृ्ट ककस प्रकाय यचूॊ ? जफ भझुे कोई साधन नह ॊ प्रातत हुआ तो भैं सहज सभाधध धायण कयके ध्मान भें र न हो गमा।

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चौ0- को सनयऺ बव यचना होवा । एहह पवचाय ध्मान भन ऩोवा।।

हदवस एक ध्मान के भाहीॊ । अचयज रणख सॊशम कोऊ नाहीॊ।।2।।

भेये भन भें फस एक ह विचाय ध्मान भें परता यहा कक ककस के सॊयऺण भें यचना होिे। एक ददन ध्मान भें भैंने अद्भदु आश्चमव देिा जजसभें कोई सॊिम नह ॊ था।

चौ0- नब अवतरय इक आइ बफभाना । फहैठऊ हरय हय शस्क्त सॊगाना।।

तफ नायद हौं नतन्हहह के सॊगा । उरय चर ैनब छौय भतॊगा।।3।।

आकाि से एक विभान उतय कय आमा जजसभें िजतत के साथ ब्रह्भा विष्णु औय शिि फठेै थे। नायद ! तफ भैं उन्ह के साथ भस्ती भें आकाि भें उड चरा।

चौ0- उडड बफभान धया इक गमऊ । आबा देणख हयस भन बमऊ।।

वन उऩवन धगरय कूऩ पुरायी । अनऩुभ बवन ननज नमन ननहायी।।4।।

िह विभान उड कय एक ऩथृ्िी ऩय गमा िहाॊ की आबा देिकय भेया भन अनत प्रसन्न हो गमा। िन िादटका ऩिवत कुएॊ पुरिाय माॊ तथा अनऩुभ बिन िहाॊ भैंने अऩनी आॉिों से देिे।

दो0- ननस्ज ननस्ज व्मौऩाय यत भानव मभर ैअनेक।

चहुॉ हदमस व्माऩक सखु अथाह नहहॊ ऩीया कहुॊ टेक।।258।।

अऩने अऩने कामो भें रगे हुिे अनेको भानि शभरे। िहाॊ चायों तयप अथाह सिु था। दिु का कह ॊ बी आधाय नह ॊ था।

चौ0- इक नय सन हौं फणूझऊ जाई । कवन रोक मह ऩावन बाई।।

सो नय उत्तय दीन्ही पवशखेा । सयुग रोक मह जे तभु देखा।।1।।

भैंने एक व्मजतत के ऩास जाकय ऩछूा कक बाई ! मह ऩािन कौन सा रोक है ? तफ उस ऩरुुष ने वििषे उत्तय ददमा कक तभुने जो मह देिा है मह स्िगव रोक है।

चौ0- याजा ईन्रदेव यजधानी । सखुद याज्म कोऊ ऩीय न जानी।।

ऩनुन बफभान गमऊ जफ आगे । सभुनु नॊदनवन दीषन रागे।।2।।

मह देियाज ईन्र की याजधानी है। मह सिुद याज्म है। महाॊ ऩीडा को कोई नह ॊ जानता। कपय िह विभान जफ आगे को चरा तो नॊदन िन के ऩषु्ऩ द िने रगे।

चौ0- सहस्त्र प्रजामनत ऩषु्ऩ तहॉ देखे । अथाह सुॊगध न आवइ रेखे।।

चारय दॊत गमॊद तहॉ नाना । सहस्त्र ऩरयन्ह तहॉ नतृ्म भहाना।।3।।

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सहस्त्रों प्रजानतमों के िहाॊ ऩषु्ऩ देिे। िहाॊ अथाह सगुॊध थी जो शरिने भें नह ॊ आती। िहाॊ फहुत से चाय दातों िारे हाथी थे। सहस्त्र ऩरयमाॊ भहान नतृ्म कय यह थी।

चौ0- सफ पवधध देणख आरोककक कयनी । भहहभा अमभत जाइ नहहॊ फयनी।।

आगे चरे इक नगयी आवा । ब्रह्भरोक ऩावन छपव छावा।।4।।

सफ तयह से अद्भतु यचना देिी जजसकी अऩाय भदहभा थी जो िणवन कयने भें नह ॊ आती। कपय आगे चरकय एक नगय आई मह ब्रह्भरोक था जजसकी ऩािन आबा पैर हुई थी।

चौ0- नऩृ रूऩ तहॉ अन्म चतयुानन । हौं चककत सो देणख सनातन।।

आन पवयॊधच कुतो मत आई । सेवा ठाडड असॊखम सयु ऩाई।।5।।

िहाॊ अधधऩनत रूऩ भें दसूये ब्रह्भा जी थे। उस सनातन ब्रह्भा को देिकय भझुे फडा आश्चमव हुआ कक दसूया ब्रह्भा महाॊ कहाॊ से आमा है ? जजसकी सेिा भें िड ेहुिे भझुे असॊख्म देिगण ऩामे।

दो0- ऩनुन नायद, पवभान वह ; उरय आमऊ कैरास । दस बजु ऩॊचभखु नतयनमन मशव रराट शशी बास।।259।।

कपय नायद ! िह विभान उडकय कैराि ऩय आ गमा। िहाॊ दस बजुा ऩाॊच भिु औय तीन नेत्रों िारे शिि के भस्तक के ऊऩय चन्रभा उद्भावषत हो यहा था।

चौ0- वशृब सवाय औहढ फाधम्फय । गणऩनत मसद्ध वीयबर सॊगकय।।

ऩनुन देणख हौं अचयज बाया । सहस्त्र पवधध हरयहय चुॊवयाया।।1।।

िह फरै ऩय सिाय फाघ की िार ओढै गणऩनत, शसद्ध ऩरुुषों औय िीयबर के साथ था। कपय उसे देिकय भझुे फडा आश्चमव हो गमा। सहस्त्र ब्रह्भा विष्णु औय भहादेि उसके शसय ऩय चॊिय डुरा यहे थे।

चौ0- उरय बफभान फकुैन्ठहहॊ आवा । श्रीऩनत शीश श्री चुॉवय डुयावा।।

शषेनाग शीशई ऺत्रधाये । अचयज देणख मह सॊशम बाये।।2।।

िह विभान कपय उडकय फकुैॊ ठ भें आ गमा। िहाॊ बी श्रीविष्णु के शसय ऩय रक्ष्भी चॊिय डुरा यह थी। औय िषे नाग िीि ऩय ऺत्र धायण कय यहे थे। भैंने मह औय बी ज्मादा आश्चमव देिा कक –

चौ0- पवधध हरय हय ऩहैठ बफभाना । तद कवन सो पवधध हरय नाना।।

जे कछु नायद देणखउ ध्माना । को पवधध करूॊ न होई फखाना।।3।।

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ब्रह्भा विष्णु औय शिि िॊकय तो भेये विभान भें फठेै हैं कपय अनेको ब्रह्भा औय श्रीहरय मे सफ कौन है ? नायद भनेै जो कुछ ध्मान भें देिा उसका कैसे िणवन करूॉ ? िह िणवन कयने भें नह ॊ आता।

चौ0- तहॉ त ेउडड बफभान हभाया । गमे जहॉ अथाह ऩायावाया।।

सहस्त्रकूऩ फावरयमाॊ नाना । भीष्ठ स्वाहदष्ट नीय करय ऩाना।।4।।

िहाॊ से उडकय हभाया विभान िहाॊ आमा जहाॊ अथाह सभनु्र था। उसभें सहस्त्र कूऩ तथा फािडडमाॊ अनेको थी। भैंने भीठा औय स्िाददष्ट उनका जरऩान ककमा।

दो0- सनुो मशवा सोइ मात्रा जे पवधध देणख ध्मान।

भामाकृत योचक कृनत “होयाभ” न सॊशम जान।।260।। हे ऩािवती ! िह मात्रा जो ध्मान भें ब्रह्भा जी ने देिी उसे सनुो ! श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक मह सफ भामा की यधच हुई यचना थी इसभें कोई सॊिम नह ॊ जानो।

चौ0- ऩषु्ऩावमर तहॉ औषधध अनेका । यचना बवन एक त ेऐका।।

पवपवध पवटऩ ऩषु्ऩ अधधकाई । भनुतमन खानन भननद्वीऩ कहाई।।1।।

िहाॊ अनेको ऩषु्ऩािशर तथा औषधधमाॊ थी। बिनों की यचना एक से एक थी। अनेको िृऺ ऩषु्ऩों की अधधकता तथा भोनतमों की िानों िारा मह भनन द्िीऩ कहराता है।

चौ0- तहॉ यतन जडडत शधुच मसॊहासन । पवपवध सशुौमबत वस्त्राबषून।।

फहैठ मसहाॊसन हदव्म इक देवी । असॊखम मोधगनन यत ऩग सेवी।।2।।

िहाॊ यत्नजडडत ऩवित्र शसॊहासन जजस ऩय विविध प्रकाय के िस्त्रों औय आबषूणों से सिुौशबत तख्त ऩय फठैी एक ददव्म देिी थी। असॊख्म मोधगननमाॉ उसकी सेिा भे चयणों भें रगी थी।

चौ0- सहस्त्र देपवमाॊ चुॊवय डुयाहीॊ । करय दयसन हौं आनन्द ऩाहीॊ।।

आहद भहाभामा नाभ फखाना । ऩामऊॊ सॊकल्ऩ सषृ्टी वयदाना।।3।।

सहस्त्र देविमाॊ चुिॊय डुराती हुई ; के दिवन कयके भैंने फडा आनन्द प्रातत ककमा। उसका आदद भहाभामा नाभ फिान ककमा गमा। भैंने उनसे सॊकल्ऩ सषृ्ट यचना कयने का ियदान प्रातत ककमा कक –

चौ0- जस तव भनहहॊ सॊकल्ऩ होई । भाभ कृऩा ब ैऩयूण सोई।।

जावउ यचना कयों आयम्बा । यचऊ सोइ स्जमभ देणख अचम्बा।।4।।

जैसा तयेे भन भें सॊकल्ऩ हो भेय कृऩा से िह सफ ऩणूव होगा। जाओ सषृ्ट सजृन आयम्ब कय दो। जैसा आश्चमव तभुने देिा है िसैी ह यचना कयो।

चौ0- आगे चरे पवटऩ फट आवा । तहॉ इक मशश ुशमन करय ऩावा।।

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दाॊई ऩाॊव अॊगषु्ठ भखु चूषा । काभा ऩणूप भो आमशष ऩषूा।।5।।

कपय जफ आगे को चरे तो एक फड का ऩेड आमा। िहाॊ एक शिि ुिमन कयता ऩामा। जो अऩने दामें ऩयै का अॊगूॊठा भिु भें चूस यहा था। उसने बी भझुे काभना ऩणूव होने का आिीिावद दे ददमा।

दो0- भहाभामा मशश ुरूऩ धरय भन ही भन भसुकाम।

ननज ऩग नख आगे करय कौतकु अचज रखाम।।261।।

भहाभामा शिि ुरूऩ धायण कयके भन ह भन भसु्कयाने रगी। औय अऩने ऩयैों के नािून भें आश्चमव बया कौतकु ददिाने रगी।

चौ0- मथा प्रनतबफम्फ दयऩन आवा । अगणणत सषृ्टी ब्रह्भाण्ड रखावा।।

सागय धगरय पवटऩ सरय कानन । अगणणत ईन्र हरय हय चतयुानन।।1।।

जजस प्रकाय दऩवण भें प्रनतबफम्फ आ जाता है उसी प्रकाय अगखणत ब्रह्भाण्डों की यचना ददिाई। जजसभें सभनु्र ऩिवत िृऺ नददमाॊ उऩिन अगखणत ईन्र ब्रह्भा, विष्णु औय शिि तथा –

चौ0- रयमस भनुन सॊत नायद सयेुसा । यपव शशी सयुग ऩातार पुयेसा।।

नाबी कभर श्रीऩनत बफगसावा । देणख प्रगट हौं अचयज ऩावा।।2।।

ऋवष-भनुन-सॊत-नायद-देिाधधऩनत-समूव-चन्रभा-सयुग औय ऩातार स्पुरयत हो यहे थे। श्रीऩनत विष्णु की नाबी से कभर पशरबतू हो यहा था उसे प्रगट होता देिकय भझुे फडा आश्चमव हुआ।

चौ0- श्रीहरय तफ फहु पवनती गाई । नभो नभो जननी जगयाई।।

तव शस्क्त बफन ुसभथप न होई । हौं पवधध श्रीमशव दसूय कोई।।3।।

तफ श्रीविष्णु ने फहुत विनती की कक हे जगद श्िय भाता तमु्हे नभस्काय है, नभस्काय है। तये िजतत के बफना कोई साभथविान नह ॊ होता चाहे भैं, ब्रह्भा तथा श्रीशिि मा दसूया कोई बी हो।

चौ0- तव ऩद नख भॊह अनन्त ब्रह्भण्डा । हौं देणख तव सकुती अखॊडा।।

ऩनुन असतनुत श्री मशव गाई । नभो नभो जननी बवयाई।।4।।

तमु्हाये ऩयैों के नािूनों भें अनन्त ब्रह्भाण्ड है। भैंने तमु्हाया साया अिॊड फर देि शरमा है। कपय श्री शिि ने स्तनुत की कक हे बिेश्िय भाता तमु्हे नभस्काय है, नभस्काय है।

दो0- तीनऊ देव हभ जे कछु ; सो सफ भहहभा तौय। तझु बफन ुकहुॉ सत्ता नहीॊ नहहॊ ओय नहहॊ ठौय।।262।।

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हे भाता ! हभ तीनो देिता जो बी कुछ है मह सफ तये ह भदहभा है। तयेे बफना हभाय कह ॊ सत्ता नह ॊ है औय न कह ॊ ओय है न ठौय है।

चौ0- उतऩस्त्त धथनत जग सॊहाया । पवधध हरय हौं तव फरधाया।।

नभो नभो हे सकर जग कयनी । अनन्त ब्रह्भाण्ड स्वछॊद पवचयनी।।1।।

भैं ब्रह्भा तथा विष्णु जी तमु्हाया ह फर धायण कयके सॊसाय की उत्ऩजत्त जस्थनत औय सॊहाय कयत ेहैं। हे साये सॊसाय की कताव तमु्हे नभस्काय है नभस्काय है। तभु अनन्त ब्रह्भाण्डों भें स्िछॊद विचयण कयने िार हो।

चौ0- मशव असतनुत सनुन भहाभामा । अभय शब्द ननज भखु उद्गामा।।

तुॊकाय भॊत्र मशव स्रवन बाखी । जास ुभहेश अभय यस चाखी।।2।।

शिि स्तनुत सनुकय भहाभामा ने अऩने भिु से अभय िब्द प्रदान कय ददमा। मह तुॊकाय भॊत्र शिि के कान भें पूॊ का जजससे शिि जी ने अभय यस चि शरमा।

चौ0- जे घट प्रगट अभय शब्द सोई । कार कभप भग योकक न कोई।।

जो मह भॊत्र शब्द गहह जाई । ननश्चम भोऺ सोइ जन ऩाई।।3।।

जजसके घट भें मह अभय िब्द प्रगट हो जाता है। उसका यास्ता कार औय कभव कोई नह ॊ योक सकता। औय जजसने मह अभय भॊत्र गहृण कय शरमा है िह व्मजतत ननजश्चत ह भोऺ प्रातत कयता है। (इस अभय िब्द को भात्र तत्िदिी मोगी ह प्रदान कय सकता है। मह फतामा नह नाद औय अनहद से अतीत जाकय प्रातत होता है)।

चौ0- ऻानसागय सो शब्द गहुाई । तव धचत्त दीन्ही हौं प्रगटाई।।

जे जे सॊत हौं कथा सनुावा । सो भभ रूऩ न कछुक दयुावा।।4।।

ऻानसागय ! िह िब्द गोऩनीम है। भझु (होयाभदेि) ने तमु्हाये धचत्त भें उसे प्रगट कय ददमा है। जजस जजस सॊत को भैंने अभय िब्द की कथा सनुाई है िह भेया ह स्िरूऩ है भैंने उससे कुछ बी नह नछऩामा है।

चौ0- तफ भहाभामा फचन उचाये । सकर बत्ररोकी भाभ आधाये।।

भैं ब्रह्भा हरय हय जगतायन । अनन्त बत्ररोकी यचना कायन।।5।।

इसप्रकाय तफ भहाभामा ने मह फचन कहा कक सकर बत्ररोकी भेये ह आधाय ऩय जस्थत है। भैं ह स्िमॊ ब्रह्भा विष्णु शिि औय जगतायन हूॉ। अनन्त बत्ररोककमों की यचना का भैं ह कायण हूॉ।

दो0- जगद व्मवस्थाऩक तभु ; कयो जगद प्रनतऩार। तव सॊकट प्रगट यहूॊ करूॊ यऺा ततकार।।263।।

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अफ जगद व्मिस्थाऩक तभु (ब्रह्भा, विष्ण,ु शिि) जगद प्रनतऩारन कयो भैं तमु्हाये सॊकटों भें प्रगट यहूॊगी औय उसी सभम यऺा करूॊ गी।

चौ0- इह पवधध नायद ध्मानस्थ भामा । रणख अचयज हौं सभझ न ऩामा।।

ऩनुन सॊकल्ऩ फर जगद यचाई । जस देणख तस सषृ्टी फसाई।।1।।

इसप्रकाय हे नायद ध्मानस्थ भामा का आश्चमव देिकय बी भैं कुछ बी सभझ नह ऩामा। औय कपय सॊकल्ऩ िजतत से मह सॊसाय उत्ऩन्न ककमा भैंने जैसा जैसा देिा था िसैा ह िसैा सषृ्ट को फसामा है।

चौ0- ऻानसागय तद वहदऊ पवचारय । जफहु बफयॊधच न जनक ननहारय।।

तद भानव कय कवन साभयथ । ऩावइ ऻान सत्मधनन मथायथ।।2।।

ऻानसागय तफ विचाय कय फोरे कक जफ ब्रह्भा ने अऩना वऩता बी नह ॊ देिा तफ भानि की तमा साभथव है जो सत्मऩरुुष का मथाथव ऻान प्रातत कय रे?

चौ0- भैं “होयाभ” तफ नतहह फझुाई । भामा भात ुपवयॊधचहहॊ जाई।। कायन मह पवधध चक्रक भामा । जेहह अनरुूऩा जगद यचामा।।3।।

तफ भझु होयाभदेि ने उसे सभझुामा कक ब्रह्भा को भहाभामा ने जन्भ ददमा है। इसी कायण ब्रह्भा जी भें भामा का चक्र है। इसीशरमे उसने भामा के ह अनरुूऩ जगत यचामा है।

चौ0- भामा ऻान वेद यधच चायी । अऻता फस नहहॊ सत्म उजायी।।

कारदेस बत्रताऩ नसावन । दान ऩनु्म मऻ जाऩ सहुावन।।4।।

भामा के ऻान से ह िेद यचे है अऻानता के कायण ह सत्म को प्रगट नह ॊ ककमा। कारदेस के बत्रताऩों को नष्ट कयने के शरमे ह दान ऩनु्म मऻ औय जाऩ आदद अच्छे रगत ेहैं।

चौ0- सत्मऩरुष ही सत्म नायामन । गहहहॊ कोउ सद्गरु ऩयामन।।

अभय ऻान ब्रह्भा नहीॊ जानी । कायन उरूणझ वेदहहॊ प्रानी।।5।।

सत्मनायामण सत्मऩरुुष है जजसे कोई बफयरा ह सत्मगरुु का सेिक गहृण कयता है। अभय ऻान तो ब्रह्भा बी नह ॊ जान ऩामे। इसशरमे सबी प्राणी िेद ऻान भें उरझा ददमा है।

दो0- “होयाभ” भोष जीवहह नहहॊ बफना अगोचय ऻान। जर कभर नाई सगुड जगद रान सत्म ध्मान।।264।।

श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक अगोचय के ऻान बफना जीि की भोऺ नह ॊ है। चतयु ऻानी जर भें कभर की तयह सॊसाय भें यहता हुआ सत्म ऩरुुष के ध्मान भें र न यहता है।

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चौ0- नौ नाथ अरू मसद्ध चौयासी । अनहद ऻान मोग उद्भासी।।

ऩॊडडत कयभकाॊड गनु गावा । सायहीन भषृकथा सनुावा।1।।

नौ नाथ औय चौयासी शसद्धों ने अनहद ऻान औय मोग का उद्गान ककमा है औय ऩॊडडत कभवकाॊड ह फतात ेहैं औय साय यदहत शभथ्मा कथा सनुात ेहैं।

चौ0- मोगी पॊ से गत बत्रकुहट भाहीॊ । अधग्रभ द्वाय बेद कछु नाहीॊ।।

अपवचर सत्म भोऺ कय तयनी । “होयाभदेव” ऻान सोइ फयनी।।2।। औय मोगी बत्रकुट भें जाकय पॊ स जात ेहैं। िे अधग्रभ द्िायों के बेद कुछ नह ॊ जानत।े अविचर सत्म औय भोऺ की नौका का भझु होयाभदेि ने िह ऻान कहा है।

चौ0- सो ऩद अकथ अनन्त अऩाया । ऩाॊचतत्व बत्रगणु से न्माया।।

नहहॊ तहाॉ यपव शशी उद्भासी । नहहॊ आसा तषृ्णा शौक उदासी।।3।।

िह ऩयभऩद (अकथ कथन भे न आने िारा) अनन्त औय अऩाय ऩाॊच तत्िों तथा बत्रगणुों से न्माया है। िहाॊ चाॊद सयूज बी प्रकाशित नह है िहाॊ आसा तषृ्णा िौक औय उदासी नह ॊ है।

चौ0- देव न देपव ऩरुष ननयाया । नारय न नय नहहॊ ककन्नय काया।।

नहहॊ वेद षठकयभ आचाया । ऩाऩ न ऩनु्म ननयरेऩ ननहाया।।4।।

िह न देिी देिता है। िह ननयारा ह ऩरुुष है िह न स्त्री है न ऩरुुष औय न ककन्नय रूऩ िारा है। िहाॊ न िेद है न षट कभव ननमभ है औय िहाॊ न ऩाऩ है न ऩनु्म है। िह ननशरवतत देिा है।

दो0- “होयाभदेव” तहॊ नहीॊ ; सषृ्टी प्ररम ब्मौऩाय। धयन ऩवन ऩानी गगन नहहॊ अनर सॊसाय।।265।।

श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक िहाॊ सषृ्ट औय प्ररम का व्मौऩाय बी नह ॊ है औय िहाॊ ब-ूजर अजग्न िाम ुऔय आकाि का सॊसाय बी नह ॊ है।

चौ0- मभ नहहॊ भतृ्म ुकयभ नहहॊ कारा । याजहहॊ ऩरुष अखॊड दमारा।।

ब्रह्भा पवष्णु मशव तहॉ नाहीॊ । अजय अभय सनातन साॉहीॊ।।1।।

न िहाॊ मभयाज औय भतृ्म ुहै न कभव औय कार है िहाॊ अिॊड, दमार ऩरुुष वियाजभान है। िहाॊ ब्रह्भा विष्णु औय शिि कोई नह ॊ है। िह आददश्िय ह अजय अभय औय सनातन है।

चौ0- कौहट यपवन्ह राजहहॊ प्रकासा । ज्मोनत स्वरूऩ अस ऩरुष अछासा।।

जो ताही सॊग सयुत सनेही । मभकार नतष भग न हनेही।।2।।

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उसके साभने कयोडों समूों का प्रकाि रजज्जत है। िह ऐसा ह ज्मोनतस्िरूऩ अविनािी ऩरुुष है। जो उसी के साथ सयुत स्नेह हो जाता है। उसका यास्ता मभ औय कार बी नह ॊ नष्ट कय सकत।े

चौ0- कहत “होयाभ” सनु ुऻान सागय । अकह कथा उच्च त ेउच्चतय।। जफ कहुॊ कोऊ सषृ्टी नाहीॊ । सवप जीव रम अकह के भाहीॊ।।3।।

श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक ऻान सागय सनुो ! अकह कथा उच्च से बी उच्चतय है। जफ कह ॊ कोई सषृ्ट नह ॊ थी तफ सफ प्राणी अकह (अनाभी) भें विरम यहत ेथे।

चौ0- आऩे आऩ तफ अकह ननयाया । सस्च्चदानन्द स्वरूऩ अऩाया।।

जो समुभये प्रब ुअकह अनाभा । ऩावत जीवन भसु्क्त धाभा।।4।।

तफ िह अकह ऩरुुष अऩने आऩ भें ह ननयारा अऩाय सजच्चदानॊद स्िरूऩ था। उसी अकह अनाभी ऩरुुष का जो सशुभयन कयता है। िह जीिन्भजुतत का धाभ ऩा जाता है।

दो0- सतनाभ कभाई अगम्म की कार सकइ नहहॊ खाम।

“होयाभदेव” उत्तभ फणणज आवहहॊ घाटा नाम।।266।। उस अगम्म की सत्मनाभ कभाई को कार नह ॊ िा सकता। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक मह फाखणज्म (व्मौऩाय) ककतना उत्तभ है जजसभें कोई घाटा नह ॊ आता।

चौ0- अभय शब्द जफ आवे हाथा । सकर कार तफ नावे भाथा।।

सो शब्द फाण स्जहह के रागा । ननबपम ननशॊक नहहॊ मभ पागा।।1।।

जफ अभय िब्द हाथ रग जाता है तफ उसे साये कार ऩरुुष भाथा झुकात ेहैं। उस िब्द का फाण जजसको रग जाता है िह ननबवम औय ननिॊक हो जाता है उसे मभ की पाॊस नह ॊ रगती।

चौ0- फहुय कीतपन कहे कोई । भारा जऩे भोष नहहॊ होई।।

ऩोथी ऩढे चुयावइ ऻाना । बए पवद ुयहे अॊत ऩछताना।।2।।

चाहे फहुत सी कथा कीतवन कोई कहे ; भारा जऩता यहे उनसे कबी भोऺ नह होता। ऩोथी ऩढ कय ऻान चुयाकय जो ऩॊडडत हो जात ेहै अतॊ सभम उन्हे बी ऩछताना ऩडता है।

चौ0- केता कहुॊ साय शब्द गहहहैं । कार तें जीव छुडा सो रहहहैं।।

सफ जग भआु सोह्भ जाऩा । टरय न बवफॊध जग बत्रताऩा।।3।।

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ककतना कहुॊ जो साय िब्द (अभय िब्द) को गहृण कय रेगा िह कार से अऩनी जीिात्भा को छुडा रेगा। साया जग “सोहभ”् जाऩता हुआ भय गमा उसकी बि फॊधन औय जग बत्रताऩ नह ॊ शभटे।

चौ0- जफ रधग आहद ऩरुष न ध्मावे । कार जार से भसु्क्त न ऩावे।।

गरु की शब्द साधु की ऩूॊजी । कयहु फणणज सनै गरु कुॊ जी।।4।।

जफ तक आदद देि सत्मऩरुुष की ध्मान उऩासना नह ॊ कयता तफ तक कार जार से कोई नह ॊ ननकरता। इसशरमे सदगरुु का िब्द ह साधु की ऩूॊजी है। गरुु से कुॊ जी रेकय उनके ननदेिों ऩय मह िाखणज्म कयो।

दो0- द्वादस फाण कार कय फचहहॊ जे शब्दहहॊ ऩठै।

अॊग फचाई जग सों नतये इकेव रक्ष्म चहढ फठै।।267।।

कार के ऩास फायह फाण है जो उनसे फचना चाहो तो सतनाभ िब्द भें प्रविष्ठ हो जाओ। औय अऩना अॊग (दाभन) फचाकय बिसागय नतय जाओ औय एक ह रक्ष्म (सत्मधाभ साम्राज्म) ऩय फठैो।

चौ0- जो स्जहह के शयणी अनयुागी । ताकी राज नतहह कय रागी।।

उरटी भीन चढे जर धाया । गजयाज फडूो जर बाया।।1।।

जो जजसकी ियण अनयुागी है उसकी राज उसी के हाथ भें यहती है। जैसा कक भछर जर धाया भें बी उरट चढ जाती है औय हाथी अथाह जर भें डूफ जाता है।

चौ0- सत्मरोक जफ हॊसा गाभा । कारऩरुष नतहह कयहहॊ प्रनाभा।।

तहॉ जाई सो रौहट न आवा । सत्मदेव की पवनती गावा।।2।।

जफ हॊसात्भा सत्मऩरुुष के देस भें जाती है तफ कार ऩरुुष उसको प्रणाभ कयता है। िहाॊ जाकय िह ऩनु् आिागभन नह ॊ कयता केिर सत्मऩरुुष की विनती गाता है।

चौ0- सत्मऩरुष रूऩ सो होई । अट्ठासी सहस्त्र द्वीऩ सखु ऩोई।।

सकर द्वीऩ भॊह स्वछॊद पवचयण । कहु न योक टोक अनतक्रभण।।3।।

िह सत्मऩरुुष के स्िरूऩ का ह हो जाता है। औय िहाॊ अट्ठाईस सहस्त्र द्िीऩो का आनन्द बोगता है। औय सभस्त द्िीऩों भें स्ितन्त्र विचयता है। कह ॊ कोई योक टोक औय दरुूऩमोग नह ॊ होता।

चौ0- सचखॊड ऻान श्री मशव फखानी । सनुत मशवा भन अनत हयषानी।।

फोरे मशव सो ऩरुष अनाभा । गौ भन भनत न कब ुरखाभा।।4।।

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मह सचिॊड का ऻान श्री शिि जी ने फिान ककमा जजसे सनुकय ऩािवती जी फडी प्रसन्न हुई। श्री शिि फोरे कक िह अनाभी ऩरुुष भन इजन्रमों तथा फवुद्ध से कबी नह ॊ देिा जाता।

दो0- गौ भन वाणी से ऩये आहद ऩरुष कयताय।

भन फपुद्ध गौ सउॊ देणख चहॉ ; खौमर न सकहहॊ द्वाय।।268।। जो इजन्रमों भन औय िाणी से ऩये आदद देि कयताय है उसको भन फवुद्ध औय इजन्रमाॊ से जो देिना चाहता है िह उसका द्िाय कबी बी नह ॊ िोर सकता।

19 – सयुत डौरय

दो0- सनुहु मशवा अफ हौं तोहीॊ ; मबन्न मबन्न जे मगु चाय। सयुत डौरय ककहह ऩद धथयत कहूॊ गोऩ सतसाय।।269।।

हे शििा सनुो ! अफ भैं तझु से शबन्न शबन्न चायों मगुों भें सयुत की डौरय ककस केन्र ऩय ठहयती है मह गोऩनीम सत्मसाय कहता हूॉ।

दो0- मबन्न मबन्न जुगन सयुत धथय ठाडड मबन्न मबन्न भकुाभ।।

मबन्न केन्र मबन्न मबन्न गनत मबन्न मबन्न कभप “होयाभ”।।270।।

होयाभदेि जी कहत ेहैं कक शबन्न शबन्न मगुों भें सयुत शबन्न शबन्न केन्रों ऩय ठहयती है तफ उन शबन्न शबन्न केन्रों ऩय शबन्न शबन्न गनत औय शबन्न शबन्न कभव होत ेहैं।

चौ0- सतमगु भाहीॊ सयुत की डौयी। ठाडड सेत ुसनु्न बयभ ऩातौयी।।

अस्स्थन प्राण भन गमॊद सभाना । राख फयष नय आम ुप्रभाना।।1।।

सतमगु भें सयुत (रूहो) की धाया सेत ुसनु्न भें बभव के ऩयदे भें ठहय गई। तफ प्राण अजस्थमों भें तथा भन हाथी के सभान होता है औय भनषु्म की आम ुएक राि िषव प्रभाण की होती है।

चौ0- जफ रगी अस्स्थ फर नहहॊ नासी । भतृ्म ुकदा ननकट नहहॊ जासी।।

डाॊवाडोर भन फर नहहॊ सोई । कयभन भरहहॊ सयुत नहहॊ गोई।।2।।

जफ तक अजस्थमाॉ दफुवर नह होती थी कबी बी भतृ्म ुननकट नह ॊ आती थी औय भनोफर डाॊिाडौर नह ॊ होता था तथा सयुत कभों के भर भें नह पॊ सती थी।

चौ0- शन ैशन ैनतयता मगु आई । बत्रगणुी कयभ सयुत बयभाई।।

यक्त भॊह प्राण फसेउ एहह कारा । भन फर बा हम सरयस ननढारा।।3।।

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औय जफ धीये धीये त्रतेामगु आता है तो सयुनत बत्रगणुी कभों के जार भें भ्रशभत हो जाती है। उस सभम प्राण यतत भें फसत ेहैं औय भनोफर घट कय घोड ेके सभान हो जाता है।

चौ0- सहस्त्र कॊ वर सतुप डौरय सभाई । दस सहस्त्र वषप आम ुजन ऩाई।।

बत्रकुहट रधग बेद सॊत जानी । ऩणूप धाभ भानन बयभानी।।4।।

सहस्त्र दर कॊ िर भें सयुत की डौरय सभाती है। इस सभम भनषु्म दस सहस्त्र िषव की आम ुऩाता है। इसशरमे सॊत जनों ने बत्रकुदट तक का बेद जाना औय इसी को ऩणूव धाभ भान कय भ्रशभत हो गमे।

दो0- द्वाऩय मगु भें भॊह सयुनत डौरय पॊ दहहॊ द्वतै की बाव।

अन्तस कॊ वर भ्रभुध्म उध्र्व अऺम सयुत धथयाव।।271।।

द्िाऩय मगु भें सयुनत की डौरय द्ितैबाि भें पॊ स जाती है। तफ इस अविनासी सयुत का ठहयाि भ्रभुध्म से ऊऩय अन्त्कयण भें यहता है।

चौ0- भन अजा सभ द्वाऩय भाॊहीॊ । सहस्त्र फयीष आम ुजन ऩाहीॊ।। प्राण त्वचा धथयइ नतष कारा । सयुनत भरीन बमउ कृनतजारा।।1।।

द्िाऩय मगु भें भन का फर फकय के सभान होता है। तफ भानि सहस्त्र िषव की आम ुऩाता है। उस सभम प्राण त्िचा भें ठहयता है औय सयुनत कभवजार भें भर न हो जाती है।

चौ0- कयभ भरै फीनतहैं सो कारा । कमरमगु फहढहैं पवषम फमारा।।

सयुत फसत तीसय नतर भाहीॊ । जहॉ भ्रभुध्म मशव नेत्र कहाहीॊ।।2।।

िह साया सभम कभो के भरै भें फीतगेा औय करमगु भें विषम िासनाऐॊ फढ जामेगीॊ। तफ सयुनत तीसये नतर भें ठहयती है जहाॊ भ्रभुध्म स्थान है औय शिि नेत्र कहराता है।

चौ0- कमरमगु फमसहैं अन्न भॊह प्राना । भन फर होइहैं पऩऩीमर सभाना।।

शत वयीष नय आम ुफखानी । अन्तस्थ ध्मान भोष सॊत जानी।।3।।

कशरमगु भें प्राण अन्न भें फसेगें। औय भन का फर चीॊट के सभान हो जामेगा। तफ भनषु्म की सौ िषव की आम ुकह जाती है औय सॊत जन अन्तस्थ ध्मान भें भोऺ सभझात ेहैं।

चौ0- नहीॊ अननवामप मऻ तऩ ऻाना । ननष्काभ कयभ नाभ कल्माना।।

सतनाभ शे्रष्ठ कमरमगु भाॊहीॊ । समुभय समुभय जन शबु गनत ऩाहीॊ।।4।।

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तफ मऻ तऩ ऻान अननिामव नह यहत।े केिर ननश्काभ कभव औय सतनाभ से कल्माण हो जाता है। करमगु भें सतनाभ ह शे्रष्ठ है जजसे सशुभय सशुभय कय भानि िबु गनत ऩात ेहैं।

दो0- शाभकॉ ज की घाट मसहय इस्न्रम व्माप्त सतुपधाय।

स्थूर जगत पऩ ॊड ऩौय यमभ ; मरप्त अघकभप अऩाय।।272।। िाभकॊ ज की घाट से उतय कय सयुनत धाया इजन्रमों भें व्मातत हो जाती है। औय वऩ ॊडी िय यो के स्थूर जगत भें यभ कय अथाह ऩाऩ कभो भें शरतत हो जाती है।

चौ0- सयुत पवऩरु दनुत ऩुॉज सभाना । व्माप्त देह रघ ुफय ऩयभाना।।

शाभकॊ जस ुतन चेतन याखी । अऻान मरप्त भन सतु की काखी।।1।।

सयुनत एक वििार ज्मोनत ऩुॊज के सभान है। जो िय य भें छोटे फड ेप्रभाण भें व्मातत यहती है। िह िाभकॊ ज से साये िय यों को चेतन्म यिती है औय अऻानता िि अऩने ह ऩतु्र (भन) की गोद भें शरतत यहती है।

चौ0- जागतृ कार सयुत की धाया । रोचन फसत पवशषे प्रकाया।।

उरहट सयुत गय कॊ ठ चक्र आहीॊ । अन्तसधाय मभमर सऩुन यचाहीॊ।।2।।

जागतृ अिस्था भें सयुनत (जीिात्भा) की धाया वििषे प्रकाय से नेत्रों भें फसती है औय मदद सयुनत की धाया उरट कय कॊ ठचक्र भें आ जाती है तो िह अन्त्कयण की धायाओॊ से शभरकय स्िऩन की यचना कय रेती है।

चौ0- ज्मोनतयरम गय ध्मानाधाया । तरुयमा गनत उदमहहॊ सहस्त्राया।।

उध्र्व गभन गय बत्रकुहट आवा । तरुयमातीतावस्था कहावा।।3।।

औय मदद ध्मान अिस्था द्िाया ज्मोनत भें रम हो जाती है तो सहस्त्राय भें तरुयमा अिस्था उत्ऩन्न कयती है। औय मदद उध्र्ि मात्रा कयके बत्रकुट भें आ जाती है तो िह तरुयमातीत अिस्था कहराती है।

चौ0- फडबागी सयुनत शब्द चढावा । तरुयमातीतभतीत सभावा।।

इह रक्ष्म सॊत कयहहॊ अभ्मासा । तस्ज गौघाट कयहहॊ उच्च फासा।।4।।

जो अऩनी सयुनत को िब्द धाया ऩय चढाता है िह फडा बाग्मिार है। इसी रक्ष्म हेत ुसॊत अभ्मास कयत ेहैं औय इजन्रमों के घाट को छोडकय उध्र्ि रोंकों भें फासा कयत ेहैं।

दो0- ध्मान यत जे जे भकुाभ सयुनत नब ऩॊथ मसधाम।

“होयाभदेव” धननऩयु रणख त ेत ेतीयथ नहाम।।273।।

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ध्मान भें र न जजस जजस केन्रों भें सयुनत गगन भागव भें दौडती है श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक तफ िह िहाॊ के धननमों के धाभ देिकय उतने ह तीथो का स्नान कयती है। दो0- सत्मऩरुय षट् भकुाभ मसहय सयुत धथयत शाभकॉ ज।

त्मूॉ भन बत्रकुहट षट ऩदभ ; फमस अवतरय उयखॉज।।274।। सयुनत सत्म रोक से छ् भकुाभ उतय कय िाभकॊ ज भें आकय ठहयती है। उसी प्रकाय भन बत्रकुट से छ् ऩद उतयकय रृदम गपुा भें फसता है।

चौ0- नब भग सयुत चढहहॊ स्जहह कारा । भन शधुच होहहॊ टयहहॊ पवषमारा।।

सयुत सॊग भन बत्रकुहट आवा । बत्रगणु प्रकृनत भन रमयावा।।1।।

जजस सभम सयुनत आकाि भागव भें चढती है तफ भन ऩवित्र होता जाता है। औय विषम विकाय दयू होत ेजात ेहैं। भन सयुनत के साथ बत्रकुट तक आता है औय भन बत्रगणुी प्रकृनत भें रम हो जाता है।

चौ0- सयुत भामा तज सनु्न मसधाई । जाइ अनाभीधाभ सधुध ऩाई।।

ऩाहीॊ ऩयभसॊत धाभ अनाभी । ऺयाऺयातीत सयुनतन्ह स्वाभी।।2।।

भामा के ऩयदों को त्माग कय सयुनत सनु्न भें गभन कयती है औय अनाभी धाभ तक जाकय अऩनी सधुध प्रातत कयती है। ऩयभसॊत ह अनाभीधाभ प्रातत कयत ेहैं। जहाॉ ऺय अऺय से ऩये सभस्त सयुनतमों का स्िाभी सत्म ऩरुुष अकार यहता है।

चौ0- नतउ नतर सयुनत भध्मभ प्रकास ू। सहस्त्र कॊ वर बान ुसभ बास।ू।

चतगुुपणी जोनत दसभद्वाया । सत्मरोक षोडस अयकाया।।3।।

तीसये नतर भें सयुनत का भध्मभ प्रकाि होता है। सहस्त्र दर कभर भें सयुनत समूव के सभान बासती है। औय दसभ द्िाय भें चाय गणुी ज्मोनत हो जाती है। औय सत्मरोक भें सयुनत सोरह समूों जैसी हो जाती है।

चौ0- असॊखम यपव सभ अनाभ प्रकासी । ज्मोनतस्वरूऩ सयुत तहॉ बासी।।

ऩयूणमभमर सो ऩणूप कहाहीॊ । शदु्ध भकु्तइ ननजभरू सभाहीॊ।।4।।

अनाभी धाभ भें सयुनत (आत्भा) असॊख्म समूो के सभान प्रकाििार होकय िहाॊ भहाज्मोनत स्िरूऩ बासती है िहाॊ ऩणूव ऩयभेश्िय भें शभरकय ऩणूव ह कहराती है औय िदु्ध भतुत होकय ननज भरू स्िरूऩ भें सभा जाती है।

दो0- कछुक मोगी मोगीश्वय भरूदेस नहीॊ ऻान।

षट्चक्र उहठ सहस्त्र कभर ऩयूण भोऺ फखान।।275।।

कुछ मोगी – मोगेश्ियों को अऩने भरू देस का ऻान नह ॊ होता। िे तो षट्चक्रों से उठकय सहस्त्रदर भें ऩणूव भोऺ का फिैान कयने रगत ेहैं।

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20 – सॊत सयुत अवतयण

दो0- चारय प्रकाय असॊखम सयुत आई फसहहॊ जग भाहहॊ।

भहाकार आधीन सफ तीन रोक बयभाहहॊ।।276।।

असॊख्म सयुतें चाय प्रकाय से आकय सॊसाय भें फसती है जो भहाकार के आधीन, बत्ररोकी भें बयभाती है।

चौ0- सत्मरोक रधग ठाभ सहस्त्रायी । यचन कयत कछु सयुत मसधायी।।

तहॉ त ेकछुक भ्रभुध्म रोका । कयहहॊ यचन गहह कारहहॊ भौका।।1।।

सत्मरोक से रेकय सहस्त्र दर कॊ िर तक कुछ सयुतें यचना कयती हुई आई हैं। िहाॊ से कुछ भ्रभुध्म रोक भें कार का अिसय ऩाकय अऩनी सषृ्ट यचना कयती है।

चौ0- तीसय जीव बॊडाय पवशारा । ननयॊजन कीन्ही ओभ हवारा।।

चौथे सो सॊत आतभा जाने । सयुत धचदाई बवमसॊधु नतयाने।।2।।

तीसये प्रकाय का वििार जीि बॊडाय ननयॊजन ने ओ Sभ ्धनी के आधीन कय ददमा है। चौथे प्रकाय के िे सॊत आत्भा जाननी चादहमे जो जीिात्भाओॊ के जगाकय बेद (ऻान उऩदेि देकय) बि सागय ऩाय कयाती है।

चौ0- सत्मधनी स्वमॊ न रेहहॊ औॊताया । मौनन यहहत सो अमरप्त ननयाया।।

जे सॊत देहहहॊ कयहहॊ अभ्मासा । कयहहॊ सवपदा सतऩरुय फासा।।3।।

सत्मऩरुुष स्िमॊ कबी अिताय धायण नह कयता। िह तो मौननिास से यदहत ननयारा औय ननरेऩ है। जो सॊत अऩनी देह भें अभ्मास कयत ेयहत ेहैं िह सदा सत्मरोक भें ननिास कयत ेहैं।

चौ0- नतहह सतऩरुष देहहॊ आदेश ू। सो प्रगटहहॊ जग जीव हहतषे।ू।

सो सत्मऩरुष अवताय कहाहीॊ । जीव धचदाम सचखॊड ऩठाहीॊ।।4।।

उन्ह भोऺात्भाओॊ को सत्मऩरुुष आदेि देत ेहै तफ िे जीिो के दहत के शरमे सॊसाय भें प्रगट होती हैं। कपय िे सॊतात्भा सत्मऩरुुष का अिताय कहराती है। औय िे जीिों को जगाकय सचिॊड बेजती है।

दो0- सॊत कयभ की येख ऩय धयै दमा की भेख।

“होयाभ” समूर कॊ टक कटै सॊत भायग चमर देख।।276।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक िे सॊत कभों की येिा ऩय अऩनी दमा की भोहय रगा देत ेहैं। कपय उनकी िशूर बी काॊटे ऩय कट जाती है। मह सॊतभागव ऩय चरकय देि रो।

दो0- ऻानसागय अरू चॊरप्रबा अवनीश ुसत्मप्रकास।

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पप्रम जानन तत्व अभय कथा कयहुॊ प्रगट भखु बास।।277।।

ऻानसागय, सत्मप्रकाि अिनीि औय चन्रप्रबा मह अभयकथा तत्िसाय भैं तमु्हे वप्रम जान कय अऩने भिु से प्रगट कय यहा हूॉ।

चौ0- ब्रह्भाण्डी बफम्फ पऩ ॊड यधच भामा । अॊडकय बफम्फ पऩ ॊड ऩॊह छामा।। कछु सॊत पऩ ॊड अॊडहह ध्माहीॊ । मसपद्ध तपृ्त हरयद्वाय न ऩाहीॊ।।1।।

भामा ने ब्रह्भाण्ड की नकर वऩ ॊड भें यचाई है औय अॊड देसो का प्रनतबफम्फ वऩ ॊड ऩय डारा है। कुछ सॊतजन वऩ ॊड औय अॊड देसों को ह उऩासत ेहैं। उनकी ह शसवद्धमों भें ततृत हो जात ेहैं। िे प्रब ु(सत्मऩरुुष) का द्िाया प्रातत नह ॊ कय ऩात।े

चौ0- ननयॊजन आमस ुशस्क्त औॊताया । याभ कृष्ण प्रगटहहॊ सॊसाया।।

कारावतायहहॊ याणख सहाई । मभरहु ईश करय सयुत कभाई।।2।।

ननयॊजन की आऻा से िजतत के अिताय याभ औय कृष्ण सॊसाय भें प्रगट होत ेहै इन कारदेसी अितायों को सहामक फनाकय सयुत मात्रा की कभाई कयके सत्मऩरुुष से शभरना चादहमे।

चौ0- ननयगणु सगणु ईश कभपचायी । जग थाऩक सफ जीव हहतायी।।

जफ रधग सयुत न उरट चढावे । भामा ठाभ कब ुभोष न ऩावे।।3।।

ननगुवण सगणु सफ प्रब ुके कभवचाय है जो जगत व्मिस्था कयने िारे औय सफ जीिों की दहत कयने िारे हैं। जफ तक सयुनत उरदट (गगन छौय को) चढाई नह ॊ कयती तफ तक भामा के देस से उसकी भजुतत कबी नह ॊ होगी।

चौ0- कारहह ताऩ सयुऺा हेत ु। अकार ऩरुष होहइ सचेत।ु।

बत्रदेव धाय यधच स्वमॊ सभामे । ब्रह्भा पवष्णु भहेश कहामे।।4।।

कार की ततत से फचने के शरमे सत्मऩरुुष अकार ने सचेत होकय बत्रदेिा की धाया को स्िमॊ ननशभवत ककमा जो ब्रह्भा, विष्णु औय भहेि कहरामे।

दो0- जेहहॊ ध्मान साधन शे्रम भहत्ता सगणु पवजानन।

सगणु नाव ऩहैठउ चर ैननयगणु मभरहहॊ भहानन।।278।।

जजनकी ध्मान साधना शे्रष्ठ है िे सगणु ब्रह्भ की भहत्ता को जानत ेहै। इसशरमे सगणु की नाि भें फठैकय मात्रा कयता चरे तो उसे भहान ननगुवण ऩद शभर जाता है।

दो0- ननगुपण की साधन कये सगणुहहॊ करयअ ननन्द।

कहत “होयाभ” भनतभॊद सो बमो भोनतमा बफन्द।।279।। औय मदद ननगुवण की तो साधन कये औय सगणु की ननन्दा कये तो श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक उस भिूव को तो भोनतमाबफ ॊद हो गमा है।

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दो0- ननगुपण सगणु षोडस सतु् कयत याज्म ननस्ज ठाभ।

ननज ननज द्वीऩहहॊ ऩावहहॊ सत्मधनन कृऩा शचुाभ।।280।।

सगणु ननगुवण औय सोरह धनी अऩने अऩने याज्मों भें याज्म कयत ेहैं औय सत्मऩरुुष का ऩािन आिीिावद अऩने अऩने द्िीऩों भें ह ऩात ेहैं।

दो0- सचखॊड रछ मात्रा कये ननयगणु सगणु सहाम।

दोनन धुरय तयनी चढै ऩयूण ब्रह्भ सभाम।।281।।

सचिॊड का रक्ष्म फनाकय मात्रा कयनी चादहमे उसके ननगुवण सगणु धनी सहामक हो जात ेहैं। इन दोंनों (ननगुवण-सगणु) की नाॊि भें फठैकय ऩयूण ब्रह्भ भें र न होना चादहमे।

दो0- सयगणु से आगे ननगुपण ऩायब्रह्भ कहह वेद।

सगणु ननगुपण त्मज ऩाइमे ऩयून ऩरुष अबेद।।282।।

सगणु से आगे ननगुवण को िेदों ने ऩाय ब्रह्भ कहा है कपय सगणु औय ननगुवण को त्माग कय ऩणूव अबेद ऩरुुष को प्रातत कयना चादहमे।

दो0- सगणु ननगुपण के देस को नहहॊ धरय वयै तजाम।

तज ज्मूॉ मान तजामहहॊ मात्री ननज रछ ऩाम।।283।।

सगणु औय ननगुवण के देस को ियै यिकय नह ॊ त्मागना चादहमे फजल्क ऐसे त्माग दे जैसे िाममुान को अऩने रक्ष्म ऩय ऩहुॊच कय मात्री त्माग देता है।

चौ0- जग थाऩक बत्रदेव कहावा । काराधीन जगत ठहयावा।।

ताही देसस ुजफ सचधाभा । सयुत न जाई फॊधहहॊ कारनाभा।।1।।

जगत व्मिस्था कयने िारे बत्रदेि कहरात ेहैं जो कार के आधीन जगत को ठहयात ेहैं। उनके देस से जफ सचिॊड को कोई सयुत नह ॊ ऩहुॊचती कारनाभें से ह फाॊधी यह जाती है।

चौ0- सत्मधनन आमस ुकयहहॊ भहकारा । तद प्रगटहहॊ सॊतधनन दमारा।।

कार ऩाश जे फचना चाहीॊ । सो धचदाम सत्मऩॊथ रखाहीॊ।।2।।

तफ सत्मऩरुुष भहाकार को आऻा देत ेहैं। तफ कोई सत्मऩरुुष का सॊत दमार प्रगट होता है। औय जो सयुनत कार फॊधन से छूटना चाहती है िह उन्हे उऩदेि देकय सचिॊड का भागव ददिात ेहैं।

चौ0- कछुक सयुत सचखॊड सों आवा । कार जगद सत्मनाभ प्रदावा।।

गरुभणुख करय दमा ननज रावैं । ऩनुन रौहट ननज देस सभावैं।।3।।

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कुछ सयुतें (आत्भाऐॊ) सचिॊड से आती है जो कार देस भें सत्मनाभ प्रदान कयती है। िे रूहों को गरुुभखुि फनाकय उन ऩय अऩनी दमा फयसात ेहैं औय कपय िे सॊतात्भाऐॊ अऩने देस को िाऩस रौट जाती हैं।

चौ0- पवनसई धयभ अधभप प्रगाढै । अनाचाय ग्रमसत सफ ठाढै।।

पवष्णु अॊश तद उदहहॊ सॊसाया । हयहहॊ सॊत दखु धयनन बाया।।4।।

जफ धभव का नास औय अधभव फढ जाता है। अनाचाय भें सबी ग्रशसत िड ेयहत ेहैं तफ श्रीविष्णु का अॊि सॊसाय भें प्रगट होता है जो सॊतों के दिु औय ऩथृ्िी के बाय को हयण कयता है।

दो0- अवताय सहसया बत्रकुहट प्रगट हयण बवबाय।

सचखॊडी सॊत सजुीवहह कयहहॊ कारखॊड ऩाय।।284।।

सहस्त्रदर औय बत्रकुट से अिताय ऩथृ्िी का बाय हयन के शरमे अितरयत होत ेहैं औय सचिॊडी सॊतजन उत्तभ जीिों को कार के देस से ऩाय कय देत ेहैं।

दो0- कार अवताय प्रगट इह जग व्मवस्थाऩन हेत।

दमारावताय प्रगटहहॊ खारी कयाहहॊ खेत।।285।।

कार के अिताय इस रोक भें जगद व्मिस्था कयने के शरमे प्रगट होत ेहै औय सत्मऩरुुष दमार इस कार ऺेत्र को िार कयाने के शरमे अितरयत होत ेहैं।

दो0- कार देस भें सयुत गहह सो सचखॊड ऩठाम।

“होयाभ” कार कभप छुटै नतन्ह सयनी जे जाम।।286।। तमोंकक कार देस से िे सयुनतमों को गहृण कयके उन्हे सचिॊड बेजत ेहैं। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक जो उनकी ियण भें चरा जाता है उसका कार औय कभवचक्र छूट जाता है।

चौ0- सत्मऩरुय ऩाय बत्रधाभ ऩसाया । अरख अगभ अनाभ अऩाया।।

ऩयभ सॊत तॉह कयहहॊ पवश्राभ ु। आभ दयफाय अगभऩरुय ठाभ।ु।1।।

सत्मरोक से ऩये तीन धाभों का विस्ताय है जो अरि अगभ औय अनाभी है ऩयभसॊत िह ॊ ऩय विश्राभ कयत ेहैं औय सफका भखु्म दयफाय अगभरोक भें रगता है।

चौ0- सन्त सयुत हहत ुबत्रकुहट आवा । चुन चुन सयुत सचखॊड ऩठावा।।

सो ऩनुन रौहट जगद न आवहहॊ । ऩयभेश्वय सॊग आनॊद ऩावहहॊ।।2।।

ऩयभसॊत रूहों के दहत के शरमे बत्रकुदट देस तक आत ेहैं औय रूहों को चुन चुनकय सचिॊड भें ऩहुॊचात ेहैं। कपय िे रूहें िाऩस रौट कय सॊसाय भें नह ॊ आती। ऩयभेश्िय के साथ ऩयभानॊद प्रातत कयती हैं।

चौ0- अन्तरयदेस सॊत जफ जाहीॊ । कयभ हीन सयुत भग आहीॊ।।

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चाहहहॊ सो सतरोकहहॊ जावा । सॊत कृऩा नय जनभ प्रदावा।।3।।

अन्तरयरोकों भें जफ सॊत जात ेहैं तो यास्त ेभें बफना कभाईिार रूहें शभरती हैं। िे सत्मरोक भें जाना चाहती है। इसशरमे सॊतो की कृऩा उन्हे भानि जन्भ प्रदान कया देती है।

चौ0- ऩयभसॊत सचखॊड आइ जाहीॊ । सयुत ऩयनाम ननज ठाभ ऩठाहीॊ।।

सकर धाभ धनन सयुत हहतषेा । मथा कार करय कृऩा पवशषेा।।4।।

ऩयभसॊत (सत्मगरुु) सचिॊड भें आत ेजात ेयहत ेहैं औय रूहों को गहृण कयके अऩने रोक बेजत ेयहत ेहैं। औय सबी रोगों के धनी ऩरुुष सयुतों के दहतषेी है िे सभमानसुाय वििषे कृऩा कयत ेहैं।

दो0- सवपरोक ऩनत सयुत हहत ेमात्रा सहामकाय।

जे जन डौरय कार सॊग सो न चढै तरय ऩाय।।287।।

सफ रोंकों के स्िाभी सयुत दहतषेी है िे सफ उसकी मात्रा भें सहामक यहत ेहैं औय जजनकी डौरय कार ननयॊजन के साथ फॊधी है िे िहाॊ चढाई न कयके ऩाय नह ॊ जात।े

दो0- बफन सदगरु बत्रकार भें खुरे न सचखॊड द्वाय।

“होयाभ” कहह ऻानसागया गरु भहहभा अऩयम्ऩाय।।288।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक तीनों कार (बतू बविष्म औय ितवभान) भें सदगरुु के बफना सचिॊड का द्िाय नह िुरता। इसशरमे ऻान सागय ! गरुु भदहभा अऩयम्ऩाय है।

दो0- श्री मशव भखु फचन सनुन बवानी प्रसन्न अऩाय।

शीश चयण मशव के धरय नत भस्तक नभकाय।।289।।

श्री शिि के भिु से फचनोऩदेि सनुकय ऩािवती ने अऩाय प्रसन्नता से अऩना िीि शििजी के चयणों भें यि ददमा औय नतभस्तक होकय नभस्काय कयने रगी।

21 – सयुनत मात्रा सहामक सॊत जन

दो0- सनुो मशवानी धचत्त धरय सयुनतहह सॊत सहाम।

फाहय बीतय सहमात्री सचखॊड दोउ सभाम।।290।।

अफ हे शििानी तभु ध्मान से सनुो ! सयुनत के सॊत सहामक होत ेहैं िे फाहय औय बीतय जगत भें सहचय मात्री होत ेहै। इस प्रकाय दोंनों ह सचिॊड भें जाकय सभा जात ेहैं।

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चौ0- सनु्न सेत ुरधग नय नारय बेदा । भानसय नहाम देह भ्रभ छेदा।।

जे भन कीन्ही ध्मान कभाई । प्रत्मऺ रखहहॊ सो अनबुतूाई।।1।।

नय औय नाय का बेद बी सेत ुसनु्न तक है। भानसयोिय भें स्नान कयत ेह िय य के सबी भ्रभों का छेदन हो जाता है। जो भनषु्म अऩनी ध्मान की कभाई कय रेत ेहैं िे ह इस प्रत्मऺ अनबुनूत को रित ेहैं।

चौ0- जगद जीव सो कयहहॊ हहतषे ू। अन्तरय भग ननश्ऩऺ उऩदेष।ू।

अन्तयगभन यहहहॊ मसष सॊगा । ऩॊथ रथाम सचखॊड प्रसॊगा।।2।।

िे सॊतजन जगत प्राणी भात्र का दहत कयत ेहैं औय अन्तरय घट भागव का ननश्ऩऺ ऻानोऩदेि कयत ेहैं िे अन्तरय घट मात्रा भें शिष्म के सॊग सॊग यहत ेहैं औय भागव ददिाकय सचिॊड का प्रसॊग कयत ेहैं।

चौ0- गरु कृऩा सफ तें अधधकाई । उफायहहॊ सयुत ऩॊथ दयसाई।।

बफन ुगरु गभन सपर नहहॊ होई । ईश कृऩा बफन ुसरुब न सोई।।3।।

इसशरमे गरुु कृऩा सफसे फढकय है। िे भागव ददिा कय सयुत का उद्धाय कयत ेहैं। बफना गरुु के मह मात्रा सपर नह ॊ होती। औय ईि कृऩा बफना िह सरुब नह ॊ है।

चौ0- जीव फॊधऊ सयुग सखु नाना । करय कयभ जऩ तऩ भख नाना।।

होंहीॊ तषु्ट सयु – रयहद मसहद ऩाई । ननजातभ ऻान सधुध नहहॊ ऩाई।।4।। जीि तो स्िगों के नाना सिुों भें फॊधा हुआ है। इसशरमे अनेकों कभव जऩ तऩस्मा मऻ आदद कयता है औय देिताओॊ की ऋवद्ध शसवद्ध ऩाकय सन्तषु्ट होता है। अऩनी आत्भऻान की उसे सधुध नह ॊ होती।

दो0- गहृहत सयुत सॊबार हहत ुसचखॊड से बत्रकुहट आम।

मशष्मन सेवा गहहहॊ गरु अन्तरय हदव्म रूऩ रखाम।।291।।

गहृण की हुई अऩनी रूहों की सम्बार के शरमे सचिॊड से बत्रकुदट तक आकय सॊत गरुु जन शिष्मों की सेिा गहृण कयत ेहैं औय उन्हे अन्तरय भागव ददिात ेहैं।

चौ0- सनुहु मशवा भभ नेक सरहानी । गौघाटी तस्ज गहे गरुफानी।।

खोरहु जाई गगन ककवायी । सयुत शब्द रममोग अगायी।।1।।

कल्माणी ! भेय उत्तभ ऩयाभिव सनुो ! इजन्रमों के घाट त्माग गरुु फचनों को गहृण कयना चादहमे। औय मात्रा कय के आकाि की खिडकी को िोरो। तफ आगे सयुनत का िब्द भें रम होने का मोग है।

चौ0- पऩ ॊडहहॊ सयुत भन ईच्छाधीना । बत्रकुहट भॊहढ बत्रभामा ऩयीना।।

भामाभर बत्रकुहटहहॊ तजाव ै। भनवा जीनत नतहह उध्र्वप चढाव।ै।2।।

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वऩ ॊड देसों भें सयुनत भन की ईच्छा के आधीन होती है औय बत्रकुदट भें बत्रगणुी भामा के ऩयदों भें फॊध जाती है। इसशरमे भामा का विकाय बत्रकुदट भें ह त्माग दें औय भन को जीत कय उसे उध्र्िरोंकों भें चढाि।ै

चौ0- तॊह ननत फहे अगभ की धाया । उरहट ऩॊथ कोउ बफयर मसधाया।।

सयुतधाय जे ऩरुट चढावहहॊ । सफ तीयथ रख ननजऩद ऩावहहॊ।।3।।

िहाॊ अगभ की धाया सिवदा फहती है। उसकी उरदट धाया के यास्त ेऩय कोई बफयरा ह गभन कयता है। जो सॊत सयुनत की धाया को उरदट चढा देत ेहैं िे सबी तीथों को देित ेहुिे ननज देस को प्रातत कय रेत ेहैं।

चौ0- ऩयभसॊत जीवहह ऩयभ हहतषे ु। ककयऩा करय भेटहहॊ जगद करेष।ु।

सो पऩ ॊड साधन सयुत न ठेरी । ननजऩरुय जाहीॊ सयुत सहेरी।।4।।

ऩयभसॊत जीि के ऩयभ दहतषेी होत ेहै िे अऩनी कृऩा कयके सॊसाय का करेि शभटा देत ेहैं। िे सयुनत को वऩ ॊड के साधनों भें नह ॊ ढकेरत।े िे सयुनत के सिा फन कय उसे अऩने देस रे जात ेहैं।

दो0- कार सहहत द्व ैअन्म सतु् सचखॊड देस न जाम।

“होयाभ” धाय सत्मधाभ की ननज ननज धाभहहॊ ऩाम।।292।। कार के साथ दो अन्म सतु् सचिॊड भें नह ॊ जा सकत।े श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक िे सचिॊड की अभतृधाय अऩने अऩने देसों भें ह प्रातत कयत ेहैं।

चौ0- सत्मऩरुष अप्रसन्न रणख कारा । ताही जार पवकट पवकयारा।।

तदपऩ कार भेहटउ नहहॊ जाहीॊ । तीहह सॊग षोडस सतु् नसाहीॊ।।1।।

कार ननयॊजन को देिकय सत्मऩरुुष अप्रसन्न हैं तमोंकक उसका जार फडा ह विकयार है। कपय बी कार को शभटामा नह ॊ जा सकता। तमोंकक उसके साथ सोरह सतु् नष्ट होत ेहैं।

चौ0- कार जार मदपऩ पवकयारा । सॊतन सॊग सो ऩयभ दमारा।।

जे जग जीव बई जो काभा । कार सरुयसरुय सफहह ऩठाभा।।2।।

कार का जार मदवऩ विकयार है कपय बी िह सॊतों के साथ ऩयभ दमार ुहै। सॊसाय के जजस जीि को जो ईच्छा होती है कारयधचत देिी देिता सफ उसे िह िस्त ुबेज देत ेहैं।

चौ0- सॊधचत कयभ नतयकुहट फासे । सो सतगरु दमा सफ नासे।।

प्रायब्ध कभप बोधग तन भाहीॊ । दमा भेख सॊत सकइ रगाहीॊ।।3।।

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जीि के सॊधचत कभव बत्रकुदट भें फसत ेहैं िह सत्मगरुु उन सफ को अऩनी दमा ने नष्ट कय देत ेहैं िषे जीि अऩने प्रायब्ध कभों को देह भें ह बोगत ेहैं औय िे सॊत उनऩय अऩनी दमा की भोहय बी रगा सकत ेहैं।

चौ0- सदगरु मशष्मन रेइ कछु सेवा । भेटहहॊ नतहह कछु कयभ अऩेवा।।

कछुक कयभ सऩुन बगुताहीॊ । अन्तरय गभन नतहह सॊग ननबाहीॊ।।4।।

सदगरुु शिष्म की कुछ सेिामे रेकय उसके कुछ ऩाऩ कभों को शभटा देत ेहैं औय कुछ कभों को स्िऩन भें बतुतिा देत ेहैं औय अन्तरयघट मात्रा भें उसका साथ ननबात ेहैं।

दो0- तीसय नतर जरखॊडी नऩृ फॊध्मो ऩॊच दस ऩचीस।

चाय भथाइ दस भयइ नऩृ भकु्त गयुवाशीस।।293।।

तीसये नतर भें मह जरिॊडी नऩृ (जीिात्भा) ऩाॊच तत्ि दस इजन्रमाॊ औय ऩजच्चस धचतिनृतमों भें फॊधी हुई है। चायो (धचत्त, फवुद्ध भन औय अहॊकाय) के भथने से दसो इजन्रमाॊ विपर हो जाती है देह स्िाभी आत्भा गरुु आशिष से भतुत हो जाती है।

चौ0- गहृहत सयुत गय कायन कोई । देह तज कारहह सनु्न सभोई।।

शषे प्राण नतहह तॊह बगुताहीॊ । सयुत सॊबार करय गगन चढाहीॊ।।1।।

मदद ककसी कायण से गहृण की हुई सयुत देह त्माग कय कार की सनु्नो भें चर जाती है तो िषे प्राणों का िह िह ॊ बगुतान कयाती है औय कपय सयुत की सम्बार कयके आकाि भें चढात ेहैं।

चौ0- ननयगयु सयुत सनु्नधनन सॊबाये । तहॉ ऩनु्म बोधग ऩनु् बव डाये।।

सयुत ननयत गरु जे सनु्न फाॊधी । कयभ भकु्त सतुप सो सनु्न साॊधी।।2।।

भनभखुि सयुतों की सनु्न धनी सम्बार कयत ेहैं िे िहाॊ ऩनु्मो को बोग रेने िार सयुनतमों को ऩनु् बिसागय भें डार देत ेहैं। गरुुजन सयुत ननयत को जजस सनु्न भें फाॊधत ेहैं, कभव से भतुत ि सयुत उसी सनु्न से जुड जाती है।

चौ0- भामाऩात तीसयनतर छूटै । सहस्त्रकॊ वर सणूख तरू टूटै।।

बत्रकुहट जाइ फीज सफ नासा । दसभद्वाय बत्रगणु भर ऺासा।।3।।

भामा के ऩत्त ेतीसये नतर (ततृीम आॉिों का केन्र स्थान) भें छूट जात ेहैं औय सहस्त्र कॊ िर भें ऩहुॊचकय भामा का िृऺ ह सिू कय टूट जाता है। औय बत्रकुदट जाने ऩय भामा का फीज ह नष्ट हो जाता है। दसभद्िाय भें बत्रगणुी विकायों का विनास हो जाता है।

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चौ0- आगे शदु्ध ऩयाप्रकृनत होई । अन्तरयगभन सहामक जोई।। तहॉ सयुत तीव्र वेग मसधावा । ऩयभहॊस होई हहन्दतु्व सभावा।।4।। आगे िदु्ध ऩयाप्रकृनत होती है जो आन्तरयक मात्रा भें सहामक है। िहाॊ सयुनत तीव्र गनत से दौडती है औय ऩयभहॊस फनकय दहन्दतु्ि (जहाॊ द्ितै नह है) भें सभा जाती है।

दो0- सयुतडौरय इह कार कय श्रीऩनत कय भनत ऩौय।

धचत ब्रह्भा अहभ मशव कय आद्मा कय भन डौय।।294।।

इस रोक भें सयुत की डौरय कार के हाथ भें है। फवुद्ध की ठाभ श्रीविष्णु जी के हाथ भें है। धचत्त की ब्रह्भा तथा अहॊकाय की डौरय शिि िॊकय के हाथ भें है। औय भन की डौरय आद्मा िजतत (भहाभामा) के हाथ भें है।

चौ0- जफ रधग सयुत झॊझ द्वीऩ न ऩाया । हदक् शमुर कार बतू बमकाया।।

ताऩय नतन्ह प्रबाऊ न कोई । ननयबम सयुत गभन तहॉ होई।।1।।

जफ तक सयुनत मभरोक के ऩाय नह हो जाती तफ तक कार िरू ददतग्रह औय बतू बमकाय है। उनसे ऊऩय उनका कोई प्रबाि नह ॊ होता। िहाॉ सयुनत ननबवम मात्रा कयती है।

चौ0- तद गरु कृऩा सयुत उडड जाई । ऩाय ब्रह्भाण्ड सचधाभ सभाई।।

अगणणत बान ुअगभ आकासा । सॊत चककत मह देणख तभासा।।2।।

तफ सयुनत सत्मगरुु की कृऩा से उड कय जाती है। औय ब्रह्भाण्डों के ऩाय सचिॊड भें सभाती है। अगभ रोक के आकाि भें अगखणत समूव है। इस दृष्म को देिकय सॊतजन आश्चमव चककत होत ेहैं।

