निजान्द योग श्री राज स्वामी · तू तो...

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जाद योग ी राज वामी जाद योग ी राज वामी काशकः ी ाणाथ ापीठ काशकः ी ाणाथ ापीठ , , सरसावा सरसावा 1 / 414 / 414

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

परकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठपरकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठ, , सरसावा सरसावा 11 / 414/ 414

नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

नि�जा�नद योगलखक

शरी राज� सवामी

परकाशक

शरी पराण�ाथ जञा�पीठ�कड रोड, सरसावा, सहार�पर, उ.पर.

www.spjin.org

सवा(धि*कार सरधि+त © २०१२, शरी पराण�ाथ जञा�पीठ टरसट

पी.डी.एफ. ससकरण – २०१९

परकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठपरकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठ, , सरसावा सरसावा 22 / 414/ 414

नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

अ�भनिमका

यगो-यगो स मा�व यह जा�� का परयास करतारहा ह निक उसका वासतनिवक सवरप कया ह। जब उसकीआख बाहय जगत की चकाचौ* म खो जाती ह और बधिKभी उसी का अ�सरण कर� लगती ह, तो अनतरातमा सआवाज आती ह निक र मा�व! त समभल जा। त अबतक अजञा� की गहरी नि�दरा म सोता रहा ह। उठ! सवयको जा� निक त यथाथ( म कौ� ह ? तरी आतमा काअ�ानिद निपरयतम कौ� ह , कहा ह, तझ यहा निकसलिलयभजा गया ह, इस ससार को छोड� क पशचात तझ कहाजा�ा ह, और शरीर क रहत-रहत अप� पराणशवर स तरानिमल� निकस परकार होगा?

इ� परशनो क समा*ा� क लिलय अनततोगतवा उसधया� की ओर मड�ा पडता ह। धया� वह पारसमणिण ह,

परकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठपरकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठ, , सरसावा सरसावा 33 / 414/ 414

नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

जिजसक समपक( म आ� वाला पापी स पापी वयनि` भीनि�षपाप होकर परबरहम क सा+ातकार का अधि*कारी ब�ताह और शाशवत आ�नद को परापत होता ह।

इस लघ गरनथ म ससार की अनय धया� पKधितयोकी नि�षप+ निववच�ा करत हए शरी पराण�ाथ जी दवारापरदतत नि�जा�नद योग पर सधि+पत परकाश डाला गया ह।इसक दवारा आतमा इस +र जगत एव बहद मणडल स परपरम*ाम और अ+रातीत परबरहम का सा+ातकार करतीह।

यह गरनथ सधिjदा�नद परबरहम की अपार कपा, सदगरमहाराज परमहस शरी रामरत� दास जी एव सरकार शरीजगदीश चनदर जी की छतरछाया म लिलखा गया ह। मरसममा��ीय निमतर शरी सदगर परसाद आय( जी (भतपव(आई.ए.एस.) का इसक परकाश� एव सशो*� म निवशष

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

सहयोग ह, अनयथा यह गरनथ इत�ी शीघरतापव(कपरकाणिशत �ही हो पाता। मदरण काय( म सधिjदा�नद ,राजकमार, एव अशोक जस निवदयारथिथयो � अधित कठोरपरिरशरम निकया ह। बह� �लिल�ी, निकरण, एव अमरलालसठी जी का परफ रीडिडग म निवशष योगदा� ह।सधिjदा�नद परबरहम स पराथ(�ा ह निक इ� सभी सनदरसाथपर अप�ी अमतमयी कपा की वषा( करत रह। आपकसझावो क लिलए आभारी होग।

आपका

राज� सवामी

शरी पराण�ाथ जञा�पीठ

सरसावा (उ. पर.)

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

अ�करमणिणका1 धया� की आवशयकता कयो? 7

2 धया� की दाश(नि�क निववच�ा 49

3 निवभधितयो की नि�रथ(कता 1324 सा*�ा नि�द~श� 1815 धिचतवनि� की निवधि* 2786 परशन मञजषा 309

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

परथम तरग

धया� की आवशयकता कयो?

ससार की चकाचौ* म भटक� वाल मा�व! कया तअप� को जा�ता ह निक त कौ� ह? कभी त मा कीममतामयी गोद म खला करता था , तो कभीनिकशोरावसथा म नि�दव(नदव होकर खल म डबा रहता था।यौव� क उनमाद म त� अप� शारीरिरक सौनदय( और*� को सब कछ समझ लिलया था।

तझ मदहोश कर� वाला यौव� अब कहा चला गयाह? तर काल-काल बालो म यह सफदी कयो निदख रहीह? तर सकोमल एव लिखललिखलात चहर क ऊपर यझररिरया कहा स आ गयी ह? त तो सवय को बहत अधि*कशनि`मा� समझता था, निकनत अप� जज(र हाथो म त�

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

यह लाठी कयो पकड रखी ह?

कया त जा�ता ह निक ऐस निकत� ही शरीरो को त*ारण कर चका ह। तरा शरीर म�षय स लकर पश-प+ीएव कीट-पतगो तक म निकत�ी बार जनम ल चका हऔर मतय को परापत हो चका ह। ह हतभागय मा�व! अबतो चत जा। त मातर हडडी एव मास का पतला �ही ह।इसस पहल तो तरा नि�ज सवरप परम एव आ�नद कअ�नत और अ�ानिद महासागर म करीडा करता रहा था ,निकनत त उस छोडकर इस लभाव� तथा निमथया जगतक जाल म कयो फसा पडा ह?

त� अब तक अ�निग�त बार अधित सवानिदषट पदाथ�का रसासवाद� निकया ह, म*र एव कोमल सपश( क सखोको ही सब कछ समझता रहा ह। रप-मा*री म सवयको डबोकर त� सवय को *नय-*नय मा�ा ह, निकनत

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

कया कभी त� यह भी सोचा ह निक शानतिनत की नि�म(लरस*ारा तमहार हदय म अभी तक कयो �ही परवानिहतहई?

धया� वह अमत रस ह, जिजसक एक बद का भीरसासवाद� कर ल� क पशचात यह अ�भव हो� लगता हनिक मातर परबरहम ही शाशवत परम , शानतिनत, एव आ�नद कासागर ह, जबनिक शरीर और यह जड जगत सभीसवप�वत �ाशवा� ह। इ�क पीछ भाग� म कवल दःखही दःख ह।

यदयनिप धया� का परिरपकव (गह�तम) रप हीसमाधि* ह, जिजसम आतमा एव जीव अप� मल शK रपम नतिसथत होकर अखणड सवरप (परम*ाम, बहदमणडल) का सा+ातकार करत ह। वसततः आतम-च+ओस दख�ा ही धिचतवनि� या समाधि* ह। बोलचाल की भाषा

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

म भी �तरो की दनिषट को धिचतव� या धिचतवनि� कहत ह।

रामचरिरत मा�स की य चौपाइया धिचतवनि� क इनहीभावो को वय` करती ह-

धिचतवधित चनिकत चह निदजिस सीता।

कह गए �प निकसोर म� डिचता।।

धिचतवनि� चार मार मा� म� हर�ी।

भावधित हदय जाधित �निह बर�ी।।

अथा(त सीता जी चनिकत होकर चारो ओर दख रहीह। उ�का म� इस बात की धिचनता कर रहा ह निकराजकमार कहा चल गय? शरी राम-लकषमण क �तरो कीम�ोहर दनिषट कामदव क भी म� को हर� वाली ह। वहहदय को बहत पयारी लगती ह।

कछ लोगो का कथ� ह निक व तो चलत-निफरत हीपरकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठपरकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठ, , सरसावा सरसावा 1010 / 414/ 414

नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

धया� कर लत ह और हमशा अखणड आ�नद म डबरहत ह।

यनिद गह� धिचनत� स दखा जाय, तो इस परकार काकथ� कर� वाल लोग बहत बडी भरानतिनत क णिशकार होतह। उठत-बठत, सोत-जागत, या चलत-निफरत अप�आराधय क भावो म ली� तो हआ जा सकता ह, निकनतधया� म �ही डबा जा सकता। यह एक परकार कीभावली�ता ह, जिजसम धिचतत आराधय क भावो म खोजाता ह और कछ शानतिनत पाकर सवय को कत-कतयमा� लता ह। इस परकार आतम-मग*ता का णिशकार हो�वाल लोग धिचतव� क आ�नद स कोसो दर रहत ह।

परतयक वयनि` क धिचतत म काम , करो*, लोभ, मोह,अहकार आनिद क ससकार जनम-जनमानतरो स जड रहतह। परबरहम क धया� रपी अनि� स ही य जलकर राख

परकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठपरकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठ, , सरसावा सरसावा 1111 / 414/ 414

नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

होत ह, अनयथा �ही। इ� ससकारो को दग* निकय निब�ा� तो निकसी का हदय पनिवतर हो सकता ह और � हीपरबरहम का सा+ातकार हो सकता ह। अधयातम क इससतर को परापत निकय निब�ा जीव-मनि` की भाव�ा मातरनिदवा-सवप� ह।

अधयातमपरक गरनथो का सवाधयाय हम अनततोगतवाधया� म डब� का ही नि�द~श दता ह, निकनत रजोगण कीअधि*कता क कारण परायः सवाधयायशील लोग भी शबद-जाल म उलझकर रह जात ह और कवल वालिगवलास(परवच� क आ�नद) को ही सव�परिर मा�कर निपरयतम कवासतनिवक आ�नद स हाथ *ो बठत ह।

परकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठपरकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठ, , सरसावा सरसावा 1212 / 414/ 414

नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

म�ीनिषयो तथा *म(गरनथो की दनिषट म धया� का महतव

आलसय तथा परमाद क वशीभत कछ लोग धया�को नि�रथ(क समझत ह। उ�की दनिषट म कम(काणड कीकछ निकरयाओ को परा कर ल�ा या कछ गरनथो का पठ�कर ल�ा ही सब कछ होता ह। इस समबन* म भत(हरिरक वरागय शतक क य कथ� दख� योगय ह-

गगातीर निहमनिगरिरणिशलाबK पदमास�सय,

बरहमधया�ाभयस�-निवधि*�ा योगनि�दरा गतसय।

किक तभा(वय मम सनिदवसय(तर त नि�रविवशङकाः,

कनडयनत जरठहरिरणाः शङगमङग मदीय।।३७।।

व म�ोहर निद� कब आयग, जब म गगा क निक�ारनिहमालय पव(त की निकसी णिशला पर पदमास� लगाकरपरबरहम क धया� म डबा रहगा और नि�रविवकलप समाधि* म

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

नतिसथत हो जा� पर मर शरीर को बढ निहरण नि�भ(य होकरअप� सीगो स खजलाया करग।

निवसतीण~ सव(सव तरणकरणापण( हदयाः,

समरनतः ससार निवगण परिरणामावधि* गतीः।

वय पणयारणय परिरणत शरjनदरनिकरण,

लि यामा �षयामो हरचरणधिचनतक शरणाः।।४४।।

अप�ा सव(सव णिभ+को को दा� करक और अप�हदय म करणा भरकर, ससार को �शवर एव असखयदोषो का भणडार मा�कर , शरद ऋत क चनदरमा कीचाद�ी स आचछानिदत रमणीय व� म परबरहम का धया�करत हए हम कब अप�ी रानितरया वयतीत करग?

भोगामघनिवता�मधय निवलसतसौदानिम�ो चचला,

आयवा(यनिवघनि¥ताभर पटलीली�ामबवदभङगरम।परकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठपरकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठ, , सरसावा सरसावा 1414 / 414/ 414

नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

लोला यौव�लालसासत� भतानिमतयाकलयय दरत,

योग *य(समाधि*जिससलभ बधिK निवदधव ब*ाः।।४९।।

ह बधिKमा�ो! सभी पराणिणयो दवारा भोग जा� वालभोग मघ मणडल म चमक� वाली निवदयत क समा� शीघरही �षट हो� वाल ह। हवा क झोको स निहल� वाल कमलक पतत पर नतिसथत बदो क समा� आय भी +णभगर ह।यौव� की उमग म उतपनन हो� वाली वास�ाय भी नतिसथरसख वाली �ही ह। इसलिलय आप सभी इ� सब बातो कानिवचार करक *य(पव(क परबरहम क धया� दवारा समाधि* कीअवसथा को परापत कीजिजए।

इसी परकार ऋनिषयो � उपनि�षदो म अ�क सथा�ोपर धया� की महतता पर परकाश डाला ह और सपषट कहाह निक निब�ा धया� निकय � तो बरहम का सा+ातकार हो

परकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठपरकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठ, , सरसावा सरसावा 1515 / 414/ 414

नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

सकता ह और � ही शाशवत आ�नद की परानिपत हो सकतीह।

� च+षा गहयत �ानिप वाचा,

�ानयद~वसतपसा कम(णा वा।

जञा� परसाद� निवशK सततव-सततसत,

त पशयत नि�षकल धयायमा�ः।।

मणडक उपनि�षद ३/८

उस बरहम को � तो पञचभौधितक आखो स दखा जासकता ह और � अनय इनतिनदरयो तथा वाणी स हो� वालतप आनिदकम� स परापत निकया जा सकता ह। निवशK जञा�क नि�द~श� म शK हदय वाला वयनि` एकमातर धया� कअभयास स ही उस अ�नत बरहम का सा+ातकार करता ह।

बरहम का सा+ातकार मातर परमगहा म ही होता ह ,परकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठपरकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठ, , सरसावा सरसावा 1616 / 414/ 414

नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

"पशयनतितसवहव नि�निहत गहायाम" (मणडक उपनि�षद३/७) क कथ�ो स सपषट ह। उस परमगहा म निब�ाधया�-समाधि* क परवश समभव ही �ही ह। इस परकारयह नि�रविववाद जिसK ह निक निब�ा धया� -सा*�ा क बरहमका सा+ातकार मातर कोरी कलप�ा ह। मतरायणी उपनि�षद४/४/९ म धया� -समाधि* की मनिहमा इस परकारदशा(यी गयी ह-

समाधि*नि�*(तमलसय चतसो,

नि�वणिशतसयातमनि� यतसख भवत।

� शकयत वण(धियत निगरा तदा,

सवयनतदनतः करण� गहयत।।

धया�-समाधि* दवारा जिजसक अनिवदया आनिद मल �षटहो जात ह, उस अप� हदय म परबरहम का इत�ा अधि*क

परकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठपरकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठ, , सरसावा सरसावा 1717 / 414/ 414

नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

आ�नद परापत होता ह निक उसका वण(� वाणी (शबदो म)स �ही हो सकता।

ज� गरनथो म धया� की बहत मनिहमा परदरथिशत कीगयी ह।

होनिव सहासब सवर निवणिणजजराऽमर सहाइ निवउलाइ।

झाणवरसस फलाइ सहाणब*ीणिण *ममसस।।

य त निवससण सभासवसादओऽणनतरामर सह च।

दोणह सककाण फल परिर नि�ववाण परिरललाण।।

धया� शतक- *बला, प. १३ गा. ५६/९३,९४

अथा(त *म(-धया� स पणय कम� का आगम�, पापकम� का नि�रो*, सधिचत कम� का +य, तथा अखणडसख की परानिपत होती ह। वसततः धया� ही मो+(परिरनि�वा(ण) तक ल जा� वाला ह।

परकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठपरकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठ, , सरसावा सरसावा 1818 / 414/ 414

नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

यह सव(मानय तथय ह निक धयाता (धया� कर�वाल) म धयय (जिजसका धया� निकया जाय) क गण आ�लगत ह। जञा�, परम, और आ�नद क सागर उसनि�रविवकार अ+रातीत का धया� कर� पर धयाता म इ�गणो का समावश (परवश) हो जा�ा सवाभानिवक ह।

जो भोग का धिचनत� करता ह, वह भोगी हो जाताह। इसी परकार योग का धिचनत� कर� वाला योगी, कामका धिचनत� कर� वाला कामी, एव माया का धिचनत�कर� वाला माया म आस` (मायावी) हो जाता ह।

सनिषट म आज निद� तक एक भी ऐसा महापरष(सनत, परमहस, दाश(नि�क, ततववतता आनिद) �ही हआह, जिजस� यह कहा हो निक म� कभी धया� �ही निकयाऔर इस सतर तक पहच गया। धया� ही वह अमत पथह, जिजस पर चलकर रत�ाकर डाक सनिषट क परथम कनिव

परकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठपरकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठ, , सरसावा सरसावा 1919 / 414/ 414

नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

महरविष वालमीनिक ब�, पाणिणनि� निवशव क सव(शरषठ वयाकरणब�, तथा अतयनत मख( कालिलदास उपमा अलकार कसव(शरषठ कनिव ब�।

इसी धया� की परनिकरया � घास-फस की झोपनिडयोम नि�वास कर� वाल ऋनिष -मनि�यो को आतमदशµब�ाया। इसी का रस चख� क लिलय राजकमार जिसKाथ(,महावीर सवामी (व*(मा�), भत(हरिर, भरत आनिद अ�कचकरवतµ समराटो � अप� भवय महलो का परिरतयाग करनिदया तथा परसननतापव(क करतल णिभ+ा एव तरतल वासक �सरविगक जीव� को सवीकार निकया।

धया� � ही शरी शकदव, कबीर जी, �ा�क जी,णिशव जी, तथा स�कानिदक को ससार स नयारा करनिदया। रामकषण परमहस की अलौनिकक अ�भधितयो कामखय कारण धया� ही था। धया� � ही अनवषण की राह

परकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठपरकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठ, , सरसावा सरसावा 2020 / 414/ 414

नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

पर दया�नद (शK चतनय , मल शकर) को महरविषदया�नद क गरिरमामय पद पर परधितनिषठत कर निदया।

परम*ाम क धया� की परनिकरया � परमहसगोपालमणिण जी को ३०२ वष� की उमर दकर समपण(परम*ाम का अ�भव कराया तथा परमहस परमपरा काबीज बोया। शरी यगलदास जी, महाराज शरी रामरत�दास जी, बाबा दयाराम जी आनिद परमहसो की पनिवतरजीव� गाथा म उ�क तप -तयाग एव धया� की हीनिवणिशषटता ह।

धया� क समबन* म तारतम वाणी कया कहती ह

शरीमखवाणी अ+रातीत क हदय का बहता हआअमत रस ह, जिजसम सव(तर ही (रास गरनथ सकयामत�ामा तक) धया� (धिचतवनि�) की महतता परदरथिशत

परकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठपरकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठ, , सरसावा सरसावा 2121 / 414/ 414

नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

की गयी ह। परम*ाम की आतमाओ को जागरत कर� कलिलय *ाम *�ी का नि�द~श ह-

ए मल निमलावा अप�ा, �जर दीज इत।

पलक � पीछ फरिरय, जयो इसक अग उपजत।।

सागर ७/४०

इस चौपाई क दसर चरण म "�जर दीज" कातातपय( ही ह, ससार स अप�ी दनिषट हटाकर मल निमलावाम निवराजमा� यगल सवरप की ओर दख�ा। यनिद हम*�ी क परम को पा� एव आतमा की जागरधित की आका+ाह, तो अप�ी आनतितमक दनिषट को मल निमलावा म ब�ायरख�ा होगा। अगली चौपाई का कथ� भी इसी सनदभ( मह-

परकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठपरकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठ, , सरसावा सरसावा 2222 / 414/ 414

नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

सरता एक रालिखय, मल निमलाव माकिह।

सयाम सयामा जी साथ जी, तल भोम बठ ह जानिह।।

सागर ७/३

मायावी कषटो स निवचलिलत हए निब�ा *ाम *�ी कीधिचतवनि� म लग रह�ा ही हमारी पराथनिमकता हो�ीचानिहए।

कोई दत कसाला तमको, तम भला चानिहयो धित�।

सरत *ाम की � छोनिडयो, सरत पीछ निफराओ जिज�।।

निकरत� ८६/१६

शरी जी � परम*ाम की धिचतवनि� � कर� वालो कोकायर कहा ह। जो निपरयतम परबरहम को पा� क लिलयअप�ी "म" का परिरतयाग करक सवय को नयोछावर �हीकर सकता, वह आधयानतितमक दनिषट स कायर ही कहा

परकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठपरकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठ, , सरसावा सरसावा 2323 / 414/ 414

नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

जायगा।

आग परो धित� कायरो, जो *ाम की राह � लत।

सरफा कर जो जिसर का, और सकच जीव दत।।

निकरत� ८७/१

भल ही हमार पास अ�पम रप कयो � हो, ती�ोलोको क सव�j पद पर हम निवराजमा� हो , *� एवपरधितषठा भी हमारा अ�गम� निकया कर, निकनत यनिद हमअप� पराणशवर अ+रातीत का धया� �ही करत , तोहमारा जीव� �रक क ही तलय कहा जायगा।

नि�स निद� गरनिहए परम सो, जगल सरप क चर�।

नि�रमल हो�ा याही सो, और *ाम वर��।।

परकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठपरकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठ, , सरसावा सरसावा 2424 / 414/ 414

नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

इ� निव* �रक जो छोनिडए, और उपाय कोई �ाह।

भज� निब�ा सब �रक ह, पधिच पधिच मरिरए माह।।

निकरत� १०६/२,३

परम*ाम की धिचतवनि� स दर रह� क कारण हीजीव क त�, म�, धिचतत, एव बधिK को फटकार लगायीगयी ह।

धि*क धि*क पडो मरी ब* को, मरी स* को,

मर म� को, मर त� को, याद � निकया *�ी *ाम।

परायः सनदरसाथ म एक बहत बडी भरानतिनत फली हईह निक तारतम लत ही हमारी आतमा जागरत हो जाती ह।तारतम (दी+ा) ल�ा तो आतमा क जागरधित की मातरपरथम सीढी ह। जञा�, निवरह, समप(ण, धया� आनिद अ�कसीनिढयो को पार कर� क पशचात ही आतम-जागरधित क

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

चरम लकषय को परापत निकया जाता ह। यह लकषय धया�(धिचतवनि�) क निब�ा कदानिप परा �ही हो सकता।

जब हक चर� निदल दढ *र, तब रह खडी हई जा�।

हक अग सब निहरद आए, तब रह जाग अग परवा�।।

शरगार ४/३७

जब आतमा क *ाम-हदय म *ाम *�ी क चरणकमलो की शोभा झलकार कर� लगती ह , तो आतमापरम की गह� नतिसथधित को परापत हो जाती ह। इस अवसथाम जब शरी राज जी क अग-अग की शोभा आतमा क*ाम-हदय म बस जाती ह, तो उस भी अप�ा समपण(शरगार झलक� लगता ह। इस ही आतम-जागरधित (आतमाका जागरत हो�ा) कहत ह।

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

वसतर भख� हक क, आए निहरद जयो कर।

तयो सोभा सनिहत आतमा, उठ खडी हई बराबर।।

शरगार ४/६८

व -आभषणो सनिहत शरी राजशयामा जी की शोभाजब आतमा क *ाम-हदय म आ जाती ह, तो आतमा भीअप�ी समपण( शोभा क साथ सवय को दख� लगती हअथा(त जागरत हो जाती ह। निकनत इस लकषय को पा� कलिलय जीव को निवरह म डबकर सवय को *�ी क परधितसमरविपत कर�ा पडता ह। यह अवसथा धया� क निब�ाकदानिप परापत �ही हो सकती। मातर जोर-जोर स �ाच�-कद�, भज� गा�, हाथ उठाकर जयकार लगा�, एवमाला-धितलक स सवय को शरगारिरत कर� स यह लकषयपरापत हो� वाला �ही ह।

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

हक क भख� की कयो कह, रग �ग जोत सलक।

आतम उठ खडी तब होवही, पहल जीव होए भक भक।।

शरगार ४/६५

परम*ाम क धया� स जो सख परापत होता ह, उसकसाम� करोडो वकणठो का सख �गणय ह।

कई कोट राज बकणठ क, � आव इत क लिख� समा�।

निकरत� ७८/२

जस-जस हमार निदल म परम*ाम की शोभा बसतीजायगी, वस-वस ससार (मायावी जगत) हमस दरहोता जायगा। इस अवसथा म हमारी आतमा को यहअ�भव होगा निक उसका मल त� (परातम) तो *ाम *�ीक चरणो म ही निवदयमा� ह।

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

�जर खल स उतरती दलिखए, तयो अस( �जीक फजर।

यो करत लल निमटी रहो, निद� हआ अस( फजर।।

शरगार २४/१४

धया� दवारा जस-जस हमारी दनिषट इस झठ ससारस हटती जायगी, वस-वस हमार निदल म परम*ाम कीशोभा बसती जायगी। ऐसी नतिसथधित म आतमा क लिलय�ीद (फरामोशी, अजञा�ता) जसी कोई बात रह ही �हीजायगी, कयोनिक परम*ाम क जञा� तथा परम क हदय मपरकट हो जा� पर ऐसा अ�भव होता ह निक हमार हदयम अजञा� की रानितर समापत हो गयी ह एव परातःकाल काम�ोरम उजाला फल गया ह।

शरी पदमावती परी *ाम म शरी महामधित जी दवारा हो�वाली जाग�ी लीला म परधितनिद� अनि�वाय( रप स परातः-

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

साय धिचतवनि� करायी जाती थी। कालानतर म यहपरनिकरया बनद हो गयी तथा उसका सथा� कम(काणडो � ललिलया। इस समबन* म बीतक सानिहब म कहा गया ह-

अगयारही जोलो रही, निदल बडो चाह *र।

फर ठणड पडत गए, लाल कह अग ठर।।

अथा(त लगभग निव.स. १७५१ तक धिचतवनि� काबहत जोर चला। उसक पशचात सनदरसाथ धिचतवनि� सदर हो गय (उ�क निदल म गमा(हट � रही, रधिच � रही)।

सवय शरी महामधित जी � निव.स. १७४८-१७५१तक गममट जी क ऊपरी गमटी म बठकर धिचतवनि� कीतथा सब सनदरसाथ को कर� की पररणा दी। "*ामचल�" अथा(त सरता स परम*ाम को दख� ससमबनतिन*त कीत(� इसी समय उतर, जिज�की कछ

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

म�मोहक झाकी इस परकार ह-

चलो चलो र साथ, आप� जईए *ाम।

मल वत� *नि�ए बताया, जिजत बरहमसषट सयामा जी सयाम।।

एही सरत अब लीजो साथ जी, भलाए दओ सब निपणड बरहमाणड।

जाग पीछ दख काह को दख, लीज अप�ा सख अखड।।

अब छल म कस कर रनिहए, छोड दओ सब झठ हराम।

सरत *�ी सो बा* क चलिलए, ल निवरहा रस परम काम।।

निकरत� ८९/१,५,९

शरी महामधित जी सनदरसाथ को अप� निपरयतमअ+रातीत पर अप�ा सव(सव नयोछावर करक धिचतवनि�दवारा उ�का परतय+ दश(� कर� क लिलय पररिरत करत ह-

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

साथ जी सोभा दलिखए, कर करबा�ी आतम।

वार डारो �ख जिसख लो, ऊपर *ाम *�ी खसम।।

निकरत� ९०/१

जो भल अब को अवसर, सो फर � आव ठौर।

�हच साच � भलही, इत भलग कोई और।।

निकरत� ९०/१५

परममयी धिचतवनि� दवारा *�ी को रिरझा� का यह जोस�हरा अवसर परापत हआ ह, इसका लाभ � ल� वालाअनततोगतवा पशचाताप ही करगा। यह अवसर प�ः परापतहो� वाला �ही ह। नि�धिशचत रप स इस जाग�ी लीला मबरहमसनिषटया अवशय ही धिचतवनि� करगी। यगल सवरप कीशोभा को अप� निदल म � बसा पा� वाल जीव ही होग।

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

अब हम *ाम चलत ह, तम हजो सब हजिसयार।

एक लिख� की निबलम � कीजिजए, जाए घरो कर करार।।

निकरत� ९२/१

शरी महामधित जी कहत ह निक ह साथ जी ! अब मपरम*ाम की धिचतवनि� म लग रहा ह। आप सभी सावचतहो जाइय। इस समय तो धिचतवनि� कर� म एक +ण कीभी दर कर�ा उधिचत �ही ह। आप सभी मर साथ धया�म लग जाइए, जिजसस आप परम*ाम की अ�भधित करकअ�पम आ�नद परापत कर सक ।

पीछला साथ आए निमलसी, पर अगल कर उतावल।

कताक साथ निवचार �ीका, सो जा� चल सब निमल।।

निकरत� ९२/११

तारतम वाणी स अ+रातीत क सवरप की पहचा�परकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठपरकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठ, , सरसावा सरसावा 3333 / 414/ 414

नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

कर� वाल सनदरसाथ तो भनिवषय म परम*ाम कीधिचतवनि� म लग ही जायग , निकनत जिज�को शरी राज जीकी पहचा� हो चकी ह, व इस बात क लिलय उतावल होरह ह निक हम कब यगल सवरप तथा परम*ाम कीधिचतवनि� म डब जाय। कछ सनदरसाथ क निवचार बहतशरषठ ह। व सोचत ह निक हम सब निमलकर परम*ाम कधया� म लग जाय।

धया� ही वह परम प�ीत माग( ह, जिजस पर चलकरअप� पराणवललभ को पाया जाता ह। शरीर और इनतिनदरयोस की जा� वाली भनि` तो मातर कम(काणड ह।कम(काणडो की राह पर चलकर निपरयतम परबरहम कासा+ातकार �ही हो सकता। इस समबन* म शरीमखवाणीका कथ� ह-

परकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठपरकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठ, , सरसावा सरसावा 3434 / 414/ 414

नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

इसक बदगी अललाह की, सो होत ह हजर।

फरज बदगी जाहरी, सो लिलखी हक स दर।।

खलासा १०/५८

ए जो फरज मजाजी बदगी, बीच �ासत हक स दर।

होए मासक बदगी अस( म, कही बका हक हजर।।

जिस�गार २९/१८

कम(काणड (शरिरयत) का माग( उपास�ा, जञा�, तथानिवजञा� (तरीकत, हकीकत, एव मारिरफत) क निवपरीतबनिहम(खी होता ह। जड मरतितयो क मनतिनदरो म चढ� वालचढाव की अधि*कता स पणड, पजारी, एव मठा*ीशससारिरकता की आ*ी म बह जात ह। व जञा� एव परमल+णा भनि` स कोसो दर हो जात ह।

निवपशय�ा योग दवारा भगवा� बK � ससार कोपरकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठपरकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठ, , सरसावा सरसावा 3535 / 414/ 414

नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

नि�वा(ण (मो+) का सरल माग( निदखाया था , निकनतकालानतर म धया�-सा*�ा की परनिकरया समापत हो गयीऔर उसका सथा� ल लिलया जड मरतितयो की पजा �।जगह-जगह बोधि*सतवो, मार (कलिलयग), तारा, निवजयाआनिद कालपनि�क दवी-दवताओ की पजा हो� लगी।महाया� की बरजया� शाखा म वाममाग( का परवश होगया। परिरणामतः णिभ+ निवलासी एव दराचारी हो गय।बौK मत क पत� का मल कारण यही ह।

यह दभा(गयपण( ह निक भगवा� बK � आजीव�"अकिहसा परमो*म(ः" का परचार निकया, निकनत आजउ�क अधि*काश अ�यायी मास भ+ण करत ह। यहा तकनिक बड-बड मठो म रह� वाल णिभ+ भी मास-मछली कसव� स अप� को रोक �ही पात। इसका मल कारणधया� की परनिकरया को छोडकर जड-मरतितयो की शोर-

परकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठपरकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठ, , सरसावा सरसावा 3636 / 414/ 414

नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

शराब क साथ पजा-पाठ कर�ा ह, जिजस भगवा� बK �म�ा निकया था।

कठोर तपशचया( तथा "वीतराग योग" का नि�द~श द�वाल तीथºकरो का अ�यायी ज� समाज भी जड-मरतितपजा क कीचड म इत�ा अधि*क फस चका ह निक वहअप� मल उददशयो स भटक गया ह। आज जगह-जगहकरोडो क भवय ज� मनतिनदर तो निदखायी दत ह , निकनतइ� सथा�ो म उj जञा� एव धया� की सरिरता परवानिहतहोती हई �ही निदखायी दती।

धया�-सा*�ा का परम प�ीत एव सरल माग(छोडकर आज का पौराणिणक निहनद समाज अप� अशरनिबनदओ स अप�ी निव�ाश लीला की करण गाथा लिलखरहा ह। क¥रपनथी मनतिसलम आकरमणकारिरयो दवारा इ�मनतिनदरो को बार-बार तोड जा� क बाद भी पौराणिणको �

परकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठपरकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठ, , सरसावा सरसावा 3737 / 414/ 414

नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

� तो कोई णिश+ा ली ह और � अप�ी भलो म परिरवत(�ला� का परयास निकया ह।

यह निकत�ा हासयासपद ह निक जिज� �र-�ारायणऋनिषयो � बदरीक (बर का व+ क) +तर म घोर तपनिकया था, वहा उ�की समधित म धया� का णिश+ण कनदर� ब�ाकर शोर-शराब वाला निवशाल मनतिनदर ब�ा हआह। महाभारत १४/३२ म वरथिणत ह निक योनिगराज शरीकषण � निहमालय पर पतर परानिपत क लिलय १२ वष� तकघोर तप निकया था। उ�की समधित म ब�ाय गय परी कजगननाथ मनतिनदर म कवल बाहय कम(काणड , कोलाहल,लट-खसोट, एव असभय वयवहार का ही बोलबाला ह।वहा क परायः ८० परधितशत पणड-पजारी मास-मछलीतथा शराब क सव� म लिलपत ह।

यह सव(निवनिदत ह निक भगवा� णिशव इस सनिषट क

परकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठपरकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठ, , सरसावा सरसावा 3838 / 414/ 414

नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

परारमभ काल स ही निहमालय म सा*�ारत रह ह, निकनतउ�क कलिलयगी भ`ो � उ�क �ाम पर गाजा, भाग, एवभोग-निवलास की राह अप�ा ली। सोम�ाथ क जिजसभवय मनतिनदर को महमद गज�वी � तोडा था, उसमइत�ा *� था निक उस ४००० खjरो और ऊटो परलादकर अफगानि�सता� ल जाया गया था।

सोम�ाथ का यह निवशव-परजिसK मनतिनदर मधय काल मवाममारविगयो का मखय कनदर ब� गया था, जहा इषट दवताको परसनन कर� क लिलय हजारो दवदाजिसया �तय निकयाकरती थी। इनही म स सबस अधि*क सनदर अतयनतरपवती चोला �ामक दवदासी को परापत कर� क लिलयसोम�ाथ मनतिनदर क मखय पजारी क लडक णिशवदशµ �महमद गज�वी को मनतिनदर क गपत माग( का पता निदया था,जिजसक माधयम स रानितर म परवश करक महमद गज�वी �

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

मनतिनदर को तोड डाला।

सोम�ाथ क मनतिनदर म ४० म� भारी सो� कीजजीर म एक भारी दाता लटक रहा था। उसम ५ गजऊची णिशवमरतित (णिशवलिलग) अ*र म लटक रही थी ,जिजसम बहमलय रत� जड थ। उस मरतित को महमदगज�वी � गदा स तोड निदया।

महमद गज�वी � �गरकोट क मनतिनदर को निवधवसकरक ७०० म� सो�-चादी क बत(�, ७४० म� सो�ा,२००० म� चादी, और २० म� हीर, मोती, औरजवाहरात लट। था�शवर क आकरमण म २ लाख निहनदओको बनदी ब�ाकर महमद गज�वी ल गया। मदरा की लटम उस ६ ठोस सो� की मरतितया निमली, जिज�क ऊपर ११बहमलय रत� जड थ।

परकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठपरकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठ, , सरसावा सरसावा 4040 / 414/ 414

नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

एक निवशवासघाती परोनिहत दवारा दधि+णा क लालच मभट निदय जा� पर महममद निब� काजिसम को राजा दानिहरक उस गपत खजा� का भी पता चल गया, जिजसम ४०दग सो� की थी। उ�म १७२०० म� सो�ा भरा था।इसक अधितरिर` ६००० मरतितया ठोस सो� की थी ,जिज�म सबस बडी मरतित का तोल ३० म� था। हीरा ,पनना, मोती, लाल, और माणिणकय इत� थ निक उनह कईऊटो पर लादा गया।

इसक अधितरिर` कतबदी� ऐबक � कननौज म१००० मनतिनदरो का निवधवस निकया तथा ४०० ऊटो परलटा हआ सो�ा और चादी लादकर अफगानि�सता� लगया।

काश! सोम�ाथ क मनतिनदर क सथा� पर कोईनिवशाल गरकल या निवशवनिवदयालय होता, जहा सभी

परकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठपरकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठ, , सरसावा सरसावा 4141 / 414/ 414

नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

दवदाजिसयो, पणडो, पजारिरयो, तथा ज�-सामानय कोवद-शा ो एव धया�-योग की णिश+ा दी जाती, तो दशको इत� बर निद� �ही दख� पडत। त+णिशलानिवशवनिवदयालय क आचाय( चाणकय � अप� बधिK कौशलस निवशवनिवजता जिसकनदर को भारत छोडकर वापस लौट�क लिलय निववश कर निदया था, निकनत भारतवष( पर १७बार आकरमण कर� वाल गज�वी को रोक� वाला एकभी निवदवा� उस समय दश म �ही था। जब चारो ओरपतथरो की जड एव मक मरतितयो की ही पजा काबोलबाला था, तो वद-शा ो का अधयय� करकधया�-सा*�ा म नि�म� रह� वाला दरदशµ निवदवा� कहास पदा हो जाता।

गौहाटी क परजिसK कामाखया मनतिनदर को यनिदवधयसथल कह निदया जाय, तो कोई अधितशयोनि` �ही

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

होगी। जगत माता की यह कसी भनि`, जिजसम हजारोजा�वरो की बलिल दी जाती ह ? कया जगत माता उ�असहाय और मक पशओ की माता �ही ह? कया माताकी करणा मातर उ� मासाहारी और शराबी पणड -पजारिरयो क लिलय ही ह?

भगवा� णिशव क तमोगणी रप भरव क मनतिनदरो मशराब का चढाया जा�ा कया जिसK करता ह? कया इसीको अधयातम कहत ह? कया इ� मनतिनदरो म जा� वालो �कभी सोचा ह निक ऐसा कर�ा वद-शा ो म कहा लिलखाह?

ऋनिषकश म गगा निक�ार ब� हए दो�ो पल (लकषमणझला तथा शरी राम झला) भगवा� शरी राम क तपोमयजीव� की यशोगाथा गा रह ह। इ� दो�ो पलो क सच�ाप¥ो पर लिलखा हआ ह निक भगवा� राम � अप� अ�ज

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

लकषमण क साथ यहा तप निकया था। वालमीनिक रामायणक कथ�ो तथा इ� परतय+ ऐधितहाजिसक परमाणो कोझठलाकर वषणव भ`ो � शालिलगराम की पजा म ट� -ट�, प-प का शोर मचा�ा ही अप� जीव� का परमलकषय मा� रखा ह।

आ*नि�क भगवा� (साई बाबा) क मनतिनदरो मचढाया जा� वाला करोडो रपयो का *� भारतीयज�मा�स की �ादा�ी को ही इनिगत कर (दशा() रही ह।दश क सभी मनतिनदरो म चढाया जा� वाला अरबो रपयोका बहत बडा भाग कर (टकस) क रप म सरकार कपास चला जाता ह। शष *� पणडो, पजारिरयो, एवमठा*ीशो क लौनिकक उपभोग म वयय हो जाता ह। यनिदयही *� *ारविमक णिश+ा एव योग क परचार म लग जाता,तो कोई भी *मा(नतरण का रो�ा �ही रोता और � सव(तर

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

आडमबरो की बाहलता ही निदखायी दती।

इसी परकार परधितवष( गणश पजा , लकषमी पजा,सरसवती पजा, तथा दगा( पजा म परय हो� वाली निम¥ीकी मरतितयो � एक वयवसाय का रप ल लिलया ह। इसपरनिकरया म अरबो रपया हर वष( पा�ी म बह जाता ह ,निकनत अप� भोल-भाल, �ग-भख व�वासी भाइयो कउKार क लिलय एक रपया भी रनिढवादी समाज खच(कर� क लिलय तयार �ही निदखता। कया इ� असहायव�वाजिसयो (आनिदवाजिसयो) क हदय म सा+ात �ारायणका वास �ही ह? यनिद आप इ�क हदय म �ारायण काअनतिसततव �ही मा�त, तो गीता क इस कथ� "ईशवर सव(भता�ा हददशऽज(�धितषठधित" का आप कया अथ( करग?

समपण( सनिषट क आ*ार एव कता( - *ता( उससव(शनि`मा� परमातमा को मनतिनदरो क कारागार म बनद

परकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठपरकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठ, , सरसावा सरसावा 4545 / 414/ 414

नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

करक ताला लगा द�ा, कया उसका अपमा� �ही ह?सबको जीव� द� वाल उस परबरहम को ही मनतर पढकरपराण परधितनिषठत कर�ा, कया उसका उपहास उडा�ा �हीह? असखय सय� स भी अधि*क परकाशमा� उसतजोमयी परबरहम को दीपक निदखा�ा तथा उस भोज�द�ा निकस मा�जिसकता का दयोतक ह। जिजसकी आरा*�ामा�व हदय को पण(तया नि�म(ल कर दती ह, उसी परबरहमको जल स स�ा� कराकर शK कर�ा कया दशा(ता ह?कया ऐसा कर� क लिलय वदानिद गरनथो म नि�द~श ह?

