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© 2015 JETIR March 2015, Volume 2, Issue 3 www.jetir.org (ISSN-2349-5162) JETIR1906L74 Journal of Emerging Technologies and Innovative Research (JETIR) www.jetir.org 513 सहभागी संचार एवं ामीण ा सशिकरण रे णु ससह, सहायक ोफे सर जनसचार सिभाग महाा गाधी अतररा य सहदी सि सिालय ावना सि ा सगठन ने ा को पररभासित करते ए बताया है सक के िल बीमाररयो एि सिकार सक अनुपथिसत को शरीर नही कहते बि ा एक भौसतक, मानससक एि सामासजक तदरी का परचायक होता है। सूचना के सबना कोई भी ि थि एि सटीक सनणणय नही ले सकता। सूचनाएँ एक ि को कई सिको के बीच सही सनणणय लेने म मदद करती ह। सूचनाएँ एक ि के ान को समृ बनाती ह। इससलए ा के े म एक ि को अपने शारीरक एि मानससक तदरी को बनाए रखने के सलए सही सनणणय लेने के सलए कई मूलभूत सूचनाओ एि जानकाररयो की आिकता होती है। भारत की असधकाश जनसा आज भी गाँि म सनिास करती है इससलए भारत का सिकास गाँि के सिकास के सबना सभि नही िा। रीबी, असशा, अधसिा, छु आछु त इासद कई कु रीसतयाँ आज भी अपनी जडे मबूती से बनाए ए ह। आज भी कई सकसान अपनी आसिणक बदहाली, अपने िसाय, अपनी सृ सत एि ा सधी समाओ से तग आकर खुदकु शी करने पर मजबूर ह। यह शोध सििय एक बडे सच का एक छोटा सचण है। एक थि शरीर बेहतर सनणणय शि का सामण रखता है। अगर हम गाँि िालो को ा सधी जानकारी केिल सिापन, अखबार, रेसियो या टेसलसिन के माम से देने का यास कर तो यह सु सनसित करना मुिल होगा सक गाँििाले उन सभी सूचनाओ को अपने रोमराण के जीिन म अमल म लाते ह। अत: ा जागऱकता ही ा सचार का सूणण उे नही है परतु अगर गाँििाल ा चेतना के साि अपना अनुकू ल िहार परितणन भी करते ह तभी ा सशिकरण का ल पूरा होगा। मेसिकल सशा चूँसक एक महँगी एि खचीली सशण पसत है , इससलए इसम ादातर शहरी े के सात पररिारो के बचे सशा हण करते ह। मेसिकल िसाय समाज से जुडा सििय है। समाज के सभी िगण के ि कभी ना कभी सकसी मोड पर िॉर और अताल के चर लगाते ह। िॉर को समाज म भगिान का दजाण सदया जाता है। परतु आज जब केिल अमीर घरानो के

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  • © 2015 JETIR March 2015, Volume 2, Issue 3 www.jetir.org (ISSN-2349-5162)

    JETIR1906L74 Journal of Emerging Technologies and Innovative Research (JETIR) www.jetir.org 513

    सहभागी संचार एवं ग्रामीण स्वास्थ्य सशक्तिकरण

    रेणु ससिंह, सहायक प्रोफेसर

    जनसिंचार सिभाग

    महात्मा गािंधी अिंतरराष्ट्र ीय सहिंदी सिश्व सिद्यालय

    प्रस्तावना

    सिश्व स्वास्थ्य सिंगठन ने स्वास्थ्य को पररभासित करते हुए बताया है सक केिल बीमाररयोिं एििं सिकार

    सक अनुपस्थिसत को स्वस्थ्य शरीर नही िं कहते बस्ि स्वास्थ्य एक भौसतक, मानससक एििं सामासजक

    तिंदरुस्ती का पररचायक होता है। सूचना के सबना कोई भी व्यस्ि स्वथि एििं सटीक सनणणय नही िं ले

    सकता। सूचनाएँ एक व्यस्ि को कई सिकल्ोिं के बीच सही सनणणय लेने में मदद करती हैं। सूचनाएँ

