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CHAPTER 21 HINDI Doctoral Theses 01. vt; iz dk'k fganh miU;klksa esa izse dk cnyrk Lo:i ¼lanHkZ % tSusUnz] vKs; vkSj ;'iky½A funsZ'kd % MkW- jkes'oj jk; Th 23182 fo"k; lw ph 1- mUuhloha 'krkCnh ds fgUnh miU;klks a esa isze vkSj jks ekal ¼pa nzdkark] ';kekLoIu] lkSUn;ks Zikld fo'ks"k la nHkZ esa½ 2- isaepan ;qxhu fgUnh miU;klks a esa isze dh vo/kkjk.kk vkSj isze dh dFkkHkwfe ¼lanHkZ & iszepan ds miU;kl½ 3- tS usUnz dh dFkkHkwfe 4- vKs; dh dFkkHkw fe 5- ;'kiky dh dFkkHkw feA mila gkjA vk/kkj xzaFk lw phA 02. vfHk"ksd dqekj fganh nfyr lkfgR; vkSj jktuhfr dk varLlaca/kA funsZ'kd % MkW- jkes'koj jk; Th 23108 lkjka 'k ¼vlR;kfir½ Ĥबंध दलत साǑह×य और दलत राजनीǓत के आपसी जुडाव को वषयवèतु बनाता है |यहाँ दलत साǑह×य और दलत राजनीǓत कȧ समीपता का मूल आधार अàबेडकर का चंतन है , जो न के वल राजनीǓत और साǑह×य के यथाथ[ को समझने कȧ ¢मता Ĥदान करता है अपतु आदश[ कȧ ĤािÜत के Ǔनण[य और माग[ कȧ ताक[ क ĤèतुǓतइ करता है | Èयɉक साǑह×य और राजनीǓत कȧ काय[नीǓत अलग - अलग होते ह भी दोनɉ का उɮदेश सामािजक सरोकारɉ से जुड़ा ह आ है | दोनɉ हȣ समाज के उस वग[ के प¢धर हɇ जो सǑदयɉ से शोषत थे ; िजनमे èवतंğ चंतन और चेतना का वकास नहȣं हो पाया है | २१वीU सदȣ के भारत मɅ भूमंडलȣकरण के पǐरणामèवǾप पǐरवेश मɅ दलत राजनीǓत और साǑह×य ,चंतन व åयवहार के वभेद से जूझ रहȣ है |जहाँ èवानुभूǓत और सहानुभूǓत कȧ छवयाँ चाहे वो दलत वग[ कȧ हɉ या गैर दलत वग[ कȧ संशय कȧ िèथǓत बनाये रखती है . यह संशय राजनीǓत और साǑह×य दोनɉ मɅ गहराता गया है . आजादȣ के बाद देश मɅ जनतंğ कȧ èथापना के साथ दलतɉ को राजन◌ीǓत मताधकार तो ĤाÜत हो गया लेकन सामािजक सांक Ǔतक अधकार मलना अभी शेष है . शोध मɅ यह èपçट कया गया है क राजनीǓत और साǑह×य के पुरोधा िजन लêयɉ को लेकर समाज आमूल - चूल बदलाव करना चाहते थे वे उनसे कहȣं न कहȣं भटक से गए हɇ . यह भटकाव साǑह×य मɅ क म और राजनीǓत मɅ Ïयादा हɇ ,इÛहȣं प¢ɉ के ववध सÛदभɟ को शोध मɅ वèतार से देखा परखा गया है.

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  • CHAPTER 21

    HINDI Doctoral Theses 01. vt; izdk'k

    fganh miU;klksa esa izse dk cnyrk Lo:i ¼lanHkZ % tSusUnz] vKs; vkSj ;'iky½A funsZ'kd % MkW- jkes'oj jk; Th 23182

    fo"k; lwph

    1- mUuhloha 'krkCnh ds fgUnh miU;klksa esa isze vkSj jksekal ¼panzdkark] ';kekLoIu] lkSUn;ksZikld fo'ks"k lanHkZ esa½ 2- isaepan ;qxhu fgUnh miU;klksa esa isze dh vo/kkjk.kk vkSj isze dh dFkkHkwfe ¼lanHkZ& iszepan ds miU;kl½ 3- tSusUnz dh dFkkHkwfe 4- vKs; dh dFkkHkwfe 5- ;'kiky dh dFkkHkwfeA milagkjA vk/kkj xzaFk lwphA

    02. vfHk"ksd dqekj fganh nfyr lkfgR; vkSj jktuhfr dk varLlaca/kA funsZ'kd % MkW- jkes'koj jk; Th 23108

    lkjka'k

    ¼vlR;kfir½

    बंध द लत सा ह य और द लत राजनी त के आपसी जुडाव को वषयव तु बनाता है |यहाँ द लत सा ह य और द लत राजनी त क समीपता का मूल आधार अ बेडकर का चतंन है, जो न केवल राजनी त और सा ह य के यथाथ को समझने क मता दान करता है अ पतु आदश क ाि त के नणय और माग क ता कक

    तु तइ करता है | य क सा ह य और राजनी त क कायनी त अलग -अलग होते हुए भी दोन का उ देश सामािजक सरोकार से जुड़ा हुआ है | दोन ह समाज के उस वग के प धर ह जो स दय से शो षत थे ; िजनमे वतं चतंन और चतेना का वकास नह ं हो पाया है| २१वी सद के भारत म भूमंडल करण के प रणाम व प प रवेश म द लत राजनी त और सा ह य , चतंन व यवहार के वभेद से जूझ रह है |जहा ँवानुभू त और सहानभुू त क छ वयाँ चाहे वो द लत वग क ह या गैर द लत वग क संशय क ि थ त बनाये

    रखती है .यह संशय राजनी त और सा ह य दोन म गहराता गया है .आजाद के बाद देश म जनतं क थापना के साथ द लत को राजन◌ी त मता धकार तो ा त हो गया ले कन सामािजक सांकृ तक अ धकार मलना अभी शेष है .शोध म यह प ट कया गया है क राजनी त और सा ह य के पुरोधा िजन ल य को लेकर समाज

    आमूल -चूल बदलाव करना चाहते थे वे उनसे कह ं न कह ं भटक से गए ह .यह भटकाव सा ह य म क म और राजनी त म यादा ह ,इ ह ं प के व वध स दभ को शोध म व तार स ेदेखा परखा गया है.

  • 127

    fo"k; lwph

    1- nfyr jkthfr dh i`"BHkwfe 2- nfyr lkfgR; dk lw=ikr 3- nfyr jktuhfr vkSj nfyr lkfgR; 4- nfyr lkfgR; ds fofo/k fo/kkvksa esa jktuhfrd psruk 5- ledkyhu jktuhfrd ifjn`'; vkSj nfyr jpuk'khyrk dk var%laca/kA milagkjA lanHkZ xzaFk lwphA

    03. dqynhi dqekj jhfrdkyhu dfo vkpk;Z vkSj fHk[kkjhnklA funsZ'kd % MkW- fouksn frokjh Th 22713

    lkjka'k ¼vlR;kfir½

    हमने अपन े शोध बंध म न न ‘क व आचाय’ के ववेचन को शा मल कया है केशवदास पृ ठभू म के प म,

    चतंाम ण, देव, सूर त म , सोमानाथ, भखार दास तथा तापसा ह इन सभी क व आचाया◌◌ें के कृ त व का

    तुलना मक अ ययन तुत कया गया है। पहले एक वषय पर व भ न क व आचाया◌े◌ं के मत का एक थान

    पर ह ववेचन करन ेका यास कया उसम, इस क व आचाय म यह ववेचन नह ं है, इसका उ लेख इस क व आचाय

    ने नह ं कया है। ऐसा लखना कुछ सह महसूस नह ं हुआ, फर एक का यांग पर पहले एक क व आचाय कास पूण

    ववेचन तुत कया, फर दसूरे का स पूण ववेचन कया इसी तरह मशः सभी का वणन कया है। ववेचन करते

    हुए उसम जो कुछ वशेषता या अपूणता दखाई द , उसका वह ं उ लेख करके येक क व आचाय के उस का यांग

    ववेचन के समा त होने पर उसका न कष तुत कर दया है। मशः इसी तरह सभी का ववरण तुत करके उस

    का यांग ववेचन के अंत म सभी क क मय व वशेषताओं को देखते हुए उस का यांग के सबस ेउपयु त ववेचक

    आचाय का कथन कया है। जहा ंवणन सामा य ह रहा है उसके संबंध म क व कामत तुत कया है। र तकाल न

    का यशा ा◌ीय ंथ पर ल खत आलोचना मक पु तक या फर शोध बंध म इन र तकार के ंथ क तुलना

    सं कृत के ंथ स ेइनके लेखक करते दखायी देत ेह। सं कृत के का यशा ीय ंथ म वणन सा य दखाकर इन पर

    ऐसा आरोपलगाया जाता है क इ ह ने तो यह बात सं कृत के उस ंथ स ेल ह और इसम कोई मौ लकता नह ं है।

    ह द के र त ंथकार का दोष तब होता जब यह आधार ंथ का उ लेख न करत े। र तकाल के अ धकतर क व

    आचाया◌े◌ं नेअपन े ंथ म इस बात का प ट उ लेख कया है क मने कन सं कृत ंथ का आधार हण कया

    है।

    fo"k; lwph

    1- jhfrdkyhu dfo vkpk;ksZa ds dkO;'kkL=h; xzaFkksa dk laf{kIr ifjp; 2- jhfrdkyhu dfo vkpk;ksZa dk dkO;Lo:i foospu 3- jhfrdkyhu dfo vkpk;ksZa dk 'kCn 'kfDr] /ofu foospu 4- jhfrdkyhu dfo vkpk;ksZa dk nks"k] xq.k ,oa of̀Ùk ¼jhfr½ foospu 5- jhfrdkyhu dfo vkpk;ksZa dk jl ,o auk;d&ukf;dk Hksn foospu 6- jhfrdkyhu dfo vkpk;ksZa dk vyadkj foospu 7- jhfrdkyhu dfo vkpk;ksZa dk Nan foospuA milagkjA lanHkZ xzaFk lwphA