चौ0- तीसय नतर तें प्रथभ भकुाभा । आगे धचत्त ऩनुन सयुत मसधाभा।।

सहस्त्र कॊ वर से बत्रकुहट थाना । भनवा ऩाछै सयुत प्रस्थाना।।3।।

तीसये नतर से प्रथभ भकुाभ तक आगे आगे धचत्त औय ऩीछे सयुनत चरती है। सहस्त्रदर कॊ िर से बत्रकुदट धाभ तक सयुनत भन के ऩीछे चरती है।

चौ0- बत्रकुहट से रधग दसभ द्वाये । आगे ननयत तद सयुत मसधाये।।

दसभ द्वाय से सचखॊड देसा । सतगरु ऩाछै सयुत चयेसा।।4।।

बत्रकुदट से दसभ द्िाय तक सयुनत के आगे आगे ननयत का धाय चरती है औय दसभ द्िाय से सचिॊड धाभ तक सयुनत सत्मगरुु (कॊ ज िय य-ददव्म गरुु स्िरूऩ) के ऩीछे चरती है।

दो0- सयुत चार प्रथभ भकुाभ सभ पऩऩीर “होयाभ”।

दसूय भीन नतउ भगृ सभ अगे्र मान अपवयाभ।।295।।

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श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक प्रथभ रोक वऩ ॊडों भें सयुनत की चार चीट ॊ के सभान होती है औय दसूये अॊड रोंकों भें भछर की गनत िार होती है तथा तीसये ब्रह्भाण्डी रोकों भें भगृ सभान है। आगे िाम ुसभान वियाभ यदहत हो जाती है।

चौ0- मथा मथा इक इक सोऩाना । कयत गभन सयुती घट थाना।।

कटेहहॊ पवकाय फढहहॊ प्रकासा । फहढ फहढ गभन अनन्त पवकासा।।1।।

जैसे जैसे एक एक सोऩान सयुनत घट रोकों भें मात्रा कयती है, उसके ऊऩय चढे विकाय कटत ेजात ेहैं औय प्रकाि फढता जाता है जो फढत ेफढत ेमात्रा भें अनन्त विकासिीर हो जाता है।

चौ0- भेघ बफछुरय पवन्द ज्मुॉ थर आवा । धूसय रयमर मभमर कीचय कहावा।।

त्मुॊ मभमर सयुत कयभ अरू भामा । बई जीव ननज भरू दयुामा।।2।।

फादरों से बफछुड कय फूॊद जैसे धयती ऩय आती है तो धूर भें घरुशभर कय कीचड कहराती है। उसी प्रकाय सयुनत कभव औय भामा भें शभरकय जीि हो गई है औय अऩना ननजज भरू स्िरूऩ छुऩा चुकी है।

चौ0- हहयण्मगयब अव्मक्त प्राकृनत । जफ रधग ऩाय न जावहहॊ सयुनत।।

ननजगहृ कब ुजाइ नहहॊ ऩावा । तफ राधग सो Sहभ ्कहह सकुचावा।।3।।

जफ तक सयुनत दहयण्मगबव रूऩी अव्मतत प्रकृनत को ऩाय नह ॊ कय रेती तफ तक अऩना ननज देस कबी जाकय प्रातत नह कयती औय तफ तक ह सो Sहभ ्सोSहभ ्कहती हुई सकुचाती है।

चौ0- स्जमभ कोउ नऩृसतु कायागाये । हौं याजकुॊ वय ननअथप उच्चाये।।

ऩीसत चस्क्क नऩृसतु को जानन । त्मुॉ सयुतगनत रखहहॊ पवऻानन।।4।।

जैसे कक कोई याजा का फेटा कायागाय भें व्मथव ह कहता है कक भैं याजकुभाय हूॊ बरा जो िहाॊ चतकी चरा यहा है उसे याजा का ऩतु्र कौन जानेगा ? इसी प्रकाय तत्िदिी जन सयुनत की अिस्था को देिा कयत ेहैं।

दो0- आनाभी धाभ रधग मात्रा ऩहुॉचत बफयरे कोम।

कहत “होयाभदेव” भोहह सहज सरुब बई सोम।।296।।

अनाभी धाभ तक की मात्रा को वियरे ह सॊत ऩहुॉचत ेहै। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक िह भझुे सहज ह सरुब हो गई।

चौ0- हहट प्रसॊग तफ वदऊ बवानी । कयहु नाथ अफ सोइ फखानी।।

ऩाॉच अभी अरू सयुनत साता । खौरहू बेद हे जग सखु दाता।।1।।

तबी प्रसॊग से हटकय बिानी फोर कक हे स्िाभी ! हे जग को सिु देने िारे प्रब ुअफ िह फिान कयके ऩाॊच अभी (अभतृ) औय सात सयुनतमों का बेद िोर दो।

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चौ0- फोरे भहादेव हयषावा । ऩाॉच अभी की बेद सनुावा।।

फीज भाहीॊ तरू आशा जैसे । भानव भें भहाभानव तसैे।।2।।

तफ भहादेि फोरे औय प्रसन्न होकय ऩाॉचों अभी का बेद सनुाने रगे कक फीज भें िृऺ होने की जजस प्रकाय से एक सम्बािना है उसी प्रकाय भानि भें भहाभानि होने की सम्बािना है।

चौ0- सयुत स्वमॊ ही अभी स्वरूऩा । जे नहहॊ जानन ऩयहहॊ बवकूऩा।।

जे सत्मसाय स्वाॊसा सम्हायी । आहद ऩायस अभी उजायी।।3।।

मह सयुत (आत्भतत्ि) स्िमॊ ह अभतृ स्िरूऩ है जो ऐसा नह ॊ जानत ेिे बिकूऩ भें धगयत ेहै औय जो व्मजतत साॉसो के सत्मसाय की सम्बार कयत ेहैं िे आदद ऩायस अभी को उजागय कय रेत ेहैं।

चौ0- ऩायस ऩशप रोह कॊ चन जैसे । ऩायस अभी सयुत ब्रह्भ तसेै।।

अजय अभी जफ सयुनत न्हावे । आवागभन की पाॊस नसावे।।4।।

जैसे ऩायसभणी रोहे को स्ऩिव कयके सोना फना देती है उसी प्रकाय ऩायस अभतृ से सयुनत ब्रह्भ हो जाती है। औय सयुनत जफ अजय अभतृ भें नहाती है तो आिागभन की पाॊस ह नष्ट हो जाती है।

चौ0- अदर अभी स्वाॊस प्रकासा । अभी अभान प्रगट सफुासा।।

अधय अभी अन्तसऩयु धाया । जास ुचेतन्म देह व्मौऩाया।।5।।

अदर अभतृ स्िासों को प्रकाशित कयता है। औय सफुास को अभान अभतृ प्रगट कयता है। औय अधय अभी (सोभतार) ह अॊत्कयण की धाया है जजससे चेतन्मता देह का व्मौऩाय चरता है।

दो0- ऩाॉच अभी त ेऩाॊच ब्रह्भ ऩॊच तत्व धचदकाम।

रोक ऩसाय सषृ्टी धथनत बफयरे अथप रगाम।।297।।

ऩाॊचो अभतृ ऩाॊच ब्रह्भ औय ऩाॊच तत्ि चेतन्मता ऩात ेहै। जजससे जग यचना प्रसाय औय सषृ्ट की जस्थनत का बफयरे ह अथव रगात ेहैं।

दो0- ऩॉच अभी से देह प्रगट ताभॊह सयुनत नेह।

सात सरूऩ सयुनत बई जानन जे खौस्ज गेह।।298।।

ऩाॊचो अभी से देह प्रकट हुई है जजसभें सयुनत का नेह जागा है औय सयुनत सात रूऩों भें प्रकट हुई है। जो अऩनी देह की िौज कयता है िह इसको जानता है।

चौ0- सात सयुनत के जावइ ऩाया । षोडस सॊख उॊच मसयजनहाया।।

कामा साॉस साॉस भें सायन । साय शब्द की कयहु पवचायन।।1।।

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सातों सयुनत के ऩाय जाकय सोरह सॊि ऊऩय शसयजनहाय ऩयभेश्िय है। कामा भें साॉस साॉस भें साय तत्ि है उसी साय िब्द का विचाय कयो।

चौ0- जीव अहभ सफ खेर यचाई । गरु दास कोउ बेद रखाई।।

आगभ ननगभ अगवुा चीन्ही । भोहे जग भामा फस कीन्ही।।2।।

जीि के अहॊकाय ने ह मह सफ िेर यचामा है जजसका बेद गरुु बतत कोई देि ऩाता है। भामा ने िेद िास्त्रों को अगआु कयके साये जगत को भोह शरमा है औय िि भें कय शरमा है।

चौ0- ननयाकाय आकाय धरय कारा । अनन्त कार नाभ जग जारा।।

अॊड पूटी चौदस बइ बागा । चौदस रूऩ कार तफ जागा।।3।।

कार ने ननयाकाय साकाय रूऩ धायण कय शरमे है जगत जार भें कार के अनन्त नाभ हैं। जफ अॊडा पूटा था तफ चौदह बाग बफिय गमे थे इसशरमे चौदह रूऩों भें कार जागा हुआ है।

चौ0- सयुत एक जफ जाभन रागा । फहटॊ स्वमॊ सात करय बागा।।

सातों सयुत सफहहॊ कय भरूा । नतन भाहहॊ अरम ऩयरम पूरा।।4।।

सयुनत बी एक थी इसे जफ भामा का जाभन रगा सो सात बागों भें फॊट गई। मे सातो सयुत ह सफका भरू है इनभें ह अरम (सषृ्ट ) ऩयरम (विनास) परत ेपूरत ेहैं।

दो0- सॊकषपण ऩयामोगभामा शब्द ब्रह्भ नायामण।

भहापवष्णु मे ऩाॊच ब्रह्भ सषृ्टीकार ऩयामण।।299।।

सॊकषवण - ऩयामोगभामा - िब्द ब्रह्भ नायामण औय भहाविष्णु मे ऩाॊच ब्रह्भ कार सषृ्ट ऩयामण है।

चौ0- प्रथभ आद्मा ऩया मोगभामा । दसूय कायण रूऩ ईच्छामा।।

दोनन कायन सभस्ष्ट जीवा । फने सॊसायी काभा कीवा।।1।।

ऩहर आद्मा ऩयामोग भामा औय कायण रूऩ दसूय ईच्छा इन दोंनों के कायण मह सभजष्ट जीि काभना कयने से व्मजष्ट (सॊसाय ) फना हुआ है।

चौ0- नतन्ही त ेऩाॊचों ब्रह्भ यचामें । यभे याभ करय गोऩ इच्छामें।।

हहयण्म गबप सभस्ष्ट फासा । प्रगटऊ सो Sहॉ ताकय साॉसा।।2।।

इन्ह से ऩाॊचों ब्रह्भ फने हैं यभत ेयाभ ने इन ईच्छाओॊ को गतुत कय ददमा है। सभजष्ट भें फसे हुिे दहयण्म गबव की साॊस से सोहॉ उत्ऩन्न हुआ।

चौ0- अष्ट अॊश अणणभाहदक याचे । जाकय फॊधे जीव सफ नाचे।।

सयुत एक फाॊटी सप्त बागा । सकर जगत यधचउ करय यागा।।3।।

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उससे आठ अॊिो भें अखणभादद शसवद्धमाॊ यचाई जजनके जार भें सफ जीिों को नचामा गमा है। एक सयुनत के सात बाग कय ददमे जजससे साया सॊसाय यचकय उससे याग (भोह) फना ददमा है।

चौ0- तीन देवन की भोहया कीन्ही । आद्मा चौयासी जूनन यच रीन्ही।।

जफ बई यचना सफ ुसॊसाया । चौदस मभ कय ऩहया डाया।।4।।

तीनों देिता (ब्रह्भा, विष्णु औय भहेि) को भोहया फनाकय मोगभामा ने चौयासी राि मौननमाॉ यच र । औय जफ बि यचना ऩणूव हो गई तो क्रभि् चौदह मभों का ऩहया (ननगयानी के शरमे) रगा ददमा।

दो0- इक से सात सयुनत बई मह आद्मा का खेर।

“होयाभदेव” कायण एहह जीव ब्रह्भ नहीॊ भेर।।301।। एक से सात सयुनत हो गई। मह आद्मा (मोगभामा) का िेर था। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक इसी कायण से जीि औय ब्रह्भ का भेर शभट गमा है।

चौ0- ऻानसागय तफ फोरे फानी । कक सप्त सयुनत कयहु फखानी।।

भैं “होयाभदेव” उच्चायी । इक इक बेद कहूॊ हहतकायी।।1।। तफ श्री ऻानसागय जी फोरे कक अफ सात सयुनतमों का िणवन कयो। तफ भझु होयाभदेि ने कहा कक भैं एक एक का दहतकाय बेद कहता हूॉ।

चौ0- फोरे मशव अफ सनुो बवानी । सयुत ब्रह्भ एक रूऩ सभानी।।

दसूय सयुनत धाय जगाई । आद्मा रूऩ कमर जार सभाई।।2।।

इस प्रकाय श्री शिि जी फोरे कक अफ हे बिानी सनुो ! सयुनत औय ब्रह्भ एक ह स्िरूऩ भें सभात ेहैं कपय बी दसूय धाया सयुनत की जागतृ की गई जो कार चक्र भें आद्मा रूऩ (मोगभामा रूऩ) भें सभाई हुई है।

चौ0- ज्मोनतशब्द नतउ दोउ प्रकाया । साधन गभन भोऺ कय द्वाया।।

धचत्तभन भनत अहभ अन्म चायी । सयुत एक सप्त रूऩ ऩसायी।।3।।

तीसय धाय ज्मोनत औय िब्द दो प्रकाय की है जो भोऺ द्िाय जाने का साधन है औय अन्म चाय धचत्त भन फवुद्ध औय अहॊकाय धायाऐॊ हैं। इस प्रकाय एक सयुनतधाय की सात धायाओॊ के रूऩ भें प्रसाय हुआ है।

चौ0- सचखॊड बेद सयुत जे जानी । सो मह अभयसाय ऩहहचानी।।

बफन ुतत्वदयसीॊ गरु दमारा । ऩढे सनेु नहहॊ कोई ननहारा।।4।।

जो सयुतें सचिॊड का बेद जानती है िे ह मह अभयतत्ि ऩहचान ऩाती है। बफना तत्िदिी दमार सदगरुु के कोई इसे ऩढसनु कय ननहार नह हो जाता।

दो0- फीनत फहु पवबावयी कयहु मशवा पवश्राभ।

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शषे फचन कर यात्री कहहहौं सत्म शचुाभ।।302।।

हे शििा ! अफ फहुत यात्री फीत चुकी है अफ विश्राभ कय रो। कर याबत्र भें िषे ऩािन सत्म फचन कहुॉगा।

इनत श्रीभद् अभयकथा (सयुत वेद) श्री मशव मशवा सम्फादे ऩॊचभ ऩडाव ्

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।। श्रीभद् अभयकथा भहाकाव्म ।।

(सयुत िेद) (श्री शिि ऩिवती सम्फाद)

चतथुव िण्ड

अभतृ विन्द ऩदद

22 – कार ऩय पवजम

दो0- फोरी मशवा कहहु नाथ कारहह पवजम उऩाम।

“होयाभदेव” स्जहह साधधके जीव भोऺ ऩद ऩाम।।303।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक ऩािवती फोर कक हे नाथ अफ भझु से कार ऩय विजम ऩाने का उऩाम कहो। जजसके साधने से जीि ऩयभ भोऺ ऩद प्रातत कय रेत ेहैं।

चौ0- जगद चयाचय कारहहॊ ग्रासा । बॊमक कयार गगन अपऩ नासा।।

सो इक फाय दग्ध तभु कीन्है । तहेह पवननत जीवन ऩनुन दीन्है।।1।।

चयाचय जगत कार का ग्रास है िह बमॊकय औय कयार है। िह आकास का बी विनास कय देता है। उसे आऩने एक फाय दग्ध कय ददमा था ऩयन्त ुउसी की विनती सनुकय आऩने उसे ऩनु् जीिन दे ददमा था।

चौ0- पवनम सनुन तभु बमेउ सॊतोषा । वय अखॊड तभु नतहह तद ऩोषा।।

स्वछॊद सवपत्र तभु पवचयेहौं । तभु सफ देणख न तभु हदसयेहौं।।2।।

तमोंकक उसकी विनती सनुकय आऩ सन्तषु्ट हो गमे औय आऩने उसे अिॊड ियदान दे ददमा था कक कार तभु सिवत्र स्िछॊद विचयण कयोगे औय तभु तो सफको देिोगे ऩयन्त ुतमु्हे कोई नह ॊ देिेगा।

चौ0- कहहु नाथ अस साधन कोई । जास ुपवजम कार ऩइ होई।।

तभु अभय मशयोभणण भहमोगी । ऩयभायथ यत पवयत पवमोगी।।3।।

हे नाथ कोई ऐसा साधन फताओ जजससे कार के ऊऩय विजम प्रातत हो सके। आऩ अभय औय शियोभखण भहामोगी हो औय ऩयभाथव भें र न जग से वियतत औय ियैागी हो।

चौ0- कहहु नाथ मह बेद फझुाई । कयहु कृऩा सॊतन की नाई।।

फाय फाय चॊहह मशव टयकावा । नतम हठ देणख फचन सनुावा।।4।।

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हे स्िाभी मह बेद सभझाकय कहो औय भझु ऩय सॊतो की तयह कृऩा कयो जफकक श्री शिि फाय फाय उसे टारना चाहत ेहे ऩयन्त ुऩजत्न की हठ देि कय अऩना िचन सनुात ेहै कक –

दो0- कार ग्रास चयाचय मशवे केनतक ऩनु्न तऩ धारय।

ध्मान ऩयामन ससुॊत ही कयहहॊ कार फर ऺारय।।304।।

हे शििे ! चयाचय प्राणी कार का ग्रास फने यहत ेहै चाहै कोई ककतनी ह ऩनु्म औय तऩस्मा धायण कय रे। ध्मान के ऩयामण उत्तभ सॊत ह कार की िजतत का नास कयत ेहैं।

दो0- एक मसॊह दस मसॊहनी अजगय घात रगाम।

रऺ आखेटक एक भगृ ढाय न भौत टयाम।।305।।

बरा ! जहाॊ एक शसॊह (भन), दस ियेनी (इजन्रमाॊ) औय अजगय (कार) घात रगामे फठैा हो औय राि शिकाय (विषम िासना) हों िहाॊ अकेरा भगृ रूऩी जीि अथावत (राि िासनाओॊ भें एक जीिात्भा) है तफ कोई ढार रगामे तो बी भतृ्म ुनह ॊ टार जाती।

चौ0- गणु बतूइ ऩयगट सॊसाया । ऩनुन ऩनुन क्रभश् होइ रमकाया।।

जे तत्व जेहह त ेउदबव होवा । नतहह ऩद रमहहॊ रूऩ यॊग खोवा।।1।।

भहाबतूों के गणु ह सॊसाय रूऩ भें प्रगट होत ेहैं औय िे ह क्रभि् फाय फाय रम रूऩ होत ेहै। जो तत्ि जजस बतू से उत्ऩन्न होता है िह अऩना यॊग रूऩ िोकय उसी ऩद भें रम हो जाता है।

चौ0- सष्टभ आतभतत्व सनातन । होहहॊ पवरम ननज भरू ऩयुातन।।

जफ रधग ऩॊचबतू सनुत प सॊगा । होहहॊ न भकु्त तजइ रूऩ यॊगा।।2।।

छठा तत्ि सनातन आत्भा है जो अऩने ऩयुातन भरू स्िरूऩ भें विरम हो जाती है। जफ तक सयुनत के साथ ऩॊचबतू यहत ेहै िह अऩना यॊग रूऩ त्मागकय भतुत नह ॊ होती।

चौ0- ऩॊचतत्व याधच सप्त शयीया । ध्मानस्थ मोगी पऩयथक कीया।।

बफन ुसाधन मोग ध्मान अभ्मासा । होहहॊ न ऩॊचबनूत देह नासा।।3।।

ऩॊचतत्ि ह सात िय यों का ननभावण कयत ेहै जजन्हे ध्मानस्थ मोगी ऩथृक – ऩथृक कय देत ेहै। बफना ध्मान मोग साधना अभ्मास ऩॊचबतूों की देह का नास नह ॊ होता।

चौ0- ऩयथभ शब्द मोग तोहीॊ बाखूॉ । सत्म कहहूॊ गोऩ नहहॊ याखूॉ।।

शब्दधाय चढहहॊ जन जोई । ननश्चम अभय कार जम सोई।।4।।

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भैं तझुको सफसे ऩहरे िब्द मोग कहता हूॉ औय सत्म कहता हूॉ कक कुछ गतुत नह ॊ यिूगाॊ। जो भनषु्म िब्द धाया ऩय चढ जात ेहैं िे अभय हो जात ेहै औय कार ऩय विजम ऩा रेत ेहैं।

दो0- समुोग पवद ुको चाहहमे सथुर सखुासन ऩैंहठ।

प्राण सॊमभ अभ्मास करय आत्भ दयस भन सैंहठ।।306।।

उत्तभ साधक विद्िान को मह चादहमे कक िह उत्तभ स्थान भें सिु आसन ऩय फठै जामे। कपय प्राणों ऩय सॊमभ अभ्मास कये औय आत्भदिवन भें भन को दटकामे।

दो0- ऻानसागय धचत्त दइ सनुो अनत गोऩनीम ऻान।

“होयाभदेव” मशवानी सन जे करय मशव फखान।।307।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक ऻानसागय ! धचत्त रगाकय सनुो ! मह अनत गोऩनीम साय ऻान है जजसको श्री ऩािवती के सभऺ शिि जी फिान कयत ेहैं।

चौ0- फोरे मशव जफ सफ सो जाई । दीऩ फझुाई मोग ुअॊधयाई।।

तजपनी आॊगमुर फॊद करय काना । सनुहु शब्द अनर पुरयकाना।।1।।

शिि जी फोरे कक जफ सफ प्राणी सो जात ेहै तफ द ऩक फझुाकय अॊधेये भें मोग साधना कये। महाॊ तजवनी अॊगरु से दोंनों कानों को फॊद कयके मोगाजग्न से स्पुरयत होने िारे िब्द को सनुना चादहमे।

चौ0- दोउ घहट ननत शब्दब्रह्भ दयसन । जे साधध सो ऩाय भतृ्म ुऩयसन।।

सो स्वछॊद ऩाय भतृ्म ुठाभा । होहहहॊ सभदयसी मसद्धनाभा।।2।।

कपय ननत्म दो घडी िब्द ब्रह्भ का दयसन कयें इस प्रकाय जो साधना कयता है िह भतृ्म ुके स्ऩिव से ऩाय हो जाता है। औय िह भतृ्म ुकेन्र से ऩये स्िछॊद विचयता है। औय सभदिी शसद्ध नाभ िारा हो जाता है।

चौ0- गयजहहॊ सजर भेघ नब जैसे । सनुत शब्द टयै फॊधन तसेै।।

एक हदवस शब्द सकू्ष्भ जागे । अभय होहहॊ जो सनुन अनयुागे।।3।।

जजसप्रकाय जरमतुत फादर आकाि भें गजवत ेहैं उसी तयह िब्द सनुने से बिफॊधन कट जात ेहै इस प्रकाय एक ददन सकू्ष्भ िब्द जागतृ हो जाता है जो उसे सनुने का अनयुागी होता है िह अभय हो जाता है।

चौ0- सनुत शब्द सकू्ष्भ सो होई । इह पवधध सनुन सत्मनाभा कोई।।

नाद शब्द घट दस प्रकाया । नतन्ह के ऩाय नाभ तुॉकाया।।4।।

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िब्द सनुने से िह सकू्ष्भ होता जाता है। इस प्रकाय कोई कोई सत्मनाभ िब्द को सनुता है। नाद िब्द घट बीतय दस प्रकाय का होता है उनके ऩये तुॉकाय नाभ (अभय िब्द) है।

दो0- दसधा नाद भामा यधचत ताऩये शब्द तकुाॉय।

“होयाभ” सॊतामस ुनहीॊ करूॊ कथन पवधधसाय।।308।। दस प्रकाय के नाद तो भामा यधचत है उनके ऩाय तकुाॉय िब्द है। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक उत्तभ सॊत जनों की भझुे आऻा नह ॊ कक भैं विधधित (उस सत्मनाभ का) कथन कय सकूॊ ।

चौ0- पवस्स्भत सबुाव ुफहदऊ बवानी । नाद अनहद प्रब ुकयहु फखानी।।

तफ मशव शब्दनाद सभझुाई । पवधधवत सकर पऩछान कयाई।।1।।

विजस्भत बाि से बिानी फोर कक हे स्िाभी अफ नाद औय अनहद सफका विस्ताय से िणवन कयो। तफ शिि ने िब्द नाद सभझामा औय विधधित साय ऩहचान कयाई।

चौ0- घोष काॊस्म श्रॊग घॊटा फीना । फाॊसरुय दुॊदमुब सॊख भेधाना।।

सफहह ऩाय सत्मनाभ तुॊकाया । ऩावहहॊ बफयर करय मोग अऩाया।।2।।

िे िब्द घोष – कास्म (झाॊझ) – श्रॊग – घॊटा – िीणा – फाॊसरुय – दुॊदशुब – सॊि औय फादर की गजवना है। इन सफके ऩाय तुॊकाय िब्द सत्मनाभ है जजसे मोगाभ्मास कयके कोई बफयरा ह प्रातत कयता है।

चौ0- आतभशपुद्ध घोष उगावा । योग पवनास ुभन वश्मरावा।।

झीॊगय करय झनकाय की नाई । सहस्त्र कभर धुनन ऩयहहॊ सनुाई।।3।।

घोष िब्द से आत्भ िवुद्ध होती है। योगों का नास तथा भन िशिबतू होता है। झीॊगय की झनकाय की तयह सहस्त्र कॊ िर दर भें धुनन सनुाई ऩडती है।

चौ0- झाॊझय धुनन सयुत गनत धथयावा । होहहॊ वश्म पवषम ग्रह बतूावा।।

श्रॊगा धुनन भायन उधचटाई । सनुन सनुन साधु साभयथ ऩाई।।4।।

झाॊझ की आिाज से सयुनत की गनत जस्थय होती है। तफ उसके विषम ग्रह औय बतू ऩीिाचादद िश्म भें हो जात ेहैं। श्रॊगे की ध्िनन भायन उच्चाटन कयने भें साधक उसे सनु सनु कय सभथव हो जाता है।

दो0- अभ्मासी सन फाढहहॊ ननत बगनत प्रेभ पवयाग।

घॊटा नाद जफ सनुहहॊ सॊत ईष्ट मभरन अनयुाग।।309।।

जफ सॊत ईष्ट शभरन के पे्रभ भें घॊटा नाद सनुता है तो उस अभ्मासी के सम्भिु ननत्म बगनत पे्रभ औय ियैाग्म फढता जाता है।

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चौ0- सहस्त्र कॊ वर सों मह धुनन आवा । जनन ननकट कोऊ भॊहदय बावा।।

घॊटा नाद सयुगण सम्भोहा । मऺ सतुा फहु मसपद्धन ऩोहा।।1।।

मह ध्िनन सहस्त्रदर कॊ िर से आती है भानो ननकट ह कोई भॊददय हो। घॊटा नाद से देितागण सम्भोदहत हो जात ेहै औय मऺ कन्माऐॊ फहुत सी शसवद्धमाॉ ऩयोस देती है।

चौ0- सॊख धुनन सनुन साधक हयषाहीॊ । सूॊघइ सगुन्ध सॊत भस्ताहीॊ।।

अनत भनोहय बत्रकुहट धाभा । झयहहॊ अभीयस तार ुभकुाभा।।2।।

सॊि की धुनन को सनुकय साधक हवषवत हो जाता है। तफ सॊत भस्त होकय उत्तभ गॊधों को सूॊघता है। बत्रकुदट धाभ अनत भनोहय है जहाॊ से तार ुस्थान भें अभतृ टऩकता है।

चौ0- शॊख धुनन करय अनसुॊधाना । स्वेच्छा रूऩ धारय फर जाना।।

वीणा मसताय धुनन ऩनुन आई । सहुानन छटा कथ्मों नहहॊ जाई।।3।।

सॊि की ध्िनन का अनसुॊधान कयने से स्िेच्छा से रूऩ धायण कयने की िजतत जानी जाती है। कपय िीणा शसताय की ध्िनन आती है। िहाॊ की सहुानी छटा कहने भें नह ॊ आती।

चौ0- तार आवाजू दसभ द्वाया । सनुहहॊ सतॊ गरु दमा आधाया।।

दुॊदमुब नाद धचन्तन जे राई । सो सफ भतृ्म ुकष्ट नसाई।।4।।

तार की ध्िनन दसभ द्िाय भें है जजसे सॊत गरुु कृऩा के आधाय ऩय सनुत ेहै। जो भानि दुॊदशुब नाद का धचॊतन कयता है िह भतृ्म ुका सभस्त कष्ट नष्ट कय रेता है।

चौ0- सहज सभाधध मसद्ध जफ जानी । पवश्वहह ऻान सकर प्रगटानी।।

सहज सरुब नहहॊ मह पवऻाना । अनत पप्रम करय तोंही फखाना।।5।।

जफ सहज सभाधध शसद्ध हुई जानी जाती है तफ ब्रह्भाण्ड का सभस्त ऻान उदम होने रगता है। मह विऻान सहज सरुब नह है भैं तझुे अनत वप्रम भानकय िणवन कय यहा हूॉ।

दो0- दसभ रोकन से आवहहॊ फाॊसरुय की आवाज।

“होयाभ” सायबेहद कोउ सनुत रखुत सफ ुसाज।।310।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक दसभ द्िाय भें जस्थत रोंकों से फाॊसरुय की आिाज आती है। कोई बफयरा ह इसके बेद साय साज को सनुता औय देिता है।

चौ0- नाद नपीयी सनुत जे कोई । सयु सभ शस्क्त ऩावत सोई।।

सनुन नाद बा सयर शयीया । वेधग उयहहॊ बफहॊग सभ धीया।।1।।

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नपीय नाद को जो कोई सनुता है िह देिताओॊ के सभान िजतत प्रातत कयता है। नाद ब्रह्भ को सनुकय िय य सयर होता है औय िह तत्ििेता बफहॊग के सभान उडने रगता है।

चौ0- भेघ शब्द प्रगट स्जन्ह भाहीॊ । योग पवऩद ननकट नहहॊ आहीॊ।।

भेघ गयज सतरोक सभावा । सनुत सदासद बाव ननयावा।।2।।

भेघों जैसा िब्द जजनभें प्रगट हो जाता है उसके योग औय विऩजत्त ननकट नह ॊ आती। आगे भेघों की गजवना सतरोक भें सभाई हुई है। जजसे सनुने से सत्म असत्म बािों की ननयाई हो जाती है।

चौ0- शब्द नाद सनुहु दाॊम काना । उध्र्व गनत सयुनत सफ ऩाना।।

फाभा श्रोत्र नाद सनेु जोई । नयक रोक प्रराऩ पऩयोई।।3।

नाद िब्द दामें कान से सनुने चादहमे। उनको सयुनत उध्र्िव गभन कयने ऩय प्रातत कयती है। औय जो भानि नाद ध्िनन को फाॊमे कान से सनुता है िह नयक रोक के प्रराऩों भें फॊध जाता है।

चौ0- सनुन सनुन धुनन ब्रह्भाण्ड जतावे । नादातीत ऩयभधाभ सभावे।।

ऩणूप बेद कक मरखुॉ भन चाहीॊ । सॊत भत ेकी आमस ुनाहीॊ।।4।।

िब्द ध्िननमों को सनुत ेसनुत ेब्रह्भाण्ड को त्माग देिे। औय नाद से ऩये ऩयभधाभ भे सभा जािे। सभस्त बेद जजसे भन फताना तो चाहता है ऩयन्त ुकैसे शरिूॊ ? सॊत भत की आऻा नह ॊ है।

दो0- अनहद अपऩ पीकक सभझ गय नहहॊ दृष्म रखाम।

दॊगय ढौय दरूयके सनुन दॊगय न देणखउ जाम।।311।।

मदद (नाद ध्िनन के साथ) िहाॊ का साऺात्काय नह ॊ होता है तो अनहद को बी पीका सभझो तमोंकक दॊगर के ढोर की आिाज दयू से सनुने से दॊगर तो जाकय नह ॊ देिा जाता।

चौ0- अफ तभु सनुो मशवे गहु्म फाता । सहज सभाधध सतनाभ उदाता।।

सोई शब्द तुॉकाय हौं बाखी । अभय सोइ स्जन्ह मह यस चाखी।।1।।

हे शििे ! अफ तभु गहु्म फात सनुो ! सहज सभाधध ह सत्मनाभ िब्द को उत्ऩन्न कयती है। भैंने उसी िब्द को तुॊकाय कहा है। जजसे जो चिता है िह अभय हो जात ेहैं। (तुॊकाय नाभ यिना जैसे ककसी का नाभ सत्म प्रकाि यि शरमा हो। मह भात्र ध्मान सभाधध की ऩयाकाष्ठा ऩय सनुा जाता है। िह सत्मनाभ है जो अभय िब्द कहराता है मह कहने जऩने िारा िब्द भात्र घट भें प्रगट ककमा जाता है। मह नाद अनहद से ऩये है)।

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चौ0- जो मह ऻान शब्द तुॉकाया । जानहहॊ सकर बेद पवधध साया।।

कयभ कार ननकट नहहॊ आवे । तात ेपप्रमानत मशष्म सन गावे।।2।।

जो भानि अभय िब्द (तुॊकाय िब्द) की ऻान को विधध अनसुाय (तत्ि से) उसका बेद जान रेता है उसके ननकट कभव औय कार नह ॊ आत ेइसशरमे इसका विऻान अनत वप्रम शिष्म के सम्भिु कहना चादहमे।

चौ0- अरभ्म ऩदायथ जग कोउ नाहीॊ । बफना बेद जीव बयभाहीॊ।।

तुॉकाय शब्द प्रगहट स्जन्ह सॊता । सो नय रूऩ छुऩई बगवॊता।।3।।

सॊसाय भें कोई ऩदाथव असाध्म नह है। ऩयन्त ुबेद न होने के कायण जीि बयभात ेहै। जजन सॊतों ने िह अभय िब्द प्रगट हो जाता है उन्हे ऐसा भानो कक जैसे भनषु्म रूऩ भें िह स्िमॊ बगिान छुऩा हुआ हो।

चौ0- सो शब्द फीज न भॊत्र बवानी । नहहॊ ओहॊ सोहॊ बफयर सॊत जानी।।

सो सत्मनाभ अभय जगदीसा । जे ऩामऊ बवचक्र टयीसा।।4।।

हे बिानी िह तुॉकाय िब्द न फीज है ; न भॊत्र है ; न ओहॊ है ; न सोहॊ है ; उसे बफयरे ह सॊत जानत ेहै िह जगद श्िय का अभय सत्मनाभ है। उसे जो प्रातत कय रेता है उसका बि चक्र ह सभातत हो जाता है।

चौ0- अभय शब्द सफ कहहहॊ बवानी । सो शब्द बफयर बफदेह पऩछानी।।

जीभ्मा ऩकय सो आवत नाहीॊ । ननयख ऩयख अनबुव भॊह आहीॊ।।5।।

औय हे बिानी ! अभय िब्द को सफ ह कहत ेहैं जफकक उस िब्द की कोई बफयरा ह ऩहचान कयता है। िह िब्द जीभ्मा की ऩकड भें नह ॊ आता िह तो ननयि ऩयि से अनबुि भें आता है।

दो0- “होयाभदेव” मह अभय शब्द जे पवधध प्रगट होम। सॊतभता आमस ुनहीॊ मशवा सनेु बफन ुसोम।।312।।

श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक मह अभयिब्द जजस प्रकाय से प्रगट होता है उसे सॊतभत की आऻा कहने की नह है उसे बफना सनेु ह ऩािवती बी सो गई।

दो0- सतरोक ऩाय नाद गपु्त अरख अगभ शचुाभ।

ताऩय सीभ अनामभऩयु शब्द यहहत “होयाभ”।।313।।

श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक सतरोक से ऩये ऩािन अरि अगभ रोंकों भें नाद रतुत हो जाता है। उसके ऩये सीभाऩाय अनाभी धाभ िब्द यदहत है।

चौ0- इकान्म तत्व की करूॊ फखाना । जास ुसयुत ननज देस ऩमाना।।

जास ुफर ऺम सप्त शयीया । नतन्हहहॊ सष्टदस चक्र नछदीया।।1।।

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भैं एक औय तत्िका िणवन कयता हूॉ जजससे सयुनत अऩने देस को प्रमाण (चर जाती है) कयती है। औय जजसकी िजतत से सातों िय य नष्ट हो जात ेहैं औय उनभें जस्थत सोरह चक्रो का छेदन हो जात ेहैं।

चौ0- गरुकृऩा मभ पाॊस नसावाॊ । कयहहॊ सयुत ननजदेस ऩठावाॊ।।

भायग इह प्रगट सफ नादा । खुरहहॊ अष्ट दस द्वाय सौगादा।।2।।

गरुु कृऩा मभ चक्रों का नास कय देती है औय सयुनत की अऩने देस भें चढाई कय देती है। भागव भें मे सफ नाद प्रगट होत ेजात ेहैं। औय अठायह द्िायों की सौगात िुर जाती है।

चौ0- अनतगोऩ नतन्ह बेद सनुावाॊ । सन कुऩात्र कदा नहहॊ दावाॊ।।

गहु्मानतसाय मशवे तन भाहीॊ । बफना बेद सॊत वॊधचत जाहीॊ।।3।।

भैं अनत गोऩनीम उनका बेद सनुाता हूॉ जजसे भैं कुऩात्र के सभऺ कबी प्रदान नह ॊ कयता। हे शििे ! िह गोऩनीम यहस्म देह भें है जजसका ऻान न होने के कायण सॊत िॊधचत ह चरे जात ेहैं।

चौ0- नामबऺेत्र कामाऩयु भाहीॊ । गपु्त ज्मतैखम्फ साय दयुाहीॊ।।

तहॉ ऩद्म बत्रकोणाकायी । जाऩय सोवत नाधगन कायी।।4।।

नाशबऩदभ कामा भें हैं ; जहाॊ गतुत ज्मेतिम्फ का यहस्म छुऩा हुआ है। िहाॊ बत्रकोणाकाय ऩद्म है जजसके ऊऩय एक कार नाधगन (कुन्डर नन िजतत) सो यह है।

दो0- भरू प्रकृनत आद्मा मह सफ सायन की साय।

सोवत आवागभन पॊ द जागत भोऺ दाताय।।314।।

मह आद्मा िजतत ह भरू प्रकृनत है जो सफ यहस्मों के यहस्म से ऩणूव है। इसका सो जाना आिागभन (बि प्रऩॊच) का पॊ दा है औय जागने ऩय ऩयभ भोऺ देने िार है।

चौ0- सहदमन सो ननज बफर सों ननकरय । ऩदभ मरऩहट नामब से कपसरय।।

कमसऊ द्व ैवाम ुस्रोतन बायी । जनभ जनभ सफ जीव ुदखुायी।।1।।

मह सददमों से अऩने बफर (भरू ब्रह्भ ज्मोनत) से ननकर कय नाबी भें कपसर कय ऩदभ ऩय शरऩदट ऩडी है। औय दो िाम ुके स्रोतों से जकडी हुई है। इसशरमे सफ जीि दिुी है।

चौ0- तीसय स्रोत पवशार खजाना । जहॉ नाधगन को भरू हठकाना।।

सधुध बफसारय सयुत अऻानी । बफर उखारय बेद नहहॊ जानी।।2।।

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इसका तीसया स्रोत वििार िजाना है जहाॉ कुन्डर नन नाधगन का भरू दठकाना है। अऩनी सधुध बरूकय मह सयुनत अऻानी है तमोकक बफर को उिाडने का मह बेद नह ॊ जानती।

चौ0- बफना बेद नहहॊ जगे जगाई । जागत बान ूज्मोत रजाई।।

गॊग जभनुा भध्म तीसय नायी । जागत चहढमहहॊ उरटी धायी।।3।।

औय बफना बेद मह जगाने से बी नह ॊ जागती औय मदद जाग जामे तो समूव बी रजज्जत हो जाता है। गॊगा औय मभनुा (इॊडा वऩ ॊगरा) के फीच तीसय नाडी (सषु्भना) है। जागकय िह उरट धाया भें फहकय उसभें चढती है।

चौ0- स्जमभ स्जमभ चढहहॊ सषुभना भाहीॊ । ऩाछमर सफ बवदयुग सखुाहीॊ।।

फॊधे फाॊध अरू तारे तौया । सयुत उठाम जाम ननज ऩौया।।4।।

िह सषु्भना भें जैसे जैसे चढती है वऩछरे साये चक्रों को सिुाती जाती है। उनभें रगे साये फाॊध औय तारों को तोडती जाती है तथा सयुनत को उठा कय अऩने ननिास गहृ को चर जाती है।

दो0- ऩयभतत्व शदु्ध आत्भा स्जहह जानन न कछु शषे।

ऺेत्र आइ जीवा बई छूटऊ भरू पवशषे।।315।।

ऩयभतत्ि मह िदु्धात्भा जजसे जान रेने ऩय कुछ बी जानने मोग िषे नह ॊ यह जाता। मह धचत्त भे आकय जीि फन गई है। औय इसका वििषे भरू स्िरूऩ इससे छूट चुका है।

चौ0- पवषमन मबन्न पवदेही होवा । अन्तयघट आत्भ ईच्छा ऩोवा।।

आतभबाव देह धथत जोई । ऩयख ननजातभ बवभकु्त होई।।1।।

इसशरमे विषमों से अरग विदेह होकय अन्तघवट भें आत्भ प्राजतत की ईच्छा कयनी चादहमे। जो अव्मतत बाि से देह भें जस्थत है उस अऩनी आत्भा की ऩयि कयके साधक बिसागय से भतुत हो जाता है।

चौ0- ऺेत्र ऺेत्रऻ ऩथृक ननहाया । सो जन भकुुत सकर प्रकाया।।

नसैगप धथनत गणुानबुोगा । यहहहॊ अरेऩ अकताप अमोगा।।2।।

औय जो ऺेत्र ऺेत्रऻ (जड औय चेतन्म) को शबन्न शबन्न देिता है िह भानि सबी प्रकाय से भतुत है प्रकृनत भें जस्थत गणुों को बोगकय बी िह ननरेऩ अकताव औय अरग यहता है।

चौ0- अफ तोहीॊ गहु्मनत मोग फझुावाॊ । जास ुभनुनजन सयुत रखावाॊ।।

सत्म रोक से इक सत्मधाया । कारदेस फहह दोऊ प्रकाया।।3।।

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अफ भ ैतझुे गहु्म मोग सभझाता हूॉ जजससे भनुन जन आत्भ साऺात्काय कयत ेहैं। सत्मरोक से उठकय एक सत्मधचद धाया दो प्रकाय से कार देस भें फहती है।

चौ0- ननयॊजन अरू आध्मा सोई । ऩरुष प्रकृनत रूऩ सभोई।।

स्वबाव वासना कभापनसुाया । मभमर दोऊ यधच कार ऩसाया।।4।।

कार ननयॊजन औय िह आद्मािजतत ऩरुुष औय प्रकृनत स्िरूऩा फने हुिे है जो स्िबाि िासना औय कभव अनसुाय दोंनों शभरकय कार जगत की यचना कयत ेहै।

दो0- कार ननयॊजन भामा प्रऩॊच नहहॊ छेदन बफन ुप्रस्थान।

“होयाभदेव” बेदन करय सयुत भकु्त तद जान।।316।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक कार ननयॊजन औय भामा का जग प्रऩॊच का छेदन ककमे बफना महाॊ से प्रस्थान नह होता औय जफ बेदन हो जाता है तो आत्भा को तफ भतुत सभझो।

चौ0- भरू सत्ता सयुनतन मत कौई । कायण ननज गहेृ बफभणुख होई।।

सयुत चेतना होहहॊ कभ जैसे । अधौतय जोनन जावई तसेै।।1।।

सयुनतमों (जीिात्भाओॊ) ने अऩनी भरू सत्ता महाॉ ऩय िो द है। इसी कायण िे अऩने ननजगहृ से विभिु हो गई है। जैसे जैसे सयुती की चेतना कभ होती जाती है िसैे िसैे नीच से नीच मोननमों भें धगयती जाती है।

चौ0- तात ेउभा गहहु धचद धाया । कयहु गभन सचखॊड पवस्ताया।।

सफ सयुनतन को एक पऩऩासा । को पवधध होई ननजगहृ फासा।।2।।

इसशरमे उभा ! चेतन्मधाया को गहृण कयना चादहमे। औय सचिॊड धाभ को गभन कयना चादहमे। कारदेस भें सबी रूहों को एक ह तमास यहती है कक ककसी प्रकाय ननजगहृ भें फासा हो जामे।

चौ0- भामा ऻान सयुत बटकाई । कार बाट सतधाय दयुाई।।

भन के यचे सभुान फयुाई । स्जहहके ऩाश जीव उरूझाई।।3।।

ऩयन्त ुभामा का ऻान सयुनत को बटका देता है औय कार का दरार भन सत्मधाया को छुऩामे यिता है। भन के फनामे हुिे सम्भान औय मि है जजनके ऩाि भें जीिों को उरझा ददमा गमा है।

चौ0- जे हदन ुसयुनत भन को खावे । अभय रोक की भायग ऩावे।।

भन खाई अरू अहभ नसाई । ननफॊध सयुत भोऺ ऩद ऩाई।।4।।

जजस ददन सयुनत भन को ननगर जामेगी उसी ददन अभय रोक का यास्ता ऩा जामेगी। भन को ननगरकय तथा अहॊकाय को भाय कय फॊधन यदहत सयुनत भोऺ ऩद प्रातत कय रेती है।

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दो0- सयुत ननयत की डौरय चहढ करय सयुनत शब्द अभ्मास।।

पौरय सयुॊग कऩार की कयहहॊ अभयऩयु फास।।317।।

सयुत को (नाद सनुना) ननयत (दृष्ट मोग) की डौय ऩय चढकय सनुत व िब्द मोगाभ्मास कयके अऩनी देह के कऩार की सयुॊग को पौड कय अभयरोक भें फासा कयना चादहमे।

चौ0- जे सत्मऻान बेद ऩरयहयहहॊ । मऻ तऩ जाऩ तीयथ श्रभ कयहहॊ।।

अग्रे गभन न कयहहॊ पवचाया । कार देस ऩरयश्रभ सॊबाया।।1।।

जो इस सत्म के बेद को छोड कय मऻ तऩ जऩ तीथावदद का ह श्रभ कयत ेहैं औय इनसे आगे को ऩरयश्रभ कयने का विचाय नह ॊ कयत ेिे कारदेस का ह ऩरयश्रभ सम्बारत ेहैं।

चौ0- सफ बफधध ऩरुष अकार बफहाई । चाहहहॊ सखु करय आन उऩाई।।

सो जन बफन ुननजातभ ऻाना । सचखॊड धाभ कफहु नहहॊ ऩाना।।2।।

औय सफ तयह अकार ऩरुुष को बरूकय अन्म उऩाम से सिु चाहत ेहैं िे भानि बफना ननजात्भ ऻान सचिॊड धाभ को कबी बी प्रातत नह ॊ कय सकत।े

चौ0- अनन्त ब्रह्भाण्ड अनन्त यपव भॊडर । सफहह फेर एक ब्रह्भ डॉठर।।

एक कोण सचखॊड बफसतायी । फसई अगभ अगोचय सायी।।3।।

अनन्त ब्रह्भाण्डजों भें अनन्त समूव भॊडर है। सफकी फेरों का एक ह ब्रह्भ रूऩी डॊठर होता है। सचिॊड के एक कोने का विस्ताय इतना है कक सभस्त अगभ अगोचय उसभें फस जात ेहैं।

चौ0- अगभ अगोचय फयनन न जाई । ओय छौय कहुॉ कोऊ नहहॊ ऩाई।।

बफन ुतत्व दयसी गरु शयणाई । मत कोउ सयुत छूहट नहहॊ जाई।।4।।

अगभ अगोचय का िणवन कयने भें नदहॊ आता। उनको ओय छोय कह ॊ नह ॊ शभरता। बफना तत्िदयसी गरुु की ियण ऩामे कोई सयुत इस कारदेस से छूट कय नह ॊ जा सकती।

दो0- वक्ता ऻानी सदगरु मसष न ऩहुॉचत कोम।

ऻान भामा प्रऩॊच बफन ुबेहद गभन न होम।।318।।

ितता ऻानी सद्गरुु का कोई शिष्म िहाॊ नह ॊ ऩहुॊच सकता तमोंकक ऻान बी भामा का छर है जजसका बेदन ककमे बफना मात्रा नह ॊ हो सकती।

चौ0- जोगी ऻानी उखायहहॊ घासा । सयुत ऩायणख भेहट पऩऩासा।।

काभ क्रोध भोह तीय चराई । भामा कार जीव बयभाई।।1।।

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मोगी ऻानी बी घास ह िोदत ेहैं जफकक सयुत वििषेऻ अऩनी तमास शभटा ह रेता है। मह कार औय भामा सदा काभ क्रोध औय भोह का फाण चराकय जीिों को सदा बयभामे यित ेहैं।

चौ0- पऩ ॊड तस्ज चरइ अॊडऩयु आवा । सो तस्ज ऩाय ब्रह्भाण्ड रखावा।।

ऩाय ब्रह्भाण्ड सचखॊड दमारा । जे तहॉ जाइ ऩीफ अमभ प्मारा।।2।।

इसशरमे वऩ ॊड को त्मागकय अॊड देसों भें आना चादहमे कपय उसे त्माग कय ऩाय ब्रह्भाण्ड को देिना चादहमे। औय ब्रह्भाण्ड के ऩाय सचिॊड दमार है िहाॊ जो जाता है िह अभतृ का तमारा ऩीता है।

चौ0- सप्त याष्र षोडस दगुप बायी । यचना भनहय न्मायी न्मायी।।

दो अरू फीस सनु्न गहुमताई । चौके चारय सयुत भग आई।।3।।

सात याष्र (सात िय य) सोरह दगुव (चक्र) फहुत फड े – फड ेहैं। सफकी यचना न्माय न्माय औय भन भोहक है। फाईस सनु्न गोऩनीमहैं। चाय चौके सयुनत के यास्त ेभें आत ेहैं।

चौ0- भसु्क्तद्वाय दसभ दय ऩाया । आवत दयुग इक त ेअनतकाया।।

छ बत्रकुहट छ हहयण्म अॊडावा । बफयरे पौरय ऩयभऩद ऩावा।।4।।

भजुतत का द्िाय दसभ द्िाय के ऩाय है। जहाॊ एक से फढकय एक दगुव आत ेहैं। छ बत्रकुदट औय छ दहयण्म गबव है कोई बफयर ह इन सफको पौडकय ऩयभऩद ऩय ऩहुॉचता है।

दो0- भायग ऩाॊच सत्रह तीन छ चारय ऩथ शरू।

फहात्तय नार चौफीस कॊ ट ऩाय जाइ गहह भरू।।319।।

भागव भें ऩाॉच विषम विकाय, सत्रह तत्ि, तीन गणु, छ िास्त्र, चाय िेद यास्त ेके िरू हैं। फहात्तय नार औय चौबफस काॊटे आत ेहै जजनके ऩाय जाकय ह ननज भरू आत्भ स्िरूऩ ऩद प्रातत होता है।

दो0- जे पवधध मह यचना कटे मभरे अभीयस ठाभ।

सो सफ बेद फखानऊॊ मशव कहह मशवा सनुाभ।।320।।

जजस प्रकाय मह सफ यचना कट सके औय अभतृ का ऩद शभर सके िह सफ िणवन कयता हूॉ। ऐसा शिि ने बिानी को सनुामा कक-

दो0- दीऩक बीतय बान ूबवानी बान ूबीतय झाॊई।

झाॊई णझरय ऩयछाई पुरय ताके ऩाय बवयाई।।321।।

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हे बिानी ! द ऩक के बीतय समूव ; कपय समूव के बीतय झाॊई है। झाॊई के बी शसभटने से ऩयछाई सी स्पुरयत होती है उसके बी ऩाय सकर विश्ि का स्िाभी अनाभीश्िय है।

चौ0- जे गहु्म बेद पवधध सभझाई । अडॊज सनुन मशवा शमनाई।।

उद्मभशीर सदगरु सयनावा । हदव्म सॊस्काय बफयर सॊत ऩावा।।1।।

जो गतुत बेद औय विधधमाॉ सभझाई गई उन्हे अॊडज (ऩऺी का फच्चा) तो सनु सका औय ऩािवती सोने रगी। ऩरुुषाथविीर सदगरुु की ियण भें ददव्म सॊस्काय िारा कोई बफयरा सॊत इसे प्रातत कयता है।

चौ0- सप्तदेह षोडस दयुग द्वाये । सफ ऩय तारे न्माये न्माये।।

प्रमोगपवद ुगरु हढॊग तायी । खोरहहॊ तारा सयुत उफायी।।2।।

सात िय य सोरह दगुव औय द्िाये सबी ऩय अरग – अरग तारे ऩड ेहैं। प्रमोगऻाता गरुु के ऩास सफकी चाफी (कुॊ जी) होती है जो तारों को िोरकय सयुनत को उफाय रेत ेहैं।

चौ0- सबी गरु तत्वदयसी नाहीॊ । ऩहठत ऻान जीव उरूझाहीॊ।।

जे जन ऩणूप बेहद शयणावा । ननश्चम अभय अभीयस ऩावा।।3।।

सबी गरुु तत्िदयसी नह ॊ होत।े ज्मादात्तय ऩढे हुिे ऩयामे ऻान से िे जीिों को उरझामे यित ेहैं। जो व्मजतत ऩणूव जानकाय बेद गरुु की ियण आ जाता है। िह ननजश्चत ह अभय हो जाता है औय अभतृ को ऩा जाता है।

चौ0- एक ही चेतन्म सवपघट भाहीॊ । शब्द ज्मोनत फनन देह सभाहीॊ।।

सो चेतन कभप चाहहहॊ जैसा । कयत काज तन ुससृ्जत तसैा।।4।।

सबी के घट भें एक ह चेतन्म प्रब ुहै। जो िब्द औय ज्मोनत स्िरूऩ फनकय देह भें सभाता है। िह चेतन्म ब्रह्भ जैसा कभव कयाना चाहता है िसैा िसैा ह िय य यचकय अऩना कामव कयता है।

दो0- जे रक्ष्म साधे सोइ मभरे सफहहॊ घाट नहहॊ एक।

अनन्त पवश्व अनन्त धनी सो मभमरमा जहॉ टेक।।322।।

जजस रक्ष्म को साधोगे िह शभरेगा तमोंकक सभस्त घाट एक नह ॊ है। अनन्त विश्ि भें अनन्त धनी ऩरुुष है। तमु्हे िह शभरेगा जहाॊ तमु्हाया रक्ष्म दटका है।

बावाथप प्रवचनाॊश्- प्रेशभमो – कोई याभ को बजता है तो कोई शिि को, कोई कृष्ण, विष्णु अथिा िजतत को बजता है। मे सफ अरग अरग घाटों के धनी ऩरुुष है। जजसे बजोगे उसी के देस जाओगे। इसशरमे इनका सम्भान फनामे यिकय सचिॊड का

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रक्ष्म फनाओ कपय इन सबी के देस यास्त ेभें छूटत ेचरे जामेंगे। औय तभु अभय ऩरुय ऩहॉच जाओगे। इस चौथे ऩद सचिॊड का फिान कयने िारे तो फहुत सॊत यहेंगे ऩयन्त ुिहाॊ ऩहुॊचा देने िारे बेद सॊत फहुत कभ होत ेहै कोई बफयरा ह होता है जो कारदेस के जीिों को भानि देह भें आकय जगाता हुआ उसकी सभस्त मात्रा के अियोधकों को नष्ट कयके िहाॊ ऩहुॉचा देता है। औय िह जीिों भें सचिॊड का शसरशसरा िरुु कयके चरा जाता है। कारदेस भें तो जड भें चेतन्म पॊ स यहा है। मह गाॊठ िोरनी ह ऩडगेी। जो बफना द ऺा (ददव्मदृजष्ट) प्रातत ककमे असम्बि है।

दो0- सयुग फकुैॊ ठ सखुद करय यचन यचाई कार।

“होयाभ” प्ररोमबत सयुत बमूर ननजघय तार।।323।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक सयुग औय फकुैॊ ठ को सिुदामी कयके कार ने सषृ्ट यचना की है जजनके प्ररोबन भें सयुनत अऩना ननज घय औय ननजतार (अभतृ सयोिय) को बरू चुकी है।

दो0- मशव मशधथर देणख मशवा कयन रागी पवश्राभ।

अग्र हदवस बत्रमोदसी कयत फखैान शचुाभ।।324।।

बिानी की शिधथरािस्था होती देिकय शिि बी विश्राभ कयने रगे। कपय अगरे ददन बत्रमोदसी भें ऩािन फिान कयने रगे।

23 – मथा पऩ ॊड ेतथा ब्रह्भाण्ड े

दो0- फझूत उभा हे नीरकॊ ठ सफ जग तीयथ ध्माम।

कवन तीयथ भसु्क्त प्रद कहहु नाथ सभझाम।।325।।

बगिती उभा ने ऩछूा कक हे नीरकॊ ठ ! साया जगत तीथों को ध्माता है। इनभें भजुतत प्रदान कयने िारा कौन सा तीथव है ? हे स्िाभी ! सभझाकय कहो।

चौ0- फोरे मशव अफ सनुो बवानी । सकर ब्रह्भाण्ड पऩ ॊड मह जानी।।

सजृन ननमभ तत्व उऩादाना । कायण सषृ्टी यचन फखाना।।1।।

शिि फोरे कक हे बिानी सनुो ! इस वऩ ॊड को ह साया ब्रह्भाण्ड सभझो। जजन ननमभों औय उऩादान तत्िों से सषृ्ट की यचना होती है िे ह सषृ्ट की यचना के कायण फतामे गमे हैं।

चौ0- ईशकृनत मह भानव देहा । जे फाहहय सो अन्तरय गेहा।।

अस कोउ जगद ऩदायथ नाहीॊ । जगद धथये न धथय देह भाहीॊ।।2।।

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.मह भानि देह ईश्िय की यचना है। इसभें जो फाहय है िह अन्दय गपुा भें (घट) भें है। जगत भें ऐसी कोई िस्त ुनह ॊ है जो विश्ि भें हो ऩयन्त ुदेह भें न हो।

चौ0- बत्रकारदशी सफ सॊत सजुाना । ऩनुन ऩनुन मह उऩदेश फखाना।।

खौजत ईश फाहहय जग भाॊहीॊ । अन्तरयघट सफ खौजत नाहीॊ।।3।।

बत्रकारदिी सबी विद्िान सॊत फाय फाय मह उऩदेि देत ेहैं कक सफ जन ईश्िय को फाहय जगत भें तो िोजत ेहैं ऩयन्त ुअन्तघवट भें नह ॊ िोज कयत।े

चौ0- अकाम रूऩ ईश जग व्माऩी । ऩावहहॊ सो जे ननज घट थाऩी।।

जन साधायण तदपऩ भाना । फसत प्रब ुमऻ तीयथ नाना।।4।।

ननयाकाय स्िरूऩ ईश्िय जग भें व्मातत है उसे िह ऩाता है जो अऩने ह घट भें िोजने दौडता है। कपय बी साधायण भनषु्म मह भानत ेहै कक ईश्िय नाना प्रकाय के मऻों तीथों भें फसत ेहैं।

दो0- ननज काभा पऩऩास हहत ुभानव तीयथ ध्माम।

नतन्ह सयुगाहद पर सनुन रोब भगु्ध बयभाम।।326।।

अऩनी काभनाओॊ की तमास के शरमे भानि तीथो की सेिन अयाधना कयता है औय उनके स्िगावददव परों को सनुकय भगु्ध होकय भ्रभता यहता है।

चौ0- मशवा कार भामा ठकुयाई । प्ररोबन सय सफ जीव पॊ दाई।।

कोऊ बफयर सतगरु दृढ चेया । अडडग रक्ष्म चहढ ऩाम ननफेया।।1।।

औय शििा ! कार औय भामा की ठकुयाई मह है कक िह सफ जीिों को प्ररोबन का तीय चराकय पसात ेहैं। कोई वियरा ह सदगरुु का सदुृढ शिष्म अऩने रक्ष्म ऩय अडडग यहकय भोऺ ऩा जाता है।

चौ0- सयुत जफहीॊ जागनृत ऩावा । ऩहैठअ नतसय नतर भें आवा।।

सखु दखु तफ राफहीॊ डयेा । बटकत जीव न होई ननफेया।।2।।

सयुनत जफ जागनृत ऩाती है तो तीसये नतर भें आकय फठै जाती है तफ उसके ऩास सिु दिु अऩना डयेा रगा देत ेहैं जीि बटक जाता है कपय उसका छुटकाया नह हो ऩाता।

चौ0- नब खॊड सयुनत णखॊचवहहॊ जफहीॊ । कयभ बोग पर प्रगटत तफहीॊ।।

पर प्रदाम कयभ सॊस नासा । सयुत चढै तफ अगभ आकासा।।3।।

आकािी रोंकों भें जफ सयुनत खिॊचती है तफ कभों के बोग पर बी प्रगट होने रगत ेहैं। जो अऩना पर देकय नष्ट हो जात ेहैं। तफ ह सयुनत अगभ आकाि को चढ जाती है।

चौ0- देखा देणख जो मोग अनयुागा । ऩाम ऺणणक दखु राधग बागा।।

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ऐसो साधक रक्ष्म न ऩावा । अन्त्कार फहुय ऩनछतावा।।4।।

जो देिा देिी मोग कयत ेहैं िे ऺखणक दिु ऩात ेह बागने रगत ेहैं। ऐसे साधक कबी बी अऩना रक्ष्म नह ॊ प्रातत कयत े; िे अन्तकार भें फहुत ऩछतात ेहैं।

दो0- मशव फोरे साॊची कहूॉ कय बेहद गरु तरास।।

बेषज देणख भडुें नहीॊ जहॉ नहहॊ मभटे पऩऩास।।327।।

शिि फोरे कक भैं सच कहता हूॉ ककसी बेद (तत्िदिी) गरुु की तरैाि कयनी चादहमे। केिर बेष देिकय नह ॊ भुॊडना चादहमे। जहाॊ तमास नह शभट सके।

चौ0- ब्रह्भन एहह देह उच्चायी । फड फड सात ुपवटऩ ऩसायी।।

नतन्ह ऩ ैसप्तसपुर ननत रागी । खावहहॊ सात ुअनतधथ सबुागी।।1।।

मह देह ब्रह्भिन कहा गमा है जजसभें सात फड ेफड ेिृऺ ों का ऩसाया है। उन ऩय सात उत्तभ पर रगे यहत ेहैं जजनको सात सौबाग्मिार अनतधथ िात ेयहत ेहैं।

चौ0- सात ुआश्रभ सप्त दीऺारम । ब्रह्भस्वरूऩ सात ुसमभधारम।।

कायन अघौइ फदन रटकाई । नायी सात ुधचदानन्द ऩाई।।2।।

उसभें सात आश्रभ है औय सात ह द ऺारम है तथा ब्रह्भस्िरूऩ सात सशभधामें हैं। िह ऩय सात जस्त्रमाॊ नीचे को भिु रटकामे चेतन्मानन्द बोग यह है।

चौ0- सप्त प्रऻा सप्त तरूवय जाने । सप्त भोष सप्त परव उगाने।।

ऩाॊच ऻानेस्न्रम भन अरू भामा । सप्त अनतधथ खावहहॊ रूधचरामा।।3।।

सात प्रकाय की सात प्रऻाओॊ को सात िृऺ जानो औय सात प्रकाय के भोऺ ह सातो पर हैं। ऩाॊच ऻनेजन्रमाॉ भन तथा भामा सात अनतधथ हैं जो फडी रूधच ऩिूवक उन परों को िा यहे हैं।

चौ0- सात ुआश्रभ सप्त ऩडावहृ । गरु कूॊ जी कय सप्त दीऺागहृ।।

सप्त ज्मोनत सप्त नारय फखानी । अधौ ओय नतन्ह फहाव ुबवानी।।4।।

औय हे बिानी सातो आश्रभ (कामा िन गभन के) सात ऩडाि हैं जजनभें गरुु द्िाया प्रदत्त सात कुॊ जी हैं (सातो िय य ऩडाि जजनभें गरुु, िजतत सॊचाय की कुॊ जी रगाता है) मे ह द ऺागहृ है अथावत सातो ऩडाि जहाॊ गरुु तारा िोरकय एक से दसूये िय य भें सयुनत को प्रविष्ठ कयता है मे केन्र ह द ऺागहृ है) औय सात प्रकाय की जस्त्रमाॊ जो नीचे की ओय भिु रटकाती हुई फतामी गई हैं ह सात प्रकाय की ज्मोनतमाॉ हैं जजनका फहाि नीचे की ओय को है।

छ0- फहु बाॊनत नीय सप्त उदधथ उमभ सप्त ज्मोनत सोत ुसयुनत फनन।

सरयता झयने धगरय जर प्रवाह एहह कामा वन पवदजुन गनन।।

चरयत भनुन-सॊत-सयु-दानव अगणणत रयहद मसहद सन आवहहॊ।

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“होयाभदेव” भनत भढू अजीनन अहभ फस बेद न ऩावहहॊ।।20।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक विविध प्रकाय के जर िारे सात सभनु्र तथा ऊजावओॊ की सात ज्मोनतमाॊ जजनका स्रोत आत्भा है, नददमाॊ झयने तथा ऩिवतीम जर प्रिाह की विदिान जनों ने इसी कामा भें गणना की है एिॊ देिताओॊ दानिों, सॊतों, भनुनमों का विचयण होता है औय उनके साभने अगखणत ऋवद्धमाॊ शसवद्धमाॊ आती यहती है जजनको भनतभढू जन नह ॊ जानत ेऔय अऩने अहॊकाय के िशिबतू उनका बेद बी प्रातत नह ॊ कय ऩात।े

बावाथप (प्रवचनाॊश)- इस प्रकाय ऻानसागय जी ! भानि अनन्त िजततमों का भहाबॊडाय है। अनन्त िजतत औय उनके स्रोत फीज रूऩ भें भानि भें ह गोऩनीम ढॊग से छुऩ ैहुए हैं। जजसका एक एक कण एक एक जगत का ननभावण कय सकता है। मह भानि इस भहािजतत का हजायिाॊ अॊि बी उऩमोग भें नह ॊ रा ऩाता। अऩने साथ ह उसे रेकय सॊसाय से चरा जाता है। इस फीज भें असॊख्म यत्न छुऩ ैहुिे हैं। जो जजतना ननकार रेता है िह उतना ह धनी हो जाता है। जीिात्भा तो ऩयभात्भा का ऩणूव उत्तयाधधकाय याजकुभाय है। वऩता ऩयभेश्िय का सभस्त िजाना इसी के शरमे तो है। ऩयन्त ुवऩता उसे सऩुात्र ऩतु्र को ह तो देता है। ऋवद्ध शसवद्धमाॊ तो उसकी दासी फनकय यहती हैं। वप्रमियो ! मदद दहकती हुई अजग्न फाहय से ककसी को ददिाई न दे तो बी िह अॊदय तो अजग्न का बॊडाय यहता ह है। ऐसे ह सबी िजतत स्रोत देह भें छुऩे हुमे हैं। जफ तक भनषु्म इन िजततमों के स्रोतों को नह ॊ िोर रेता है। तफ तक िह ऩि ुह है। सॊसाय के भिूव रोग तो अऩने अन्दय के चभत्कायों को न देिकय सॊत भहात्भाओॊ के चभत्काय देित ेहैं। बाई ! ऐसे चभत्काय तो जादगूय ददिात ेहैं फना रो उनको गरुु। सॊत का चभत्काय तमा मह कभ है कक िह दानि से भानि, भानि से देि, देि से बगिान फना देता है औय सयुनत को उसके देस ऩहुॉचा देता है ? जीिों का बि फॊधन काटना तमा चभत्काय नह ॊ है ? चभत्काय की िोज कयने िारो कों तो भात्र बेषधाय मा जादगुय गरुु चादहमे। िे तत्िदिी गरुुओॊ को तमा जानेगें ?

ऩयभसॊत चभत्काय कयके अऩनी कभाई तो नह ॊ िो देंगें। उनभें मा उनके द्िाया चभत्काय स्िमॊ जगद श्िय कयत ेहै। चभत्कायों को न देिकय सॊतों भें उसकी सयुत मात्रा का कभाई िोजनी चादहमे तबी कल्माण हो सकेगा। नाभ दान बी द ऺा नह है िह तो ददव्म दृजष्ट है जो भोऺधाभ तक का साऺात्काय कयाती है।

दो0- सीम हयन यावन कये रॊक पूॊ के हनभुान।

यावन भये मसमयाभ गहे याभामन घट जान।।328।।

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सीता रूऩी आत्भा का काररूऩी यािन ने हयण कय शरमा है। इस रॊका रूऩी बत्रकुट को हनभुान पूॊ क देता है। इस प्रकाय यािण के भयने ऩय याभ औय सीता ऩनु् शभरत ेहैं। मह याभामण घट बीतय बी तो हो यह है। उसे जानने का प्रमत्न कीजजमे।

दो0- उभा हॊसनन हॊस की नछनी उरवुा पववाह यचाम।

को पवधध हॊस हॊसनन गहे ; जहॉ उरवुा ऩॊच आम।।329।। औय उभा हॊस की हॊसनन छीनी जा चुकी है। जजससे उल्र ू(भन) वििाह यचा फठैा है। अफ बरा जहाॊ ऩॊचामती ऩॊच ह उल्र ू(भन के विषम) आमे हों िहाॊ हॊस को हॊसनन कैसे शभरे (ब्रह्भ को आत्भा कैसे शभरे) ?