    एक व्यस्ि के ज्ञान को समृद्ध बनाती हैं। इससलए स्वास्थ्य के के्षत्र में एक व्यस्ि को अपने शारीररक

    एििं मानससक तिंदरुस्ती को बनाए रखने के सलए सही सनणणय लेने के सलए कई मूलभूत सूचनाओिं एििं

    जानकाररयोिं की आिश्यकता होती है।

    भारत की असधकािंश जनसिंख्या आज भी गाँि में सनिास करती है इससलए भारत का सिकास गाँि के

    सिकास के सबना सिंभि नही िं िा। ग़रीबी, असशक्षा, अिंधसिश्वास, छुआछुत इत्यासद कई कुरीसतयाँ आज

    भी अपनी जडे मज़बूती से बनाए हुए हैं। आज भी कई सकसान अपनी आसिणक बदहाली, अपने

    व्यिसाय, अपनी सिंसृ्कसत एििं स्वास्थ्य सम्बिंधी समस्याओिं से तिंग आकर खुदकुशी करने पर मजबूर

    हैं। यह शोध सििय एक बडे सचत्र का एक छोटा सचत्रण है। एक स्वथि शरीर बेहतर सनणणय शस्ि का

    सामर्थ्ण रखता है। अगर हम गाँि िालोिं को स्वास्थ्य सम्बिंधी जानकारी केिल सिज्ञापन, अखबार,

    रेसियो या टेसलसिज़न के माध्यम से देने का प्रयास करें तो यह सुसनसित करना मुस्िल होगा सक

    गाँििाले उन सभी सूचनाओिं को अपने रोज़मराण के जीिन में अमल में लाते हैं। अत: स्वास्थ्य

    जागरूकता ही िं स्वास्थ्य सिंचार का समू्पणण उदे्धश्य नही िं है परिं तु अगर गाँििालें स्वास्थ्य चेतना के साि

    अपना अनुकूल व्यिहार पररितणन भी करते हैं तभी स्वास्थ्य सशस्िकरण का लक्ष्य पूरा होगा।

    मेसिकल सशक्षा चँूसक एक महँगी एििं खचीली सशक्षण पद्धसत है, इससलए इसमें ज़्यादातर शहरी के्षत्र

    के सम्भ्ािंत पररिारोिं के बचे्च सशक्षा ग्रहण करते हैं। मेसिकल व्यिसाय समाज से जुडा सििय है।

    समाज के सभी िगण के व्यस्ि कभी ना कभी सकसी मोड पर िॉक्टर और अस्पताल के चक्कर लगाते

    हैं। िॉक्टर को समाज में भगिान का दजाण सदया जाता है। परिं तु आज जब केिल अमीर घरानोिं के

    http://www.jetir.org/

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    शहरी बच्चें इस व्यिसाय से जुडेंगे, तब यह समस्या पैदा हो जाएगी सक िे गाँि में रहकर अपना

    उपचार कें द्र ही िं थिासपत ना करें । शहर और गाँि दोनोिं जगह समान रूप से अचे्छ सचसकत्सक की

    आिश्यकता होती है। ग्रामीण सनिासी अपने छोटे-छोटे बीमाररयोिं के सलए शहर नही िं जा पाते हैं और

    उन्हें अपनी बीमारी के उपचार के सलए झोला छाप सचसकत्सकोिं की सेिा लेनी पडती है। गाँि के

    प्रािसमक सेिा कें द्र एििं सरकारी अस्पताल के सचसकत्सक भी गाँि िालोिं को सनचले स्तर की सेिाएँ

    उपलब्ध कराते हैं तिा कई बार लापरिाही की खबरें भी सामने आई हैं।

    इससलए गाँििालोिं को भी बेहतर सचसकत्सा सुसिधा समल सके इससलए यह आिश्यक है सक नए

    मेसिकल छात्र छात्राओिं या नए सचसकत्सकोिं को अपने व्यिसाय की गररमा, महत्ता और दासयत्व का

