hindi poems by nagarjun

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गुलाबी चूिड़याँ ाइवेट बस का साइवर है तो या हआ , सात साल की बची का िपता तो है ! सामने िगयर से उपर हक से लटका रखी काँच की चार चूिड़याँ गुलाबी बस की रझतार के मुतािबक िहलती रहती झुककर मने पूछ िलया खा गया मानो झटका अधेड़ का मुछड़ रोबीला चेहरा आिहःते से बोला: हाँ सालाख कहता हँ नहीं मानती मुिनया टाँगे हए है कई िदन से अपनी अमानत यहाँ अबा की नज़र के सामने भी सोचता हँ या िबगाड़ती चूिड़याँ िकस ज़ुम पे हटा दँ इनको यहाँ से ? और साइवर ने एक नज़र मुझे देखा और मने एक नज़र उसे देखा छलक रहा था दिधया वासय बड़ी-बड़ी आँख तरलता हावी थी सीधे -साधे पर

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Hindi poems by Nagarjun : Gulaabi churiyaa and Baadal ko girte dekha hain

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