  • 128

    04. dsLVoky ¼lq/kka'kw eksgu½ lkekftd jktuSfrd ifjn`'; ds lanHkZ esa j?kqohj lgk; vkSj JhdkUr oekZ dh dforkvksa dk rqyukRed v/;;uA funsZ'kd % MkW- vofuts'k voLFkh Th 22716

    lkjka'k

    ¼vlR;kfir½

    तुत शोध धं सामािजक राजनै तक प र य के संदभ म रघुवीर सहाय और ीकातं वमा क क वताओं का तुलना मक अ ययन करन ेका यास करता है। थम अ याय समकाल न क वता को प रचया मक प म तुत करता है। वतीय अ याय ऱघुवीर सहाय क क वताओ ंक सामािजक राजनै तक प र य क ि ट से समी ा करने क को शश करता है ततृीय अ याय सामािजक राजनै तक प र य क ि ट स े ीकांत वमा क क वताओ ंको परखने क चे टा करता है। चतुथ अ याय म इसी ि ट से दोन क वय क वताओ ंका तुलना मक व लेषण करने क को शश क गई है। पचंम अ याय श प वधान क ि ट से दोन क वय क क वता का प रचय देता है। शोध बंध के अंत म उपसंहार और प र श ठ दया गया है।

    fo"k; lwph

    1- Lokra=;ksÙkj Hkkjr dk lkekftd&jktuSfrd ifjn`'; vkSj ledkyhu dfork 2- j?kqohj lgk; dh dforkvksa dk lekftd&jktuSfrd lanHkZ 3- Lokra=;ksÙkj Hkkjrh; lekt vkSj jktuhfr rFkk JhdkUr oekZ dh dfork 4- cnyrk Lokra=;ksÙkj Hkkjrh; lekt vkSj jktuhfr% izfrfØ;k vkSj izHkko dh n`f"V ls j?kqohj lgk; rFkk Jhdkar oekZ dh dforkvksa dk rqyukRed v/;;u 5- j?kohj lgk; ,oa Jhdkar oekZ dh dforkvksa dk f'kYi fo/kkuA milagkjA lanHkZ xzaFk lwphA

    05. xhrk nsoh lkEiznkf;d ifjn`'; esa tsaMj dk iz'u ¼Lokra×;ksÙkj izeq[k fgUnh miU;klksa ds lanHkZ esa½A funsZ'kd % izks- gfjeksgu 'kekZ Th 22715

    lkjka'k ¼vlR;kfir½

    वतमान भारत म सा दा यकता से वकट और कोई सम या नह ंहै। सा दा यकता ऐसा व वंसा मक व प है जो मनु य को उसक मनु यता से काटकर केवल घणृा का ा प बना देती है। सा दा यकता आधु नक काल क प रघटना है, जो आ थक वैष य और सामािजक अ याय पर आधा रत यव था स े ज मती है। भारत म सा दा यकता का उ भव 19वीं शता द म औप नवे शक शासन क थापना के प चात ्हुआ। इ तहास म देश को िजतने घाव सा दा यकता न े दए ह उतन ेऔर कसी घटना या भावना न ेनह ं दए।सा दा यकता घणृा, डर, शंका का वातावरण न मत करती है। भारत म सा दा यकता वघटन और वभाजन क शि त के प म उभर है। हसंा के कारण देश म धन क ह नह ,ं सबसे बड़ी मानवीय हा न भी हुई है। सा दा यकता से नद ष सामा य जन को अ धक त पहँुचती है। इनम ि य क सं या सबस ेअ धक है। सा दा यकता पतसृ ा को पो षत करती है। पतसृ ा ी को वतं यि त व न मानकर प रकार, स दाय क स प मानती है। आपसी श ुता

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    क ि थ त म वरोधी के वा भमान पर चोट पहँुचान,े अपमा नत करने के लए ि य के साथ व भ न कार के अ याचार कए जात ेह। पतसृ ा और सा दा यकता वच वशाल वचारधाराओं स ेस ब ध रखती ह, इस कारण सा दा यक, जातीय अथवा रा य नयोिजत जैसी भी हसंा हो उसका सवा धक असर ी पर ह पड़ता है। भारतीय इ तहास ि य पर होन ेवाल हसंा पर मौन है, कंतु सा ह य सा दा यकता और ी पर हुई बबर हसंा पर मौन नह ं है। वातं यो र ह द उप यास इस संबधं म अ धक समृ ध ोत ह य क सा दा यकता पर इसम अ धक जन य व बेबाक ट प णयाँ होने के साथ -साथ जहाँ-तहाँ नार वर भी उ ह ं क आवाज म सुनाई देते ह। इस लए उप यास म इन सम याओं को जडर क ि ट स ेदेखन ेका यास कया गया है।

    fo"k; lwph

    1- lkEiznkf;drk vkSj tsaMj dh vo/kkj.kk 2- lkEiznkf;drkijd miU;klksa esa lkEiznkf;drk vkSj tsaMj ds iz'u 3- lkEiznkf;d ifjn`'; esa tsaMj dh Nfo;ka&miU;klksa ds lanHkZ esa 4- miU;klksa esa oxhZ; pfj=ksa dk lkEiznkf;drk vkSj tsaMj ds izfr n`f"Vdks.k 5- miU;klksa esa lkEiznkf;d lkSgknZ dh psruk vkSj tsaMj n`f"VA milagkjA lanHkZ xzaFk lwphA

    06. xkSre ¼iwue½ ledkyhu fgUnh ysf[kdkvksa ds miU;klksa esa fonzksgh ukjh ik=A funsZf'kdk % MkW- v:.kk xqIrk Th 23103

    lkjka'k ¼vlR;kfir½

    भारतीय सामािजक यव था म नार पतसृ ा मक समाज क गुलाम रह है। नार क धैयता सहनषीलता और उसके समपण का पु ष समाज न ेअपनी सु वधा और अपना वच व बनाए रखने के लए उपयोग कया। भारत क यह अबला नार , पु ष वारा कये जा रहे शोषण को चुपचाप सहती रह । समय के साथ प रि थ तय मं◌ ेभी प रवतन आए। ष ा के सार स ेनार भी अपन ेअ धकार के लए सजग हुई। आज क आधु नक नार शोषण से मुि त के लए संघषरत है। नार वाद ले खकाओ ंम कृ णा सोबती, उषा यंवदा, म नू भंडार , मेह ि नसा परवेज, ममता का लया, मदृलुा गग, मंजुल भगत ने अपना अ तम योगदान दया। समाज का यह दोयम या नग य कहा जाने वाला ी वग अपनी जुझा वृ त के कारण अपने अि त व के लए संघषरत दखायी पड़ता है। केवल सा ह य ह नह ं यथाथ म भी इसका भाव देखने को मलता है जहां ी अपने अ धकार को समझने और इ तेमाल करन ेलगी है और ष ा के मह व क शि त को पहचानत े हुए नार शि त का एक नया उदाहरण

    तुत करन ेम कोई भी कसर नह ं छोड़ रह है। यह संघष और व ोह क ि थ त आयी कहा ँसे और इसका कारण कौन है? और इसका उ र केवल इतना है क हमारा )ी-पु ष (पालन-पोषण ह इस कार से कया जाता है क ी क सोच आरंभ से ह पंगु बना द जाती है जा त, लगं, यव था, और दोगले सं कार के नाम पर। यह कारण है अ याचार को बढ़ावा मलने का और जीवन को पुनः था पत और न म करने हेतू िजस ाण वायु क आव यकता पड़ती है उसके लए संघष और व ोह करने क या आरंभ होती है अ यथा मकू बनकर जीना मृ यु के समान है।

    fo"k; lwph

    1- Hkkjrh; fparu ijaijk esa ukjh 2- fonzksg dh ijaijk 3- tkxj.k dk Loj 4- fonzksg ds fufeÙk 5- lekdyhu miU;klsa esa nfyr ukjh dh fonzksg HkkoukA milagkjA lanHkZ xzaFk lwphA

  • 130

    07. pkj.k ¼fnus'k½ yksd&Le`fr esa jklks dkO; dh miyC/krkA funsZ'kd % izks- vfuy jk; Th 22732

    lkjka'k ¼vlR;kfir½

    रासो सा ह य का ह द सा ह य म मह वपूण थान है। रासो सा ह य का वकास अप शं से ार भ होकर डगंल व पगंल तक आता है। िजस रासो सा ह य को हम ह द सा ह य के इ तहास म आ दकाल तक ह सी मत करके देखते है वह राज थान म 20वीं शाता द तक लखा जा रहा है, िजसके माण इस ब ध म दये गये है। रासो का य को लेकर जो ामक ि थ त बनी हुई है क यह वीरता और ंगार परक का य है, इस ाि त को तोडते हुए वा त वक ि थ त को प ट कया गया है। सा ह य क िजस वा चक पर परा को लोक न सहेज रखा है, उसी पर परा म लोक त म रासो सा ह य भी कुछेक अंशो म सुर त बचा है। राज थान के लोक गीत म अनेक वीर गाथाए,ं ेम गाथाएं आज भी सुर त है। ‘’मत चू क च हाण’’ ओर ‘’ त रया तेल हमीर हठ, चढे न दजूी बार’’ जैसी लोक कहावत तो आज भी हमार लोक मृ त मल जाती है। राज थान क कुछ गायक जा तय वारा गाये जान ेवाले गीत म रासो का य के कुछ अंश देखन ेको मलत ेहै। लोक मृ त म रासो का य क उपल धता वषय के अ तगत रासो सा ह य क ऐ तहा सक, उनक उपल धता, लोक म च लत कथाओ,ं गीत आ द को आधार बनाकर वषय से संबं धत नवीन त य क खोज करन ेका यास कया गया है। रासो का य क एक शैल है िजसम वशेष प से राज थान म रचनाएं ा त होती है। ये रचनाए ं च र धान, ंगा रक, धा मक, हा य यं या मक आ द है। इस शोध ब ध म अ याय का ववरण इस कार से कया गया है – रासो का य पर परा एवं वकास, लो क, लोक मृ त एवं लोक सा ह य, रासो सा ह य क ववेचना, रासो प क अ य रचनाए,ं रासो प के ऐ तहा सक का य, लोक मृ त म रास का य, लोक मृ त म पृ वीराज रासो। इनके साथ ह स पूण स दभ इस ब ध म त य स हत उपल ध है।

    fo"k; lwph

    1- jklks dkO; ijEijk ,oa fodkl 2- yksd] yksd Le`fr ,oa yksd lkfgR; 3- jklks lkfgR; dh foospuk 4- jklks :i dh vU; jpuk,a 5- jklks :i ds ,sfrgkfld dkO; 6- yksd Le`fr esa jklks dkO; 7- yksd Le`fr esa ìFohjkt jklks 8- milagkjA lanHkZ xzaFk lwphA ifjf'k"VA

