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CIK - 02 o/kZeku egkohj [kqyk fo’ofo|ky;] dksVk xzg’kkfUr iz dj.k 1987

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  • CIK - 02

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    1987

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  • पाठ्य म प रचय इस नप म कुल 13 इकाइय के मा यम से अ ययन हते ु तुत िवषय का वणन िकया गया ह ै। कमका ड क

    िवधा से स बि धत इस नप म म डप और कु ड िनमाण िविध स ेलेकर दवे पजून , याग , अनु ठान ,नव हपजून

    िवधान , िविभ न देवताओ ंक आरती इ यािद सिहत िविभ न ा ा िद योग के यथा स भव वणन ततु िकये गये ह

    । थम इकाई म म डप और कु ड िसि के िवधान से स बि धत योग के सिविध िच ण उपि थत ह । य को

    स प न करवाने के िलए उसके अङ्ग (म डप तथा कु ड आिद) का ान आव यक ह ै । विैदक सू थ ,

    ा ण थ , परुाण तथा ताि क थ म इन अङ्ग क िव ततृ िववचेना क गयी है । इसम म डप तथा कु ड के

    उपाङ्ग (खात, नािभ, क ठ, मखेला, योिन, तोरण आिद) का सु प वणन िमलता ह ै। दस हाथ या कुछ यनू स े

    लेकर एक सौ बीस (१२०) या इससे भी अिधक ल बे-चौड़े म डप क िनमाण िविध का माण भी िमलता ह।ै भिूम के

    िवभाग, त भ क सं या तथा विलका-का क सं या का भी उ लेख िमलता ह।ै शा के अनसुार लगभग २७

    कार के म ड़प का वणन िमलता ह,ै ये म डप आकृितभदे तथा आयामभदे से िवपलु होते ह । ि तीय इकाई म डल

    करण क ह ै । म डल देवताओ ं का ही तीक ह,ै इसम देवताओ ं क साङ्गोपाङ्ग पजूा क जाती ह ै । म डल

    देवताओ ंके अनसुार िनिद प म ही बनाय जाते ह । ाचीन काल स ेम डल का िनमाण वदेी पर िकया जाता ह ै

    ।ततृीय इकाई म ारि भक पजून के अ तगत आ मशिु , गु मरण, पिव धारण, पृ वी पजून, सङ्क प, भैरव

    णाम, दीप पजून, शङ्ख-घ टा पजून के प ात ्ही देव पजून करने के िवधान क चचा क गयी ह ै। सभी दवेताओ ंम

    गणपित सव थम ह,ै इनका पजून सभी माङ्गिलक कम म करना चािहए । चौथी इकाई का यही व य िवषय ह ै। इकाई

    पॉचं पजून म म षोड़शमातकृाओ ं का पजून अिनवाय म है , इसके अ तगत गणपित, षोडश देिवय तथा स

    वसो ारा दिेवय का पजून िकया जाता ह ै, का मु य िवषय ह ै। छठी इकाई ना दी ा के योग वणन क ह ै। य ,

    िववाह, ित ा, उपनयन, समावतन, पु ज म, गहृ वेश, नामकरण, सीम तो नयन, स तान का मखु देखन ेस ेपवू और

    वषृो सग म ना दी ा अव य करना चािहए , सातव का ितपा िवषय य ािद कतकृ ा ण के पजून एव ं

    पु याहवाचन कमािद ह । आठव वणन म म अि न थापन नव ह पजूा िविध का समिुचत उ लेख िकया गया ह ै ।

    हशाि त करण म वा त,ु योिगनी व े पाल पजून का मह वपणू थान है । योिगिनय क सं या ६४ ह ै। पजून म

    म १६ देिवयाँ व ७ घतृमातकृाय भी है, पर त ुयोिगिनय का िवशेष मह व है , यही सब नव इकाई का व य िवषय ह ै

    ।दसव तथा यरहव इकाइयॉ ं मश: सवतोभ म डल के देवताओ ं के पजून एवं हवन िवधान से स बि धत ह ।

    आरती को '' आराितक अथवा '' नीराजन भी कहते ह ै। पजूा के अ त म आरती क जाती है । पजून म जो भी िुटयाँ

    (म हीन/ि याहीन/अशिु आिद) रह जाती ह,ै उनक पिूत आरती के ारा क जाती है । क दपरुाण के अनसुार :- म हीनं ि याहीनं यत् कृतं पजूनं हरे:। सव स पूणतामेित कृते नीराजनं िशवे ।।

    िपतर का ऋण ा ारा चकुाया जाता है, आि नमास के कृ णप एव ंमृ यिुतिथ को ा िकया जाता ह।ै ा का

    अथ ह ै- या दीयते यत ्तत ् ा म ्अथात ्जो भी ा स ेिदया जाय । ये िवषय बारहव एवं तेरहव इकाई के ह ।

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    इकाई — 1

    म डप और कु ड िसि

    इकाई क परेखा

    1.1 तावना

    1.2 उ े य

    1.3 म डप एवं कु ड के माप क िविध

    1.4 म डप हते ुभिूमपरी ण

    1.5 य कम म म डप -िनमाण हतेु शभु भिूम के ल ण

    1.6 य कम म म डप -िनमाण हतेु िदशा का चयन करते समय राहमखु का ान

    1.7 भ-ूशिु

    1.8 म डप िनमाण

    1.9 कु ड िनमाण िविध

    1.10 वेदी िनमाण

    1.11 सारांश

    1.12 श दावली

    1.13 अितलघु रीय

    1.15. लघु रीय

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    1.16. स दभ थ

    1.1 तावना

    य को स प न करवाने के िलए उसके अङ्ग (म डप तथा कु ड आिद) का ान आव यक ह ै । वैिदक

    सू थ , ा ण थ , परुाण तथा ताि क थ म इन अङ्ग क िव ततृ िववेचना क गयी है । इसम म डप

    तथा कु ड के उपाङ्ग (खात, नािभ, क ठ, मेखला, योिन, तोरण आिद) का सु प वणन िमलता ह ै। दस हाथ

    या कुछ यनू से लेकर एक सौ बीस (120) या इससे भी अिधक ल ब-ेचौड़े म डप क िनमाण िविध का माण

    भी िमलता ह।ै भिूम के िवभाग, त भ क सं या तथा विलका-का क सं या का भी उ लेख िमलता ह।ै

    शा के अनसुार लगभग 27 कार के म ड़प का वणन िमलता ह,ै ये म डप आकृितभेद तथा आयामभेद से

    िवपलु होते है ।

    कु ड के भेद :- कु ड के मु यतया दो भेद ह ै - आयामभेद तथा आकृितभेद । आयामभेद से कु ड

    एकह ता मक, ि ह ता मक, चतुह ता मक, षड्ह ता मक, अ ह ता मक तथा दशह ता मक होते ह ै। अ य

    कार से म डप क आकृितय के अनसुार भेद होते ह । आकृित के अनसुार कु ड तीन कार के होते ह :-

    1. कोणा मक कु ड :- इनम ि कोण कु ड , चतुर कु ड , प चा कु ड , षड कु ड , स ा कु ड ,

    अ ा कु ड , नवा कु ड , कु ड (एकादशा कु ड ), षट्ि शंा कु ड एवं अ च वा रंशा कु ड

    होते ह ।

    2. वतलु कु ड :- इनम वतलु कु ड , अधच कु ड तथा प कु ड होते ह।ै सूयकु ड भी वतलुाकार होता

    ह ै।

    3. िविश कु ड :- इनम योिनकु ड , अिसकु ड , कु त कु ड , चापकु ड , मु रकु ड , शिनकु ड , राह कु ड

    , केतु कु ड , च कु ड , गु कु ड , भौम कु ड , बधु कु ड , शु कु ड आिद होते ह,ै िजनका वणन

    ताि क थ म िमलता ह ै।

    1.2 उ े य :-

    1. कु ड-म डप क शा ीय िववेचन का ान ।

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    2. मु य कु ड के िनमाण िविध का ान ।