    बोध कराया जाए। उन्हें यह आभास कराया जाए सक मेसिकल व्यिसाय केिल पैसे कमाने, सुख

    सुसिधाओिं के साि जीने का नाम नही िं है असपतु यह एक व्यिसाय नही िं- एक सेिा है। मेसिकल सशक्षण

    के अत्यसधक सिसृ्तत पाठ्यक्रम की िजह से सिधािी सामासजक अलगाि, सैधास्िक और सकताबी

    ज्ञान के बोझ से दबकर मानससक रोग से ग्रससत हो जाते हैं। परिं तु जब ये छात्र अपने पाठ्यक्रम और

    कक्षाओिं से िोडा अलग होकर समाज के बीच में जाते हैं तो उनका सामासजक अिंतरसिंबिंध बनाने की

    प्रिृसत का भी सिकास होता है। छात्रोिं में नेतृत्व कौशल, सलाह देना, लोगोिं से बातचीत करना और

    उनकी बात सुनने के साि ही सामासजक और धासमणक ससहषु्णता का सिकास होता है।

    शोध लक्ष्य

    इस अध्ययन द्वारा यह समझने का प्रयास सकया गया है सक सहभागी सिंचार प्रणाली सकस तरह से

    ग्रामीण लोगोिं में बेहतर तरीके से स्वास्थ्य सम्बिंधी जागरुकता ला सकती है एििं उनका स्वास्थ्य

    सशस्िकरण कर सकती है।

    शोध का महत्त्व

    अत: भारत के ग्रामीण पररिेश में स्वास्थ्य की यह स्थिसत देखकर अिश्य कहा जा सकता है सक जब

    तक ग्रामीण के्षत्रोिं में अच्छी स्वास्थ्य सुसिधाएँ उपलब्ध नही िं कराई जाती तब तक देश में समुसचत

    सिकास सम्भि नही िं है। ितणमान शोध गाँि िालें के स्वास्थ्य सम्बिंधी जागरूकता पर ही िं कें सद्रत ना

    होकर स्वास्थ्य सशस्िकरण की अिधारणा पर सिचार करता है। स्वास्थ्य सशक्तिकरण एक

    समू्पणण प्रक्रिया है जहााँ स्वास्थ्य सेवा कमी में अपने कायण के प्रक्रि संवेदना क्रवकक्रसि करने से

    लेकर लोगो ं में स्वास्थ्य जागरूकिा, स्वास्थ्य संचार, स्वास्थ्य समं्बधी क्रनणणय एवं व्यवहार

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    पररविणन इत्याक्रद सभी पहलुओ ं पर गहन अध्ययन कायण क्रकया जािा है। ग्रामीण स्वास्थ्य

    सशस्िकरण करने के प्रस्तासित दो तरीके हो सकते हैं:

    प्रिम अगर सचसकत्सक इतने जागरूक एििं समाज सेिी होिं सक गाँि में जाकर ग्रामिाससयोिं के सलए

    अपनी सेिाएँ दे। सद्वतीय सक ग्रामिासी अपने-आप सशि बने तासक अपने बीमारी के लक्षण को

    पहचाने और सनसिंकोच पास के स्वास्थ्य कें द्र या अस्पताल जाकर अपना इलाज करिाए एििं बीमारी

    की असली िजह- जैसे खान पान में बदलाि, स्वच्छता, पीने का पानी इत्यासद सििय पर भी ध्यान दे

    और अपनी बीमारी का जड से इलाज करें।

    भारि की स्वास्थ्य क्तथिक्रि

    स्वास्थ्य एििं पररिार कल्याण मिंत्रालय के ररपोटण “Rural Health Statistics 2014-15” के अनुसार

    31 माचण 2015 तक देश में 153655 उप स्वास्थ्य कें द्र (sub centre), 25308 प्रािसमक स्वास्थ्य कें द्र

    (Primary Health Centre) तिा 5396 सामुदासयक स्वास्थ्य कें द्र (Community Health Centre)