    08. T;ksRLuk dqekjh HkweaMyhdj.k ds lanHkZ esa mn; izdk'k dk dFkk&lkfgR;A funsZ'kd % MkW- eatq eqdqy dkEcys Th 22727

    lkjka'k ¼vlR;kfir½

    भूमंडल करण पछले दो दशक के सबसे यादा च चत समाजशा ीय ‘पद ’ म से एक है। ‘वा शगंटन आम राय 1989’ से सै धां तक आधार हण कर पूरे व व म आ थक उदारवाद के नव उप नवेशवाद दौर का ारंभ हुआ। भारत म इसको सै धां तक मंजूर 1991 म ‘राव -मनमोहन मा◌ॅडल ’ के वकास के नव उदारवाद इंजन के प म मल । इस भूमंडल करण म रा य क आ थक भू मका को यूनतम करने और नजीकरण पर बल दया गया

  • 131

    था।भूमंडल करण ने न संदेह मनु य के जीवन को सखु -सु वधाओं से लैस कर दया है और आम जनता इसक चकाचध म फँस च◌कु है। पर त ुवा तव म वैि वक तर पर आ थक वषमता दन -त दन बढ़ती चल जा रह है। इसके दरूगामी भयावह प रणाम को देखते हुए पूरे व व के ायः सभी सा ह यकार ने भूमंडल करण, बाजारवाद तथा पूँजीवाद का वरोध कया है। इनम उदय काश का नाम अ ग य है।भमूंडल करण स ेउपजी उपभो तावाद सं कृ त और बाजारवाद के साथ उ र -उप नवेशवाद के व ध सश त तरोध उदय काश क कहा नय का मूल वर है। उदय काश क कहा नय का के य ब ब उपभो तावाद सं कृ त के व ध आम आदमी के सघंष का, वै वीकरण के समकाल न प रवेश म मू य का रण, लु त होती सं कृ त, जीवन -शैल म प रवतन का रचना मक च ण है। आज के ‘नए भाव -स य ’ को अ भ य त करने के लए वे हम एक ऐसे भ न और उ ेजक

    कथा -संसार म ल ेजात े ह जहा ँन केवल कहानी का व प बदला हुआ है वरन ्कहानी कार क संवेदना म भी नयापन है। आज के ज टल यथाथ क अ भ यि त के लए वे अनेक कलायुि तय का योग करते ह - जादईु यथाथवाद, फटेसी, पक, क सागोई, उपशीषक शैल , को ठक शैल , भू मका शैल , आउटडुअल शैल इ या द। ह द कहानी के ऐस े समय म जब क अ धकाशं कहा नया ँ एक ढराब धता को अपनाए हुए ह, उदय काश क योगध मता ह द कहानी के सु ढ़ भ व य क ओर संकेत करती है।

    fo"k; lwph

    1- HkweaMyhdj.k % iq"BHkwfe 2- mn; izdk'k dh dFkk&;k=k 3- mn; izdk'k dh dgkfu;ksa dh vUroZLrq vkSj HkweaMyhdj.k 4- mn; izdk'k ds dFkk&lkfgR; esa ik= vkSj ifjos'k 5- mn; izdk'k dh dgkfu;ksa dh lajpukA milagkjA lanHkZ xzaFk lwphA

    09. f=ikBh ¼izhfr½ rqylh lkfgR; ds lUnHkZ esa HkfDr dk euksfoKkuA funsZ'kd % izks- xksis'oj flag Th 23105

    lkjka'k ¼vlR;kfir½

    मेरा शोध -वषय है “तुलसी सा ह य के स दभ म भि त का मनो व ान”। इस शोध -ब ध का सार है- “भि त मनु य क नैस गक वृ य म से एक है। हर मनु य को भूख मटान ेके लए भोजन के उपरा त, भय मटान ेके लए सुर ा चा हए। शायद इसी लए उसने एक ऐसी सवशि तमान स ा क क पना क , िजसक शरण म जाकर मनु य अपने को भयमु त महससू कर सकता है। इसी म म तुत शोध -ब ध के ववे य क व तुलसीदास को अपने बा याव था के अनाथ व बोध से नकालन ेम राम क भि त बड़ी सहायक होती है; क तु यह संर ण एकतरफा नह ं है। तलुसी के भ त होने के कारण य द राम के प म उ ह यि तगत संर ण मलता है तो राजा व ‘शरचापधर’ होन ेके कारण जन सामा य को भी सामािजक सरं ण ा त होता है। व ेम यकाल म राजतं के नरंकुश, वलासी, भोग -धान वातावरण के बर स रामरा य के लोकतां क , यागमय व सहज अनशुा सत वातावरण का एक का प नक तसंसार रचते ह य क तुलसीदास का सामािजक मन यह जानता है क जो भु वप म भ त क सहायता नह ं कर सकता, संकट से उबार नह ं सकता। उसम ‘संर ण ाि त क कामना’ पूण न हो पान ेके कारण मानवीय वृ याँ कैसे रम सकेगी? अतः तुलसी के मत म सगुण म के त र त क अ धकता का मुख कारण उनक समाज मनो व ान स ब धी समझ है। तुलसी का प नी के त द मत कामभाव )ल बडो (

    काला तर म राम ेम म प रणत होता है। इस स दभ म डॉ .नगे का वचार है क- अपने कामभाव का उ नयन तो “तुलसी न े यि तगत साधना वारा कर लया, पर तु चूँ क यह प रवतन सहज एव ं मक या वारा न

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    होकर एक झटके स े हुआ था, अतः यह ि थ उनके मन म रह गयी और उनक आ म ला न जीवनभर न तो अपने आतुर मन को मा कर सक और न उस आतुर मन क बा य तीक नार को।

    fo"k; lwph

    1- HkfDr dk mn~Hko vkSj fodkl 2- lkfgR; vkSj euksfoKku dk vUr%lEcU/k 3- rqylh lkfgR; esa vfHkO;Dr HkfDr dk Lo:i 4- rqylh dh jpuk&izfØ;k esa HkfDr vkSj mldk euksfoKku 5- rqylh lkfgR; esa vfHkO;Dr HkfDr dh uohurk ,oa izklafxdrkA milagkjA lanHkZ xzaFk lwphA

    10. frokjh ¼uhjtk½ ujs'k esgrk ds lkfgR; esa ijEijk vkSj vk/kqfudrk dk }a}A funsZ'kd % izks- vfuy jk; Th 22706

    lkjka'k ¼vlR;kfir½

    नरेश मेहता के द घ सा ह य ससंार क अंतव तु गहर संवेदनाओ से न मत है | अपने सा ह य क अंतव तु स ेलेकर भाषा तक हर तर पर वे अपने समय के सामािजक प रवेश तथा भारतीय पर पराओ से संपृ त है | नरेश मेहता के सा ह य सजृन का यगु योगवाद तथा नई क वता से लेकर नव े दशक तक फैला हुआ है | उनक आरि भक पहचान दसूरा स तक के क व के प म बनी |नरेश मेहता ऐस े सा ह यकार रहे ह िज ह न े

    येक वचारधारा व अवधारणा म जो कुछ भी सव म है उस े लया है साथ ह उ ह ने वायवीयता के बजाय ठोस धरातल पर अपनी भावभू म को ति ठत कया है| पर परा और आधु नकता का वं व नरेश महेता के सम त रचना संसार म दखाई पड़ता है | इस वं व के कारण ह उनके का य म आ दम राग - चेतना म आधु नक जीवन संदभ के नशान दखाई देते ह| उनके का य रचना म मनु य एवं कृ त के संबध संय जन म यह व द प ट दखाई देता है| उनके उप यास म यह व द सयुं त प रवार वघटन एवं ी पु ष स ब ध च ण म दखाई देता है| कहा नय म यह व द थम फा गुन, कसान का बेटा, र ना , मालनी , गोपा आ द पा ो के मा यम स े दखाई देता है| नाटको म यह व द गोपा - म हम , बा ल टर - क तान , सफालो - सरंद बाबु , करण शंकर - द पा आ द पा ो के मा यम स े दखाई देता है | नरेश महेता के सजृन संसार का अवलोकन करन ेपर यह प ट दखाई पड़ता है क कोई रचनाकार पर परा और आधु नकता का सामंज य बठाकर अपन ेरचना संसार को कस कार एक नया आयाम दे सकता है !

    fo"k; lwph

    1- ijEijk vkSj vk/kqfudrk 2- iz;ksxokn vkSj ujs'k esgrk 3- ujs'k esgrk ds dkO; esa ijeijk vkSj vk/kqfudrk dk }a} 4- ujs'k esgrk ds miU;klksa esa ijEijk vksj vk/kqfudrk dk }a} 5- ujs'k esgrk ds ukVdksa esa ijEijk vkSj vk/kqfudrk dk }a} 6- ujs'k esgrk dh dgkfu;ksa esa ijEijk vkSj vk/kqfudrk dk }a} 7- milagkjA lanHkZ xzaFk lwphA

    11. ujsUnz dqekj jk"Vªh; ukV~; fo|ky; ¼fnYyh½ }kjk eafpr ekSfyd fgUnh ukVdksa esa ik'oZdeZA funsZf'kdk % izks- dqlqeyrk Th 23107

  • 133

    lkjka'k ¼vlR;kfir½

    रा य ना य व यालय वारा मं चत मौ लक हदं नाटक म पा व कम अ ययन शोध बंध एक बेहद चुनो तपूण,रोचक अनुसंधान या ा क तरह है । सं कृत स ेलेकर आज वैि वक तकनीक धान युग के नैप य कम को एक साथ अ ययन करना िजसके क म हदं के मौ लक नाटक रहे ह, यह बेहद रोचक अ ययन रहा। इस पूरे अ ययन म अ य भाषाओ ंके दशन के नेप य को देखन ेजानने को भी हम े मलता है, िजससे एक शोधाथ के प म म समझता हँू क बंगला व ्मराठ रंगमंच क रंग तकनीक और प वरंग योग हदं के नाटक के मंचन

    से थोड़ ेसमृ ध रहे ह। हदं के मलू नाटक मूल प से हदं समाज क संवेदना और उनके समाज के इद -गद ह बुन ेगए ह, िजसस ेउसी समाज के वातावरण का सजृन रंग नदशक न ेउनके दशन म कये। कुछ नाटक के दशन म योग के लए वदेशी शैल व ्वेशभूषा इ या द को दशन म जोड़कर नदशक ने ज र कुछ अलग