चौ0- भढू चॊहे सयुग सखु काभा । कयहहॊ सकुभप मऻ जऩ नाभा।।

सतकयभ सत पे्रयणा दावा । हौं रणख ऩाछर रोब सभावा।।1।।

भिूव तो सयुग के सिुों की काभना चाहता है इसशरमे सकुभव मऻ नाभ जऩ कयता है। सतकभव सच्ची पे्रयणा देत ेहैं ऩयन्त ुभैंने तो उन सफ के ऩीछे रोब ह सभामा हुआ देिा है।

चौ0- आतभ दयस ऻान बफन ुप्रानी । कयत सकृुनत ऩावहीॊ हानी।।

दखु रोहू सखु सौयण फेरय । कार कयभ न कोऊ ननफेरय।।2।।

आत्भ साऺात्काय के ऻान के बफना जीि जो कुछ कयता है उसभें हानन ह ऩाता है। दिु रोहे की औय सिु सोने की फेडी है इस फेडी को काटकय कोई बी कार औय कभव से अऩना उद्धाय नह कयता।

चौ0- ननजघट ननसतृ धगरय गहुाहीॊ । खोजत कपयत ईश नहहॊ ऩाहीॊ।।

सकर तीथप पवधध देह यचाई । नतन्ह तायी सदगरु सौंऩाई।।3।।

जो अऩने घट बीतय से फाहय ननकर कय ऩिवतों की गपुाओॊ भें िोजत ेकपयत ेहैं उनको ईश्िय नह ॊ शभरता। विधाता ने साये तीथव देह भें ह फनामे हैं ऩयन्त ुउनकी कुॊ जी तत्िदिी सदगरुु को सौंऩ द है।

चौ0- सात द्वीऩ सप्त मसॊधु सय नाना । ग्रह नऺत्र हौं देह भॊहहॊ जाना।।

सभेुय धगरय ऩॊचबतू ऩनुीता । यपव शशी देव दनजु तन बीता।।4।।

सात द्िीऩ (जम्फ ूद्िीऩ, िाक द्िीऩ, साल्भर द्िीऩ, कुि द्िीऩ, क्रौंच द्िीऩ, गोभम द्िीऩ औय श्िेत द्िीऩ) सात सभनु्र (रिण, इऺुयस, भददया, घतृ, ददह, दधू औय जर) तथा सभस्त नददमाॊ – ग्रह औय नऺत्र भैंने देह बीतय ह जाने हैं। तथा सभेुरू ऩिवत औय ऩािन ऩॊचबतू (आकास, अजग्न, िाम,ु जर औय ऩथृ्िी) तथा समूव औय चन्रभा – सयु असयु सफ देह भें ह हैं।

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चौ0- सात सयुग अरू सात ऩातारा । मशव सकर पऩ ॊड भाहीॊ धथयारा।।

सो सफ चौदस बवुन कहाई । नतन्ह देह भॊहह चक्रनाभ धयाई।।5।।

सातों स्िगव (ब,ु बिु, स्िॊ0, भह, जन, तऩ औय सत्मरोक) तथा सात ऩातार (तार, तरातर, भहातर, यसातर, सतुर, वितर औय ऩातार) है। जो क्रभि् आऻाचक्र, सहस्त्रदर, बत्रकुदट, सनु्न, भहासनु्न, बॊियगपुा, सतरोक तथा नीचे से भरूाधाय, स्िाधधष्ठान, भखणऩयुक, अनाहत, वििदु्ध, समूव, चॊर आदद चक्र वऩ ॊड भें है।

दो0- सनुहु मशवा साॉची कहूॉ जे पऩ ॊड सो ब्रह्भाण्ड।

अन्तरय तीयथ भसु्क्तप्रद भोऺ नहीॊ कभपकाण्ड।।330।।

हे शििा सनुो ! भैं साॊची कहता हूॉ जो वऩ ॊड भें है िह ब्रह्भाण्ड भें है ऩयन्त ुइनभें अन्तय घट के तीथव ह भजुतत प्रद है कभवकाण्ड आदद भें भोऺ नह है।

दो0- धन्म धन्म फोरी मशवा जै जै जै भनुन नाथ।

सत्मऻान सनुन नास ैभ्रभ श्री चयणन धरय भाथ।।331।।

धन्म धन्म कहती हुई ऩािवती फोर कक हे भनुननाथ आऩकी जम हो जम हो, जम हो, सत्म ऻान सनुकय भेया भ्रभ नष्ट हो गमा है। औय उसने श्री शिि चयणों भें भस्तक यि ददमा।

24 – कार अनगु्रह

दो0- फोरी मशवा हे जग ऩनत सफ पवधध कार कठोय।

तद कस जीव भसु्क्त मभरे पववश नहहॊ सखु ऩौय।।332।।

ऩािवती फोर कक हे जगद स्िाभी ! कार सफ तयह से कठोय है तफ जीि को भजुतत कैसे शभर सकती है ? उसकी विििता से उसे सिुधाभ कह नह ॊ है।

दो0- भन भसु्काइ मशवाऩनत अऩना भता पवचाय।

फोरे सनुहु हे सभुणुख कहहुॉ कार सत्मसाय।।333।।

भन भें भसु्कयात ेहुिे अऩना भत विचाय कय शिि िॊकय फोरे कक हे सभुखुि ! भैं कार का सत्मसाय तत्ि कहता हूॉ।

चौ0- कार ननमभ अफ तोहह सनुाऊॊ । स्जहह कायन सवु्मवस्था दाऊॊ ।।

कयभानसुाय ननमभ यधच कारा । जो जस कयहहॊ तस पर सारा।।1।।

अफ भैं ननयॊजन का ननमभ तझुे सनुाता हूॉ जजस के कायण भैं उत्तभ व्मिस्था प्रदान कयता हूॉ। कार देि ने कभो के अनसुाय ह ननमभ फनामे है अथावत जो जैसा कयता है िह िसैा ह पर उसके शरमे ननधावरयत कयता है।

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चौ0- जे जन कयहहॊ मऻ व्रत दाना । तीयथ याभ नाभ गणु गाना।।

नतन्ह नतस्न्ह कयभ ऩरयणाभा । सयुग बोग बत्रदेव प्रदाभा।।2।।

जो व्मजतत मऻ व्रत दान कयत ेहैं तीयथ हरय नाभ गणुगान कयत ेहैं उनको उनके कभो के ऩरयणाभ स्िरूऩ तीनो देिता (ब्रह्भा, विष्ण,ु भहेि) स्िगव के सिुों को प्रदान कयत ेहैं।

चौ0- जे जन तऩसा कयहहॊ कठोया । सो तऩ रोकहहॊ ऩाहहॊ सऩुौया।।

जे जन कयहहॊ मोगाभ्मासा । कार ननमभ ब्रह्भरोकहहॊ फासा।।3।।

औय जो व्मजतत कठोय तऩस्मा कयत ेहैं िे सफ तऩ रोंकों भें उत्तभ स्थान ऩात ेहैं। औय जो व्मजतत मोगाभ्मास कयत ेहैं िे कार यधचत ननमभ से ब्रह्भरोक भें फासा कयत ेहैं।

चौ0- सत्मऩरुष स्जन्ह बगनत जागी । ऩावत सत्मधाभ सत्मयागी।।

कभापनसुाय बत्रदेव ननमाभक । सभयथ सफ बाॊनत सफ रामक।।4।।

औय जजनभें सत्मऩरुुष की बगनत जाग जाती है िे सत्मधनी पे्रभी सचिॊड धाभ को प्रातत कयत ेहैं। तीनों देिता ह कभावनसुाय जगद ननमाभक है औय सफ तयह सभथव है औय मोग्म है।

दो0- कायन कभपप र दानमका दीषत कार कयार।

दषु्टन सॊग भहाबमॊक सो सॊतन को प्रनतऩार।।334।।

कभवपर प्रदान कयने के कायण ह कार कयार ददिाई देता है। जफकक िह दषु्ट जनों के शरमे ह भहा बमॊकय है औय सॊत जनों के शरमे उनका प्रनतऩारक है।

चौ0- हभ बत्रदेव जीव घट भाहीॊ । सफ पवधध बगनत फीज उगाहीॊ।।

दषु्टन की सॊहायन कयहहॊ । सॊतन ऩग धूरय मसय धयहहॊ।।1।।

हभ तीनों देिता जीिो के घट भें सफ प्रकाय से बजतत का फीज जभात ेहैं औय दषु्टों का सॊहाय कयत ेहैं औय सॊतो के चयणों की धूशर अऩने िीि ऩय चढात ेहैं।

चौ0- जीवहह हहत ेआहदत्म साये । कार ननमभ जग दमा यखाये।।

जे सॊत सत्मऩरुष सयनाहीॊ । मोधगन्ह गहृ हभ जनभ प्रदाहीॊ।।2।।

जीि के दहत के शरमे ह सभस्त देिगण कार के ननमभानसुाय सॊसाय ऩय दमा यित ेहै औय जो सॊतजन सत्मऩरुुष की ियण भें आत ेहैं उन्हे हभ मोधगमों के घय भें जन्भ प्रदान कयत ेहैं।

चौ0- कयहहॊ व्मवस्था जीव सम्बारा । यचहहॊ सकृुनत ब्माऩ ैनहहॊ कारा।।

शनै् शनै् जफ बगनत फाढै । चहॊहहॊ सतॊ कोऊ भकु्ती षाढै।।3।।

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औय जीिों की व्मिस्था कयको सम्बार कयत ेहैं औय ऩनु्म दान आदद सकृुत कभव यचत ेहैं। ताकक कार न ब्माऩे। धीये धीये जफ बगनत फढती है औय जीि चाहता है कक कोई सॊत भजुतत भागव िोर दे।

चौ0- तफ सचखॊडी सतगरु सयनी । कयत व्मवस्था हभ नतष कयनी।।

कार प्रशासन काज बवानी । जीव हहताम यत अरख धधमानी।।4।।

तफ सतिॊडी सतगरुु की ियण जाने की हभ ह उसके शरमे कभव व्मिस्था कयत ेहैं। हे बिानी ! कार के प्रिासन के कामव के शरमे हभ जीिों के दहत के शरमे अरि ज्मोनत का ध्मान कयत ेहैं।

छ0- जगव्मवस्था कायन बवानी श्रीहरय पवपवध अवताय धरयहैं।

सफ पवधध ननज चरयत्र उऩदेस ुजन धचदाम सद्कभप करयहैं।।

कारताऩ बफनासन काजा याभ चरयत्र बवतयनन फने।

कृष्ण रूऩ सगुीता प्रगहटहैं जधगहैं बस्क्त भन जने जने।।21।।

सॊसाय की व्मिस्था के कायण हे बिानी ! श्रीहरय विविध अिताय धायण कयेंगे औय सफ प्रकाय से अऩने चरयत्र उऩदेि से भानि को जगाने के शरमे सत्कभव कयेंगे। औय कार की अजग्न के नास के कामव को श्रीयाभ चरयत्र सॊसाय की नाि फनेगा। औय कृष्ण स्िरूऩ भें गीता प्रगट होगी जो भानि भानि के रृदम भें बजतत जगामेगी।

दो0- तदपऩ मशवे ब्रह्भाण्ड भें बफन ुअरखेश्वय ध्मान।

जऩ तऩ बफयथा होइहैं भभ अनबुव मह जान।।335।।

कपय बी हे कल्माणी ! ब्रह्भाण्ड बय भें अरिऩरुुष के ध्मान के बफना जऩ तऩ सफ व्मथव ह यहेगें मह भेया अनबुि जान रो।

दो0- ध्मान साधना यत मशवे मभमर अगम्म की बेद।

तात ेयहुॉ नतष ध्मान यत जाही न जानत वेद।।336।।

हे बिानी ! ध्मान साधना भें र न होकय ह भझुे अगम्म ऩरुुष की बेद शभशर है। इसशरमे भैं उन्ह के ध्मान भें रगा यहता हूॉ जजसे िेद बी नह जानत।े

दो0- अरख ज्मोनत प्रतीक मरॊग करय धथनत अॊडाकाय।

फाहहय ऩजूा घट ध्मान यत करूॉ नभन मशवसाय।।337।।

उसी अरि (अगम्म) ज्मोनत का प्रतीक शिि शरॊग की अॊड ेके आकाय की स्थाऩना कयके भैं फाहय से ऩजूा कयता हूॉ औय घट बीतय ध्मानाभ्मास कयके ऩयभ शिितत्ि को नभन कयता हूॉ।

दो0- ननजातभ ही मशवतत्व हैं जाकय धाभ अनाभ।

ध्मान बफना सो नहहॊ सरुब सत्म कहहहॊ “होयाभ”।।338।।

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श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक ननज आत्भा ह शिितत्ि है जजसका आनाभीधाभ है। िह ध्मान के बफना सरुब नह है ; मह भैं सत्म कहता हूॉ।

दो0- चयण शयण जगदीश की घट द्वाया खटकाम।

होयाभ न जाने को घडी हरय द्वाया खुर जाम।।339।।

श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक जगद श्िय की चयण ियण भें अऩने घट का द्िाय िटिटाना चादहमे तमोकक न जाने कौन की ऐसी घडी आ जामे जजससे प्रब ुका द्िाय िुर जामे।

25 – अभय रोक मात्रा

दो0- सत्मप्रकाश सकसेना तभु अनत पप्रम भाभ।

तात ेसयुनत मात्रा गभन करय फखान “होयाभ”।।340।।

सत्म प्रकाि सतसेना तभु भेये अनत वप्रम हो इसशरमे भैं होयाभदेि तभुसे सयुनत की आकाि मात्रा का िणवन कयता हूॉ।

दो0- दस हीये अनत पप्रम तभु कायन ऻान फखानन।।

जो श्री मशव मशवा सन कही सनुन सनुन जन कल्मानन।।341।।

तभु भेये अनत वप्रम दस ह ये हो इसी कायण मह ऻान कहता हूॉ जो श्री शिि बगिान ने ऩािवती के सभऺ कहा था इसे सनु सनु कय जन – जन का कल्माण होता है।

दो0- गॊगा जभना शधुच अन्तया सहज सनु्न जहॉ घाट।

“होयाभदेव” आसन तहॉ खोजत भनुन भठ घाट।।342।। इॊडा वऩ ॊगरा के ऩािन अन्तया (फीचो फीच) जहाॉ सहज सनु्न का घाट है श्री होयाभदेि जी कहत ेहै कक भैंने िह ॊ ऩय अऩना आसन रगामा है। जफकक ऋवष भनुन शभट्टी के भठो ऩय िोज कयत ेहैं।

दो0- याभ यतन देह कोठरय तॊह इक भॊहदय गोऩ।

तहॉ “होयाभ” ज्मोनत झये ता भध्म झाॊई घोऩ।।343।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहै कक याभ नाभ के यत्नों की मह देह कोठय है जजसभें एक गोऩनीम भॊददय है। उसभें ज्मोनत जरती है उसके फीच भें एक गहय झाॊई है।

दो0- झाॊई भाहीॊ छाॊई फनन ताऩय ज्मोनत भहान।

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“होयाभदेव” सदगरु मभर ैऩावे ऩद ननयफान।।344।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहै कक उस झाॊई भें कपय ऩयछाई फनी हुई है उसके ऩाय भहान ज्मोनत है। मदद सदगरुु शभरत ेहै तो ननिावण ऩद प्रातत होता है।

छ0- ब्रह्भऩॊथ प्रायम्ब कार ध्मान अद्भौनत कर दृष्म पवजानहहॊ।

झरकत इत उत कोहरू घमु्र ऩावक यपव शशी ननसानहहॊ।।

अम्फय अननर आरोक नतमभय ब ुचऩरा चभक सन आनहहॊ।

ऩॊचबतू ऊऩय उहठ साधक मत पवयद मसपद्ध ऩाम गहुानहहॊ।।22।।

इस ब्रह्भभागव भें प्रायम्ब कार भें ध्मान भें अदबतु सनु्दय सनु्दय दृष्म जाने जात ेहैं। इधय उधय कोहया धुआॊ अजग्न समूव चन्द आदद के ननसान झरकत ेहैं। आकास िाम ुप्रकाि अॊधेया ऩथृ्िी तथा विद्मतु की दभक सी साभने आती है। इस प्रकाय ऩॊचबतूों से ऊऩय उठकय साधक वििार शसवद्धमाॊ जो गोऩनीम है प्रातत कयता है।

सनुत प मात्रा धचत्रण

1 – पऩ ॊड देस

दो0- प्रायम्ब पऩ ॊडी ऺेत्र भॊह ठाडड षट चक्र भकुाभ।

“होयाभ” पवरोकक सतुप तहॉ चारूदृष्म सखुधाभ।।345।। प्रायम्ब भें वऩ ॊड (बौनतक देह) भें छ् चक्र स्थान अड ेहुमे हैं। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक िहाॊ सयुनत सनु्दय सिुधाभों के दृष्म देिती है।

चौ0- गदुा स्थान भरूाधाय सहुाई । क्रीॊ जाऩ रूधच वयण रराई।।

पवऩर मसपद्ध भनोहय भकुाभा । चारय दरन को गणऩनत थाभा।।1।।

गदुा स्थान भें भरूाधाय चक्र है। जहाॉ तर ॊ का जाऩ है। तथा रूधच कय रार िणव है। फहुत सी शसवद्धमों का मह भनोहय धाभ है। इसके चाय दरों भें गणेि जी का धाभ है।

चौ0- दसूय ईन्री चक्र पवशारा । कनक दनुत सभ रूधचय उजारा।।

याजत चतयुानन इह थाभा । षट्दरन ऩरयऩाहट अमबयाभा।।2।।

दसूया इजन्रम चक्र वििार है। स्िणव जैसी ज्मोनत के सभान सनु्दय प्रकास है। इसभें ब्रह्भा जी का साम्राज्म है। छ् छरों की फडी सनु्दय यचना है।

चौ0- नामब कभर ऩद्मनाब सहुाहीॊ । दस दरन दस शब्द उदाहीॊ।।

अनहत चक्र हृदम असथाना । मशव मशवानी रूधचय हठकाना।।3।।

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नाशब कभर भें ऩद्मनाथ श्रीविष्णु है। इस चक्र के दस दरों भें दस िब्द उत्ऩन्न होत ेहै रृदम केन्र भें अनह्त चक्र है जो श्री शिि ऩािवती का सनु्दय रोक है।

चौ0- कॊ ठ भाहीॊ सहुठ पवशदु्ध भकुाभा । षोड्स दरन भमॊक यॊग धाभा।।

श्री दगुाप स्वदेस फसावा । अनत अनठू सॊत अचयज ऩावा।।4।।

कॊ ठ स्थान भें वििदु्ध तक्र है जो सोरह दरो का चन्रभा जैसे यॊग का रोक है। इसभें श्री दगुाव िजतत ने अऩना देस फसामा है। मह अनत अनठूा है। इसभें सॊत जन फड ेफड ेआश्चमव प्रातत कयत ेहैं।

दो0- अक्षऺमन आऻाचक्र भॊह दो दर ननयमभत ठाभ।

ऩॊचतत्व मबन्न मबन्न यॊग ज्मोनत पपवब ुशधुच धाभ।।346।।

आॊिों के फीच आऻाचक्र भें दो दरो से फनी हुई याजधानी है। महाॊ ऩॊचतत्िों के शबन्न शबन्न यॊग हैं औय ज्मोनत ननयॊजन का ऩािन धाभ है।

2 – अॊड ब्रह्भाण्ड दशपन

दो0- चरत चरत सयुनत चहढ सहस्त्र दर भॊझाय।

सत्मॊ मशवभ प्रकास अनत खुरत ब्रह्भाण्डी द्वाय।।347।।

चरत ेचरत ेसयुनत सहस्त्रदर कभर भें चढ जाती है। िहाॊ सत्मॊ शििभ का भहा ज्मोनत प्रकाि है। मह से ब्रह्भाण्डी द्िाय िुरता है।

दो0- “होयाभ” ब्रह्भाण्ड खॊड मत यत सयुनत शब्दरीन। सतगरु ध्मानाभ्मास यत खुरत कऩाट भहीन।।348।।

श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक महाॊ ब्रह्भाण्डी रोकों भें सयुनत को िब्द भें र न कयने औय सतगरुु ध्मानाभ्मास भें यत यहने से एक भह न कऩाट िुरता है।

चौ0- मशवो Sहभ ्की नाभ जऩावा । ऩयथभ तहाॉ सयुनत मसभटावा।। इह ऩद जुरय अन्तस की डौयी । दस इस्न्रम सॊग यस फर भौयी।।1।।

तफ िह ॊ ऩय शििो Sहभ ्का नाभ जाऩ होता है। सफसे ऩहरे िहाॊ सयुनत का शसभटाि कयना चादहमे। इसी स्थान ऩय अन्त्कयण की डौय जुडी हुई है। औय दस इजन्रमों के साथ उनकी यस िजतत का द्िाय है।

चौ0- अन्तस औऩरय भतृ्म ुकभरामा । सष्ठदरन सष्ठ फर सभदुामा।।

आगे चरे झॊझरय ऩद आवा । मभऩरुय सयुग नयक फसावा।।2।।

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अन्त्कयण के ऊऩय भतृ्मकुभर है जजसके छ् दरो भें छ् िजतत सभदुाम जन्भ, अस्त, प्रनाभ, िदृ, छीन औय भतृ्म ुहै। आगे जाने ऩय झॊझरय द्िीऩ आता है जजसभें मभरोक के सयुग नयक है।

चौ0- बकुृहट घाट सहस्त्र कॉ जावा । यॊग श्वेत ज्मोतशे रखावा।।

पवधध हरय हय इन्दयाहदक देवा । मबन्न मबन्न सरुय सयुगण ठेवा।।3।।

भ्रकुदट घाट भें सहस्त्र दर कॊ िर हैं जो श्िेत यॊग का है। महाॊ ज्मोनत ऩनत ददिाई देत ेहैं। महाॊ ब्रह्भा विष्णु भहादेि इन्रादद देिों की तथा शबन्न शबन्न देिी देिताओॊ के धाभ हैं।

चौ0- ऩतुरय ऩरुट सभाधध भाॊहीॊ । ज्मोनत रक्ष्म ननज सयुत चढाहीॊ।।

मत ब्रह्भाण्डी सीभ आयम्बा । अॉड तस्ज देखउ अग्र अचम्बा।।4।।

ऩतुर को ऩरट कय सभाधध ध्मान भें ज्मोनत की ओय अऩनी सयुनत को चढात ेयहना चादहमे। अफ मह ॊ से आगे ब्रह्भाण्ड की सीभा िरुु होती है। अॊडदेस ऩीछे छोडकय अफ आगे ब्रह्भाण्डी अचम्बा देिो।

बावाथप (प्रवचनाॊश)- सॊत होयाभदेि उिाच्- प्रायम्ब भें जफ ध्मान सभाधध भें दोनो आॉिों की ऩतुर ऩरटने रगती है तफ अॊधेये भें से कुछ प्रकाि की ककयणे द िती हैं औय रतुत बी होती है। मे ककयणे बफजर की चभक – द ऩ जैसी रौं मा कबी रार ऩीर हय नीर स्िेत ककयणे तथा कबी अॊधकाय की गपुा सी आती है तफ धीये धीये गगन भें द ऩभारा, चन्रभा कपय समूव जैसा प्रकाि फढता जाता है। इस प्रकाय वऩछरा ऺेत्र त्मागकय सयुनत सहस्त्रदरकॊ िर तक आती है। मह हजाय दरों का कॊ िर है। जो बत्ररोकी की यचना जस्थनत औय प्ररम की व्मिस्था का केन्र है। ब्रह्भा विष्णु शिि मह ॊ से बत्ररोकी की व्मस्था कयत ेऔय कयात ेहैं। बत्ररोकी नाथ के दिवन कयके ह ज्मादातय साधक मह ॊ सॊतषु्ट होकय आगे नह ॊ जात ेजफकक मह ॊ से ब्रह्भाण्ड देस िरुु होता है। अफ सकू्ष्भ िय य से रूह बत्रकुट की ओय चढाई कयती है। बत्रकुदट द्िाय तक सकू्ष्भ िय य यहता है। बत्रकुट भें भानस िय य भें मात्रा होती है। इस प्रकाय बोनतक िय य वऩ ॊड देस भें, शर ॊग िय य अॊड देि भें, सकू्ष्भ िय य बत्रकुदट द्िाय तक छूटकय बत्रकुदट भें भनस िय य भें मात्रा िरुु होती है।

दो0- “होयाभदेव” प्रकास ऩये इक झीना सा द्वाय। तहाॉ सयुत प्रपवष्ठ कये जहाॉ टेहढ फॊकनाय।।349।।

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श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक महाॊ से आगे प्रकाि से ऩये एक झीना सा द्िाय है। उस नछर भें अऩनी सयुनत प्रविष्ठ कय देंिें तो फॉकनार का टेढा यास्ता शभरता है।

बावाथप (प्रवचनाॊश)- इस प्रकाय पे्रशभमों – सहस्त्रदर से चरकय जफ फॊकनार भें सयुनत आती है तो िहाॊ अऩने अऩने सदगरुु के सबी को दिवन होत ेहै। इस फॊकनार को ऩाय कयके सयुनत सकू्ष्भ िय य द्िाया बत्रकुदट भें प्रविष्ठ होती है। अफ मह बत्रकुदट ऊॉ काय का देस है। महाॊ भनस िय य भें आश्चमव देिा जाता है।

चौ0- आगे द्व ैदर बत्रकुहट देषा । रऺ मोजन पवस्ताय पवशषेा।।

अद्भतु दृष्म भहत्ता न्मायी । सहस्त्र बान ुसभ ज्मोनत उजायी।।1।।

आगे दो दरों का बत्रकुदट ऺेत्र है जजसका वििषे विस्ताय राि मोजन का है। महाॉ का दृष्म अदबतु है औय न्माय ह भदहभा है। महाॊ सहस्त्र समूों की ज्मोनत जैसा उजारा है।

चौ0- कार देव ऩावन याजधानी । ऩावहहॊ जे करय मऻ तऩ दानी।।

कार मह सफ के मसय गाजा । ओॊकाय प्रणवी साम्राजा।।2।।

मह कारदेि की ऩािन याजधानी है। इसे जो मऻ तऩ दान आदद कयता है िह प्रातत कय रेता है। मह कारसफके शसय ऩय वियाजभान है। मह ओ Sभ का प्रणिी साम्राज्म है।

चौ0- कौहट मोजन अफ सयुत चढावा । तीसय ऩयदा तौरय तॉह आवा।।

अधय धाय इह तन भाहीॊ । धाय धाय अधय ऩयु आहीॊ।।3।।

कौदट मोजनों अफ सयुनत चढती है औय तीसया ऩयदा पौड कय िहाॊ आती है। जहाॊ इस िय य भें एक अधय धाय (जजसको ककसी का आधाय नह ॊ है।) यहती है जो बत्रकुदट भें आई है।

चौ0- सयुनत शब्द दृष्टीऩथ धाया । चढहहॊ सयुत जॉह दसभद्वाया।।

होइ सयुत सदगरु ऩग रीना । ऩाई ऩास चहढ सनु्न भग झीना।।4।।

अफ सयुनत िब्द औय दृष्ट ऩथ धाया ऩय चढकय सयुनत दसभ द्िाय ऩय आती है। अफ सयुनत सदगरुु के चयणों भें र न होकय उनसे आगे जाने का ऩास प्रातत कयके एक झीने से सनु्न के यास्त ेभें चढ जाती है।

दो0- दसभद्वाय से अधौऩरुय दक्षऺणामन ऩॊथ जान।

नतष उध्र्व उतयामन भग तत्वपवद ुकयहहॊ फखान।।350।।

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दसभ द्िाय से नीचे के रोंकों भें दक्षऺणामन भागव है। दसभ द्िाय से ऊऩय का तत्िदिी विद्िानों ने उतयामण भायग फतामा है।

दो0- दक्षऺणनामन ऩथ सयुग प्रद पर बोगत सफ छीन।

उत्तयामन भग ननवापणगत ऺम नाहीॊ पर दीन।।351।।

दक्षऺणामन भागव तो सयुगों को प्रदान कयता है जो पर बोगत ेह सफ नष्ट हो जाता है औय उत्तयामण भागव ननिावण की ओय जाता है जो पर देकय बी नष्ट नह ॊ होता।

चौ0- सनु्न देस अभतृसय नाना । जहॉ तहॉ ननृतका नतृ्म भहाना।।

झयने याग यॊग कर रोका । यॊग बफयॊगी भीन जर ऩौका।।1।।

सनु्न देस भें नाना अभतृ के सयोिय है। जहाॊ तहाॊ भहान अतसयामें नतृ्म कयती हैं। मह झयनों के याग यॊग का सनु्दय देस है महाॊ ताराफों भें यॊग बफयॊगी भच्छशरमाॊ तयैती कपयती है।

बावाथप (प्रवचनाॊश)- सॊत श्री होयाभदेि उिाच् मह कथनी का विषम नह ॊ है। भैं (होयाभदेि) जैसा देिा िसैा िणवन कय यहा हूॉ। महाॊ ह ये ऩन्ने जड ेभहर जिाहयात के िृऺ तथा असॊख्म िीि भहर है। अऩने अऩने भाशरक की आऻानसुाय महाॉ सबी जीिात्भामें फसती है। महाॉ भर नता नह है विरास ह विरास है। चेतन ह चेतन है। स्थूरता नह है। ईन्र की सिाय श्िेत हाथी ऩय ननकरती है जो कबी कबी देिी जाती है।

चौ0- हीये ऩन्ने भहर अनत बायी । देवरोक सखु पवपवध प्रकायी।।

पवस्ततृ वन उऩवन तॉह नाना । देवरोक मह सयुधग स्थाना।।2।।

िहाॊ ह ये ऩन्नो से फने फड ेफड ेभहर है। देि रोक के विविध प्रकाय के सिु है िहाॊ फड ेफड ेविस्ताय िारे फाग तथा िादटका है। मह देिरोक स्िगव स्थान है।

चौ0- शबु कयभ ऩनु्म तीयथ नाना । भख जऩ कीयतन साधन दाना।।

ऩावन प्रानी यत शदु्ध धयभा । रौहटहहॊ भतृखॊड ऺीन ऩनु्म कयभा।।3।।

िबु कभव, ऩनु्म, नाना तीयथ, मऻ, नाभ, जऩ, प्रब ुकीतवन, साधना औय दान आदद िदु्ध धभव से प्रानी इस रोक को ऩाता है। औय ऩनु्म कभो के पर बगुतान होत ेह ऩनु् िाऩस भतृरोक भें आ जाता है।

चौ0- सयु अप्सया सुॊदरय तहॉ नाना । चाॉहहहॊ सॊतन ध्मान डडगाना।।

नाना सखुद काभा उरूझाई । देहहॊ रक्ष्म रयमस भनुन बटकाई।।4।।

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िहाॊ अनेको देि सुॊदरयमाॊ औय अतसयाऐॊ हैं जो सॊतजनों का ध्मान डडगाना चाहती है। उन्हें अनेकों सिुद काभिासनाओॊ भें उरझा देती है औय ऋवष भनुनमों को रक्ष्म से बटका देती है।

दो0- ब्रह्भ ऩधथक को चाहहमे तस्ज सफ सयु सखु धाभ।

दृढ पवयाग फाढत चर ैदयू फसत “होयाभ”।।352।।

इसशरमे ब्रह्भ मात्री को चादहमे कक सफ देिताओॊ के सिुधाभों को त्मागकय दृढ ियैाग्म से आगे फढता चरे सत्मऩरुुष कह ॊ दयू फसता है।

दो0- सयुत चहढ गइ मोजन ऩॊच अयफ पऩछत्तय कयौय।

भहासनु्न नाका पौरय के धॊसी अॊधेयी धौय।।353।।

सयुनत इस प्रकाय चढती हुई ऩाॊच अयफ वऩछत्तय कयौड मोजन चढकय भहासनु्न का दयिाजा पोडती हुई घोय अॊधेयो भें प्रविष्ठ हो जाती है।

चौ0- दस सॊख मोजन घौय अॊधेया । ऩाम न फाटी अॊध न हेया।।

मोजन खयफ ऩनुन नीचे आई । चरत चरत अॊध ऩाय न ऩाई।।1।।

मह घोय अॊधेया दस सॊि मोजन है। जजसभें यास्ता नह ॊ शभरता औय अॊधेये से छुटकाया नह ॊ होता। कपय ियफ मोजन सयुनत नीचे धगयती है िहाॊ चर चर कय बी अॊधेये का ऩाय नह ॊ शभरता है।

चौ0- घौय भहासनु्न पवषभी घाटी । जीव यहहत नसैगप ऩरयऩाटी।।

चाय शब्द ऩॊचठाभ गहुानी । ऩाम न ऩथ बफना गरु हानी।।2।।

भहासनु्न घोय अॊधेय घाट है। मह प्रकृनत की जीि यदहत सषृ्ट है। चाय िब्द औय ऩाॊच गतुत सनु्न भें साम्राज्म है जहाॉ बफना गरुु यास्ता नह ॊ शभरता अवऩत ुहानन हो जाती है।

चौ0- फहौरय फन्दीगहृ नतन्ह भाॊहीॊ । सयुत अनन्त दयस प्रब ुनाहीॊ।।

ननज ननज कायज यत सफ यहहीॊ । सॊतन सयुत हयहीॊ दखु तॊहहीॊ।।3।।

िहाॊ सनु्नों भें फहुत से फन्द िाने है। िहाॊ अनन्त सयुतें है जो प्रब ुदिवन नह ॊ कय ऩाती है। िे सफ अऩने अऩने कामव भें रगी है। िहाॊ उनके दिुों को सॊतों की सयुनत ह हयण कयती है।

चौ0- ऩनुन सयुत तजई सफ ठाभा । ऩहुॉचत बवुॊयगहुा अमबयाभा।।

सहस्त्र अट्ठासी दीऩ यचामे । हीये भोती भहर जुयामे।।4।।

कपय सयुनत सफ स्थानों को त्मागकय सुॊदय बिुॊय गपुा भें ऩहुॊचती है िहाॊ अट्ठासी सहस्त्र द ऩ फने है। ह ये भोती भहरों भें जड ेहुिे हैं।

दो0- फागन भाॊझ झूरे ऩये झूरत तीम सॊग देव।

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धचद दीऩक बवुनो जयै भहाकार की सेव।।354।।

फागों भें झूरे ऩड ेहै जहाॊ देिगण अऩनी ऩजत्नमों के साथ झूरा झूरत ेहैं। चेतन्म द ऩ भहरों भें जरकय भहाकार की सेिा भें है।

दो0- दीऩन प्रगट सो Sहॊ धुनन सयुनत सॊग हॊस पवरास। सत्म दमा ऩयभायथ यत सॊचारक धनन प्रमास।।355।।

उन द ऩकों तथा सो Sहॊ धुनन से सयुनत हॊस ऩरुुष के साथ विरास प्रगट कयती है। भहाकार धनन सॊचारक है जजसका प्रमास सत्म दमा औय ऩयभाथव भें रगा यहता है।

चौ0- जो सयुत सत्म धयभ अनयुागी । अकारऩरुष सॊग मरॊव रागी।।

भहाकार नतन्ह भग नहहॊ फाधे । खरजन सयुत मभपॊ द साधे।।1।।

जो सयुत ेसत्म धभावनयुागी है तथा जजनकी रौं सत्मऩरुुष अकार के सॊग रग गई है ; भहाकार उनके भागव भें फाधा नह ॊ कयता औय िरजनो की सयुतों को िह िाऩस मभ के पॊ दे भें डार देता है।

चौ0- हॊस ऩरुष की आमस ुऩावा । प्राकृनत बवचक्र चरावा।।

फहौरय सयुत हहन्डोये भाहीॊ । देत गनत नतष सोहॉ साॊहीॊ।।2।।

हॊस ऩरुुष की आऻा प्रातत कयके प्रकृनत सॊसाय चक्र को चराती है। महाॊ फहुत सी आत्भाऐॊ दहन्डोरे चक्र भें हैं जजसको सोहॊ ऩरुुष (भहाकार) धनी गनत देता है।

चौ0- आत्भ भाॊझ हॊस धनन पवयाजै । झूरे ऩये हॊसात्भा गाजै।।

कैरासी सॊत मभरहहॊ कताया । अद्भतु छपव रणख करय जमकाया।।3।।

उन आत्भाओॊ के फीच भें हॊस ऩरुुष वियाजभान है औय झूरों ऩय हॊसात्भामे सिुोशबत हो यह है। कैरािी सॊतों की कताये शभरती है जो इस अदबतु छवि को देिकय जम जमकाय कयत ेहैं।

चौ0- ऩथ बेहद कोउ सदगरु ऩयूा । तजाम बुॊवय सनु्न कयहहॊ दयूा।।

दें सतरोकी शस्क्त तायी । खौमर द्वाय मसस सयुत सम्हायी।।4।।

कोई भागव बेदद सदगरुु ऩणूव ह बुॊिय गपुा को छुडिाकय इससे दयू ननकरता है। जो सतरोक की चाफी ि िजतत देकय सतरोक का द्िाय िोरकय सयुनतमों की सम्बार कयता है।

दो0- ऩास देइ सॊतहह सयुत पवधध बेद सभझाम।

बफयरे सदगयु कोउ मशवा सयुनत सतरोक ऩठाम।।356।।

िह सॊतो की सयुत को ऩास देकय िहाॊ जाने की विधध बेद सभझाता है। कोई बफयरा सतगरुु ह हे शििा ! सयुनत को सतरोक भें बेज सकता है।

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3 – सचखॊडी दमार देस

दो0- सनुहु मशवा सतरोक की भहहभा अनन्त भहान।

सत्म ही सत्म व्माऩक तहॉ असत्म नहीॊ कछु जान।।357।।

अफ तभु हे शििे ! सतरोक की अनन्त औय भहान भदहभा सनुो ! िहाॊ सत्म ह सत्म व्मातत है असत्म कह ॊ कुछ नह जानो।

छ0- बुॊवय तज सयुनत सचखॊड गभहहॊ पवशार सीभ नहहॊ आय ऩाय। शोडस बान ुहॊस चुॊवय डुयावहहॊ सतधुनन व्माप्त बफन ुकर मसताय।।

सयुत पवरोकत पवपऩन पवगमसत चहुॉ हदमस फमाय सगुॊध अऩाय।

“होयाभदेव” कौहट यपव दनुत सभ सत्मऩरुष स्वरूऩ भहा उस्जमाय।।23।। सयुनत बॊिय रोक को त्माग कय सचिॊड का मात्रा कयती है जजसकी वििार सीभाओॊ का कह ॊ आय ऩाय नह ॊ है। सतऩरुुष का सोरह समूव हॊस चॊिय डुरात ेहै। िहाॊ बफना भिीन औय शसताय िादन के सत्मध्िनन व्मातत हो यह है। महाॉ सयुनत विगशसत फागो को देिती है औय चायों ददिाओॊ भें अऩाय सगुॊधधत िाम ुहै। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक कयोडों समूव के सभान सत्मऩरुुष का भहा प्रकाििान स्िरूऩ है।

छ0- तटनन तट तयुास तरूवय तान तनावनत शाखा कुॊ ज करी। पवगमसत ताय कभर कहुॉ ननयखत अकप आब दयसत बरी।।

पवपवध योय पवहॊग तहॊवा कूजत कूर कहुॊ कर हॊस फरी।

“होयाभ” तरू ऩई जुगन ुज्मोनत प्रऻा दृगन पवरोकक गरी।।24।। नद के ककनाये मकेूशरऩदटस (तयुास) के ऩेडों की िािामें तथा कशरमाॊ तान सा ताने यहती हैं। ककनायों ऩय कभर के ऩषु्ऩ खिरे हुिे देिे जात ेहैं। महाॊ ऩय ताराफों की छवि देित ेह फनती है। ऩवित्र ऩक्षऺमों की विविध प्रकाय की फोर तथा ताराफों के ककनाये कह ॊ कह ॊ हॊसो की गनुगनुाहट गूॊजती है। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक जुगनओुॊ जैसी ज्मोनत िृऺ ों ऩय हो यह है। मह गशरमाॊ भैंने अऩने प्रऻाचऺु िोरकय देिी है।

दो0- अनतश्म अभतृ तडाग तहॉ अभ्रॊकष पवटऩ अथाम।

जाऩय याजहहॊ भकु्तात्भा सयुनत अनहद हयषाम।।358।।

िहाॊ फढकय अभतृ सयोिय है। िहाॊ अथाम रम्फे रम्फे िृऺ है जजन ऩय भतुतात्भा वियाजभान यहती है औय सयुनत अनहद िब्द भें भस्त यहती है।

चौ0- जे सत्मऩरुष पवयाट रखावा । फड ेबाग्म मह सत्मऩद ऩावा।।

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अखॊड सगुॊध सचुन्दन सभाना । धुनन भेघा गयजन सनुन काना।।1।।

जो कोई सत्मऩरुुष वियाट को देिता है उसके फड ेबाग्म हैं तमोकक उसने मह धाभ ऩामा है। िह फडा बाग्मिार है। महाॊ अिॊड चॊदन के सभान सगुॊधध सभामी यहती है औय कानों से फादरों जैसी गजवन सनुन जाती है।

चौ0- अभय अनहद फाजत फाजा । हौं ननत ततसत सनु ुआवाजा।।

कार अरू भतृ्म ुगम्म तहॉ नाहीॊ । अऺम सनातन सत्म सभाहीॊ।।2।।

महाॊ अभय अनहद फाजे फजत ेहैं। भैं ननत्म ततसत की आिाजें सनुा कयता हूॉ महाॊ ऩय कार औय भतृ्म ुनह ॊ ऩहुॉचत ेअऺम सनातन सत्म सभामा यहता है।

चौ0- इक इक योभ सत्मऩरुष प्रकास ू। ज्मोनत ऩुॉज स्वरूऩ नतहह बास।ू।

ऩदभ ऩारॊग मोजन सभामा । सत्मऩरुष साम्राज्म अथामा।।3।।

सत्मऩरुुष का एक एक योभ प्रकाशित हैं उसका स्िरूऩ ज्मोनतित बासता है। सत्म ऩरुुष का अथाह साम्राज्म है जो ऩदभ ऩाॊरग मोजन भें सभामा है।

चौ0- जफ को सयुनत सचखॊड जाहीॊ । रौहटअ ऩनुन ऩनुन भतृखॊड न आहीॊ।।

गय सतऩरुष आमस ुमत आवा । याभकृष्ण इव जगत हहतावा।।4।।

जफ कोई सयुनत सचिॊड चर जाती है तफ िह ऩनु् रौटकय भतृरोक भें नह ॊ आती। औय मदद सत्मऩरुुष की आऻा से इस रोक भें आती है तो िह याभ औय कृष्ण की तयह सॊसाय का दहत कयती है।

दो0- सयुत अभतृ बोजन कये भन भनत बफपर प्रमास।

कयहहॊ शदु्धातभ सो सदा ब्रह्भानॊद ननवास।।359।।

महाॉ सयुनत अभतृऩान कयती है महाॊ भन औय फवुद्ध का प्रमास विपर हो जाता है। महाॉ िदु्धात्भा अऩने भरू स्िरूऩ ब्रह्भानॊद भें िासा कयती है।

चौ0- सप्त सतु् सतऩरुष चुॉवयाई । सत्म सत्मभ प्रब ुफेननत गाई।।

प्रथभ सहज ऩरुष उऩधाभा । अन्म सष्टधननन्ह पवरग भकुाभा।।1।।

सात धनन सत्मऩरुुष को चुॊिय डुरात ेहैं। औय सत्मभ सत्मभ प्रब ुकी विनती कयत ेहैं। प्रथभ सहज ऩरुुष का उऩ द्िीऩ है अन्म छ् धनी ऩरुुषों के अरग अरग स्थान है।

चौ0- सत्मऩरुष की आमस ुऩावा । कायन सचखॊड जीव हहतावा।।

सॊत दमार अवतरय इहह आॊहीॊ । चुन चुन सयुत सचखॊड ऩठाहीॊ।।2।।

सत्मऩरुुष ऩयभेश्िय की आऻा प्रातत कयके सचिॊडी जीिों का दहत कयने के कायण सत्मऩरुुष दमार के अिताय सॊत इस रोक भें आत ेयहत ेहैं। औय चुन चुन कय महाॊ से जीिों को सचिॊड बेजत ेहैं।

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चौ0- आगे अरख रोक हौं जानी । अरख ऩरुष अकथ ठकुयानी।।

अयफन बान ूयोभ सभ नाहीॊ । मतु सयुत फीज रूऩ दयुाहीॊ।।3।।

महाॊ से आगे भैंने अरि रोक को जाना है िहाॊ अरि ऩरुुष की अकथनीम ठकुयाई है। अयफों समूव महाॊ उसके एक योभ के सभान बी नह ॊ है। महाॉ सयुनत फीज रूऩ भें छुऩाई यहती है।

चौ0- अरख धनन हहयण्मगबप कहामे । जा भॊह सकर जीव रम ऩामे।।

ब्रह्भ हदवस सो जीव ननकसावा । ननमशकार ननज गयब सभावा।।4।।

अरि ऩरुुष दहयण्मगबव ऩरुुष कहराता है। जजसभें सबी जीि रम ऩात ेहै। ब्रह्भा के ददिस कार भें िह जीिों को उसभे से फाहय ननकारता है औय यात्री कार भें अऩने दहयण्मगबव भें सभा रेता है।

दो0- हॊसातभा हयपषत बई जफ ऩणैख अरखा गॊग।

भनहय दृष्म आनन्द अथाह रख रख फढहहॊ उभॊग।।360।।

जफ अरि गॊगा को देिा जाता है तो हॊसात्भा फडा हवषवत होती है। िह फडा भनोहय औय अथाह आनन्दभम दृष्म है जजसे देिकय उभॊगें फढती है।

चौ0- ताऩय अगभ रोक पवस्ताया । अदबतु हॊसस्वरूऩ अऩाया।।

नाना सषृ्टी ऩाय न कोई । सो जानन स्जन्ह देणखऊ सोई।।1।।

उसके ऩये अगभ रोक का विस्ताय है। महाॊ अदबतु औय अऩाय हॊस स्िरूऩी आत्भा है महाॊ ऩय अनेकों सजृष्टमाॊ है जजनका कोई ऩाय नह ॊ। इसे िह जानता है जजसने उन्हे देिा है।

चौ0- अगोचय रोक अगभ के ऩाया । असॊखम याज्म हौं नमन ननहाया।। अगणणत रोक रोकेश अखॊडा । कयहहॊ याज्म ननज ननज ब्रह्भण्डा।।2।। अगभ के ऩाय अगोचय रोक है। िहाॊ भैं अऩनी आॉिो से असॊख्म साम्राज्म देिता हूॉ। अगखणत रोक है औय उनके अगखणत अभय रोकाधधऩनत है जो अऩने अऩने ब्रह्भाडों भें याज्म कयत ेहैं।

चौ0- आभ दयफाय असॊखम ऋपष सॊगा । सदा होहीॊ सतसॊग प्रसॊगा।।

ऩयभ प्रकाश व्माप्त नतन्ह रोका । ककॊ धचत नाहीॊ ऩीय दखु शोका।।3।।

सफका आभ दयफाय ऋवष भनुनमों के साथ रगता है जजसभें सदा सतसॊग प्रसॊग होत ेयहत ेहैं। इन रोको भें ऩयभ प्रकाि व्मातत है ककसी को बी ककॊ धचत भात्र बी दिु ऩीडा मा िोक नह ॊ है।

चौ0- उयजा गॊग तॉह फहहहॊ अऩाया । करय असनान सयुत उद्धाया।।

जे जे सषृ्टी भॊह सयुनत जावा । धनी फचन सनुन दयसन ऩावा।।4।।

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िहाॊ एक वििार ऊजाव गॊगा फहती है जजसभें स्नान कयके सयुनत भतुत हो जाती है। सयुनत जजस जजस सषृ्ट भें जाती है िह ॊ िह ॊ धननमों के फचन सनुती औय दिवन कयती है।

दो0- अगे्र अनाभी हॊस सयुत जाइ बई ऩयभहॊस।

अभतृ ऩाम अनीह फनन टरय कयभ देह पॊ स।।361।।

आगे अनाभी धाभ भें हॊसात्भाऐॊ जाकय ऩयभहॊस हो जाती है। औय अभतृ ऩाकय काभना यदहत हो जाती हैं। उसका देह भें आगभन (जन्भ भयण) की तथा कभों की पाॊस कट जाती है।

दो0- भोऺामबराषी आत्भा कयहहॊ पवधचत्र पवरास।

न चभकत यपव शमश दामभनन पवकमसत ननज प्रकास।।362।।

महाॊ भोऺाशबराषी आत्भामें विधचत्र आनन्द ऩान कयती है। िहाॊ न समूव चन्रभा औय बफजर ह चभकती है िहाॊ आत्भाओॊ का ननजज प्रकाि पैरा हुआ है।

चौ0- अनाभीधाभ सयुनत ननज रोका । नहहॊ जनभ भयण दखु शोका।।

बफयरे सॊत अभयऩद ऩाहीॊ । बफन ुसदगरु सरुब सो नाहीॊ।।1।।

अनाभी धाभ आत्भा का ननजज रोक है िहाॊ जनभ भयण दिु औय िोक नह ॊ है। इस अभयऩद को बफयरे ह प्रातत कयत ेहैं। औय मह बफना बेद सदगरुु सरुब नह होता।

चौ0- सकर बाॊनत ईश ननयाकाया । कफहुॊ न रेंहहॊ देह अवताया।।

यपव आहदक को धायक देवा । को पवधध होहहॊ देह भॊह ठेवा।।2।।

ईश्िय सिव प्रकाय से ननयाकाय है िह कबी बी देहािताय नह ॊ रेता। बरा समूव आदद को धायण कयने िारा देि देह भें कैसे फसेया कय सकता है ?

चौ0- स्जहह घट ताही तजे अवतायहहॊ । अवताय जानन जग नतहह अनसुयहहॊ।।

ताही पवबनूत सयु जगत धथयावा । नतन्ह नन ॊदक प्रब ुकृनत ठुकुयावा।।3।।

जजस घट भें उसका तजे उतय आता है उसी को सॊसाय अिताय जानकय उसका अनसुयण कयता है। उसकी विबनूतमाॊ (अॊि रूऩ भें) देिगण है जो जगत व्मिस्था कयत ेहैं। उनकी नीॊदा ऩयभेश्िय की यचना का अऩभान है।

चौ0- कयभ त ेजीव उच्च ऩद रेहू । पवधध हरय हय रधग देह गहेहू।।

कभापधाय सफ गहहहॊ शयीया । बटकत कपयत कार कृनत कीया।।4।।

कभों से जीि उच्च ऩद गहृण कय रेता है। ब्रह्भा विष्णु शिि तक की देह गहृण कय रेता है। तमोंकक कभों के आधाय ऩय ह िय य गहृण होत ेहैं औय जीिात्भा कार यधचत सषृ्ट भें बटकता कपयता है।

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दो0- सो अनाभी ऩयभ ऩरुष बव यधच अकताप शषे।

जीव प्रकृनत ब्रह्भ सोइ बवकृनत ऩात्र पवशषे।।363।।

िह अनाभी ऩयभ ऩरुुष जगद यचाकय बी िषे औय अकताव है िह स्िमॊ ह जीि प्रकृनत औय ब्रह्भरूऩ है औय सॊसाय यचना का वििषे ऩात्र है।

दो0- शस्क्त भामा नाभ है भामा प्राकृनत बत्रगणेु।

ऺेत्र मनुत सो ब्रह्भ सगणु ऺेत्र तजाई ननगुपणे।।364।।

िजतत का नाभ भामा है औय भामा बत्रगणुी प्रकृनत है। ऺेत्र (धचत) भें आने से िह ब्रह्भ सगणु है औय ऺेत्र से यदहत (अरग होने ऩय) िह ननगुवण ब्रह्भ है।

दो0- सो चेतन्म न स्थूर अणु दीघप न हृस्वाकाय।

स्ऩशप रूऩ अतीत रख अऺम ज्मोत अपवकाय।।365।।

िह चेतन्म ब्रह्भ न स्थूर है न अणु है औय न फडा है, न नाििान है। िह तो स्ऩिव – रूऩ से ऩये अऺम अविकाय ज्मोनत स्िरूऩ देिा जाता है।

दो0- सषृ्टीकार सो ऩणूप ब्रह्भ मदपऩ अजन्भा शषे।

ननज शस्क्त को जगरूऩ दइ व्मक्ताव्मक्त पवशषे।।366।।

सषृ्ट कार भें िह ऩणूव ब्रह्भ मदवऩ िह अजन्भा औय िषे है, अऩनी िजततमों (विबनूतमों) को जगदरूऩ देकय स्िमॊ ह व्मतत औय अव्मतत रूऩ से वििषे यहता है।

दो0- प्रकृनत ऺेत्र मौनन ननहाय जीवा फीज अनऩू।

कृषक चेतन्म ननगणुप ब्रह्भ पर रागे बवरूऩ।।367।।

प्रकृनत ऺेत्र को मोनन औय सभस्त जीिों को अदबतु फीजरूऩ तथा ननगुवण चेतन्म ब्रह्भ को कृषक रूऩ भें देिो। इस भें सॊसाय रूऩी पर रग जाता है।

दो0- सचखॊड प्राप्त भकु्तातभा बई जो ब्रह्भ पवरीन।

जगव्मवस्था धभापथप हहत ुधायहहॊ देह नवीन।।368।।

सचिॊड को प्रातत जो भतुतात्भा ब्रह्भस्िरूऩ भें विर न हो चुकी है, धभव औय जगदव्मिस्था के शरमे िे नमे नमे िय य धायण कयती है।

दो0- ऩयूण ब्रह्भ बत्रशस्क्त प्रधान जग सषृ्टी कयभ पवशषे।

“होयाभ” पवबनूत सो प्रगट ब्रह्भा पवष्णु भहेश।।369।। ऩणूव ब्रह्भ की तीन प्रधान िजततमाॊ है जजनका जग सषृ्ट भें वििषे कामव है। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक िह ब्रह्भा, विष्णु औय भहेि के रूऩों भें प्रगट हैं।

दो0- न कामप कायण “होयाभ” न कब ुकोऊ सभान। स्वाबापवक कक्रमा ऻान फर गणु मकु्त ऩरुष ऩयुान।।370।।

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श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक उस आददश्िय को न तो कोई कामव है न कायण है औय न उसके कबी कोई सभान है। िह ऩयभ ऩयुाण ऩरुुष स्िाबाविक ह कक्रमा ऻान औय िजतत गणु मतुत है।

दो0- इक यपव कक शतकौहट मभमर सॊग्रहॊहहॊ ननज उस्जमाय।

तदपऩ ककॊ धचत नतहह योभ सभ यपव जनन दीऩ कताय।।371।।

एक समूव तो तमा सौ कयोड समूव बी शभरकय अऩना प्रकाि सॊग्रह कयें तो बी उस प्रब ुके एक योभ के सभान बी नह ॊ है। ऐसा सभझो िे सफ ऐसे हैं जैसे कक समूव के सभऺ द ऩकों की कताय हों।

दो0- नहहॊ यपव शशी उहदत तहॉ नहहॊ उड्गन सभदुाम।

नहहॊ चभकत चऩरा चऩर नहहॊ अस्ग्न अनर उगाम।।372।।

िहाॉ न समूव चन्रभा उदम होत ेहै, न तायागण ह । न तीव्र विद्मतु चभकती है, औय न अजग्न ह अजग्न उत्ऩन्न कयता है।

दो0- “होयाभ” मत बान ुउदम मत होहहॊ अस्त शधुचधाभ। सकर ब्रह्भाण्ड पवरीन मत बफयर आप्त तत ठाभ।।373।।

श्री होयाभदेि जी कहत ेहै कक जजसभें समूव उदम होता है औय जजस ऩािन धाभ भें मह अस्त हो जात ेहैं औय जजसभें सभस्त ब्रह्भाण्ड विरम हो जात ेहै उस धाभ को कोई बफयरा ह प्रातत कयता है।

छ0- नतरहहॊ तरे दधधनीव घतृ ह्व ैसोतजुर काष्ठहहॊ अनर मथा।

यभऊ जगत पवश्वानन देव सो ज्मोनत स्वरूऩ ननयाकाय तथा।।

ऩहैठऊ मोगाभ्मास नाव भनुन ऩावहीॊ सोइ नासहहॊ व्मथा।

“होयाभ” फसहहॊ हहन्दतु्व ऩद अस मोगी अभोघ दरुपब कथा।।25।। जैसे नतरों भें तरे भतिन भें घी स्रोतों भें जर तथा काष्ठ भें अजग्न है उसी प्रकाय िह सभस्त विश्िात्भा ज्मोनत स्िरूऩ ननयाकाय प्रब ुजगत भें यभा हुआ है। भनुन जन मोगाभ्मास की नाि भें फठैकय उस ऩद को प्रातत कयत ेहै। औय उनकी ऩीडा (जनभ भयण कष्ट) नष्ट हो जात ेहैं। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक िह दहॊदतु्ि ऩद (है न द्ितै ऩद) भें फासा कयता है। ऐसा मोगी फडा ह दरुवब कहा गमा है।

दो0- मथा सरय ननज नाभ रूऩ तस्ज बई मसॊधु रीन।

तथा नाभ ननजरूऩ तस्ज सयुत बई ऺयहीन।।374।।

जैसे नद अऩना नाभ रूऩ त्मागकय सभनु्र भें विरम हो जाती है िसेै ह आत्भा अऩना रूऩ औय नाभ त्मागकय अविनासी ब्रह्भ हो जाती है।

दो0- ज्मूॉ सरयता फयखा मभमर गहहहॊ अम्फदु ननज नाभ।

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त्मूॉ आत्भ ऩयभब्रह्भ मभमर तलु्म बई ब्रह्भ दाभ।।375।।

जैसे नद फयसात के जर से शभरकय अऩना नाभ शसॊधु गहृण कय रेती है उसी प्रकाय आत्भा ऩयभब्रह्भ भें शभरकय ब्रह्भ सभान हो जाती है।

चौ0- धाभ अनाभी सयुत तजाई । अगभ अरख सतरोकहहॊ आई।।

नीह फस पॊ हद ऩाश मभ देसा। आवन सहज तॉह अरभ्म गभेसा।।1।।

सयुनत अनाभीधाभ को त्मागकय अगभ अरि औय सत्म रोक भें आ गई है औय ईच्छा के आधीन मभदेस के पॊ दे भें पॊ स गई है। इसका महाॊ आना तो सयर था ऩयन्त ुमहाॊ से िावऩस जाना दरुवब है।

चौ0- जनन कोऊ सौयण व्मौऩायी । यतन दयुावहहॊ यजत उघायी।।

अन्तरयभग मह बेद गहुानी । ऩयभ सऩुात्र सभऺ फखानी।।2।।

जैसे कोई स्िणव का व्मौऩाय यत्नों को नछऩाकय यिता है औय चाॊद ॊ को प्रत्मऺ िोरकय यिता है। उसी प्रकाय आन्तरयक भागव (सषु्भन गभन) का बेद अनत गतुत है औय ककसी ऩयभ सऩुात्र सॊत के सभऺ िणवन कय ददमा जाता है।

चौ0- भनभणुख ननगयुो सन नहहॊ गाऊॊ । जग थाऩन को कयभ यचाऊॊ ।।

जऩ तऩ तीयथ मऻ व्रत नाना । करय करय सयुत कार सखु ऩाना।।3।।

भैं भनभखुि ननगयेु के साभने इसे नह ॊ कहता औय जग की व्मिस्था के शरमे कभों का सजृन कयता हूॉ। नाना जाऩ तऩस्मा मऻ औय व्रतों को कय कयके सयुत को कार ननयॊजन का ह सिु प्रातत होता है।

चौ0- अनतकय जगद सयुग सखु कायन । कयहहॊ जीव सकृुनत पवधध धायन।।

बफयरे कोउ आत्भ हहत ुरागी । सत्मऩरुष बगती भन जागी।।4।।

अधधकतय विश्ि के स्िगावदद सिुों के कायण जीि नाना प्रकाय के सतकभों के विधान को धायण कयत ेहैं। कोई बफयरा ह जजसके भन भें सत्मऩरुुष की बगती जाग गई है, आत्भ दहत भें रगता है।

दो0- फनपूर पर खावहहॊ कयहहॊ फनखॊड फाॊस।

गय काभा भन भें फसे अॊतहहॊ भतृ्मभुखु ग्रास।।376।।

बरे ह जॊगरो भें फासा कयत ेयहें। पर पूर ह िात ेयहें हों। मदद काभनाऐॊ भन भें फसती हों तो िह अन्तकार भें भतृ्म ुका ह ग्रास फना यहता है।

चौ0- काभा तस्ज के जगद उदासी । भोऺ भरू भॊत्र सोई ऩासी।।

इकान्त वास ससुाधक सोई । सयूत भाहीॊ सयुत पऩयोई।।1।।

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औय जो भनषु्म काभनाओॊ को त्मागकय सॊसाय से उदासीन यहता है। उसी ने भोऺ का भरू भॊत्र प्रातत ककमा है। िह उत्तभ साधक एकान्त भें फासा कयके अऩने स्िरूऩ भें अऩनी आत्भा को वऩयो देता है।

चौ0- इस्न्रमॉस ुभन सॊहृत्म बवानी । आत्भ धथनत धायउ रक्ष्मानी।।

कयहहॊ उद्मोग भोऺोऩमोगी । आत्भ दयस हहत ुताऩस जोगी।।2।।

औय बिानी ! िह इजन्रमों से भन को हटाकय अऩने रक्ष्म को धायण कयके अऩने आत्भस्िरूऩ भें जस्थत हो जाता है। औय भोऺ के उऩमोग के शरमे िह तऩस्िी मोगी आत्भसाऺात्काय का उद्मोग कयता है।

चौ0- गय उद्मोग सपर होई जावा । ननसॊशम आतभ दयसन ऩावा।।

भूॉज पवरग करय इषीका जैसे । रखहहॊ देह मबन्न आतभ तसेै।।3।।

मदद उसका उद्मोग सपर हो जाता है तो िह ननसॊिम आत्भसाऺात्काय प्रातत कय रेता है। जजस प्रकाय भूॉज से सीॊक को अरग कय शरमा जाता है। इसी प्रकाय िह आत्भा को देह से शबन्न ह देिता है।

चौ0- तद नतहह नाहीॊ बम सॊसाया । हषप न शोक सदा अपवकाया।।

शस्त्र न बेदहहॊ भतृ्म ुन ग्रासा । जे जन सयुनत अभयऩद फासा।।4।।

तफ उसे सॊसाय का बम नह ॊ होता औय न हषव न िोक यहता है। िह सदा ननरेऩ यहता है। उसको न िस्त्र बेद सकत ेहैं न भतृ्म ुअऩना ग्रास फना सकती है जो भनषु्म अऩनी सयुती को अभयधाभ भें फसा देता है।

चौ0- अस जन सफ जग ऺयकय जानी । शतक्रतो की ऩद न चॊहानी।।

सम्मग ्धचतस्थ सदा घट भाहीॊ । यहहहॊ ननजात्भ रीन सदाहीॊ।।5।।

ऐसा व्मजतत साये जग को नाििान जानता है िह ईन्र के ऩद को बी नह ॊ चाहता िह अऩने घट भें सदा सम्मक धचत्त भे यहता है औय अऩनी आत्भा भें सदा र न यहता है।

दो0- आत्भ दयस सयुनत गभन सकर ऻान पवऻान।

मशवे फखानन हौ सकर कहहु जे सॊशम आन।।377।।

हे शििे ! भनेै तझुसे आत्भ साऺात्काय औय सयुनत मात्रा का सभस्त ऻान विऻान कह ददमा है अफ तमु्हे औय कोई सॊिम हो तो कहो।

दो0- कहह मशवा हे नीरकॊ ठ हौं जानन सफ साय।

जेहह ध्मान यत तभु कयत कार जगद व्मवहाय।।378।।

ऩिवती फोर कक हे नीरकॊ ठ तभु जजसके ध्मान भें र न होकय कार के देस (सॊसाय) का व्मिहाय ननबात ेहो िह सफ सायतत्ि भैंने जान शरमा है।

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26 – भन की दौड

दो0- फोरी मशवा कायण कवन भन चॊचर बयभाम।

को पवधध ऩहैठ इकान्त सो श्रीहरय ध्मान सभाम।।379।।

ऩािवती फोर कक ककस कायण से मह भन चॊचर है औय भ्रभता कपयता है ? औय ककस तयह ऐकान्त भें फठैकय िह श्रीहरय के ध्मान भें र न होता है ?

दो0- को पवधध सात शयीय भें सोड्ष चक्र टुटूट।

ननजऩयु अनाभी सयुत चहढ जाम कार खॊड छूट।।380।।

औय कौन सी विधध से सात िय यों भें सोरह चक्रो का छेदन होता है औय सयुनत अऩने भरू देस अनाभी भें चढती है औय कार का देस छूट जाता है ?