जञा�, भनि`, निववक, एव वरागय की दनिषट स सनयासआशरम सभी आशरमो का मकट ह, निकनत खद क साथयह कह�ा पडता ह निक वत(मा� समय म दश म निवदयमा�८० लाख महातमाओ म लगभग १० लाख ही महातमायथाथ( रप स णिशधि+त होग। उ�म भी उj सतर की

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

धया�-सा*�ा कर� वाल १ लाख स अधि*क �ही होग।सबका माग(दश(� कर� वाल सनयास आशरम की जब यहदद(शा ह, तो अनय आशरमो की कया अवसथा होगी? इसदय�ीय नतिसथधित क लिलय जड-पजा और सामपरदाधियकक¥रता ही उततरदायी ह।

१००० वष� की परा*ी�ता � हम आतमावलोक�स दर करक आलसय एव परमाद की गहरी �ीद म डबोनिदया। हम अभी भी अप�ी भलो को स*ार� क परधितसजग �ही ह। इसी का परिरणाम ह निक जगह-जगह*म(-ससकधित क परधित लोगो म अशरKा पदा होती जा रहीह, जिजसका नि�राकरण *ारविमक णिश+ा एव धया�-सा*�ाक परसार स ही समभव ह। निब�ा धया� क आतमोननधित कीकलप�ा मातर निदवासवप� ह। ऐसी नतिसथधित म कठोपनि�षदक शबदो म कवल इत�ा ही कहा जा सकता ह निक

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

"उधितषठत जागरत परापय वराधिननबो*यत" अथा(त उठो,जागो, और परम ततव को (धया� दवारा) परापत करो।

।। इसक साथ ही परथम तरग पण( हई ।।

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

निदवतीय तरग

धया� की दाश(नि�क निववच�ा

ऋतमभरा परजञा या समाधि* स परापत हो� वालीआपतावसथा म जिजस सतय का अ�भव होता ह , उस"दश(�" कहत ह। कोरी कलप�ाओ, अन*निवशवासो, तथारनिढवादी सामपरदाधियक मानयताओ का दश(�शा  म कोईसथा� �ही होता। शाशवत सतय तो एक ही होता ह ,इसलिलय धया� क समबन* म भी यही तथय उजागर होताह निक धया� की मानयताय सभी मत -पनथो म एकसमा� हो�ी चानिहय।

दभा(गयवश, अधयातम जगत म धया� क समबन* मतरह-तरह की सामपरदाधियक भरानतिनतया ह। परतयकसमपरदाय अप�ी ही पKधित को सव�परिर मा�ता ह और

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

दसरी पKधितयो को हय दनिषट स दखता ह , जबनिकवासतनिवकता यह ह निक धया� क समबन* म ससार कसभी धया�ाभयाजिसयो को एकमत हो�ा चानिहए।

इस वचारिरक णिभननता का मखय कारण ह- अ�भधितका दाम� छोडकर मातर शषक बधिK दवारा ही धया� कीसामपरदाधियक निववच�ा कर� का परयास कर�ा। धया� कपरम सतय को जा�� क लिलय अप� सामपरदाधियकपवा(गरहो का परिरतयाग कर�ा नि�तानत आवशयक ह।

सभी सा*�ाओ का उददशय होता ह- अप� आतम-सवरप एव परमातम-सवरप म नतिसथत हो�ा। इसअवसथा को परापत कर ल� वाल इनतिनदरयातीत, दहातीत,लोकातीत, एव वीतराग हो जात ह। शाशवत मनि` काअखणड सख उनह अ�ायास ही परापत होता ह। इसअवसथा को परापत हो� वालो म वचारिरक मतभद �ही

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

होता, कयोनिक उ�क हदय क तार एक ही परम सतय सजड होत ह।

ससार की धया� पKधितया

वत(मा� समय म ससार म नि�म�लिललिखत धया�पKधितया निवशष रप स परचलिलत ह-

१. वदा�याधिययो का पातञजल योग/राजयोग

२. बौKो का निवपशय�ा योग

३. जनि�यो का वीतराग योग

४. पौराणिणक निहनदओ का साकार धया�

५. हठयोनिगयो का शनय धया�

६. वद एव सनतो का सरधित शबद (निवहङगम) योग

७. सफी फकीरो की धया� पKधित

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

इ�क अधितरिर` शरी पराण�ाथ जी परणीत नि�जा�नदयोग भी ह, जो अप�ी निवणिशषटताओ क कारणसव(कलयाणकारी ह। स+प म इ� सभी धया� पKधितयोकी समी+ा इस परकार ह-

समा�ताए

१ पातञजल योग

यम (अकिहसा, सतय, असतय,बरहमचय(, अपरिरगरह)

निवपशय�ा योगयम (शील, अकिहसा, असतय,बरहमचय(, सतय, मादक दरवय कसव� स दर रह�ा)

वीतराग योग यम (पचमहावरत)

२ पातञजल योग नि�यम (शौच, सनतोष, तप,

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

सवाधयाय, परमातमा क परधित पण(समप(ण)

निवपशय�ा योग

११ शील (णिश+ावरत)- पव�`पाच क अलावा चगली � कर�ा,कट वच�, वयथ( की बातचीत सदर रह�ा, लोभ, करो* एव निमथयादनिषट स अलग रह�ा

वीतराग योग

आठ सवर- शरोतर, च+,�ाजिसका, रस�ा, सपश((इनतिनदरय), म�, वाणी, कम( कासवर (सयम)

३ पातञजल योग आस�

निवपशय�ा योग धया�मदरा (नतिसथर आस�), मौ�

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

वीतराग योग धया�मदरा (नतिसथर आस�)

४ पातञजल योग पराणायाम

निवपशय�ा योग आ�ापा�सधित

वीतराग योग आरमभ तयाग (परधित सली�ता)

५ पातञजल योग पाप (कलश)

निवपशय�ा योग अकशल कम(

वीतराग योग पाप

६ पातञजल योग भाव�ा

निवपशय�ा योग कशल कम(

वीतराग योग पणय

७ पातञजल योग निववक खयाधित

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

निवपशय�ा योग समयगदश(�

वीतराग योग समयगदश(�

८ पातञजल योग परतयाहार

निवपशय�ा योग काया�पशय�ा

वीतराग योग

परतयाहार बाहय तप - अ�श�,ऊ�ो-दरी अथा(त कम स कमआहार, णिभ+ाचया(, रस परिरतयाग,काय कलश, परधित सली�ता , एवछः आभयानतर तप (परायधिशचत,निव�य, वयावतय अथा(त गरनतिनथयोको गला�ा, सवाधयाय, धया�,कायोतसग()

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

९ पातञजल योग *ारणा

निवपशय�ा योग परजञा (धिचतता�पशय�ा)

वीतराग योग छः आभयानतर तप

१० पातञजल योग धया�

निवपशय�ा योग परजञा (*मा(�पशय�ा)

वीतराग योग धया�

११ पातञजल योग समाधि*

निवपशय�ा योगभवाग धया� (दहातीत

अवसथा)

वीतराग योग कायोतसग(

१२ पातञजल योग कवलय

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

निवपशय�ा योग कवलय

वीतराग योग कवलय (नि�वा(ण, मनि`)

निवषमताय

समसत सा*�ाओ का एकमव लकषय होता ह, अप�आतम-सवरप एव परमातम-सवरप म नतिसथत हो�ा।यदयनिप पातञजल, निवपशय�ा, तथा वीतराग सा*�ा कादाश(नि�क प+ मलतः समा� ह। वीतरागता ही इ�कापराण ह, निफर भी मा�व म� की कमजोरिरयो क कारणकछ णिभननताओ का अ�भव होता ह, जो स+प म इसपरकार ह-

१ पातञजल योग कलश, कम( की वास�ा स रनिहतपरष निवशष ही परमातमा ह,

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

जिजसकी अ�भधित समाधि* म होतीह। वह बरहम ही अखणड मनि` द�वाला ह।

कलश कम( निवपाकाश यरपरामषटःपरषनिवशष ईशवरः। (योग दश(�१/२४)

निवपशय�ा योग

सब कछ शनय ही शनय ह। � तोआतमा ह और � परमातमा ह।समयक समाधि* का फल कवलयह, जिजसम दहातीत अवसथा परापतहोती ह और अ�नत शनि` निमलतीह।

वीतराग योग जीव का अनतिसततव तो ह, निकनत

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

सनिषट का कता( कोई अ�ानिदपरमातमा �ही ह। वीतराग सा*�ादवारा कवलय की परानिपत हो� परसभी ईशवरतव क गण जीव कअनदर ही आ जात ह।

पातञजल योग

समाधि* की परानिपत क लिलएपरमातमा क परधित अटट समप(णका हो�ा अनि�वाय( ह।

समाधि* जिसधिKः ईशवर पराणिण*ा�ात।(योग दश(� २/४५)

निवपशय�ा योग निवपशय�ा योग क परधित शरKारखत हए परषाथ(पव(क अभयासकर� स जब धिचतत पण(तया

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

नि�रविवकार हो जाता ह, तो समाधि*की परानिपत होती ह।

वीतराग योगदढ वरागय तथा नि�रविवकार धिचततसमाधि* क लकषय तक ल जात ह।

पातञजल योग

*ारणा क लिलए ॐ बरहमवाचक�ाम का अथ(पव(क धिचनत� करकधिचतत को नतिसथर निकया जाता ह।तसय वाचकः परणवः। तत जपःतदथº भावतम।(योग दश(� १/२७)

निवपशय�ा योग निवपशय�ा पKधित म �ाजिसका सआ� व जा� वाल शवास पर धिचततको कनतिनदरत निकया जाता ह, तथा

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

समपण( सवद�ाओ क परधिततटसथ रहत हए समाधि* म परवशनिकया जाता ह।

वीतराग योग

*म( धया� तथा शकल धया� कीपरनिकरया स करमशः राग-दवष आनिदनिवकारो का परिरतयाग निकया जाताह, जिजसस समाधि* एव वीतरागअवसथा की परानिपत होती ह।निवपशय�ा की परनिकरया वीतरागसा*�ा क बहत ही नि�कटवतµ ह।

आतमा-परमातमा समबन*ी समी+ा

वत(मा� समय म परचलिलत बौK दश(� क अ�यायी

परकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठपरकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठ, , सरसावा सरसावा 6161 / 414/ 414

नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

यही मा�त ह निक � तो कोई आतमा ह और � कोईपरमातमा, बनतिलक एकमातर शनय ही शनय ह। दशयमा�परतयक वसत म सकषम तरगो क अधितरिर` और कछ ह ही�ही।

यनिद ऐसा मा�ा जाय, तो इस परकार क परशन उठ�सवभानिवक ह-

१. यनिद आतमा ह ही �ही, तो अखणड मनि` या शानतिनतनिकसको परापत होती ह? शरीर, अनतःकरण, तथा इनतिनदरयातो जड एव �शवर ह। +ण-+ण परिरवरतितत हो� वाली जडतरग निकस परकार अ�नत आ�नद का उपभोग कर सकतीह?

२. जब यह ससार दःखमय ह, तो इसका अ�भवनिकसको होता ह? यनिद अनतःकरण (म�, धिचतत, बधिK,

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

अहकार) को होता ह, तो अनतःकरण निकसस ब�ा ह?जड शनय स णिभनन जब कोई चत� पदाथ( ह ही �ही औरसभी पदाथ� म +णिणकवाद का दोष ह , तो सख-दख,जनम-मरण का अ�भव कौ� करता ह?

३. शनय जड ह या चत�? यनिद जड मा�त ह , तोपराणिणयो क जीनिवत रह� या मर� म कोई अनतर ह या�ही?

४. शवास-परशवास की निकरया- सख-दःख, इचछा, दवष,परयत� आनिद सभी जीव (आतमा) क ल+ण ह। कया जडशनय स चत� की उतपलितत हो सकती ह और शरीर छट�क पशचात उस चतनय का जड शनय म रपानतरिरत हो�ासमभव ह?

५. समाधि* की दहातीत अवसथा म जब अनतःकरण

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

तथा इनतिनदरयो स कोई समबन* ही �ही होता , तो बKतवनिकसको परापत होता ह?

६. म�, वाणी, तथा आचरण क सतय स पर वह परमसतय (ऋत) कौ� ह और कसा ह, जिजसक नि�यम� मयह समपण( सनिषट चल रही ह?

७. निब�ा बधिKबल क कम(फल की वयवसथा कौ� करताह? कया जड शनय स ऐसा हो�ा समभव ह?

८. सनिषट क परारमभ स लकर आज निद� तक गौतम,कनिपल, कणाद, शकदव आनिद असखय म�ीषी हो चकह, जिजनहो� आतमा एव परमातमा क अनतिसततव कोसवीकार निकया ह। कया ऐसा करक उनहो� कोई भल कीह?

९. समाधि* अवसथा म जञा� द� वाला कौ� ह ? यनिद

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

यह कहा जाय निक नि�रविवकार अवसथा म सवतः ही जञा�परकट हो जाता ह तो यह उधिचत �ही, कयोनिक शनय रपजड पदाथ( स म� या धिचतत म सवतः जञा� परकट �ही होसकता।

१०. भगवा� बK � कहा ह निक "म� उस अभय,अमत पद को परापत कर लिलया ह। " यह अवसथा तोनितरगणातमक शनय स पर हो� पर ही परापत हो सकती ह।ऐसी अवसथा म परशन यह होता ह निक शनय स परनितरगणातीत, शाशवत, अमर पद कहा ह, कसा ह, औरनिकसका ह? जब जड शनय स पर कछ ह ही �ही औरपरतयक वसत +णिणक ह, तो अखणड पद की बात कहा सआ गयी?

आतमा तथा परमातमा क अनतिसततव को �कार� क लिलयपरायः बK जी क इ� कथ�ो का उKरण निदया जाता ह-

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१. जहा आतम-दनिषट ह, वहा सतय �ही ह। आतमा कीमानयता एक छल ह। कोई भी ऐसा अपरा* �ही,जिजसका जनम आतम-दनिषट स � हआ हो।

सतय का बो* तभी समभव ह, जब यह बात सपषटहो जाय निक आतमा एक छलावा मातर ह। *मा(चरण तभीसमभव ह, जब हमारा म� "आतमा" समबन*ी सभीनिमथया मानयताओ स म हो जाय। समपण( शानतिनत वहीसथानिपत हो सकती ह, जहा पण( रप स अहकार का�ाश हो गया हो।

(बKतव परानिपत क पशचात)

२. आप लोग आतमाथ( क ही गलाम ह और परातः सलकर रानितर तक उसी की सवा म लग रहत ह। आप लोगजो जनम, बढाप, बीमारी, तथा मतय स सदा भयभीत

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

रहत ह, इस सखद समाचार को स� निक कही भी कोईआतमा ह ही �ही। आतमाथ( की परवलितत का तयाग कर द,तो आप धिचतत की उस शानत अवसथा को परापत कर लगजहा अनिवदया क लिलय कोई सथा� �ही।

(राजगह म उपदश)

३. �ाम, रप म कही भी कोई आतमा णिछपा �ही रहता।सकन*ो क आपसी सहयोग स जिजसकी उतपलितत होती ह,उस ही लोग "आदमी" कहत ह।

णिभ+ओ! यह परम सतय ह निक निकसी क भी अगो सपथक कोई अगी �ही ह। यह जो हमारा अप�ा आप ह,जिजस हम �ाम-रप कहत ह, यह चारो महाभतो वालपाचो सकन*ो क योगय सनतिममशरण का परिरणाम ह। आतमा�ाम का कोई भी पदाथ( कही भी निवदयमा� �ही ह।

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

शरीर एक यनतर की तरह ह। इसम इसको चालकर� वाला कोई "आतमा" या ऐसा कछ भी �ही ह ,लनिक� इसम जो निवचार ह , व ही हवा स चल� वालनिकसी यनतर की तरह इस चलायमा� करत ह।

णिभ+ओ! आतमा जसी निकसी वसत क � हो� सआतमा का कोई भावी जनम भी �ही हो सकता। इसलिलयआतमा समबन*ी निकसी भी निवचार को अप� म� म सथा�� दो। कवल कम� का ही अनतिसततव ह , अतः कम� कपरधित साव*ा� रहो।

(बK का उपदश- सारिरपतर आनिद णिभ+ओ क परधित)

४. चरिरतर का प�ज(नम होता ह, निकनत निकसी आतमा काससरण (एक योनि� स दसर योनि� म परवश) �ही होता।निवचारो की प�रतपलितत होती ह, निकनत निकसी भी आतमा

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

का सथा�ीकरण �ही होता। यनिद कोई आचाय( निकसी एकशलोक या गाथा का पाठ करता ह, तो उसका णिशषय निब�ानिकसी ससरण क उसी शलोक या गाथा को दहरा सकताह।

ह बराहमण! तम अभी भी आतमा स धिचपक हए हो।तम सवग( म आतम-भोग की कलप�ाय करत रहत हो।इसलिलय तम सतय का यथाथ( दश(� �ही कर सकत।जिजस आतमा स तम धिचपक हए हो, वह नि�रनतरपरिरवत(�शील ह। वष� पहल तम एक बj थ। उसकपशचात तम करमशः निकशोर, तरण, और अब वयसक होगय हो। कया बj और वयसक म कोई एकरपता ह?अब जिजस आतमा क लिलय तम इत�ी हाय-तोबा मचा रहहो, वह कौ� सा आतमा ह? बीत हए कल का आतमा,आज का आतमा, अथवा आ� वाल कल का आतमा।

परकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठपरकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठ, , सरसावा सरसावा 6969 / 414/ 414

नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

(कटदनत बराहमण क परधित बK जी का उपदश)

उपरो` उKरणो क धिचनत� स यही नि�षकष(नि�कलता ह निक य सभी कथ� भगवा� बK क वासतनिवकवच�ो को तोड-मरोडकर वस ही परसतत निकय गय ह,जस पौराणिणको � ऋनिषयो क �ाम स वद -निवरK बातदशा(यी ह। यह सव(निवनिदत ह निक गौतम बK , महावीरसवामी, या ईसा मसीह � अप� हाथो स कोई भी गरनथसवय �ही लिलखा ह, बनतिलक उ�क अ�याधिययो � उ�कदह-तयाग क लमब समय क पशचात ही उ�क निवचारो कासगरह निकया ह।

भगवा� बK क जिज� कथ�ो म आतमा कीअसवीकाय(ता दशा(यी गयी ह, वहा आतमा का तातपय(अहम (म) स ह। आतमा का शK सवरप म�, धिचतत,बधिK, और अहम स सव(था पर ह, और वह मातर समाधि*

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अवसथा म ही अ�भत होता ह, निकनत उस शबदो दवारायथाथ( रप म वय` कर पा�ा समभव �ही होता।

आतम-दनिषट को तयाग� का भाव यह ह निक जब तकहम सवय को अनतःकरण, इनतिनदरयो, शरीर, तथा इस�शवर ससार स अलग �ही समझग, तब तक � सवय कवासतनिवक सवरप को जा� सक ग और � ही अखणडशानतिनत परापत कर सक ग। सवय (म) क अनतिसततव कोनिमटा�ा ही यहा आतम-भाव को निमटा�ा ह। आतमा औरपरमातमा क समबन* म बK जी का कथ� ह-

अह णिभकखव! तथागत सममासमबKो उदहथ णिभकखव।

सोत अमत अधि*गतम अहम�सासानिम अह *मरम दसनिम।।

मनतिजझम नि�काय २६ स०

अथा(त णिभ+ओ! अब म बK हो गया ह और म�

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अमत की परानिपत कर ली ह। अब म *म( का उपदश करताह।

वनिदक सानिहतय म अमत शबद का परयोग बरहम कलिलय ही हआ ह। जस-

तदव शकर तद बरहम तदव अमतमचयत।

कठ उपनि�षद २/२/८

वह बरहम ही अखणड परकाश ह और अमत ह।

शरणवनत निवशव अमतसय पतराः। यजव~द ११/११

ह सभी अमत पतरो! मरी बात स�ो।

त यदनतरा तद बरहम तदमतम।

छानदोगयोपनि�षद क इस कथ� म भी बरहम को अमतकहा गया ह।

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*ममपद शलोक १६० (अनतवगगो ४) म आतमा तथापरमातमा का अनतिसततव मा�ा गया ह-

अततानिह अतत�ो �ाथो को निह �ाथो परोजिसया।

अत�ा व सदनत� �ाथ लभधित दललभ।।

अथा(त आतमा ही आतमा का �ाथ ह, उसस बडाऔर कौ� हो सकता ह। आतमा की धिचततवलिततयो कादम� (आतम-दम�) कर ल� पर उस दल(भ �ाथपरमातमा की परानिपत होती ह।

तनिवजजसतत दीघ नि�काय ८२८४ म मतरी , करणा,मनिदता, तथा उप+ा को बरहम परानिपत का सा*� बतायागया ह-

१. मताय चतोनिवमलिततया- अयखोवासदव बरहमा�सहवयताय मगगो।

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२. करणाय चतो निवमलिततया- बरहम� सहतयताय मगगो।

३. मनिदताय- बरहम� सहवयताय मगगो।

४. उपकखाय चतो निवमलिततयम- बरहमा� सहवयतायमगगो।

सतत नि�पात क मतत सतत (मतरी स`) म कहा गयाह-

धितटठ चर नि�जिसननो वा, सया�ो वा यावतसस निवगत णिभK।

एतसडित अधि*टठय, बरहमत निवहार इ*माह।।

खड रहत, चलत, बठत, या सोत समय जब तकजागरत ह, तब तक मतरी आनिद की करणा भाव�ा ब�ायरख�ी चानिहए। यही बरहम निवहार ह।

भगवा� बK सवय कहत ह-

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बरहम भतो अधित तलो मार स�पपमदद�ो।

सबवा निमतत बसीकतवा, मोदानिम अकतो भयो।।

अथा(त अब म बरहम पद (बरहम रप) को परापत हो गयाह। मरी तल�ा अब निकसी स �ही हो सकती। म� मार(कामदव) की स�ा को मरविदत कर निदया ह और अप�अनतःशतरओ को वश म करक नि�भ(य होकर आ�नतिनदतहो रहा ह।

१. मताय चतो निवमधितया- अयखोवासदव बरहमा�सहवयताय मगगो।

२. करणाय चतो निवमलिततया- बरहम� सहवयताय मगगो।

भरमवश +ण-+ण �षट हो� वाल परतयय मातर +णिणकधिचतत को ही व�ाणिशको (बौKो) � आतमा मा�ा ह।वसततः आतमा तो दरषटा ह, जो समाधि* की शनयावसथा म

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भी अप� सवरप म नतिसथत रहता ह। निवजञा� रप यहसारा ससार धिचतत म ही चल रहा ह। इसक पर आतमाका सवरप ह, जिजसको � जा�� क कारण बौK जगतभरानतिनत का णिशकार हो रहा ह। समभवतः भगवा� बK कणिशषय उ�क कथ�ो को यथाथ( रप म परसतत �ही करसक।

दरवय स गण कभी पथक �ही हो सकता। जब धिचततही +णिणक ह, तो उसम जनम-जनमानतरो क ससकारकस सरधि+त रह सकत ह। धिचतत को +णिणक तथाससकारो क परवाह को अ�ानिद कह�ा उधिचत �ही ह।पचशत पचासजातक �ामक पालिल गरनथ म भगवा� बKक ५५० जनमो का वण(� ह। इ�म व ८३ बार सनयासी,५८ बार महाराजा, २६ बार *म�पदशक, १० बार मग,१८ बार बनदर, १० बार सिसह, ८ बार हस, ८ बार

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हाथी, १२ बार मगा(, १ बार कतता, १ बार मढक, १बार खरगोश, २४ बार परोनिहत, २४ बार अमातय(मनतरी), और २४ बार यवराज ब�।

आतमा (जीव) की चतनयता स ही अनतःकरण(म�, धिचत, बधिK, अहकार) एव इनतिनदरयो म चतनयताहोती ह। यनिद धिचतत ही +णिणक और �शवर ह , तो इत�जनमो क ससकारो को राजकमार जिसKाथ( क साथ कसजोडा जा सकता ह? इस समबन* म जलती हई मशालका दषटानत दकर धिचतत क +णिणक निवचारो क परवाह कोअ�ानिद जिसK कर�ा यनि`सगत �ही ह।

समयक समाधि* क सा*� की समी+ा

समपण( वनिदक सानिहतय परबरहम क परधित अटट नि�षटा,समप(ण, एव परम स भरा हआ ह। यही समाधि* का

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आ*ार भी ह। बहदारणयक उपनि�षद म याजञवलकय तथागागµ क सवाद म तो सपषट रप स कहा गया ह निक मतयस पव( यनिद बरहम को �ही जा�ा , तो यह जीव� वयथ( ह।यजव~द ३१/१८ म तो यह नि�द~श ही ह-

तमव निवनिदतवाधित मतयमधित �ानयः पनथा निवदयतऽय�ाय।

अथा(त उस परबरहम को जा� निब�ा मतय क बन*�स छट� का अनय कोई भी माग( �ही ह।

समप(ण क निब�ा निवरह-परम �ही आ सकता औरनिब�ा निवरह-परम क कोई भी वयनि` अप� अहम कापरिरतयाग �ही कर सकता। सवय क अनतिसततव का भा� हीतो ससार को हमार सममख उपनतिसथत निकय रहता ह।यही कारण ह निक भगवा� बK � बार -बार सवय(अहम) क समाप� का नि�द~श निकया ह, जिजस भरमवश

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उ�क णिशषयो � आतमा का ही नि�ष* मा� लिलया।

गीता ८/२२ का कथ� ह-

परषः स परः पाथ( भकतया लभयसत अ�नयया।

अथा(त वह परबरहम अ�नय परा परम ल+णा भनि`दवारा ही परापत हो सकता ह।

इसम कोई भी सशय �ही ह निक निवपशय�ा पKधितम� एव धिचतत को राग-दवष, काम, करो*, लोभ, मोहआनिद निवकारो स मनि` निदला दती ह, निकनत अधयातम कासव�परिर लकषय यही तो �ही ह। निवपशय�ा दवारा यनिद कोईवयनि` अप� धिचतत को नि�रविवकार कर भी लता ह , तो भीउसक अनदर अहम की बीजरपा अनतिसमता का भाव तोब�ा ही रहता ह।

गौतम बK � अधयातम क जिजस सतर को परापत निकया

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ह, वहा तक पहच�ा सबक लिलय समभव �ही ह। बK कसमकाली� उ�क णिशषयो क सम+ जब तक बK जी काअलौनिकक वयनि`तव रहा, तब तक उ�को आदश( मा�करउ�को णिभ+ओ � कवलय पद की परानिपत की, निकनत उ�कदह-तयाग पशचात उ�की मरतितया ब�ाकर पजा-पाठ कीपरनिकरया शर हो गयी। फलतः घणट -घनिडयाल कीआवाज म निवपशय�ा जसी योग-सा*�ा लपत पराय होगयी। लगभग यही नतिसथधित तीथºकरो की मरतितया ब�ाकरपजा कर� वाल जनि�यो तथा अवतारो की भनि` कर�वाल पौराणिणक निहनदओ की हई। मनतिनदरो म चढ� वालअकत चढावो � भोग-निवलास की ऐसी आ*ी बहायी निकलगभग सभी � निवपशय�ा एव पातञजल योग को भला हीनिदया। जड पजा क दीमक � भारतीय अधयातम रपी व+को पण(तया जज(रिरत कर निदया, जिजसक परिरणाम सवरप

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आज चारो ओर आडमबर ही आडमबर निदखाई द रहा ह।

पौराणिणक निहनदओ � सवलीला अदवत सधिjदा�नदपरबरहम क परधित शरKा, निवशवास, तथा समप(ण को छोडकरनिवषण तथा णिशव क अवतारो एव अनय कालपनि�क दवी-दवताओ क साथ-साथ �निदयो, पहाडो, व+ो, �वगरहोआनिद की पजा परारमभ कर दी। उ�का यह काय( भी�ानतिसतकता जसा ही ह।

अ�नत तज, सौनदय(, परम, आ�नद, जञा�, औरशानतिनत क सागर अ+रातीत परबरहम क समप(ण स निवमखहोकर यनिद कोई भगवा� बK , तीथºकरो, या दवी-दवताओ की मरतितयो क परधित समप(ण भाव दशा(करधया�-सा*�ा या भनि` करता ह , तो अधयातम कणिशखर तक उसका पहच पा�ा समभव �ही ह।

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यनिद ऐसा कहा जाय निक तीथºकर २४ ह , बK भीअ�क हो चक ह और भनिवषय म भी होग, हम तो उ�कोआदश( मा�कर परजञा , शील, एव समाधि* क परधित हीसमप(ण भाव�ा रखत ह तथा निवपशय�ा एव वीतराग योगकी सा*�ा करत ह, तो हम कवलय कयो �ही परापतहोगा?

इसक समा*ा� म यही कहा जा सकता ह निक इसनतिसथधित म निवपशय�ा या वीतराग दवारा तभी कवलय परापतहो सकगा, जब हदय राग-दवषानिद निवकारो स म` होकरआतमा-परमातमा क नि�ष* की क¥रवादी सामपरदाधियकमानयता स भी पर हो जाय तथा हदय म परम भनि` कीशीतल *ारा बह� लग।

वदो को हय दनिषट स दख�ा तथा गौतम बK ककथ�ो को अ+रशः परम सतय मा��ा क¥रता एव

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प+पातपण( मा�जिसकता ह।

सतत नि�पात ७९२ (सKटठक सतत शलोक ५) मलिलखा ह-

सवय समादाय बतानि� जनत, उjावच गचछधित सजसततो।

निवदवा च वदनिह समj च *मम, उjा वच गचछधित भरिरपपजजो।।

अथा(त इनतिनदरयो क अ*ी� होकर अप�ी इचछा सकछ काम तथा तप करत हए लोग ऊची-�ीची अवसथाको परापत करत ह। जो निवदवा� वदो दवारा *म( का जञा� परापतकरता ह, उसकी ऐसा डावाडोल नतिसथधित �ही होती।

इसी परकार सतत नि�पात शलोक १०६० म भगवा�बK कहत ह-

निवदवा च सो वदग �रो इ* भवाभव सडगम इम निवसजजा।

सो वीततणहो अनि�घो नि�रासो अतारिर सो जाधित जराधित बरमीधित।।परकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठपरकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठ, , सरसावा सरसावा 8383 / 414/ 414

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अथा(त वद को जा�� वाल निवदवा� इस ससार मजनम या मतय म आसनि` का परिरतयाग करक , तषणातथा पापरनिहत होकर, जनम तथा वKावसथा आनिद कबन*�ो स पार हो जाता ह, ऐसा म कहता ह।

*ारणा समबन*ी समी+ा

धिचतत को निकसी सथा� या रप म बा*�ा ही *ारणाह। "दशबन*ः धिचततसय *ारणा" (योग दश(� ३/१) सयही नि�षकष( नि�कलता ह। *ारणा का परिरपकव रप हीधया� ह तथा धया� का परिरपकव रप (गह�तम नतिसथधित)समाधि* ह।

समाधि* म धयय (परबरहम) का ही सा+ातकार होताह, इसलिलय *ारणा म बराहमी भाव हो�ा अनि�वाय( ह।वदानत म इस समबन* म सपषट नि�द~श निदया गया ह निक

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

*ारणा कवल चतनय की ही हो�ी चानिहए, जड पदाथ( की�ही। मणडकोपनि�षद २/४ क कथ� "परणवो *�ः शरोनिह आतमा बरहम तत लकषयमचयत" का यही आशय ह।

जिजसका धिचनत� निकया जाता ह, उसक म�ः पटलपर वह अनिकत हो जाता ह तथा उसक गण-दोष भीउसम आ जात ह।

*ारणा-धया� म यह परनिकरया और तज हो जाती ह।इस परकार, धयाता (धया� कर� वाल) म धयय क गण-दोषो का आ�ा सवभानिवक ह।

यही कारण ह निक धया� की वनिदक परमपरा मअ�नत परम, जञा�, सौनदय(, आ�नद आनिद गणो वालएकमातर परबरहम क ही धया� का वण(� ह।

इसलिलय पतञजलिल ऋनिष क योग दश(� १ /२८ म

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"तजजपसतदथ( भाव�म" अथा(त अथ( का धिचनत� करतहए *ीर-*ीर मा�जिसक जप कर�ा चानिहए, जिजसस म�सासारिरक निवचारो स हटकर परमातमा की ओर लगजाय।

इसक निवपरीत परायः निवपशय�ा योग का अभयासकर� वालो म आतमा-परमातमा शबद स ही परहज होताह। �ाजिसका स आ�-जा� वाली सास बरहम की तरहचत� �ही ह। इत�ा अवशय ह निक शवासो पर *ारणाकर� स धिचतत सबल, सकषम, तथा नि�म(ल हो जाता ह।

शरीर म हो� वाली सवद�ाओ क परधित कटसथभाव�ा रख� स धया�-समाधि* की भनिमका तयार होजाती ह।

यह नि�रविववाद जिसK ह निक शरKापव(क निवपशय�ा

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

पKधित स की गयी सा*�ा योग क सव�j णिशखरअसमपरजञात (नि�बµज) समाधि* तक पहचा सकती ह ,निकनत इसक लिलय सबस पहली आवशयकता ह,परमातम-ततव क परधित घणा क ससकारो को हटा�ा।

जब समपण( पराणिणमातर क लिलय करणा , परम, तथामगल की काम�ा की जा सकती ह, तो मातर आतमा-परमातमा शबद स नि�ष* (असवीकार) कयो? वह कसाअधयातम और कसी सा*�ा, जिजसम आतमा-परमातमाक लिलय कोई सथा� ही �ही?

म� या धिचतत को एकागर कर� क लिलय योग दश(� मअ�क उपाय बताय गय ह-

१. अभयास वरागयाभया तधिननरो*ः। योग दश(� १/१२

धया�-सा*�ा क नि�रनतर अभयास तथा निवषयो क

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परधित निववकपव(क वरागय स धिचतत की वलिततयो का नि�रो*होता ह। जिजस परकार निकसी भी प+ी क दो पख होत ह।इ�म निकसी भी अकल पख स �ही उडा जा सकता ,बनतिलक दो�ो पखो की सनतिममलिलत परनिकरया उड� का काय(समपानिदत करती ह। उसी परकार � कवल अभयास सऔर � कवल वरागय स, बनतिलक दो�ो सा*�ो दवारा हीधिचतत को एकागर निकया जा सकता ह।

२. परचछद(�निव*ारणाभया वा पराणसय।

योग दश(� १/३४

पराणायाम दवारा भी धिचतत की वलिततयो का नि�रो*होता ह।

३. निवशोका वा जयोधितषमती। योग दश(� १/३६

सानतितवक अभयास स जिजसका शोक अथा(त रजोगण

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का परिरणाम दर हो गया ह, वह परवलितत जयोधितषमतीकहलाती ह। इसस भी धिचतत नतिसथर हो जाता ह।

४. वीतराग निवषय वा धिचततम। योग दश(� १/३७

निवषयो का पण(तया तयाग करक वीतराग अवसथाको परापत कर� वाल योनिगयो, परमहसो क धिचतत का धया�कर� स भी धिचतत नतिसथर हो जाता ह।

५. सवप� नि�दराजञा�ालमब� वा। योग दश(� १/३८

जिजस परकार सवप� म तमोगण क कारण वलिततयाअनतम(खी होती ह, उसी परकार धया� की अवसथा मतमोगण क सथा� पर सतोगण स वलिततयो को अनतम(खीकर�ा चानिहए।

६. यथा अणिभमतधया�ादवा। योग दश(� १/३९

जिजसका जो अणिभमत (इषट) हो, उसक धया� स भी

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

म� बन* जाता ह।

७. परमाणपरममहततवानतोऽसय वशीकार।

योग दश(� १/४०

जब उपरो` उपायो स धिचतत म एकागर हो� कीयोगयता परापत हो जाती ह , तो वह पण(तया वश म होजाता ह और परमाण जसी अधित सकषम तथा आकाशजस वहद निवषय म भी निब�ा निकसी बा*ा क लगाया जासकता ह।

ज� दश(� का जञा�, दश(�, व चरिरतर ही बौK दश(�का शील, समाधि*, एव परजञा ह। निवपशय�ा, वीतराग, एवपातञजल योग की वासतनिवक सा*�ा कवलय को परापतकरा� म समथ( ह। भगवा� बK � असमपरजञात समाधि*का जो सवरप दशा(या ह, वह एक परकार स साखय-योग

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की असमपरजञात (नि�वµज) समाधि* का ही रपानतर ह। वकहत ह-

णिभ+ओ! एक अकत ह, जहा � पथवी ह, � जलह, � उषणता ह, � वाय ह, � आकाश ह, � सय( ह, �चनदरमा ह, � जनम ह, � मतय ह। यहा जो कछ भी ह,उसकी � कभी वहा उतपलितत होती ह और � कभी नि�रो*होता ह।

यथाथ( का सा+ातकार सहज �ही ह। सतय काअवबो* आसा� �ही ह। जो जञा�ी ह , वह तषणा परकाब पा लता ह। जो यथाथ(दशµ ह , उसक लिलय सभीकछ शनय ह।

(शरावसती क जतव�ाराम म बK क परवच� स )राहल साकनततयाय� क शबदो म - समराट कनि�षक क

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

समय सबस पहल बK की परधितमा ब�ायी गयी। महाया�क परचार क साथ-साथ बK की परधितमाओ की पजा बडठाट-बाट स हो� लगी। तारा, परजञा, निवजया आनिददनिवयो की कलप�ा क साथ अ�क बोधि*सतवो की भीपजा कर� क लिलय बड-बड निवशाल मनतिनदर ब� गय।*ममपद क नि�द~शो की अवहल�ा कर� क कारणमहाया� क अ�याधिययो म वाममाग( का परचल� चलपडा, जिजसक परिरणाम सवरप बरजया�ी एव तनतरया�ीभोग-निवलास म डब गय।

आठवी शताबदी स बारहवी शताबदी तक बौK *म(वसततः बरजया� या भरवी चकर का *म( था। इस सहजया� भी कहा जा� लगा था। परिरणामतः बौK *म( मअ�ाचार फलता गया।

परम और आ�नद क सागर उस सधिjदा�नद

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परमातमा स निवमख हो� का ही यह दषपरिरणाम था निकसभी बौK इत� अकम(णय हो गय निक निवशवनिवखयात�ालनदा निवशवनिवदयालय क १८००० छातर तथा २०००अधयापक महममद निब� बखतयार उददी� क मातर २००घडसवारो क साम� भाग खड हए। आतमा-परमातमातथा वद क परधित धितरसकार भाव�ा � वजरया�ी बौKो कोसवचछाचारी तथा �धितक दनिषट स पधितत ब�ा निदया था।

भगवा� बK की जिसखायी हई निवपशय�ा पKधित कतयाग तथा जड-पजा क कम(काणडो म उलझ� स बौK*म( क अ�याधिययो म सतय क अनवषण एव अ�गम� कीपरवलितत लपतपराय सी हो गयी। इसका दषपरिरणाम यहनि�कला निक कालानतर म बौK मत एक क¥रसामपरदाधियक निवचार*ारा का अ�सरण कर� लगा।

यह कोरा भरम एव निमथया निवचार ह निक

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

शरीमदभगवदगीता तथा पातञजल योग की रच�ा ईसा कीचौथी शताबदी म की गयी ह तथा भगवा� बK कीणिश+ाओ का ही आ*ार लकर इ� गरनथो को लिलखा गयाह।

यदयनिप पतञजलिल क काय(काल को लकर निवदवा�ो ममतभद ह, निकनत इत�ा तो नि�शचय ह निक योग दश(� करच�ाकार पतञजलिल कोई और ह तथा वयाकरण करच�ाकार पतञजलिल कोई और ह, कयोनिक महरविष पाणिणनि�कत अषटाधयायी म वद वयास जी का �ाम आता ह।

पाराशय( णिशलालिलभया णिभ+�ट सतरयो। (४/३/११०)

पाणिणनि� कत अषटाधयायी क वयाखयाकार भीपतञजलिल ह , जो उ�क समकाली� थ। यह समयसमभवतः ईसा की तीसरी शताबदी का हो सकता ह।

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ऐसी मानयता ह निक पतञजलिल ऋनिष पषपनिमतर शग कगर थ, निकनत जिजस महामनि� पतञजलिल � योग शा  कीरच�ा की ह, नि�ःसनदह व वदवयास जी स पहल ही होचक ह, कयोनिक वदवयास जी � योग शा  पर निवसततभाषय लिलखा ह।

यदयनिप अधि*काश निवदवा�ो का मत ह निक वदानतदश(� क रच�ाकार पराशर पतर वदवयास जी � हीयोगदश(� पर अप�ा भाषय लिलखा ह, निकनत बहत सनिवदवा�ो का ऐसा भी मत ह निक योग दश(� क भाषयकारवयास वदानत दश(� क कता( वदवयास स बहत पहल हीहो चक ह।

यह धया� द� योगय तथय ह निक महरविष कनिपलपरणीत साखय दश(� सबस पराची� ह तथा उसक पशचातयोगदश(� की रच�ा हई ह। साखय तथा योगशा  की

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

रच�ा क पशचात ही शष अनय दश(�ो (वदानत, नयाय,मीमासा, वशनिषक) की रच�ा हई ह।

नि�ःसनदह शरीमदभगवदगीता ५००० वष( पव( वद वयासपरणीत महाभारत का अश ह। उस भगवा� बK क पशचातलिलखा हआ कह�ा सतय को झठला�ा ह।

सच तो यह ह निक बौK गरनथो क बहत स अश वदो,उपनि�षदो, महाभारत आनिद गरनथो क भावा�वाद कीतरह परतीत होत ह। स+प म उ�की कछ झाकी परसततह-

वनिदक सानिहतय बौK सानिहतय

१. यजञ� यजञमयजनतदवासतानि� *मा(णिणपरथमानयास�।

१. यो यजधित धितनिव* यजजसमपद आराधय दनतिकखणयनिह तानिद। एव यजिजतवा

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

सममा याचयोगो पजजधितबरहमलोक धितबरमीधित।

(सतनि�पात वगग ३, सतत५)

जो ती� परकार की यजञसमपलितत को जा�कर यजञऔर आरा*�ा करता ह एवअप� अनदर उदारता*ारण करता ह, वहबरहमलोक को परापत करता ह।

२. बरहमव स� बरहमापयधित।(वहदारणयक उपनि�षद)

बरहमरप होकर बरहम को

२. बरहमभत� अतत�ानिवहरधित। (अगततर नि�काय)

बरहमरप होकर निवहार

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

परापत करता ह। करता ह।

३. �ानिवरतोदशचरिरताननाशानतो �ा

समानिहतः।�ाशानतमा�सो वानिपपरजञा��� माप�यात।

(कठोपनि�षद २/१/२४)

जो � तो बर आचरण सपथक हआ और � शानतएव एकागर म� वाला हीहआ, वह मातर बौधिKकजञा� दवारा बरहम को परापत�ही कर सकता।

३. एकोनिदवभतोकरणानिदमततो नि�रायगन*ोनिवरतो मथ�समा।एतथनतितथतोएतथचजिसकखमा�ो पयोधितमjो अमत बरहमलोकधित।।(दीघ( नि�काय १९)

म�षयो म ममता छोडकरएकानत म रह�ा, करणा सय हो�ा , बरहमचय( कापाल� कर�ा, तथा पापानिदकम� स दर रह�ा , उस

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

अमतमयी बरहमलोक कोपरापत कराता ह।

४. यथा �ः सव(इजज�ोऽ�मीवः सगमसम�ा असत।

(यजव~द ३३/८६)

सभी नि�रोग और सवसथम� वाल हो।

इनदरो निवशवसय राजधित श�ोअसत निदवपद श चतषपद।

(यजव~द ३६/८)

दो पर वाल और चार परवाल सभी पराणिणयो का

४. सबब सतता सखीहोनत, सबब होनत चखनिमनतो। सबब भदराणिणपससनत, मा काधिjदखभागमा।

(बौKचया( पKधित प. ३६)

सभी सखी हो, सभीनि�रोग हो। सभी एक-दसरका कलयाण चाह और कोईभी दःखी � हो।

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

कलयाण हो।

सवनतिसत मातर उत निपतर �ोअसत सवनतिसत गोभयो जगतपरषभयः।

(अथव(वद १/३१/४)

सव~ भवनत सलिख�ः सव~सनत नि�रामयाः। सव~भदराणिण पशयनत मा कधिशचददःख भागभवत।।

५. अनयो अनय वलगवदनत एव।

(अथव(वद ३/३०/४)

वाच जषटामवानिदष दवा�ा

५. सममा वाचा (समयकवाक)

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दवहधितष।

(अथव(वद ५/७/४)

६. परिरमा� दशचरिरतादबा*सवा मा सचरिरत भज।(यजव~द ४/२८)

ह परमातमा! हम बरआचरण स हटाकरसदाचार म लगाइय।

६. सममाकममनत (समयककम()

७. शKोरडिय नि�*ारय ,शधिK ममनिदव सोमय।

(ऋगवद ५/९/५)

७. सममा अजीवा(समयक आजीनिवका)

८. धितधित+नत अणिभशनतिसत ८. �निह वरण वराणिण ,

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ज�ा�ाम।

(ऋगवद १/३४)

कर*यनत �परधितकरधयदाकरषटः कशलवदत।

(म�समधित ३/४८)

करो* कर� वाल पर भीकरो* � कर। गाली द�वाल को भी आशीवा(द द।

समनती* कदाच�।अवरणत सममनतिनत, एस*ममो स�त�ो।

वर स वर कभी शानत �हीहोता, वह अवर स हीशानत होता ह।

९. अकरो*� जयतकरो*म,असा* सा*�ा जयत।जयत कदयº दा�� ,जयतसतय� चा�त।।

९. अकको*� जिज� करो*असा* सा*�ा जिज�। जिज�कदरिरय दा�� सj�अलिलक वानिद�।।

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(महाभारत उदयोगपव(७१/५९)

(*ममपद करो* वगगो शलोक३)

१०.यतकलयाणमणिभधयायत ततरातमा� नि�योजयत। �पाप परधित पापः सयातसा*रव सदा भवत।।

(महाभारत व�पव(२०६/४४)

म�षय को सव(दाकलयाणमयी शभ कम� मसवय को लगा�ा चानिहए।पानिपयो क परधित भी पापी�ही हो�ा चानिहए।

१०. ससख वत जीवाम,वरिर�म अवरिर�ो।

वरिर�स म�ससस,निवहरामअवरिर�ो।।

(*ममपद सख वगगो)

अथा(त वरिरयो क परधितअवर एव पानिपयो क परधितनि�षपाप की भाव�ा रख�ीचानिहए।

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

अदरोहः सव(भतष कम(णाम�सा निगरः।

अ�गरहशच दा� च सता*म(ः स�ात�ः।।

(महाभारत व�पव(२९३/३४)

म�, वाणी, और कम( ससभी पराणिणयो म अदरोह ,अकिहसा, दया, और दा�की भाव�ा रख�ा हीस�ात� *म( ह।

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इस परकार यह सपषट ह निक भगवा� बK �वाममारविगयो क कारण वनिदक *म( म आयी हई निवकधितयोको दर निकया। उ�की धया� परनिकरया भी साखय योग काही रपानतर ह। कालानतर म उ�क णिशषयो दवाराअ�ातमवाद एव अ�ीशवरवाद की जो मानयता परचलिलत कीगयी, वह खद का निवषय ह।

४. पराणिणको का साकार धया�

सामानयतः पौराणिणक निहनद समाज बरहमा, निवषण,णिशव, राम, ह�मा�, लकषमी, सरसवती आनिद दवी -दवताओ की पजा-भनि` निकया करता ह। धया�-सा*�ाक माधयम स इ� सकषम शरीर*ारी दव-दनिवयो का दश(�निकया जा सकता ह, निकनत यह परमातम दश(� �ही हऔर इसस मो+ की परानिपत भी �ही मा� ल�ी चानिहए।

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ऐतरय बराहमण म कहा गया ह निक "एकमव अनिदवतीयबरहम" अथा(त परबरहम एक ह, उसक समा� अनय कोई भी�ही हो सकता। इस परकार , एक परबरहम को छोडकरअनय निकसी का धया� नि�रथ(क ह। वह अखणड मनि` �हीनिदला सकता।

योग दश(� ३/३२ म कहा गया ह निक "म*(जयोधितनिष जिसK दश(�म" अथा(त म*ा( की जयोधित म सयम(*ारणा, धया�, एव समाधि*) कर� स जिसKो (दव-दनिवयो) का दश(� होता ह।

णिशर म बरहमरनधर �ामक एक णिछदर होता ह। उसमपरकाश वाली जो जयोधित ह, उसम सयम कर� स जिसKपरषो अथा(त सकषम शरीर*ारी दव-दनिवयो क दश(� होतह। इ�का दश(� सामानय पराणिणयो को �ही होता , निकनतधया� दवारा इ�का सा+ातकार भी हो जाता ह तथा

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समभाषण भी।

दरषटवय- म*ा(-जयोधित का समबन* भकटी अथा(तआजञा चकर स ह। बरहमरनधर म म� तथा पराण को नतिसथरकर� क बाद जब आजञा चकर म धया� निकया जाता ह ,तब म*ा( जयोधित क सतव गण क परकाश म सकषम जगतका अ�भव हो� लगता ह तथा सकषम शरीर*ारी इषटो(बरहमा, निवषण, णिशव, राम, ह�मा�, लकषमी, सरसवतीआनिद) का दश(� हो� लगता ह।

५. हठयोनिगयो का शनय धया�

�धित, *ौती, वनतिसत, �ौली, तराटक, तथाकपालभाधित दवारा समपण( शरीर का शो*� निकया जाताह। इसक पशचात खचरी आनिद मदराओ, पराणायामो, तथाबन*ो दवारा चकरो को जागरत कर� की परनिकरया अप�ायी

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

जाती ह। इस माग( म धया�-समाधि* का अनतिनतम परिरणामनि�राकार-शनय की उपलनतिब* होती ह। �ाथ पनथ कअ�याधिययो का यह निपरय माग( रहा ह।

६. निवहङगम (सरधित-शबद) योग

निवहङगम का अथ( प+ी होता ह। जिजस परकार कोईप+ी निकसी व+ पर लग हए फल को परापत कर� क लिलयपथवी का *रातल छोडकर उडता ह और फल तक पहचजाता ह, उसी परकार इस धया� पKधित म परकधित कसमपण( बन*�ो को छोडकर सी* बरहम का सा+ातकारहोता ह। आतमा रपी प+ी (हस) महाकारण तथाकवलय सवरप का भी अधितकरमण करक अखणड बरहमरपी फल को परापत कर लता ह। मलतः यह पKधितवनिदक ह और सनिषट क परारनतिमभक काल स �ारायणअथवा आनिद महा� योनिगयो दवारा अब तक चली आ रही

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

ह। कलिलयग म इस कबीर जी � परचलिलत निकया ह। रा*ासवामी, सनत मत आनिद पनथो म इसी निवहङगम योग काही आणिशक या पण( रप स अ�सरण निकया जाता ह।

महरविष पतञजलिल क राजयोग की अनतिनतम उपलनतिब*कवलय ह। इसस एक कदम आग निवहङगम योग कीउपलनतिब* ह , जिजसम जीव कवलय पद का अधितकरमणकरक हस अवसथा को परापत करता ह और परम गहा(एकादश दवार) म बरहम का सा+ातकार करता ह।

स+प म ५ भनिमकाओ म इस योग पKधित का वण(�इस परकार ह-

१. परथम भनिमका म �ाजिसका पर अ*खली आखोदवारा दखा जाता ह। इस समबन* म गीता ६/१३ मकहा गया ह-

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सपरकषय �ाजिसकागर निदशशच �ावलोकय�।

यह परनिकया निवपशय�ा क परथम चरण क बहतअधि*क नि�कट ह।

२. निदवतीय भनिमका म दो�ो भौहो क बीच (भकटीम) तथा ऊपर (नितरकटी म) सयम कर� स करमशःनि�रञज� एव ॐ शबद की अ�भधित होती ह एव निदवयपरकाश भी निदखायी पडता ह। इसी भनिमका म १० परकारक अ�हद (ताल, मदग, डमफ, मरली, वीणा, झाझ,किकनिकण, शह�ाई, सिसह, एव बादल की गज(�ा) क सवरस�ायी पडत ह।

३. तीसरी भनिमका म भरमर गफा म सयम कर� परसोऽह शबद एव परकाश का अ�भव होता ह। इसक आगशनि` शबद तथा दशम दवार म सयम कर� पर रर शबद

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एव जिझलनिमली जयोधित का सा+ातकार होता ह। यहा तकपरकधित मणडल की सा*�ा ह।

४. चौथी भनिमका म सषम�ा परवानिहत होती ह ,जिजसस योगी नितरकालदशµ हो जाता ह। इस नतिसथधित मदशम दवार पर आवरण डाली हई सषम�ा का मख हटजाता ह, जिजसस अनदर निदवय परकाश आता ह तथा सभीचकरो का भद� सवतः ही हो जाता ह। इस अवसथा मजीव कवलय पद को परापत कर लता ह।

योग दश(�, निवपशय�ा, एव वीतराग योग दवारा यहातक की उपलनतिब* होती ह, जिजसम जीव अप� आतम-सवरप म नतिसथत हो जाता ह। निकनत उसक साम�महाशनय का पदा( पडा रहता ह , जिजस उलघकर कोईनिवरला ही अखणड *ाम (बहद मणडल) म परवश करताह तथा बरहम का दश(� करता ह।

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५. पाचवी तथा अनतिनतम भनिमका म जीव कवलय काभी अधितकरमण करक अप�ी शK "हस" अवसथा मनिवदयमा� होता ह। वह बरहम क जोश सवरप (सदगर,जिजबरील) क सहार परम रपी मकरतार की डोरीपकडकर महाशनय को पार कर जाता ह। इस नतिसथधित मजीव अप�ी सात सरधित (धिचलितत शनि`) क पद~ को पारकर आठवी नि�रधित (हस रप) क रप म दशम दवार स दोअगल ऊपर जब धया� करक एकादश दवार स (परमगहा, अमबदीप) म पहचता ह, तो उस करोडो सय� कसमा� चमकत हए बहद मणडल (बरहमपरी) म निवराजमा�बरहम का दश(� होता ह। वसततः यही निवहङगम या परमयोग ह। कबीर जी � इस समपण( योग पKधित को मातरएक दोह म कह निदया ह-

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

त� णिथर म� णिथर पव� णिथर, सरधित नि�रधित णिथर होय।

कह कबीर ता पलक की, कलप � पाव कोय।।

परशन- यह कस मा�ा जा सकता ह निक कवलय पदको परापत कर�ा बरहम की परानिपत कर�ा �ही ह?