    करने का यास कया , ले कन फर अंत म पूरे शोधकाय के बाद हमे यह लगता है क राना व ने समय क ज रत के अनुसार हदं के मौ लक सहज नाटक को वैि वक धरातल पर थापना क है। हदं रंगमंच को वैि वक व प देन े के लए ह प वमंच पर ज रत के अनुसार अलग अलग तरह के म त योग कये गए ह। इन योग म कुछ अमं चत होने का दंश झले रहे नाटक भी सफल मं चत होकर हमेशा के लए यादगार हुए ह, ले कन

    कुछ नाटक योग के लए योग बनकर रह गए ..। अंत म कुल मला कर हम यह कहा जायेगा क राना व न ेहदं रंगमंच के वकास के लए रंगमंच के पा वकम म एक ऐ तहा सक काय कया है िजससे आज हदं रंगमंच क पहचान व व पटल पर अलग बनी है।

    fo"k; lwph

    1- ik'oZdeZ % vo/kkj.kk ,oa ,sfrgkfld i`"BHkwfe 2- ik'oZdeZ ds fofo/k rRo 3- jk"Vªh; ukV~; fo|ky; dh LFkkiuk ,oa mís'; 4- jk"Vªh; ukV~; fo|ky; }kjk eafpr ekSfyd fganh ukVd 5- jk"Vªh; ukV~; fo|ky; }kjk efafpr ekSfyd fganh ukVdksa esa lfUufgr ik'oZdeZA milagkjA lanHkZ xzaFk lwphA

    12. uhjt HkweaMyhdj.k ds var}Za} vkSj ledkyhu fgUnh dforkA funsZ'kd % MkW- ohjsUnz Hkkj}kt Th 22707

    lkjka'k ¼vlR;kfir½

    ह द क वता ने भमूंडल करण और उसस ेउ प न बजारवाद को पराधीनता के नए दु च के प म ेदेखा है। इसन े

    इस त य को रेखां कत कया है क कैस ेएक आम आदमी के भीतर ह शोषक च र का वकास कया जा रहा है।

    यह आम आदमी जो सफ महानगर को देश समझता है और देश के अमे रका मे त द ल हो जाने क आकां ा म

    जी रहा है न केवल समृ ध क होड़ म शा मल होन ेक ज दबाज़ी म है बि क लोबल लूट का ह सा भी बनना

    चाहता है।तभी तो बाजार जैस ेभीड़ वाले जगह पर भी कँुवर नारायण अकेलापन महसूस करत ेहै तो केदारनाथ सहं

    सिृ ट पर बठाए गए पहरे से य थत ह। भगवत रावत आसमान छूते ससे स के देश का सूचकांक बनने से आशं कत

    ह तो राजेश जोशी झकुने से माना कर इ या द के प म ेखड़ ेहो जाते ह। व ापन स ेढके खबर से ल लाधर जगुड़ी

    चं तत ह तो एकांत ीवा तव भारत का असल चेहरा पहचानन ेके लए न ष ध रा त पर चलने क सलाह देत े

    ह। ी कव य या ँबाजार और व ापन के कारण देह के चकन ेहोत ेजाने से सजग ह तो द लत और आ दवासी

  • 134

    लेखक भी ई वर से अपनी यातना का हसाब मांगन े के अलावा बाजार के साथ स ा के गठजोड़ का भी पदाफास

    करते ह । यह भी स चाई है क समकाल न क वता म कसान,ब चे,पयावरण एवं उपे त जीवन )जैसे

    वधवा,वृ ध,तलाक और शार रक प से अ म (इ या द को उतना पेस नह मला है िजतना यह वकराल होता जा

    रहा है। ले कन भूमंडल य बाजार के वषमतापूण च र और जीवन से गायब होती रागा मकत◌ा का लगभग हर

    आयाम इस क वता म उपल ध है। इस लए वैि वक दबाब के त संवेदनशील समकाल न ह द क वता म े

    भूमंडल करण का मुक मल वमश आलोचना मक ढंग से उपि थत हुआ है ।

    fo"k; lwph

    1- HkweaMyhdj.k dk Lo:i] lanHkZ ,oa blds var}Za} 2- ledkyhurk vkSj ledkyhu fgUnh dfork i`"BHkwfe ,oa fodkl&Øe 3- HkweaMyhdj.k ds var}Za} vkSj ledkyhu fgUnh dfork fofo/k lanHkZ 4- HkweaMyhdj.k ds var}Za} vkSj ledkyhu fgUnh dfork % fofHkUu vfLerkvksa ds lanHkZ esaA milagkjA lanHkZ xzaFk lwphA

    13. izohu dqekj dk'khukFk flag ds lkfgR; dh Hkkf"kd lajpukA funsZf'kdk % izks- dqlqe yrk Th 22731

    lkjka'k ¼vlR;kfir½

    मेरे शोध का उ दे य काशीनाथ सहं के सा ह य क भा षक संरचना है। शोध के वभ न पहलओुं को देखते हुए मने अपने शोध बंध को छह अ याय म वभ त कया है। थम अ याय ‘रचनाकार एवं रचनाध मता’ म काशीनाथ सहं के ज म एव ं प रवार, बचपन, श ा आ द को दखाया गया है। इसके बाद काशीनाथ सहं क रचनाओ ंम प रवेश और आधु नक बोध को उजागर कया गया है। वतीय अ याय ‘भाषा पहचान और परख’ के अंतगत भा षक संरचना के नमाण एवं व प को दखाते हुए ग य क भा षक संरचना को प ट कया गया है। ततृीय अ याय ‘काशीनाथ सहं के उप यास तथा उनक भा षक सरंचना’ के अंतगत काशीनाथ सहं के उप यास म लोक -भाषा के व प पर काश डालते हुए इनके उप या स म व ोि त और यं य को दखाया गया है। त प चात ्इनके उप यास म जीव त भाषा के आधार खोजते हुए भाषा के भदेसपन के सवाल पर भी काश डाला गया है। चतुथ अ याय ‘काशीनाथ सहं क कहा नय क भा षक संरचना’ म काशीनाथ सहं क कथा भाषा का सम मू यांकन करते हुए इनक कथा भाषा और समसाम यक कथा भाषा म अ तर प ट कया गया है। समसाम यक कथा भाषा म मनोहर याम जोशी, मदृलुा गग और शरद जोशी क कथा भाषा को लया गया है। पंचम अ याय ‘ ह द सं मरण पर परा और काशीनाथ सहं’ के अंतगत काशीनाथ सहं के सं मरण क भाषा म आ म त व कस कार उभर कर सामने आया है, इसे प ट कया गया है। त प चात ्इनक कथा भाषा तथा सं मरण क भाषा म अ तर दखाया गया है। ष ठ अ याय ‘काशीनाथ सहं के सा ह य के अ य प क भा षक संरचना’ म काशीनाथ सहं कृत ‘घोआस’ क ना य भाषा पर काश डाला गया है। इसके बाद ‘लेखक क छेड़छाड़’ क रचना मक भाषा को दखाया गया है। अ त म उपसंहार के अतंगत स पूण शोध को सार प म तुत कया गया है।

  • 135

    fo"k; lwph

    1- jpukdkj ,oa jpuk /kfeZrk 2- Hkk"kk igpku vkSj ij[k 3- dk'khukFk flag ds miU;kl rFkk mudh Hkkf"kd lajpuk 4- dk'khukFk flag dh dgkfu;ksa dh Hkkf"kd lajpuk 5- fgUnh laLej.k ijEijk vkSj dk'khukFk flag 6- dk'khukFk flag ds lkfgR; ds vU; :iksa dh Hkkf"kd lajpukA milagkjA lanHkZ xzaFk lwphA

    14. ik.Ms; ¼jatu½ fganh vkRedFkkvksa esa lajfpr vkRe Nfo;ksa dk lkekftd v/;;uA funsZ'kd % MkW- fcØe flag Th 22721

    fo"k; lwph

    1- fgUnh lkfgR; esa vkRedFkk % izd`fr] Lo:i vkSj fufeZfr 2- fgUnh vkRedFkk % lajftr vkRe Nfo;ksa dh fodlu'khy vkReijdrk 3- L=h vkRedFkk,a % L=h foe'kZ ds ljksdkj vkSj vkRe Nfo dk foLrkj 4- nfyr vkRedFkk,a % nfyr foe'kZ ds ljksdkj] lkekftdrk vkSj vkRe Nfo dk Lo:I 5- 21oha 'krkCnh dh fgUnh vkRedFkkvksa dk ifjn`';A milagkjA lanHkZ xzaFk lwphA

    15. fcUnqerh Hkkjrh ubZ dfork vkUnksyu vkSj rhljk lIrdA funsZ'kd % MkW- e/kq oekZ Th 23181

    fo"k; lwph

    1- dfork dh lajpuk 2- ubZ dfork ,d ifjp;kRed v/;;u 3- ubZ dfork vkUnksyu ds izeq[k dfo 4- rhljk lIrdA milagkj A lanHkZ xzaFk lwphA

    16. eatq jkuh e/;dkyhu dkO;&Hkk"kk dk Lo:i vkSj ehjk dh dkO;&Hkk"kkA funsZ'kd % MkW- egs'k dqekj Th 22730

    lkjka'k ¼vlR;kfir½

    'kks/k xzaFk izFke vè;k; esa Hkk"kk dk Lo:i le>krs gq, dkO; Hkk"kk ls bldh rqyuk izLrqr dh xbZ gSA dkO; Hkk"kk dks mldh igpku nsus okys rRoksa 'kCn p;u ,oa 'kCn iz;ksx] vyadkj] Nan] laxhr] eqgkojs] yksdksfDr;k¡] dYiuk] fcEc] izrhd vkfn dk Lo:i vkSj izdkj Li"V fd, x, gSaA nwljs vè;k; esa HkfDrdkyhu dkO; esa iz;qDr eq[;r% czt Hkk"kk] vo/kh Hkk"kk] fefJr Hkk"kk vkSj nfD[kuh fgUnh ds Lo:i vkSj iz;ksx dk mYys[k djrs gq, buls tqM+s izeq[k HkfDr dfo;ksa dh Hkk"kk dk Hkh voyksdu fd;k x;k gS rFkk ehjk dh blh dky esa vyx fof'k"V jktLFkkuh Hkk"kk dk Hkh Lo:i Li"V fd;k x;k gSA rhljs vè;k; esa ehjk ds dkO; dh Hkk"kk ds O;kdjf.kd i{k dks mHkkjus ds lkFk&lkFk ehjk ds inksa esa iz;qDr vU; Hkk"kkvksa ds :iksa dk Hkh fo'ys"k.k fd;k gSA blh Øe esa ehjk dh dkO; Hkk"kk dk egÙo Hkh LFkkfir fd;k x;k ftlls Kkr gksrk gS fd ehjk dh dkO; Hkk"kk vU; larksa dh Hkk"kk dh Hkkafr lgt] ljy] Ikzokge;h vkSj ^uhj* dh Hkkafr xfr'khy gS tks fdlh fu;e ca/ku dks