दो0- फोरे मशव हे सभुणुख सॊत ; कहुॊ बेद सभझाम। कार जार से भन पवयक्त सयुनत सॊग सहाम।।381।।

शिि जी फोरे कक हे सभुखुि सॊत भैं मह बेद सभझाकय कहता हूॉ। कार के जार से वियतत होकय हभाया भन सयुनत के साथ सहामक हो जाता है।

दो0- कारभामा अॊश भन मह चॊचर चऩर “होयाभ”।

पवचयत स्वछॊद सयुनत फर पऩ ॊड ब्रह्भाण्ड की ठाभ।।382।।

कार औय भामा का अॊि मह भन चॊचर औय चऩर है। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक मह सयुनत के फर से ह स्िछॊद वऩ ॊड औय ब्रह्भाण्डी देसो भें विचयता है।

चौ0- ब्रह्भण्ड ऩाय सयुत जफ जाई । भनआु तॉह नतहह सॊग तजाई।।

ननज स्वायथ को भन फरवाना । फस कय रीन्ही सयुत भहाना।।1।।

सयुनत ब्रह्भाण्ड के जफ ऩाय जाती है तफ िहाॊ भन उसका सॊग त्माग देता है। अऩने स्िाथव के शरमे इस फरिान भन भें इस भहान सयुनत को अऩने फस भें कय शरमा है।

चौ0- भामा भाॊझ फहह सयुनत धाया । जास ुभनेस्न्र ऩीव अभी साया।।

कयभन भरू मह यस जानी । सखु दखु भरू कृनतकभप परानी।।2।।

सयुनत की धाया भामा भें फहती है जजससे भन औय इजन्रमाॊ उसका सभस्त अभतृ ऩी जात ेहैं मह इस कभों की जड जानी गई है। सिुों औय दिुों का भरू ककमे गमे कभो का पर ह होता है।

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चौ0- ईश बफभखु जफ रधग भन होवा । बोगहहॊ जीव दखु सद्मनत खोवा।।

काभ क्रोध भद रोबउ भोहा । कायण नतन्ह भन दयुगनत जोहा।।3।।

भन जफ तक ईश्िय से विभिु है तफ तक ह जीि सद्मनत िोकय दिु बोगता है। काभ क्रोध अहॊकाय रोब औय भोह औय इन्ह के कायण भन दगुवनतमों को झेरता है।

चौ0- प्रीतभ ऩद गय मभरना चाॉहीॊ । भनआु सयुत्माधीन यखाहीॊ।।

सयुनत सॊग भन आमसधुायी । बमउ सयुतभकु्त कयभ बफहायी।।4।।

मदद ऩयभेश्िय से शभरना चाहत ेहो तो भन सयुनत के आधीन यिो तमोंकक सयुनत के साथ आऻाकाय भन यहेगा तो सयुनत कभों भें विहाय कयने भें भतुत हो जाती है।

दो0- तीन ठाभ भन की बई पऩ ॊड अॊड ब्रह्भण्ड देस।

नतन्ह पवबनूत भामा फस भ्रमभत जगद करेस।।383।।

वऩ ॊड अॊड औय ब्रह्भाण्ड के देसों भें भन की तीन ठाभ है उनकी विबनूतमों की भामा के आधीन मह जगत के तरेिों भें भ्रशभत है।

चौ0- पऩ ॊडी भन पऩ ॊड रखहहॊ सजुाना । ऩहैठउ अक्षऺ कॊ ठ उयथाना।।

पऩ ॊडहहॊ भन कय अतरु प्रबावा । जीवन ऩश ुसभ जीव बफतावा।।1।।

ऻानी जन वऩ ॊडी भन को वऩ ॊड भें देित ेहै जो आॊिे कॊ ठ औय रृदम स्थान भें फठैक यिता है तथा वऩ ॊड भें भन का वििषे प्रबाि होता है जजससे जीि ऩि ुके सभान जीिन बफताता है।

चौ0- अॊडदेस अॊडीभन गाजै । सहस्त्र कॊ वर ज्मोनत रधग याजै।।

तीसय भन ब्रह्भाण्ड भहाभा । सयुत सॊग बत्रकुहट सनु्न गाभा।।2।।

अॊडदेस भें अॊडी भन है जजसका सयुनत के साथ सहस्त्र-दर-कभर की ज्मोनत तक याज्म है। तीसया भहाभदहभ ब्रह्भाण्डी भन है जो सयुत के साथ बत्रकुदट से सनु्न तक आता जाता है।

चौ0- सभुन कुभन भन दोउ प्रकाया । नतन्ही प्रबाव ुमबन्न मबन्न धाया।। सभुन शधुचता पववेक ऺभावा । बोग पवरास यस कुभन धावा।।3।।

सभुन औय कुभन दो प्रकाय का भन है। उनका शबन्न शबन्न धायाओॊ भें प्रबाि होता है। सभुन ऩवित्रता वििेक औय ऺभा बाि कयता है। कुभन बोग विरासों के यस भें दौडता है।

चौ0- पऩ ॊडी भन बत्रगणु यस चाखी । अॊडी प्रभखु सतयज गणु याखी।।

भन ब्रह्भाण्डी सतव प्रधाना । अनत ननकट सयुनत सॊग ऩाना।।4।।

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वऩ ॊडी भन बत्रगणु (सत, यज, तभ, गणुों) का यस चिता है। अॊड भें भन प्रधान रूऩ से सत औय यज गणु को धायण कयता है। औय ब्रह्भाण्डी भन सतोगणु प्रधान है जो आत्भा का अनत ननकट साननध्म प्रातत कयता है।

दो0- “होयाभ” भन चॊचर अनत कयत भनन सफ कार। हृदम कभर अष्ट ऩॊखरयन पवचयत बत्रगणुी जार।।384।।

श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक मह भन अनत चॊचर है जो प्रत्मेक सभम भनन कयता यहता है औय िह सत-यज-तभ गणुों के जार भें रृदम कभर की अष्ट ऩॊिडडमों ऩय विचयण कयता यहता है।

दो0- सत यज तभ यत भन चतयु कयहहॊ नाना कक्रडाम।

इक छन भनन बफसयत नहहॊ ऩर ऩर भनत हरडाम।।385।।

सत यज औय तभ गणुो भें र न मह चतयु भन नाना प्रकाय की कक्रमा कयता है। एक ऺण को बी भनन कयना नह ॊ बरूता। ऩर ऩर भें फवुद्ध को स्पूरयत कयता यहता है।

चौ0- ऩवूोत्तय भनवा जफ जावा । सेवाहद कयभ रूधच धचत्त रावा।।

ऩवूप गभन बस्क्त भनराई । ऩस्श्चभ ऩॊखरय रयहद मसहद बाई।।1।।

ऩिूव उत्तय भें जफ भन जाता है तफ सेिाददक कभव धचत्त भें राता है। ऩिूव की ओय जाने ऩय भन बजतत राता है। ऩजश्चभी ऩॊिडड ऩय ऋवद्ध शसवद्ध भन को अच्छी रगती है।

चौ0- उत्तय ऩनछभ गमऊ भन जफहहॊ । दयूस्थ मात्रा चॊहहहॊ भन तफहहॊ।।

उत्तय हदसा भन जफ जावा । भथैुन कयभ चाह भन आवा।।2।।

जफ भन उत्तय ऩजश्चभ को जाता है तफ भन दयू की मात्रा चाहता है औय भन जफ उत्तय की ददसा भें जाता है तो भथैुन कभव की ईच्छा भन को आती है।

चौ0- बरूई भन गय दक्षऺण जाई । होंहहॊ यत छर ऩयऩॊचताई।।

दक्षऺण ऩयूफ हदसा भहाना । आरस्म प्रभाद चॊह भन ऩाना।।3।।

औय मदद बरू से भन दक्षऺण भें जाता है तो छर ऩािॊड भें र न होता है। दक्षऺण ऩयूफ की ददसा भहान है िहाॊ भन आरस्म मा याग यॊग प्रातत कयना चाहता है।

चौ0- दक्षऺण ऩस्श्चभ हदसा सहुानी । बोग एशवरयम भनहहॊ सभानी।।

सतयज तभ गणु मथा प्रधाना । नतष ऩॊखरय भन कयहहॊ प्रमाना।।4।।

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दक्षऺण ऩजश्चभ की ददसा सहुािनी है िहाॊ बोग विरास भन भें सभात ेहै। जैसा ह सत यज तभ गणुों का प्रबाि होता है भन उसी ऩॊिडड भें प्रस्थान कयता है।

दो0- हृदम कभर भध्म आइ चहॊहह फस एकान्त।

ध्मान मोग ननयफीज धचत्त हरय बजन भन शान्त।।386।।

रृदम कभर के फीच भें आकय भन फस एकान्त चाहता है औय ध्मान मोग भें धचत ननफीज कयके हरय बजन भें भन िान्त होता है।

चौ0- कार प्रचॊड ब्रह्भॊड के भाहीॊ । ईश नायामण नाभ धयाहीॊ।।

सत्मऩरुष की ऻान दयुाई । कार भता जग भाॊहहॊ यचाई।।1।।

ब्रह्भाण्ड भें कार फरिान है। इसने ईश्िय नायामण नाभ धया शरमे है औय सत्मऩरुुष का ऻान छुऩा ददमा है औय अऩना कार भत जगत भें पैं रा ददमा है।

चौ0- सफ जीवहह आखेट चयैहहॊ । जीव फमर बवफॊधन कयैहहॊ।।

जीव पाॊस कभपजार यचावा । जीवा खाम जीवहह नचावा।।2।।

औय साये जीिों का शिकाय िाता है। सॊसाय भें जीिों की फशर का फॊधन कयता है। जीिों को पाॊसने के शरमे कभवजार यचता है औय जीिों को िाकय जीिों को ह पॊ साता है।

चौ0- जे जन जीव वध गहह पाॊसा । ऋण अदाहहॊ कटाइ ननज भाॊसा।।

इह पवधध पऩ ॊडहहॊ भन फरवाना । कार भता यधच जीव पॊ दाना।।3।।

जो व्मजतत जीि हत्मा की पाॊस गहृण कयता है िह अऩना भाॊस कटाकय ह कजव चुकाता है। इसी प्रकाय वऩ ॊड भें भन फरिान है जो कार का भत पैराकय जीिों को पॊ साता है।

चौ0- जे जन ननज भन करय वमशबतूा । सचखॊड बेद ऺम कारसतूा।।

तद मह भन सयुत के सॊगा । सचखॊड गभन कयहहॊ प्रसॊगा।।4।।

जो व्मजतत अऩने भन को िशिबतू कय रेत ेहैं उनको सचिॊड का बेद हो जाने ऩय कार सतू्र नष्ट हो जाता है तफ मह भन सयुनत के साथ सचिॊड भें जाने का प्रसॊग िरुु कयता है।

दो0- सभुन घाट चरे सॊत जन ननज अॊत रेत सधुाय।

“होयाभ” कुभन ऩथ जो चमर ऩयूण आम ुधधक्काय।।387।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक सॊतजन सभुन के घाट से चरत ेहैं औय अऩना अन्त सभम सधुाय रेत ेहैं। औय जो कुभन के भागव से चरत ेहैं उनके ऩणूव जीिन को धधतकाय है।

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चौ0- काभ क्रोधाहद ऩॊच पवकाया । नहीॊ अकायण यचै कयताया।। पवषम पवकाय गय प्रब ुकरय नासा । जगद व्मवस्था नतन्हहह सॊग छासा।।1।।

काभ क्रोध आदद ऩाॊच विकाय ऩयभेश्िय ने अकायण ह नह ॊ यच ददमे तमोंकक मदद प्रब ुऩाॊचो विषम विकायों को नष्ट कय देत ेतो सॊसाय की व्मिस्था ह नष्ट हो जाती।

चौ0- काभ सों उऩस्ज सकर सॊसाया । क्रोध बफना अनशुासन ऺाया।।

रोब बफना जग जीपवमा नाहीॊ । भोह बफना मशश ुनहहॊ ऩोषाहीॊ।।2।।

काभ से साया सॊसाय उत्ऩन्न होता है, क्रोध के बफना अनिुासन नह ॊ यहता, रोब के बफना जग भें जीविका नह ॊ है औय भोह के बफना शिि ुका ऩोषण (रारन ऩारन) नह ॊ हो सकता।

चौ0- कयभ न प्रगटे बफन ुअहॊकाया । कयभ बफना नहहॊ जग धथनतकाया।।

ऩॊच पवकाय जीव देह यहहीॊ । सॊमभ प्रमोग बफन ुअकयभ अहहीॊ।।3।।

कभव बफना अहॊकाय प्रगट नह ॊ होता औय कभव के बफना सॊसाय की व्मिस्था जस्थनत सदुृढ नह ॊ होती। ऩाॊचों विकाय जीिों की देह भें यहत ेहैं। सॊमभ यदहत प्रमोग से अकभव हुआ कयत ेहैं।

चौ0- ऩनुन ऩनुन भनहहॊ पवयाग फढाव ै। सयुनत सॊग नब ऩॊथ चढाव।ै।

अन्तरयनाभ सधुाभन जौयी । श्रुत ननयख भग चमर ननज ऩौयी।।4।।

फायम्फाय भन भें ियैाग्म फढािे औय उसे सयुनत के साथ गगन भागव ऩय चढाि।ै औय अन्तरय नाभाभतृ से भन को जौड कय श्रुत (सनुना) ननयि (देिना) दोंनों यास्तों से अऩने भरूधाभ की मात्रा कये।

छ0- भन कौतकु पवधचत्र अनत गनत दोउ प्रकाय कायज फयहीॊ।

फाहहरय भरगॊद कुभन सदा अन्तरय सयुत सेज ऩइ धयहीॊ।।

अन्तरय सभुन सो फाहहय डायइ आतभ सेज स्वच्छ कयहीॊ।

“होयाभदेव” द्व ैऺेत्र दोउ भन ननज ननज काज सदा अनसुयहीॊ।।26।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक भन का अनत विधचत्र कौतकु है जजसका िह दो प्रकाय से िणव कयता है। िाह्म भन फाहय का गॊदा भर (ऩाऩ प्रऩॊच) घट बीतय आत्भा की सेज ऩय राकय धयता यहता है। औय अन्तय भन उस भर को िहाॊ से फाहय पैकता यहता है। इस प्रकाय दोंनों भन (सभुन औय कुभन) अऩने अऩने दोंनो ऺेत्रों भें अऩने अऩने कामों का अनसुयण कयत ेहैं।

दो0- धचदात्भ धाया सधुायस जे भन अनतकय ऩाम।

नतष रक्ष्म साथ सयुनत गभन सॊकल्ऩ फर ऩइ धाम।।388।।

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चेतन्म आत्भधाय का अभतृयस जौन सा भन अधधक प्रातत कयता है उसके सॊकल्ऩ फर ऩय उसकी सयुनत की मात्रा उसीकी ओय को चर जाती है।

दो0- भनआु शे्रष्ठ भहत्ता मह जे यॊग दें यॊग जाम।

“होयाभ” ऩनुन सो न छुटे बगनत यॊग यॊगाम।।389।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक भन की मह शे्रष्ठ भहत्ता है कक उसे जजस यॊग भें यॊग दो उसी भें यॊग जाता है औय कपय िह यॊग नह छूटता। इसशरमे भन को बगनत के यॊग भें यॊग देना चादहमे।

छ0- ननसॊश्म भन अनतशम चॊचर सरय सभ फेधग फहाव ुबमॊक।

पवयागाभ्मास सो वमशबतूहहॊ जनन ग्रहणे ग्रासहहॊ भमॊक।।

इकाग्रधचत्त स्जहह भन वमशकय ध्माहहॊ नासहहॊ नतहह फमॊक।

“होयाभ” ननजात्भ देणख चयाचय अहहहॊ नतहह आत्भदशप ननशॊक।।27।। ननसॊदेह भन अनत चॊचर है इसका सरयता के सभान िेग िारा बमॊकय फहाि है कपय बी ियैाग्म औय अभ्मास से िह िशिबतू हो जाता है जैसे कक गहृण भें चॊरभा ग्रास फन जाता है। एकाग्र धचत से भन को फस भें कयके ध्मान मोग भें उसके सफ विकाय नष्ट हो जात ेहै। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक चयाचय प्राखणमों भें अऩनी ह आत्भा को देिने से ननसॊदेह आत्भ साऺात्काय हो जाता है।

दो0- गहु्म ऩयभतत्व चन्रप्रबा तभु सन कहह “होयाभ”।

ऻानसागय अरू सक्सेना धन्म सनुन तत्व शचुाभ।।390।।

श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक चन्रप्रबा मह गोऩनीम ऩयभतत्ि भैंने तभुसे कहा है तथा ऻानसागय एिॊ सत्मप्रकाि सतसेना इस ऩािन तत्ि को सनुकय धन्म हो गमे है।

27 – मशव शॊकय कोऩ

दो0- मशव चौदस मशव यात्री फणूझउ मशवा बफचारय।

कवन सात शयीय प्रबो कस षोड्स दयुग उखारय।।391।।

शिि चौदस शिियात्री भें शििा ने विचाय ऩिूवक ऩछूा कक सात िय य कौन कौन से है औय उनके सोरह चक्रों को ककस प्रकाय बेदन ककमा जाता है ?

दो0- सप्त देह दयुग तौयन पवधध ; जफ मशव राधग फखान। अॊडज चेतन्म हुइ दई ; हुॊकाय मशवा की फान।।392।।

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सात िय य औय उनके चक्रों को तोडने की विधध जफ शिि फताने रगे तो शििा की आिाज भें अॊडा चेतन्म होकय हुॊकाया देने रगा।

चौ0- सनुत सनुत मशवा गई सोवा । बाग्म हीन सअुवसय खोवा।।

मशवा मशवा मशव जफहहॊ उच्चायी । तफ तफ अॊडज दई हुॉकायी।।1।।

औय सनुत ेसनुत ेऩािवती सो गई। बाग्म भें जो चीज न हो तो िह अिसय िोमा ह जाता है। जफ जफ बी शिि जी शििा फोरत ेथे तफ तफ अॊड ेका शिि ुहुॉकाय देता यहा।

चौ0- मशव बाषउे हे पप्रम बवानी । प्रथभ बौनतक देह जग जानी।।

द्व ैचभपनमन स्जहह के भाहीॊ । सो सफ बौनतक जगद रखाहीॊ।।2।।

शिि जी फोरत ेगमे कक हे वप्रम बिानी ! प्रथभ बौनतक देह है जजसे सॊसाय जानता है जजसभें दो चभवचऺु होत ेहै। िे सभस्त बौनतक जगत को ददिात ेहै।

चौ0- षट्चक्र नतष भाहीॊ तौया । ऩावत साधक रयहद मसपद्ध ऩौया।।

दसूय देह मर ॊग देह फखानी । तीसय नमन मह ठाभ भहानी।।3।।

इसभें षट्चक्र को तोडा जाता है औय साधक ऋवद्धमों का धाभ ऩा जाता है। दसूय देह शर ॊग देह कह गई है। औय तीसये नेत्र का मह भहान केन्र है।

चौ0- तीसय सकू्ष्भ देह अऩाया । हदव्म नमन ननद्ध्मान अधाया।।

सो सफ सकू्ष्भ रखहहॊ सॊसाया । सभथप न देणख आहद कयताया।।4।।

तीसय सकू्ष्भ देह अऩाय है। जजसभें ध्मानस्थ अिस्था भें ददव्म नेत्र िुरता है। िह नेत्र सभस्त सकू्ष्भ सॊसाय को देिता है ऩयन्त ुआददश्िय कताव को िह देिने भें असभथव है।

चौ0- भानस तन भनुन चतथुप उच्चायी । भानस नमन इक जेहहॊ उघायी।।

देखत सऩुन यधचत दृष्म सोई । भामा यधचत भामाभम होई।।5।।

भनुनमों ने चौथी भानस देह कह है जजसभें एक भानस नेत्र िुरता है। िह स्ितन भें यचे गमे दृष्मों को देिता है भामा से उत्ऩन्न होने के कायण मह बी भामाभम होता है।

दो0- ऩॊचभ कायण शयीय भॊह इकप्रऻा नेत्र पवशषे।

कायण जगद पवरोकहीॊ सभथप न देणख सत्मेश।।393।।

ऩाॊचिें कायण िय य भें एक वििषे प्रऻा नेत्र होता है जो कायण जगत को देिता है ऩयन्त ुिह बी सत्मऩरुुष को देिने भें सभथव नह ॊ है।

चौ0- सष्टभ भहाकायण सकुामा । खुरहहॊ ऋतम्बया नेत्र अथामा।।

सचखॊड धाभ सकर पवस्तायी । सो सभथप सफ सहज ननहायी।।1।।

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छटा भहाकायण उत्तभ िय य है जजसभें अथाम ऋतम्बया नेत्र िुरता है। सचिॊड धाभ का सभस्त विस्ताय मह नेत्र सहज ह देिने भें सभथव है।

चौ0- चारय जगत की सकर ऩदायथ । कछुक न ओझर देणख मथायथ।।

आगे ननवाणी देस पवशखेा । नमन न देह सयुत तद देखा।।2।।

चायों विश्ि (वऩ ॊड जगत अॊड – ब्रह्भाण्ड औय सचिॊड जगत) के सभस्त ऩदाथों को िह मथाित देिता है। उससे कुछ बी औझर (नछऩा हुआ) नह ॊ है। इससे आगे वििषे ननिावणी देस है जहाॉ न िय य है न उसका नेत्र है तफ सयुनत स्िमॊ से स्िमॊ भें देिती है।

चौ0- को पवधध खुरहहॊ नमन प्रत्मेका । मशवा बेद कहुॊ इक ऐका।।

अगाथ ननफीज सभाधध भाहीॊ । ब्रह्भाण्ड बेद सहज खुमर जाहीॊ।।3।।

प्रत्मेक नमन ककस तयह िुरता है श्री शिि एक एक का बेद कहने रगे कक अगाध ननफीज सभाधी भें जाकय ब्रह्भाण्ड का सभस्त बेद िुर जाता है।

चौ0- जनन बजुॊग कैं चुयी तजावा । सप्ततन ुछूटन बेद सनुावा।।

को पवधध सॊत गहे अभी ऩाॊचा । गोऩ बेद मशवा कहुॊ साॊचा।।4।।

जैसे सऩव कैं चुर को त्मागता है िसैा ह सातों देह त्मागने का बेद सनुाता हूॉ औय ककस विधध से सॊतजन ऩाॊचो अभतृ को प्रातत कयत ेहैं ? िह गोऩनीम बेद हे शििानी भैं साॉची कहता हूॉ। (मह प्रमोगात्भक ऻान है जजसको शरि ददमा गमा है ऩयन्त ुबफना तत्िदिी गरुु इसका बेद असम्बि है।)

चौ0- सो सफ बेद मशव सभझाई । मशव दृष्टी सभुणुख भखु थाई।।

भहादेव तफ कीन्ह पवचाया । सोवत मशवा को देहहॊ हुॊकाया।।5।।

िह साया बेद शिि जी ने सभझा ददमा। अचानक शिि बगिान की दृष्ट ऩािवती के भिु ऩय गई तो श्री शिि िॊकय ने विचाय ककमा कक ऩािवती तो सो यह है कपय हुॊकाया कौन देता है ?

दो0- अभयकथा मशवभखु सनुन शकुा अनत हयषाम।

“होयाभदेव” पौरय अॊड फाहहय प्रगटो आम।।394।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक श्री शिि जी के भिु से अभय तत्ि कथा सनुकय िकु (तोता) फडा प्रसन्न हुआ औय अॊडा पौडकय फाहय आकय प्रगट हुआ।)

चौ0- मशव देणख ननज बामभनन सोवा । साय सनुन शकु प्रसन्न होवा।।

उठा बत्रशरू भायन नतहह रागे। शकुा उयो हय ऩाछर बागे।।1।।

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श्री शिि जी ने देिा कक भेय ऩजत्न तो सो यह है औय तोता सफ तत्ि सनुकय हवषवत हो यहा है। िे बत्रिरू उठाकय उसे भायने रगे। तफ िकु उड गमा औय शिि जी ऩीछे ऩीछे बागने रगे।

चौ0- उयत उयत अरू उरूझ उफाई । सनु्दय नगय शकु दृष्टी आई।।

शकु अवसाद उयो उत ओया । बवन चहढ नव नारय ननहोया।।2।।

उडत ेउडत ेऔय उफकाईमों भें उरझे हुिे तोत ेकी दृष्ट एक सनु्दय नगय ऩय ऩडी। हाया थका तोता उसकी ओय उड चरा िहाॊ उसने एक बिन के ऊऩय चदढ एक सनु्दय नि मौिना स्त्री देिी।

चौ0- बमर वस्त ुमदपऩ सन आहीॊ । बाग्म बफना नय ऩावत नाहीॊ।।

दाख ऩके बोज्म कय मोगा । रागहहॊ तहॊ काग कॊ ठ योगा।।3।।

उत्तभ िस्त ुमद्मवऩ सम्भिु आ बी जाती है तो बाग्म के बफना भानि उसे प्रातत नह ॊ कय ऩाता। जैसे कक भनुतिा के ऩक जाने से जफ िह िाने मोग्म हो जाती है तो कोए के कॊ ठ भें योग उत्ऩन्न हो जाता है।

चौ0- मशवा अभय बेद नहहॊ रीफा । सजग शकुा सधुा सफ ुऩीफा।।

जे इकफाय अभय होइ जाई । नहहॊ सभथप को ताही नसाई।।4।।

इसी प्रकाय ऩािवती ने अभतृ तत्ि प्रातत नह ककमा औय सािधान तोता ने साया अभतृ ऩी शरमा एक फाय जो अभय हो जाता है कपय ककसी की साभथव नह है जो उसका नास कये।

दो0- बवन चहढ सो मौवना आऩनु केस सखुाम।

“होयाभ” हाय नोरख नतहह गर भॊह शौबा दाम।।395।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक मिुनत जो अऩने भकान ऩय चढकय अऩने केस सिुा यह थी जजसके गरे भें नौरिाहाय िोबा दे यहा था।

दो0- औसय अचूक बफरोकई शकु अदृष्म देह धाय।

गरहाय भणण प्रपवष्ठऊ मशव नहीॊ भानन हाय।।396।।

अचूक अिसय देिकय तोता अदृष्म देह धायण कयके गरे भें ऩड ेहुिे हाय की भखण भें घसु गमा। ऩयन्त ुश्री शिि ने हाय नह भानी।

चौ0- मशव भनुन बेष धरय तत्कारा । धूनन रगाम दय डयेा डारा।।

जफहहॊ शकु हाय ननकसहौं । सोचत मशव तदा बफनसहौं।।1।।

श्री शिि जी ने तयुन्त भनुन का बेष धायण कय शरमा औय बिन के द्िाय ऩय धुना जभा ददमा औय भन भें सोचने रगे कक तोता जफ बी हाय से ननकरेगा तबी उसे भाय दूॊगा।

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चौ0- घात जुयाम हदवस एक आवा । असनान कयन मवुनत भन बावा।।

हाय उतारय खॊहट उरूझाई । औझर होई कऺ भॊह जाई।।2।।

घात भें फठेै एक ददन ऐसा आमा कक उस स्त्री के भन भें स्नान कयने की आमी। इसशरमे उसने िह हाय उताय कय िूॊट ऩय रटका ददमा औय कभये भें जाकय औझर हो गई।

चौ0- शबु अवसय भहादेव पवचारय । कुक्कुट बेष धरय हाय उतारय।।

झटक हाय भणणका नछटकाई । इक इक कण मशव सफ धचन खाई।।3।।

श्री शिि जी ने उत्तभ अिसय जानकय भगेु (कुतकुट) का बेष धायण कयके िह हाय उताय शरमा। औय झटक कय साय भखणमाॊ बफिेय द औय एक एक भखण (फीज) को चुन चुन कय िाने रगे।

चौ0- जे भणणकण शकु गपु्त दयुावा । सो यक्षऺत हय ऩगतर ुआवा।।

ऩनुन कुक्कुट फेदी हढॊग आमे । शकु पवनास देणख हयषामे।।4।।

जजस फीज भखण भें तोता छुऩा हुआ था िह भहादेि जी के ऩग के तरऐुॊ के नीचे आ गई औय तोता सयुक्षऺत यह गमा। कपय कुतकुट धूने के ऩास आ गमा औय तोत ेको भया जानकय प्रसन्न होने रगा।

दो0- तफ मशव भरू स्वरूऩ धरय धामऊ भन हयषाम।।

“होयाभदेव” ऩग सो ननकमस शकुा गभन ऩथ धाम।।397।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक तफ श्री शििजी ने अऩना भरू स्िरूऩ धायण कय शरमा औय हवषवत होकय चरने रगे तो ऩयै के नीचे ननकरकय तोता आकाि भें उड गमा।

चौ0- शकु देणख मशव ऩाछर बागे । वेधग उयौ शकु आगे आगे।।

शकु पवकर श्रीऩनत हढॊग आवा । भाॊधग शयण भहुह नाथ यछावा।।1।।

तोत ेको देित ेह शिि उसके ऩीछे बागने रगे। तीव्र िेग से तोता आगे आगे उडता गमा। व्माकुर होकय तोता श्री हरय के ऩास ऩहुॉचा औय ियण भाॊगी औय कहा कक हे स्िाभी भेय यऺा कयो।

चौ0- हय देणख हरय हय सभझाई । तदपऩ ऩरयमास बफपर सफ जाई।।

हय सॊग हरय ब्रह्भऩरुय आवा । मशव हठ सफ वतृाॊत फझुावा।।2।।

शिि जी को देिकय श्री हरय ने शिि को सभझामा कपय बी उनका साया प्रमास विपर ह हो गमा। तफ श्रीहरय श्रीशिि के साथ ब्रह्भा के देस आमे औय श्री शिि की साय कथा औय हठधभी फताई।

चौ0- तफ ब्रह्भा हरय हय सन फोरे । अभतृ सकर बेद तभु खोरे।।

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सनुो पवनम हे भहा बत्रऩयुारय । अभय बमो शकु कयों पवचारय।।3।।

तफ ब्रह्भा जी ने श्रीहरय के सभऺ कहा कक तभुने हे शिि अभतृ तत्ि का सभस्त बेद उसे िोर ददमा है। हे भहान बत्रऩयुारय भेय विनती सनुो औय विचाय कयो मह तोता अफ अभय हो गमा है।

चौ0- जे पवधध अभय सफ प्रानी । सो सफ गहु्म बेद शकु जानी।।

को पवधध अभरयत ऩावहहॊ मोगी । सो प्रमोग शकु जानन सॊजोगी।।

गहु्म बेद तभु दीन्ही जफ जफ । दैववस मशवा सोमी तफ तफ।।4।।

जजस विधध से सफ प्राणी अभय होत ेहैं िह सफ गतुत बेद तोत ेने जान शरमे है औय ककस प्रकाय अभतृ मोगी प्रातत कयत ेहैं िे सफ प्रमोग सॊमोगिि तोत ेने जान शरमे है। औय हे शिि जफ जफ आऩ ने अभतृ के गहु्मानतगहु्म यहस्म प्रगट ककमे थे तफ तफ ह बाग्मिस ऩािवती जी सोती जाती यहती थी।

दो0- “होयाभदेव” बत्रदेव तद भॊत्रणा इकभत कीन्ह। शकुहह नाभ शकुदेव धयी भानव तन बफधध दीन्ह।।398।।

श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक तफ तीनों देि (ब्रह्भा विष्णु औय भहादेि) ने एकभत से विचाय ककमा जजससे ब्रह्भा जी ने भानिदेह देकय उसका िकु से िकुदेि नाभधय ददमा।

दो0- फोरे हरय हे नीरकॊ ठ जे तत्व कहह गहुाहहॊ।

अभयकथा जग जाननहैं मशव ननशा ऩवप कहाहहॊ।।399।।

श्रीभन्नायामण हरय फोरे कक हे नीरकॊ ठ भहादेि जो अभयकथा तत्ि आऩने गपुा भें कहा है उसे सॊसाय अभयतत्ि (अभयकथा) के नाभ से जानेगा तथा िह भहुुत्तव शिियात्री ऩिव कहरामेगा।

दो0- प्रथभ बत्रजुग कार भॊहह गहुम यहहहैं मह ऻान।

काव्मफद्ध हरययम्भादेव कधथहैं करौ भहान।।400।।

कपय (श्री हरय ने कहा) कक ऩहरे तीन मगुों भें मह अभयतत्ि विऻान गहु्म यहेगा औय भहान कशरमगु भें हरययम्भादेि (होयाभदेि) इसे काव्म फद्ध यचके ऩनु् प्रगट कयेंगे।

28 – शकु बमे शकुदेव

दो0- ऩनुन फणूझऊ ईन्रसहाम शकु बा कुतो ननवास।

सो कस अवधूता बमे जग यहह जगत उदास।।401।।

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ईन्र सहाम ने ऩछूा कक कपय िकुदेि का कहाॉ ननिास हुआ ? औय िह कैसे अिधूत भनुन हो गमे तथा जग भें यहकय जग से उदासीन कैसे हो गमे ?

दो0- कस प्रगहटऊ शकु तन ुऩाई ऻान पवयाग। कहत “होयाभ” ईन्दय सनुो भनहहॊ इकाग्रनत राग।।402।। औय ककस प्रकाय िकु ऩऺी को भानिदेह प्रगट हुई तथा कैसे ऻान ियैाग्म प्रातत ककमा ? तफ श्री होयाभदेि जी ने कहा कक ईन्र सहाम भन भें एकाग्रता राकय सनुो।

दो0- हहभ शरै मशखय भेरू धगरय कर आश्रभ भनुन व्मास। सतु काभा करय घौय तऩ मशव बगनत पवशवास।।403।। दहभारम की चोट ऩय भेरू ऩिवत ऩय भहवषव भहाभनुन व्मास का यभणीम आश्रभ था जजसभें ऩतु्र की काभना से शिि बजतत भें विश्िास कयके व्मास जी ने घौय तऩ ककमा था।

दो0- उभा सहहत तफ प्रगहटऊ मशव रख रयपष तऩस भहान। “होयाभदेव” प्रसन्नवदन कहह भाॊगऊ वयदान।।404।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक तफ बिानी के सॊग श्री शिि िॊकय जी ऋवष की भहान तऩस्मा देिकय प्रगट हुिे थे औय प्रसन्न धचत्त भिु से ियदान भाॊगने को कहा था।

चौ0- सम्भखु रख मशव सॊग बवानी । भनुन सतु काभ ुकहह भन ठानी।। तफ मशवऩनत फचन उच्चाया । ऩाइहैं सतु तभु इक अपवकाया।।1।। शििजी के साथ बिानी को देिकय ऋवष व्मास ने जो भन भें धायणा की हुई थी िह ऩतु्र प्राजतत की काभना कह द । तफ बगिान शिि ने मह िचन कहा कक तभु िीघ्र ह एक अविकाय ऩतु्र ऩाओगे।

चौ0- सो हरय बक्त अभय अपवकाया । हौंइहैं जगद सतुायणहाया।। ननशॊक यहहु अफ भनुन बफमासा । भाभ फचन न होइहैं नासा।।2।। िह श्रीहरय का अभय अविकाय बतत जग का उत्तभ तायनहाय होगा हे भहवषव ब्मास अफ तभु ननसॊदेह हो जाओ भेया िचन नष्ट नह ॊ होगा।

चौ0- दीन्ही वय ततकारे ब्मासा । अदृष्म मशव गमऊ कैरासा।। शन ैशन ैआमऊ सोइ कारा । नयरूऩ शकु जीव पवशारा।।3।। उस सभम के व्मास जी को ियदान देकय शिि अदृष्म होकय कैराि चरे गमे थे। धीये धीये अफ िह सभम आ चुका था जफ वििार िकु की जीिात्भा जो नय रूऩ भें थी।

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चौ0- बई प्रगट अभय अपवनासी । ज्मोनत स्वरूऩ सहज सखु यासी।। स्वमॊ मशव सो शकु की जीवा । व्मास मऻ भॊह ऩयगट कीवा।।4।। िह अभय अविनािी सहज सिुस्िरूऩा ज्मोनत स्िरूऩ से प्रगट हुई। स्िमॊ शिि ने िह िकु का जीि व्मास की मऻिारा भें प्रगट कय ददमा।

श्रो0- तत्कारे ब्मासस्म अयणी सहहत,े गहृ्म भॊभथास्ग्न धचककषपमा। तद तस्मस्तरूऩाॊ मऻ मशश ुरऩेण स व्मासस्म बामापम प्रदामत।े।12।। उस सभम के ब्मास अयणी सदहत अजग्न का भॊथन कय यहे थे तफ िह िकुोनय शिि ुरूऩ भें व्मास की ऩजत्न को प्रदान कय ददमा। (मह ऩाॊडि कार न व्मास औय िकुदेि नह है)

दो0- पवधध हरय हय फहु सयु भनुन बमऊ प्रगट नतष ठाभ। शकुदेव नाभ नतहहके धयौ जन्भत बफयत अकाभ।।405।। तबी ब्रह्भा, विष्णु तथा फहुत से भनुनगण औय देिगण प्रगट हो गमे उस शिि ुका िकुदेि नाभ यि ददमा जो जन्भ से ह ियैाग्मिान औय ननश्काभ बाि (जग से वियतत) था।

चौ0- धुम्रहीन सो अनर सभाना । अजय अभय तजेस सफ जाना।। ताही हेत ुदनुत ब्मोभ अखॊडा । ऩरयऊ कृष्ण भगृचभप अरू दॊडा।।1।। उसे घमु्रह न अजग्न के सभान अजय अभय औय तजेस्िी सबी ने जान शरमा तबी उस (िकुदेि) के शरमे प्रकाििान अिॊड आकाि से कृष्ण भगृचभव औय दॊड आकय धगये।

चौ0- सयु भनुन ईन्राहद रोकेसा । फहु पवधध कीन्ही पवनम पवशसेा।। हदव्म सभुन वाम ुफयसामे । मऻोऩवीत मशव उभा कयामे।।2।। सयु भनुन ईन्राददक रोकऩारों ने फहुत प्रकाय से उनकी वििषे विनती की। िामदेुि ने ऩषु्ऩों की िषाव की औय बिानी सदहत श्री शिि ने उसका मऻोऩिीत कयामा।

चौ0- शधचऩनत हदव्माबषूण नाना । सहहत कभण्डर ुनतहह प्रदाना।। ननज ननज ऩरुय देव तफ गमऊ । हरय ईच्छा प्रफर जग बमऊ।।3।। ईन्र ने नाना प्रकाय के ददव्माबषूण कभण्डर सदहत उसे प्रदान ककमे। तफ सफ देिगण अऩने अऩने रोकों को चरे गमे। इस प्रकाय जगत भें हरय ईच्छा ह प्रफर होती है।

चौ0- सो जन्भत ही बए वेद ऻानी । ब्रह्भचायी अवधूत भहानी।। मोगतत्वऻ तफहहॊ शकुदेवा । बफन ुगरु राधग मोग प्रसेवा।।4।।

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िह िकुदेि जन्भत ेह िेद का ऻानी औय भहान ब्रह्भचाय अिधूत हुआ। मोगतत्ि का ऻाता िकुदेि तफ बफना गरुु धायण ककमे ह मोग कभाई भें रग गमा।

दो0- गवप मोगेश्वय गरु बफना ध्मान सभाधध प्रसेव। सयुत चहढ आकाश ऩथ बफकुन्ठ गमे शकुदेव।।406।।

गरुु बफना गिव से मोगेश्िय फनकय ध्मान सभाधध धायण कयके सयुनत आकाि भागव भें चढ गई औय िकुदेि फकुैन्ठ ऩहुॊच गमा।

दो0- ननगयुा कहह फकुैन्ठ से धगया हदमे शकुदेव। “होयाभ” न ननगुपय जावहहॊ, भन जाधग गरु सेव।।407।। ननगयुा फता कय िकुदेि को फकुैन्ठ से नीचे धगया ददमा गमा। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक िहाॊ ननगयुा कोई नह ॊ जा सकता इसशरमे उसके भन भें गरुु सेिा जागतृ हो गई।

सो0- ननज सतु धचन्ता पवचाय, फोरे व्मास ननमयाइ तद। गरु बफन ुनहहॊ उद्धाय भानसु जनभ दयुरब अनत।।4।। तफ ननकट आकय भहवषव व्मास ने अऩने ऩतु्र की धचन्ता को सभझ कय कहा कक ऩतु्र भनषु्म जन्भ अनत दरुवब है औय गरुु बफना उद्धाय नह है।

छ0- बखू पऩऩास शीतोष्ण सहह कयहु प्राण पवजम सॊमभ फरय। सत्म, सयस, अक्रोध, अदोषी अकू्रय सबुाऊ तऩसा करय।। जरपेन सदृश ऺणबुॊगय तन ुधथय न सदा कोऊ ऩावहहॊ। “होयाभ” फसेया जीवहह जनन खग घोंषर आवहहॊ जावहहॊ।।28।। तभु गभी सदी औय बिू तमास को सहन कयके तथा सॊमभ धायण कयके प्राणों ऩय विजम प्रातत कयो। सत्म सयरता अक्रोधी ननदोषी अकू्रय स्िबाि से तऩस्मा कयो। मह देह जर के पेन की तयह ऺणबॊगयु है। इसे सदा जस्थय कोई नह ॊ ऩाता। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक जैसे ऩऺी अऩने घोषरें भें आता है औय जाता है सबी जीि िसैा ह फसेया कयत ेहैं।

दो0- काभ क्रोध भद रोब भोह अरू नाना पवषम पवकाय। सदा सजग तव दरुपब नछर खौजत ऩॊथ ननहाय।।408।। काभ क्रोध अहॊकाय रोब औय भोह तथा नाना प्रकाय के विषम विकाय सदा सजग होकय तयेे दफुवर नछरों भें झाॊकय यास्ता िोज यहे हैं।

चौ0- ऩर ऩर ऺीण आम ुतव होवा । तद ककभ बफयथा स्वाॊसा खोवा।। नास्स्तक जन सोवउ जग भाॊहीॊ । दशु्कभपन भॊह जीवन गॊवाहीॊ।।1।।

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तमु्हाय आम ुऩर ऩर भें ऺीण हो यह है कपय तमों व्मथव ह स्िाॊसा िो यहे हो। नाजस्तक रोग को सॊसाय भें सोमे यहत ेहै औय कुकभों भें ह जीिन गॊिा देत ेहैं।

चौ0- गय पवषमन बफयनत मरफऩाई । ऩरयहै पॊ द रयश ुकीट की नाई।। तजउ सॊग जो धभप प्रनतकूरा । यहऊ सजग तस्जउ जनन सरूा।।2।। मदद विषमों भें िनृत यभा रोगे तो येिभ के कीड ेकी तयह पॊ दे भें ऩड जाओगे। तभु उनका सॊग न ियण कयना जो धभव के प्रनतकूर है उनसे सदा सािधान यहना उन्हें काॊटा जानकय त्माग देना।

चौ0- जीव यहऊ चहहॊ कहहुॉ दयुाई । खोजत भतृ्म ुननशॊक तहॊ जाई।। तफ जीवन तभु कवन बयोसा । कायण स्जहह न आत्भऩद ऩोसा।।3।। मह जीि चाहे कह ॊ बी छुऩ जामे मह भतृ्म ुननसॊदेह िह ॊ जाकय िौज रेती है। तफ तमु्हाये जीिन को कौन सा बयोसा है ? जजसके कायण तभुने आत्भऩद का ऩोषण नह ॊ ककमा है।

चौ0- गय तभु बवमसॊधु चॉहह तयना । धयभ भनत दीऩ प्रज्वमरत कयना।। धभप पवरूध आचय जो कयहीॊ । देह तजाम भहा दखु बयहीॊ।।4।। मदद तभु बिसागय से नतयना चाहत ेहो तो धभवफवुद्ध की द ऩक प्रज्िशरत कयो तमोंकक जो रोग धभव के विरूद्ध आचयण कयत ेहैं िे भतृ्म ुके फाद भहान दिु बोगत ेहैं।

दो0- मभथ्माबाषी रॊऩट दनजु कयहहॊ कऩट की फात। ऩयऩीया यत अधभ सो बफतयनन गोतर खात।।409।। जो शभथ्मा फोरने िारा धूतव दषु्टात्भा है िह सदा कऩट की ह फातें कयता है। ऐसा िह अधभ ऩय ऩीडा कयता हुआ ितैयनी नद भें गोता िाता है।

चौ0- तभु फड फड कीन्ही फहु फाता । ब्रह्भरोक रधग ऻान पवखमाता।। तदपऩ तव दृष्टी भनत हीना । गभन बेद धुयऩद नहहॊ चीना।।1।। तभु फडी फडी फहुत फात ेकयत ेहो औय ब्रह्भरोक कय के ऻान के विख्माता हो कपय बी तमु्हाय भनतह न दृष्ट है तमोंकक तभुने ऩयभऩद गभन के बेद को नह ॊ चुना है।

चौ0- नहहॊ ऩठैउ कय ऩ ैकय धाये । नहहॊ वदृ्धा भतृ्म ुकार पवचाये।। ऩयभ शास्न्त ऩयभानॊद हेत ू। कयहू जतन वयैाग्म सचेत।ू।2।। अऩने हाथ ऩय हाथ धयकय फठेै भत यहो। तभुने िदृ्धािस्था औय भतृ्मकुार का विचाय नह ॊ ककमा है। इसशरमे ऩयभिाजन्त औय ऩयभानॊद हेत ुियैाग्म मतुत सचेत होकय प्रमत्न कयो।

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चौ0- काभ क्रोधाहद बमकय अरयदर । कयत आघात ूसहहत भीत फर।। भतृ्म ुकार ननकट जफ आवा । श्रवण भनन फर सफहहॊ नसवा।।3।। काभ क्रोधादद बमािह ित्र ुदर अऩन सम्फधधमों की िजतत के साथ आक्रभण कयत ेहैं औय जफ भतृ्मकुार ननकट आ जाता है। तफ श्रिण औय भनन िजतत सफको नष्ट कय देती है।

चौ0- घोय अॊधेय जीव सन ठाड े। दृष्टी न गोचय ऩॊथ अगाड।े। तात ेसपुर कय ध्मान सभाधी । मभऩयु आड ेआए न व्माधी।।4।। जीि के सम्भिु घोय अॊधेया आ जाता है। आगे का भागव दृष्ट गोचय नह ॊ होता है। इसशरमे ध्मान सभाधध को सपर फना रो कपय मभऩयु भें कोई व्माधी आड ेनह ॊ आती।

दो0- इस्न्रम जे अनत पप्रम तभु ; दीषत भीत सभान। कयहहॊ भनत बॊग होई अरय ; नासत भग कल्मान।।410।। इजन्रमाॊ जो तमु्हे अनत वप्रम है, मे शभत्र के सभान ददिाई देती है ऩयन्त ुमे भनतबॊग कयके ित्र ुफन जाती है। औय कल्माण का भागव नष्ट कय देती है।

चौ0- जे धन याज्मबम नही होई । चौयन्ह अपऩ बम नहीॊ कोई।। भतृ्म ुकार सॊग नहीॊ छूटे । अपवधा बयभ बेद सफ टूटे।।1।। जजस धन को याज्म बम नह होता। जजसे चोयों का बी बम कोई नह ॊ यहता जो भतृ्म ुके सभम बी साथ नह छोडता औय अविधा के साये भ्रभ बेद तोड देता है।

चौ0- फाॊट न सकहहॊ भीत ऩरयवारूॊ । अऺम सम्ऩदा तन भन वारूॊ ।। सो धन हेत ुकयहु ऩरयमास ू। कार कयभ सॊस होवहहॊ नास।ू।2।। औय जजसे शभत्र औय ऩरयिाय नह ॊ फाॊट सकत ेउस अविनािी सम्ऩदा के ऊऩय भैं तन भन न्मौछािय कयता हूॉ तभु उसी धन के शरमे ऩरुुषाथव कयो जजससे कार कभव सॊस्काय नष्ट हो जात ेहैं।

चौ0- ये सतु जीव ननज जीमकुारा । जे कछु कयहहॊ सो सॊग ऩमारा।। सॊग न जाइ भीत सतु दाया । होहहहॊ ऺम धन वबैव बाया।।3।। अये ऩतु्र ! जीि अऩने जीिन कार भें जो कुछ कभव कयता है िह साथ साथ चरता है। िहाॊ कोई शभत्र, फेटा, ऩजत्न साथ नह ॊ जात ेउसका धन िबैि बी सफ नष्ट हो जाता है।

चौ0- मभऩरुय कोऊ कयभ नहहॊ फाॊटे । ननज ननज तहॊ कृनतपर सफ ुसाॊटे।। ऩनु्मवान ऩनु्नरोकहहॊ जाहीॊ । फॊध्मो दयुात्भ मातना ऩाहीॊ।।4।।

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मभरोक भें कोई बी कभो को नह फाॊटता। सफ जीि अऩने अऩने कभवपरों से फॊध जात ेहैं। ऩनु्मिान ऩनु्म रोकों भें चरे जात ेहैं औय दयुात्भा जीि फहुत मातनाऐॊ बोगत ेहैं।

दो0- ऩोषण भात्र शयीय हहत ुकयहहॊ कयभ अपवचाय। “होयाभदेव” भोह जननत सो ; पदहहॊ अपवद्मा बाय।।411।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक जो अऩने िय य के शरमे ऩोषण भात्र को ह बफना विचाये कभव कयता है िह भोह से उत्ऩन्न अविद्मा के बाय से फॊध जाता है।

चौ0- अफ सतु सनुो आमस ुभोया । खौजहु आत्भतत्व सऩुोया।। जे कर कयन आज ही कयनी । आज कयन सो अफ अनसुयनी।।1।। औय हे ऩतु्र ! भेय सनुो तभु आत्भतत्ि के उत्तभ धाभ की िोज कयो। जो कामव कर कयना है उसे आज ह कय रो औय जो आज कयने का है उसका अबी अनसुयण कयो।

चौ0- काराधीन सकर सॊसाया । ऩॊजेऩाश जीव दखु बाया।। तफ तभु धीयज धायण करयअ । धभापचयण बव सागय तरयअ।।2।। मह सभस्त सॊसाय कार के आधीन है उसके ऩॊजे के ऩाि भें जीि नघया हुआ बाय दिु ऩा यहा है। इसशरमे तभु धैमव धायण कयो औय धभव के आचयण से बिसागय से नतय जाओ।

चौ0- आत्भा साऺात्काय जे कयहहॊ । रोक ऩयरोक भहासखु बयहहॊ।। ऩॊडडत सो जो सधुयभाचायी । धयभच्मतु भानव नयक बफहायी।।3।। जो व्मजतत आत्भतत्ि का साऺात्काय कयत ेहैं उन्हे रोक ऩयरोक भें भहासिु शभरता है। ऩॊडडत िह है जो उत्तभ धभव का आचयण कयता है औय धभवच्मतु व्मजतत तो नयकों भें विचयता है।

चौ0- भातपऩता तभु कौहटन ऩामें । नारय सतु चर अचर सम्ऩदामें।। ककहहके कवन सफ ुजीव अकेरा । कभापनसुाय ऺननक जग भेरा।।4।। भाता वऩता बी तभुने कयोडों ऩामे हैं नारय ऩतु्र चर अचर सम्ऩदा बी ऩाई है। कपय बी कौन ककसका है सबी जीि अकेरे हैं फस कभावनसुाय मह सॊसाय का ऺखणक भेरा रगता है।

दो0- अतीत भातपऩत ुसतु नतम अजु न प्रमोजन कोम। कभपस ुमभरन कुभुपस बफछन कवन कवन को होम।।412।।

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तमु्हे अऩने उन भाता वऩता ऩतु्र ि स्त्रीमों से जो ऩिूव जन्भों भें अथावत अतीत भें फीतचुके हैं से अफ कोई प्रमोजन नह है। मे सफ कभव से शभरे थे औय कभव से ह बफछुड गमे है। महाॊ कौन ककसका होता है ?

चौ0- ऩवूप जनभ अगणणत पऩत ुभाता । फॊधु भीत नायी सतु भ्राता।। उत्ऩन्न बमऊ कभपगनत ऩरय के । तभु अपऩ जन्भ ऩाई सॊस परयके।।1।। ऩिूव जन्भ के अगखणत भाता वऩता फॊधु वप्रमजन नारय ऩतु्र औय भ्राता अऩनी अऩनी कभवगनत भें नघय कय उत्ऩन्न हुमे थे औय तभुने बी कभव सॊस्कायों के परस्िरूऩ जन्भ ऩामा है।

चौ0- तद ककभ भोहग्रस्त अऻानी । ऩाऩ फटोरय ऩाम दखुसानी।। भभ उऩदेश करयऊ पवचाया । कयहु सोई जो तभु भनत धाया।।2।। तफ तभु तमों अऻान भें भोहग्रस्त होकय ऩाऩ फटोयकय दिुों का घय ऩात ेहो। भेये उऩदेि ऩय विचाय कयो औय कपय जैसा तमु्हाय फवुद्ध भाने िसैा कयना।

चौ0- कयभ बमूभ रोक मह जानो । ननजात्भ दयस ऻान ऩहहचानो।। बफना ननजात्भ ऻान जन कोई । तऩसी मोगी भोष न होई।।3।। इस रोक को कभव बशूभ जानो औय ननजात्भ साऺात्काय के ऻान की ऩहचान कयो। बफना ननजात्भ ऻान कोई बी व्मजतत तऩस्िी मोगी बी भोऺ नह ॊ ऩाता।

चौ0- बफना तत्वदयसी सतगरु सयनी । कोउ न गमऊ ऩाय ननज कयनी।। तात ेगरु शयण सतु जावा । जग उदास ऩयभानॊद ऩावा।।4।। औय बफना तत्िदिी सतगरुु की ियण भें जामे कोई बी अऩनी कयनी से ऩाय नह जाता। इसशरमे ऩतु्र तभु गरुु की ियण भें आओ औय जग से उदासीन यहकय ऩयभानन्द को प्रातत कयो।

दो0- सहज सबाऊ भदृ ुफचन फोरे फार शकुदेव। कहऊॉ तात सहजो सरुब को गरु रागउॊ सेव।।413।। तफ सहज स्िबाि से भधुय िचन फारक िकुदेि फोरा कक हे वऩता ! सहज ह प्रातत भैं ककस गरुु की सेिा भें रगूॊ मह फता द जजमे ?

चौ0- ऩयभ स्जऻास ुदेणख भनुन ब्मासा । सतुहह ऩठाम फहृस्ऩनत ऩासा।। श्री शकुदेव नतन्हहह गरु कीन्हे । चयण ससेुव मसद्ध साधन रीन्हे।।1।। जफ भहवषव व्मास ने ऩयभ जजऻासा देिी तो ऩतु्र को फहृस्ऩनत जी के ऩास बेज ददमा। श्री िकुदेि जी ने उन्ह को गरुु धायण कय शरमा औय उनकी चयण सेिा भें सफ साधनों की शसवद्ध प्रातत कय र ।

चौ0- खुमर न तदपऩ दसभ द्वाया । सयुत न गई नत ॊहकुटी ऩाया।।

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अस धचन्ता नघरयअ सतु देखी । ब्मास दीन्ह ननयदेस पवशखेी।।2।। ऩयन्त ुकपय बी दसभद्िाया नह ॊ िुरा जजससे सयुनत बत्रकुट के ऩाय न गई इस धचन्ता भें नघये हुमे ऩतु्र को देिकय व्मास जी ने वििषे ननदेिन ददमा कक –

चौ0- सनुहु ऩतु्र मह फचन हभायी । सयु न सभथप दय दसभ उघायी।। गय तभु चहहहॊ शास्न्त सतधाभा । कयहु गभन नऩृ जनकहह ठाभा।।3।। ऩतु्र ! तभु भेया मह फचन सनुो। कोई बी देिता दसभद्िाय िोरने के शरमे सभथविान नह है। मदद तभु िाजन्त औय ऩयभघाभ चाहत ेहो तो याजा जनक के देस चरे जाओ।

चौ0- तभु जस धीयावधूत भहाना । जनक सभान न सभयथ आना।। पऩत ुआमस ुशकुदेव मसधावाॊ । मभधथरा नगय नऩृ हढॊग आवाॊ।।4।। तमु्हाये जैसे फवुद्धभान भहान अिधूत के शरमे याजा जनक के सभान सभथविान दसूया कोई नह है। इस प्रकाय वऩता की आऻा से िकुदेि चर ददमे औय शभधथरा नगय के याजा जनक के ऩास आ गमे।

दो0- फहु पवधध योकक द्वायऩार द्वाये ऩय शकुदेव। डाॊट डुऩाट कौहटन ऩरय, भनुन भन शान्त सहेुव।।414।। द्िाय ऩय द्िायऩारों ने सफ तयह िकुदेि जी को योक ददमा। कौट कौट डाॊट डऩट ऩडती यह कपय बी उसका भन िान्त औय सयर स्िबाि फना यहा।

दो0- “होयाभदेव” तद जनक ; भनुन शकुदेव ननहाय। फहु पवधध भान प्रदान करय सभमोधचत अनसुाय।।415।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक तफ याजा जनक ने भनुन िकुदेि को देिा तो फहुत प्रकाय से सभमोधचत अनसुाय सम्भान प्रदान ककमा।

चौ0- भॊत्रीगण सफ नतहह मसय नावा । दसोभऩॊच मवुनत तहॊ आवा।। यभनीम मवुनत आकषप बायी । पवयक्त भनुन कय सेवा दायी।।1।। सबी भॊबत्रमों ने शसय झुका कय प्रणाभ ककमा कपय ऩचास मिुनतमाॉ िहाॉ आ गई उन सनु्दय मिुनतमों का बाय आकषवण था। उन्होने वियतत भनुन की सेिादाय की।

चौ0- सफ पवधध गावहहॊ नतृ्म कयहहॊ । भनुन दृस्ष्ट नतन्ह ओय न ऩयहहॊ।। गावत गीत भनुन धचत्तहह रबुावन । प्रबाव ुन कोइ धचत्तस अनत ऩावन।।2।।

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. िे सफ प्रकाय से गाती औय नतृ्म कयती यह कपय बी भनुन की दृजष्ट उनकी ओय नह जाती है। िे भनुन के धचत्त को रबुाने िारे गीत गाती हैं ऩयन्त ुअनत ऩवित्र धचत्त ऩय कोई प्रबाि नह ॊ होता।

चौ0- शमनकार सकुऺ भनोहायी । ऩरॊग अभलू्म बफछावन डायी।। भनुन शकुदेव सकर सखु त्मागा । कय ऩग धोइ हरय धचत्त रागा।।3।। सोने के सभम उत्तभकऺ भें जो अनत भनोहय था एक ऩरॊग के ऊऩय अभलू्म बफछािन डारा गमा था ऩयन्त ुिकुदेि भनुन ने िह सभस्त सिु त्मागकय अऩने हाथ ऩयै धोकय धचत्त श्रीहरय भें रगा ददमा।

चौ0- इह बफधध फीनत हदवस अरू याती । भनुन स्वबाव पवयस्क्त सफ बाॊती।। तफ नयेश दयफाय रगावा । सन सादय शकुदेव बफठावा।।4।। इस प्रकाय ददन औय यात फीत गमे ऩयन्त ुभनुन के स्िबाि को वियजतत ह अच्छी रगती थी। तफ याजा जनक ने दयफाय रगिाकय आदय सदहत भनुन िकुदेि को अऩने सम्भिु फठैामा।

दो0- आसन तस्ज शकुदेव तफ ऩहैठऊ गरु ऩग थाभ। पवदेही सन पवदेह भनत कीन्ह पवचाय “होयाभ”।।416।।

तफ िकुदेि जी ने आसन छौड कय गरुु चयण ऩकडकय फठै गमे। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक कपय जनक विदेह से विदेह ऻान का विचाय कयने रगे।

चौ0- तफ शकुदेव ननमभ अनसुाया । याव सभऺ ननज प्रश्न उच्चाया।। गरु रूऩ तभु ककयऩा कीजै । मशष्म जानन शयण भॊह रीजै।।1।। तफ श्री िकुदेि ने ननमभ अनसुाय (विधध विधान से) याजा जनक के सभऺ अऩना प्रश्न कहा कक आऩ गरुु रूऩ से भझु ऩय कृऩा कयो औय शिष्म जान कय ियण भें रे रो।

चौ0- ककभ स्वरूऩ भोऺ कय होई । तऩ अरू ऻान कक साधन सोई।। कवन आश्रभ शास्न्त दावा । को पवधध जीव ब्रह्भ इकसावा।।2।। भोऺ का तमा स्िरूऩ होता है ? तमा तऩ औय ऻान ह उसके शरमे साधन है, औय कौन सा आश्रभ िाजन्त प्रदान कयाने िारा है ? औय ककस प्रकाय से जीि औय ब्रह्भ एक रूऩ हो जात ेहैं ?

चौ0- सनुन प्रश्न फोरे नऩृ ऻानी । भनुन शे्रष्ठ तभु स्वमॊ पवऻानी।। ऻान बफना भोष नहहॊ होवा । बफना सभाधध ऻान नहहॊ ऩोवा।।3।।

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प्रश्न सनुकय ऻानी याजा फोरे कक हे भनुन शे्रष्ठ ! तभु स्िमॊ ह विऻानात्भा हो कबी बी ऻान के बफना भोऺ नह होता औय िह ऻान बफना सभाधध मोग सरुब नह ॊ है।

चौ0- गरु बफना सो सधहहॊ न मोगा । गरु बवमसॊधु तायन जोगा।। गरु जीव बव मसॊधु नतयावा । मस ॊधु बफन्द ुएक रूऩ कयावा।।4।। औय गरुु के बफना िह मोग नह ॊ सधता। गरुु ह बिशसॊधु तायने मोग्म है। गरुु ह बिशसॊधु भें नतयाता है औय शसॊधु औय बफन्द ुअथावत जीि औय ब्रह्भ को एक रूऩ कया देता है।

दो0- फाहहय से बीतय चरे सो नहह काटत पॊ द। अन्दय प्रगहट फाॊहहय फहे सोइ ऻान भोषकॊ द।।417।। जो ऻान फाहय से बीतय घट भें गमा िह बी मभ का पॊ दा नह काट ऩाता। िह ऻान भोऺकॊ द है जो घट भें से प्रगट होकय फाहय ननकरता है।

चौ0- कय सॊमभ भनेंहरम फानी । ऩयभसॊत एहह तऩसा जानी।। कार देसस ुसयुत चढावे । सचखॊड जाई ब्रह्भानॊद ऩावे।।1।। ऩयभसॊतो ने इसी को तऩस्मा जाना है कक भन इजन्रमों औय िाणी ऩय सॊमभ प्रातत कय रे। औय कार के देस से सयुनत को चढाकय सचिॊड देस भें जाकय ब्रह्भानन्द को प्रातत कये।

चौ0- दीऺा देह तव फॊधन टारूॊ । कामा दगुप तोये सफ ऺारूॊ ।। चौथे देस ननयारा फासी । ऩयभशास्न्त तहॊ नहहॊ उदासी।।2।। भैं तमु्हे द ऺा देकय तमु्हाया सफ फॊधन दयू करूॊ औय िय य के दगुो को तोडकय सफ का विनास करूॊ गा। तमोकक ननयारा िासी (ऩयभेश्िय) चौथे देस (सचिॊड) भें यहता है िहाॊ ऩयभिाजन्त है िहाॊ ककसी प्रकाय की कोई उदासी नह ॊ है।

चौ0- सो मोगी जो बत्रगणु ऩाया । कयहहॊ ननजातभ साऺात्काया। नहहॊ साभा ककहह आश्रभ जाव ै। घट भाहीॊ सफ तीथप रखाव।ै।3।। मोगी िह है जो तीन गणुो से ऩाय है औय अऩनी आत्भा का साऺात्काय कयता है। उसके शरमे ककसी आश्रभ भें जाने की आिश्मतता नह है सभस्त तीथव घट बीतय ह देिो।

चौ0- जग बतूहहॊ ननजातभ ऩखैे । पवयक्त धचत्त नहहॊ कभपन रेखे।। घोंषर अनतसतृ उयहहॊ खग जैसे । तन ुयहह तन ुप्रथक यहे तसेै।।4।।

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साये सॊसाय के बतू प्राखणमों भें अऩनी ह आत्भा का साऺात्काय कयो तफ ऐसे वियतत धचत्त भें कोई कभो का रेिा नह ॊ यहता। औय ऩऺी जजस प्रकाय अऩने घोंषरे भें यहता औय उड जाता है उसी प्रकाय देह भें यहता हुआ देह से प्रथृक यहो।

बावाथप (प्रवचनाॊश)-

जजस ऩयभधाभ भें िाजन्त शभरती है िह ऩयभानन्द ज्मोनत तभु स्िमॊ हो। सबी बतू (चयाचय जगत) उसी ज्मोनत से चेतन्म है। मह सफ ऻान तभु शिि कृऩा से ऩहरे ह जाने हुिे हो फस उस सनेु हुिे ऻान विऻान को घट बीतय प्रगट कयना िषे है।

दो0- तभु शकुदेव अभय बमे ऻान पवऻान बयऩयू। गरुभणुख फनना शषे था सो कभी बई दयू।।418।। िकुदेि तभु अभय हो चुके हो औय ऻान विऻान से बयऩयू हो फस तमु्हे गरुुभखुि होना ह िषे था िह कभी बी दयू हो गई है।

चौ0- कयहू पवरम धचत्त ध्मान सबारा । खोरहु अन्तयघट रधग तारा।। ब्रह्भबाव ननज सयुत सभावो । दसभद्वाय से सचऩरुय जावो।।1।। अऩने मोगध्मान को सम्बार कय धचत्त को विरम कय दो। औय अन्तयघट भें जो तारा रगा है उसे िोरो। ब्रह्भबाि भें अऩनी सयुत सभा देना औय दसभद्िाय से सचिॊड देस ऩयभधाभ चरे जाना।

चौ0- श्रवण ऻान जग झूॊठन जाना । घट ऩयगट कयहहॊ कल्माना।। कक्रमात्भ मोग साधना ऩावन । ऩयभधाभ ऩयभऩथ जावन।।2।। सनुा हुिे ऻान को जगत की झूॊठन जाननी चादहमे। जो घट भें प्रगट हो जामे िह ऻान कल्माण कयता है। मोग साधना कक्रमाजत्भक रूऩ से ऩािन है जो ऩयभधाभ जाने का ऩयभऩथ है।

चौ0- तीनगणुन दसोस्न्रम कभप ऻाना । भन धचत्त भनत गनतकय प्राना।। सत्रह तत्व कामा कय भाहीॊ । ऩॊचबतूी मह यचन यचाहीॊ।।3।। तीन (सत यज तभ) दस इजन्रमाॊ (ऩाॊच कभेजन्रमाॊ + ऩाॊच ऻानेजन्रमाॊ) भन धचत्त फवुद्ध तथा इन सफको गनतिीर यिने िारा प्राण, मे सत्रह तत्ि िय य भें है जजनकी यचना ऩॊचबतू (ब,ू जर, िाम,ु अजग्न औय आकाि) भें से होती है।

चौ0- अष्टदसभ तत्व अथामा । चेतन्म ज्मोनत आतभ अकामा।। देह पवमोग जीव जफ होवा । कामा तत्व सकर तफ खोवा।।4।। अठायहिाॊ तत्ि अथाम है जो चेतन्म ज्मोनत स्िरूऩ देह यदहत आत्भा है। जफ देह का विमोग हो जाता है तफ कामा के साये तत्ि बी नष्ट हो जात ेहैं।

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चौ0- गहृी गहृ तस्ज गए गहृ आने । त्मूॊ देही सप्त देह तजाने।। वासापवद्मा कभप कय पे्रया । मबन्न मबन्न देह देही फसेया।।5।। जजस प्रकाय गहृस्िाभी अऩने घय को त्माग कय दसूये घय भें चरा जाता है उसी प्रकाय जीिात्भा सात िय यों को त्मागता है औय िासना अऻान औय कभव से प्रेरयत मह जीिात्भा शबन्न शबन्न िय यों भें फसेया कयता कपयता है।

दो0- अभर धचदानन्द आत्भा सखु दखु कायण देह। “होयाभ” तत्वऻानी वह तनावयण तस्ज रेह।।419।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक मह आत्भा विकाय यदहत चेतन्म आनन्द स्िरूऩ है। सिु दिु का कायण तो मह देह है। तत्िऻानी िह है जो िय य के आियणों का त्माग कय रेता है।

चौ0- पवपवध बाॊनत सफ ऻान प्रदामा । सप्तदेह दयुग नछॊदन सभझामा।। ऩनुन जनक भनुन आमस ुदाई । कयहु मोग ब्मासाश्रभ जाई।।1।। याजा जनक ने विविध प्रकाय से सफ ऻान प्रदान कय ददमा। सातों िय यों औय उनभें फने सबी दगुव (षोडस चक्रो) का छेदन बेदन कयना सभझा ददमा। कपय भहायाजा जनक ने आऻा प्रदान की कक अफ तभु ब्मास आश्रभ जाकय मोग की कभाई कयो।

चौ0- भनुन कायन तव फार सबुावा । शास्न्त खौज इह गभन ठहयावा।। तभु स्वमॊ अपऩ ऻान बॊडायी । अनाभम गभन ऻान फहु बायी।।2।। हे भनुन ! तभु अऩने फार स्िबाि के कायण िाजन्त की िोज भें इधय चरे आमे हो। तभु तो स्िमॊ बी ऻान के बॊडाय हो तमु्हे अनाभीधाभ (ऩयभधाभ) की मात्रा का फहुत बाय ऻान है।

चौ0- कक्रमा रूऩ प्रगहट मह शषेा । होइहैं सोSपऩ ऩयू पवशषेा।। कयहु साधना भभ भनत धाया । हौं अपऩ यहुॉ यत तोही सॊबाया।।3।। फस उसे अफ कक्रमात्भक (प्रमोगात्भक) रूऩ भें प्रगट कयना िषे है। िह बी अफ वििषे रूऩ भें प्रगट हो जामेगा। अफ तभु भेय फवुद्ध को धायण कयके मोग साधना कयो। भैं बी तमु्हाय सम्बार कयता यहूॉगा।

चौ0- तफ शकुदेव सभीय सभाने । उत्तय हदमस भेरूधगरय प्रस्थाने।। हयपषत भन पऩत ुआश्रभ आमे । मभधथराऩनत के फचन फझुामे।।4।। तफ िकुदेि ने िाम ुसभान उत्तय ददसा भें भेरू ऩिवत की ओय प्रस्थान ककमा औय फहुत ह हवषवत भन से वऩता के आश्रभ आमे तथा शभधथरा नयेि के फचन फतामे।

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दो0- कहत “होयाभ” अवनीश सनु ुद्वादस फयस अखॊड। शकुदेव कठोय साधना कीन्ही तऩ प्रचॊड।।420।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक हे अिनीि देि सनुो इस प्रकाय फायह िषव तक िकुदेि जी ने अिॊड औय कठोय साधना कयके प्रचॊड तऩस्मा की।

दो0- कारदेस तज शकुात्भा गई अनाभम धाभ। ऩणूपमोगी शकुदेव तफ ऩामऊ शास्न्त पवश्राभ।।421।। औय कार के देस को त्माग कय िकुदेि की आत्भा अनाभीधाभ चर गई तफ ऩणूव मोगी िकुदेि ने ऩयभ िाजन्त औय विश्राभ ऩामा।

चौ0- सफ मशष्मन दई आमस ुब्मासा । कयहु ऻान प्रचाय जग प्मासा।। मशष्मगण सवप गमऊ चहुॊ ओया । शकुदेव इकान्त भौनवनृत जोया।।1।। कपय सबी शिष्मों को ब्मासदेि ने आऻा प्रदान की कक जगत तमासा है ऻान का प्रचाय कयो। तफ सबी शिष्मगण चायों ददसाओॊ भें चरे गमे। ऩयन्त ुिकुदेि जी एकान्त भें भौनिजृत्त फना र ।

चौ0- हदवस एक तहॊ नायद आवा । भनुन शकुदेव देणख हयषावा।। फोरे भदृरु अभीयस फानी । सनु ुशकुदेव ऩयभ तत्वऻानी।।2।। एक ददन िहाॊ नायद भनुन आ गमे जो िकुदेि भनुन को देिकय फड ेप्रसन्न हुए औय भधुय अभतृबय िाणी से फोरे कक हे िकुदेि ऩयभतत्ि ऻानी सनुो।

चौ0- नेत्र न दसूय पवद्मा सभाना । सत्म सभान नहहॊ तऩ आना।। याग सदृश दखु नहीॊ भ्राता । बफयत सभान न सखु कय दाता।।3।। हे बाई ! विद्मा के सभान दसूया नेत्र नह ॊ होता औय सत्म के सभान दसूया तऩ नह है औय याग के सभान कोई दिु नह ॊ है औय ियैाग्म के सभान कोई सिु का दाता नह ॊ है।

चौ0- आत्भदयस बफन ुमोग न नीका । जनन रोन बफन ुव्मॊजन पीका।। बोग पवयक्त स्जतसे्न्र यहना । शबुाशबु कयभ ऩयणखअ गहना।।4।। औय आत्भसाऺात्काय के बफना मोग उसी तयह अच्छा नह रगता जैसे कक नभक के बफना व्मॊजन पीका ह यहता है। बोगों से वियतत जजतजेन्रम यहना औय िबुािबु कभव को ऩयि कय गहृण कयना।

दो0- शबुाशबु कभप से नयदेह अशबु ऩश ुखग जून। कभप कार फॊधन ऩयों सन्ताऩ अनर जग बनू।।422।।

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तमोंकक िबुािबु कभव से भानि की देह तथा अिबु कभव से ऩि ुऩक्षऺमों की मौनन शभरती है। इस प्रकाय कभव औय कार के फॊधन भें ऩडा हुआ साया सॊसाय सन्ताऩ की अजग्न भें जर यहा है।

दो0- ननजात्भ भाहीॊ पवचयहु यपव ऩथ गभन प्रसेव। कहह नायद अदृष्म गमऊ भौन बमऊ शकुदेव।।423।। ननजात्भा भें ह विचयण कयो औय समूवरोकी भागव गभन का प्रसेि कयो ऐसा कहत ेहुिे नायद भनुन अदृष्म हो गमे औय िकुदेि जी भौन हो गमे।

दो0- देणख दसा शकुदेव की गमऊ ब्मास सतु ऩास। फहु बगनत उऩदेश कहह सतु भोह स्वमॊ उदास।।424।। िकुदेि की ऐसी दिा देिकय व्मास जी अऩने ऩतु्र के ऩास गमे औय फहु प्रकाय से बगनत का उऩदेि कहने रगे। ऩयन्त ुऩतु्रभोह भें िे स्िमॊ उदास थे।

छ0- देणख दसा ऩतु्रभोह ग्रस्त पऩत ुकाज कल्मान भन भें ककऐ। शकुदेव भौनवनृत धगरय मशखय उत्तय हदमस चमरत ेबऐ।। पवकर बाव भनुन ब्मास जफ ऩाछर ऩाछर रणख आवऊ। “होयाभदेव” शकु अदृष्म बा धगरय मशखय ध्मान सभावऊ।।29।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक ऩतु्र भोह से ग्रस्त वऩता को देिकय उनके कल्माणाथव कामव को भन भें कयके िकुदेि भनुन भौनिनृत से उत्तय ददसा की ओय चरत ेगमे। ऩयन्त ुव्माकुर बाि भन से ब्मास भनुन को जफ ऩीछे ह ऩीछे आत ेदेिा गमा तो िकुदेि भनुन अदृष्म हो गमे औय ध्मान भें धगरय शििय ऩय र न हो गमे। छ0- कायण ननज भन सखु हयष मह ऩयभ भोऺ पवऻान कहह। मशव मशवा सम्फाद मभस हौं कधथऊ जे धाय स्रोत भभ घट फहह।। मत्र तत्र कुऩात्र सन न फयनउ सऩुात्र ऩयभसॊत सन कहे। “होयाभदेव” जे जन गहहहॊ सो अभय ऩद ननश्चम गहे।।30।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक भैंने अऩने भन के सिु औय हषव के शरमे मह ऩयभभोऺ विऻान कहा है। जो धाया प्रिाह भेये घट भें उतय कय फह यह थी िह भैंने शिि ऩािवती सम्फाद के फहाने कह है। इसे जहाॉ तहाॉ कुऩात्र व्मजततमों के सभऺ नह ॊ कहना। केिर सऩुात्र ऩयभसॊतों के सभऺ ह कहना तमोंकक जो व्मजतत इसे गहृण कयेगा िह ननश्चम ह अभय ऩद प्रातत कयेगा।