    3. कमका ड के शा ीय ान से प रचय ।

    1.3 म डप एवं कु ड के माप क िविध

    य कता यजमान को दोन भजुाय ऊपर क ओर करके सीधा खड़ा होना चािहए , िफर उसके पैर क अङ्गिुलय

    के अ भाग से लेकर ऊपर खड़े िकये गय ेहाथ क म यमा अङ्गलुी पय त नापना चिहए। यह माप र सी, सू

    या फ ते से क जा सकती ह।ै वह नाप िजतनी भी हो, उसका पाँचवा भाग एक ह त (हाथ) का माप माना गया

    ह।ै इस कार यह माप यजमान के शरीर के अनसुार होगा, शासक य या राजक य मापसू के अनसुार नह ।

    अत: इस माप म ित यि अ तर होना भी वाभािवक ह,ै जो िक य कता को फल ाि हतेु आव यक भी ह।ै

    यजमान के माप के अनसुार िनि त ह त माण से ही म डप , कु ड , वज, पताका, तोरण, ार आिद के

    प रमाण को नापा जाता ह ै । एक हाथ का मान चौबीस (24) अङ्गलु के बराबर होता ह।ै इस कार एक

    अङ्गलु का माण एक हाथ का चौबीसवाँ भाग होता है, त प ात उस अङ्गलु का अ मांश यव होता ह।ै यव

    का अ मांश यकूा तथा यकूा का अ मांश िल ा या ली ा होता ह।ै िल ा का अ मांश वाला , वाला का

    अ मांश रथरेण ुतथा रथरेण ुका अ मांश मु ी बाँधे हए हाथ क जो ल बाई ह,ै उसको रि न (21 अङ्गलु)

    कहते ह ै। कोहनी से लेकर म यमा/तजनी पय त यह माप ''अरि न (22 अङ्गलु) कहलाती है ।

    यहाँ विणत माप क इकाइयाँ िन न ह :-

    8 परमाण ु = 1 सरेण ु - 8 सराण ु = 1 रथरेण ु

    8 रथरेण ु = 1 वाला - 8 वाला = 1 ली ा

    8 ली ा = 1 यकूा - 8 यकूा = 1 यव

    8 यव = 1 अङ्गलु - 24 अङ्गलु = 1 हाथ

    21 अङ्गलु = 1 रि न - 22 अङ्गलु = 1 अरि न

    म डप हेतु भूिमपरी ण :-

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    वयं क भिूम पर ही य ािद कम करने चािहए तथािप अ य तीथ अथवा अ य िकसी थान पर य ािद कम कर

    रह ेह ैतो उस भिूम का उिचत शु ल भू वामी को दे देना चािहए अ यथा य ािद का फल भू वामी को ही िमलता

    ह ै। भिूम का परी ण करने हतेु चयिनत भिूम म एक वग-हाथ का चतु कोण खात बनाकर उस गत को सूया त

    के समय जल से भर देना चािहए। यिद दसूरे िदन ात: काल उस गड्ढे म जल शेष रह जाये अथवा वह भिूम

    गीली रह जाये तो वह शभुल ण होता ह।ै यिद क चड़यु भिूम रह ेतो म यफलदायी होता है । यिद उसका जल

    पणू प से सूख जाये तो उसम दरारे पड़ जाये तो उस भिूम को अशभु फलदायी कहा जाता ह ै। यथा -

    ं ह तिमतं खनेिदह जलं पणू िनशा ये यसेत ्।

    ात जलं थलं सदजलं म यं वस फािटतम्।।

    नोट :- रेिग तान वाले दशे म यह िविध उपयोगी नही ह, अत: े िवशेष का यान रखना चािहए ।

    1.4 य कम म म डप -िनमाण हेतु शुभ भूिम के ल ण :-

    1. सुग ध यु भिूम ा णी, र ग ध वाली भिूम ि या, मधगु ध वाली भिूम वै या , म ग ध वाली

    भिूम शू ाभिूम कही गयी है , अ लरस यु वै या, ित रस यु शू ा , मधरुसयु भिूम ा णी और

    कड़वी ग ध वाली भिूम ि यवणा होती ह।ै

    2. ा णी भिूम सुखकारी, ि या रा यसुख दाता, वै याभिूम धनधा य देने वाली और शू ा भिूम

    या य होती ह।ै

    3. ा ण को सफेद भिूम, ि य को लालभिूम, वै य को पीली भिूम, शू को काली भिूम एवं अ यवण

    के िलए िमि त रङ्ग क भिूम शभु होती ह।ै

    4. ा ण आिद चार वण के िलए म से घी, र , अ न और म ग ध वाली भिूम शभु होती ह।ै

    5. पवू िदशा क ओर भिूम ढालदार हो तो धन ाि , अि कोण म अि नभय, दि ण म मृ य,ु नैऋ य म

    धनहािन, पि म म पु हािन, वाय य म परदेश म िनवास, उ र म धन ाि , ईशान म िव ालाभ होता ह।ै

    भिूम म बीच म गड्ढा हो तो वह भिूम क दायक होती ह।ै

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    o/keZeku egkohj [kqyk fo’ofo|ky;] dksVk 5

    6. ईशान कोण म भिूम ढालदार हो तो य कता को धन , सुख क ाि , पवू म हो तो विृ , उ र म हो तो

    धनलाभ, अि कोण म हो तो मृ य ुतथा शोक , दि ण म हो तो गहृनाश, नैऋ य म धनहािन, पि म म

    मानहािन, वाय य म मानिसक उ ेग होता ह।ै

    7. ा ण को उ र, ि य को पवू, वै य को दि ण और शू को पि म क ओर ढालयु भिूम शभु

    होती ह।ै मता तर से ा ण के िलए सभी कार क ढ़ालयु भिूम शभु होती ह।ै अ य वण के कोई

    िनयम नह ह।ै

    8. पवू िदशा म ऊँची भिूम पु का नाश करती ह।ै अि कोण म ऊँची भिूम धन देती ह।ै अि कोण म नीची

    भिूम धन क हािन करती ह।ै दि णिदशा म ऊँची भिूम वा य द होती ह।ै नैऋ यकोण म ऊँची भिूम

    ल मीदायक होती ह।ै पि म म ऊँची भिूम पु द होती ह।ै वाय यकोण म ऊँची भिूम य क हािन

    करती ह।ै उ रिदशा म ऊँची भिूम वा य द तथा ईशानकोण म ऊँची भिूम महा लेशकारक होती ह।ै

    9. हल के फाल से भिूम को खोदने पर यिद लकड़ी िमले तो अि नभय, ईटं िमले तो धन ाि , भसूा िमले

    तो धनहािन, कोयला िमले तो रोग, प थर िमले तो क याणकारी, हड्डी िमले तो कुलनाश, सप या

    िब छू आिद जीव िमले तो वे वय ंही भय का पयाय है ।

    10. हल के फाल से भिूम को खोदने पर यिद लकड़ी िमले तो अि भय, ईटं िमले तो धन ाि , भसूा िमले तो

    धनहािन, कोयला िमले तो रोग, प थर िमले तो क याणकारी, हड्डी िमले तो कुलनाश, सप या िब छू

    आिद जीव िमले तो वे वय ंही भय का पयाय ह।ै

    11. फटी हई से मृ य,ु ऊषर भिूम से धननाश, हड्डीयु भिूम से सदा लेश , ऊँची-नीची भिूम से श ुविृ ,

    मशान जैसी भिूम से भय, दीमक से यु भिूम से सङ्कट , गड्ढ वाली भिूम से िवनाश और कूमाकार

    अथात् बीच म से ऊँची भिूम से धनहािन होती ह।ै

    12. आयताकार भिूम (िजसक दोन भजुाएँ बराबर एवं चार कोण सम हो) पर िनवास सविसि दायक,

    चतुर भिूम (िजसक ल बाई चौड़ाई समान हो) पर य ािद शभुकम करने से धन का लाभ, गोलाकार

    भिूम पर य ािद शभुकम करने से बिु बल क विृ , भ ासन भिूम पर सभी कार का क याण,

    च ाकार भिूम पर द र ता, िवषम भिूम पर शोक, ि कोणाकार भिूम पर राजभय, शकट अथात् वाहन

    स श भिूम पर धनहािन, द डाकार भिूम पर पशओु ंका नाश , सूप के आकार क भिूम पर गाय का

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    नाश, जहाँ कभी गाय या हाथी बंधते हो वहाँ िनवास करने से पीड़ा तथा धनषुाकार भिूम पर िनवास