  • 136

    ugha Lohdkjrh Hkkoksa dh Hkkafr mudh Hkk"kk Hkh 'kfDr lEiUu gS tks tuekul dh Hkk"kk gksrs gq, Hkh fof'k"V gSA pkSFks vè;k; esa ehjk dh dkO; Hkk"kk dh lkSUn;Z dk tkek igukus okys rRoksa tSls vyadkj] Nan] fcEc] izrhd vkfn dk fo'ys"k.k izLrqr fd;k x;k gS ftlls Kkr gksrk gS fd ehjk dh dkO; Hkk"kk dsoy fdlh 'kq"d lar dh Hkk¡fr ugha vfr lkSUn;Ze;h gSA ik¡posa vè;k; esa ehjk dh dkO; Hkk"kk ij iM+s yksd&lkaLd`frd izHkko dk fo'ys"k.k fd;k x;k gSA tksfd muds ifjos'k dk gh ifj.kke gSA ehjk ds dkO; esa d`f=erk dk ys'kek=k Hkh ugha gSA blhfy, muds dkO; esa Hkk"kk esa ^yksd* ds n'kZu lgt gh gks tkrs gSaA vFkkZr~ mudh Hkk"kk esa yksdrRo] yksdthou] yksdlaLd`fr vkSj yksdHkk"kk lHkh dqN fey tkrk gSA

    fo"k; lwph

    1- dkO;&Hkk"kk % vfHkizk; vkSj Lo:i 2- e/;dkyhu dkO; Hkk"kk dk Lo:i 3- ehjk dh dkO; Hkk"kk 4- ehjk dkO; dk Hkk"kk lkS"Bo 5- ehjk dh dkO; Hkk"kk dk lkaLd`frd i{kA milagkjA lanHkZ xzaFk lwphA

    17. e/kqckyk Hkkjrh; e/;oxZ dk pfj= vkSj deys'oj dk dFkk&lkfgR;A funsZf'kdk % MkW- r`Irk 'kekZ Th 22714

    lkjka'k ¼vlR;kfir½

    कमले वर एक ऐसे कथाकार है िज ह ने आज के मधयवग य समाज क स ची झलक जनमानस के सम ततु क है / मेरा यह शोध काय 'भारतीय म यवग का च र और कमले वर का कथा -सा ह य ' न केवल सा ह यक ि ट से अ पतु सामािजक व ् मानवीय ि ट से भी अ यंत महतवपूण हैI तुत शो द बंध को पाचं अ याय म वभ त कया गया हैI थम अ याय म ' भारतीय म यवग का अ भ ाय एव ंअवधारणा' तुत क है I इसके अंतगत वग क अवधारणा, म यवग क प रभाषा एवं व प , वातंयो र म यवग य चेतना , भारतीय म यवग क सम याए ंएव ंबहुआयामी लेखक कमले वर - एक प रचय को तुत कया गया है I वतये अ याय म 'म यवग य च र एवं पा परमपरा का वकास' के अंतगत च र -च ण - एक प रचय , च र च ण का व प, पा पर परा - भेद एवं आव यकता, ाचीन स दभ म पा पर परा एवं च र ि ट, कमले वर क कहा नयो एवं उप यास म म यवग य च र एव ं पा पर परा को तुत कया गया हैI ततृीय अ याय 'कमले वर के कथा -सा ह य म

    म यवग य समाज - व लेषण ' के अंतगत कमले वर क कहा नया ँएव ंम यवग य व वध आयाम , कमले वर के उप यास म म यवग य व वध आयाम एवं कमले वर के कथा - सा ह य म म यवग य क बाई और महानगर य प रवेश को पर् तुत करता हैI चतुथ अ याय म म यवग य च र -व लेषण के अंतगत हदं कहानी का अथ, व प एवं वकाश, कमले वर क कहानी - कला एव ंकमले वर क कहा नयो म सम या - बोध को ततु कया गया हैI पंचम अ याय ' कमले वर के उप यास सा ह य म म यवग य च र -व लेषण ' के अंतगत उप यास - एक सं त प रचय, हदं उप यास और कमले वर, एवं कमले वर के उप यास म सम या - बोध को तुत कया गया हैI उपसंहार के अंतगत कमले वर के कथा - सा ह य म म यवग य समाज क प रि थ तय व ्आज के

    समाज म प ् रा सगंकता पर सं त वचार व ्मा यताएं तुत क गई हैI

    fo"k; lwph

    1- Hkkjrh; e/;oxZ dk vfHkizk; ,oa vo/kkj.kk 2- e/;oxhZ; pfj= ,oa ik= ijEijk dk fodkl 3- deys'oj ds dFkk lkfgR; esa e/;oxhZ; lekt&fo'ys"k.k 4- deys'oj ds dgkuh&lkfgR; esa e/;oxhZ;

  • 137

    pfj=&fo'ys"k.k 5- deys'oj ds miU;kl lkfgR; esa e/;oxhZ; pfj=&fo'ys"k.kA milagkjA lanHkZ xzaFk lwphA

    18. feJ ¼vouh'k½ chloha lnh ds vfUre n'kd esa lkekftd&vkfFkZd ifjorZu dk fgUnh miU;klksa dh Hkk"kk ,oa :i ij izHkkoA funsZ'kd % MkW- d`".kk 'kekZ Th 22718

    lkjka'k ¼vlR;kfir½

    शोध वषय ‘बीसवीं सद के अि तम दशक म सामािजक -आ थक प रवतन का ह द उप यास क भाषा एवं प पर भाव’ को पांच अ याय म वभािजत कया गया है। पहले अ याय ‘‘सद के अं तम दशक म सामािजक-आ थक प रवतन’’ म तीन मकार - ‘मंडल’, ‘मं दर’ और ‘माकट’ से पुकारे जानेवाले बदलाव पर चचा है। दसूरे अ याय, “उप यास :भाषा एवं प का न )सामािजक -सां कृ तक-सा हि यक संदभ( ” म उप यास क सै धां तक , वशेषतः उप यास क प रभाषा और उसके प तथा भाषा पर चचा है। तीसरे अ याय, “ ह द उप यास )न बे के

    दशक के पूव (म भाषा एव ं प का न ” म सं ेप म न बे के दशक से पहल ेके मखु ह द उप यास क भाषा एवं प के संदभ म प रवतन को चचा है। चौथ ेअ याय, “1990 के बाद के ह द उप यास :भाषा एव ं प का शन्” म न बे के दशक और उसके बाद के उप यास के संदभ म भाषा एव ं प म प रवतन का सव ण है।

    पांचव अ याय, ‘ वशेष संदभ :त न ध उप यास का सव ण ’ म 12 त न ध उप यास का वशेष अ ययन कया गया है। अ ययन के अंत म न कष को इस तरह रख सकत ेह :इस युग के कई उप यास म सगु ठत प क जगह वखं डत प दखता है। इस आधार पर इन उप यास को पो ट नावेल कहा जा सकता है। उप यास म वधाओं का संलयन दखाई देता है। कथा म आ मकथा, जीवनी, सं मरण, डायर , अखबार रपो टग, नो टं स आ द दसूर वधाओं का समावशे होता है। कथा के साथ इ तहास, रपोट जैसे अनशुासन भी मलते दखते ह। उप यास को शीषक म ढाल कर अ याय म बांटा गया है, िजसे ए पसोडीकरण क वृ कह सकते ह। उप यास क भाषा म बदलती राजनी तक, सामािजक और आ थक जीवन क नयी भाषा का असर द खता है। भूमंडल करण के भाव से अं ेजी श द , पद और वा य और वा य संरचना का योग, व ापन , सूचना -संचार ां त- कं यूटर , इंटरनेट के कारण नयी भाषा का भाव भी दखता है।

    fo"k; lwph

    1- lnh ds vafre n'kd esa lkekftd&vkfFkZd ifjorZu 2- miU;kl % Hkk"kk ,oa :i dk iz'u ¼lkekftd&lkaLd`frd&lkfgR;d lanHkZ½ 3- fgUnh miU;klksa ¼uCcs ds n'kd ds iwoZ½ esa Hkk"kk ,oa :i dk iz'u 4- 1990 ds ckn ds fgUnh miU;kl % Hkk"kk ,oa :I dk iz'u 5- fo'ks"k lanHkZ % izfrfuf/k miU;klksa dk loZs{k.k 6- milagkjA lanHkZ xzaFk lwphA

    19. eh.kk ¼thrsUnz dqekj½ izlkn vkSj eksgu jkds'k ds ukVdksa esa ukjh&vfLerk dk iz'uA funsZf'kdk % izks- dqlqeyrk Th 22711

  • 138

    lkjka'k ¼vlR;kfir½

    वतमान समय म द लत वमश, ी वमश, आ दवासी वमश आ द म हा शए के न को के य वषय बनाया गया है। तुत शोध म नार अि मता के अंतगत ी मुि त स ेसंबि धत सभी ज टल न का समाधान खोजन ेका यास कया गया है। 'नार अि मता :प रभाषा और व प ' शीषक म अि मता श द का अथ और व प समझने के साथ नार अि मता को प ट कया है। अचना वमा के श द म "'अि म' अथात 'म हँू'। अि म क भाववाचक सं ा 'अि मता' है यह ' व व' का बोध है, आ म नणय और आ मा भ यि त का न है जो कसी को यि त बनाता है। ...या न जो हम 'नह ं' ह का एक बोध अि मता क रचना करता है। "' साद के नाटक म नार अि मता' शीषक के तहत साद के नाटक म नार अि मता और उसक पहचान के न को सहट कया है। रा य ी, मि लका, सरमा, देवसेना, ुव वा मनी आ द पा कह ं -न-कह ं पतसृ ा वारा न मत ी छ व को तोड़त ेह। 'मोहन राकेश का ना य सा ह य और नार चतंन' शीषक पर भी काम कया गया है। राकेश न े ी स ब ध को अपनी मौ लक रंग ि ट वारा एक नया बोध दान कया। ी को नतांत वयैि तक तर पर आंत रक चतंन -मनन वारा अपनी अि मता तथा अि त व क नरंतर खोज करवाते चलत ेह। ' साद और मोहन रकजेश क एकां कय म नार चेतना' शीषक पर ी चेतना क ि ट से अ ययन कया है। 'नार अि मता :साम यक