    हैं। परिं तु भले ही इन स्वास्थ्य कें द्रो में िृस्द्ध हुई हो लेसकन जनसिंख्या के अनुपात में भारत जैसे देश

    के सलए इतने स्वास्थ्य कें द्र पयाणप्त नही िं हैं। एक स्वास्थ्य उपकें द्र, समाज और स्वास्थ्य कें द्र के बीच

    की पहली कडी है। हर स्वास्थ्य उपकें द्र में एक ANM (Auxiliary nurse midwife) और दो स्वास्थ्य

    कमणचारी- एक स्त्री, एक पुरुि होते हैं। इन कें द्रो को अिंतिैयस्िक सिंचार द्वारा लोगोिं को बीमाररयोिं

    के लक्षण, उनके रोकिाम की जानकारी और अपने व्यिहार में बदलाि लाने की ज़रूरत को

    समझाने का कायण सदया जाता है। ििण 2011 की जनगणना के आधार पर Rural Health Statistics,

    2014-15 ररपोटण के अनुसार 5426 लोगोिं यानी चार गाँि पर एक उपस्वास्थ्य कें द्र है, जबसक सनयम

    अनुसार 3000-5000 की जनसिंख्या के ऊपर एक उपस्वास्थ्य कें द्र होना चासहए। प्रािसमक स्वास्थ्य

    कें द्र (PHC) पर समुदाय अपने सामान्य उपचार के सलए मेसिकल ऑस़िसर के पास जाता है। एक

    प्रािसमक स्वास्थ्य कें द्र की थिापना सनयमत: 20,000- 30,000 तक की जनसिंख्या पर होनी चासहए,

    परिं तु माचण 2015 तक भारत में अभी 32,944 की जनसिंख्या यानी लगभग 25 गाँि पर एक प्रािसमक

    स्वास्थ्य कें द्र मौजूद है। सामुदासयक स्वास्थ्य कें द्र (CHC) पर सकसी सिशेि रोग, चोट या बीमारी के

    इलाज के सलए लोगोिं को यहाँ आना पडता है कँू्सक सामान्य सचसकत्सकोिं के अलािा सिशेिज्ञ भी

    समलते हैं। एक सामुदासयक स्वास्थ्य कें द्र की थिापना सनयमत: 80,000- 120,000 तक की जनसिंख्या

    पर होनी चासहए, परिं तु माचण 2015 तक अभी 154,512 की जनसिंख्या यानी लगभग 119 गाँि पर

    एक प्रािसमक स्वास्थ्य कें द्र मौजूद है।

    http://www.jetir.org/http://www.shabdkosh.com/translate/%E0%A4%85%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A5%88%E0%A4%AF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%95/%E0%A4%85%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A5%88%E0%A4%AF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%95-meaning-in-Hindi-English

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    देश के प्रािसमक स्वास्थ्य कें द्र में लगभग 27421 एलोपेसिक िॉक्टर कायणरत हैं परिं तु अभी भी पहले

    से थिासपत प्रािसमक स्वास्थ्य कें द्रोिं में 11.9 प्रसतशत िॉक्टरोिं की कमी महसूस की जा रही है।

    सामुदासयक स्वास्थ्य कें द्रोिं में 4078 सिशेिज्ञ सचसकत्सक, 11822 सामान्य डू्यटी मेसिकल ऑस़िसर

    (GDMOS) कायणरत हैं। परिं तु यहाँ भी सिशेिज्ञोिं की भारी कमी है - जैसे शल्य सचसकत्सक 83.4

    प्रसतशत कम हैं , स्त्री रोग सिशेिज्ञ 76.3 प्रसतशत कम हैं , स़िसजसीयन 83.0 प्रसतशत कम है और

    बालरोग 82.1 प्रसतशत कम हैं। कुल समलाकर देखें तो लगभग 81.2 प्रसतशत सिशेिज्ञ िॉक्टरोिं की

    कमी सामुदासयक स्वास्थ्य केन्द्ोिं में सदखती है।

    भारत में प्रािसमक स्वास्थ्य केन्द्ोिं की स्थिसत बहुत खराब है कोई भी िॉक्टर गाँि में जाने के सलए