    करने घोर सङ्कट आता ह।ै

    13. भिूम खोदते समय यिद वहाँ प थर िमल जाये तो धन एवं आय ुक विृ होती है , यिद ईटं िमले तो

    धनागम होता ह।ै कपाल, हड्डी, कोयला, बाल आिद िमले तो रोग एवं पीड़ा होती ह।ै

    14. यिद गड्ढे म से प थर िमले तो वण ाि , ईटं िमले तो समिृ , य से सुख तथा ता ािद धातु िमले तो

    सभी कार के सुख क ाि होती ह।ै

    15. भिूम खोदने पर िचऊँटी अथात् दीमक, अजगर िनकले तो उस भिूम पर िनवास नह करे। यिद व ,

    हड्डी, भसूा, भ म, अ डे, सप िनकले तो गहृ वामी क मृ य ु होती ह।ै कौड़ी िनकले तो द:ुख और

    झगड़ा होता ह,ै ई िवशेष क कारक ह।ै जली हई लकड़ी िनकले तो रोगकारक होती ह,ै ख पर से

    कलह ाि , लोहा िनकले तो गहृ वामी क मृ य ुहोती है , इसीिलए कु भाव से बचने के िलए इन सभी

    प पर िवचार करना चािहए।

    1.5 य कम म म डप -िनमाण हेतु िदशा का चयन करते समय राहमुख का ान :-

    िदशा के चयन हते ुयथोपल ध साम ी यथा - िदशा सूचक य (क पास) से िदशा का िनणय करे।

    1.- देवालय के िनमाण म मीन-मेष-वषृ का सयू हो तो ईशानकोण म, िमथनु-कक-िसंह का सूय हो तो

    वाय यकोण म क या-तुला-विृ क का सूय हो तो नैऋयकोण म तथा धन-ुमकर-कु भ का सयू हो तो

    अि कोण म राह का मखु रहता ह।ै

    2. - गहृिनमाण म िसंह-क या-तुला का सूय हो तो ईशानकोण म, विृ क-धन-ुमकर का सूय हो तो

    वाय यकोण म, कु भ-मीन-मेष का सूय हो तो नैऋ यकोण म तथा वषृ-िमथनु-कक का सूय हो तो

    अि कोण म राह का मखु होता ह।ै

    3. - जलाशय के िनमाण म मकर-कु भ-मीन का सूय हो तो ईशानकोण म, मेष-वषृ-िमथनु का सूय हो तो

    वाय यकोण म, कक-िसंह-क या का सूय हो तो नैऋ यकोण म तथा तलुा-विृ क-धनरुािश का सूय हो

    तो अि कोण म राह का मखु रहता ह।ै

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    o/keZeku egkohj [kqyk fo’ofo|ky;] dksVk 7

    राह के मखु से िपछले भाग म भिूम शोधन के िलए खात अथात ्खड्ढा खोदना चािहए । उदाहरण के िलए

    राहमखु ईशानकोण म हो तो खड्ढा आ नेयकोण म खोदना चािहए। वतमान म यही िविध चिलत ह ै।

    1.6 भू-शुि :-

    1. दहनकम िजस भिूम पर य ािद कम हतेु म डप िनमाण करना हो, उसके खर-पतवार, काँटे आिद न

    करने के िलए उसे यथास भव ि या से शु करना चािहए। य ािद कम हतेु चयनिनत भिूम पर यिद

    वृ काटने पड़े (जहाँ तक स भव हो वृ ािद जीव पर िहसंा नह करे) तो ाथनापवूक वृ काटने

    चािहए तथा िजतने वृ काट रह ेह, उनसे अिधक यथासं या म वृ ारोपण करना चािहए।

    यानीह भूतािन वसि त तािन, बिलं गृही वा िविधव यु म।्

    अ य वासं प रक पय त,ु म तु ते चा नमोऽ तु ते य:।।

    अथात ्जो ाणी इस वृ म िनवास करते ह ै वे मेरे ारा दी गयी बिल अथवा भोग को हण करके

    अ य िनवास कर, ऐसा कहते हए नम कार करे। आप सभी ाणी मझेु मा करे य िक म इस वृ करे काट

    रहा ह।ँ

    2. खननकम :- शिु के प ात् भिूम को समतल करने हतेु कुदाल, फावड़ा, हल आिद से खदुवाय,

    िजससे भिूम चौरस तथा समतल हो जाये।

    3. स लवानकम :- शिु , खनन के प ात ्भिूम को जल से पू रत कर देवे , िजससे एक तो जल लवन के

    कारण भिूम के ढलान का ान हो जायेगा तथा भिूम िछ एवं िववर से रिहत हो जायेगी, त प ात ्

    लीपने म सु िवधा होगी।

    दहन-खनन-स लवन आिद ि याओ ंके प ात् थलू प से भिूम समान हो जायेगी, पर तु थकार के

    अनसुार उसे ''समानां मकुुरजठरवत ्बनाना चािहए अथात ्िजस कार से दपण सपाट, िचकना एवं समतल होता

    ह,ै उसी कार भिूम को भी बना देना चािहए ।

    उ कार से भूिम क परी ा करके भगवान गणेश, भगवती दु गा, े पाल तथा आठ िद पाल क

    पु प, धूप तथा बिल आिद पूजन साम ी से पूजा करे।

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    o/keZeku egkohj [kqyk fo’ofo|ky;] dksVk 8

    1.7 म डप िनमाण :-

    म डप क भिूम को सामा य भिूम से एक हाथ या आधा हाथ माण ऊँचा रखना चािहए य िक य शाला को

    सामा य भिूम से ऊँचा न रखने पर उसक पिव ता बािधत हो सकती है । देव ित ा आिद कम म य म डप के

    अित र अ य म डप भी (अिधवासनम डप , नानम डप आिद) बनाने चािहए । अ य म ड़प को इतने

    अ तर से बनाये िक वह अ तर म डप क ऊँचाई से यनू न हो अथात् यिद म डप क ऊँचाई प ह (15) हाथ

    हो तो कम से कम प ह हाथ के अ तर से ही अ य म डप बनाना चािहए। यथा -

    म ड़पा तरमु सृ य कत यं म ड़पा तरम ï। - वा तुशा

    यिद थान का अभाव हो तो उस ि थित म एक म डप के समीप ही अ य म ड़ल बनाने का िवधान ह ै। यथा -

    गृहे देवालये वािप सङ्क ण य यते ।

    त काय म डप ै: संि ं म डप यम ï। - यामल

    1. मदनर न के अनुसार म डप क िदशा :- अ य म ड़प क िदशा का िनधारण महाम डप से चार

    ओर करना चािहए। महाम डप से इनक ऊँचाई भी कम रखनी चािहए। इन सहायक म ड़प क ऊँचाई

    तो िवति तमा अथात ्एक िब ाभर ही पया होती ह।ै महाम डप या धान म डप या धान म डप

    मयिद घर के समीप न बनाना हो तो उसे घर के पवू या उ र क ओर बनाना उिचत है ।

    2. म डप का माप एवं फल :- 10 या 12 हाथ का म डप अधम, 12-14 हाथ का म डप म यम,

    16-18 हाथ का म डप उ म होता ह।ै यिद तलुादान करना हो तो बीस हाथ का म डप बनाना

    चािहए। प चकु ड़ी या नवकु ड़ी होम एवं सभी कम म म ड़प का े फल आव यकता एवं

    प रि थित के अनसुार िनि त करना चािहए । शीतकाल म अपे ाकृत छोटे म डप म काय कर सकते

    ह,ै पर तु ी मकाल म अि का ताप अस हो जाता ह,ै अत: ी मऋत ु म तो यथास भव म डप

    िवशाल ही होना चािहए ।

    3. म डप भूिम के सम ि भाग :- म डप के उ र-दि ण तथा पवू-पि म म तीन-तीन सू देकर समान

    िवभाग के वगाकार नौ ख ड़ बना लेने चािहए । इसके िलए म डप क एक भजुा के माप का सू ले

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    तथा उसे ितहरा करने पर एक ख ड़ क माप होगी, उससे ईशानकोण से लेकर तीन बार नापकर