उततर- यदयनिप कवलय की अवसथा म अप�आतम-सवरप म नतिसथधित अवशय हो जाती ह, निकनत यहबरहम सा+ातकार �ही ह। इस अवसथा म राग - दवष,काम-करो*, लोभ-मोह आनिद निवकारो स पण(तया मनि`तो हो गयी होती ह, निकनत अनतिसमता का कछ भाव ब�ारहता ह, जो परममयी शK हस अवसथा स पव( कीअवसथा ह।

यनिद यह मा�ा जाय निक योग दश(� १/१७ म कहागया ह निक "निवतक( निवचारा�नदनतिसमता�गमात सपरजञातः"

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

अथा(त सपरजञात समाधि* म ही अनतिसमता का अनतिसततवहोता ह, असमपरजञात समाधि* म �ही , तो इसकासमा*ा� इस परकार ह-

आ�नद अ�गत समाधि* म अहकार का सा+ातकारहोता ह। इस अवसथा म "अहमनतिसम" वलितत दवारा अहकारक आ�नद का अ�भव होता ह। जो योगी आतम-सा+ातकार स वधिचत रह जात ह, व दह-तयाग क पशचातनिवदह (शरीर रनिहत) अवसथा म कवलय पद जसी नतिसथधितको परापत कर इसी आ�नद को भोगत रहत ह। यहनिवदहावसथा निवचार अ�गत भनिम म बतलाय हए सकषमलोको स अधि*क सकषम आ�नद और अवधि* वाली ह ,निकनत यह भी बन*� रप ही ह, वासतनिवक मनि` �ही।

अनतिसमता�गत समपरजञात समाधि* म अनतिसमता कासा+ातकार होता ह। इस अवसथा को परापत योनिगयो को

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

परकधितलय की सजञा परापत ह। यह अधित ऊची भनिमकाअसीम आ�नद वाली और कवलय पद क तलय ह, निकनतबन* रप ह, कयोनिक वासतनिवक कवलय �ही ह।

परवरागय दवारा निववक खयाधित रप सानतितवक वलितत कनि�रK हो जा� पर दरषटा अप� शK आतम -सवरप मनतिसथत हो जाता ह। यही असमपरजञात अथवा नि�बµजसमाधि* ह। इस समय धिचतत म कोई भी वलितत �ही रहतीह, निकनत वलिततयो को हटा� वाला नि�रो* का परिरणामरहता ह।

जब नि�रो* क ससकार वयतथा� (धि+पत, मढ, तथानिवधि+पत- इ� ती�ो भनिमयो) क सभी ससकारो को �षटकर दत ह, तब व सवय भी वस ही �षट हो जात ह, जससीसा सवण( क मल को जलाकर सवय भी जल जाता ह।तब शरीर छोड� पर धिचतत को ब�ा� वाल गण अप�-

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

अप� कारण म ली� हो जात ह और दरषटा अप� शKसवरप म नतिसथत हो जाता ह। इस कवलय को हीवासतनिवक मनि` कहत ह।

+र बरहमाणड क जीवो की अनतिनतम आधयानतितमकउपलनतिब* यही ह, कयोनिक जिजस �ारायण की चत�ा कापरधितभास उ�क अनदर ह, व सवय भी इस कवलयअवसथा म ही ह। इस अवसथा म यदयनिप मायावी परपञचोस पर की अवसथा तो हो जाती ह, निकनत अ�नतदनिषटमहाशनय (मोह सागर, नि�राकार) का भद� करकअखणड *ाम (बहद मणडल) म �ही पहच पाती।

असमपरजञात समाधि* को परापत हो� वाल सवामीनिववका�नद � इस अवसथा का वण(� एक कनिवता क रपम इस परकार निकया ह-

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

सय( भी �ही ह, जयोधित सनदर शशाक �ही।

छाया सा वयोम म, यह निवशव �जर आता ह।।

बनद वह *ारा हई, शनय म निमला ह शनय।

अवाङग म�सगोचरम वह जा� जो जञाता ह।।

इस कनिवता म महाशनय क साथ-साथ अवयाकतक सवानतिप�क सवरप ॐ की जयोधितम(यी शोभा का वण(�निकया गया ह।

सवप�दरषटा सवप� म सवय को जिजस रप म दखताह, वह पण( जसा ही होता ह। अ+र बरहम का म�अवयाकत (ॐ) ह। वह सवप� म मोह सागर (मलपरकधित, महाशनय) म परधितनिबनतिमबत होकर भी ॐ कसवरप म सवय को पाता ह, निकनत इस अवसथा म वहनि�राकार स पर की बात �ही जा�ता। शरीमखवाणी म

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

इस इस रप म परसतत निकया गया ह-

निफर जहा थ �ाराय�, �ाम *राया नि�गम।

सनय पार �ा ल सक, हटक कहया अगम।।

स�* ५/४०

जब वदानत क गरनथो म वरथिणत ईशवर(आनिद�ारायण,शबल बरहम, निहरणयगभ() इस नि�राकार क पर �ही जासकत, तो उ�क परधितभास सवरप जीव कहा स जासकत ह। यही कारण ह निक भगवा� बK, महावीर सवामी� जिजस महाशनय को ही सव�परिर मा� लिलया , वहीरामकषण परमहस, निववका�नद आनिद � ईशवर (�ारायण)क ही सवरप को दखकर बरहम-सा+ातकार मा� लिलयाऔर कवलय पद को वासतनिवक मनि` मा� ली। इसअवसथा म उनहो� शबल बरहम (ईशवर, आनिद�ारायण) को

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

जयोधितम(यी रप दखा, तो परकधित एव सामानय जगत काभी रप दखा।

यदयनिप इस कवलय पद म अप� आतम-सवरप मनतिसथत हो जा� स वयनिषटगत परकधित स पार तो हो जात ह,निकनत समनिषट परकधित स �ही। इसलिलय बरहम क वासतनिवकसवरप का सा+ातकार �ही हो पाता।

इस अवसथा को परापत कर� क लिलय वद म सपषटरप स नि�द~श निदया गया ह-

सपण�ऽजिस मरतमा� निदव गचछ सवः पत।

यजव~द १२/४

ह जीव! त अप� शK सवरप म सनदर पखो सउड� वाल हस की तरह ह। त धया� दवारा दयलोक(महाशनय) स भी पर बरहम क अखणड बहद (आ�नदमयी

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

*ाम) को परापत कर।

दशम दवार म धया� कर� पर जहा कवलय पद कीपरानिपत होती ह, वही एकादश दवार (दसव दवार या जिसर स२ अगल ऊपर) धया� कर� पर एक शवत चमकती हईभनिमका निदखायी दती ह, जिजस एकादश दवार या परमगहाकहत ह। इसी म धया�-समाधि* कर� पर अखणड बरहमक दश(� होत ह। वद, उपनि�षद, दश(� आनिद म सव(तरपरमगहा म ही बरहम क सा+ातकार का वण(� ह , जबनिकमहरविष पतञजलिल क योग दश(� म कही भी परमगहा शबदका परयोग �ही हआ ह। इसलिलय योग दश(� की उपलनतिब*कवलय पद को परापत करा�ा ह , जिजस परापत करक हसअवसथा म आकर परमगहा म बरहम का सा+ातकार कर�ाहोता ह।

�ोट- अ+र, अ+रातीत, एव योग समबन*ी निवशष

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

जा�कारी क लिलय कपया "सतयाञजलिल" गरनथ काअवलोक� कर।

व�सतत पशयतपरम गहा यद यतर निवशव भवतयकरणम।

अथव( २/१/१

अप� शK सवरप म नतिसथत योगी उस बरहम कोपरमगहा म दखता ह, जहा क अखणड सवरप म सबकछ एकरप हो रहा ह।

गहा परनिवषवातम�ौ निह तत दश(�ात।

वदानत दश(� १/२/११

अथा(त परमगहा म ही आतमा -परमातमा कासा+ातकार होता ह।

पशयतस इह एव नि�निहत गहायाम।

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मणडक उपनि�षद ३/१/७

दख� वालो क लिलय वह बरहम परमगहा म निवदयमा�ह।

दरषटवय- निवपशय�ा, शनय समाधि*, तथा वीतराग योग मसकलप-निवकलप का अभाव होता ह, निकनत इ�म सकषमसा अनतर होता ह। निवपशय�ा पKधित म जहा सवद�ाओक परधित कटसथ भाव रखत हए सवय को सकलप -निवकलप स रनिहत निकया जाता ह, वही हठयोग की शनयसमाधि* म निकसी भी परकार का सकलप -निवकलप �हीहोता। इस अवसथा म निकसी भी परकार क जप, *ारणा,धया� आनिद की परनिकया �ही होती। परिरणाम सवरप ,शरीर, इनतिनदरयो, तथा अनतःकरण म शनयता एव जडताआ जाती ह, पराणो की गधित परायः रक सी जाती ह ,का�ो स कोई भी शबद स�ायी �ही पडता।

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

जब समाधि* स उठ� का अवसर होता ह, तो उससमय बरहमरनधर म चत�ा (सफरतित) सी परारमभ होती ह।उस समय आख भी बहत कनिठ�ता स खलती ह।आस� खल� म भी लमबा समय लग जाता ह, कयोनिकसमपण( शरीर अकडा होता ह।

शनय समाधि* की अवसथा म � तो निकसी परकार कआ�नद का अ�भव होता ह और � कोई जञा�-निवजञा�ही परापत होता ह। यह गह� नि�दरा नि�रविवकलप समाधि* तथाअसमपरजञात समाधि* स णिभनन की अवसथा ह। इसमआतम-सा+ातकार या बरहम-सा+ातकार �ही होता।

निवपशय�ा पKधित क सा*क इस क¥रवादीमा�जिसकता स गरसत ह निक सब कछ शनय ही शनय हऔर +णिणक ह। � तो आतमा ह और � परमातमा ह, तोउनह आतम-सा+ातकार हो पा�ा समभव �ही ह। यदयनिप

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

भगवा� बK को आतम-सा+ातकार हआ था और उनहो�कवलय की अवसथा को परापत भी निकया, निकनत कालानतरम उ�का जञा� शषक अ�ातमवाद का णिशकार हो गया।

ज� दश(� क अ�यायी यनिद आतम-सा+ातकार कीभाव�ा स वीतराग योग की सा*�ा करत ह तो आतम-सा+ातकार अवशय होगा, निकनत इसक लिलय यहआवशयक ह निक आतम-सा+ातकार को धयय ब�ायाजाय तथा शनयवाद की जड समाधि* स पर हो� का माग(अप�ाया जाय।

महरविष पतञजलिल � योग दश(� म कही भी शनयसमाधि* का वण(� �ही निकया ह , कयोनिक इसक दवाराआतमा एव परमातमा का सा+ातकार �ही हो सकता। योगदश(� क जिजस सतर स परायः शनय समाधि* का भरानतिनतवशभाव लिलया जाता ह, वह ह-

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तदवाथ(मातरनि�भा(स सवरपशनयनिमव समाधि*ः।

योग दश(� ३/३

अथा(त वह धया� ही समाधि* कहलाता ह, जिजसमकवल धयय अथ( मातर स भासता ह (दनिषटगोचर होता ह)और उसका (धया� का) सवरप शनय जसा हो जाता ह।दसर शबदो म , धया� जब अथ( मातर नि�भा(स होता हअथा(त धया� जब इत�ा परगाढ होता ह निक उसम कवलधयय निवषय की ही खयाधित होती रहती ह , तब उससमाधि* कहत ह।

इस परकार यह सपषट ह निक योग दश(�कार � हठयोगकी जडता वाली शनय-समाधि* का कोई वण(� �हीनिकया ह। निवपशय�ा, पातञजल योग, एव वीतराग योगदवारा कवलय की परानिपत कर ल� क पशचात भी जब तक

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समनिषट अहम एव अनतिसमता क पद~ को भदकर अखणड की*ारणा-धया� की परनिकरया �ही अप�ायी जायगी , तबतक बरहम-सा+ातकार हो�ा समभव �ही ह।

उपरो` निववच�ा स यह भी नि�षकष( नि�कलता ह निकजब तक सा*�ा म बरहम को धयय � ब�ाया जाय तथाउसम परम, शरKा, एव समप(ण का रस � डाला जाय, तबतक निकसी भी पKधित स बरहम का सा+ातकार �ही होसकता। परमशनय शषक हदय अनतिसमता क पद~ को �हीहटा सकता। वह जिसधिKयो का सवामी ब�कर सममा� तोपा सकता ह, निकनत बरहम-सा+ातकार स वधिचत रह�ापडगा।

७. सफी फकीरो की धया� पKधित

सफी फकीरो की भनि` शरिरयत (कम(काणड) स

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

अलग तरीकत (उपास�ा) एव हकीकत (जञा�) कजिसKानत पर आ*ारिरत होती ह। इस परनिकरया म व इशक-ए-हकीकी (सj परम) की राह को अप�ात ह। मजाजी(झठ सासारिरक परम) को छोडकर अललाह क इशक रानितरक ९ बज स लकर परातःकाल क ३ बज तक इ�कीबनदगी का निवणिशषट समय होता ह। इस समबन* मकरआ� क सर बकर एव सर मजनतिममल क कथ� निवशषमहतव रखत ह- "जो मरी ओर एक हाथ बढता ह, तो मउसकी ओर १० हाथ बढता ह। यनिद कोई मरी ओरचलता ह, तो म उसकी ओर दौडता ह। ए बनद! म कहीइ*र-उ*र �ही, निदल म रहता ह।"

ए चादर ओढ हए महममद! म तमस निवशष काय(ल� जा रहा ह। इसलिलय, आ*ी रात स कछ पहल औरआ*ी रात क कछ बाद तक (९-३ बज तक) मरी

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इबादत निकया कर।

सनिफयो की बनदगी (भनि`) तौहीद (एकशवरवाद) कजिसKानत पर आ*ारिरत ह। व सवय को आणिशक (परमी)एव अललाह को माशक (परमासपद) मा�त ह। इ�कीबनदगी म तपशचया( क साथ निवरह का गहरा रस होता ह।

भारत म हो� वाल अधि*कतर सनिफयो � भारतीययोनिगयो की योग पKधितयो का काफी कछ अप�ीउपास�ा म निमशरण कर लिलया ह। व भी सरधित शबद योगक अ�हद सोऽहम आनिद की *ारणाओ को सवीकारकरत ह तथा अहम बरहमानतिसम को "अ�लहक" क कथ�क रप म दखत ह।

तारतम जञा� (इलम-ए-लदननी) क अभाव म सफीफकीरो को यदयनिप अश( -ए-अजीम (परम*ाम) का

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अ�भव �ही हो सका ह, निफर भी इ�की निवरह भाव�ापरशस�ीय ह। एक सफी फकीर शख बयाजीद मसता�ीहए ह, जिजनहो� महाशनय म नतिसथत जयोधित सवरप(परणव, आनिद�ारायण) का सा+ातकार निकया ह।

शख नि�जामदी� औलिलया, साई बललशाह, बाबाफरीद आनिद अ�क परजिसK सफी फकीर हो चक ह ,जिजनहो� अप�ी रहा�ी बनदगी स समाज को एक निदशादी ह।

८. नि�जा�नद योग

वनिदक एव सनत योग पKधित (निवहङगम योग) कअभयास स जिजस परमगहा म बरहम-सा+ातकार होता ह,उसका फल अ+र बरहम की चतषपाद निवभधित (बहदमणडल) की परानिपत ह। अथव(वद २/१/२ म सपषट रप स

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

कहा गया ह निक परम गहा म परनिवषट हो� पर नितरपाद अमत(सबलिलक, कवल, एव सतसवरप) की परानिपत होती ह।

तरीणिण पदानि� नि�निहता गहासथ यसतानि� वद स निपतनतिषपतासत।

निकनत यज(वद ३१/४ का कथ� ह निक वह परबरहमतो नितरपाद अमत क भी पर ह-

नितरपादधव( उदत परषः।

मणडकोपनि�षद १/२/४ म भी कहा गया ह-

शभरो निह अ+रात परतः परः।

अथा(त वह पण( बरहम अ+रातीत अ+र बरहम स भी पर ह।

वनिदक योग पKधित अब तक निवशव की सव�परिर योगपKधित रही ह। इसका आशरय लकर भगवा� निवषण, णिशव,स�कानिद, कबीर, शकदव आनिद � नि�राकार मणडल कोपारकर अ+र बरहम क बहद मणडल का सा+ातकार निकया

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ह, निकनत अ+रातीत परबरहम का दश(� कर� क लिलय तोनिकसी अनय परनिकरया को ही अप�ा�ा पडगा।

यह हमारा परम सौभागय ह निक सधिjदा�नद परबरहमकी कपा स तारतम जञा� क परकाश म अ�नय परम ल+णाभनि` का वह अमतमय माग( परापत हआ ह , जिजसक दवाराअ�ायास ही परम*ाम म निवराजमा� अ+रातीत परबरहमका सा+ातकार हो सकता ह।

इस सवरथिणम पथ का �ाम ह नि�जा�नद योग।बोलचाल की भाषा म इस धिचतव� या धिचतवनि� भी कहतह। इस धया� पKधित की वयाखया इस गरनथ क चौथ एवपाचव अधयाय म की जायगी।

।। इसक साथ ही निदवतीय तरग पण( हई ।।

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ततीय तरग

निवभधितयो की नि�रथ(कता

निकसी समय सवामी रामतीथ( जी ऋनिषकश म �ावदवारा गगा जी को पार कर रह थ। निक�ार पर उतरत हीएक महातमा जी स उ�की भट हो गयी। व आशचय(-भरसवर म कह� लग-

"रामतीथ(! म� तो आपकी बहत खयाधित स�ी थी।लनिक� आपको �ाव स �दी पार करत हए दखकर मझबहत आशचय( हो रहा ह।"

"निकनत इसम आशचय( की कया बात ह?"

"आप इत� परजिसK महातमा होकर भी �ाव स �दीपार कर रह ह। म तो खडाऊ पह�कर �दी क जल कऊपर वस ही चलता ह, जस सखी जमी� पर।"

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

"इस जिसधिK को परापत कर� म आपको निकत� वष(सा*�ा कर�ी पडी ह?"

"पर बारह वष(।"

"तब तो आपकी १२ वषµय सा*�ा का मलय मातरदो पस ह। म� दो पस दकर आसा�ी स �दी को पारकर लिलया।"

महातमा जी का जिसर लजजा स झक गया। सवामी जी� उनह समझाया-

"आप� इत�ा परिरशरम यनिद परमातमा को परापत कर�क लिलय निकया होता, तो समभवतः भवसागर स पार होजात। इस दो कौडी की जिसधिK का कया महतव ह।"

वसततः य जिसधिKया कया ह?

निकसी एक ही निवषय म *ारणा, धया�, एव समाधि*

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

की परनिकरया सयम कहलाती ह।

तरयमकतर सयमः। योग दश(� ३/४

यह धया� रख� योगय तथय ह निक जिजस वसत कीसकषमता जिजत�ी अधि*क बढती ह, उसकी शनि` भीउत�ी अधि*क होती जाती ह।

सयम म धिचतत का ही सारा खल होता ह। धिचततसबस सकषम हो� क कारण यथोधिचत परिरणाम उतपननकरता ह। सभी चमतकार या जिसधिKया धिचतत क सयम काही परिरणाम ह। चलती हई टर � को रोक द�ा या एकसाथ कई निटकट परकट कर द�ा, सब कछ धिचतत कसयम एव सकलप का ही परिरणाम ह।

जनमौषधि*मनतरतपः समाधि*जा जिसKयः।

योग दश(� ४/१

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

अथा(त जनम स निदवय औषधि*यो क सव�, मनतर,तप, तथा समाधि* स जिसधिKयो का परकट� होता ह।

स+प म इ�का निववरण इस परकार ह-

१. जनम स- पव(जनमो का योगबल जब जनम कसाथ ही परकट हो जाता ह, तो उस जनम क साथ हीपरकट हो� वाली जिसधिK कहा जाता ह। महरविष कनिपल ,शकदव, दततातरय, तथा आनिद शकराचाय( म जनम स हीजिसधिKया परकट थी।

२. औषधि* स- पार आनिद रसाय�ो क योग सशरीर म निवल+ण परिरणाम परकट हो जात ह। नितरफला,सोमरस, चयव�पराश आनिद औषधि*यो क सव� स भीकायाकलप की समभाव�ा होती ह।

३. मनतर स- मनतरो क एकागरतापव(क जप स भी

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

जिसधिKया परकट होती ह। निबचछ आनिद का निवष-हरणइसका परतय+ परमाण ह।

४. तप स- तप दवारा भी धिचतत की शधिK होती हऔर सकलप दवारा चमतकारिरक काय( समपनन होत ह।निवशवानिमतर, जाजलिल, भारदवाज आनिद ऋनिषयो � तप दवाराआशचय(ज�क जिसधिKया परापत की थी।

५. समाधि*- समाधि* दवारा योगी अलौनिकक जिसधिKयोको परापत करता ह। योग दश(� क तीसर पाद म समाधि* सउतपनन हो� वाली जिसधिKयो का वण(� निकया गया ह ,जिज�का धिचतरण आग निकया जा रहा ह-

१. पश-पधि+यो की बोली जा��ा - योगी कोसमाधि* अभयास स परजञा की परानिपत होती ह। इसलिलय वहशबद, अथ(, तथा जञा� क निवभाग म सयम कर� स इस

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

शबद का अथ( और शबद-अथ( दो�ो क समबन*ी जञा�को जा� लता ह तथा सभी पराणिणयो की बोली को समझलता ह। �ाथ पनथ क परजिसK आचाय( गर गोरख�ाथ जीक निवषय म परजिसK ह निक व सभी पराणिणयो की भाषा जा�जात थ। इस समबन* म योग दश(� ३/१७ का कथ�ह-

शबदाथ( परतयया�ानिमतरतराधयासातसकरसततपरनिवभागसयमात सव(भतरतजञा�म।

अथा(त शबद, अथ(, और जञा� क परसपर कअधयास स अभद भासता (अ�भव होता) ह। उ�कनिवभाग म सयम कर� स सभी पराणिणयो क शबदो का जञा�हो जाता ह।

२. पव(जनम का जञा�- ससकार दो परकार क होत

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ह। एक तो समधित म बीज रप स रहत ह और दसरवास�ा रप म। य सभी ससकार इस जनम क तथानिपछल जनम क निकय हए कम� स ब�त ह , औरगरामोफो� क पलट क रिरकाड( क समा� धिचतत म धिचनितरतरहत ह। इ�म सयम कर� स योगी को उ�कासा+ातकार हो जाता ह। जिजस दश, काल, और नि�निमततस य ससकार ब� ह, योगी को उ�का जञा� हो जाता ह।इस ही पव( जनम का जञा� हो�ा कहत ह।

परजिसK ह निक भगवा� बK को बKतव परापत हो� परअप� ५०० स अधि*क जनमो का जञा� परापत हो गया तथायोनिगराज जगीषवय को दस महाकलपो म वयतीत हएअप� जनमो की समपण( परमपरा का बो* था।

इस समबन* म योग दश(� ३/१८ का कथ� ह-

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ससकार सा+ातकरणात पव(जाधितजञा�म।

अथा(त ससकारो क सा+ात कर� स पव( जनम काजञा� होता ह।

३. दसर क धिचतत (हदय) की बातो को जा��ा-जब योगी निकसी क चहर तथा �तर आनिद की आकधितदखकर उसक धिचतत की वलितत म सयम करता ह , तोउसको उस धिचतत का सा+ातकार हो जाता ह। इस परकारउस योगी को यह जञात हो जाता ह निक उस वयनि` काधिचतत राग-दवषानिद ससार की वास�ाओ म डबा हआ हअथवा वरागय स य ह।

योग दश(� ३/१९ म कहा गया ह निक "परतययसयपरधिचतत जञा�म " अथा(त दसर क धिचतत की वलितत कासा+ात कर� स दवषानिद क धिचतत का जञा� हो जाता ह।

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सयम दवारा उसी निवषय का सा+ात होता ह, जो उसकानिवषय होता ह। निकनत सयम का निवषय वही होता ह,जिजसको निकसी � निकसी परकार स पहल जा� लिलया ह।बाहरी धिचहनो अथा(त �तर और चहर आनिद स कवल राग-दवषानिद जा� जा सकत ह , � निक राग-दवष क निवषय।इसलिलय व सालमब� धिचतत क सयम क निवषय �ही ब�सकत। यनिद राग-दवषानिद आभयनतर लिलगो (धिचहनो) दवारासयम निकया जाय, तो उ�क निवषय का भी जञा� होसकता ह।

४. अनत*ा(� (अदशय) हो जा�ा- च+ म रप कोगरहण कर� की शनि` ह तथा रप म गराहय शनि` ह। इ�दो�ो शनि`यो क सयोग स ही दख� की परनिकरया होती ह।इ� दो�ो म स निकसी एक की शनि` क रक जा� सदख� का काय( बनद हो जाता ह। जब योगी सयम दवारा

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अप� शरीर क गराहय शनि` को रोक दता ह, तो च+ कीगरहण शनि` होत हए भी दसर लोग उसको �ही दखपात। यही उस योगी का अनत*ा(� हो�ा अथा(त णिछपजा�ा ह।

कायरपसयमात तदगराहयशनि`सतमभ च+ःपरकाशासमपरयोगऽअनत*ा(�म। योग दश(� ३/२१

अथा(त अप� शरीर क रप म सयम कर� स रपकी गराहय शनि` रक जाती ह। इसस दसरो की आखो कपरकाश स योगी क शरीर का सयोग � हो� स उसकाशरीर णिछप जाता ह। इसी परकार शबद, सपश(, रस, औरगन* म सयम कर� पर उ�की गराहय शनि` रक जाती हऔर व वत(मा� रहत हए भी इनतिनदरयो स गरहण �ही निकयजा सकत। इस समबन* म एक सjी घट�ा इस परकारह-

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एक बार शरी नि�गमा�नद सरसवती जी कोटा कजगल स गजर रह थ। शाम का समय था और व भख-पयास स वयाकल भी थ। उस समय उनह निवशराम क लिलयउपय सथा� �ही निमल पा रहा था।

अचा�क एक  ी � उ�का �ाम लकर पकारा।इसक पहल सवामी जी � उस  ी को कभी दखा �हीथा। वह  ी पास आकर बोली- तम बहत अधि*कभख-पयास लग रह हो। यहा स लगभग एक निक.मी.आग एक कनिटया ह। तम उसी म आज रात निवशराम करो।जब सवामी शरी नि�गमा�नद जी आग चल, तो उनह वहकनिटया निदखायी दी। यह कनिटया उसी योनिग�ी की थी,जो माग( म निमली थी। यदयनिप उसकी उमर ६० वष( सअधि*क थी, निफर भी यौव�ावसथा जसी निदवय सनदरतानिदखायी द रही थी।

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कछ ही दर म वह जिसKा (योनिग�ी) आ पहची औरसवामी जी का भोज� आनिद स यथोधिचत सतकार निकया।निवशराम क समय योनिग�ी � सवामी जी स कहा- तमहअब दर-दर भटक� की आवशयकता �ही ह। तम सी*कोलकाता चल जाओ। तमहार गरदव वही परनिवराजमा� निमलग।

यह स�कर सवामी जी को बहत आशचय( हआ निकयह योनिग�ी कस जा�ती ह निक म गर की खोज म भटकरहा ह? सवामी जी यह भी सोच� लग निक मर पास तोफटी कौडी भी �ही, म कोलकाता कस जा सकगा?

इसी बीच वह योनिग�ी बोल पडी- तम पसो कीधिचनता � करो। उसकी वयवसथा हो जायगी।

अगल निद� परातःकाल योनिग�ी � सवामी जी को

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रलव सटश� पहचा निदया तथा सटश� क पास कछ रपयसवामी जी को दकर अदशय हो गई। सवामी जी � रपयनिग� तो पता चला निक निटकट क अधितरिर` भी कछ पसबच रह ह। सवामी जी � योनिग�ी को दख� क लिलयअप�ी दनिषट उठायी, तब तक वो अनत*ा(� हो चकी थी।

सवामी नि�गमा�नद जी दौडकर उस कटी क पासगय, निकनत � तो उनह वह कटी निदखायी पडी और �वह जिसKा। व नि�राश होकर लौट आय। पर माग( म वनिवचार करत रह निक आपलिततकाल म सहायता कर� वालीवह योनिग�ी कौ� थी? निकनत सवामी जी अप�ी जिजजञासाका समा*ा� �ही कर सक।

नि�ःसनदह यह सब योनिग�ी की अनत*ा(� जिसधिK थी,जिजसस सवामी जी कछ भी �ही दख सक।

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५. बल परापत कर�ा- योगी, जिजसक भी बल मसयम करता ह, उसका बल उस परापत हो जाता ह। जसयनिद वह हाथी या सिसह क बल म सयम करता ह , तोउस हाथी या सिसह का बल परापत हो जाता ह। यनिद वहपव� क बल म सयम करता ह, तो उस वाय क समा�शनि` परापत हो जाती ह। यनिद वह मतरी , करणा, तथामनिदता म सयम करता ह, तो करमशः वह सभी पराणिणयोका सखकारी निमतर ब� जाता ह, उसम सबक दःखो कोदर कर� की शनि` आ जाती ह, तथा वह पण( रप सनि�षप+ ब� जाता ह।

इस कथ� स यही नि�षकष( नि�कलता ह निक �र -�ारायण, राम, ह�मा�, अगद, परशराम आनिद महापरषोम जो शनि` निदखायी दती ह, वह शरीर की अप+ा योग-बल पर अधि*क आणिशरत थी।

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इस कथ� की पनिषट म य कथ� दरषटवय ह-

मतरयानिदष बलानि�। योगदश(� ३/२३

बलष हनतिसत बलादीनि�। योगदश(� ३/२४

अथा(त मतरी आनिद म सयम कर� पर मतरी आनिदबल परापत होत ह। इसी परकार हाथी आनिद क बलो मसयम कर� पर हाथी आनिद क बल परापत होत ह।

६. अदशय वसतओ को दख�ा- हदय कमल सहोती हई जो सषम�ा �ाडी दशम दवार तक गयी ह, उसबरहम�ाडी भी कहत ह। हदय म ही धिचतत का नि�वास ह।जब योगी उसम बधिK निवषयक सयम करता ह , तोसानतिततवक जयोधित सवरप भासता हआ वह धिचतत कभीसय(, कभी चनदर, कभी �+तर, और कभी मणिण की परभाक समा� दनिषटगोचर होता ह। प�ः उस बधिK सततव का

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

सा+ातकार हो जाता ह। यह जयोधित सवरप बधिK सततवका सा+ातकार "जयोधितषमती परवलितत पद" कहलाता ह।सततव गण पर*ा� हो� स यह वलितत रजोगण एव तमोगण सरनिहत ह, इसलिलय यह "निवशोका" कहलाती ह।

परवततयालोकनयासात सकषमवयवनिहतनिवपरकषटजञा�म।

योग दश(� ३/२५

जब म� की शोक रनिहत जयोधितषमती परवलितत कपरकाश को योगी सयम दवारा निकसी सकषम (इनतिनदरयातीत)जस अदशय परमाण, ढक हए जस भनिम क अनदर दबीहई खा�ो, दीवार की ओट म णिछपी हई वसतओ, शरीरक अनदर क भागो, तथा अधित दर की वसतओ परडालता ह, तब उ�का परतय+ जञा� हो जाता ह।

७. लोक-लोकानतरो का जञा� - सषम�ा �ाडी

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(सय( दवार ) म सयम कर� पर लोक-लोकानतरो काजञा� होता ह।

भव�जञा� सय~ सयमात। योग दश(� ३/२६

धया� की सकषम अवसथा म सषम�ा म सयम कर�पर सवः, महः, ज�ः, सतय लोक आनिद का भी जञा� होजाता ह। कणडलिल�ी क जागरत हो� पर सषम�ा �ाडी मजब सभी पराण परनिवषट हो जात ह , तब इस परकार कअ�भव होत ह। उस समय सयम की भी आवशय`ा �हीपडती, बनतिलक जिज*र वलितत जाती ह अथवा जिजसका पहलस ही सकलप कर लिलया जाता ह, उसी का अ�भव हो�लगता ह।

८. तारामणडल का जञा�- चनदरमा म सयम दवारायोगी को तारामणडल का निवधि*वत जञा� हो जाता ह।

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चनदरतारावयहजञा�म। योग दश(� ३/२७

९. समपण( शरीर का बो*- �ाणिभ चकर म सयमकर� पर समपण( शरीर की रच�ा जञात हो जाती ह।

�ाणिभ चकर कायवयह जञा�म। योग दश(� ३/२९

१०. भख-पयास को जीत�ा- "योगी कीआतमकथा" �ामक गरनथ म लानिहडी महाशय क परणिशषयशरी योगा�नद जी � जिजस योनिग�ी का वण(� निकया ह, वहलगभग ५० स अधि*क वष� तक निकसी भी परकार कभोज� (जल, द*, अनन, फल आनिद) स पण(तया अलगरही, निकनत उ�क सवासथय म निकसी परकार की निगरावट�ही दखी गयी। निगरिरबाला �ामक यह योनिग�ी बगालपरानत म बाकरा जिजल क निबऊर गाव की नि�वाजिस�ी थी।निगरिरबाला जी का निववाह मातर ९ वष( की उमर म हो गया

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था और वह १२ वष( की अवसथा म अप�ी ससराल�वाबगज पहच गयी। अतयधि*क खा� की बरी आदत ककारण अप�ी सास दवारा अपमानि�त हो� पर उनहो� परणकर लिलया निक व जीव� म कभी भी भोज� (अनन, जल,द*) गरहण �ही करगी।

एक निद� परातः जब व गगा क निक�ार गयी हई थी,उ�क जिसK गरदव � दश(� दकर योग की ऐसी निकरयाजिसखा दी, जिजसक कारण उनह ५० वष� क जीव� मकभी भख �ही लगी।

ऐसा कथ� पण(तः सतय ह और योग दश(� ३/३०म कहा गया ह निक "कणठकप +नतितपपासा नि�वधितः"अथा(त जिजहवा क �ीच सत क समा� एक �स ह। उसक�ीच कणठ ह। उस कणठ क �ीच जो गडढा ह, उसकणठकप कहत ह। उस सथा� म पराण आनिद का सपश(

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

हो� स भख-पयास लगती ह। इसलिलय इस कणठकप मसयम दवारा पराण आनिद का सपश( � हो� स योगी कोभख-पयास �ही लगती।

११. नतिसथरता की जिसधिK- कणठ कप क �ीच छातीम कछए क आकार की एक �ाडी होती ह, जिजस कम(�ाडी कहत ह। उसम सयम कर� पर नतिसथरता की परानिपतहोती ह। सप( और गोह म यह जिसधिK जनमजात होती ह।यनिद सप( निकसी निबल म अप� आ* शरीर स घस जाय ,तो उसकी पछ पकडकर निकत� भी बल स कयो � खीचाजाय, वह लिखचता �ही ह, भल ही टट जाय। इसी परकारगोह जब निकसी छत या मडर पर अप� पर जमा लती ह,तो हटती �ही ह। चोर लोग इसी क सहार रससी बा*करछतो पर चढ जात ह। बालिलपतर अगद म भी यही जिसधिKथी, जिजसक कारण रावण क दरबार म कोई भी उ�का

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

पर निहला तक �ही सका था।

इस समबन* म योग दश(� ३/३१ का कथ� ह-"कम(�ाडया सथय(म" अथा(त कम( �ाडी म सयम कर�पर नतिसथरता की जिसधिK होती ह।

१२. सव(जञ हो�ा- सषम�ा परवानिहत हो� पर योगीक अनदर पराधितभ जञा� परकट होता ह, जिजसस वह सबकछ जा�� लगता ह। "परधितभादवा सव(म" (योग दश(�३/३३) अथा(त पराधितभ जञा� स सब कछ जा�ा जाताह। यह वह जञा� ह, जिजसक परकट हो� पर योगी निब�ासयम क ही सब कछ वस ही जा� लत ह, जस- सय(की परभा फल� पर सब कछ दखा (जा�ा) जा सकताह।

१३. हदय की बात जा��ा- शरीर म हदय

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

(सथल) का निवशष सथा� ह। उसम धिचतत (अनतःकरण)का सथा� ह। उसम सयम कर� पर योगी अप� धिचतत मपरनिवषट सभी वास�ाओ तथा दसर क धिचतत की सभी बातोको जा� लता ह। "हदय धिचततसनिवत" (योग दश(�३/३४) का कथ� यही भाव दशा(ता ह। सथल हदय वहमास निपणड ह, जिजसम र` का आवागम� होता ह।अनतःकरण (धिचतत, म�, बधिK, अहकार) को भी हदयकहा जाता ह, निकनत वह कारण शरीर मा�ा जाता ह।

१४. निदवय जिसधिKयो की परानिपत - परष जञा� सनि�म�लिललिखत निदवय जिसधिKया उतपनन होती ह-

पराधितभ- म� म सकषम, णिछपी हई, दरसथ, अतीत,और अ�ागत वसतओ को जा�� की योगयता।

शरावण- शरोतरनतिनदरय की निदवय और दर क शबदो को

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

स�� की योगयता।

वद�ा- तवचा इनतिनदरय की निदवय सपश( को जा�� कीयोगयता।

आदश(- �तरनतिनदरय की निदवय रप को दख� कीयोगयता।

आसवाद- रस�नतिनदरय का निदवय रस को जा�� कासामथय(।

वाता(- �ाजिसका दवारा निदवय गन* सघ� कीयोगयता। इस समबन* म योग दश(� ३/३६ का सतर ह-

ततः पराधितभशरावणवद�ादशा(सवादवाता( जायनत।

१५. परकाया परवश- निकसी मर हए शरीर म अप�सकषम शरीर सनिहत परनिवषट होकर उस जीनिवत कर�ा ,परकाया परवश कहलाता ह। योग दश(� ३/३८ म इसका

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

वण(� इस परकार निकया गया ह-

वन*कारणशणिथलयातपरचारसवद�ाj धिचततसयपरशरीरावशः।

अथा(त जब योगी को शरीर स नि�षकरमण औरपरवश� कर� क माग( का पण(तया जञा� हो जाता ह, तबअप� सथल शरीर स धिचतत को (लिलग शरीर) नि�षकरमणकरक उस दसर क मतक या जीनिवत शरीर म डाल दताह, तो उस परकाया परवश कहत ह।

दसर क शरीर म परनिवषट हो� पर धिचतत क पीछ अनयसभी इनतिनदरया भी वस ही चली जाती ह, जस रा�ीमकखी क पीछ अनय मनतिकखया। दसर क शरीर म परवशनिकया हआ योगी अप� शरीर की तरह ही उस शरीर मवयवहार करता ह।

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

इस जिसधिK का उदाहरण आनिद शकराचाय( जी काह, जिजसम उनहो� कामशा  सीख� क लिलय अमरकराजा क शरीर म परवश निकया था, तानिक मणड� निमशर कीपत�ी उभय भारती क कामशा  समबन*ी परशनो का उततरद सक ।

कछ समय तक राजा क शरीर म रहकर शकराचाय(जी � कामशा  सीख लिलया तथा अप� पव( शरीर मवापस आ गय। इस बीच म उ�क णिशषयगण उ�क पव(शरीर की र+ा बहत साव*ा�ी क साथ करत रह।

१६. जल आनिद पर चल�ा- अ�क सा*-सनतोदवारा जल क ऊपर चल� की बात स�ी जाती ह। यहऔर कछ �ही, उदा� वाय पर निवजय का फल ह। योगदश(� ३/३९ म कहा गया ह-

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

उदा�जयाजजलपङकणटकानिदषवसङग उतकरानतिनतशच।

अथा(त सयम दवारा उदा� वाय को जीत� स जल,कीचड, काटो आनिद म भी जीव असग रहता ह औरउसकी ऊधव( गधित होती ह।

शरीर की सभी इनतिनदरयो म दनिषटगोचर हो� वालजीव� का आ*ार पराणवाय ह। इसक पाच भद होत ह-

पराण- यह पाचो पराणो म परथम ह। मख तथा�ाजिसका क माधयम स गधित करता ह। इसका काय(�ाजिसका क अगरभाग स लकर हदय तक ह।

अपा�- �ीच की ओर गधित कर� वाला ह। मल,मतर, गभ( आनिद को �ीच की ओर ल जा� म कारणब�ता ह। यह �ाणिभ स लकर पर तक नतिसथत ह।

समा�- यह हदय स लकर �ाणिभ तक नतिसथत ह।

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भोज� क रस को समपण( शरीर म अप�-अप� सथा�पर समा� रप स पहचाता ह।

वया�- समपण( शरीर म वयापक होकर गधित करताह।

उदा�- ऊपर की गधित का कारण ह। इसकी निकरयाकणठ स लकर णिशर तक ह। इसक दवारा शरीर क वयनिषटपराण का समनिषट पराण क साथ समबन* ह। मतय क समयसकषम शरीर इसी उदा� वाय दवारा सथल शरीर स बाहरनि�कलता ह।

जब योगी सयम दवारा उदा� वाय को जीत लता ह,तो उसका शरीर रई की तरह हलका हो जाता ह। जबवह पा�ी पर पर रखता ह, तो उसम डबता �ही ह।कीचड या काटो म भी वह फसता �ही ह , कयोनिक वह

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अप� शरीर को हलका करक ऊपर की ओर उठाय रहताह।

१७. आकाश गम� की जिसधिK- इस जिसधिK को परापतकर� क पशचात प+ी की तरह आकाश म उडा जा सकताह। योगदश(� ३/४२ म कहा गया ह-

कायाकाशयोः समबन*सयमाललघतलसमापततशचाकाशगम�म।

अथा(त शरीर और आकाश क समबन* म सयमकर� स और रई आनिद हलक पदाथ� म समापलितत(तदाकार) हो� स आकाश गम� की जिसधिK परानिपत होतीह।

जहा पर शरीर ह, वही उसको अवकाश द� वालाआकाश भी ह। इस परकार, इ� दो�ो म आ*य-आ*ार

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तथा वयावय-वयापक भाव का समबन* ह। इस समबन*म सयम कर� स या रई क समा� हलकी वसतओ मधया� दवारा तदाकार हो� स योगी का शरीर बहत हलकाहो जाता ह। इसलिलय वह जल पर पाव रखकर भी चलसकता ह। इसक अधितरिर` उसम मकडी क जाल सदशसकषम तारो पर भी चल� का सामथय( आ जाता ह। अनतम, शरीर क अधित सकषम हो जा� स आकाश गम� की भीजिसधिK हो जाती ह।

आनिद शकराचाय( जी क समबन* म यह बात परजिसKह निक धया� दवारा अप�ी माता क दहानत का समाचारपाकर व आकाश माग( स अधित शीघर ही पहच गय थ ,कयोनिक उनहो� सनयास स पव( अप�ी मा को वच� निदयाथा निक उ�का अनतिनतम ससकार व सवय करग।

महाभारत क शानतिनत पव( म शकदव जी क भी

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आकाश गम� की बात वरथिणत ह-

शकसत मारतादधरवगडित कतवानतरिर+गाम।

दश(धियतवा परभाव सव बरहमभतोऽभवततदा।।

शकदव जी वाय क वग स आकाश म निवचरण कर�लग और ऐसा करक उनहो� अप�ा योगबल परकटनिकया। इसक पशचात व बरहमभाव को परापत हो गय।