    तैयार नही िं है। मेसिकल (MBBS) के छात्रोिं के सलए गाँि में एक ििण के सलए सेिा देना असनिायण सकये

    जाने पर िॉक्टरोिं ने तीखा सिरोध सकया िा। ऐसे में यह सचिंतनीय हो जाता है सक यसद पयाणप्त सिंख्या

    में प्रािसमक सचसकत्सा कें द्र खोल भी सदए जाएँ तो उसमे िॉक्टर कहा से लायें जायेंगे। भारत के कई

    ऐसे स्वास्थ्य कें द्र हैं जो िॉक्टर सिहीन है और कई ऐसे कें द्र हैं जहाँ केिल एक ही िॉक्टर उपलब्ध

    है। ये आकडें बताते हैं सक देश की बडी आबादी के सलए उपलब्ध स्वास्थ्य सेिाएँ सकतनी कम हैं।

    परिं तु यसद रोगोिं की तऱि देख जाए तो ितणमान में हमारे जीिनशैली और खान–पान में आए बदलाि

    के कारण कई बीमाररयाँ बढ़ रही िं है -चाहे िह ह्रदय रोग, रिचाप, मधुमेह हो या सफर मोटापा हो।

    ग्रामीण इलाकोिं में मलेररया, िायररया और तपेसदक जैसी बीमाररयाँ ही असधक देखी जाती रही हैं।

    जनस्वास्थ्य सेिाएँ, सा़ि–सफाई एििं रोग के कीटाणुओिं या िेक्टर सनयिंत्रण के उपायोिं द्वारा लोगो से

    बीमारी से सुरसक्षत करती है।

    सहभागी स्वास्थ्य संचार:

    ग्रामीण जनसमुदाय आज भी ग़रीबी, भुखमरी एििं अस्वस्थ्य पररिेश में जीिन यापन करते हैं। आज

    भी गभणिती माताओिं की देखभाल, सशशु का जन्म, सा़ि पानी, पोिक और सिंतुसलत आहार, टूटे फूटे

    मकान, गिंदगी भरे माहोल जैसे मुद्ोिं से ग्रामिासी जूझते सदखते हैं। स्वास्थ्य एक ऐसा सििय सजसपर

    लापरिाही करना सबलकुल भी उसचत नही िं होता परिं तु अज्ञानता, अभाि और ग़रीबी की स्थिसत में गाँि

    िालोिं को स्वास्थ्य सम्बिंधी छोटी छोटी सुसिधाओिं और सूचनाओिं से ििंसचत रहना पडता है। भारत

    सरकार कई स्वास्थ्य पररयोजनाओिं को चला रहा है तासक सभी देशिाससयोिं को बेहतर जीिन स्तर

    प्राप्त हो सके। सामासजक व्यिथिा के सदस्य एक दूसरे की सहायता करें अिाणत सदस्योिं के मध्य

    साझेदारी सिकससत की जाये। सामासजक समूहोिं का सशस्िकरण तासक समाज के सदस्य अपने

    असधकारोिं के प्रसत सचेत हो सके। सहभागी स्वास्थ्य सिंचार अभी अपेक्षाकृत नयी सिंकल्ना है, सजसमें

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    निाचार के द्वारा समाज को सिकास सुनसित सकया जाता है। सहभागी स्वास्थ्य सिंचार, पारिंपररक तौर

    के स्वास्थ्य सिंचार से सभन्न है। इसमें समाज के सदस्योिं को िह स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकाररयोिं से अिगत

    कराया जाता है,तासक यह लोग खुद अपने स्वास्थ्य के प्रसत सचेत रहते हुये समािेशी सिकास में

    योगदान दे सकें ।

    सैधाक्तिक संरचना

    स्वास्थ्य सशस्िकरण की अिधारणा भी कही िं ना कही िं सहभागी सिकास की सिंकल्ना में सनसहत

    होती है। एक मनुष्य स्वास्थ्य चेतना से सशि तभी कहलाएगा जब स्वास्थ्य सम्बिंधी सनणणय- यानी