    अि कोण तक पहचेँ। अि कोण से नैऋ य कोण तक तीन सू ह गे। वाय यकोण से ईशानकोण तक

    तीन सू क भिूम के नौ बड़े समान वगाकार बना ले। जहाँ पर उन ख ड़ के कोण पड़ते हो, वहाँ पर

    त भ गाड़ देवे। इस कार चार त भ म यभाग म तथा शेष बारह त भ बाहर क ओर गाड़े जायगे।

    यिद म डप प ह हाथ का होगा तो त भ क पर पर दरूी पाँच हाथ पर रहगेी। अठारह (18) हाथ के

    म डप म त भ क पर पर दसूरी छ:-छ: हाथ तथा 21 हाथ के म डप म सात-सात हाथ रहगेी ।

    4. ारिनमाण :- िकसी भी कार का म डप हो, उसके िदग तराल (पवू , दि ण, पि म, उ र) म चार

    ार का िनमाण करना चािहए। इन ार क चौड़ाई दो हाथ होती ह।ै म यम म डप म इसे चार अङ्गलु

    तथा उ म म डप म आठ (8) अङ्गलु बढ़ा देना चािहए। अधम म डप म दो हाथ का चौड़ा ार,

    म यम म डप म दो हाथ चार अङ्गलु का चौखटयु ार तथा उ म म डप म दो हाथ आठ अङ्गलु

    का ार होना चािहए। ार क ऊँचाई तो म डप के उ ाय के तु य ही होनी चािहए य िक म डप के

    बा त भ प चह त माण के होते ह ैतथा एक हाथ भिूम म गड़े रहते ह।ै

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    5. त भिनवेशन :- म यवेदी के चार कोण पर चार त भ आठ हाथ प रमाण गाड़ने चािहए । त भ

    क ऊँचाई का प चमांश अथात ् (8/5) भाग (एक हाथ तथा चौदह अङ्गलु) भिूम म गाड़ दवेे तथा

    त भ के ऊपर चूड़ा िनकाल दवेे, ये चार त भ अ त: त भ कहलाते ह।ै

    त भ क थापना, िशला यास, सू योजना, क ल (शङ्कु) िनवेशन, खननकाय आिद का ार भ अि कोण

    से दि ण म से करे अथात् थम अि कोण से ार भ करे, त प ात् नैऋ यकोण तक जाय,े िफर वाय य तक

    तथा अ त म ईशानकोण होते हए अि कोण होते हए दि णा परूी करे, इसे ही दि ण म कहते ह।ै बाहर के

    ादश त भ थािपत करे तथा भीतर के चार त भ इसी म म गाड़ने चािहए। थम म म बाहर के त भ

    थािपत करे, त प ात ्उनक थापना के बाद भीतरी चार त भ को गाड़ना चािहए। भीतर के चार त भ म

    चूड़ा होना आव यक ह ै य िक उनम विलकाओ ंके िछ थािपत िकये जाते ह।ै

    6. बा त भ :- बाहर क ओर गाड़े जाने वाले बारह त भ पाँच हाथ माण के हो तथा उनका भी

    प चमांश (एक हाथ) भिूम म िनिव करना चािहए। यथा -

    प चमांशो खनेदï◌् भूमौ सवसाधारण िविध:।। - वा तुशा

    7. य शाला म उपयोगी वृ :- त भ-िनमाणािद म य ीय वृ का योग ही समीचीन होता ह,ै

    िजसम बाँस, सुपारी, पलाश, फ ग ु (अ जीर) , वट, ल (पाकर), अ थ (पीपल), िवकङ्कत,

    उदु बर , िव व तथा च दन का योग े ह।ै

    8. य शाला म या य का :- जो वृ घर म लगकर टूट गया हो, वत: सखू गया हो, टेढ़ा, परुाना

    तथा अपिव थान पर उ प न हो, वह त भकम म या य ह।ै

    9. विलकाओ ंक सं या :- ऊपरविणत विलकाओ ंक सं या सोलह त भ के म डप हते ुिनधा रत

    क गयी ह।ै जहाँ और बड़े िवशाल म डप बनते ह,ै वहाँ त भ क अिधकता के साथ विलकाय भी

    अिधक लगती ह,ै अठाइस हाथ के म डप म भिूम के पाँच िवभाग होते ह।ै अत: 5 & 5 = 25 ख ड

    बनते ह, िजनम छ ीस त भ लगते ह ैतथा बह र विलकाय लगती ह।ै इससे अिधक बड़े म डप म

    जो िक पचह र हाथ तक हो सकता ह,ै उसम सात िवभाग होने से 7 & 7 = 49 िवभाग हो जाते है

    तथा उनम एक सौ अ_◌ाईस विलकाय संयोिजत क जाती ह ैएव ं त भ क सं या चौसठ हो जाती

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    o/keZeku egkohj [kqyk fo’ofo|ky;] dksVk 11

    ह ै। पचह र हाथ से अिधक बड़े म डप म दश िवभाग होते ह,ै अत: 10 & 10 = 100 ख ड बनते ह ै

    तथा 11 & 11 = 121 त भ लगते ह,ै िजसम दो सौ चालीस विलकाय लगती ह।ै

    10. विलका थापन िविध :- सव थम म यवेदी के चार कोण म जो चार बड़े त भ ह,ै उनके चूड़ा के

    ऊपर दोन पा म िछ यु विलकाका लगाये । ये चार विलका दोन ओर िछ वाली होनी चािहए,

    िजनके िछ म चूड़ा त भ िव िकये जा सके, त प ात ्इसी भाँित ादश त भ के दोन ओर बारह

    विलकाका लगानी चािहए। इस कार कुल सोलह विलकाका लग चकेु ह ग े और चार भीतरी

    त भ आपस म संयु हो चु के ह ग,े शेष ादश त भ भी पर पर संयु िदखाई दग,े इसम सोलह

    विलका लग चुक ह गी।

    त प ात् भीतर तथा बाहर के त भ को भी पर पर संयु करना ह,ै अत: दो-दो विलकाय येक

    िदशा से म य के बा त भ से लेकर भीतरी त भ तक संयोिजत करे तथा कोण वाले त भ से भी

    भीतर के त भ को संयोिजत करे तब बारह विलकाय और लग चुक ह गी। इस कार विलकाका

    क सं या 16 + 12 = 28 हो जायेगी । कोने वाली चार विलकाय बड़ी होती ह,ै िज ह ''कण कहते ह

    । अब चार बड़ी विलकाय लेकर भीतर के चार बड़े त भ के ऊपर से म यवेदी के म यभाग म ऊँचाई

    पर िशखर बनाने के िलए लगानी चािहए । इस कार कुल ब ीस विलकाका का संयोजन त भ के

    ऊपर करते ह ै । कुछ िव ान विलकाओ ं क सं या छ ीस कहते ह, ता पय यह ह ै िक िजतनी

    विलकाओ ंएवं अ य का से म डप सु ढ़ हो जाये, उतनी सं या म का का योग करना चािहए ।

    11. म डप का आ छादन :- म डप के ऊपरी भाग के म य म िशखर का िनमाण करे तथा उसे बाँस एवं

    कट (कड़वी, सरपत, कुश आिद) से आ छािदत करे, केवल चारो ार को आ छािदत न करे। इस

    म डप एवं त भ को व से भी वेि त करे। ना रयल के प , कदली त भ तथा प चप लवािद से

    भी म डप को सुशोिभत करना चािहए। हय ीव पा चरा के अनसुार म डप म दपण, चामर, घट

    आिद का उपयोग करने से शोभा बढ़ती ह।ै म डप क शोभा बढ़ाने के िलए दवेता, अवतार, महापु ष

    एवं धािमक गु ओ ंके िच को म डप म लगाया जा सकता ह ै।

    12. तोरण ार :- म डप के चार िदशाओ ंम पवूािद म से चार ार के बाहर तोरण का िनमाण करना