एक बार राजसथा� परानत क भरतपर जिजल म आय(समाज का *ारविमक समारोह चल रहा था। उस काय(करमम एक निवदवा� � योग दश(� क निवभधितपाद को निमथया कहनिदया। परिरणाम सवरप, आय(समाज क निवदवा�ो म हीआपस म शा ाथ( परारमभ हो गया। नि�दा�, जब तक� सनि�ण(य �ही हो सका, तब निवभधितपाद क निवरो*ी निवदवा�� यह घोनिषत कर निदया निक यनिद आप लोग निवभधितपाद

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को सतय जिसK �ही कर पायग , तो म कल आग कहवाल कर दगा।

यह स�कर निवदवत मणडल म सननाटा छा गया ,निकनत एक निवदवा� � निवभधितपाद को सतय जिसK कर� काउततरदाधियतव लिलया। परातःकाल उस निवरो*ी निवदवा� कोलकर वह भरतपर क पास एक जगल म कनिटया कअनदर गया, जिजसम एक महा� योगी रहा करत थ।

उस योगी क सम+ भी उस निवदवा� � योग दश(� कनिवभधितपाद को निमथया कहा तथा उस आग म जला द�की बात दहरायी। योगी � नि�वद� निकया निक पतञजलिलहमार आचाय( ह। लाखो वष� स सभी योगी योग शा का सममा� करत आय ह और आप जला� की बात कररह ह। कल आप दो�ो सय�दय क समय आइएगा।

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म आप दो�ो को निवभधितपाद की कोई आशचय(ज�कजिसधिK निदखाऊगा। परातःकाल जब दो�ो निवदवा� (वादी-परधितवादी) उस योगी की कनिटया क पास पहच, तोउनहो� उस योगी को आकाश म ऊपर उठत हए दखा।वह योगी आकाश म ऐस उठ रहा था जस निकसी सीढीपर पर रख-रखकर चढ रहा हो। दो�ो निवदवा� यह दशयदखकर हतपरभ थ। थोडी ही दर म वह महा� योगीआकाश म बहत ऊचाई पर जाकर अदशय हो गया। इसघट�ा क पशचात निवभधितपाद क निवरो*ी निवदवा� � अप�ीभल मा� ली।

१८. पचभतो पर निवजय - शवताशवतर उपनि�षद२/१२ म कहा गया ह-

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पथवयोपतजोऽनि�लख समनतितथत पचातमक योग गण परवनत।

� तसय रोगो � जरा � मतयः परापतसय योगानि�मय शरीर।।

पथवी, जल, अनि�, वाय, और आकाश क योग गणोका अ�भव हो� पर अथा(त भतजय हो� पर जिजस योगीको योगानि�मय शरीर परापत हो जाता ह, उस � तो कोईरोग होता ह, � वKावसथा होती ह, और � उसकीअकाल मतय होती ह। उसका शरीर धिचरकाल तकअनतिसततव म रहता ह। इस समबन* म योग दश(� ३/४४का कथ� ह-

सथलसवरपसकषमानवयाथ(वततवसयमाद भतजयः।

अथा(त पाचो भतो (ततवो) क सथल, सवरप,सकषम, अनवय, और अथ(कतव म सयम कर� स भतो काजय होता ह। पाच भतो क पाचो रपो म जिजस -जिजस

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रप म योगी सयम करता ह, उस-उस रप का योगी कोसा+ातकार होता ह। सथल, सवरप, सकषम आनिद रपो ककरम स पाचो भतो क पाचो रपो म सयम कर� स योगीको पाचो भतो का परतय+ीकरण और वशीकरण हो जाताह। ऐस योगी को भतजयी योगी कहत ह। सब भतो कीपरकधितया उसक सकलपा�सार हो जाती ह, अथा(त भतोका सवभाव उसक सकलप क अ�सार हो जाता ह।

भतजय की कई जिसधिKया परमहस निवशKा�नद जीक पास थी। व काशी म नि�वास करत थ। उ�क शरीर सहमशा सगनतिन* नि�कला करती थी, जिजसक कारण व गन*बाबा क �ाम स भी परजिसK थ। गोपी�ाथ कनिवराज उनहीक णिशषय थ। परमहस निवशKा�नद जी सय( निवजञा� कीसहायता स कोई भी वसत उतपनन करक निदखा सकत थ।एक बार उनहो� मज पर रखी हई माला को गलाब की

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माला क रप म परिरवरतितत कर निदया था। यहा तक निकउनहो� रई क टकड को गर�ाइट क लाल पतथर क रपम बदल निदया तथा एक फल की परतयक पखडी को�य-�य फल क रप म रपानतरिरत कर निदया।

१९. आठ निवल+ण जिसधिKया- इ� अषट जिसधिKयो कनिवषय म योग दश(� ३/४५ म कहा गया ह-

ततोऽणिणमानिदपरादभा(वः कायसमपनतKमा(�णिभघातशच।

अथा(त पचभतो पर निवजय परापत हो� स अणिणमाआनिद आठ जिसधिKयो एव कायसमपत की परानिपत होती ह।इसक अधितरिर` उ� पाचो भतो क *म� स रकावट भी�ही होती। य आठ जिसधिKया इस परकार ह-

अणिणमा- शरीर का आकार बहत छोटा कर ल�ाअणिणमा जिसधिK ह।

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लधिघमा- रई क समा� अतयनत हलका ब� जा�ा।आकाशगम� आनिद जिसधिK इसी क दवारा होती ह।

मनिहमा- शरीर को बहत बडा कर ल�ा। सीता जीकी खोज म ह�मा� जी � इनही ती�ो जिसधिKयो कोउपयोग निकया था।

गरिरमा- बहत अधि*क भारी ब� जा�ा। गन*माद�पव(त पर ह�मा� जी � अप� शरीर को इत�ा भारी करलिलया निक भीम जी को �तमसतक हो�ा पडा।

परानिपत- इचछामातर स दरसथ वसतओ को भीततकाल परापत कर ल�ा।

पराकामय- निब�ा निकसी बा*ा क इचछा का पण( होजा�ा।

ईणिशतव- हजारो-लाखो पराणिणयो पर अप�ा परभाव

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डालकर शास� कर� की शनि` ईणिशतव ह।

वणिशतव- सप(, निबचछ, सिसह, वयाघर आनिद घातकपराणिणयो को वश म कर� की जिसधिK को वणिशतव जिसधिKकहत ह। इसी जिसधिK क कारण ऋनिष -मनि� व�ो मनि�दव(नदव होकर निवचरण निकया करत थ।

२०. मतक को जीनिवत कर�ा- यदयनिप यह काय(परकधित क नि�यम क निवपरीत ह, निकनत अतयधि*क योगबलस समपनन परमहस या योनिगराज ऐसी नतिसथधित पदा करदत ह, जिजसम मतक जीनिवत हो उठता ह। इसम अप�योगबल दवारा मर हए जीव को प�ः उस शरीर म परवशकरा�ा होता ह। परजिसधिK ह निक परमहस महाराज शरी रामरत� दास जी � मर हए को जीनिवत निकया था। एक माका पतर मतय को परापत हो गया था। सयोगवश परमहसमहाराज शरी राम रत� दास जी उ*र भरमण करत हए आ

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नि�कल। उस मा � इत�ी दी� भरी पराथ(�ा की निकमहाराज जी का हदय दरनिवत हो गया और उनहो� यहआशीवा(द द निदया निक कल परातःकाल हो� स पहलबालक का दाह ससकार � कर�ा। वह मा परातःकालतक परती+ा करती रही। जस ही पव( निदशा म सय( कीलालिलमा फली, वस ही बालक � भी अप�ी आख खोलदी।

ऐसी ही एक घट�ा लानिहडी महाशय क जीव� कीह- जब उनहो� अप� णिशषय य शवर जी क अणिभनन निमतरराम को मर� क एक निद� बाद जीनिवत निकया था। राम भीउ�का णिशषय था और हज का णिशकार होकर मतय कोपरापत हो गया था। उसक मर� पर य शवर जी बहत दःखीहो गय और उनहो� उस जीव�-दा� का आगरह निकया।योनिगराज लानिहडी महाशय � अप� योगबल स उस प�ः

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जीनिवत निकया। उ�क गर महाअवतार बाबा ऐसी लीलायनिकया करत थ।

२१. एक साथ कई रप *ारण कर�ा- निवशवरप कीभाव�ा क साथ समाधि*सथ होकर अप� सकलप बल सयोगी एकसाथ अ�क रप *ारण कर लता ह। इसकापरतय+ परमाण महाभारत की वह घट�ा ह , जिजसमशानतिनतदत क रप म गय हए योगशवर शरी कषण को जबदय�*� कद कर�ा चाहता ह, तो उस चारो ओर कषणही कषण निदखायी द� लगत ह। अनत म वह अप�दषकतय पर ललिजजत होता ह। परमहस महाराज शरी रामरत� दास जी, लानिहडी महाशय, तथा सवामी परणवा�नदजी भी एक ही समय कई जगहो पर निदखायी दत थ। यहउ�क दवारा कई शरीर *ारण कर� पर ही समभव था।

महा� योगी शरी शयामाचरण लानिहडी जी जिजस

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काया(लय म �ौकरी करत थ, उस काया(लय का परमखअधि*कारी एक अगरज था। उसकी पत�ी लनद� म रहरही थी और बहत अधि*क बीमार थी। अप� अधि*कारीको उदास दखकर लानिहडी महाशय � जब पछा, तोउस� अप�ी पत�ी की बीमारी की बात बता दी। इसकपशचात लानिहडी जी अप� कमर म धया�सथ हो गय। कछदर क पशचात धया� स उठकर उनहो� अप� अगरजअधि*कारी को बताया निक आपकी पत�ी ठीक हो गयी ह।व आपको पतर लिलखगी तथा कछ निद�ो क पशचात आपसनिमल� क लिलए भारत भी आ� वाली ह। अगरज अधि*कारी� उस समय यह बात तो स� ली, निकनत उनह निवशवास�ही हआ। कछ निद�ो क पशचात जब उनह अप�ी पत�ीदवारा लिलखा हआ पतर निमला, जिजसम उस� अप� सवसथहो� तथा भारत आ� की बात लिलखी थी, तो व आशचय(

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म पड गय। भारत आ� पर जब उस अगरज मनिहला �लानिहडी महाशय को दखा, तो तरनत पहचा� गयी तथाशरKापव(क उ�का अणिभवाद� निकया। उस� अप� पधितको बताया निक इनही महातमा की कपा स म जीनिवत होसकी ह। य ही मरी शयया क नि�कट आकर आशीवा(दनिदय थ। यह स�कर उस अगरज अधि*कारी क आशचय( कानिठका�ा �ही रहा और वह शरी लानिहडी महाशय का बहतअधि*क सममा� कर� लगा। यह एक ही साथ दो शरीर*ारण कर� की जिसधिK क कारण समभव हो सका।

इस सनिषट म असखय गरह-�+तर नि�रनतर निकरयाशीलह। हमार सय( स लाखो ग�ा बड अ�नत सय( इस जगतम परकाशमा� हो रह ह। सागरो की अथाह जलराणिश मअ�निग�त लहर पल-पल करीडा कर रही ह। असखयपराणिणयो, व�सपधितयो, एव पराकधितक सषमा स भरपर ह

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यह निवराट। इस समपण( जगत को नि�यनतिनतरत कर� वालावह बरहम अ�नत जञा�, परम, सतता, और आ�नद का मलह।

यनिद हम आनतितमक दनिषट स दख , तो लगता ह निकहम भी तो उसी परबरहम रपी सागर की लहर ह औरउसस अणिभनन ह। निकनत जब हम लौनिकक दनिषट स दखतह, तो ऐसा लगता ह निक जस हम परबरहम क अ�नतजञा�, तज, एव शनि` क सम+ �गणय ह।

ऐसी अवसथा म यनिद हम जिसधिKया परापत करकआकाश म उड� लग, मर हए लोगो को जीनिवत कर�लग, तथा एकसाथ कई रप *ारण कर अप�ी पजाकरा� लग, तो यह नि�धिशचत ह निक हम कही � कही अप�अहम म उततरोततर वधिK कर रह ह और उससव(शनि`मा� सतता को च�ौती द रह ह।

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

यथाथ(तः, यह माग( आतम-ह�� का ह और मख(ताभरा ह, पर इसका एक दसरा प+ भी ह। जिजस परकारनिवष का उधिचत परयोग औषधि* क रप म अमत तलयकाय( करता ह, उसी परकार जिसधिKयो की भी कही � कहीआवशयकता पड ही जाती ह। जस- कौरवो की सभा मशरी कषण जी दवारा अ�क रपो म दश(� द�ा। दवदततदवारा भज गय भया�क हाथी को भगवा� बK दवारामतरीबल स वश म कर�ा, बK जी को वाणो स मार� कापरयास कर� वाल *�*(रो का उ�क आतमा क तज सपरभानिवत होकर �तमसतक हो जा�ा, अगलिलमाल कोसममोनिहत कर�ा, आनिद योगशवय( स ही समभव था। इसीपरकार यनिद शरी कषण जी अप� योगबल का परयोग �हीकरत, तो � तो दरौपदी की लाज बच सकती थी और �पापी जयदरथ का ही व* हो सकता था।

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

यनिद अटट नि�षठा क साथ परबरहम की धया�-सा*�ाम लगा रहा जाय, तो य जिसधिKया तो पीछ-पीछ सवतःचला करती ह। निकनत परमातमा क परम को झठलाकरमातर इ�क पीछ जब भागा जाता ह, तो य जिसधिKया उसवशया की तरह वयवहार करती ह जो *� क � हो� परअप� ब�ावटी परमी को *कका मार दती ह। पव�`महापरषो दवारा अप� योगबल स चमतकार निदखा�ाअ�धिचत �ही था कयोनिक य पहल ही परम तततव को जा�चक थ।

योगशवय( और निवभधित म अनतर होता ह। आतम -सा+ातकार या बरहम-सा+ातकार कर� वाला वयनि` अप�सकलप बल स अ�क परकार क चमतकार निदखा सकताह, निकनत वह इ�को हय दनिषट स दखता ह कयोनिकउसकी दनिषट म परमातमा क परधित सव(सव समप(ण तथा परम

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

स बढकर और कोई वसत होती ही �ही ह।

निकनत ईशवर परणिण*ा� (परमातमा क परधित पण(समप(ण) क अभाव म जब जिसधिKयो क परधित आकष(ण बढजाता ह, तो समाधि* का माग( बनद हो जाता ह। इससबडी आनतितमक +धित और कछ भी �ही हो सकती। योगदश(� ३/३७ म सपषट रप स कहा गया ह-

त समा*ावपसगा( वयतथा� जिसKयः।

अथा(त जिसधिKया बरहम का सा+ातकार करा� वालीसमाधि* म निवघ� ह।

इसलिलय सj जञा�ीज� इ� जिसधिKयो को हय (घणा)दनिषट स दखत ह। सा*�ा -काल म जब य जिसधिKयाअ�ायास ही परापत हो जाती ह , तो उ�क परधित उप+ाभाव रखत ह, कयोनिक उ�क हदय का सव(सव परम कवल

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

निपरयतम परबरहम क लिलय ही होता ह। उ�की दनिषट मससार का मा�-सममा� निवष की तरह होता ह, इसलिलयव जिसधिK-परदश(� करक ससार म यश की सवप� म भीकाम�ा �ही करत।

इ� जिसधिKयो क परधित आकष(ण तो मातर सामानयसतर क सा*को या जञानि�यो को ही होता ह। यही कारणह निक परतयक आतमजञा�ी या बरहमजञा�ी इ� जिसधिKयो कपरदश(� को मदारी क खल की तरह ही तमाशा मा�ता ह।भगवा� बK � भी अप� णिशषयो को जिसधिK -परदश(� �कर� की चताव�ी दी थी।

शरीमखवाणी म सपषट रप स कहा गया ह-

सा*ो कहर कही करामात, ए दनि�या धितत राच।

निकरत� २०/३

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

अथा(त चमतकार निदखा�ा बहत बरी बात ह। ससारमाया स ब�ा ह, इसलिलय सासारिरक लोगो को चमतकारोम ही आसथा होती ह।

आगम भाखो म� की परखो, सझ चौद भव�।

मतक को जीनिवत करो, पर घर की � होव गम।।

निकरत� १४/१०

भल ही आप भनिवषय की सारी बातो को जा�त ह,दसरो क म� क भावो को पण(तया समझ लत ह , तथासमाधि* म डबकर चौदह लोक क इस बरहमाणड की समपण(जा�कारी भी रखत ह, साथ ही आप अप� योगबल समर हए को भी जीनिवत कर� का सामथय( रखत ह, तो भीइस बात का धया� रलिखए निक निब�ा तारतम जञा� कआपको अप� सवरप तथा नि�ज घर की पहचा� �ही हो

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

सकती।

निवभधितयो क गह� धिचनत� स एक बात सपषट होती हनिक यनिद *ारणा म परबरहम क सवरप क अधितरिर` निकसीअनय वसत को लिलया जाय और निकत�ी भी कठोरसा*�ा कयो � की जाय , तो परबरहम का सा+ातकारकदानिप �ही हो सकता।

तरी निग�ती बा*ी सवासो सवास, धित�को भी �ाही निवशवास।

कत रह बाकी तर सवास, एक सवास को भी �ाही आस।।

परकास निह. २१/१३

हमारी उमर का पल-पल बीता जा रहा ह। बीताहआ समय हम प�ः निमल� वाला �ही ह। ऐसी अवसथाम हमारा यह �धितक कतत(वय होता ह निक मा�-परधितषठा कोठकराकर कवल निपरयतम क सवरप म ही धया� लगाय।

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

इसी म हमार जीव� का चरम लकषय णिछपा हआ ह।

इस समबन* म तारतम वाणी धिडनतिणडम घोष क साथकहती ह-

मार परधितषठा पजारो, जो आए दगा दत बीच धया�।

निकरत� १०३/२

।। इसक साथ ही ततीय तरग पण( हई ।।

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

चतथ( तरग

सा*�ा-नि�द~श�

साधय (धयय) को पा� क लिलय जो भी परनिकरयाअप�ायी जाती ह, उस सा*�ा कहत ह। यदयनिप सा*�ाशबद को +तर निवशष स �ही बा*ा जा सकता, निकनत यहाजिजस सा*�ा का परसग ह वह आनतितमक सा*�ा ह,जिजसम निपरयतम अ+रातीत को अप� आतम-च+ओ सदख� क लिलय धिचतवनि� (धया�) की सा*�ा की जातीह।

धिचतवनि� की सा*�ा नि�राकारवानिदयो की शषकमयीधया�-सा*�ा �ही ह, बनतिलक इसम अ�नय परम की वहराह अप�ायी जाती ह, जिजसम लौनिकक काम�ाओ कापरिरतयाग कर सवय को नयोछावर कर निदया जाता ह।

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

पाच यम (अकिहसा, सतय, असतय, बरहमचय(,अपरिरगरह) एव पाच नि�यम (शौच, सतोष, तप,सवाधयाय, ईशवर परणिण*ा�) अधयातम सा*�ा की �ीव ह।इ�का पाल� � कर� वाला कभी भी धया� एव समाधि*क लकषय को परापत �ही कर सकता। स+प म इ�कानिववरण इस परकार ह-

१. अकिहसा- शरीर, वाणी, तथा म� स निकसी कोभी शारीरिरक या मा�जिसक पीडा द�ा किहसा ह। निकसी भीपराणी क शारीरिरक अगो को +त -निव+त कर�ा यापराणरनिहत कर द�ा महापाप ह और यह शारीरिरक किहसाह।

कट और मम(भदी वच�ो स निकसी को पीनिडत कर�ावाधिचक किहसा ह। अप� म� म निकसी भी परकार की(शारीरिरक या मा�जिसक) किहसा का भाव ल�ा मा�जिसक

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

किहसा कही जाती ह।

किहसा कर� वाला सवभावतः करर होता ह। वहधया�-समाधि* एव आतम-सा+ातकार का अधि*कारी �हीब� सकता।

यहा एक सशय होता ह निक योगशवर शरीकषण ,भगवा� णिशव, भगवा� निवषण, मया(दा परषोततम रामआनिद � भी लाखो रा+सो का व* निकया था, तो कया यकिहसक �ही थ? इनह योगशवर कयो कहा जाता ह?

इसक समा*ा� म यही कहा जा सकता ह निक यसभी महापरष अकिहसक और योगी इसलिलय कह गय हकयोनिक इ�क दवारा की गयी किहसा अकिहसा की र+ा कलिलय थी। इ�क म� म निकसी भी परकार का लोभ या दवष�ही था। मा�वता की र+ा क लिलय ही इनहो� श 

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

उठाया। यनिद य रा+सो का व* �ही करत , तो मा�वमातर का जीव� सकट म पड जाता। दलिखए वालमीनिकरामायण क अरणय काणड ६/१६,१९ क परसग म कहाह-

एनिह पशय शरीराणिण म�ी�ा भानिवतातम�ाम।

हता�ा रा+सघ�रब(ह�ा बह*ा व�।।

ततसतवा शरणाथº च शरणय समपनतिसथताः।

परिरपालय �ो राम वधयमा�ा� नि�शाचरः।।

अथा(त ह राम! दलिखए, भयकर रा+सो दवारा अ�कपरकार स मार गय बहसखयक मनि�यो क ककाल निदखाईद रह ह। इसलिलय हम आपकी शरण म आय ह निक आपइ� रा+सो स हमारी र+ा कीजिजए।

इसी परकार, भगवा� शरी कषण � कस, भौमासर,

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

णिशशपाल आनिद मा�वदराही रा+सो का व* निकया। भीमदवारा उनहो� उस जरासन* को मरवाया, जिजस�१०००० राजाओ को बलिल द� क लिलय अप� कारागारम डाल रखा था। यनिद शरी कषण जी � जरासन* कोमतयदणड �ही निदया होता , तो १०००० राजाओ कीमतय नि�धिशचत थी।

इस परकार शरी कषण जी � एक जरासन* कोमरवाकर १०००० लोगो क पराण बचाय। इसलिलय उ�कइस महा� काय( को किहसा �ही , बनतिलक अकिहसामलककहग।

ठीक यही नतिसथधित भगवा� निवषण एव योनिगराज णिशवक साथ भी ह। यनिद य रा+सो का सहार �ही करत , तोमा�व जाधित का अनतिसततव ही खतर म पड जाता।इसलिलय इनह भी अकिहसा का पालक ही कहा जाता ह,

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

किहसक �ही। वयनि`गत रप म, अप� सवाथ( क वशीभतहोकर, उनहो� एक चीटी की भी हतया �ही की ह।

यह सव(मानय तथय ह निक तलवारो क घाव भर जातह, निकनत कट शबदो क घाव हमशा पीडा दत रहत ह।अतः हम सव(दा सतय , निपरय, एव निहतकारी वच� हीबोल� चानिहए। कट वच� एक परकार स वाणी की किहसाह। अप� निकसी पश को कसाई क हाथ बच�ा भी किहसाह, कयोनिक पश को बच� वाल, मार� वाल, तथा खा�वाल समा� रप स पाप क भागी होत ह। अकिहसा कीजिसधिK क फलसवरप सभी पराणिणयो स उसका वरभावसमापत हो जाता ह। यहा तक निक सप( एव बाघ आनिद भीउसक साम� किहसा भाव �ही रखत।

२. सतय-

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

सतय जञा� अ�नत बरहम। तलिततरीयोपनि�षद

बरहम सतय सवरप, जञा� सवरप, और अ�नत ह।

सतय� उततणिभता भनिमः। अथव(वद

यह पथवी सतय (बरहम) स निटकी हई ह।

सतयमव जयत �ा�तम। मणडक उपनि�षद

सतय की ही निवजय होती ह, झठ की �ही।

�निह सतयात परो *म(ः नितरष लोकष निवदयत।

अथा(त सतय क आचरण स बढकर ती�ो लोको मकोई बडा *म( �ही ह। इ� कथ�ो स सतय की महततानि�रविववाद रप स जिसK ह। उस परबरहम को पा� क लिलयहम म�, वाणी, एव कम( स सतय का आचरण कर�ा हीहोगा। "साचा री साहब, साच सो पाइए साच को साच हपयारा।" (निकरत� ८/७) का यह कथ� भी इसी तथय

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

की ओर सकत कर रहा ह।

यधि*निषठर का छल स भरा हआ यह कथ� "�रो वाकजरो" यथाथ( सतय �ही ह। इसी परकार, ऐसा सतय जोनिकसी क लिलय पराणघातक ब� जाय, *म( �ही ह, जस-वधि*क को निकसी भागती हई गाय का सही पता बताद�ा। ऐसी अवसथा म निकसी भी तरह गाय की र+ाकर�ा ही *म( ह, सतय ह।

आजकल लोग बहत छोटी-छोटी बातो म भी झठका सहारा लत ह। यह बहत ही अ�धिचत बात ह औरसा*क को पथभरषट कर� वाली ह। धया� की सवरथिणम राहपर चल� वाल वयनि` को निकसी भी नतिसथधित म (पराण र+ाको छोडकर) झठ �ही बोल�ा चानिहए, चाह इसक लिलयनिकत� भी +धित (आरथिथक या सामाजिजक) कयो � उठा�ीपड।

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

�ीधित का यह कथ� हमशा ही धया� रख� योगय ह-

सतय बरयात, निपरय बरयात � बरयात सतयमनिपरयम।

निपरय चा�त बरयात, एष *म(ः स�ात�ः।।

सव(दा सतय और निपरय बोल�ा चानिहय। सतय औरअनिपरय �ही बोल�ा चानिहए। इसी परकार निपरय और निमथयावच� भी �ही बोल�ा चानिहए। यही स�ात� *म( ह। सतयका पाल� कर� वाल की वाणी अमोघ हो जाती ह। वहअप� मख स जो कछ भी कहता ह, वह अवशय होता ह।

३. असतय (चोरी � कर�ा)- मातर निकसी क *�का हरण कर�ा ही सतय (चोरी) �ही ह, बनतिलक जाधित(छोटी) या लिलग ( ी) क �ाम पर उ�क *ारविमक एवसामाजिजक अधि*कारो का हरण कर�ा भी सतय (चोरी)ही ह।

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

सरकारी कम(चारी जो भरपर वत� लकर भी काय(�ही करत, एक परकार स चोरी करत ह। निब�ा निटकट कयातरा कर�ा, चाह व सा*ज� ही कयो � हो, एक परकारस चोरी ही होती ह। बडी-बडी कमपनि�यो क सवामी, जोथोडा वत� दकर अधि*क काय( लत ह, सतय क दोषी ह।सीमा स अधि*क फीस ल� वाल डाकटर या वकील भीसतय क दोषी ह, कयोनिक व अप� रोगी या ज� सा*ारणको अप� जाल म फसाय रखत ह। अधि*क लाभ की दनिषटस निमलावट कर� वाल वयापारी तथा घस ल� वालअधि*कारी चोरी क अपरा*ी मा� जायग। राषटर ीय समपलिततका अपहरण कर निवदशो म जमा कर� वाल मनतरी ,अधि*कारी, एव वयापारी भी सतय क अपरा*ी ह।

धया� क पनिवतर माग( पर चल� वाल सा*क का यहपरम कतत(वय ह निक वह दसरो क *� को निम¥ी क समा�

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

समझ तथा निब�ा निकसी क निदय उ�की निकसी भी वसतका परयोग � कर, चाह वह उ�क ऊपर निकत�ी ही शरKाभाव�ा कयो � रखता हो।

असतय की जिसधिK हो� पर सभी रत�ो की परानिपत होजाती ह। भारतवष( की गरीबी का मखय कारण चोरी कीपरवलितत ह।

४. बरहमचय(- बरहमचय( ती� परकार का होता ह -शारीरिरक, मा�जिसक, तथा आनतितमक।

शारीरिरक बरहमचय( वह ह, जिजसम निवषय-परसग कातयाग निकया जाता ह।

मा�जिसक बरहमचय( म म� म भी निवषय -भोग कीइचछा �ही हो�ी चानिहय। आतमा दवारा निपरयतम परबरहम कपरम म निवचरण कर�ा ही आनतितमक बरहमचय( ह। सामानय

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

रप स बरहमचय( का तातपय( होता ह - "बरहम क समा�नि�षपाप जीव� हो�ा, बरहम क समा� नि�द�ष आचरणकर�ा, या बरहम क परम म निवचरण कर�ा (डब�ा)।

अथव(वद ३/५/१९ म कहा गया ह-

बरहमचय~ण तपसा दवा मतयमपाघ�त।

अथा(त बरहमचय( दवारा निवदवा�ो � मतय को भी जीतलिलया। बरहमचय( स रनिहत होकर शारीरिरक, मा�जिसक, एवआनतितमक उननधित की काम�ा कर�ा निदवासवप� क समा�ह। समपण( पराणिणवग( म जो सौनदय( , तज, बधिK, आ�नद,उतसाह, शनि`, आकष(ण, सजीवता आनिद गण निदखायीदत ह, उसक मल म बरहमचय( ही ह। बरहमचारी वयनि` कलिलय जीव� क निकसी भी +तर म णिशखर पर पहच�ाअसमभव �ही ह। इसलिलय भगवा� णिशव कहत ह-

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

जिसK निबनदोः महायत�� निकम � जिसधयधित भतल।

अथा(त बरहमचय( की जिसधिK स पथवी पर ऐसा कौ�सा काय( ह, जिजस जिसK �ही निकया जा सकता।

बरहमचय( रपी अ�मोल नि�धि* को अप� जीव� काशरगार ब�ा� क लिलय कधितपय नि�यमो का पाल� कर�ाआवशयक ह-

१. बर सकलपो को हटा�ा-

म�ीनिषयो का कथ� ह-

कामसय बीजः सकलपः, सकलपात एव जायत।

अथा(त काम क सकलप स ही काम का पराद (भावहोता ह। अतः अप� म� म कभी भी काम क सकलपोको पदा ही � हो� द।

म� म उठ� वाल काम क निवचारो स इनतिनदरयापरकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठपरकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठ, , सरसावा सरसावा 193193 / 414/ 414

नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

उततजिजत हो जाती ह और म�षय पत� की राह पर चलपडता ह। म� सभी इनतिनदरयो का राजा ह। यनिद म� हीकामास` हो गया, तो परजा रपी इनतिनदरया कया करगी।"यथा राजा तथा परजा" क कथ� को हमशा धया� मरख�ा चानिहए।

म� म कामजनय निवकारो म खोय रह�ा तथा अप�ीइनतिनदरयो को बलपव(क रोक रख�ा बहत घातक होता ह।इसस अ�क परकार क शारीरिरक तथा मा�जिसक रोग तोपदा होत ही ह, काम भी जवालामखी की तरह फटकरबाहर नि�कलता ह, जिजसका भया�क परिरणाम चारिरनितरकपत� क रप म निदखायी पडता ह। इसलिलय ऐसी नतिसथधितम नि�म�लिललिखत बातो पर धया� द�ा चानिहए-

➢ उस समय तरनत १-३ निगलास तक ठणडा पा�ी पील�ा चानिहए और म� म अप� आराधय का �ाम

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

भावपण( तरीक स ल�ा परारमभ कर द�ा चानिहए।

➢अप� म� को तरनत उस कामधिचनत� स हटा द�ाचानिहए और निपरयतम का �ाम लत हए टहल�ापरारमभ कर द�ा चानिहए। थोडी ही दर म म� कशानत होत ही कामजवर छमनतर हो जायगा।

➢ उस समय एकानत म निबलकल � बठ। यनिद बठ�ाही पड, तो पदमास� म बठकर निपरयतम अ+रातीतका धया� कर।

➢ उस समय शरीर को मल-मतर का सथा� मा�त हएअप� आनतितमक सवरप की भाव�ा कर तथाअ+रातीत क अधित म�ोहर सवरप (�री सवरप)म सवय को लगा द।

➢ सब ओर स नि�राश हो जा� पर आत(सवर म अप�

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

हदय *ाम म निवराजमा� अ+रातीत को पकार-"मर पराणशवर! मर-आपक पनिवतर परम म यह वास�ाबा*क ब� रही ह। आप इस दर कर और मझ मातरअप� परम म ही डबोय रख।"

२. अ�ावशयक सपश( स बच�ा- अशK म� सनिकया हआ सपश( वह अनि� ह, जिजसम बड-बड तपनतिसवयोतथा योनिगयो की भी सा*�ाय टट जाती ह। कामनतिनदरयतथा तवगनतिनदरय (तवचा) की रच�ा एक ही पदाथ( स हईह। अतः सपश( स म�ोनिवकार का उतपनन हो�ासवाभानिवक ह। जो सपश( की भया�क आ*ी स बच जाताह, वह उ� हो� वाल दषपरिरणामो स भी बच जाता ह,जो उस अन*ा ब�ा द� वाल होत ह।

आतम-सा+ातकार या बरहम-सा+ातकार स पव( धिचततम जनम-जनमानतरो की वास�ाय सकषम रप स दबी

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

रहती ह। जिजस परकार एक छोटी सी धिच�गारी हवा कझोको स भयकर जवाला का रप ल लती ह, उसी परकारबड स बड जिसK-तपसवी को भी धिचतत म दबी हई सकषमवास�ा कभी भी पथभरषट कर सकती ह। सपश(-सख कीवास�ा उसक वरागय-निववक पर पदा( डाल दती ह और*ीर-*ीर वह आसनि` क जाल म फसकर अप�ीसा*�ा को खो बठता ह।

सा*को को कभी भी जिसK महापरषो की �कल�ही कर�ी चानिहय। आतमजञा�ी या बरहमजञा�ी महापरषजब निकसी को सपश( या आलिलग� करत ह, तो व बराहमीभाव म डब रहत ह। म�ोनिवकारो स उ�का दर का भीरिरशता �ही होता। उ�की दखा-दखी कोई कjा सा*कयनिद अ�ावशयक सपश( या आलिलग� की राह अप�ाता ह,तो उसक लिलय यह आतमघात की राह हो सकती ह।

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ऐसा स�ा जाता ह निक एक बार सा*�ाकाल मसवामी निववका�नद जी का हाथ निकसी निकशोरी लडकी ककन* पर पड गया, जिजसक परायधिशचत सवरप उनहो�जलत हए अगार पर अप�ा वह हाथ रख निदया। इसीपरकार धया�सथ ऋनिष दया�नद की गोद म (चरणो म)निकसी मनिहला � शरKावश परणाम करत हए अप� णिशर ससपश( कर निदया था , जिजसक परायधिशचत सवरप महरविषदया�नद � ती� निद�ो तक पण(तया नि�राहार एव मौ�रहकर सवय को धया� म डबोय रखा। यह उस समय कीघट�ा ह, जब व शरी निवरजा�नद जी क चरणो मनिवदयाधयय� कर रह थ।

इसलिलय धया� क +तर म पदाप(ण कर� वाल परतयकसा*क एव साधि*का का कत(वय ह निक व सबम आनतितमकदनिषट रख। लौनिकक रप म परष वग( समा� अवसथा

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

वाली  ी को बह� क रप म, अधि*क आय की  ी कोमाता क समा�, तथा कम आय वाली कनया को पतरीमा�। इसी परकार साधि*काय भी लौनिकक दनिषट स परषोको उमर क अ�सार भाई, निपता, या पतर क रप म दख।

मातशनि` को आशीवा(द दत समय सा*को को यहधया� रख�ा चानिहए निक आशीवा(द की काम�ा कर�वाली बह� भी उनही जसी आतम -सवरपा ह। उ�काहाथ उ�क णिशर क अधितरिर` अनय निकसी भी अग पर�ही पड�ा चानिहए।

३. आहार समबन*ी नि�द~श�- योगी का आहारअतयधि*क सानतितवक हो�ा चानिहए। रजोगणी और तमोगणीआहार कर� वाला वयनि` बरहमचय( एव धया�-सा*�ा काअधि*कारी �ही ब� सकता। आहार क समबन* म य ती�सतर हमशा याद रख�ा चानिहए- "आ*ा पट परमयोगी,

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

पौ� पट योगी, तथा परा पट भोगी।" भरपट भोज�कर� वाला कभी भी बरहमचय( का पाल� �ही कर सकता।मातरा सवी (अलपाहार कर� वाला) परम सयमी होता ह।वह सहज ही बरहमचय( का पाल� कर लता ह।

�ोट- आहार-समबन*ी निवशष जा�कारी आग दीजायगी।

४. निद�चया( एव अनय साव*ानि�या- बरहमचय( पाल�क इचछक वयनि` को नि�म�लिललिखत नि�यमो का पाल�कर�ा चानिहए-

➢ परतयक नतिसथधित म परातःकाल ४ बज उठ जा�ाचानिहए। सय�दय क बाद सो�ा बरहमचय( क लिलयघातक होता ह। दर तक सो� स आतो का मलनिवकत होकर सड� लगता ह, जिजसस शरीर म

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अ�क रोग पदा होत ह तथा तमोगण की वधिK होतीह।

➢रानितर को दर स �ही सो�ा चानिहए। रानितर को दर तकधया� तो कर सकत ह, निकनत पढ�ा, बातचीतकर�ा, या चचा(-परवच� कर�ा सवासथय एव सयमदो�ो क लिलय हानि�कारक ह।

➢हमशा करवट ही सोय। पीठ क बल या पट क बलकदानिप �ही। सोत समय छाती पर हाथ � रख।�ीद आ� स पहल बायी करवट तथा �ीद क समयदायी करवट सोय। सोत समय परो को जिसकोड�ही, बनतिलक फलाकर रख।

➢ भोज� स पव( तथा पहल आचम� (१ चममच भरपा�ी पी�ा) अवशय कर। इसस अनन का निवकार

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बहत कम हो जाता ह। ऐसा छानदोगयोपनि�षद काकथ� ह।

➢ एकानत म रह� पर म� को खाली इ*र -उ*रभटक� � द, अनयथा यह हम अ*ोगधित म निगरासकता ह। एकानत म, या तो निपरयतम का धया�कर, या सवाधयाय कर, अथवा सो जाय। यनिदधिचनत� कर�ा भी पड तो मातर निवषयो क तयाग काही धिचनत� कर, भोग का �ही। एकानत म निवषयोका धिचनत� महा� अ�थ(कारी होता ह।

➢ सोत समय गम( द* या कोई उततजक पदाथ( �खाय-निपए। कौपी� (लगोट) भी ढीली बा*,कसकर बा*�ा �ादा�ी ह।

➢ तल आनिद लगात समय अगो का अ�ावशयक मद(�

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� कर तथा शरगार-परसा*�ो स अप� बाहय रप कोसजा� की चषटा � कर।

➢परातःकाल उषःपा� (खाली पट पा�ी पी�ा)अवशय कर। मलावरो* (कबज) � हो� द। इसकलिलय नितरफला, ईसबगोल की भसी, तथा जल कीअधि*क मातरा का सव� कर।

➢अशलील दशयो, गीतो तथा म� को निवकत कर�वाली गनदी बातो स सवय को पण(तया दर रख।

➢ भल ही नि�ज(� व�ो, रनिगसता�ो, तथा भया�क व�ोम अकल निवचरण कर�ा पड, निकनत दराचारी परषोकी सगधित म कदानिप � रह। सामाजिजक समबन* क�ाम पर उ�स समबन* � जोड। बरहमचय( म नतिसथतहो जा� पर शारीरिरक, मा�जिसक, तथा आनतितमक

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शनि` बहत अधि*क बढ जाती ह।

५. अपरिरगरह- भौधितक वसतओ का अ�ावशयकसगरह मोह का कारण ब� जाता ह, जिजसस समाधि* लाभम बहत बा*ा पहचती ह। धया� माग( क पणिथक को कभीभी अप�ी सामानय आवशयकता स अधि*क अनन, व ,एव अथ( का सगरह �ही कर�ा चानिहए। अयाधिचत वलितत(निब�ा माग जो निमल) स अप�ा जीव� नि�वा(ह कर�ाचानिहए और भवय भव�ो म नि�वास का मोह भी �हीरख�ा चानिहए। लौनिकक सखो को तणवत समझकरसबक कलयाणाथ( अप�ी समपदा को खच( कर�ा चानिहए।

जञा�, निववक, वरागय, शील, सनतोष, सवा,निव�मरता आनिद गण ही निदवय *� ह, जिज�का सगरह कर�ाचानिहए। �शवर मायावी वसतए हम अप� जाल म फसाकरनिपरयतम क परम स दर कर दती ह। परिरगरह (सचय) क ही

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जाल म फसकर तो ससार निपरयतम परबरहम क परम सवधिचत हो रहा ह, इसलिलय धया� माग( की सा*�ा कर�वाल को अपरिरगरही हो�ा चानिहए। अपरिरगरह म नतिसथत होजा� स पव( जनमो तथा भनिवषय क जनम क निवषय मबो* हो जाता ह।

६. शौच- शौच का तातपय( ह- पनिवतरता। यह दोपरकार का होता ह-

१. बाहय शौच- जल तथा निम¥ी आनिद स शरीर,व , एव सथा� को पनिवतर रख�ा। गनदगी स भरपरदग(नतिन*त वातावरण धया� क उपय �ही होता, कयोनिकवह तमोगण स गरजिसत रहता ह, इसलिलय धया� कीवासतनिवक नतिसथधित म पहच� क लिलय शरीर , व , एवसथा� का सवचछ हो�ा आवशयक ह। �ती, *ौधित,बनतिसत, एव औषधि*यो स शरीर को शK निकया जाता ह।

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इस बाहय शौच कहत ह।

२. आभयनतर शौच- हदय म निवदयमा� ईषया(, दवष,घणा, अहकार आनिद दोषो (मलो) को मतरी भाव�ा स,बर निवचारो को शK निवचारो स , तथा दवय(वहार कोसदवयवहार स हटा�ा, मा�जिसक शौच ह। इसी परकारअनिवदयानिद कलशो को निववक -जञा� दवारा दर कर�ा धिचततका शौच ह।

पराणायाम दवारा बाहय एव आनतरिरक दो�ो परकार कीशधिK होती ह। �ाडी शो*� पराणायाम स जहा �ानिडयोकी शधिK होती ह, वही बाहय एव आभयनतर पराणायामो ससथल हदय, फफड, एव र` की शधिK क साथ -साथसकषम शरीर क म�ोनिवकार भी दर होत ह। इसलिलय योगदश(� २/५२ म कहा ह-

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ततः +ीयत परकाशावरणम।

अथा(त पराणायाम दवारा निववक जञा� क ऊपर पडाहआ आवरण समापत हो जाता ह।

बाहय शौच का लाभ यह होता ह निक जब उस अप�शरीर की अशधिKया (मल, मतर, कफ आनिद) निदखायीदती ह, तो उसका शरीर स राग एव ममतव छट� लगताह। वह इसस अलग होकर आतम-सवरप म नतिसथत होजा�ा चाहता ह।

आभयनतर शौच स धिचतत की शधिK, म� की शKता,एकागरता, इनतिनदरयो का जीत�ा, तथा आतम-दश(� परापतकर� की योगयता परापत होती ह।

७. सनतोष- उधिचत परयत� क पशचात जो फल निमलअथवा जिजस अवसथा म रह� को निमल, उसम परसननधिचतत

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ब� रह�ा तथा तषणाओ का परिरतयाग कर�ा सनतोष ह।

सख की इचछा कर� वाल को सनतोष का सहारालकर सयनिमत जीव� वयतीत कर�ा चानिहए। सनतोष मही सख ह तथा असनतोष दःख की जड ह।

यह धया� द� योगय तथय ह निक सतोगण क परकाशम धिचतत की परसननता को सनतोष कहत ह। तमोगण कअन*कार म धिचतत म आलसय तथा परमाद की चादर ओढरह� की अवसथा को कभी भी सनतोष �ही समझ�ाचानिहए।

ससार म जो भी निदवय सख ह, वह तषणा क �ाशअथा(त सनतोष *ारण कर�, स परापत हो� वाल सख कसोलहव भाग क भी बराबर �ही ह।

८. तप- तप क निवषय म गीता म बहत अचछा

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वण(� निकया गया ह-

दवनिदवजगरपराजञपज� शौचमाज(वम।

बरहयचय(मकिहसा च शारीर तप उचयत।। गीता १७/१४

माता-निपता आनिद दवो, बराहमण, गर, और बधिKमा�परषो का पज� (सममा�) कर�ा, पनिवतरता, सरलता,बरहमचय(, एव अकिहसा क पाल� आनिद गणो को वयवहार मला�ा, शारीरिरक तप कहलाता ह।

अ�दवगकर वाकय सतय निपरयनिहत च यत।

सवाधयायाभयस� चव वागङगमय तप उचयत।।

गीता १७/१५

ऐस वच� बोल जिजसस निकसी को कषट � हो , जोसतय हो, निपरय हो, तथा निहतकारी हो। इसक अधितरिर`सवाधयाय का अभयास वाणी का तप कहलाता ह।

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म�ः परसादः सौमयतव मौ�मातमनिवनि�गरहः।

भावसशधिKरिरतयतततपो मा�समचयत।। गीता १७/१६

अप� म� को सव(दा परसनन रख�ा , म*र भावरख�ा, वयथ( म � बोल�ा , परतयक बात म अप� कोसमभाल कर रख�ा, तथा म� म निकसी भी परकार कीकनतितसत (बरी) भाव�ा उतपनन � हो� द�ा , एव शKभाव�ा स काय( कर�ा, मा�जिसक तप कहलाता ह।

शरKया परया तपत तपसतनतिततरनिव* �रः।

अफलाकाधि+णिभय(`ः सानतितवक परिरच+त।।

गीता १७/१७

म�षयो दवारा य ती� परकार क शारीरिरक, मा�जिसक,तथा वाधिचक तप निकय जात ह। परम शरKा स यहोकर, फल की काम�ा का परिरतयाग करक, जो तप

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निकया जाता ह, उस सानतिततवक तप कहत ह।

सतकारमा�पजाथº तपो दमभ� चव यत।

निकरयत तनिदह परो` राजस चलमधरवम।।

गीता १७/१८

दसरो स सतकार पा�, अप� अणिभमा� का परदश(�कर�, दसरो स अप�ी पजा करा� अथा(त दमभपव(कनिदखाव मातर क लिलय जो तप निकया जाता ह, वह चञचलतथा +णभगर हो� स राजजिसक तप कहा जाता ह।

मढगराहणातम�ो यतपीडया निकरयत तपः।

परसयोतसाद�ाथº वा तततामसमदाहदम।।

गीता १७/१९

अन*निवशवास क वशीभत होकर, सवय को पीडा

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दकर (वष� तक खड रहकर, एक हाथ उठाकर, नि�राहाररहकर, या अप� चारो ओर आग जलात हएधिचलधिचलाती *प म बठकर), निकसी का अनि�षट कर� कीभाव�ा स जो तप निकया जाता ह, वह तामजिसक तप कहाजाता ह।

तप दवारा अशधिKयो क +य हो� स शरीर तथाइनतिनदरयो की शधिK होती ह , जिजसक परिरणाम सवरपअणिणमा आनिद जिसधिKयो को परापत कर� की योगयता आजाती ह।

९. सवाधयाय- मो+ का जञा� द� वाल वदानिदगरनथो का अधयय� या आतम -धिचनत� या परमातम-धिचनत� सवाधयाय कहलाता ह। म�ीनिषयो का कथ� हनिक जीव� म सवाधयाय क परधित कभी भी परमाद �हीकर�ा चानिहए। सवाधयाय दवारा लाखो-करोडो वष( पव( क

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

म�ीनिषयो की जञा�*ारा हमार हदय म परवानिहत होती ह।सवाधयाय स रनिहत वयनि` और समाज निदशाही� हो जातह। योग सा*�ा का आलमब� ल� वाल सा*क क लिलयतो सवाधयाय की अतयनत आवशयकता होती ह, कयोनिकइसक दवारा वह अधयातम जगत क शाशवत जिसKानतो तथाबड-बड योनिगयो क निवचारो स अवगत होता रहता ह।

१०. ईशवर परणिण*ा�- अप� अनदर निकसी भी परकार(जञा�, वरागय, सौनदय(, कल, परधितषठा आनिद) क अहमको � रखत हए सवय को निपरयतम परबरहम क परधितसमरविपत कर�ा परणिण*ा� कहलाता ह।

शय� या आस� पर नतिसथत होकर अथवा चलत हएया अनय निकसी भी अवसथा म, जो अप�ा सव(सवअ+रातीत क परधित समरविपत निकय रहत ह, व अवशय हीउ�को अप� *ाम हदय म बसा लत ह।

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जब तक "म और मरा" का भाव निदल स हटकर"त और तरा" का सथा� �ही ल लता, तब तक कसासमप(ण, कसी समाधि*, और कसा सा+ातकार?