    रंग-चतंन ' वषय पर साद और मोहन राकेश के नाटक को क म रखकर ेम, संवेदना और ववाह के मूलभूत न को अ भ य त कया है। न कषतः कहा जा सकता है क येक मनु य को अपनी वत ता का नधारन

    करने का हक है, अतः ी को भी जबरन लाद गई पर पराओ,ं नै तकताओ,ं मयादाओ,ं कु तय , धमाधताओं को यागकर अपने अि त व नमाण क या म वय ंस य होना चा हए।

    fo"k; lwph

    1- ukjh&vfLerk % ifjHkk"kk vkSj Lo:i 2- izlkn ds ukVdksa esa ukjh&vfLerk 3- eksgu jkds'k dk ukV~; lkfgR; vkSj ukjh fparu 4- izlkn vkSj eksgu jkds'k dh ,dkafd;ksa esa ukjh psruk 5- ukjh&vfLerk % lkef;d jax fparuA milagkjA lanHkZ xzaFk lwphA

    20. ehuk ¼jkds'k dqekj½ mÙkj&vkSifuosf'kd foe'kksZa ds lanHkZ esa xklkZa n rklh] tkWtZ vczkge fxz;lZu] ,Q-bZ-ds- ds e/;dkyhu fparu dk iqueZwY;kaduA funsZ'kd % MkW- eqds'k xxZ Th 22712

    lkjka'k ¼lR;kfir½

    भारतीय भाषा और सं कृ त के इ तहास क ि ट स े सभी समाजशाि य , इ तहासकार एव ं राजनी त न ेम यकाल न कालखंड को मह वपणू माना है। सा ह य, इ तहास और आलोचना के मू यवान तमान यह ंस े नकले, यह ं से न मत हुए। सा ह ये तहास लेखन क परंपरा म तासी, यसन एवं एफ .ई.के .के यहाँ म यकाल न चतंन

    एवं सा ह य उ कृ ट थान रखत ेह। आज भी ये मह वपूण ह। यह सवाल भी आज मह वपू ण है क पाँच -छह सौ वष पुरान े का य को कैस े पढ़ा जाय। यह जानना ज र है क पूववत वमशकार न े इस े कस प म पढ़ा? अ ययन, ववेचन, व लेषण क सु वधा के लए तुत शोध -बंध "उ र-औप नवे शक वमश के संदभ म गासा द तासी, यसन एफ.ई .के .के चतंन का पुनमू यांकन "को छह अ याय म वभ त कया गया है। थम अ याय 'म यकाल न चतंन और सा ा य वाद व उप नवेशवाद' म म यकाल न व प और अवधारणा पर वचार कया गया

  • 139

    है। वतीय अ याय 'उ र -औप नवे शक वमश क व भ न सर णयाँ ' के तहत उ र -औप नवे शक क प रभाषा , व प, अ भ ाय और अवधारणा पर वचार कया गया है। ततृीय अ याय 'गासा द तासी, जॉज अ ाहम यसन,

    एफ .ई.के .के इ तहास म म यकाल न इ तहास लखेन एवं म यकाल न क वय के संदभ म चतंन ' के तहत गासा द तासी के हदं सा ह य के इ तहास लेखन को परखा गया है। चतुथ अ याय 'जॉज अ ाहम यसन' म सा ह ये तहास -लेखन क अवधारणा और ि टय तथा भि तका य के व श ट क वय के संदभ म उनके मू यांकन का अ ययन कया गया है। पंचम अ याय 'एफ .ई.के .का चतंन ' के तहत इ तहास लेखन एव ंक वय के संदभ म

    उनक ि ट का अ ययन कया गया है। ष टम ् अ याय 'उ र -औप नवे शक संदभ म सा ह ये तहासकार क अवधारणा का पुनमू यांकन' के तहत सा ह ये तहास -लेखन क अवधारणा और ि टय का मू याकंन कया गया है।

    fo"k; lwph

    1- e/;dkyhu fpUru vkSj lkezkT;okn o mifuos'kokn 2- mÙkj&mkSifuosf'kd foe'kksZa dh fofHkUu ljf.k;k¡ 3- xklkZa n rklh dk fparu 4- tkWtZ vczkge fxz;lZu dk fparu 5- ,Q-bZ-ds- dk fparu 6- mÙkj&vkSifuosf'kd lanHksZa esa lkfgR;sfrgkldkjksa dh vo/kkj.kk dk iquewZY;kaduA milagkjA lanHkZ xzaFk lwphA

    21. ;kno ¼vfuy dqekj½ u;h dgkuh vkanksyu esa deys'oj dk ;ksxnkuA funsZf'kdk % MkW- dqeqn 'kekZ Th 23104

    lkjka'k ¼vlR;kfir½

    नयी कहानी आंदोलन के आलोचना और ववाद म एक मथ क तरह कमले वर नयी कहानी के चतंन म लगातार मौजूद रहे| नयी कहानी आंदोलन म कमले वर का लखा हुआ लगातार ववाद त रहा ले कन 'नयी कहानी' वचारधारा मक एव ंआलोचाना मक अ मुहैया करने वाल म कमले वर सबस ेआगे नज़र आते है| वे केवल कहानीकार के प म ह नह ंबि क इस दौरान आने वाल 'नयी कहानी' एवं 'समांतर कहानी' जसैे आंदोलन के नयामक एव ंसंचालक भी रहे| 'नयी कहानी' उनके लए आंदोलन नह ं, नए के लए य नशील और योगशील रहन ेक या है| कमले वर पुरानेपन के हर उन मू य क आलोचना करत े है, जो नयेपन और मनु यता के आड़ ेआती है| नयी कहानी के अलावां 'कथा सं कृ त' और 'कथा वृ त' के मा यम स े कथा क द घ वकास या ा वैभव,भाव -भू म एंव सरंचना को भी रेखां कत कया | उनसे असहमत हुआ जा सकता है कंतु नयी कहानी और कहानी क पहचान बनान ेक उनक ललक को दर कनार नह ं कया जा सकता| कमले वर क कहा नय म पर परा से व ोह और अनुभव े क ामा णक पहचान दखाई पड़ती है| वे 'नयी कहानी' के सबसे ग तशील कहानीकार ह, िजनक कहा नयां प रवेश और समय क आकां ाओ ंके साथ बदलती रह है| ाि भक दौर क कहा नया ंक बाई जीवन से संबं धत ह वह ं बाद क कहा नय म महानगर य जीवन| इनक कहा नय म आमआदमी और न न म यवग क म है| कमले वर क कहा नयां यथाथवाद ह ले कन यथाथवाद का खुरदरापन उनम नह ं मलता है| शु आती दौर क कहा नय म आदश और भावुकता का पुट मलता है| 'समांतर कहानी' के मा यम स े उ होन 'अकहानी', 'सहज कहानी', ' व ु ध कहानी', ' मशानी पीढ़ ' के चलत ेजो आम आदमी कहानी से गायब हो गया था, उसे पुन :कहानी म था पत कया | उ ह ने हदं कहानी को एक नयी दशा द और उसके तेवर को बदल कर रख दया| हदं सा ह य म कमले वर जैसे बहुमखुी और रचना मक यि त व के लोग कम ह हुए|

  • 140

    fo"k; lwph

    1- u;h dgkuh vkanksyu dk lanHkZ 2- u;h dgkuh vkanksyu ds izeq[k fookn 3- u;h dgkuh vkanksyu vkSj deys'oj dh vkykspuk 4- u;h dgkuh vkanksyu vkSj deys'oj dj jpuk deZ 5- dgkuhdkj deys'oj % Hkk"kk rFkk f'kYi 6- lekarj dgkuh dh t:jr D;ksa\ milagkjA lanHkZ xzaFk lwphA

    22. ;kno ¼vkyksd jatu flag½ ekdZ.Ms; ds dFkk lkfgR; esa lkekftd ,oa jktuhfrd psrukA funsZ'kd % izks- fujatu dqekj Th 22725

    lkjka'k ¼vlR;kfir½

    माक डये के रचना -संसार के बारे म कोई भी बातचीत उस पूरे सा हि यक और समाजा थक प र य को भुलाकर

    संभव न था। इस लए आप मेरे परेू शोध-बंध म गौर करगे क बार-बार यह प र य लौटता है। कई बार प र य के ि ट-ब द ुसे माक डये को देखा गया है और जगह -जगह माक डये के रचना-संसार म आलो चत समाज को

    समझने का यास कया गया है। माक डये अपन ेसमय-समाज क आलोचना करते ह। वे उस े य का य रचन ेवाल कृ तवाद ि ट के हमायती नह ंह। अपन ेशोध-काय के दौरान मने पाया है क ाम -कथा और नगर-कथा

    म बाँटत ेहुए माक डये के कथा-संसार को िजस सरल कृत ढंग स ेनव मानवाद के मुहावरे स ेजोड़ दया जाता है , वह सह नह ं है। माक डये के कथा -संसार का व तु न ठ मू याकंन इस तरह के सरल करण को गलत स ध करता है। इनके कहा नय और उप यास म वातं यो र भारत के सामािजक, राजनी तक, आ थक बदलाव और

