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  • Address: Plot No. A-12,13, Flat No. 201, 2nd Floor, Ansal Building, Mukherjee Nagar, New Delhi, Delhi 110009

    Phone No: 011-47354625/ 26, 9205274741/42, 011-49274400

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    परिचय

    अपने Art & Culture Series के पपछले अकं में हमने पित्रकला से सम्बपधित कुछ बारीपकयों व इसके इपतहास पर प्रकाश डालने

    की कोपशश की थी। हमारे आज के इस अकं में हम पित्रकला से जडेु कुछ प्रमखु स्थलों पर ििाा करेंग।े साथ ही इन स्थानों की प्रमखु

    Paintings के बारे में भी जानेंग-े

    प्राचीन भाितीय चचत्रकला

    यद्यपप अब प्रािीन भारतीय पित्रकला के अवशेष बहुत बरुी दशा में हैं, तथापप वे उसकी महानता प्रदपशात करने के पलए पयााप्त हैं। वे

    कुछ गफुा मपंदरों में परू्ातः पभपि पित्रें के रूप में हैं। इसमें कोई सधदहे नहीं पक अपिकांश मपंदर पकस रूप में पिपत्रत पकये जाते थे रर

    मपूता की स्थापना का स्थान िमकीले रंगों से रंगा जाता था जैसा पक प्रायः पहदं ूमपंदरों में आज भी होता ह ैरर यत्र-तत्र पभपि पित्रें की

    पवस्ततृ योजना रहती थी। िापमाक उद्दशे्यों के पलए अपपात कुछ कृपत्रम गफुाए ँपित्रकला की अत्यपिक पवकपसत शपैलयों के उदाहरर्

    प्रस्ततु करती हैं। पनपवावाद रूप से कहा जा सकता ह ैपक अजधता के पभपि पित्र इनमें से एक हैं। मध्य प्रदशे के ग्वापलयर के पास पवधध्य

    श्रेर्ी पर पस्थपत बाघ की गफुा के बरामद ेकी दीवारों पर पिपत्रत हापथयों के पित्र प्रािीन भारतीय पित्रकला की उत्कृष्टता की पराकाष्ठा

    प्रदपशात करते हैं।

    भारत में प्रागपैतहापसक काल की पित्रकला की खोज सवाप्रथम अगं्रेजों ने की जो यहाँ शासन करने के उद्दशे्य से आये थे। इसका श्रेय

    आपिाबाल्ड कालााइल तथा जॉन कॉकबना को पदया जा सकता ह।ै पवजयगढ़ दगुा के पास घोडमगंर नामक पशलाश्रय में गैंडे के पशकार

    का पित्र पमला। यह पित्र एक बडे पत्थर के भीतरी भाग में अपंकत ह ैजो पशलाश्रय के पथरीले पकनारे का खपडडत अंश प्रतीत होता

    ह।ै इसमें गैंडे को छः मनषु्य भाले से मारते हुए पिपत्रत पकए गए हैं। इलाहाबाद पजले के खरैागढ़ के दपिर्ी भाग में भी पिपत्रत गफुायें

    पमली हैं। 1911 के पमजाापरु गजपेियर में सोन नदी घािी की पिपत्रत गफुाओ ंको सबसे प्रािीन मानव पनवास स्थान बताया गया ह।ै

    ‘भीमबेिका’ की गफुाओ ंसे बडी मात्रा में परुातापत्वक अवशेष पमले हैं। यहाँ पस्थपत 600 से अपिक गफुाओ ंमें से 475 में पशलापित्र

    प्राप्त हुए हैं। अपिकतर गफुायें मध्यपाषार् काल की हैं। यहाँ के अपिकतर पित्र लाल तथा सफेद रंग के हैं। कुछ हरे रर पीले रंगों में

    भी हैं। इनमें गेंडा, िीता, जगंली सअूर, गाय, बैल, नीलगाय, भैंस, भाल,ू बधदर, सांभर, पहरन आपद पशओु ंका कलात्मक अंकन पकया