    चािहए । इन तोरण का िनमाण ार से बाहर क ओर हटकर एक हाथ के अ तराल से करना चािहए,

    तोरण बाहरी ार होता ह।ै इन तोरण म येक िदशा म पथृक्-पथृक् वृ के का का उपयोग होता ह ै।

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    पवू िदशा म वट अथवा पीपल, दि ण म ज तुफल (ऊमर), पि म म पीपल अथवा पाकर, उ रिदशा

    म ल अथवा वट के का का योग करना चािहए। वतमान प रि थित म िजस देश म जो भी का

    उपल ध हो, उसी का योग करे । देवता तोरण के प म य म डप के बाहर सं ि थत होकर िव का

    िवनाश तथा य क र ा करते ह,ै अत: पवूािद िदशाओ ंम य ोधािद का योग िकया जाता ह।ै तोरण

    क लकड़ी टेढ़ी-मेढ़ी नह होनी चािहए।

    म डप ार से बाहर एक हाथ क दरूी पर यिद अधम म डप हो तो पाँच हाथ ऊँचा, म यम म डप हो तो छ:

    हाथ तथा उ म म डप हो तो सात हाथ ऊँचा म डप बनाना चािहए। इनक चौड़ाई अधम म डप म दो हाथ,

    म यमम डप म दो हाथ तथा छ: अङ्गलु अथात् सवा हाथ, उ म म डप म ढाई हाथ (2 हाथ 12 अङ्गलु)

    रखनी चािहए । येक तोरण म तीन का लगते ह।ै पा म दो त भ तथा ऊपर एक विलका लगती ह ै। इन

    त भ क मोटाई ार क भाँित दस अङ्गलु क होनी अपेि त है । इन तोरण त भ को भी प चमांश भिूम म

    थािपत करना चािहए । तोरण त भ को पाटनेवाली चौड़ी काठ क पिटया (त ता / पटना / पाटना) को फलक

    कहते ह ै। फलक क ल बाई तोरण त भ क ऊँचाई से आधी हो अथात् यिद तोरण पाँच हाथ का ऊँचा ह ैतो

    ढाई हाथ का फलक होना चािहए । उस फलक म दोन ओर िछ बनवाना चािहए तथा िछ म तोरण- त भ

    के चूड़ को िव कर देना चािहए। फलक के म यभाग म ऊपर क ओर छोटे छेद म का िनिमत क ल लगा

    देनी चािहए, िजस पर वै णव याग म शङ्खािद लगा िदये जाते ह ैतथा शैवयाग म क ल के थान पर का िनिमत

    ि शलू लगाये जाते ह।ै उन क ल का चतुथाश फलक गाड़ना चािहए।

    13. शैव एवं वै णव य के तोरण ार पर आयुध, वज एवं पताकािद का थापन :-भगवान ्शङ्कर,

    ीगणेशजी एवं शि (दवेी) से स बि धत य म ि शलू लगाय े जाते ह।ै अधम म डप म शलू नौ (9)

    अङ्गलु ल बा तथा उसका चतुथाश (सवा 2 अङ्गलु) चौड़ा हो, उसका दो अङ्गलु भाग फलक म गाड़ना

    चािहए। यिद म यमम डप हो तो शलू क ल बाई दो अङ्गलु बढ़कर यारह अङ्गलु हो जाती ह ैतथा चौड़ाई

    पौने तीन अङ्गलु (2 अङ्गलु 6 यव) हो जाती ह।ै उसे एक अङ्गलु बढ़ाकर अथात् तीन अङ्गलु भाग फलक

    म गाड़ना चािहए। उ र तोरण म ि शलू दो अङ्गलु और ल बा होकर तेरह अङ्गलु का हो जाता ह ैतथा सवा

    तीन अङ्गलु (3 अङ्गलु 2 यव) उसक चौड़ाई होती ह ैएवं उसका चार अङ्गलु भाग फलक म िव रहता ह ै

    । ीिव ण,ु ीराम आिद से स बि धत य म पवू ार के तोरण पर शङ्ख, दि णी तोरण पर च , पि मी तोरण

    पर गदा तथा उ री तोरण पर प लगाते ह ै। उन क ल क मान-विृ िव णयुाग म एक-एक अङ्गलु होती ह ै

    अथात ्अधम म डप म दशाङ्गलु, म यमम डप म ादशाङ्गलु तथा उ मम डप म चौदह अङ्गलु होती है

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    । उनक चौड़ाई मश: सवा तीन, पौने चार तथा सवा चार होती ह ै। साथ ही फलक म िवि मश: तीन,

    चार तथा पाँच अङ्गलु होती ह।ै त भ के मलू म दो-दो कलश क थापना करना भी अभी ह ै।

    14. वजा :- वजा क ल बाई पाँच हाथ तथा चौड़ाई दो हाथ होनी चािहए। इनके रंग पीत, र

    (लाल/अ ण), कृ ण, नील, ेत, अिसत (धमू), ेत, िसत - ये पवूािद िदशाओ ंके िद पाल के अनसुार हो

    तथा इनको दश हाथ ल बे बाँस पर लगाना चािहए ।

    व ािद क यनूता के कारण वजा- माण एक हाथ ल बाई तथा आधा हाथ चौड़ाई का भी रख सकते ह ै ।

    यथा -

    सवऽथवा बाहिमता वजा: यु: सूयाङ्गुलैरायितका दशैव।

    प े यदा िद िमता तदा तु र तु र ो दशमो िसत ।।

    वजारोपण एक आव यक कम ह ै य िक वजारिहत म डप म जो भी माङ्गिलक कृ य िकय ेजाते ह,ै वे सभी

    िन फल हो जाते ह।ै यथा -

    वजेन रिहते नम डपे तु वथृा भवेत ï।

    पूजा होमािदकं सव जपा ंय कृतं बुधै:।। - पा चरा

    15. िदशाओ ंके अनुसार वण व वजाधीश (इन वजाओ ंपर िद पाल के वाहन का िच भी बनाकर इ ह

    थािपत करना चािहए।) :-

    िदशा वण वजाधीश वाहन

    1. पवू पीत इ हाथी

    2. अि नकोण अ ण (लाल) अि न बकरा

    3. दि ण कृ ण यम मिहष

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    4. नैऋ य नीला िनऋित िसंह

    5. पि म ेत व ण म य/मकर

    6. वाय य अिसत (धू ) वाय ु िहरण

    7. उ र ेत सोम अ

    8. ईशान ेत िशव वषृभ

    9. ऊ व ेत ा हसं

    (ईशान तथा पवू के म य म)

    10. अध: ेत अन त ग ड़

    (िव ण ुके िलए नैऋ य और पि म के म य म)

    16. पताका िनवेशन :- वजा-िनवेशन के प ात ्पताका-िनवेशन भी करना चािहए। पताकाय भी लोकेश

    (िद पाल ) के वण के अनसुार हो, िजनक दीघता सात हाथ तथा आयित (चौड़ाई) एक हाथ होनी चािहए। उन

    पताकाओ ंम लोकेश के आयधु के िच बनाकर उ ह ेिद कर (10 हाथ) ल बे बाँस के शीष पर लगाकर उन

    बाँस का प चमांश (10/5) भिूम म गाड़ देना चािहए ।

    17. िदशाओ ंके अनुसार वण व पताकाओ ंके वामी :-

    िदशा वज ि थित पताका ि थित

    1. पवू ार इ ऐरावत वज उ री शाखा व पताका दि णी शाखा म

    2. अि कोण पवू क ओर अि का उप वज दि ण क ओर शि पताका

    3. दि ण पवूशाखा म यम का मिहष वज पि मीशाखा म द डपताका

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    4. नैऋ यकोण दि ण क ओर िसंह वज उ र क ओर खड्गपताका