    त ज नत भाव संबधं म आ रहे बदलाव और मू यगत वघटन को - ये कथा बहुत सजना मक ढंग से रचती है। िजसे मूल धारा क कथा या नयी कहानी कहा गया था, वो रचनाकार के आ मब धता का उदाहरण है। वे कथाकार िजस शहर म यवग य जीवन क कहा नयाँ रच रहे थे, वह उस समय का बहुत छोटा ह सा था। आज भी उ र भारत म साठ तशत स े यादा जनता गाँव म रहती है। उस दौर म यह तशत इसस ेकह ं यादा था और माक डये जैसे कथाकार समाज के इसी बहुलांश से जुड़ ेथे और उसक वड बनाओं को रच रहे थे। अगर माक डये के पूरे रचना ससंार को देख तो उसम वैचा रक प रवतन और संवदेना मक गहराई दोन एक साथ वक सत होता हुआ दखता है। उनक पहल कहानी ‘गुलरा के बाबा’ और अं तम कहानी - सं ह ‘हलयोग’ के बीच इस वकास को देखा जा सकता है। इस ेगांधीवाद, मा सवाद और अ बेडकरवाद के म म समझ सकते ह।

    fo"k; lwph

    1- ekdZ.Ms; dk jpukRed thou vkSj lkfgR; % ,d laf{kIr ifjp; 2- ekdZ.Ms; dk dFkk&lkfgR;] oSpkfjd fparu vkSj jktuhfr 3- ekdZ.Ms; dk dFkk&lkfgR; vkSj lkekftd lajpuk 4- ekdZ.Ms; ds dFkk&lkfgR; dk lajpukred i{k 5- ekdZ.Ms; dh Hkk"kkA milagkjA lanHkZ xzaFk lwphA

    23. ;kno ¼vkse izdk'k½ Nk;kokn laca/kh vkykspukRed fooknksa dk v/;;uA funsZ'kd % izks- jktsUnz xkSre Th 22709

  • 141

    fo"k; lwph

    1- Nk;koknh dkO;kUnksyu 2- Nk;kokn laca/kh fofHkUu okn&fookn 3- Nk;kokn % fo"k;oLrq ,oa dkO;&f'kYi laca/kh okn&fookn 4- Nk;kokn ds laca/k esa izeq[k Nk;koknh dfo;ksa dh LFkkiuk,a 5- Nk;kokn % izfrf"Br vkUnksyu ds :i esa bldh vkykspuk 6- Nk;kokn laca/kh okn&fookn vkSj ijorhZ vkykspukA milagkjA xzaFk lwphA

    24. ;kno ¼pUnzizdk'k½ vkykspuk dh ekDlZoknh n`f"V vkSj eqfDrcks/k dk vkykspuk deZA funsZ'kd % MkW-vk'kqrks"k dqekj Th 22710

    fo"k; lwph

    1- vkykspuk dh edlZoknh n`f"V& fl)kar vkSj O;k[;k,¡ 2- jpuk&izfØ;k vkSj eqfDrcks/k 3- vkykspuk dh leL;k,¡ vkSj eqfDrcks/k 4- eqfDrcks/k dh O;kogkfjd leh{kk 5- eqfDrcks/k vkSj ledkyhu fgUnh vkykspukA milagkjA lanHkZ xzaFk lwphA

    25. jke th yky fgUnh HkfDr lkfgR; esa vfLerkewyd psrukA funsZ'kd % MkW- fouksn frokjh Th 22717

    fo"k; lwph

    1- vfLerk % vo/kkj.kk ,oa fopkj 2- vfLerk dh jktuhfr vkSj lkfgR; 3- fgUnh HkfDr lkfgR; esa nfyr vfLerk 4- fgUnh HkfDr lkfgR; esa L=h vfLerk 5- fgUnh HkfDr lkfgR; esa tkrh; psrukA milagkjA lanHkZ xzaFk lwphA

    26. jhrk chloha 'krkCnh ds mÙkjk)Z ds miU;klksa esa lÙkk&foe'kZ ¼1975&2000 rd ds miU;kl½A funsZ'kd % MkW- gjh'k [kUuk Th 22726

    lkjka'k ¼vlR;kfir½

    स ा जीवन के येक प को भा वत करती है और उप यास जीवन को संपूणता म अ भ य त करते ह। 1975 से 2000 तक का काल व भ न बदलाव का समय रहा है। 1975 म देश म आपातकाल क घोषणा, आठव दशक म अि मतामूलक वमश जैसे - ी वमश , द लत वमश जो स ा म अपनी दावेदार तुत करते ह और न बे के दशक म भमूंडल करण के प म स ा वमश का नया प। मने इस शोध बधं म इन सब ब दओुं के आलोक म उप यास के मा यम से स ा के व भ न प सामािजक, सां कृ तक, आ थक और राजनै तक को व तार स ेसमझने और व ले षत करन ेका यास कया है। उप यासकार बहुत से न तथा चुनौ तय से एक साथ जूझने लगे। फलतः कथानक चयन स े लेकर अ भ यि त शलै तक म नया बदलाव दखाई देता है। स ाधार वग,

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    जा तस ा, पतसृ ा तथा भूमंडल करण के प म छ म आधु नकता दखाता पि चमी गुलामी का नया प - सब कुछ इस अव ध के उप यास म रेखां कत कया गया है। अपने-अपने राम , अ धनार वर, आवां, एक जमीन अपनी,

    कटरा बी आज,ू क ल -कथा :वाया बाइपास , कतने पा क तान, चाक, छ पर, प र श ट आ द उप यास म ी व द लत अि मता बोध का, उसक संघषशील वृ का च ण करना इस अव ध के उप यास क मह वपूण उपलि ध है। ि य व द लत को पहले अपने समाज म या त भेदभाव , अंत वरोध स ेऊपर उठना होगा तभी व ेसश त तर के से स ा म अपनी भागीदार सु नि चत कर पाएंगे। भूमंडल करण के प म स ा के नए वमश अथात पि चम के सां कृ तक वच व स ेसावधान होन ेक अ त आव यकता है अ यथा अपनी जड़ से उखड़कर हम कह ंके नह ंरहगे। स ा सवदा या य नह ंहोती। मनु य क समाजीकरण क या स ा के अभाव म सं द ध हो सकती है। प रवार, धम, अथत , पारंप रक मा यताएँ और सगंठन हम शि त दान करते ह ले कन इनका प रशोधन नरंतर चलते रहना आव यक है ता क स ा नरंकुश न हो सके।

    fo"k; lwph

    1- lÙkk dk Lo:i vkSj lajpuk 2- oxZ dsafnzr lÙkk&foe'kZ dss miU;kl 3- l=h vfLerk dsafnzr lÙkk&foe'kZ ds miU;kl 4- o.kZ@tkfr dsafnzr lÙkk&foe'kZ ds miU;kl 5- miU;klsa esa lÙkk&foe'kZ dk cnyrk Lo:iA milagkjA vk/kkj xzaFk lwphA

    27. oekZ ¼jk[kh½ orZeku lanHkZ esa fgUnh lwQh&dkO; dk v/;;uA funsZ'kd % MkW- fot;'kadj feJ Th 22708

    lkjka'k ¼vlR;kfir½

    Vartmaan sandarbho mei hindi sufi Kavya ki praasangikta swayamsidh hai. Sthitiyo ko yathasambhav sudhaarne mei sufi vichaar kaargaar sidh ho skte hai. Prem ko kasauti maankar samaajik vyavasthaao mei nirmaan ka shankhnaad hindi sufi Kavya ne kiya. Madhyakaalin samajeek saanskratik jeevan m anek kuritiyo tatha baahya aadambar dekhte h. Saamantvaadi vyavastha aur jaativaad varn vyavastha ki kuruptaae samajo ko samvedna shunya bna rhe the. Naari ki sthiti hmesha ki tarah shochniye thi. Aise m Santo tatha sufiyo ne apne samataparak maanviye vichaaro ko janta tak pahuchaya. Inka sakaaratmak prabhaav bdi pda. Aaj ke smay mei bhi samaaj ka vahi kinchit badle rupo mei anubhutiheen rup dekha ja rha h. Aadhunik yug vigyaan ka yug hai kintu maanviye soch aaj bhi rudhivaadi vichaaro se bandhi hui hai. Varg varn bhed, stri ki visham avastha, daridrata aaj bhi bahut kuchh vaisi hi hai. Samaajik kuritiya baahya aadambar kam nahi hue hai. Itne smay baad bhi samaaj ki dasha aaj utni nahi badli hai jitni badalni chaahiye thi. Sufi kavyo mei vyakt vichaar ek baar fir se maanav jeevan ke sahi arth samajhne mei sahaayak ho sakte hai. Sufi Santo ne udaarta k saath manushya ke prati gahri samvedna, ujjaval prem bhaavna, dhaarmik ekta, saanskratik sauhardra ke prati purn pratibadhta dikhlaai. Unhone jeevan ko udaatt bnaane ka sandesh diya.

    fo"k; lwph

    1- lwQh dkO; dh i`"BHkwfe 2- fgUnh lwQh dkO; esa ,sfrgkfld euq"; dh vo/kkj.kk 3- fgUnh lwQh dkO; % ijEijk vkSj cnykoksa dh VdjkgV ds Loj 4- fgUnh lwQh dkO; ijEijk esa mRlokRed yksd laLd`fr 5- fgUnh lwQh&dkO; esa lkekftd ljksdkjA milagkjA lanHkZ xzaFk lwphA

  • 143

    28. fou; dqekj usfepanz tSu % ,d lkaLd`frd O;fDrRo dk fuekZ.kA funsZ'kd % izks- viwokZuan Th 22729

    lkjka'k ¼vlR;kfir½

    ने मजी के सां कृ तक यि त व के गठन म क वता,आलोचना,ना यकम,स पादन, श ण, त भ लखेन,अनुवाद ,आंदोलन से लेकर आयोजन तक सभी अपना योग देत ेह। उ होने सं कृ त को प रभा षत करते हुए ठ क कहा है क ''सं कृ त कसी भी समाज का आंत रक गुण व सजृना मक यवहार होता है और उसका सवा धक काशन कला और सा ह य म होता है। ''ने मजी का पूरा सं कृ त -कम उनके ले खन म ह का शत हुआ है। हम देखते ह क ने मजी के सां कृ तक यि त व के नमाण म िजतना योग उनके क व -यि त व और उप यास-समी क प का है,उतना ह योगदान उनके ना य -चतंक प का है। संगठन व सं कृ त-चतंन उनके यि त व को पूण बनाता है। उनक म -मंडल उनके यि त व को माँजती और सँवारती है। इस तरह सम ता म हम िजस ने मजी के यि त व को हा सल कर पात ेह ,वैसा बहुमखुी व आयोजनधम यि त व हम ह द म कोई दसूरा दखलाई नह ं

    पड़ता।

    fo"k; lwph

    1- dfo&o;fDrRo 2- jaxeaph; O;fDrRo 3- vkSiU;kfld leh{kk 4- jktuhfr o lkfgfR;d fe=rkA milagkjA lanHkZ xzaFk lwphA ifjf'k"VA