योग दश(�कार � निकत�ा सही लिलखा ह-

समाधि*जिसधिKः ईशवर परणिण*ा�ात। योग दश(� २/४५

अथा(त समप(ण स ही समाधि* की परानिपत होती ह।वसततः समप(ण ही वह निदवय औषधि* ह, जो हमार *ामहदय म निपरयतम की छनिव बसाकर भवरोग स छटकारानिदलाती ह।

समप(ण की राह म सबस बडी बा*ा अहम की ह।सारा ससार इसी अहम क जाल म फसा हआ ह औरनिकसी भी तरह स नि�कल �ही पा रहा ह-

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

इ� म म डबया सब कोई, याको पार � पाव कोए।

याको पार सो पावही, जाको मतलक बकसीस होए।।

निकरत� ५/३०

अ+रातीत परबरहम की जिजस पर निवशष कपा होतीह, वह ही म (खदी) को छोडकर *�ी क परम औरसमप(ण की राह अप�ाता ह। महामधित जी क शबदो म-

म मर *�ीय की, चर� की र� पर।

कोट बर वारो अप�ा, टक-टक जदा कर।।

निकरत� ९०/२४

म अप� पराणशवर अ+रातीत की चरण -*लिल कऊपर करोडो बार सवय को समरविपत करती ह। इस काय(म यनिद शरीर क टकड -टकड भी हो जाय, तो कोईधिचनता �ही।

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

जिज� निदस मरा निपउ बस, धित� निदस पर होऊ करबा�।

रोम रोम �ख जिसख लो, वार डारो जीव सो परा�।।

निकरत� ९०/२६

मर निपरयतम अ+रातीत जिजस निदशा म रहत ह, उसनिदशा क ऊपर भी म अप� को नयोछावर करती ह। *�ीक परम म म अप� समपण( शरीर क एक-एक रोम को भीअप� पराणो सनिहत समरविपत करती ह।

इ� खसम क �ाम पर, कई कोट बर वारो त�।

टक टक कर डारह, कर म� वाचा करम�।।

निकरत� ९०/७

म अप� *ाम *�ी क �ाम पर एक-दो बार �ही,बनतिलक करोडो बार सवय को नयोछावर करती ह। म म�,वाणी, तथा कम( स अप� शरीर को टकड -टकड

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

कराकर भी समरविपत हो� क लिलय पल-पल तडप रही ह।

कर कबीला पार का, अकर बल सर *ीर।

एक *�ी �जर म लय क, उडाए द सरीर।।

निकरत� ८७/८

ह मरी आतमा! त ससार क इ� झठ समबनतिन*यो कबीच कयो फसी पडी ह? त अप� मल समबन* को यादकर। त मातर अप� निदल म *ाम *�ी को बसा और इसशरीर को उ�क ऊपर नयोछावर कर द। इसी म तरीआनतितमक वीरता कही जायगी।

हमार *ाम-हदय म कवल परम*ाम और निपरयतमअ+रातीत की शोभा का ही वास हो�ा चानिहए। इस लकषयकी परानिपत क लिलय अप�ी आतमा को उ�क परधित पण(तयासमरविपत कर�ा ही पडगा। इस प�ीत काय( म निकसी भी

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

बात की धिचनता �ही कर�ी होगी। यही भाव परकट करतहए शरी महामधित जी कहत ह-

महामधित कह पीछ � दलिखए, �ही निकसी की परवाह।

एक *ाम निहरद म लय क, उडाए द अरवाह।।

निकरत� ८७/१३

समप(ण और परम की नि�म(ल सरिरता म गोता लगाकरललिलता क मख स भी कछ ऐस ही सवर फट रह ह-

वारी र वारी मर पयार, वारी र वारी।

टक टक कर डारो या त�, ऊपर कज निबहारी।।

निकरत� ११९/१

ललिलता परम और समप(ण म इत�ी डब चकी ह निकउनह ससार निदखायी ही �ही दता। व एक-दो बार �ही,

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

बनतिलक करोडो बार अप� पराणशवर क ऊपर सवय कोसमरविपत कर� क लिलय वयाकल ह।

सनदर सरप सभग अधित उततम, मझ पर कपा तमारी।

कोट बर ललिलता करबा�ी, मर *�ी जी कायम सखकारी।।

निकरत� ११९/५

यह माया का त� निपरयतम को पा� क लिलय हीनिमला ह। इस भोगो म फसाय रख�ा कहा की समझदारीह। *�ी को पा� क लिलय अब तो एक ही माग( बचा ह निकइस शरीर और जीव को *�ी क परम की राह पर समरविपतकर निदया जाय।

माया काया जीव सो, भा� भ� टक कर।

निवरहा तरा जिज� निदसा, म वार धित� निदस पर।।

कलस निह. ८/७परकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठपरकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठ, , सरसावा सरसावा 219219 / 414/ 414

नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

अप� अहम का परिरतयाग ही सबस बडा तयाग हऔर समप(ण की राह म अहम ही सबस बडी बा*ा ह।यनिद आप उस पा�ा चाहत ह , तो सबस पहल अप�लौनिकक अनतिसततव को भला दीजिजए, तभी समप(ण औरपरम क मीठ फल का रसासवाद� कर� का शभ अवसरपरापत होगा।

महामत कह ए मोनिम�ो, स�ो मर वत�ी यार।

खसम कराव करबानि�या, आओ म मार की लार।।

लिखलवत २/३५

पण( समप(ण तो कवल एक पर ही होता ह और यहतभी समभव होता ह, जब उस अनिदवतीय अ+रातीत सअप� मल समबन* की पहचा� हो जाय। उस समयहदय स एकमातर यही बात नि�कलती ह निक मरी

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

अनतरातमा कवल आपकी ह। आपक अधितरिर` अनयसभी समबन* अनि� की लपटो क समा� मझ दःखो कीअनि� म जला� वाल ह।

म तो तमारी कीयल, अववल बीच और हाल।

तम निब�ा जो कछ दखत, सो सब म आग की झाल।।

लिखलवत ३/९

निवरह-परम की छोटी सी धिच�गारी जब हदय म फटपडती ह, तो समप(ण म उततरोततर वधिK होती जाती ह।आतमा निपरयतम की शोभा को जस-जस दखती जाती ह,वस-वस वह सवय को उ� पर लटाती (समरविपत करती)जाती ह।

हक इलम क जो आरिरफ, मख �रजमाल खबी चाह।

चाह चाह फर फर चाह, दख दख उडाव अरवाह।।

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

शरगार २०/१

जो अप� अह (खदी) का परिरतयाग करक परम औरसमप(ण की राह अप�ा लता ह, वह अधयातम क चरमणिशखर पर पहच जाता ह। इस इस घट�ाकरम दवारासरलता स समझा जा सकता ह-

एक बार शख णिशबली क पास दो वयनि` दी+ा ल�क लिलय आय। शख � अ�भव निकया निक दो�ो म मातरएक ही वयनि` दी+ा पा� का अधि*कारी ह। उनहो� उ�दो�ो स अलग-अलग आ� क लिलय कहा।

जब पहला वयनि` आया, तो उनहो� कहा निक यहकलमा पढो- "ला इललाह इजिललललाह णिशबली रसलअललाह।"

इस पर वह वयनि` बोला- "तौबा! तौबा!"

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तब उनहो� भी कहा- "तौबा! तौबा!"

उस वयनि` � शख स पछा- "आप� तौबा कयोकी?"

उनहो� कहा- "पहल त बता निक त� कयो की?"

वह वयनि` बोला- "आप तो मामली फकीर ह औररसल हो� का दावा करत ह। अब आप बताइय निकआप� तौबा कयो की?"

शख � कहा- "म� इसलिलय की निक इत�ी उची�ाम की दौलत एक गनद हदय म डाल� जा रहा था ,लनिक� बच गया। त मर काम का �ही। यनिद बअत(दी+ा) ल�ी हो, तो निकसी मनतिसजद क मलला क पासचला जा।"

जब वह चला गया तो दसरा वयनि` आया।

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उसस भी शख � कहा, पढो- "ला इललाह इजिललललाहणिशबली रसल अललाह।"

यह स�त ही वह बोला- "हजरत, म जाता ह।"

"कयो?" शख � पछा।

उस� उततर निदया- "मझ ऐसा महसस हो रहा हनिक पगमबर को मा�� वाला तो म पहल स ही ह।करआ� शरीफ भी मर घर पर ह। अगर आप ही पगमबरह, तो मझ आपक पास आ� की जररत ही �ही ह। मराखयाल ऊचा था, लनिक� आप� �ीचा खयाल जानिहरनिकया कयोनिक म� तो स�ा था निक मरथिशद और खदा एकही होत ह।"

यह स�त ही शख बोल- "म तमह ही बअत दगा।"

जो खदा का आणिशक ह, वह खदा ह। उसम और

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मालिलक (खदा) म कोई भी फरक( �ही।

तारतम वाणी भी इसी तथय को पकार-पकार करकह रही ह-

मारा कहया काढा कहया, और कहया हो जदा।

एही म खदी टल, तो बाकी रहया खदा।।

लिखलवत २/३०

अथा(त जिजसक हदय स म खदी पण( रप स नि�कलजाती ह, उसक हदय म निपरयतम अ+रातीत निवराजमा�हो जात ह। उसका शरीर मातर दख� क लिलय ही होताह, काय( सारा परबरहम क नि�द~शो पर होता ह। दसर शबदोम, ऐसा भी कहा जा सकता ह निक खदी को छोड�ा औरखदा को पा�ा एक ही बात ह। खदा को पा� वाला वसाही (तदोगत) हो जाता ह। "बरहमनिवदो बरहमव भवधित",

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उपनि�षदो का यह कथ� भी यही सकत कर रहा ह।म�ीनिषयो क कथ�ा�सार समाधि* दवारा परबरहम कासा+ातकार कर� म आठ मखय कारक होत ह-

१. पण( वरागय २. पण( समप(ण ३. शौच ४. सानतिततवकअलपाहार ५. दब(लता हो� पर औषधि* सव� ६. आस�जिसधिK ७. पराणायाम जिसधिK ८. पण( परषाथ(।

उपरो` आठ कारको म स दो कारको (पण( समप(णएव शौच) की निववच�ा हो चकी ह। अब शष कारको कीसधि+पत निववच�ा इस परकार ह-

१. पण( वरागय- वरागय का तातपय( गह तयागकरव  *ारण कर� स �ही ह , अनिपत निवषयो क राग-दवषस पर हो जा�ा ही वरागय ह। वरागय ती� परकार का होताह-

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१. शमशा� वरागय- निकसी दःखद घट�ा क कारणजब ससार स धिचतत कछ समय क लिलय हट जाता ह, तोइस शमशा� वरागय कहत ह। म� म गपत रप स भोगो कीपरबल काम�ा हो� क कारण वयनि` प�ः ससार म फसजाता ह। इस परकार क वरागय म जञा� तथा भनि` कीबहत कमी होती ह, इसलिलय शमशा� वरागय +णिणक याबहत कम समय क लिलय ही होता ह।

२. अपर वरागय- योगदश(� १/१५ म कहा गया हनिक "दषटा�शरनिवक निवषय निवतषणसय वशीकार सजञावरागयम" अथा(त दषट (दख हए) और आ�शरनिवक निवषयोम जिजसको तषणा �ही रही ह , उसका वरागय वशीकार�ाम वाला अथा(त अपर वरागय ह। निवषय दो परकार कह- दषट और आ�शरनिवक। दषट व ह जो इस ससार मनिदखायी दत ह, जस- शबद, सपश(, रप, रस, गन*,

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 ी, *�, राजय इतयानिद। आ�शरनिवक व ह, जो वद एवशा ो दवारा स� जात ह, जस- दवलोक, सवग(, निवदह,तथा अणिणमानिद जिसधिKया। इ� दो�ो परकार क निवषयो कीउपनतिसथधित म भी जब धिचतत इ�क सग दोष स सव(थारनिहत हो जाता ह, � इ�को गरहण करता ह, और � परहटाता ह, तो धिचतत की ऐसी अवसथा का �ाम वशीकारसजञा ह। इसी को अपर वरागय भी कहत ह।

३. पर-वरागय- योग दश(� १/१६ का कथ� ह-

ततपर परषखयातग(णवतषणयम।

अथा(त निववक खयाधित दवारा गणो स तषणा रनिहत होजा�ा पर-वरागय ह।

निदवय-अनिदवय निवषयो म तषणा रनिहत हो जा�ा अपरवरागय ह। इस वरागय म योगी दषट तथा आ�शरनिवक

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निवषयो क दोषो को दखकर उसस निवर` होता ह। जबधिचतत स उ�की तषणा नि�वतत हो जाती ह , तब धिचततएकागर हो जाता ह। यही समपरजञात समाधि* ह। इससमाधि* की उjतम अवसथा म धिचतत तथा परष क भदका सा+ातकार होता ह, जिजस परष खयाधित या निववकखयाधित कहत ह। इस अवसथा म जस -जस अभयासबढता जाता ह, वस-वस धिचतत नि�म(ल होता जाता ह।धिचतत की अतयनत नि�म(लता म यह परष खयाधित भी धिचततकी ही एक सानतिततवक वलितत और गणो का परिरणाम परतीतहो� लगती ह। तब इस निववक खयाधित स भी वरागय हो�लगता ह। इस परकार गणो स भी तषणा रनिहत अथा(तनिवर` हो�ा पर-वरागय ह। इस पर-वरागय को ही जञा�परसाद मातर कहत ह , कयोनिक इसम रजस -तमस गणोका गन* मातर भी �ही रहता। पर -वरागय क नि�रनतर

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अभयास स ही कवलय की परानिपत होती ह।

यदयनिप अपर एव पर-वरागय तो समाधि* दवारा हीपरापत होत ह , निकनत जञा�, सतसग, एव निवषयो कीनि�रथ(कता स उतपनन हो� वाल निववकजनय पण( वरागयकी आवशयकता होती ह, कयोनिक इसक निब�ा ससार कमोह जाल को छोडकर कोई सा*�ा म लग ही �हीपाता।

४. सानतितवक अलपाहार- सा*को क लिलय आहारमो+ की कञजी ह। छानदोगयोपनि�षद म कहा गया ह-

आहार शKौ सतव शधिKः सतव शKः धरवासमधितः।

समधित लब* सव( गरनतिनथ�ाम निवपरमो+ः।।

अथा(त आहार शधिK स ही धिचतत शK होता ह। धिचततकी शधिK हो� स समधित अटल (धरव) हो जाती ह। समधित

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क धरव (नतिसथर) हो� पर सभी गरनतिनथयो (अनिवदयानिद) सछटकारा निमल जाता ह, अथा(त मो+ परापत होता ह।म�षय जो कछ भी आहार करता ह, उसका सथल भागतो मल ब�ता ह, सकषम भाग रस ब�ता ह, और उससभी सकषमतर भाग स मनतिसतषक क निवचार तनत ब�त ह।वसततः म�षय का वयनि`तव अप� निवचारो स ही नि�रविमतहोता ह। "सकलपोऽयपरषः" का कथ� अ+रशः जिसKह। आहार ही म�षय को दवता ब�ा सकता ह औरआहार ही रा+स। इस नितरगणातमक बरहमाणड म अप�-अप� गण, कम(, और सवभाव क अ�सार म�षयो काभोज� होता ह, जिजसका सधि+पत निववरण इस परकार ह-

आयः सतवबलारोगयसखपरीधितनिवव*(�ाः।

रसयाः नतिस�ग*ाः नतिसथरा हदया आहराः सानतितवकनिपरयाः।।

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गीता १७/८

आय, सतव, बल, आरोगय, सख, तथा रसासवाद�की शनि` बढा� वाल रसय , धिचक�, नतिसथरता परदा�कर� वाल, हदय-शनि`व*(क आहार सानतिततवक वलितत कलोगो को निपरय होत ह। सानतितवक आहार इस परकार ह-द*, घी, ताज रसदार मीठ सानतितवक फल, मीठासनतरा, मीठा अ�ार, निकनन, मौसमी, आम, अगर, सब,कला, मीठा आड, खबा�ी आनिद। शषक फल, जस-बादाम, अजीर, म�कका आनिद। सानतितवक सबजी, जस-लौकी, परवल, तौरई इतयानिद। सानतिततवक अनन, जस-जौ, गह, मग, चावल इतयानिद। योगी क लिलय मगसव�ततम आहार ह। भोज� करत समय पट का दो भागअनन, फल, या शाक क लिलय, एक भाग जल क लिलय,तथा एक भाग वाय क लिलय खाली छोड�ा चानिहए। इसस

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अधि*क मातरा ल� पर भोज� राजजिसक एव तामजिसक होजाता ह। सा*�ा कर� वाल को कभी भी मातरा सअधि*क आहार �ही ल�ा चानिहए, भल ही निकत�ी अधि*कभख कयो � लगी हो।

कटवमललवणातयषणतीकषणर+निवदानिह�ः।

आहरा राजसयषटा दःखशोकाकामयपरदाः।।

गीता १७/९

कट अथा(त चरपर, ख¥, �मकी�, बहत गरम,तीकषण, र+, और जल� पदा कर� वाल आहार दख,शोक, और रोग क द� वाल ह। करला, हरड आनिद कटह। समदरी �मक, काला �मक आनिद की अधि*क मातरारजोगणी होती ह। इमली, कj आम, तथा करौद कीखटाई हानि�कारक होती ह। द* आनिद सानतितवक पदाथ(

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भी बहत गम( �ही हो�ा चानिहए, अनयथा रजोगण उतपननहोता ह। द* हमशा *ारोषण या हलका ग�ग�ा ही हो�ाचानिहए। लाल, हरी, या सफद निमच( तीकषण होती ह, जोशरीर म दाह (जल�) पदा करती ह। चाय, काफी आनिदपदाथ( उततजक एव रजोगणातमक होत ह।

तल या घी म तल हए पदाथ( अधि*क मातरा म खा�पर सपाचय �ही रह जात और राजजिसक ब� जात ह।इसलिलए मालपआ, घी स तर हलवा, गाढी खीर आनिदका सव� अधित अलप मातरा म ही कर�ा चानिहए। मसालोम जहा *नि�या, हलदी, जीरा, अजवाई� आनिद सानतितवकह, वही हीग , लौग, इलायची, जायफल, तजपतता,दालची�ी, सौठ आनिद रजोगणी मसाल ह। दही, छाछ,एव लससी का सव� भी सा*को क लिलए उधिचत �ही ह।

दरषटवय- ख¥ पदाथाÑ म कागजी �ीब , लवण म

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सन*व, निमच( म काली निमच( , मीठ पदाथ� म निमशरी कोपरायः नि�द�ष मा�ा जाता ह।

यातयाम गतरस परतित पय( निषत च यत।

उनतिचछषटमनिप चामधय भोज� तामसनिपरयम।।

गीता १७/१०

जो सारही�, रसही�, दग(न*य , बासी, जठा,और अपनिवतर भोज� ह , वह तामस परकधित वालो कोपयारा होता ह। अतयधि*क जला� या गम( बाल आनिद मभ�� स जिज�का रस जल जाता ह, व तामजिसक हो जातह, जस- मकका आनिद भ� जा� पर तमोगणी हो जात ह,कयोनिक इ�म �ाम मातर क लिलए भी रस �ही होता।चावल या च� को भ�कर खा�ा उत�ा हानि�कारक �हीहोता, जिजत�ा निक मकका। दोपहर क पशचात भ�ा हआ

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मकका ( )popcorn) भलकर भी �ही खा�ा चानिहए। इसीपरकार ठोस सतत आनिद का भी परयोग �ही कर�ा चानिहए।सतत का यनिद परयोग कर�ा ही पड, तो उस पतल दरव करप म शककर, निमशरी, या सन*व �मक क साथ सव�कर�ा चानिहए।

दग(न* वाल सभी पदाथ( तामजिसक होत ह , जस-मास, मछली, शराब, लहस�, पयाज इतयानिद। यनिद ऐसाकहा जाए निक लहस�-पयाज तो व�सपधित ह , प�ः यतामजिसक कस ह? तो इसका उततर यह ह- यदयनिप यऔषधि* क रप म गणकारी ह , निकनत तामजिसक हो� ककारण सा*को क लिलए तयाजय ह। जिजस परकार लालनिमच(व�सपधित होत हए भी अलपमातरा म रजोगणी तथा अधि*कमातरा म तमोगणी ह, उसी परकार लहस� और पयाज कोभी समझ�ा चानिहए। बासी भोज� भी दग(न* स य हो

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जाता ह। इसी तरह जठा भोज� भी तामजिसक मा�ा गयाह।

मास, मछली, एव शराब का सव� कर� वालाकभी भी समाधि* की अवसथा को परापत �ही कर सकता।जिज�-जिज� पनथो म *म( की ओट म मास , मछली, एवशराब का सव� निकया जाता ह, वह महापाप एव घणिणतकाय( ह। गीता १४/१८ म सपषट कहा गया ह-

ऊधवº गचछनतिनत सतवसथा मधय धितषठनतिनत राजसाः।

जघनयगणवलिततसथा अ*ो गचछनतिनत तामसाः।।

सतोगणी वयनि` ही आधयानतितमक उननधित करत ह ,रजोगण वयनि` मधयम अवसथा म रहत ह, तथा �ीच गणएव सवभाव वाल लोग अ*ोगधित (पत�) क माग( म जातह।

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गीता का उपरो` कथ� यही जिसK करता ह निकधया�-समाधि* या आतम-सा+ातकार की काम�ा रख�वाल को राजजिसक एव तामजिसक आहार का परिरतयाग करद�ा चानिहए। दभा(गयवश, आजकल मठो, मनतिनदरो, एवआशरमो म भी चाय , कॉफी, तमबाक, निमच(, गरममसालो, लहस�, पयाज आनिद तामजिसक पदाथ� कापरयोग बहतायत स हो रहा ह। वाममागµ, रामकषणनिमश�, वरागी आनिद म कोई-कोई तो सानिमष भोज� एवगाजा, भाग आनिद �शो का *डलल स परयोग कर रह ह।इस परकार का तमोगणी आहार कर� वाल धया� माग( कअधि*कारी �ही ब� सकत। चाय और काफी क शौकी�लोग इसकी तरह-तरह स महतता बताया करत ह, निकनतव इसकी सरच�ा को �ही दखत निक इ�म कफी� ,टनि��, थी� आनिद लगभग सात परकार क निवष होत ह,

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जिज�का निववरण सधि+पत रप म इस परकार ह-

➢ कफी�- यह बहत ही हानि�कारक निवष ह, जिजसकापरभाव तमबाक म पाय जा� वाल नि�कोनिट� कसमा� ही होता ह। इसक परभाव स शरीर खोखलाहो जाता ह। यह हदय की *डक� को बहत अधि*कबढा दता ह तथा अधि*क मातरा म सव� कर� पर*डक� को एकदम रोक भी दता ह, जिजसस मतयकी समभाव�ा ब� जाती ह। कफी� निवष ही चायका वह अश ह, जिजसक �श क वशीभत होकर लोगचाय क आदी ब� जात ह। चाय म निवदयमा� कफी�क कारण मतर की मातरा लगभग ती� ग�ा हो जातीह, निकनत शरीर का दनिषत मल मतर दवारा �हीनि�कल पाता, जिजसस गनिठया, गद�, तथा हदय रोगका णिशकार हो�ा पडता ह।

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➢ टनि��- इसका आमाशय (लीवर, जिजगर) पर बहतबरा परभाव पडता ह। यह पाच� शनि` तथा �ीद को�षट कर दता ह। शरीर पर इसका परभाव शराब कदषपरभाव स निमलता-जलता ह। इसी क परभाव सचाय पी� क बाद परारमभ म तो ताजगी होती ह ,परनत थोडी दर म �शा उतर जा� पर खशकी तथाथका� उतपनन होती ह, जिजसक कारण और अधि*कचाय पी� की इचछा होती ह। टनि�� एजिसड कपडारग� क काम आता ह, अतः इसस आनतो की तहभी कडी पड जाती ह। चाय क अधि*क उबाल� परटनि�� उतर आता ह, जो इस हानि�कारक ब�ा दताह।

➢ थइ�- चाय म यह २ स ३ परधितशत तक होता ह।इसक कारण मनतिसतषक और �ाडी तनतर उततजिजत

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होत ह। चाय क पी� स जो मसती आती ह, वहइसी +ार क कारण ह। यनिद चाय म यह ततव � हो,तो इसका +ार गण चला जायगा और इस कोई �पीयगा।

➢ वोलनटाइ� तल- यह तल �ीद को �षट करता ह,जिजसस आखो म अ�क परकार क रोग होत ह। शषअनय निवष भी इसी परकार हानि�कारक ह।

चाय की तरह ही कॉफी भी हानि�कारक ह। इसमनतिसथत कफी� की मातरा सवासथय क लिलय बहत हीघातक ह। यदयनिप कॉफी कफ और वाय दोष को दर तोकरती ह, निकनत यह शकर और बल को �षट करती हतथा ख� को पा�ी जसा कर दती ह।

यह धया� रख� योगय तथय ह निक चाय या कॉफी

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को पा�ी म डालकर जिजत�ा अधि*क खौलाया जाता ह,उत�ा अधि*क निवषल ततव पय म निमलकर उस औरअधि*क हानि�कारक ब�ा दत ह, कयोनिक अनि� क सयोगस निवष की तीवरता बहत बढ जाती ह।

निवशषजञो का कथ� ह निक चाय को बहत गम( करद� पर वह शराब स भी अधि*क हानि�कारक हो जाती ह।कई उफा� दकर उतारी हई चाय मनतिसतषक क कोशो(cells) को तो नि�नतिषकरय करती ही ह, आमाशय(लीवर) एव गद� (निकड�ी) को भी +धितगरसत कर दतीह।

यह बहत आशचय(ज�क बात ह निक सा*�ा स जडहए कछ लोगो को भी बीडी, जिसगरट, तमबाक, गटका,भाग, गाजा आनिद का सव� करत हए दखा जाता ह। जोलोग इ� निवषल �शो क आदी हो चक ह , उनह शायद

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इसक दषपरिरणाम का या तो पता �ही होता या व अप�ीबरी आदत क साम� सवय को लाचार मा�त ह।

गाजा, भाग, चरस आनिद म निवष भरा �शा होता हीह। तमबाक का सव� गटका, पा� मसाला, बीडी,जिसगरट आनिद क रप म निकया जाता ह।

भारत म लगभग २५ करोड लोग तमबाक का सव�करत ह, जिजसम १० लाख लोग तमबाक क सव� समरत ह, जबनिक पर निवशव म लगभग ४० लाख लोगतमबाक क सव� स मतय क गाल म चल जात ह।

तमबाक म कई परकार क निवष होत ह , जिज�मनि�कोनिट� परमख ह। यह जीव� क लिलय बहत घातक ह।कोलतार, आस~नि�क, अमोनि�या, निफ�ाइल एसीटो�,डी.डी.टी., बयटल, हाइडर ोज� साय�ाइड, �पयालिल�,

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

कडनिमयम, काब(� मो�ो आकसाइड जस पदाथ( जो निवषक ही पया(य ह, तमबाक म होत ह। य निवष तमबाक कासव� कर� वाल वयनि` क शरीर को जज(र ब�ा दत ह।

क सर जसा भया�क रोग तमबाक क सव� स हीहोता ह। +य रोग (टी.बी.), दमा, बरोकाइनिटस (गहरीखासी), प+ाघात (लकवा), र`चाप, और हदय रोगजसी बीमारिरया तमबाक क कारण होती ह। तमबाक कजहर स �ाक, का�, जिजगर, गद~, फ फड, मह, जीभ,दात, मसड, उदर आनिद रोगगरसत हो जात ह।

परतयक महापरष और *म(गरनथ � निकसी भी परकारक �श (तमबाक, शराब, भाग, चरस आनिद) को बराकहा ह। इसक सव� स उj मा�वीय गणो का हरास होताह। जिज� बराइयो स म�षय को बच�ा चानिहए , व हीबराइया उ�क जीव� म घर ब�ा लती ह। करो*, कररता,

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अ*ीरता, कायरता, नि�राशा, �कारातमक तथा निवधवसकनिवचार �श का सव� कर� वाल क अनदर आ जात ह।छोटी स छोटी बात पर निब�ा निकसी कारण क करोधि*त होजा�ा एव आलसय, परमाद, तथा अकम(णयता क वशीभतब� रह�ा तमबाक रपी जहर क सव� स ही समभव होपाता ह।

निकसी भी परकार का �शा म�, बधिK, धिचतत आनिदको निवकत कर दता ह। ऐसी अवसथा म समयक जञा�,समयक निववक, एव नितरगणातीत सवरप म नतिसथत हो� कीकलप�ा भी �ही की जा सकती। दसर शबदो म , निकसीभी परकार का �शा आधयानतितमक जञा� एव आ�नद काशतर ह।

५. औषधि*-सव�- धया� क पथ पर चल� वालपरतयक सा*क क लिलय यह आवशयक ह निक वह अलप

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आहार कर। ऐसी अवसथा म शरीर का नि�ब(ल हो�ाअवशयमभावी ह। शरीर क नि�ब(ल हो जा� पर उस ऐसीरसाय�य निदवय औषधि*यो का सव� कर�ा चानिहए, जोसतवगण वाली हो तथा शनि`व*(क भी हो।

ऐसी औषधि*यो म गरीषम काल म बरहम रसाय� तथाशीतकाल म शK चयव�पराश उललख�ीय ह। यह धया�रख�ा चानिहए निक भसमो (सवण(, चादी आनिद) क योग सब� हए सपशल चयव�पराश का परयोग सा*क को �हीकर�ा चानिहए, कयोनिक व उततजक होता ह। आमलकीरसाय� तथा णिभगोय हए बादाम एव म�कक का सव� भीशरीर म शनि` परदा� करता ह।

६. आस� जिसधिK- आस� दो परकार क होत ह-वयायाम आस� और धया� आस�।

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वयायाम आस�ो दवारा अ�क परकार क रोगो सनि�वलितत होती ह और शरीर सवसथ रहता ह , जस-भजगास�, शलभास�, तथा *�रास� स कबज निमटतीह। गभा(स� स पाच� शनि` बढती ह और आतो क रोगनिमटत ह। हलास� स मरदणड कोमल होता ह।पधिशचमोतता� आस� स चबµ (वसा) घटती ह, जठरानि�बढती ह, तथा आमाशय क सभी रोगो का �ाश होता ह।शीषा(स� स शकर ओज म परिरणत होता ह, समरण शनि`और मा�जिसक शनि` बढती ह। वजरास� स मरदणडसश` होता ह तथा पाच� निकरया ठीक रहती ह।

आस� और पराणायाम का निवशद वण(� "सवासथयक परहरी" �ामक गरनथ म ह।

इस परकार सवासथय की दनिषट स लगभग १०८आस� मा� जात ह, जिजसम स अप�ी नतिसथधित क

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अ�सार ५-२५ आस� भी यनिद परधितनिद� (परधित आस�२ निम�ट तक) निकया जाय, तो शरीर को सवसथ रख� मबहत सहायता निमलगी।

दसर परकार क आस� धया� आस� ह। य इसपरकार ह-

१. पदमास� २. जिसKास� ३. सवानतिसतक आस� ४.सखास� ५. सरलास� ६. समतवास� आनिद।

इ�क निवषय म योगदश(� म कहा गया ह निक"नतिसथरसखमास�" अथा(त जिजस अवसथा म निब�ा निहल-डल सखपव(क आसा�ी स बठा जा सक, वही आस�(धया�ास�) ह।

पव�` ६ परमख धया�ास�ो म स निकसी एक आस�को अप� शरीर की परकधित क अ�सार चयनि�त करक

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उसका अभयास कर�ा चानिहए। स+प म, इ� आस�ो कानिववरण इस परकार ह-

१. पदमास�- बाय पर को दाय पर की जाघ परतथा दाय पर को बाय पर की जाघ पर रख। दो�ो हाथोकी हथलिलयो को या तो दो�ो घट�ो पर "जञा� मदरा" कीअवसथा म रख, या दो�ो घट�ो क बीच म बायी हथलीक ऊपर दायी हथली को रख।

लाभ- जिजस परकार कमल क फल म कोमलता,सनदरता, नि�रविवकारिरता (सगनतिन*), तथा जल म रहत हएभी जल स पथक रह� का गण होता ह, उसी परकार इसपदमास� का अभयास कर� वाल सा*क म भी य गणआ� लगत ह। इस आस� क अभयसत वयनि` का शरीरकोमल ब� जाता ह। मरदणड सी*ा रहता ह तथा कमरदद( स छटकारा निमलता ह। दो�ो परो की एनिडया दो�ो

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जाघो पर नतिसथर रहती ह , जिज�क दबाव स जाघ सगजरती हई उ� �ानिडयो पर दबाब पडता ह जोशकरवानिह�ी �ाडी स जडी होती ह। परिरणामतः बरहमचय(सा*�ा म यह आस� अधित उपयोगी हो जाता ह। इसकोजिसK कर� पर सा*क म नि�रविवकारिरता आ जाती ह औरवह निवषयो स पर होकर गह� धया� म डब� लगता ह।इसस म� की एकागरता सवाभानिवक ही हो� लगती ह।

इस आस� का नि�षठापव(क अभयास भोगी को भीयोगी ब�ा� का सामथय( रखता ह। यह पण(तया सानतितवकआस� ह, अथा(त इसस सानतितवक म�ोवलिततया जागरतहो� लगती ह, और हदय म मा*य( भाव की परबलता होजाती ह। इसलिलय यही धिचतवनि� क लिलय सव�ततम ह।पदमास� की जिसधिK और सानतितवक आहार स समाधि* तकपहच� का ४५% माग( पण( हो जाता ह। इसलिलए भगवा�

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णिशव, भतत(हरिर, गौतम बK, महावीर, ऋनिष दया�नद ,निववका�नद, महाअवतार बाबा, लानिहडी महाशय आनिदमहा� योनिगयो का यह निपरय आस� रहा ह।

दरषटवय- मोट शरीर वाल या जिज�की मासपणिशयाअधि*क कठोर होती ह, उनह इस आस� को कर� मपरारमभ म कनिठ�ाई होती ह। ऐसी नतिसथधित म उनह या तो�मक का सव� कछ समय क लिलय बनद कर द�ा चानिहएया बहत कम कर द�ा चानिहए। �ारिरयल क तल कीमालिलश भी मासपणिशयो को कोमल ब�ाती ह।

परारमभ म, दो�ो जाघो क ऊपर अप� परो कीएनिडयो को सहज नतिसथधित म कोमलतापव(क इस परकाररख निक निकसी भी परकार त�ाव या दद( � हो। कछ समयक अभयास क पशचात तो पदमास� म बठ� पर ऐसापरतीत होगा निक जस हम शयया पर आरामपव(क सो रह

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ह।

२. जिसKास�- बाय पर की एडी को सीव�ी अथा(तगदा और उपसथनतिनदरय क बीच म इस परकार दढता सलगाय निक उसका तला दाय पर की जघा को सपश( कर।इसी परकार दानिह� पर की एडी को उपसथनतिनदरय की जडक ऊपरी भाग म इस परकार लगाव निक उसका तला बायपर की जघा को सपश( कर। इसक बाद बाय पर क अगठतथा तज(�ी अगली को दायी जाघ और निपणडली क बीचम ल ल। इसी परकार दाय पर क अगठ और तज(�ीअगली को बायी जघा तथा निपणडली क बीच म ल ल।शरीर का भार एडी और सीव�ी क बीच की ही �स परतला रह�ा चानिहए।

लाभ- यदयनिप यह आस� बरहमचय( क लिलय उपयोगीह, निकनत उनही क लिलय निवशष लाभदायक ह जो परायः

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ज�समह स दर एकानत म रहत ह और जिज�क म� मबर निवचार �ही आत ह। इस आस� पर बठकर निवषयका धिचनत� कर�ा सवय को पत� की गत( म ढकल�ा ह,कयोनिक बाय पर की एडी शकरवानिह�ी �ाडी स जडी होतीह। इस अवसथा म (निवषय धिचनत� कर� पर)म�ोनिवकारो क अतयधि*क परबल हो� की समभाव�ा रहतीह। वसततः यह रजोगण पर*ा� ह और हठयोग कअ�याधिययो क लिलय अधि*क लाभकारी ह। इस आस� मपरष भाव ब� रह� की समभाव�ा अतयधि*क रहती ह,इसलिलय यह धिचतवनि� की दनिषट स उपयोगी �ही ह।

निकनत यनिद निवषयो स म� को हटाकर इस आस�दवारा धया� निकया जाय, तो यह आस� सा*क कोसमपरजञात समाधि* क णिशखर तक भी पहचा सकता ह।�ीच स मलबन* दवारा मल दवार (गदा दवार) बनद हो� क

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कारण कणडलिल�ी शनि` क जागरण म इसस बहतसहायता निमलती ह, कयोनिक पराण बहत तजी स सषम�ाम परवानिहत हो� लगत ह। स+प म , यह आस� ऊचससकार वाल योनिगयो क लिलय ही अधि*क लाभकारी ह।सामानय सा*क, जिज�का म� निवषयो म भटकता रहताह, इस � कर तो अचछा ह।

इस आस� क कर� स शरीर की सभी �ानिडयाशK होती ह तथा लमब समय (कई निद�ो) तक भीसमाधि* लगाय रह� पर शरीर शK रहता ह और र` कासचार ब�ा रहता ह।

निवशष- पदमास�, जिसKास�, और सवनतिसतकास� मर` का सचार समपण( शरीर म निवधि*वत होता रहता ह ,कयोनिक परो की एनिडयो स �ानिडयो पर दबाव ब�ा रहताह। सखास�, सरलास�, एव समतवास� म इत�ा

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अधि*क दबाव � हो� स णिशर आनिद म र` सचार कमहोता ह, जिजसस कफ दोष वालो को लमब समय तकबठ� म कछ परशा�ी हो सकती ह, निकनत निपतत परकधितवालो क लिलय सखास� , सरलास�, एव समतवास�जयादा उपय ह। इसी परकार , जिसKास� कफ दोषवालो क लिलय सव�परिर ह। इसक पशचात करमशःसवानतिसतक और पदमास� आत ह। पदमास� म शीत-उषणकी समावसथा रहती ह, अथा(त यह आस� कफ, निपतत,वात आनिद सभी अवसथाओ म लाभदायक ह।

३. सवानतिसतक आस�- इस आस� म बाय पर कीएडी को उपसथनतिनदरय क दधि+ण भाग म तथा दाय पर कीएडी को उपसथनतिनदरय क बाय भाग म दढतापव(कसथानिपत कर। पावो की अगलिलयो को जाघ तथानिपणडलिलयो क बनिहभा(ग म रख। इसक पशचात कमर ,

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गद(�, मरदणड, एव मसतक को सी*ा करक बठ। हाथोकी सनिव*ा�सार, अगलिलयो को परसपर फसाकर पावो कऊपर रख या जञा�मदरा लगाकर दो�ो जा�ओ पर रख।

लाभ- यह आस� धया�-समाधि* म बहत उपयोगीह। बहत सरल हो� क कारण इसका अभयास कोई भीकर सकता ह।

४. सखास�- बाय पर को मोडकर नतिसथर कर दतह। इसक पशचात दाय पर को मोडकर बाय पर पर इसपरकार रखत ह निक दाय पर की एडी बाय पर की जाघ कमल स लगी हो।

लाभ- इस आस� म बहत सखपव(क बठा जाताह, इसलिलय इसका �ाम ही सखास� ह। इसम लमबसमय तक बठकर धया�-सा*�ा की जा सकती ह।

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५. सरलास�- दो�ो परो को एक-दसर क ऊपरसरल रखा म रख द� पर आस� का रप हो जाता ह।यह आस� अधित सरल ह। इस बाल, वK, यहा तक निकरोग स जज(र शरीर वाल लोग भी आसा�ी स कर सकतह। इस आस� म निकसी भी पर को एक-दसर क ऊपररख सकत ह।

लाभ- इस आस� दवारा सा*�ा क अधितरिर`*ारविमक सभाओ म भी जमी� पर घणटो बठ रह सकत ह।इस आस� दवारा मरदणड को भी सी*ा रखा जा सकताह।

६. समतवास�- इस आस� म दो�ो परो कीएनिडयो क ऊपर जाघो का वज� डाला जाता ह, अथा(तबाय पर की एडी क ऊपर दायी जाघ तथा दाय पर कीएडी क ऊपर बाय पर की जघा को रखा जाता ह। दो�ो

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एनिडया निवपरीत परो क घट�ो क �ीच हो�ी चानिहय।

लाभ- इस आस� म भी सरलास� क सभी गणह। इसक दवारा बहत आसा�ी स लमब समय तक बठाजा सकता ह।

आस� जिसधिK- जब साढ ती� घणट (२१० निम�ट)तक निब�ा निहल, डल, और उठ हए लगातार बठ रहाजाय, तो उस आस� की जिसधिK कहत ह। आस� कीजिसधिK क लिलय यह आवशयक ह निक जिजत�ी दर तकसामानय रप स बठ सकत ह, उत�ी ही दर तक बठ�स परारमभ कर और परतयक दसर निद� २ निम�ट की वधिKकर। इस परकार, परतयक माह म आ* घणट की वधिK होजायगी। यनिद आप परारमभ म आ*ा घणट तक बठत ह ,तो इस निवधि* का परयोग करक मातर छः माह म ही साढती� घणट तक बठ� म सफलता परापत कर सकत ह।

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ततो दवनदवा�णिभ*ातः। योग दश(� २/४८

अथा(त आस� की जिसधिK हो जा� पर भख-पयास,सदµ-गमµ आनिद दवनदवो को सह� की +मता आ जाती ह।

निब�ा आस� जिसधिK क धया� समभव �ही ह ,इसलिलए दश(� म कहा ह निक "आसी�ः समभवात"अथा(त दढासी� (आस� पर दढता स बठा हआ) वयनि`ही धया�-समाधि* तक पहच सकता ह। जो लोग लट-लट या चलत-निफरत धया� कर� की बात करत ह ,वह मातर भावली�ता ह , धया� �ही। ऐसा कह� वाललोग सवय को *ोख म रख रह होत ह। शरी दवचनदर जीका मातर आस� (हाथ) निहल जा� स धया� भग हो गयाथा और दश(� लीला भी बनद हो गयी। इसलिलय निपरयतमपरबरहम का सा+ातकार कर� क लिलय आस� की जिसधिKअतयावशयक ह।

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७. पण( पराणायाम जिसधिK-

तनतिसमनसधितशवासपरशवासयोग(धित निवचछदः पराणायामः।

योग दश(� २/४९

अथा(त शवास-परशवास की गधित को भग करक परक,कमभक, तथा रचक कर� का �ाम पराणायाम ह। म� कापराण क साथ अटट समबन* ह। जहा म� रक जाता ह,वहा पराण की गधित भी रक जाती ह , तथा जहा पराणनतिसथर हो जाता ह, वहा म� भी नतिसथर हो जाता ह।

पराणो निवलीयत यतर म�ः ततर निवलीयत।

यतर म�ो निवलीयत ततर पराणः निवलीयत।।

इसलिलय धया�-समाधि* तक पहच� क लिलयपराणायाम की पण( जिसधिK आवशयक ह। म�समधित म कहागया ह-

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दहयनत धयायमा�ा�ा *ात�ा निह यथा मलाः।

तथनतिनदरयाणा दहयनत दोषा पराणसय नि�गरहात।।

जिजस परकार अनि� म तपा� स सो�ा , चादी, तामबाआनिद *ातओ क मल (अशधिKया) समापत हो जात ह ,उसी परकार पराणायाम क अभयास स इनतिनदरयो क निवकार�षट हो जात ह। इस समबन* म पचणिशख आचाय( � भीकहा ह- "तपो � पर पराणयामात" अथा(त पराणायाम सबढकर कोई तप �ही ह।

*ारणा-धया� क लिलय म� का शानत हो�ा अधितआवशयक ह, इसलिलय इसक पण( अभयास एव जिसधिK कासतत परयास कर�ा चानिहए।

योग दश(� क अ�सार पराणायाम मखयतः चारपरकार क होत ह-

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१. बाहय पराणायाम- शवास को बाहर फ क कर बाहरही रोक द�ा बाहय पराणायाम ह।

२. आभयनतर- शवास को अनदर लकर अनदररोक�ा आभयनतर पराणायाम ह।

३. सतमभवलितत- बाहर की शवास को बाहर तथाअनदर की शवास को अनदर ही रोक द�ा सतमभवलिततपराणायाम ह।

४. बाहय आभयनतर आ+पी पराणायाम - इसपराणायाम म एक बार शवास को बाहर रोक निदया जाता ह,तो एक बार अनदर। दानिह� �थ� स शवास भरकर (परककरक) जब अनदर रोका जाता ह, तो बाय �थ� सछोडकर (रचक करक) बाहर रोका जाता ह। इसी परकारप�ः बाय �थ� स शवास भरकर अनदर रोका (कमभक