दो0- कहन सनुन अरू गहृण भें फडो अन्तयो जान। प्रमोग ऺेत्र जो साधधहैं ; सो गहह गहे कल्मान।।425।।

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कहने सनुने औय गहृण कयने भें फहुत फडा अन्तय जाना चादहमे जो व्मजतत इसे अऩने प्रमोग ऺेत्र भें साध रेगा िह इसे गहृण कयेगा औय कल्माण को प्रातत होगा। दो0- बफन ुतत्वदयसी सदगरु सहज सरुब मह नाम। ऩग ऩग ऩय तारे ऩये बेदऻ बेद रखाम।।426।। बफना तत्िदिी सदगरुु मह सहज सरुब नह है। ऩग ऩग ऩय तारे ऩड ेहुिे है। कोई बेदद गरुु ह इसकी चाफी प्रदान कय सकता है।

दो0- सवपप्रथभ मह अभयतत्व ; हौं याधचऊ कधथ गाम। इकान्त प्रदेश ऩहठ सनुन जे ननश्चम ऩयभ गनत ऩाम।।427।। सिवप्रथभ मह अभयतत्ि भैंने गाकय कहकय शरिा है इसे जो इकान्त प्रदेि भें ऩढेगा औय सनेुगा िह ननजश्चत ह ऩयभगनत को प्रातत होगा।

दो0- हे कपववय पवद ुसॊतजन गय त्रहुट दृष्टता भाभ। दास जानन ऺभा कीस्जमे पवनम कयत “होयाभ”।।428।।

श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक हे कविियों सॊत जनों मदद भझुसे कोई बरू त्रदुट मा धषृ्टता हो गई है तो भझुे दास जानकय ऺभा कय देना मह भैं विनती कयता हूॉ।

इनत श्रीभद् अभयकथा श्री मशव मशवा (सयुत वेद) सम्फादे सष्टभ ऩडाव ्

।। श्रीभद् अभयकथा भहाकाव्म ।।

(सयुत िेद) (श्री शिि ऩिवती सम्फाद)

ऩॊचभ िण्ड

प्रश्नोत्तय ऩदद 29 – अकह ऩरुष उऩदेस

दो0- अवनीश देव ऩयभ सॊत सनुन सनुन अभतृसाय। भन रम हयपषत बस्क्त यस फोरे भनहहॊ पवचाय।।429।। भेय ऩयभसॊत अिनीि देि इस ऩयभाभतृ तत्ि को सनु सनु कय बजतत यस तथा भन की रमता भें प्रसन्न होकय; भन भें विचाय कयके फोरे कक –

दो0- तभु ककयऩा फस सदगरु भभ सयुत चहढ आकास। पऩ ॊड अॊड ब्रह्भॊड देणख सफ गई अगोचय ऩास।।430।।

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हे सदगरुुदेि ! आऩकी कृऩा से भेय सयुनत आकास भें चदढ है। भनेै वऩ ॊड अॊड औय ब्रह्भाण्ड सफ देि शरमे हैं औय अगोचय धाभ के ननकट ऩहुॉच गमा हूॉ।

दो0- हौं पवस्स्भत अगोचय रणख प्रगट बमो तव रूऩ। बाग्म हभायी जाधगआ गहह तव शयण अनऩू।।431।। भैं चककत हो गमा जफ अगोचय ऩरुुष का चेहया (भिु) तमु्हाया स्िरूऩ भें प्रगट होता हुआ देिा। आऩकी अदबतु ियण ऩाकय हभाया तो बाग्म जाग गमा है।

दो0- अॊन्तगपभन भभ आऩ प्रबो प्रनत ठाभ यहे सॊग। अनन्त रोक सषृ्टी रणख सनुन धननन्ह प्रसॊग।।432।। हे प्रबो ! आऩ प्रत्मेक रोक भें अन्तरय मात्रा भें भेये साथ साथ यहे हो। भैंने अनन्त रोंकों तथा उनकी सजृष्टमों को देिा है तथा उनके अधधष्ठताओॊ के प्रसॊग सनेु हैं।

चौ0- इह ननशा जफ सयुनत भोरय । चहढ अगोचय ऩरुय तभु जौरय।। अनन्त रोक तहॉ धनन अनेका । भो सॊग आऩ गमऊ प्रत्मेका।।1।। आज की यात जफ भेय सयुनत चढाकय आऩने अगोचय रोक से जोड द है। िहाॊ अनन्त रोक है। उनके अनन्त धनी हैं। औय आऩ उन प्रत्मेक भें भेये साथ साथ यहे हो।

चौ0- अऺम आनन्दभम यचना देखी । सफ भॊहह सत धचद् सषृ्टी पवशखेी।। नहहॊ कार भहाकार बमकय । नहहॊ प्रकास यपव शशी उदमकय।।2।। तफ भैंने अविनािी आनन्दभमी सषृ्ट देिी। उन सफ भें वििषे सत्म औय चेतन्म सजृष्टमाॉ है िहाॊ बमॊकय कार औय भहाकार नह ॊ है। िहाॉ समूव चन्रभा का उत्ऩन्न ककमा हुआ प्रकाि नह है।

चौ0- सफहहॊ देणख गई बवन पवशारा । मशखयध्वज रहयाइ ननयारा।। फहुय धनी फठेै भग भाहीॊ । बीतय बवन हौं रणख तहाॊहीॊ।।3।। भैं सफभें देित ेहुऐ एक वििार भहर भें ऩहुॊचा उसके शििय (फयुजी) ऩय ननयारा ह झॊडा रहया यहा था। यास्त ेभें फहुत से अन्म धनी ऩरुुष फठेै थे िह ॊ ऩय भैंने भहर के बीतय देिा कक –

चौ0- अकथ ऩरुष दनुत ऩुॉज सभावा । जनन कौहट यपव तहॊहहॊ रजावा।। हदव्म प्रकाश ऩुॊज के भाहीॊ । अकथ ऩरुष नहहॊ फयनन आहीॊ।।4।। जजसका कथन नह हो ऩािे ऐसा ज्मोनत ऩजुॊ स्िरूऩ ऩरुुष देिा। भानो िहाॊ कयोडों समूव उनसे रजज्जत हो यहे हों। उस ददव्म प्रकाि ऩुॊज भें िह अकथ ऩरुुष थे जो िणवन कयने भें नह ॊ आत।े

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दो0- प्रकाश ऩुॉज भॊह हदव्मभखु कोउ न नतहह सभान। हौं नभन करय आमशष गहह सनुन उऩदेश भहान।।433।। उस प्रकाि ऩुॊज भें एक ऐसा ददव्म भिु था जजसके सभान कोई नह है भैंने नभन ककमा तथा उनका आिीिावद गहृण ककमा औय भहान उऩदेि िचन सनुा।

चौ0- भॊद भॊद भदृरु भसु्काई । फोरे सो भभ ओय रखाई।। कौहटन फीच बफयर सॊत कोई । आवहहॊ मत भभ दयसन होई।।1।। भॊद भॊद भीठी भसु्कयाहट से भेय ओय देिकय िह फोरे कक कयोडों भें कोई बफयरा ह सॊत महाॊ आता है औय उसे भेया दिवन होता है।

चौ0- तव सदगरु कई सयुत पवशसेा । करय प्रमास ठेमर भभ देसा।। सो अगोचय तभु गोचय कीन्ही । सयुत सम्हारय भाभ ऩद दीन्ही।।2।। तमु्हाये सदगरुुदेि ने कई वििषे सॊतात्भाऐॊ प्रमास कयके भेये देस भें बेजी है। िह अगोचय तमु्हे बी गोचय कया ददमा है। औय तमु्हाय सयुनत को सम्बार कयके भेया धाभ प्रदान कया ददमा है।

चौ0- तव कायण सदगरु तमु्हाया । फहढहौं ऩावन भहत्व अऩाया।। भाभ देस जेत ेसॊत आवा । भाभ स्वरूऩ ब ैभेनम सभावा।।3।। तमु्हाये कायण तमु्हाये सदगरुु का ऩािन भहत्ि औय फढेगा। भेये देस भें जजतने बी सॊत आत ेहैं िे भेया ह स्िरूऩ हो जात ेहैं औय भझु भें ह सभामे यहत ेहैं।

चौ0- तदपऩ हौं अनत अचयज ऩाई । तभु भभऩरुय कार धचतराई।।

मत बत्रदेवही कयत प्रनाभा । मदपऩ नतन्ह मत नहहॊ कहुॊ ठाभा।।4।। कपय बी भैंने एक आश्चमव देिा कक तभु अफ बी भेये रोक भें बी कार धचॊतन कय यह हो। महाॊ बी बत्रदेि (ब्रह्भा, विष्णु औय शिि) को प्रणाभ कयत ेहों जफकक महाॊ भेये रोक भें उनकी कह ॊ ठौय नह ॊ है।

चौ0- भाभ धाभ कार नहीॊ आवा । नाहीॊ कयभजार बयभावा।। जनभ न भयन जया नहहॊ योगा । ब्रह्भ फास ऩयभानॊद मोगा।।5।। भेये रोक भें कार नह आ ऩाता औय न ह कोई कभवजार बयभाता है। महाॊ न जन्भ है न भयन औय न फढुाऩा औय योग है। महाॊ तो ब्रह्भ फासा है औय ऩयभानॊद का मोग है।

दो0- सकर देवी देवगण भामा कार आधाय। नतन्हहह उऩासा तहॉ धथयै मत नहहॊ काज सम्हाय।।434।। सभस्त देिी देिताओॊ को भामा औय कार का ह आश्रम है उनकी ऩजूा बजतत िह ॊ ऩय दटकती है जो महाॊ ऩय कोई कामव नह ॊ सॊिायती है।

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चौ0- ब्रह्भा पवष्णु मशव मत नाहीॊ । ननज कायज नतन्ह कार यचाहीॊ।। अगणणत सषृ्टी कार यचाहीॊ । पवधध हरय हय सफहहॊ के भाहीॊ।।1।। महाॊ ब्रह्भा विष्णु तथा भहेि कोई नह ॊ है। इनको कार ननयॊजन ने अऩने स्िाथव कामव (सषृ्ट यचना व्मिस्था) के शरमे उत्ऩन्न ककमा है। कार असॊख्म सजृष्टमों को यचता है। सबी भें ह ब्रह्भा विष्णु औय भहेि हैं।

चौ0- सकर जीव कार खॊड जैसे । बत्रदेव सहहत सकर सयु तसेै।। कायन तऩ फर सो ऩद ऩाई । ऩदच्मतु बई सफ जीव कहाई।।2।। कार रोंको भें जैसे सभस्त जीि है िसैे ह बत्रदेिों सदहत सभस्त देिता है। उन्होने अऩनी तऩस्मा के फर से िह ऩद प्रातत ककमे है। ऩदच्मतु हो जाने ऩय सफ जीि कहरात ेहैं।

चौ0- सो सफ जीवहहॊ सऩुथ रखावा । बस्क्तमकु्त करय आश्रम दावा।। याखहहॊ मसमभत आऩनु ठौया । कयत नभन भो ननज ननज ऩौया।।3।। िे साये देिगण जीिों को सन्भागव ददिात ेहैं औय बजततभान कयके अऩना आश्रम देत ेहैं। औय अऩने ह रोकों तक सीशभत यित ेहैं तथा अऩने अऩने याज्मों भें ह भझुे प्रणाभ कयत ेहैं।

चौ0- मभ कार भतृ्म ुतॉह फाढै । कयहहॊ नभन भोहह कयफद्ध ठाढैं।। भाभ रोक नतन्हहह गम्म नाहीॊ । कार ननयॊजन सो फर ऩाहीॊ।।4।। मभ कार औय भतृ्म ुिहाॊ फढे हुिे है जो हाथ जोडकय िड ेहुिे भझुे ह प्रणाभ कयत ेहैं। कपय बी भेये धाभ भें उनकी ऩहुॉच नह है िे कार से ह सबी िजतत प्रातत कयत ेहैं।

दो0- अगम्म रोक जो आवहहॊ जो ऩावन भभ धाभ। सो भभ स्वरूऩा होवहहॊ जर पवन्द मसॊधु सभाभ।।435।। जो आत्भा अगम्म रोक भें आती है जो कक भेया ऩािन धाभ है िे भेया ह स्िरूऩ हो जाती है जैसे कक जर की फनू्द औय सभनु्र एक भें एक सभा जात ेहैं।

भॊत्र – अथ एतत ्अपऩ अशक्तभमस कुत्तुपभ भनतमोगाधश्रत्। सवप कभपपर त्माज्मॊ ततकुर यभण मथात्भानभ।्। श्रुणो ऻानॊ अभ्मासाथप ऻानाथप ध्मानपवमशष्मत।े ध्मानात कभपपर त्मज्मॊ शास्न्त अन्तयभ।्।13।। अत् असभथव होकय बी अऩनी फवुद्ध को मोग के आधश्रत यिनी चादहमे औय सभस्त कभो के परों को त्मागकय मथानसुाय आत्भा भें यभण कयो। इसी अभ्मास

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के शरमे ऻान को सनुो इसी ऻान के शरमे ध्मान की वििषेता है। औय इस ध्मान भें कभो के पर को त्माग दो तमोंकक इस त्माग से ह आन्तरयक िाजन्त प्रातत होगी।

सो0- प्रब ुभखु सनुन एहह भॊत, अवनीश ननज ध्मान गत। कधथऊॊ हेत ुपवद ुसॊत, “होयाभदेव” मथावत मत।।5।।

श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक अिनीि देि ने अऩने ध्मान भें उऩयोतत श्रोक (जो प्रब ुभिु से ननकरा है) को प्रब ुअनाभीश्िय के श्रीभिु से सनुा है जजसे भैंने महाॊ ज्मों का त्मों शरि ददमा है।

सो0- कयहू उऩाम पवचारय कारस ुफॊध जावहह टये। अनाभीश्वय उच्चारय भाभोऩदेश हृदम वयो।।6।। अनाभीश्िय आदद ऩयभेश्िय ने कहा कक जजससे जीिो की कार से फॊध छूटे तभु िह उऩाम कयो औय भेया उऩदेि रृदम भें धायण कयो।

चौ0- सनुहु सतुनम आमस ुहभायी । भभाशीष सॊग सदा तमु्हायी।।

सॊग सॊग ननज सदगरु सयनावा । कयहु सहमोग जीव हहतकावा।।1।।

औय ऩतु्र ! हभाय आऻा सनुो ! भेया आिीिावद तमु्हाये साथ यहेगा तभु अऩने भझु सदगरुु की ियण भें उनके सॊग यहकय जीिों के दहत के शरऐ उनका सहमोग कयो।

चौ0- कारदेस चुनन सयुत हभायी । ऩठावउ भाभ सधुाभ सम्बायी।। भामा यधचत ईश बयभावा । बफना बेद भभ ऻान न ऩावा।।2।। औय कार देस से हभाय आत्भाओॊ को चुनकय सम्बार कयके भेये उत्तभधाभ को बेजो। िे भामाकृत ईश्ियों भें बयभा यह है। बफना भेये बेद जाने भेया ऻान प्रातत नह ॊ कय ऩाती।

चौ0- सतमगु त्रतेा द्वाऩय फीत े। भभ बगनत बफन ुसफ गमे यीत।े। अफ करौं भभ बस्क्त जगाहू । ननजगरु सॊग भभ बेद रखाहू।।3।। सतमगु त्रतेा औय द्िाऩय मगु फीत चुके हैं जो भेय बगनत के बफना सबी िार चरे गमे हैं। अफ कशरमगु भें भेय बजतत जगाओ औय अऩने सदगरुु के सॊग भेया बेद दयसाओ।

चौ0- तद प्रब ुसन पवनम हौं कीन्ही । भामा वश्म सयुत कय रीन्ही।। असॊस्कारय जीव तहॊ सायै । तद ककभ सो तव ऩॊथ ननहायै।।4।। तफ भैंने ऩयभेश्िय के साभने विनती की कक – सबी जीि भामा ने िश्म भें कय शरमे है इसशरमे िहाॊ सबी जीिात्भा असॊस्काय है तफ िे तमु्हाया यास्ता कैसे देि सकती हैं ?

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दो0- फोरे अकह ऩरुष तफ सनुहु सतु सद सॊदेश। कयत कयत अभ्मास ननत नासहहॊ पवघ्न करेश।।436।। तफ अकह ऩरुुष फोरे कक ऩतु्र भेया सत्म सॊदेि सनुो ! अभ्मास को ननत कयत ेकयत ेसाये करेस औय विघ्न नष्ट हो जात ेहैं।

दो0- ऩाइ णखरौना मशश ुमथा ननज हठ बमूर जाम। शन ैशन ैकार बगनत भें भभ पवऻान रखाम।।437।। औय जजस प्रकाय फच्चा खिरौना ऩात ेह अऩनी हठ को बरू जाता है उसी प्रकाय िन ैिन ैकार की बगनत भें भेया विऻान प्रदशिवत कयो।

चौ0- जफ रधग नहहॊ जीव भोहह जाने । तफ रधग कयभ कार बयभाने।। राख जतन तऩ मऻ सो कयहहॊ । बफन ुभभ ऻान नहीॊ बव तयहहॊ।।1।। तमोंकक जफ तक जीि भझुे नह ॊ जान ऩाता तफ तक कभव औय कार भ्रशभत कयत ेहैं। जीि रािो तऩ मऻ से प्रमत्न कयता है ऩयन्त ुभेया ऻान न होने से सॊसाय से नह ॊ नतयता।

चौ0- जे जन कछु बगती नहहॊ जानी । प्रथभ नतहह तभु तीथप रखानी।। दसूय मऻ वेदी सॊग जाई । तासों भात्र आहुनत प्रक्ष्माई।।2।। जो कुछ बी बजतत नह ॊ जानता सफसे ऩहरे तभु उसको तीथो को ददिाओ। दसूये मऻ िेद ऩय साथ भें जाओ औय उस से भात्र आहुनत ह डरिाओ।

चौ0- शनै् शन ैफीज सतकयभा । उधगहैं नतन्ह भन फीज सधुयभा।। तीजै देई सगणु उऩदेषा । चौथे ऩायख गरु शयण ऩठेषा।।3।। इस प्रकाय धीये धीये सतकभो का फीज औय उत्तभ धभव का सॊस्काय फढेगा तीसये उसे सगणु ब्रह्भ का उऩदेस देना औय चौथे ककसी ऩायखि (तत्िदयसी) सॊत सदगरुु की ियण भें बेजो।

चौ0- ऩॊचभ भभ सत्म ऻान सनुावा । सचखॊड बेहद सबुगनत जगावा।। तात ेहोइहैं जीव सॊस्कायी । कार तजाम ऩाहैं भभ द्वायी।।4।। ऩाॊचिे उसे भेया सत्म ऻान सनुाओ औय उसभें सचिॊड बेदन कयने िार िबु भनत जागतृ कयो। इस कायण से जीि सॊस्काय हो जामेंगें जो कार देस को त्मागकय भेया द्िाय प्रातत कयेगें।

दो0- वदऊ तद अवनीश सॊत ; हे गरुदेव “होयाभ”।

तव सहमोग को पवधध करूॊ चयण शयण अमबयाभ।।438।। तफ अिनीि देि फोरे कक हे सॊत सदगरुु होयाभदेि ! तमु्हाया सहमोग भैं तमु्हाय ऩािन चयण ियण भें ककस प्रकाय करूॊ ?

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चौ0- भैं “होयाभदेव” नतषकारा । दीन्ही नतहह आदेश ननयारा।। अवनीशदेव तभु जे कछु ऩाई । सो सफ ऻान अफ फाॊटउ जाई।।1।। उसी सभम भझु होयाभदेि ने एक ननयारा ह आदेि ददमा कक अिनीि देि तभुने जो कुछ प्रातत ककमा है िह सफ ऻान अफ जाकय फाॊटना िरुु कय दो।

चौ0- जास ुजीव सतऩॊथ ननहाये । सो प्रमोग करय सफहह उफाये।।

कारदेस भन अनत फरकायी । सत्मधाभ ऺम रीरा सायी।।2।।

जजससे जीि सच्चा भागव देि सके औय उसी प्रमोग ( Practical) को कयो जजससे सफका उद्धाय हो। कार के देस भें भन फशरष्ठ यहता है सचिॊड भें उसकी साय र राऐॊ नष्ट हो जाती है।

चौ0- सो फपुद्ध मसय तारा याखै । सयुत पॊ साम अभीयस चाखै।। फड फड मोगी सॊत अवताया । भन ननज फरकय सफहह ऩछाया।।3।। िह फवुद्ध के शसय ऩय तारा रगामे यिता है औय सयुनत को पॊ साकय अभतृ चिता यहता है। फड ेफड ेमोगी सॊत औय अिताय सफ को भन ने अऩने फर से ऩछाड ददमा है।

चौ0- ब्रह्भधाभ जफहहॊ भन जावा । ननज फर बमूर बगनत सभावा।। हौं तव षोड्स तननछर बेदा । अफ तभु जगद जीव कुर छेदा।।4।। भन जफ बी ब्रह्भधाभ भे जाता है अऩना फर बरू कय बजतत भें सभाता है। भैंने तमु्हाये सोरह चक्र िय य भें बेदन कय ददमे है अफ तभु जगत जीिों के छेदन कयो।

बावाथप (प्रवचनाॊश)- सॊत श्री होयाभदेि उिाच्- ब्रह्भा विष्णु औय भहेि तीनो कारदेस (बिसागय) भें ईश्िय म कामव कयत ेहै। जो तऩस्मा सकुभव कयत ेहै उनको ियदान बी देत ेहैं। दषु्टों का विनास बी कयत ेहैं। कबी कबी याऺस इन्हे बी पाॊस रेत ेहैं। कुछ देिी देिताओॊ को ऩि ुफशर देत ेहै तो िे ईष्ट आददश्िय कैसे हो सकत ेहैं ? दनुनमा बयभाई ऩडी है। कोई ऩायिी तत्िदिी गरुु ह उद्धाय कय सकता है। मह भन िय य भें कार रूऩ है जो घट घट भें फठैा है। फड ेफड ेऋवष भनुन अिताय ब्रह्भा, विष्णु औय शिि तथा इन्राददक की बी फवुद्ध का हयण कय देता है फस सत्मऩरुुष की ियण भें जाने िारे से कार औय भन दोंनों डयत ेहै। भन आिों की ऩतुर भें फठैा है औय कार सपेद ताये भें फठैकय सभस्त सषृ्ट को देि यहा है औय भन भाना आनन्द बोग यहा है। इसशरमे तभु आॊिे फॊद कयो औय अन्दय भें शसशभट जाओ तो इनका आनन्द इन्हे शभरना फॊद हो जामेगा। कोई सगणु भें कोई ननगुवण बजतत भें रगा है

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मे सफ भन कार औय भामा का िेर है । बजतत सत्मऩरुुष की कयो, जहाॊ कार बी हाथ जोड ेिडा है। कपय बी कारदेसीम सॊतों अितायो का अऩभान न कयना तमोंकक िे भेय व्मिस्थानसुाय कार देस भें बेजे जात ेहैं।

दो0- ओहॊ सोहॊ दोऊ भ्रात है इक अॊड इक ब्रह्भॊड। “होयाभदेव” दोउ कार छर कय बगती सचखॊड।।439।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक ओहॊ सोहॊ दोंनों बाई है एक अॊड देस भें औय एक ब्रह्भाण्ड देसो भें है मे दोंनों बी कार का ह छर है तभु सचिॊड की बजतत कयो।

चौ0- ननयगणु जऩूॊ न सयगणु ध्माऊॊ । सत्मऩरुष की शयणी जाऊॊ ।। दोनन समुभय जो डुफकी रावे । अन्तहहॊ हारय बौसागय आवे।।1।। भैं न तो ननगुवण का जाऩ कयता हूॉ औय न सगणु का ध्मान कयता हूॉ फस सत्मऩरुुष की ियण भें जाता हूॉ। जो भनषु्म इन दोनो (सगणु ननगुवण) को सशुभयत ेऔय इनभें ह डुफकी रगात ेहैं िे अन्त भें हायकय बि सागय भें ह रौट आत ेहैं।

चौ0- पवधध हरय हय सॊग सफ देवा । सफ पवधध तऩ मऻ तीयथ प्रसेवा।। धचत्रगपु्त मभ चायो खानी । सफ मभमर कारहह सेवा ठानी।।2।। ब्रह्भा विष्णु भहेि आदद सफ देिता सफ प्रकाय से तऩ मऻ तीयथ का ह सेिन कयत ेहैं। धचत्रगतुत मभयाज औय चायों मौननमों के जीि चयाचय सफ शभरकय कार की ह सेिा धायण कयत ेहैं।

चौ0- कार ननयॊजन सफ जग छामा । ऩरुष अनाभीहह बेद दयुामा।। तभु सॊग दस मशष्म भभ हीये । इकोस्न्वॊस यतन हभ कीये।।3।। कार ननयॊजन ह साये जग भें छामा है। जजसने अनाभी ऩरुुष का बेद छुऩा ददमा है। तमु्हाये साथ भेये दस शिष्म ह ये है औय इतकीस शिष्म यत्न फनामे है।

चौ0- शषे सफही मशष्म भभ भोती । सफ भभ भारा भनका ज्मोती।। भभ आमस ुसफ तभु मसय धायो । सचखॊड ऻान घट घट प्रसायो।।4।। िषे सबी असॊख्म शिष्म भेये भोती है जो सबी भेय भारा के फीज रूऩ ज्मोनत है इसशरमे तभु सफ भेय आऻा को शसय ऩय धायण कयो औय घट घट भें सचिॊड का ऻान पैराओ।

दो0- अहहऩयु नयऩयु सयुऩरुय ताऩये देस हभाय। हॊस ऩयभहॊस उडड चरमो अगभ अगोचय ऩाय।।440।। ऩातार रोक भनषु्म रोक तथा देिरोक इनसे बी ऩये हभाया देस है तभु सफ हॊस से ऩयभहॊस फनकय अगभ अगोचय के ऩाय उड चरो।

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चौ0- ब्रह्भाण्ड चीय जो जाई ऩाया । अस साभथप कोउ हॊस ननयाया।। बफना ऩायणख सरुब सो नाहीॊ । सयुतमात्रा बफन ुको जाहीॊ।।1।। जो भनषु्म ब्रह्भाण्ड को चीयकय उसके ऩाय चरा जामे ; ऐसा साभथविान कोई ननयारा ह हॊस ऩरुुष होता है। िह बफना ऩायिी (तत्िदिी) के सरुब नह है औय बफना सयुनत मात्रा कोई िहाॊ नह जा सकता।

चौ0- झूॊठी नाद भषृ चाउथ फानी । झूॊठी फनू्द हृदम सफ ठानी।। झूठॊ दयस झूॊठी जग धाया । झूॊठा शब्द वाम ुझॊकाया।।2।। नाद शभथ्मा है चायों िाणी बी झूठी हैं प्रणि फूॊद झूठी है जो सबी ने रृदम भें धायण कय यिी है दिवन बी झूठें है। जगत धाया बी झूठी है। िाम ुकी झॊकाय से उत्ऩन्न िब्द बी झूॊठा है।

चौ0- झूॊठी कामा झूॊठी सयूत । झूॊठी फनू्द झूॊठ ही भयुत।।

झूॊठा मोग झूॊठ जग बोगा । झूॊठा सखु दखु झूॊठे योगा।।3।।

िय य झूॊठा है सयूतें बी झूॊठी है। फनू्द झूॊठी उसकी भनूत वमाॊ बी शभथ्मा है मोग बी झूॊठा है औय सॊसाय के बोग बी झूॊठे है। सिु दिु झूॊठे है औय योग बी झूठें है।

चौ0- झूॊठा जगत बगत बी झूॊठा । झूठी कार भामा भन सूॊठा।।

झूठी फाजी झूॊठी भामा । सफ कुछ भषृा सत्म धचदामा।।4।।

जगत शभथ्मा है उसके बगत बी शभथ्मा है जो शभथ्मा कार भामा भें भन को रगात ेहैं। सभस्त फाजी झूठी है औय उसभें भामा बी झूठी है इस प्रकाय सफ झूॊठ ह झूॊठ है। फस चेतन्म ह एक भात्र सत्म है।

दो0- ऺय अऺय भषृा प्रऩॊच सत्म ननअऺय जान।

अपवनासी के ऻान बफन ुऩनुन ऩनुन जन्भ नसान।।441।।

ऺय औय अऺय शभथ्मा प्रऩॊच है। केिर ननअऺय को सत्म जानो। इसशरमे अविनासी सत्म के ऻान के बफना फाय फाय जीिन का नास होता है।

दो0- कार देस भें आइके ऐता कयो पवचाय।।

जीपवका को सयुगणु बजे रक्ष्म आहद कयताय।।442।।

इसशरमे कार के देस भें आकय इतना विचाय कयो कक जीविका (जीिन भें आिश्मतताओॊ) की ऩनूत व के शरमे ह देिगणों को बजो ऩयन्त ुअऩना रक्ष्म (ईष्ट) आददश्िय को जस्थय यिो।

दो0- हभ वासी उस देस के जहाॉ सस्च्चदानॊद।

अभतृ की ऩयफी फहे व्माऩक ऩयभानॊद।।443।।

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हभ सफ उस देि की ननिासी है जहाॊ सत्म चेतन्म आनॊद फसता है औय सदा अभतृ की ऩयफी फहती है औय ऩयभानॊद व्मातत है।

30 – सयुनत मात्रा धचत्रण

दो0- सत्मप्रकाश सक्सेना तामर याभकुभाय।

अनत पप्रम भभ सॊत तभु प्रश्न कीन्ही पवचाय।।444।।

भेये अनत वप्रम सॊत श्री सत्मप्रकाि सतसेना तथा याभकुभाय तामर तभुने मह विचायऩिूवक ऩश्न ककमा कक –

दो0- ननज सयुत मात्रा कार तभु ; केत ेब्रह्भाण्ड ननहाय। करय ककयऩा गरुदेव सो कयहु फखान सत्मसाय।।445।।

हे गरुुदेि अऩनी सयुनत मात्रा के सभम तभुने ब्रह्भाॊड ककतने देिे है कृऩा कयके उन सफका साॊचा यहस्म फिान कयो ?

दो0- कहत “होयाभदेव” हौं जे रणख ननज नमन। सो सफ दृष्म फयनन करूॊ सनुहु कयहु अध्मन।।446।।

श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक भैंने जो कुछ अऩनी आॊिो से देिा है उन सफ दृष्मों का िणवन कयता हूॉ सनुो औय उसका अध्ममन कयो।

छ0- ऩवूप जनभ जे मोग की साधन करय दृढावस्था मोगन की।

तदपऩ ऩयभऩद ऩामऊ नहहॊ छुहट भतृ्मकुार गनत तन की।।

ककहह कायन मोगी भ्रष्टापऩ ऩवूप जनभ सगुनत सॊस्कायन की।

“होयाभ” सो मोगी कुर जन्भहहॊ खुर ैसहजग्रस्न्थ ऻानन की।।31।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक ऩिूव जन्भ भें जजसने मोग साधना से मोग की सदुृढ अिस्था प्रातत कय र थी, कपय बी ऩयभऩद न ऩा सके औय भतृ्म ुसभम देह की गनत छूट गई िह ककसी कायण से मोग भ्रष्ट होने ऩय बी ऩिूव जन्भ के सॊस्कायों की िबु गनत से मोधगमों के कुर भें जन्भ रेता है िहाॊ उसकी ऻान की ग्रॊधथ सहज ह भें िुर जाती है।

छ0- अभ्मास साधना कयत कयत नासहहॊ सॊस सकर जयकै।

बए नाडड शौपषत सॊतन की चहढ सयुनत नब ज्मोनत झयकै।।

ब्रह्भरम ननयरेऩ आत्भा सयुत सवापवयण देह छयकै।

“होयाभ” जहॉ रौं सयुत चढाई तन ुतजै तहाॊ सयुनत पयकै।।32।।

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साधना अभ्मास कयत ेकयत ेसभस्त सॊस्काय जरकय नष्ट हो जात ेहै औय सॊत की नाडी िदु्ध हो जाती है उसकी सयुनत नब भॊडर भें चढती है औय आकाि से ज्मोनत झडने रगती है औय उसकी सयुनत नब भॊडर भें चढती है औय सयुनत के ऊऩय चढे हुिे सबी आियण नष्ट होकय ननरेऩ आत्भा ब्रह्भ भें रम हो जाती है। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक सॊत की जहाॊ तक सयुनत की चढाई होती है देह त्माग के फाद उसकी सयुनत िह ॊ ऩय चर जाती है।

दो0- ऩॉच बतू पवस्जत सयुत जफहहॊ गगन चहढ जाम।

पऩ ॊड ब्रह्भाॊड सॊगभ सीभ तीसय नतर दय ऩाम।।447।।

ऩाॊचों भहाबतूों को जीत कय सयुनत जफ आकाि भॊडरों भें चढ जाती है तफ वऩ ॊड औय ब्रह्भाण्ड के सॊगभ की सीभा ऩय तीसये नतर का द्िाया प्रातत होता है।

चौ0- जफहहॊ सयुत तीसय नतर ऩाया । खुरहहॊ तीसय नमन अऩाया।।

तफ सो नमन ब्रह्भाण्ड ननहाये । वाह्म नमन काज सफ ऺाये।।1।।

सयुनत जफ बी उस तीसये तीर के ऩाय होती है तो तीसया नेत्र िुरता है तफ िह नेत्र ब्रह्भाण्ड को देिता है औय कपय िाह्म नेत्रो का कामव सभातत हो जाता है।

चौ0- सहज सभाधध ब ैरूधचकायी । भन यॊजक दृष्म मात्रा सायी।।

बफन ुसदगरु नहहॊ सधें सभाधध । ऩग ऩग भन कये कौहटन व्माधध।।2।।

इस प्रकाय सहज सभाधध रूधचकय होती है औय साय मात्रा दृष्मों से भनोयॊजक हो जाती है। सदगरुु के बफना सभाधध नह ॊ सधती तमोंकक कदभ कदभ ऩय कौदट फाधाऐॊ भन ऩदैा कयता यहता है।

चौ0- जे जन अन्तस ऩावन नाहीॊ । नहीॊ प्रकास सभाधध भाहीॊ।।

कस्म्ऩत नीय न छामा कोई । भरमतु अन्त्कयण गनत सोई।।3।।

जजन ऩरुुषों का अन्त्कयण ऩवित्र नह होता उन्हे सभाधध अिस्था भें प्रकाि नह होता। काॊऩत ेहुिे जर भें जजस प्रकाय कोई प्रनतबफम्फ नह ॊ होता िह भरमतुत अन्त्कयण की दसा होती है।

चौ0- चॊचर भन धचत्त धथय स्जष कारा । प्रगट सॊत सन ज्मोत पवशारा।।

तफ तस्जम जऩ नादाभ्मासा । हटकहटकक फाॊधध रखहु प्रकासा।।4।।

जजस सभमचॊचर भन औय धचत्त जस्थय होत ेहै तबी सॊत के साभने वििार ज्मोनत प्रगट हो जाती है तफ नाद अभ्मास औय जाऩ त्माग देिे केिर दटकदटकक रगामे प्रकाि को देिता यहे।

दो0- ब्रह्भ भायग भॊह पवपवध सॊत साधु दयमसत होम।

सतसॊग कछु तऩयत कोऊ, बगनत बाव सभोम।।448।।

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तफ ब्रह्भ ऩॊथ भें अनेको सॊत साधु जन ददिामी देत ेहैं। जजनभें कुछ सतसॊग कुछ तऩस्मा भें र न तथा कुछ बगनत बाि भें सभामे हुिे हैं।

चौ0- कछुक पवपवध बाॊनत तऩ कयहहॊ । बेद ऩाम ब्रह्भऩथ अनसुयहहॊ।।

भायग झॊझयी द्वीऩ भहाना । मोगभ्रष्ट जन गहहहॊ हठकाना।।1।।

कुछ विविध प्रकाय से तऩ कयत ेहै औय बेद ऩाकय ब्रह्भ भागव का अनसुयण कयत ेहै। भागव भें एक झॊझय द्िीऩ है जहाॊ मोगभ्रष्ट सॊत जन विश्राभ दठकाना ऩात ेहैं।

चौ0- ब्रह्भधाभी सॊत आई जाहहॊ । भ्रमभत सॊतहह भग दयसाहहॊ।।

चरत चरत ब्रह्भऩॊथ अऩाया । मभरहहॊ बफतयनन सरय पवस्ताया।।2।।

ब्रह्भधाभ िारे सॊत आत ेजात ेहै जो भ्रशभत सॊतो को यास्ता ददिात ेहैं। इस अऩाय ब्रह्भ भागव ऩय चरत ेचरत ेएक फतैयनन नद का विस्ताय शभर जाता है।

चौ0- पवशार बुॊवय रहय अधधकाई । नतयहहॊ सॊत फडूहहॊ अधयाई।।

गरुभणुख बजन ध्मानाभ्मासी । सहज ऩाय सरय हरय कृऩासी।।3।।

जजसभें वििार बुॊियें तथा फहुत अधधक रहये हैं। उनभें सॊत जन नतय जात ेहैं ऩयन्त ुऩाऩी डूफ जात ेहै। औय गरुुभखुि बजन ध्मान अभ्मासी जीिात्भा हरय कृऩा से सहज ह भें नद ऩाय कय रेती है।

चौ0- भानसी सयुग नयक मभ ठाभा । कयभाधाय जीव सफ गाभा।।

ऩीडडत सयुत कयत ऩनछताऩ ु। भेटहहॊ सॊत ककयऩा सॊताऩ।ु।4।।

मभ रोक भें भानिी स्िगव नयक है जजनभें सफ जीि कभो के आधाय ऩय जात ेहैं। ऩीडडत सयुनत ऩछतािा कयती है। उनका सॊतो की कृऩा से सॊताऩ शभटता है।

दो0- जीव असॊसी पवषमानयुक्त बफतयनन ऩाय न होम।

ऩनु्म दानी सॊत मोगीजन गरुभणुख उतये कोम।।449।।

विषमों भें आसतत असॊस्काय जीिात्भाऐॊ फतैयनन नद ऩाय नह होती। उसभें कोई गरुु भखुि ऩनु्म दानी सॊत औय मोगी जन ह ऩाय उतयत ेहैं।

चौ0- कछुक ऩधथक ऩद मात्रा कयेहहॊ । कछुक वेधग जनन वाहन उयेहहॊ।।

शन ैशन ैसहस्त्र कॊ ज आवा । सहस्र ऩॊखरय भन हयषावा।।1।।

कछुक मात्री ऩद मात्रा कयत ेहैं। कछुक ऐसे है भानो िाहन उड यहा हो औय धीये धीये सहस्त्रदर कभर (सयुऩयु) आ जाता है उसकी सहस्त्र दरों भें भन हवषवत हो जाता है।

चौ0- पऩ ॊडहह भनकय ईच्छा बायी । बलू्मौं अॊडहह चौकरय सायी।।

छूहट व्मवस्था भन बमऊ पवयागी । ध्मान मोग तीव्र रों रागी।।2।।

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वऩ ॊड भें जो भन बाय ईच्छा कयता था िह सहस्त्र दर भें साय चौकडी बरू जाता है। उसकी व्मथा छूट जाती है औय ियैागी हो जाता है तफ ध्मान मोग भें तीव्र रग्न रग जाती है।

चौ0- जफ फीती तॊहवा कछु कारा । प्रगहट भो सन ज्मोनत पवशारा।।

अॊगषु्ठभाऩ भात्र सो ज्मोनत । अडौर दीऩ धुम्रहीन पवबौनत।।3।।

जफ िहाॊ ऩय कुछ सभम फीत गमा तो भेये साभने वििार ज्मोनत प्रगट हुई। अॊगषु्ठ ऩरयभाऩ भात्र िह ज्मोनत न दहरने डुरने िार द ऩक की रौं जैसी तथा धुिें यदहत विबनूत थी।

चौ0- पऩ ॊडहहॊ सफ ककरयमा कय सोई । रखहहॊ ऩायणख गरु मसस कोई।।

मह हदव्मधाभ अन्तऩद नाहीॊ । अग्र गमऊ दृढ बाव सभाहीॊ।।4।।

वऩ ॊड देस भें िह कक्रमा कयती है कोई ऩायखि (तत्िदिी) गरुु का शिष्म ह उसे देिता है। मह ददव्म धाभ अॊनतभ ऩद नह है। भैं दृढ बािना भें र न आगे चरता गमा।

दो0- षटचक्र बेहद सॊतजन ननयॊजन ज्मोत ननहाय।

भन्महहॊ भोष सहस्त्रायकॊ ज अग्र बेद नहीॊ ऩाय।।450।।

षटचक्रों के बेदन कयने िारे सॊतजन ननयॊजन ज्मोनत को देिकय ह सहस्त्रदर कभर भें भोऺ भान रेत ेहैं उन्हे आगे का ऩाय मा बेद नह ॊ चरता।

चौ0- हौं सभाधधस्थ ध्मान सभावा । अनतकर भायग चहढ हयषावा।।

आगे चरे इक सरय ननहायी । शीतर नीय धाय दधुधमायी।।1।।

भैं सभाधधस्थ ध्मान भें सभा गमा औय एक फड ेसनु्दय भागव (सडक) ऩय चढकय हवषवत हुआ। आगे चर कय एक नद देिी जजसकी धाय दधूधमा थी तथा जर िीतर था।

चौ0- ऩावन तीय हौं करय असनाना । करय सरय स्रोत ओय प्रमाना।।

सरय तट चमरत चमरत फहु कारा । ऩामऊ उदगभ ऩौय पवशारा।।2।।

भैंने उसके ऩवित्र तट ऩय स्नान ककमा औय कपय नद के भरू स्रोत की ओय प्रस्थान कय ददमा। फहुत सभम चरत ेचरत ेभैंने उसका उदगभ स्थान ऩा शरमा।

चौ0- हरय ठाड ैधगरय मशखय भहाना । शॊख चक्र गदा ऩदभ कय धाना।।

नतन्ह ऩदकॊ ज ननकमस सरय सोई । छटा देणख हौं गदगद होई।।3।।

एक भहान ऩिवत की चौट के ऊऩय सॊि चक्र गदा औय ऩदभ हाथों भें धायण ककमे हुिे श्रीविष्णु िड ेहुिे थे। उनके चयण कभरों से िह नद ननकर यह थी जजसकी छटा देिकय भैं गदगद हो गमा।

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चौ0- दयसन ऩाम कीन्ही प्रणाभा । आशीष गहह ननस्ज रक्ष्म मसधाभा।।

अन्तरय ज्मोनत ननयन्तय फानी । शाभ सडक चहढ सयुत भहानी।।4।।

भैंने उनके दिवन ककमे औय प्रणाभ ककमा औय आिीिावद प्रातत कयके अऩने रक्ष्म ऩय चर ददमा। अन्तयघट ज्मोनत औय ननयन्तय िब्द िाणी से भहान सयुनत िाभ सडक (ब्रह्भ भागव) ऩय चढ गई।

दो0- ज्मोनत रक्ष्म सयुनत चहढ नब भॊडर उरटी धाय।

सयुत ननयत कौतकु मह बफयरे ऩावत ऩाय।।451।।

नब भॊडर भें उरट धाय ऩय ज्मोनतरक्ष्म कयके सयुती चढ गई सयुत ननयत के इस कौतकु का वियरे ह सॊत ऩाय ऩात ेहै।

चौ0- मसमभटत सयुत जफहहॊ अॊतकारा । पऩ ॊड अॊड तस्ज चहढ ऩॊथ ननयारा।।

भन ननभपर यत अभ्मासा जोई । कुटुम्फ माद फकुैॊ ठ रधग होई।।1।।

जफ सयुनत अन्त सभम ऩय शसभटने रगती है तफ वऩ ॊड औय अॊड देसों को त्मागती हुई ननयारे ह ऩथ ऩय चढती है। जो ननभवर भन से अऩने अभ्मास भें रगा यहता था उसको अऩने कुटुम्फ की मादें फकुैॊ ठ तक आती है।

चौ0- भखृॊड तस्जत ऩदायथ साये । आवहहॊ माद तहॉ फहु प्रकाये।।

सहस्त्रद्वीऩ अरू बत्रकुहट देसा । मादे शषे जनन सऩुन पवशसेा।।2।।

भतृरोक भें छोड ेगमे सबी ऩदाथव िहाॊ विविध प्रकाय से माद आत ेहै। सहस्त्रदर देस औय बत्रकुदट देस भें िे मादें वििषे स्िऩन जैसी िषे यह जाती है।

चौ0- सनु्नहहॊ माद अनत सकू्ष्भ बमऊ । भानसय न्हाम सधुध सफ ऺमऊ।।

तहॉ सयुत अभ्मासी अपवकायी । कयहहॊ आनन्द हयष बफहायी।।3।।

औय सनु्न रोक भें मादे अनत सकू्ष्भ हो जाती है औय भान सयोिय भें स्नान कयने ऩय साय सधुध नष्ट हो जाती है। िहाॊ अविकाय अभ्मासी सयुनत हषव भें यभण कयके आनन्द बोगती है।

चौ0- सो न चहहहॊ ऩनुन भतृखॊड आवा । भामाकार गरुकृऩा नसावा।।

कार देस भॊह भामा ठगनी । ननज यॊग यॊधग भन ुसॊग रगनी।।4।।

कपय िह ऩनु् सॊसाय भें आना नह चाहती उनकी कार भामा गरुु कृऩा से नष्ट हो जाती है। कार देस भें भामा भहा ठगनी है जो अऩने यॊग भें यॊग कय भन के साथ रगी यहती है।

दो0- जफ रधग भनवा गगन चहढ जाइ न बत्रकुहट ऩाय।

तफ रधग जीव अबागी सभ सखु दखु सहे अऩाय।।452।।

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भन जफ तक गगन भें चढकय बत्रकुदट से ऩाय नह जाता तफ तक अबागी जािात्भा को दिु सिु की बयभाय यहती है।

दो0- सहस्रकुॊ ज तज फॊकनार भॊह सदगरु दशपन ऩाम।

“होयाभ” अग्र एक ठाभहहॊ जुगर मसॊह सन आम।।453।। सहस्त्रदर किर को त्मागकय फॊकनार भें अऩने सदगरुु के दिवन होत ेहै। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक आगे एक स्थान ऩय एक शसहों की जौडी साभने आती है।

चौ0- अभर धचत्त वयैाग्म भन होई । बत्रकुहट ऩाय होहीॊ तद कोई।।

बत्रकुहट देस याज्म ओॊकाया । जग यचना रव्मकोष अऩाया।।1।।

ननभवर धचत्त औय ियैागी भन होकय ह कोई बत्रकुदट से ऩाय होता है। बत्रकुदट देस ओॊकाय का साम्राज्म है। महाॊ जगत यचना का अऩाय रव्म कोष है।

चौ0- खौज न शाऩ ुभसतक भाहीॊ । बये अनतगपु्त बॊडाय तहाॊहीॊ।।

खौजहु तॉह नसैगप खजाना । जानहहॊ बेद कोउ सॊत सजुाना।।2।।

अऩने भस्तक भें अशबिाऩ न िोजो ; िह ॊ ऩय अनत गतुत बेडाय बी बये हुिे है। िहाॊ प्रकृनत का िजाना िोजो ; जजसका बेद कोई विद्िान सॊत ह जानता है।

चौ0- बत्रकुहट व्माऩ ैबत्रगणुी भामा । जेहह सकर मह जगद यचामा।।

अन्तरय भन मत अभर बमऊ । जन्भान्तय सयुनत सॊग तजमऊ।।3।।

बत्रकुदट भें बत्रगणुी भामा व्माजतत है जजसने मह साया सॊसाय यचा है। महाॊ तक अन्तरयभन ननभवर हो जाता है। औय जन्भ जन्भान्तय से रगा हुआ सयुनत का सॊग त्माग देता है ।

चौ0- धनी भहर कर उऩवन भाहीॊ । ओ अॊ हू हू आवाज सहुाहीॊ।।

आगे कोऊ ननगयुा नहहॊ जाई । कभपकाॊड मत रधग पर ऩाई।।4।।

धनी का भहर सनु्दय फागो भें है महाॊ ऩय ओॊ हू हू की सहुािनी आिाज है। महाॊ से आगे कोई ननगयुा नह ॊ जा सकता तमोंकक कभवकाॊड (तऩ व्रत मऻाददक) का पर मह ॊ तक रगता है।

दो0- बत्रकुहट सीभा दसभ द्वाय सनु्न रोक बफसताय।

भामा रबुावत सॊतजन गरुबक्त उतये ऩाय।।454।।

बत्रकुदट की सीभा ऩय दसभद्िाय है जहाॊ से सनु्न रोक का विस्ताय है। महाॊ सॊतो को भामा रबुाती है ; भात्र गरुु बतत ह ऩाय उतयत ेहै।

चौ0- इडा पऩ ॊगरा स्वय तहॊ नाहीॊ । सखुभन गभन तहॉ सयुत चढाहीॊ।।

भामावी मह रोक अऩाया । वयैाग्महीन नहहॊ ऩावहहॊ ऩाया।।1।।

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िहाॊ इडा वऩ ॊगरा के स्िय नह हैं िहाॊ सषु्भना भें मात्रा कयके सयुनत चढती है। मह रोक अऩाय भामा िारा है ियैाग्म यदहत कोई इसका ऩाय नह ॊ ऩाता।

चौ0- अनत सनु्दय वन उऩवन नाना । शधुच तडाग सॊगभयभय सभाना।।

ईन्रदेव याज्म पवसतायी । कयहहॊ अऩसया नतृ्म फहु बायी।।2।।

िहाॊ अनत सनु्दय नाना िन औय उऩिन है। सॊगभयभय के सभान ऩवित्र ताराफ है औय ईन्रदेि का विस्ततृ याज्म है। िहाॊ अऩसयाऐॊ फहुत फहुत नतृ्म कयती है।

चौ0- यॊग बफयॊग भीन सय देखी । तयैत कपयत करोर पवशखेी।।

केमर कयत सयतट सयुनायी । ऩावन दृष्म अतरु भनोहायी।।3।।

ताराफों भें यॊग बफयॊगी भजच्रमाॊ देिी है जो वििषे करोर कयती हुई तयैती कपयती है। तडाग के ककनाये देिताओॊ की जस्त्रमाॉ केर (िेर) कयती है। मह ऩािन दृष्म अतलु्म भनोहाय है।

चौ0- ऩरयजात पवटऩ ईन्र दयफाया । रता पवशार आमतन बाया।।

तहॉ ऩहैठ भन बमउ जे काभा । सो सफ ऩयूण ब ैअपवयाभा।।4।।

देियाज ईन्र के दयफाय भें एक ऩारयजात िृऺ (कल्ऩिृऺ ) है जजसकी वििार रताऐॊ तथा बाय आमतन है। िहाॊ फठैकय जजसको जो काभना उत्ऩन्न होता है िह सफ तत्कार ऩणूव हो जाती है।

दो0- शधुचकार तरूवय आॊगना अदबदु यचना “होयाभ”।

आबा फयनन जाइ नहीॊ देव कयहहॊ पवश्राभ।।455।।

इस सनु्दय औय ऩवित्र िृऺ के चफतुयें की अद्भतु यचना है। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक िहाॊ देिगण विश्राभ कयत ेहैं जजसकी आबा (छटा) िणवन नह की जाती है।

चौ0- अभीकूऩ तॊह पवऩरु पवशारा । ऩीवत न्हावत सयुसरुय फारा।।

श्वेत यॊग काभधेन ुगौका । अद्भदु दात देणख सयुरोका।।1।।

िहाॊ एक अभतृ का कुआॊ फहुत वििार है जजसभें देिताओॊ की जस्त्रमाॊ तथा कन्माऐॊ स्नान कयती है तथा अभतृ ऩीती है। एक श्िेत यॊग की काभधेन ुगाम देिरोक भें अद्भतु चीज देिी।

चौ0- अनत प्रकाश मद्पऩ सयुथाभा । तदपऩ न दीषत सयुतन ुछाभा।।

भानव सखु शतगणुा सखुायी । बोगहहॊ गॊधवप रोक नय नायी।।2।।

मद्मवऩ देिरोक भें फहुत प्रकाि है कपय बी देिताओॊ के िय य की ऩयछाई नह ॊ ददिाई देती है। भनषु्म के सिु का सौ गणुा सिु गॊधिव रोक के नय नाय बोगत ेहैं।

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चौ0- गॊधयव त ेशतगणुी सखु बोगा । देव रोक जन कयहहॊ प्रमोगा।।

सयुन्ह रोक शतगणुी अधधकाई । पऩतय रोक फासी सफ ऩाई।।3।।

औय गॊधिों के सिु का सौ गणुा सिु बोग देि रोक के प्राणी प्रमोग भें रात ेहै। तथा स्िगव रोक का सौ गणुा अधधक सिु वऩतयरोक ननिासी प्रातत कयत ेहैं।

चौ0- पऩतशृतगणुी अजानज रोका । एनत अजानज सयु सखु ऩोका।।

अगे्रनत कभपदेव रोक ऩारा । जाकय शतगणुी ईन्र पवशारा।।4।।

वऩत ृरोक का सौ गणुा अजानज रोक औय इतना ह इसका सौ गणुा अजानज देिरोक का याज्म सिु है। इससे आगे इतना ह कभवदेि रोकऩारों को तथा इनका सौगणुा वििार सिु ईन्र बोगता है।

चौ0- ईन्र रोक शतगणुी सखु सावा । फहृस्ऩनत रोक ननवासी ऩावा।।

एतई प्रजाऩनत रोक सखुायी । इह क्रभ रोक अग्र बफसतायी।।5।।

ईन्ररोक का सौ गणुा सिु बोग फहृस्ऩनत रोक के ननिासी ऩात ेहै इसी प्रकाय प्रजाऩनत रोक भें सिु बोग है। इसी क्रभ से आगे के रोकों का विस्ताय है।

दो0- ऺणणक बोग इह ऩाइ नय फाढहहॊ अहभ अऩाय।

सो भनतभॊद न जानहहॊ केनतक वॊधचत साय।।456।।

ऺखणक सिु ऩाकय महाॊ भानि को अऩाय अहॊकाय फढ जाता है। उस सिु को भिूव व्मजतत नह जानता कक ककतने साय तत्ि से िह िॊधचत है।

दो0- “होयाभदेव” सनु्न भॊह सतुप् चहुॊ हदमस भामा पवकास। भायग मत तत सॊत मभरत साध न होहहॊ ननयास।।457।।

श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक सनु्न भें सयुत चायों ददसाओॊ भें जहाॊ भामा का विस्ताय देिती है िह ॊ भागव भें जहाॊ तहाॊ सॊतों का शभरन होता है जजससे साधक ननयास नह ॊ होता।

दो0- देवऋपष आश्रभ रूयौ चयचा होत ब्रह्भ ऻान।

सहज सभाधध रखहहॊ ननत सॊत मामवय फान।।458।।

सनु्दय सनु्दय देिऋवषमों के आश्रभों भें ब्रह्भऻान की चचाव होती यहती है जजसे मात्रा कयने िारे सॊत जन सहज सभाधध भें ननत देित ेयहत ेहैं।

दो0- चरत चरत सयुनत रखत भानसयोवय ऩाय।

करय स्नान आगे फहढ भहासनु्न अॊध पवस्ताय।।459।।

इस प्रकाय चरत ेचरत ेसयुनत भानसयोिय को देिती है औय उसभें स्नान कयके आगे भहासनु्न के अॊधेये विस्ताय भें फढ जाती है।

छ0- चहुॊ हदमस व्माप्त सहुठ भौमर अवमर नसैगप ननकाई क्षऺनतज पवतान।

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असॊखम पवस्ततृ धगरयगहुा अॊध नहहॊ उझऩ ैनमरनीश भहान।।

जीव यहहत ऩरयऩाटी भ्रमभत ढृढासयत सॊत कयत प्रमान।

“होयाभ” कहुॊ कहुॊ ऩयत दनुतझाॊई नतष रक्ष्म ऩाय भहासनु्न जान।।33।। चायो ददसाओॊ भें ऩिवतों की कतायें तथा विस्ततृ आकाि भें प्रकृनत की सनु्दयता व्मातत है। असॊख्म विस्ततृ ऩिवतो भें घौय अॊधेय गपुाऐॊ हैं िहाॊ चन्रभा बी नह ॊ चभकता मह जीि यदहत सषृ्ट है। कक कह ॊ ऩय ज्मोनत की झाॊई सी आती है। उसी रक्ष्म ऩय भहासनु्न के ऩाय हुआ जाता है।

दो0- ऩॊच भकुाभ तहॉ गपु्त अनत याज्म ऩॊचसतु् सहुाम।

बत्रकुहट रधग प्रयरम जदौं तॊहवा सयुत सभाम।।460।।

िहाॊ ऩाॊच भकुाभ अनत गतुत है। जजनभें ऩाॊच धननमों का याज्म सिुोशबत है। बत्रकुदट तक जफ ऩयरम हो जाती है तफ सभस्त सतुें (जीिात्भा) उनभें सभाई जाती है।

दो0- आगे खयफ मोजन सयुत मकच अद्धौ मसहयाम।

ऩनुन उहठ अध्र्व आगे फहढ चककत सॊत बयभाम।।461।।

आगे एकदभ सयुनत ियफो मोजन नीचे धगयती है औय कपय से उठकय ऊऩय को चढती है। उससे चककत होकय सॊत भ्रशभत हो जाता है।

चौ0- आगे बुॊवय रोक छपव छाई । ननशोऩयान्त प्रबात जनन आई।।

वन उऩवन झूरे फहु देखी । हीये भोती भहर पवशखेी।।1।।

आगे बुॊिय रोक की छवि छाई हुई है। भानो यात्री के फाद प्रबात आई है। महाॊ फगीचों भें फहुत से झूरे देिे तथा वििषे भहर ह ये भोती जड ेहुिे देिे।

चौ0- हौं ऩनुन ब्रह्भचक्र हढॊग आवा । भहाकार देणख हयषावा।।

सतऩरुष की आमस ुऩाई । सोहॊ ऩरुष बवचक्र चराई।।2।।

कपय चरत ेचरत ेभैं ब्रह्भचक्र (सषृ्ट चक्र) के ऩास आ गमा औय भहाकार को देिकय फहुत हवषवत हुआ। सत्मऩरुुष की आऻा ऩाकय ह सोहॊ (भहाकार धनी) इस बिचक्र को चराता है।

चौ0- सभझत सयुत मत हौं पववशावा । भहाकार सफ फाॊधध नचावा।।

आवागभन मत अस्न्तभ साभ ू। जे नही सचखॊडी ऩॊथ दसीभ।ू।3।।

महाॊ ऩय सयुनत सभझ रेती है कक भैं वििि हूॉ ; महाॊ भहाकार सफ को फाॊध कय नचा यहा है। मह ऩय आिागभन की अॊनतभ सीभा है जो सचिॊडी भायग को नह बेदती।

चौ0- सचखॊड बेद सयुत जे जानी । भहाकार नतन्ह दमा प्रदानी।।

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सत्मऩरुष आमस ुभहाकारा । सयुत न यौककउ धनी दमारा।।4।।

जो सयुनत सचिॊड का बेद जानती है भहाकार उन ऩय दमा प्रदान कयत ेहैं। सत्मऩरुुष की भहाकार को मह आऻा है कक सचिॊडी दमार धनी की सयुनतमों को न योके।

दो0- काराधधष्ठाता पऩ ॊड अॊड अरू ब्रह्भाण्ड पवशार।

अन्म सहाइ देव सॊग देहहॊ गनत जग जार।।462।।

कार के अधधष्ठाता वऩ ॊड अॊड औय वििार ब्रह्भाण्ड भें अन्म देिगणों के साथ जगत जार को गनत प्रदान कयत ेहैं।

चौ0- आगे चरे सतऩरुय ऩॊथ सॊता । मभरहहॊ सतॊ जै जैकाय कयॊता।।

भायग हौं रणख अजयज ऐका । असॊखम धेन ुसॊग सॊत अनेका।।1।।

सतरोक के यास्त ेभें जफ सॊत आगे चरता है तो जम जमकाय कयत ेहुिे सॊत शभरत ेहै। भागव भें एक आश्चमव देिा कक असॊख्म गामों के साथ अनेकों सॊत जन थे।

चौ0- सो सफ सॊत भोहह बेंटा कीन्ही । ब्रह्भोऩदेश ऩैंहठ तहॉ दीन्ही।।

हौं सफ सॊतन आमशष ऩावा । रक्ष्म समुभय ननज गभन ठहयावा।।2।।

उन सफ सॊतों ने भझुसे बेंट की औय फठैकय िह ॊ भझुे ब्रह्भोऩदेि ददमा। भैंने उन सबी सॊतो का आिीिावद प्रातत ककमा औय कपय अऩना रक्ष्म माद कयके आगे को गभन ककमा।

चौ0- चरत चरत फीती फहु कारा । पवरोकक भनोयभ दृष्म पवशारा।।

ठाडड अभ्रॊकष पवटऩ कताया । दीऩभारा सभ आब ुअऩाया।।3।।

चरत ेचरत ेजफ फहुत सभम फीत गमा तफ एक वििार भनोहय दृष्म देिा कक िहाॊ रम्फे रम्फे िृऺ ों की कताये थी जजन ऩय द ऩभारा (झारय) जैसी अऩाय झरक थी।

चौ0- व्माऩक अभरयत तार सहुाने । यॊजक भेघ नब नघरयअ रखाने।।

पवटऩ औऩरय इक हॊस देषा । रखत न मभटहहॊ पऩऩास भनेुषा।।4।।

िहाॊ व्माऩक अभतृ के सहुाने ताराफ तथा आनन्द देने िारे आकाि भें नघयत ेहुमे भेघ देिे। िृऺ के ऊऩय एक हॊस देिा जजसको देित ेबी भनुनमों को तमास नह ॊ शभटती।

दो0- मत साम्राज्म सत्म ऩरुष फयनन ककमेउ न जाम।

अनऩुभ बवन पवयाट रणख सॊत जन धन्म धन्म गाम।।463।।

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महाॊ ऩय सत्म ऩरुुष का साम्राज्म है जजसका िणवन नह ककमा जा सकता है। महाॊ सत्मऩरुुष धनी का अद्वितीम भहर देिकय सॊतजन धन्म धन्म कहने रगत ेहैं।

दो0- सत्मऩरुष पवयाट मह सकर जीव घट जानन।

अणखर ब्रह्भाण्ड कण कण भॊह चेतन रूऩ रखानन।।464।।

इसी सत्मऩरुुष वियाट को सभस्त जीिों के घट भें जानों। अखिर ब्रह्भाण्ड के कण कण भें मह चेतन्म स्िरूऩ देिा जाता है।

दो0- ऩया अऩया प्रकृनत दोऊ रमबतू भरू स्रोत।

“होयाभ” रखा सत्मरोकहहॊ सतभामा सत्म ज्मोत।।465।। ऩया औय अऩया दोनों प्रकृनतमों का भरू स्रोत है जजसभें चयाचय बतूगण रम होत ेहैं। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक भनैें उस सत्म भामा औय सत्म ज्मोनत को सत्मरोक भें देिा।

चौ0- ऩयभधनी सत्मऩरुष ननयाया । ननकरय प्रकृनत खौमर पऩटाया।।

ऩया अऩया प्रकृनत द्व ैरूऩा । यचत पऩ ॊड ब्रह्भाण्ड अनऩूा।।1।।

सत्मऩरुुष ऩयभधनी ननयारा ह है। उसने प्रकृनत को अऩना वऩटाया िोर कय ननकारा है। प्रकृनत ऩया औय अऩया दो रूऩों िार है जो इस अनऩुभ ब्रह्भाण्ड औय वऩ ॊड को यचती है।

चौ0- दोनन रूऩ सो स्वमॊ सभावा । जास ुप्राकयनत जगत यचावा।।

सत्म पवयाट स्वरूऩ पवशारा । भेधा चककत रखहहॊ स्जस कारा।।2।।

िह स्िमॊ ह दोंनों रूऩों भें सभामा है जजसके कायण प्रकृनत जगत की यचना कयती है। सत्म वियाट का स्िरूऩ वििार है उसे जजस सभम देित ेहैं फवुद्ध चककत हो जाती है।

चौ0- अतरु बवन हीयेकन नाई । सत्म मसॊहासन ऩरुष सहुाई।।

सतऩरुय छपव जाई नहहॊ फयनी । सफ पवधध धनी आरौककक कयनी।।3।।

ह ये की भखणमों की तयह का अतलु्म बिन है। जजसभें सत्म शसॊहासन ऩय धनी ऩरुुष वियाजभान है। सत्मरोक की छवि िणवन नह ॊ हो ऩाती िहाॊ धनीऩरुुष की सिव प्रकाय से आरौककक कयनी है।

चौ0- अभतृ बये सयोवय नाना । असॊखम भयार करोर यभाना।।

सरयता वन उऩवन फहु देखी । भहहभा आम न कथनी रेखी।।4।।

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अभतृ के अनेकों सयोिय बये हुिे है जजनभें असॊख्म हॉस करोर कयत ेयभत ेहैं िहाॊ फहुत सी नददमाॊ िन औय उऩिन देिे जजनकी भदहभा कहने औय शरिने भें नह आती।

दो0- सत्मऩरुष देखी सॊतजन नासहहॊ सकर करेश।

“होयाभ” सयुत कृत्म कृत्म बई फॊधन नहहॊ रवरेश।।466।। सत्मऩरुुष को देिकय सॊतजनों के साये करेि नष्ट हो जात ेहै। श्री होयाभदेि जी कहत ेहै कक महाॊ सयुनत धन्म धन्म हो जाती है। रिरेि भात्र बी फॊधन नह ॊ यहता।

चौ0- सतगरु अस पवधध दयसाई । अरख ऩॊथ भभ सयुत मसधाई।।

अरख रोक पवस्ताय पवशखेा । गगन ऩौहढ चहढ अचयज ऩखैा।।1।।

भेये सतगरुु देि ने ऐसी विधध फताई जजससे भेय सयुनत अरि के भागव को दौड ऩडी। अरि रोक का बी विस्ताय वििषे है भैंने आकाि की सीदढमों ऩय चढकय आश्चमव देिा है।

चौ0- ऩावन तहॉ इक ठाभ ननहायी । फारेश्वय बई बेंट हभायी।।

सॊत सभाज हदमऊ सतसॊगा । फहावत ब्रह्भऻान सत्मगॊगा।।2।।

िह एक ऩािन जगह ऩय हभाय बेंट ऩयभ सॊत फारेश्िय (फारकनाथ) से हो गई। जो सॊत सभाज को सतसॊग दे यहे थे औय ब्रह्भऻान की सत्मगॊगा फहा यहे थे।

चौ0- चतबुुपज फनी दई उऩदेश ू। ननयवाण गभन रक्ष्म सन्देश।ू।

आगे चरत हौं सरयता देखी । असनान कीन्ह अभीधाय पवशखेी।।3।।

कपय चतबुुवज स्िरूऩ भें एक धनी ऩरुुष ने उऩदेि (प्रिचन) ददमा जो ननिावण मात्रा के रक्ष्म का सॊदेि था। भैंने आगे चरकय एक वििार नद देिी जजसकी अभतृ धाया भें भैंने स्नान ककमा।

चौ0- आवत फहह कभर जरधाया । ताऩय सोहें पवयॊधच ननहाया।।

ऩयूण जगत हहयण्म मौनी । फीज रूऩ सफ बतू सभौनी।।4।।

उसकी जर धाया भें एक कभर फहता आ यहा था। जजस ऩय ब्रह्भा जी को वियाजभान देिा। मह ऩणूव जगत की दहयण्मगबव मौनी है जजसभें सभस्त बतूगण फीज रूऩ भें सभोमे हुिे यहत ेहैं।

चौ0- अरख रोक अथाह पवस्ताया । भहाकायण मह अरख ननयाया।।

अरख ऩरुष याजधानी देखी । अदबतु सषृ्टी पवशषे पवशखेी।।5।।

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अरि रोक का अथाह विस्ताय है। भहाकायण का मह ननयारा अरि रोक है। भनेै अरि ऩरुुष की याजधानी देिी जजसकी वििषेों भें वििषे अदबतु सजृष्टमाॉ है।

दो0- “होयाभ” ऩणूप तरूवय जनन स्तीत्व फीज दयुाम। पवयाट चयाचय सकर जग हहयण्म कोष सभाम।।467।।

श्री होयाभदेि जी कहत ेहै कक जैसे सम्ऩणूव िृऺ का स्तीत्ि भात्र फीज भें नछऩा होता है उसी प्रकाय चयाचय वियाट जगत दहयण्मगबव भें सभा जाता है।

चौ0- सकर ब्रह्भाण्ड स्रोत मह जानी । उग ैखऩ ैजग हहयण्म सभानी।।

चौभणुख बफधध तहॉ दयसन दीन्है । पवपवध बाॉनत हौं प्रसॊग कीन्है।।1।।

मह सभस्त ब्रह्भाण्ड का स्रोत जाना जाता है। सॊसाय इसी दहयण्म गबव भें उत्ऩन्न होता है औय नष्ट होकय इसी भें सभाता है। चाय भिुों िारे ब्रह्भा जी ने िहाॊ भझुे दिवन ददमे औय विविध प्रकाय से भैंने उनसे प्रसॊग ककमे।

चौ0- हौं भखु चाउथ प्रश्न कीन्ही । सो पवधधवत भोहह उत्तय दीन्ही।।

बत्रभखु अधचद कक चेतन एका । ब्रह्भा फखानन साय प्रत्मेका।।2।।

भैंने चायों भिुो के विषम भें प्रश्न ककमा जजसका उन्होने विधध ऩिूवक उत्तय ददमा। भैंने ऩछूा कक आऩके तीन भिु अचेतन है औय एक चेतन्म है ऐसा तमों ? तफ ब्रह्भा जी ने प्रत्मेक का साय तत्ि (यहस्म) फतामा कक –

