hindi poems by subhadra kumari chauhan

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झाँसी की रानी िसंहासन िहल उठे राजवंश ने भृकु टी तानी थी, बूढ़े भारत आई िफर से नयी जवानी थी, गुमी हई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी , दर िफरंगी को करने की सबने मन ठानी थी। चमक उठी सन सावन , वह तलवार पुरानी थी, बुंदेले हरबोल के मुँह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मदानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी, लआमीबाई नाम, िपता की वह संतान अके ली थी, नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी, बरछी ढाल, कृ पाण, कटारी उसकी यही सहेली थी। वीर िशवाजी की गाथाय उसकी याद ज़बानी थी, बुंदेले हरबोल के मुँह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मदानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। लआमी थी या दगा थी वह वयं वीरता की अवतार , देख मराठे पुलिकत होते उसकी तलवार के वार, नकली यु-यूह की रचना और खेलना खूब िशकार, सैय घेरना, तोड़ना ये थे उसके ििखलवार। महारार-कु ल-देवी उसकी भी आराय भवानी थी, बुंदेले हरबोल के मुँह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मदानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

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Hindi poems by Subhadra Kumari Chauhan : Jhansi ki Rani, Mera Naya Bachpan and Thukra do ya pyaar karo

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