ियतम को एक वष की सजा हो गयी। और अपराध के वल इतना था, कक तीन दिन पहले जेठ की तपती िोपहरी म उहने रार के कई सेवक का शषत-पान से सकार ककया था। म उस वत अिालत म खडी थी। कमरे के ाहर सारे नगर की राजनैततक चेतना ककसी ंिी पशु की भातत खडी चीकार कर रही थी। मेरे िाणधन हथकडडय से जकडे ह ु ए लाये गये। चार ओर सनाटा छा गया। मेरे भीतर हाहाकार मचा ह ु आ था, मानो िाण पघला जा रहा हो। आवेश की लहर-सी उठ-उठकर समत शरीर को रोमांचचत ककये िेती थीं। ओह इतना गवष मुझे कभी नहीं ह ु आ था। वह अिालत, क ु रसी पर ैठा ह ु आ अंेज अफसर, लाल जरीिार पगडडया ांधे ह ु ए पुललस के कमषचारी स मेरी आखो म तुछ जान पडते थे। ार-ार जी म आता था, िौडकर जीवन-धन के चरण म ललपट जाऊ और उसी िशा म िाण याग ि । ककतनी शांत, अवचललत, तेज और वालभमान से ििीत मततष थी। लातन, वाि या शोक की छाया भी न थी। नहीं, उन ओठ पर एक फ ततष से भरी ह ु ई मनोहाररणी, ओजवी मुकान थी। इस अपराध के ललए एक वष का कदठन कारावास! वाह रे याय! तेरी ललहारी है! म ऐसे हजार अपराध करने को तैयार थी। िाणनाथ ने चलते समय एक ार मेरी ओर िेखा, क ु छ मुकराये, कफर उनकी मुा कठोर हो गयी। अिालत से लौटकर मने पाच रपये की लमठाई मगवायी और वयंसेवक को ुलाकर खखलाया। और संया समय म पहली ार कांेस के जलसे म शरीक ह ु ई- शरीक ही नहीं ह ु ई, मंच पर जाकर ोली, और सयाह की ितता ले ली। मेरी आमा म इतनी शत कहा से आ गयी, नहीं कह सकती। सवषव लुट जाने के ाि कफर ककसकी शंका और ककसका डर। वधाता का कठोर-से-कठोर आघात भी अ मेरा या अदहत कर सकता था? 2 िसरे दिन मने िो तार दिये। एक पताजी को, िसरा ससुरजी को। ससुरजी पशन पाते थे। पताजी जंगल के महकमे म अछे पि पर थे; पर सारा दिन गुजर गया, तार का जवा निारि! िसरे दिन भी कोई जवा नहीं। तीसरे दिन िोन महाशय के प आये। िोन जामे से ाहर थे। ससुरजी ने ललखा - आशा थी, तुम लोग ुढापे म मेरा पालन करोगे। तुमने उस आशा पर पानी फे र दिया। या अ चाहती हो, म लभा माग । म सरकार से पशन पाता ह । तुह आय िेकर म अपनी पशन से हाथ नहीं धो सकता। पताजी के शि इतने कठोर न थे, पर भाव लगभग ऐसा ही था। इसी साल उह ेड लमलनेवाला था। वह मुझे ुलायगे, तो संभव है, ेड से वंचचत होना पडे। हा, वह मेरी सहायता मौखखक ऱप से करने को तैयार थे। मने िोन प फाडकर फ क दिये और उह कोई प न ललखा। हा वाथष! तेरी माया ककतनी िल है! अपना ही पता, के वल वाथष म ाधा पडने के भय से, लडकी की तरफ से इतना तनिषय हो जाय। अपना ससुर अपनी ह की ओर से इतना उिासीन हो जाय! मगर अभी मेरी उ ही या है! अभी तो सारी िुतनया िेखने को पडी है। अ तक म अपने वय म तनचं त थी; लेककन अ यह नयी चचंता सवार ह ु ई। इस तनजषन घर म, तनराधार, तनराय कै से रह गी। मगर जाऊ गी कहा? अगर कोई मिष होती, तो कांेस के आम म चली जाती, या कोई मजरी कर लेती। मेरे पैर म नारीव की ेडडया पडी ह ु ई थीं। अपनी रा की इतनी चचंता न थी, जतनी अपने नारीव की रा की। अपनी जान की कफ न थी; पर नारीव की ओर ककसी की आख भी न उठनी चादहए। ककसी की आहट पाकर मने नीचे िेखा। िो आिमी खडे थे। जी म आया, पछ तुम कौन हो। यहा य खडे हो? मगर कफर खयाल आया, मुझे यह पछने का या हक? आम राता है। जसका जी चाहे खडा हो।