चौ0- सतमगु चेतन सत्मानन होई । धयभानन त्रतेामगु जोई।।

मऻदत्त चेतन द्वाऩय जफहीॊ । कमरमगु भखु मह चेतन अफहीॊ।।3।।

सतमगु भें सत्म भिु चेतन्म होता है औय जो त्रतेा मगु है उसभें धभव भिु चेतन्म होता है औय जफ द्िाऩय मगु होता है तफ मऻदत्त भिु चेतन्म होता है औय अफ कशरमगु भें भेया कशरभिु चेतन्म है।

चौ0- पवशषे प्रबाव ुभखु कमरकारा । नाभ ध्मान यत मभरहहॊ मशवारा।।

तभु “होयाभ” सदगरु शयणाई । कयहु सअुवसय सयुत कभाई।।4।। कशरमगु के भिु का वििषे प्रबाि है। इस सभम नाभ ध्मान से ह शिि ऩद शभर जाता है। तभु होयाभदेि सदगरुु की ियण भें हो मह उत्तभ अिसय है अऩनी सयुत कभाई कय रो।

दो0- एक हदवस ध्मानस्थ सऩुन सयुत गई ब्रह्भ ऩास।

रखामऊ भभ हदव्म जनभ ; स्वमभ ईश अपवनास।।468।। एक ददन ध्मानस्थ अिस्था के स्िऩन भें सयुनत ब्रह्भ के ननकट ऩहुॉच गई िहाॊ अविनािी ऩयभेश्िय ने भझुे भेया एक अदबतु ददव्म जन्भ ददिामा।

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चौ0- सो सऩुन भैं करूॊ फखानी । सकर सत्म असत्म न गानी।।

भैं “होयाभदेव” जो चाहीॊ । सो ततकार ब ैऩयूण ऩाहीॊ।।1।। भैं उसी स्िऩन का िणवन कयता हूॉ जो सत्म ह सत्म है शभथ्मा कुछ नह ॊ कहूगाॊ। िहाॊ भैं होयाभदेि जो चाहता िह तत्कार ऩणूव होता हुआ ऩाता था।

चौ0- जननअ नसैगप भाभ सॊकेत ू। भाभ काज यत सकती सभेत।ू।

देणख भनोहय बवन पवशारा । भरेच्छ याव आतॊक कयारा।।2।।

भानों प्रकृनत भेये सॊकेत ऩय सफ िजततमों सदहत भेये कामव भें रगी हुई है। भैंने िहाॊ एक भनोहय भहर देिा। िहाॊ एक भरेच्छ याजा का कठोय आतॊक पैरा हुआ था।

चौ0- भरेच्छ वॊश मशव भॊहदय कोई । जेहह ऩहहॊ सो आधधऩत्म सॊजोई।।

नतन्ह अनाचाय हहन्दतु्व नसावा । हहन्द ूतहाॉ जाम नहहॊ ऩावा।।3।।

कोई शिि भॊददय है जजस ऩय िे भरेच्छिॊिी अऩना आधधऩत्म जभामे हुिे थे। उनके अत्माचाय से दहन्दतु्ि नष्ट हो यहा था औय कोई दहन्द ूिहाॊ जा बी नह ऩाता था।

चौ0- सकर सॊत ससुज्जन प्रानी । ऩीडडत भन हरय नाभ जऩानी।।

यऺायथ हरय नाभ उच्चायी । दृष्म मह ननज नमन ननहायी।।4।।

सबी सॊत सज्जन प्राणी ऩीडडत भन से श्रीहरय का नाभ जऩ यहे थे। िे अऩनी यऺा के शरमे हरयनाभ का उच्चायण कय यहे थे। भैंने मह दृश्म अऩनी आॉिों से देिा है।

चौ0- तहेह अवसय हौं अचयज देखा । अवतरय नब सो हम पवशखेा।।

सो भभ ननकट तहॉवाॊ आमो । सॊकेतहहॊ भोहह यीढ बफठामो।।5।।

उसी सभम भैंने एक आश्चमव देिा कक आकाि से एक वििषे घोडा उतय यहा है। िहाॉ ऩय िह भेये ननकट आ गमा औय उसने भझुे सॊकेत भें अऩनी कभय ऩय फठैा शरमा।

दो0- कीन्ह ऩकुाय कछु नारयमाॊ पवरखत अश्रुधाय।

रागी कथन ननज सतु सतुा ; ऩनत फॊहद कायागाय।।469।। कुछ जस्त्रमों ने विरित ेहुिे अश्रुधाया से ऩकुाय की। िे कहने रगी कक उनके अऩने फेट फेटे औय ऩनत कायागाय भें फॊद है।

चौ0- तहेह अवसय सो अश्व हभायी । वेधग गगन ऩथ बरयत उडायी।।

आमऊ जहॊ भॊहदय भन बावन । भहस्जद रूऩहहॊ ठाडड अऩावन।।1।।

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उसी अिसय ऩय हभाये घोड ेने गगन भागव भें उडान बय द । औय जहाॊ भनबािन भॊददय था िहाॊ आ गमा जो भजस्जद रूऩ भें अऩवित्र िडा था।

चौ0- असॊखम भरेच्छ फोमरऊ धावा । जनन ऩरहहॊ भोहह भारय खावा।।

प्रहाय सों ऩयथभ सोइ तयुॊगा । उरयऊ गगन यछऊ भभ अॊगा।।2।।

असॊख्म भरेच्छ ने भझु ऩय धािा फोर ददमा भानो िे ऩरबय भें भझुे भायकय िा जामेगें। ऩयन्त ु आक्रभण से ऩहरे ह िह घोडा आकाि भें उड गमा औय भेय सयुऺा कय द ।

चौ0- हम साज इक खडग पवशारा । फॊधध देणख हौं अनत हयषारा।।

हौं खडग स्जस ओय चराई । कहट कहट शीश सफ खर ुनसाई।।3।।

घोड ेके साज से एक वििार तरिाय फॊधी हुई देिकय भैं अनत प्रसन्न हुआ। भैंने िह िडग जजधय चराई उसी तयप िीि कट कय सफ दषु्ट नष्ट होने रगे।

चौ0- नब ऩथ चहढ अश्व तहॊ आई । जहॉ दजूी ऩयकोट रखाई।।

तॉह अपऩ सनैा झऩटन कीन्ही । खडक घभुाम प्राण नतन्ह रीन्ही।।4।।

कपय आकाि भागव से चढकय घोडा िहाॊ आमा जहाॊ दसूया ऩयकोटा ददिाई ददमा। िहाॊ बी सेना ने आक्रभण ककमा ऩयन्त ुभैंने तरिाय घभुाकय सफके प्राण रे शरमे।

दो0- भभ अश्व तीसय कोट भें उतयौ हहॊहहॊस उच्चाय।

भभ खडग टूहटऊ छुटी एक सनैनक फर प्रहाय।।470।।

कपय भेया घोडा तीसये ऩयकोट भें दहॊदहॊ कयता हुआ उतय गमा िहाॊ एक सनैनक के फर प्रहाय से भेय तरिाय टूट कय छूट गई।

चौ0- अश्व साज डडबफया इक देखी । जाभॊहह बरयआ याख पवशखेी।।

याख उयाम हौं सफ ुचुन भाया । जफ भरेच्छ कीन्ही प्रहाया।।1।।

घोड ेके साज से फॊधी हुई एक डडबफमा देिी जजसभें याि बय हुई थी। जफ भरेच्छों ने भझु ऩय प्रहाय ककमा तो भैंने याि उडाकय सफ को चुन चुन कय भाय ददमा।

चौ0- ऩनुन अश्व उरय तहॊ आई । जहॊ कायागाय ननदोष फॊधाई।।

चुनन चुनन तहॊ सफ असयु सॊहाये । द्वाय तौरय सफ फॊहद ननकाये।।2।।

कपय घोडा उडकय िहाॊ आ गमा जहाॊ कायागाय भें ननदोष रोग फॊधे हुमे थे। भनेै िहाॊ बी चुन चुन कय सबी असयुों का सॊहाय ककमा औय द्िाय तौडकय सबी फॊददमों को ननकार ददमा।

चौ0- तफ अश्व भोहह र ैचमर तहवाॉ । भनोकाभना भॊहदय जहवाॉ।।

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तहॊ अथाह सयोवय ऩावन । देणख दृष्म मह अनत भन बावन।।3।।

तफ िह घोडा भझुे िहाॉ ऩय रेकय आ गमा जहाॊ एक भनोकाभना भॊददय था िहाॊ एक अथाह तथा ऩवित्र सयोिय था मह दृष्म देिकय भेया भन अनत प्रसन्न हो गमा।

चौ0- हम सों अवतरय हौं थर आई । अद्भदु यचना सऩुन रखाई।।

अश्व गमऊ तफ उरय आकासा । बमों अदृष्म हौं देणख तभासा।।4।।

घोड ेसे उतयकय भैं धयती ऩय आ गमा। सऩुने भें मह अदबदु यचना भैंने देिी। कपय िह घोडा उडकय आकाि भें चरा गमा औय अदृष्म हो गमा भैंने मह तभासा देिा।

दो0- फॊदीजन तहॉ आमऊ छूटी सफ ुकायागाय।

सफजन हपषपत भकु्त ब ैकीन्ही जै जैकाय।।471।।

कायागाय से छूटकय फॊद जन बी िहाॊ आ गमे सबी जन हवषवत औय भतुत होकय भेय जै जैकाय कयने रगे।

दो0- एक हदवस फहुकार चरत याज्म बवन एक ननहारय।

द्वाय ठाडड द्वायऩार दोऊ ; जाकय सनु्दय द्वारय।।472।। फहुत सभम तक चरत ेचरत ेएक ददन भैंने एक याज्म बिन देिा जजसके सनु्दय द्िाय ऩय दो द्िायऩार िड ेहुिे थे।

चौ0- भभागभन सॊदेश हभायी । द्वायऩार नऩृ सभऺ उच्चायी।।

हम सॊग दोऊ हम सजे सजामे । सनैाऩनत रेनन भोहह आमे।।1।।

भेये आगभन की हभाय सॊदेि द्िायऩार ने याजा के सभऺ कह द तफ तो दो सजे सजामे घोडों के साथ सेनाऩनत भझुे रेने को आमे।

चौ0- एक अश्व हौं ऩहैठ नतषकारा । गमऊ जहॉ सो नयेश दमारा।।

सो नऩृ भोहह प्रनाभा कीन्ही । बफठाम याज्मऩद आदय दीन्ही।।2।।

एक घोड ेऩय भैं उस सभम फठै गमा औय दमार धनी के ऩास गमा। िहाॊ उस याजा ने भझुे प्रणाभ ककमा औय आदय सदहत याज्मगद्दी ऩय फठैा ददमा।

चौ0- फोरे नयेश याभ भभ नाभा । अरख देस अमोध्मा धाभा।।

बायत धया मही त ेगमऊ । खर दर भारय रौहट मत अमऊ।।3।।

िे याजा (धनी ऩरुुष) फोरे कक भेया नाभ याभ है। मह अरि रोक भेय अमोध्मा धाभ है। भैं मह से बायतिषव की धयती ऩय गमा औय िहाॉ के दषु्ट दरों का विनास कयके िावऩस रौट आमा हूॉ।

चौ0- याभ वाभाॊग सशुोमबत सीता । हनभुत याजत चयण ऩनुीता।।

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बयत सीस ऩहॊ छत्र सजावा । रखन शत्रघुन चॊवय डुयावा।।4।।

याभ के फाॊमें अॊग भें श्रीसीता जी सिुोशबत हो यह थी। हनभुान जी उनके ऩािन चयणों भें वियाजभान थे, बयत उनके िीि ऩय छत्र सजामे हुिे थे। रक्ष्भण औय ित्रघुन चिय डुरा यहे थे।

चौ0- यावट छपव जाम नहहॊ वयनी । सवपत व्माप्त आरौककक कयनी।।

भणण भाणणक ऩन्न यतन सहुाने । देखत अचयज हहम रबुाने।।5।।

याज बिन की छवि िणवन नह ॊ की जा सकती तमोंकक िहाॉ सिवत्र आरौककक काय धगय व्मातत थी जजसभें भखणमाॉ, भाखणतम, ऩन्ने औय यतन सिुोशबत हो यहे थे। जजन्हे देिकय फडा आश्चमव हुआ जो रृदम को रबुामभान कय यहा था।

दो0- भनुन बेष कछु कार हौं ऩाम अतरु सत्काय।

अग्ररोक मात्रा हहत ेभन भें कीन्ह पवचाय।।473।।

भैंने भनुनबेष भें कुछ सभम तक अतलु्म सत्काय प्रातत ककमा कपय भैंने अऩनी अधग्रभ रोकों की मात्रा के शरमे भन भें विचाय ककमा।

दो0- श्रीयाभ सादय भोही आमे सॊग ननज द्वाय।

“होयाभ” बेंट नहहॊ बमूरमाॊ स्भनृत फायम्फाय।।474।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक श्री याभ सादय भेये साथ अऩने द्िाय तक आमे। भैं इस बेंट को नह ॊ बरू ऩाता। भझुे इसकी स्भनृत फायम्फाय फनी यहती है।

दो0- अरख अॊश शधुच अगभ रोक बफयरे ऩहुॉचत कोम।

स्जन्ह देणख सो जाननमाॊ फयनन सकै न होम।।475।।

अरि का अॊि ऩािन अगभ रोक है जहाॊ बफयरे ह कोई ऩहुॊचत ेहैं। जजसने मह सफ देिा है िह जान सकता है। इसका िणवन नह हो ऩाता।

चौ0- रक्ष्म साधध हौं आगे गमऊ । अनत रूधचय तहॉ छटा बमऊ।।

उयजा गॊग फहे अभी धाया । करय असनान भन हयष अऩाया।।1।।

भैं रक्ष्म साधकय आगे गमा िहाॉ अनत सनु्दय छटा है। िहाॊ ऊजाव गॊगा भें अभतृ की धाया फहती है जजसभें स्नान कयने से भन को अऩाय हषव होता है।

चौ0- चभकत नब भॊडर यपव नाना । सॊत चककत रणख दृष्म सहुाना।।

ऋत सॊखमा धगनत गय जाहीॊ । केत ेब्रह्भॊड गनन सम्बव नाहीॊ।।2।।

गगन भॊडर भें अनेको समूव चभकत ेहै मह सहुाना दृष्म देिकय सॊत जन चककत होत ेहै। मदद ऩयभाणुओॊ की सॊख्मा धगनी जाती है तो ककतने ब्रह्भाण्ड है मह सम्बि नह है।

चौ0- आगे चरे इक बवन ननहाया । आॊगन शौमबत ऩरुष ननयाया।।

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फहैठउ देह बत्रभॊस्जय रागी । भकुुट शीश रूऩ भनयागी।।3।।

आगे चरकय एक बिन देिा जजसके आॊगन भें एक ननयारा ह ऩरुुष (अगभ ननयॊजन) सिुौशबत थे। उनका फठेै हुिे ह िय य तीन भॊजजर तक रगता था ; िीि ऩय भकुुट था तथा स्िरूऩ भन भें अनयुाग बयने िारा था।

चौ0- अरख अॊश अगोचय अखॊडा । धथनत पवशार अगणणत ब्रह्भण्डा।।

अगणणत रोक रोकेश अनेका । चतयुानन हरय हय प्रत्मेका।।4।।

अरि का ह अॊि अगोचय िॊड है जजसकी जस्थनत वििार है तथा उसभें असॊख्म ब्रह्भाण्ड है। जजनभें असॊख्म रोक तथा रोकाधधऩनत है औय उनके प्रत्मेक भें ब्रह्भा, विष्णु, शिि हैं।

छ0- अनत पवस्ततृ अगभ अगोचय रोक भनहय यचना अनतकर फनन।

अगणणत पवधध हरय हय प्रनतखॊड अगणणत बान ुकय ज्मोनत जनन।।

ताऩय असॊखम रोक नतन्ह बधूय ; सयु भनुन मोगी असॊखम धनन। “होयाभ” अनन्त चयाचय सषृ्टी शधुच तार सरय कक सॊखमा गनन।।34।। अगभ अगोचय रोक अनत विस्ततृ है उनकी यचना फडी सनु्दय तथा भनोहय फनी हुई है। प्रत्मेक धाभ भें अगखणत ब्रह्भा विष्णु औय शिि िॊकय हैं तथा अगखणत समूों की ज्मोनत उत्ऩन्न है। उस ऩय असॊख्म रोक है तथा उनके ऩथृ्िीऩनत, सयु, भनुन, मोगी औय असॊख्म धनी है। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक िहाॊ की अनन्त चयाचय प्रखणमों की सजृष्टमाॊ है। उनभें ऩािन सयोियों तथा नददमों की तमा सॊख्मा धगनी जामे?

दो0- “होयाभ” अगोचय ऩाय सीभ इक उजाप गॊग पवशार। ऩावन धाय शीतर जर नहावत सॊत ननहार।।476।।

श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक अगोचय रोक के ऩाय सीभा ऩय एक वििार ऊजाव गॊगा है जजसकी ऩािन धाया का िीतर जर है जजसभें सॊत जन स्नान कयके ननहार हो जात ेहैं।

दो0- बुॊवये उठत रहयें ऩयत उयजा सरय की धाय।

गरु भणुख कोउ स्नानहहॊ सयुत भकु्त बव बाय।।477।।

उस ऊजाव गॊगा की धाया भें बुॊियै उठती है तथा रहयें धगयती है कोई गरुु भिु पे्रभी ह उसभें स्नान कयत ेहैं। कपय बि सागय के बाय से उसकी सयुनत भतुत हो जाती है।

चौ0- ऩनुन ऩनुन ननत करय ध्मानाभ्मासा । गमऊ सयुत जहॊ अनॊत प्रकासा।।

नव नव फसनत नतून भकुाभ ू। फसत सॊत तहॉ ननज ननज धाभ।ू।1।।

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फायम्फाय ननत्म ध्मानाभ्मास कयके सयुनत िहाॊ ऩहुॉची जहाॊ अनॊत प्रकाि था। िहाॊ सॊत जन अऩने अऩने धाभों भें फसत ेहैं।

चौ0- अनाभी रोक की कयहहॊ प्रतीऺा । यत ऩयसऩय ब्रह्भ सभीऺा।।

कछु साधु जन धूना यभाहीॊ । ऩयभहॊस ननजध्मान सभाहीॊ।।2।।

औय अनाभी रोक की प्रतीऺा कयत ेहैं तथा ऩयस्ऩय ब्रह्भचचाव कयत ेयहत ेहैं। कुछ साधुजन धूना यभात ेहै ऩयन्त ुऩयभहॊस सॊत अऩने ध्मान भें सभामे यहत ेहैं।

चौ0- ब्रह्भ प्रास्प्त यत सफ यहहहॊ । सयुत ब्रह्भानॊद धन्म धन्म कहहहॊ।।

सकर रोक तहॉ अनतकर ऩावन । भकु्त सयुत की ठाभ सहुावन।।3।।

सफ ब्रह्भ प्राजतत भें र न यहत ेहैं महाॊ ब्रह्भानन्द भें सयुनत धन्म धन्म कहती है। िहाॊ सबी रोक अनत सनु्दय औय ऩािन है मह भतुतात्भाओॊ का अनत सहुािनी धाभ है।

चौ0- पवशार आश्रम फयनी न जाई । अनन्त प्रकाश सफ ओय सभाई।।

सयुत चमर ऩनुन ऩद ननयवाणा । भन वाणी नहहॊ ऩाय फखाणा।।4।।

महाॊ वििार आश्रभ जजसका िणवन बी नह ॊ हो ऩाता है। सबी ओय अनन्त प्रकाि सभामा है। कपय सयुनत ननिावण ऩद की ओय चर द जजसका भन औय िाणी बी फिान नह ॊ कय ऩात।े

दो0- श्वेत फसन हदव्म ज्मोनत ऩुॉज देणख ऩरुष अथाम।

फाभ छानत गनत गोर चक्र जनन सौयन यपव उदाम।।478।।

भैंने एक ऐसा अथाह ऩरुुष श्िेत िस्त्र ऩहने ददव्म ज्मोनत ऩुॉज स्िरूऩ भें देिा जजसकी फाॊमी छाती ऩय एक घभूता हुआ गोर चक्र था भानो कोई समूव उदम हो।

दो0- असॊखम रोक ब्रह्भाण्ड तहेहॊ यहह घमूभ सभाई अॊक।

सो स्वमॊ आहदश्वय प्रगट “होयाभ” नभऊ ननशॊक।।479।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक उस (गोर चक्र स्िरूऩ ददव्म ज्मोनत) भें असॊख्म रोक रोकान्तय ब्रह्भाण्ड उसकी गोद भें सभामे हुमे घभू यहे थे। िह स्िमॊ आददश्िय अनाभ ह प्रगट हुिे थे भनेै उन्हे ननिॊक प्रणाभ ककमा।

चौ0- फड ेबाग्म स्जन्ह मह ऩद ऩाई । अनत दयुरब सयु सॊत सफ गाई।।

ऩॊचदस प्रकोष्ठ धाभ अनाभा । आश्रभ सॊगभयभय फहु ठाभा।।1।।

जजसने मह ऩद प्रातत ककमा उनके फड ेबाग्म है इसे सबी देिता तथा सॊतजन अनत दरुवब फतात ेहै इस ननिावणी धाभ अनाभी भें ऩचास प्रकोष्ठ फने हैं। इसभें सॊगभयभय के सभान अनेको आश्रभ है।

चौ0- श्वेत ओस पव ॊद चभक सभाना । व्माप्त प्रकाश न कथनी जाना।।

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चहुॊ हदमस व्माऩक अतरु प्रकासा । चभकौंध हीन अनऩुभ बासा।।2।।

िहाॊ श्िेत ओस की फूॊद जैसी चभक के सभान प्रकाि व्मातत है जो कथनी से नह ॊ जाना जाता। चायों ओय अतलु्म प्रकाि ह प्रकाि है जो चभकौंध से यदहत अनऩुभ बासता है।

चौ0- मात्रा करय कछु सयुती जाहीॊ । जहॉ अनन्त प्रकाश ऩुॉज साहीॊ।।

मामभ ननवयण सरयस प्रकासा । ऩणूपसन्त नतष भाहीॊ सभासा।।3।।

मात्रा कयती हुई कुछ सयुनतमाॊ िहाॊ जाती है जहाॊ अनन्त प्रकाि ऩुॉज ऩयभेश्िय है उनका विद्मतु िणव जैसा प्रकाि है ऩणूवसॊत ह उसभें सभात ेहैं।

चौ0- तहॉ नहहॊ यपव शशी दामभनन दभकै । नतहह प्रकासा सो सफ चभकै।।

ऩावन ऩद हहन्दतु्व ननवापणा । अनन्त असीभ सफ सॊत फखाणा।।4।।

िहाॊ समूव, चन्र औय बफजर की चभक नह ॊ है फजल्क उसी (ज्मोनतऩुॊज) से मे सफ चभकत ेहैं। मह दहन्दतु्ि का ऩािन ऩद है जजसे सॊतो ने अनन्त औय असीभ कहा है।

चौ0- अनाभीधाभ ऩाय बत्रद्वाया । हौं जाइ रणख अचयज बाया।।

पवश्राभ सेज जगदीश्वय देखी । करय प्रणाभ वय गहह पवशखेी।।5।।

अनाभी धाभ के ऩये तीन द्िाय ऩाय कयके जाकय भैंने बाय आश्चमव देिा िहाॉ जगद श्िय की भैंने विश्राभ सेज देिी औय प्रब ुको प्रणाभ कयके आिीिावद ऩामा।

दो0- तामर मह अनन्त ऩद बफयरे ऩहुॉचत कोम।

भायग सात सयुनत मभर ैऩॊचाभी ऩीवत सोम।।480।।

तामर जी मह अनन्त ऩद है महाॊ बफयरे ह कोई ऩहुॊचत ेहैं। इस भागव भें सातों सयुनत एक साथ शभर जाती है िह तफ साधक (ऩधथक) ऩाॊचो अभतृ ऩीता है।

चौ0- ऩाॊच अभी सप्त सयुनत धाया । सफहह मभराऩ इक ठाभ ननहाया।।

बफना ऩार सयवय बफन ुऩानी । बफयरे जानन अकथ कहानी।।1।।

ऩाॊचो अभी औय सातो सयुनतमों की धायाओॊ का एक केन्र भें शभराऩ देिा। बफना तट औय बफना ऩानी के सयोिय की इस अकथ कहानी को कोई बफयरा ह सॊत जानता है।

चौ0- बफना ऩात तरूवय तहॉ तायन । पर न पूर तना नहहॊ डायन।।

तदपऩ हौं तहॉ अभयपर चाखी । ऩयभसॊत सन बेद हौं बाखी।।2।।

िह ॊ ऩय बफना ऩत्तों का िृऺ जोकक तायनहाय है ; जजसभें पर पूर तना नह ॊ है औय न रताऐॊ है कपय बी भनेै उसका िहाॊ ऩय अभयपर चिा है। भैंने ऩयभसतों के सभऺ मह सफ बेद कहा है।

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चौ0- अकाय भकाय उकाय बत्रकाया । नहहॊ तहॉ अऺय ब्रह्भ औॊकाया।।

कामा कोट दयुग के अन्दय । हौं ऩामऊ ब्रह्भानॊद सभनु्दय।।3।।

अ काय उ काय भ काय बत्रकाय तथा अऺय ब्रह्भ ओॊकाय िहाॉ नह है। इस कामा रूऩी ककरे के अन्दय भैंने ब्रह्भानॊद सभनु्र को ऩामा है।

चौ0- अगम्म अकह भॊडर अटायी । कामा पवरग फमस सयुत हभायी।।

सचखॊड धाभ सदा भभ फासा । ननज नमनी सफ देणख तभासा।।4।।

अगम्म अकह भॊडरों की अटारयमों ऩय कामा से अरग हभाय सयुत फसती है। भेया सदा सचिॊड धाभ भें फास यहता है। भैंने अऩनी आॊिों से मह तभािा देिा है।

दो0- भकु्तसयुत सबा बफच ब्रह्भा धथनत भहा प्रकास।

मसॊधु बफन्द ुभेरा बमा ज्मोनतहहॊ ज्मोत सभास।।481।।

भतुत सयुनतमों का आभ सबा भें भहा प्रकाि की ब्रह्भजस्थनत है जहाॊ ऩय शस ॊधु (ऩणूव ब्रह्भ) तथा बफन्द ू(आत्भा) का एक शभरन होता है औय ज्मोनत भें ज्मोनत सभा जाती है।

चौ0- हौं रणख मह धाभ अनाभा । ऩनुन प्रमास यत अग्र मसधाभा। अनाभी औऩरय व्मोभ गहुानी । गपु्त द्वाय इक देणख सहुानी।।1।।

भनैें मह अनाभीधाभ देिा कपय प्रमास कयके भैं आगे को गमा तो अनाभी धाभ के ऊऩय गतुत व्मोभ भें एक अनत सहुाना गतुत द्िाय देिा (इस अनाभीधाभ की सीभा ऺेत्र भें ऩचास प्रकोष्ठ बी भैंने देिे।)

चौ0- तहॉ अनत शान्त वाताव ुननहाया । ऩयभ शास्न्त व्मोभ ननयाया।। नाना गनतभम ईशकण ऩाऐ। चभक ज्मोनतवत केमर फनाऐ।।2।।

िहाॉ फडा ह िान्त िाताियण देिा। िह ननयारा ह िाजन्तभम व्मोभ था। िहाॉ नाना ईिकण (गोडस ऩादटवकल्स) गनतभम ऩामे गमे औय िे सफ ज्मोनतित चभकत ेहुिे ऩयस्ऩय क्रीडा फनामे हुिे थे।

चौ0- सो कण ऩयस्ऩय कय गनत भेरा । चेतन्म फर नतून तत्व ठेरा।।

सभमोऩयान्त एहह कण साये । फनहह पवश्व स्वरूऩ अऩाये।।3।।

िे सफ ईिकण ऩयस्ऩय गनत का भेरा कय यहे थे जजससे चेतन्म िजतत द्िाया चेतन्म िजतत का नतून तत्ि प्रगट हो यहा था। सभमोऩयान्त मे ह कण अऩाय विश्ि रूऩ(साकाय) फन जात ेहैं।

चौ0- ता सऊॉ अग्र गभन दय देखा । उऩभा यहहत इक बवन पवशखेा।। तहॉ ऩणूपधनी सेज पवश्राभा । तहॉ त ेयधचफ सो धाभ अनाभा।।4।।

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भनेै उससे बी ऩये (एक तीसये द्िाय भें गभन कयके) देिा कक एक उऩभा यदहत वििषे बिन है। िहाॉ उसभें ऩणूव ऩयभेश्िय की विश्राभ सेज है िह ॊ से सम्ऩणूव अनाभीधाभ की यचना की गई है। (उस विश्राभ सेज ऩय ऩयभेश्िय जफ कोई सजृष्ट कह ॊ नह ॊ होती विश्राभ कयत ेहैं) मह बिन सम्ऩणूव ब्रहभाण्ड भें उऩभा यदहत है (भैंने इसे देिा है)।

चौ0- सो ऩद राख कयोयो भाहीॊ । बफयरा कोई तत्वदयसी ऩाहीॊ। कार देसीम साधन साये । तहॉ नहहॊ गम्म भगहहॊ सफ हाये।।5।।

उस ऩद (विश्राभ सेज) को रािों कयोडों भें कोई बफयरा ह ऩयभसॊत प्रातत कयता है। महाॉ के कारदेसीम ककसी बी साधन की िहाॉ ऩहुॉच नह ॊ है तमोंकक मे सफ भागव भें छूट जात ेहैं।

बावाथप (प्रवचनाॊश)- महाॉ प्रकािऩुॊज अद्वितीम है। इस प्रकाि भें कभव का फीज तथा आिागभन चक्र ऩणूवतमा नष्ट हो जात ेहैं। महाॊ सयुनत को अफ ककसी बी िय य का फॊधन नह यहा। मोगीजन इसी भहाज्मोनत ऩुॊज को प्रगट कयके अभय हो जात ेहैं। बौनतक िय य को कार िा जाता है ; सकू्ष्भ देह को भहाकार िा जाता है तथा कायण को सत्मऩरुुष िा जाता है औय भहाकायण देह अथावत फीज को ननिावण भहाज्मोनतऩुॊज िा जाता है। अफ सयुनत सिवथा भतुत होकय भहाज्मोनत सागय भें रम हो जाती है। मह अभय ऩद है। जीिनभयण आिागभन चक्र अफ सभातत हुआ। इस ऩद को जजसने प्रगट ककमा िह अभय हुआ है। इसी के शरमे प्रमत्न कयना चादहमे इससे हटकय सबी आिागभन चक्र के फीज िाद ऩानी की तयह अॊकुय उगात ेहै।

दो0- जस जस दृष्म मात्रा रखे सफ कथहुॊ साभयथ नाम।

जानहहॊ जे ननज ननमन रणख करय सयुनत गभन अथाम।।482।।

जैसे जैसे दृष्म मात्रा भें देिे हैं उन सफको कहूॊ मह भेय साभथव नह ॊ है। अऩनी सयुनत मात्रा कयके जजसने मे सफ अऩनी आॊिों से देिे हैं िह जानता है।

दो0- षौडष कऺा हहन्दतु्व कहह ; ऩयूण जे जे ऩाम। नाना भनका भारा जनन ताभहॊ सबी सभाम।।483।।

दहन्दतु्ि की सोरह कऺाऐॊ (गदुाचक्र से अनाभी रोक तक) है जजसने जो जो प्रातत की, उसी को ऩणूव कह ददमा है। जैसे भारा भें नाना भोती होत ेहै उसी प्रकाय मे सफ दहन्दतु्ि भें सभामे हुिे हैं।

दो0- बफन ुध्मानाभ्मास गरुकृऩा सरुब नहहॊ मह धाभ।

रौहट न आइ स्जहह सरुब सत्म कहहहॊ “होयाभ”।।484।।

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बफना ध्मान अभ्मास औय सदगरुु की कृऩा मह अनाभी धाभ सरुब नह ॊ होता औय जजसे मह सरुब हो जाता है िह कपय रौटकय नह ॊ आता श्री होयाभदेि जी मह सत्म कहत ेहैं।

दो0- पवपवध काज हहत ुभकु्त सयुत आवश्मकतानसुाय।

सत्मऩरुष सदा ऩठाहहॊ कारखॊड जीव सम्हाय।।485।।

भजुतत प्रातत आत्भाओॊ विविध कामों के शरमे आिश्मकतानसुाय सत्मऩरुुष सदा कारदेस के जीिों की सम्बार के शरमे बेजत ेयहत ेहैं।

बावाथप (प्रवचनाॊश)- श्री सदगरुु सॊत होयाभदेि उिाच्- प्रेशभमों ब्रह्भाण्डों तथा उनभें रोक रोकान्तयों का धगनना सम्बि नह ॊ है। अनन्त कौट ब्रह्भाण्डों भें अनन्त आत्भाऐॊ आई हुई है। जजनभें िे सबी आत्भामें सत्मऩरुुष सजच्चदानॊद ऩयभेश्िय की ह अॊि है जो जीि रूऩ से आई हुई है। उनके रोंकों के धनन ऩरुुष बी उसी प्रब ुके वििषे अॊि है। ब्रह्भा, विष्णु, शिि सबी रोको भें है। याभ, कृष्ण आदद अिताय मा सॊत उसी के अॊि रूऩ अितरयत होत ेहैं अितायों को कार की िजतत बी शभरती है जजससे उन्हे कारािताय बी कह ददमा गमा है। िास्ति भें सबी सत्मऩरुुष, जजसे अरि अगम्म अनाभ कहा गमा है, के ह अॊि है जो उनकी अऩनी मोग िजतत चेतना के भाऩ की ऺभतानसुाय जीि रोको की व्मिस्था हेत ुबेजे जात ेहै। जो जीिात्भाऐॊ तऩ फर के अनसुाय कार की बेजी हुई आती है िे कार ननयॊजन का गणुगान कयती है। औय जो अरि ननयॊजन दमार की व्मिस्था से कार देसो भें बेजी जाती है िे अऺम सत्मऩरुुष का गणुगान कयती है। ऩयन्त ुध्मान यहे सचिॊड जाने के शरमे कारदेस भें ह यास्ता चुनना ऩडता है। जजन सॊतो के अटूट पे्रभ ने भझुे वििि ककमा भैंने उनकी श्रद्धा बजतत की ऩहचान कयके सचिॊड का न केिर भागव फतामा फजल्क अनाभी धाभ भें बेज बी ददमा है। कई सॊतात्भाऐॊ भझुे ऐसी पे्रभ बजतत ि श्रद्धा की शभर है जजनको भनेै अगोचय ब्रह्भाण्ड की अनन्त रोक सजृष्टमों का बी साऺात्काय कया ददमा है। अन्म को बी िहाॊ की तमैाय कयनी चादहमे। कारदेस के याभ कृष्ण जैसे अितायों की िाणी बी ऩकडना जरूय है तमोंकक मे प्राथशभक शिऺा देत ेहैं। महाॊ से आगे का सचिॊडी सॊतजन भागव ददिात ेहैं।

31 – सत्मोऩदेश

सॊत होयाभदेि उिाच्-

दो0- ननज पप्रम सॊतन सभऺ शधुच अभयतत्व सनुाम।

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सत्मोऩदेश दीन्ही मह भन वयैाग्म उगाम।।486।।

अऩने वप्रम सन्तों के सभऺ मह अभतृत्ि भैंने सनुामा है औय मह सत्म उऩदेि देकय उनके भन भें ियैाग्म जगामा है।

दो0- जफ रधग जीव न जानहहॊ ननज स्वरूऩ ब्रह्भ रूऩ। तफ रधग व्माकुर भनभणुख ऩनुन ऩनुन ऩरय बव कूऩ।।487।। कक जफ तक जीि अऩने स्िरूऩ को ब्रह्भस्िरूऩ नह ॊ जानता तबी तक भनभिुी होकय व्माकुर है। औय सॊसाय रूऩी कूऩ भें फाय फाय धगयता है।

दो0- “होयाभ” अस प्रमास कय मह भानव तन ऩाम।

पवकट कार चक्कय टयै अऩनी भरू सभाम।।488।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक मह भानि देह ऩाकय ऐसा प्रमास कयो कक कार का विकट चतकय टर जामे औय अऩने भरू ऩद ब्रह्भ स्िरूऩ भें सभा जामे।

दो0- अद्भतु कयनी कार कय भानन न जीव फझुाम। “होयाभ” खीॊच अगभ को ऩयहहॊ कार छर आम।।489।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक कार की सषृ्ट कक्रमा अदबतु है जीि सभझामे से बी नह ॊ भानता। भैं उसे अगभ रोक भें िीॊचता हूॉ ऩयन्त ुिह कार के छर भें ह आकय ऩडता है।

चौ0- सनुहु ऻानसागय मह फानी । धन्म धन्म गरुभता भहानी।। सयुनत मात्रा धचत्र पवशारा । कोऊ न ककन्ह प्रगट ककहह कारा।।1।। ऻानसागय मह िाणी सनुों कक गरुुभत भहान औय धन्म धन्म है। आज तक सयुनत मात्रा का वििार भानधचत्र ककसी बी मगु भें ककसी ने बी प्रगट नह ॊ ककमा है।

चौ0- सतमगु त्रतेा द्वाऩय फीत े। अन्तरयऩथ धचत्रण बफन ुयीत।े। अज रधग को मह धचत्र न यीचाॊ । ऩथृभ फाय हौं जन हहत ुखीॊचाॊ।।2।। सतमगु त्रतेामगु तथा द्िाऩय मगु फीत गमे जो अन्तरय मात्रा ऩथ के भानधचत्र के बफना िार यहे। आज तक ककसी ने कबी बी मह (सयुनत मात्रा का आन्तरयक भानधचत्र) प्रगट नदहॊ ककमा भैंने इसे ऩथृभ फाय जन दहताथव िीॊचा है।

चौ0- बपवष्म भाहीॊ अफ सॊत अनेका । भभ धचत्रण एहह रहहहैं टेका।। नतन्ह सों मह अफ पवनम हभायी । सो धचत्रण नहीॊ कयहु छऩायी।।3।। अफ बविष्म भें अनेको सॊत भेये (इस सयुनत मात्रा धचत्रण) भानधचत्र को अऩने अऩने ग्रन्थो भें टेका कय रेंगे। हभाय उनसे अफ मह विनम है कक इस भानधचत्र को न छऩिामे।

चौ0- अभयकथा भभ काव्म सऩुावन । तायणतयणी हॊस भन बावन।।

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सयुत मात्रा धचत्रण नतष भाहीॊ । अधधभाई अन्म ग्रन्थन जाहीॊ।।4।। भेय अभयकथा काव्म उत्तभ तथा ऩािन है जो तयणतायणी है तथा हॊस ऩरुुषों के भन को अच्छी रगने रगी है। औय उस काव्म भें सयुनतमात्रा का धचत्रण (भानधचत्र) ककसी अन्म ग्रन्थों भें जाने से मह ऩाऩ है।

दो0- सकर गरु ननत देत है ब्रह्भॊड बीतरय ऻान। “होयाभदेव” ब्रह्भॊडऩाय बफयरे कयत फखान।।490।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक सबी गरुु ननत्म ब्रह्भाॊड के बीतय का ऻान देत ेहैं कोई बफयरा गरुु ह ब्रह्भाण्ड के ऩये का फिान कयता है।

सो0- ननत ननत होत ुफखान ; नहहॊ दीऺा नाभदान। तत्वदयसी प्रदान ; दीऺा सप्तदेह दृस्ष्ट हदव्म।।7।। नाभदान कय देना ह द ऺा नह ॊ है मह तो ननत ननत सिवत्र फिैान की जा यह है जफकक सातों िय यों भें ददव्म दृजष्ट प्रदान कयना ह द ऺा होती है जजसे भात्र बफयरा कोई तत्िदिी सॊत ह प्रदान कयता है। (बफना द ऺा कोई बि सागय भें तयै कय कदावऩ अऩने भरू स्िरूऩ को प्रातत नह ॊ हो सकता)।

छ0- दृढ पवश्वास अपवचर बगती साधन मोग ऩयभतत्व ऩानहीॊ। याभ भहहभा न जानन अऻानी यावण भात्र सॊहायक जानहीॊ।। कोऊ सदगरु तत्वदयसी चेया याभहह भरूस्वरूऩ पऩछानहीॊ। स्भनृत वेद ऩयुाण ऩढे सफ ऩायस ऩयस बफन ुयाभ न जानहीॊ।।35।। ऩयभतत्ि दृढ विश्िास अविचर बजतत औय ध्मान साधना से ह प्रातत होता है। अऻानी जन यभत ेयाभ भदहभा को तो जानत ेनह ॊ ; िे तो याभ को यािण का सॊहायक भात्र जानत ेहै। कोई तत्िदयसी सदगरुु का शिष्म ह याभ के भरूस्िरूऩ की ऩहचान कयता है। सफ िेद स्भनृतमाॉ तथा ऩयुाणो को ऩढत ेतो हैं ऩयन्त ुबफना ऩायस ऩयस (तत्िदयसी की ियण) याभ को नह ॊ जाना जाता है।

छ0- शत शत गइमा दान ननत कयनी सो नगृ धगयधगट की तन ऩाने।

कहाॊ अजामभर ऩाऩ यात हदन ऩकुारय ऩतु्र हरय भसु्क्त दाने।। धभप ककए अधभप होइ जाई अधभप ककमे धयभपर ऩाने। “होयाभदेव” सयकाय अॊधाधुॊध याभ की फात याभ ही जाने।।36।। सौ सौ गामें ननत दान कयने ऩय बी िह याजा नगृ धगयधगट की देह ऩामा। कहाॊ यात ददन ऩाऩ कयने िारा अजाशभर जजसने फेटे नायामण को ऩकुाया औय श्रीहरय ने भजुतत प्रदान कय द । महाॊ धभव कयने ऩय अधभव हो जाता है औय कह ॊ

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अधभव कयने से धभव का पर प्रातत हो जाता है। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक अॊधाधुॊध सयकाय है फस याभ की फात को याभ ह जाने।

श्रो0- म् त्मजनत कतपव्म कभप च अव्मावतृ बजनात हरय्। स न तयनत स न तयनत दपूषत बस्क्त ऩानतत्माशॊकमा।।13।। जो व्मजतत कतवव्म ( duties) को त्मागता है औय श्री हरय की अिॊड बजतत कयता है िह नह ॊ नतयता, िह नह ॊ नतयता ऐसी बजतत दवूषत है उसभें धगयने की सम्बािना है।

चौ0- सॊत सयुत तस्ज सकर शयीया । अनाभी धाभहहॊ गभन कयीया।। रघ ुशे्रणी सॊत सयुत पवशसेा । फसाइ जाइ सनु्न बुॊवरू देसा।।1।। सॊतो की सयुत सभस्त िय यों को त्माग कय अनाभी धाभ भें गभन कयती है। रघ ुशे्रणी की वििषे सयुतें सनु्न औय बुॊिय गपुा के देसो भें फसाई जाती है।

चौ0- सषुभन चक्र जहॉ सॊत कभाई । तस्ज तन सयुनत तहॉ मसधाई।। प्रब ुबमकायी नेकी दानी । सयुगरोक सफ सयुत ऩठानी।।2।। सषु्भना के चक्रों भें सॊत की जहाॊ तक कभाई होती है देह त्माग कय सयुनत िह ॊ दौड जाती है। औय प्रब ुका बम कयने िार नेक दान िार आत्भाए स्िगव रोकों भें बेज द जाती है।

चौ0- सो पवधध हरय हय ऩरुय सखु बोगा । ऩनुन गहहहॊ नयतन ऩनु्म मोगा।। नय तन ऩाइ न बस्ज जगदीशा । सो पॊ हद कार जार दयुदीशा।।3।। िह ब्रह्भा विष्णु भहेि के रोंकों भें सिु बोगती है कपय ऩनु्मों के मोग से नय देह ऩाती है। भनषु्म देह ऩाकय जो प्रब ुको नह ॊ बजती िे कार जार भें दगुवनत ऩाती है।

चौ0- झॊझरय द्वीऩ जहॉ नयकहह थाना । ऩावहहॊ हहॊसक सयुत हठकाना।। दान धयभ ऩनु्म हीन पवकायी । ननकृष्ट जौनन चौयासी डायी।।4।। झॊझय द्िीऩ भें जहाॊ नको का विस्ताय है िहाॊ हत्माय सयुत े(जीिात्भामें) फसाई जाती है। दान धभव ऩनु्म ह न विकाय आत्भाऐॊ ननकृष्ट मौननमों की चौयासी भें डार द जाती है।

दो0- नहहॊ धभप ऩनु्म बजन ध्मान तीयथ व्रत “होयाभ”।

सो ऩावहहॊ ननकृष्ट मनुन वनस्ऩनत धगरय जडाभ।।491।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक जजनका धभव ऩनु्म बजन ध्मान नह ॊ होता न कोई तीथव व्रत ह होता है िे ननकृष्ट िनस्ऩनत ऩहाड आदद जड मोननमों को प्रातत होती है

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चौ0- जड मौनन बोधगम धचयकारा । ऩावहहॊ कब ुनयदेह बफहारा।। ऩयभायधथ धभापत्भा ऻानी । मभादेश सफ सयुग ऩठानी।।1।। औय जड मोननमों को धचयकार तक बोगकय ह कबी फेहार भानि देह को ऩाती है जफकक ऩयभाथी धभावत्भा ऻानिान रूहें मभयाज के आदेि से सफ स्िगव को बेजी जाती है।

चौ0- बोग बफरास सदूख सॊसायी । दें मभदतू मातना बायी।। ऩनुन धभपयाज सन करय ठाड ै। कयभ बगुान यौयव अगाड।ै।2।। बोग विरास सदूिोय सॊसाय आत्भाओॊ को मभयाज के दतू बाय मातना देत ेहैं। कपय िे धभवयाज के सभऺ िडी की जाती है तफ उनका कभो का बगुतान आगे यौयि नकव भें होता है।

चौ0- जे सॊत सदगरु शयणाई । अन्तरय धाभ स्वछॊद आई जाई।। ऩणूप सॊत जफ तजहहॊ शयीया । प्राण मसभेहट बत्रकुहट रम कीया।।3।। ऩणूव सॊतो औय सदगरुु की ियण भें यहने िार जीिात्भाऐॊ अन्तरयरोकों भें स्िछॊद आती जाती है। औय जफ ऩणूव सॊत िय य त्मागत ेहै तफ िे प्राणों को शसभेट कय स्िमॊ बत्रकुदट भें रम कय रेत ेहैं।

चौ0- बफन ुअवयोध अनाभी गाभा । ऩद ननयवाण कयहहॊ पवश्राभा।। सकर सॊत तभु धन्म धन्म बागी । ननजऩद गभन स्जऻासा जागी।।4।।

औय िे बफना अियोध अनाभीऩद को चर जाती है। िहाॊ ननिावण ऩद भें विश्राभ कयती है। तभु सबी सॊत धन्म धन्म बाग्म िारे हो तमोंकक ननज रोक मात्रा के शरमे तमु्हाय जजऻासा जागतृ हो गई है।

दो0- भोहवश जग आसक्त जो जफ आवहहॊ अन्तकार। तन ुतजत भोह ऩीय अनत “होयाभ” धचत्तस बफहार।।492।। औय जो भोह िश्म जगदासतत है ; जफ उसका अन्तसभम आता है तफ उसे िय य त्मागत ेहुिे भोह ऩीडा फहुत होती है। श्री होयाभदेि जी कहत ेहै कक तफ उनका अॊत्कयण व्माकुर हो जाता है।

चौ0- जफ रधग कार खॊड तजे नाहीॊ । तफ रधग सयुत बौ जार पॊ साहीॊ।। छूटत नाहीॊ रऺ चौयासी । बोगहहॊ आवागभन मभ पाॊसी।।1।। जफ तक कार ऺेत्र नह ॊ छूटता तफ तक सयुनत बि जार भें पॊ साई जाती है। उसकी राि चौयासी नह ॊ छूटती। िह आिागभन की मभपाॊसी बोगती यहती है।

चौ0- कछुक सयुत ऩयहहत ुव्मवहायी । देमहहॊ कार आनन्द सखुायी।। बखून्ह देम जो बखूों यहहहॊ । सो सयुग सखु सहजो गहहहॊ।।2।।

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कुछ सयुतें ऩयदहत व्मौहाय िार है। उन्हे कार ननयॊजन सिुानॊद प्रदान कयता है। औय जो बिूों को खिराकय स्िमॊ बिूा यहता है िह स्िगव सिुों को सहज ह भें ऩा रेता है।

चौ0- तत्वदयसी सदगरु कोऊ ऩयूा । कयहहॊ जीव कारखॊड दयूा।। रणख मशष्म बगनत ननयभरताई । कयत ब्रह्भरम ऩॊथ दयसाई।।3।। कोई ऩणूव तत्िदिी सदगरुु ह जीिों को कार के देस से ननकारता है। औय शिष्म की बगनत औय ननभवरता को देिकय िह उन्हे भागव ददिाकय ब्रह्भ भें रम कय देता है।

चौ0- जाकी गगन चहढ सयुनत जेती । नतष अन्तरय सनु्न गनत बई ततेी।। जे सॊत ननत ननत भयना जाने । अन्तहहॊ सहज मसमभट प्रस्थाने।।4।। जजसकी नब भॊडर भें जजतनी सयुनत चढ जाती है उसकी आन्तरयक भॊडरों भें उतनी ह गनत हो जाती है। औय जो सॊत ननत ननत भयना जान रेत ेहै िे सहज ह अन्तकार भें शसशभट कय प्रस्थान कयत ेहैं।

दो0- सॊत बफना सॊसाय भें फाढहहॊ दषु्कयभ अऩाय। जीव नयक मातना सहै ; बयै चौयासी बाय।।493।। सॊतो के बफना सॊसाय भें अऩाय दषु्कभव फढ जात ेहैं औय चौयासी का बाय बोग कय नयकों भें जीि मातना सहत ेहै।

दो0- भदृरु भॊद भॊद वाणी सों फोरे ऻानी पवचाय। नासे भभ सफ सॊशम तभु हे सदगरु दाताय।।494।। भधुय भधुय भॊद भॊद िाणी से ऻान सागय विचाय ऩिुवक फोरे कक हे सदगरुु दाता तभुने भेय सबी िॊकाओॊ का विनास कय ददमा है।

दो0- तदपऩ फणूझहुॉ हे प्रबो कस ब ैअहभ पवनास। वासा फीज ऺम होई कस कयहु कछुक उद्भास।।495।। कपय बी हे प्रबो ! भैं जानना चाहता हूॉ कक अहभ (अहॊकाय) का विनास ककस प्रकाय होता है औय िासना का फीज कैसे नष्ट होता है ? इस ऩय कुछ प्रकास डाशरमे।

चौ0- उत्तभ प्रश्न जानन हौं जफहीॊ । अस बफधध कीन्ह फखानन तफहीॊ।। मह भन स्वमॊ ननयन्जन बासा । नमनन श्वेत ऩटर करय फासा।।1।। (श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक-) जफ भैंने उत्तभ प्रश्न जाना तो तफ इस प्रकाय िणवन ककमा कक मह भन स्िमॊ ह ननयन्जन (कार ऩरुुष) रूऩ भें उद्भाशसत है जो आॉिों के श्िेत ऩटर भें ननिास कयके यहता है।

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चौ0- सकर पवषम वासानॊद रेहीॊ । सवपप्रथभ नमनन गनत देहीॊ।। तद सो देह मन्त्र गनत कयहीॊ । इन्दरयन सॊग बोग यस चयहीॊ।।2।। औय िह ॊ ऩय सभस्त विषम िासनाओॊ का आनन्द रेता है औय िह सिवप्रथभ आॉिों भें गनत प्रदान कयता है तफ िह देह मन्त्र को गनतिान कयता है ओय इजन्रमों के साथ बोगों के यस को चिता है।

चौ0- अॊध रोचन भाॊहहॊ ननयन्जन । धावत सयुत ओय तफ मह भन।। ननराघौय सषुसु्प्त फखैानी । जगद फीज तॉह नाहीॊ नसानी।।3।। अॊधी आॉिो भें ननयन्जन नदहॊ यहता तफ मह भन (ननयन्जन) चेतन्म सयुनत की ओय दौडता है। घौय ननरा को सषुजुतत कहा गमा है िहाॊ बी सॊसाय फीज का नास नह ॊ होता।

चौ0- ध्मानकार फाढहहॊ ऩयकासा । तदपऩ नाहीॊ पवषम वासा नासा।।

ऻान पवयाग फाढे फहु बायी । औसय ऩाम भन पवषम उघायी।।4।। ध्मान के सभम प्रकाि फढ जाता है कपय बी विषम िासना का नास नह हो जाता। ऻान वियाग फहुत फढ जाता है ऩयन्त ुअिसय ऩाकय भन विषमों को उजागय कय रेता है।

दो0- जफ रधग फीज शस्क्त भॊह भनहह न होइ पवनास।

तफ रधग वासा ऺम नहहॊ भन सॊग हॊग पवकास।।496।।

जफ तक फीज की िजतत भें भन का नास नह ॊ होता तफ तक िासनाओॊ का विनास नह ॊ है औय भन के साथ अहॊकाय का विकास होता जाता है।

चौ0- मोग मसु्क्त गय साधध सभाधी । नछर खोस्ज भन कयहहॊ फमाधी।।

बफन ुसाॊचा सदगरु शयनाई । वासा फीज न कोउ नसाई।।1।।

मोग मजुतत से मदद सभाधी अिस्था साध र जाती है तो बी मह भन कोई नछर िोज कय व्माधधमाॊ िडी कय देता है। इसशरमे बफना सच्चे सदगरुु की ियण ऩामे कोई बी िासना के फीज को नष्ट नह ॊ कय ऩाता।

चौ0-सथूर मरॊग कायन भहकायन । ऩॊचभ कैवल्म हॊग ऩसायन।।

सयु भनुन मोगी मसद्ध औॊताया । सफहह एहह ऩॊच हॊग ऩछाया।2।।

स्थूर – शर ॊग – कायण – भहाकायण औय ऩाॊचिा कैिल्म अहॊकाय का प्रसाय होता है। (अथावत इन्ह ऩाॊचो अिस्थाओॊ भें अहॊकाय का प्रसाय होता है। देिता ऋवष भनुन मोगी शसद्ध तथा अिताय सफको इन्ह ऩाॊचो अहॊकायों ने ऩछाडा है।

चौ0- भनस गनत जानन स्जन्ह नाहीॊ । कीट सदृश अचेत जग भाहीॊ।।

फड फड ऋपष तऩ ुफयस कयोया । भन सॊग सॊग हॊग ऩतन करय छौया।।3।।

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भन की गनत को जजसने नह ॊ जाना िह सॊसाय भें कीड ेभकोडो की तयह अचेत है। फड ेफड ेऋवष भनुन की कयोडो िषो की तऩस्मा को भन के साथ उसके अहॊकाय ने ऩतन कयके ह छोडा।

चौ0- भन भामा चाक्की गनतवानी । चारक अहभ सफहीॊ बयभानी।।

अस को जीव जगत भॊहहॊ नाहीॊ । भन भामा हॊग वश्म करय राहीॊ।।4।।

भन औय भामा की चातकी चर यह है जजसका चारक अहॊकाय सफको भ्रशभत कय यहा है। ऐसा कोई प्राणी सॊसाय भें नह ॊ है जो भन भामा औय अहॊकाय को िश्म भें कय रे।

दो0- ऩॊच हॊग प्रनत जीव भॊहहॊ यहहहॊ सदा सॊग सॊग।

औसय देणख जीव को कयहहॊ भोष भग बॊग।।497।।

ऩाॊच अहॊकाय प्रत्मेक जीि भें सदा सॊग सॊग यहत ेहै जो अिसय देित ेह जीि का भोऺ बॊग कय देत ेहैं।

चौ0- ऩॊच हॊग फधधऊ सफ प्रानी । भहा दयुरब नतन्ह सों ननकसानी।।

स्जस मह स्वमॊ यधचऊ अहॊकाया । सो अपऩ पॊ हदऊ नतन्ह के धाया।।1।।

ऩाॊचो अहॊकायो भें सफ प्राणी फॊधे हुिे है उनसे ननकरना भहाकदठन है। जजसने स्िमॊ अहॊकायों को यचा है िह बी इनकी धयाओॊ भें पॊ स गमा है।

चौ0- जफ रधग हॊग कय नासा नाहीॊ । आवागभन नहहॊ कोऊ नसाहीॊ।।

ऩथृभ हॊग स्थूर फखैानी । गहृ धन याग यॊग काभानी।।2।।

जफ तक इन अहॊकायों का नास नह ॊ हो जाता तफ तक ककसी के बी आिागभन चक्र का नास नह ॊ होता। प्रथभ अहॊकाय स्थूर अहॊकाय कहा गमा है इसको गहृ धन याग यॊग की काभना यहती है।

चौ0- मबन्न मबन्न बेज्म सगुॊध सहुाहीॊ । सवायी आखेट सम्बोग रूचाहीॊ।।

गय मे सकर ऩदायथ ऩावा । अनत प्रसन्न स्थूर हॊगावा।।3।।

औय शबन्न शबन्न तयह के बोजन सुॊगध अच्छी रगती है। मह सिाय शिकाय तथा सम्बोग भें फहुत हवषवत होता है। मदद मे सबी ऩदाथव शभर जात ेहै तो स्थूर अहॊकाय फहुत प्रसन्न यहता है।

चौ0- दसूय सकू्ष्भ मरॊग अहॊकाया । सयुग बफकुन्ठ मभरन भन धाया।।

मॊत्र भॊत्र तन्त्राहदक काभा । इन्राहदक ऩद ऩाम अनगुाभा।।4।।

दसूया सकू्ष्भ शरॊग अहॊकाय है इससे भन भें स्िगव फकुैन्ठ शभरन की धाया फनी यहती है ; मन्त्र तन्त्र भन्त्र आदद की काभना जागती है औय इन्रददक ऩद ऩाने के शरमे इनका अनगुभन कयता है।

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दो0- तीसय कायण अहॊकाय सहस्त्राकाय यचाम।

अष्टाॊग मोग यत सतत काभा मसपद्धन ऩाम।।498।।

तीसया कायण अहॊकाय है। जो सहस्त्रों आकाय ननशभवत कय रेता है औय अष्टाॊग मोग भें ननयन्तय रगा यहकय शसवद्धमों की प्राजतत की काभना कयता है।

चौ0- ऩयकामा प्रवेश मह कयहहॊ । सवुय श्राऩ वरयमता वयहहॊ।।

एकहहॊ कार सहस्त्र स्थाना । ऩयगट होई जगद रबुाना।।1।।

मह ऩयकामा भें प्रिेि कयने की ऺभता यिता है। उत्तभ ियदान मा श्राऩ की िरयष्ठता को प्रातत होता है। मह एक ह सभम भें सहस्त्रों स्थानों ऩय प्रगट होकय सॊसाय को रबुामभान कय देता है।

चौ0- चतथुप भहाकायन अहॊकाया । स्जहह अमबभानी ऺभता बाया।।

चाहत मोग सभाधी ध्माना । ननपवपचाय ननफीज गनत ऩाना।।2।।

चौथा भहाकायण अहॊकाय है जजसके अशबभानी की बाय ऺभता होती है। िह मोग ध्मान सभाधी भें ननविवचाय औय ननफीज अिस्था को ऩाना चाहता है।

चौ0- सो Sहभस्स्भ वनृत जगावा । ऻानी स्वभसु्क्त बाव सभावा।। अस अमबभानी सखु दखु नाहीॊ । इकयस भसु्क्त मोग सभाहीॊ।।3।।

औय िह सो Sहजम्स्भ िनृत को जगा रेता है तथा ऻानी औय ननजभजुतत बाि भें सभामा यहता है। ऐसे अहॊकाय अशबभानी को कोई सिु दिु नह ॊ यहता। िह तो एक यस भतुतमोग भें सभा जाता है।

चौ0- कैवल्माबीभानी हॊकाया । इकेव ध्मान अद्वतै धचदाया।।

ऩनुन ऩनुन एहह बाव अनऩूा । जगद चयाचय भाभ सरूऩा।।4।।

ऩाॊचिा कैिल्म अशबभानी अहॊकाय भें एक भात्र ध्मान चेतन्म अद्ितै का यहता है औय फाय फाय मह अनऩुभ बाि यहता है कक सकर चयाचय (जड चेतन) जगत भेया ह स्िरूऩ है।

दो0- सौयन आबषूण एकयस घट भाटी जर रहय।

प्राप्माप्रप्म वस्त ु “होयाभ” नहहॊ भन कुॊ हठत कहय।।499।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक स्िणव औय आबषूण, घडा औय शभट्टी तथा जर औय रहय भें एक सा बाि हो जाता है। तथा प्रातत औय अप्रातत िस्त ुभें भन कुॊ दठत नह ॊ होता औय न कोई द्िन्द यहता है।

चौ0- इहह ऩॊच हॊक नाथ जन पाॊसे । प्रथभ बए सो बवजर नासे।।

एत ेही पवषम वास भनभाॊही । कार जार छर जीव पॊ साही।।1।।

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इन ऩाॊचो अहॊकायों भें नाथ औय भानि पॊ से हुिे है जो इनसे अरग हो जाता है िह बिसागय को नष्ट कय रेता है। इसी प्रकाय की विषम िासना भन भें होती है जो कार का छर है जो जीिों को पॊ साता यहता है।

चौ0- वासा पवषम कार भन बावा । पवषमी जन कार दास कहावा।।

वासा जधग भन चॊचुय होई । इन्दयीम चेतन कभप कृनत ऩोई।।2।।

विषम िासना कार के भन को अच्छी रगती है इसीशरमे विषमी भनषु्म कार के दास कहरात ेहै। िासना के जागत ेह भन चॊचर हो जाता है तत्कार इजन्रमाॊ चेतन्म होकय कभव की कक्रमा को ऩयोसने रग जाती है।

चौ0- कायन मही पॊ द चौयासी । बयभत कपयत जीव अपवनासी।।

जर भॊथने नौनन नहहॊ जैसे । जऩ तऩ थोथु ऻान बफन ुतसेै।।3।।

मह चौयासी पॊ दने का कायण है जजसभें मह अविनािी जीि बटकता कपयता है। जजस प्रकाय जर भथने से भतिन नह ॊ शभरता उसी प्रकाय ऻान के बफना तऩ औय तऩस्मा थौथे है।

चौ0- वासा कायन बत्रदेव भहानी । सकर जगद सजृना कयदानी।।

ऩायख गरु बफन ुफॊध न छूटै । कयभ वासना फीज न पूटै।।4।।

िासना के कायण ह तीनों भहान देिता (ब्रह्भा, विष्णु औय भहादेि) बी साये सॊसाय की यचना कय देत ेहैं। तत्िदिी गरुु के बफना मह फॊध नदहॊ छूटती औय कभव िासना का फीज नह ॊ पूटता।

दो0- जफ रधग भन भें वासना जीव कार का दास।

आधा पवशषे जाननमे फीज ऩोपषका वास।।500।।

जफ तक भन भें िासना है तफ तक जीि कार ऩरुुष का दास है। िासना के फीज की भखु्म ऩोवषका कुन्डर नन िजतत है।

चौ0- आद्मा जननी पवषम फमासा । कायन जगद बत्रगणु उदबासा।।

नतष भखु मदा कयहहॊ पुपकायी । सोहॊ शब्द उऩस्ज प्रसायी।।1।।

कुन्डर नन सह विषम िासनाओॊ की जननी है। इसी के कायण बत्रगणुी सॊसाय उददत होता है। उसका भिु जफ पुपकाय कयता है तफ सोहॊ िब्द उत्ऩन्न होकय पैरता है।

चौ0- नतहह पुॊ काय भन चेतन होई । तफ सफ जग सयजना सॊजोई।।

पवषम पवकाय नतहह पवष जाने । भन भनत अहभ तास ुपुयकाने।।2।।

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उसकी पुॊ ककाय से भन चेतन हो जाता है तफ साया जग की उत्ऩजत्त सॊमोग फनता है। विषम विकाय आद्मा के विष जानो उसी से भन फवुद्ध औय अहभ कक्रमािीर हो यहे है।

चौ0- जे जानत आद्मा कय बेदा । ऩीवत अमभ पवषम कय छेदा।।

नाग कार नाधगन भहाभामा । पऩ ॊड ब्रह्भाण्ड सवप वश्मरामा।।3।।

जो इस आद्मा के बेद को जानता है िह विषमों का छेदन कयके अभतृ ऩीता है। नाग कार है औय नाधगन मह भहाभामा (आद्मािजतत) है जजसने सभस्त वऩ ॊड औय ब्रह्भाण्डों को िश्म भें कय यिा है।

चौ0- शब्द नाद वाक्म जग जेत े। कायन कार कुॊ डरीनन तते।े।

आद्मा फदन अधौतर ओया । कायन इहह जग नयक मसहोया।।4।।

सॊसाय भें जजतने िब्द औय िातम है उतने ह मह कार औय कुन्डर नन के कायण है। आद्मा का भिु नीचे की औय को है इसी कायण (जीि) नयकों भें कपसरता है।

बवाथप् -

इसी कायण जीि आिागभन के चतकय भें फॊधे ऩड ेहैं। ऻान ध्मान ऩजूा जऩ तीथव कीतवन कयके बी इन दोनो के ऩये न जाने से िह भतृ्मजुार भें ह पॊ सा यहता है। केिर तत्िदिी गरुु ह इसके चतकय से भतुत कय सकता है उन्ह की सेिा कयके उनकी कृऩा प्रातत कयनी चादहमे। तत्िऻानी िाचक गरुु भहाभामा है। स्त्री बी भहाभामा है जो इसे छाती से रगा कय पॊ सता है ; िह डस शरमा जाता है। जो कोई मोग मजुतत से कुन्डर नन को जगाकय अऩनी सषु्भना के द्िायों को ननयाऩद फना रेगा िह िासनाओॊ ऩय विजम ऩामेगा। जफ तक िासनाओॊ ऩय विजम नह ॊ तफ तक आिागभन चक्र नष्ट नह ॊ होगा। औय कच्चे गरुु जनो नें धभविास्त्रों का मथाथव अशबप्राम तो जाना नह , दसूय य नत से अऩना शभचव भसारा रगाकय भ्रभ भें डार यिा है। उन व्माऩारयमों से फचना अननिामव है। कभव जार पैराकय जीि को फाधें यिनी ह कार की साम्राज्म व्मिस्था है जजसे कोई तत्िदिी गरुु ह तोडकय जीि को भतुत कयता है।

दो0- साॊचा साधु गरुूभणुख नासत आद्मा जार।

नातय कदा भसु्क्त नहीॊ मसय ऩय व्माऩहहॊ कार।।501।।

कोई सच्चा साधु गरुु भिुी ह आद्मा के जार को नष्ट कयता है नह तो कबी बी इससे भजुतत नह होगी शसय ऩय कार ह व्माऩेगा।

दो0- अथाह पवष की फेरडी सोई कुन्डरीनन जान।

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“होयाभ” औषधध ऩायखी जीव जामे ननयफान।।502।। सोई हुई आद्मा को अथाह विष की फेर जानो श्री होयाभदेि जी कहत ेहै कक इसकी औषधध एक भात्र तत्िदिी गरुु है जजसके द्िाया जीि ननिावण ऩद ऩहुॊच जात ेहैं।

चौ0- अगम्म ऩरुष आऻानसुावा । आमेउ हभ जग जीव हहतावा।।

ऩयभ ऩरुष की करूॊ उऩदेशा । जीव धचदाऊॊ ब्रह्भ सॊदेशा।।1।।

अगम्म अनाभी ऩरुुष की आऻा ऩाकय हभ जगत के जीिों के दहत के शरमे आमे है। औय ऩयभ ऩरुुष (ऩयभेश्िय) की उऩदेि देत ेहै औय ब्रह्भ सॊदेिा देकय जीिों को जगात ेहैं।

चौ0- सनुहु सॊत तभु भभ सत्म फानी । सवप प्रकाय जगद कल्मानी।।

अऩनी भरू स्वरूऩ पऩछानो । अजय अभय सत्म आत्भा जानो।।2।।

हे सॊतजनो ! तभु भेय सत्मिाणी को सनुो ! जो कक सिव प्रकाय से जगद कल्माणकाय है। तभु अऩनी ननजज भरूस्िरूऩ की ऩदहचान कयो औय आत्भा को अजय अभय औय सत्म जानो।

चौ0- सयुनतदेस जगद से न्माया । बफन ुयपव शशी भहा उस्जमाया।।

जये दीऩ बफन ुतरे अरू फाती । नहहॊ तहॉ शौक कार हदन याती।।3।।

आत्भदेस जगत से न्माया है। िहाॊ बफना चन्र समूव ह भहाप्रकाि है। िहाॊ बफना तरे औय फाती का द ऩक जरता है। िहाॊ दिु सॊताऩ कार तथा ददन यात चक्र नह ॊ है।

चौ0- सायॊग औट सयूज की नाई । भामाऩयत मत सयुत दयुाई।।

दफी धूय जफ बान ुदयसे । झाईं हटे तफ अभतृ फयसे।।4।।

फादर की ओट भें सयूज की तयह ; महाॊ (कार ऺेत्र भें) सयुनत भामा के ऩदे भें छुऩाई गई है। जफ दफी हुई धूर भें से समूव ददिाई ऩडता है तफ झाॊई हटती है औय अभतृ फयसता है।

सो0- नाव चढे साकाय ; ननयाकाय ऩद धाइमे। ननज रक्ष्म रेहु सम्बाय ; बफना चाऩ नहहॊ सय सधे।।8।। ऩयभधाभ ननजदेस को जाना है तो ऩहरे साकाय की नाि ऩय चढना होगा तमोंकक बफना धनषु के तीय नह ॊ साधा जाता। इसीप्रकाय अऩने रक्ष्म का सम्बार रेिे।

श्रो0- नभस्न्त अव्मक्त ब्रह्भ ननॊदस्न्त साकाय ब्रह्भ।

भामा छर भ्रमभतजना ईश व्मवस्था बॊस्जता्।।14।।

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जो भनषु्म भात्र ननयाकाय को ह नभन कयत ेहै औय साकाय ब्रह्भ की नन ॊदा कयत ेहैं िे भनषु्म भामा के छर से ह भ्रशभत है तमोंकक िे ऩयभेश्िय की व्मिस्था को िॊडडत कयने िारे हैं। (िे कार के अन्म अफोध जीिो के शरमे तऩ व्रत तीथव आदद को छुडिाकय कार की तततशिरा को ज्मादा उग्र फनात ेहैं)।

श्रो0- ऩयभतत्व सत्मब्रह्भ व्मक्ताव्मक्त अतीतभ।्

बफन ुपवजानन भरूतत्वॊ पवद ुअपऩ भ्रमभता्।।15।।

ऩयभतत्ि सत्मब्रह्भ तो ननयाकाय औय साकाय दोंनों से ऩये है उस भरूतत्ि ऩयभेश्िय को जाने बफना विद्िान बी भ्रशभत हैं।

श्रो0- अव्मक्तस्म पवबनूतनाभ साकाय जगद धायणॊ।

तस्माॊनन ॊदा ईश ननॊदा ऩतु्रवधेत कक ऩजूा पऩतु् ।।16।।

ननविवकाय ब्रह्भ की विबनूतमाॊ ह साकाय ब्रह्भ रूऩ भें जगत को धायण कयने िार है इसशरमे उनकी नन ॊदा ननयाकाय ऩयभेश्िय की ह नीॊदा है। बरा ! ऩतु्र का िध कयने से तमा िह वऩता की ऩजूा है ?