    उसे क्ा लक्षण सदखने पर यह तय करना है सक उसे िॉक्टर से समलना चासहए और कब उसे घरेलु

    उपचार का सहारा लेना चासहए - इन बातोिं पर सनणणय लेने की शस्ि मनुष्य में आती है तब िह कई

    मायनोिं में सशि कहलाएगा।

    अगर एक ग्रामीण अपने आप अस्पताल जाकर, िहाँ अपना पचाण भरकर, िॉक्टर से समलकर अपनी

    स्वास्थ्य समस्या का सनिारण करिाता है तो िह कही िं ना कही िं आत्म सनभणर और स्वतिंत्र कहलाएगा।

    स्वास्थ्य सशस्िकरण कभी भी एक तऱिा सिंचार से समू्पणण नही िं हो सकता बस्ि सिंचार की पहल

    दो तऱिा होनी चासहए। स्वास्थ्य योजनाओिं को समझने, उनका पालन करने या उनका सक्रयान्वयन

    कराने का सनणणय केिल ऊपर से नीचे की तऱि का ना होकर योजनाओिं के सक्रयान्वयन पर सनयिंत्रण

    ग्रामीण और लसक्षत समूह का भी होना चासहए।

    सहभागी क्रवकास संचार:

    सिंचार मानि के अस्स्तत्व का एक अहम सहस्सा है। यह हमारे बीच सूचनाओिं के आदान प्रदान का

    एक प्रमुख माध्यम है।सिंचार माध्यमोिं का सामुदासयक सचसकत्सा के सलए बहुत ज़्यादा प्रयोग सकया

    जाता है। सिंचार असभयान का प्रयोग स्वास्थ्य एििं सिकास के सिसभन्न पहलुओिं पर लसक्षत समूह को

    ध्यान में रखकर सकया जाता है। सिंचार असभयान का प्रयोग लोगोिं के ज्ञान िधणन , जागरूकता एििं

    व्यिहार में बदलाि लाने के उदे्धश्य से सकया जाता है। सिंचार असभयान का प्रयोग लसक्षत समूह से

    सीधा सम्पकण रखने िाले थिानीय प्रसतसनसधयोिं के सहयोग के सलए होता है तासक िे ज़्यादा से ज़्यादा

    समुदाय को प्रभासित कर सकें । सिंचार माध्यम समुदाय को सूसचत एििं सशसक्षत करने के सलए एििं

    समाज के बीच स्वास्थ्य सम्बिंधी बहस का मुद्ा एजेंिा के रूप में देते हैं तासक आम जनता इस सििय

    पर ज़्यादा से ज़्यादा तकण एििं सिमशण करे।

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    सहभागी क्रवकास संचार मुख्यि: क्रनम्न अवधारणाओ ंपर कायण करिा है:

    शक्ति एवं क्रनयंत्रण (Power and Control):

    शस्ि एििं सिंचालन पर सनयिंत्रण मात्र समाज के एक समूह या िगण का ना होकर बस्ि ग़रीब एििं

    सामान्य सभी िगों का समान रूप से हो। एक समाज के उसचत सिंचालन हेतु सभी जासत, धमण अििा

    समूह का प्रसतसनसधत्व होना चासहए तासक एक सिशेि िगण अपने आप को दूसरोिं से बेहतर एििं उच्च

    कोसट का न समझे। जब सिंचार माध्यम लोगोिं को अपने असधकार एििं उत्तरदासयत्व का बोध कराता

    है और अपने असधकारोिं से ििंसचत होने की स्थिसत पर उनके सलए आिाज़ उठाता है, तब सही मायनोिं

    में सहभागी सिंचार की अिधारणा साकार होती है।

    स्विंत्रिा (Liberation):

    अगर मनुष्य को पूणण प्रसशक्षण एििं उसचत ज्ञान देने के उपरािंत उन्हें यह आज़ादी दी जाए सक िे अपने