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निकया) जाता ह और दानिह� �थ� स छोडकर बाहररोका जाता ह।

इनही चार परमख पराणायामो को आ*ार मा�करहठयोग म अ�क परकार क पराणायाम बताय गय ह , जोस+प म इस परकार ह-

१. �ाडी शो*�- कोई भी पराणायाम कर� स पहलयह पराणायाम निकया जाता ह। इसम निकसी भी एक(दाय अथवा बाय) �थ� स शवास को *ीर-*ीर खीचाजाता ह तथा दसरी ओर स *ीर-*ीर छोड निदया जाताह। इसी परकार, दसरी ओर स *ीर-*ीर शवास लकरपहल �थ� की ओर स *ीर-*ीर खीचा छोड निदयाजाता ह। यह पराणायाम �ानिडयो को शK कर� वाला ह।

२. सय( भदी- इस पराणायाम म दानिह� (सय() पट

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स शवास लकर (परक करक) आभयानतर कमभक निकयाजाता ह, ततपशचात उस बाय पट (�थ�) स *ीर-*ीरछोड निदया जाता ह। इसस शरीर म गमµ बढती ह। शीतस र+ा क लिलय यह उपयोगी ह।

३. चनदरभदी- यह पराणायाम शीतलता उतपनन कर�क लिलय निकया जाता ह। इसम बाय (चनदर) पट स परककरक आभयानतर कमभक निकया जाता ह और दानिह�सवर स रचक निकया (शवास छोडा) जाता ह। इसपराणायाम का परयोग मातर गरीषम काल म गमµ को कमकर� लिलय निकया जा सकता ह।

४. उजजायी- इस पराणायाम म सव(परथम दो�ो�ाजिसका णिछदरो स शवास को बाहर नि�काल निदया जाता ह।इसक पशचात दो�ो णिछदरो स प�ः गहराईपव(क शवास कोभरा (परक निकया) जाता ह। यथासमभव कमभक कर

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ल� क पशचात वाम �ाजिसका पट (�थ�) स रचक करनिदया जाता ह। इसक बाद प�ः दो�ो सवरो स शवास कोभरकर आभयानतर कमभक कर�ा चानिहय तथा दानिह�सवर स रचक कर�ा (शवास को बाहर नि�काल�ा) चानिहए।परधितनिद� ३-६ बार इसका अभयास कर� स मनतिसतषककी उषणता दर हो जाती ह, निवचार शनि` बढती ह, तथाफफड मजबत ब� जात ह। कफ परकोप, उदर रोग, एवमनदानि� म भी इसस निवशष लाभ होता ह।

५. भरामरी- सव(परथम, वाम �ाजिसका पट स वायभरकर भरमर क गज� क समा� मीठी और सरीलीआवाज करत हए दो�ो �ाजिसका पटो स रचक कर�ाचानिहए। प�ः दाय �ाजिसका पट स शवास भरकर पव(वतगज� करत हए दो�ो �ाजिसका णिछदरो स रचक कर द�ाचानिहए। इस पराणायाम क अभयास स सषम�ा �ाडी शK

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होती ह।

६. सीतकारी- अप� अभयसत आस� पर बठकरदातो की दो�ो पनि`यो को परसपर निमलाया जाता ह।ततपशचात मख स अनदर शवास लकर निब�ा कमभक निकयही दो�ो �ाजिसका णिछदरो स रचक कर निदया जाता ह। यहपराणायाम भी शीतलता क लिलय निकया जाता ह। इससर` का शो*� होता ह तथा धिचतत शानत होता ह।

७. पलानिव�ी- इस पराणायाम को जिसK कर� क लिलयअप� अभयसत आस� पर बठकर दो�ो �ाजिसका णिछदरोस वाय भरी जाती ह और उदर म ल जाकर आभयानतरकमभक निकया जाता ह। इसक बाद दो�ो �ाजिसका णिछदरोस रचक कर निदया जाता ह।

इस पराणायाम क अभयास स जल क ऊपर चल�

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की जिसधिK परापत हो जाती ह। यनिद सा*क पदमास�लगाकर जल क ऊपर लट भी जाता ह, तो भी वहडबता �ही ह।

८. कपालभाधित- अप� अभयसत आस� पर बठकरमरदणड को सी*ा रखत हए �ाजिसका क दो�ो णिछदरो सवाय को *ीर-*ीर बाहर फ का जाता ह। इसम छाती काही निवशष उपयोग हो�ा चानिहए, पट का �ही। �ाडीशो*� पराणायाम क पशचात यह पराणायाम कर�ा चानिहए।खासी और दमा क रोनिगयो क लिलय यह बहत उपयोगीह।

साव*ानि�या- पराणायाम करत समय इ� बातो कानिवशष धया� रख�ा चानिहए-

➢ हमशा अप� अभयसत आस� (पदमास�, जिसKास�,

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सखास�, सरलास�, या समतवास�) पर हीबठकर पराणायाम कर, लट-लट, खड-खड, याचलत-निफरत पराणायाम � कर।

➢ मरदणड सनिहत समपण( पीठ एव गद(� को सी*ारख। कमर की झकी अवसथा म पराणायाम कर�ाउधिचत �ही ह।

➢भोज� स एक घणट पव( ही पराणायाम कर ल�ाचानिहए। पराणायाम करक तरनत पा�ी पी� या भोज�कर� स पट म दद( हो सकता ह।

➢भोज� कर� क लगभग ५ घणट बाद ही पराणायामकर�ा चानिहए। खाली पट पराणायाम कर�ा सव�ततमहोता ह।

➢ �ाडी शो*� और कपालभाधित पराणायाम निकय निब�ा

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अनय कोई भी पराणायाम � कर।

➢कमभक कर� म जबरदसती � कर। सवाभानिवक रपस जिजत�ी दर शवास रक सकती ह, उत�ी ही दरतक रोक ।

➢रचक एव परक की निकरया को कभी भी बलपव(क �कर।

➢ हाथो की अगलिलयो एव अगठो स �ाजिसका क णिछदरोको बनद � कर। अप� सकलप बल स शवास कोल� (परक), छोड� (रचक), एव रोक�(कमभक) का अभयास कर।

८. पण( परषाथ( - सनिषट का परतयक कण (अण-परमाण) गधितशील ह। उ�की गधित क बनद होत हीमहापरलय हो जायगा। जब इस जड परकधित म बरहम क

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सकलप दवारा गधित (निकरयाशीलता) ह, तो बधिKमा� कहजा� वाल मा�व स नि�नतिषकरयता या नि�ठललप� की बातआशचय( म डाल� वाली ह।

कठोपनि�षद का यह कथ� अ+रशः सतय ह निक"यमः एव एष वणत त� लभयः" अथा(त परमातमाजिजसका वरण (चय�) करता ह, वही उसको परापत करपाता ह। निकनत परमातमा दवारा चयनि�त हो� की पातरतापरापत कर�ा हमारा �धितक कतत(वय ह। इसी कतत(वय पथका पाल� ही परषाथ( ह।

जब हम भौधितक सखो को पा� क लिलय कोलह कबल की तरह काम करत ह, तो आनतितमक लकषय को पा�क लिलय अप� शरीर, इनतिनदरयो, अनतःकरण, एव आतमाको निपरयतम परबरहम को पा� की राह पर कयो �हीलगात?

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परमातमा क अधितरिर` अनय निकसी क सहार हाथपर हाथ *र बठ रह�ा तनिषट ह। यह चार परकार की होतीह-

१. परकधित तनिषट - आतमा को परकधित स अलगजा�त हए भी इस भरोस पर आतम-सा+ातकार क लिलयधया�-समाधि* का अभयास �ही कर�ा निक परकधित परषक भोग-अपवग( क लिलय सवय परवतत हो रही ह। इसलिलयभोग क समा� अपवग( (मो+) भी अप� आप ही परापत होजायगा। यह परकधित तनिषट ह। यह भरोसा इसलिलय झठा हनिक परकधित परष की इचछा क अ*ी� चल रही ह। जबवह सवय सनतषट होकर मो+ क सा*� स अलग हो रहाह, तो परकधित उसक लिलय कया कर सकती ह?

२. उपादा� तनिषट- इस भरोस पर निक सनयास गरहणकर ल� मातर स अपवग( (मो+) सवय निमल जायगा,

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उसक लिलय उपाय � कर�ा, उपादा� तनिषट ह। इस परकारकी *ारणा निमथया ह, कयोनिक सनयास तो मातर आशरमका एक धिचनह ह। सनयास लकर भी बरहम-सा+ातकारकर� क लिलय *ारणा-धया�-समाधि* का अभयास तोसबको अनि�वाय( रप स कर�ा ही पडगा।

३. काल तनिषट- इस अन*निवशवास पर सा*�ा �कर�ा निक समय पाकर मनि` सवतः ही परापत हो जायगी ,काल तनिषट कहलाती ह। काल (समय) का भरोसा कर�ाझठा ह, कयोनिक यह सभी काय� म समा� रप ससहभागी ह। उननधित क साथ अव�धित (पत�) स भीकाल का समा� समबन* ह। अतः आधयानतितमक उननधितक लिलय परषाथ( कर�ा अनि�वाय( ह।

४. भागय तनिषट- इस भरोस पर सा*�ा � कर�ा निकयनिद भागय म होगा तो सवय ततवजञा� परापत होकर मनि`

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हो जायगी। इस लकषय तक पहच� क लिलय यत� � कर�ाभागय तनिषट कहलाती ह। इस परकार का निवशवास कर�ापण(तया झठा ह, कयोनिक भागय भी परषाथ( स ही ब�ाहोता ह।

नि�ःसनदह नि�नतिषकरयता की चादर ओढ रह�ाआलसय एव परमाद क कारण ह, जो तमोगण की द� ह।अधयातम क सj पणिथक को रज और तम क माग( कापरिरतयाग कर सानतिततवक भावो म परम , निवरह, और धया�की राह का अवलमब कर�ा चानिहए। शरी महामधित जी कशबदो म-

पह� पाखर गज घट बजाए चल, पठ सकोड सई �ाक समाए।

डार आकार सभार जिज� ओसर, दौड चढ पहाड जिसर झाप खाए।।

कलस निह. ३/६

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ह मरी आतमा! जिजस परकार हाथी क ऊपर लोह काजाल�मा सर+ा कवच (पाखर) पह�ाया गया होता ह,जिजसस वह तीर, तलवार आनिद अ -श ो स सरधि+तरहता ह, उसी परकार त भी *�ी की महर या कपा रपीचादर को ओढ ल। त इ*र-उ*र की बातो को � स�।सई क छोट स णिछदर म *ागा डाल� की तरह तअनतम(खी होकर अप� *ाम-हदय म निवराजमा�निपरयतम को नि�हार। त अप� शरीर की धिचनता � करऔर निवरह क पव(त की चोटी पर चढकर निपरयतम क परमम छलाग लगा द।

इनही भावो स निमलता-जलता कथ� और भी ह-

महामधित कह पीछ � दलिखए, �ही निकसी की परवाह।

एक *ाम निहरद म लयक, उडाए द अरवाह।।

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निकरत� ८७/१३

कवल जञा� को कह� एव निपरयतम की मनिहमा गा�स जीव� का परम लकषय परापत �ही होता। इस समबन* मआतमा को साव*ा� करत हए शरी महामधित जी कहत ह-

र रह कर �ा कछ अप�ी, क त उरझी उममत माह।

उमर गई ग� जिसफत म, तोह अज इसक आया �ाह।।

लिखलवत १०/१

मरी आतमा! त कब तक जाग�ी काय( म उलझीरहगी? अप� आनतितमक आ�नद क लिलय तो त कछ तोकर (धया� कर)। *�ी की मनिहमा को मख स कहत-कहत इत�ी उमर बीत गयी ह, निफर भी तझ अभी तकपरम का रस �ही निमला।

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सता होए सो जानिगयो, जागया सो बठा होए।

बठा ठाडा होइयो, ठाढा पाउ भर आग सोए।।

निकरत� ८६/१८

जो अब तक अजञा� की नि�दरा म सो रह थ, व जञा�दवारा जागरत हो जाय। जञा� स जग हए ईमा� (अटटनिवशवास) लकर बठ जाय। बठ हए निवरह का रस लकरखड हो जाय, तथा खड हए परम लकर *�ी को पा� कलिलय दौड लगाय।

यो तयारी कीजिजयो, आग कर�ी ह दौड।

सब अगो इसक लय क, नि�कसो बरहमाड फोड।।

निकरत� ८६/१९

ह मरी आतमा! तझ भागय क भरोस बठ �ही रह�ाह, बनतिलक *�ी को पा� क माग( पर तज दौड लगा�ी ह।

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नि�ठललाप� एक अ+मय अपरा* ह। त अप� निदल म *�ीका परम लकर इस बरहमाणड स पर अप�ी दनिषट को ल चलतथा बहद को पार कर नि�ज*ाम म अप� पराणवललभ कादीदार कर।

।। इसक साथ ही यह चतथ( तरग पण( हई ।।

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पचम तरग

धिचतव� (धिचतवनि�) की निवधि*

ससार म धया� की अलग-अलग पKधितया ह, जोसमय-समय अ�क म�ीनिषयो दवारा निवकजिसत की गयी ह,निकनत परम सतय तो सव(दा एक ही होता ह।

"दशबन*ः धिचततसय �ाम *ारण" (योग दश(�) ककथ�ा�सार धिचतत को कही पर बा*� का �ाम *ारणाह। जब धिचतत साढ चार (४ः३०) घणट तक लगातारब*ा रह, तो वह *ारणा ह, ५ः३० घणट तक ब* रह�पर धया� ह, तथा ६ः३०-७ः०० घणट तक कवललकषय का ही भाजिसत रह�ा समाधि* ह, धिचतवनि� ह।

जसा निक पव( म सपषट निकया जा चका ह निकआनतितमक दनिषट स दख�ा ही धिचतवनि� ह। इसम म� ,

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धिचतत, और बधिK की कोई परनिकरया �ही होती।

निकनत इस शनय समाधि* �ही मा� ल�ी चानिहए।बनतिलक धिचतवनि� म परम दवारा म�, धिचतत, बधिK नि�नतिषकरय होजात ह, तथा आतमा अप�ी अनतद(निषट स समपण(परम*ाम तथा परबरहम क यगल सवरप का सा+ातकारकरती ह।

*ारणा का दाश(नि�क आ*ार- तारतम जञा� कअवतरिरत हो� स पहल दीपक की जयोधित, जयोधितरविबनद,जयोरतितमय ऊकार, शवास, या निकसी धिचतर या मरतित को*ारणा का आ*ार लिलया जाता रहा ह, निकनत इ�मऊकार को छोडकर सभी जड पदाथ( ह। जड पदाथ( कधया� स चत� बरहम का सा+ातकार हो पा�ा समभव �हीह।

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जब रई आनिद हलक पदाथ� म सयम (*ारणा,धया�, और समाधि*) कर� स सा*क भी हलका होकरआकाशगम� कर सकता ह, चनदरमा म सयम कर� सतारामणडल का सा+ातकार होता ह, तथा हाथी आनिद मसयम कर� पर हाथी आनिद का बल सा*क म आ जाताह, तो जड मरतित, धिचतर, जयोधित, या शवास म सयम कर�पर सधिjदा�नद परबरहम का सा+ातकार कस हो सकताह?

यनिद यह सशय निकया जाय निक रामकषण परमहसतो काली जी की मरतित का धया� करत-करत नि�बµजसमाधि* तक पहच गय, तो जयोधित का धया� करक बरहमका सा+ातकार कयो �ही निकया जा सकता?

इसका समा*ा� इस परकार ह-

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काली मनतिनदर का पजारी हो� क कारण शरीरामकषण जी काली जी क भावो म खोय रहत थ ,इसलिलय सकलप-निवकलप का अभाव � हो� क कारण वसमाधि* अवसथा को परापत �ही हो पा रह थ। इस समसयाक समा*ा� क लिलय उ�क गर तोतापरी जी � उ�कमाथ (नितरकटी) म शीशा *सा निदया और वही पर म� कोएकागर कर� क लिलय कहा।

इस परकार नितरकटी म म� को एकागर करत -करतसानतितवकता क परबल परवाह म शरी रामकषण जीसमाधि*सथ हो गय और अप�ी नि�रविवकारिरता, समप(ण,तथा भनि` क परबल भावो दवारा उनहो� असमपरजञातसमाधि* को परापत कर लिलया। जड मरतित की *ारणा एवधया� स असमपरजञात समाधि* की परानिपत �ही हो सकती।

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नि�जा�नद योग म *ारणा का आ*ार- *ारणा सपहल "परतयाहार" अथा(त म� एव इनतिनदरयो को अनतम(खीकर� की परनिकरया अप�ायी जाती ह। इसक लिलय एकपनिवतर आस� (कमबल, कश, कोमल चददर आनिद) परबठकर पदमास�, सखास�, सरलास�, या समतवास�की मदरा म तारतम का मौ� जप निकया जाता ह। इसकसाथ ही साथ परबरहम का सा+ातकार कर� वाल निकसीबरहममनि� की आकधित का भी धिचनत� निकया जाता ह।

जप करत समय यह धया� रखा जाता ह निक जीभतथा होठ निहल �ही, बनतिलक शबदो का परवाह सी* हदयस पकार क रप म आय।

परबरहम सभी आतमाओ क आ*ार ह, इसलिलय उनहपराण�ाथ कहा जाता ह। शरी महामधित जी � जबअ+रातीत परबरहम का सा+ातकार करक उनह अप�

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*ाम-हदय म बसा लिलया , तो महामधित जी को भीपराण�ाथ ही कहा गया, कयोनिक दो�ो (आतमा औरपरबरहम) का सवरप "बरहमनिवदो बरहमव भवधित" क आ*ारपर एक हो गया।

शरी पराण�ाथ जी दवारा अवतरिरत तारतम की छःचौपाइयो का भाव इस परकार ह-

+र, अ+र स पर आप वह अ�ानिद अ+रातीत ह,जो नि�राकार क पर बहद और अ+र *ाम स भी पर ह।आपकी आहलानिद�ी शनि` शयामा जी ह। ह निपरयतमअ+रातीत! आप मझ आतमा को अप� परम का अमतरस परदा� कीजिजए। उसका जञा� म अनय आतमाओ तकयनिद पहचा दती ह , तभी म बरहमातमा कहला� कीअधि*कारिरणी (हकदार) ह।

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निकसी परमहस बरहममनि� का धिचनत� योगदश(� ककथ� "वीतराग निवषय वा धिचततम" क अ�कल ह। इसपरकार तारतम क जप एव बरहमनि�षट परमहस की *ारणा सम� अनतम(खी हो जाता ह। इसक पशचात अ+रातीत कयगल सवरप एव परम*ाम की *ारणा की जाती ह।

यगल सवरप की *ारणा- पतञजलिल क योग दश(� मसमपरजञात समाधि* दवारा परकधित क सकषम रप "अनतिसमता"का सा+ातकार होता ह।

निवतक( निवचारा�नदानतिसमतारपा�गमात समपरजातः।

योग दश(� १/१७

इस अनतिसमता स पर सकषम परकधित ह , जिजसकाअ�भव असमपरजञात समाधि* म होता ह और सव( वलिततयोका नि�रो* होकर अप� आतम-सवरप म नतिसथधित होती

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ह। समपरजञात समाधि* तक पहच� क लिलय *ारणा मअ�क रपो (दीपक की जयोधित, सय(, शबद, शवासआनिद) का आ*ार लिलया जाता ह, जो नितरगणातमकपरकधित क ही काय( रप ह। असमपरजञात समाधि* नि�रालमब(निब�ा निकसी का आ*ार लिलय) होती ह। निवपशय�ा म भीइस लकषय तक पहच� क लिलय शवास को *ारणा काआ*ार ब�ाया जाता ह और सवद�ाओ को दरषटा होकरदख� का अभयास करत-करत योग दश(� म कणिथत"वशीकार सजञा" की अवसथा परापत की जाती ह।

परायः सभी अधयातमवादी इस बात पर सहमत हनिक आतमा और परमातमा का सवरप नितरगणातीत हो� सपरकधित क सय( , चनदरमा, अनि�, निवदयत आनिद की जयोधितस सव(था णिभनन निवशK जयोधितम(यी ह , निकनत शबदातीतह।

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

नि�जा�नद योग की मखय निवशषता यही ह निक इसमपरकधित क निकसी भी पदाथ( को आ*ार मा�कर *ारणा�ही की जाती। हठयोग एव राजयोग आनिद म जहा सयमदवारा करमशः, पञचभतो, सकषमभतो (शबद, सपश(, रप,रस, गन*), म�, बधिK, अहकार, तथा परकधित कासा+ातकार निकया जाता ह, वही नि�जा�नद योग म परारमभम ही इ�को छोड निदया जाता ह तथा आनतितमक सकलपस अप�ी आनतितमक दनिषट को अषट*ा परकधित (पथवी, जल,अनि�, वाय, आकाश, म�, बधिK, अहकार) स पर लजाकर बहद मणडल म परवश करत ह।

ततपशचात उस भी पार कर परम*ाम म निवराजमा�अ+रातीत परबरहम क उस यगल सवरप को *ारणा मपरय करत ह, जिजसक रोम-रोम म असखय सय� कातज ह और असखय चनदरमा जसी चतनयमयी शीतलता

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

ह, जिजसक अग-अग म सौनदय( का सागर लहरा रहा ह।निवरह-परम क भावो की गहराई म यही *ारणा , धया�,और समाधि* क रप म परिरवरतितत हो जाती ह , जिजसमपरबरहम का यगल सवरप सपषट रप स दनिषटगोचर हो�लगता ह।

यहा यह सशय होता ह निक जब परबरहम कनितरगणातीत सवरप का वण(� निकसी भी गरनथ म �ही ह ,तो उ�क �रमयी (परकाशमयी) निकशोर सवरप काआ*ार लकर *ारणा कर�ा कया कलप�ा �ही ह? कहीऐसा तो �ही ह निक शK अवसथा म धिचतत ही उसी रप मभाजिसत हो� लगता ह?

इसका सधि+पत उततर इस परकार ह-

जब शरी महामधित जी क अनदर परबरहम का आवश

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

सवरप निवराजमा� हआ, तो उस सवरप दवारा ही परबरहमकी अलौनिकक शोभा का वण(� समभव हो सका, अनयथानितरगणातीत सवरप का वण(� इस ससार म मा�वीय बधिKस हो पा�ा समभव �ही ह। महामधित जी की आतमा �परबरहम की यगल शोभा को जिजस रप म दखा , वहतारतम वाणी क सागर व शरगार गरनथ म वरथिणत ह।*ारणा क रप म उसका आ*ार ल�ा कोई कलप�ा�ही, बनतिलक वासतनिवकता ह।

धिचतत की उतपलितत समनिषट धिचतत मणडल स हई ह, जोमहत (सतव, रजस, तमस) स परकट हआ ह। अप� मलरप म धिचतत एक जड पदाथ( ह , कयोनिक वह परकधित काकाय( रप ह , निकनत जीव की चतनयता स उसम भीचतनयता ब�ी रहती ह। जब परकधित क निकसी जड पदाथ((परकाश, दीपक की लौ, जयोधितरविबनद आनिद) को *ारणा

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

क रप म परय निकया जाता ह, तो धिचतत का उसी रपम भाजिसत हो�ा सवाभानिवक ह , निकनत सवलीला अदवतसधिjदा�नद परबरहम क रप म धिचतत ही भाजिसत हो� लग,यह कदानिप समभव �ही ह। इत�ा अवशय होता ह निकनि�म(ल धिचतत रपी दप(ण म निपरयतम परबरहम की छनिवशोभायमा� हो� लगती ह। इस तारतम वाणी क इससनदभ( स समझा जा सकता ह-

ताथ निहरद आतम क लीजिजए, बीच साथ सरप जगल।

सरत � दीज टट�, फर फर जाइए बल बल।।

सागर ११/४६

अनतसकर� आतम क, जब ए रहयो समाए।

तब आतम परआतम क, रह � कछ अनतराए।।

सागर ११/४४

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

जिजस परकार जल को निगलास, लोटा, थाली आनिदजिजस भी बत(� म डाला जाता ह, वह भी वसी आकधितको *ारण कर लता ह। उसी परकार धिचतत म जिजसको भीबसाया जाता ह, उसका परधितनिबमब धिचतत म झलक�लगता ह और ऐसी नतिसथधित आ जाती ह जब कवल धययकी ही परतीधित हो� लगती ह और धिचतत अप� सवरप सशनय की तरह हो जाता ह। इस अवसथा को समाधि*कहत ह। धिचतत का तदाकार हो�ा भी इसी ला+णिणकभाव म कहा जाता ह।

वसततः जड (धिचतत) कभी भी नितरगणातीतसधिjदा�नदघ� अ+रातीत का रप �ही ल सकता ,निकनत समाधि* की उस गह� अवसथा म सब कछ लौहअनि�वत सा*मय(ता को परापत हो जाता ह।

धिचतवनि� की परनिकरया म कवल आनतितमक दनिषट ही

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

परम*ाम पहचती ह तथा अ+रातीत की शोभा कारसपा� करती ह। उसस परापत हो� वाल अ�भव (दश(�एव जञा�) क सख को जीव परापत करता ह, जो बाद मअनतःकरण को अ�भत होता ह। यह धया� रख� योगयतथय ह निक म�, धिचतत, बधिK, तथा अहकार का समjय(मल) ही अनतःकरण कहलाता ह।

जो सख परआतम को, सो आतम �ा पोहोचत।

जो अ�भव होत ह आतम, सो �ाही जीव को इत।।

जो कछ सख जीव को, सो ब* �ा अतसकर�।

सख अतसकर� इनतिनदरय� को, उतर पोहोचाव म�।।

निकरत� ७३/७,८

धिचतवनि� म जोश तथा आवश की भनिमका

यह सव(निवनिदत ह निक परबरहम क जोश दवारा ही अखणडपरकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठपरकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठ, , सरसावा सरसावा 291291 / 414/ 414

नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

बहद मणडल का सा+ातकार एव जञा� हो�ा समभव ह।कतब परमपरा म जोश को ही जिजबरील कहत ह। इसीजोश दवारा योगशवर शरी कषण जी � गीता का अलौनिककजञा� निदया, शकदव जी � परीधि+त को महारास का वण(�स�ा� का परयास निकया, कबीर जी � बीजक क पदोऔर सालिखयो को कहा , तो णिशव जी � उमा कोअमरकथा स�ायी। महममद साहब � भी जिजबरील दवाराही करआ� को उतारा।

अप� तयाग, तप, एव परषाथ( स योग-सा*�ादवारा महाशनय की कवलयावसथा तो परापत की जा सकतीह, निकनत निब�ा जोश क कोई भी बहद मणडल म परवश�ही कर सकता। यह बात परजिसK ह निक जब शकदव जी� राजा परीधि+त को महारास का वण(� स�ा�ा परारमभनिकया, तो म�ा कर� क पशचात भी सशयबधिK परीधि+त �

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परशन कर निदया, जिजसक परिरणाम सवरप शकदव जोश सरनिहत हो गय और रास लीला का यथाथ( वण(� �ही स�ासक।

इसी परकार, परबरहम क आवश क निब�ा कोई भीपरम*ाम को �ही दख सकता , चाह कोई निकत�ा हीबडा योगी, तपसवी, एव बरहमचारी कयो � हो।

यह निवशष रप स समरण रख� योगय तथय ह निकपरबरहम का जोश ईशवरीय सनिषट (णिशव, स�कानिद, कबीर,निवषण भगवा�, शकदव जी) पर ही आया, कभी भी जीवसनिषट पर �ही। निकनत आवश मातर बरहमसनिषटयो एव अ+रबरहम पर ही आ सकता ह, ईशवरीय सनिषट पर �ही।

बरहमसनिषटयो पर जोश एव आवश दो�ो की लीलाहोती ह और व ही नि�राकार-बहद को पार कर परम*ाम

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

का सा+ातकार करती ह, जबनिक जीव सनिषट क बड-बडयोगशवर महाशनय की कवलय अवसथा को ही परापत करकसनतषट हो जात ह। आग निब�ा जोश क जा पा�ा उ�कलिलय समभव �ही हो पाता।

जोश तथा आवश को परापत कर� का सा*�

निपरयतम अ+रातीत क जोश एव आवश को परापतकर� क लिलय धिचतवनि� क अधितरिर` अनय कोई भी माग(�ही ह। धयाता (धया� कर� वाल) म धयय (जिजसकाधया� निकया जाय) क गण आ�ा सवाभानिवक ह। जस-जस परबरहम क सवरप की *ारणा की जाती ह, वस-वसनिवरह-परम की अनि� म निवकार जल� लगत ह। निवरह -परम की परिरपकव अवसथा म जोश आता ह, जिजसस सरतानि�राकार मणडल को पार कर बहद मणडल म परवशकरती ह तथा अवयाकत, धिचदा�नद लहरी, अखणड वरज

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तथा रास, सबलिलक, कवल, एव सतसवरप की शोभाका रसासवाद� कर� लगती ह। "लयाओ पयार करोदीदार" तथा "मासक हसक तब निमल, जब हक निदयाइसक" आनिद का कथ� इसी परसग म ह।

आवश दो परकार का होता ह- परम का आवश औरनि�ज सवरप (अ+रातीत) का आवश। परम क आवश कनिब�ा अ+रातीत का दश(� �ही हो सकता। दश(� कपशचात मारिरफत (परम सतय, निवजञा�) की अवसथा आ�पर ही शरी राज जी का आवश परापत हो सकता ह। इसआवश � शरी कषण जी म ११ वष( ५२ निद� तक , शरीदवचनदर जी म निव .स. १६७८-१७१२ तक, शरीमहामधित जी म निव .स. १७१२-१७५१ तक, महाराजाछतरसाल जी म निव .स. १७५१-१७५८ तक लीलानिकया।

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

यगल सवरप की *ारणा कस कर

परम*ाम की धिचतवनि� म यगल सवरप की *ारणाक कछ परमख निबनद इस परकार ह-

➢तारतम क मौ� जप क साथ-साथ अप� परमहससवरप सदगर या निकसी बरहममनि� की *ारणा कर।यह भाव�ा कर निक अ+रातीत परबरहम (शरी राजजी) का जोश सदगर क सवरप म आपक आस� कसाम� आकर निवराजमा� हो गया ह।

➢ जिजस आस� (कमबल आनिद) पर बठकर आपधया� करत ह, उस पर अनय कोई भी काय( �हीकर सकत। पराणायाम, वाणी का पाठ आनिद अनयआस�ो पर ही बठकर कर। अनय निकसी भी वयनि`को अप� धया� वाल आस� (कमबल) पर �

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

बठाय।

➢अप� धया�ास� (कोमल कमबल) क ऊपर एकपतला सती कपडा निबछाय। आ* पर सवय बठतथा आ*ा सदगर सवरप जोश क लिलय छोड द।

➢जप करत हए ऐसी भाव�ा कर निक सदगर महाराजका सवरप साम� आकर आस� पर निवराजमा� होगया ह। ऐसी अवसथा म अप� आनतितमक सवरप सनिब�ा शरीर को निहलाय-डलाय म� ही म� परणामकर।

➢ अप� इस पञचभौधितक शरीर को पण(तया भला दऔर अप�ी परातम क त� क रप म सदगर कसाथ-साथ इस बरहमाणड स पर की ओर चल।

➢ आतमा परातम का परधितनिबनतिमबत रप ह और परातम

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

परबरहम की आहलानिद�ी शनि` शयामा सवरपा ह।सवय को उसी रप म मा�कर इस शरीर औरससार को पण(तया भल जाइए।

जो मल सरप ह अप�, जाको कनिहए परआतम।

सो परआतम लय क, निवलजिसए सग खसम।।

सागर ७/४१

➢ यह भाव�ा कीजिजए निक परातम क रप म मरीआनतितमक दनिषट अषटावरण (पञचभत + म� + बधिK+ अहकार) य इस चौदह लोक क बरहमाणड सपर दख रही ह। आग सात शनय, महाशनय का घ�ाअन*कार निदखायी द रहा ह, जिजसम जयोधितम(यीमहानिवषण (आनिद�ारायण, ॐ, जयोधितसवरप,निहरणयगभ(, शषशायी) निदखायी पड रह ह।

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

➢ सदगर महाराज क साथ मरी आनतितमक दनिषट महाशनयको पार करक अ�नत जयोधित वाल बहद मणडल कअवयाकत (म� सवरप) म परवश कर रही ह ,जिजसम सव(परथम परणव (ॐ) का अ�भव हो रहाह। आग समगला परष को दखती हई सबलिलक बरहमम (अखणड वरज एव रास) को दख रही ह। आगकवल बरहम और सतसवरप को दखती हई परम*ामम परवश कर रही ह।

➢ अब ऐसा लग� लगा ह निक सदगर महाराज कासवरप (जोश) अचा�क ही अदशय हो गया ह तथामर रोम-रोम म कवल परम ही परम का आवश भराहआ ह। मर साम� सव(रस (कपा का) सागर कालहराता हआ दशय निदखायी द रहा ह। चारो ओरनिदवय, चत�, परम, और आ�नद स भरा हआ

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

अ�नत �र (परकाश) लीला रप असखय पदाथ� करप म जिझलनिमलात हए निदखायी पड रहा ह।

➢ मर साम� एक अधित सनदर �रमयी पल निदखायी दरहा ह, जिजसस होती हई मरी दनिषट बायी हाथमडकर एक सनदर घाट (पाट) पर पहचती ह। मरसाम� द* स भी कोनिट ग�ा उजजवल �री(परकाशमयी) जल की अधित म�ोहर �दी (यम�ाजी) निदखायी पड रही ह, जिजसम अप�ी परातम कसवरप म मरी आनतितमक दनिषट स�ा� कर रही ह। मझऐसा अ�भव हो रहा ह निक मर रोम-रोम म परम,सौनदय(, और समप(ण का सागर करीडा कर रहा ह।

➢ अब मरी दनिषट पधिशचम निदशा की ओर पड रही ह। मरदाय-बाय अ�नत आभा वाल व+ो क व� निदखायीपड रह ह, जिज�क एक-एक पतत म ऐसा परतीत

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

होता ह जस करोडो सय( उग आय ह। साम� एकसनदर मदा� सा निदख रहा ह, जिजसक एक-एककण म करोडो सय� का परकाश जगमगा रहा ह।

➢ साम� बढ� पर वह निदवय बरहमपर *ाम (रगमहल)जगमगात हए दनिषटगोचर हो रहा ह, जिजसम एक गोलचबतर क ऊपर अरबो सय� क परकाश को ललिजजतकर� वाला कञच� रग का सिसहास� ह, जिजसकऊपर परबरहम का अधित सनदर निकशोर सवरपनिवराजमा� ह।

➢ अब मरी आनतितमक दनिषट परबरहम क यगल सवरप कोनि�हार रही ह। अग-अग म कानतिनत का अ�नतसागर लहरा रहा ह। दो�ो गाल अप�ी अ�नत �रीशोभा स सशोणिभत हो रह ह। कमल की कोमलतास भी करोडो ग�ा कोमल उ�क चरण कमलो ,

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

�तरो, होठो, का�ो, और गल की सनदरता कोदख-दखकर मरी अनतद(निषट उसम ऐस डबी जा रहीह, जस कोई मछली अ�नत सागर म निकत�ा भीतर� का परयास कर निकनत उसका ओर-छोर �पाय।

➢सव(परथम मरी आनतितमक दनिषट � यगल सवरप कचरण कमल को दखा और उ�क सौनदय( सागर मअप� अनतिसततव को भल गयी। *ीर-*ीर वहमखारनिवनद की ओर मडी तथा एक-एक �री अग,व , और आभषण म खोती गयी। एक-एक रोमतथा एक-एक कण म ऐसा लगा जस सधिjदा�नदअ+रातीत क अधितरिर` और कछ ह ही �ही।

➢ मझ ऐसा लगा ह निक म अप� पराणशवर अ+रातीतयगल सवरप क सम+ ही बठी हई ह। मर समा�

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

ही अ�नत आतमाय यहा निवराजमा� ह। सभी कीदनिषट परबरहम की ओर ह। सभी का सवरप तथा निदलआनिद एक समा� ह।

➢ इस परकार अ�नत आ�नद म म�ोवाणिछत निवहारकर� क पशचात मरी आनतितमक दनिषट परम*ाम सवापस बहद मणडल म आ जाती ह, जहा उस सदगरमहाराज का सवरप (जोश सवरप) निदखायी दताह। उ�क साथ वह रास, वरज, समगला परष, एवपरणव (ॐ) को दखती हई कालमाया म परवशकरती ह, जहा मोह सागर, सात शनय स होती हईपथवी पर अप� मल त� म वापस आ जाती ह।

निवशष- यगल सवरप की शोभा सावयव (अ�कअगो स य ) ह, इसलिलय उसम धया�-समाधि* लगा�ापरायः कनिठ� ह, कयोनिक म� म अ�क परकार क अगो क

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

कारण धया� की नतिसथधित �ही ब� सकती। साखय६/२५ म कहा गया ह निक "धया� नि�रविवषय म�" अथा(तम� का धयय क अधितरिर` अनय सभी निवषयो स रनिहत होजा�ा ही धया� ह।

ततर परतययकता�ता धया�म।। योग दश(� ३/२

*ारणा म धिचतत जिजस वलितत मातर स धयय म लगताह, उस वलितत का समा� परवाह स लगातार इस परकार ब�रह�ा निक कोई और वलितत � आय, धया� कहलाता ह।

साखय तथा योग क इ� कथ�ो स सपषट ह निकनि�रवयव म धया� उधिचत रप स सरलतापव(क हो सकताह, अप+ाकत सावयव क।

निकनत, इसका समा*ा� इस परकार ह-

जिजस परकार निकसी सगणक (कमपयटर) क माउस

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

का नि�शा�, जो एक तीर की तरह होता ह, सकत मातरस पद~ पर जहा चाह घमता ह या नतिसथर रहता ह, उसीपरकार अप�ी आनतितमक दनिषट को शरी राज जी (परबरहम) कयगल सवरप क निकसी भी अग (चरण, मखारनिवनदइतयानिद) म सरसो स भी सकषम कोई निबनद ल और उसीपर अप�ी दनिषट को कनतिनदरत कर। कछ दर क पशचात अगनिवशष की शोभा दख और धया� कही और भटक इसकपहल ही सकषम निबनद पर कनतिनदरत कर द।

इस परनिकरया का अभयास करत-करत एक समयऐसा भी आयगा, जब परबरहम की शोभा अवयवही�परतीत होगी तथा धया�-समाधि* की गह� अवसथा परापतहो जायगी। निकनत इसक लिलय सतत परयास, निवरह, परम,शरKा, समप(ण, अलपाहार, एव सतोगण की अधि*कताका हो�ा अनि�वाय( ह। धिचतवनि� की इस परनिकरया को

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

तारतम वाणी क इ� शबदो स समायोजिजत कर।

चारो जोड चर� क, ए जो अस( भख�।

ए लिलए निहरद निम�, आवत सरप पर�।।

सागर १०/६६

एक रस होइए इसक सो, चल परम रस पर।

फर फर पयाल लत ह, सयाम सयामा जी हजर।।

निपउ �तरो �तर निमलाइए, जयो उपज आ�नद अधित घ�।

तो परम रसाय� पीजिजए, जो आतम थ उतप�।।

आतम अनतसकर� निवचारिरय, अप� अ�भव का जो सख।

बढत बढत परम आवही, परआतम स�मख।।

इतथ �जर � फरिरए, पलक � दीज ��।

�ीक सरप जो नि�रलिखए, जो आतम होए सख च�।।

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

तब परम जो उपज, रस परआतम पोहोचाए।

तब �� की स� कछ होवही, अनतर आखा खल जाए।।

सागर ११/२९,४०-४३

ए महर कर चर� जिज� ऊपर, दत निहरद पर� सरप।

जगल सरप धिचतत चभत, सख सनदर रप अ�प।।

जिस�गार २१/२२७

इस परकार धिचतवनि� की यह निवणिशषट परनिकरयासाकार-नि�राकार की सभी धया� पKधितयो स कछणिभननता लिलए हए ह, निकनत नितरगणातीत परम*ाम एवपरबरहम क सा+ातकार क लिलय इसक अधितरिर` अनयकोई माग( भी �ही ह। आवशयकता ह , सामपरदाधियकमतभदो एव सकीण(ताओ को छोडकर अप�ी अनतरातमाकी पकार स�� की। यनिद हम अप� अनतस की आवाज

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

को स�कर अटट शरKा-निवशवास, निवरह, समप(ण, तथापरम दवारा धिचतवनि� क प�ीत माग( पर चल , तो निपरयतमपरबरहम का सा+ातकार इस �शवर जगत म कर� म हमअवशय सफल हो जायग, इसम कोई भी सशय �ही ह।

।। यह पचम तरग पण( हई ।।

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

षषठ तरग

परशन-मजषा

यदयनिप धया� -सा*�ा का माग( शरKा , समप(ण,अ�शास�, और परषाथ( का ह, निकनत लकषय की परानिपतक लिलय यथाथ( जञा� का हो�ा आवशयक ह , अनयथाभटकाव की खाई म निगर� का भय ब�ा ही रहता ह।

परायः यह दखा जाता ह निक उधिचत माग(दश(� कअभाव म धया� पथ क राही वासतनिवक माग( स कभी-कभी निवचलिलत भी हो जात ह, परिरणाम सवरप लमबी-लमबी सा*�ाय भी उनह लकषय तक �ही पहचा पाती ह।इसक समा*ा� क लिलय परशनो की यह पनिटका (सनदक,मञजषा) परसतत की जा रही ह। शरी राज जी की कपा कीछतरछाया म उ�का सधि+पत उततर नि�म�लिललिखत ह-

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

१. परशन- परातःकाल ३ स ६ बज तक धिचतवनि�कर� म और शष समय धिचतवनि� कर� म कया अनतरह? बरहम महत( म धिचतवनि� कर� का कया महतव ह?

उततर- परातःकाल ३ स ६ का समय बराहम-महत(कहलाता ह, जिजसका आशय ही होता ह- बरहम कधया�-धिचनत� का समय। इस समय समपण( वातावरण मसानतिततवकता एव शानतिनत का सामराजय फला होता ह। शKहवा बह रही होती ह, जिजसम आकसीज� तथा चनदरमाकी निकरणो स नि�कल� वाल औष*ीय गणो की पर*ा�ताहोती ह। शरीर म भी परायः सषम�ा �ाडी परवानिहत हो रहीहोती ह, जो सतोगण का दयोतक होती ह।

रानितर म �ीद परी हो� स निद�-भर क परिरशरम कीथका� निमट गयी होती ह। अतः यह नतिसथधित धया� कीदनिषट स सव�ततम मा�ी गयी ह।

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

जिजस समय शरीर म इडा एव किपगला �ाडी चल रहीहोती ह, उस समय रजोगण की पर*ा�ता हो� स म�चचल होता ह तथा धया� निवधि*वत �ही हो पाता। ऐसीअवसथा म ऊच सतर क सा*क पीठ क बल शवास�की मदरा म कछ दर (लगभग ५-१० निम�ट) क लिलयलटकर जस ही बरहम-धिचनत� करत ह, वस ही सषम�ापरवानिहत हो� लगती ह और धया� क लिलय उपयभनिमका तयार हो जाती ह। इस अवसथा म सतोगण सय होकर कभी भी धया� निकया जा सकता ह।

यह धया� रख�ा चानिहए निक बायी करवट लट जा�पर दाया सवर चल� लगता ह, जो किपगला अथा(त सय(�ाडी क चल� का सकल दता ह। दायी ओर लट� परबाया सवर चल� लगता ह, जो इडा अथा(त चनदर �ाडीक चल� का सकत दता ह।

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

२. परशन- धिचतवनि� क परारनतिमभक अभयास म म� कसकलप-निवकलप और वाणी क जञा� दवारा ही धिचतवनि�कर�ी चानिहए या कोई और भी निवकलप ह?

उततर- तारतम जञा� क आ*ार पर पथवी सपरम*ाम तक की अ�भधित क लिलय एक मा�धिचतर सातयार हो जाता ह। उस जञा� को अप� हदय म *ारणकर शरKा, समप(ण, निवरह, और परम का पट दकर सवयको धिचतवनि� म डबा�ा होता ह, तभी सा+ातकार हो पाताह। अनय सभी माग( जस गाय� , सवा (शारीरिरक,मा�जिसक, एव *� की) आनिद सहायक तो ब� सकत ह,निकनत अकल इ�क दवारा निपरयतम अ+रातीत कासा+ातकार �ही हो सकता। धिचतवनि� का कोई भीनिवकलप �ही ह।

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

३. परशन- तमोगण तथा रजोगण को वश म कर� कलिलय कया कर�ा चानिहए, तानिक म� और शरीर दो�ो कोसरलता स वश म निकया जा सक?

उततर- सव(परथम तो रजोगणी एव तमोगणी आहारका परिरतयाग कर�ा होगा, कयोनिक आहार क अ�सार हीनिवचार नि�*ा(रिरत होत ह। आहार का सथल भाग मलब�ता ह, सकषम भाग स रस, और सकषमतम भाग सनिवचार तनत ब�त ह। वसततः म�षय अप� निवचारो स हीअप� वयनि`तव का नि�मा(ण करता ह। छानदोगयोपनि�षद मकहा गया ह निक "आहार शKौ सतव शधिKः।" आहार कीशKता स ही बधिK की शKता होती ह। बधिK कअ*ी�सथ ही म� ह। ऐसी अवसथा म आहार कोसानतिततवक ब�ाय निब�ा म� को सानतिततवक �ही ब�ाया जासकता। कया मास और शराब का सव� करक

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

समाधि*सथ हआ जा सकता ह? कदानिप �ही। जो जिजत�ाबडा योगी, तपसवी, या परमहस होता ह, उसका आहारउत�ा अधि*क सानतितवक होता ह।

इसलिलय अधयानतितमक आ�नद की काम�ा कर�वाल को लहस�, पयाज, निमच(, चाय, कॉफी, अचार,गरम मसाल, बासी, जठ, दग(न*य खादय, एव �शीलपदाथ� का तयाग कर�ा ही होगा। सानतितवक भोज� भीअलप मातरा म कर�ा चानिहए तथा अधित नि�दरा , अधितजागरण को छोडकर आहार-निवहार क मधयम माग( दवारानि�यनिमत धया�-सा*�ा स अप� अनदर की रजोगणी एवतमोगणी परवलितत को समापत निकया जा सकता ह।

४. परशन- धिचतवनि� म जब परातम का ही भाव ल�ाह, तो सी* मल निमलावा स ही धिचतवनि� कयो �हीपरारमभ करत? पहल सदगर का धया� करक हद-बहद

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स पर सरता कयो ल जात ह?