श्रोक0- भात्र ब्रह्भास्स्भ सोहस्म्स्भ कथनेन जना्।

न आऩनोनत स्वरूऩ दशपन तत्वऻापऩ न भकु्तमा।।17।।

भैं ब्रह्भ हूॉ ; भैं िह हूॉ। कहने से भानि अऩने स्िरूऩ का साऺात्काय प्रातत नह कय ऩाता। इस प्रकाय तत्िऻानी बी भतुत नह ॊ हो ऩाता।

श्रोक0- मथा दीऩ वातपमा न बवनत प्रकाशॊ।

तथा सोहभ ्कथनेव कुत्र भोऺ तत्वऻापऩ।।18।।

जजस प्रकाय द ऩक की चचाव (गणुगान) कयने भात्र से प्रकाि नह हो जाता उसी प्रकाय सोSह्भाजस्भ कहने भात्र से विद्िानों को बी भोऺ कहाॉ होता है ?

श्रो0- तद्पवनॊ न दहुदपनॊ आऩदे भेघास्च्छदभ।्

दहुदपनॊ मद्पवनॊ हरयनाभ ऩीमषु वस्जपतभ।्।19।।

िह ददन कुछ फयुा ददन नह ॊ है जजस ददन विऩदाओॊ के फादरों ने तमु्हे आच्छाददत कय शरमा हो अवऩत ुफयुा ददन तो िह ददन है जो ददन प्रब ुके नाभ के अभतृऩान से िजजवत यह गमा है।

श्रो0- म बवव्माऩायस्तगत ेइच्छनत हरय दशपनभ।्

स्भातमुभच्छनत सभनु्र शान्त करोरे सभढूा्।।20।।

जो सॊसाय के झभेरो के सभातत होने ऩय ह हरय दिवन कयने की ईच्छा कयता है तथा सभनु्र की रहयों के िान्त होने ऩय ह स्नान की ईच्छा कयता है िह भिूव होता है।

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श्रो0- इकाक्षऺऻान दस्म्बका भ्रभमस्न्त च भ्राभमस्न्त।

ननज स्वरूऩ न जानस्न्त सभढूा Sपवद्माभऩुास्त।े।21।। भात्र ननयाकाय अथिा साकाय के ऻान का एकतयपा दम्ब बयने िारा व्मजतत स्िमॊ तो भ्रशभत है ह ; िह दसूये भनषु्मों को बी भ्रशभत कयता है। िह भिूव ननजात्भस्िरूऩ को नह ॊ जानता। (इसशरमे िह अविद्मा की ह उऩासना कयता है। उसके भन भें सदैि द्ितै बया होता है औय सभझता है कक िह अद्ितैऩॊथी है)

श्रो0- कभपकाण्ड यता जना् नाभभात्रणे सन्तषु्टा।

वक्ता ऻानी तत्वहीनॊ काक सदृश बापषतभ।्।22।।

कभव काण्ड भें रगा हुआ औय नाभ जाऩ कीतवन भात्र से ह सन्तषु्ट यहने िारा तत्िह न ितता ऻानी भनषु्म बी काग के सभान ह फोरता है।

श्रो0- मथा दवी स्नात ुअपऩ ऩाकयस न जानस्न्त।

तथा शास्त्र सम्फोधी ऩयभतत्वष ुवॊधचता।।23।।

जजस प्रकाय कयछर हाॊडी भें स्नान कयत ेहुिे बी व्मॊजन के यस (स्िाद) को नह ॊ जानती उसी प्रकाय िास्त्रों के जानने िारे विद्िान बी ऩयभतत्ि से िॊधचत यह जात ेहैं।

श्रो0- षडदशपन वेदागभ सकाभबाव यत कभपणा्।

रोक यॊजनाथापम सखुासक्तॊ ऩयभानॊदभात्भ हा।।24।।

छ् दिवन िास्त्रों औय िेदो का ऻान यिने िारे भनषु्म सकाभ बाि से कभों भें रगे यहत ेहै िे सॊसारयक भनोयॊजन हेत ुजगत सिुो भें आसतत यहकय अऩनी ह आत्भा की हानन कयत ेहैं।

श्रो0- ब्रह्भऻौ सॊसायसखुौ सो Sहभ ्सोSहभ ्वाहदनाभ।्

आत्भदशप पवहीनॊ स ऩशऩुाश ननमस्न्त्रता।।35।।

सॊसाय के सिुो भें ब्रह्भऻानी फनकय िह भैं हूॉ – िह भैं हूॉ (सो Sहभ ्सोSहभ)् कहने िारा आत्भऺात्काय के बफना ऩि ुऩाि भें ह फॊधा हुआ है।

श्रो0- देह दॊड शोषणेॊ इव नास्स्त हरय दशपनभ।्

प्रेभरूपऩणण फसद बस्क्त तषेाॊ धचत्त प्रगट हरय।।26।।

िय य को दॊड देने तथा उऩिास आदद से िोषण कयने भात्र से श्रीहरय का साऺात्काय सरुब नह ॊ होता अवऩत ुजजसके रृदम भें श्रीहरय की सच्ची पे्रभरूवऩणी बजतत फस जाती है उसी के धचत्त भें श्रीहरय प्रगट होत ेहैं।

श्रो0- अणखरस्म जगदमभदॊ वासदेुवकुटुम्फकभ।्

मो ऩश्मस्न्त सवप ब्रह्भ स्पवदहुपरयबक्त पप्रम्।।27।।

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मह सभस्त विश्ि एक िासदेुि कुटुम्फ (बगिान का कुटुम्फ) है ; जो इसभें सफ कुछ ब्रह्भ ह ब्रह्भ देिता है िह विद्िान है औय ऩयभेश्िय का वप्रम बतत है।

श्रो0- मथा तडागॊ सयोरूह जरेष ुन मरप्मनत।

ब्रह्भऻ सवपथावतपभानापऩ कभपणा न मरप्मत।े।28।।

जजस प्रकाय कभर ताराफ भें जरसे शरतत नह ॊ होता उसी प्रकाय ब्रह्भऻानी सिवप्रकाय से फतवता हुआ बी कभों से शरतत नह ॊ होता।

श्रो0- मो इकेव ब्रह्भस्म अव्मक्तस्वरूऩभऩुासत।े

व्मक्तस्म नन ॊदा भात्रणे ऩयागनत न रभ्मत।े।29।।

जो ब्रह्भ के एकभात्र ननयाकाय स्िरूऩ की ह उऩासना कयता है िह साकाय ब्रह्भ की नन ॊदा के दोष से ऩयागनत के प्रातत नह ॊ होता।

श्रो0- मथा हह अव्मक्त ब्रह्भ सभथप प्रकाशऩुॉजॊ दामतॊ।

तदककॊ बान ुजामोनत नब प्रकाशस्न्त जगद सवपभ।्।30।।

जफ ननश्चम ह ननयाकाय ऩयभेश्िय सिवप्रकाय से प्रकािऩुॊज देने भें सभथव है तफ उसने सभस्त जगद को प्रकाि देने के शरमे आकाि भें साकाय समूव को तमों उत्ऩन्न ककमा ? (साकाय समूव के बफना ह अऩना प्रकाि तमों नह ॊ प्रदान ककमा)।

श्रो0- कायणमभदॊ सदगरुॊ जीवोद्धायाथप स पे्रष्मनत।

तषेाॊ नन ॊदा सततॊ कयोनत त ेव्मसनन भहा भढूा्।।32।।

इसी कायण िह ऩयभेश्िय जीिों के उद्धाय के शरमे साकाय सदगरुुिों को बेजता यहता है। इस प्रकाय जो प्रब ुकी व्मिस्था की नन ॊदा कयने िारे है िे व्मिसनन औय भहाभढू होत ेहैं।

श्रो0- न जानस्न्त अव्मक्तस्मकृनत भहाभढूा मे जना्।

बॊस्जथा सवपव्मवस्थामाॊ अन्तकारे नयको गनत।।33।।

औय जो व्मजतत ननयाकाय की (व्मतताव्मतत) व्मिस्था को नह ॊ जानत ेऔय साय व्मिस्था को बॊग कयत ेहैं िे अन्तकार भें नयकों भें जात ेहैं।

श्रो0- बत्रदेवो पवश्वेश्वय् च याभाहदकावतायानाभ।्

म ऩश्मनत भनजु इव साल्ऩऻ न तत्वपवद।ु।34।।

विश्िेश्िय बत्रदेि (ब्रह्भा-विष्णु-भहेि औय याभ आदद अितायों को जो भनषु्म भात्र ह सभझकय देिता है िह अल्ऩऻानी है िह तत्िऻानी कदावऩ नह ॊ है।

श्रो0- मशवोवाच बक्ताॊ श्रणृौ मशवो बतू्वा मशव मजेत।

बॊगामभषश्च भहदया दोषणे भमास्स्तत्व न दषु्म कुर।।35।।

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शििजी कहत ेहैं कक बततो सनुो ! शिि होकय ह शिि की ऩजूा कयनी चादहमे। बाॊग भाॊस औय भददया के दोष से भेये जस्तत्ि को दवूषत न कयो।

श्रो0- आत्भदशपध्मान गभनॊ तत्वऻ Sपऩ न ससुाध्मेत्। इकेव सशक्तॊ तत्वदृष्टानाभ तषेाॊ शयणॊ गच्छ् गच्छ्।।36।।

आत्भसाऺात्काय ध्मान मात्रा को तत्िऻानी सॊत बी नह ॊ साद्म ऩात।े इसभें कोई एक भात्र तत्िदिी सॊत ह सितत है इसशरमे उसकी ियण भें जाओ जाओ।

श्वरो0- श्री पवष्णोवाचेत कारस्म तप्तमशरेष ुयऺाथपभ।्

बजनॊ ध्मानॊ तऩ सकुभापहद ऻान पे्रयणा प्रदाम्महभ।्।37।।

श्रीविष्णु बगिान ने कहा था कक कार की तततशिरा से जीिों की सयुऺाथव ह बजन ध्मान तऩ सत्कभावदद की ऻान पे्रयणा भैं ह प्रदान कयता हूॉ।

श्रो0- बवअणखरस्म सव ंब्रह्भ ककॊ धचद नास्स्त अन्मानन।

सो Sहभ ्स च त्वभ स च सवप पवबनूत स्वरूऩभ।्।38।। अखिर विश्ि भें सफ कुछ ब्रह्भ ह है दसूया ककॊ धचत भात्र बी नह ॊ है। िह भैं हूॉ औय िह तभु सफ हो औय िह ह सभस्त विबनूतमाॉ (जग सॊचारक देिगण सॊत अिताय आदद साकाय) स्िरूऩों भें है।

श्रो0- मथा पऩऩीमरका गहृणानत मभष्ठानकणेव्।

तथा ऩश्मतो जगदसवपभ इको ब्रह्भस्म स्वरूऩॊ।।39।।

जजस प्रकाय चीॊट शभष्ठान के कण भात्र को गहृण कयती है उसी प्रकाय सभस्त जगत को एक भात्र ब्रह्भ का ह स्िरुऩ देिना चादहमे।

श्रो0- मो वेनत सवपमभदॊ ब्रह्भ स अदैतानगुम्म्।

द्वतैाद्वतै मबन्न मबन्न ऩश्म ैऩयभतत्वानमबऻ उबौ।।40।।

जो सिवभिजल्िदभ ब्रह्भ (सफ कुछ ब्रह्भ है) जानता है िह अद्ितै अनमुामी है द्ितै अद्ितै को शबन्न शबन्न देिने िारे दोनो ह ऩयभतत्ि से अनशबऻ है।

श्रो0- मो मस्म गणु न जानानत नीॊदा कयोनत ननत्मभ।्

अन्तकारे बक्तापऩ बडु्क्त ेअनत दगुपनतभ।्।41।।

जो कोई जजसके गणु को तो जानता नह औय उसकी नीॊदा ननत्म ककमा कयता है ऐसा िह बतत बी अन्त सभम भें महाॉ दगुवनतमों को बोगता है।

सो0- अव्मक्त गपु्त ननवास ; कारदेस यचना पवकट। ब्रह्भ अव्मक्त उद्भास ; खोस्ज ऩयब्रह्भ खोजो नहहॊ।।9।।

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कार के देस की यचना विकट (अदबदु) है जजसभें कार ननयाकाय रूऩ से गतुत ननिास कयता है। जजसभें िोजी ऩरुुष बी ऩणूवब्रह्भ को तो िोज नह ॊ ऩाता अवऩत ुकार को ह ननयाकाय कहने रगता है।

चौ0- फीस ब्रह्भाण्ड सात ऩातारा । कयत याज्म मह कार कयारा।।

तदपऩ नतन्हहहॊ नहहॊ आसन राई । इकपव ॊशहहॊ अदृष्म यजनाई।।1।।

फीस ब्रह्भाण्ड औय सात ऩातारों भें मह कार याज्म कयता है कपय बी इनभें अऩना शस ॊहासन नह ॊ रगाता औय इजतकसिें ब्रह्भाण्ड भें शसहाॊसन राकय अदृष्म होकय याज्म कयता है।

चौ0- कायण एहह फहुय सॊत ऻानी । वमसक ठाभ ननयाकाय फखानी।।

बत्रकुटी ठाभ कार स्जन देखा । ननयाकाय मभमर बयभ पवशखेा।।2।।

इसी कायण फहुत से सन्तों ने फीस ब्रह्भाण्डों तक कार का साऺात्काय नह ककमा तो उनभें ईश्िय को ननयाकाय फता ददमा। औय जजसने बत्रकुट देस भें कार का स्िरूऩ देिा तो उनका ननयाकाय ब्रह्भ का वििषे भ्रभ ह शभरा।

चौ0- प्रब ुननज भनहहॊ कीन्ह पवचायी । यचहहॊ कार तप्तमसरा दखुायी।।

ताऩहहॊ जीव बनून सो खावा । कोऊ जीव तद यह न यछावा।।3।।

प्रब ुने भन ह भन विचाय ककमा था कक कार दिुबय तततशिरा फनामेगा। औय जीिों को उसऩय तऩाकय िामेगा तफ कोई जीि उससे सयुक्षऺत नह यह ऩामेगा।

चौ0- प्रब ुअकार बत्रधाय उगाई । कारधाय भॊह सोइ सभाई।।

कार तनम स्वरूऩ सो जामे । भामा कार की धाय सभामे।।4।।

तफ प्रब ुअकार ऩरुुष ने अऩने भे से तीन धायामें उत्ऩन्न की िे ह कार की भामा धाय भें सभाई है। कपय िे ह कार के ऩतु्र फनकय उत्ऩन्न हुिे है। औय भामा कार की धाया भें सभामे हुिे हैं। (मे तीन धायामें सत, यज औय तभ गणुी है जो ब्रह्भा, विष्णु औय भहेि रूऩ भें साकाय प्रगट हुई हैं)।

चौ0- दान ऩनु्म मऻ तऩ ध्माना । ऩयात्ऩय ऻान यच्मौ पवधध नाना।।

जास ुजीव तप्तमशरा न चाढै । होई पवऩद छम सफ सखु फाढै।।5।।

उन्होने दान ऩनु्म मऻ तऩ ध्मान तथा ननमभगत फहुत से ऩयात्ऩय ऻान को प्रचशरत ककमा जजससे की जीि तततशिरा ऩय न चढे औय उसकी विऩदाओॊ का नास तथा सभस्त सिु फढत ेजामे।

चौ0- गय कय सजृन स्वमॊ मह कारा । कोऊ न सम्बव होंहहॊ ननहारा।।

नतहह तप्तमशरा शान्त कय हेत ु। ननश्काभ बाव कय कयभ सचेत।ु।6।।

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मदद जगत की सभस्त यचना कार स्िमॊ कयता तो सम्बि न होता कक कोई ननहार हो जाता। इसीशरमे तततशिरा की िाॊनत के शरमे सचेत यहकय ननश्काभ बाि से कभव कयत ेयहना चादहमे।

चौ0- सदगरु ऩयम्ऩया बत्रदेव फनाई । ताकक जीव सफ होहहॊ भचु्माई।।

जे जन नतन्हहह अऩमश कयेहीॊ । कौटी कल्ऩ मभनाह पॊ द ऩयेहीॊ।।7।।

जीि के शरमे सदगरुु की ऩयम्ऩया तीनों देिो (ब्रह्भा – विष्णु – भहेि) ने ह फनाई है ताकक सबी जीि भतुत हो सके। जो व्मजतत इनकी नीॊदा कयत ेहैं िे कौट कल्ऩ मभयाज के पॊ दे भें ह ऩडत ेहैं।

चौ0- सो फडबाग शयण भभ आवा । नतष भाहीॊ हौं बेद जगावा।।

खोरहुॊ सकर फॊद पऩटायी । गोऩ साय सफ करूॉ उजायी।।8।।

िह फडा बाग यासी है जो भेय ियण आता है। भैं उसभें साये बेद प्रगट कय देता हूॉ औय उसकी सभस्त फॊद वऩटारयमों को भैं िोर देता हूॉ औय साया गोऩनीम यहस्म उजागय कय देता हूॉ।

दो0- कामा कोट असाय है षष्ठ उभी दस पवकाय।

कभपवासना पर देह भोह अनतसजृ ऩावक डाय।।503।।

कामा का ककरा सायह न है। इसभें छ् उशभव औय दस विकाय है। कभव िासनाओॊ का ऩरयणाभ मह देह है इसका भोह त्मागकय अजग्न भें डार दो (अथावत मोगाजग्न भें दग्ध कय दो)।

चौ0- नाना फदु्फदु जर भॊह जैसे । कॊ चन एक फहु बषूण तसेै।।

सतू कस्ल्ऩत सतुरी की नाई । कठऩतुरय सयुत जीव फनाई।।1।।

जर भें जजस प्रकाय अनेको फदुफदेु होत ेहै िसेै ह एक कॊ चन के फहुत से आबषूण होत ेहै। उसी प्रकायऔय सतू की कजल्ऩत सतुशर की तयह मह आत्भा जीि फनाई गई है। अथावत कठऩतुर फनाई गई है।

चौ0- ब्रह्भ सागय सउॉ से सयुनत छूटी । जीव फनन सोइ भामा रटूी।।

जफ ननज देस रौहट ऩनुन जाई । सागय स्रोत तफ भरू सभाई।।2।।

मह सयुनत ब्रह्भसागय (ऩयभेश्िय) से छूट कय जीि फनी है। महाॊ इसे भामा ने रटू शरमा है। जफ बी मह अऩने देस को रौटकय जामेगी तफ िह सागय स्रोत अऩने भरू स्िरूऩ भें सभा जामेगी।

चौ0- एक रवण की गडुडमा यानी । थाह रेनी सागय प्रस्थानी।।

चरत चरत सो जरहहॊ सभावा । तफ तहॉ बेद कवन ककही दावा।।3।।

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एक नभक की फनी हुई गडुडमा यानी ने सागय की थाह रेने को प्रस्थान ककमा। ऩानी भें चरत ेचरत ेिह जर भें ह सभा गई (घरु गई) तफ िहाॊ का बेद (िफय) कौन ककसको देगा ?

चौ0- जे जन जग भॊह आत्भऻानी । ननशॊक गहहहॊ धाभ ननयफानी।।

यस्श्भमॊत्र अस्स्थ दृश्म जैसे । बतू चयाचय आत्भ रख तसेै।।4।।

सॊसाय भें जो व्मजतत आत्भऻानी है िे ननसॊदेह ननिावण ऩद गहृण कयत ेहै। जजस प्रकाय यजश्भन मॊत्र (एतस – ये) भें अजस्थमों का ह दृष्म आता है। उसी प्रकाय चयाचय बतूों भें आत्भा को ह देिो।

दो0- ब्रह्भानॊद सभदृष्टाजन शधुच सतनाभ आधाय।

गरु अनगु्रह पववेकक सों ऩावहहॊ ऩद ननऺाय।।504।।

ब्रह्भानॊद भें सभदृष्टा व्मजतत ऩािन सत्मनाभ के द्िाया औय सदगरुु की कृऩा तथा वििेक से अऺमऩद को ऩा रेता है।

चौ0- कक सॊग्रह गय ऺम धन जौया । धनी सोम सतनाभ फटौया।।

ठाभ सोइ जग भें सखुकायी । सॊग्रह धन जहॊ होई तमु्हायी।।1।।

मदद नाििान धन सॊग्रह ककमा तो तमा जोडा ? धनी तो िह है जजसने सत्मनाभ की कभाई का धन जोडा है। विश्ि भें िह स्थान सिुकाय है जहाॊ तमु्हाया धन सॊग्रदहत यहता है। (अथावत आत्भा का अऩने भरू स्िरूऩ भें रौट जाना ह सच्ची कभाई है)।

चौ0- कछुक भनजु ऐसो जग भाहीॊ । मश हेत ुऩनु्म दान कयाहीॊ।।

चाहत सदा सो भान फयाई । कयत हदखावा धयभ कभाई।।2।।

सॊसाय भें कुछ ऐसे बी भनषु्म है जो केिर अऩने मि के शरमे ह ऩनु्म दान कयत ेहैं। िे सदा भान फडाई चाहत ेहैं इसशरमे धभव कभव का द िािा कयत ेहैं।

चौ0- एती गपु्त यख आऩनु दान ू। फाभ न जानन कक करय कय दान।ू।

रखहहॊ सकर कृनत प्रब ुतमु्हायी । देहहॊ प्रनतपर मथानसुायी।।3।।

तभु अऩना दान इतना गतुत यिो कक तमु्हाया फामाॊ हाथ बी न जान ऩामे कक दादहने हाथ ने तमा दान ककमा है। तमोंकक प्रब ुतमु्हाये सफ कभो को जानत ेहै औय मथानसुाय पर प्रदान कयत ेहैं।

चौ0- कयभ पाॊस कदा नहहॊ छूटे । केत ेउऩाम कयो सफ ठूॊ टे।।

सदगरु मभमरअ होइ ननफेया । नहहॊ त ेऩावहहॊ बौंऩयु डयेा।।4।।

कभव की पाॊस कबी नह ॊ छूटती ककतने बी उऩाम कयो सफ ननयथवक है तमोंकक सदगरुु शभरे तो भजुतत होती है अन्मथा बिसागय भें ह डयेा शभरता है।

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दो0- ऩनुजपनभ कृत कायण की इह कामा भें छाऩ।

अॊग अॊग के धचन्ह रणख ऻानी भाऩे थाऩ।।505।।

ऩनुजवन्भ कृत कायणो की इस िय य भें छाऩ रगी होती है। औय अॊग अॊग के धचन्ह (नतर, भस्स,े येिा औय आकृनत) को देिकय ऻानिान जन उनकी गहु्मथाऩ को भाऩ रेत ेहैं।

बावाथप (प्रवचनाॊश)- सॊत होयाभदेि उिाच्- सबी जीिों के िय यों भें वऩछरे जन्भ के ककमे कभों की धचन्ह स्ऩष्ट यहती है। ऩयन्त ुभनषु्म देह भें ज्मादा िह स्ऩष्ट यहती है। इन्ह धचन्हों से भनषु्म का बरा फयुा होना दरयर अथिा धनी होना. चोय औय साध होना जान शरमा जाता है। सभस्त िय य का यॊग डीर डौर ऩिूव कभो के अनसुाय ननशभवत होता है। शसय से ऩयै तक मे धचन्ह िय य भें बये यहत ेहैं। साभदुरक ऻानी इसको जानकय सफ हार जान रेत ेहैं महाॊ तक कक वऩछर जन्भ का विियण बी जान शरमा जाता है। जीि के कभामे गमे कभविासना के पर से मह धचन्ह प्रकट होकय जीि का स्िबाि बी दयसात ेहै। इस प्रकाय कभव की पाॊसी सफको रगी है। सहस्त्रों मजुतत यचकय बी भजुतत नह होती। कोई तत्िदिी सदगरुु शभर जामे तो िह छुटकाया ददरा देता है। अन्मथा असम्बि है।

चौ0- कुछ जन पवनती कयत दीखावा । कक नहहॊ जानहह प्रब ुसफ बावा।।

ठाडड प्राथपना बवन जगावा । ताकक नतहह रख सफ मश गावा।।1।।

कुछ व्मजतत विनती बी द िािा भात्र कयत ेहै। बरा ! तमा प्रब ुसफ के बािों को नह जानत।े िे व्मजतत िड ेहोकय भॊददयों को जगात ेहै। ताकक उसे देिकय सफ उसका मिगान कयें।

चौ0- नतन्ह के प्रनतपर ऺम मश द्वाया । सजग न करयअ नतष प्रकाया।।

ध्मान कभाइ कयहु इकान्ता । अदृष्म ठाडड रखहहॊ बगवन्ता।।2।।

उनके कभों के पर उनके मि द्िाया नष्ट हो जात ेहैं। इसशरमे सािधान यहे औय ऐसा न कये। ध्मान की कभाई एकान्त भे कयो। अदृष्म िड ेहुमे बगिान सफ कुछ देित ेहैं।

चौ0- कक चाहना तभु सो सफ जाने । सभम आए प्रफॊध ऩठाने।।

अस को जीव जगद भें नाहीॊ । जाऩय ताही दृष्टी न जाहीॊ।।3।।

तमु्हे तमा आिश्मकता है िह सफ जानता है। औय सभम ऩय उसका प्रफॊध बेज देता है। ऐसा जग भें कोई जीि नह है जजस ऩय उसकी दृष्ट न जाती हो।

चौ0- ईश न्माम कब ुत्रहुट न होई । न्मामारम मदपऩ नहहॊ कोई।।

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सकर चयाचय को प्रनतऩारा । सो सफ कार सजग यखवारा।।4।।

ईश्िय के न्माम भें कोई त्रदुट नह होती जफकक उसका कह ॊ कोई न्मामारम नह ॊ है। िह सभस्त चयाचय प्राखणमों का प्रनतऩारक है औय सदा सफ सभम सजग यििारा है।

दो0- “होयाभ” सच्चाई न छुऩ ैझूॊठे छर की आड। इक हदन ुप्रगट होत है शत ्ऩतप असत्म अखाड।।506।।

श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक झूॊठे छर की ओट भें सच्चाई नह ॊ छुऩा कयती है िह एक ददन असत्म के सौ ऩयदे उिाड कय प्रगट हो ह जाती है।

दो0- असॊखम यतन बरय देह ऩरुय छुऩ ैगपु्त फहुय बॊडाय।

अन्तरय कभाई नाभधन ऩायखी उतये ऩाय।।507।।

असॊख्म यत्न देइ नगय भें बये हुिे है औय असॊख्म गतुत बॊडाय नछऩे हुिे है। अन्दय सतनाभ के धन की कभाई कयके ऩायखि सॊतजन ऩाय उतय जात ेहै।

छ0- जनभ रेत ननरेऩ स्तीत्व से सफ मशश ुभकु्त सदा अपवकाय।

जग मशऺक ननज कुर सॊस्कृनत छाऩ चढावहहॊ धभप आधाय।।

हहन्द ुकहत याभ याभ जऩ भोमभन अल्राह ईश ुईशाय।

“होयाभदेव” सकर जग छमरमा कोउ न कहे ननजभरू ननहाय।।37।। ननरेऩ ब्रह्भ स्तीत्ि से सबी जीि सदा भतुत तथा अविकाय जन्भ रेत ेहै। ऩयन्त ुजगत के शिऺक अऩने कुर की धभव सॊस्कृनत की धभव आधाय ऩय उस ऩय छाऩ चढा देत ेहै। दहन्द ुकहता है कक याभ याभ जऩ ; भोशभन अल्राह, औय ईसाई ईिा को जऩिात ेहै। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक साया सॊसाय ह छशरमा है तमोंकक कोई बी उसे अऩने भरू स्िरूऩ का साऺात्काय कयने को नह ॊ कहता।

छ0- जफ रधग जीव जानहहॊ नहीॊ । ननजस्स्तत्व ज्मोनत स्वरूऩन की।

तफ रधग खोजत आनॊद फाहहय यभण कयहहॊ भन इस्न्दमन की।।

भ्रभत कपयत भरू नहहॊ ऩावत खुरत न ग्रस्न्थ ऻानन की।

“होयाभदेव” ननजात्भ ज्मोनत मभरे न यटन अवतायन की।।38।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक जफ तक जीि अऩने स्तीत्ि ज्मोनतस्िरूऩ को नह जानता तफ तक ह आनन्द की िोज फाहय कयता है औय इजन्रमों तथा भन के आनन्द भें यभण कयता है औय भ्रभता कपयता है उसे भरू स्तीत्ि प्रातत नह होती। औय न ह ऻान की ग्रजन्थ िुरती है औय उसे भात्र अितायों की यटन से ननजात्भ ज्मोनत नह शभरती है।

छ0- ऺण बॊगयु जीवन की फदु्फदु कफ पूहट चरे नहहॊ चेत चरी।

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जड को त्माग ऊऩय उहठ देखे तन भाहीॊ अगम्म ज्मोत जरी।।

फाहहय मसमभट अन्तरय घट खौजु धभापधभप कय त्माग गरी।

“होयाभदेव” तरुयमातीत रखऊ, स्स्तत्व ननजात्भ णखमर करी।।39।। जीिन का मह ऺण बॊगयु फरुफरुा कफ पूट जामे कुछ ऩता नह ॊ चरता इसशरमे (भनषु्म को चादहमे कक िह) जड ऩदाथों की ऩजूा त्माग कय ऊऩय उठ कय देिे कक उसके िय य भें ह अगम्म की ज्मोनत जर हुई है। फाहय से शसशभट कय अन्तयघट भें िोजो औय धभावधभव की गशरमों को त्माग दो। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक तरुयमा से ऩये जाकय देिो िहाॊ ऩय भरू स्तीत्ि की कर (ऩयभज्मोनत) खिर यह है।

दो0- सकर धभपग्रॊथ ऩठन कये नाना देवत्व ध्माम।

बफना ननजात्भ ऻान दयस ननयथपक भोऺ न ऩाम।।508।।

सभस्त धभव ग्रन्थों का ऩाठ कयो मा अनेको देिताओॊ की उऩासना कय रो। बफना ननजात्भ ऻान औय साऺात्काय के सफ व्मथव है उसका भोऺ नह हो ऩाता।

चौ0- खोजत भोऺ जड ऩाहन ऩजूे । कोऊ तीयथ वतृ कभपमऻ रूजे।

कोऊ भोषहहत ुबसभ यभावा । कोऊ जीव हत फमर चढावा।।1।।

भोऺ की िोज भें जड औय ऩत्थय को ऩजूत ेहै। कोई तीथव व्रत कभवज्मऻ को ऩसन्द कयत ेहैं। कोई भोऺ के शरमे बस्भी यभात ेहै औय कोई जीि को भायकय फशर चढाता है। (िे सबी भ्रशभत हैं)

चौ0- कोऊ कहे हरय फसहहॊ कैराशा । कोइ फकुैॊ ठ रखहहॊ अपवनाशा।।

कोऊ बतू पऩशाच व्रत गाई । कछु तरू जर अध्र्म भोष भनाई।।2।।

कोई कहता है कक ऩयभेश्िय तो कैराि भें यहने िारा है। कोई अविनािी को फकुैॊ ठ भें देिता है। कोई व्रत यिकय बतूो औय वऩिाचों का गान कयता है। कोई िृऺ ों को जर का अध्र्म देकय भोऺ भनाता है।

चौ0- सो सफ नहहॊ भोष कय साधा । कफहु न कटहहॊ कार छर व्माधा।।

भरू ऻान बफन ुस्वायधथ नाना । बटकत कपयत भठेश भ्रभाना।।3।।

मे सफ भोऺ के साधन नह है। इनसे कार छर की व्माधा नह कटती। भरूऻान के बफना अनेको स्िाथी जन बटकत ेकपयत ेहैं औय उन्हे भठाधीि बयभात ेयहत ेहैं।

चौ0- ऩयभधाभ अद्वतै दयसावा । सयुत उठाम नतहह देस ऩठावा।।

जीवहहॊ जोइ प्रेभ नहहॊ दावा । नहहॊ धयभ सो अधभप कहावा।।4।।

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ऩयभधभव तो अद्ितै का दिवन कयाता है औय सयुनत को उठाकय उसके ननजदेस ऩहुॊचाता है। जो जीिों को पे्रभ नह ॊ देता िह धभव नह ॊ है, िह अधभव कहराता है।

दो0- जीवहह भरू स्स्तत्व स्रोत ननयवाण धाभ अखॊड।

“होयाभ” सोइ हहन्दतु्व ऩद ऩावहु तस्ज ऩाखॊड।।509।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहै कक जीिों का भरू स्तीत्ि स्रोत अिॊड ननिावण धाभ है औय िह दहन्दतु्ि का ऩद है उसे ऩािॊड त्माग कय प्रातत कयो।

31 – सभऩपण बाव

दो0- सॊत मशयोभणी चन्रप्रबा तफ फोरी कय जौय।

धन्म धन्म हे सदगरु हौं ऩाई ननज ठौय।।510।।

तफ सॊत शियोभखण चन्रप्रबा हाथ जोडकय फोर कक हे सदगरुु देि धन्म धन्म हो भैंने अऩना भरू ननिास स्थान (अनाभी ऩद) प्रातत कय शरमा है।

चौ0- स्वमॊ आऩ पप्रम ननज दासा । कीन्ही अभयधाभ भॊह फासा।।

दोऊ पवधध कथनी सॊग कयनी । ऩामऊ अभयधाभ तव सयनी।।1।।

स्िमॊ आऩने अऩने वप्रम दासों का अभय धाभ (अनाभीऩद) भें फासा कय ददमा है। भैंने कथनी औय कयनी सदहत दोंनों विधधमों से आऩकी ियण भें अभयरोक प्रातत कय शरमा है।

चौ0- जे जे रोक गइ सयुत हभायी । हौं ऩामऊ तभु ठाडड अगायी।।

षोडसचक्र ब्रह्भाण्ड अथामा । बेदक सफहहॊ सभथप तभु ऩामा।।2।।

जजस जजस रोक भें भेय सयुनत गमी भैंने िह ॊ िह ॊ तभुको आगे ह िडा ऩामा। सोरह चक्र औय अथाम ब्रह्भाण्ड सफका बेदन कयने भें भैंने तभुको सभथव ऩामा है।

चौ0- धन्म धन्म फड बाग्म हभायी । हरय ककयऩा मभमर शयण तमु्हायी।।

ऐती नहीॊ साभयथ भोयी । जेनत करूॊ गामन प्रब ुतौयी।।3।।

हभाया धन्म धन्म औय फडा सौबाग्म है जो श्री हरय की कृऩा से आऩकी ियण प्रातत हुई है। भेय इतनी साभथव नह ॊ है कक हे प्रब ुभैं आऩकी भदहभा का जजतना गणु गान फिान करूॊ ।

चौ0- तव भखु सनुन अभयतत्व फानी । करय पऩछान बेद तफ जानी।।

जनभ जनभ भैं ऋणी तमु्हायी । सफ रोकन तव यीऩ ननहायी।।4।।

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औय आऩके भिु से अभयतत्ि िाणी सनुकय भैंने आऩकी ऩदहचान कय र है औय बेद जान शरमा है। भैं जन्भ जन्भ आऩकी ऋणी हूॉ। भैंने सबी रोक रोकान्तयों भें आऩके ह स्िरूऩ देिे हैं।

सो0- स्जऻास ुईन्र सहाम चन्रप्रबा सत्म ऻानी सॊग।

रीन्हे बाग्म जगाम अभतृ्व सनुन धन्म धन्म कहह।।10।।

ऩयभ जजऻास ुईन्र सहाम, चन्रप्रबा, सत्मप्रकाि सतसेना तथा ऻानसागय के साथ अभतृत्ि को सनुकय सफ ने धन्म धन्म कहा औय अऩना बाग्म जगा शरमा।

दो0- फाय फाय दॊडवत कये ऩनुन ऩनुन ऩग मसयनाम।

सदा यहे तव बगनत भन मह काभा वयदाम।।511।।

िे फाय फाय दॊडित कयने रगे औय चयणों भें भाथा झुकाने रगे औय फोरे कक सदा तमु्हाय बगनत भन भें यहे; हभें मह ियदान दे द जजमे।

चौ0- तफ भैं “होयाभदेव” भसु्काई । ननश्काभ बाव ननजभता सनुाई।। स्जन्ह स्जन्ह हौं ससुभऩपण ऩामा । अनन्म बस्क्त स्वरूऩ रखामा।।1।।

तफ भझु होयाभदेि ने भसु्कयाकय अऩना ननश्काभ बाि का भता सनुामा कक भैंने जजस जजस का सभऩवण बाि उत्तभ ऩामा है उसको ह अनन्म बजतत स्िरूऩ ददिामा है।

चौ0- हौं तहेहॊ हदव्म ऩॊचाभतृ दामा । कार छुयाम सचखॊड ऩठामा।।

कथनी सॊग कयाई कयनी । षोड्स चक्र बेदे ननज सयनी।।2।।

भैंने उन्ह को ऩाॊचो ददव्म अभतृ प्रदान ककमे है औय कार से छुडा कय सचिॊड भें बेजा है। भैंने अऩनी ियण भें उनको कथनी के साथ साथ कयनी (प्रमोग ऺेत्र की कभाई) कयाई तथा सोरह चक्रों का बेदन ककमा है।

चौ0- अगम्म ऩरुष हभ आमस ुधायी । आम कारऩरुय जीव उफायी।।

तभु सफ पे्रभ सभऩपण देखी । प्रदऊ सत्म साय पवशखेी।।3।।

हभ अगम्मऩरुुष की आऻा धायण कयके कारदेस भें जीिों का उद्धाय कयने के शरमे आमे हैं। भैंने तभु सफका पे्रभ औय सभऩवण देिा है इसशरमे मह वििषे सत्म सायतत्ि प्रदान ककमा है।

चौ0- भो बफन ुतयसत यहह तभु जैसे । जानउ भोय दसा तभु तसेै।

असॊखम मशष्म तभु भोही प्माये । कफहु नहहॊ भभ आत्भ न्माये।।4।।

भेये बफना तभु सफ जजस प्रकाय तयसत ेहो िसैी ह अिस्था भेय बी जान रो। तभु असॊख्म शिष्म (बतत) भझुे वप्रम हो कबी बी भेय आत्भा से अरग नह हो।

दो0- सदगरु मशष्म की कवच है ढार अरू रऺभन येख।

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स्जन राॊघी पवऩदा ऩरय मह सॊतो का रेख।।512।।

सदगरुु शिष्म का किच होता है ; एक ढार है औय उसकी रक्ष्भण येिा है जो भानि इसको राॊघ देता है िह विऩजत्तमाॊ बोगता है मह सॊतो का रेि है।

छ0- कहत “होयाभदेव” सनु ुऩयबा गय कोऊ कहे हौं हहभधगरय उखारय। कोऊ कहे सफ सागय ऩीफा कोऊ वमशबतूा सभीय हभारय।।

भानन रेऊॊ नतन्ह सफ साॊची मदपऩ असम्बव फात ुउच्चारय।

कोऊ कहे नहहॊ भानूॊ कदाधचद् चॊचर भन सो फस करय डारय।।40।।

श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक चन्रप्रबा मदद कोई कहे कक उसने दहभारम ऩहाड उिाड शरमा है। कोई मह कहे कक साया सभनु्र ऩी शरमा है औय कोई कहे कक िाम ुहभाये िश्म भें है तो उनकी मह सफ फातें भैं साॊची भान रूॊगा जफकक मह फात असम्बि कह गई है ऩयन्त ुमदद कोई कहे कक उसने चॊचर भन को फस भें कय शरमा है तो मह भैं कदाधचद् नह ॊ भान सकता।

दो0- अफ भाभ आमस ुगहउ फाॊटउ जे तभु ऩाम।

सत्मधनन देस उऩदेस भभ अस कहह जीव धचदाम।।513।।

अफ तभु भेय आऻा को गहृण कयो औय जो ऻान विऻान तभुने प्रातत कय शरमा है िह फाॊटना िरुु कय दो। औय सत्मऩरुुष के देस का भेया उऩदेि सफसे इस प्रकाय कहकय जीिों को जगाओ कक –

चौ0- सम्बर सम्बर चर जीव अऻानी । नयकहह ओय गभन तभु ठानी।।

कार चक्र मसय छाऩहहॊ तोया । बफना बजन कहुॊ नाहहॊ ननफोया।।1।।

ये अऻानी जीि सम्बर सम्बर कय चर तनेू नयकों की ओय जाना ठान यिा है। कार चक्र ने तयेा शसय छाऩ यिा है। बफना ऩयभेश्िय के बजन के तयेा उद्धाय नह है।

चौ0- आज सेठ नऩृ सत्ताधायी । देख पवचारय कर बमऊ मबखायी।।

इक ऩर याव यॊक ऩर दजूै । इह जनभ भयन उह झूजै।।2।।

जो आज धनिान सेठ याजा औय सत्ताधाय है विचाय कयके तो देिो िह कर शबिाय है। एक ह ऩर भें याजा औय दसूये ऩर भें भहादारयर है। औय इधय जन्भ हुआ तो उधय भतृ्म ुसे जूझता है।

चौ0- कवन जौनन तभु ऩरयहैं भढूा । नयकहह ठाभ भहादखु सढूा।।

कार पाॊस फमस सयुत तमु्हायी । गरु चयण यज रेउ उफायी।।3।।

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भिूो तभु ककस मौनन भें ऩडोगे। नयक की सभस्त स्थान भहादिुों से बय हुई है। तमु्हाय रूह कार की कायागाय भें फसी हुई है। सदगरुु के चयणों की धूशर भें इसे उफाय रो।

चौ0- बफना बस्क्त सत्मऩरुष दमारा । कारदेस सफ जीव बफहारा।।

तभुसे भरू देस सत्मधाभा । फसहहॊ जॊहवा दमार अनाभा।।4।।

सत्मऩरुुष दमार की बजतत के बफना कारदेस के सबी जीि व्माकुर है। तमु्हाया भरूदेस सत्मधाभ (सचिॊड) है जहाॉ ऩय अनाभीश्िय दमार ऩरुुष फसता है।

दो0- “होयाभदेव” कारखॊड यहउ ननमभ सफ भान। कोउ जतन ऐसी कयै हों सचखॊड प्रस्थान।।514।।

श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक इस कार देस भें उसके सबी ननमभ भानकय कोई ऐसा साधन मत्न फना रो जजससे कक सचिॊड धाभ को प्रस्थान हो जामे। (जैसे कक ऩधथक नाि द्िाया नद ऩाय कयत ेह उसे छौडकय अऩने रक्ष्म की ओय चरा जाता है)।

चौ0- सनुहु साथ सफ भभ उऩदेश ू। बफन ुऩयहहत बगनत जनन केश।ू।

भाभ शयण अरू यट हरय नाभा । ऩयहहत सभ नहहॊ कहुॊ सखुधाभा।।1।।

तभु सबी साधजनो भेया आदेि सनुो ! बफना ऩयदहत बगनत ढाॉके के पूर जैसी है। केिर भात्र भेय ियणी औय हरयनाभ सभुरयन बी ऩयदहत के सभान सिुधाभ नह है।

चौ0- धभप ऩनुीत जो पे्रभ प्रसावा । घट घट भॊह ननज सयुत रखावा।।

जहॉ छुआछूत उच्च नीचु फाढै । धभपनाभ तहॉ कमरख मरषाढै।।2।।

धभव िह ऩािन है जो प्रेभ पैराता है औय घट घट भें अऩनी ह आत्भा को दिावता है। औय जहाॉ उच्च नीच छुआछूत फढती है िहाॊ धभव के नाभ ऩय कारि शरऩट हुई है।

चौ0- ब्राह्भण सो जो ब्रह्भभम ऻानी । जात ऩाॊत मत गण्म न भानी।।

जाकय हहम जगदीश सभावा । ऩयघट सो नहहॊ सऩुन सतावा।।3।।

ब्राह्भण बी िह है जो ब्रह्भ स्िरूऩ ऻानिान है। इसभें जात ऩाॊत की गणना नह भानी गई है। जजसके रृदम भें जगद श्िय सभामे हुमे है। िह स्िऩन भें बी ऩयामा रृदम नह ॊ सताती है।

चौ0- पे्रभ ही ऩनु्म घणृा अघ याता । हतक धयभ भग नयक रखाता।।

जो पवधध होइ ननजातभ फाया । अवसय नय तन गमउ पवचाया।।4।।

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पे्रभ ह ऩनु्म है औय घणृा ह फडा ऩाऩ है औय हत्मा कयाने िारा धभव नयकों का भागव ददिाता है। जजसप्रकाय बी आत्भा का उद्धाय हो भानिदेह का अिसय विचाय कय उसे गहृण कयनी चादहमे।

दो0- “होयाभ” स्वमॊ ननज भीत नय स्वभेव अरय भहान। इस्न्रम सॊमभ सखु उऩजहहॊ अननग्रह पवऩद पवतान।।515।।

श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक भनषु्म स्िमॊ ह अऩना शभत्र है औय स्िमॊ ह अऩना ित्र ुहै औय इजन्रमों के सॊमभ से सिु उऩजता है तथा असॊमभ से विस्ततृ विऩदाऐॊ उत्ऩन्न होती है।

चौ0- पवनम अधभप की नास कयहहॊ । ऩयाक्रभयत अनथप न ऩयहहॊ।।

सदाचाय सफ कुरऺण खावा । ऺभा सवपदा क्रोध नसावा।।1।।

विनम अधभव का नास कयती है ऩयाक्रभी का कबी अनथव नह ॊ होता औय सदाचयण साये कुरऺणों को िा जाता है औय ऺभा सदा क्रोध का नास कयती है।

चौ0- इक धयभ गय दसूय घाती । नहीॊ धयभ सो अधभप उगाती।।

जीपवत सो जो मशस्वी ऻाना । नन ॊदावान जग भतृक सभाना।।2।।

एक धभव मदद दसूये धभव का घातक होिे तो िह धभव नह है। िह तो अधभव को उत्ऩन्न कयता है। जो व्मजतत मिस्िी है िह जीवित है औय ननॊदािान तो भतृक के सभान है।

चौ0- कामा ऺेत्र भन कृषक बायी । अघ ऩनु्म फीज मसयष्टी सायी।।

जो जस फोई तस पर ऩावा । कयभ जार सफ जीव भ्रभावा।।3।।

देह ऺेत्र है औय भन बाय कृषक है। औय ऩाऩ ऩनु्म फीज की मह साय सषृ्ट है। महाॊ जो जैसा फोता है िसैा ह पर ऩाता है। इस प्रकाय सबी जीि कभवजार भें बटक यहे हैं।

चौ0- क्रोध शास्न्त दयुजन सज्जनाई । कृऩणता भनत असत सच्चाई।।

काभ पववेक भढू चतयुाहीॊ । कयहु पवजम अन्म साधन नाहीॊ।।4।।

क्रोध को िाजन्त से, दषु्ट जन को सज्जनता से, कृऩणता को फवुद्ध से औय असत्म को सत्म स,े काभ को वििेक से ओय भढू को चतयुाई से विजम कये दसूया कोई साधन नह है।

दो0- धन पवयागी मशष्टतीम सऩुतु्र पवद्मा मश बाव।

मे षट सखु भन ुरोक भॉह फड ेबाग्म नय ऩाव।।516।।

धन ियैाग्म, उत्तभ ऩजत्न, उत्तभ ऩतु्र, विद्मा औय मिबाि से छ् सिु भानिरोक भें फड ेबाग्मिारा भानि ऩाता है।

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चौ0- ऺीय नीय सभ भीत ननयारा । यहहीॊ भीत सॊग आऩद कारा।।

सखुद कार दयुजन अपऩ भीता । भढू भीतस ुअरय सबुीता।।1।।

दधू औय जर के सभान ननयारा ह शभत्र आऩजत्त कार भें बी शभत्र के साथ यहता है। सभवृद्ध के सभम तो दजुवन बी शभत्र हो जाता है औय भिूव शभत्र से तो ित्र ुबी अच्छा है।

चौ0- ऩयोऺ हत ैसम्भखु पप्रमवादी । तजहु ताहह जनन ऺीय पवषादी।।

तजहु खरजुन मदपऩ पवद्वाना । ककभ न बमॊक नाग भणणभाना।।2।।

जो ऩयोऺ भें घातक औय सम्भिु वप्रमिाद है उसे दधू भें विष जैसा जानकय त्माग दो तथा दषु्ट व्मजतत मद्मवऩ विद्िान है तो बी त्माग दो तमोंकक तमा भखणिारा नाग बमॊकय नह ॊ होगा ?

चौ0- पवऩदहहॊ धीयज दमा सखु कारा । सदमस वाक्ऩटु ऩौरष मदु्धारा।।

मशहहॊ रूधच धभप ऻान स्नेहीॊ । ऩयभायथी सबुाव ुफयोहीॊ।।3।।

विऩजत्त भें धैमव, सिु भें दमा, सबा भें फोरने िारा (ितता) तथा मदु्ध के सभम ऩौरूष, मि ऩाने की रूधच, धभवऻान भें अनयुाग मे सफ ऩयभाथी ऩरुुष के स्िबाि भें फसत ेहै।

चौ0- सनु ुऻानी अन्तय कथ कयनी । सो नहहॊ साथ कृनत सफ बयनी।।

फक भयार फसहहॊ इक तारा । फक गहह भीन हॊस भनुतमारा।।4।।

ऻान सागय ! सनुो जजनकी कथनी औय कयनी भें अन्तय होता है िह साध-जन नह है उसे सफ कभव बयने ऩडत ेहैं। फगरुा औय हॊस मद्मवऩ एक ह सयोिय भें फसत ेहैं कपय बी फगरुा भच्छर औय हॊस भोनतमों को ह गहृण कयता है।

दो0- “होयाभ” जहॉ नहहॊ ननज पप्रम नहहॊ जीपव साधन कोम। मश धन पवद्मा सहामक नहहॊ शीघ्र ठाभ तज सोम।।517।।

श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक जहाॊ कोई अऩना प्रेभी न हो, कोई जीविका का साधन न हो औय मि धन विद्मा सहामक कोई न हो उस स्थान को िीध्र त्माग देना चादहमे।

चौ0- ऩयभ ऩनुनत गहृस्थाश्रभ जाना । ननज गहृ सवपदा तीथप सभाना।।

सॊग सबुारयमा गहृस्थ सखुायी । जेहह बफना गहृ वनतलु्म बायी।।1।।

गहृस्थाश्रभ ऩयभ ऩािन जाना गमा है। औय अऩना घय ह सदा तीथव के सभान होता है। औय मदद उत्तभ ऩजत्न सॊग हो तो गहृस्थ सिुदामी होती है जजसके बफना घय फहुत फड ेिन के सभान होता है।

चौ0- इकभत तषु्ट जहाॉ नय नायी । सखु सम्ऩस्त्त तहॉ टये न टायी।।

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अफरा स्जहह के गहृ दखु ऩावा । सो गहृ नास ननकटहहॊ आवा।।2।।

औय जहाॉ नय नाय (ऩनत ऩजत्न) एक भत सॊतषु्ट हों िहाॉ सिु सम्ऩनत टारे से बी नह टरती। औय जजसके घय भें अफरा (जस्त्रमाॊ) दिु बोगती है उसके घय का विनास आने िारा होता है।

चौ0- अथापतयु गरु भीत न कोई । काभातयु बम राज न होई।।

दरयरी सो जो तषृ्णा गाभी । धननक सोई सॊतोष सभाभी।।3।।

धनपे्रभी का कोई गरुु औय शभत्र नह ॊ होता औय काभातयु व्मजतत को कोई बम औय िभव नह ॊ होती। जजसके भन भें तषृ्णा है िह दरयर है औय धनी िह है जजसभें सॊतोष सभामा है।

चौ0- ननज अनकूुर चहॊहह तभु जैसा । कयहु अन्म सॊग सकृुत तसैा।।

जे कृनत तमु्हहहॊ पप्रम नहहॊ होई । दसूय सॊग न कयो कृनत सोई।।4।।

तभु अऩने अनकूुर जैसा चाहत ेहो िसैा ह दसूयों के शरमे कयो औय जो कभव तमु्हे वप्रम नह है िह कभव दसूयों के शरमे बी न कयो।

दो0- त्रतेा भें यावण फढमो द्वाऩय दैत्म कॊ स याम।

कमरमगु दैत्म दहेज है सफकी चैन नसाम।।518।।

त्रतेा मगु भें तो यािण फढा था औय द्िाऩय भें याजा कॊ स दैत्म हुआ था। इस कशरमगु भें तो दहेज दैत्म है जो सफका चैन नष्ट कय यहा है।

दो0- आग रधग सॊसाय भें जर जर भयती नारय।

अफरा सॊग अनथप व्माप्त चहुॉ हदमस हाहाकारय।।519।।

औय इस सॊसाय भें अजग्न रगी हुई है तमोंकक अफराऐॊ जर जर कय भय यह हैं। मह अफरा (जस्त्रमों) के शरमे अनथव पैर यहा है जजससे चायों ददिाओॊ भें हाहाकाय हो यह है।

दो0- दहेज आड जे दषु्ट जन अफरा देत हताम।

सो जन यौयव नयक ऩरय घौय असह्म दखु ऩाम।।520।।

दहेज की आड भें जो दषु्ट व्मजतत अफरा की हत्मा कय देत ेहै िे यौयि नकव भें ऩड कय असहनीम दिु बोगत ेहैं।

छ0- धनन होम दाता न होई सभथप फनन ऺभा न रावहहॊ।

नहहॊ दीनन दमा बखून बोज्म अनाथन दान न दावहहॊ।।

न ऻाननन बाव न पप्रम बाषी कुकभपयत अहभ सभावहहॊ।।

“होयाभदेव” बपुवबाय फनन सो घौय नयक गनत ऩावहहॊ।।41।।

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जो धनी होकय दाता नह ॊ होता, सभथव होकय ऺभा बाि नह राता औय न द न ह नों ऩय दमा यिता है ; बिूों को बोजन नह ; अनाथों को दान प्रदान नह ॊ कयता औय विद्िानों का आदय नह ॊ कयता, न वप्रम फोरने िारा है औय कुकभव कयता हुआ अहॊकाय भें सभामा यहता है श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक िह व्मजतत ऩथृ्िी ऩय बाय फनकय घोय नकव मातना प्रातत कयता है।

चौ0- वनखॊड फीच पवटऩ सॊघ फाड ै। वाताघात यनछत सफ ुठाड।ै।

तणृ सभहू फयषा सफ ुयोका । इकत्व अखॊड तॊह नहहॊ रयऩ ुभौका।।1।।

मद्मवऩ िन िॊड भें िृऺ ों का सभहू फढ जाता है कपय बी तपूान के आघात से सबी िृऺ सयुक्षऺत िड ेयहत ेहै। औय नतनकों का सभहू बाय फयसात को योक रेता है। इसी प्रकाय जहाॊ अिॊड एकता होती है िहाॊ ित्र ुको अिसय नह शभरता।

चौ0- नारय चरयत अरू बाग्म भनजु को । जानत नाहीॊ देव दनजु को।।

गयफ न यखु धन जन मौवन की । ननभेषहहॊ खाज्मा कार सफन की।।2।।

नारय के चरयत्र औय भनषु्म के बाग्म को सयु असयु बी नह ॊ जानत।े धन फॊधुजन ओय मौिन का गिव न कयो तमोंकक कार सफको ननभेष भात्र भे ह अऩना िाज्मा फना रेता है।

चौ0- ननमशहदन मभऩयु जावहहॊ जीवा । अचयज शषे चहॉ जीम ुकीवा।।

सफ पवधध कार बम बफसयाई । बमऊ ऩाऩ यत नाभ तजाई।।3।।

ननशिददन प्राणी मभरोक जा यहे है। आश्चमव मह है कक िषे जन जीने की चाह कयत ेहै औय कार का सफ तयह से बम बरू कय हरय नाभ त्माग कय ऩाऩों भें शरतत यहत ेहैं।

चौ0- नारय भाॊहीॊ मसम कय फासा । ऩरुषहहॊ होम याभ सभासा।।

तद जग पवऩद नहहॊ कहॊ काऊॊ । जगद जीवन की नीनत सनुाऊॊ ।।4।।

मदद नारय भें सीता का फासा हो औय ऩरुुष भें याभ सभामे हों तो कपय ककसी को कह ॊ बी दनुनमा भें विऩजत्त न होगी भैं जग भें जीने की मह नीनत सनुाता हूॉ।

दो0- पवशार जरधध सेत ुफॊध रॊक जरय यावन नास।

सो सफ बा सत्म धयभ पर आतभफर प्रमास।।521।।

वििार सभनु्र भें सेत ुफाॊधना रॊका का जराना औय यािण का सिवनाि मह सफ याभ के आत्भफर का प्रमास था औय उनके सत्म धभव का पर था।

चौ0- धन्म सयुत जो नाभ आधाया । अन्तरय मसमभट गहहहॊ सचधाया।।

सनु ुऻानी मह भभ उऩदेसा । शब्दधाय गहह जाउ ननज देसा।।1।।

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िे सयुत धन्म है जो सत्मनाभ के आधाय ऩय है औय अन्त् घट भें शसशभट कय सच्च धाया को गहृण कयती है। ऻान सागय ! भेया मह उऩदेि सनुो कक िब्द धाय ऩकड कय ननज देस जाओ।

चौ0- जफ रधग सयुत सतनाभ न बावा । तफ रधग कयभ काॊड बयभावा।।

जफ रधग खुरे न अन्तरय नमना । ज्मोत न प्रगट कार छर शमना।।2।।

सयुनत को जफ तक सत्म नाभ (अभयिब्द) नह अच्छा रगता तबी तक कभवकाॊड भें बटकती है। औय जफ तक अन्तय की आॊि न िुरे तफ तक ज्मोनत प्रकट नह होती औय उसका कार के छर भें ह विश्राभ है।

चौ0- खॊड ब्रह्भाण्ड रोक रोकान्तय । ब्रह्भ ऩायब्रह्भ सफ घट अॊतय।।

ऩायख सतगरु की शयनाई । सकर बेद भायग खुमर जाई।।3।।

िॊड ब्रह्भाण्ड रोक रोकान्तय ब्रह्भ ऩाय-ब्रह्भ सफ घट बीतय ह है। ककसी ऩायिी (तत्िदिी) सदगरुु की ियण भें इस भागव का साया बेद िुर जाता है।

चौ0- ननैन ऩाछर ऩट धरय कारा । भ्रभ डारय सफ ुफाहहय ननकारा।।

फाहय सयुत नऊ दय उरूझाई । दसभ द्वाय भग फॊद कयाई।।4।।

कार ने आॊिो के ऩीछे ऩयदा रगा यिा है औय सफको भ्रभ डारकय िाह्मभिुी कय ददमा है। औय सयुनत को िाह्म नौ द्िायों भें उरझा कय दसिेंद्िाय का यास्ता फॊद कया ददमा है।

दो0- “होयाभ” कहे ऻानी सनुो कयहु चऊथ ऩद ध्मान। ज्मोनत ज्मोत भेरा तहाॊ बफन्द ुभें मस ॊन्धु मभरान।।522।।

श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक ऻानसागय सनुों तभु चौथे सचिॊड धाभ का ध्मान कयो िहाॊ ज्मोनत ज्मोत का भेरा होता है इस फनू्द (आत्भा) को उरट धाया ऩय ऩयभ ज्मोनत की ओय चढािे।

चौ0- सभथप न तीयथ व्रत मऻ दाना । कयहहॊ सयुत सचखॊड प्रस्थाना।।

ऩयभ तत्व दनुतऩथ सचनाभा । होहहॊ सयुत ऩाय कारनाभा।।1।।

तीथव व्रत मऻ दानादद सभथव नह ॊ है जो सयुनत को सचिॊड भें बेज दे। ऩयभतत्ि ज्मोनत ज्मोनत ऩथ औय सतनाभ द्िाया ह सयुनत कार नाभे से ऩाय हो ऩाती है।

चौ0- अऩनुो याभ जगत से न्माया । सफ पवधध कहन सनुन से ऩाया।।

ताही फर जर थर नब थाऩे । कार भहकार सऩत् सफ काॊऩे।।2।।

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अऩना याभ तो जगत से ह न्माया है औय सफ विधध कहने सनुने से ऩये है। उसी के फर से जर थर औय आकाि जस्थत है औय कार भहाकार तथा सतु् सबी काॊऩत ेहैं।

चौ0- देपव देव बव धनन अवताया । ताही फर सफ जगद सॊवाया।।

अनन्त ब्रह्भाण्ड यपव शशी धायक । सवापधाय सो जग उद्धायक।।3।।

देिी देिता जगदधनी अिताय सफ उसी के फर से सॊसाय को सम्बारत ेहै। अनन्त ब्रह्भाण्डों समूो तथा चन्रभाओॊ को धायण कयने िारा िह सिवधाय औय जगत का उद्धायक है।

प्रवचनाॊश्- जो आत्भा एक फाय सातों िय यों के सोरह चक्रों का बेदन कय रेती है िह ऩयभानन्द भें सभा जाती है। िह ऩयभानॊद ऐसा है कक िह कपय आिागभन चक्र सिु दिु कारचक्र से छूट जाती है। मह उसका भोऺ है। मह सजृष्ट 36000 फाय फनती बफगडती है। इतने सभम तक उसका भोऺानॊद है कपय िह सॊसाय भें आती है मा ककसी ब्रह्भाण्ड ऩय बीड ऩडती है औय अत्माचाय फढता है तो ऐसी सचिॊडी आत्भा जोकक सत्मऩरुुष का अॊि होती है सॊसाय भें भहवषव तत्िदयसी के रूऩ भें मा सॊत मा अितायों के रूऩ भे आती है जो जीिों का उद्धाय कयती है। िह जग को एक नमा भागवदिवन कयती है। िह िब्दों का सह अथव फताती है औय जीिन की नई धाया िोरती है। इसशरमे ऐसा फनने के शरमे ऩयूा प्रमत्न कयत ेयहना चादहमे। जजसके शरमे प्रकट कर कयात ेहुमे सात देहों का छेदन बेदन कयके सचिॊड ऩहुॊचा देने िारे तत्िदयसी सदगरुु की िोज कयत ेयहना चादहमे। तत्िऻाता भानि केिर जानकाय देता है जफकक तत्िदयसी उसका साऺात्काय अथिा शभरन कयाता है। ऐसी विद्मा जहाॊ शभरे िहाॊ जाना ह फवुद्धभानी है; मदवऩ तत्िदयसी सॊत की िौज सयर नह है। ऻानसागय्- देिो तो दनुनमा बय के सॊत भहात्भाओॊ के बोजन कयने ऩय बी ऩाॊडिों की मऻ का घॊटा नह ॊ फजा था तमोकक अधधकतय साधु शिष्म को नाभ दान देत ेतो थे ऩयन्त ुजीिो को सचिॊड रे जाने भें असभथव थे। अधधकतय तो उनभें धगध शिमाय श्िान आदद िनृत के थे जो केिर सेिा रेत ेहै धन कभात ेहै औय भोऺ नह ददरात ेहै। श्िऩच सदुिवन ह सचिॊडी सॊत था जजसका बेषधाय तो अऩभान कयत ेथे। ऩयन्त ुउसी के बोजन कय रेने से सात फाय घॊटा फजा तमोंकक िह जीिों को सचिॊड रे जा यहे थे। फाकी सॊत तो अऩनी ह सेिा भें जीिों को अटकामे हुिे थे।

सत्मऩरुष उवाच्- हरययम्भा देि श्रुणु !