    29. 'kekZ ¼izhre flag½ ledkyhu fgUnh ukVdksa dh jaxHkk"kkA funsZf'kdk % izks- dqlqeyrk efyd Th 23102

    lkjka'k ¼vlR;kfir½

    ‘‘शोध सांरांश’’ मने अपने शोध ब ध को उपसंहार के अ त र त चार अ याय म वभािजत कया है। थम अ याय - ‘ ह द ना य सजृन क नवीन प रि थ तयाँ और समकाल नता क अवधारणा’ म यास रहा है क ह द ना य पर परा, उसके मखु पड़ाव , ना य सा ह य म या त प रवतनशील एवं वकासशील त व यथा -ना य -भाषा , रंग -भाव , रंगबु ध, रंग -प रक पना , रंग -स जा एव ंरंग-साम ी आ द का सं त आकलन कया जाए शोध ब ध के वतीय अ याय ‘ योगधम नाटककार एव ंउनक रचना या’ म समकाल न भारतीय ना य जगत ्के कुछ

    चय नत नाटक का ववेचन इस आशय स े कया गया है क - ववे य युग के पुरोधा नाटककार क त न ध रचनाओं ने कस कार समकाल न ह द नाटक क रंग भाषा को आकार दान कया है। ततृीय अ याय ‘समकाल न नाटक क रंगभाषा’ के अ तगत रंग तथा भाषा के सापे क संबधं को प ट करत ेहुए यह समझन ेका यास रहा है क कस कार ये दो श द समकाल न ह द नाटक के पयाय और प रचायक बन गये। शोध ब ध के चतथु अ याय - ‘रंगभाषा के त व’ के अ तगत समकाल न ह द नाटक क रंग भाषा का ताि वक व लेषण कया गया अ त म अपना शोध ब ध इस आशय स े तुत कर रहा हँू क आन ेवाल शोधाथ पीढ़ को समकाल न ह द नाटक के त न केवल आक षत करेगा अ पतु उ ह इस अथाह सागर से कुछ बहुमू य

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    मोती चुनने क ेरणा भी देगा। हम सब ‘ परा देलो’ के इस कथन का मम समझ पायगे क - ‘‘हमारे श द न क ठन ह न आसान व ेतो बस ऐसे है िजनका उपयोग अ नवाय है, िजनके अ त र त कोई अ य श द उस ि थ त म उस भाव को य त नह ं कर सकता।

    fo"k; lwph

    1- fgUnh ukV~;l`tu dh uohu ifjfLFkfr;k¡ vkSj ledkyhurk dh vo/kkj.kk 2- iz;ksx/kehZ ukVddkj ,oa mudh jpuk izfØ;k 3- ledkyhu fgUnh ukVdksa dh jaxHkk"kk 4- jaxHkk"kk ds rÙoA milagkjA lanHkZ xzaFk lwphA

    30. 'kqDy ¼vk'kqrks"k½ Hkk"kk esa ySafxdrk % Lokra×;ksÙkj ;FkkFkZoknh ukVdksa ds lanHkZ esa A funsZ'kd % MkW- Vsdpan Th 23101

    lkjka'k ¼vlR;kfir½

    Hkk"kk esa ySafxdrk% Lokra=;ksÙkj ;FkkFkZoknh ukVdksa ds lanHkZ esa vkd"kZ.k Hkk"kk dk vfuok;Z y{k.k gSA Hkk"kk gh og lsrq gS tks yksxksa dks ,d&nwljs ls tksM+rh gS] gekjs Hkkoksa vkSj fopkjksa dks vkdkj nsrh gS ,oa igpku dks x

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    lkjka'k ¼vlR;kfir½

    सु वधा क ि ट से इसे पाँच अ याय म वभािजत कया गया है। पहला अ याय 'समाज चेतना - अ भ ाय ' है। इसम समाज चेतना, समाज दशन, समाज ि ट क अवधारणाओं को प ट कया गया है। देश और काल को समाज चेतना का मुख कारक माना गया है। 'अ धकार', ' वतं ता', 'बंधु व' के साथ -साथ धम , सं कृ त और सा ह य का वणन कया गया है। दसूरा अ याय 'तुलसी और सरू के का य म च त सामािजक संरचना का व प' है। इसम वणा म यव था, सामािजक संबंध तथा नार चेतना का व लेषण कर समानता और वषमता को दखाने का यास कया गया है। तुलसी पारंप रक वणा म यव था को वीकार करत ेह क त ुसूर आ यानक संग के मा यम से च ण मा करते ह। तुलसी क नार सीता के मा यम से आदश प म कट होती है और

    शूपणखा के प म का मनी प म। सूर अदशता के बजाय वत ता को यादा मह व देते ह। सामािजक संबधं दोन क वय के का य म दखाई देता है। तीसरा अ याय 'तुलसी और सूर के का य म धम स दाय और भि त' के अंतगत उनके का य म म के सगुण और नगुण दोन प का वणन है, क तु व ेसगुण प के उपासक ह - तुलसी राम और सूर कृ ण प के। तुलसी का भि त दशन ' व श टा वैतवाद' के स धांत का तपादक है तथा

    सूर का भि त दशन 'शु धा वैतवाद' के स धांत का। अ याय चार का शीषक है 'तुलसी और सूर के का य म रा य और यव था का व प'। इसके अंतगत उनक युगीन जीवन ि थ तयाँ, रा य का दा य व और सामािजक आदश- अ धकार, वतं ता, बंधु व, मयादा और आचरण का व तारपूवक व लेषण कया गया है। 'तुलसी और सूर के जीवन आदश' नामक पांचव ेअ याय म उनक भि त और पु षाथ चतु टय का तुलना मक अ ययन कया गया है।

    fo"k; lwph

    1- lekt&psruk % vfHkizk; 2- rqylh vkSj lwj ds dkO; esa fpf=r lkekftd lajpuk dk Lo:i 3- rqylh vkSj lwj ds dkO; esa /keZ lEiznk; vkSj HkfDr 4- rqylh vkSj lwj ds dkO; esa jkT; vkSj O;oLFkk dk Lo:i 5- rqylh vkSj lwj ds thou vkn'kZA milagkjA lanHkZ xzaFk lwphA

    32. flag ¼vrqy½ ubZ dgkuh fo"k;d vkykspukRed izfrekuksa dk v/;;u A funsZ'kd % MkW- cyh flag Th 22719

    lkjka'k ¼vlR;kfir½

    Nayee kahani vishyak pricharcha me mukhya vimarsh yatharthvad aur adhuniktavad ka raha. Jisko ajadee ke bad ki bharat ki sanskritik paristhitiyon ne prabhavit kiya. Jo alochnatmak pratiman aur mudde vimarsh ka hissa bante hai usme yatharth, yathatrth ke antargar naye yatharth ka agrah, anubhuti ki pramanikta, bhoga hua yathart, parivesh, vargeey smbandh, stree-purush sambandh, vyakti svatantray ki anubhuti, adhuniktavadi mulyon ke roop me- mulyaheenta, ajnabeeyat, mrityubodh, santras, oob tatha astitvvadi jeevan darshan, grameen yatharth banam shahree yatharth, bharteeyta aur jateeyta ka saval, parampra ka sveekar aur asveekar, nayee kahanee banam nayee kavita, parampara, prayog athava pragati aadi pramukh hai. Adhuniktavadi kal mulyon ka agrah nayee kahani ke shilp ko bhi prabhavit karta hai. Kahaneepan kahani ka vishisht katha muly hai jiski avhelna nayee kahani me katipay alochkon aur kahaneekaron dvara hoti hai. Nayee kahani ke paricharcha me sakaratmak yah raha ki kathanak ki prachalit shashtreey avdharna khandit hoti hai aur yatharth sammukh kathanak manak ka vikash hota hai. Iske atirikt kahani charcha me kahani ki bhasha, prateek, bimb aur sanketikta jaise vishyon ko bhi sthan milta hai.

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    fo"k; lwph

    1- dgkuh fo"k;d vkykspukRed izfreku 2- dgkuh fo"k;d vkykspukRed izfrekuksa esa cnyko ,oa ubZ dgkuh 3- ubZ dgkuh dh vUroZLrq fo"k;d vkykspukRed izfreku 4- ub dgkuh dk f'kYi&fo/kku vkSj vkykspukRed izfreku 5- ubZ dgkuh fo"k;d vkykspukRed izfrekuksa dk ewY;kadu ,oa izklafxdrkA milagkjA lanHkZ xzaFkA

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    स ध सा ह य हदं सा ह य का थान बदं ुहै .स ध सा ह य का भाषा एव ं वचार दोन ि ट से हदं सा ह य

    के वकास म मह वपूण थान है .भाषा क ि ट से स ध सा ह य 'म यकाल न आयभाषा'' क अं तम कड़ी अप ंश भाषा म लखा गया है .तथा इसी अप ंश भाषा स े हदं भाषा के ल ण खोजे जा सकते ह.ये स ध बौ ध क महायान शाखा स ेस बं धत थे ,िजनक सं या चौरासी मानी गयी है .स ध म मखु क व सरहपा थे

    .इ होने ह सहजयान का वकास कया है . स ध के जीवन का मूल दशन 'सहजसाधना' है .व ेजीवन को कसी ब याड बर म जीन ेके वरोधी थे .व ेन 'भव' को मानत ेथ ेन ह ' नवाण' को .उनके लए 'भव' और ' नवाण' दोन

    ' च ' क अव था है .नाथपथं का मूल भी स ध क यह पर परा है .पर तु बाद म गोरख नाथ ने वयं को अलग कर नाथपंथ को था पत कया .यह नाथपंथ स ध स े संत तक क या ा को व ले षत करने म

    मह वपूण कड़ी है.नाथपंथ क मलू साधना 'योग साधना' है िजसका मूल शील -संयम और शु धतावाद है .स ध के समान नाथ न ेभी तां क उि ंखलताओ ंका वरोध कर साधु और गहृ थ दोन क कुर तय पर नमम हथौड़ ेस ेचोट कया .आगे चलकर कबीर आ द का नगुण पथं भी इसी माग पर आगे बढ़ा .य य प कबीर आ द संत पर अ य दशन का भी भाव देखने को मलता है ,पर तु अनेक ब दओुं पर वे स ध और नाथ क ह

    परंपरा म दखाई देते ह .इस कार कुछ स ध और कुछ न