    5. वाय यकोण पि म क ओर मगृ वज उ रीशाखा म पाशपताका/मीन वज

    6. वाय यकोण पि म क ओर मगृ वज उ र क ओर अङ्कुशपताका

    7. उ री ार शाखा म मगृ वज उ र क ओर अङ्कुशपताका

    8. ईशानकोण उ री ओर वषृ वज पवू म ि शलूपताका

    9. पवू+ईशान उ र म ा का हसं वज दि ण क ओर कम ड़लुपताका के म य

    10. नैऋ य दि ण क ओर ग ड़ वज उ र क ओर च पताका पि म के म य

    18. महा वज :-इन सभी के अित र एक महा वज भी लगाय,े िजसके अ भाग पर िकङ्िकणी, चँवर आिद

    सुशोिभत होने चािहए। यह महा वज ब ीस हाथ के बाँस पर लगाय,े असमथता म इसे दस हाथ या सोलह हाथ

    या इ क स हाथ के बाँस पर योग करे। इस महा वज को िविच वण (प चवण) रखे तथा उस पर उस देवता

    के वाहन का िच बनाय, िजसके िनिम वह य ािद कम िकये जा रह ेह ै । कह वजा चौकोर तथा पताका

    ि कोण बनाते ह ैतथा अनेक िव ान वजा को ि कोण तथा पताका को चतु कोण बनाते ह।ै अत: इनके आकार

    थानीय लोकाचार से अनसुार बनाय ।

    म डप क स जा म वजाओ,ं पताकाओ,ं वाहन , आयुध , त भ , मेखलाओ ंआिद म योग िकये

    जाने वाले रङ्ग के गुणधम :-

    1.8 कु ड -िनमाण एवं उनक सं ाय

    1. आहित के अनुसार कु ड -िनमाण :-

    आहितसं या कु ड िनमाण का माण

    1. 50-99 रि न माणकु ड (21 अङ्गलु)

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    2. 100-999 अरि न माणकु ड (22 अङ्गलु)

    3. 1,000-9,999 एक हाथ माणकु ड (24 अङ्गलु)

    4. 10,000-99,999 दो हाथ माणकु ड ( 34 अङ्गलु )

    5. 1,00000-9,99,999 चार हाथ माणकु ड ( 48 अङ्गलु )

    6. 10,00000-1,0000000 छ: हाथ माणकु ड ( 58 अङ्गलु 6 यव )

    7. एक करोड़ से अिधक आठ हाथ माणकु ड (67 अङ्गलु 7 यव) इसका उपयोग कोिटहोम म

    होता है।

    अ य मत :-1. एक लाख से दस लाख आहित एक हाथ से दस हाथ माणकु ड (24 अङ्गलु से 240 अङ्गलु)

    त प ात ्दस लाख तक आहितय के िलए '' ल ैक वदृ् या अथात ्एक-एक लाख पर एक-एक हाथ बढ़ा देना चािहए । िजतने लाख आहितयाँ हो , उतने ही हाथ का कु ड बनाना चािहए ।

    नोट :-हवनकु ड के आकार का िनधारण आचाय आहित के अनसुार विववेक से देशकाल प रि थित के

    अनसुार करे ।

    2. कु ड क सं ाए ँ:-

    यिद कु ड म पाँच या नौ मेखलाय बनायी जाये तो भी य म डप म अिधक अवकाश क आव यकता रहती

    ह।ै िव कम काश के अनसुार िविभ न म ड़प क सं ाय िन िलिखत ह ै:-

    1. पु पक 2. पु पभ 3. सुवृ 4. अमतृन दन 5. कौश या

    6. बिु संक ण 7. गजभ 8. जय 9. ीवृ 10. िवजय

    11. वा तुकोण 12. तु तधर 13. जयभ 14. िवलास 15. सं ि

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    o/keZeku egkohj [kqyk fo’ofo|ky;] dksVk 17

    16. श ुमदन 17. भा यप च 18. न दन 19. भान ु 20. मानभ क

    21. सु ीव 22. हषण 23. किणकार 24. पदािधक 25. िसंह

    26. यामभ 27. श ु न

    3. माप के अनुसार कु ड फल :-

    िदशा कु ड फल

    1. पवू चतुर कु ड कायिसि

    2. आ ेय योिनकु ड पु ाि

    3. दि ण अधच कु ड क याण

    4. नैऋ य ि कोणकु ड श ुनाश

    5. पि म वतलुकु ड शाि त

    6. वाय य षड कु ड मारण या उ छेद कम हतेु े

    7. उ र प कु ड वषाकारक

    8. ईशान अ ा कु ड आरो यदायक

    ऊपर विणत कु ड के अित र प चा तथा स ा कु ड का िनमाण भी कु ड़ाकािद थ म िनिद ह।ै

    प चा कु ड अिभचारकम क शाि त करता ह ैतथा स कोणकु ड भतूदोष क शाि त कर देता है ।

    4. कु डमानािद च :-

    हाथ 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 16

    अङ्गलु 24 33 41 48 53 58 63 67 72 75 96

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    o/keZeku egkohj [kqyk fo’ofo|ky;] dksVk 18

    यव 0 7 4 0 5 6 3 7 0 7 0

    यकूा 0 4 4 0 2 2 7 0 0 1 0

    िल ा 0 4 3 0 4 3 7 3 0 2 0

    बाला 0 3 4 0 6 2 2 5 0 0 0

    रथ 0 5 5 0 4 6 0 6 0 4 0

    य 0 4 0 0 0 0 1 0 0 0 0

    5. नवकु ड़ी य हेतु कु ड क ि थित :-आचाय ( धान) कु ड / धान वेदी/ धान पीठ कौन सा हो, यह

    संकेत नह ह,ै पर तु शारदाितलक एवं िस ा तशेखर के अनसुार आचायकु ड को ईशान तथा पवू के म य म

    कहा गया ह।ै

    6. प चकु ड य :- प चकु ड़ी प म चार कु ड आशाओ ं(मु य िदशाओ)ं म बनते ह ैतथा पाँचवा ईशान

    म बनता ह।ै प चकु डी प म यिद य हो तो आचाय कु ड को म य म ही रखना चािहए। ित ा म पवू एवं

    ईशान के म य भी रख सकते ह,ै ऐसा भी कुछ मधू य िव ान का अिभमत ह।ै

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    o/keZeku egkohj [kqyk fo’ofo|ky;] dksVk 19

    7. एककु डी य :-

    ''चैकं यदा पि मसोमशैवे अथात् एककु ड़ी प म उस कु ड को पि म िदशा म अथवा उ र िदशा म

    ईशानकोण म बनाना चािहए। देव ित ा म उ र िदशा म ही कु ड िनमाण करना चािहए। अ य म िवक प से

    काम कर सकते ह।ै इन कु ड म िदशाओ ंका िनधारण म यवेदी से सवा हाथ क दरूी पर अभी िदशा म करना

    चािहए (यहाँ म यवेदी से ता पय म यख ड स ह)ै । सामा यत: नवकु ड़ी, प चकु ड़ी तथा एककु ड़ी होम - ये

    तीन प ह,ै पर तु याग म एकादश कु ड भी बनाये जा सकते ह ैतथा चतु कु ड़ी य का िवधान भी िमलता

    ह।ै दानािदकाय म स कु ड का िवधान भी ह ै।

    8. वणभेद एवं िलङ्गभेद से कु ड के आकार का िवचार :-

    1. ा ण के िलए चतुर कु ड,

    2. ि य के िलए वृ ाकार कु ड ,

    3. वै य के िलए अधच कु ड ,

    4. शू के िलए ि कोण कु ड ,

    5. ि य के िलए योिनकु ड बनाना चािहए ।

    अथवा सम त वण के िलए चतुर या वृ ाकार कु ड का िनमाण करना सदैव फलदायी होता ह ै।

    9. आचाय कु ड :- जहाँ हवन धानकम होगा, वहाँ कु ड म य म भी बनाते ह।ै अत: नवकु ड़ी तथा

    प चकु ड़ी प म आचायकु ड म य म ही बनता ह,ै पर तु दी ाकाय एवं ित ा म आचायकु ड पवू-ईशान

    के म य म ही रहना चािहए।

    नव ह य :- जब नव ह का हवन िकया जाय ेतो सयू क धानता से म य म जो सूयकु ड बनेगा, वही

    आचायकु ड होगा । जहाँ म य म दो कु ड हो, वहाँ म यख ड़ के दो कु ड म दि ण िदशा का कु ड ही