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(जफतक जीि कार की बजतत कयेगा सचिॊड नह ॊ जा सकेगा तमोंकक कार की बतती तो आिागभन भें यिती है औय सचिॊड की बतती भोऺ दामनी है। सतरोक भें सबी आत्भाऐॊ हॊस थी जो कारदेस भें कागा फन गई है। औय अफ इसी कायण से कारदेस भें कोई ऩनु् हॊस फन कय भेये रोक सचिॊड भें नह जा यह है तभु कार देस भें जाकय औय भझु अविनासी सतऩरुुष की बगनत उनके घट भें जगाकय भेये देस उन्हें राओ मह तमु्हे हभाय आऻा है)।

चौ0- सात ऩयत स्जन्ह पौरयउ कामा । ऩाइ बेद सफ अकथ सभामा।।

सो सफ धाभ हौं नमन ननहायी । तद तभु सभ फहु सॊत उफायी।।4।।

जजसने सात ऩतव िय य की पौड र है िह साया बेद ऩाकय अकथ ऩयभेश्िय भें सभा गमा है। िह सफ धाभ भैंने अऩनी आॊिो से देिे हैं। तफ तमु्हाये सभान फहुत साये सॊतो का उद्धाय ककमा।

दो0- ननवापण ऩधथक को चाहहमे कये अगभ की ध्मान।

गरु कृऩा सऩुात्र फनन सीभाकार तजान।।523।।

ननिावण मात्री को चादहमे कक िह अगम्म ऩरुुष का ह ध्मान कये औय सदगरुु कृऩा से सऩुात्र फन कय कार देस की सीभा को त्माग दे।

दो0- ननत्म कये जो ध्मानऩठन अभयकथा पवऻान।

ब्रह्भमात्री ऩयभहॊस सो ब्रह्भरम ब्रह्भ ऩयामन।।524।।

जो ननत्म इस अभयकथा विऻान का ऩाठ औय तदानसुाय ध्मान कयेगा िह ब्रह्भ मात्री ऩयभहॊस ब्रह्भ भें रम होकय ब्रह्भ के ऩयामन हो जामेगा।

दो0- नाना शास्त्र नहहॊ ऩहठ अभय कथा ऩठ एक।

कार टयै सतऩथ खुर ैअभयऩद फस्ल्र टेक।।525।।

बरे ह अनेको िास्त्र न ऩढे जामें ; फस मह एक अभयकथा को ऩढरे तो ननजश्चत ह कार टरेगा औय सत्मभागव िुर जामेगा। औय अभयरोक भें फजल्र दटक जामेगी।

चौ0- ननज सतगरु भैं ऩयभ आबायी । करूॊ प्रणाभ भो ऩनतत उफायी।।

कार सों छीन्ही सयुनत डौयी । गगन चढाम अगभऩद जौयी।।1।।

भैं अऩने सदगरुु देि का ऩयभ आबाय हूॉ अऩने ऩनतत उद्धायक को भैं प्रणाभ कयता हूॉ उन्होने भेय सयुनत की डौय कार से छीन कय आकाि भागव भें चढाकय अगम्म ऩद भें जोड द ।

चौ0- कामा गोऩ बॊडाय रखामा । करय ककयऩा ब्रह्भधाभ ऩठामा।।

अन्तरयऩॊथ देणख ननज आखीॊ । अनाभी आमस ुसफ तत्व बाखीॊ।।2।।

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औय िय य भें ह गतुत बॊडाय ददिामे तथा कृऩा कयके ब्रह्भधाभ (अनाभी) रोक ऩहुॊचामा है। भैंने आन्तरयक भागव अऩनी आॉिों से देिकय अनाभीश्िय की आऻा से मह सफ अभयकथा तत्ि फिान ककमा है।

चौ0- भनतभन्द स्वमॊ कय यॊक ही जानी । मदपऩ देह छुपऩ यतन भहानी।।

ऩयभधनन जो नय तन ऩावा । बफना बेद दारयर कहावा।।3।।

भढू जन अऩने आऩ को दरयर जानत ेहैं मद्मवऩ उनकी देह भें ह भहान यतन बये हुमे है। जजसने भानिदेह ऩा र है िह ऩयभधनी है फस कामा की बेद न होने से िह दरयर कहराता है।

चौ0- बफन ुबेदी भ्रभ कोट न टूटै । यतनकोष ऩयदा नहहॊ पूटै।।

देहऩरुय कुॊ जी सदगरु ऩासा । नतन्ह ऩदकॊ ज नभऊ पवश्वासा।।4।।

औय भ्रभकोट कबी बफना बेद नह ॊ टूटता औय न यतन बॊडाय का ऩयदा ह पूटता है। कामा नगय की सफ कुॊ जी (चाफी) सदगरुु के ऩास होती है इसशरमे उनके श्री चयण कभरों भें विश्िास ऩिूवक नभन कयो।

दो0- गरु गरु तात तात नहहॊ ; नहीॊ ऩनत नहीॊ देव।

“होयाभ” स्वजन स्वजन नहहॊ गय नहहॊ बवजर खेव।।526।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक िह गरुु कोई गरुु नह , िह तात बी तात नह ; ऩनत ऩनत नह ॊ औय िह देिता देिता नह है औय िह स्िजन स्िजन नह जो उस अऩने शभत्र की बिसागय से नइमा न िेिे।

चौ0- अफ तभु सनुहु पप्रम ऻानसागय । तभु सन करूॊ सत्म ऻान उजागय।।

सत्मऩरुष की देनन सॊदेषा । आमऊ हभ जग जीव हहतषेा।।1।।

वप्रम ऻानसागय ! अफ तभु मह सनुो ! कक भैं तमु्हाये सभऺ सत्मऻान प्रगट कयता हूॉ। सत्मऩरुुष अनाभीश्िय का सॊदेिा देने के शरमे हभ जगत जीिों के दहत के शरमे आमे है।

चौ0- सत्मरोक सत्मऩरुष साम्राजा । जॊहवाॊ जगत कार फर राजा।।

मभ छर ऩायख भनत ऩहहचानो । सत्मऩरुष बगनत हहम ठानो।।2।।

सत्मरोक भें सत्मऩरुुष का साम्राज्म है जहाॊ ऩय कार जगत का फर रजज्जत है। तभु ऩयि फवुद्ध से मभ छर को ऩदहचानो औय सत्मऩरुुष की बगनत रृदम भें धायण कयो।

चौ0- नातय कार ननशॊक खा जाई । अन्तकार जीव ऩनछताई।।

हभयी फचन हहम कय ठानो । सयुत शब्द ननयत गनत जानो।।3।।

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नह ॊ तो ननसॊदेह कार िा जामेगा इसशरमे ह अन्त सभम भें जीि ऩछताता है। हभाये उऩदेि फचन को रृदम भें धायण कयो औय िब्द तथा ननयत प्रकक्रमा को जान रो।

चौ0- जफ रग सचखॊड होइ न डयेा । स्वऩनउ नाहीॊ कार ननफेया।।

छूटत नाहीॊ राख चयासी । मदपऩ सकृुत कार ही ग्रासी।।4।।

जफ तक सचिॊड भें फासा नह ॊ होता तफ तक स्िऩन भें बी कार से छुटकाया नह ॊ होता। औय राि चौयासी (आिागभन) नह ॊ छूटता मदवऩ सकृुत बी है तो बी सफ कार का ह ग्रास फनत ेहै।

दो0- काभ क्रोध भद रोब भोह अऻानन ऩॊच पवकाय।

कार प्रसाय नास ैनहहॊ जकडौ सफ सॊसाय।।527।।

काभ क्रोध रोब भोह अहॊकाय मे ऩाॊच विकाय अऻान के है इन्होने सॊसाय को जकड यिा है इनसे कबी बी कार का जार नष्ट नह ॊ होता।

चौ0- अनतसजृ सयुग नयक की काभा । साध्म अनाभी रक्ष्म मसधाभा।।

साय शब्द जफ ऩयगट होई । डयऩहहॊ मभ यह बम नहहॊ कोई।।1।।

इसशरमे सयुग नयक की ईच्छाऐॊ त्मागकय अनाभी ऩद साध्मकय उसी रक्ष्म की ओय गभन कये औय जफ साय िब्द (अभय िब्द) प्रकट हो जाता है तफ उससे मभयाज बी डयता है उसे बम नह ॊ यहता।

चौ0- नाभ अभय अभी स्जन्ह ऩीफा । पवष ऩीमत अभरयत कय रीफा।।

आहद नाभ सत्म अभय पवचाया । कयहु गभन सचखॊड सत्मद्वाया।।2।।

अभयनाभ का अभतृ जजसने ऩी शरमा है उसने विष ऩीकय बी अभतृ फना शरमा है। इसशरमे आदद नाभ के सत्म औय अभतृा को विचाय कय सचिॊड भें सत्मद्िाय के शरमे मात्रा कयनी चादहमे।

चौ0- ओहॊ सोहॊ मभथ्मा जाऩा । छूटत भगहहॊ न टरय मभ ताऩा।।

गरु ऩायखी हहम भॊहू फासा । सो नहह ऩये कार की पाॊसा।।3।।

ओहॊ सोहॊ का बी शभथ्मा जाऩ है तमोंकक मे सफ भागव भें ह छूट जात ेहैं औय इनकी यटन भात्र से मभ का ताऩ नह कटता। जफ ऩायिी (तत्िदिी) सद्गरुु का रृदम भें ननिास हो जाता है तफ िह ऩरुुष कार की पाॊस भें नह धगयता।

चौ0- आहद नाभ हभ तभुको दीन्ही । सयुत गभन अकह ऩद कीन्ही।।

जे जन भानहहॊ सेंध हभायी । दीमऊ ऩठाम सचखॊड अटायी।।4।।

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हभने तमु्हे आदद अभयनाभ प्रदान ककमा है औय तमु्हाय सयुनत मात्रा अकह ऩद भें कय द है। जो व्मजतत हभाय सेंध भानता है हभने उसी को सचिॊड की अटारयमों ऩय बेज ददमा है।

दो0- तऩ दान गमा गॊग तीथप कल्ऩ कौहट काशीवास।

ऺणाथप अभय शब्द सनेु नान्म पर सभयास।।528।।

तऩ दान गमा गॊगा तथा तीथव औय कौदट कल्ऩबय कािी भें ननिास कयने ऩय बी आधी ऺण के अभयिब्द सनुने के फयाफय परदामी कोई दसूया नह है।

दो0- कहत “होयाभ” सागय सनुो अभयशब्द सत्मसाय। जॊह तॊह प्रगट कीजे नहहॊ तभुको फॊध हभाय।।529।।

श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक ऻानसागय सनुो ! मह आदद सत्मसाय अभयनाभ जहाॊ तहाॊ प्रगट नह ॊ कयना मह तभुको हभाय िौगॊध है।

दो0- ऻान सॊग सक्सेना प्रबा ईन्र सनुो धचत्तराम।

अभयशब्द गहु्म यहे फाहय कदा न जाम।।530।।

ऻान सागय के साथ अिनीि देि, चॊरप्रबा औय ईन्र सहाम ध्मान देकय सनुो मह अभयिब्द िस्त ुगहु्म ह यहे फाहय कबी न जामे।

चौ0- स्जहह भभ फचन अटर पवश्वासा । ऩावहहॊ सो ऩयभतत्व प्रकासा।।

हौं स्नेह तभु सयुनत गहह रान्ही । सहज सभाधध सअुवस्था दीन्ही।।1।।

जजसको भेये िचनों ऩय अटर विश्िास है िह इस ऩयभतत्ि प्रकाि को प्रातत कयेगा। भैंने स्नेह िश्म तमु्हाय सयुनत गहृण की है इसशरमे सहज सभाधध की मह उत्तभ अिस्था प्रदान की है।

चौ0- ननश्काभ बाव कयभ सफ भोये । कयभ मरऩाम गनत नहहॊ घोये।।

आत्भस्वरूऩ पवचयहुॊ जग भाहीॊ । चुन चुन जीव सचखॊड ऩठाहीॊ।।2।।

भेये सबी कभव ननश्काभ बाि के हैं। भझुे कभो भें शरऩामभान गनत नदह फाॊधती। भैं आत्भस्िरूऩ से सॊसाय भें विचयण कयता हूॉ औय चुन चुन कय जीिों को सचिॊड बेजता हूॉ।

चौ0- भाभ प्रकृनत भाभ आधीना । सवपबाव जगासस्क्त पवहीना।।

जनभ भयण सखु दखु भभ नाहीॊ । अगम्म काज कारकऩरुय आहीॊ।।3।।

भेय प्रकृनत भेये आधीन है भैं सिवबािों से सॊसाय की आसजतत से यदहत हूॉ भेया कोई सिु दिु जन्भ औय भयण नह है। अगम्म ऩरुुष आददश्िय के कामव के शरमे कारदेस भें आता हूॉ।

चौ0- देह कार के देस हभायी । आत्भ फासा अगभ अटायी।।

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तदपऩ कारदेस प्रवेशा । ऩरुष अनामभ कहूॉ सॊदेशा।।4।।

भेय कार के देस भे केिर देह है औय आत्भा अगम्म रोक की अटारयमों ऩय यहती है। कपय बी भैं कारदेस भें प्रविष्ठ हुआ अनाभीश्िय का सॊदेि देता हूॉ।

दो0- सत्मधाभ सॊदेश करूॊ सयुनत गभन सत्मधाभ।

जे पवधध जीव ननजऩद गहे ताभॊह यत “होयाभ”।।531।।

श्री होयाभदेि जी कहत ेहै कक भैं सयुनत को सत्मधाभ जाने का सॊदेि देता हूॉ। भैं जजस प्रकाय बी जीिात्भाऐॊ अऩना देस गहृण कये उसी भें रगा यहता हूॉ।

दो0- “होयाभदेव” ऐसे फनो जैसे भेघ अथाम।। स्वमॊ नीय खाया पऩमे जग भीठा फयसाम।।532।।

श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक ऐसे फनो जैसे कक फादर अथाह होत ेहै िे सफ स्िमॊ तो सागय से िाया ऩानी ऩीत ेहै ऩयन्त ुसॊसाय को भीठा कयके फयसात ेहैं।

छ0- गरु फचन ननशॊक सत्म रख फनन कीट भानन बृॊगभनत को।

भतृक फनन पवचयइ जग भाहीॊ ऩयख ऩायणख सनै गनत को।।

जनन धया गणुागणु सभयसे कोउ चॊदन भर कृषी कयहीॊ।

“होयाभदेव” अस सॊत पववेकी मह अभयकथातत्व अनसुयहीॊ।।42।। सदगरुु के उऩदेिो को ननिॊक सत्म ननहायो औय कीट फनकय बृॊग की गनत को भानो। तथा जग भें भतृक होकय विचयण कयो तथा ऩायिी गरुु की सनै कक्रमा की ऩयि कयो। जैसे धयती गणु अिगणु भें सभयस है बरे ह कोई उस ऩय चॊदन कये मा विष्ठा कये मा कृषी कये। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक उसी प्रकाय कोई वििेकी सॊत इस अभयकथा अभतृ को ऩाता है।

छ0- घट भाहीॊ अभतृ स्रोत फहह जहॉ प्रगट अभय कथा बफन ुफानी।

बफन ुकणप सनेु श्रवृनन ऩरयहैं बत्रखॊड जतन राधग नहीॊ आनी।।

नाद अनहद ऩाय नन्शब्दऩरुय तरुयमातीतभातीत धथनत जानी।।

“होयाभदेव” अभयकथा शब्द प्रगट तहॉ सत्मसाय हौं कधथऊ फखानी।।43।। घट भें ह अभतृ का स्रोत फहता है औय घट भें ह बफना िाणी अभय कथा प्रगट हो यह है। कानों के बफना सनुो तो िह सनुाई ऩडगेी। िह बत्ररोकी भें तो प्रमत्न कयने से बी नह ॊ आती। नाद औय अनहद से ऩये ननिब्द स्थान है उसके फाद कपय तरुयमातीतभातीत अिस्था जानी गई है। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक िहाॊ अभयकथा प्रगट है मह सत्म बेद भैंने रेिनीफद्ध कयके िणवन कय ददमा है।

दो0- अनत सऩुात्र पप्रम जानन के अभयकथा कय बेद।

तव घट प्रगट कीन्ही हौं जाही न जानत वेद।।533।।

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ऩयभ सऩुात्र औय वप्रम जानकय अभयकथा का मह बेद (यहस्म) भैंने तमु्हाये घट बीतय भें प्रगट कय ददमा है जजसको की िेद बी नह ॊ जानत े(अथावत चायों िेदों भें इसे नह शरिा गमा)।

चौ0- अभयकथा मह अभरयत फानी । गमऊ भोऺ धाभ स्जन जानी।।

अष्टभी कृष्ण श्रावण पाग भासा । कयहु ऩाठ श्रदृ्धा पवश्वासा।।1।।

मह अभयकथा अभतृिाणी है जजसने इसे जान शरमा है िह भोऺ को चरा गमा। श्रािण तथा पारगनु भास के कृष्ण ऩऺ की अष्टभी से सश्रद्धा औय विश्िास से इसका ऩाठ कयना चादहमे।

चौ0- प्रथभ आसन धथय करय रीजै । सदगरु ईष्ट सन पवनती कीजै।।

घऩू दीऩ ऩजूा अनसुरयअ । ब्रह्भ चामरसा ऩाठ ननत करयअ।।2।।।

सफसे ऩहरे अऩना आसन जस्थत कये कपय अऩने सदगरुुदेि औय ईष्ट की विनम स्तनुत कये तथा घऩू द ऩ से ऩजूा का अनसुयण कये। कपय ब्रह्भचाशरसा का ननत्म ऩाठ कये।

चौ0- ऩनुन मह अभतृ्व काव्म भहाना । ऩजून कीजै ननयगणु ध्माना।।

एहह पवधध सात हदवस करय जोई । हदवस अभावस सम्ऩन्न होई।।3।।

इसके फाद इस भहान अभतृ्ि काव्म की ननगुवण ब्रह्भ ध्मान से ऩजून कये। इसी विधध ऩिूवक सात ददन जो इसका ऩाठ कये उसका अभािस्मा के ददन सभाऩन होता है।

चौ0- तहेहॊ हदवस ब्रह्भ बोज्म रगावे । दीनन बखून्ह बोज्म स्जभावे।।

एहह पवधध जो मह करयहैं ऩाठा । सो मशव ऻान भोऺ भग साठा।।4।।

उसी ददन एक बॊडाया रगािे जजसभें द न ह न तथा बिूों को बोजन खिरािे। इस प्रकाय जो मह ऩाठ कयेगा िह शिि ऻान से अऩनी भोऺ का यास्ता िोर रेगा।

सॊत होयाभदेव उवाच्-

गरुू अथिा शििभनूत व के सभऺ फठैकय इसके ऩाठ को कृष्णऩऺ की सततभी भात्र श्रािण औय पाल्गनु भास भें प्रायम्ब कयके अभािस्मा को ऩाठ ऩणूव कय रेना चादहमे इसी फीच ननयन्तय प्रनतददन व्रत यिकय ऩाठ कयना है। जफ प्रनतददन ऩाठ कये तफ एक रौटे भें जर बयकय यिो। उसभें एक भारा प्रनतददन डारकय ऊॉ नभ शििाम अथिा सत्मऩरुूष अकाराम नभ का जाऩ कये। ऩाठ से जफ उठे तो प्रनतददन रौटे के जर के तीन बाग कटोरयमों भें अरग अरग कयरें। ऩहरा बाग शििभनूत व ऩय चढामें दसूया बाग जर ऩाठक स्िमॊ ऩी रें तथा तीसया बाग सभस्त घय भें अथिा योगी के ऊऩय नछडक देना चादहमे। कपय अभािस्मा को गाम के दधू की िीय

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तथा ऩडूी आदद का गरुू अथिा शिि को बोग रगामें। इसके फाद 11 ब्राह्भण जो ऋवष सॊत साधु हों को अथिा 11 अनाथ जनों को अथिा 11 गामों को बोजन खिरामें तफ मह अनषु्ठान सभऩन्न होगा। इस अभयकथा के अनषु्ठान से –

दो0- अकारभतृ्म ुकारसऩप पऩत ृशास्न्त शनन मोग। अभयकथा के ऩाठ से टयै पवघन दखु योग।।534।।

अकारभतृ्म ुकारसऩवमोग वऩतिृाजन्त तथा गहृ िननदेि के मोग का प्रकोऩ तथा दिु योग (उसकी साढे साती मोग अथिा ढइमा मोग) का प्रकोऩ तथा दिु योग औय कोई ऋण दारयरता आदद का विघन इस अभयकथा भहाकाव्म के विधधऩिूवक ऩाठ कयने से टर जाता है।

दो0- मोग ऺेभ की प्रास्प्त फाढे ध्मान पवऻान। रोक ऩयरोक फाधा टयै मभरे ऩदी ननयवान।।535।।

तथा इस से मोग औय ऺेभ दोनो की प्राजतत होती है। साधक का ध्मान विऻान फढता है तथा रोक ऩयरोक (मभचक्र, आिागभन) की फाधा सभातत होकय ननिावण (भोऺ) ऩद प्रातत होता है। (इस ऩाठ को ऩीडडत जन स्िमॊ कये। ऩाठ के साथ साथ प्रनतददन व्रत यिना अननिामव है। ऩाठ के फाद प्रात दोऩहय तथा सामॊकार भें एक एक भारा इस भॊत्र की अिश्म कयनी होगी।

ऊॉ ऩयभतत्ि सत्मऩरुूष विधभहे अकाराम धीभदहॊ तन्नो ऩयब्रह्भ प्रचोदमात।।

अथिा ऩयभतत्ि सत्मऩरुूष अकार हॊ सो सो हॊ गरुूि ैनभ्।।

मह भजुततदानमनी ऻान विऻान मतुत अभयकथा भैंने तमु्हे मथाित सनुाद है। विधधित प्रमोग भें राना होगा।

दो0- मशव मभराऩ बगती कये गरु सभऩपण हीन।

“होयाभदेव” ननगयुा कपये यत तऩसा ऩनु्न ऺीन।।536।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक जो व्मजतत शिि प्राजतत के शरमे बजतत तो कयता है ऩयन्त ुगरुु भें सभऩवण नह ॊ यिता है िह जगत भें ननगयुा ह कपयता है सऩस्मा भें र न यहकय बी उसके साये ऩनु्म नष्ट ह हो जात ेहैं।

दो0- औधें घट जर नहहॊ बये केनतक कये उऩाम।

“होयाभ” फदरयमा याभ की ननत ननत फयसत आम।।537।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक कबी बी औॊधे घड ेभें जर नह ॊ बयता चाहे ककतना ह उऩाम ककमे जामें। ऩयभेश्िय की फदरयमा तो ननत ननत ह आकय फयसती है।

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दो0- श्रद्धा सभऩपण प्रेभयस सतसॊग रगन पवश्वास।

“होयाभ” एहह सषृ्टी बफना ऻानी गमे उदास।।538।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक श्रद्धा सभऩवण प्रेभयस सतसॊग रग्न औय विश्िास इन छ् की भन भें सजृष्ट ककमे बफना विद्िान जन बी उदास ह चरे गमे।

दो0- घन फयसत अनतकय घना पर ैन सखूी फेत।

“होयाभ” पवयॊधच गरु मभर ैकभपहीन नहीॊ चेत।।539।। मदवऩ फादर ककतना बी अधधकाधधक फयसता यहे तो बी सिूी फेंत कबी बी पूरती परती नह ॊ। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक उसी प्रकाय चाहे ब्रह्भा जी ह ककसी को सदगरुु शभर जामे तो बी कभवह न को चेत नह ॊ ऩडती।

दो0- फाहय गहह बीतय रहह, सहाम न ऻान चुयाम।

बीतय उहदत फाहहय प्रगट ननस्ज ऻान भकु्ताम।।540।।

जो ऻान फाहय (धभवग्रन्थो से ऩढकय यट कयने) से बीतय शरमा है िह चोय का ऻान कबी सहामक नह ॊ होता औय जो घट बीतय से उददत होकय फाहय प्रगट हुआ है िह ननजज ऻान ह भोऺ प्रदान कयता है।

दो0- सवपशस्क्त ब्रह्भाण्ड की कत्ताप यधचऊ शयीय।

“होयाभ” खुपव मा गहह चर ैननयबय तों ऩॉह कीय।।541।। ऩयभेश्िय आददकताव ने स्िमॊ सभस्त ब्रह्भाण्ड की सिविजततमाॉ इस िय य भें यच द हैं। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक उन्हे िोता चर मा ऩाता चर, मह तझु ऩय ह ननबवय कयता है।

दो0- “होयाभदेव” कभपस ुमभमर मशामश सखुदखु भरू। कभप फस फाॊटत प्राकृनत कहीॊ पूर कहीॊ शरू।।542।।

श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक सिु दिु मि तथा अऩमि का भरू कभावनसुाय शभरता है जजसे प्रकृनत कभो के आधाय ऩय कह ॊ पूर तो कह ॊ िरू फाॊटती हैं।

दो0- जेहहॊ सभुोऺ उऩरब्ध बा तेंहहॊ न कीन्ही खौज।

अतपृ्त तें तपृ्ती नहीॊ व्मथप गॊवाई औज।।543।।

जजनको ऩयभभोऺ ऩद उऩरब्ध हो गमा है उनकी ह िोज नह की गई। बरा अततृत भानि से तजृतत कहाॉ होती है िहाॊ तो व्मथव ह अऩनी औज (ऊजाव) नष्ट कयनी है।

दो0- कौहटन धयभशास्त्र ऩठे कौहटन देवन्ह ऩजू।

“होयाभदेव” आत्भ दयस बफन ुबफयथा जऩ तऩ झूज।।544।।

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श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक कौदट कौदट धभविास्त्रों को ऩढ रो, चाहे कौदट कौदट देिताओॊ की ऩजूा कय रो, आत्भ साऺात्काय के बफना जाऩ औय तऩस्मा भें झूजना व्मथव ह है।

दो0- ऩवूप कभाम खाम इह ; बफयथा यहहट प्रमास। “होयाभ” उधभ अमस ; कये बोग बोग नहहॊ नास।।545।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक इस ऩिूवजन्भ की कभाई इधय (दसूये जन्भ भें) िा र (तो िार हो गमे) मह यहट की फाजल्टमों की तयह व्मथव का प्रमास है। सदा ऐसी कभाई कयत ेचरो जजसको बोगत ेबोगत ेबी िह नष्ट नह ॊ होती।

दो0- “होयाभदेव” यपवभखु चर ैछामा ऩाछर पाफ।ु यपव बफभखु आगे फढै शीश चढे ऩग दाफ।ु।546।।

श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक मदद समूव की ओय भिु कयके चरें तो ऩयछामी ऩीछे ऩीछे पूरती चरती है औय मदद समूव की ओय ऩीछा कयके चरे तो ऩयछामी आगे आगे फढती जाती है औय मदद समूव शसय के ऊऩय हो तो ऩयछामी ऩयैो तरे दफ जाती है।

दो0- “होयाभ” सऩप सीहढ सदृश गरु बगनत मोग अथाम। फाढै से ऩौढी चढै घटे अहहभखु जाम।।547।।

श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक गरुु बजतत औय मोग साॉऩ औय सीढ के िेर के सभान अथाम है जो फढती जामे तो सीढ ऩय चढत ेजात ेहै औय घटने ऩय सऩव के भिु भें चरे जात ेहै। जजससे िह ॊ ऩय िाऩस आकय ऩडत ेहै जहाॊ से उठकय चरे थे।

दो0- अभयकथा सनुन ऩयभसॊत अवनीशदेव कै सॊग। सॊत सीभा फणूझफ प्रश्न भन रइ स्जऻास उभॊग।।548।।

अभयकथा को सनुकय ऩयभसॊत अिनीिदेि के साथ ऩयभसॊत सीभा ने भन भें जजऻासा औय उभॊग बयकय प्रश्न ऩछूा कक –

चौ0- सत्मऻान स्जस मशव भहादेवा । सभच्छ मशवानी कहह हयषवेा।। सो तव भखु सनुन पवस्ताया । देव चयन नमभ शीश हभाया।।1।।

सत्मऻान जजसे बगिान शिि भहादेि ने ऩािवती के सभऺ सहषव कहा था िह हभने तमु्हाये भिु से सविस्ताय सनुा है हे देि ! आऩके चयणों भें हभाया िीि झुकता है।

चौ0- अफ गरुदेव मह सॊशम हभायी । पवमबन्न धयभ पवमबन्न भत धायी।। कछु भत सत्म ऻान सॊउ दयूा । ऩग ऩग कयहहॊ हरय ननमभ बॊगयूा।।2।।

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अफ हे गरुुदेि ! हभाय मह िॊका यह गई कक अनेको धभो ने शबन्न शबन्न भनत को धायण कय शरमा है जजनभें कुछ धभव सत्म ऻान से फहुत दयू हो गमे हैं जो कदभ कदभ ऩय ईश्िय म ननमभ को बॊग कय यहे हैं।

चौ0- ननज भत यधचत जगद बयभाहीॊ । ईशहहॊ फहुय दोष उऩजाहीॊ।। कवन सत्म सो धयभ फतुाहु । जास ुजीव ननज सत्मऩथ ऩाहु।।3।।

िे अऩना भत यचकय जगत को भ्रशभत कयत ेहैं जजससे ईश्िय भें फहुत से दोष उत्ऩन्न कय यहे हैं। कौन सा सत्म है ? िह धभव फताओ जजससे जीि अऩना सच्चा भागव प्रातत कये।

चौ0- तफ हौं “होयाभदेव” उच्चायी । सनुहु ईश्वय ऻान पवस्तायी।। सकर जगत ईश ननयभाना । सवप हहताम तहहॊ धयभ प्रदाना।।4।।

तफ भझु होयाभदेि ने कहा कक तभु ईश्िय के धयभ को सविस्ताय सनुो। मह सम्ऩणूव ब्रह्भाण्ड ईश्िय का ननभावण है। ऩयभेश्िय ने उसभें सिवदहताम धभव प्रदान ककमा है।

दो0- स्वमॊ सत्मऩरुष अकार जे भोहह ध्मान फखानन।

सो तमु्ह सन तथावत कहुॊ तमु्ह सऩुात्र हौं जानन।।549।।

एक फाय स्िमॊ सत्मऩरुुष अकार ऩयभेश्िय (ननयाकाय ब्रह्भ ) ने सॊि जैसी ज्मोनत भें प्रगट होकय जो ध्मान भें भझुे फतामा था िह तत्िऻान तथाित तभुसे कहता हूॉ। भैं मह जानता हूॉ कक तभु सऩुात्र हो।

चौ0- अकार ऩरुष कहह भभ ध्माना । सनातन सॊस्कृनत सत्म भहाना।। भमा पवबनूत सॊत अवताया । नतष हहताम प्रगटहहॊ सॊसाया।।1।।

अकार ऩरुुष ऩणूव ब्रह्भ ऩयभेश्िय ने भेये ध्मान भें उतयकय कहा था कक सनातन सॊस्कृनत ह सत्म औय भहान है। भेय विबनूतमाॉ सॊत औय अिताय सभम सभम ऩय उसके दहताथव सॊसाय भें प्रगट होत ेयहत ेहैं।

चौ0- देंहहॊ सवुोच्म ऻान अखण्डा । याखहहॊ जीपवत अणखर ब्रह्भण्डा।। भभ स्थान धयभ उच्चाये । सनातन सॊस्कृनत धयभ प्रसाये।।2।।

िे अिण्ड सिोच्म ऻान को देत ेहैं औय उसे सम्ऩणूव ब्रह्भाण्ड भें जीवित यित ेहैं। औय भेये द्िाया यधचत धभव का फिैान कयत ेहैं तथा सनातन सॊस्कृनत के धभव का प्रसायण कयत ेहैं।

चौ0- ब्रह्भ वेद भभ प्रथभ ऻाना । समूप सन सो हरय फखाना।। दसूय सयुतवेद पवस्तायी । स्वमॊ मशवा सन मशव उच्चायी।।3।।

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भेया प्रथभ ऻान ब्रह्भिेद है जजसे श्रीभन्नायामण ने समूवदेि के सभऺ कहा था औय दसूय फाय सयुतिेद का विस्ताय हुआ जजसे स्िमॊ शिि ने ऩािवनत के सभऺ कहा था।

चौ0- सोई सॊस्कृनत ऻान हभाया । कमरऩनत ताऩॊह यचहहॊ कुठाया।। तद भन भनत जन धयभ अनेका । यचहहॊ स्वायथ ननज भद ठेका।।4।।

िह सनातन सॊस्कृनत ह हभाया ऻान है जजस ऩय कशरमगु भें कशरमगु अऩनी कुठाय की यचना कय देता है तफ फहुत से भानि भनभनत के धभव अऩने स्िाथव औय भद के अनफुॊध से यच देत ेहैं।

दो0- भानव ननयमभत भात्र भत नहहॊ धयभ छर जान।

सवप हहताम सो शधुचधयभ अनाहद कार पवतान।।550।।

भनषु्म द्िाया ननशभवत धभव तो भात्र भता है – िह धभव नह ॊ है उसे प्रऩॊच ह जानो जफकक िह ऩािन धभव है जो अनाददकार से विस्ततृ है औय सफ जीिों के दहतिारा है। इसीशरमे इसे सनातन सॊस्कृनत (धभव) कहा गमा है।

चौ0- ईशकृत सॊस्कृनत सनातन । भरू धयभ यधच सखुद सहुावन।। कमरकार भन भनत कै भानव । यचहहॊ स्वाथी स्वधभप अऩावन।।1।।

सनातन सॊस्कृनत ईश्ियकृत है जो सिुद, सहुािने , भरूधभव से यधचत है ऩयन्त ुकशरमगु भें भन भनत के भानि स्िाथी अऩना अऩािन ननजज धभव ननशभवत कय रेत ेहैं।

चौ0- फरात ्कयहहॊ नतहह पवस्ताया । ताऩय चरहहॊ कुठाय हभाया।। ईश कोऩ नतन्ह कुगनत होई । भऐु नायकीम ऩीया झोई।।2।।

िे फरऩिूवक कपय उसका विस्ताय कयत ेहैं तफ उनके ऊऩय हभाया (भझु ऩयभेश्िय का) कुठाय चरा कयता है। तफ उस ईश्िय म कहय से उनकी दगुवनत होती है औय भयने के फाद नयकों की ऩीडा बोगत ेहैं।

चौ0- कछु जन ऩनुन ऩनुन करय अऩयाधा । ईश सन योदत ऺभउ व्माधा।। ऩनुन सो अऩयाध करयअ नीॊवा । जानत ईश इकफाय छभीवा।।3।।

कुछ व्मजतत फाय फाय गनुाह कयता यहता है औय फाय फाय ईश्िय के सभऺ योता (तौफा कयता) है कक भेय गनुाहें ऺभा कय दो ऩयन्त ुफाय फाय गनुाह कयता जाता है औय ईश्िय सभऺ शसय झुकाता यहता है जफकक िह मह जानता है कक ईश्िय एक फाय ह गनुाह को ऺभा कयता है, फाय फाय नह ॊ कयता।

चौ0- बरू ऺभा कयहहॊ कयताया । गनुाह ऺम्म नहहॊ ननमभ हभाया।। जे करय ऩछताऩ ऩनु् नहहॊ वयहीॊ । नतहह अऩयाध ऺभा हभ कयहीॊ।।4।।

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ऩयभेश्िय कहत ेहैं कक भैं बरू को ऺभा कय देता हूॉ ऩयन्त ुअऩयाध को ऺभा नह ॊ कयता मह हभाया ननमभ है।

दो0- ईश सजग सफ ुजानहहॊ सहॊस्र नमनी ननहारय।

“होयाभदेव” सभथप सो ऩश्मत कृनत तमु्हारय।।551।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक ईश्िय सजग यहता है िह सफ कुछ जानता है औय हजायों नेत्रों से देिता यहता है। िह सभथविान है जो तमु्हाये सभस्त कभों को देिता है।

चौ0- सनुहु मशष्म तभु फचन हभाया । कहऊॉ सोइ जे ईश उच्चाया।। सो प्रब ुकहह भोहह सो बावा । जे वयैागी त्मागी सवप सखुदावा।।1।।

भेये शिष्मों (बततों) तभु हभाया िचन सनो ! भैं िह कहुॉगा जो भझुसे ईश्िय ने कहा था। िह ऩयभेश्िय कह यहे थे कक भझुे िह भानि अच्छा रगता है जो ियैागी औय त्मागी फनकय सफ को सिु देने िारा है। (त्माग को कुिावनी कहा गमा है जजसे सफ नह ॊ दे सकत)े।

चौ0- आसस्क्त हीन जन वेयागी । भभाथप त्मज सफ बोग सो त्मागी।। पप्रमानत पप्रम वस्त ुतज देहीॊ । भोयध्वज जनन सतु धचय सेहीॊ।।2।।

आसजतत यदहत भानि ह ियैागी होता है जो भेये शरमे सभस्त बोगों को त्माग देता है िह त्मागी कहराता है। िह वप्रम से वप्रम िस्त ुकी बी त्माग (कुफावनी) कय देता है जैसे कक याजा भोयध्िज ने अऩने ऩतु्र को बी धचय कय सेिा की थी।

चौ0- हौं हरयरूऩ ऩनुन जीवन डायी । नतहह सबुेंट भन भोहु हभायी।। याजा मशपव अॊग अॊग काटा । भीया हरयनाभ जऩत पवष चाटा।।3।।

भैंने हरयरूऩ भें उसभें ऩनु् जीिन सॊचाय ककमा तमोंकक उसकी इस बेंट (कुफावनी) ने हभाया भन भोह शरमा था। याजा शिवि ने अऩने िय य का अॊग अॊग काट ददमा था औय भीयाफाई ने हरयनाभ जऩत ेजऩत ेविष बी चाट शरमा था।

चौ0- हौं अस बेंट गहइ वाऩसाऊॉ । प्राण सॊचायहुॉ पवरम्फ न राऊॉ ।। पप्रम तजइ जे आनहहॊ बेंटा । सो नहहॊ गहहुॉ न प्राण सॊचेटा।।4।।

भैं ऐसी बेंट भात्र स्िीकाय कयके उसे िसैी ह िाऩस कय देता हूॉ। उसके प्राण रौटाने भें विरम्फ बी नह ॊ कयता औय जो कोई अऩनी वप्रम िस्त ुको (भोह के कायण) छौडकय उसकी जगह ककसी अन्म जीि की बेंट देता है उसे भैं कदावऩ ग्रहण नह ॊ कयता औय न भैं उसभें ऩनु् प्राण सॊचाशरत कयके उसे जीवित कयता हूॉ।

दो0- हौं सत्म अकार ऩयभेश्वय ; कब ुनहहॊ असनउॊ भाॊस।

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नहहॊ अस कृनत आमस ुभभ भमाॊश जीव भभ साॊस।।552।।

भैं अकार ऩयभेश्िय ननयाकाय ऩणूवब्रह्भ कबी बी न तो भाॊस िाता हूॉ औय न ऐसे कभव की आऻा देता हूॉ – तमोंकक प्रत्मेक जीि भेया ह अॊि (नयू) है, उनभे भेय ह साॊस चरती है। (अथावत जो ककसी जीि का िध कयता है िह भेया ह (नयू का) िध कयता है)।

चौ0- सनु ुहरययम्भा वचन हभायी । तभु सत्म ऻान जगद प्रसायी।। प्राकयनत ननमभ ऩरुटन शीरा । कायन एहह हौं याचऊॉ रीरा।।1।।

हे हरययम्भादेि हभाया िचन सनुो ! तभुने जगत भें सत्मऻान का प्रसायण ककमा है। मह प्रकृनत ऩरयितवनिीर है इसीशरमे भैं र रामें यचता हूॉ।

चौ0- भाभ ननमभ ननमनत ननमभावा । सभउ सभउ ऩरयवतपन रावा।। गय अस कब ुकयत नहहॊ सोई । जगद जीव नहहॊ यहहहॊ सखुोई।।2।।

भेये ननमभादेिो को प्रकृनत ह ननमशभत कयती है इसीशरमे मह सभम सभम अनसुाय ऩरयितवन ककमा कयती है। मदद िह ऐसा कबी बी नह ॊ कयती तो जगत के जीि सिुऩिूवक नह ॊ यह ऩात।े

चौ0- उष्णऋत ुवस्त्र न बामहहॊ जैसे । शयद न सम्बव यह कोऊ तसेै।। बफना सोड शयद नहहॊ जावा । उष्ण कार सो तन नहहॊ बावा।।3।।

गभी की ऋत ुभें जजस प्रकाय िस्त्र बी नह ॊ सहुाता उसी प्रकाय ियद की ऋत ुभें ककसी का बी बफना िस्त्र यहना सम्बि नह होता तमोंकक बफना यजाई िदी नह ॊ जाती औय िह यजाई गभीमों भें नह ॊ सहुाती।

चौ0- दषु्मऩथृा वेगइ ऩरुटन रावा । नातय जीवहहॊ सो दखुदावा।। सभमानकूुर ऩरयवतपन कीजै । भभ सॊदेश जगत मह दीजै।।4।।

कुऩथृाओॊ (फयु ऩयम्ऩयाओॊ) भें तयुन्त ऩरयितवन राना चादहमे अन्मथा िह जीिो के शरमे दिुदामी होती यहेगी। इसीशरमे सभम के अनसुाय ऩरयितवन कीजजमे। हभाया मह सॊदेि तभु सॊसाय को दे देना।

दो0- ऩवूपज जननत कुप्रथा गत फॊध्मो चरत जे कोम।

“होयाभदेव” ऩाभय सठ शबुाशबु ऩयख न जोम।।553।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक जो कोई बी व्मजतत अऩने ऩिूवजों के सभम की कुप्रथाओॊ से फॊधकय चरता है (कक उन्होने बी तो ऐसा ककमा था तो हभ बी िसैा ह कयेंगें) िह भनषु्म ऩाभय है औय धूतव है जो िबु अिबु की ऩयि नह ॊ कयता।

चौ0- अधभप ऩाऩ यत भ्रष्टाचायी । हौंहहॊ जगत सन सॊत ऩजुायी।। यक्त यॊस्जत कयहहॊ हरय ऩजूा । नतहह सभ नयक जीव नहहॊ दजूा।।1।।

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जो अधभी ऩाऩी भ्रष्टाचाय भें र न है तथा जगत के सभऺ सॊत औय ऩजुाय फना कपयता है औय अऩनी ईश्िय बजतत को यतत से यॊगता यहता है उसके सभान सॊसाय भें दसूया कोई नयक का जीि नह ॊ है।

चौ0- देत ननदोषहहॊ जे फड त्रासा । मभथ्मा साक्ष्म कय चरहहॊ उच्छासा।। कय स्वाथप ननयदोष पॊ दाहीॊ । ननश्चम ईश कोऩ सो ऩाहीॊ।।2।।

औय जो ननदोष प्राणी को फडा त्रास देता है अथिा शभथ्मा गिाह देकय उच्छर उच्छर कय चरता है औय अऩने स्िाथव के िशिबतू ननदोषों को पॊ सा देता है िह ननश्चम ह ईश्िय के कहय को बोगता है।

चौ0- ईश्वय आड ढोंग फहु कयहीॊ । स्वमॊ पवद ुफनन ऩय गनु छयहीॊ।। सो जन अधभ ईश्वय रोही । स्जहह भन घट घट याभ न हौंहीॊ।।3।।

औय जो ईश्िय के ओट भें ढोंग फहुत कयता है तथा अऩने को विद्िान फनता है ऩयन्त ुदसूयों के गणु को शभटाता है। िह व्मजतत नीच औय ईश्िय रोह होता है जजसके भन भें घट घट भें याभ नह ॊ होत।े

चौ0- सॊत अवताय जगद उद्धायी । भानव जानन जे हॊसाचायी।। भनहहॊ स्वाॊग यधच जे सन्मासी । प्रब ुसफ जानत ताऩॊह हाॊसी।।4।।

सॊतजन औय अिताय जगद उद्धायक होत ेहैं उनको जो भात्र भनषु्म सभझकय उनकी भजाक उडाने िारा है तथा भन भें ढोंग बयकय जो सन्मासी (ियैागी) फनता है, ऩयभेश्िय सफ जानत ेहैं इसशरमे उस ऩय हॊसत ेहैं।

दो0- गहृ तस्ज जे पवपऩन गत सो नहहॊ ऩाए सन्मास।

“होयाभदेव” गहृस्थी फयो वयैाग्म त्माग तऩ वास।।554।। जो व्मजतत गहृ को त्मागकय जॊगरो भें चरा जाता है िह िहाॉ बी सन्मास को प्रातत नह ॊ होता। सॊत होयाभदेि जी कहत ेहैं कक गहृस्थी फडा है अगय िहाॉ ियैाग्म त्माग औय तऩस्मा का ननिास हो।

दो0- ऩयतीम ऩयधन पवरासहहॊ ; कन्मा शीरहहॊ बॊग। “होयाभदेव” जगदीश्वय ; नहहॊ कृऩा नतहह सॊग।।555।। जो व्मजतत ऩयतीम औय ऩयधन का विरासी है औय जो कुआॊरय कन्मा का िीरबॊग कयता है श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं जगद श्िय की उनके साथ कृऩा नह ॊ यहती।

चौ0- जे नहहॊ नारयन्ह कयहहॊ उफाया । बोग भात्र रख कय नतयसकाया।। कहहहॊ ईश सो अभीत हभाया । भमा कोऩ तहेह नकप हहॊ डाया।।1।।

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औय जो व्मजतत स्त्री का उद्धाय नह ॊ कयता उसे भात्र बोग िस्त ुसभझकय उसका ननयादय कयता है, ऩयभेश्िय कहत ेहैं कक िह हभाया ित्र ुहोता है। हभाया क्रोध उसे नयकों भें डार देता है।

चौ0- सनुहु उऩासक धयभ सनातन । ननश्चम मभटहहॊजे आनन नसावन।। ईश सॊस्कृनत हनहहॊ उऩहासा । भ्रभत बयभाहीॊ बस्क्तहह नासा।।2।।

ऐ सनातन सॊस्कृनत के उऩासकों सनुो ! जो दसूयो को शभटाता है िह बी ननश्चम ह शभट जामेगा। औय जो ईश्ियकृत सनातन सॊस्कृनत का विनास औय उऩहास कयता है िह स्िमॊ भ्रशभत है औय दसूयों को बी भ्रशभत कयके अऩनी बजतत का नास कय रेता है।

चौ0- सो भभ घातक सॊस्कृनत रोहा । ऺभा न ऩाहहॊ हौं अनत कुऩोहा।। अस जन सठ भत ेऩगचायी । रानत ऩग ऩग ऩाए हभायी।।3।।

िह व्मजतत भेया ह घाती है जो भेय यधचत सनातन सॊस्कृनत का रोह है। िह ऺभा नह ऩाता तमोंकक भैं उस ऩय अनत क्रोधधत होता हूॉ। ऐसा व्मजतत ितैान के भत का अनमुामी होता है िह ऩग ऩग ऩय हभाय रानतें प्रातत कयता है।

चौ0- भभ भत पवहाइ ननज रॊग खीॊचा । शकूय कूॊ कय देह गनत सीॊचा।। छर कऩट स्जहहके भन भाहीॊ । सोए सठ भहा अधभ कहाहीॊ।।4।।

भझु ऩयभेश्िय के भत को छुडिाकय जो अऩने भत धभव की ओय ककसी को िीॊचता है िह व्मजतत सअुय अथिा कुत्ता की देह गनत को सीॊच यहा है। इस प्रकाय जजसके भन भें छर कऩट बया यहता है िह ितैान है औय भहानीच कहराता है।

दो0- कफहु इत ेकब ुउत्त ेजे धयभहहॊ कॊ दकु कीन्ह।

“होयाभदेव” सकुभप तस्ज चभगादय जुनन चीन्ह।।556।। जो अऩने धभव को गेंद फना रेता है जो कबी इधय तो कबी उधय आती जाती है – सॊत होयाभदेि जी कहत ेहैं कक िह सत्मकभव, बजन, तऩ, तीथव, व्रत, धचयागफजत्त औय साधना आदद) को त्मागकय (उरटा रटकने िार ) चभगादड की मौनन को स्िमॊ ह चुनता है।

चौ0- हौं सो कहह जे ईश उतायी । ननज भता नहहॊ काहु चौऩायी।। सकर देवी देव स्जहह अॊगा । फसत सदई फहहहॊ अमभ गॊगा।।1।।

भैं िह कहता हूॉ जो ईश्िय ने भझुभें उताया है। भैं अऩना भत ककसी के ऊऩय नह ॊ थौंऩ यहा हूॉ। जजसके सभस्त अॊगों भें देिी देिताओॊ की ज्मोनत विद्मभान यहती है औय सदैि अभतृ की गॊगा फहा कयती है।

चौ0- सोई धेन ुजे हत हयसावा । नयक अनर सो देह दहकावा।।

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प्ररम कार रधग जड मौनी । ऩावत ऩीय ठाडड यह भौंनी।।2।।

उसी गाम का जो हवषवत होकय फध कयत ेहैं उस भनषु्म की देह को नयकों की अजग्न भें जरामा जाता है। कपय प्ररमकार तक जड मौननमों भें भौंन िडा यहकय ऩीडा बोगता है।

चौ0- स्जस गहृ ब्रह्भवेद याभामन । नहहॊ सयुतवेद सगुीता ऩावन।। नहहॊ ऩजूा दीऩक की ज्मोनत । सो गहृ शभशान सन होनत।।3।।

औय जजसके घय भें ब्रह्भफोध (ब्रह्भिेद) याभामण सयुतिेद (अभयकथा) तथा ऩािन गीता नह ॊ है औय न ह ऩजूा के द ऩक की ज्मोनत जरती है िह घय बी िभिान के सभान होता है।

चौ0- भयूनत भें बगवान प्रतीका । ननयाकायी सदबाव ुनीका।। सो सफ धयभ कयभ पवनसाई । चाहहहॊ सठ जन भरेच्छ ऩषुाई।।4।।

भनूत व भें बगिान का प्रतीक होता है जजसभें बर ननयाकाय सदबािना होती है। उस सबी धभव कभव को नष्ट ककमा जा यहा है तमोंकक धूतव जन भरेच्छता का ऩोषण चाहत ेहैं। भैंनें िह ऺीय सागय देिा है जहाॉ सजृष्ट से ऩहरे अकार ऩरुुष ऩयभात्भा ननयाकाय से श्रीविष्णु स्िरूऩ भें साकाय होकय जर भें से फाहय प्रगट हुिे थे उन्होने ह अऩने आऩ भें से देिी देिताओॊ को उत्ऩन्न ककमा था जजससे सजृष्ट का विकास हुआ। सबी देिी देि प्रजाऩनत कहरात ेथे। िे सफ तो ननत बगिान विष्णु के दिवन कयने आत ेथे। तफ एक ददन ऋवषमों के सभऺ िे ऩनु् ऺीय सागय भें सभादहत हो गमे तफ ऋवष भनुन व्माकुर हो गमे तो श्रीविष्णु ने मथाित अऩनी ऺीय सागय भें िषे नाग की िमैा ऩय रेट हुिी वििषे भनूत व जर ऩय नतयाकय स्थावऩत कय द औय कहा कक हे ऋवषमों प्रजाऩनतमों ! अफ भेय इस प्रनतभा की ऩजूा अचवना ककमा कयो। इसीभें भैं तमु्हे प्रातत होता यहूॉगा तमोंकक भैं अऩने ननयाकाय स्िरूऩ भें अदृष्म होना चाहता हूॉ। तबी आददकार सतमगु से भनूत व ऩजूा ऺीयसागय भें आजतक चर यह है मह ॊ से भनूत व ऩजूा विधान फना जो भनोकाभना ऩणूव कयने का सच्चा केन्र बी फना है। इस प्रकाय सनातन सॊस्कृनत सिोऩरय है जो भनषु्म प्राखणमों भें तो तमा ऩत्थय भें बी बगिान को िोजती है। जफ ऩाऩ ज्मादा फढ गमा तफ िह भनूत व बी जर भें सभा गई तफ एक तत्कार न याजा ने िहाॉ अन्म भनूत व मथाित फनिा कय स्थावऩत कयाद िह ऩदभनाब भनूत व आज बी है। जैसे ऻान ननयाकाय है ऩयन्त ुउसे साकाय िब्दो का रूऩ देकय ऩढामा जाता है उसी प्रकाय सदा से साकाय भनूत व भें ननयाकाय ईश्िय की बािना से उसे ऩजूा जाता है।

दो0- याभ कृष्ण हरय हयहहॊ जे सठ जन भनजु उच्चाय।

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सो नहहॊ जानन तें हदव्मऩरुष फहाई अभतृ धाय।।557।।

जो सठ जन याभ, कृष्ण, शिि, विष्णु को भनषु्म भात्र फतात ेहैं िे उन ददव्म ऩरुुषों को नह ॊ जानत ेजजन्होने (धभव सॊस्कृनत भें) अभतृ की धाय फहाई है।

चौ0- कार ठाभ स्जअ करा मसखाई । भरयमादा यख धयभ यछाई।। सनातन सॊस्कृनत रक्ष्भन येखा । यग यग व्माऩहहॊ अभन पवशखेा।।1।।

उन्होने कार जगत भें जीने की करा शरिाई है औय भमावददत जीिन यिकय सनातन सॊस्कृनत की सयुऺा की है। मह सनातन सॊस्कृनत एक रक्ष्भण येिा है जजसकी यग यग भें वििषे सिुानन्द व्मातत यहता है। (इसके बीतय यहकय ईश्िय प्राऩनत है इसके फाहय ननकरत ेहै तो ईश्िय से दयू होती जाती है)।

चौ0- स्वाॊग ऩयम्ऩया जे पवकसावा । भ्रमभत जनहहॊ फहुय बटकावा।। ईश न्माम कब ुत्रहुट न कोई । अन्तकार सठ दयुगनत होई।।2।।

जो ढोंग ऩयम्ऩया से सफको बटका देता है औय बटके हुिे को औय ज्मादा बटका देत ेहैं। ऩयभेश्िय के न्माम भें कबी गरती नह ॊ होती इसशरमे अन्तकार भें उस दषु्ट जन की दगुवनत ह होती है।

चौ0- अकार ऩरुष सफ जानन हाया । दॊड पवधान ऩाऩी मसय धाया।। जहॉ हहॊसा छर स्वायथ बायी । सो नहीॊ धयभ घणृा पऩचकायी।।3।।

अकार ऩरुुष ऩयभेश्िय सफ कुछ जानने िारे हैं उन्होने ऩाऩी के शसय ऩय दॊड विधान धायण ककमा है तमोंकक जहाॉ दहॊसा छर कऩट औय बाय स्िाथव है िहाॉ धभव नह ॊ है ; िहाॉ तो घणृा की वऩचकाय है।

चौ0- तीयथ व्रत सकुभप यऺ ऐसे । शस्महह यछा फाड रधग जैसे।। जे सठ जतन नतन्हहहॊ छुडावा । सो रॊऩट तस आनन फतुावा।।4।।

तीथव व्रत सतु्कभव (बजतत के) ऐसे यऺक है जैसे िेती की यऺा कयने िार फाड रगी होती है। औय जो िरजन प्रमत्न कयके इन सदकभों को छुडिाता है िह स्िमॊ रॊऩट है ऩयन्त ुिह दसूयों को रॊऩट फतामा कयता है।

दो0- सो अनाहद सत्मऩरुष अमरप्त अभर भहान।

कहन सनुन सॉउ असॊग नहहॊ कार का बान।।558।।

िह अनादद सत्मऩयभेश्िय सदैि ननरेऩ अविकाय औय भहान है। िह कहन सनुन से ऩये है िहाॉ कार का स्तीत्ि नह ॊ है।

चौ0- नहहॊ तॉह फाढ तपुान बचुारा । व्माऩक ऩयभानन्द ननयारा।। कार अकार दोनन ननयाकाया । कार सगणु सो ननगणु अऩाया।।1।।

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िहाॉ ऩयभधाभ भें फाढ तपुान बकूम्ऩ, आदद कुछ नह ॊ है िहाॉ तो ननयारा ह ऩयभानन्द व्मातत है। कार ऩरुुष औय अकार ऩरुुष दोंनों ह ननयाकाय यहत ेहैं तो बी कार गणु िारा है औय अकार ऩरुुष ऩयभेश्िय अऩाय औय गणुातीत है।

चौ0- कार नाभ अल्राह औॊकाया । कयभ बाय जीव ऩॊह डाया।। सवारख जीव ननत्म असनावा । कयनी बयनी व्मोऩाय प्रसावा।।2।।

अल्राह औॊकाय आदद नाभ कार ईश्िय के हैं जो जीिो ऩय कभो का बाय डारे यिता है। कार सिाराि जीिो को ननत्म िाता है। उसका मह व्मोऩाय जीि की कयनी औय बयनी ऩय विकशसत यहता है।

चौ0- जीवन भयन सखु दखु साये । कार देवहहॊ ननमभ सचुाये।। फमर बेंट सफ ऩावत सोई । असनइ अकार जीव नहहॊ कोई।।3।।

जीिन भयन औय सभस्त सिु दिु कार ऩरुुष के ह ननमभ से सचुारू यहत ेहैं। फशर औय बेंट आदद सफ िह प्रातत कयता है जफकक अकार ऩरुुष कोई जीि नह ॊ िाता औय न बेंट रेता है।

चौ0- अकार नाभ कार ऩजु्मतावा । अकार ऩरुष छर धाय न बावा।। मदपऩ कार अकार आधीने । तदपऩ स्वच्छ जीव भग छीने।।4।।

अकार ऩरुुष के नाभ ऩय कार अऩने को ऩजुिा यहा है जफकक अकार ऩयभेश्िय को छर की धाया नह ॊ सहुाती। मद्वऩ कार बी अकार ऩरुुष के आधीन है तो बी िह स्िच्छॊद होकय जीिो के भागव को छीने यिता है।

दो0- “होयाभदेव” अकार ब्रह्भ ननज मभरनन भग बेद। अन्तयघट यचना करयॊ मभरहु गगन कय छेद।।559।।

श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक अकार ऩयभेश्िय ने अऩने शभरने के सम्ऩणूव बेदों की यचना जीिों के अन्तघवट भें की हुई है उसी अन्तय आकाि को छेदन कयके शभराऩ कीजजमे।

दो0- कार भामावी ननजभता कीन्ही जग प्रसाय।

सचखण्ड भायग फन्द करय खोल्मो ननज व्मोऩाय।।560।।

कार ऩरुुष ने अऩने भामािी भत को सॊसाय भें प्रसारयत ककमा हुआ है औय अकार ऩरुुष ऩयभेश्िय के सचिण्ड धाभ का भागव फन्द कयके अऩना व्माऩाय िोर यिा है।

चौ0- सनुहु हरययम्भा ऩावन फानी । जो भभ पे्रपषत सॊत ओॊतानी।। नतन्ह के ऻान भरयमादा भाने । अन्तय भग चरे भोही ऩाने।।1।।

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हे हरययम्भादेि भझु ऩयभेश्िय की ऩािन िाणी को सनुो ! जो भेये बेजे हुिे सॊत औय अिताय महाॉ आत ेहैं उनके ऻान औय भमावदाओॊ को भानना चादहमे औय अन्तभावगव ऩय चरकय िाऩस भेये ऩयभधाभ भें आना चादहमे।

चौ0- नतन्ह गणु दोष ऺभा हुइ जाई । नातय कार ठाड योकाई।। सो सगु नयक रोब बम दावा । अकार ऩरुष तासों भकु्तावा।।2।।

तफ उनके अिगणु ऺभा हो जात ेहैं अन्मथा उन्हे कार योक कय िडा हो जाता है। िह स्िगव नयक का रारच औय बम ददिाता है। जफकक अकार ऩरुुष उनसे भतुत कय देता है।

चौ0- अकार सभऺ तचु्छ मह दोऊ । अकार ठाभ अभी ऩीवत कोऊ।। ऩयभसॊत सयुग बोग न चाहू । मदपऩ कार सॊत फयो फतुाहू।।3।।

अकार ऩरुुष के सभऺ मे दोंनों सयुग नयक तचु्छ हैं औय अकार ऩरुुष के धाभ अनन्त व्मोभ का अभतृ बफयरा कोई ऩीता है। जो ऩयभसॊत हैं िे स्िगव बोग नदहॊ चाहत े– मद्मवऩ कार के सॊत उसे ह फडा फतात ेहैं।

चौ0- ऐ अकार उऩासक सायो । अकार ऩरुष की याह सम्बायो।। ध्वज उखारय कार ऩयु छाड े। ऩाउ ऩयभानन्द धाभ अगाड।े।4।।

ऐ अकार ऩरुुष ननयाकाय ऩयभेश्िय के सबी उऩासकों ! तभु अकार ऩयभेश्िय की ह याह सम्बारो औय कार देस से अऩना झॊडा उिाड कय त्माग दो कपय कार के ऩाय ऩयभानन्द के धाभ को प्रातत कयो।

दो0- हौं “होयाभदेव” अव्मक्त अकारहहॊ दऊॉ सन्देश। कार गणुक अकार ननगणु ऩयखइ कुरू प्रवेश।।561।।

भैं होयाभदेि ननयाकाय अकार ऩरुुष (ऩणूवब्रह्भ) का सॊदेि देता हूॉ कक – महाॉ कार गणुो िारा है औय अकार ऩरुुष ननगुवण (गणुातीत) हैं इसशरमे ऩयि कयके ह प्रिेि कयना।

चौ0- भभ सन्देश जग जीव सनुाहु । भभ सॊस्कृनत के ननमभ प्रसाहु।। जे नहहॊ जानहहॊ बरयहैं घाटा । कारदेस जफ भॊधगहैं ऩाटा।।1।।

भेया मह सॊदेि जगत के जीिों को सनुाओॊ औय भेय सनातन सॊस्कृनत के ननमभों का विकास कयो। जो ऐसा नह ॊ जानता िह घाटे भें यहेगा तमोकक कार देस भें कार अऩना कय अिश्म भागेंगा।

चौ0- स्जहह के ऩनु्म सकुभप सॊग नाहीॊ । हौंहहॊ वमसक नहहॊ भभ ऩयु आॊहीॊ।। हौं सनातन सॊस्कृनत याची । सकुभप अदा करय बस्क्त शषेाची।।2।।

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जजसके तीथव व्रत तऩ दान धभव सेिा ऩजूा अचवना आदद के सत्कभों का ऩनु्म साथ नह ॊ होता कार द्िाया उसकी बजतत काट र जाती है जजससे िह िार हो जाता है। कपय िह भझु ऩयभेश्िय के देस नह ॊ आ ऩाता। इसशरमे ह सनातन सॊस्कृनत को भैंने जन्भ ददमा था ताकक सकुभों के ऩनु्म को कय (टैतस के) रूऩ भें अदा कयके उसकी बजतत साधना िषे फची यहे।

चौ0- जफ सो सॊत भभ दय आवा । ऩनु्म रइ कार नतहह भकुुतावा।। तफ नतहह बस्क्त सयुनछत होई । अस पवधध भोही प्राप्मत कोई।।3।।

जफ िह सॊत भेये द्िाय ऩय आता है तफ उसके ऩनु्मों को ग्रहण कयके ह कार उसे भतुत कयता है। इसी प्रकाय िह भझुे प्रातत कय ऩाता है। (जो व्मजतत सभझत ेहैं कक तीथव , दान , ऩनु्म , ितृ आदद अकार ऩरुुष के याज्म भें नह ॊ हैं औय िे उन्हे महाॉ कयत ेनह ॊ, अवऩत ुत्माग देत ेहैं िे कार देस से भतुत नह ॊ होत े; तमोंकक उनकी बजतत कार का टेतस चुकाने भें कट जाती है)।

चौ0- ब्रह्भवेद अरू सयुनत वेदा । हौं सफयचेउ भ्रभ छर छेदा।। भरू याभामण ब्रह्भण्ड गीता । अकार ऩरुष सन्देशा दीता।।4।।

भैंने ब्रह्भिेद (ब्रह्भफोध) औय सयुतिेद (अभयकथा भहाकाव्म) ह सफ भ्रभ औय छर प्रऩॊच का छेदन कयके यचना की है तथा भरू सम्ऩणूव याभामण औय ब्रह्भाण्ड गीता की यचना कयके अकार ऩरुुष ऩयभेश्िय का सन्देिा ददमा है।

दो0- कार भता सतासत मनुत भषृा हहसप पॊ दराम।

अकार भता सवोच्च सॊस पवभरशीर सॊत ऩाम।।562।।

कार का भता सत्म औय असत्म की मनुत से (जुडा हुआ) है। जो रारच भें पॊ साता है जफकक सिोच्म औय ससुॊस्कृत भता अकार ऩरुुष का है जजसे ननभवर िीर सॊत ह प्रातत कयत ेहैं।

दो0- अकारऩरुष के दतू की भायग योकहहॊ कार।

ताकय दतू उदॊड प्रफर बफयरे ननकसत जार।।563।।

महाॉ कार के देस भें अकार ऩरुुष ऩयभेश्िय (ऩणूवब्रह्भ) के दतूों (सॊतों औय अितायों) का भागव कार योकता यहता है औय उसके दतू उदॊड औय प्रफर होत ेहैं। बफयरे ह उनके जार से ननकरत ेहैं।

छ0- मतकार कू्रय बवमसॊधु हहॊस्र ऩीय बरयत जग पवध्न जनहहॊ।

कार दतू कमरदास बेष असत्म प्रदाम सतऩॊथ हनहहॊ।।

तद सनातन सॊस्कृनत तहवाॉ कार तऩस जीव यछानहहॊ।

“होयाभदेव” भनुन ध्मानस्थ अकार देस ुगहु्मनत गभनहहॊ।।44।।

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महाॉ कार अऩने देस भें कू्रय है औय उसका दिुदाई बि सागय है जो ऩीडा से बये हुिे जगत विध्न उत्ऩन्न कयता यहता है। महाॉ कार ऩरुुष के दतू कशरमगु के बेष भें असत्म भागव को ददिाकय सत्म भागव का विनास कय देत ेहैं ; तफ मह (ईश्ियकृत) सनातन सॊस्कृनत ह उसभें कार के ताऩ से जीिों की सयुऺा कयती है। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक (इसी ऩीडा के चरत ेचरत)े सॊत भनुन जन ध्मानस्थ होकय अऩने अकार ऩरुुष ऩयभेश्िय के धाभ को गतुत मात्रा से चरे जात ेहैं।

दो0- सत्म सनातन सॊस्कृनत ; जे जन चमर गहह भोच्छ। प्रसायहु सत्मसाय भभ ; अकार सॊदेश ऩयोच्छ।।564।। इस सत्म सनातन सॊस्कृनत ऩय जो चरता है िह भोऺ प्रातत कय रेता है। भेये इस सत्मसाय का प्रसायण कीजजमे तमोंकक मह ननयाकाय ऩणूवब्रह्भ अकार ऩरुुष का गतुत सॊदेि हैं।

छ0- कार ईश ननयाकाय औॊकाय कभपपरद बत्ररोकी जनन।

भहाकार ननयॊकाय अव्मक्त सवपकार खॊड दृस्ष्ट फनन।।

सवापतीत ननयाकाय ऩयभतत्व अनन्त व्मोभ अकार धनन।

“होयाभदेव” बत्रबेद अव्मक्त ऩयख ध्माम भनुन सऩू जनन।।45।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक कार ऩरुुष ईश्िय जजसने बत्ररोकी फनाई है िह ननयाकाय है औय िह ऊॉ काय है। इसके ऊऩय भहाकार ननयॊकाय है िह बी ननयाकाय है। इसकी दृजष्ट सबी कारों के (सात आसभानी) िण्डों ऩय फनी यहती है। इन सफसे ऩये ऩयभतत्ि है जो अनन्त व्मोभ भें अकार ऩरुुष ननयाकाय ऩयभेश्िय है। इस प्रकाय महाॉ (सम्ऩणूव ब्रह्भाण्ड) भें तीन बेद ननयाकाय ईश्िय के हैं जजनकी ऋवष भनुन सऩू की तयह ऩयि कयके (सत्म का) ध्मान कयत ेहैं। (जैसे कक सऩू तत्ि तत्ि को ग्रहण कयता है थोथे को नह ॊ)।

दो0- अनन्त व्मोभ ऩयभतत्व सत्म नहहॊ ऩाय कछु आनन।

“होयाभदेव” आमस ुनतहह सत्म सत्म कीन्ह फखानन।।565।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक िह सत्म ऩयभतत्ि ऩयभेश्िय (सभस्त सजृष्टमों के ऩाय सचिण्ड से बी ऩये) अनन्तव्मोभ िारा है उससे ऩये अन्म कुछ बी नह ॊ है। उस ननयाकाय ऩयभेश्िय की (ध्मानस्थ) आऻानसुाय भैंने सत्म सत्म फिैान ककमा है।

दो0- सदगरु की कृऩा बई ध्मानस्थ ऩामो ऻान।

अभयकथा भहाकाव्म यत जीव गहे कल्मान।।566।।

भझु ऩय सदगरुुदेि की कृऩा हुई तबी ध्मानािस्था से मह ऻान प्रातत ककमा है। इस अभयकथा भहाकाव्म भें र न जीि कल्माण को प्रातत कय सकत ेहैं।

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दो0- भेया भझुभें कछु नहीॊ जो कछु सो गरुदात।

सदगरु भेया कल्ऩवृऺ भैं वृऺ की इक ऩात।।567।।

भेया भझु भें कुछ नह ॊ है मदद कुछ है बी तो िह भेये सदगरुुदेि (श्री याभानन्द सत्माथी जी) की ह देन है। भेये सदगरुु तो कल्ऩिृऺ हैं भैं तो उस िृऺ का एक ऩत्ता भात्र हूॉ।

दो0- सदगरु ऺभा भोही कीस्जमे प्रगटाई गपु्त साय।

सॊत बपवष्म बटकें नहहॊ ननजगहृ कयें सम्हाय।।568।।

हे सदगरुु देि ! भझुे ऺभा कय देना। भैंने गोऩनीम तत्ि प्रगट ककमा है। ताकक बविष्म भें सॊत बटक न सके औय अऩने ननज घय की सम्बार कये सकें ।

दो0- ऩयभकाव्म मह सदगरु करूॊ सभऩपण तोम।

“होयाभ” दास वय दीस्जमे ऺभा ऺभा कहह भोम।।569।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक मह ऩयभकाव्म हे सदगरुुदेि ! भैं तमु्हे सभवऩवत कयता हूॉ। भझुे दास सभझ कय ियदान दे देना कक भझुे ऺभा ऺभा कह देना।

दो0- ऩायब्रह्भ सतगरुू भेये सस्च्चदानॊद सखुधाभ।

सफ सॊतन के अॊग सॊग प्रब ुकौहट कौहट प्रणाभ।।570।।

हे ऩयब्रह्भ स्िरूऩ भेये सदगरुुदेि, हे सजच्चदानन्द सिुधाभ ! हे सबी सॊतो के सॊग सॊग यहने िारे गरुुदेि आऩको भेया कोदट कोदट प्रणाभ।

दो0- सात हदवस मह अभयकथा सॊतजन ऩठे सनुाम।

उद्माऩन अभावस हदवस बखून्ह बोज्म णखराम।।571।।

मह अभयकथा सात ददनों भें सॊत जन ऩढे औय सनुामें औय अभािस्मा के ददन उद्माऩन कयना चादहमे जजसभें बिूों को बोजन खिराना चादहमे।

सो0- सरुब नहीॊ गहु्म साय ; बफना ऩायखी गरु कदा। तत्वदयसी उस्जमाय ; ऩहठ सनुन सॊग प्रमोगई।।11।। अभयकथा का मह गहु्म तत्ि बफना तत्िदिी सदगरुु के कबी बी सरुब नह ॊ है। मह ऩढने सनुने के साथ प्रमोग ऺेत्र भें जाने से तत्िदिी गरुु जनों द्िाया प्रगट होता है।

दो0- कुऩात्र ननगयुो सन कदा ; गय को कयहहॊ करय फखान। यौयव नयक वासा कये “होयाभ” न सॊशम जान।।572।। औय मदद कोई कुऩात्रों – ननगयुों – भनभखुिमों के सभऺ कबी इसका िणवन कयेगा तो िह विद्िान बी यौयि नयक भें िासा कयेगा। श्री होयाभदेि जी कहत ेहैं कक इसभें सॊिम न जानो।

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दो0- नाभ दान ननत देत हैं ऻानी भनुन साधु सॊत।

दीऺा बफयरे देत है हौंहहॊ दयस बगवॊत।।573।।

नाभ दान तो ऻानी भनुन साधु औय सॊत ननत्म ह देत ेयहत ेहैं ऩयन्त ुद ऺादान (ददव्म दृजष्ट) जजससे ऩयभेश्िय का दिवन होता है को ऐसा कोई बफयरा ह तत्िदिी सॊत दे सकता है। (इसशरमे तत्िदिी गरुुजनों की िौज कयें)।

श्रो0- मो मस्म गणु न प्रकृष ेतस्म ननॊदा सततॊ कयोनत।

न आप्नोनत मथा कस्थ्मता रभूरय खट्ट अॊगयू।।42।।

जो व्मजतत जजसके गणु को नह ॊ सभझ ऩाता है तफ िह उसकी ननयन्तय नन ॊदा कयने रगता है जैसे कक प्रातत न होने ऩय रोभडी ने कहा था कक अॊगयू िटे्ट हैं।

श्रो0- मत सवापनन बतूानन उहदतोस्थानन रमनत च।

अनन्त ज्मोनत भहाऩुॊज ननत्म नभामभ होयाभ Sहभ।्।43।।

जजसभें सभस्त बतूचयाचय जगत उत्ऩजत्त जस्थनत औय प्ररम ऩाता है। भैं होयाभदेि उस अनन्त ज्मोनत ऩुॊज ऩयभेश्िय को ननत्म नभस्काय कयता हूॉ।

श्रोक0- इनत त ेगहु्मादगहु्म तयॊ भमा ऩयभ वचना Sभतृ्।

मो सऩुात्र बक्तशे्वामबधास्मनत तयौ बव न सॊशम्।।44।।

फस मह इतना ह गहु्म से गहु्म तयन तायण भेया ऩयभ फचन अभतृ जो सऩुात्र बततों के सभऺ कहता है िह बी बिसागय तय जाता है इसभें सॊिम नह ॊ है।

दो0- याभानन्द सत्माथी सदगरु तीयथ नॊगरी धाभ।

करूॊ सभपऩपत काव्म मह नतन्ह ऩग यज “होयाभ”।।574।।

जजन चयणों की धूर भैं होयाभदेि हूॉ उन श्री नॊगर तीथव धाभ को तथा सतगरुु स्िाभी याभानन्द सत्माथी जी भहायाज को भैं मह अभयकथा काव्म सभवऩवत कयता हूॉ।

दो0- ऩावन देवकुॊ जधाभ ब ूभेयठ सॊजम पवहाय।

“होयाभ” नभन काव्म एहह याधचऊ ध्मान ऩसाय।।575।। श्री होयाभदेि जी कहत ेहै कक भें देिकुॊ ज आश्रभ जस्थत सॊजम विहाय, भेयठ की ऩािन बूशभ को नभन कयता हूॉ जहाॉ मे भहाकाव्म (अभयकथा) की ध्मान मोग से यचना की गई।

।। जम श्री सस्च्चदानॊद नोम्मह्भ।।

इनत श्रीभद् अभयकथा (सुयत वेद) श्री मशव ऩावपती सम्फादे सप्तभ ऩडाव् सहहत सम्ऩन्न् िाजन्त िाजन्त िाजन्त