    जीिन के ़ैिसले स्वयिं ले तिा अपने जीिन को सही सदशा दें तो उसे सही मायनोिं में सहभागी सिकास

    कहते हैं।

    क्रववेचनात्मक अक्रभज्ञिा (Conscientization or Critical Consciousness)-

    पाओलो स़ियरर का सििेचनात्मक असभज्ञता का ससद्धािंत सहभासगता के ससद्धािंत पर आधाररत है।

    अगर सकसी व्यस्ि को आत्म-ज्ञान/आत्म-चेतना का बोध हो और िो अपने िसु्त स्थिसत का

    आलोचनात्मक सिशे्लिण करने में समिण हो तो िह सशि कहलाएगा। अपने िास्तसिक स्थिसत पर

    सिशे्लिण करने के सलए मनुष्य को अपनी अस्िता, अपने गुण अििा दोि तिा अपने िैकस्ल्क

    कायों का चुनाि करना खुद पता होना चासहए। Friere (1973) notes, “the permanent search

    of people together with others for their becoming more fully human in the world

    in which they exist”. इसका तात्पयण है सक सस़िण आत्म ज्ञान या जागरूकता होना ही अपने कायण

    को सम्पन्न करने में सािणक नही िं हो पाता असपतु अपने कायण को करने के सलए अििा अपने प्रश्न के

    हल के सलए समलजुल कर बातचीत करके समाधान खोजना चासहए।

    आत्म क्रनभणरिा (Self Reliance)

    सहभासगता के ससद्धािंत में आत्म सनभणरता अहम् थिान रखता है। आत्म सनभणर होने से एक व्यस्ि में

    आत्मसिश्वास पैदा होता है। आत्म सनभणर बनना कही िं न कही िं सनभणरता के चक्र को तोडता है। ग़रीब

    लोग हमेशा अमीरोिं पर सनभणर रहते हैं और अपने ग़रीबी के चक्र से कभी बाहर नही िं आ पाते तिा

    उधार और ग़रीबी के दलदल में धँसते जाते हैं। इससलए आत्मसनभणर बनना सहभागी सिकास का

    प्रमुख कारक है।

    http://www.jetir.org/

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    स्वास्थ्य संचार में अंिवैक्तिक संचार और अक्रभमि नेिा की भूक्रमका:

    यह सिंभि नही िं है सक िह स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकाररयोिं से सभी को सीधे तौर पर अिगत कराया जा

    सके क्ोिंसक सभी तक मीसिया की पहँुच सिंभि नही िं और ग्रामीण के्षत्रोिं में तो यह और भी मुस्िलोिं

    भरा कायण है। ऐसे में मीसिया से प्राप्त सूचनाओिं को सिस्ताररत करने में अिंतिैस्िक सिंचार और

    असभमत नेताओिं की भूसमका सबसे महत्त्वपूणण और प्रािंससगक भी है। ग्रामीण के्षत्रोिं में असभमत नेता,

    सिसभन्न सिंचार माध्यमोिं से प्राप्त स्वास्थ्य सूचनाओिं को ग्रहण कर, लोगोिं को स्वास्थ्य के प्रसत सचेत

    कर सकते हैं। अलग-अलग अध्ययनोिं में अिंतिैस्िक सिंचार और असभमत नेताओिं को भूसमका को

    स्वीकार सकया गया है (Knapp, Vangelisti & Caughlin, 2014)।

    सहभागी सिकास की अिधारणा को समुसचत सिकास का एक असभन्न अिंग मानता है। जब स्वास्थ्य

    चेतना एििं स्वास्थ्य जागरुकता का सििय आता तो केिल स्वास्थ्य सम्बिंधी सूचनाओिं एििं जानकाररयोिं

    को लसक्षत समूह तक पहँुचना ही िं स्वास्थ्य सिंचार नही िं होता है। असपतु जब लसक्षत समूह इन

    जानकाररयोिं से प्रभासित होकर अपने व्यिहार में सािणक बदलाि (behaviour change) करता है

    तब इसे सफल स्वास्थ्य सिंचार कहते हैं। स्वास्थ्य सिंचार को सफल एििं समू्पणण होने के सलए उसका