    आचायकु ड होगा ।

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    o/keZeku egkohj [kqyk fo’ofo|ky;] dksVk 20

    शतमुख य :- जहाँ एक सौ आठ (108) या इससे अिधक कु ड हो, वहाँ िवशेष वचन से आचायकु ड

    होता ह,ै िजनक योिन पवू म होती है ।

    देव ित ा य :- नवकु डीप म पवू-ईशान के म य आचायकु ड होता ह,ै पर तु प चकु ड़ी से ित ा

    कराने पर आचायकु ड म डप के ईशानख ड़ म आचायकु ड रहता ह।ै अ य मत से ईशान तथा पवू का कु ड

    भी आचाय कु ड वीकार िकया गया ह।ै ित ा म जहाँ एक ही कु ड बने, वहाँ उसे ईशान, पवू, उ र या

    पि म म िवक प से बनाया जाता ह ै।

    चतु कु ड़ी िवधान :- यिद ित ाकाय म चार कु ड का िनमाण हो तो पवू िदशा धान होने से उसी का कु ड

    आचायकु ड होना चािहए ।

    स कु ड़ी िवधान :- देव ित ा म यिद स कु ड़ी िवधान हो तो पवू िदशा का कु ड आचायकु ड होता ह ै।

    योदश कु ड :- इसम थम प चकु ड़ी प क भाँित चारो मु य िदशाओ ंम एक-एक कु ड का िनमाण

    कर प चम धान (आचाय) कु ड अि कोण म बनाते ह।ै तदपुरा त सभी आठ िदशाओ ंम एक -एक कु ड

    का िनमाण कर िदया जाता ह।ै त सार म यह िवधान िमलता ह ै।

    1.9 कु ड िनमाण

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    िविध

    देशकाल प रि थित के अनसुार तथा हवन क मा ा के अनसुार यिद आव यकता न हो तो कु ड न बनाकर

    थि ड़ल ही बना लेना चािहए। सुनहरी या लालरङ्ग क िम ी अथवा अ य शु िम ी से एक हाथ ल बा, एक

    हाथ चौड़ा तथा चार अङ्गलु ऊँचा एक समान चौकोर थि ड़ल बना लेवे। थि ड़ल म योिन भी बनानी

    चािहए, पर तु क ठ नह बनावे य िक क ठ तो खात म ही बन सकता ह ै।

    1. कु ड हेतु खात :- खात से ही कु ड अपना प धारण कर पाता ह ैइसिलए खात का भी वत प म

    कु ड के अङ्ग म थान ह।ै खात मेखला के साथ ही े के समान आकार एवं आयाम का होना चािहए।

    अ य िव ान ने मेखलाओ ंके िबना ही खात क गहराई िनधा रत क ह ै।

    कु ड मान के िवभाजन :- कु ड मान के आठ भाग क िजये तो चौबीस अङ्गलु म (24/8 = 3) तीन

    अङ्गलु या मक एक भाग होता ह।ै

    कु ड खात :- भिूमतल से पाँच भाग (5 & 3 = 15) अथात् प ह अङ्गलु नीचे तक खनन करना चािहए

    और शेष तीन भाग म (3 × 3 = 9) अथात ्नौ अङ्गलु क ऊँचाई तक तीन मेखलाओ ंका िनमाण करना

    चािहए।

    अ. - मेखलासिहत खात :- खात क कुल गहराई एक हाथ के कु ड म एक हाथ (24 अङ्गलु) ही होनी

    चािहए । मान लीिजये िक भिूम से मखेलाओ ंक ऊँचाई चार अङ्गलु हो तो कु ड क गहराई भिूम से नीचे क

    ओर बीस अङ्गलु क जाती ह।ै इस कार (20 + 4 = 24) कुल चौबीस अङ्गलु का खात मान लेते ह,ै यिद

    मेखला का मान पाँच अङ्गलु हो तो भिूम से नीचे उ नीस (19) अङ्गलु खात िकया जाता ह।ै छ: अङ्गलु (6)

    मेखला क ऊँचाई हो तो अठारह (18) अङ्गलु का खात िकया जाता ह।ै छ: अङ्गलु का मान लेते ह।ै सात

    अङ्गलु क मेखला म भिूम से नीचे स ह (17) अङ्गलु का ही खात करते ह।ै आठ अङ्गलु मेखला होने पर

    खात माण मा सोलह अङ्गलु होगा। नौ अङ्गलु क मेखला होने पर क ठ से नीचे खात का माण मा

    प ह अङ्गलु ही होता ह।ै इस कार कुल चौबीस अङ्गलु मान लेते है। मेखलासिहत खात सू म होम य के

    िलए होता ह।ै

    ब. - मेखलारिहत खात :- खात करने पर चौबीस अङ्गलु क गहराई म मेखलाओ ंक ऊँचाई को सि मिलत

    नह करते ह ै। इस गहराई के ऊपर क ठ रहता ह,ै त प ात् मेखलाय बनायी जाती ह ै। इसम भिूम म परूा चौबीस

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    o/keZeku egkohj [kqyk fo’ofo|ky;] dksVk 22

    अङ्गलु खोदते ह।ै पायस, च (खीर), बेलफल, इ खु ड़ आिद के िलए मेखलारिहत खात िकया जाता ह।ै

    इसम कु ड क गहराई अिधक होती ह,ै िजससे थलू य को कु ड म यि थत होने म सु िवधा होती ह।ै

    शारदाितलक के अनसुार कु ड क ल बाई-चौड़ाई के अनपुात म खात भी उतनी ही ल बाई-चौड़ाई का होना

    चािहए । जब सिमधा के साथ गोमयिप ड़ (छाणे/क ड़े) का उपयोग होता ह,ै तब मेखलारिहत खात करना ही

    उिचत होगा य िक वतमान का के अभाव गोमयिप ड का उपयोग सव अिधकमा ा म िकया जाता ह ै।

    2. क ठ िनधारण :- कु ड म उसी के समान आकार का क ठ भी भतूल के तर पर बनाना चािहए। यिद एक

    हाथ का कु ड ह ैतो क ठ भी एकाङ्गलु ही बनाय।े यिद कु ड दो हाथ का ह ैतो क ठ दो अङ्गलु चौड़ा रखे।

    कु ड के माण का 24वाँ भाग क ठ होना चािहए। भिूम के तर पर चार भजुाओ ंम एक अङ्गलु अवकाश

    (यह अवकाश ही मेखलाएँ होती ह ै) छोड़कर मेखलाएँ बनानी चािहए । िस ा तशेखर के अनसुार क ठ एक ही

    अङ्गलु चौड़ा माना है, इसे गल भी कहा गया ह ै।

    सोमश भ ुके अनसुार क ठ का माण दो अङ्गलु है , उनके मतानसुार कुछ आगम म क ठ दो अङ्गलु भी

    चौड़ा होता ह,ै पर तु सवस मत एवं चिलत प एक अङ्गलु का ही ह,ै वही सवमा य ह।ै दो हाथ वाले कु ड

    (34 अङ्गलु) म क ठ दो अङ्गलु बनाया जा सकता है ।

    3. कु ड क मेखला का िनमाण :-

    अ. - थम मेखला :- थम मेखला क ऊँचाई कु ड कृित का छठा भाग अथातï◌् (24/6 = 4) चार

    अङ्गलु तथा चौड़ाई भी इतनी ही होनी चािहए।

    ब. - ि तीय मेखला :- म य म ि तीय मेखला कु ड के े फल का गजांश (अ मांश) अथातï◌् तीन

    अङ्गलु चौड़ी तथा तीन ही अङ्गलु ऊँची होनी अपेि त ह।ै

    स. - ततृीय मेखला :- यह सबसे नीचे बनती ह,ै िजसक ऊँचाई कु ड े का अकाश अथातï◌् 12वाँ भाग

    होती ह।ै यह 2 अङ्गलु चौड़ी तथा 2 अङ्गलु ऊँची होती ह।ै

    एक हाथ को 24वाँ भाग अङ्गलु होता है, उसी के ारा मेखला, क ठ तथा नािभ का िनमाण करना चािहए।