    गया ह।ै एक पित्र में पकसी जलुसू का पित्रर् ह,ै पजसमें अश्वारोही मनषु्य पदखाये गए हैं। भीमबेिका के पशलापित्र शलैी तथा पवषय

    की दृपष्ट से तत्कालीन मानव जीवन की सधुदर झांकी प्रस्ततु करते हैं। इनके मखु्य पवषय हैं- वधय जीवों का आखिे, परस्पर यदु्ध करते

    हुए मनषु्य या उनके िापमाक अनषु्ठान रर पजूा आकृपतयां।

    चिर्ाापुि के्षत्रः इसके अतंगात लेखपनया, कोहबर, पभोसा, पवढंम, लोहरी, रौंप, कडडाकोि, सोरहोघाि, पवजयगढ़, िनुार आपद िेत्र

    आते हैं। ये सभी सोन नदी घािी में हैं। लेखपनया दरी के एक पित्र में कुछ घडुसवार पालत ूहपथनी की सहायता से जगंली हाथी को

    पकडते हुए प्रदपशात पकए गए हैं। एक अधय पित्र घायल सअूर का ह ैजो मुहं खोले अपनी पीडा व्यक्त करते हुए पदखाया गया ह।ै

    भारतीय मपूता रर पित्रकला: प्रागपैतहापसक पित्रकला

    (Sculpture and Painting: Prehistoric Paintings of India)

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    बााँदा के्षत्रः यहाँ सरतह, मलवा, कररयाकंुड, अमावां, बरगढ़ आपद से पित्रकला के उदाहरर् प्राप्त होते हैं। मापनकपरु के पशलाश्रय में

    तीर-कमानिारी घडुसवार तथा पपहयारपहत छकडा गाडी में बैठे शपक्त का दृश्य पिपत्रत पकया गया ह।ै

    िायगढ़ के्षत्रः इसके अतंगात पसंघनपरु, कबरा पहाड, नवागढ़, बोतालदा एव ंखरपसया आते हैं। पसंघनपरु के पित्र सबसे अच्छे हैं। इनमें

    भैंसा, सअूर, सूंढ़ उठाये हुए हाथी, भैंसे आपद पश ुपिपत्रत हैं। भैंसे पर कुछ व्यपक्त बरछे से आक्रमर् करते हुए पदखाये गए हैं। यहाँ

    िेपांकन पद्धपत के पित्र भी पमले हैं।

    पाँचिढ़ी के्षत्रः यह स्थल महादवे पवात श्रेर्ी में पस्थत ह।ै सबसे अपिक संख्या में पशलापित्र यहीं से पमलते हैं। यहाँ पर पशकार के

    अपतररक्त दपैनक जीवन से संबंपित पित्रकाररयाँ भी अपंकत हैं। गाय िराते हुए तथा मि ुएकपत्रत करते हुए व्यपक्त पिपत्रत पकए गए हैं।

    स्त्री-परुूष झडुड बनाकर नािते हुए, पदखाये गए हैं।

    होशंगाबाद के्षत्रः यह पँिमढ़ी से लगभग 45 मील की दरूी पर नमादा नदी के रमर्ीक ति पर पस्थत ह।ै इसी के समीप पस्थत आदमगढ़

    की पहाडी के अनेक पशलाश्रयों में आपदम प्रकृपत के पित्र अपंकत हैं, पजनमें हल्के पीले रंग में बनाया गया पवशाल हाथी का पित्र

    सबसे परुाना ह।ै

    के्षपांकन चिचि

    इसमें पकसी माध्यम को मध्य में रखकर उसका रूप वास्तपवक आकार के बाहरी भाग में रंग भरकर उभार पदया जाता ह ैतथा वह पबना

    रंग के ही परू्ा लगने लगती ह।ै कोहबर तथा सोरहोघाि (पमजाापरु िेत्र) के पशलाश्रयों में इस पवपि के पितं्रकन प्राप्त हुए हैं।

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