    सहभागी होना आिश्यक है। सहभागी स्वास्थ्य सिंचार से तात्पयण है जब सिंचार मॉिल के दोनोिं स्तम्भ

    सिंदेश सनमाणता एििं सिंदेश प्राप्तकताण —दोनोिं िगण समलजुल कर सहभागी रूप से सिंदेशोिं को समझने,

    उन पर आलोचना करने, सिमशण या सििाद करने का कायण करें तिा अपनी बुस्द्धमत्ता का प्रयोग कर

    अपने सलए कोई सनणणय ले, ऐसे सिंचार प्रणाली को सहभागी स्वास्थ्य सिंचार कहते हैं।

    क्रनष्कर्ण

    जीिन को गसतशील बनाने में ‘सिंचार’ की भूसमका सबसे महत्त्वपूणण है। इसका आशय यह सक सिंचार

    के द्वारा ही मानि अपना समू्पणण सिकास कर सकता है। इस समू्पणण सिकास के दायरे में ‘स्वास्थ्य’

    सबसे महत्त्वपूणण है। इससलये मानि का समू्पणण सिकास सुसनसित करना देश के नीसत-सनमाणताओिं का

    सिणप्रिम उदे्श्य है। इसका आशय यह है सक मनुष्य सामासजक, राजनीसतक, आसिणक और शारीररक

    तौर पर स्वथि और मजबूत हो। लेसकन इन सभी में शारीररक तौर पर सभी का स्वथि होना सबसे

    असधक आिश्यक है। क्ोिंसक मानि सिंसाधन के सिकास में स्वास्थ्य सबसे बडा मापदिंि है क्ोिंसक

    जब मनुष्य शारीररक तौर पर ही स्वथि नही िं हैं, तो िह सामासजक, आसिणक और राजनीसतक तौर पर

    सशि नही िं हो पायेगा। स्वामी सििेकानिंद ने भी स्वास्थ्य को सबसे महत्त्वपूणण माना है और कहा भी

    जाता है सक ‘स्वथि शरीर में स्वथि मस्स्तष्क रहता है’।

    http://www.jetir.org/https://scholar.google.co.in/citations?user=VWMXiusAAAAJ&hl=en&oi=srahttps://scholar.google.co.in/citations?user=aIZ93AQAAAAJ&hl=en&oi=sra

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    साधारण तौर पर लोगोिं को स्वास्थ्य के सििय में जानकारी देना और सशसक्षत करना, स्वास्थ्य

    सिंचार कहलाता है। स्वास्थ्य सिंचार में, जनसाधारण को यह समझाने का प्रयास सकया जाता है सक

    उसके सलए क्ा स्वास्थ्यप्रद और क्ा हासनप्रद है तिा इनसे साधारण बचाि कैसे सकया जाय? कई

    बार हम जानकारी के अभाि में सिंक्रमािंक रोग या अन्य गिंभीर बीमाररयोिं के कबे्ज में आ जाते हैं

    लेसकन यसद हमें इन बीमाररयोिं से बचाि के तरीके पता होिं तो हम बगैर कोई पैसा कमाये, साल भर

    में कई हजार रूपये बचा सकते हैं। भारत जैसे देश में जहाँ बहुत बडी आबादी गािोिं में सनिास करती

    है और जागरूकता के अभाि में, इन ग्रामीण के्षत्रोिं में स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्यायें भी बहुत असधक

    होती हैं। इन लोगोिं की आसिणक स्थिसत भी ठीक नही िं होती है और इसकी िजह से यह लोग कजण के

    जाल, खेती आसद को बेचकर या फसल को जल्दी और ससे्त दामोिं में बेचकर अपना इलाज आसद

    कराना पडता है।ऐसे में स्वास्थ्य के सििय में प्राप्त जानकाररयोिं, जागरूकता कायणक्रम आसद के

    माध्यम से बचाि सकया जा सकता है। और इसकी िोर ‘स्वास्थ्य सिंचार’ में सनसहत है।

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