    कु ड क माप के िलए कु ड का रका म आज के फ ते या केल क भाँित प का बनाने का िनदश ह,ै िजस

    काठ क पतली प ी पर बनाकर अङ्गलु तथा यव के िच लगते ह।

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    o/keZeku egkohj [kqyk fo’ofo|ky;] dksVk 23

    द. पाँच या सात मेखलाए ँ:- कु ड म पाँच तथा सात मेखलाएँ भी बनायी जाती ह।ै ल णसं ह थ के

    अनसुार पाँच मेखलाएँ मु य होती ह ैतथा तीन मेखला म यम होती ह।ै भिव यपरुाण के अनु सार ल होम म

    स मेखला मक कु ड का उपयोग होता ह ैअथवा प चमखेला के कु ड को बनाना उिचत ह ै। िजस कार का

    कु ड हो उसी कार क मेखलाओ ंका िनमाण करना चािहए अथात् चतु र कु ड म मखेला भी चतु ाकार

    ही होगी । ि कोण कु ड क मेखला ि कोण, प चा क प चभजु, षड क षड्भजु, स ा क स भजु एवं

    अ ा क अ भजु आकार क होती ह।ै योिनकु ड म मेखलाय यो याकार तथा वृ कु ड म मेखला वृ ाकार

    होती ह।ै प कु ड क मेखला भी प ाकार होती ह ै। यिद कु ड िवषम षड या िवषम अ ा ह ैतो मखेला

    भी वैसी ही होनी चािहए।

    मेखलाओ ंका फल :-

    मेखला क सं या फल अ य मत

    1. एक मेखला अधम अ य त अधम

    2. दो मेखला म यम अधम

    3. तीन मेखला उ म म यम

    4. पाँच मेखला - उ म

    वण के अनुसार मेखला :-

    वण मेखला

    1. ा ण तीन मेखलायु कु ड

    2. ि य दो मेखलायु कु ड

    3. वै य एक मेखलायु कु ड

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    o/keZeku egkohj [kqyk fo’ofo|ky;] dksVk 24

    य कता यजमान के अनसुार मेखलाय एक-दो या तीन क सं या म रखी जा सकती ह।ै इन मेखलाओ ंम थम

    मेखला साि वक , दसूरी मेखला राजसी तथा तीसरी मेखला तामसी कही गयी ह।ै

    ि मेखला के देव :-

    1. थम मेखला का वण ेत होता ह,ै इसके दवेता ाजी ह,ै अत: इसम देव का पजून िकया जाता ह।ै

    इसके ह च तथा शु ह।ै 2. ि तीय मेखला का र वण ह,ै इसके देवता िव ण ु(अ यतु) है , इसके ह सयू

    तथा मङ्गल ह।ै 3. ततृीय मखेला कृ णवण क होती ह,ै िजसके देव भगवान शङ्कर ( ) ह ैतथा इसके ह

    शिन तथा राह ह।ै बधु तथा बहृ पित क ठ के ह होते ह।ै

    4. कु ड म योिन-िनमाण :- पवू , आ ेय तथा दि णख ड़ म जो कु ड बनाये जाये, उनम दि ण िदशा म

    योिन लगानी चािहए तथा योिन का अ भाग उ रिदशा म हो। त प ात ् नैऋ य, पि म, वाय य, उ र तथा

    ईशान के पाँच कु ड म योिन पि म िदशा म लगानी चािहए तथा उसका अ भाग पवू म होना चािहए। नवकु ड

    (आचायकु ड ) ईशान तथा पवूिदशा के म य म बनता है, उसम योिन दि ण िदशा क ओर तथा अ भाग उ र

    क ओर रहगेा। योिनकु ड म योिन नह लगानी चािहए य िक वह परूा कु ड ही योिन के आकार का होता ह,ै

    पर तु उस यो याकार कु ड का अ भाग उ र म रखना चािहए तथा होता कु ड के दि णिदशा म बैठकर हवन

    करेगा। इस कार िकसी भी कु ड क भजुा म ही योिन बनानी चािहए। दो भजुाओ ंके कोण म योिन कभी नह

    बनानी चािहए।

    पवूा योिन के कु ड म होता पि म िदशा म बैठकर पवूािभमखु होकर हवन करते ह ैतथा उ रा योिन वाले

    कु ड म होता दि णिदशा क ओर पीठ करके तथा उ रािभमखु होकर बैठते ह।ै

    योिन :- सव थम कृित चतुर (24) अङ्गलु माण का आधा (12 अङ्गलु) दीघ तथा आठ अङ्गलु

    िव तार वाला एक अङ्गलु ऊँचा चतु र बनाय।े इस चतरु को कु ड क उस िदशा म बनाना चािहए, िजसम

    योनी बनानी ह।ै इसम छ: अङ्गलु के अ तर पर म य म ल बाई म एक रेखा ख च दे तथा उस रेखा को म य से

    काटकर जाने वाली दसूरी रेखा भी ख च देवे , यह योिन आगे कु ड म झकु हई तथा कु ड म िव होती

    िदखनी चािहए।

    योिन बारह (12) अङ्गलु ल बी, आठ (8) अङ्गलु चौड़ी तथा एक (1) अङ्गलु ऊँची होनी चािहए। यह

    कु ड म एक (1) अङ्गलु आग े िनकली हई तथा ढलान वाली होनी चािहए। इसक ऊँचाई आग ेक ओर

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    o/keZeku egkohj [kqyk fo’ofo|ky;] dksVk 25

    यारह (11) अङ्गलु तथा प भाग क ओर बारह अङ्गलु होनी चािहए। योिन का आकार पीपल के प े

    अथवा पान के प ेके स श होना चािहए।

    यिद कु ड क मेखला ादश (12) अङ्गलु हो तो योिन-िनवेशन :- जब मेखलाएँ चार-चार अङ्गलु ऊँची

    तथा इतनी ही चौड़ी होकर तीन क सं या म हो, तो उस ि थित म प ह अङ्गलु ल बी, दश अङ्गलु चौड़ी

    तथा प ह अङ्गलु ऊँची योिन का िनमाण करना चािहए। योगसार के अनसुार ऊँचाई का माण तेरह

    अङ्गलु बताया गया है। योिन का िकनार क ऊँचाई एक अङ्गलु ही होनी चािहए।

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    o/keZeku egkohj [kqyk fo’ofo|ky;] dksVk 26

    योिन क आव यकता : ताि क य म योिन बनाने क पर परा ह ैतथा कु ड म योिन न होने को दोष

    (भाया िवनाशनं ो ं कु ड़े योिनिवना कृते) माना गया ह।ै कह-कह यह भी बताया गया ह ैिक यो यभाव म

    अप मार तथा भग दर रोग होता ह,ैएवं मानहीनता के कारण द र ता होती ह ै। म य मेखला म योिन के पीछे

    िछ बनाया जाता ह,ै िजससे ल बी-पतली-गोल लकड़ी लगा दी जाती ह।ै योिन बन जाने पर उसके ऊपर दोन

    तरफ िम ी के दो गोल िप ड़ रख िदये जाते ह,ै जो उ र तथा दि ण म रहते ह ै।

    5. कु ड म नािभ :- नािभ का आकार कु ड के समान ही रखना चािहए। यिद कु ड समचतुर ह ैतो नािभ

    भी समचतु होगी। यिद ि कोण ह ैतो नािभ भी ि कोण होगी, इसी कार यािनकु ड म नािभ यो याकार हआ

    करती ह।ै षड तथा अ ा कु ड म नािभ का आकार इसी कार होता है, पर तु जो नािभ कु ड़ाकार बनाई

    जाय,े उसे गहरी बनानी चािहए तथा उसका उ ाय विणत ह,ै उसे कु ड भतूल से गहराई के प म बनानी

    चािहए । मनु य म नािभ का आकार जैसा होता है, वैसी ही नािभ कु ड म बनानी चािहए। वह गत प (गड्ढे

    के समान) या अ जाकार (कमल क भाँि