उततर- हमारी आतमा जिजस मा�वीय त� काआ*ार लकर इस खल को दख रही ह, वह परातम कत� स सव(था णिभनन ह। यहा का त� बढापा, करपता,एव काम-करो*ानिद निवकारो को लिलय हए ह और मल -मतर, अनतिसथ, एव र` स भरा हआ ह। जब तक इसशरीर का भा� रहगा, तक तक � तो धया� की कोईकलप�ा की जा सकती ह और � ससार स पर होकरपरम*ाम म दनिषट कर� की।

इसक निवपरीत परातम का त� निपरयतम अ+रातीतका ही त� ह। वह हबह (जसा का तसा) आ�नदसवरपा शयामा जी जसा ह। उस नि�रविवकार, नितरगणातीत,तथा सौनदय( की राणिश सवरप परातम का भाव लत हीइस ससार स हमारा समबन* छट जाता ह, और हमारी

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आनतितमक दनिषट परम*ाम की ओर गम� कर� लगती ह।

इस खल म हमारी आतमा परम*ाम स परातम कीसरता क रप म ह, इसलिलय धिचतवनि� की परनिकरया म यह*ारणा तो ब�ा�ी ही पडगी निक म हद-बहद को छोडकरपरम*ाम म निवराजमा� यगल सवरप का सा+ातकार कररही ह। जिजस परकार यगल सवरप क दश(� क लिलयउ�क सवरप की *ारणा की जाती ह, उसी परकार इसससार स पर दनिषट कर� क लिलय इस छोड� का भावल�ा ही होगा, भल ही एक निम�ट या पल भर क लिलय हीकयो � हो।

इसलिलय धिचतवनि� क परारनतिमभक अभयासी को हद-बहद को उलघ� तथा सदगर क धया� का आ*ार ल�ाही पडगा। जो अधयातम की चरम (मारिरफत) अवसथातक पहच गय ह, उनह इसकी आवशयकता �ही पडती,

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कयोनिक उ�की दनिषट हमशा परम*ाम म ही निवचरण करतीरहती ह। उ�क समबन* म तारतम वाणी का कथ� ह-

लगी वाली और कछ � दख, निपणड बरहमाणड वाको ह री �ाही।

ओ खल परम पार निपयासो, दख� को त� सागर माही।।

निकरत� ९/४

५. परशन- सकषम का धया� यनिद मारिरफत की राह ह,तो इसस पहल हकीकत को पा� क लिलय कस धिचतवनि�कर�ी चानिहए, तानिक *�ी क सवरप को निदल म बसासक ?

उततर- इस �शवर जगत क निकसी भी सथल पदाथ(की *ारणा अखणड का सा+ातकार �ही करा सकती।इसलिलय परम*ाम की सकषम (नितरगणातीत) शोभा को हीनिदल म बसा�ा होगा। इस समबन* म तारतम वाणी म

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

कहा गया ह-

ए जो फरज मजाजी बनदगी, बीच �ासत हक स दर।

होए मासक बनदगी अस( म, कही बका हक हजर।।

शरगार २९/१८

हकीकत (सतय) का उतकषठ रप ही मारिरफत(परमसतय) ह। यगल सवरप, परातम, तथा परम*ामका सा+ातकार कर�ा हकीकत की अवसथा ह, जबनिकअ+रातीत क सौनदय(, परम, एव आ�नद म सवय कोभला द�ा मारिरफत ह। उस समय शरी राज जी कअधितरिर` और कछ भी अ�भव म �ही आयगा।

इस परकार, यह सपषट ह निक हकीकत एव मारिरफतदो�ो की राह एक ही (सकषम धया�) ह। सथल पजा इसससार स जडी ह, जो कम(काणड (शरीयत) की राह ह

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और शरगार २९/१८ क कथ�ा�सार कवल फज( नि�भा�वाली बनदगी मजाजी ह।

६. परशन- यनिद धिचतवनि� करत समय म� स माया कनिवचार �ही हटत तो कया कर�ा चानिहए?

उततर- धिचतत म जनम-जनमानतरो क अचछ एव बरससकार भर रहत ह। धया� क समय रजोगण एव तमोगणक परभाव स कछ समय क लिलय बर ससकार उभरत ह,जिज�क कारण म� म माया क निवचार आ� लगत ह। ऐसीअवसथा म *य(पव(क सा*�ा करत रह�ा चानिहए औरअप� आस� पर धया� म बठ रह�ा चानिहए। कछ समयक पशचात दरषटाभाव स इ� निवचारो क परधित कटसथताब�ाय रख� पर य सवतः ही समापत हो जायग। जस-जस निवरह-परम का रस बढगा और यगल सवरप कीशोभा बसती जायगी, वस-वस म� मायावी निवचारो स

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शनय होता जायगा।

७. परशन- जब धिचतवनि� म कभी-कभी शरी राज जीकी शोभा धया� म �ही आ पाती, उस समय आखो कसाम� जिसफ( अन*रा छाया रहता ह। ऐसी नतिसथधित म सवयको धिचतवनि� म कस डबाया जाए?

उततर- अनतःकरण (म�, धिचतत, बधिK, अहकार)क रजोगण एव तमोगण स गरजिसत रह� क कारण धया�क समय �ीद आती ह या अन*रा छाया रहता ह। इससमसया क समा*ा� क लिलय नि�म�लिललिखत उपाय कर�होग-

➢ "यथा रानितरः तथा निदवसः" क कथ� को हदयगमकर�ा होगा। हमारी मा�जिसकता जसी रात म होगी,निद� म भी वसी ही रहगी। रानितर म �ीद एव भोज�

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

का सनतिममलिलत तमोगण निमलकर अधि*क हो जाताह, इसलिलय रानितर को सो� स पहल का समय यनिदसा*�ामय �ही ब�ाया गया तो अधयातम क चरमलकषय को पा�ा कनिठ� हो जायगा। रानितर म सो� सपव( धया� अवशय कर, भल ही वह कछ ही (२५-३०) निम�ट का कयो � हो। यनिद समभव हो सक ,तो अप� समय की मया(दा�सार १ या २ घणटकर। धया� क पशचात ५-६ बार इ� वाकयो को म�ही म� दोहराय और सो जाय-

म पण(तया नि�रविवकार और परममयी ब� गया ह।

म धया� की गहराइयो म परवश कर रहा ह।

मरा निपरयतम मर *ाम-हदय म निवराजमा� हो

गया ह।

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इस परकार का शभ सकलप परातः काल क धया� कपशचात भी कर। *ीर-*ीर यह सकलप चरिरताथ( हो�ापरारमभ करगा।

➢रानितर को सोत समय का निकया हआ शभ सकलपहमार अनतस तक अवशय पहचता ह, कयोनिक �ीदम म�, धिचतत, बधिK आनिद समाधि* की तरह नि�नतिषकरयजस हो जात ह। अनतर कवल इत�ा ही होता ह निकसमाधि* म जागरकता होती ह , जबनिक कि�दरा मगह� तमोगण छाया रहता ह।

➢ भोज� करत समय कोई भी �कारातमक या घणा कनिवचार म� म � लाय। भोज� को सानतितवक तरीकस चबाय तथा कौर छोट -छोट रख। हाथो सभोज� का कौर (गरास) बहत ही कोमलता एवमा*य(तापव(क पकड। मास चबा� की तरह अप�

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

आहार को � चबाय।

➢ पा�ी का अधि*क परयोग कर, निकनत *ीर-*ीर।गटककर एक ही सास म निगलास खाली कर द�ाबहत बडी भल ह।

➢हमशा यह भाव�ा रख निक निपरयतम हमार *ाम -हदय म निवराजमा� ह और हमार हर काय( को दखरह ह। इस परवलितत स आप बर काय� स बच जायगऔर निद�-परधितनिद� सानतितवक होत जायग।

➢ सवय को शरीर � मा�कर हमशा आनतितमक दनिषट सदख। इसस आप निवषय-निवकारो स बच रहग।एकानत म कवल धया� या सवाधयाय ही कर।नि�ठलल बठकर बर निवचारो म सवय को � डाल। इ�नि�यमो का पाल� करक अतयधि*क सतोगणी ब�ा

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

जा सकता ह। उस समय धया� म अन*रा छा जा�की णिशकायत �ही होगी।

८. परशन- यनिद धिचतवनि� म शरी राज जी क एक अगस दसर अग पर धया� चला जाता ह, तो कया दसर अगकी शोभा म धया� लगा�ा चानिहए या पहल वाल अग परही धया� कनतिनदरत कर� का परयास कर�ा चानिहए?

उततर- परम की गह� अवसथा म तो आतमा की यहीनतिसथधित ब� जाती ह निक "एक अग दख� लगी, सोधिततही भई गलता�।" जिजस अप�ी स* ही �ही, वहएक अग स दसर अग म दनिषट कस करगी?

निकनत यनिद धिचतवनि� करत समय आनतितमक दनिषट एकअग स दसर अग म चली जाती ह , तो उस अवशयदख�ा चानिहए कयोनिक पण(बरहम क सभी अगो की सनदरता

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एव महतता समा� ह। वहदत (एकतव) क अनदर कही भीनय�ता या अधि*कता जस शबद �ही होत। वसततःजिसKानत यह ह निक आनतितमक दनिषट क साम� शरी राज जीकी कपा स जो भी अग (एक या अ�क) आय, उस परमस दखत हए उसम डब� का परयास कर�ा चानिहए।

९. परशन- धिचतवनि� म जब कभी सकषमता महससहोती ह, तो शरी राज जी क परधित कोई भी भाव �हीआता। उस समय कया कर� स परबरहम क परम म डबाजा सकता ह?

उततर- धया� का सकषम हो�ा धया� की गह�ता कादयोतक ह, निकनत इस परशन म सकषमता का भाव "निवचारशनयता" स ह, ऐसा परतीत होता ह। धया� म कभी-कभी ऐसा भी होता ह निक म� म कोई निवचार तो �हीआता, निकनत यगल सवरप की छनिव भी साम� �ही

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

आती। यह अवसथा तमोगण क परभाव स होती ह। इसअवसथा म निवचलिलत �ही हो�ा चानिहए, बनतिलक मौ�पव(कजिजहवा को निब�ा निहलाय "मर *�ी, मर निपरयतम" आनिदका जप कर�ा चानिहए। ऐसा कर� पर थोडी ही दर मतमोगण स उतपनन अन*कार का �ाश हो जायगा तथासतोगण क परकट होत ही जागरधित जसी अवसथा आयगी।निवरह-परम क रस म डबत ही निपरयतम का सवरपझलक� लगगा।

१०. परशन- धिचतवनि� म जब शरी राज जी क अगोको �ख स णिशख तक नि�हार�ा ह, तब म� म कयानिवचार हो� चानिहए, कयोनिक परारनतिमभक अवसथा म म� कनिवचारो को दबा�ा समभव �ही हो पाता?

उततर- निकसी भी निवचार म अनतःकरण (म�,धिचतत, बधिK, अहम) की भनिमका होती ह। अहम और

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

बधिK क अ�सार धिचतत क ससकार परकट होत ह औरउ�क निवषय म म� सकलप-निवकलप करता ह। जीवजिजस योनि� म जनम लता ह , उस योनि� क रप ससमबनतिन*त उसका अहम होता ह। इसी परकार सतोगण,रजोगण, एव तमोगण क अ�सार बधिK काय( करती ह।बधिK पर सतव , रज, तथा तम का परभाव आहार,निद�चया(, या घट�ा निवशष पर नि�भ(र करता ह। बधिKजिजस गण स निवशष परभानिवत रहती ह, उसी गण ससमबनतिन*त ससकार भी परकट होत ह। प�ः निवचारो कापरकट� (म� म) भी उनही ससकारो क अ�सार होता ह।

इसलिलय धिचतवनि� म म� को लौनिकक निवचारो सम` रख� क लिलय सानतिततवक भावो का हो�ा अनि�वाय( ह ,अनयथा म� सासारिरक निवचारो म भागता रहगा औरसा+ातकार निदवा-सवप� की तरह हो जायगा।

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निवरह-परम की गह� अवसथा म निवचारो का उतपननहो�ा समभव �ही ह। उस समय कवल दश(� की ही तीवरपयास रहती ह। धिचतवनि� की परारनतिमभक अवसथा म जोभी निवचार उठत ह, व रजोगण एव तमोगण स समबनतिन*तहोत ह। सतोगण की अवसथा म कवल जञा�, भनि`, एववरागय स समबनतिन*त ही निवचार उठ सकत ह, मायावी�ही। हमारा एकमातर यही परयास हो�ा चानिहए निकधिचतवनि� म कोई भी निवचार उठ ही �ही। हमारा साराधया� कवल म*र दश(� (शब(त-ए-दीदार) पर हीकनतिनदरत हो�ा चानिहए।

११. परशन- जिजस परकार तारतम वाणी म शरी राजजी क शरगार स पहल मगलाचरण होता ह, उसी परकारधिचतवनि� स पहल अ+रातीत शरी राज जी क परधित परम मसवय को डबा� क लिलय, माया क शरीर और म खदी स

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

पर हो� क लिलय कया कर सकत ह? म� म कया निवचारडाल सकत ह?

उततर- धिचतवनि� स पहल म� म यह दढ *ारणाल�ी चानिहए निक मझ अप� पराणशवर अ+रातीत क दीदारक अधितरिर` और कछ भी �ही चानिहए। धिचतवनि� स पहल"मर निपरयतम, मर *�ी, आ जाओ, आ जाओ, मर निदलम बस जाओ" आनिद शबदो का अतयधि*क भाव -निवहवलहोकर हदय म जप कर�ा चानिहए, निकनत यह धया� रहनिक होठ आनिद जरा भी � निहल, बनतिलक यह जप हदय महो�ा चानिहए।

१२. परशन- इशक और ईमा� *�ी की वासतनिवकपहचा� स आत ह। इ�स ही *�ी का दीदार होता ह,निकनत जब हम धिचतवनि� �ही कर रह होत ह तो उससमय हमारी रह�ी कस हो�ी चानिहए?

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उततर- हमारी वासतनिवक रह�ी तो धिचतवनि� (परम)ही ह। धिचतवनि� म अप� परम दवारा निपरयतम अ+रातीत कादश(� एव वाता(लाप का परयास निकया जाता ह। इसअवसथा म परम (धिचतवनि�) स बढकर और कौ� सीरह�ी हो सकती ह।

यनिद निकसी निवशष परिरनतिसथधित (यातरा, असवसथताआनिद) म बठकर हम धिचतवनि� क लिलय समय �ही निमलपाय, तो ऐसी अवसथा म हम लट -लट या खड-खडभी निकसी � निकसी तरह यगल सवरप की शोभा कामा�जिसक धिचनत� तो अवशय कर ल�ा चानिहए। यनिदवयसतता क �ाम पर हम १० निम�ट भी अप� निपरयतमकी याद म �ही रह सकत, तो निफर हमारी कसी रह�ी?*ाम *�ी स पीठ मोडकर �य-�य बहा� ब�ा�ा मातरअप� अपरा* को णिछपा�ा ह।

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१३. परशन- रानितर म धिचतवनि� करत समय यनिद �ीदआ जाय, तो कया कर�ा चानिहए? निकसी अनय समयधिचतवनि� कर�ी चानिहए या उसी समय बलपव(क �ीद कोदबाकर धिचतवनि� म डब� का परयास कर�ा चानिहए?

उततर- �ीद को बलपव(क दबा� स अ�क परकार करोग पदा हो जात ह। तमोगण की वधिK (अधि*क गरिरषठएव उततजक भोज� स) तथा थका� क कारण अधि*क�ीद आती ह। इसस बच� क लिलय रानितर का भोज�सानतितवक एव अलप मातरा म हो�ा चानिहए। रानितर ६ -९तथा परातः ४-६ क बीच म यनिद �ीद आती ह, तो एकया दो निगलास पा�ी पीकर खली हवा म टहल ल�ाचानिहय तथा आखो एव मह को पा�ी स *ोकर धिचतवनि�म बठ जा�ा चानिहय। निकनत रानितर क ९ बज स ३ बज कबीच बठ� पर यनिद �ीद आती ह, तो सो जा�ा चानिहए

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और हलकी सी �ीद लकर प�ः पा�ी पीकर धिचतवनि� मबठ जा�ा चानिहए।

१४. परशन- कवल रानितर की धिचतवनि� क बाद हीसकलप कर सकत ह या अनय समय भी सकलप निकयाजा सकता ह?

उततर- वस तो शभ (कलयाणकारी) मा�जिसकसकलप कभी भी कर सकत ह, निकनत धया� क बादकर�ा अधि*क फलदायक होता ह, कयोनिक उस समयम� शानत, पनिवतर, और �कारातमक निवचारो स रनिहतहोता ह। रानितर क धया� क बाद सोत समय का शभसकलप सबस अधि*क परभावकारी होता ह, कयोनिक उससमय की बात समाधि* की तरह अ�ायास ही अनतसतक पहच जाती ह।

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१५. परशन- सकलप करत समय निकसी बात कोनिकत�ी बार दोहरा�ा चानिहए और कयो?

उततर- पाशचातय म�ोवजञानि�को � अवचत� म�( - )sub-conscious mind) con)scious min)d) की कलप�ा की ह, जोचत� म� ( con)scious min)d)) का ही आनतरिरक भागहोता ह। उ�क मता�सार रानितर को सोत समय एकागरम� स शरKापव(क जो भी सकलप निकया जाता ह, वह पण(हो जाता ह। इसकी अलौनिकक शनि`यो क वण(� मअ�क पसतक लिलखी गयी ह।

भारतीय दश(� क अ�सार अनतःकरण (म�, धिचतत,बधिK, अहम) कारण शरीर ह। इसक अनदर अधित सकषमजीव चतनय का वास ह। मनतिसतषक शरीर का सथल भागह, जो अनतःकरण की काय(शाला ह। बधिK, धिचतत, म�आनिद को सकषमदशµ स भी �ही दखा जा सकता। इ�का

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अ�भव मातर समाधि* म ही होता ह। अनतःकरण कीसमपण( निकरया मनतिसतषक दवारा परसतत की जाती ह।पाशचातय म�ोवजञानि�को क अ�सार चत� म� बाहय रपस काय( करता ह और अवचत� म� आनतरिरक रप स।अवचत� म� म पव( जनमो की बात णिछपी रहती ह। उसमअथाह जञा� भरा होता ह तथा इचछा मातर स सकलपदवारा वह असमभव स निदख� वाल काय� का समपाद�कर सकता ह।

पाशचातय म�ोवजञानि�को � अवचत� म� क बार मअप�ी बधिK स सोचकर कहा ह , जबनिक भारतीयदाश(नि�को � समाधि* की गह� अवसथा म कारण शरीर कअगो (म�, धिचतत, बधिK, अहकार) एव जीव को उ�कवासतनिवक रप म दखा ह।

यनिद सकषम दनिषट स निवचार निकया जाय , तो यह

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नि�षकष( नि�कलता ह निक म� क दो भाग �ही हो सकत ,कयोनिक यह अतीनतिनदरय सकषम पदाथ( ह। कया जीव क भीदो भाग हो सकत ह? वसततः म� की लीला दो परकारकी होती ह- बनिहम(खी और अनतम(खी। इसी को उनहो�चत� तथा अवचत� की सजञा दी ह। पव(जनमो कससकार धिचतत म समानिहत रहत ह , म� (अवचत�) म�ही। इसी परकार जञा� का भणडार बधिK म होता ह , जोमनतिसतषक दवारा परकट होता ह। अहम क अनतग(त हो�वाल म� क सकलपो, धिचतत क धिचनत�, और बधिK कीनिववच�ा को मनतिसतषक इनतिनदरयो क माधयम स काय( रप मपरकट कर दता ह।

निकनत भरमवश पाशचातय म�ोवजञानि�को � म�, धिचतत,बधिK, अहम, तथा मनतिसतषक को एक ही पदाथ( मा�ा हऔर उसक दो भागो (चत� और अवचत�) की कलप�ा

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कर ली ह।

रानितर म सोत समय एकागर म� स निकय हए सकलपोक पण( हो� की जो चमतकारिरक बात की जाती ह , उसयोग की दनिषट स सरलतापव(क समझा जा सकता ह।

रानितर म सोत समय म� , धिचतत, बधिK आनिद कीनतिसथधित वही होती ह, जो समाधि* अवसथा म होती ह।अनतर कवल इत�ा ही होता ह निक �ीद तमोगण कपरभाव स होती ह, जबनिक समाधि* म परायः नितरगणातीतअवसथा होती ह, जो सानतितवक भावो स *ारणा-धया�कर� पर परापत हई होती ह।

सो� स पव( म� दवारा जो बार-बार सकलप निकयागया होता ह, �ीद म वही सकलप चतनय जीव को परापतहो जाता ह। परिरणामतः वह सकलप समाधि*सथ योगी क

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सकलप की तरह ही पण( हो जाता ह।

पञचकोशो (पराणमय, अननमय, म�ोमय, निवजञा�मय,आ�नदमय) एव अनतःकरण स धिघरा हआ जीव चतनयअप� मल रप म कटसथ दरषटा ह। जीव की चतनयता सही म�, धिचतत आनिद म चतनयता आती ह और यनिकरयाशील होत ह, अनयथा जीव स अलग होकर जडम� म सकलप को पण( कर� का सामथय( �ही होता।

इसी जिसKानत क अ�सार, रानितर को सोत समयधया� स उठ� क बाद ५-६ बार अप� सकलप कोशरKापव(क दढता स दोहराकर सो�ा चानिहए। हदय कीशK अवसथा म यह पकार (सकलप) चतनय जीव(अनतस) तक पहचती ह और पण( हो जाती ह।

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१६. परशन- धिचतवनि� क परारनतिमभक अभयास म सवयको *�ी क अगो की शोभा म डबोय रख� क लिलय कयाकर�ा चानिहए?

उततर- धिचतवनि� म हमशा परम-निवहवल होकर यगलसवरप को एकटक दख� का परयास कर�ा चानिहए।यदयनिप इस काय( म बहत सघष( कर�ा पडगा, कयोनिक म�सवाभानिवक रप स चचल होता ह, निकनत दढतापव(कधिचतवनि� क अभयास, सानतितवकता की वधिK, एव निपरयतमपरबरहम की कपा स सफलता अवशय निमलती ह।

१७. परशन- ऐसा कहा जाता ह निक धिचतवनि� म जबतक शरी राज जी का जोश �ही आता, तब तक उ�कावासतनिवक दीदार समभव �ही ह। तो कया उसस पहलजो सवरप हमार साम� आता ह, वह हमार म� कीकलप�ा ह या कछ और?

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उततर- निब�ा दख म�ःपटल पर जब कोई आकधितउभरती ह तो उस कालपनि�क कहत ह, निकनत धिचतवनि�म यगल सवरप की जिजस शोभा को अप� निदल म बसायाजाता ह, वह शरी महामधित जी दवारा परतय+ दखी हई हऔर सबक कलयाणाथ( परबरहम क आवश स वरथिणत कीगयी ह। इसलिलय तारतम वाणी म वरथिणत यगल सवरपकी शोभा की *ारणा करक जो धिचतवनि� की जाती ह ,उस कालपनि�क कदानिप �ही कह सकत। यह नतिसथधित वसही ह, जस निकसी ब� हए धिचतर या परतय+ वयनि` कोसाम� दखकर उसका धिचतर ब�ा� का परयास कर�ा।

१८. परशन- यह कस जा�ा जाय निक धिचतवनि� म हमजिजस राह पर चल रह ह, वह सही निदशा म सही तरीकस ह या �ही?

उततर- तारतम वाणी, वद, ऋनिष-मनि�यो क

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उपनि�षद तथा दश(� आनिद म वरथिणत आपत वच� , एवअनतरातमा की सा+ी- य चार कसौनिटया ह, जिज�कअ�कल हो� पर हमारी राह सjी और परधितकल(निवपरीत) हो� पर निमथया मा�ी जायगी।

१९. परशन- धिचतवनि� म सदगर का धया� निकत�ाआवशयक ह?

उततर- हम अप� चम(-च+ओ स जिजस मायावीजगत को दख रह ह, वह तषणाओ क जाल म ब*ा हआह, निकनत जब हम आखो को बनद करक अनतःच+ओ सनिकसी बरहमनि�षठ परमहस रप सदगर को दखत ह , तोउ�की निदवयताय हमार साथ भी जड जाती ह , कयोनिकधयाता म धयय क गण आ जात ह।

इस अवसथा म ही शरी राज जी क जोश क साथ

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

हमारी आतमा का समबन* जडता ह, और हमारीआनतितमक दनिषट नि�राकार को पार करक बहद मणडल मपहच जाती ह। सदगर का रप एक आ*ार होता ह ,जिजसक दवारा हम उ� बराहमी भावो म खो� लगत ह , जोसदगर म कट -कट कर भर होत ह। उनहो� सवयनिपरयतम परबरहम को अप� *ाम-हदय म बसाया होता ह,इसलिलय उ�का धया� हम *�ी क जोश स य कर दताह। धिचतवनि� म सदगर रप बरहमनि�षठ परमहस का दश(�यह दशा(ता ह निक अब परबरहम क सा+ातकार का माग(पण(तया सवचछ हो गया ह।

दरषटवय- यहा सदगर का तातपय( निकसी बहत बडआशरम या मठ क अधि*पधित स �ही ह, बनतिलक उस महा�आतमा स ह, जिजस� निपरयतम परबरहम का सा+ातकारनिकया ह। जिजसका हदय सवय *�ी की शोभा को �ही

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बसा पाया हो, उसको सदगर मा�कर उ�का धया� कर�स कोई लाभ �ही ह।

२०. परशन- धिचतवनि� क परारनतिमभक अभयास म यनिदएक घणट बठत ह, तो शरी राज जी क एक ही अग मसवय को डबो�ा चानिहए या पर सवरप को निदल म बसा�का परयास कर�ा चानिहए?

उततर- जब तक शरी राज जी का �ख स णिशख तकका पण( शरगार हदय म बस �ही जाता , तब तक पण(आतम-जागरधित �ही कही जा सकती। इस समबन* मतारतम वाणी म कहा गया ह-

जब पर� सरप हक का, आए बठा माह निदल।

तब सोई अग आतम क, उठ खड सब निमल।।

शरगार ४/७०

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मातर एक अग निवशष की ही शोभा बसा ल� पर पण(जागरधित �ही कही जायगी। "जो अग निहरद � आइया,रह क तती फरामोसी सग" (शरगार ४/२०) क इसकथ� का यही आशय ह।

भल ही परम और आ�नद की अ�भधित क लिलय शरीराज जी क अग निवशष की शोभा म सवय को डबाय रख,निकनत निपरयतम क �ख स णिशख तक की समपण( शोभाका धया� परधितनिद� अवशय कर�ा चानिहए।

२१. परशन- यगल सवरप को निदल म बसा� कलिलय परधितनिद� औसत� निकत� घणट धिचतवनि� कर�ीचानिहए?

उततर- इसक लिलय कोई समय सीमा तय �ही कीजा सकती। यनिद हदय नि�म(ल ह, निवरह-परम क भावो स

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भरा ह, तथा दीदार का पयासा ह, तो शरी राज जी कीकपा (महर) स बहत कम समय म ही दश(� हो सकताह। इसलिलय तारतम वाणी म कहा गया ह निक "पथ होवकोट कलप, परम पोहोचाव निम� पलक।" निकनत यनिदहदय निवषय-वास�ाओ क जाल म फसा हआ ह, शषक,कठोर ह, और अहकार स भरा हआ ह, तो उसक लिलयपरधितनिद� ६ घणट की धिचतवनि� भी पया(पत �ही ह।

सामानयतः गहसथ वयनि` को कम स कम १ घणटातथा निवर` वयनि` को कम स कम २ घणट धिचतवनि�परधितनिद� अवशय कर�ा चानिहए। इसस अधि*क यनिद करतह, तो बहत ही अचछा ह। निवदयाथµ को परातः-साय दो�ोसमय धिचतवनि� लगभग एक या आ* घणट तक अवशयकर�ी चानिहए।

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२२. परशन- सदगर का सवरप धिचतवनि� म हमारीआतमा क साथ कहा तक जायगा?

उततर- सव(रस सागर स ही परम*ाम की भनिमकाशर हो जाती ह , इसलिलय सदगर का सवरप कवलसतसवरप तक ही जा सकता ह, यम�ा जी तक �ही,कयोनिक परम*ाम क एकतव (वहदत) म वKावसथा काकोई भी रप परवश �ही कर सकता। दसरा कारण यहभी ह निक परम*ाम म परममयी भनिमका ह, जहा जोश भी�ही जा सकता।

तारतम वाणी म जिजबरील क लिलय जो यम�ा जी कोपार � कर� का परसग ह, वह ला+णिणक भाव ह, जिजसमयह कहा गया ह निक "जिजत जोए � उलघत।" यनिदजिजबरील सव(रस सागर को पारकर यम�ा जी क पवµनिक�ार तक पहच गया, तो वह सथा� भी तो परम*ाम क

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अनदर ही आयगा। सव(रस सागर म भी शरी राज जी तथाबरहमातमाओ की लीला होती ह। ऐसी नतिसथधित म जिजबरीलदवारा यम�ा जी को पार � कर� का भाव सतसवरप तकपहच� स लिलया जायगा, � निक यम�ा जी क निक�ारपहच� तक।

२३. परशन- सा*�ा की अवसथा म मौ� का कयामहतव ह? कपया समझाइए।

उततर- अ�ावशयक अधि*क बोल� स म� चचल होजाता ह तथा � चाहत हए भी कछ निमथया बात मख सनि�कल ही जाती ह। इसलिलय अनतम(खी हो� क लिलय"मौ�" वरत का पाल� निकया जाता ह। सामानय "मौ�" मतो लिलखकर या सकतो स काम चला लिलया जाता ह ,निकनत "काषठ मौ� " म लिलख�ा या सकत कर�ा भीवजिज(त होता ह। वसततः मौ� का वासतनिवक सवरप ह-

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अप� म� म बर निवचार आ� ही � द�ा। इत�ा तोनि�धिशचत ह निक नि�रथ(क अप�ी वाचालता का परदश(� कर�वाला धया�-समाधि* का अधि*कारी �ही ब� पाता।

२४. परशन- योग क जिसKानत क आ*ार पर सा*कको मातर एक ही कनदर पर धया� कर� क लिलय कहाजाता ह, जबनिक तारतम वाणी क आ*ार पर हम परबरहमक यगल सवरप तथा परम*ाम क २५ प+ो म अलग-अलग धया� लगात ह, तो कया यह उधिचत ह? इसपरकार क धया� म हम एकागरता कस लाए?

उततर- योग दश(� म बरहम क *ाम और सवरप काकोई भी वण(� �ही ह, इसलिलय परकधित स पर हो� कलिलय हदय, नितरकटी, दशम दवार आनिद अ�क सथा�ो मधिचतत की वलिततयो का नि�रो* निकया जाता ह। तारतमवाणी म परम*ाम क २५ प+ो एव यगल सवरप की

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शोभा का निवसतारपव(क वण(� ह, इसलिलय *ारणा कलिलय उस शोभा को आ*ार ब�ाया जाता ह। इस परकार,यह उधिचत ही ह, *ारणा परिरपकव रप म धया� मपरिरवरतितत हो जाता ह। ततपशचात परम*ाम और यगलसवरप का सा+ातकार होता ह।

२५. परशन- कलप�ा, अ�भव, और सा+ातकार कयाह? इ�म अनतर सपषट कर।

उततर- कलप�ा- निब�ा दख निकसी रप को अप�हदय म इस परकार अनिकत कर�ा जस वह पहल दखचका हो, कलप�ा ह।

अ�भव- अनतःकरण की आखो स जो सतययथाथ( रप म अ�भत होता ह, वह अ�भव कहलाता ह।सj सानतितवक सवप� दख�ा भी इसी क अनतग(त आता

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ह।

सा+ातकार- आतम-च+ओ स परातम, परम*ाम,या यगल सवरप को परतय+ (सा+ात) दख�ा हीसा+ातकार कहलाता ह।

२६. परशन- *�ी क निवरह म पल-पल आस बहा�क लिलय कया निकया जा सकता ह?

उततर- निवरह की पीडा क वय` रप ही आस ह।आस जा�-बझकर �ही बहाय जा सकत। हम *�ी कदीदार क लिलय निवरह म डबकर जिजत�ी धिचतवनि� करग ,उत� ही अधि*क आस भी नि�कलग। निवरह म खोय रह�या हदय पर सी*ी चोट कर� वाल सगीत स भी आसढलक जात ह।

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२७. परशन- धिचतवनि� म हम कवल सखी भाव सबठ�ा ह, या कोई और भी परयास कर�ा ह?

उततर- अग�ा भाव या सखी भाव को लौनिककवश-भषा क रप म �ही ल�ा चानिहए, बनतिलक यह हदयकी मा*य(ता, समप(ण भाव�ा, और निपरयतम को पा� कीवयाकलता की निमणिशरत अणिभवयनि` (गणातमक सवरप)ह। इ� ती�ो गणो को आतमसात कर� पर ही धिचतवनि� मसफलता परापत की जा सकती ह। इ� गणो स रनिहतहोकर कवल बाहय रप स सवय को अग�ा मा�� स कोईलाभ �ही ह।

२८. परशन- कया निवरह म भी कभी नि�राशा आसकती ह?

उततर- समप(ण क पशचात ही निवरह-परम की राह पर

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चला जा सकता ह। यनिद निवरह म डब� पर नि�राशाआय, तो इसका तातपय( यह ह निक कही � कही हमारईमा� (शरKा+निवशवास) म कमी ह और हमारा निवरहसjा �ही ह। जिजस अप�ा सब कछ सौप निदया जाता ह,उसस यनिद परतयततर म परम या दश(� � भी निमल, तो भीउसस अलग हो�ा या मा��ा समप(ण की पनिवतर भाव�ाको कलनिकत करता ह। इसलिलय सj निवरह म कभी भीनि�राशा का भाव �ही आ सकता।

२९. परशन- आवश और जोश कया मनिहलाओ कअनदर �ही आ सकत? कवल परषो क ही अनदर इ�कआ� की बात कयो की जाती ह? कपया सपषट कर।

उततर- अ+रातीत परबरहम की दनिषट म  ी या परषका कोई भद �ही ह , निकनत अधयातम जगत की कछऐसी कसौनिटया ह, जिज�को पार निकय निब�ा जोश या

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आवश का अधि*कारी �ही ब�ा जा सकता। मातरपरम*ाम की बरहमातमाओ क ऊपर ही आवश आ सकताह, जीव सनिषट या ईशवरी पर �ही।

हकीकत (सतय) को उलघकर मारिरफत (परमसतय) म पहच� वाली बरहमातमा ही शरी राज जी कआवश की उततराधि*कारिरणी ब� पाती ह। निकनत यहसौभागय भी मातर कछ ही पलो क लिलय होता ह और वहभी अधित गोप�ीय रप स।

इशक-ईमा� की राह पर चल� वाली बरहमातमाओ,एव ईशवरी सनिषट को हकीकत की अवसथा स पहल भीपरबरहम की कपा स जोश परापत हो सकता ह।

इस परकार, मनिहलाओ म जोश तो आ सकता ह ,निकनत आवश आ� की समभाव�ा �ही क बराबर होती

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ह।

यदयनिप परषो म हदय की कठोरता तथा अहकारकी मा�जिसकता अधि*क होती ह, निकनत लगातार परषाथ(तथा *य( क गण क कारण अप� इ� दोषो को व दर करलत ह तथा सा*�ा क बल पर मारिरफत तक पहच जातह। इसक निवपरीत, मनिहलाओ म हदय की कोमलता ,मा*य(ता, तथा समप(ण की उj भाव�ा क होत हए भीचचलता, तीकषणता, तथा राग-दवष का जो दोष होता ह,उसक कारण व कठोर सा*�ा की कसौटी पर सवय कोखरा जिसK �ही कर पाती और अधि*क स अधि*कहकीकत तक ही जाकर रक जाती ह। इस परकार, वजोश तो परापत कर सकती ह , निकनत मारिरफत तक �पहच� क कारण आवश की शोभा स वधिचत रह जाती ह।

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३०. परशन- समाधि*, धिचतवनि�, धया�, औरनिवपशय�ा म अनतर समझाइय? कवल समाधि* स ही शरीराज जी का सा+ातकार होगा, ऐसा तारतम वाणी मनिकस चौपाई म कहा गया ह?

उततर- समाधि*- धया� म दनिषटगोचर हो� वालधयय स अधितरिर` सवय का अप� सवरप स शनय सा होजा�ा समाधि* ह।

धिचतवनि�- अप� आनतितमक �तरो स परम*ाम, यगलसवरप, एव परम*ाम को सा+ात दख�ा धिचतवनि� ह।

धया�- धयय क अधितरिर` अनय निवषयो स म� काहट जा�ा ही धया� ह। "धया� नि�रविवषय म�" (साखयदश(�) का यह कथ� इसी भाव को वय` कर रहा ह।

निवपशय�ा- राग-दवष स पर होकर कटसथ भाव स

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सवय को दख�ा ही निवपशय�ा ह।

यदयनिप तारतम वाणी म समाधि* शबद स य कोईचौपाई �ही ह, निकनत उसका भाव कई सथा�ो पर ह,जस-

जब आतम दषट जडी परआतम, तब भयो आतम नि�वद।

निकरत� ८/३

परआतम को आतम दखसी, तब उतर जासी सब फर जी।

परकास निह. ३०/४४

अनतसकर� आतम क, जब ए रहयो समाए।

तब आतम परआतम क, रह � कछ अनतराए।।

सागर ११/४४

उपरो` चौपाइयो म सा+ातकार की अवसथा का जो

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वण(� ह, उस ही शा ीय भाषा म समाधि* कहत ह।

३१. परशन- आप कहत ह निक हठपव(क शरी राज जी�ही निमलत, निकनत शरी यगलदास जी � जब हठपव(कअप�ी आखो पर प¥ी बा* ली और सा*�ा म म� होगय, तो शरी राज जी को उनह दश(� दकर प¥ी खोल�ीपडी थी। तो ऐसा कयो कहा जाता ह ? कपया इससमझा� का कषट कर।

उततर- निवशK परम म "मा�" की एक ऐसी अवसथाहोती ह, जिजसम परमासपद (माशक) यही चाहता ह निकउसका परमी (आणिशक) सवय उसक पास चलकर आय,उसस परम कर, और उस म�ाय। यगलदास जी � भीइसी "मा�" भाव�ा का अ�करण करत हए आखो परप¥ी बा* ली थी निक अब इस प¥ी को मातर शरी जी हीखोल।

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इस परममयी "मा�" भाव�ा को "हठ" की सजञा�ही दी जा सकती ह। "हठ" उस कहत ह, जिजसमसवाथ( और दरागरह णिछपा होता ह। परमहस शरी यगलदासजी � अप� परम क अधि*कार स ही वसा निकया था।

निकनत अनय सनदरसाथ को परमहस महाराज शरीयगलदास जी की �कल �ही कर�ी चानिहए , कयोनिकपरमहस जी परम क जिजस णिशखर पर पहच थ, उस परकोई-कोई ही पहचता ह। परम क निब�ा, अधि*कार माग�ापरम को कलनिकत कर�ा ह। परमहस महाराज जी �अप�ा सव(सव निपरयतम अ+रातीत को सौप निदया था,तभी उनहो� अप�ी मा� भरी यह सा*�ा की और शरीजीको सवय परकट होकर उ�क मा� की लाज रख�ी पडी।

३२. परशन- सा*�ा की अवसथा म कया महापरषोक दश(� समभव ह?

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उततर- जो सा*�ा सव(शनि`मा�, सकल गणनि�*ा�, अ+रातीत क दश(� करा सकती ह, वहमहापरषो क दश(� कयो �ही करा सकती। योग दश(� मकहा गया ह निक "म*ा( जयोधितः जिसK दश(�म " अथा(तम*ा( म समाधि*सथ हो� पर जिसK परषो का दश(� होताह। इसी परकार, धिचतवनि� करत समय भी परबरहम की कपास अ�क बरहममनि� परमहसो क दश(� हो�ा सवाभानिवकह।

३३. परशन- जब एक वसत अथवा निवचार काधिचनत� दीघ( अवधि* क लिलय निकया जाय , तो वह धया�कहलाता ह। निकनत धिचतवनि� म तो निकसी एक वसत परधया� निकया ही �ही जाता, बनतिलक समपण( परम*ाम कीपरिरकरमा की जाती ह। इसस तो एकागरता �ही आ सकतीऔर � इसस कोई निवशष लाभ ही हो सकता ह?

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उततर- यह �शवर जगत परिरवत(�शील एवनितरगणातमक ह। यहा की वसतओ म एक -दसर कनिवरो*ी गण निमलत ह, जबनिक परम*ाम इसक पण(तयानिवपरीत ह। वहा एकतव (वहदत) का सामराजय ह।अ�नत परम*ाम एक छोट स कण क अनदर भी निदखायीद सकता ह और छोटी स छोटी वसत म भी परम*ाम कीसभी वसतओ क गण निवदयमा� होत ह, कयोनिक वहा काकण-कण ही सधिjदा�नद परबरहम का सवरप ह।

यनिद हम परम*ाम क निकसी एक प+ या निकसी एकवसत म भी धिचतवनि� कर , तो वहदत हो� स उसीआ�नद, शोभा, एव परम की परानिपत हो सकती ह , जोसमपण( परम*ाम म निवदयमा� ह। समपण( परम*ाम शरीराज जी क परम सतय (मारिरफत) सवरप हदय स हीपरकनिटत ह। इसलिलय लीला रप म समपण( परम*ाम की

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शोभा का वण(� निकया गया ह।

जिजस� निपरयतम अ+रातीत को अप� *ाम-हदय मबसा लिलया ह, वह इचछा मातर स परम*ाम क पjीसप+ो की शोभा का रस अ�ायास ही ल सकता ह। उसएक-एक प+ का धया� लगा� की आवशयकता �हीपडगी।

३४. परशन- परबरहम अनतःकरण एव इनतिनदरयो कीपहच स पर ह। वह शबद, सपश(, रप, रस, गन* आनिदतनमातराओ स भी पर ह। ऐसी नतिसथधित म हम परबरहम कदश(� की बात कस कर सकत ह, कयोनिक यह भी तोरप हआ, चाह निदवय ही सही?

उततर- शबद, सपश(, रप, रस, तथा गन* पञचभतो(आकाश, वाय, अनि�, जल, तथा पथवी) क गण ह।

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परबरहम का सवरप नितरगणातीत ह, इसलिलय अनि� ततव कगण रप स उसका कोई भी समबन* �ही ह। चतनयपरबरहम का सवरप जड अनि� स सव(था णिभनन ह , जिजसमातर आतम -च+ओ स ही दखा जा सकता ह,अनतःकरण एव इनतिनदरया उस निदवय सवरप को दख ही�ही सकती। इसलिलय तततरीयोपनि�षद म सपषट कह निदयागया ह निक "अपरापय म� सह" अथा(त वह बरहम म� सपरापत �ही हो सकता।

३५. परशन- शरी राज जी को हम शK साकार मा�तह। इस परकार व एक आकधित म सीनिमत हो जात ह। ऐसीनतिसथधित म हम उनह अ�नत निकस परकार मा� सकत ह?

उततर- जिजस परकार महासागर म करीडा करती हईमछली को सव(तर जल ही जल निदखायी दता ह औरआकाश म उडत हए प+ी को सव(तर आकाश ही आकाश

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निदखायी दता ह, उसी परकार शरी राज जी ही समपण(परम*ाम क कण-कण म सवलीला अदवत रप स लीलाकर रह ह। मातर कह� क लिलय ही व सिसहास� पर यगलसवरप क रप म निवराजमा� ह, निकनत सारा परम*ामउनही क हदय स परकट हआ ह। परम*ाम म उ�स णिभनननिकसी अनय सवरप की कलप�ा भी �ही की जा सकती।इस परकार हम कह सकत ह निक परम*ाम म शरी राज जीएक होत हए भी अ�नत ह।

३६. परशन- धिचतवनि� म निकसको दश(� होता ह -जीव को अथवा आतमा को? जीव को निकस परकार दश(�हो सकता ह, कयोनिक वह तो अनतःकरण पर नि�भ(र हऔर अनतःकरण इनतिनदरयो पर नि�भ(र ह? परमातमा इनतिनदरयोका निवषय �ही ह। जीव अनतःकरण दवारा अशरीरी होतहए भी (समधित दवारा) दखता-स�ता ह, निकनत वह निकस

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परकार दखता ह? वह परमातमा को निकस परकार दखसकता ह? यनिद अनतःकरण स �ही दख सकता , तोकया जीव की भी सकषम इनतिनदरया होती ह? यनिद होती भीह, तो निदवय इनतिनदरया तो �ही हो सकती?

कया आतमा को दश(� होता ह और जीव को �ही?जीव को निकस परकार आ�नद की अ�भधित होती ह? प�ःयह कस समभव ह निक जिजस जीव म परम*ाम की आतमा�ही ह , उसक लिलय भी अ+रातीत का दश(� हो�ासमभव ह?

उततर- यदयनिप धिचतवनि� म दो�ो को ही दश(� होताह, निकनत दश(� क सतर म अनतर होता ह। आतमासमपण( परम*ाम, यगल सवरप, तथा परातम क त�ो कोलमब समय तक एकटक दखती ह, निकनत जीव मातर शरीराज जी एव परम*ाम की हलकी सी झलक ही पाकर

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अ�नत आ�नद म डब जाता ह।

जीव को शयामा जी एव परातम क त�ो को दख�का सौभागय परापत �ही हो पाता। "बदल आप दखावततथा पयारी नि�सबत रख णिछपाए" (सागर) क कथ� सयही सपषट होता ह।

निकनत जिजस जीव पर आतमा बठी होती ह, उसजीव को आतमा क समबन* स जञा�-दनिषट दवारा शयामाजी एव परातम क त�ो का अ�भव अवशय हो जाता हऔर उस ऐसा लगता ह निक म� भी दखा ह।

बरहम को अनतःकरण एव इनतिनदरयो स �ही जा�ा जासकता। अनतःकरण और इनतिनदरयो म चत�ा भी जीव सही आती ह। क�ोपनि�षद १/३ म कहा गया ह-

� ततर च+ग(चछधित � वागगचछधित � म�ो � निवदमो � निवजा�ीमो।

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अथा(त उस बरहम तक � तो जीव क �तरो की दनिषटजाती ह, � वाणी, और � ही म�। उस यथाथ( रप स�ही जा�ा जाता।

प�ः आग १/५-६, ७-८ म कहा गया ह निक जोम� स म�� �ही करता, निकनत जिजसक दवारा म� म��करता ह, उसी को त बरहम जा�। जो च+ स �ही दखता,जिजसक दवारा �तर दखत ह, उसी को त बरहम जा�। इसीपरकार, जीव भी समाधि* म जब अप� शK सवरप मनतिसथत होता ह, तो उस बरहम को दख� क लिलयअनतःकरण या इनतिनदरयो की आवशय`ा �ही पडती और� इ�स समभव ही ह। वह अप�ी चतनय दनिषट स बरहम कोदखता ह। ससार क वयावहारिरक जीव� को चला� कलिलय ही अनतःकरण तथा इनतिनदरयो की आवशयकतापडती ह।

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जीव क सथल शरीर म जो इनतिनदरयो क सथल गोलकनिदखायी पडत ह, उ�स णिभनन ही सकषम इनतिनदरयो कासवरप ह, जो अनतःकरण स जडा होता ह।

अनतःकरण तथा इनतिनदरयो की उतपलितत महतततव सहोती ह, अतः इनह निदवय �ही कहा जा सकता।

जिजस जीव पर परम*ाम की आतमा का वास �हीहोता ह, वह भी यनिद बरहमसनिषटयो की तरह अ+रातीत कपरधित निवरह, परम, ईमा�, और समप(ण की राह ल लताह, तो उस भी अ+रातीत तथा परम*ाम क दश(� परापतहो जायगा, निकनत शयामा जी एव बरहमसनिषटयो का �ही।

३७. परशन- इस +र जगत म काल तथा निदशानिद सब* ह। यनिद इस जगत स पर काल �ही होता , तोपरम*ाम स आतमाओ का आ�ा निकस काल म हआ?

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

वहा स इशक-रबद क बाद आ�ा हआ ह, पहल �ही।इस परकार परम*ाम म भी काल का हो�ा जिसK होता ह।

यह +र जगत परम*ाम स ऊपर-�ीच, आग-पीछ, दाय-बाय निकस ओर ह? इस परकार निदशा ह, तोयह जगत परम*ाम स निकस निदशा म ह? ऐसी अवसथाम परम*ाम भी अ�नत कस हो सकता ह?

उततर- काल और समय म अनतर होता ह। समयकी गण�ा सय(-चनदरमा और निद�-रानितर क अनतिसततव कआ*ार पर होती ह, निकनत महापरलय म जब सय( -चनदरमा आनिद कछ भी �ही होत, तब भी अवधि* का जञा�बरहम को एव म` परषो को उधिचत रप स रहता ह, जिजसकाल कहत ह।

काल शबद क दो अथ( होत ह- अवधि* परक और

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निव�ाश परक।

जहा पर लीला का वयवहार होता ह, वहा परअवधि* अवशय होगी, भल ही उसकी माप का आ*ारकछ भी कयो � हो, और वह सभी बरहमाणडो की अवधि*योस णिभनन कयो � हो।

इस �शवर जगत म जिजस परकार सभी पदाथ� एवपराणिणयो की आय को नि�गल� वाला काल (मतय) ह, वहपरम*ाम म �ही ह। यहा तक निक बहद मणडल म भीउसका कोई अनतिसततव �ही ह।

कछ ऐस परशन होत ह, जिज�का उततर मा�वीय बधिKस द पा�ा निकसी भी परकार स समभव �ही ह, जस-

➢इस +र जगत क अणओ तथा परमाणओ कीसखया निकत�ी ह?

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

➢ समसत बरहमाणड म निकत� परकार क पराणी तथाव�सपधितया ह, और उ�की समपण( सखया निकत�ीह?

➢यह सनिषट निकत�ी बार ब�ी ह और निकत�ी बारमहापरलय को परापत हई ह?

इसी परकार अ�नत शबद की वयाखया समझ�ीहोगी। जीव सनिषट क सबस बड जञा�ी क लिलय यह +रजगत ही अ�नत ह। बड-बड वजञानि�को की मानयता कअ�सार अरबो आकाशगगाय (नि�हारिरकाय) ह। परतयकनि�हारिरका (गलकसी) म अरबो सय( ह। परतयक सय( महमारी पथवी जसी अ�क पनतिथवया ह, जो एक-दसर सकरोडो निक.मी. की दरी पर ह।

अतः हम यह मा��ा पडगा निक इस जगत म ऐसा

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

कोई भी वयनि` �ही ह , जो इस समपण( +र जगत कानिवसतार (माप) बता सक।

वजञानि�को दवारा अभी भी सनिषट का जो निवसतार जञातहआ ह, वह सनिषट क वासतनिवक निवसतार का मातर १०परधितशत ही ह। समपण( +तर निकत�ा ह , भला कोई कसबता सकता ह?

निकनत ईशवरीय सनिषट (णिशव जी, कबीर, शकदवआनिद) की दनिषट म इस समसत +र जगत स पर बहदमणडल ह, जो अ�नत ह।

तारतम जञा� क अवतरिरत हो� क बाद, बरहमसनिषटयोकी दनिषट म +र मणडल तथा बहद मणडल भी सीमाबKहो जात ह तथा मातर परम*ाम ही अ�नत रह जाता ह।जिजस परकार निहनद महासागर म तर� वाली मछली क

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लिलय पथवी क सातो सागरो की कोई सीमा �ही ह ,निकनत हम निवजञा� दवारा एक सीमारखा खीच सकत ह,उसी परकार ती�ो सनिषटया (जीव, ईशवरी, बरहमसनिषट)अप�ी-अप�ी दनिषट स अ�नत को सवीकार करती ह।

वासतनिवकता तो यह ह निक जिजस परकार सधिjदा�नदपरबरहम जञा�, सौनदय(, परम, आ�नद, और शनि` की दनिषटस अ�नत ह, उसी परकार सत अग अ+र बरहम भी शनि`,जञा� की दनिषट स अ�नत ह, और उ�का बहद मणडल भीअ�नत ही होगा।

अ+र बरहम का सवानतिप�क म� आनिद�ारायण भीअप� +तर +र मणडल म परतयक दनिषट स तब तक अ�नतही मा� जायग, जब तक +र स पर का जञा� � हो।आनिद�ारायण की �शवर सनिषट म भी पराणिणयो तथापरमाणओ आनिद की सखया अ�नत ह और लोक -

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

लोकानतर का निवसतार भी अ�नत ही ह।

इस परकार, हम स+प म कह सकत ह निक अप�-अप� +तर म ती�ो परष अ�नत ह। अ+रातीत तोपरतयक दनिषट स अ�नत ह ही , उ�का सत अग भी बहदमणडल म अ�नत ह , और +र परष भी अप� +तर मअ�नत ही ह।

जिजस परकार अ�नत म अ�नत को जोड�, घटा�,या गणा-भाग कर� का परिरणाम अ�नत ही होता ह,उसी परकार एक अ�नत (+र) स दसरा अ�नत (बहद)निक*र ह और तीसरा अ�नत (परम*ाम) निक*र ह काउततर मा�वीय मनतिसतषक क लिलय असमभव ह।

निकनत तारतम जञा� स हम निवनिदत होता ह निकअ�नत परम*ाम हमार हदय म भी ह। इसका कारण यह

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

ह निक अ�नत परम*ाम शरी राज जी क निदल स ह औरहमारा निदल भी परबरहम का ही निदल ह। इसलिलय हमारनिदल म परम*ाम का निवदयमा� रह�ा सवाभानिवक ह।

जब हम तारतम जञा� की दनिषट स उसका धिचनत�करत ह और परममयी धया� दवारा उस दख� का परयासकरत ह, तो कछ ही दर म हमारी दनिषट हद-बहद को पारकर परम*ाम म निवचरण कर� लगती ह। इत�ा हो� परभी कोई म�ीषी यह बता� म स+म �ही ह निक हद-बहदका निवसतार निकत�ा था तथा इ�क निकस ओर परम*ामनतिसथत ह।

निदशा की आवशयकता पथवी आनिद लोको म हीपडती ह और इ�म सय( आनिद को आ*ार मा�करनिदशाय नि�*ा(रिरत की जाती ह। निकनत इसी +र जगत मआकाश म हम बहत ऊचाई पर अनतरिर+ या� दवारा

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

जाय, जहा चारो ओर कवल �+तर ही �+तर निदखायी पडरह हो, तो वहा निकसको निदशा का आ*ार मा�ग? ऐसीअवसथा म हम सवतः निदशा का कोई मा�क मातर समझ�क लिलय ही मा��ा पडगा।

अ�नत महाशनय म निवचरण कर� वाल निकसी जिसKमहायोगी क लिलय � तो निदशा की आवशयकता ह और �कोई महतव। वह अप�ी इचछा�सार जहा भी चाह जासकता ह, और सब कछ दख-स� सकता ह।

ठीक यही नतिसथधित बहद मणडल एव परम*ाम म ह।नि�राकार मणडल म तो �ीद का परभाव हो� स कोई वसतअजञय (अजञात) रह सकती ह, निकनत सवलीला अदवतपरम*ाम म तो कण-कण म परबरहम का ही सवरप करीडाकर रहा ह। हम जहा भी जा�ा चाह, जो कछ भी दख�ाचाह, पल-भर क करोडव निहसस म ही हम वहा

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

उपनतिसथत रहत ह, कयोनिक परम*ाम म जब परबरहम कअधितरिर` अनय कछ ह ही �ही, तो सथा� की दरी यासमय का भद हो ही �ही सकता।

इसलिलय वहा निदशा की कोई आवशयकता �हीहोती। निकनत हमार लिलय परम*ाम की अ�नत शोभा कोबो*गमय ब�ा� क लिलय परिरकरमा गरनथ म निदशा का वण(�वस ही निकया गया ह, जस एक निगलास म महासागर कजल को भरकर यह कहा जाय निक दखो ! निगलास ममहासागर आ गया ह।

३८. परशन- कया योग का सबस परामाणिणक माग(अषटाग योग ही ह? उसकी शरषठतम उपलनतिब* कया ह?यनिद असमपरजञात समाधि* को ही कवलय कह और उससव(शरषठ उपलनतिब* मा� , तो यह निकस परकार कह सकतह निक उसक बाद अ�नत काल तक जीव अखणड म

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

रहगा? यनिद वह आ�नद म रहगा, तो आ�नद क ससकारधिचतत म रहग तथा नि�रविवकार एव नि�रविवचार की अवसथासमापत हो जायगी?

उततर- अषटाग योग स भी पर निवहगम या परम योगह, जिजसम परम गहा म परनिवषट होकर बरहम का सा+ातकारनिकया जाता ह। नि�जा�नद योग दवारा बहद स भी परपरम*ाम एव अ+रातीत का दश(� परापत होता ह। परमयोगका वण(� वद, उपनि�षद, एव बीजक गरनथ म, तथानि�जा�नद योग का वण(� तारतम वाणी म ह।

जीव क सीनिमत कम( का फल आ�नद �ही होसकता। यनिद वह अषटाग योग दवारा कवलय मनि` काआ�नद परापत भी करता ह, तो ३६००० बार सनिषट कीउतपलितत एव परलय म जो ३११०४००००००००००वष( का समय लगता ह, वह उत� समय तक आ�नद

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

परानिपत करता ह।

मनि` की अवसथा म कारण, सकषम, या सथल शरीरका अभाव हो� स नि�रविवचार या नि�रविवकलप समाधि* कीअवसथा रहगी ही �ही। जब उस समय धिचतत ही �हीरहगा, तो आ�नद क ससकार कहा स आयग? भौधितकसख क ससकार तो धिचतत म ब� सकत ह , निकनत धिचततक अभाव म आ�नद क ससकार �ही ब� सकत।

३९. परशन- जीव तो अ�नत ह। हर जीव दसर सपथक ह। उ�क सख-दख, वलिततया, सवभाव सबअलग-अलग ह। इस परकार तो अ�नतवाद ही सहीहआ, अदवत अथवा दवत �ही?

उततर- जीवो की कवल सखया क आ*ार परअ�नतवाद का कोई जिसKानत �ही ब� सकता। बरहमजञा�

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

परम और शनि` की दनिषट स अ�नत ह। इस +र जगत कानिवसतार भी अ�नत ह। अ�नतवाद क लिलय हम यह भीदख�ा होगा निक निकस +तर म हम अ�नतवाद कोनि�योजिजत कर�ा चाहत ह।

इस कालमाया क बरहमाणड म दवत (जीव+परकधित)की लीला ह, योगमाया म अदवत बरहम की लीला ह, तथापरम*ाम म सवलीला अदवत अ+रातीत की लीला ह।ती�ो अप�-अप� सथा� पर सतय ह।

४०. परशन- जीव दरषटा ह या भो`ा? यनिद दरषटा ह,तो सख-दःख कौ� भोग रहा ह? धिचतत और परकधित कअनय पदाथ( तो जड ह, जीव ही चत� ह। इस परकार वहही भो`ा हआ?

आतमा दरषटा ह, निकनत दरषटा आतमा भी भो`ा

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

(जीव) क सख-दःख दखकर खश अथवा दःखी होतीह। इस परकार तो आतमा भी परिरणामी हो जायगी औरससकारो स बन* जायगी? परातम तो आतमा क इ�अ�भवो को दख� स सवय भी इ� बन*�ो म पडजायगी?

उततर- अनिवदया स रनिहत शK चतनय जबअनतःकरण, इनतिनदरयो, एव शरीर स य होता ह, तो उसजीव कहत ह। यदयनिप जीव की चत�ा स ही अनतःकरणएव इनतिनदरयो म भी चत�ा रहती ह , निकनत सख-दःखअनतःकरण क *म( ह, शK चत� क �ही। अनतःकरणस य हो� क कारण सय समबो*� म उस भी सख-दःख का भो`ा अवशय कहत ह, निकनत जीव क रप मनतिसथत परष चतनय मातर दरषटा ह।

इसी परकार परातम परम*ाम क सवलीला अदवत म

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

ह। उसकी दनिषट ही आतमा क रप म जीव पर निवराजमा�होकर सख-दःख की लीला को दख रही ह। आतमा कोजब तारतम वाणी का परकाश निमलता ह, तब वहधिचतवनि� म डबकर अप� वासतनिवक सवरप को दखती हऔर वयवहारिरक रप म सवय को दरषटा मा�ती ह। आतम-जागरधित स पहल, वह भी तारतम जञा� स रनिहत हो� ककारण जीव भाव म डबी रहती ह अथा(त शरीर औरससार तक ही अप� को सीनिमत निकय रहती ह।

आतमा और परातम म अनिवदया आनिद का परभाव �हीपड सकता, इसलिलय व जीव की तरह माया क बन*�ोम �ही फस सकती। जनम-मरण और कम(-फल क भोगउस अप� जाल म �ही बा* सकत। निकनत जीव कऊपर निवराजमा� हो� क कारण दरषटा होत हए भी ऐसालगता ह निक जस वह भी माया क बन*� म बन* गयी ह।

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इसी तथय को बता� क लिलय कलश निहनदसता�ी म कहागया ह-

आतम तो अ*र म, सो ब* निब�ा बल �ा होय।

निबचछ का डक जिजसको लगता ह, दद( उसी कोहोता ह, दसर को �ही। दसरा कवल सहा�भधित दशा(सकता ह। इसी परकार परातम म निकसी भी परकार समाया का बन*� अप�ा परभाव �ही डाल सकता।

४१. परशन- चत� शरषठ ह अथवा जड? यनिद यहकह निक नि�रविवकलप समाधि* क बाद जब ससकारो का �षटहो�ा ही मो+ ह, तो उसक बाद जीव म कोई निकरया औरअ�भव (अ�भधित) �ही हो�ा चानिहय, �ही तो उसकससकार प�ज(नम क लिलय निववश करग। यनिद सख-दःख,आ�नद-निवषाद �ही रहा , तो वह जड समा� ही हो

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

गया। कया ससार की सव(शरषठ उपलनतिब* यही ह, तो जडपदाथ( हमस शरषठ ह?

उततर- चत� भो`ा ह और जड (परकधित) भोगय।इस परकार, चतनय जीव ही शरषठ मा�ा जायगा। जड मकोई सवतः निकरया भी �ही होती। वह चतनय बरहम कसकलप पर आणिशरत ह।

जिजस परकार गम( बाल म भ� हए च� म अकरण�ही होता, उसी परकार नि�बµज समाधि* दवारा अप� सभीससकारो को �षट कर द� क बाद मनि` सख भोग� तकबीच म कोई भी �या ससकार �ही पदा होता। यह निवशषबात ह निक ससकारो का नि�मा(ण परकधित क बन*� म रह�पर ही होता ह, मनि` क आ�नद म �ही। मनि` म जीवबरहम की सा*मय(ता परापत कर सव(दा आ�नद म म� रहताह।

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४२. परशन- यनिद निकसी जीव को पव(जनम म कोईनिवशष आधयानतितमक उपलनतिब* �ही हई, तो उस अधयातमकी शरषठतम उपलनतिब* पा� म निकत�ा समय लगगा, अगरवह पण( शरKा स परयास कर? कवलय अवसथा म निकत�ासमय लगगा तथा यगल सवरप का दश(� पा� म निकत�ासमय लग सकता ह?

उततर- निकसी की आधयानतितमक सफलता मनि�म�लिललिखत कारको की निवशष भनिमका रहती ह-

➢ बरहमनि�षठ सदगर का उj नि�द~श�।

➢ उj ससकार।

➢ जञा�, निववक, वरागय, शील आनिद गणो कासमावश।

➢ दढ नि�षठा क साथ परारमभ की गयी सा*�ा।

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यनिद निकसी � पव(जनम म समपरजञात समाधि* कीनतिसथधित परापत कर ली ह, तो उस असमपरजञात दवारा कवलयतक पहच� म उधिचत परिरनतिसथधितयो म ६ माह तथामधयम, निवपरीत, एव उगर निवरो*ी परिरनतिसथधितयो म करमशः३, ६, या १२ वष( तक का समय लग सकता ह।

तारतम जञा� क परकाश म यगल सवरप कासा+ातकार बहत ही सरल ह। जब तक समपण( वास�ाओक ससकार �षट �ही होत , तब तक कवलय की परानिपतसमभव �ही ह। ऐसा कर� म कई जनम बीत जात ह।गीता � भी इस बात की पनिषट की ह-

अ�क जनम सजिसधिKः ततो याधित परा गधितम।

अथा(त अ�क जनमो की सा*�ा क पशचात हीपरमगधित की परानिपत होती ह। निकनत परा परम ल+ण भनि`

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दवारा जब निवरह-परम का रस अप� परवाह म बह रहाहोता ह, तो हदय म वास�ा का बीज रह� पर भी परम ककारण यगल सवरप का सा+ातकार सरलतापव(क होजाता ह। इसकी अवधि* बरहमनि�षठ सदगर क नि�द~श� ,अप� मा*य( एव कोमल सवभाव, निवरह तथा परम कीगह�ता स लगभग ६ माह स ३ वष( की ह। मधयम सतरकी सा*�ा कर� वाला लगभग २-८ वष(, तथा ततीयसतर की सा*�ा कर� वाला ८-१२ वष( तक का समयलगा सकता ह।

४३. परशन- योग क माग( म निदवय अ�भधितया होतीह, जो सव�j उपलनतिब* �ही ह , बनतिलक भरामक ह। कयायही समसया धिचतवनि� म भी आती ह? यह निकस परकारनि�ण(य कर निक य अ�भधितया भरामक ह?

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उततर- धिचतवनि� का सव�परिर लकषय ह - आतम-जागरधित। यगल सवरप की �ख स णिशख तक की शोभा,अप�ी परातम एव २५ प+ो की शोभा , तथा निकसीबरहममनि� परमहस क दश(� क अधितरिर` और निकसी भीअ�भव को महतव �ही द�ा चानिहए।

४४. परशन- कया बनिहरग योग क सा*�- यम,नि�यम, आस�, पराणायाम, तथा परतयाहार धिचतवनि� म भीउपयोगी ह?

उततर- निकसी भी सा*�ा पKधित म य �ीव कसमा� ह। धिचतवनि� म भी इ�की इत�ी ही उपयोनिगता ह,जिजत�ी अषटाग योग म।

४५. परशन- जीव और अनतःकरण कब तक साथरहत ह? कया महापरलय म भी जीव अनतःकरण क साथ

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जडा रहता ह?

उततर- जनम-मरण का चकर जब तक चलता ह ,तब तक अनतःकरण जीव क साथ जडा ही रहता ह,कयोनिक अनतःकरण कारण शरीर क अनतग(त आता ह।सकषम शरीर १९ ततवो वाला होता ह। इसम कारण शरीरभी सय होता ह। महापरलय म अनतःकरण का जीव कसाथ रह� का परशन ही �ही ह।

४६. परशन- धिचतवनि� क निकत� अग ह , अथा(तनिकत�ी मनतिनजलो स होकर गजर�ा पडता ह?

उततर- धिचतवनि� की मखयतः ५ सीनिढया (मनतिनजल,सतर) ह-

१. इस अवसथा म तारतम वाणी का आ*ार लकरयगल सवरप एव पjीस प+ो की शोभा पर अप� म� को

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

कनतिनदरत कर� का परयास निकया जाता ह। कभी शोभाआती ह और कभी अदशय हो जाती ह। म� म �य-�यनिवचार भी आत रहत ह।

२. इस मनतिनजल म परातम की भाव�ा स आतमा कशरगार की परवलितत बढ जाती ह तथा निवरह का रस बढ�स ससार �ीरस लग� लगता ह। मायावी म�ोनिवकार दरभाग� लगत ह।

३. इस सतर पर पहचत ही परम का रस फट पडताह। उठत-बठत, सोत-जागत कवल म*र परम की हीमा�जिसकता ब� जाती ह। ऐसा परतीत होता ह, जसयगल सवरप पल-पल मर पास ह।

४. इस नतिसथधित म यगल सवरप का परतय+सा+ातकार होता ह। अप�ी परातम भी निदखायी पडती ह।

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

*�ी क अग-अग की शोभा बस जा� स समपण(परम*ाम भी हदय म झलक� लगता ह।

५. इस अवसथा म आतमा शरी राज जी की शोभा मइत�ी खो जाती ह निक वह सवय को भला दती ह। वहअप� पराणनिपरयतम क निदल म इत�ा डब जाती ह निक उसशयामा जी एव २५ प+ो का भी आभास �ही होता। उसकवल यही परतीत होता ह निक निपरयतम अ+रातीत कअधितरिर` अनय कोई ह ही �ही।

४७. परशन- इस ससार म  ी-परष, पश-प+ी,तथा सथावर-जनय पराणी नि�वास करत ह। परम*ाम म ी-परष का भद निकस परकार स ह?

उततर- अधयातम क चरम सतर पर  ी-परष काभद रह ही �ही सकता। परम*ाम म एक परबरहम क

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

अधितरिर` अनय कछ ह ही �ही। लीला रप म शयामा जीतथा बरहमातमाओ आनिद क त�  ीलिलग म अवशयनिदखायी दत ह, निकनत उ�म भी शरी राज जी का हीसवरप करीडा कर रहा होता ह।  ी मा*य(ता एव समप(णकी परधितमरतित मा�ी जाती ह। इस भाव को दशा(� क लिलयही शयामा जी तथा बरहमातमाओ को �ारी रप म दशा(यागया ह, अनयथा सवलीला अदवत म निकसी भी परकार कभद की कलप�ा भी �ही की जा सकती।

वहा �र और मादा क रप म पश-प+ी आनिद सभीह, निकनत व भी परबरहम क अखणड म*र परम म खोयरहत ह। इस मायावी जगत म परषो म जिजस परकार कीअहम एव सवानिमतव की परवलितत होती ह , वसी भाव�ापरम*ाम म सवप� म भी �ही आ सकती। भला , वहदत(एकनिदली) म निकसी भी परकार का भद कस आ सकता

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ह।

४८. परशन- महापरषो का कह�ा ह निक सjा जञा�भीतर ही ह, वह पसतको स �ही बनतिलक अ�भव स परापतहोता ह। बधिK क नि�म(ल हो� पर वह सतय-असतय कानि�ण(य कर� म स+म हो जाती ह और सतय जञा�परवानिहत होता ह। कया धिचतवनि� म भी जञा� की परानिपतहोती ह, जिजसक बाद यह कह सक निक अब कछ भीजा��ा शष �ही रहा?

उततर- *म(गरनथो म म�ीनिषयो क व निवचार सगरनिहतहोत ह, जो उनहो� सा*�ा स पाया होता ह। यनिद हमारीसा*�ा स हो� वाल अ�भव की महतता ह, तो पहल कयोनिगयो तथा जिसK परषो � अप� जिज� अ�भवो कोगरनथो म लिलख रखा ह, उस कस �कारा जा सकता ह?सा*�ा स पहल *म(गरनथो म नि�निहत जञा� को आ*ार तो

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

ब�ा�ा ही पडगा, अनयथा अ�भव क �ाम पर परबरहम कसमबन* म तरह-तरह की भरानतिनतया फल जायगी।

इत�ा अवशय ह निक सा*�ा का परम पनिवतर माग(छोडकर निद�-रात गरनथो म उलझ रह� पर भीवासतनिवक जञा�ी �ही ब�ा जा सकता। जञा� का पराण परमह और परम का पराण जञा� ह। वसततः जञा� और परमदो�ो ही एक-दसर क परक ह। अ+रातीत परबरहम कोधिचतवनि� दवारा अप� *ाम-हदय म बसा ल� पर जञा�की नि�म(ल सरिरता सवतः ही परवानिहत हो� लगती ह। उससमय यह अवशय कहा जा सकता ह निक जो कछ भीपा�ा था, पा लिलया। अब गरनथो क जञा� पर नि�भ(र रह�की आवशयकता �ही ह। इस समब�* म तारतम वाणीक सागर गरनथ का कथ� ह-

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शरी महामधित कह ऐ मोनिम�ो, ए ऐसी बका कजी इलम।

ए महर दखो महबब की, तमको आप पढाए खसम।।

निकनत इसक साथ ही यह भी धया� म रख�ाचानिहए निक धिचतवनि� का परारमभ भी तारतम वाणी काआ*ार लकर ही होता ह।

४९. परशन- कया धिचतवनि� स निदवय शनि`या(निवभधितया) भी परापत होती ह?

उततर- निवभधितयो को परापत कर� क लिलय परबरहम कसथा� पर अनय परकार की *ारणाय कर�ी पडती ह ,जिजसका निवशद वण(� इसी गरनथ की तीसरी तरग म निकयागया ह।

धिचतवनि� म एकमातर अ+रातीत को ही लकषय मरखकर धया� निकया जाता ह, इसलिलय निवभधितयो क परापत

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हो� का परशन ही �ही ह।

निकनत निवशष परिरनतिसथधितयो म आवशयकता पड� परआनतितमक बल स या राज जी क जोश दवारा चमतकारिरकलीलाय सवतः ही हो जाया करती ह।

५०. परशन- बरहमसनिषटयो की असामधियक/अपराकधितकमतय सशय उतपनन करती ह। बीतक म हम पढत ह निकनिमगµ क कारण कई सनदरसाथ � ससार तयाग निदया ,जिज�म बरहमसनिषटया भी थी।

उततर- जीव अप� सधिचत निकरयमाण, तथा परारब*कम� क फलसवरप सख -दःख का भोग करता ह।आतमा उसक सख-दःख की दरषटा मातर ह। योगानि� ससधिचत और निकरयमाण कम� को �षट कर निदया जाता ह ,निकनत परारब* को अलप मातरा म भोग�ा ही पडता ह।

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निपरयतम अ+रातीत क चरणो म जा� क बाद यनिदपरमपव(क धिचतवनि� की जाय, तो परारब* क कषट �ाम मातरक रह जात ह।

राम�गर म जिज� -जिज� सनदरसाथ की निमगµ समतय हई ह, उ�क बार म यही समभाव�ा की जा सकतीह निक उनहो� धिचतवनि� की कठोर राह अप�ाकर अप�परारब* क दःखो को कम �ही निकया , अनयथा कयाकारण ह निक शाहजहापर बोनिडय म �ागजी भाई कोपरतय+ मौत भी कछ �ही कर पायी।

५१. परशन- धिचतवनि� क माग( म कया -कया बा*ायआती ह?

उततर- धिचतवनि� म बा*ा डाल� वाल नि�म�लिललिखतकारक ह-

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➢ अह- धिचतवनि� क माग( का पहला चरण ही शरKाऔर समप(ण स शर होता ह। अप�ी कछउपलनतिब*यो का अह आत ही शरKा, समप(ण, तथानिवरह-परम का महल ढह� लगता ह। इसलिलययथासमभव अह की दग(नतिन* स सवय को बचा�ाचानिहए।

➢ परधितषठा- अ�ावशयक परधितषठा की चाह आतमा औरनिपरयतम क बीच म दीवार का काम करती ह औरअहकार की निवष-बल को बढाती ह।

➢ काम�ा- लौनिकक सखो की नि�रथ(क काम�ाधिचतवनि� क पनिवतर परम को कलनिकत कर दती ह।

➢ आलसय और परमाद- तमोगण स उतपनन हो� वालआलसय और परमाद रपी शतर कदम-कदम पर

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धिचतवनि� म अवरो* खडा करत ह।

➢ आतमनिवशवास की कमी- ही� भाव�ा का णिशकारहो� वाला वयनि` कभी सा*�ा क माग( पर �ही चलसकता। हम यह हमशा धया� रख�ा चानिहय निकहमारी आतमा परबरहम रपी सागर की लहर ह।

➢ नि�षठा का बटवारा- हम परममयी नि�षठा म परबरहमअ+रातीत को पहली पराथनिमकता द�ी होगी। यनिदहम शरी राज जी स अधि*क निकसी और को चाहतह, तो धिचतवनि� का लकषय परा �ही हो सकगा।

५२. परशन- धिचतवनि� स कया हम सतय -असतयऔर उधिचत-अ�धिचत का जञा� परापत कर सकत ह? कयाअभयास मातर स (निवशष आधयानतितमक उपलनतिब* भल ही� हो तो भी) हम किककतत(वयनिवमढता स छटकारा पा

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सकत ह?

उततर- अवशय! एकमातर धिचतवनि� ही वह माग( ह ,जिजस पर चल� स हम अप�ी अनतरातमा की आवाज कोयथाथ( रप स स� सकत ह और सतय -असतय तथाउधिचत-अ�धिचत का बो* परापत कर सकत ह, जिजस परापतकर� म बड-बड निवदवा� भी कभी-कभी असफल होजात ह। धिचतवनि� कर� वाल को हमशा ही इस बात काभा� रहता ह निक परबरहम उसक *ाम-हदय म निवराजमा�ह और उसकी पराण�ली स भी अधि*क नि�कट ह। ऐसीनतिसथधित म उसका आनतितमक बल इत�ा अधि*क बढा होताह निक �कारातमक निवचार कभी उसक म� म आत ही�ही। वह अप� दढ सकलप स असमभव को भी समभवम परिरवरतितत कर� का सामथय( रखता ह। ऐसी अवसथाम भला किककतत(वयनिवमढता उसक पास कहा स आयगी।

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५३. परशन- धिचतवनि� स कया लाभ ह ? (निवशषउपलनतिब* भल ही � हो) कया सासारिरक जीव� म भी वहनिकसी परकार सहायक ह?

उततर- अधयातम स रनिहत मा�व जीव� उस पश कसमा� ह, जो भोज�, नि�दरा, और परज�� क अधितरिर`अनय कछ भी �ही जा�ता। धिचतवनि� अधयातम रपी व+का वह सगनतिन*त फल ह, जिजसस अखणड मनि` रपफल परकट होता ह। सासारिरक जीव� भी धिचतवनि� कआ�नद स रनिहत हो� पर स�ा और नि�ःसार ही ह।

५४. परशन- कया अभयास क दौरा� (जब साधय कीपरानिपत � हई हो) भी कछ आ�नद का अ�भव होता ह?

उततर- ससार का सबस बडा सख भी उस तषणाक +य स हो� वाल सख क सोलहव भाग की बराबरी

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कर� म असमथ( ह। इस परकार यह बात कही जा सकतीह निक निपरयतम अ+रातीत की धिचतवनि� म इत�ा आ�नदह निक उसक साम� ससार क सभी सख निमलकर भीकही �ही ठहरत। यही कारण ह निक धया� का आ�नदपा� क लिलय ही राजकमार जिसKाथ(, महावीर, भत(हरिरआनिद � अप� राज-पाट को छोड निदया और व�ो मधया�म� रह। यनिद मा� लिलया जाय निक धिचतवनि� म शरीराज जी का दश(� �ही होता ह, तब भी उ�स अप�ीसामीपयता और परम क अधि*कार का आभास तो होताही रहता ह।

५५. परशन- यनिद ऐसा कह निक आतमा परातम कजिजस भी अग का सा+ातकार कर लती ह, वह जागरत होजाता ह, तो इसस सशय उतपनन होता ह। इसी परकारयनिद शरी राज जी को शK साकार मा�त ह , तो उनह

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अ�नत �ही कह सकत। हाथ-पर भी तो कम~नतिनदरया हीह।

उततर- आतमा अप� मल त� को भलकर जीव कसवानतिप�क त� को ही अप�ा त� मा� बठी ह, यही तो�ीद (अजञा�ता) ह। जब वह अप�ी परातम को दखतीह, तो उस अप� नि�ज सवरप का बो* होता ह जिजसतारतम वाणी की भाषा म आतम-सा+ातकार कहत ह।परातम क जिजस-जिजस अग को वह दखती ह, आतमा कावह-वह अग जागरत होता जाता ह, ऐसा कह�ा आतम-जागरधित क करनिमक सतर को दशा(�ा ह।

कोई भी नितरगणातमक पदाथ( शK �ही कहा जासकता, इसलिलय परबरहम को शK साकार कह� कातातपय( ह नितरगणातीत (�रमयी, चत�, परकाशमयी)सवरप। परम*ाम म परबरहम का जो अ�नत तजोमयी

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परकाश लीला रप असखय पदाथ� क रप म सव(तर करीडाकर रहा ह, उस� ही तो शरी राज जी क �रमयी हाथ-परो की भी आकधित *ारण कर रखी ह। जब अ�नतपरम*ाम म शरी राज जी स णिभनन अनय कछ भी �ही ह ,तो उ�क निकसी अग निवशष स या आकधित स उ�कीअ�नतता पर निकसी भी परकार का परशनधिचहन खडा �ही होसकता। शरी राज जी की निकशोराकधित लीला रप म ह।अनय सभी सवरप (शयामा जी, बरहमसनिषटया, अ+र बरहमआनिद) भी उनही क अणिभनन सवरप ह।

५६. परशन- तपलोक म सकषम शरीर*ारी शरषठ जीवरहत ह, तो तारतम रपी बरहमजञा� का अवसर मतयलोकवाजिसयो को ही कयो परापत हआ, जहा नि�म� कोनिट क जीवपापो का भोग कर रह ह?

उततर- पथवी लोक ही वह कम(भनिम ह, जहा मो+

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की परानिपत होती ह। तप लोक आनिद म जहा सकषमशरीर*ारी ऋनिष-मनि� रहत ह, व भी पहल इसी पथवीपर जनम लिलय ह और अप� तप दवारा ऊपर क लोको मपहच ह। यही कारण ह निक सवग( क दवता भी भारतवष(म जनम *ारण कर� क इचछक होत ह। इस समबन* मनिवषण पराण का कथ� ह-

गायनतिनत दवा निकल गीतकानि� *नयासत त भारत भनिम भाग।

सवगा(पवग(सपदमाग( भत भवनतिनत भयः परषाः सरतवात।।

बरहमसनिषटयो को माया दख� की जो इचछा थी, वहपथवी लोक म ही परी हो सकती थी, अनय लोको म�ही। अनय लोक तो शभ-अशभ कम� क भोग क लिलयह। इसलिलय बरहमसनिषटयो तथा अ+रातीत क आवश कइस पथवी लोक म आ� क कारण तारतम वाणी रपी

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बरहमजञा� भी यही पर अवतरिरत हआ।

५७. परशन- कया धिचतवनि� दवारा आधयानतितमकउपलनतिब* क पशचात लौनिकक दःखो स कषट �ही होता?

उततर- सख और दःख अनतःकरण क निवषय ह।जब आतमा अप� निपरयतम अ+रातीत क अ�नत आ�नदम म� हो जाती ह, तो उस इस �शवर ससार और शरीरस मोह �ही रह जाता। वह मातर दरषटा होकर इस जगत कखल को दख रही होती ह। यनिद उस अथा(भाव, रोग,तथा वKावसथा आनिद क कषट आत ह , तो वह निब�ानिवचलिलत हए बहत ही सहजता क साथ कषटो को इसपरकार सह� कर लती ह जस कछ हआ ही � हो। ऐसाइसलिलय होता ह निक उस परबरहम क परम क अधितरिर`और कछ निदखायी ही �ही दता। जबनिक सासारिरक लोगशरीर और ससार क मोहजाल म फस हो� स अप�

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दःखो का रो�ा रोत रहत ह।

५८. परशन- कया इस महापरलय क बाद जीवो कोअखणड मनि` निमलगी , अथा(त निकसी काल उनह प�ःजनम �ही ल�ा होगा?

उततर- हा! अ+रातीत परबरहम दवारा जीवो कोअखणड मनि` निदय जा� स उनह कभी भी जनम �हील�ा पडगा। यह मनि` कवलय स णिभनन ह।

५९. परशन- कया धिचतवनि� दवारा म�षय (भल हीशरषठतम उपलनतिब* � हो और जिसफ( परारनतिमभक परयास /अभयास हो) दःख, भय, इचछा, दवष, अहकार, ईषया(आनिद कलशो स म` हो सकता ह?

उततर- गनद व  म हम जिजत�ा ही साब� लगायग,उत�ी ही मल *लगी। हम अप� निदल म निपरयतम

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अ+रातीत की छनिव को बसा� क लिलय जिजत�ी सा*�ाकरग, उत�ा ही हमारी निवकारो स नि�वलितत होती जायगी।जिजस परकार अन*र कमर म दीपक जलात ही अन*राभाग जाता ह, उसी परकार हदय म निपरयतम परबरहम की�री शोभा क निवराजमा� हो� पर भला काम, करो*, मद,लोभ, ईषया( आनिद मायावी निवकार कस रह सकत ह।

६०. परशन- अषटाग योग की तल�ा म कया धिचतवनि�म भी अभयास क ढाई घणट, ४ घणट, ६ घणट आनिदभद ह? उसस उपलनतिब* म कया अनतर पडता ह? कयालमबी अवधि* तक एकसाथ बठ� का अभयास कर�ाचानिहय? कया ऐसा कर� स कछ निवशष लाभ होता ह?

उततर- त�-म� की चचलता वाली ६ घणट कीधिचतवनि� की अप+ा दो घणट की वह धिचतवनि� अधि*कलाभदायक ह, जिजसम त�-म� पण( रप स नतिसथर रह।

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यदयनिप अधि*क समय तक धया� या धिचतवनि� कर�ाअचछा ह, निकनत उसस भी अचछा ह, धया� (धिचतवनि�)की गणवतता को ब�ाय रख�ा अथा(त त�-म� को लकषयक परधित पण( रप स नतिसथर निकय रह�ा।

६१. परशन- कया मारिरफत की अवसथा परापत की जासकती ह? कया सामानय जीव (जिजसम परम*ाम काअकर � हो) भी मारिरफत की अवसथा को परापत करसकता ह?

उततर- गह� परम दवारा मारिरफत की अवसथाअवशय परापत की जा सकती ह और इस महाराज शरीरामरत� दास जी जस परमहसो � चरिरताथ( करक भीनिदखाया ह। अकर स रनिहत समानय जीवो क लिलयमारिरफत म पहच पा�ा समभव �ही ह , कयोनिक इसकलिलय जिजस परम की आवशयकता होती ह, वह बरहमसनिषटयो

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क अधितरिर` अनय कही पर �ही निमल सकता। जीवसनिषटबहत परयास करक कवल शरी राज जी और परम*ाम कीहलकी सी झलक ही पा सकती ह।

यदयनिप इस ससार म सरदास , मीराबाई, रसखा�,और बाबा फरीद जस परमी भ` हए ह, निकनत परम*ामका अकर � हो� क कारण य भी मारिरफत की अवसथाम �ही पहच सक।

इस �शवर जगत म आनिद�ारायण , नि�राकार, याअ+र क चतषपाद की भनि` म लग रह� वाल हीमारिरफत की अवसथा म पहच� का दावा करत ह, निकनतउ�की उपलनतिब* परम*ाम की मारिरफत म �ही , बनतिलकआनिद�ारायण या अ+र (चतषपाद) को आराधय मा�करहई होती ह।

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६२. परशन- यनिद यह जा�� क लिलय निक जिजस(ससार को) हम सतय समझत ह वह असतय ह औरजिजस हम असतय समझत ह वह सतय ह , धया� हीएकमातर माग( ह, तो निफर पसतक कयो पढ?

उततर- सा*�ा का भवय महल जञा� की �ीव पर हीखडा होता ह। यनिद ससार स णिश+ा हटा दी जाय , तोमा�व समाज कवल असभय लोगो का एक समह भर�जर आयगा और ऐसा मा�व बरहम-धिचनत� स दर होकरपशवत जीव� निबता� क लिलय मजबर हो जायगा।

जञा� सतय की राह हो निदखाता ह और परममयीधया� उस सतय (परमातमा) को परापत कराता ह। इसलिलयसतय को जा�� क लिलय दो�ो की समा� उपयोनिगता ह।इ�म स निकसी को भी कम या अधि*क करक �ही आकाजा सकता।

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६३. परशन- यनिद महा� तपनतिसवयो तथा योनिगयो कोधया� म सतय जञा� परापत हआ , तो उनह परम*ाम कअनतिसततव का जञा� कयो �ही हआ ? यनिद उनह जडपरकधित क सथल तथा सकषम सवरप का ही दश(� होताह, तो वह भी असतय ह, कयोनिक वह परिरणामी हो� सअनि�तय ही हआ?

उततर- इस जगत की उतपलितत का मल बहद मणडल(अवयाकत एव सबलिलक) म ह। इसलिलय कवलय कीअवसथा को परापत हो� वाल योनिगयो एव तपनतिसवयो कोबहद मणडल का आभास तो रहा ह, निकनत परम*ाम काउनह बो* �ही हो सका। इसका मल कारण यह ह निकयह समपण( सनिषट अ+र बरहम क म� अवयाकत कसवानतिप�क सवरप आनिद�ारायण स उतपनन हई ह।इसलिलय सनिषट क म�ीनिषयो क मल आराधय अ+र बरहम ही

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रह ह।

"अ+रात परतः परः" का कथ� मातर वालिगवलास कलिलय ही था, वयवहार क लिलय �ही, कयोनिक अ+रातीतको पा� क लिलय ससार म कोई भी उपास�ा पKधित थीही �ही। ससार की अब तक की परचलिलत सभी धया�पKधितया नि�राकार-बहद स आग �ही जाती ह। तारतमजञा� क परकाश म मातर नि�जा�नद योग ही परम*ाम लजा सकता ह।

६४. परशन- धया� की निकसी भी निवधि* को छोडकरआधयानतितमक उननधित क अनय माग( कौ� स ह? कया इ�मस निकसी क भी दवारा परम*ाम का दश(� हो सकता ह?

उततर- परम*ाम चत� ह और उस मातर आतम-च+ओ स ही दखा जा सकता ह। शरीर, म�, तथा

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इनतिनदरयो स हो� वाली उपास�ा कभी भी � तो आतम-सवरप का सा+ातकार करा सकती ह, � परम*ाम का,और � निपरयतम अ+रातीत का। एकमातर धया� ही वहपKधित ह , जिजसस शरीर, इनतिनदरया, तथा अनतःकरण(म�, धिचतत, बधिK, एव अहकार) नि�शचषट स हो जात ह,और चत�ा उस परम सतय का सा+ातकार करती ह जोनि�तय ह, अ�ानिद ह, और सव(शनि`मा� ह।

इसक निवपरीत आजकल मनतिनदरो, मनतिसजदो,निगरजाघरो, गरदवारो आनिद म जो भी पजा -पाठ आनिदकम(काणड तथा पराथ(�ा करायी जाती ह, वह शरीर, म�,तथा इनतिनदरयो स हो� वाली उपास�ा ह, जो परम सतयतक �ही पहचा सकती।

वनिदक योग पKधित, जिजसका अ�सरण अ+र बरहमकी आतमाओ (णिशव, स�कानिद, कबीर जी आनिद) �

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नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

निकया ह, उसक दवारा बहद मणडल की परानिपत की जासकती ह, निकनत परम*ाम का सा+ातकार कर� क लिलयतारतम वाणी क परकाश म निकय जा� वाल नि�जा�नदयोग (धिचतवनि�) क अधितरिर` अनय कोई भी माग( �ही ह।

६५. परशन- धिचतवनि� म परयास की आवशयकता ह।इस परकार परमातमा कम( स परापत होता ह औरअवसरवानिदयो का ह , कयोनिक इस कलिलयग म जिज�भागयशाली म�षयो � जनम लिलया ह, व ही परम*ाम औरअ+रातीत क सा+ातकार का लाभ ल सकत ह?

उततर- कम(-फल क अटल जिसKानत वाल जगत मसौभागय का नि�मा(ण अ�ायास ही �ही हआ करता ,बनतिलक हम नि�ःसकोच होकर यह सवीकार कर�ा पडगानिक परषाथ( ही भागय का नि�मा(ता ह।

परकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठपरकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठ, , सरसावा सरसावा 413413 / 414/ 414

नि�जा�नद योग शरी राज� सवामीनि�जा�नद योग शरी राज� सवामी

जिज� लोगो को तारतम जञा� दवारा परम*ाम एवअ+रातीत क सा+ातकार का माग( निमला ह, वह ऐस हीअचा�क �ही निमला ह, बनतिलक अ�क जनमो की सा*�ाक फलसवरप उ�को यह सौभागय निमला निक उ�क त�ोम बरहमसनिषटया परवश कर सक । शरीमदभागवत म वरथिणत मरऔर दवानिप को कठोर सा*�ा क फलसवरप ही वहसौभागय परापत हआ निक उ�क त�ो (शरी निमनिहरराज एवशरी दवचनदर जी) म परम*ाम की आतमाय परनिवषट करऔर परबरहम की आवश लीला उ�क त� स समपानिदत होसक। इसलिलय तारतम वाणी का परकाश पाकर धिचतवनि�कर� वालो को अवसरवादी कदानिप �ही कहा जासकता।

।। इसक साथ ही यह छठी तरग समपण( हई ।।

परकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठपरकाशकः शरी पराण�ाथ जञा�पीठ, , सरसावा सरसावा 414414 / 414/ 414